Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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anamanna
अनुवाः बालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋषिजी
एवं खलु केवली जक्खारसेणं आइस्संति, एवं खलु केवली जक्खाएसेणं. आइटे समाणे आहच्च दो भासाओ भासइ, तंजहा मोसंवा, सञ्चामासंवा, से कहमेयं भंते! एवं ? गोयमा ! जंणं ते अण्णउत्थिया जाव जंणं एवमाहसु मिच्छंते एव माहंसें, अहं पुण गोयमा ! एव माइक्खामि ४ णो खलु केवली जक्खाएसेणं आदिस्सइ, णो खलु केवली जक्खाएसेणं आइट्ठ समाणे आहच्च दो भासाओ भासइ, तंजहा मोसंवा सञ्चामोसंवा ॥ केवलीणं असावजाओ अपरोवघाइयाओ आहच्च दो भासाओ
भासइ, तंजहा सच्चंवा असच्चामासंवा ॥ १॥ कइविहेणं भंते ! उवही पण्णत्ता ? प्रश्न करते हैं. राजगृह नगर में यावत् पर्युपासना करते हुवे श्री गौतम स्वामी ऐसा बोले कि अशे मावन् अन्यतीर्थिक ऐसा कहत हैं यावत् प्ररूपते हैं कि केवलि के शरीर में यक्ष प्रवेश करते हैं जिससे केवली भी क्वचित मृषा व सत्यमृषा ऐसी दो भाषा बोले. अहो भगवन् ! यह कथन किस तरह है ? अहो गौतम ! जो अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपते हैं उन का कथन मिथ्या है. अहो गौतम ! इस कथन को मैं इस प्रकार कहता हूं यावत् प्ररूपता हूं कि केवली यक्षाधिष्टित नहीं होते हैं. वैसे ही यक्षा al घिष्टित से मृषा व सत्यमृषा ऐसी भाषा केवली नहीं बोलते हैं; परंतु केवली सत्य र असत्यमृषा ऐसी दो ।
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालामसादजी.
भावार्थ
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