Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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गिरवसेसं ॥ ४ ॥ वादरपरिणएणं भंते ! अणंतपएसिए खंधे कइवण्णे पुच्छा ? गोयमा ! सिय एगवण्णे जाव सिय पंचवण्णे, सियएगगंधे, सिय दुगंधे; सिय एगरसे जाव सिय पंचरसे, सिय चउफासे जाव सिय अट्रफासे ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति । १. अट्ठारसमस छ8ो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १८ ॥ ६॥
. .. रायगिहे जाव एवं वयासी अण्णउत्थियाणं भंते ! एवं माइक्खंति जाव परूवति. पांच प्रदेशिक स्कंध का कहा ऐसे ही यावत् असंख्यात प्रदेशिक स्कंध का जानना. परमाणु से लगाकर अख्यात प्रदेशात्मक स्कंध सूक्ष्म परिणाम रूप होता है और अनंत प्रदेशिक स्कंध सूक्ष्म तथा बादर दानों परिणामरूप होता है इसलिये अनंत प्रदेशात्मक स्कंध की पृथक् व्याख्या करते हैं. अहो भगवन् ! मूक्ष्म से परिणत असंख्यात प्रदशिक स्कंध में कितने वर्णादि कहे हैं ? अहो गौतम ! जैसे पंच प्रदेशिक स्कंध का कहा वैसे ही इस का भी कहना. ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! बादर परिणत अनंतप्रदेशात्मक स्कंध में कितने
वर्णादि ? अहो गौतम ! स्यात् एक वर्ण स्यात् पांच वर्ण स्थात एक गंध स्यात दो गंध, स्यात एक 4रम स्यात् पांच रस स्यात् चार स्पर्श स्यात् आठ स्पर्श भी होता है. अहो भयवन् ! आप के वचन सत्य
हैं. यह अठारहवा शनक का छठा उद्देशा संपूर्ण हुआ. ॥ १८॥६॥ 17 छठे उद्देशे में नयवादियत आश्रित वस्तु विचारणा कही. अब सातवे उदेशे में अन्ययूथिक. मत आश्री
पंचमांग विवाह पस्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 488
२१+ अठारहबा शतक का सातवा उद्देशा
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