Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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Emaimammi
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भरावती).सत्र 4.8
गोयमा ! 'तिविहे. उवहीं पण्णत्ता, तंजहां कम्मोवहीं, सरीरोवही, बाहिरभंड मत्तोबगरणोवही, ॥ णेरड्याणं भंते ! पुच्छा ? दुविहे उवही पण्णत्ता तंजहा कम्मो वहीय, सरीरोबहीय, सेसाणं तिविहे उवही । एगिदियवजाणं जाव वेमाणियाणं ॥ एगिंदियाणं दुविहे उवही पण्णत्ता, तंजहा - कम्मोवहीय, सरीरोवहीयः ॥२॥ कइविहेणं भंते ! उवही पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहे उवही पण्णत्ता, तंजहा-सचित्ते,
अंचित्ते, मीसए, एवं णेरइयाणवि, एवं णिरवसेसा जाव · वेमाणियाणं ॥ ३ ॥ भाषाओं बोलते हैं ॥१॥ अहो भगवन् ! उपधि के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! उपधि के तीन भेद कहे हैं १ कर्मोपधि,२शरीरोपधि वश्वाह्य भंड पात्र व उपकरण की उपधि. अहो भगवन् ! नार में की को कितने प्रकार की उपाधि कही ? अहो गौतम ! नारकी को कर्म व शरीर ऐसी दो उपाधि कही. एकेन्द्रिय छोडकर शेष सब को तीनों प्रकार की उपधि कही.. एकेन्द्रिय को दो प्रकार की उपधि १ कर्मोपधि व २ शरीरोपधि. ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! उपषिके कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! उपधि के तीन भेद हैं-१ सचित्त, २ अचित्त, ३ मीश्र. नारकी आदि चौरिस दंडक में तीनों प्रकार की उपधि कहीं ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! परिग्रह के और कितने भेद कहे हैं. ? अहो
थावामे
अठारहवा शतक का सातवा उद्देशा488
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