Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
सल्लेवेरमणे पुढवीकाइए जाव वणस्सइ काइए, धम्मत्यिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवे असरीरपडिवढे परमाणुपोग्गले सेलेसिपडिवण्णए. अणगारे सव्वेय बादरादिधरा कडेवरा एएणं दुविहा जीवदव्वाय अजीवदव्वाय जीवदव्वाणं परिभोगत्ताए हव्यमागच्छंति ? गोयमा ! पाणाइवाए जाव एएणं दुविहा जीवदव्वाय अजीवदव्वाय, अत्थेगइया जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, अत्थेगइया जीवाणं
जाव णो हव्वमागच्छति ॥ से केणटेणं पाणाइवाय जाव णो हव्वमागच्छंति ? तिपात से निवर्तना यावत् मिथ्यादर्शनशल्य से निवर्तना, पृथ्वी कायिक यावत् वनस्पति कायिक धर्मास्ति काया, अधर्मस्तिकाय आकाशास्तिकाया, शरीर रहित जीव, परमाणु पुद्गल शैलेशी प्रतिपन्न अनगार, वादर शरीर धारन करनेवाले बेइन्द्रियादि ये सब जीव द्रव्य व अजीव द्रव्य ऐसे दो भेदों से क्या जीव द्रव्य को परिभोग के लिये आते हैं ? अहो गौतम ! प्राणातिपातादिक के जीव द्रव्य व अजीन द्रव्य ऐसे दो भेद किये हैं. उन में मे कितनेक जीवों के परिभांग के लिये आते हैं और कितनेक जीवों के परिभोग के लिये नहीं आते हैं. अहो भगवन् : ऐसा किस कारन से कहा गया है यावत् कितनेक नहीं आते हैं ? अहो गौतम ! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक और. सब *।
Amar amanawwwwwwwwww
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ
-
1