Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सत्र
भावार्थ
4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी
दो भंते ! असुकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारदेवत्ताए उववण्या, तत्थणं एगे असुरकुमारदेवे उज्जुयं विउव्विस्सामीति उज्जुयं विउव्वइ, वंक विउविस्तामोति वंकं विउवइ, जं जहा इच्छइ तं तहा विउबइ । एगे असुरकुमारे
२३३४ देवे उज्जुयं विउव्विस्सामीति वकं विउव्विइ वंकं विउव्विस्सामीति, उज्जयं विउव्वइ जं जहा इच्छइ णो तं तहा विउब्वइ ॥ से कहमेयं भंते! एवं ?गोयमा! असुर कुमारा दुविहा पण्णत्ता तंजहा-मायीमिच्छद्दिट्ठी उववण्णगाय,अमायीसम्मट्ठिी उववण्णगाय,
तत्थणं जे से मायीमिच्छविट्ठी उववण्णए असुरकुमारदेवे सेणं उज्जुयं विउव्विस्सामीति रहना है और जिस स्थान रहता है वहां का आयुष्य वेदता है. ऐसा वैमानिक पर्यंत जानना. परंतु पृथ्वीकाया पृथ्वीकाया में उत्पन्न होते पृथ्वीकाया का आयुष्य वेदते हैं और अन्य पृथ्वीकाया का आयुष्य आगे करके रहता है ऐसे ही मनुष्य पर्यंत स्वस्थान में उत्पन्न होने का व परस्थान आश्री पूर्वोक्त जैसे कहना ॥ ५ ॥ अहो भगवन ! एक असुरकुमारावास में दो असुर है.. कुमार देवतापने उत्पन्न हुए उन में एक असुरकुमार अच्छे रूप का चक्रेय करूंगा ऐसा करके अच्छेरूप का वैकेय करता है, वक्र रूप का वैक्रेय करूंगा. ऐसा करके वक्र रुप काय करता है, इस तरह जैसा इच्छता है वैसा करता है, और दूसरा असुरकुमार अच्छे रूप का वैक्रेय करूंगा ऐसा करके वक्र रूप का वैकेय करता और वक्र रूप का चक्रेय करूंगा ऐसा करके ऋजुरूप का वैकेय करे इस तरह जैसा इच्छे वैसा रूप कर सके नहीं तो यह किस तरह है ? अहो गौतम ! असुरकुमार के दो भेद कहे हैं मायी मिथ्यादृष्टि
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी,