Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
१ अनुवादक नालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी+
देवे सेणं णो पासादीए णो दरसणिज्जे, णो अभिरूवे णो पडिरूवे, से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! असुरकुमारा देवा दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-वेउव्विय सरीराय अवेउव्विय सरीराय, तत्थणं जे से वेउव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे सेणं पासादीए जाव पडिरूवे, तत्थणं जे से अवेउव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे सेणं णो पासादीए जाव णो पडिरूवे ॥ से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-तत्थणं जे से वेउब्धियसरीरे तंचेव जाव णो पडिरूवे ? गोयमा ! से जहा णामए-इहमणुस्सलोगसि दुवे पुरिसा
भवति, एगे पुरिसे अलंकिय विभूसिए, एगे पुरिसे अणलंकिय विभूसिए, एएसिणं कुमारबाप्त में दो असुरकुमार असुरकुमारपने उत्पन्न हुचे, जिन में एक असुरकुमार देव प्रासादिक, दर्शनीय, अधिरूप र प्रतिरूप हाये और दूसरा प्रासादिक दर्शनीय अभिरूप व प्रतिरूप होवे नहीं, तो यह कि तरह है। अहो मौतम! सुरकुधार देव के दो भेद कहे हैं. एक वैक्रेय शरीर किया हुवा और दुसरा ऋय शरीर नहीं किया हुवा. जो वक्रेय शरीर वाला होता है वह प्रासादिक यावत् प्रतिरूप होता है. जो वैऋय शरीर रहित होता है वह प्रासादिक यावत् प्रतिरूप नहीं होता है. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा कि वैक्रेय शरीरवाला प्रासादिक यावत् प्रतिरूप है और वैक्रय शरीर रहित प्रासादिक यावत्
•प्रकोशक राजावहदुर लाला मुखदेवसहाय नी जालाप्रसादजी .
মাৰাঘ।