Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावाथ
१०३ अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
समगम्ममाणमग्गा सव्विड्डीए जाव वेणं अकालपरिहीणं चैव ममं अंतियं पाउन्भवह ॥ ११ ॥ तणं ते गमट्टसहस्संपि कत्तियस्स सेट्ठिस्स एयमहं विणएणं पडिसुर्णेति २त्ता जेणेव साइं साइं गिहाई तेणेव उवागच्छंति उवागच्छत्ता विपुलं असणं जाव उवक्खडावेति २ ता मित्त णाइ जाव तरसेव, मित्तणाइ जाव पुरओ जेट्ठपुत्तं कुटुंबे ठावेंति ठावेइत्ता तं मित्तणाइ जात्र जेट्ठपुत्तेय आपुच्छंति, आपुच्छंतित्ता पुरिससहरसवाहिणीओ सीयाओ दुरूहंति २त्ता मित्तणातिणियग परिजणेणं जेट्ठपुत्तहिय समणुगम्ममाणेमग्गा सव्विढिए जाव रखेणं अकालपरिहा चेत्र कत्तियस्स सेट्ठियस्स अंतियं पाउष्भवंति ॥ १२ ॥ एणं से कत्तिएसेट्ठी विपुलं पुत्र को पुछकर सहस्र पुरुष वाहिनी शिविकापर बैठकर और मित्र ज्ञाति यावत् ज्येष्ट पुत्र की साथ सब ऋद्धिं यावत् वार्दित्र सहित अकाल रहित मेरी पास आओ ॥ ११ ॥ फीर उन एक हजार आठ गुमास्ताओंने कार्तिक श्रेष्टीकी इस बातको विनय पूर्वक सुनी वे अपने गृह गये, विपुल अशनादि बनाये और मित्र ज्ञाति यावत् उनकी सन्मुख ज्येष्ट पुत्रको कुटुंबमें स्थापकर मित्र ज्ञाति यावत् ज्येष्ट पुत्र को पुछकर सहस्र पुरुष वाहिनी शिविकापर { बैठकर मित्र ज्ञाति व ज्येष्ट पुत्र सहित सब ऋद्धि व वार्दित्र सहित मर्यादित काल में कार्तिक श्रेष्टी की पास आये || १२ || फीर कार्तिक श्रेष्टीने विपुल अशन पानखादिम व स्वादिस बनाकर गंगदत्त जैसे यावत् ।
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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