Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
एवं क्यासी एवं खलु भंते ! मागंदियपुत्ते अणगारे अम्हं एवमाइक्खइ जाव परूवेइ एवं खलु अजो! काउलस्से पुढवीकाइए जाव अंतंकरेइ, एवं खलु अज्जो । आउकाइए जाव अंतंकरेइ एवं खलु वणस्सइ काइएवि जाव अंतं करेइ सेकहमेयं भंते ! एवं ? ॥ ५ ॥ अजोत्ति ! समणे भगवं महागरे समणे णिग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी जंणं अज्जो ! मागंदिय पुत्ते अणगारे तुझे एवं माइक्खइ जाव परूवेइ एवं खलु अजो ! काउलेस्से पुढवीकाइए जाव अंतं करेइ, एवं खलु अजो ! काउलेस्से आउकाइए जाव अंतंकरइ एवं खलु अज्जो वणस्सइकाइएति जाव अंतं करेइ,
सच्चेवणं एसम? ॥ अहं पुण अजो! एव माइक्खामि ४ एवं खलु अजो! कण्हलेस्से पुत्र अनगार हम को ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूते हैं कि अहो आर्यो ! कापुन लेश्या वाला पृथ्वीकायिक जीव यावत् अंन करे, आएकायिक जीव यावन् अंत करे वनस्पति कायिक यावत् अंत करे तो अहो । भगवन् ! यह किस तरह है ? ॥ ५ ॥ श्रपण भगवन्त महावीर श्रमण निर्ग्रन्यों को आमंत्रणा कर ऐसे बोले कि अहो आयौँ ! माकंदिय पुत्र अन्गार तुम को ऐमा कहते हैं यावत् प्ररूपते हैं कि अहो आर्यों ! कापुतलेश्या वाला पृथ्वीकायिक जीव यावत् अंतकरे वैसे ही कापुत लेश्यावाला अप्कायिक व वनस्पति कायिक यावत् अंतकरे यह अर्थ मत्य है. अहो आर्यों ! मैं भी ऐसे ही कहता हूं यावत् मरूपता हूं
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* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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