Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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12 उवागच्छइ उवागच्छइत्ता णेगमट्ठसहस्सं सद्दावेइ, सद्दावेइत्ता एवं वयासी IA . एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए मुणिसुब्बयस्स अरहओ अंतियं धम्मं णिसंते सेविय
धम्म इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए ।। तएणं अहं देवाणुप्पिया ! संसारभयउन्विग्गे जाव पव्वयामि ॥ तं तुभेणं देवाणुप्पिया ! किं करेह किं वसह किंभे हिय इच्छिय, किं भे सामन्थे, ॥ ९॥ तएणं णगमट्ठसहरसं तं कत्तियं सेट्टि एवं वयासी जइणं देवाणुप्पिया ! संसार भयउम्बिग्गा, भीया जाव पव्यायाहिसि अम्हं देवाणु। प्पिया ! किं अण्णे आलंबेवा आहारवा पडिबंधेवा अम्हेविणं देवाणुप्पिया ! संसार कार्तिक श्रेष्ठी यावत् नीकलकर हस्तिनापुर नगर में गृह गये और एक हजार आठ 3 गुमास्ते को बोलाकर ऐसा बोले अहो देवानप्रिय! मैंने मुनिमुन की पास से धर्म सुना है वही धर्म मैंने. इच्छा है यावत् सच्चा है. इस मे अहो देवानुप्रेिय ! संसार भय से उद्विग्न बना हुवा यावत् दीक्षा अंगीकार करूंगा. अहो देवानुपिय ! तुम क्या करोगे क्या व्यवसाय करोगे अश्या तुमारा क्या सामर्थ्यपना है ? ॥९॥ सब उक्त एक हजार आठ गुमास्ते उस कार्तिक श्रेष्ठ को ऐने वाले कि अहो देवानुप्रिय ! जब आप संसार भय से उद्विग्न व भयभीत बने हसे हैं यावत् प्रवा लेंगे तब अहो देवानप्रिय ! हम को
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
प्रकाशक राजावहदुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादनी