Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
* पंत्रमागविवाह पुष्णाति ( भगवती ) सूत्र पंचमांगविवाह पण्णति ( भगवती
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णित्ता पच्छा उववजिज्जा, सव्वेण समोहणमाणे पुव्वि उववजिज्जा पच्छा संपाउणेजा, से तेणद्वेणं जात्र उववज्जेज्जा ॥ १ ॥ पुढवीकाइयाणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाएं पढवी जाब समोह समोहएत्ता जे भविए ईसाणे कप्पे पुढवी एवं चैव ईसाणेवि ॥ एवं अच्चुवे विमाणे अणुत्तर विमाणे ईसिप्पभाराएय एवं वेत्र ॥ २ ॥ पुढवी काइयाणं भेते ! सक्करष्पभाए पुढबीए समोहए समोहएत्ता जे भविए सोहम्मकप्प पुढवी एवं जहा रयणप्पभाए पुढवीकाइओ उबवाइओ; एवं सक्करप्पभाए पुढवी काइओ उबवायम्वो, जाव ईसिप्पभाराए, एवं जहा रयणप्पभाए वत्तन्वया भणिया {उत्पन्न
होवे और सर्व से समुद्धात करते पहिले उत्पन्न होवे पीछे आहार करे इसलिये ऐसा कहा गया है. { यावत् उत्पन्न होवे ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! इस रस्नमभा पृथ्वी में पृथ्वी काया मारणांतिक समुद्धात करके ईशान देवलोक में पृथ्वी कायापने उत्पन्न हो तो क्या पहिले उत्पन्न होकर पीछे आहार करे अथवा { पहिले आहार करके पीछे उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जैसे सौधर्म देवलोकका कहा वैसे ही यहां जानना. ऐसे ही सनत्कुमार यावत् अच्युत, वैवेषक, अनुत्तर विमान व ईषत्प्राग्भार पृथ्वी तक का जानना ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! शर्करप्रभा में से पृथ्वीकाया मारणान्तिक समुद्धात करके सौधर्म देवलोक में पृथ्वी काया
488*- सतरहवा शतक का छठा उद्देशा 438+---
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