Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
48+ पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ते ( भगवती ) सूत्र
भावेणं किं पढने पुच्छा ? गोपमा ! णो पढमे अपढमे ॥ एवं विगलिंदियवज्जं जाव माणिए || एवं पुहत्तेणवि || असण्णी एवंचेत्र एगत्तपुहत्तेणं णवरं जाव वाणमंतरा जो सण्णी णो असण्णी ॥ जीवे मणुस्से सिद्धं पढमे णो अढमे || एवं पुहतेण वि ॥ १३ ॥ सलेस्सेणं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! जहा आहारए एयं पुत्तेचि ॥ कण्हेलेस्से जात्र सुकलेस्से एवं चेत्र णवरं जस्स जा लेस्सा अत्थि || अलेस्से णं जीवा मस्सा सिद्धा णो णी णो असण्णी ॥ १४ ॥ सम्मद्दिट्ठीएणं भंते ! सम्म हिट्ठीभावेणं किं पढमे पुच्छा ? गोयमा ! सिय पढमे सिय अढमे. एवं एगिंदियत्रजं
{ एक आश्री व अनेक आश्री जानना ||१२|| अहो भगवन्! संज्ञी क्या मंज्ञीभावसे प्रथम है या अमयम है? अहो गौतम !! { प्रथम नहीं है परंतु अप्रथम है. ऐसेही विकले द्रेय छोडकर वैमानिक तक काना जैसे एक आश्री कहा वैसे अनेक {आश्री जानना. असंज्ञी का भी एक आश्री अनेक आश्री ऐसे ही जानना. विशेषवाणव्यंतरक कहना. तो संज्ञी नो असंज्ञी जीव मनुष्य व निद्ध आश्रम है परंतु अमन नहीं है ||१३|| मलेशी एक व अनेक आश्री आहारक { जैसे कहना. कृष्णलेशी यावत् शुक्ल लेशीका भी बसे ही जानना. परंतु जिनमें जितनी लेश्या होवे उन में उतनी कहना. अलेशी का जीव मनुष्य व सिद्ध आश्री नो संज्ञी नो अज्ञी जैसे कहना || १४ || अहो भगवन् !
4 अठारहवा शतक का पहिला उद्देशा
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