Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ मूल का संभ पा• देखे उ० निर्मूल करते उ. निर्मुल करे उ० निर्मूल किया अ० स्वतः को म० मामे :
त. उती क्षण बु० जाग्रत होवे ते . उसी भव में जा. यावत् अं• अंतकरे ॥२३॥ ए. एक म० बडा खी. क्षीर कुंभ द० दधिकुंभ घ. घृतकुंभ म. मध्कुंभ पा० देखें उ० उठाता हुवा उ० उठावे उ० उठाया अ० स्वतः म० माने त० उसी क्षण प० जाग्रत होवे जा. यावत् अं• अंतकरे ॥ २४ ॥ ए. एक म० बड़ा मु० मदिरा वि. अचित्त कुंकुभं सो० मोवीर वि०अचिस कुंकुंभ ते. सेल का कुंभ वा. वासकुंभ पा.
पासइ. उम्मूलेमाणे उम्मूलेइ, उम्मूलमिति अप्पाणं मण्णइ, तक्खणमेव बुज्झइ, तेणेव जाव अंतंकरेइ ॥ २३ ॥ इत्थीवा पुरिसेवा सुविणंते एगं महं खीरकुंभंवा दधिकुंभंवा घयकुंभंवा महुकुंभंवा पासमाणे पासइ उप्पाडेमाणे उप्पाडेइ. उप्पाडितमिति अप्पाणं मण्णइ, तक्खणमेव बुज्झइ, तेणेव जाव अंतंकरेइ ॥ २४ ॥ इत्थीवा पुरिसेवा
सुविणंते एगं महं सुरावियडकुंभंवा, सोवीरवियडकुंभंवा, तलकुंभंवा, वसाकुंभंवा भावार्थ स्तंभ. बल्लीमूल का संभ देखे, देखकर उसे मूल में से उखेडता हुवा माने और शीघ्र जागृत होजावे तो
उमी भव में सीझे बुझे यावत् अंत करे ॥ २३ ॥ कोई स्त्रो अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में एक बडा क्षीरका लघडा, दधि का घडा, घृत का घडा व मधु का घडा, देखकर उसे उठाता हुवा स्वतः को माने और शीघ्र
जागत होवे तो उसी भव में अंत करे ॥ २४ ॥ कोई स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में एक बड़ा
अनुगादकबालब्रह्मवारी मुनि श्री अन लक ऋ पेनी
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *