Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
दीवकुमाराणं भंते ! सव्वे समाहारा सव्वे समुस्सासणिस्सासा ? णो इणट्टे समटे ॥ एवं जहा पढमसए बितिय उद्देसए दीवकुमाराणं वत्तव्वया तहेव जाव समाउया समुस्सासणिस्सासा ॥ एवं णागावि ॥ १ ॥ दीवकुमाराणं भंते ! कइलेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा! चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओ तंजहा कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा॥ एएसिणं भंते ! दीवकुमाराणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साणय कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया ? गोयमा ! सव्वत्थोवा दीवकुमारा तेउलेस्सा, काउलेस्सा असंदशवे उद्देशे में अवधिज्ञान का कथन किया. अग्यारहवे उद्देशे में अवधिज्ञानवंत का कथन करते हैं. अहो भगवन् ! भवनपति जाति के द्वीप कुमार देव क्या सरिखे आहार करने वाले हैं. और सब सरिखे उश्वासनीश्वास वाले हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् वैसा नहीं है. इस का विशेष खलासा प्रथम शतक का दूसरा उद्देशा में जैसा कहा वैसे यहां जानना यावत् समान आयुष्य व समान ब. ऊश्वास नीश्वास. ऐसे ही नाग कुमार का जानना. ॥१॥ अहो भगवन्! द्वीप कुमार को कितनी लेश्याओं कहीं ? अहो गौतम ! द्वीप कुमार को चार लेश्याओं कही. कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या. अहो भगवन् ।
इन कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या वाले में से कौन किस से अल्प बहुत यावत् विशेषाधिक है ? 10 अहो गौतम ! सब से थोडे तेजोलेश्या वाले द्वीप कुमार, उस से कापोतलेश्या वाले असंख्यात गुने ।
298 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
*880+ सोलहवा शतक का अग्यारहवा उद्देशा-4889