Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -बालब्रह्मचारी
महा मुखवाले था. बाहिर के पो० पद्ल अ० ग्रहण किये विना प. समर्थ आ० आने को जो नहीं यह अ० अर्थ म. ममर्थ दे.देव मं० भगवन् म. महद्धिक ए. ऐमा ए. इस अ० अभिलाप से गई जाने को ए. ऐसे भा० बोलने को वि० प्रश्न पूछने को उ. उन्मेष करने को नि निमेष करने को आई संकुचित करने को प० प्रसारने को ठा० स्थान से० शैय्या नि. निषिद्या वे० जानने को वि० वैक्रेय करने को प० परिचारणा करने को जा. यावत् हैं. हां ५० समर्थ इ० ये अ० आठ उ० संक्षिप्त ५०
जाव महसक्खे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू आगमित्तए ? णो इणढे समढे देवेणं भंते! महिदिए जाव महेसक्खे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू आगमित्तए ! हंता पभू देवेणं भंते ! महिड्डिए एवं एएणं अभिलावेणं गमित्तए २, एवं भासित्तएवा, वियागरित्तएवा ३, उंमिसावेत्तएवा निम्भिसावेत्तएवा ४, आउंटावेत्तएवा पसारेत्तएवा ५,
ठाणं वा. सेजं वा णिसीहियं वा. वत्तित्तएवा ६, एवं विउवित्तएवा ७. एवं परिवाला देव वाहिर के पुद्गल ग्रहण किये विना क्या आने को समर्थ है ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है अर्थात् बाहिर के पुद्गल ग्रहण किये विना यहां आने को समर्थ नहीं है. अहो भगवन् ! महर्दिक 4 महासखवाला देव बाहिर के पुदगल ग्रहण कर क्या यहां आ सकते हैं ? हां गौतम ! बाहिर के पुद्गल ग्रहण कर यहां आ सकते हैं. जैसे आने का आलापक कहा वैसे ही जाने का, बोलने का उत्तर देने का, आंखों दकने का, आंखों खोलने का, संकुचन व प्रसारन करने का, शैय्या, ध्यान व कायोत्सर्ग
wanaamaananam
प्रकाशकाजाबहादुर लालामुखदवसहायनी ज्वालामसादजी*
भावार्थ