Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ कहे तं तद्यथा अ• यथातथ्य प० प्रमाण चि. चिंता स्वप्न त० तद्विपरित अ० अध्यक्त दर्शन ॥१॥
म०. सोया हुवा मु० स्वप्न पा० देखे जा० जागृत सु. स्वप्न पा० देखें सु० मुप्त जाग्रत सु० स्वप्न पा०* देखे गो० गौतम णा नहीं सु सुप्त को नहीं जा जागृत मु• सुप्त जाग्रत ॥२॥ जी• जीव भं० भगवन्
तंजहा-अहातच्चे, पयाणे, चिंतासुमिणे, तन्विवरीए, अव्वत्तदसणे ॥ ॥ सुत्तेणं __ भंते ! सुविणं पासइ जागरे सुविणं पासइ सुत्तजागरे 'सुविणं पासइ ? गोयमा !
णो सुत्ते सुविणं पासइ जो जागरे सुविणं पासइ, सुत्तजागरे सुविणं पासइ ॥ २॥ भावार्थ
१२ विस्ताररूप स्वप्न सो प्रतान यह यथातथ्य से विपरीत है. ३ जाग्रत अवस्था में जो चितवन किया। होवे बही स्वप्न अवस्था में आवे सो चिन्ता स्वप्न ४ स्वप्न में जो वस्तु देखी होवे उस से विपरीत वस्तु की प्राप्ति होना सो नद्विपरीत स्वप्न ५ और स्वप्न का अर्थ समझ में आवे नहीं सो अव्यक्त स्वप्न ॥१॥ अहो भगवन् ! सोते हुवे [निद्रस्थ ] स्वप्न आता है, जगते हुवे स्वप्न आता है। या सोतेजगते हुवे स्वप्न आता है ? अहो गौतम ! सोते हुवे स्वप्न 'नहीं आता हैं. जगते
हुवे स्वम नहीं आता है परंतु अर्ध सोते अर्ध जगते हुने स्वम आता है. * ॥२॥ अहो भगवन् ! जीव । Trolo..* यहां सोने जगने के दो भेद समझना. द्रव्य से व भाव से द्रव्य से. सोता हुवा निद्रा आश्री कहा जाता है और
भान में सोता हुबा मोहमिद्रा भाश्री मिना जाता है, इस में से यहांपर-द्रव्य- निद्रालेना. ...........
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र
. सोलहवा शतक का छठा उद्दश
बम