Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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• प्रकाशक राजाबहादुर लाला
शब्दार्थ 4 सु० सुत जा० जाग्रत मु० सुप्त जावत गौ० गौतम जी जीव मु० सुप्त जा. जाग्रत मु• सुप्त जावत
॥३॥ सं• संवृत मु. स्वण पा• देखे अ० असंहत मं० मंवृता संवृत गो. गौतम सं० संवृत. सु.
जीवाणं भंते ! मुत्ता जागरा सुत्त जागरा ? गोयमा ! जीवा सुत्तावि जागरावि सुत्तजागरावि। णेरइयाणं भंते ! किं सुत्ता पुञ्छा गोयमा! गैरइया सुत्ता णो जागरा ‘णो सुत्तजागरा एवं जाव चउरिदिया पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! किं. सुत्ता : पुच्छा, गोयमा ! सुत्ता णो जागरा सुत्तजागरावि ॥ मणुस्सा जहा जीवा, वाणमं
तरजोइसिय वेमाणिया जहा रइया ॥ ३ ॥ संवुडगं भंते ! सुविणं पासह मोसे हुवे हैं, जगत हुवे हैं या मोते नगते हुवे हैं ? अहा गौतम ! जीव मोते हुवे हैं, जगते हुये हैं और सोते हुा जगते हुवे एरो दोनों हैं. जो विरति व मोदद्रिा में लाने हैं, विरति जगत हैं और विरताविरति मोते जांगने दोनों हैं. अहो भगवन्! क्या नारकी मौत हुने हैं जगते हु हैं या मोते जगत हुने हैं ?अहो गौतम नारकी सोने हुने हैं परंतु जगते हुवे व साने जगते हुने नहीं: ऐसे ही चतुरेन्द्रिय तक कहना. अहो भगवन्! तियेच पंचेन्द्रिय क्या मोते हुवे जगते हु। या मोते जगते हुो हैं ? अहो गातम ! रियच पंचेन्द्रिय सोते हुने हैं और साते जगत दोनों हैं परंतु जगते हुये नहीं हैं. मनुष्य का ममुच्चय जीव जैसे तीनों भेद कहना वाणभ्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक का नारकी जैसे कहना.॥३॥ अहो भगवन् ! पांच आश्रव का निरोध
4. अनुवादक-बालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी
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