Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३५ यशस्कीर्ति-अयशस्कीति, बस-स्थावर, प्रशस्त-अप्रशस्तविहायोगति, सुभग-दुर्भग, चारगति, पाँचजाति ये नामकर्म की २७ प्रकृतियाँ हैं। उन २७ प्रकृतियों को दूसरी प्रकार से कहते हैं -
गदि जादी उस्सासं विहायगदि तसतियाण जुगलं च ।
सुभगादिचउज्जुगलं तित्थयरं चेदि सगवीसं ॥५१॥ अर्थ - चारगति, पाँचजाति, उच्छ्वास, विहायोगति, स-बादर-पर्याप्त-सुभग-सुस्वर-आदेय और यशस्कीर्ति के युगल तथा तीर्थंकर ये नामकर्म की २७ प्रकृतियाँ जीवविपाकी हैं। आगे ३४ गाथाओं से चारनिक्षेपों का कथन मध्यमरुचि शिष्यों को लक्ष्य करके कहते हैं
णामं ठवणा दवियं भावोत्ति चउव्विहं हवे कम्म। .
पयडी पावं कम्मं मलंति सण्णा हु णाममलं ॥५२॥ अर्थ - सामान्यकर्म नाम-स्थापना-द्रव्य और भाव के भेद से चार प्रकार का है। प्रकृति-पापकर्म और मल ये नाममल कहे गए हैं। इनको नामनिक्षेपरूप कर्म जानना चाहिए।
विशेषार्थ - जो किसी एक निश्चय या निर्णय में क्षेपण करे अर्थात् अनिर्णीत वस्तु का उसके नामादिक द्वारा निर्णय करावे उसे निक्षेप कहते हैं । अन्य निमित्तों की अपेक्षा रहित किसी की 'कर्म' १. घ. पु. १ पृष्ठ १० विशेष समझावट इस प्रकार है - नामनिक्षेप का सम्पूर्ण कारण वक्ता का अभिप्राय कहा गया है। पिता
जैसे अपने पुत्र का नाम चाहे जो रख देता है उसी प्रकार वक्ता लोक-व्यवहार की प्रसिद्धि के लिए गुणों की अपेक्षा नहीं रखता हुआ अपनी इच्छा से पदार्थों में नाम निक्षेप कर लेता है। उस अभिप्राय से भिन्न जाति गुण क्रिया संयोगी द्रव्य समवायी द्रव्य ये सब तो निमित्तान्तर माने गये हैं। (श्लो. वा. भाग २ पृ. १७१ श्लोक २) निमित्तान्तर की अपेक्षा नहीं करके, वक्ता की इच्छा मात्र से नाम की प्रवृत्ति हो जाती है। (श्लो. वा, २/१७०) तिस कारण वक्ता की केवल इच्छा के अधीन जो संज्ञा करना है वह आचार्यों द्वारा नाम निक्षेप इष्ट किया गया है। नाप निक्षेप का शरीर, जाति, गुण, क्रिया, द्रव्य, परिभाषा आदि निमित्तों से युक्त नहीं है। अर्थात् जाति आदि निमित्तों की अपेक्षा नहीं करके वक्ता की इच्छा मात्र से किसी भी वस्तु का चाहे जो कोई नाम धर दिया जाता है वह नाम निक्षेप है। जैसे कि जाति को निमित्त मानकर विशेष पशुओं में घोड़ा शब्द व्यवहृत होता है। किन्तु किसी मनुष्य में या बन्दूक के अवयव में या इञ्चन में घोड़ा शब्द का व्यवहार करना नाम निक्षेप है। इसी प्रकार काक शब्द भी जाति के सहारे पक्षी विशेष में चालू है, किन्तु गले के अवयव में या शीशी में डाट में (काकशब्द) नाम निक्षेप से काक कहा जाता है। ___शब्द के विवक्षारूप निमित्त से न्यारे जाति गुण आदि निमित्तान्तर हैं। उन निमित्तान्तरों की अपेक्षा नहीं रखता हुआ किन्तु विवक्षा रूप निमित्त से व्यवहारियों द्वारा संज्ञा (नाम) घर लेना नाम निक्षेप है। अतः अनादिकालीन योग्यता की अपेक्षा रखता हुआ वह जाति, द्रव्य आदि को निमित्त लेकर संज्ञा कर लेना नाम निक्षेप नहीं है । अर्थात् नाम निक्षेप में अनादि योग्यता की आवश्यकता नहीं है। तथा जाति आदि निमित्तों की भी अपेक्षा नहीं है। (श्लो.वा, भाग २ पृ. २६२)