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चतुर्थः सर्गः
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चित्राधोदेशतस्तूवं सार्धा रज्जुः समाप्यते । ऐशानान्ते ततः सार्दा माहेन्द्रान्ते तु तिष्ठति ॥१४॥ ततः कापिटकल्पाग्रे रजरेकावतिष्ठते । सा सहस्रारकल्पाने ततोऽप्येका समाप्यते ॥१५॥ आरणाच्युतकल्पान्तवर्तिनी सा ततोऽपरा । सप्तमी तु ततो रजरूर्वलोकान्तनिष्ठिता ॥१६॥ रजः प्रथमरज्ज्वन्ते सा पडभिः सप्तभागकैः । अधोलोकस्य विस्तारो लोकविद्भिरुदाहृतः ॥१७॥ रज द्वितीयरज्जवन्ते पञ्चमिः सप्तमागकैः । तिम्रस्तृतीयरज्ज्वन्ते चतुर्मिः सप्तमागकैः ॥१८॥ चतस्रस्तुर्य रज्ज्वन्ते सप्तभागैस्त्रिभिर्युताः । पञ्च पञ्चमरज्ज्वन्ते सप्तमागद्वयेन ताः ॥१९॥ षडेताः सप्तभागेन षष्टरज्ज्वन्तगोचरे । सप्त सप्तमरज्ज्वन्ते विस्तारो रजवः स्मृताः ॥२०॥ ऊवं च सार्धरज्ज्वन्ते रज द्वे सप्तमागकैः । पञ्चभिः सह विस्तारो लोकस्य परिकीर्तितः ॥२१॥ परतः सार्धरज्ज्वन्ते सप्तमागैस्त्रिभिर्युताः । चतस्रो रजवो ज्ञेयो विस्तारो जगतस्ततः ॥२२॥ ततोऽर्धरजपर्यन्ते सब्रह्मोत्तरमूर्धनि । विस्तारो रजवः पञ्च भुवनस्य निरूपितः ।।२३।। कापिष्टाग्रेऽर्धरज्ज्वन्ते सप्तमार्गस्त्रिभिः सह । चतस्रो रजवो व्यासो जगतः प्रतिपादितः ॥२४॥
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अन्त तक तृतीय रज्जु, पंचम पृथिवीके अन्त तक चतुर्थ रज्जु, षष्ठ पृथिवीके अन्त तक पंचम रज्जु, सप्तम पृथिवीके अन्त तक षष्ठ रज्जु और लोकके अन्त तक सप्तम रज्ज समाप्त होती है अर्थात् चित्रा पृथिवीके नीचे छह रज्जुकी लम्बाई तक सात पृथिवियाँ और उसके नीचे एक रज्जुके विस्तारमें निगोद तथा वातवलय हैं ।।१२-१३।। यह तो चित्रा पृथिवीके नीचेका विस्तार बतलाया अब इसके ऊपर ऐशान स्वर्ग तक डेढ़ रज्जु, उसके आगे माहेन्द्र स्वर्गके अन्त तक फिर डेढ़ रज्जु, फिर कापिष्ट स्वर्ग तक एक रज्जु, तदनन्तर सहस्रार स्वर्ग तक एक रज्जु, उसके आगे आरण अच्युत स्वर्ग तक एक रज्जु और उसके ऊपर ऊर्ध्व लोकके अन्त तक एक रज्जु इस प्रकार कुल सप्त रज्जु समाप्त होती हैं ॥१४-१६।।
चित्रा पृथिवीके नीचे प्रथम रज्जुके अन्तमें जहां दूसरी पृथिवी समाप्त होती है वहाँ लोकके जाननेवाले आचार्योंने अधोलोकका विस्तार एक रज्जु तथा द्वितीय रज्जुके सात भागोंमें से छह भाग प्रमाण बतलाया है ॥१७|| द्वितीय रज्जु के अन्तमें जहां तीसरी पृथिवी समाप्त होती है वहां अधोलोकका विस्तार दो रज्जु पूर्ण और एक रज्जुके सात भागोंमें-से पाँच भाग प्रमाण बताया है। तृतीय रज्जुके अन्त में जहां चौथी पृथिवी समाप्त होती है वहाँ अधोलोकका विस्तार तीन रज्जु और एक रज्जुके सात भागों में से चार भाग प्रमाण बतलाया है ॥१८॥ चतुर्थ रज्जुके अन्तमें जहां पांचवीं पृथिवी समाप्त होती है वहां अधोलोकका विस्तार चार रज्जु और एक रज्जुके सात भागोंमें-से तीन भाग प्रमाण कहा गया है, पंचम रज्जुके अन्तमें जहां छठी पृथिवी समाप्त होती है वहाँ अधोलोकका विस्तार पाँच रज्जु और एक रज्जुके सात भागोंमें से दो भाग प्रमाण बतलाया है, षष्ठ रज्जुके अन्तमें जहाँ सातवीं पृथिवी समाप्त होती है वहां अधोलोकका विस्तार छह रज्जु और एक रज्जुके सात भागोंमें-से एक भाग प्रमाण है तथा सप्तम रज्जुके अन्त में जहाँ लोक समाप्त होता है वहाँ अधोलोकका विस्तार सात रज्जु प्रमाण कहा गया है ॥१९-२०॥
चित्रा पृथिवीके ऊपर डेढ़ रज्जुकी ऊंचाईपर जहां दूसरा ऐशान स्वर्ग समाप्त होता है वहाँ लोकका विस्तार दो रज्जु पूर्ण और एक रज्जुके सात भागोंमें से पांच है ।।२१।। उसके ऊपर डेढ़ रज्जु और चलकर जहाँ माहेन्द्र स्वर्ग समाप्त होता है वहां लोकका विस्तार चार रज्जु और एक रज्जुके सात भागोंमें से तीन भाग प्रमाण बताया गया है ।।२२।। उसके आगे आधी रज्जु और चलकर जहाँ ब्रह्मोत्तर स्वर्ग समाप्त होता है वहाँ लोकका विस्तार पांच रज्जु प्रमाण कहा गया है ।।२३।। उसके ऊपर आधी रज्जु और चलकर जहाँ कापिष्ट स्वर्ग समाप्त होता है वहाँ लोकका विस्तार चार रज्जु और एक रज्जुके सात भागोंमें से तीन भाग
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