Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ. ५ गा० ९ हिंसाद्यासक्तस्य कथनम्
टीका -- ' हिसे ' इत्यादि ।
सवालः हिंस्र:हिंसकः, मृषावादी = मिथ्याभाषणशीलः, मायावी=कपटी, पिशुनः = परदोषोद्घाटकः, शठः = विपरीतवेषादिभिः स्वात्मनोऽन्यथाप्रदर्शकः, सुरां मद्यं, मासं च भुञ्जानः, एतत् = हिंसादिकं श्रेयः = कल्याणकरमस्तीति मन्यते, उपलक्षणत्वाद् भाषते च ॥ ९ ॥
और भी - ' हिंसे वाले ' इत्यादि ।
अन्वयार्थ - - (बाले - बालः ) वह अज्ञानी प्राणी ( हिंसे- हिंस्रः ) हिंसक होता है (मुसाबाई - मृषावादी) मिथ्याभाषणशील होता है ( माइल्ले - मायावी ) कपटी होता है। (पिसुणे - पिशुनः) पर के दोषों को प्रकट करनेवाला होता है ( सढे - शठः) विपरीत वेष आदि द्वारा अपने आपको अन्यरूपमें दिखाने वाला होता है। (सुरं मंसं भुंजमाणेसुरां मांस भुंजानः ) शराब एवं मांसको खाता हुआ (एयं सेयंति मन्नएतत् श्रेयः इति मन्यते ) वह इस प्रकार कहा करता है कि ये हिंसादिक क्रियाएँ कल्याणप्रद हैं ।
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भावार्थ - अज्ञानी प्राणी हिंसादिक पापों में लवलीन होकर अपने आपको बहुत अच्छा मानते रहते हैं । अनर्थ इन्हें बडे प्रिय होते हैं । ये कहते हैं कि " मांसभक्षण, मद्यपान में और कुशील सेवन में कोई दोष नहीं है " ॥ ९ ॥
Ba-"fea ara" Seule.
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मन्वयार्थ – बाले - बालः भावा अज्ञानी व हिंसे- हिंस्रः डिस हाय छे, मुसाबाई - मृषावादी मिथ्या भाषाशु डरनार हाय छे माइल्ले - मायावी उपटी होय छे, पिसुणे-पिशुनः मीलना होषाने उघाडा पाडनार होय छे, सढे - शठः વિપરીત વેશ ભૂષા આદિ દ્વારા પાતે પાતાની જાતને જુદા જુદા સ્વરૂપમાં ખેતलावनार होय छे, सुर मासं भुंजमाणे- सुरां मांस भुंजानः हाइमने भांस मायने एयं सयंति मन्नइ - एतत् श्रेयः इति मन्यते ते उतारे छे हैं, या हिंसाहि ક્રિયાએ કલ્યાણ કારક છે.
ભાવા અજ્ઞાની પ્રાણી હિંસાદિક પાપામાં રચ્યા પચ્યા બનીને પતે પેાતાને ઘણુંાજ સારા માને છે, અન તે તેને ઘણુંા પ્રિય જ હાય છે. વળી તે કહે છે કે, માંસભક્ષણુ મદ્યપાન અને કુશીલ સેવનમાં તા કોઈ દોષ જ નથી પ્રા
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨