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उत्तराध्ययनसूत्रे
भूलम् तेओ से पुढे परिवूढे, जायमेए महोदरे । पीणिएँ विउंले देहे, आएसं परिकंखए ॥२॥ छायाः-ततः स पुष्टः परिदृढः, जातमेदाः महोदरः।
प्रीणितः विपुले देहे, आदेशं परिकासति ॥ २॥ टीका-'तओ' इत्यादि ।
ततः तस्मात् , ओदनादिभक्षणात् , स-एडकः, पुष्टः मांसपरिवृद्धया स्थूलशरीरः, परिटढ़ः-शक्तिसम्पन्नः, जातमेदाः अद्धमेदाः मेदः 'चर्वी ' इति भाषाप्रसिद्धश्चतुर्थधातुविशेषः, महोदरः विशालोदरः, प्रीणितः यथेप्सितौदन तृणादिभिः तर्पितः, एभिः पञ्चभिहेतुभिदेहे विपुष्टेविशाले सति, आदेश-वाघूर्णकं, परिकाझतीव परिकाझतिवाञ्छती-प्रतीक्षते ॥ २ ॥ इस तरह वह (वि-अपि) निश्चयसे (पोसिज्ज-पोषयेत् ) उसको पुष्ट करता है ॥१॥
'तओ से पुढे '-इत्यादि । ___ अन्वयार्थ-(तओ-ततः) उस ओदनादिक के भक्षण से (से-सः) वह मेंढा (पुढे-पुष्टः) मांस की वृद्धि से पुष्ट-स्थूल शरीरवाला हो जाता है (परिवुढे-परिवृढः) शक्ति संपन्न हो जाता है (जायमेए-जातमेदाः ) इसमें चर्बी खूब बढ़ जाती है (महोगरे-महोदरः) पेट भी इसका खूब बढ़ जाता है (पीणिए-प्रीणितः) तथा वह यथेप्सित ओदन तृणादिक से खूब संतुष्ट जो जाता है । इस प्रकार इसका (देहे विउलेदेहे विपुले) शरीर परिपुष्ट होने से वह मेंढा मानो (आएसं परिकंखएआदेश परिकाङ्क्षति ) पाहुनेकी प्रतिक्षा करता है वैसा प्रतीत होता है।।२।। डीन पास ४१, मान-मरावे छ. २॥ शत त वि-अपि निश्चयपूर्व पोसिज्ज-पोषयेत् ते पुष्ट ४२ छ. ॥१॥
" तओ से पुढे " Ult.
मन्वयार्थ -मोहनाहि विगैरे भावानु भगाने २णे से-सः ते ९ भांसनी वृद्धियी ३४ पुष्ट ने २५ शरी२२पाणु 45 नय छ-परिवृढे-परिवृढः शति संपन्न inान मन छ, जायमेए-जातमेदाः तेनामा य२मी भूम पधी जय छ, महोयरे-महोदरः पेट ५५ तेनु भूम थी लय छे. मा शत पीणिए-प्रीणितः शल मणत नवीन नवीन माहारथीत ५५ संतुष्ट २९ छे. पाम तेनु देहे विउलेदेहे विपुले शरी२ ३४Yष्ट वाथी त घटुं माना२ भडमाननी नई , आएसं परिकखए-आदेश परिकांक्षति तरी I रन डायतम प्रतीत याय छे.॥२॥
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨