Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 791
________________ ७७६ उत्तराध्ययनसूत्रे आयुषः क्षयावसरे हु-निश्चयेन नरं नयति=अपहरति । वा शब्दः पूरणे । तस्मिकाले माता वा पिता वा भ्राता वा तस्य म्रियमाणस्य अंशहराः अंशस्य-दुखाशस्य हराः निवारका न भवन्ति । माता वा पिता वा भ्राता वा तस्य म्रियमाणस्य मृत्युभयाद् रक्षितुं समर्था न भवन्ति । उक्तश्च न संति पुत्ता ताणाए, न पिया नावि बंधवा । अंतगे णाहि पन्नस्स, नत्थि णा इमु ताणया ॥१॥ छाया-न सन्ति पुत्रास्त्राणाय न पिता नापि बान्धवाः । अन्तकेनाधिप्राप्तस्य, नास्ति ज्ञातिषु त्राणता ॥ १ ॥ इति । समायाते मृत्यौ न कोऽपि रक्षितुं समर्थाः, इति भावः ॥ २२ ॥ मृत्युः ) काल (गरं-नरम् ) इस पुरुषको (णेइ-नयति) परलोक में ले जाता है। (तम्मं कालम्मि-तस्मिन् काले) उस समय (माया व पियाव भाया-माता वा पिता वा भ्राता वा) माता पिता एवं भाई (तस्स-तस्य) उस म्रियमाण जीवके (अंसहरा भवंति-अंशहराः न भवन्ति ) दुःखको दूर करनेवाले नहीं होते हैं-मृत्युभयसे रक्षित करने में समथें नहीं होते हैं। कहा भी है "न संति पुत्ता ताणाए न पिया नवि बंधवाः । (मृत्युना गृहीतस्य) अंतगेणाहि पन्नस्स नत्थि गाइसु ताणया ॥" तात्पर्य कहने का केवल यही है कि मृत्युके आने पर इस जीवका रक्षक कोई भी नहीं है। "सुर असुर खगाधिप जेते, मृग ज्यों हरि, काल जलेते । मणि मंत्र तंत्र बह होई मरते जो न बचावै कोई॥1॥२२॥ भृत्युना अवसरमा मच्चु-मृत्युः ण णरं-नरम् मापने णेइ-नयति ५२६ Sanय छे. तम्मं कालम्मि-तस्मिन् काले से मते माया व पिया व भाया वमाता वा पिता वा भ्राता वा माता, पिता मनमा मामाथी ७५ तस्स-तस्य से भरना२ना अंसहरा भवंति-अंशहरा भवन्ति हुने र ४२नार मनी शतानथी. મૃત્યુના ભયથી રક્ષા કરવામાં કોઈ સમર્થ બની શકતા નથી. કહ્યું પણ છે– "न संति पुत्ता ताणाए, न पिया न वि बंधवाः । (मृत्युना गृहीतस्य) अंते गेणाहि पन्नस्स नत्थिणा इसु ताणया"॥ તાત્પર્ય કહેવાનું ફક્ત એટલું જ છે કે, મૃત્યુના આવવાથી આ જીવને રક્ષણ આપનાર કઈ પણ નથી. " मुर असुर खगाधिप जे ते, मृग ज्यो हरि, काल जलेते मणि मंत्र तंत्र बहु होइ, मरते जो न बचावे कोई ॥२२॥ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨

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