Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 861
________________ उत्तराध्ययनसूत्रे रात्रिः, स च दिवसः, न पुनः प्रतिनिवर्तते, न पुनरागच्छतोत्यर्थः । ताश्च रात्रयः दिवसाश्च अधर्म कुर्वतः = प्राणिनः, अफलाः = धर्माचरण रहितत्वेन निष्फला यान्ति-गच्छन्ति ॥ २४ ॥ सफलाः कथं यान्तीत्याह जा जा वञ्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तइ । धम्मं च कुणमाणस्स, सफलो 'जति राईओ ॥२५॥ छाया-या या व्रजति रजनिः, न सा प्रतिनिवर्तते । धर्म च कुर्वतः सफला यान्ति रात्रयः॥ २५ ।। टीका-'जा जा' इत्यादि या या रजनिः उपलक्षणत्वादिवसोऽपि व्रजति, सा न प्रतिनिवर्त्तते । तथाधर्म च कुर्वतः पाणिनो रात्रयो दिवसाः सफला यान्ति । अतो धर्मोपादानभूतां दीक्षामावामवश्यं ग्रहीष्याव इति भावः ॥२५॥ (वच्चइ-व्रजति ) निकलती जा रही हैं । (सा न पडिनियत्तए-सा न प्रतिनिवर्तते ) वे वे दिन और रातें पीछे वापिस आनेके नहीं हैं। अतः उन दिन रातोंमें (अहम्मं कुणमाणस्स-अधर्म कुर्वतः) अधर्म करनेवाले जो प्राणी हैं उनकी वे (राईओ-रात्रयः) दिन रातें (अहला जंति-अफला: यान्ति) धर्माचरणसे रहित होने के कारण निष्फल ही व्यतीत होती हैं। अर्थात्-धर्माचरण शून्य प्राणियोंकी दिनरातें बिलकुल ही निष्फल हैं ॥२४॥ वे दिनरातें कैसे सफल होती हैं सो कहते है-'जा जा वच्चइ'इत्यादि। अन्वयार्थ-अर्थ पूर्वोक्त रूपसे ही है। परन्तु इसमें रात्रियोंकी सफलता बतलाई गई है। उन्हींकी दिनरातें सफल हैं जो धर्मक्रियाओंके व्रजति व्यतीत थ६ २७ी छे. सा न पडिनियत्तए-सा न प्रतिनिवर्तते तत हिस અને રાત્રી ફરીથી પાછી આવવાની નથી. આથી એ દિવસ અને રાત્રીમાં अहम्मं कुणमाणस-अधर्म कुर्वतः १५ ४२१4२ प्राणी छे अमनी से राइओ-रात्रयः दिवस मने रात्री। अहलाजंति-अफला यान्ति धमथी २हित पाने કારણે નિષ્ફળ જ વ્યતીત થઈ ચુકી છે. અર્થાત ધર્માચરણ ન કરનાર પ્રાણું એની દિવસ અને રાત્રી નકામી જ ગયેલ છે. જે ૨૪ हिवस भने रात्री श स थाय छेते ४ छ-"जा जा वच्चई'-त्या! અર્થ પૂર્વોક્ત રૂપને જ છે. પરંતુ આમાં રાત્રીઓની સફળતા બતાવવામાં આવેલ છે. એમની જ દિવસ રાત્રી સફળ છે કે, જે ધર્મકિયાના આચરણમાં ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901