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प्रियदर्शिनी टीका अ० १४ नन्ददत्त - नन्दप्रियषड्जीवचरितम्
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तथा - जरया - जीर्यते क्षीयते शरीरादिकमनयेति, जरा वृद्धावस्था तया, वागुरातुल्यया-यथा-वागुरो मृगस्याभिघातयोग्यतायाः संपादने पटीयसी तथा जराsपि लोकस्येति भावः । परिवारितः = परिवेष्टितः, तथा - रजनी- रात्रिः दिवसाविनाभावित्वाद् दिवसाथ, अमोघा = अवन्ध्यशस्त्रतुल्या उक्ता । रात्रिदिवस रूपाणां शराणां निपातेन प्राणिनां अवश्यमभिघातो भवतीति भावः । हे तात ! एवम् अनेन प्रकारेण, अभ्याहतादि विषये निर्णयं विजानीत ||२३||
पुनरपि कुमारौ ब्रूतः -
मूलम्
जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियँत्तइ ।
अहेम्मं कुणमणिस्स अहला जंति रांईओ ॥ २४ ॥ न सा प्रतिनिवर्तते
,
छाया - या या व्रजति रजनी,
I
अधर्म कुर्वतः, अफला यान्ति रात्रयः ||२४||
टीका - ' जा जा ' इत्यादि -
या या रजनी = रात्रिः, तदविनाभावित्वद् दिवसोऽपि व्रजति = गच्छति, सा तो हमारे जैसों की गणना ही क्या है। (जराए परिवारिओ जरसा परिवारितः ) मृग वागुरा - जालके तुल्य जरा है । सो यह लोक उस जरासे परिवेष्टित हो रहा है। तथा (अमोहा रयणी वृत्ता-अमोघा रजनी उक्ता) अमोघ शस्त्रपातके तुल्य यहां दिन और रातें हैं । जिस प्रकार शस्त्रोंके निपातसे प्राणियोंका घात हो जाता है उसी प्रकार दिवस एवं रात्रिरूप शस्त्रोंके निपातसे प्राणियों का घात होता रहता है। (ताय एवं विद्याणह - तात एवं विजानीत हे तात ! इस बातको आप जाना || २३ ||
इस प्रकार कहकर पुनः पुत्रोंने कहा - ' जा जा वच्चइ' इत्यादि । अन्वयार्थ - ( जा जा रथणी-या या रजनी) जो जो दिन और रातें दृशा छे त्यां सभारा नेवानी तो गशुत्री या रही ? जराए परिवारिओजरसा परिवारितः भृग वागुरा देवी वृद्धावस्था हे. मा बोर्ड से वृद्धावस्थाथी परिवेष्टित थ रहे छे. तथा अमोहा रयणी वृत्ता-अमोघा रजनी उक्ता सभाध શસ્ત્રપાતની માફક દિવસ અને રાત છે. જે રીતે શઓના ઘાથી પ્રાણીઓના નાશ થાય છે એજ પ્રમાણે દિવસ અને રાતરૂપ શસ્ત્રોના ધાથી પ્રાણીઓના નાશ થતા રહે છે. ताय एवं वियाण - तात अवं विजानीत हे तात! या वातने याय लये ॥ २३ ॥
आ प्रभाये उहीने इरीथी पुत्र उर्छु -- "जा जा वच्चइ " - छत्याहि ! अन्वयार्थ - - जा जा रयणी -या या रजनी ने ने हिवस भने रात्री बच्चइ -
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨