Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 858
________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० १४ नन्ददत्त-नन्दप्रियादिषड्जीवचरितम् ८४३ छाया-केन अभ्याहतो लोकः, केन वा परिवारितः ____ का वा अमोघा उक्ता, जातौ ! चिन्तापरो भवामि ॥ २२ ॥ 'केण'-इत्यादि हे जातौ हे पुत्रौ ! अयं लोकः केन व्याधतुल्येन अभ्याहत: पीडितः ? केन वा-वागुरास्थानीयेन परिवारितः परिवेष्टितः ? का वा अमोघा-अमोघशस्त्रतुल्या अभ्याहतिक्रियां प्रतिकरणतया उक्ताः ? इममर्थ ज्ञातुमहं चिन्तापर:= चिन्तायुक्तः, भवामि-अस्मि । तस्मादयमर्थों ममाऽऽवेद्यताम् ॥ २२ ॥ पुत्रोंके इस प्रकार वचन सुनकर पिताने पूछा-'केण' इत्यादि । अन्वयार्थ-(जाया-जातौ) हे पुत्रो यह तो बताओ कि (अयं लोओअयं लोकः ) यह लोक व्याधतुल्य (केण अब्भाहओ-केन अभ्याहतः) किसके द्वारा पीडित हो रहा है ? (केण वा परिवारिओ-केन वा परिवारितः) तथा वागुरा-मृगबंधनी-के स्थानापन्न किससे परिवारित-परिवे. ष्टित हैं । एवं (का वा अमोहा वुत्ता-का वा अमोघा उक्ता) इसमें अमोघ शस्त्रतुल्य पात कौन है ? (चिंतावरो हुमि-चिन्तापरो भवामि) यह बातको जानने के लिये मैं चिन्तित हूं अतः मैं तुमसे जानना चाहता हूं। भावार्थ-इक्कीसवीं गाथामें जो कुछ कहा गया है-उसीके विषयमें यह पुत्रोंसे पिताका प्रश्न हैं। पिता उनसे पूछ रहे हैं कि हे पुत्रों ! यहलोक किस से पीडित है तथा किससे परिवेष्टित है और यहां अमोघ पात कौन हैं ॥ २२॥ पुत्रानु मावा प्रा२नु वयन सामजान पिता पूछ्युं-“केण"-त्याह. अन्वयार्थ:-जाया-जातौ पुत्र! से तो मताव, अयं लोओ-अयं लोकः Lal शिरीनी भा३४ केण अब्भाहओ-केन अभ्याहतः ना तथा पीडित मनी २८ छ ? केण वा परिवारिओ-केन वा परिवारितः तथा पाशु। भृशम धना स्थानापन्न नाथी परिवारित-परिवष्टित छ. का वा अमोहावुत्ता-कापि अमोघा उक्ता मामा समय र पात यु छ १ चिंतावरो हुमि-चिन्तापरो અવનિ આ વાતને જાણવા માટે હું ઉત્સુક છું. આથી હું તમારી પાસેથી એ જાણવા ઈચ્છું છું. ભાવાર્થ_એકવીસમી ગાથામાં જે કાંઈ કહેવામાં આવેલ છે, એના જ વિષયમાં પુત્રએ પિતાને આ પ્રકારની પૃચ્છા કરેલ છે. પિતા એમને પૂછે છે કે હે પુત્ર! આ લેક કેનાથી પીડિત છે તથા તેનાથી પરિવેષ્ટિત છે અને અહીં અમેઘ શસ્ત્ર કયું છે? | ૨૨ છે ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901