Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 868
________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० १४ नन्ददत्त-नन्दप्रियादिषड्जीवचरितम् ८५३ पक्षी आकाशमार्गेण गमने नितरामशक्तो येन केनापि हिंस्रपशुना पराभूयते । यथा वा रणे=युद्धे भृत्यविहीनः भृत्याः पदातयस्तेभ्यो विहीनो नरेन्द्रो रिपुभिः पराभूयते । यथा वा पोते भग्ने सति विपन्नसारम् विपन्नो विनष्टः सारो भाण्ड द्रव्यं यस्य स तथाभूतो, वणिक स्वपतिपक्षिभिः, पराभूयते। तथा-बहीणपुत्रः पुत्राभ्यां प्रहीणो-रहितः-अहमपि अस्मि-भवामि पराभूतो भवामि । पुत्रवियोगजं दुःखं सोढुं न प्रभवामीति भावः । 'वा' शब्दः-समुच्चये ॥३०॥ फिर दृष्टान्त द्वारा समझाते हैं—'पंखाविहूणोव्य' इत्यादि । अन्वयार्थ हे ब्राह्मणि ! (जहा इव-यथा इह) जैसे इस लोकमें (पंखा विहूणो पक्खी--पक्षविहीनः पक्षी) पक्षोंसे विहीन पक्षीकी दुर्दशा होती है-अर्थात्-पक्षविहीन पक्षी जिस प्रकार आकाशमार्गसे जानेमें सर्वथा अशक्त हो जाता है और चाहे जिस किसी भी हिंसक प्राणीके द्वारा पोडीत होता है तथा (रणे भिच्चविहीणुव्व नरिंदे-रणे भृत्यविहीनः नरेन्द्रः) संग्राममें मृत्योंसे-सैनिको से रहित राजाकी जैसी दुर्दशा होती हैं-अर्थात् रणमें जिस प्रकार सैनिक वहीन राजा शत्रुओं से तिरस्कृत होता है, तथा (पोए विवण्णसारो वणिउव्व-वा पोते विपन्नसारः वणिक् ) जहाजके नाश होने पर विनष्ट धनवाले वणिककी जैसी दुर्दशा होती है (तहो पहीणपुत्तो अहंपि अम्हि-तथा प्रहीणपुत्रः अहमपि अस्मि) उसी तरहकी दुर्दशा मेरी भी पुत्रोंके अभाव में होगी। अर्थात् मैं पुत्रों के विरहजन्य दुःखको सहन करने के लिये सर्वथा अक्षम हूं ॥ ३० ।। श्री दृष्टांत समगवे छे--" पंखाविहूणोव्व "त्याह ! मन्वयाथ-3 Garl ! जहा इह-यथा इह रे मामा पखो विहूणा पक्खी-पक्षविहानः पक्षी यांनी ४५ ॥ छ तवा पक्षीनी २ ॥ થાય છે અર્થાત પાંખ વગરનું પક્ષી જેમ આકાશમાર્ગે જવામાં સર્વથા અશક્ત બની જાય છે. અને તે કઈ પણ હિંસક પ્રાણીથી પરાભવિત થઈ જાય छ तभ २४ रणे भिच्चविहीणुव्व नरिंदो-रणे भृत्यविहीनः नरेन्द्रः इव सभाममा સૈનિક વગરના રાજાની જેવી દુર્દશા થાય છે. અર્થાત-યુદ્ધ મેદાનમાં સિનિકે वरना २० शत्रुमाथी तिरस्कृत थाय छे. वणी पोए विवण्णसारो वाणिउच्चपोते विपन्नसारः वणिगिव डालना नाश यतi qधु धनवामा पानी દુર્દશા થાય છે એ રીતની પુત્રોના અભાવમાં મારી પણ દુર્દશા થશે. અર્થાત पुत्राना १२७१न्य मान सहन ४२१ामा सवथा असमर्थ छुः ॥ ३०॥ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901