Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 859
________________ ૮૪૪ पितुर्वचनमाकर्ण्य कुमारौ प्रोचतः - उत्तराध्ययनसूत्रे मूलम् - मच्चुणामहिओ लोगो, जरीए परिवारिओ । अमोहा रेयणी Íत्ता, एवं ताय ! वियोणह ॥ २३ ॥ छाया - मृत्युनाऽभ्याहतो लोकः, जरसा परिवारितः । अमोघा रजनी उक्ता, एवं तात ! विजानीत ॥ २३ ॥ टीका- ' मच्चुणा ' इत्यादि । हे तात ! लोकः = व्याधतुल्येन मृत्युना अभ्याहतः =पीडितः । यतोऽसौ सर्वस्य जन्तोः पृष्ठे धावति । उक्तंच 1 तीर्थंकरा गणधराः, सुरपतयश्व क्रिकेशवा रामाः । सर्वेऽपि मृत्युवशगा, शेषाणामत्र का गणना ॥ १ ॥ इति । पिताकी इस पृच्छाका उत्तर इस प्रकार देते हैं - ' मच्चुणा' इत्यादि । अन्वयार्थ - हे तात! इस लोक में व्याधके स्थानापन्न मृत्यु है सो (' मच्चुणा लोगो अग्भाहओ - मृत्युना अयं लोकः अभ्याहतः) उस मृत्यु से यह लोक सदा पीडित हो रहा है । ऐसा इस लोकमें एक भी प्राणी नहीं है, न हुआ है और न होगा कि जिसके पीछे यह मृत्यु नहीं लगा हो। "तीर्थङ्करा गणधरा, सुरपतयश्चक्रि - केशवा - रामाः । सर्वोऽपि मृत्युवशगा, शेषाणामत्र का गणना ||" चाहे तीर्थङ्कर हों, चाहे गणधर हों, चाहे सुरपति इन्द्र हों, चाहे चक्रवति हों केशव - वासुदेव, राम-बलदेव, कोई भी क्यों न हों सब ही इस मृत्युके वशंगत बने हुए हैं। जब ऐसे २ भाग्यशालियों की यह दशा है પિતાના એ પ્રકારના પૂછવાના ઉત્તર આ પ્રમાણે આપે છે— 66 मच्चुणा " - त्याहि ! अन्वयार्थ–È तात ! या बेोउमां शिरीनुं स्थान मृत्यु छे. मच्चुणा लोगो अब्भाहओ - मृत्युना अयं लोकः अभ्याहतः मा मृत्युना लयथी बोओ सहा ભય પામતા રહે છે. આ લાકમાં એવું એક પણ પ્રાણી નથી થયું, તેમ થનાર પણ નથી, કે જેની પાછળ આ મૃત્યુના ભય ન હાય, " तीर्थंकरा गणधरा, सुरपतयश्च क्रि- केशवा - रामाः । 59 सर्वेऽपि मृत्युवशगा, शेषाणामात्र का गणना || मन्वयार्थ —आहे तीर्थ १२ होय, याहे गणुधर होय, याडे सुरपति इन्द्रि होय, ચાહે ચક્રવતી હાય, કે કેશવ-વાસુદેવ, રામ-બલરામ કે।ઇ પણ કેમ ન હોય સઘળા આ મૃત્યુના વંગત બનેલા છે. જ્યાં આવા આવા ભાગ્યશાળીની આવી ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨

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