Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 845
________________ ८३० उत्तराध्ययनसूत्रे उक्तं च वेदेऽपि "न प्रजया न धनेन त्यागेनैकेनामृतत्वमानशुः" इत्यादि। ऋषयस्त्यागे नैव मोक्षं मापुः, न तु संतानेन धनेन वेति भावः । अत आवाम् मिक्षाम् उद्गमो. स्पादादिदोषवर्जितपिण्डग्रहणरूपाम् अभिगम्य-संप्राप्य, बहिर्विहारौ बहिः= ग्रामनगरादिभ्यो बहि द्रव्यतो भावतश्चाप्रतिबद्धो विहारो विहरणं ययोस्तौ तथाभूतौ, गुणौधधारिणौ-गुणोघं सम्यग्दर्शनचारित्रादिगुणसमूहं धर्तुं शीलं ययोस्ती तथा,-सम्यग्दर्शन-चारित्रादिसंपन्नौ, श्रमणौ तपस्विनौ भविष्यावः ॥१७॥ पिताके वचन सुनकर फिर कुमार बोलते हैं-'धणेण' इत्यादि। अन्वयार्थ-हे पिताजी ! (धम्मधुराहिगारे-धर्मधुराधिकारे) धर्माचरण करने में (धणेण किं-धनेन किम् ) हमको धनसे क्या प्रयोजन है। (सयणेण वा कि-स्वजनेन किम् ) तथा स्वजनोंसे भी क्या प्रयोजन है (कामगुणेहि चेव किं-कामगुणेश्चैव किम् ) और क्या प्रयोजन मनोज्ञ शब्दादिक विषयोंसे वेदमें भी यही बात समझाइ गई है-"न प्रजया घनेन त्यागेनैकेनामृतत्वमानशुः" ऋषियोंने तो त्यागसे ही मोक्ष प्रास किया है संतान अथवा धनसे नहीं । अतः हम लोग भी (भिक्खं अमि गम्म-भिक्षाम् अभिगम्य ) उद्गम उत्पाद आदि दोनोंसे रहित पिण्डग्रहणरूप भिक्षाको प्राप्त करके (बहिं विहारा-बहिर्विहारौ ) द्रव्य और भाषसे अप्रतिबद्ध-विहारवाले होते हुए (गुणोहधारी-गुणौघधारिणौ) सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्र आदि गुण समूहोंसे संपन्न (समणा भविस्सामुश्रमणौ भविष्योवः) मुनि होवेगे। पिताri qयन समजान मा२ ४ छ- धणेण"-त्याहि ! अन्वयार्थ-- पिता ! धम्म धुराहिगारे-धर्मधुराधिकारे धनु माय२६५ ४२वामा धणेण किं-धनेन किम् अमारे पननु शु प्रयोगन छे. तथा सयणेण वा किंम्-स्वजनेन वा किम् २१० ननु ५५ शुं प्रयोन छ १ तमा कामगुणेहिं चेव किं-कामगुण श्चैव किम् मनोज्ञ शाहि विषयानु ५५ शु प्रयोजन १ वहमा ५६५ मा पात समलवामा मावेस छ-" न प्रजया धनेन त्यागेनैकेनामृतत्वमानशुः" ऋषिसाये तो त्यागथी ४ भाक्षन प्राप्त ४२८ छ. संतान Anautथी नही. साथी सभा ५९ भिक्खम् अभिगम्म-भिक्षाम् अभिगम्य ઉદ્દગમ ઉત્પાદ આદિ બંનેથી રહિત પિંડ ગ્રહણરૂપ ભિક્ષાને પ્રાપ્ત शन बहिं विहारा-बहिर्विहारौ द्र०य भने साथी अप्रतिमद्ध-विडा२ ४२१. 4॥ मनीन गुणोहधारी-गुणौधधारिणौ सभ्यशन, ज्ञान, यरित्र : Y साथी सपन्न समणा भाविस्सामु-श्रमणो भविष्यावः भुनि मनी शु. ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨

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