Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 823
________________ उत्तराध्ययनसूत्रे दबहि यों विहारः, साद्यपर्यवसानरूप: सकलकर्माभावलक्षण आत्मनस्तादात्म्यावस्थानरूपो मोक्षः, तत्राभिनिविष्टम्-स्थितं चित्तं ययोस्तौ तथाभूतौ, तौ कुमारी दृष्ट्वा साधुन् विलोक्य, यद्वा-'इमे कामगुणा अनित्याः' इति दृष्ट्वा पर्यालोच्य, संसारचक्रस्य, संसारजन्ममरणपरम्पराचक्रमिव भ्रमण साधर्म्यात्, संसारचक्रं तस्य विमोक्षणार्थ परित्यानिमित्तं, कामगुणे-काम्यतेऽभिलष्यते रागातुरैः प्राणिभिरिति कामः शब्दादिविषयः, सचात्मबन्धनकहेतुत्वाद् गुणः-रज्जुरूपः, इति कामगुणः, यद्वा-काम एवगुणः लक्षणया ज्ञानादि गुणोपघातक इत्यर्थः, यद्वाकामस्य-मदनस्य गुणः संपादकः-पुष्टिकर:-कामगुणः, स च पञ्चेन्द्रिय सुखद सद्वस्त्रमिष्टान्नपुष्पचन्दननाटक-गीततालवेणुवीणाकलितकाकली गीतादिकस्तस्मिन् विषये विरक्तौ-निवृत्तौ ॥ ४ ॥ सादि अपर्यवसान रूप मोक्ष है उसमें लगे हुए चित्तवाले ऐसे (ते-तौ) वे दोनों कुमार (दट्टण-दृष्ट्वा ) मुनियोंको देखकर अथवा 'ये कामगुण अनित्य हैं' इस प्रकार विचार कर (संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा-संसार चक्रस्य विमोक्षणार्थम् ) संसाररूप चक्रके परित्याग करने निमित्त (कामगुणे विरत्ता-कामगुणे विरक्तौ ) कामगुणों के विषयमें विरक्त बन गये। भावार्थ-यह हम कथाभागसे जान ही चुके हैं कि देवभद्र और यशोभद्र ये दोनों कुमार किस प्रकार प्रतिबोधित हुए हैं। अतः जब ये दोनों कमार अवस्थामें ही थे तब भी इन्होंका चित्त अपनी खोई हुई निधिको खोजने में ही लगा हुआ था । ज्यां ही इनको मुनियों के दर्शन हुए त्यों ही ये संसार शरीर एवं भोगोंसे निर्विण्ण बनकर दीक्षित हो गये। इन्होंने विचारा कि यह संमार तो जन्म, जरा, एवं मरणके दुःखोंसे भिनिविष्टचित्तौ ससाथी सथा भिन्न रे स्थि२ छे मरे 44वज्ञान३५ भास अभी aijan चित्तवात सेवा से ते-तौ भन्ने उभार दळूण-दृष्टा અનિઓને જોઈને અથવા “ આ કામગુણ અનિત્ય છે. ” આ પ્રકારને વિચાર शन संसारचक्कास विमोखणदा संसारचक्रस्य विमोक्षणार्थम् ससा२३५ यानी પરિત્યાગ કરવા નિમિત્ત એવા કામગુણેના વિષયથી વિરક્ત બની ગયા. ભાવાર્થ–-આ કથા ભાગથી એ જાણી શકાયું કે, દેવભદ્ર અને યશોભદ્ર છે અને કુમારે કઈ રીતે બેધિત થયા. જ્યારે એ બને કુમારઅવસ્થામાં જ હતા ત્યારથી જ તેમનું ચિત્ત પિતાની ખોવાયેલી જરૂરી ચિજને શોધવાના કામમાં ઘણું જ ચિંતિત હતું. જ્યારે એમને મુનિઓનાં દર્શન થયાં એટલે સંસાર, શરીર અને ભાગેથી નિર્વિણ બનીને દીક્ષિત થયા. એમણે વિચાર્યું કે, આ સંસાર તે જન્મ, જરા અને મરણનાં દુઃખોથી ભરપૂર છે. જ્યાં એને ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨

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