Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 837
________________ ૮૨૨ उत्तराध्ययनसूत्रे _ 'वेदानधीत्य' इत्यादित्रयस्योत्तरं दत्वा सम्प्रति ‘भुक्त्वा भोगान्' इत्यस्योत्तरमाह मूलम्खणमित्तंसुक्खा बहुकालदुवखा, पगामदुक्खा अनिगामसुक्खा। संसारमोक्खस्स विपक्खंभूया, खाणी अणत्याण उकांमभोगा॥१३॥ छाया-क्षणमात्रसौख्या बहुकालदुःखा, प्रकामदुःखा अनिकामसौख्याः। ___संसारमोक्षस्य विपक्षभूताः, खनिरनर्थानां तु कामभोगाः ॥१३॥ टीका-'खणमित्तसुक्खा' इत्यादि एते कामभोगास्तु क्षणमात्रसौख्या: क्षणमात्रं सौख्यं सुखं येभ्यस्ते तथा, सेवनकाल एव स्वल्पमुखजनकाः इत्यर्थः, तथा-बहुकालदुःखाः-बहुकालंपल्योकिया गया है उसका प्रयोजन केवल इतना ही है कि-विडाल वृत्तिवाले दुःशील ब्राह्मणों द्वारा सन्मार्गकी प्ररूपणा न होकर प्रत्युत कुमार्गकी ही प्ररूपणा होता है । पशुवधकी पुष्टि होती है ॥ १२॥ इस गाथा द्वारा पुत्रोंने पिताकी "वेदोंको पढो, ब्राह्मणोंको जिमाओ एवं पुत्रोंको उत्पन्न करी" इन तीन बातोंका उत्तर दिया है। अब वे 'भोगोंको भोगो" इस बातका उत्तर देते हैं 'खणमित्त सुक्खा' इत्यादि। अन्वयार्थ हे तात ! (कामभोगा-कामभोगाः) कामभोग (खणमित्त सुक्खा-क्षणमात्र सौख्याः) जिनसे जीवोंको क्षणमात्र सुख प्राप्त होता है ऐसे हैं-सेवन करनेके समयमें भी इनसे स्वल्पसुख मिलता है, बादमें तो (बहुकाल दुक्खा-बहुकाल दुःखाः) इनसे पल्योपम एवं सागरोपम પ્રયોજન ફક્ત એટલું જ છે કે, પિતાને બ્રાહ્મણમાં ખપાવતા છતાં શીલ એવા બ્રાહ્મણેથી સન્માર્ગની પ્રરૂપણ ન બનતાં ઉલટી કુમાર્ગની પ્રરૂપણ થાય છે. પશુ વધને પુષ્ટિ મળે છે. ૧રા આ ગાથાથી પુત્રએ પિતાની “વેદને ભણવાની, બ્રાહ્મણને જમાડવાની, અને પુત્રને ઉત્પન્ન કરે” આ ત્રણ વાત ને પ્રત્યુત્તર આપેલ છે હવે તે "लागाने सागवा" ॥ पाता उत्तर भाये छे. "खणमित्त सुक्खा" त्या ! स-क्याथ-Bad ! कामभोगा-कामभोगाः मनोग, खणमित्तसुक्खाक्षणमात्रसौख्यः नाथी ७वान क्षण मात्र सुख प्राप्त थाय छ qणी २२ સેવન કરવાના સમયમાં પણ તેનાથી સ્વલપ સુખ મળે છે, પરંતુ પરિણામે बहुकालदुक्खा-बहुकालदुःखाः तेनाथी पक्ष्या५म भने सागरे।५म ण सुधा ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨

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