Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 828
________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० १४ नन्ददत्त - नन्दप्रियादिषड्जीवचरितम् एवं ताभ्यामुक्तः पुरोहितो यदाह, तदुच्यते मूलम् - अहे ताओ तत्थ मुणीण तेसिं, तवस्स वाघायकरं व्यासि । इमं वयं वेद विदो वयंति, जैहा नैं होई असुँआण 'लोगो ॥८॥ छाया - अथ तातकस्तत्र मुन्योस्तयोः, तपसो व्याघातकरमवादीत् । इदं वचो वेदविदो वदन्ति, यथा न भवति असुतानाँ लोकः ॥ ८ ॥ टीका- ' अह' - इत्यादि अथ=अनन्तरं, मुन्योः प्रतिपन्नमुनिभावयोः, तयो दरिकयोस्तातकः - तनोतिपालनपोषणै वृद्धिं प्रापयतीति तातः स एव तातकः पिता, तत्र - तस्मिन्निवेशने, हमने अपने पूर्वभवको जान लिया है, साथ में यह भी हमको भान हो गया है कि यह संसार असार है । जिस प्रकार में हमलोगवर्तमान है वह शाश्वत नहीं है तथा हमलोगोंकी आयु भी दीर्घ नहीं है । इस थोडीसी पर्यायमें कि जो अनेक विघ्नोंसे व्याप्त बनी हुई है हमको क्या शांति मिल सकती है ? कुछ भी नहीं इसलिये गृहावासमें हमलोगोंका रहना आनंदप्रद नहीं माना जा सकता है । इसलिये "आप हमें संयम पालन करनेकी आज्ञा दें" यह प्रार्थना करते हैं ||७|| दोनों पुत्रोंके इस प्रकार कहने पर पुरोहितने क्या कहा सो कहते हैं- 'अह तायओ' इत्यादि ८१३ अन्वयार्थ - ( अह - अथ ) पुत्रोंकी इस प्रकार भावना प्रकट होनेके बाद (तेसि मुणीण - तयो मुन्योः) उन भावमुनियोंके ( तायओ - तातकः) અમારા પૂર્વભવને જાણ્યા છે. સાથેાસાથ અમને એ વાતનું પણ ભાન થયું છે કે, આ સંસાર અસાર છે. જે પ્રમાણે અમે વત માનમાં છીએ એ શાશ્વત નથી, તેમજ અમારૂં આયુષ્ય પણુ દી નથી. આ ઘેાડા જ પર્યાયમાં અમે અનેક વિધ્નાથી ગુંગળાઇ રહ્યા છીએ, આથી અમને શાંતિ મળી શકે તેમ નથી. આથી અમારૂ ગૃહાવાસમાં રહેવું આનંદપ્રદ જણાતું નથી. આ કારણે 66 આપ અમાને સયમ પાલન કરવાની આજ્ઞા આપે!” એવી પ્રાથના કરીએ છીએ. ાણા અન્ને પુત્રએ આ પ્રમાણે કહેવાથી પુરહિતે શું કહ્યું એ કહેવામાં આવે छे---" अहतायओ " - इत्यादि । मन्वयार्थ – अह-अथ पुत्र थे या अहारनी भावना अगर ऊर्जा पछी तेसि मुणिण - तयोर्मुन्योः मे भाव भुनियोना तायओ - तातकः पिता पुरीडिते ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901