Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 808
________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० १३ चित्र-संभूतचरितवर्णनम् भोगान् मनोज्ञशब्दादीन् भुक्त्वा समुपभुज्य स ब्रह्मदत्तः अनुत्तरे नरके सकल नरकमधानेऽप्रतिष्ठाननामके सप्तम पृथिवी नरकावासे प्रविष्टः सप्तमनारको जीवो जात इत्यर्थः । अनेन निदानस्य नरकहेतुखात्तदकरणीयता सूचिता ॥३४॥ सम्प्रति प्रसङ्गप्राप्तां चित्र मुनि वक्तव्यतामाह चित्तो वि कामहिं विरत्तकामो, उदत्तचारित्ततवो तवस्ती। अणुत्तरंसंर्जमपालईत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगई गैओ।त्तिबेमि॥३५॥ छाया-चित्रोऽपि कामेभ्यो विरक्तकाम, उदात्तचारित्र तपास्तपस्वी। अनुत्तरं संयम पालयित्वा, अनुत्तरां सिद्धिगतिं गत इति ब्रवीमि ॥३५॥ टीका-'चित्तोऽवि' इत्यादि कामेभ्यो मनोज्ञशब्दादिभ्यो विरक्तकामा विरक्तो निवृत्तः कामोऽभिलाषो यस्य स तथा, उदात्तचारित्रतपाः उदात्तम्-अत्युत्कृष्टं चारित्रं सर्वविरतिरूपं, पालन करनेमें असमर्थ अपनेको जाहिर करके एवं (अणुत्तरे कामभोगे भुंजिय-अनुत्तरान् कामभोगान् भुक्त्वा) सर्वोत्कृष्ट शब्दादिक विषय भोगोंको भोग करके अन्तमें मर कर (अणुत्तरे नरए पविट्ठो-अनुत्सरे नरके प्रविष्टः) सकल नरकोंमें प्रधान ऐसा सातवीं नरकके अप्रतिष्ठान नामके नरकावासमें जा पहुंचा। ___ भावार्थ-अधिक आरंभ ओर परिग्रहके रखनेसे उसमें फंसा हुआ जीव मरकर नरकमें जाता है। ब्रह्मदत्त चक्रवर्तीकी भी यही दशा हुई। वह भी मरकर सप्तम नरकमें पहुंचा। निदानबंध नरकका हेतु है, इससे वह जीवको करने योग्य नहीं है। यह सूचित इस कथतसे होता है ॥३४॥ अब प्रसङ्ग प्राप्त चित्रमुनिके विषयमें कहते हैं-'चित्तोवि' इत्यादि। રૂ૫ તથા ગૃહસ્થ ધર્મનું આરાધન કરવારૂપ વચનનું પાલન કરવામાં પિતાને मसमय ॥२ ४ा मने अणुत्तरे कामभोगे भुंजी य-अनुत्तरान् कामभोगान् भुत्तवा सर्वोत्कृष्ट शा४ि विषयलागाने पीने मातम भरीन अणुत्तरे नरए पविद्रो-अनुत्तरे नरके प्रविष्ठः स नरीमा प्रधान सवा सातमा न२४ना . પ્રતિષ્ઠાન નામના નરકાવાસમાં ઉત્પન્ન થયા. ભાવાર્થ—અધિક આરંભ અને પરિગ્રહના રાખવાથી એમાં ફસાયેલ જીવ મરીને નરકમાં જાય છે. બ્રહ્મદત્ત ચક્રવતી પણ એજ દુર્દશાને પામ્યા. એ મરીને સાતમા નરકમાં પહોંચ્યા. નિદાન બંધ એ નરકને હેત છે. માટે તપના ફળનું નિદાન-નિયાણું કરવું જીવમાટે એગ્ય નથી. એમ આ કથનથી સમજાય છે ૩૪ वे प्रस। प्राय यित्र मुनिना विषयमा ४ छ-" चित्तोवि"-त्यादि. उ० १०० ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨

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