Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 793
________________ - ७७८ उत्तराध्ययनसूत्रे कर्मविपाकजनितं क्लेशं स्वयम् आत्मनैव प्रत्यनुभवति । यतः कर्मकर्तारमेव अनुयाति अनुगच्छति ॥२३॥ इस्थमशरणभावनामुक्त्वा सम्प्रत्येकत्वभावनामाह चिंच्चा दुपयं च चउप्पयं च, खेत्तं गेहं धर्ण-धन्नं च सवं । सकम्म विइओ अवेसो पयाइ, परं भवं सुंदर पौवगंवा ॥२४॥ छाया-त्यक्त्वा द्विपदं च चतुष्पदं च, क्षेत्रं गेहं धनधान्यं च सर्वम् । स्वकर्म द्वितीयोऽवशः प्रयाति, परं भवं सुन्दरं पापकं वा ॥ २४ ॥ टीका-'चिच्चा' इत्यादि द्विपदं भार्यादिकं च चतुष्पदं हस्त्यश्वादिकं, च क्षेत्रम् = इक्षु क्षेत्रादिकं, क्यों कि (कम्म-कर्म) कर्म (क रमेवं अणुजाइ-कर्तारमेवानुगच्छति) कर्ता के साथ ही जाता है, ऐसा नियम है। भावार्थ-जीवके शुभाशुभ भावों द्वारा उपार्जित कर्म जबतक जीव संसार में रहता है तबतक वही उनके फलका भोक्ता होता है। उसे भोगने वाला उस जीवके अतिरिक्त न बंधुजन होते हैं ! न माता होती है और न पिता होता है, यह एक अटल सिद्धान्त है । कर्मसंसारी जीवों के साथ २ ही जाता है । वह जैसा किया जाता है वैसा ही उदयकाल में उसका फल भोगना पड़ता है । इस प्रकार के मुनिराजका यह उपदेश अशरण भावनाका सूचक है। कहा भी है "शुभ अशुभ करमफल जेते, भोगे जिय एकहि तेते। सुत दारा होय न सीरी सब स्वारथके हैं वे भीरी ॥" ॥२३॥ शन लव छ भ , कम्म-कर्म भ करिमेवं अणुजाइ-कतारमेवानुगच्छति કર્તાની સાથે જ જાય છે. એ નિયમ છે. ભાવાર્થ-જીવના શુભાશુભ ભાવે દ્વારા ઉપાર્જીત કર્મ જ્યાં સુધી જીવ સંસારમાં રહે છે ત્યાં સુધી તે તેને ભેગવનાર બને છે. તેને ભોગવવામાં તેના બંધુજન વગેરે કઈ સહાયક બની શકતા નથી. ન માતા હોય છે, ન પિતા હોય છે, આ એક અટલ સિદ્ધાંત છે. કમ સંસારી જીની સાથે જ જાય છે. તે જેવું કામ કરે છે તેવુંજ તેણે કર્મના ઉદય કાળમાં ભોગવવું પડે છે. આ પ્રમાણે મુનિરાજને આ ઉપદેશ અશરણ ભાવનાનું સૂચક છે. કહ્યું પણ છે "शुभ अशुभ करम फल जे ते, भोगे जीय एक हि ते ते । सुत दारा होय न सीरी, सब स्वारथ के हैं वे भीरी ॥२३॥" ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901