Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रियदर्शिनी टीका अ० ९ अध्ययनोपसंहार टीका- ' एवं करेंति ' इत्यादि ।
संबुद्धाः सम्यगुबुद्धाः बोधं प्राप्ताः, हेयोपादेयज्ञानवन्तः, यद्वा-मिथ्यात्वापगमात् सम्यग् विदितजीवाजीवादितत्त्वाः पण्डिताः = विषयप्रवृत्तिदोपज्ञाः, यद्वासुनिश्चित प्रवचनार्थाः, प्रविचक्षणाः = प्राप्तचरणपरिणामाः, एवं कुर्वन्ति - यथाऽमुना नमिनाम्ना मुनिना प्रव्रज्यायां निश्चलत्वं कृतं, तथा कुर्वन्ति उपलक्षणत्वात् कृतवन्तः करिष्यन्ति च । तथा भोगेषु भोगेभ्यः = विषयेभ्यः, विनिवर्तन्ते= तदा
↑
अब सूत्रकार नमिराज ऋषि के दृष्टान्त से उपदेश कहते हैं
6
एवं करेति संबुद्धा ' - इत्यादि ।
४६१
अन्वयार्थ - - (संबुद्धा - संबुद्धाः ) जो अच्छी तरह से सम्यग्ज्ञानरूपी बोध को प्राप्त हो चुके हैं - हेय और उपादेय के विवेक से जो युक्त हैं अथवा मिथ्यात्व के दूर हो जाने से जीव और अजीव आदि तत्त्व जिन्हों ने भली प्रकार जान लिये हैं, तथा (पंडिया - पण्डिताः ) जो विषयों में प्रवृत्तिजन्य दोषों के ज्ञाता बन चुके हैं, अथवा प्रवचन का अर्थ जिन्हों ने अच्छी तरह निश्चित कर लिया है, एवं जो ( पवियक्खणा - प्रविचक्षणाः) चारित्रपरिणाम को प्राप्त हो चुके हैं वे (एवं करें तिएवं कुर्वन्ति ) इस नमिराज ऋषि के समान प्रव्रज्याधर्म में निश्चलता धारण करते हैं, अथवा जिन्होंने इस प्रकार की निश्चलता धारण की है, अथवा धारण करेगे वे ( भोगेसु - भोगेषु) विषयों से ( जहा से णमी
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
હવે સૂત્રકાર નમિરાજિષને દૃષ્ટાંતથી ઉપદેશ કહે છે—
" एवं करें ति संबुद्धा " त्याहि.
अन्वयार्थ–सबुद्धा-संबुद्धाः ने सारी शेते सभ्यगज्ञान ३थी गोधने પ્રાપ્ત કરી ચુકેલ છે, હેય અનેઉપાદેયના વિવેકથી જે યુકત છે. અથવા-મિથ્યાવના દૂર થઈ જવાથી જીવ અને અજીવ આદિ તત્વ જેમણે સારી રીતે જાણી सीधेस छे तथा पंडिया - पण्डिताः विषयमा प्रवृत्तिभन्य होषोना ने ज्ञाता मनी ચુકેલ છે. અથવા પ્રવચનના અ જેમણે સારી રીતે નિશ્ચિત કરી લીધેલ છે मने भेो। पवियक्खणा-प्रविचक्षणा चारित्र परिशाभने आप्त भनी युम्या छेते एवं करेति एवं कुर्वन्ति या नभिराकर्षिनी समान अत्रज्या धर्मभां निश्चलता ધારણ કરે છે. અથવા જેમણે આ પ્રકારની નિશ્ચલતા ધારણ કરેલ અથવા धार। ४२शे ते भोगेसु-भोगेषु विषयेोथी जहा से णमा रायरिसी यथा स नमिः