Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 760
________________ प्रियदर्शिनी टीका अ. १३ चित्र-संभूतचरितवर्णनम् ७४५ दरेण सह भ्रातरं जन्मान्तरसहोदरं गृहीतमुनिनियमं श्रेष्ठिपुत्रम् इदं वक्ष्यमाणं वचनम् अब्रवीत् ॥ ४ ॥ किमत्रवीत् ? इत्याह मूलम् - आसिमो भायरी दो वि, अन्नमन्नवसाणुगा । अन्नमन्नमेणुरत्ता, अन्नमन्नहिएसिणो ॥ ५ ॥ छाया - आस्व भ्रातरौ द्वापपि, अन्योन्यवशानुगौ । अन्योन्यानुरक्तौ, अन्योन्यहितैषिणौ ॥ ५ ॥ अतिशय आदर के साथ (भायरं - भ्रातरम् ) अपने बड़े भाई जो श्रेष्ठिकुल में उत्पन्न हुए थे तथा दीक्षासे अलंकृतथे उनसे ( इमं वयगमव्यवी- इदं वचनम अब्रवीत् ) इस प्रकार कहा भावार्थ - कथा से हमें यह ज्ञात हो चुका है कि जब अरहट वालेने आधे श्लोक की कीगई पूर्ति को ब्रह्मदत चक्रवर्तीसे पास आकरके सुनाया और उससे सववृत्तान्त स्पष्ट कह दिया तब चक्रवर्तीने उसका बड़ा ही सन्मान किया । तथा दानादिक देकर उसको बिदा भी कर दिया था । पश्चात् वे अपने भाईके जीव मुनिराजको वंदना करनेके लिये गये । और वहां उनसे यह प्रार्थना की कि महाराज ! जिस प्रकार आपने हमको अपने पवित्र दर्शनोंसे संतुष्ट किया है उसी प्रकार आधाराज्य भी स्वीकार कर हमको संतुष्ट करो। यही पूर्ववात इस गाथा द्वारा प्रदर्शित की गई है ॥ ४ ॥ 1 अतिशय महरनी साथै भायरं - भ्रातरम् पोताना भोटालाई } ? शेहना भुणभां उत्पन्न थया हता भने दीक्षाथी अलङ्कृत हुता भने इमं वयणमब्बवी - इदं वचनम् अब्रवीत् या प्रकारे - ભાવાર્થ-કથાથી આપણે એ જાણી શકયા છીએ કે, જ્યારે અરહેટ (૨૮) હાંકનારના મેઢેથી ખેાલાએલા અર્ધા શ્લેાકની પૂર્તિને તે અરહટ હાંકનારે બ્રહ્મદત્તની પાસે આવીને સંભળાવી અને તેને સ્પષ્ટરૂપે સઘળા વૃત્તાંત સભળાવ્યેા. ત્યારે ચક્રવતી એ તેનું ભારે સન્માન કર્યું. તથા સારૂં એવું ધન આપી વિદાય કર્યાં. આ પછી તે પેાતાના ભાઈના જીવ મુનિરાજને વંદના કરવા માટે ગયા અને ત્યાં તેમને આ પ્રાર્થના કરી કે, મહારાજ ! જે રીતે આપે મને આપનાં પવિત્ર દનથી સતુષ્ટ કરેલ છે, એજ રીતે અર્ધો રાજ્યનો સ્વીકાર કરીને મને સતુષ્ટ કરા, એજ આગલી વાત આ ગાથાદ્વારા કહેવામાં આવેલ છે. જા उ० ९४ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901