Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 762
________________ ७४७ - प्रियदर्शिनीटीका अ० १३ चित्र-संभूतचरितवर्णनम् देवौ च देवलोके, आस्व आवां महर्द्धिको । एषा नो षष्ठिका जातिः, अन्योन्येन या विना ॥ ७॥ टीका-दासा' इत्यादि आवां दशाणे-दशार्णदेशे दासौ-शाण्डिल्य ब्राह्मणस्य यशोमत्या दास्या युगलपुत्रौ आस्व=अभूव, कालिञ्जरे नगे-कालिञ्जर नामके पर्वते मृगौ आस्व, मृतगङ्गातीरे हंसौ, काशिभूमौकाश्यां श्वपाकौ-चाण्डालौ च-अभूव ॥६॥ 'देवा य' इत्यादि-च-पुनः देवलोके सौधर्मे प्रथमकल्पे पद्मगुल्मविमाने आवां महर्द्धिकौ देवौ आस्व । एषा नौ आवयोः षष्ठिका जातिःषष्ठं जन्म, या अन्योन्येन विना वर्तते । अयं भावः-पञ्चमु पूर्वभवेषु आवां सहोदरावास्व, परस्मिन्भवे वियुक्तावावाम् इति ॥ ६ ॥ ७॥ __हम आप दोनों सहोदरपनेसे कहां २ उत्पन्न हुए इसी बात को चक्रवर्ती प्रकट करते हैं-'दासा' इत्यादि । ____ अन्वयार्थ-अपन दोनों पहिले (दसण्णे-दशाणे) दशार्णदेशमें (दासा-दासौ) शाण्डिल्यब्राह्मण की यशोमती दासी के पुत्र हुए वहां से मर कर(कालिंजरे-कालिञ्जरे)कालिञ्जर पर्वत पर मिया-मृगौ) मृग हुए। उस पर्यायसे निकलकर (मयंगतीरे हंसा-मृतगंगातीरे हंसौ) मृतगंगा के तीर पर हँस हुए। फिर उस पर्यायको छोड़कर (कासि भूमीय-काशिभूमौ) काशी नगरी में (सोवागा-श्वपाकौ) चांडाल (आसी-आस्व) हुए। उस पर्यायको भी छोड़कर फिर (देवलोगम्मी महिड्डिया देवा य आसी-देवलोके महर्द्धिको देवौ च आस्व ) सौधर्म स्वर्ग में पद्मगुल्मविमानमें महर्दिक देव हुए फिर वहांसे चवे (णो-नौ) अपनी (एसा-एषा) यह (छठिया जाइ આપણે બંને સહેદરપણથી કયાં કયાં ઉત્પન્ન થયા આ વાતને ચકपती प्रगट रे छ.-" दोसा"-त्या. स-पयार्थ--माप माने पडेटा दसण्णे-दशाणे ६॥ शमा दासा-दासौ Aifseय प्राशनी यामती सीन पुत्र थया. त्यांची भरीन कालिंजरे-कालिं. अरे ४ि२ त ५२ मिया-मृगौ २९ ३२ मता . ये पायथा नी. जीत मयंगतीरे हंसा - मृतगंगातीरे हंसौ भृतान निारे स च्या. ५याय छोडीन कासिभूमीय-काशिभूमौ ॥२ नगरीमा सोवागा-श्वपाको यistan त्यां पुत्र ३२ आसी-आस्व मता . मे पर्यायने ५५ छ। पछी देवलोगम्मी महिइढिया देवा य आसी-देवलोके महर्द्धिको देवौ च आस्व सौधर्मपमा पशाम विमानमा मसद्धि हे या भने त्यांची २५वीन मापी एसा-एषा मा ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨

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