Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका. अ० ९ नमिचरिते नमः प्रव्रज्याग्रहणवर्णनम्
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अहं पूर्वभवे दीक्षामादाय संयमं परिपाल्य मृत्वा देवलोकं गतः । तदाऽहं नन्दनवने क्रीडार्थ गच्छन् स्वप्नदृष्टमिव मेरुं दृष्टवान् ।
एवं जातिस्मरणं प्राप्तस्य नमिनृपस्य प्रव्रज्याग्रहणं वर्णयितुमिदं नवम मध्ययनश्री सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामिने प्राह तस्येदमादि सूत्रम् -
मूलम् -
चऊण देवलोगाओ, उवर्वेण्णो माणुसम्मि लोगॅम्मि । उवसंत मोहणिज्जो सेरइ पौराणियं जाई ॥ १ ॥ छाया - च्युत्वा देवलोकाद् उपपन्नो मानुषे लोके ।
उपशान्तमोहनीयः, स्मरति पौराणिकीं जातिम् ॥ १ ॥ टीका - 'चकण' इत्यादि -
देवलोकात् = महाशुक्रनामकात् सप्तमात् उत्कर्षतः सप्तदश सागरोपम स्थितिकात् च्युत्वा मानुषे लोके मनुष्यभवे, उपपन्नः = उत्पन्नः, उपशान्तमोहनीयः -उपशान्तम्गया। इसके प्रभाव से उन्होंने अपने पूर्वभव को भी जान लिया कि मैंने पूर्वभव में दीक्षा लेकर शुद्ध संयम की पालना की थी और मर कर मैं उत्कृष्ट सतरह सागरोपम की स्थिति वाले देवलोक में गया था। उस समय मैं नंदनवन में क्रीडा करने के लिये जा रहा था सो स्वप्ने में देखे हुए मेरुपर्वत के समान मेरुपर्वत को मैंने देखा था । इस प्रकार जातिस्मरण को प्राप्त हुए नमिराजा के प्रत्रज्या ग्रहण का वर्णन करते हुए श्री सुधर्मास्वामी जंबूस्वामी को नवव अध्ययन कहते हैं, जिसकी यह प्रथम गाथा है
' चहऊण देवलोगाओ ' - इत्यादि ।
अन्वयार्थ - ( देवलोगाओ देवलोकात् ) उत्कृष्ट सतरह सागर की स्थितिवाले महाशुक्र नाम के देवलोक से ( चरण - च्युत्वा ) च्यव कर ( माणुसम्मि लोगम्मि- मानुषे लोके ) मनुष्यभव में ( उववण्णोપૂર્વભવને જાણ્યું કે મેં પૂર્વભવમાં દીક્ષા અંગીકાર કરીને સંયમ પાળ્યા હતા, ત્યાંથી મરીને હું દેવલાકમાં ગયા હતા. એ સમયે હું ન ંદનવનમાં ક્રીડા કરવા જઈ રહ્યો હતા ત્યારે સ્વપ્નમાં મે' જોયેલા મેરૂ પવત જેવાજ મેરૂ પર્વતને મે ત્યાં જોયા હતા. આ પ્રકારના જાતિસ્મરણ જ્ઞાન પામનાર નિમરાજાની પ્રત્રજ્યાગ્રહણુનું વર્ણન કરતાં શ્રી સુધર્મા સ્વામી જમ્મૂ સ્વામીને નવમું અધ્યયન हे छे. लेनी या प्रथम गाथा छे. "
• चइउण देवलोगाओ " त्याहि. अन्वयार्थ–देवलोगाओ - देवलोकात् हस सागरनी स्थितिवाणा भडाशु नामना देवबेोऽथी चइउण- च्युत्वा न्यवीने माणुसम्मि लोगम्मि- मानुषे लोके मनुष्य
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨