Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूत्रे ___ अयं भावः इदमिहावस्थानं मार्गावस्थानतुल्यमेव, तदिह गृहादि न क्रियते, यत्तु मुक्तिपदं गन्तुमिच्छामि' तदेव स्वाश्रयं कर्तुं प्रवृत्तोऽस्मि । ततस्तत्र स्वाश्रयकरणे प्रवृत्तत्वात् कथं प्रेक्षाववक्षतिः ?, तथा च-' यः प्रेक्षावान् ' इत्यादि रूपः प्रतिबोधितोऽर्थस्तत्त्वतः सिद्धसाधनमेवेति ॥ २६ ॥
मूलम्-- एयमदं निसामित्ताहेउकारणचोइओ। तओ नमि रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी ॥२७॥ छाया-एतमर्थ निशम्य, हेतुकारणनोदितः ।
ततो नमि राजर्षि, देवेन्द्र इदमब्रवीत् ॥ २७ ॥ अथवा-जो मार्ग में घर बनाता है वह सदा संदेह शील ही रहा करता है। एक धर्मि में विरुद्ध कोटिद्वय को अवगाहन करने वाले ज्ञान का नाम संशय है। 'यहां मेरा रहना होगा या नहीं' इस तरह का संशय उस को सदा बना ही रहता है। इसलिये जिस स्थान में जो जाना चाहता है वह वहाँ ही-अपने अभीष्ट स्थान में ही अपने घर को बनाता है। तात्पर्य-इसका यह है यहां यह अवस्थान संशयापन है-इसलिये मैं यहां गृहादि नहीं बनाना चाहता हूं। जिस मुक्ति स्थान में जाना चाहता हूं वहीं पर अपने घर को बनाने की तयारी में लगा हुआ हूं। इसलिये वहीं पर अपने आश्रय को करने में प्रवृत्त-होनेसे मुझ में प्रेक्षावत्ता की हानि कैसे आप कह रहे हैं। अथवा-"यः प्रेक्षावान्" इत्यादि रूप जो अर्थ आपने प्रतिबोधिन किया है वह वास्तव में सिद्ध साधन ही है ॥२६॥
અથવા--જે માર્ગમાં ઘર બનાવે છે તે સદા સંદેહશીલ જ રહ્યા કરે છે. એક ધાર્મિકમાં વિરૂદ્ધ કેદીદ્વયનું અવગાહન કરવાવાળા જ્ઞાનનું નામ સંશય छ. " मी मा पार्नु थरी नही " 241 प्रारना संशय ना मनमा સદાને માટે રહે છે. આથી જે સ્થાનમાં જે જવા ચાહે છે તે ત્યાં જ-પિતાના અભીષ્ટ સ્થાનમાં જ-પિતાનું ઘર બનાવે છે. તાત્પર્ય આનું એ છે કે, અહીં અવસ્થાન સંશયાપન્ન છે. આ માટે હું અહીં ગૃહ આદિ બનાવવા ઈચ્છતા નથી. જે મુક્તિ સ્થાનમાં જવા ઈચ્છું છું. ત્યાં જ મારું ઘર બનાવવાની તૈયારીમાં લાગી ગયે છું, આથી એ જ સ્થાને મારા આશ્રયને કરવામાં પ્રવૃત્ત હોવાથી भाराभा प्रेक्षवत्तानी भाभी मा५ ४६ शत ४२२॥ छो. -" यः प्रेक्षावान् " त्या ३५ रे म माथे प्रतिमाथित ४२ छ. वास्तवमा सिद्ध साधन छ. ॥२६॥
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨