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उत्तराध्ययनसूत्रे " इदमन्तःपुरं त्वया रक्षणीयं जीवत्वा" दित्यनुमानं पुरस्कृत्य देवेन्द्रो नमि न पृष्टवान्, नमिनाऽपि-"जीवरक्षणमधर्मजनकम् , रागद्वषमूलकत्वा” दिति स्वदभिमतं समाधानं न कृतम् । अलमप्रस्तुतेन कुतर्केण ॥१६॥
एयम निसामित्ता हेउकारणचोइओ। तओ नमि रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी ॥१७॥ छाया-एतमर्थ निशम्य, हेतुकारणनोदितः।।
ततो नर्मि राजर्षि, देवेन्द्र इदमब्रवीत् ॥ १७ ॥ तो कुटुम्ब मोहकी परीक्षा के लिये पूछे गये नमि राजऋषिने कुटुम्बभवन आदि में ममत्वाभाव के प्रदर्शन से अपने में अपरिग्रहित्व एवं अपरिगृहित्वका मूलभूतवैराग्य ये दोनों ही प्रकट किये हैं। " इदमन्तः पुरं त्वया रक्षणीयं जीवत्वात्" तुम को इस अन्तःपुरकी रक्षा करनी चाहिये क्यों कि यह जीव है, इस अनुमान को लेकर देवेन्द्र ने नमिराज ऋषि से उनकी रक्षा के लिये नहीं कहा है, और नमिराज ऋषि ने भी “जीव रक्षणमधर्मजनक रागद्वेषमूलकत्वात् " जीव रक्षण अधर्म जनक है, क्यों कि यह रागद्वेष मूलक है इस प्रकार के तुम्हारे अभिमत का समाधान नहीं किया है। उन्हो ने तो सिर्फ 'अन्तःपुरादि हमारे हैं इसलिये इनकी रक्षा करनी चाहिये' इसका ही निषेध किया है अर्थात् वहां " स्वत्व हेतु का अभाव प्रदर्शित किया है ॥ १६॥ કટુંબ કબીલા પ્રત્યેના મેહની પરીક્ષા માટે નમિ રાજર્ષિને પુછવામાં આવતાં, કટુંબ, ભવન આદિમાં મમત્વના અભાવના પ્રદર્શનથી પિતામાં અપરિગ્રહિત્યને भगत वैराश्य २॥ भन्ने प्रगट रेत छ. " इदमन्तःपुर त्वया रक्षणीयं जीवत्वात्" तभारे मा मत:पुरनी २६॥ ४२वी न भ, ७१ छ. 24॥ અનુમાનને લઈને દેવત્તે નમિ રાજર્ષિને એની રક્ષા માટે કહેલ નથી. અને नभि राषि°२२ ५५ "जीवरक्षणमधर्मजनक रागद्वेषमूलकत्वातू" ७१ २क्षण અધર્મ જનક છે, કેમકે, એ રાગદ્વષ મૂલક છે. એવું તમારા એ અભિમત પ્રમાણે કહ્યું નથી. તેઓએ તે ફક્ત અંતઃપુર આદિ તમારું છે માટે તેની રક્ષા કરવી જોઈએ તેને જ નિષેધ કરેલ છે. અર્થાત્ ત્યાં “ સ્વત્વ” હેતને અભાવ પ્રદર્શિત કરેલ છે. ૧૬
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨