Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूत्रे याप्तः, स वालः सदा जित एव-हारित एव भवति । तस्य बालस्य सुचिरादपि अद्धायांप्रभूतेऽप्यागामिनिकाले, उन्मज्जा-उन्मज्जनम् उद्धरणं दुर्लभा । तस्या दुर्गतेः सकाशानिः सरणं दुर्लभमित्यर्थः ॥ १८ ॥ पश्चानुपूर्व्या मूलहारकोपनयमुपदश्य संप्रति मूलपवेशकोपनयमाह
मूलम्एवं जियं सहाए, तुलिया बालं चे पंडियं ।
भूलियं ते वेसंति, माणुसिं जोणिति जे ॥१९॥ पर (दुग्गइं गए-दुर्गतिं गतः ) नरक एवं तिर्यश्चगतिरूप दो प्रकार की गति को प्राप्त हुआ वह बाल-अज्ञानी जीव (सई जिए होइ-सदा जितः भवति ) सदा जित ही होता है, अर्थात् देव और मनुष्य इन दो गतियों को हारा हुवा ही होता है। (तस्स सुचिरादवि अद्धाए उम्मग्गा दुल्लहा-तस्य सुचिरादपि अदायां उन्मज्जा दुर्लभा) उस बाल-अज्ञानी जीव का आगामी अनेक भवों में भी उद्धार होना दुर्लभ है, दुर्गति में पडे रहने की वजह से वहां से निकलना इसका दुर्लभ है।
भावार्थ-दुर्गति में प्राप्त जीव जल्दी अपना कल्याण नहीं कर सकता । दुर्गति से पार हो और उच्च कुल में जन्म ले वहां सब प्रकार की आत्मकल्याणकारी सामग्री मिले तो ही यह बात संभवित हो सकती है। दुर्गति से उद्धार पाना ही जब कठिन है, तो आत्मकल्याण की बात जल्दी कैसे बन सकती है ?॥ १८ ॥ गए-दुर्गतिं गतः न२४ मन तिर्थयाति३५ मे गतिमाने प्रास थनार ये यास-मज्ञानी ०१ सई जिए होइ-सदा जितः भवति भेश विन्य थाय छे. अर्थात् देव मने मा मनुष्य मे गतिमाने सहाने भाट खारीय छ, तस्स सुचिरादवि अद्धाए उम्मग्गा दुल्लहा-तस्य सुचिरादपि अद्धायां उन्मज्जा दुर्लभा माथी ये मास-मज्ञानीना આગામી અનેક ભવોમાં પણ ઉદ્ધાર થવા દુર્લભ બની જાય છે. દુર્ગતિના ખાડામાં પડી જવાના કારણે ત્યાંથી નીકળવું તેને માટે ભારે દુર્લભ બની જાય છે.
ભાવાર્થ-દુર્ગતિને પામેલે જીવ જલદી પિતાનું કલ્યાણ કરી શકતો નથી. દુર્ગતિમાંથી બહાર નીકળી ઉચ્ચ કુળમાં જન્મ લઈ, ત્યાં આત્મકલયાણ કરનારની સામગ્રી તેને મળે તો જ એ વાત સંભવિત બની શકે છે. દુર્ગતિમાંથી ઉદ્ધાર થ એજ જ્યાં કઠણ છે, ત્યારે આત્મકલ્યાણની વાત જલ્દીથી तो यांची मनी श? ॥१८॥
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨