Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूबे इत्थं संयमस्वरूपमुक्तम् , संयमस्वरूपकथनादेव निम्रन्थस्वरूपमुक्तम् । संपति भगवस्कथितमेतत् सर्वमुच्यते, न तु स्वबुद्धिकल्पितमिति सुधर्मा स्वामी प्राह--
मूलम्एवं से' उदाहुँ अणुत्तरनाणी, अणुत्तरदंसी, अणुत्तरनाणदंसणधरे। अरेहा णार्यपुत्ते, भगवं वेसीलिए वियाहिए ति बेमि ॥१८॥
॥ इति खुड्डागनियठिज्ज छठें अज्झयणं समत्तं ॥६॥ छाया-एवं स उदाहृतवान्, अनुत्तरज्ञानी, अनुत्तरदर्शी, अनुत्तरज्ञानदर्शनपरः।
अर्हन् ज्ञातपुत्रः भगवान् वैशालिका, व्याख्याता, इति ब्रवीमि ॥ १८ ॥ 'एवं से' इत्यादि
हे जम्बूः ! स-लोकत्रयप्रसिद्धः, अनुत्तरज्ञानी-न उत्तरम्-उत्कृष्टं विद्यते यस्मात् , तदनुत्तरं सर्वोत्कृष्टं ज्ञानमस्यास्तीति-अनुत्तरज्ञांनी सर्वोत्कृष्टज्ञानधारीत्यर्थः। तथाऽनुत्तरं सर्वोत्कृष्टं पश्यतीत्यनुत्तरदर्शी । सामान्य ज्ञानं दर्शनं, विशेषज्ञानं ज्ञान-अप्रमत्तः) प्रमादरहित होकर (पमत्तेहिं-प्रमत्तेभ्यः) गृहस्थोंसे (पिण्डवायं गवेसए-पिण्डपातं गवेषयेत् ) पिण्डपात भिक्षा की गवेषणा करे ॥१७॥
इस गाथा से सूत्रकारने संयमका स्वरूप कहा, और उस संयम के स्वरूप कथन से ही निर्ग्रन्थ का स्वरूप कहा गया है। अब वे यह कहते हैं कि यह सब जो मैंने कहा है वह भगवान् द्वारा कशित ही कहा है, अपनी बुद्धि से कल्पित कर नहीं कहा है, इस बात को श्री सुधर्मास्वामी कहते हैं-' एवं से उदाहु' इत्यादि । ___ अन्वयार्थ हे जंबू ! (से-सः) तीन लोक में प्रसिद्ध (अनुत्तरनाणी-अनुत्तरज्ञानी) सर्वोत्कृष्ट ज्ञानसंपन्न (अणुत्तरदंसी-अनुत्तरदर्शी) असाधारण-अनन्तदर्शनधारी (अणुत्तरनाणदंसणधरे-अनुत्तरज्ञानदर्श
भने अप्पमत्तो-अप्रमत्तः प्रभाह २डित मनान पमत्तेहि-प्रमत्तेभ्यः स्थायी पिण्डवायं गवेसए--पिण्डपात गवेषयेत् पिडात लिक्षानी गवेष ४२. ॥१७॥
આ પ્રકારે સૂત્રકારે સંયમનું સ્વરૂપ કહ્યું અને તે સંયમના સ્વરૂપ કથનથી જ નિગ્રન્થનું સ્વરૂપ કહેવામાં આવેલ છે. હવે તેઓ એ કહે છે કે, આ મેં જે કહ્યું છે તે ભગવાનનું કહેલું કહ્યું છે. મારી બુદ્ધિથી કલિપત એવું કાંઈ કહ્યું नथी. मा पातन श्री सुधा स्वामी ४ छ-" एव से उदाह" त्याहि.
अन्वयार्थ-30 से-सः त्र मा प्रसिद्ध अनुत्तरनाणी-अनुत्तरज्ञानी सर्वोत्कृष्ट ज्ञान सपन्न अनुत्तरदंसी-अनुत्तरदर्शी न्यसाधा२९]---मनतनधारी अनुत्तर नाण दसणधारे-अनुत्तरज्ञान दर्शनधरः ५३५थी मनतज्ञान मने अनात
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨