Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ. ५ गा० १४-१५ शाकटिकदृष्टान्तेन पश्चात्तापवर्णनम् १५१
उक्तमेवार्थ दृष्टान्तप्रदर्शनपूर्वकं दृढीकुर्वन् प्राह
जहा सागडिओ जाणं, समं हिचा महापहं। विसंमं मग्गमोइणो, अक्खे भैग्गंमि सोयइ ॥१४॥ छाया-यथा शाकटिको जानन् , समं हित्वा महापथम् ।
विषमं मार्गमवतीर्णः, अक्षे भग्ने शोचति ॥ १४ ॥ टीका-'जहा' इत्यादि।
यथा शाकटिकः शकटवाहक, जानन् अवबुध्यमानः सम-समतलं, शर्करादिरहितं महापथं राजमार्ग, हिवा-त्यक्त्वा, विषमम्-निम्नोन्नतं गतपाषाणादिसहितं मार्गम अवतीर्णः गन्तुं प्रवृत्तः सन् गर्तादौ पतनात महापाषाणादिसंघट. नाच अक्षे-धुरि भग्नेटिते सति, शोचति, “ ममेदं शकटं विषममार्गाश्रयणात् ममैव दोषाद् विनष्ट-"मित्यादि परितापं करोतीत्यर्थः ॥ यद्वा 'जाणं'-ति यानं शकटं शोचति शकटविषयं परितापं करोति ॥ १४ ॥
इसी विषय को सूत्रकार दृष्टान्तद्वारा समर्थित करते हैं'जहा सागडिओ' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(जहा-यथा) जैसे (सागडिओ-शाकटिको) शकट वाहक (जाणं-जानन् ) जानता हुआ भी अगर (सम-समं) समतल भूमिवाले-कंकर पत्थर आदि से रहित (महापह-महापथम्) राजमार्ग को (हिच्चा-हित्वा) छोड़कर (विसम-विषमम् ) ऊँचे नीचे खड्डे वाले तथा पाषाण आदि से दुर्गम (मग्गं-मार्गम् ) मार्ग पर (ओइण्णो-अवतीर्णः) उतर पड़ता है, और उससे खड्डे में पड़ जाने से तथा पाषाण आदि के संघट्टे-टकराने से (अख्खे भग्गंमि-अक्षे भग्ने ) गाड़ी की धुरा टूट जाती है, तब वह (सोयइ-शोचति ) शोक करता है कि-'यह मा विषय सूत्र२ टांत द्वारा समर्थन ४२छ-"जहा सागडिओ"-त्याहि.
मन्वयार्थ:-जहा-यथा रेभ से सागडिओ-शाकटिको आडवाणे जाणं-जानन् नवा छतां पशु सम-समं सभततभूमि i७२१ पत्थर पारनी महापह-महापथम् २००४ मावाणी भूभिने हिच्चा-हित्वा छोडीन विसम-विषमम्
या निय॥ तमस मामडीया हुभ मग्गम्-मार्ग भाग ५२ ओइण्णोअवतीर्णः पातानी डीन छ भने सने ४॥२ मामा ५४ान २ पत्थर साथे ८४२॥वान ४२) अक्खे भग्गमि-अक्षे भग्ने उनी घरी तूटी जय छ त्यारे ते सोय इ-शोचति:२७१० मेसे छे है “म भा होष छ है भारी माडीन
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨