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जिन कर्मोकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त मात्र होती है, उनका अबाबाकाल भी तदनुकूल सर्वलघु अन्तर्मुहूर्तप्रमाण जानना चाहिए |
प्रस्तावना
इन दोनों चूलिकाओं में यह बात ध्यान रखने की है कि आयुकर्मका अबाधाका बध्यमान स्थितिमेंसे नहीं घटाया जाता है, किन्तु भुज्यमान आयुके त्रिभागमें ही उसका अबाधाकाल होता है । अतः आयुकर्मका जितना स्थितिबन्ध होता है, उतना ही उसका निषेककाल बतलाया गया है ।
८ सम्यक्त्वोत्पत्ति चूलिका
अनादिकाल से परिभ्रमण करते हुए इस जीवको सम्यक्त्वकी प्राप्तिका होना ही सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य हैं । इस चूलिकामें इसी समक्त्वकी उत्पत्तिका वर्णन किया गया है ।
जब जीवके संसार - परिभ्रमणका काल अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण रह जाता है, तभी जीव में सम्यग्दर्शन उत्पन्न करनेकी पात्रता आती है, इसके पूर्व नहीं; इसका नाम ही काललब्धि है । इस काललब्धि प्राप्त होनेपर भी हर एक जीव सम्यक्त्वको प्राप्त करनेके योग्य नहीं होता, किन्तु संज्ञी पंचेन्द्रिय, पर्याप्तक सर्वविशुद्ध जीव ही उसे प्राप्त करने के योग्य होता है । भले ही वह चारों गतियों में से किसी भी गतिका जीव क्यों न हो। यहां यह विशेष ज्ञातव्य है कि तिर्यग्गतिके एकेन्द्रियसे लगाकर असंज्ञी पंचेन्द्रियतकके सभी जीवोंमें मन न होनेसे सम्यक्त्वकी पात्रता नहीं है और संज्ञी पंचेन्द्रियोंमें भी जो सम्मूच्छिम संज्ञी हैं, वे भी प्रथमवार उमशम सम्यक्त्वको उत्पन्न नहीं कर सकते हैं । शेष गर्भज पंचेन्द्रिय सभी पशु-पक्षी कर्मभूमिज या भोगभूमिज तिर्यंच, मनुष्य, देव और नारकी जीव तब प्रथमोपशम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, जब उनकी कषाय मन्द हों ' और तीव्र अनुभाग और उत्कृष्ट स्थितिके कर्मोंका उनके बन्ध न हो रहा हो । किन्तु अन्तः कोड़ाकोड़ी सागरोपम स्थितिवाले ही नवीन कर्म बंध रहे हों, इतनीही स्थितिवाले कर्मोंका उदय हो रहा हो । और इतनी ही स्थितिवाले कर्म सत्तामें हों । यह तो हुई जीवकी आन्तरिक
योग्यताकी बात
अब बाह्य निमित्त भी ज्ञातव्य हैं- उक्त प्रकारकी योग्यतावाले जीवोंमे से नारकी तीन कारणों से सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं--- कोई जातिस्मरणसे, कोई किसी देवादिके द्वारा धर्म श्रवणसे और कोई वेदनाकी पीड़ासे । चौथे से सातवें नरक तकके नारकी धर्म श्रवणको छोड़कर शेष दो कारणोंसे सम्यक्त्व उत्पन्न करते हैं । तिर्यंच तीन कारणोंसे सम्यक्त्व उत्पन्न करते हैं- कितने ही जातिस्मरणसे, कितने ही धर्म सुनकर और कितने ही जिनबिम्ब देखकर । मनुष्य भी इन ही तीनों कारणों से सम्यक्त्व उत्पन्न करते हैं । भवन त्रिकसे लगाकर बारहवें स्वर्ग तकके देव चार कारणोंसे सम्यक्त्व उत्पन्न करते हैं- जातिस्मरणसे, धर्मश्रवणसे, जिन महिमाके अवलोकनसे और महर्द्धिक
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