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छक्खंडागम
और गोत्रककी उत्कृष्ट स्थिति २० कोडाकोड़ी सागरोपम है और आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति ३३ सागरोपम है। जिस प्रकार मूल कर्मोकी यह उत्कृष्ट स्थिति बतलाई है, उसी प्रकार उनकी उत्तर प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका वर्णन इसी चूलिकामें किया गया है। इस स्थितिवर्णनके साथ ही उनके अबाधाकाल और निषेककालका भी वर्णन किया गया है। कर्मबन्ध होनेके पश्चात् जितने समय तक वह बाधा नहीं देता, अर्थात् उदयमें आकर फल देना नहीं प्रारम्भ करता है, उतने कालका नाम अबाधाकाल है। इस अबाधाकालके आगे जो कर्मस्थितिका काल शेष रहता है और ... जिसमें कर्म उदयमें आकर फल देकर झड़ता जाता है, उस कालको निषेककाल कहते हैं। अबाधाकालका सामान्य नियम यह है कि जिस कर्मकी स्थिति एक कोडाकोड़ी सागरकी होगी, उसका अबाधाकाल १०० वर्षका होगा, अर्थात् वह कर्म १०० वर्षतक अपना फल नहीं देगा, इसके पश्चात् फल देना प्रारम्भ करेगा। इस नियमके अनुसार जिन कर्मोकी स्थिति ३० कोडाकोडी . सागर है, उनका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष है। जिनकी स्थिति ७० कोडाकोड़ी सागर है, उनका अबाधाकाल सात हजार वर्ष है और जिनकी स्थिति २० कोडाकोडी सागर है उनका अबाधाकाल दो हजार वर्ष है। आयुकर्मकी अबाधाका नियम इससे भिन्न है। उसकी अबाधाका उत्कृष्टकाल अधिकसे अधिक एक पूर्वकोटि वर्षका त्रिभाग है। जिन कर्मोकी उत्कृष्ट स्थिति अन्तः कोडाकोड़ी सागरोपम या इससे कम होती है उनका अबाधाकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होता है । अन्तर्मुहूर्तके जघन्यसे लेकर उत्कृष्ट तक असंख्य भेद पहिले बतला आये है, सो जिस कर्मकी अन्तः कोडाकोडीसे लेकर आगे बतलाई जानेवाली जघन्य स्थिति जितनी कम होगी- उनको अबाधाकालका अन्तर्मुहूर्त भी उतना ही छोटा जानना चाहिए ।
७ जघन्यस्थितिचूलिका इस चूलिकामें सभी मूलकों और उनकी उत्तर प्रकृतियोंकी जघन्यस्थितिका, उनके जघन्य अबाधाकालका और निषेककालका वर्णन किया गया है । वेदनीय कर्मकी सर्व जघन्य स्थिति १२ मुहूर्तकी है, नाम और गोत्रकर्मकी ८ मुहूर्तकी है और शेष पांचों कर्मोकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त मात्रकी होती है। पर इस सर्व जघन्य स्थितिका बन्ध हर एक जीवके नहीं होता है, किन्तु क्षपकश्रेणीपर चढ़नेवाले दशवें गुणस्थानवर्ती सूक्ष्मसाम्पराय संयतके उस प्रकृतिके बन्धसे विच्छिन्न होनेके अन्तिम समयमें मोहनीय और आयुकर्मको छोड़कर शेष छह कर्मोकी उक्त जघन्य स्थितिका बन्ध होता है । मोहनीयकर्मकी सर्व जघन्य स्थिति जो अन्तर्मुहूर्तप्रमाण बतलाई है, उसका बन्ध क्षपकश्रेणीवाले साधुके नवमगुणस्थानके अन्तिम समयमें होता है। आयुकर्मकी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण सर्व जघन्यस्थितिका बन्ध मनुष्य या तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीव करते हैं। साधारणतः विभिन्न प्रकृतियोंकी यह जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्तसे लगाकर अन्तः कोडाकोड़ी सागरोपम तक है, पर उन सबका अबाधाकाल अन्तर्मुहूर्तमात्र ही है, उससे शेष बचे कालको निषेककाल जानना चाहिए ।
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