Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ।। णमोऽत्थूणं समणस्स भगवओ महावीरस्स ।। ।। अनन्तलब्धि निधान श्री गौतमस्वामिने नमः || ।। नमामि नित्यं गुरु रामचन्द्रम् ।। चान्द्रकुलीनाचार्य श्रीमदभयदेवसूरिशिष्य श्रीप्रसन्नचन्द्राचार्योक्त्या श्रीसुमतिविजय वाचकशिष्यैः आचार्यप्रवर श्रीमद् गुणचन्द्रसूरिवरैर्विहितम् सिरि महावीर चरे सम्पादकः पूज्य गणिवर्य श्री नयवर्धन विजय महाराजः प्रकाशक: अमदावाद - पालडी मर्चन्ट सोसायटी जैन संघः For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राप्तिस्थानादि श्रीगुणचंद महावीरच. ।।२।। COLAGASARIGLACERLOSHIRLSPROG ग्रन्थः सिरि महावीर चरियं प्रकाशनम् वीरसंवत २५२७ - विक्रम संवत २०५७, दीपालिका महापर्व - आश्विन कृष्ण १४ __ मूल्यम् : २५०.०० रूप्यकाणि मुद्रकः दुन्दुभि प्रिन्टर्स, ४०६, आनंद मंगल-२, सी. जी. रोड, अमदावाद-३८०००९ प्राप्तिस्थानम् श्री मर्चन्ट सोसायटी जैन संघ C/0. अशोकभाई घेलाभाई शाह ३३ B, जैन मर्चन्ट सोसायटी, पुरुषोना उपाश्रय सामे, पालडी, अमदावाद-३८०००७ RRRRRRCESARKARINA For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ।।३ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकीय अमारा श्रीसंघमां वि.स. २०५७ना वर्षाचातुर्मास माटे अमारा श्रीसंघनी आग्रहभरी विनंतीनो स्वीकार करीने पूज्यपाद जैनशासनना महान ज्योतिर्धर, देवांशी महापुरुष, युगप्रधानावतार, व्याख्यान वाचस्पति तपागच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजाना शिष्यरत्न पूज्यपाद प्रखर प्रवचन प्रभाकर गणिवर्यश्री नयवर्धन विजयजी म.सा. आदि मुनिगण, पूज्यपाद सुविशाल गच्छाधिपति वात्सल्यवारिधि आचार्य देव श्रीमद् विजय महोदयसूरीश्वरजी महाराजानी तारक आज्ञा थतां अमारा श्रीसंघमां चातुर्मासार्थे पधार्या छे. पूज्यपादश्रीजीनी प्रभावक निश्रामां सुविशुद्ध मोक्षमार्गनी प्ररूपणानी साथ साथ रत्नत्रयीनी अनुपम आराधना थवाथी आ चातुर्मास चिरस्मरणीय बन्युं छे. पूज्य गणिवर्यश्री व्याख्यान दरम्यान भववैराग्योत्पादक 'श्रीउपमिति भवप्रपंचा कथा' ग्रंथनुं वाचन करे छे. आ ग्रंथ तथा श्री कल्पसूत्र वगेरे ग्रंथो वहोराववा ज्ञानपूजा वगेरे द्वारा ज्ञानद्रव्यनी वृद्धि विपुल प्रमाणमां थवा पामी हती, त्यारे For Private and Personal Use Only प्रकाशकीय 113 11 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच. ।। ४ ।। www.kobatirth.org ज्ञानद्रव्यना सदुपयोग माटे अमोए पूज्यश्रीने पृच्छा करतां आजे अप्राप्य एवा 'सिरि महावीर चरियं' ग्रंथनी प्रतिनुं पुनर्मुद्रण पूज्यश्रीए सूचव्युं. पूज्यपादश्रीना सूचन मुजबना आ ग्रंथनुं पुनर्मुद्रण कार्य मजबूत, टकाउ कागळ उपर अने अत्यंत स्पष्ट कराववामां आव्युं छे. प्रिन्टर श्री जयेशभाईए आ भगीरथ कार्य झडपभेर करी आप्युं छे, तेथी आजे ते महाग्रंथनुं पुनः प्रकाशन करतां अमो परमहर्ष अनुभवीए छीए. द्वितीय आसो सुद- १३ संवत २०५७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे परमारक परमात्माना शासनमां आजे आपणे मोक्षमार्गनी आराधना करीए छीए, ते श्रमण भगवानश्री महावीरदेवना जीवन चरित्रनो आ दळदार ग्रंथ ते ज परमात्माना निर्वाण कल्याणकना महामंगलकारी दिवसे प्रकाशित करतां अमो परम संतोषनी लागणी अनुभवीए छीए. For Private and Personal Use Only श्री मर्चन्ट सोसायटी जैन संघ पालडी, अमदावाद - ३८०००७ प्रकाशकीय । ।४ ।। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A प्रस्तावना श्रीगुणचंद महावीरच. ।। नमामि नित्यं गुरु रामचन्द्रम् ।। प्रस्तावना LA CASTELLIG परमतारकावतंस शासनपति श्रमण भगवान श्री महावीर परमात्मानां सम्यक्त्व प्राप्तिथी आरंभी मोक्षप्राप्ति सुधीनां समग्र जीवनने विस्तारथी वर्णवता आ- महाग्रंथ 'सिरि महावीर चरियं'नी रचना, चांद्रकुलना प्रभावक पुरुष आचार्य देव श्रीमद् गुणचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजे अत्यंत भाववाही शैलीए करी छे. ___ संसार सागरमा परिभ्रमण करी रहेला श्री तीर्थंकरदेवना तारकआत्मानी पण सम्यक्त्व प्राप्त न थाय त्यां सुधी वास्तविक दृष्टिए कोई गणना करवामां आवी नथी. सम्यक्त्व प्राप्तिथी ज ते तारकोना भवोनी गणना शरू थाय छे. तेमा चरमतीर्थपति श्री महावीरप्रभुना श्री नयसारथी प्रारंभीने स्थूल सत्तावीस भवो गणवामां आव्या छे. तारक श्री अरिहंत देवोना आत्मानु तथाभव्यत्व अनादिकाळधी ज विशिष्ट अने लोकोत्तर कोटिनु होय छे. अनेकानेक असाधारणकोटिना | सद्गुणो बीजरूपे तेओमां सूक्ष्म निगोदना अनादिकाळथी ज अस्तित्व धरावतां होय छे. पवननो योग मळता ज अग्नि जेम झडपथी वेग पकडे nnonartertentar For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना श्रीगुणचंद महावीरच. छे, तेम सम्यक्त्वनो योग मळतां ज ते तारकोना सहज सद्गुणो अतिद्दढ, अतिविकसित अने उर्ध्वमुखी बनी रहे छे. वरबोधि (श्रेष्ठ सम्यक्त्व)ने पामनारा आ तारकना आत्माओ प्राय: करीने वणथंभी अध्यात्म साधना साधता साधता मोक्षमार्गना प्रकाशन द्वारा जगतमां अनन्य उपकार करी वहेलामां वहेला स्वध्येयनी सिद्धिरूप मोक्षने प्राप्त करता होय छे. छतांय कोई कोई श्री तीर्थंकरना आत्माओनी भवस्थिति ज लांबी होय तो सम्यक्त्व प्राप्ति पछी पण तेओने ठीक ठीक संसार परिभ्रमण करवू पडे छे. आपणा आराध्यप्रभु श्री महावीर देवना आत्मा माटे आबु ज बन्युं हतुं. सम्यक्त्व प्राप्त कर्या पछी पण प्रभुनो आत्मा चिरकाळ संसारमा भम्यो छे, अनेक बखत । एकेन्द्रियपणामां पण गयो छे अने नरकमां पण गयो छे. कर्मपरिणतिनी विचित्रताना कारणे प्रभुना सम्यक्त्व प्राप्तिथी सिद्धिप्राप्ति सुधीना सुदीर्ध समयगाळामां आरोह-अवरोह घणा आव्या छे... परमात्मानो जीव केवा उच्च अध्यवसायोनी भूमिकाए पहोंच्यो त्यारे सम्यक्त्व पाम्यो अने तेमां वळी पाछा कर्मना आक्रमणो आव्या, तो परमात्मानो जीव पण केवू चूक्यो ! गुणस्थानकोथी पतन पामता ते केवु सद्गुणधन गुमावी बेठो ! अने एना परिणामे ते तारकना आत्माने पण संसारमा केबुं परिभ्रमण करवू पड्यु ! आवा आवा अनेक पासाओ परमात्मानां जीवननु वाचन करवाथी जाणवा मळे छे, एटलुंज नहि पण ए वाचन आपणा आत्माने जागृत बनाववा- काम करे छे के तारक तीर्थपतिना आत्मानी पण जो आ दशा थई शके, तो आपणुं तो स्थान ज क्यां छे ? माटे वधुने वधु जागृति केळववी जोईए. आ ग्रंथ महासागर जेवो छे. प्रभुना भवोनी विगतवार रजुआतनी साथे साथे वचमां केटलीक अवांतर वातो पण बहु ज उपयोगी अने प्रेरक छे. __ वधुमां वर्तमान युगमां थयेला केटलाक श्रद्धाभ्रष्ट पंडितोए परमात्माना जीवननी केटलीक घटनाओने काल्पनिक कही नाखवा जेवू 11६|| For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * A प्रस्तावना श्रीगुणचंद महावीरच. ।७॥ SECREASESSAGAR धृष्टताभर्यु कृत्य पण करेलुं छे. ते-ते पंडितोनी आवी केटलीक-केटलीक वातोने रदीयो आ महाग्रंथ आपोआप आपतो जाय छे. हा ! महाज्ञानी शास्त्रकार महर्षिओनी सत्यार्थ प्रतिपादकतामां ज जेने अश्रद्धा होय एवा श्रद्धाकंगालो माटे तो श्रद्धा जन्माववानो कोई उपाय ज नथी होतो. तारकशिरोमणि श्री तीर्थकर भगवंतो प्रत्ये अनहद-अपूर्व-अद्भुत-अनुपम-असाधारण-अनन्य भक्तिभाव होवो ते दरेके दरेक साधकप्रथम लक्षण छे. शास्त्रसमंदरनुं अवगाहन करता करतां पण आखर तो ए भगवद्भक्तिभावने ज पामवानो छे. श्री अरिहंतो प्रत्ये जागता भक्तिभावमां तो करोडो-करोडो भवोना कातिलमां कातिल कर्मोनी पण कत्लेआम करवानी कल्पनातीत ताकात रहेली छे. आ ध्येयने सिद्ध करवा माटे आ महाग्रंथनुं वाचन खूब खूब सहायक बनी रहे तेवू छे. __ श्री अर्हद्भक्तिना तात्त्विक भावोने आत्माना एक-एक प्रदेशे प्रतिष्ठित करनारा महान युगपुरुष, ऐदंयुगीन प्रवर-प्रकृष्ट धर्मनेता, स्याद्वादवादधीतसकल विचारसार, व्याख्यान वाचस्पति, कलिकाल कल्पतरु आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजाधिराजानी मनासृष्टिमां आ ग्रंथकृतिनुं एक आगq-अपूर्व स्थान हतुं. वारंवार आ ग्रंथनुं पारायण करीने तेओश्रीए आ महाग्रंथर्नु उपनिषद् हृदयमा आत्मसात् कर्यु हतुं. अमदावाद-पालडी-मर्चन्ट सोसायटी जैन संघना सत्पुरुषार्थथी आजे आ महाग्रंथने नवजीवन अने चिरायुष्यनी प्राप्ति थई रही छे, ते खूब अनुमोदनीय छे. तारकेश्वर, त्रिशलानंदन, त्रिजगद्गुरु, त्रिलोकप्रकाश, त्रिभुवनपूज्य श्री श्रमण भगवान महावीर परमात्माना उद्बोधक जीवन- कवन है HILIRLASHISTORIA ।।७।। For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना श्रीगुणचंद महावीरच० ।।८।। करता आ महाकाय महाग्रंथर्नु वाचन करवाना प्रभावे आपणे सौ आपणा आत्माने आ तारक भगवंत प्रत्येनी अनन्य श्रद्धाथी सनाथ बनावी दईए, कर्मविपाकोथी भयभीत बनावी दईए, सद्धर्मना आराधनामा दत्तचित बनावी दईए, सर्वजीवोना श्रेयानी साधनामां आत्मवीर्य फोरववा उल्लसित बनावी दईए अने एना प्रतापे आपणा परम विभु परमात्मा ज्यां बिराजमान थया, त्यां आपणां आ तारक तातनी साथे सादि-अनंत भागे आपणे पण मिलन साधीने त्यां सदा स्थिर बनी जईए, एज एक मंगलकामना.... द्वि. आसो वद ४, सोमवार ता. ५-११-२००१ मर्चन्ट सोसायटी, पालडी, अमदावाद पू. जैनशासनना महान् ज्योतिर्धर आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराज पादपद्मपराग मुनि नयवर्धन विजय गणी |८|| For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द विषयानु राक्रमः. श्रीगुणचंद | महावीरच. ।।९।। KAR १ प्रस्ताव प्रस्तावना महावप्रजयन्तीशत्रुमर्दनवर्णन नयसारवर्णनं अटवीमध्ये साधुभ्यो दानं धर्मदेशना सम्यक्त्वं च सौधर्मे देवत्वं धर्मकार्य च २ प्रस्ताव विनीतावर्णन श्रीकृषभप्रभुवर्णनं समवसरणवर्णन श्रीवीरचरित्रस्य विषयानुक्रमः Octoवामासुतमरीचिदीक्षा ११ परिवाड्वृत्तं भोगदोषाः स्थावरदीक्षा २ मंगारवधकदृष्टान्तः १३ ब्रह्मदेवः ३ पारित्रज्यं ३ प्रस्ताव अमरीचिदेशनादि १५ विश्वभूतेमधुक्रीडा इन्द्रच क्रिकृतमवप्रहदानं १७ देव्याग्रहः कूटपुरुषाः रणयात्रा विश्वनमरीचेः कुलमदः १९ दिक्रीडा विश्वभूतेरपमानं संवेगा ३६ अष्टापदे चैत्यं तद्गुणाश्च २०,संभूत्याचार्यवर्णनं देशना विश्वभूतिदीक्षा कपिलदीक्षा मरीचिकालः आसुरि- । परिजनाकन्दः बोधश्च दीक्षा अव्यक्तादि २३ विश्वभूतेस्तपः गोनुग्नस्य पात: निदानं ४१ ७ सूरसेनपरिव्राजकचरित्रं अग्निद्योतदीक्षा २५ महाशुके देवः ९ सनत्कुमारे देवः श्वेतांबिकायां भारद्वाजः रिपुमर्दनः अचलः मृगावती पुत्री राजीच १० माहेन्द्रे देवः संसारः २५ सप्त स्वप्नाः त्रिपृष्ठजन्म For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषयानु रक्रमः श्रीगुणचंद प्रेक्षणकं अश्वग्रीवदूतापमानं सिंहवधः ५० महावीरचयुद्धं प्रतिवासुदेववधः अंत:पुरविलापः । अंगाविदेशसाधनं कोटीशिलोत्पाटनं ६० ।।१०।। पोतनपुरे श्रेयांसजिनागमः धर्मकथा ___ सम्यक्त्वं ६२ गायकमृतिः देव्यपमानं सप्तमनरकगमनं ६३ धर्मघोषसूरिदेशना अचलदीक्षामोक्षौ ६३ प्रियमित्रचक्री अनार्यदेशसाधनं चक्रिऋद्धिः वैराग्यं प्रोष्ठिलाचार्यदेशना दीक्षा शुक्रे देवः७१ ४ प्रस्ताव नन्दनजन्म प्रोष्ठिलाचार्याः देशना ७२ नृपो नरसिंहः चम्पकमाला देवी मनिवर्गः सुतचिन्ता घोरशिवागमः मनसाधनं घोरशिवमूर्छा श्रीभवनपुरं अवन्ति- । सेनो राजा वीरसेन विजयसेनौ राज्यं । सामन्तभद्रः देशना सुतौ गोकुखेचरयुद्धं गगनवल्लभे विजयराजसुतो लिकगृहे सुतसंयोगः शीलदाढ्य शीजयशेखरः वैयमिततेजाः वीरसेनरा- लवत्या योगः मालाकाराय चौडराज्यजस्यापहारः विजयसेनकृतो राज्याक्रमः दानं जयन्त्यां गुरोर्गमनं देशना पित्रा सोमदत्तगृहे स्थान प्रस्थानं योग्याचार्यो योगः राज्याभिषेक: शिक्षा साधुमहाकालनामा प्रव्रज्या,अष्टशतेन होमः नृपयोः १०९ क्षत्रियः, वैताट्यगमनं चंपकमालाया नन्दननृपस्य दीक्षा विंशतिस्थानकाराध्वजस्वप्नः घोरशिवस्य राज्यं नर- | धनं प्राणते देवः १११ विक्रमाभिधानं हर्षपुराधिपदेवसेनदु- देवानन्दाकुक्षाववतार। स्वप्नानामुपलभश्च १११ हितुर्वरणं कालमेघमल्लजयः शीलवत्यै इन्द्रस्तुतिः गर्भापहारः देवानन्दाकंदः ११२ पितृशिक्षा पुरप्रवेशः युवतिविभ्रमा त्रिशलाकुक्षौ संक्रमः स्वप्ना वृद्धिर्मनोरथाः११४ जयकुञ्जरवशीकरणं कुमारस्य प्रवास: निष्पन्दत्वं शोकः अभिप्रहः ११५ पाटलगृहे वासः शीलवत्या अपहारः श्रीवीरस्य जन्मनि विकुमारीमहः ११७ जयवर्धने राज्य नद्या नरविक्रमापहारः अभिषेकसामग्री मेरुचालनं अभिषेकः १२३ CREATREAM ।।१०।। For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषयानु क्रमः. श्रीगुणचंद महावीरच ।।११। ARMONALISASARAGALX नृपकृतो महः १२५ कूर्मारनामे गोपोपसर्गः शक्रकृता निर्भ- लयं गंगायां प्रवेशः नास्तिकवाक् वर्धमाननामकरणं सुरपिशाचसर्परूपा- संना दूइज्जंताश्रमे गमनं वर्षायाः जालन्धरे गमनं ईशानचन्द्ररक्षा यो। भ्यामभीतिः लेखशालानयनं १२७ पक्षे गते निर्गमः अभिग्रहपंचकं १४८ गिनीशान्तिः परस्त्रीनियमः गृहे आयशोदाभिधानकारणं १३० वर्धमानग्रामस्यास्थिग्रामत्वे हेतुः वृषस्या गमनं भार्यामरणश्रवणं धर्मघोषस्य यशोदया श्रीवीरस्य विवाहः, प्रियदर्शना- प्रतिजागरणाद् द्वेषः मारिः चैत्यम् १५२ देशना दीक्षा मंडूकी विराधना क्रोधः जन्म १३२ शूलपाणिकृता उपसर्गाः तत्प्रतिबोधः ज्योतिष्कः तापसः चंडकौशिकः बोधः १७६ मातापित्रोः स्वर्गमनं, नन्दिवर्धनस्य रा- स्वप्नदशकं इन्द्रशर्मोक्तं तत्फलं (१) १५६ उत्तरवाचाला श्वेतांबिकायां प्रदेशिज्याभिषेकः १३४ अच्छंदकस्य कुटिलता शक्रशिक्षादि १५८ नृपकृता स्तुतिः संवत्सरदानं नन्दिवर्धनकृता महानसशा- सुवर्णवालुकायां वस्त्रार्धस्य पातः, नन्दि- सुरभिपुरं सुदंष्ट्रसुरोपसर्गः कंबलशंवलौ | ला लोकान्तिकागमनं च १३६ वर्धनाय लझेग दानं तस्य १५९ मथुरा जिनदासः साधुदासी गंगोतारः दीक्षाभिषेकः चन्द्रप्रभा शिबिका दीक्षा- कनकखलाश्रमः (गोभट्टो विप्रः वना- | स्थूणाके गमनं पुष्यबोधः १८२ | महोत्सवः १४१ रसीप्रस्थानं विद्यासिद्धाकृष्टा रसवती ६प्रस्ताव ५प्रस्तावः युवतिश्च शीलदाय जालन्धरे चन्द्र- राजगृहनालन्दायां तन्तुवायार्जुनशालायां । सोमबामणाय वस्त्रार्धदानम् १४४ लेखाचन्द्रकान्ते ईशानचंद्रः रक्षाव- । वर्षावासः (२) १८३ KESABCAMERACCORRUS ।।११।। For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषयानुक्रमः. श्रीगुणचंद महावीरच ||१२|| RECESSAGAR उत्तरापथे सिलिन्धे केशवशिवापुत्रो में- नवधा भदिलायां वर्षावासः(५) कद- पुरिमताले वग्गुरश्रेष्ठिकृता पूजा, धर्मघोष खः पूर्वप्रियोपलब्धये पट्टिकाकृतिः मं- लीसमागमे जंबूखंडे चास्तारिकाभक्तं सूर्युक्तं पूजाफलं दानं च २१७ खलीसुभद्रयोमखत्वं गोशालजन्म, तंबाके नन्दिषेणाः कूपिके विजयाप्र- तुन्नागपथे श्रीभूमौ च गोशालस्य ताडनं श्रीवीरेण मीलनं कोल्लाके शिष्यत्वं प्रा गल्भाभ्यां मोचनं वैशालीप्रस्थान (६) राजगृहेऽष्टमो वर्षावासः (८) २१८ ग्गृहीताया नियतेः स्थालीस्फोटे दाय गोशालो बाधितः अयस्कारघातः १९८ लाढावमभूमिशुद्धभूमिषूपसर्गाः वृक्षमूले ब्राझणग्रामे उपनन्दगृहदाहः चंपायां बिभेल कयक्षस्योत्थानपर्याणिका २१२ वर्षावासः (९) २१८ वर्षावासः(३)कालाके पात्रालके च ताडनं | कुमारे मुनिचन्द्राः चौराके सोमाजय शालिशी कटपूतनोपसर्गः लोकावधिः २१३ सिद्धार्थकूर्मारग्रामयोरन्तराले तिलप्रभादि२१८ न्तीभ्यां मोचनं पृष्ठ चम्पायां वर्षावासः(४ आलम्भिकायां वर्षारात्रः (७) वैश्यायनस्योत्थानपर्याणिका तेजोलेश्या कुतांगले दरिद्राः श्रावस्त्यां मनुष्यमांसं गोशालमीलनं | तन्निवारणं तदुपायप्रश्नोत्तरे २२३ हरिद्रद्रुमेऽग्निः मंगलाग्रामे वासुदेवगृहे कुण्डागे मधुमथनगृहे गोशालचेष्टा मर्दन- कारसिद्धार्थ पुरोरन्तराले तिलनिश्चयात् आवर्ते बलदेवगृहे च स्थानं चौराके ___ प्रामे बलदेवगृहे च २१३ प्रवृत्तिपरिहारो नियतिवाददाय च मंडपदाहः कलंबुकायां कालमेघह- सालगमामे सालज्जोपसर्गपूजे श्रावस्त्यां तेजोलेश्या पार्श्वन्तेवासिस्तिनौ म्लेच्छदेशे गमनं पूर्णकलशे स्ते- लोहार्गले जितशत्रुकृतः सत्कारः २१४ संगमः RASNA २२४॥ ।।१२।। For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ।।१३।। ७ प्रस्तावः वैशाल्यां शंखसत्कारः गंडकिकायां नाविकोपसर्गः ऋतुषट्स्याविकारिता वाणिज्यमा आनन्दगाथापतिः अब धिमान् श्रावस्त्यां वर्षारात्रः (१०) सानुषष्टि के प्रतिमाः दृढभूमौ पेढाले संगमोपसर्गाः, संगमधर्मानं आरंभिकायां विद्युत्कुमारेन्द्रस्तुतिः तां त्रिकायां हरिस्तहस्तुतिः श्रावस्त्यां स्कन्दप्रतिमासत्कारः कौशांच्यां चन्द्रसूर्यावतारः वाराणस्यामिन्द्रपूजा रा २१९ २१९ २२६ २३१ www.kobatirth.org जगृहे ईशानाच मिथिलायां जनकस्तुतिः धरणेन्द्रवन्दना राजगृहे वर्षारात्रः (११) भूतानन्दस्तुतिः जीर्णश्रेष्ठभावना केवलिदेशना चमरेन्द्रोलातः सुसुमारे गणधराणां प्रतिबोध: दीक्षा' चन्दनाया दीक्षा संघस्थापना ऋषभदत्तस्य देवानन्दायाश्च दीक्षा २३४ क्षत्रियकुण्डे समवसरणं पद नन्दिवर्धनकृता स्तुतिः जमालिदीक्षा (मात्रादिवचनप्रतिवचनानि ) महः २४० ४४१ जमालेर्निह्नवत्वं प्रियदर्शनाया बोधः जमालेर्गतिः For Private and Personal Use Only २३३ | भोगपुरे माहेन्द्रोपसर्गः सनत्कुमारेन्द्रनतिः नन्दीप्रामे नन्दिस्तुतिः | चम्पापातः धारणीमरणं चन्दना कुल्माघाभिग्रहः षाण्मासिकः कीलकोपसर्गः मध्यमापापायां कीलक निर्गमः तपःसंकलना केवलज्ञानं च ८ प्रस्तावः समवसरणरचनं धर्मदेशना २५० ३५१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५३ २५९ २६० २६९ २४७ कौशाम्यां सुरप्रियलब्धवरे नृपस्य क्रोवः चण्डप्रद्योतकृता मृगावत्याः प्रार्थना शीलरक्षार्थ छलं मृगावल्या दीक्षा या सा सा सोदाहरणं आनन्दादीनां वाणिप्रामादिषु बोधः कोशाम्ब्यां चन्द्रसूर्यावतरणं कैवल्यं २६५ २७४ विपयानु क्रमः. ।।१३।। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० 119811 आश्चर्यदशकं आनन्दश्रवणः गोशालक कृत उपसर्गः सर्वानुभूतिः सहस्रारे सुनक्षत्रोऽच्यु २७९ www.kobatirth.org | सुदंजीवकर्षकस्य दीक्षा तन्मोचनं च २९९ सामायिके कामदेवकथा तामलिस्यादिषु विहारः प्रसन्नचन्द्रादीदेशावकाशिके सागरदत्तकथा नां बोधश्च पोषधोपवासे जिनदासकथा गोशालकदाहः अयंपुत्रः शिष्येभ्यो निईरणादेशः सप्तम दिने सम्यक्त्वं आदेशः २८२ | सिंहानीतौषधेन नीरोगत्वं श्रीवीरस्य २८३ | गोशालकस्य भवाः राजगृहे धर्मदेशना मेघकुमारस्य दीक्षा भग्नमनस्कत्वं पूर्वभवो नन्दिषेणस्य दीक्षा, देवेन कृतो निषेधः जिनेनापि, वेश्यागृहे स्थानं दशकदशबोधः दीक्षा देवत्वं राजगृहे समवसरणं प्रथमाणुनते हरिवर्मकथा द्वितीयाणुत्रते सत्यश्रेष्ठिकथा तृतीयाणुत्रते वसुदत्तकथा २८६ तुर्याणुत्र सुरेन्द्रदत्तकथा ( शुभंकर कथा ) २८९ पंचमाणुत्रते वासवदत्तकथा | दिखते जिनपालितकथा भोगोपभोगमाने रविपालकथा २९० अनर्थदण्डविरतौ कोरंटककथा २९१ २९२ २९८ ३०० ३०३ For Private and Personal Use Only ३१२ अतिथिसंविभागे साधुरक्षितकथा सेडुक द्विजवृत्तं गागलिप्रब्रज्या दि अष्टापदयात्रा तापसानां बोधादि मिथिलायां दुष्षमास्वरूपोक्तिः ३१४ ३१६ ३१९ ३२२] Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२३ ३२५ ३२७ ३२९ ३३४ आयुर्वर्धने विज्ञप्तिः | निर्वाणमहः गौतम केवलं परम्परा अन्धकारकाणामितिहा च इति श्रीमहावीरचरित्रस्य विषयानुक्रमः ३३४ ३३५ ३३७ ३३८ ३३९ ३४१ विषयानु क्रमः. | ।। १४ ।। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ नमो वीतरागाय ॥ ॥ श्रीमहावीरचरित्रम् ॥ ॥ श्रीमद्गुणचन्द्रसूरिवर्यनिर्मितं ॥ 65SSCRIBINISTRARA पयडियसमत्थपरमत्थवित्वरं भवचक्ककयसोक्खं । विप्फुरद जस्स रविमंडलं व नाणं निहयदोसं ॥१॥ जस्स य सोहर पणमंतसक्कसंकंतनयणकमलवणं । कमविमलसरं तललीणमीणमयरं नहंसुजलं ॥२॥ संगमयपणइणीहि कडक्वविक्खेवखोमदक्खाहिं । जस्स मणागपि मणो न चालियं नियपइण्णाओ॥३॥ . नरतिरियदेवविहिजोवसग्गरिउवग्गविजयजायजसो । ओहामियऽण्णवीरो सो जया जिणो महावीरो ॥४॥ पणमह सिरिरिसहजिणिदचंदमुद्दामकामवलदलणं । गिहिसाहुधम्मपासायमूलपीढाइयं जेण ॥५॥ अजियाइणो जिणिंदा सुरिंदसंदोहनमियकमकमला । धम्ममहिधरणधीरा सेसव्व जयंति सेसावि ॥६॥ सो जयइ जिणो पासो जस्स सिरे सहइ फणिफणकडप्पो। पायडियसत्तजीवाइतत्तसंखं व दावितो ॥७॥ कविसेवियपयकमला सुचीहि पसाहिया महाभोगा । गोवग्गजणियसोक्खा सरस्सई जयइ सरियन्य ॥८॥ ॐ For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंगलं संक्षिप्तवृत्त. श्रीमहा० चरित्रे १ प्रस्तावः ॥१॥ दंसियसमग्गसग्गापवग्गमग्गाण गोयभाईणं । गुणवंताण गुरूणं थुणामि पयपंकयं निचं ॥९॥ इय संथवणिजप्पयपणाममाहप्पनिद्दलियविग्यो। भवाण सोक्खमूलं धम्मुवएस पयंपेमि ॥१०॥ जलहिजलगलियरयणं व दुल्लहं पाविऊण मणुयत्तं । पुरिसत्वजणकज्जे उजमियई बुहजणेणं ॥ ११ ॥ तत्थ पुरिसत्थमत्थयचूडामणिविन्भमो परं धम्मो । सो पुण पइदिणसवरियसवणओ हवइ भवाणं ॥ १२॥ तस्स य धम्मस्स जिणो पणायगो संपयं महावीरो। चरियपि उ तस्सेव य सुणिजमाणं तो जुत्तं ॥ १३॥ तं पुण निस्सेसागमसमुहसवणासमत्थसत्ताणं । निउणेणाविन गुरुणा समग्गमवि तीरए वोत्तुं ॥ १४॥ ता जह भुवणेकगुरू निप्पडिमपभावधरियधम्मधुरो । मिच्छत्ततिमिरमुसुमूरणेक्कमिहिरो महावीरो ॥१५॥ अचंतमणंतमणोरपारभववारिरासिमणवरयं । पुर्व परियट्टिय तिरियतियसपुरिसाइभावणं ॥१६॥ ओसप्पिणी इमीए पढम चिय गामचिंतगभवंमि । नीसेससोक्खमूलं सम्मत्तमणुत्तमं पत्तो ॥१७॥ तत्तो पाविय देवत्तमुत्तमं भरहचकवहिस्स । मिरिइत्ति सुओ होउं काउं जिणदेसियं दिक्खं ॥१८॥ दुस्सहपरिसहनिम्महियमाणसो पयडिउंतिदंडिवयं । मिच्छत्तविलुत्तमई कविलस्स कुदेसणं काउं ॥१९॥ तहोसेणं अयराण वहिउं कोडकोडिसंसारं । छन्भवगहणे पुणरवि पारिवजं पवजित्ता ॥२०॥ दीहं संसारं हिंडिऊण रायग्गिहमि रायसुओ। होऊण विस्सभूई घोरं संजममणुचरित्ता ॥२१॥ ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मरणे नियाणबंध निवत्तिय सुरसुहं च भोत्तूर्ण । पोयणपुरे तिविठ्ठ परिपालिय वासुदेवत्तं ॥ २२ ॥ मूयाए पियमित्तो चकितं संजमं च अणुचरित्रं । छत्तग्गाए नंदण नरनाहत्तं च पवजं ॥२३॥ परिपालिय वीसइकारणेहि तित्थाहिवत्तमजिणिउं । पाणयकप्पा चविउं कुंडग्गामंमि नयामि ॥ २४ ॥ सिद्धत्थरायपुत्तो होउं जंतूणमुद्धरणहेउं । सबविरई पवज्जिय दुविसहपरीसहे सहिउं ॥२५॥ केवललच्छि लहिउं संपत्तो मोक्खसोक्खमक्खंडं । अट्ठहिं पत्थावहिं सिद्धताओ तह कहेमि ॥२६॥ द्वादशभिः कुलकम् ॥ अहवाकत्थ भुवणेकपहुणो चरियं अम्हारिसो कहिं कुकई ? । साहसमिममसममुयहिपवाहतरणाभिलासोच ॥ २७॥ तहवि हु गुरुजणवयणोवरोहओ मुद्धलोयसुहबोहं । विरएमि चरियमेयं खमियचं एत्थ सूरीहिं ॥२८॥ एत्थ य पत्थुयचरिए नाणाविहसंविहाणगाइन्ने । अमयजलकुलतुले महलकल्लाणवल्लीणं ॥ २९ ॥ कत्थवि जइवि हु किंपिप्पसंगओ किंपि वुड्डवयणाओ। सत्यंतराणुसरणाओ किंपि किर भण्णइ अउवं ॥३०॥ चरिएयरंति तहवि हुन संकियचं कर्हिपि कुसलेहिं । उवकहपमुहं एत्तो पज्जतं बहुपसंगणं ॥३१॥ विशेषकम् | __ अत्थि समत्थावरविदेहालंकारकप्पकप्पपहुमणिमउडविडंकविविहरयणकंतिपिच्छुरियचरणजिणनाहविहरणपसंतडिंबडमरं अमरागारसमुत्तुंगसिंगसमुवहसियहिमगिरिवरं वरवेरुलियकणयकलहोयपमुहमहागरसोहियवसुंधराभोगं For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ***** महावजयन्ती शत्रुमर्दनव. श्रीमहाभोगोवभोगलालसजणजणियपरितोसं सुरभूमिसोहग्गमडप्फरफंसयं महावप्पं नाम विजयखेत्तं, तत्थ य विसालसाचरित्रे लवलयखाइयापरिक्खित्ता नाणाविहविहारवापीकूवमहासरसरियपरिसराभिरामा सुविभत्तत्तियचउकचच्चरचउप्पह१ प्रस्तावः पसोहिया पासायसयमालालंकिया सुइनेवत्थमहिच्छच्छेयजणसंकुला पागसासणपुरिब दीसंतनाणाविहरयणा कम॥२॥ लासणमुत्तिव सवओमुही विंझगिरिमेहलच पुन्नागनागसोहिया जहत्थाभिहाणा जयंती नाम नयरी कुलसेलुत्तुंगथणत्थलीऍ नहनइजलोहहाराए । धरणीरमणीऍ मुहे जा सोहइ चित्तलेहच ॥ ३२॥ सत्तमुणिमेत्तगचियमणेगमुणिसंकुला सुरपुरिपि । एगवुहं भूरिविबुहा हसइ व जा तूररसिएहिं ॥३३॥ जीए य कमलसंडाण मित्तविरहसंकोयपीडणाणि मुणिवराण करवालुप्पाडणं बालकुंजरेसुं कलहसदो रहंगमिहुणाण पियविरहवेयणा तंतुवायसालासु वसणुभवो, न कयाइ लोएसु, तहिं च-सायरपणमंतमहंतसामंतमउलिमा-3 लामणिमसिणियपायवीढो पयंडभुयदंडमंडलियकोडंडनियत्ततिक्खखुरुप्पखंडियसयसत्तुमुंडमंडियसमरंगणो, दप्पुब्भउसुहडपरिवुडदंडनाहसहस्साणुसरिजमाणमग्गो मग्गणगणवंछाइरितपूरियमणोरहो, रहोव सुसिलिट्ठलट्ठसुचक्कक यसंचरणो रणरसियपुरिसोच कयवहुकवयपरिग्गहो गहगणोब कविमुहगुरुवयणाणुगओ गओब अणवरयदाणवरिसो Pारिसिष निग्गहियछवग्गपयारो पायारोब पुखपुहइपालपवत्तियनयनयरीए हिमगिरिब डिंडीरपिंडपंडुरकित्तिसुरसBारियाए जलहिब अणेगगुणगणरयणरासीए * ॥ २ ॥ For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विपक्खदप्पखंडणो नरिंदवंस मंडणो, अजायभंगसासणो कुनीइलोयनासणो । असेससोक्खकारणं करेइ लोयपालणं, नरिंदसत्तुमद्दणो म (ज) मि चित्तनंदणो ॥ ३४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जंमि य नराहिवे पवलवलसालिभुयपरिहारोविय धरणिभारे रायनीइमेत्तं मंतिणो सोहा हरिकरिरहजोह सामग्गी आडंबरं असिचक्कचाव सरकुंतप्पमुहपहरणपरिग्गहो सेवगा पणयावेक्खा सजीयनिरवेक्खंगर क्खपरिक्खेवपरिकपणा । तस्स य रण्णो विसिट्ठायारपरिपालणपरायणो धम्मसत्य सवणवियाणियहेज्जोवादेयवत्थुसरूवो गंभीरिमाइगुणगणावासो पयइसरलो पयइविणीओ पयइपियंवओ पयइपरोवयारपरो पुहइप्परट्ठाणनामंमि गामे नयसारो नाम गामचिंतगो अहेसि । जो य तहाविहसाहुसेवाविरहेऽवि अलसो अकज्जपवित्तीय परम्मुही परपीडाए सयण्हो गुणगणोवज्रणाए अचक्खू परछिद्दपलोयणाए । एवंविहगुणो य सो सविसेसगुणुक रिससाहणनिमित्तं भणिओ गुरुअणेण, जहा - धणरिद्धी दूरं वड्डियावि दुचिणयपवणपरिहणिया । एकपएचिय पुत्तय ! पणस्सए दीत्रयसिह ॥ ३५ ॥ णीहारहारधवलोव वच्छ ! सेसो गुणाण संघाओ । विणएण विणा वयणं व नयणरहियं न सोहेइ ॥ ३६ ॥ अतपिओवि परोवयारकारीवि भुयणपयडोऽवि । वज्जिज्जइ पुरिसो विणयवज्जिओ गुरुमुयंगोव ॥ ३७ ॥ इय दुधिणयत्तणदोसनिवहमवलोऊण बुद्धीए । पुत्त ! रमेज्जसु विणए समत्यकलाणकुलभवणे ॥ ३८ ॥ तहाहि - विणणं हुंति गुणा गुणेहिं लोगोऽणुरागमुच्वहइ । अणुरत्तसयललोयस्स हुंति सङ्घाओं रिद्धीओ ॥ ३९ ॥ For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीमहा० चरित्रे १ प्रस्तावः ॥ ३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रिद्धीहिं संगओ गयवरोध अणवरयदाणवरिसेण । मग्गणगणपणईणं उपयारं कुणइ लीलाए ॥ ४० ॥ उवयरणेणं तेसिं लग्भइ आचंदकालिया कित्ती । तीएऽविहु लद्धाए किं नो लद्धं तिहुयणेऽवि ? ॥ ४१ ॥ सच्चिय जेण थिरा जुगविगमेऽविहु न वच्चइ विणासं । उप्पत्तिपलयकलियं सेसं पुण थेवदियहथिरं ॥ ४२ ॥ इय गुरुजणसिक्खं गिहिऊण तह कहवि संपयट्टो (सो) । बीसासद्वाणं नरवइस्स परमं जहा जाओ || ४३ ॥ अन्नया य सतुमद्दणनराहिवेण भवणसंदणाइनिमित्तं पवरदारूहिं पओयणंमि संपत्ते आणत्तो एसो भद्द ! गच्छस तुमं पभूयं सगडसमूहं किंकरनरनियरं च गहाय दारुनिमित्तं महाडवीएत्ति, तओ सिरसा सासणं से पडिच्छिय विसिद्धसंबलगसमेओ समग्गसामग्गीसणाहो पट्टिओ गामचिंतगो, पत्तो य अणवरयगमणेण महाडवीए, जा य केरिसी ? - गयणयलाणुलिहंतमहंतचित्ततरुवरा भोगावरद्धदिसावगासा अणवरयझरंतगिरिनिज्झरझंकारमणहरा | जहिच्छविसरंतरुरु विरुयरिंछ हरिहरिणसद्दूलभीसणा महापुरिसवच्छत्थलिव सिरिवच्छालंकिया मिगरायकंधरव | केसरविसरविराइया उच्चसनगरभूमिव मायंगकुलसंकुला सुहडावलिब धरियवाणासणा । तर्हि च निउत्तपुरिसेहिं सरला य दीहरा य विसाला सुंदरा य सुजायवट्टखंधवद्धा य तरुणो समारद्धा छिंदिउं, एवं च छिंदताण जाओ मज्झण्हसमओ, संपत्ता भोयणवेला, पगुणीभूओ भोयणकरणाय गामचिंतगो, उवणीया किंकरगणेण विचित्तखंड खजप्पहाणा रसवई, जइ पुण सत्यपरिब्भट्ठो वा मग्गं अयाणमाणो वा एत्थ तडियकप्पडियसमणप्पमुहो अतिही छुहाभिभूओ एज For Private and Personal Use Only नयसारः विनयः काष्ठेभ्योगमनं ॥ ३ ॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता तस्स दाऊण सयं भुंजामित्ति संपधारिऊण गामचिंतगेण थेवं भूमिभागं गंतून तक्खणमवलोइयं दिसावलयं, एत्यंतरे सत्यपरिग्भट्ठा संता परिसंता खुहापिवासाभिभूया मज्झंदिणदिणयरताव विगलंत सेय सलिलधरा तरुवरनिवडणकडयडारावनिसामण संभावियसत्थावासा समागया तं पएसं तवस्सिणो, दिट्ठा य तेण ससंभमं, गओ तदभिमुहं, गाढकरुणारसाउरिज्यमाणमाणसेण पणमिऊण पुच्छिया अणेण-भयवं । किमेवं विजणविहारमायरह ?, साहूहिं भणियं-भद्द ! सत्थेण ( समं) पढमं अम्हे पत्थिया, भोयणकाले जाव असणपाणट्ठा गामं पविट्ठा तात्र गओ सत्थो, अम्हेऽवि तुरंता सत्थाणुमग्गलग्गा इंता निग्गया एत्थ महाडवीए, गामचिंतगेण भणियं - अहो निकरुणया अहो दुहसीलया अहो नरकनिवासलालसत्तणं अहो वीसत्थघाइत्तणं अहो पावाभीरुत्तणं अहो आजम्मा नियकुलकलंककरणं तेसिं सत्थियाणं, अविय - सत्तपयमेत्तसंथववसेऽवि सुयणाण वहुए नेहो । आजम्मदंसणेऽविद्दु निद्दयचित्ताण न खलाणं ॥ ४४ ॥ सत्थाणुसरणकालेsवि वारिया किं न पावबुद्धीहिं । एए महाणुभावा पढमं चिय साहुणो तेहिं ? ॥ ४५ ॥ जइ एएसिं सीहाइएहिं कीरेज्ज एत्थ विद्दवणं । ता नूणमेव तेसिं नरगेऽविद्दु होज्ज संवासो ॥ ४६ ॥ अहवा पावाण कहाऍ होउ नियधम्मदूसणकरीए । आगच्छह आवास कुणह पसायं ममेयाणिं ॥ ४७ ॥ इय भणिए ते मुणिणो जुगमेत्तनिहित्तचक्खुणो धीरा । तस्सावासंभि गया पचक्खा धम्मनिहिणो व्व ॥ ४८ ॥ पुण्णवससाडुदंसणसिणेहसंजायतिव्वसद्धेणं । विउ लेहिं असणपाणेहिं तेणऽवि पडिलाहिया विहिणा ॥ ४९ ॥ For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir श्रीमहा० चरित्रे साध्यागमा दानादि उपदेशश्च. १ प्रस्ताव: ॥४॥ ॐॐॐॐ गहियभत्तपाणेहि य पडिनियत्तिऊण जीवोवरोहरहिए थंडिलंमि पडिक्कता ईरियावहिया आलोइयं भत्तपाणं कयं चितिवंदणं विहिओ तक्कालोचिओ सज्झाओ, सुहज्झाणेण खणंतरं गमिऊण समुझिय रागदोस मुणिणो परिजिमियत्ति, गामचिंतगोऽवि कयत्वमप्पाणं मन्नतो भोत्तूण समागओ तेसिं सगासे भणि पवत्तो-भयवं ! आगच्छह तुम्हे जेण नगरगामिणिं वत्तिणि उवदंसेमि, तो पत्थिया साहुणो तेण सद्धिं, तेर्सि च मज्झे एगो मुणी धम्मकहालद्धिसंपन्नो, तेण य णायं-जहा एस धम्मजोगोत्ति, ता अवस्सं सद्धम्मे निजुंजियब्यो होइत्तिचिंतिऊण भणिओ सो गामचिंतगो-भो महायस! कुमग्गपरिन्भमणपीडियाणं तण्हाछुहाभिभूयाणं अम्हाणं तहाविहपडिवत्तीए असणपाणदाणेण य परमोवयारी तंऽसि ता किंपि अणुसासिउं समीहामो, गामचिंतएण भणियं-भयवं! किमेवमासंकह नियसिस्सनिब्बिसेसं सिक्खवेहित्ति, तओ साहुणा पारद्धा धम्मदेसणा, जहा धणुसिक्खाविरहियपुरिसखित्तसरजणियराहवेहं व । तुडिजोगा मणुयत्तं लभृणं कुसलबुद्धिमया ॥५०॥ सग्गापवग्गफलसाहगस्स धम्मस्स पायवस्सेव । मूलं सम्मत्तमहो जाणेयब्बं पयचेणं ॥५१॥ मिच्छत्तपंकपडलावलुत्तसन्नाणनयणपसराणं । सिरसूलमूलमेसा जणाण सम्मत्तवत्तावि ॥ ५२॥ जुत्ताजुत्तं केणवि करुणापरबुद्धिणोवइटुंपि । दुस्सुमिणपिव सोउं नेव वंछंति तुच्छमई ॥५३॥ दढमूढगुरुपरूवणवसेण कम्मं च तं पकुव्वंति । जेण निमजंति अहो कूवक्खणणुजयनरो व ॥ ५४॥ For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 485555 जमिच्छत्तोदयओ अगुरुपि गुरुं अदेवमवि देवं । धत्तूरिओग्य गेण्हइ लेहुं व सुवण्णवुद्धीए ॥५५॥ तेणं चिय पाणिगणो गणणाइकंतवेलमणुभवइ । तं किंपि दुक्खनिवहं जं जाणइ केवली सम्मं ॥ ५६ ॥ इय भो देवाणुप्पिय ! मिच्छत्तं सयलदोसकुलभवणं । नीसेसदुग्गदुग्गइसंसग्गकरं लहुं चयसु ॥ ५७ ॥ सम्मत्तं पुण नीसेसदोसविरहियमसेससुहफलयं । जीवाण तिव्वजरमरणदुक्खवुच्छेयणसमत्थं ॥ ५८॥ जं मोहणिजपवलत्तविगमओ गुरुवसा सयं वावि । उल्लसई कल्लाणयवल्लीजलकुलतुलं व ॥ ५९॥ तचो अट्ठारसदोसवजिए जिणवरंमि पडिवत्ती । देवोत्ति समुप्पज्जइ निरवजा बजघडियन्व ॥ ६॥ सयमवि धम्मपरेसं सिद्धतवियारणेक्ककुसलेसुं । धम्मोवएसनिरएसु होज साहसु गुरुबुद्धी ॥ ६१॥ ता जिणवयणायण्णणविण्णायसमत्थतत्तरयणस्स । विरमइ य मई लोइयधम्माउ कुवस्सयाउन्ध ॥ ६२॥ अवगणइ गोपयं पिव दुग्गइदुहमयरभीसणावत्तं । कम्मजलुप्पीलाउलमरइरउदं भवसमुदं ॥ ६३ ॥ तहा-सम्मतुत्तमसन्नाहविहियरक्खो खणेण विक्खिवइ । सुहडोब्ब तित्थियभडभडंपि मिच्छत्तसंगामं ॥६॥ पासायस्स व पीढं पुरस्स दारं व मूलमिव तरुणो । वारसविहधम्मस्सवि आई किर्तिति सम्मत्तं ॥६५॥ । इस भो एवं लक्खिय निरवेक्खो लोइएसु मग्गेसु । सदहणनाणसारं सरहसमणुसरसु सम्मत्तं ॥ ६६ ॥ ताहे भत्तिभरोणयमालयलमिलंतमउलकरकमलो । सोबा सो गुरुवयणं भत्तीए भणिउमाढचो ॥६७॥ समत्यतावतं । कव तिमि आई कि ज For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीमहा० चरित्रे १ प्रस्तावः ॥५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भयवं ! किमेवमुवइसह पाचनिरयाण बुद्धिरहियाणं । पञ्चक्खपसूणं पिव अम्हाणं दढमजोग्गाणं ॥ ६८ ॥ गुरुणा भणियं मा वयसु एंरिसं जेण जोग्गयां तुज्झ । जाणिजइ संपन्ना संपइ पञ्चखलिंगेहिं ॥ ६९ ॥ कहमण्णहमेवंविहमहाडवीनिवडिया तए अम्हे । दिट्ठा पहप भट्ठा गाढस्समसुढिय (सिढिल ) सव्यंगा १ ॥७०॥ कह तत्यवि दंसणमेत्तओऽवि चिरदिट्ठबलहजणे व्त्र । पुलयपडलाणुमेओ उप्पण्णो तुह पमोयभरो १ ॥ ७१ ॥ कह वा भोयणसमओवणीयनियभोयणेण दाणमई । जाया अम्हाणुवरिं खुहापिवासाभिभूयाणं ? ॥ ७२ ॥ एवंविहपरिणामो उप्पज्जइ नेव पुण्णरहियाणं । एवंविहा य अतिही न य चक्खुपहं पवज्जंति ॥ ७३ ॥ रयणनिहाणं किं रोरमंदिरे किं मरुंमि कप्पतरू । कत्थवि थलंमि जलकमलसंभवो हवइ कइयावि १ ॥७४॥ ता एवंविहविघडंतवत्थु संघडणलिंगसद्धेया । कहमिव तुज्झ न सद्धम्मजोग्गया भद्दमुह ! होज्जा १ ॥ ७५ ॥ जेणेरिस सामग्गी निरवग्गहपुण्णपगरिसवसेण । सिवलच्छिपेच्छियाणं निच्छयओ घडइ मणुयाणं ॥ ७६ ॥ किंच- आरियखेत्तुप्पत्ती कुलमकलंकं नरत्तसंपत्ती । निरुवहयरूवलाहो रोगोरगदूरविगमो य ॥ ७७ ॥ आउयमवि पडिपुण्णं कलाकलावंमि कोसलं विमलं । साहूहि समं जोगो एत्तियमेत्तं तए पत्तं ॥ ७८ ॥ तो एयरंप पण्णं व सकम्मपवणपडिहणिया । संसारंमि भमंता अनंतसत्ता ण संपत्ता ॥ ७९ ॥ तुम पुण सचमिमं उवलद्धं पुण्णपगरिसवसेणं । ता एत्तो निरुवममोक्खसोखफलदाणदुल्ललियं ॥ ८० ॥ For Private and Personal Use Only सम्यक्त्वं योग्यता ॥ ५ ॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिहिणो सिहं व सारं फणिवइफणरयणचकवालं व । एकं अपत्तपुर्व गिण्हसु जिणदेसियं धम्म॥८॥ युग्मम् । इय भणिए सो चिंतेउमारदो तिबजायसंवेगो। कह नियकज्जपसाहणपरम्मुहाणं गुणनिहीणं ॥ ८२॥ केवलकरुणारससायराण समगणियरायरोराणं । जाओ मइ पडिबंधो गुरूण खणदसणे वावि? ॥८३॥ युग्मम् निप्पुण्णेसु जणेसुं चक्पि खिवंति नेरिसा समणा । ता सबहेसि वयणं जुत्तं मह संपयं काउं॥८४॥ विस्संभरतलविलुलंतमउलिमह पणमिऊण गुरुचलणे । आणंदसंदिरंसूनयणो सो भणिउमाढत्तो ॥८५ ॥ निक्कारणेक्कवच्छल ! भयवं नीसेससत्तताणपरा । आरोहेसु ममिम्हि सम्मत्तं भवविरत्तस्स ॥८६॥ ताहे गुरुणा जिणमणियनीईओ नायजोग्गयगुणेण । चित्तुच्छाहप्पमुहपहाणसउणोवलंभंमि ॥८७ ॥ अरिहं देवो गुरुणो य साहुणो जिणमयं मयं तुज्झ । इय एवं आरोवियमाजम्मं तस्स सम्मत्तं ॥८॥ भणिओ य वच्छ ! निव्वाणलच्छिवीयं मए इमं दिण्णं । संकाइदोसविरहेण सबहा ता जएज इहं ॥८९॥ धन्नोऽसि तुमं भय ! दुइसयरुईमि भवसमुदंमि । जेण तए जिणधम्मो तरणतरंडोवमो पत्तो ॥९॥ एयस्स पभावेणं पालिजंतस्स सम्वकालंपि । जीवहिं अगंतेहिं दुक्खाण जलंजली दिण्णो ॥११॥ पयईऍ खणविणस्सरसंसारुम्भवसुहस्स कजेणं । एयंमि मा पमायं काहिसि तं भद्द ! कइयावि ॥९२॥ अह सो नमिउं चरणे गुरूण भवभीयपाणिगणसरणे । हरिसभरवंधुरगिरं उदाहरित्या वयणमेयं ॥ ९३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीमहा० चरीत्रे १ प्रस्तावः ॥६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वोवयारिणोऽवि लोया पूयं करिंति सविसेसं । एवंविहोवयारीण तुम्ह किं संपयं करिमो १ ॥ ९४ ॥ तहवि नियत्तह भयवं ! गिण्हह घणरयणभवणसंसारं । अहवा किमेत्तिएणं ? जीयंपिहु तुम्ह आयत्तं ॥ ९५ ॥ गुरुणraवूहिओ सो ससरीरेऽवि हु ममत्तरहिएण । सम्मं कयं महायस ! तयत्ति एवं जओ भणियं ॥ ९६ ॥ सम्मत्तदायगाणं दुष्पडियारं भवेसु बहुए । सन्त्रगुणमेलियाहिंवि उवयारसहस्सकोडीहिं ॥ ९७ ॥ परमत्थेण महायस ! दिण्णं तुमए समत्थमस्हाणं । एयंमि धम्मकम्मंमि निचमन्भुजमंतेण ॥ ९८ ॥ इय गुरुणा सिक्खविडं जिर्णिदधम्मस्स सव्वपरमत्थं । भणिओ सो अणुजाणसु एत्तो अम्हे गमणकज्जे ॥ ९९ ॥ दूसह गुरुदंसणविरहवेयणावाउलीकयसरीरो । दूरपहं अणुगच्छिय दंसिय मग्गं नियतो सो ॥ १०० ॥ भावेंतो गुरुवयणं चिंतंतो भवभयं महाघोरं । सम्मत्तभावियमई निययावासंमि संपत्तो ॥ १०१ ॥ तओ काऊणमणंतरकरणीयं भरिऊणं सगडाणि विसिट्टकट्ठाणं नीसेसभिचजणसमेओ नियत्तो नियगामाभिमुहं, पत्तो य कालक्कमेण, पेसियाणि दारूणि नरिंदस्स । तओ पइदिणं अम्भस्संतो जिणधम्मं पज्जुवासंतो मुणिजणं परिचिंर्तितो जीवाजीवाइणो नव पयत्थे रक्खतो पाणिगणं बहु माणंतो साहम्मियजणं सबायरेण पभावेंतो जिणसासणं कालं गमेइ । अण्णया य मरणपज्जवसाणयाए जीवलोयस्स खणभंगुरत्तणओ सबभावाणं तहाविह मुवकमणकारणं पाविऊण सोसम्मं परिपालियाविरयसम्मदंसणभावो कयपजंताराहणाविहाणो सुमरंतो पंचनमोकारं For Private and Personal Use Only सम्यक्त्वारोप आराधना. ॥ ६॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RSS पंचत्तमुवगओत्ति । उववण्णो सोहम्मे पलियाउसुरो तओ सुदिट्टीओ। अंतोमुहुत्तमत्तेग पत्तपजत्तभावो य ॥ १०२॥ जय जय नंदा ! भद्दत्ति वाहरतेण किंकरजणेणं । हरिसभरनिभरेणं कारियतकालकायबो ॥१३॥ उत्तुंगथोरथणवट्टलहरेहतमोत्तियसरीहिं । छणमयलंछणसच्छहवयणाहिं कुवलयच्छीहि ॥ १०४ ॥ निम्मलकवोलतललिहियचित्तविच्छित्तिपत्तवल्लीहिं । करकिसलयपरिघोलिरचामीयरचारुवल पाहि ॥ १०५॥ सुरसुंदरीहिं सद्धिं कीलंतो तेसु तेसु ठाणेसुं । रइसागरावगाढो कालं वोलेइ लीलाए ॥ १०६ ॥ तीहिंविसे. कल्लाणगेसु पंचसु चवणप्पमुहेसु जिणवरिंदाणं । नंदीसरदीवाइसु परिचत्तासेसवावारो॥ १०७॥ भवजलहितरंडमिमं तिदुक्खतत्ताणममयमयति । मणवंछियत्थपूरणचिंतामणिपचलमिमंति॥१०८॥ अम्हारिसाणमविरइपराण इय विहियगाढबहुमाणो।हरिसभरनिन्भरंगो कुणइ य अट्ठाहियामहिम॥१०९॥तीहि विसे. हिमवंतमहाहिमवंतपमुहकुलपव्वएसु अणवरयं । दिबविमाणारूढो सिद्धाययाणि पेच्छइ य ॥ ११०॥ सुणइ य पञ्चक्खं चिय विहरंतऽरिहंतवयणकमलाओ। संसारब्वेयकर भत्तीए धम्मसबस्सं ॥ १११॥ दुकरतवचरणकिसंग(सारए)संगवज्जिए मुणिणो । मणवयणकायगुत्ते भत्तीए पज्जुवासइ य ॥ ११२॥ इय पवरसिद्धिमंदिरसोआणपरंपरासरिच्छंमि । सिरिवीरनाहजिणवरचरियंमि गुणोलिनिलयंमि ॥ ११३॥ २ महा० For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org विनीता. ऋषभव श्रीमहा. अचंतुत्तमसम्मत्तलाभनामो समथिओ एसो । भब्वजणचित्तसंतोसकारओ पढमपत्यावो ॥ ११४ ॥ इइ चरित्रे सम्मत्तलाभनिरूवणो पढमो पत्यावो।२ प्रस्तावः अह बिइओ पत्थावो एवं लाभो बोहीऍ परमसिवसाहिबीयभूयाए । भणिओ एत्तो सम्म मिरीइवत्तव्वयं सुणह ॥१॥ एत्थेव समत्थसमुद्ददीववलओवगूढपजते । मेरुविराइयमझे जंबूदीवंमि दीवम्मि ॥२॥ आरोपियधणुगुणसच्छहंमि तह दाहिणभरहंमि । गंगासिंधूण महानईण बहुमज्झयारंमि ॥ ३॥ अत्थि पसत्थविविहतरुसंडमंडियपरिसरा परंतपरूढपंडुच्छुताडनीवारविराइया नाणामणिरयणरइयधरणिवीढा अमरावइच नासचाहिट्ठिया अहिणवपुरिव्व नवकुलालंकिया जणयतणयव्व कुसलवलालसा विलासिणिन्य दीहरच्छोवसोहिया रामएवसेणब्ब अदिट्ठविहीसणदोसा पायालपुरिव्य अहीणजणाणुगया सुरिंदवयणोवरोहहरिसि यवेसमणजक्खविणिम्मिया बारसजोयणदीहा नवजोयणविच्छिण्णा समुत्तुंगकणयपायारपरिक्खित्ता पवरभवणमामालासहस्साभिरामा धणकणयरयणपरिपूरिया विणीया नाम नयरी ॥ | जत्थ वम्महो इव अखंडरूवलावण्णजोब्वणगुणविब्भमो रेहद पउरजणो, अकित्तिममंडणाओ सुरसुंदरीओ[वि परिहवंति नियरूवेण तरुणीओ, जहिं च सूरेसु चेव सुब्बइ मग्गणसद्दो दोसियाणं दोसामिलासो तरुवराणं गया KARNAGAR ॥७॥ For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परावत्तो रयणेसु वइरसदो ॥ तं च रक्खेइ खंचियचलियासणागया खंडलकरकलियकणयकलसवि हियरजाभिसेओ तक्कालसंगहियउग्गभोगरायन्न खत्तियचउन्विहपहाणपरियरो सुरवइविइण्णकणयकडयतु डियमणिमउडपमुहदिव्वालंकारालंकियसरीरो सिरिउसभनराहिवो ॥ कसिणासाढचउत्थीऍ चत्तसन्वत्थसिद्धिवासो जो । उत्तरसाढानक्खत्त जोगमिंदुमि संकते ॥ ४ ॥ कुलगरनाभिस्स गिहे चोदसगयपमुहसुमिणकयसूओ । मरुदेवीए गन्भे पाउन्भूओ महाभूई ॥ ५ ॥ पुण्वज्जियपुण्णसमूहचलियसिंहासणेण सकेण । भत्तीए जस्स पणया जणणी गन्भावयामि ॥ ६ ॥ चेत्तबहुलट्ठमीए उत्तरसाढासु अद्धरत्तंमि । भुवणजणजणियतोसो जाओ जो पुण्णचंदोव्व ॥ ७ ॥ जस्स य जम्मणकम्मं तक्खणचलियासणा उ अकरिंसु । निययहिगारणुरूवं छप्पण्णदिसाकुमारीओ ॥ ८ ॥ बत्तीससुरिंदेहिं नीसेसामरसमूहसहिएहिं । मेरुंमि जम्ममज्जणमहूसवो निम्मिओ जस्स ॥ ९ ॥ जस्सोरुवसभलंछणदंसण संजायहरिसपुलएण । सिरिनाभिनरिंदेणं उसभोति पइट्ठियं नामं ॥ १० ॥ सुररायपाणितलसंठिओच्छुलट्ठि करे धरंतेण । जेण जहत्थभिहाणं निम्मियमिखावंसस्स ॥ ११ ॥ लेप्पमुहा बावत्तरी कला जेण देसिया पढमं । बहुभेयं कासव लोहचित्तघडवत्थसिप्पं च ॥ १२ ॥ कम्मं च खेत्तवाणिज्जपमुहमाई निदंसियं जेण । अविपककणविभक्खणदुक्खियजण जलणपयणं च ॥ १३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीमहा० चरित्रे २ प्रस्तावः ॥ ८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr दुन्नयपसत्थजण सिक्खणत्थमुवदंसिया जए जेणं । सिङ्कजण रक्खणडा सामाइ चउबिहा नीई ॥ १४ ॥ दारपरिग्गहसमए जस्स सुरिंदेण परमरिद्धीए । पुंखणगविहिसणाहो विवाहमसवो विहिओ ॥ १५ ॥ वागरण छंदहकन्नमग्गजोइसपमोक्खवहुविज्जा । लद्धा जेणुवइट्ठा पढमं चिय सुद्धबुद्धीए ॥ १६ ॥ नियनियकम्मनिसेवण नियमेणं गुरुजणस्स नमणं च । जायकुलाण ववत्था जेण समत्था कथा भुषणे ॥१७॥ किं बहुणा-जुत्ताजुत्तवत्थुविष्णाणसुण्णहियएसु । नीई अज्जवि विकुरइ जस्स कित्तिन्व सव्वगया ॥ १८ ॥ तस्स य गयतुरयपमुहरजंगपरिवुडस्स संसएस य ववत्थासु य कुलायारेसु य परोप्परविसंवादसु य सयल| जणपुच्छणिज्जस्स नंदाए देवीए सुमंगलाए य समं विसयसुहमणुहवंतस्स वच्चंति वासरा, अण्णया य सुमंगलाए देवीए भरहो बंभी य मिहुणगं जायं, तहा सुनंदाएऽवि देवीए बाहुबली सुंदरी य जुवलयं जायं, एवं वचंतंमि काले पुणोऽवि सुमंगला देवी अण्णाणि एगूणपन्नासं पुत्तजुयलगाणि पसूया, ते य भरहप्पमुहा कुमारा वहू॑ति सरीरेण नीसेस कलाकलायकोसलेण य, एवं च निदंसिय सयलकला कुलव्ववत्थाए सुहलोयवावारो उसमनरिसरो तेयासीपुव्वलक्खाई जाव परिपालिऊण गिहत्थपज्जायं अवलोइऊण परलोय मग्गाणुरुवधम्मवावारविरहियं भवपंकनिमज्ज माणं (जणं) मणे अश्चंत करुणारसालिद्धबुद्धी तक्कालचलियासणागय सारस्सयपमुहलोगंतियतिय स स म हियमुच्छाहियचित्तवित्ती विणिवित्तभोगपिवासो भरहपमुहपुत्तसय संविभत्तपरिचत्तवसुंधराभारो आसंवच्छरक गयवारिधारावरिसाभिनंदियदी For Private and Personal Use Only ऋपभवाल्य भरतादिजन्म. ॥ ८ ॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir णमग्गणजणो चेत्तस्स बहुलट्ठमीए उत्तरासादनक्खते पच्छिमपहरावसेसे दिवसे कच्छ महाकच्छपमुहाणं नियनियपुण्ण(त) निहित्तरज्जवावडाणं चउहिं सहस्सेहिं मंडलेसराणं परिवुडो देवदानवुक्खित्तविचित्तचित्तोव सोहियसुदंसणाभिहाणसिविकाधिरूढो परमविभूईए समग्गकाणणलच्छिलीलावणंमि उज्जाणे कयक कितवकम्मो परिचत्तसवंगसंगिरयणाभरणो सयमेव चाउमुट्ठियं लोयं काऊण कयसिद्धनमोकारो पडिवण्ण सव्वसावज्जजोगविरती बत्तीस सुरेसरेहिं चउव्विदेवनिकायसहिएहिं सम्भावसाराहिं महत्थाहिं पसत्थाहिं गिराहिं थुव्यमाणो पंचिंदियदित्ततुरयदमणो समणो जाओत्ति ॥ सुररायनिसिविसिसमंसावलंचि वहमाणो । कच्छमहाकच्छपमोक्खभिक्खुलोएण परियरिओ ॥ १९ ॥ परिचत्तसव्वसावज्जजोगसंगो तिगुत्तिगुत्तो य । अप्पडिबद्धो गामाणुगाममह विहरिओ भययं ॥ २० ॥ जुम्मं । कणसमिद्धसमुद्धरा य मणुया मुणंति नो तइया । का भिक्खा के तग्गाहिणोत्ति भिक्खं भमंतंमि ॥ २१ ॥ परमेसरंमि ताहे नियपहुपणएण कणगकरितुरए । इत्थी महत्थवत्थे पणया मणुया पणार्मेति ॥ २२॥ जुम्मं । भिक्खं अपायमाणा कच्छमहाकच्छपभिइणो मुणिणो । पइदियहमणसणेणं संजायसरीरसंतावा ॥ २३ ॥ लोकनायगे मोणमस्सिए ते उपायमलभंता । परिसडियपंडुपत्ताइभोइणो काणणंमि ठिया ॥ २४ ॥ जुम्मं भयकंपि निष्पकंपो सुरसेलो इव विसिट्ठसंघयणो । पइदिणमदीणचित्तो एगागी विहरइ महिंमि ॥ २५ ॥ For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमहा० चरित्रे २ प्रस्ताव दीक्षा पारणं ॥९॥ SHALGSHESTESISHIG कच्छमहाकच्छसुया नमिविनमी रायलच्छिमिच्छंता । चिंतामणिब्ब सव्वायरेण सेवंति भयवंतं ॥ २६ ॥ तम्भत्तिरंजियमणेण नागराएण दिन्नवरविजा । विजाहररायत्तं पाविय विगया जहाभिमयं ॥ २७॥ भयवंपि गामनगरागरेसु भिक्खं अपावमाणोऽवि । विहरतो किसियतणू कुरुदेसे गयपुरंमि गओ ॥ २८ ॥ | केवलं. जिणदंसणसुमरियपुब्बजम्मसंजायतिवसद्धेण । सेजंसकुमारेणं सिरिबाहुबलिस्स पउत्तेणं ॥ २९ ॥ तकालागयपुरिसोवणीयपंडुच्छुगंडयरसेणं । संवच्छरपजंते भयवं पाराविओ तत्थ ॥ ३०॥ जुम्म । पडिया य कणयधारा तियसेहिं समाहयाई तुराई । मिलिओ य पउरलोओ तेणवि कहिओ सवुत्तंतो ॥३१॥ भयपि पारणयं काऊण बहलीयडंबइलसुवण्णभूमिपग्गहेसु देसेसु विहरमाणो तब्वासिमणुयाणं मोणमलिणोऽपि समाहप्पेण भद्दगभावं जणंतो विविहतवचरणपरायणो असंकिलिट्ठयाए तकालियलोयस्स अतहाविहवेयणीयकम्मओ द्रय निरुवसग्गं संजममणुपाठिंतो समइकते एगंमि वाससहस्से विणीयनयरीपञ्चासणंमि पुरिमतालंमि नयरंमि है संपत्तो, तस्स उत्तरपुरथिमे दिसीभाए सगडमुहं नाम उज्जाणं, तंमि नग्गोहपायवस्स हेट्ठा संठियस्स अट्ठमेणं भत्तेणं पुन्वण्हदेसकाले फग्गुणबहुलेकारसीए उत्तरासादानक्खत्ते भगवओ तिहुयणेकवंधवस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स दिव्वं अणंतं लोयालोयगयभावाभावसहाववत्थुसत्थपरमत्थनिन्भासणसमत्थं केवलनाणं समुप्पण्णं ॥ अह जिणना-15 हनाणुप्पायमाहप्पपरिकंपियसीहासणप्पलोयणपउत्तावहिमुणियनाणवइयरा पहयपडहप्पमुहगंभीरतूररवा संखोभि LEC%ALAASARAM For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir S AMACROCA यसुरलोया सरभसपणचिरसुरसुंदरीभुयलयालोलंतरयणवलयरणझणारवनिन्भरभरियभुवणंतरा आगंतूणं वत्तीस ससुरा सुरिंदा समवसरणं विरइंति । केरिसं चिय? अइसुरमिसिसिरमारुयपडिहयतणुरेणुतकणुकेरं । घुसिणघणसारगंधाभिरामसलिलोवसंतरयं ॥ ३२ ॥ आजाणुमेत्तविक्खित्तकुसुमरेहतरयणमहिवीढं । डझंतधूवधूमंधयारघणसंकियसिहंडिं ॥ ३३॥ मणिचामीयरनिद्धतरुप्पपायारवलयतियकलियं । सव्वत्तोमुहमणिरयणरइयसिंहासणसणाहं ॥ ३४ ॥ डिंडीरपिंडपंडुरछत्तत्तयरुद्धरविकराभोयं । पवणुवेल्लियकंकेलिपल्लवुल्लिहियनहविवरं ॥ ३५ ॥ गयणट्टियसुरकरपहयगहिरवजंतदुंदुहिसमूहं । दिसिमुहपसरियनिम्मलभामंडलखंडियतमोहं ॥३६॥ सरयनिसायरकरनियरागारधुन्वंतचामरुप्पीलं । इय एवंविहमुद्दामदोसहरणं समोसरणं ॥ ३७॥ छहिं कुलयं। तंमि य भुवणेकपहू पवरे सीहासणे तियसपणओ । पुवामहो निसीयइ तित्थस्स नमोत्ति भणिऊणं ॥ ३८॥ हरिसभरनिन्भरुभिण्णपुलयपडलोवसोहियसरीरा । सहाणेसु निलीयंति तक्खणं चउविहा देवा ॥ ३९ ॥ पूरिजइ अंबरमिंतजंततियसाण पंचवण्णेहिं । उद्यचिंधेहिं विमाणलक्खमालासहस्सेहिं ॥४०॥ एत्यंतरे जिणपउत्तिपरिन्नाणनिमित्तं पुन्वनिउत्ता केवलनाणुप्पत्तिनिवेयणत्थं तहा पहरणसालापाउन्भूयपभूयजक्खसमहिट्ठियनिस्सामन्नफुरंतफारपहाभरनिक्कत्तियपयंडतमकंडुडापरचक्करयणवइयरसंसणत्थं च भरहनरिंदस्स AAA-%ACCORDCAKACAR For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CA श्रीमहा० चरित्रे २ प्रस्तावः ॥१०॥ AGORUSSISKOSKI हापुरओ जगवं चिय समागया वद्धवेगा पुरिसा । तओ भरहो इहलोयतुच्छ मुहमेत्तसंपायणपञ्चलत्तं निच्छिऊण चकरय- समवसरण णस्स उभयलोगमुहजणगत्तं पुण परमेसरस्स पवरकरेणुगाखंधाधिरोहियसुयविरह विहुरमरुदेवासमेओ नीसेसकुमारनि- मरुदेवीयरपरियरिओ समग्गवलवाहणो हरिसभरनिन्भरंगो भगवओ केवलमहिमं काउं संपत्थिओ। अंतरेण मरुदेवीए मोक्षः भगवओ छत्ताइछत्तपमुहं विभूइसमुदयं पेच्छंतीए तहाविहभवियब्धयावसेण सुहज्झाणपरायणाए अंतगडकेवलितं देशना. जायं। भरहखेत्ते पढमसिद्धोति परिचिंतिऊण देवदाणवेहि कया तीसे महिमा, खित्तं खीरोयसायरे से सरीरं, भरहो य परमपमोयमुव्वहंतो तित्थयरं तिपयाहिणीकाऊण वहुप्पयारं थोऊण सदेवमणुयासुराए सभाए आसीणो। सामि-15 णावि सजलजलहरारावगंभीराए आजोयणप्पमाणखेत्तपडिप्फलणपञ्चलाए पइजणमेककालं संसयसयवुच्छेयजणणीए वाणीए पारद्धा धम्मदेसणा ॥ लहं? __ भो भो महाणुभावा ! दुलह लहिऊण माणुसं जम्मं । उप्पत्तिपलयकलियं वियाणि भवसरूवं च ॥४१॥ कीसायासनिबंधणसयणसरीरेसु मोहवामूढा । धम्मोवजणरहिया निरत्थयं गमह नियजीयं?॥४२॥ सुमरह किं न निरंतरमणंतसो तिक्खदुक्खसंतत्ता। विवसाएसु ववसिया जंभे चउसुपि विगईसुं॥४३॥ ॥१०॥ तथाहि-नरए परमाहम्मियपहरणछिजंतअंगपञ्चंगा। तिरियत्ते वहवंधणदहणंकणवाहणाभिहया ॥४४॥ देवत्तेऽवि य ईसाविसायपेसत्ततावसंतत्ता । मणुयत्ते पुण दोगच्चवाहिविहुरा चिरं वुत्था ॥४५॥ For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org ACCOREA इय चउगइदुहनिवहं अणुसुमरिय मोक्खसोक्खकंखिला । निरवजं पधज पवजिउं उज्जमह धम्मे ॥ ४६॥ एवमाइ भगवो धम्मदेसणं का(सो)ऊण भरहो सावगो जाओ, वंभी य पब्वइया, भरहपुत्तो पुन्वभववद्धगणहरनामगोत्तो उसमसेणो नाम, सो य जायसंवेगो पञ्चइओ, सुंदरी पुण साविगा जाया, एस चउबिहो समणसंघो पढमसमोसरणे भगवओ पाउन्भूओत्ति । ते य कच्छमहाकच्छवजा तावसा सुणिऊण जिणनाहकेवलनाणमहिमं भवणवइवाणमंतरवेमाणियजोइसियदेवगणपरिवुडं भगवंतं दद्ण पब्वइया । एत्थंतरे जायभववेरग्गा पडलग्गतणं टू वरायसुहं उज्झिऊण भरहस्स पंच पुत्ताणं सत्त नत्तुयाणं सयाई समकालमेव तंमि चेव समोसरणे पब्वजं पवण्णाई। अह गामचिंतगजिओ सोहम्मे पालिऊण देवत्तं । पलिओवमपजंते भरहनरिंदस्स भजाए ॥४७॥ वम्माए गभमि पाउन्भूओ सुसुमिणकयसूओ। पुव्वभवसाहुदंसणपावियधम्माणुभावेण ॥४८॥ अट्ठमदिवसाहिय नव मासे वसिय गम्भवासंमि । उववन्नो कयपुन्नो पवितनक्खत्तसुमुहुत्ते ॥४९॥ दसदिसिमुहेसु पसरंतमुत्तमं निहयतिमिरसंभारं । जाओ सूरोग्य तओ मिरीयजालं विमुबंतो? ॥५०॥ परमभुयभूयं जम्मवइयरं चक्किणा निसुणिऊण । तस्स जहत्थं ताहे मिरिइत्ति पइट्ठियं नामं ॥५१॥ करकिसलयसोहिलो कंकिलितरुव्व जणमणाणंदो। देहोवचएण तओ कुमारमा समणुपत्तो ॥५२॥ अन्नया य सो मिरिई कुमारो भगवओ आइतित्थगरस्स असोगपुष्फबुट्ठिपमुहं च पाडिहेरविभूई चउन्धिहदेवनि For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमहा० चरित्रे २ प्रस्ताव मरीचिजन्म दीक्षा विजया ECORNस्क ॥११॥ काएण कीरमाणिं दट्टण तीयाणागयपडप्पण्णवत्थुसत्थवित्थरगयसंदेहसदोहदहणपसमणकपीऊसधाराणुगारिणि धम्मदेसणं निसामिऊण य करिकलहकन्नतालतरलमवलोइऊण जीवियं उब्वेलिरमहलविसवेलरीसरित्थं निच्छिऊण कुवलयच्छिसंजोगसमुन्भवमुहं अयंडतडिदंडभंगुरं जाणिऊण पणइजणपेम्मप्पबंधं परूढगाढसद्धम्मपरिणामो महाविभूईए पियामहस्स पासे पव्वइओत्ति । । तओ सम्ममहिगयसमणधम्मो पंचप्पयारायारसमायरणपरायणो पंचसमिइसमिओ तिगुत्तिगुत्तो पंचमहव्वयरक्खणबद्धलक्खो ससरीरेऽवि निरवेक्खो रयणवणिओ इव परिचत्तलोहायरो सायरो इव मयरहिओ दिणयरो इव दोसुम्मूलणकरो नागराओव्व दूरुबूढखमावलओ मंदरो इव निम्महियजलही सुहडो इव निहयविसमकरणो गामागरनगरेसु अप्पडिबद्धो थेराण पासे सामाइयाई एकारसंगाई ससुत्ताई सअस्थाई चिरपरिचियाई करेमाणो सामिणा सद्धिं विहरइत्ति। | इओ य-भरहराया समुप्पन्नचक्करयणो चाउरंगबलकलिओ पुन्वदिसाए मागहतित्थं दाहिणेण वरदाम पच्छि मेण पहासं उत्तरेण य चुलहिमवंतपरिसरं जाव साहिऊण छक्खंडभरहं सट्ठीए वाससहस्सेहिं बत्तीसनरवइसहस्सपरिकायरिओ अइगओ विणीयरायहाणिं, कओ से बारस वासाई महारायाहिसेओ, विसजिया य रण्णा नियनियट्ठाणेसु दूरदेसागया नरवइणो। ॥११॥ ल For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir S A AGAR अन्नया य भरहो अट्ठाणउइए चुलभाउयाणं दूयं पेसेइ, भणावेइ य जहा-मम सेवं पडिवजह अहवा रजाई परिहरह जुज्झसजा वा हवह उवायंतरं वा परिकप्पहत्ति, एवं च राइवयणं सम्ममवधारिऊण गओ दूओ, निवेइओ तेसिं भरहनरिंदाएसो, तं च समायन्निऊण कोवावरत्तनेत्तेहि लीलाजहिताडियधरणिवठेहिं भणियं तेहि-रे या-18 हम! को भरहो? को वा एरिसवत्तव्वे तस्साहिगारो ? जेण तस्स अम्हाणं च ताएणं दिण्णं रजं तम्हा ताओ चेव | जं आणवेही तं करिस्सामोत्ति, रोसेण कंठे घेत्तूण निद्धाडिओ दूओ अवदारेणं । एत्यंतरे गामाणुगामेण विहरमाणो भयवं आइतित्थयरो अट्ठावयंमि नगवरे समोसरिओ, आगओ चउन्विहदेवनिकाओ, तेऽवि अट्ठाणउइंपि कुमारा तुरियं समोसरणमागया, सहरिसं च सामी वंदिऊण निसन्ना सहाणे, पत्थावे य भरहाएसं कहिऊण पुढे तेहिंताय! कहेसु किं जुज्झामो उयाहु रज्जाइं चयामोत्ति, ताहे सामी तेसिं जोग्गयमुवलब्भ भोगनिविचिनिमित्तं मसम्भावपट्ठावणाए इंगालदाहगदिद्वंतं कहिउमाढत्तो जह एगो किर पुरिसो भायणमेगंतु मरिउ सलिलस्स । इंगालाण निमित्तं काले गिम्हे वर्णमि गो॥५३॥ तत्यंगत्थ बहूई खायरपमुहाई सारकट्ठाई। सो मेलिऊण जलणं पज्जलइ तस्समीवगओ ॥ ५४॥ डझंतकडसिहिताविउत्ति संछिन्नदारुसमिओति । मझंदिणदिणयरपीडिओत्ति तण्हाउरो सुत्तो ॥ ५५॥ तं पुन्वाणीयं जलमसेसमापियइ तत्थ सुमिणमि । गिंभुन्भवदिणयरकिरणविदुरमरुथेरवसहोव्व ॥ ५६ ॥ RSABSCRECORE For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org R श्रीमहा० चरित्र २ प्रस्ताव: ॥१२॥ EAKKKA तहवि हु असमियतण्हो गेहे गंतूण सयलकलसजलं। निढविऊण निलीयइ पोक्खरिणीवाविकूवेसु ॥५७॥ ९८ पुत्राणा पीए तस्सलिलंमिवि गंगाइमहानईसु ओगाढो । ताओऽविहु सोसेई पलएब्व पयंडमत्तंडो ॥५८॥ प्रभोरुपतत्तो जलहिजलं पिय अंजलिसलिलं व पियइ नो तहवि । तस्स उवसमइ तण्हा अवि अहिययरं पवढेइ ॥५९॥ देश.. ताहे अपावमाणो कहिंपि सलिलं समत्थभुवणेऽवि। अवलोइउं पवत्तो सो संतत्तो पयत्तेण ॥६॥ अह एगत्थ परसे अइउंडो पूइयो य (पूइयोव)सलिलोब(य)। तेणं दिट्ठो कूवो चिरेण परितुद्दचित्तेण ॥६१॥ पविसिउमसमत्यो दीहरज्जुणा बंधिऊण तणपूलं । सो खिवइ तत्थ तण्हासमत्यदुक्खस्स पसमट्ठा ॥ २॥ तो तकवियपूलयपेरंतगलंतबिंदुसंदोहं । उहं वियारियमुहो आसायंतो गमद कालं ॥३॥ जह तस्स वाविदीहियसायरसलिलेहिं अहयतण्हस्स । नो किंपि होज तेर्सि तणग्गलग्गेहिं विहि ॥ ६४॥ एवं देवाणुपिया! तुम्हाणं पुवकालियमवेसु । उवभुत्तपवरपंचप्पयारसदाइविसयाणं ॥६५॥ पुणरवि सव्वाणुत्तरसपत्यविमाणपत्तसोक्खाण । तेतीसं अपराई निबिग्घमणंतरमवंमि ॥६६॥ जह भो महाणुभावा! तित्ती भोगे पडुच नो जाया। ता किं इमिणा होही मुत्तेणं तुच्छरजेण? ॥६७॥ 8 ॥१२॥ तो असुइसंभवेसुं तुच्छेसुं माणुसेसु भोएसु । अइयोव्वकालिएसुं पजते दुहविवागेसुं ॥ ६८ ॥ मुहमहुरेसुं आवइसहस्सहेऊसु निंदगिजेसु । साहुजणवजिएसुं मुहुत्तमवि मा कुणह संग ॥ ६९॥ SANSARKESARKA For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३ महा० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तक्खणकयवेयालियपवरज्झयपेण बोहिऊणेवं । ते जिणवरेण सम्मं मुणिदिक्खं गाहिया सन्वे ॥ ७० ॥ तो सुचरियसामन्ना विणिहयनीसेसघाइकम्मंसा । भुवणजणपणयचरणा जाया सन्वेऽवि केवलिणो ॥ ७१ ॥ विहरति जिणेण समं गामागरनगरमंडियं वसुहं । अह दूयं भरहवई पुण पेसइ बाहुबलिणोऽवि ॥ ७२ ॥ तेवि दूयं निम्भच्छिऊण भरहेण सह समारद्धो । दिट्ठीवायाइओ संगामो जाब पम्बइओ ॥ ७३ ॥ तत्थेवुस्सग्गठिओ कह लहुभाईण वंदणं काहं ? । बंभीसुंदरिपेसण ओयरणं कुणसु हत्यीओ ॥ ७४ ॥ बुत्ते चिंतानाणं जिणस्स पासंमि गमणमह तस्स । भरहोऽवि हयविपक्खं भुंजर रज्जं सनगरीए ॥ ७५ ॥ इओ य-तस्स मिरियस्स दसविहचक्कवालसामायारीनिरयस्स सिद्धन्तपसिद्धसंजमकरणपरायणस्व संसारासारयं परिभाविंतस्स अट्ठारसविहं वंभचेरमणुपार्लेतस्स वोलीणाई बहूई वरिसाई, एगया य गिम्हमासे विप्फुरंतेसु जलणजालाकरालेसु रविकरेसु धम्ममाण लोहागरनिज्जा (ज्झा) मयसरिसेसु वायंतेसु खरसमीरणेसु विरहिणीजणहियवव्व तत्तंमि महियलंमि अण्हाणवसविसप्पमाणबद्दल मलाविलसरीरत्तणेण पवदंतसेयसलिलुप्पिलाउलत्तणेण य वाढं किलंतस्स दढचारित्तावरणीय कम्मदोसेण मइल हिययस्स परिचत्तकुमित्तस्सवि गुरुकुलवासे ठियस्सावि छट्टट्टमाइनिडुरतवकि सियसरीरगस्सवि सयावि मुत्तत्त्थे विपरिभाविरस्स एक्कारसंगाई तण्डाभिहयस्स पयंडगिंभसंतचसव्वगत्तस्स पल्हत्थं संजमओ झडत्ति चित्तं मिरियस्स । For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Siri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमहा० चरित्रे २ प्रस्तावः ॥१३॥ SCREDS *ASAKARAOKAR अइगाढो मोहभडो जमेरिसाणवि मणो विकंपेइ । अघडंतघडणपडुयाण किं व सज्झं न कम्माणं? ॥७६ ॥ परिणामअन्नं च-तावचिय धम्ममई तावञ्चिय निंदियत्थपरिहारो। जावज्जवि मोहमहापिसायपासंमि नो पडइ ॥७७ वापरावृत्तिः. एत्तो चिय मोक्खमहानिहाणमुक्खणिगमुजयं समणं । धार्डिति विसहरा इव वावीस परीसहा सहसा ॥७८॥ अह मिरिइणा चिंतियं-न सव्वहा समत्थोऽम्हि सम्ममियाणिं समणतणमणुढिलं, ता किं करेमि? कमुवायमणुसरामि? किं देसंतरं वच्चामि ? कस्स वा साहेमि?, होउ वा विकप्पिएणं, पवजापरिचाएणं नियभवणगमणं संपयं मे पत्तकालंति, अहवा-चउजलहिमेहलामंडलाए महिमहिलाए अहिवइस्स पयंडभुयदंडदलियदुइंतवइरिव ग्गस्स सयलपणमंतमहिवालमउलिकिरणावलिकब्बुरियवलय(चलण)स्स छन्नवइगामकोडिनाहस्स अप्पडिहयसासणस्स भरहचक्कवइणो पुत्तो होऊण सयमेव परिचत्तं मंदिरमणुसरंतो कहं न लजामि ?, कहं वा तत्थगयं निहयपइण्णं मं जाणिऊण न लजाए हेटामुहा ठाइस्संति जणणिजणया? कहं वा तुसारहारगोखीरकुंदेंदुधवलस्स इक्खागुकुलस्स पढमकलंको न भविस्सामि? के वा परिचतुत्तमंगीकयधम्मस्स न करिस्संति हीलं सहसंवडियावि बंधुणो? कस्स कस्स वा महापावकारिणो निदसणं न भविस्सामि, ता सम्बहा न जुत्वं गिहगमणं, किंतु सन्च 18॥१३॥ प्पयारेहिवि परिसुद्धं नियमणस्सेव नियमणं मे काउं जुजर, तं पुण सेलसिरयलोदृट्टोलगंडसेलंपिव जुगंतसमय-31 समीरणयसिंधुसमुच्छलियमहल्लकल्लोलपडलं पिव पयंडमत्तंडमंडलपगलंतपहाजालं पिव दढसुक्ककाणणगयमहाहुया For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir USAMRESS सणं पिव न मणागपि सकेमि संठविलं, अयं च जइधम्मो अचंतमप्पमत्तचित्तमहासत्तनिव्वहणिजो, अहं पुण दुइंतगहभो इव समुदुरखंधसिंधुरमहलयणोवसरणं कायरो इव दुग्गसंगामभीमसवड मुहुन्भडभिडंतसुहडभिउडिफडाडोवं दुस्सहपरीसहचमूपराजियमाणसो न सकेमि अट्ठारससीलंगसहस्साभिरामं सब्वहा जहुत्तं समणधम्ममणुचरित्रं ।। अविय सुरसेलतुलभारो एसो अहि(अहयं तु भग्गपरिणामो । आजम्मं वोढब्बो कह तं एवंविहेण मए?॥७९॥ एसोऽवि भवविरक्ख(क)णपडयपभावो पियामहोजावि। करकलियामलयं पिव जाणइमम विहडियं चि ८० तहविहु संसारुब्वेयविरतओ कहमहं महाघोरं । काउं मुणीण धम्म तरामि एयाणुवित्तीए॥८१॥ कीरइ अणुवित्तीविहु सद्धम्मगुरूण योवदिणसज्झे । कजे आजम्मं पुण कायन्वो संजमो कह णु ॥ ८॥ इओ य-(असुह)गिहत्थभावं संजम्मकलंकमवि न सकेमि । काउं किलिट्ठचित्तो कमुवायं संपवज्जामि ॥८॥ एवं च तस्स किंकायब्धयाअ मूढस्स अचिंतणीयमहिमयाए कम्मयाणं अपारसंसारसागरपरिब्भमाणुकूलसीलयाए जीवस्स अवस्सं भवियव्वयाए तहाविहभावस्स इओ तओ उभयमग्गाणुसारिणमुवायं मग्गमाणस्स सहसच्चिय सयमेव एयारिसी बुद्धी पाउन्भूया,जहा-किर भगवंतो मुणिणो मणवयणकायदंडत्तयरहिया असुभवावारपरिचाएणं सया संलीणसरीरा अहं पुण न एवंविहगुणजुत्तो, जओ पराजिओ इंदिएहिं अहिभूओ य उस्सिंखलेहिं For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कता. नीमहा. हमणवयणकायदंडेहि, तम्हा एरिसस्स मम हवउ सच्चरियपयडणपरं तिदंडं चिंधं, जइ पुण एवं अणवरयं पेच्छमाणस्स परिव्राज चरित्रे सदुचरियपच्छायावेण विसिट्ठपरिवालणुजमो होजा १, तहा मुणिणो सिरकेसावणयणेण सबिदियनिग्गहेण य प्रस्ताव: मुंडिया भवंति, मम पुण इंदियनिग्गहरहियस्स किं निरत्ययं मत्थयढुंचणेण ?, अओ खुरमुंडणं मुणिवेसविसरिसत्त-12 ।१४॥ वापरूवणपरं सिहाधरणं च संपजउत्ति २, तहा समणा भयवंतो तिविहं तिविहेण पञ्चक्खायसुहुमबायरपमुहभे. यपाणाइवाया संजममणुपालेंति, ममं पुण अतहाविहजोग्गयाजुत्तस्स थूलपाणाइवायवेरमणं जुत्तंति ३, परिचत्तसमग्गकिंचणा मुणिणो, अहं पुण न एयंविहो ता नियमग्गाविसरणनिमित्तं सुवण्णपवित्तगाइमेत्तं मम किंचणमवि हवउ ४, तहा जिणवरुद्दिसमग्गसीलजलपक्खालियकम्ममलसेयत्तणेण निचं सुंदरगन्धाभिरामा (मुणिवरा) अहं पुण निम्मलत्तणेण दुगुंछियगंधो ता वाहिपि तस्सावणयणनिमित्तं गंधचंदणाइपरिग्गहो मम समुचिओत्ति ५,81 तहा ववगयमोहा निकारणविमुक्कोवाहणपरिभोगा य तवस्सिणो, अहं पुण महामोहाभिभूतो सरीररक्खापरो अओ छत्तयधरणं उवाहणापरिभोगो य मम संपजउत्ति ६, तहा परिजुन्नसुद्धकुत्थियथोक्सुकिलवत्थपरिग्गहा महाणुभावा मुणिणो, अहं पुण गाढकसायकलुसियबुद्धिपसरो तम्हा धाउरसरत्ताणि वत्थाणि मए परिहियवाणि ७, तहा[8॥१४॥ सावजजोगभीरुणो जइणो मणसावि न पत्थंति बहुजीवाउलं जलारंभ, अहं तु संसाराणुसारिवुद्धी तम्हा परिमिएणं सलिलेणं पाणण्हाणाई वावारमणुचरिस्सामित्ति ८॥ 6*XOX****** *** For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं सबुद्धिपरिकप्पिएण जइविसरिसेण वेसेणं । मुणिधम्ममग्गचत्तो पारिवज्जं पवत्तेइ ॥ ८४ ॥ गामागरनगराइ सिरिरिसहजिणेण सह परिब्भमइ । सुस्सवणपक्खवायं निचं हियएण वहमाणो ॥ ८५ ॥ अह तं करयलग हियच्छत्तयं दीहलंबिरसिहंडं । पासविमुकतिदंडं पवित्तमाईहिं परियरियं ॥ ८६ ॥ गेरुयरसरत्तंसुयविराइयं संझसूरविधं व । चंदणचचियदेहं उवाहणारोवियकमं च ॥ ८७ ॥ असरिसरूवं नीसेससमणसंघस्स मज्झयारंमि । दहुं कोऊहलिओ बहुजणो पुच्छर धम्मं ॥ ८८ ॥ मिरिईवि सम्ममहिगयत्तत्थो तत्तदेसणसमत्थो । साहेइ वित्थरेणं मुणिधम्मविहिं जणस्स पुणो ॥ ८९ ॥ जह एत्थं आजम्मं वायरसुहुमेसु सहजीवेसु । संघट्टणविद्दवणा वज्जणिजं पयत्तेणं ॥ ९० ॥ कोहेण व लोभेण व हासेण भरण वावि माड (ना) सच्चं । जीवोवघायजणगं भासेयवं विणासेऽवि ॥ ९१ ॥ गामे वा नगरे वा थोवं वा भूरि वा न घेत्तवं । सच्चित्तमचित्तं या सवमदत्तंपि तिविहेण ॥ ९२ ॥ देवनरतिरियरमणीसु पवरलायण्णसुंदरंगीसु । पचक्खभुयंगीसु व खणंपि नो अभिरमेयवं ॥ ९३ ॥ धम्मोयारि मोतुं वत्थपडिग्गहपमोक्खमुषगरणं । सेसमहिगरणरूवं परिहरियवं पयत्तेण ॥ ९४ ॥ संथारगमेकं वज्जिऊण नेवोवहाणतूलीओ । फासस्साणुगुणाओ कइयावि य पत्थणिजाओ ॥ अरसविरसन्नपाणेहिं पीडिएणावि महुरदित्तरसे । नो भोयणंमि चित्तं निवेसियवं मणागंपि ९५ ॥ ॥ ९६ ॥ For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir बोधन श्रीमहा० चरित्रे २ प्रस्ताव ROADCASSAGAR रम्मेसु बउलमालइकुवलयगंधेसु तदियरेसुंपि । पाणिंदियगोयरमइगएसु तुल्लेण होयचं ॥ ९७ ॥ 18 साधुधर्मरूवेसु सुंदरेसुं नयणमणाणंदणेसु दिटेसु । तवइरित्तेसुं वा तोसपओसा न कायबा ॥ ९८॥ सद्देसु वेणुवीणाकिन्नरकंटुब्भयेसु विविहेसु । खरमज्जारभवेसुवि सुणिएसु समेण होयत्वं ॥ ९९ ॥ तजणतालणहीलणकरणपसत्तेऽवि बालिसजणंमि । चिररूढगाढपणएव रूसियत्वं न थेवंपि ॥ १० ॥ जयपयडेहिवि नीसेसलोयविम्हयकरेहिवि गुणेहिं । जुत्तेण मणागंपिवि माणो न मणभि ठवियबो ॥१०१॥ विस्सासविणासणकारिणित्ति सुहगइदुवारपरिहोत्ति । दुहनंदियत्ति माया परिहरियवा कुमज्जव ॥ १०२॥ थेवंपि कजछिदं पाविय पावस्स छलणसीलस्स । लोहस्स पिसायस्स व अवगासो नेव दायबो ॥ १.३॥ सच्छायं तिब्वफलं मइसउणं पवरसीलतरुसंडं। भंजतो दुटुमणो बंधेययो वणकरिव ॥ १०४॥ निस्संबंध सावजजोग्गये जंतुदुक्खजणगे तु । सच्चेऽवि भासियवे जीहावि पडिक्खलेयवा ॥ १०५॥ तत्तायगोलओ इव पमत्तचित्तंगविविहवावारो। किं नेव विद्दवेजा ? ता देहो संठवेयबो ॥ १०६ ॥ सत्तरसभेयभिन्नो जइधम्मो नृणमप्पमत्तेणं । कायन्बो निचं तेणेसो दुकरो होइ ॥ १०७ ॥ ॥१५॥ गिम्हुण्हपीडिएणवि न छत्तयं न उवाहणाओऽवि । परिभुत्तबा हेओ सब्वोऽवि सरीरसकारो ॥१०८॥ नो सिरलोयप्पमुहं कट्ठाणुट्ठाणमवि विमोत्त । रवाइवण्णवत्थंपि पत्थणिजं कयाइ नवि ॥१०९॥ For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SSSSSSSHESAKAL इय जइधम्मे सबो कायबविही निवेइओ तुम्ह । अक्खंड सिवसोक्खं जद बंछह ता तयं कुणह ॥ ११ ॥ एवमायन्निऊण जणो पहिट्ठमणो भणिउमाढत्तो-भयवं! जइ एवंविहो चरणधम्मो ता कीस तुम्हे छत्तप्पमुहमुवगरणं गिण्हह ? सिरलोयाइयं च न सम्ममायरहत्ति, मिरिइणा भणियं-भो भो महाणुभावा! मा एवमासं. कह, जहा एसो अण्णहा भासइ अण्णहा करेइत्ति, अहं हि संसाराणुसारिबुद्धी पराजिओ मोहमहामलेणं पडिक्खलिओ उस्सिखलकसायखलेहिं मुसियपसमधणो दुइंतिदियचोरोहिं सायरमवलोइओ दुग्गइदुक्खरक्खसीए, ता मम दोसगुणविभावणं उज्झिऊणं नीओवणीयं पिव महामणि खचरसमप्पियं पिव परमविजं मायंगदेसियं पिव समी-15 |हियपुरपंथाणं रोगविहुरवेजोवइटुं व परमोसहं अंगीकरेह सबहा तुम्हे मुणिधम्मंति। एवमाइन्निऊण संजायभववरग्गा निउणबुद्धिपरिभावियपरमत्था तणं व परिचत्तपुत्तकलत्तमित्तवित्ता जिणधम्मनिवेसियथिरचित्ता समणदिक्खागहणत्थं पाउन्भवंति अणेगउग्गभोगराइण्णपमुहा जणा, मिरिईऽवि ते |सिस्सभावेणोवठिए णाऊण भगवओ भुवणपईवस्स संसारतरुगहणदहणदावानलस्स अट्ठप्पयारपवरपाडिहेरपयडप्प-18 भावस्स उसभसामिणो समप्पेइ । एवं च पइदिणं सद्धम्मदेसणाए पडिबोहेमाणो नियदुचरिअं निरंतरं निंदमाणो सुस्समणपक्खवायं वहमाणो सुत्तत्थाई मणे परिभावमाणो सुहसीलयाए सबुद्धिपरिकप्पियपरिवायगवेसं धरेमाणो गामागराईसु सामिणा सद्धिं विहरमाणो कालं गमेइत्ति । For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्द्रकृता श्रीमहा० चरित्रे २प्रस्ताव अवग्रह पृच्छा . RECARE अह अन्नया कयाई भयवं गामागरेसु विहरिऊण अट्ठावयंमि समोसरिओ, भरहचकवट्टीवि भाउणो पचइए निसामिऊण संजायतिब्यसोगो जइ पुण भोगे दिजमाणे अजवि गेहंतित्ति संचिंतिऊण भगवंतं उसभसामि सविणयं वंदिऊण भाउगे भोगेहिं निमंतेइ, इहलोइयसुहनिरवेक्खेहि भणिओ तेहिं भो महायस!-सयमेव परिश्चत्ते दुहनिवहुप्पत्तिकारणुन्भूए । उरनिहयसलतुल्ले कहमिव भोगे अणुसरामो? १११ अच्छंतु पेम्मनिब्भरतरुणीसंबंधबंधुरा भोगा। तेर्सि न संकहंपिवि सोउं संपइ समीहामो ॥ ११२ ॥ एवं भोगेसु पडिसिद्धेसु भरहो परिचत्तसंगाण एएसिं आहारदाणेणावि ताव धम्ममायरामित्ति विकप्पिऊण पवरलक्खणभोयणभरिएहिं पंचहिं सगडसएहिं असणदाणत्थमुवट्टिओ, पुणरवि निवारिओ तेहिं-अहो महायस! न कप्पद आहाकम्मं आहडं च असणपाणं परिमोतुं मुणीणं, तओ गिहनिमित्तसंसिद्धभोयणेण निमंतेइ, सोऽवि रायपिंडो न कप्पइत्तिकाऊण निसिद्धो साहूहि, हा सव्यपगारेहिं परिचत्तो अहमियाण एएहिंति ददं चित्तसंतावमुषगो भरहचक्कवट्टी, तं च सोगविहुरं नाऊण वियाणमाणेणावि सकेण तस्स परितोसनिमित्तं पुच्छिो भयवं सप्पमेयमोग्गह, पुढेण य भगवया भणियं-सुरिंद! पंचविहो उग्गहो, तंजहा-देविंदोग्गहो रायावरगहों गिहिवइमहै वग्गहोसागारियावग्गहो साहम्मियावग्गहो, तत्य देविंदावग्गहो जहाकिर जंबुद्दीवदाहिणखेत्ताहिवाई तुर्म, अहो सक! Pldहाणुजाणावणेण कप्पा समणाण तर्हि विहरिचए, राया पुण छक्खंडमरहाहिबई जहा संपयं मरहो, तस्सागुष्णाए कलकर For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुणीर्हि तसे वसियां, गिवई य मंडलेसरो, सोऽवि समंडलनायगत्तणेण अणुण्णवणजोग्गो, नदणुमए चेव ठाइयचं, सागारिओ पुण सेज्जायरो, सेज्जा य सनिमित्तकयतहाविहगेहसालापमुद्दो भवगविसेसो, तद्दाणेण तरह संसारसारंति | सेज्जातरो गुणनिफन्ननामो। कहं पुण सेज्जाए तरइत्ति १, भन्न तत्थ ठिया मुणिवसहा सज्झायज्झाणझोसियसरीरा । जं धम्मदेसणाईहिं भवलोयं उवयरंति ॥ ११३ ॥ जं वा अपुषसत्थं पढंति तह संजमे पयति । छद्वमाइयतवो दुकरमवि जं पवजंति ॥ ११४ ॥ अन्नत्तोऽविहु जं वत्थपत्तभत्ताइणा न सीयंति । परमत्थेणं सवत्थ तत्थ सेज्जा भवे हेऊ ॥ ११५ ॥ इय- सेज्जादाणेण महलदुक्खकलो लसंकुलमगाहं । संसारसायरं गोपयं न दाया लहुं तरइ ॥ ११६ ॥ इहरा सेज्जाऽभावे न जीवरक्खावि निवहइ सम्मं । किं पुण समग्गसद्धम्मपालणं होज्ज निविग्धं १ ॥ ११७ ॥ साहम्मियावग्गहो पुण सिद्धतपसिद्धनाएण परोप्परं समणाण एगखेत्ते निवसिउकामाणमवगंतचो । एवं च पंच विहावग्गहपरूवणमायन्निऊण पंचंगपणिवायपुरस्सरं सक्को भणिउमाढत्तो-मयवं ! जे इमे अज्जप्पभिहं दाहि|णखेत्ते समणा निग्गंथा विहरंति एएसि णं अहं ओग्गहमणुजाणामि, भगवया भणियं-जुत्तमेयं, एयं च आयन्निऊण भरोऽवि जायपरितोसो भणइ - भयवं ! अहंपि भारहे वासे साहुणो विहरमाणे अणुमण्णेति । तंपि तहाऽऽनीयमसणं For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Siri Kailassagarsuri Gyanmandir अवग्रहा: श्रीमहा० चरित्रे २ प्रस्तावः शलाकाप्रश्न: ****SHAXHIGANS अणुव्वयगुणवयसिक्खावयगुणसंगयाणं सावगाणं सकवयणाओ भरहेण दावियं, तहा एवंपि निजरा होउत्ति मण्णमाणण सावगाणं पइदिणं भोयणदाणं कयं, भयरपि अन्नत्थ विहरिओ। तेऽवि सावगा परिचत्तासेसघरवावारा भरहपणीयजिणथुइगम्भे वेदे परावत्तयंता छठे मासे परिणाणनिमित्तं कागिणीरयणेण उत्तरासंगनाएण आलिहियतिरेहा निरवजवित्तीए कालं गति। अन्नया य भयवं पडिबोहिऊण तेसु तेसु । ठाणेसु भब्वजणं पुणरवि अट्ठावयमागओ, देवहिं कयं विसालसालत्तयविहारं छत्ताइच्छत्तरमणिजं आजाणुमत्तभूमिनिहित्तरुंटतभमरं पंचप्पयारपुप्फपुंजोवयारं गयणंगणोयरंततियसविमाणमालासहस्साभिरामं मंदमंदमुद्धयवेजयंतीसयसोहियं पवरमणिमयमहप्पमाणासोगतरुविराइयं पंचवन्नरयणविणिम्मियसिंघासणं समवसरणं, तत्थ य निसन्नो तइलोकपियामहो भयवं पढमजिणो, निविट्ठा कमेण गणहरपमुहा साहुवग्गा, आसीणा अणेगसुरकोडिपरिवुडा बत्तीसपि सुरिंदा, विण्णायजिणागमवुत्तंतो समागओ सबविभूईए भरहो, परमभत्तीए पणमिय भयवं आसीणो उचियभूमिभाए। अह सो तहाविहं भवणच्छरियं नीसेसतिहुयणसिरिविरइयंपिव सम्बन्भुदयगेहंपि व समवसरणसोहं भगवओ परमिस्सरियं च पासिऊण हरिसुप्फुललोयणो पुच्छिउमेवं पवत्तो-ताय! जारिसा तुम्हे भवणगुरुणो एवंविहपूयापरिसपत्ता किमेत्य भरहे अण्णेऽवि एरिसा भविस्संति न वा?, भगवया भणियं-भविस्संति, भरहेण भणियं-केरिसा?, ॥१७॥ ** For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता तेवीस जिणे अजियाई वीरनाहपज्यंते । समबुद्धिबलायारे तिहुयणजणपणयपय उमे ॥ ११८ ॥ तह तेसिं च अण्णोऽण्णमंतरं सयलकालकलणेणं । वण्णं पमाणमाउं गोत्तं तह जणणि जणगा य ॥ ११९ ॥ जम्मणनयरे य तहा कुमाररजाइ सव्वपरियागं । सिद्धिगईपजंतं भयवं भरहरूस साहेइ ॥ १२० ॥ रवि पुच्छ भरहो मम सारिच्छा कईह होर्हिति ? । सगराई एकारस चकहरे कहइ सवन्नू ॥ १२१ ॥ अपुट्ठोऽविद्दु भयवं पुणोऽवि वागरइ भरहनाहस्स । नव वासुदेववलदेवजुवलए भाषिणो भरहे ॥ १२२ ॥ पुणरवि भणिओ भरहाहिवेण तइलोक्क मंदिरपईवो । अबलोइऊण परिसं खयरामरनियरपरियरियं ॥ १२३ ॥ छठ्ठमाहतवकिसिय साहुयुधम्मका रिगिहिकलियं । भयवं ! किमेत्थ कोऽवि हु पाविस्सइ तित्थयरलाभं ? ॥ १२४ ॥ तह चकवलिच्छि चोट्सवररयणगुणमहग्घवियं । अहवावि वासुदेवत्तणंपि पावेज भरहंमि ? ॥ १२५ ॥ ता कलिकुलिंग मिरिहं एगंतसंठियं भयवं । दावइ जह एस जिणो चरिमो होही तुह सुओत्ति ॥ १२६॥ एसोच्चि गामागरनगरसमिद्धस्स भारहद्धस्स । सामी तिविदुनामो पढमो तह वासुदेवाणं ॥ १२७ ॥ एसो महाविदेहे पियमित्तो नाम चक्कबट्टीवि । मूयाए नगरीए भविस्सई परमरिद्धिजुओ ॥ १२८ ॥ एवं च आयन्निऊण भरहनरिंदो पहिदुमणो पणभिऊण भयवंतस्स चरणसरोरुहं तक्खणमेव अणेगसुहसेणावइनिवहपरिवुडो पयट्टो नियसुयस्स मिरियस्स वंदणणिमित्तं, तदंतरे चारणलद्धिसंपन्ने ओहिनाणघरे मणपज्जवनाणिणो For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीमहा० २ प्रस्तावः ॥ १८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विगिष्टुतयकरणनिरए सूराभिमुद्दायावणापरायणे वीरासणाइदुक्कर कायकिले सकारए भंगियसुयपढणेकमाणसे ममहामुणिणो परमभत्तीए ठाणे ठाणे विणयपणमंतमउलिमंडलं वंदतो अणिमिसदिट्ठीए पेच्छमाणो य पत्तो जत्थ सो एकदेसविमुक्कवेणुतिदंडो पंडुरपुंडरियनिवारियरविकर पसरो नियमइपरिकप्पियपवित्तिगाइउवगरणविसरिसरुवदंरण कोउहलाउलियागयलोय धम्मकहणव क्खित्तचित्तो मिरिई निवसइत्ति, तं च दूराओ च्चिय निस्सामण्णभत्तिभर निस्सरंतुव रोमंचच्छलेण अंतरे अस्सायंतं व सिणेहसवस्सदुग्गिरंतो पढमदंसणुन्नामियमत्थयनिवडंत कुसुमनिभेण अग्धं व वियरंतो विमलकर लंगुलिमुद्दारयणकिरणजालेण दिसामुहपसरिएण मंगलदीवनिवहं व बोहिंतो पयाहिणादाणेण तिगरणभत्तिपगरिसं व सार्हेतो भूमितलविलुलंतुत्तमंगं पणमिऊण पमोयभरनिग्भरगिरं भणिउमाढत्तो, कहं ? - वच्छ ! तुमं चिय नीसेसपवरलक्खणनिहाणभूओऽसि । सुकयत्थाणं मज्झे तुज्झ परं पढमिया रेहा ॥ १२९ ॥ तिहुयण भुवस्सुवरिं इक्खागूणं न होइ कह वंसो ? । जत्थ विमला विरायइ विजयपडाइव तुह कित्ती ॥१३० ge भाविरिद्धिमायन्निऊण रंजिज्जए न कस्स मणं १ । कह वा नो वंदिज्जइ तुह पयपउमंकिया पुहइ ! ॥ १३१ कीरंतु नाम दुकरतबोविहाणारं भव्वलोएणं । जं तेसि फलं तं पुण तुमएश्चिय पावियं सर्व्वं ॥ १३२ ॥ जओ-सिद्धोऽसि तुमं तारण भारहे कुंडगामनयरंभि । सिद्धत्थपत्थिवसुओ किर चरिमो एत्थ तित्थयरो १३३ पुणरषि दसारवग्गे आइमो तं तिविहुनामेण । पोयणपुरंमि नयरे तिखंडभरहस्स सामिति ॥ १३४ ॥ For Private and Personal Use Only मरीचि - वन्दनं. | ॥ १८ ॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir s BECAUSEKACAAAA aamananews मुयाए नयरीए महाविदेहमि तह य चक्कबई । वत्तीससहस्समहानरिंदसंदोहनयचरणो ॥ १३५ ॥ पारिवज जम्मं च तुज्झ नो पणिनयामि किंपि अहं । जं होहिसि तित्थयरो चरिभो तं तेण वंदामि॥१३६॥ एवं थोऊण बहुं गिराहिँ अभहियभावगम्भाहिं । जयकुंजरमारूढो विणीयनगरि गओ भरहो ॥ १३७ ॥ मिरिईवि इमं सोउं हरिसुग्गयपुलयजालपीणंगो। गरुयकुलजम्मसहजायभूरि गंभीरिमं मोतुं ॥ १३८ ॥ जिणषयणथविभावणसंपन्नविवेयमवि परिचइउं । देहुग्गयनिरवग्गह लज्जापसरपि पडिखलिउं॥ १३९ ॥ दुबारवेगपफुरियफारमुम्मायमेकमासज । दप्पुभडमप्फोडिय तिवई मल्लो व रंगंमि ॥ १४ ॥ पचासत्रमहामुणिसमक्खमह लोयमज्झयारंमि । आणंदसंदिरच्छो फुडक्खरं भणिउमादत्तो॥१४॥चउहिं कलावयं । जइ पाहम वासुदेवो महाविदेहमि चक्कवट्टीवि । चरमो तित्थयरोऽविहु अहं भविस्सामि भरहंमि ॥ १४२॥ ता तिहुयणेऽवि नूणं अण्णो नो पुण्णवं ममाहितो। कस्सऽण्णस्स व एरिस फलदायी होज सुकयतरू ११४३ 31 तथा-अजो तित्थयराणं पढमो जणगो य चकिवंसस्स । अयं च दसाराणं अहो कुलं उत्तिमं मझ ॥ १४४॥ एवं नियकुलचंगिमउक्किवणपचएण संजणियं । नीयागोयं कम्मं मिरिइपरिवायगेण दढं ॥ १४५ ॥ भयवं च जयपियामहो विहरिऊण तेसु तेसु गामागरपुरमडंबदोणमुहपमुहेसु ठाणेसु किंचूर्ण पुचसयसहस्सं 8| केवलिपरियागं पाउणित्ता आउयकम्मस्स सावसेसयं नाऊण अट्ठावयपब्वयमारूढो, तओ महामासबहुलतेरसीए अभि ROMANCDCCESCOCCC । महा. For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Srikalassagarsunayanana www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीमहा० चरित्रे २ प्रस्तावः ॥१९॥ ईनक्खत्तमुवागए चंदे पुवण्हसमयंमि सुसमदूसमाए एगूणन उइपक्सेसु सेसेसु कयचउद्दसमतवोकम्मो दसहि मुणि आदि. सहस्सहिं सद्धिं परिचत्तचउबिहारो कयपाओवगमणो पजंकासणसंठिओ वेयणियाउयनामगोयकम्माणं अंतं| निवाग, करित्ता सिवमयलमणुत्तरं पत्तोत्ति । | अह बत्तीसपि सुरिंदा दुस्सहदुक्खविहुरेण भरहनरिंदेण समेया वाहप्पव्वाहाउललोयणजुयला पणमिऊण भगवंत नंदणवणाओ सरसगोसीसकसणागरुपमुहसोक्खकट्ठाई आणाविति । तओ-पुब्वेण जिणस्स कए वहायारं चियं रयाविति । दक्षिणदिसाएँ तंसं इक्खागुकुलुब्भवनिमित्तं ॥ १४६ ॥ अवरेण उ चउरंसं वित्थरवंतं विसिट्टकडेहिं । अवसेसाण मुणीणं सरीरसकारकजेणं ॥ १४७ ॥ ताहे खीरोदय(जल)ण्हवणसुइसुरहिचंदणविलितं । आरोति सरीरं चियाएँ सक्का जिजिंदस्स ॥१४८॥ भवणवइपमुहदेवा ग्रहवियविलित्ताई सेससाहूणं । आरोति दुहत्ता देहाई नियनियचियासु ॥ १४९ ॥ ततो अग्गिकुमारा जहकम तासु सक्कवयणेणं । वयणेहिं निराणंदा मुयंति जालाउलं जलणं ॥ १५०॥ एवं सरीरसक्कारमायरेणं सुरेसरा काउं । नियनियठाणेसु गया विच्छायमुहा विगयसोहा ।। १५१॥ 13॥१९॥ भरहनरिंदो पुण महासोगाभिभूओ सगिहमागओ, तत्थ य दढवजपडणाइरित्तसोगसंभारजजरियसरीरो मनुपूरियगलसरणी संकंदणपोकमुक्कारा(वा)णुसाररोयणारावविहियसोगपमोक्खो अट्ठावयसेलसिहरमि सबरयणमयं महंत For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shi Raassaga Gyan www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ACCRACCAUSA थूभं रयावेइ, बाहुबलिपमुहाण य नवणउईए भाउगाणं अण्णाणि नवनउइ धूमाणि निवत्तावेइ, तहा भगवओ निब्वाणलाभप्पएसे तिगाउयउस्सेहं जोयणायाम सिंहनिसा(सेजा)इयं सव्वरयणविणिम्मियनियनियवण्णप्पमाणोक्वेयचउवीसजिणपडिमाहिट्ठियं सुविभत्तसालिभंजियाभिरामतोरणाबद्धबंधुरामिलाणवंदणमालं दुवारदेसोभयपासपइट्ठियलठ्ठपुंडरीयपिहाणपुण्णकणयकलसं सरसपंचप्पयारपुप्फपुंजोवयारकलियं कालागुरुकुंदुरुक्ककप्पूरपमुहवत्थुसिद्धधूयधूमधयारियदिसाहोयं अणेगतियसंगणाजणुत्वालकरतालपुरस्सरदिजमाणरासयं भत्तिभरनिभरगायतकिंनरनियरं दूरदेसा गयविजाहरचारणमुणिजणविचित्तथुइथोत्तखबहुंतहलबोलं पइट्ठियलोहमयजंतदुवारपालं जिणभवणं कारावेइ । जं च-संसारोयहिनिवंडतसत्तसंताणजाणवत्तं व । रेहइ पवणुदुयधवलधयवडाडोवरमणिजं ॥ १५२ ॥ इक्खागुकुलुभवभूवकित्तिकूडं व संठियं पयर्ड । सोहइ महीऍ केलाससेलसमसीसियाएव्व ॥ १५३ ॥ पवणपणोल्लिरजलहरपडलाउलसिहरपरिसराभोगं । परिभमिरभमरनियरं विरायए कुमुयमउलं व ॥ १५४ ॥ मन्ने पवणपणोल्लिरएयमहदयपलोयणेण जणे । पवयसिरनिवडिरगयणसरियकित्तीफुडं जाया ॥ १५५॥ भरहनरिंदनिवेसियजिणमंदिरदसणाणुसारेणं । सेसजणोऽवि पयट्टो जिणबिंबाईण कारवणे ॥ १५६ ॥ जुत्तं च एयं, जेण- . एयं खु दुग्गइदुवार(पिहाण)फलिहोवमं जिणा विति । नीसेससत्तसंताणताणदाणेकहेउं च ॥ १५७ ॥ For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीमहा० चरित्रे २ प्रस्तावः ॥ २० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एको (तो) च्चिय तकालयमुणिगणहरकेवलीहिं न निसिद्धं । चेइहराभावे जं तित्युच्छेओ भवे पच्छा ॥ १५८ ॥ तथा -- जिणसंतबिंवदंसणविनायजहत्थवत्थुपरमत्थो । पडिवज्जइ जड़ किरियं कोई संसारभयभीओ ॥ १५९ ॥ मुणिणोऽवि वंदणत्थं इओ तओ इंति नियविहारेणं । तेऽवि य करेंति सद्धम्मदेसणं समयनीईए ॥ १६० ॥ पडिवुज्झति य भव्वा गिण्हंति जिर्णिदधम्ममकलंकं । एवं च तित्थवुट्टी होइ कया सव्वकालंपि ॥ १६१ ॥ किं बहुणा ? -- जिणभवणा इनिवेसण समुवज्जियपुण्णपगरिसवसेणं । सग्गापवग्गलच्छी निवसइ भव्वाण करकमले १६२ इसो रहनरिंदो निवेसिऊणं जिर्णिदवरभवणं । उवभुंजइ नियरज्जं विसयसमिद्धं बहुं कालं ॥ १६३ ॥ अह अन्नया पविट्ठो आयंसघरंमि विमलफलिहमए । नियरूवपेच्छणकए सव्वालंकारियसरीरो ॥ १६४ ॥ रिविपयारं पेच्छतयस्स अह अंगुलीयगं गलियं । करकिसलयाउ ताहे बीभच्छा अंगुली जाया ॥ १६५ ॥ ववगयसोहं तं पासिऊण सव्यंग संगि याभरणं । मुक्कं साहावियरूत्रदंसणत्थं महीवणा ॥ १६६ ॥ अत्थमियसयलतारं व नहयलं लुणियसस्समिव छेत्तं । ववगयकमलं व सरं तरूं व संछिन्नसाहग्गं ॥ १६७ ॥ दहुंच घडियं व निष्पहं विगयरूवलायन्नं । चम्मावणद्धनिविडद्विपंजरागारमह देहं ॥ १६८ ॥ तो चिंतिउं पवतो सुनिरणबुद्धीऍ जायसंवेगो । बेरग्गावडियमई सरीरासारयं भरहो ॥ १६९ ॥ एवंविहनिंदियदेह कारणा कह मए महापावं । कयमचंतरउद्दं अहो विमूढेण चिरकालं ? ॥ १७० ॥ For Private and Personal Use Only चैत्यकृतिः केवलं च. ॥ २० ॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कह वा विसयामिसमोहिएण जिणनाहदेसिओ धम्मो । निष्पुण्णएण न मए सिवफलओ सम्ममायरिओ ११७१ किं चिंतामणिमह कप्पतरुवरं कामधेणुमह यावि । कोऽवि सयन्नो कहमत्रि लद्धूण परम्मुहो होज्जा १ ॥ १७२ ॥ ते बाहुबलिपमोक्खा घण्णा मह भाउणो महाभागा । जेहिं असारसरीरेण साहिओ सुंदरी मोक्खो ॥१७३॥ माइसुइज्झवसाणजलण ( जाले ) जलाविउं झत्ति । निद्दड्डो तणरासिव मोहपसरो भरहवइणा ॥ १७४ ॥ उप्पाडियं च केवलनाणं निप्पञ्चवायसुहहेउं । देविसमप्पियलिंगो गेहाओ निग्गओ ताहे ॥ १७५ ॥ दसहि सहस्सेहिं नरेसराण तक्कालगहियदिक्खाणं । परियरिओ भयवं भरहकेवली विहरिओ वसुहं ॥ १७६ ॥ अह पुव्वस सहस्सं केवलिपज्जायपालणं काउं । एकसमयेण निव्वाणमुवगओ भरहमुणिवसहो । १७७ ॥ sa य सो मिरिई परिव्वायगो सामिमि निव्वाणमुवगएऽवि साहूहिं समं गामागरनगराइसु अप्पडिबद्धो विहरइ, अपुव्वठाणेसु य धम्मदेसणं कुणइ, जो य कोवि पडिवुज्झइ पव्वज्जागहणं च समीहेइ तं साहूणं समप्पेइति । एवं च तस्स विहरमाणस्स अन्नया कयाइ सरीरगेलण्णया महती पाउन्भूया, तबसेण य सोन तरह अप्पणो निमित्तमसणपाणपि आहरिडं, न खमइ सरीरचेद्वंपि अणुट्ठिउं, न पहवह वहमेतमवि भासिउँति, ते य सगासट्ठिया पेच्छति साहुणो तं तहद्वियं तहावि असंजउत्ति कलिऊण न पुच्छंति सरीरवत्तं, न समप्पेंति मत्तपाणं, न दंसेंति वेज्जस्स, न उवयरंति ओसहाणं, किं बहुणा ?, न संकहंपि करिंति तस्स, मिरीईवि जातसंकिलेसो चिंतेह-अहो निद्दया For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org श्रीमहा. चरित्रे २ प्रस्ताव: भरतनि वणं कपि. लदीक्षा. ॥२१॥ महाणुमाया पार पावेमि ता नायव्ययाए वसेण खागा सो समत्थसरीरो मालाणो, तेणावि पंचमहलकाविलेण अहो निरप्पणचित्ता अहो सकजपसाहणपरायणा अहो लोयववहारपरम्मुहा अहो नियउदरभरणरसिया इमे साहुणो जं उवयारिणंपि चिरपरिचियपि एगगुरुदिक्खियंपि पासपरिवत्तिणंपि समाणधम्मपडिबलुपि अणवरयगुणग्गहणपरायणंपि ममं सिणिद्धचक्खुक्खेवमेत्तेणवि णाणुगिण्हंति, अहवा न सम्ममणुचिंतियमेयं मए, जओ एए महाणुभावा सरीरस्सवि पडियारमकुणंता कहं मम अस्संजयस्स उवयारे वरंतु , केवलं जइ अहंपि इमाओ रोगमहण्णवाओ पारं पावेमि ता निच्छियं पव्वजागहणुजुयं कमवि सयमेव पवावयामि, न एगागीहिं तीरिजंति सोढुमाषयाओ, अह कहंपि भवियब्बयाए वसेण खओवसमओ वेयणीयस्स चिरकालभवियवत्तणओ पारिवजपासंडवंसस्स तहाविहोसहसामग्गीउवहारओ ववगयरोगो सो समत्थसरीरो संपन्नो, विहरिओ य अण्णत्थ । अण्णया य धम्मदेसणं कुणमाणस्स तस्स कविलो नाम रायपुत्तो सगासमल्लीणो, तेणावि पंचमहव्वयरक्खपहाणो पसमाइगुणाहिडिओ पंचिंदियनिग्गहविसुद्धो निस्सेयसफलदायी परूविओ से सुस्समणधम्मो, कविलेण य वुत्तं-भयवं ! अण्णहा तुम्हे बज्झनेवत्थमुबहह, इमं च अण्णहा पण्णवेह, किमेत्थ तत्तं, मिरिहणा भणियं| भद्द ! एसो सुसाहुधम्मो तुह निवेइओ, इमं पुण जहुत्तसाहुधम्मासमत्थयाए पबलपावकम्मयाए दुग्गइगमणसीलयाए य सबुद्धिसिप्पपरिकप्पियं कुलिंगं मए अन्भुवगयं, तात! एयं पारगच्छियं, अओ पडिवजसु निस्स १ यद्यपि चतुर्णा घातिनामेव क्षयोपशमस्तथापि अत्र प्रागुदितस्य वेदनीयस्व क्षयः नवस्य चोदयनिरोध इति क्षयोपशमता डेवा, न तु मिश्रीधावतात्र । 5645625 यहाणो पसमाइगुणाहिणि कुणमाणस्स तस्स कालमा सो समत्थसरीरो संपचारकालभवियवत्तणओ पारिजात SACS4 ॥२१ ।। For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सयं समणधम्मं, कविलेण वृत्तं भयवं! तुम्ह संतिए एत्थ तहावि अस्थि किंपि णिजराठाणं नवा ?, मिरिइणा भणियं मद्द ! समणधम्मे ताव अस्थि, इहावि मणागंति, एवं च तेण अजहट्ठियवत्थुदेसणओ निविट्ठो सागरोव| मकोडाकोडिमेत्तो संसारोति । नणु किं एत्तियमेत्तविवरीयकहणेऽवि एवं संभवइ ?, किमिह चोजं?, जेण विवरीय जिणागमपयमेत्त (स्स) परूवणेऽवि मिच्छत्तं । अप्पत्थभोयणेण व दुहजणगं रोगमजिइ ॥ १७८ ॥ एतच्चिय मूलुत्तरगुणगणविरहेऽवि लिंगधारीवि । सुवइ सव्वन्नुमयं जहट्ठियं पन्नवेमाणो ॥ १७९ ॥ किं एत्तोऽवि हुए (पा) वं जं सरणगए णु भवभएण जणे । उम्मग्गदेसणातिक्खखग्गघाएण विदवइ ॥ १८०॥ गरुपि कयं पावं न तहा जीवस्स दुक्खमावहइ । जह जिणवरवयणपसूय समयविवरीयपरिकहणं ॥ १८१ ॥ अलं वित्रेण । पत्थुयं भण्णइ सो विलो सन्निवायाभिभूओ इव परमोसहं महागहपरिग्गहिओ इव तहाविहं मंतकिरियं पुव्यबुग्गाहिओ इव सम्मपरिकहणं महापवलमिच्छत्तणओ न पडिवण्णो मणागंपि समणधम्मं, तओ मिरिइणा चिंतियं न ताव परिगिण्हइ एस जइधम्मं ममावि छत्तगाइपरियरुव्वहणे गामंतरगमणे सरीरगेलण्गे अचंतिगपओयणे एगेण सहाइणा कज्जमत्थि, तम्हा पचावेमि एयंति चिंतिऊण कविलो गाहिओ नियदिक्खं, सिक्खविओ किंपि वज्झं कट्ठाणुट्ठाणं, एवं च सो नियंसियकासायवत्थजुयलो पाणिपरिग्गहियतिदंडो पवित्तिगापमुहोबगरणपरियरिओ For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीमहा० चरित्रे २ प्रस्तावः ॥ २२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गामाणुगामं पियरं व देवयं व सामियं व परसोवगारिणं व रयणनिहाणदेसगं च जीवियदायारं व मिरिहं पज्जुवासंतो परिभमइत्ति, एवं च काले वोलंतंमि मिरिई चउरासीइं पुवसयस हस्साई सघाउयं पालइत्ता अणालोइयपडिकंत नियदुच्चरिओ कालं काऊण बंभलोए कप्पे दससागरोवमाऊ देवो जाओत्ति । aisa कवि अपढियसत्थपरमत्थो बज्झोवगरणधरणमेत्तरसिगो जहादिटुकडाणुट्ठाणपत्तपरमकट्टो एगागी परियडइ । मुणिविलक्खणागारदंसणेण पुव्यकमेण समलियइ य से समीवे धम्मसवणत्थं बहू जणो, सोऽवि अवियक्खणत्तणओ समणसत्थेसु तहाविहधम्मदेसणमवियाणमाणो 'युक्तायुक्तपरिज्ञानशून्यचित्तस्य देहिनः । अलब्धमध्यताहेतुमनं सर्वार्थसाधनम् ॥ १ ॥ इति परिचिततो गाढपरिग्गहियमोणव्वओ दिणगमणियं करेइ । अन्नया य आसुरिरायपुत्तपमुहं सिस्सगणं पचाविऊण जथादिद्वं बज्झाणुद्वाणं दंसिऊण य चिरकालं कयवालतको मरिऊण बंभलोए कप्पे देवो उववज्जइ । तहिं च असुयं अदिपुवं सुरलच्छि पेच्छिऊण तारिच्छं । अणुचितिउं पयत्तो अइविम्हियमाणसो कविलो ॥ १८२ ॥ किं मन्ने हो मए दारुणरूवं तवं समायरिडं (यं) १ । किं मयलंछण सच्छ हम णुचरियमणुत्तमं सीलं १ ॥ १८३ ॥ किंवा दुकरतवनियमनिरयचित्तेसु साहुपत्तेसु । होज निहित्तं वित्तं नियभुयजुयलज्जियं पुवि ? ॥ १८४ ॥ किं वा साहसमवलंबिण खित्तं हवेज्ज नियदेहं । पज्जलियतिव्वजाला सहस्सजडिलंमि जलणंमि ॥ १८५ ॥ For Private and Personal Use Only सांख्य मनम्. ॥ २२ ॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एमा विविहसंसयसंकियचित्तो खणं विगमिऊणं । सम्मं वियाणणट्ठा ओहिण्णाणं पउंजेह ॥ १८६ ॥ पारिवज्जपवन्नं अह देहं नियइ तं विगयजीयं । तेऽवि ससिस्से गंथत्थबाहिरे मुद्धबुद्धीए ॥ १८७ ॥ ताहे नियदंसणपक्खवायओ चत्तदेवकायव्वो । ओयरिओ आयासे सिस्साणं तत्थ (त) कहणट्ठा ॥ १८८ ॥ वरपंचवण्णमंडलमज्झगओऽदिस्समाणरूवो य । आसुरिपमुद्दे सिस्से भासह संबोहिऊणेवं ॥ १८९ ॥ अवत्ताओ वत्तं पभवइ इच्चाइ तत्तसंदोहं । तो सद्वितंतगंथं तं सोचा आसुरी कुणइ ॥ १९० ॥ अवोच्छित्तीय तओ जाया सीसप्पसीसवग्गस्स । एवं सति वित्थरियं सवत्थ तिदंडिपाखंड ॥ १९१ ॥ fasa हरिसियमणी ठाणाओ तओ गभ सुरावासं । तत्थ य अणण्णसरिसे पंचविहे भुंजए भोए ॥ १९२ अह सो मिरिई आउयखयंमि चइऊण बंभलोगाओ । दूरदिसागयनेगमपणियाउलविवणिमग्गमि ॥ १९३ ॥ परिसरदेसट्ठियसाहुवग्गपारद्धधम्म कम्मंमि । नीसेसगामतिलए कोलागे संनिवेसंमि ॥ १९४ ॥ जुम्मं । छक्कम्म निरयचित्तो वेयत्थवियारकुसरुबुद्धी य । जाओ जयपयडजसो नामेणं कोसिओ विप्पो ॥ १९५ ॥ सो विसयपसत्तमणो दचिणजणकयविचित्तवावारो । पाणवहपमुहगुरुपावठाणनिरवेक्खचित्तो य ॥ १९६ ॥ मिच्छत्तनिहयबुद्धी तिदंडिदिक्खं निसेविउं अंते । असीई उ पुत्रलक्खे सन्चाउं पालिऊण मओ ॥ १९७ ॥ For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरसेन परि०. श्रीमहा०18 अह सकयकम्मजणिए सुरतिरिपामोक्खविविहठागंमि । उववजिऊण यहुसो पसुब विवसो दुहामिहओ१९८ चरित्रे भमिऊण चिरं कालं भवंमि थूणायसंनिवेसंमि । माहणिमाहणपुत्तो जाओ सो पुस्तमित्तोत्ति ॥१९९॥जुम्मं । २ प्रस्ताव: तत्थवि चिरकालं निवसिऊण निबिनकामभोगो सो। परिवायगदिक्खं पडिवजेउण धम्मबुद्धीए ॥२०॥ ॥२३॥ काऊण तवं विविहं पालिय नियसमयसिद्धधम्मविहिं । सवाउयं च धरिउं बावत्तरिपुबलक्खाई ॥२०१॥ मरिऊण पुस्समित्तो तत्तो सोहम्मदेवलोगंमि । दिव्वाभरणविभूसियदेहो देवो समुप्पन्नो ॥ २०२॥ कालकमेण तत्तो चइऊणं चेइयंमि य निवेसे.। अग्गिजोओनामा(स)बभणो(अह)समुप्पन्नो ॥ २०३॥ सो य चउसद्धिं पुव्वलक्खाई परिपालिऊण आउयं गहिऊण परिवायगदिक्खं मरिऊग ईसाण देवलोगे मज्झिमाऊ तियसो होऊण चिरं कालं भोगे मुंजिऊण आउक्खए चुओ संतो मंदिराभिहाणसंनिवेसे सोमिलस्स बंभणस्स सिवभदाए भारियाए पुत्तत्तेण उववन्नोति, कयं च से अग्गिभूइत्ति नाम, सो य पत्तो तारनं, अन्नया है यतत्व संनिवेसे परिम्भममाणो समागओसूरसेणोणाम परिवायगो, सो कुसलो सद्वितंतसिद्धते वियक्खणोधम्मकहाव खाणे छेओ परचित्तपरिणाणे, तं चागयं सोऊण समागओ बहुजणो, आरद्धोय तेण नियदरिसणतत्तपरूवणापवंचो, आणंदियहियओ गओ य सट्ठाणं जणो, जाया पसिद्धी, वीयदिवसे अग्गिभूई अण्णो य लोओ आगओ तस्स सयासं, कया उचियपडिवत्ती, उवविट्ठो संनिहियपदेसे, कहिओ य तेण महया पगारेण नियदरिसणाभिप्पाओ, हरिसिया For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandir सबे, एत्यंतरे एगेण मणुसेण पुच्छिओ सो परिवायगो, जहा भयवं! मयलंछणे इव जणनयणाणंदे मुत्ताकलावेव सहरिसहरिणच्छिसिहिण(हण्डि)संवासोचिए नंदणवणे इव विविहविलासजोग्गे जलहिमिव लावण्णपुण्णे रसायलेब भयं-181 गसंगसमुचिए भग्गवम्महसोहग्गे किमरिसंमि तारुण्णे अणुट्टियं तुमए पब्बजागहणंति ?, न खलु मुणालतंतुरजू परिखमइ मत्तसिंधुरखंधबंधणपरिक्खेवं न यावि सहइ सहयारमंजरी जरढढेंकपरिक्खेवचरणभारं न य पभवइ धाराकरालकरवालसिहुल्लेहलीलं कमलदलं, न सव्वहा तुह एरिसी सरीरसिरी काउमरिहइ निद्वरजणजोग्गं तवचरणंति, केवलं होयषमेत्थ पणइणीविरहेण वा धणभंगेण वा सयणविप्पियदसणेण वा अण्णेण वा केणइ कारणेणं, बाद कोहलं दिमे, साहेह सव्वहा जइ न दूरमकहणिजंति । परिवायगेण भणियं--भद्द ! तुम्हारिसाणवि किं किंपि अकहणि जमत्यि, सुणसु जइ अत्थि कोऊहलं, अहं किर पुन्वं कोसंबीए नयरीए असंखदविणभायणं अणेगाणं दीणाण दुत्थियाण विदेसियाण भयंताण य सत्ताणं ताणदाणपरायणो आसि, अण्णया य रयणीए मे पसुत्तस्स सहसा समुच्छलिओ तुमुलो रखो, तओ संभंतोऽहं समुडिओ सयणीआओ जाव पेच्छामि आइडियनिसियखग्गे दढावब परियरे चावचककुंतपमुहाउहहत्ये हण हणत्ति भणते धरणियलगयंपि सयं निहित्तमिव अत्यसंचयं गिण्हमाणे । तहट्ठियाउ चेव तुरंगमंदुराओ अप्पायत्ताओ करेमाणे संमुहट्ठियं परियणं विविहप्पयारेहि विद्दवेमाणे कंस दोर्स घरवक्खरं च अवहरेमाणे जमसुहडे इव कलिकालमित्ते इव पावपियामहे इव भीसणे निकिवे मिलपुरिसे, ते य ARKKRIES For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरसेन श्रीमहा. दिगुण मरणभयविहुरेण सिग्धं अवकमिऊण मए वाहरिया आरखिया, त य जाव मत्ता इव मुच्छिया इव गयचे. चरित्रे यणा इव बहु बोलावियावि हुंकारमेत्तमवि न दिति ताव नायं मए नूणमेए ओसोवणिमंतेण वा ओसहपओगेण २ प्रस्ताव वा एएहिं चोरोहिं निहयचेयणा कया भविस्संति, कहमण्णहा एवं निदा विहवेजा ?, होउ वा ताव सजीवियं ट्र रक्खामित्तिपरिभाविऊण सणियं सणियं निल्लको एगत्थ वणगहणे, भिल्लावि भवणसिलाथंभाइयं मोत्तूण सेसं बराडमेपि गहाय गया, कमेण पहाया रयणी, उढिओ जणो, जाया पुरे वत्ता, आगओ लोओ अहं च, अवलोइयं गेहं जाव तत्थ एगदिणभोयणमेत्तंपि नत्थि, खीणविभवत्तणओ कलंतराइपउत्तंपि दविणजायं न पावेमि, जओ नत्थि कोऽवि निवाहो तो चिंतियं मए नीसेसजणपहाणतणेण ठाऊण एत्थ नयरंमि । संपइ कप्पडिओ इव कह निवसंतो न लज्जामि ॥२०४॥ दीणाण दुत्थियाण य दाउं भोयणविहिं कुणंतस्स । इहि तु निओदरभरणमेत्तनिरयस्स का सोहा १ ॥२०५॥ कह वा तुरगारूढो पुट्विं भमिऊण पुरिसपरियरिओ । वञ्चिस्सं एगागी इण्हि तु पयप्पयारेण? ॥२०६ ॥ कह वा सहपंसुकीलियबंधवलोयस्स वंछियत्यस्स । अविपूरितो जीयं निरत्थयं उबहिस्सामि ॥ २०७ ॥ दुव्यहगवुदुरवइरिविसरदुब्बिसहदुव्वयणजायं । पन्भठ्ठलठ्ठविभवो पञ्चक्खं कह सुणिस्सामि ॥ २०८॥ ता मोत्तूण इमं ठाणं देसंतरं वचामित्ति चिंतिऊण चलिओऽहमुत्तरावहाभिमुहं, कालंतरेण पत्तो एगंमि सन्नि बAR KESUSAST ॥२४॥ For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५ महा० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वेसे, भिक्खापरिब्भमणेण कया पाणवित्ती, बुत्थो तत्थेव किंचिकालं, अण्णदिवसे य दिट्ठो मए एगो तिदंडी, चंदिऊण सङ्घायरेण उवविट्ठो से समीवे, पुच्छिओऽहं जहा मए तहा तेणवि नियवइयरं, निवेइओ य मए संखेवेण, तिदंडिणा भणियं पुत्त ! परिचयसु सोयसंताचं, अणुसरसु धीरत्तणं, सबसाहारणो हि एस वइयरो, किं च किं वयणिज्जं जं निंदिए जणे नो थिरत्तणं कुणइ १ । पुरिसुत्तपि लच्छी छडइ महिलब दुखीला ॥ २०९ ॥ नो सुइकुलं न रूवं नो विष्णाणं न विक्कमं न बलं । बालब गयविवेया अवेक्खए किंपि मुयमाणा ॥ २१० ॥ अहवा जलनिहिकल्लोलसंग संलग्ग चंचलत्ताए । कोत्युह मणिसहजम्मणवह्नियदढनिरत्ताए ॥ २११ ॥ मयलंछणसमसी (सा) सियम इलाणुस्सरणबद्धसीलाए । सुरगइतुरंगसंगइ दुरुज्झियवरविवेयाए ॥ २१२ ॥ दुस्सहविसमेत्ती (व) सदावियप जंतदुहविवेगाए । कंबुसिणेहसमुच्छूढ गाढकुडिलत्तबुद्धी ॥ २१३ ॥ तह पारियायपणयप्पभावजडजा यपक्खवायाए । निश्चं लवणोयहिवासमुक्कमधुरतभावा ॥ २१४ ॥ एयाए सचरियं कहं हवेज्जा महाणुभावाए ? । न हि विसरिस संसग्गी विसिद्वगुणसाहणं कुणइ ॥ २१५ ॥ ता चयसु सोगमहुणा पोरुसमुहसु कुणसु करणिज्जं । न हि विष्णायसरूवे गुप्पंति कर्हिपि सप्पुरिसा २१६ किं भद्द ! तुमं एगो इमीए मुको? जमेवमइगरुथं । संतावं वदसि न पत्तकालमा समायरसि ॥ २१७ ॥ भणियं च मए भयवं ! किं पुण एत्तोऽवि पत्तकालं मे ? । तेण कहियं ! महायस ! निच्छअओ सबहा धम्मो ॥२१८॥ For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandir श्रीमहा० चरित्रे २ प्रस्तावः ॥२५॥ SAGACASSE यविउत्ताण जओ विहडंति समुद्धरावि रिद्धीओ। एएण संपउत्ताण हुंति दूरं पलीणावि ॥ २१९।। एयं च मए आयन्निऊण संजायभवविरागेणं । एसा तिदंडिदिक्खा पडिवत्रा दुखनिम्महणी ॥ २२० । राजता भद्द! तए वेरग्गकारणं जं पुरा अहं पुट्ठो। तं एयं तुह सिटुं एत्तोच्चिय कुणसु धम्ममई ॥ २२१ ॥ एत्थंतरंमि एवं सोचा ओभिन्नवहलरोपंचो । पुणरुत्तनिवेसियपारिवजदिक्खाभिमुहबुद्धी ॥ २२२ ॥ सो अग्गिभूइनामो मिरीइजीवो तिदंडिणं नमिउं । भालयलनिमियपाणी पपंपिउं एवंमाढत्तो ॥ २२३ ॥ भयवं! जाए बेरग्गकारणे तारिसंमि तुम्हहिं । दिक्खापडिवत्ती विहिया तं सम्ममायरियं ॥ २२४ ॥ एयस्स निसामणओ ममावि घरवासवासणा विमया । छिन्नो मायामोहो विवेयरयणंपि विष्फुरियं ॥ २२५॥ ता नियदिक्खादाणेणऽणुग्गहं कुणसु संपयं मज्झ । इय बुत्ते तेणं सो पवजं गाहिओ सहसा ॥ २२६ ॥ काऊण तवं तो सो धरि छप्पण्ण पुचलक्खाई। सघाउयं तदंते सणंकुमारे सुरो जाओ ॥ २२७ ॥ कालक्कमेण चविउं सेयवियाए पुरीऍ पवराए । भणकुले पसूओ भारदाओत्ति नामेण ॥ २२८ ॥ तत्थवि सकम्मजणिए सुहदुक्खे भुंजिऊण थेरत्ते । पुबक्कमेण पुणरवि पारिवजं पवजेइ ॥ २२९ ॥ ॥२५॥ काऊण य बालतवं कुदेसणापावधूलिपडलेणं । अवगुंडिऊण बाढं रम्मन्ताणं व बहुकालं ॥ २३०॥ सघाउयमणुपालिय चउयालीसं तु पुत्वलक्खाई। पंचत्तगओ संतो तियसो होऊण माहिदे ॥२३१॥ For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निम्मलमणिरयणमउहजालउज्जोविए विमाणंमि । नियपरियणपरियरिओ कीलइ सच्छंदलीलाए ॥ २३२ ॥ आउक्खपण तत्तो चविउँ सो मणुयतिरियजोणीसु । नरयकुदेवेसुंपिय पुणरुत्तं परिभमे ऊण ॥ २३३ ॥ रायग्गमि नयरे दियवरकविलस्स कंतिमइयाए । गिहिणीए गग्भम्मी पुत्तत्तेणं समुप्पन्नो ॥ २३४ ॥ जाओ समुचिअसमए नामपि य थावरोत्ति से विहियं । सत्तेण य गत्तेण य कुमारभावं च वोकंतो ॥ २३५ ॥ अणवरय मरणजर जम्मवाहिदुहनिवहपीडियं लोयं । दट्ठूण काउकामोवि धम्ममइमोहमुढो सो ॥ २३६ ॥ नो वच दुकरतवविहाणनिरयाण जिणमुणिंदाणं । पासंमि कयावि हुनेव अन्नतित्थियजणस्सावि २३७ जुम्मं । एवं अच्छंतो सो पेच्छ एवं तिदंडिणं समणं । चिविडियनासावंसं भग्गोडउडं दलियदसणं ॥ २३८ ॥ कुमुयं व चंददंसणवसेण कमलं व दिणयरुग्गमओ । सालत्तयतरुणचरणताडणाओ असोगुव ॥ २३९ ॥ तं पासिऊण वियसंतनयणनलिणो परं पमोयभरं । अइदुलहवलहसंगमे व सो पाविओ झत्ति ॥ २४० ॥ पइजम्मपरिव्वायगदिक्खागहणुग्भवंतुनेहाओ । तत्तपरिपुच्छणट्ठा तस्स सगासं समलीणो ॥ २४१ ॥ नमिउं चरणे सायरेण सो पुच्छिओ य धम्मविहिं । जोगोत्ति कलिय तेणत्रि तिदंडिणा साहिओ तस्स २४२ अन्नं य इमं सिद्धं जहाऽहमिह दुक्खिओ ठिओ पुत्रिं । विसयपिवासाणडिओ कुसलेण तहा न ठायचं ॥ २४३ ॥ अह थावरेण भणियं भयवं ! कह तं ठिओ इह दुहत्तो ? । विसयपिवासानडिओ कहेहि कोऊहलं मज्झ ॥ २४४ ॥ For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीमहा० चरित्रे २ प्रस्तावः ॥ २६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भणियं च तेण भद्दय ! सुणसु पुरा बिसयसलिलप डिहत्थं । अन्नाणमीणभीमं विसोत्तियालोलकल्लोलं ॥ २४५ ॥ निलजिम जलवेलाविलासमवसत्तदुत्तरावत्तं । पावविकपणपंकं निस्संखपवंचसंखउलं ॥ २४६ ॥ अभिमाणघोरघोसं पयंडकंदप्पवाडवग्गिसिहं । दोसघणपडलकिन्नं तारुण्ण महन्नवं पत्तो ॥ २४७ ॥ तीहिं विसेसयं । तवसेण य परिचत्तसगिहसंवासो दूरुज्झियसयणबंधवो परमतावसो इव विसहृकंदो नयणासु पवरपओहरासु महाभोगसालिणीसु समुल्लसंत कल्लोल बाहुविलासासु हंसगाणुसरियपयकमलासु सालसकुलकलवासु सरसीव सुंदरासु विलासिणीसु कयाभिरई समाणो एगया अणंगसेणाभिहाणाए बेसाए समं वुत्थो बहुं कालं, तदणुरागवसेण य पवरभूसणदाणेण अणवरयमहा मोलदोगुलसमप्पणेण तंबोलफुलविलेवणोवणयणेण य निदुवियं पियापियामहपमुहपुरिसज्जियं दविणजायं, जाओऽहं निद्धणचंगो, मुणिओ दाइगाए, तओ निप्पीलियालत्तयं व पयत्तपीयवारुणीचसगं व भुत्तावसेस भोयणं व तेहिं तेहिं अवमाणकारणेहिं परिचत्तो म्हि तीए, तयणंतरं निग्गओऽहं वेसाधराओ, गओ नियगेहे, दिट्ठे च तमणेगच्छिदसयसंकुलं पञ्भट्टपुवसोहं मसाणं व भयजणगंति, तओ महाविसायाभिभूओ पयट्टो देसियालिए, गच्छंतेण य पइदिणं एगत्थ सुन्नसन्निवेसे दिहं भूमिनिवडियं रक्खावलयं, गहिउं मए विहाडियाओ निविडजउज डियाओ रक्खागंटिओ, दिहं च एगस्स मज्झनिहित्तं लिहियपवरक्खरं भुज्जखंडं, वाइयं च कोऊहलेण, - परिभाविओ य तल्लिहियगामनामदिसाभागलंछणसमेओ रयणकोडिप्पमाणनिहाणवइयरो, हरिसियमणेण संगो For Private and Personal Use Only स्थावरभवः परिव्राजकता. ॥ २६ ॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वियं च तं सवपयारेण, पट्टिओ तयणुसारेणं, पत्तो अकालखेषेण भुज्जलिहियंमि गामे, निरूविओ निहाणप्पएसो, अवलोइयाई लिंगाई, जाव सङ्घाणिवि लिहियाणुसारेण मिलंति, तओ मे पाउच्भूओ परमप्पमोओ, पसत्थनिसाए य दिसावलिपक्खेवपुरस्सरं खणिउमाढत्तो णिहाणपएसं जाव य हत्थप्पमाणमेत्तं तं न खणामि ताव समुट्ठिया उच्भडफडाडो भीसणा तडिसिहातरलललंतजीहजुयला मुहमारुयसंवलियजलणफुलिंगुग्गारदारुणा पुच्छच्छटाताडियधरणिवट्ठा दीवयसीहा फुरंतरत्तदित्तनेत्ता महाभुयंगा, तेहि य संदंसेहि व तडतडत्ति तोडियं मह सरीरं, निचिट्ठो महाविसावेगेण निवडिओऽहं भूमीए, विक्कता रयणी, ममाणुकंपाएव समुग्गओ भयवं दिणयरो, अवलोइओऽहं गामजणेण, विण्णायविसविगारेण य दयाए पडियारिओ, तहाविहोसहमंतकिरियाए जायं च पगुणं सरीरं, पुट्ठोऽहं गामजणेण रयणिवइयरं, कहिओ य मए तस्स जहट्ठियनिहाणवुत्तंतो, तओ तत्थेव वीसमिऊण कइवय वासराई पुणरांचे पत्थिओ एगदिसाए, अण्णया य गच्छंतस्स मिलिओ एगो पुरिसो, समाणसीलयाए य जाया मज्झ तेण समं मेन्ती, पत्थावेण य तेण एगंते सब्भावेण निवेइओ मम विवरप्पवेसजक्खिणीसाहणकप्पो, अन्भत्थिओ य सङ्घायरेण जहा- जइ तुमं सहाईभवसि ता विवरं पविसामो भोगगाढलोलुयाए पडिवण्णमेयं मए, तओ अखंउपयाणएहिं गया वलयामुहं नाम विवरं, विरइया से दुवारपूया, तप्पियाओ जोइणीओ, सुमुहुत्तनक्खत्तंसि गहाय वाढं पत्थयणं परिकलियहत्थपईवा पविट्ठा तत्थ, उच्चनीयठाणाणि वोलिता सणियं सणियं गया दूरदेसं, दिट्ठा य For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीमहा० चरित्रे २ प्रस्तावः ॥ २७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir झडत्ति एगत्थ विज्जुपुंजभासुरा पवरकणगसिंहासणनिधिट्ठा एगा जक्खकन्नगा, अविय गंडयलललं तुज्जलकुंडलकिरणोलिविच्छुरियवयणा । नाणामणि (मय) भूसणस सिरियरेहंत देहलया ॥ २४८ ॥ आमलयथूलमोत्तियनवसरहारावरुद्धघणवट्टा । पष्फुल्ल मणहर (हरा) वम्महतरुतरुणसाहब ।। २४९ ॥ पायलसिरिव रइव देवरमणिच जणियमणमोहा । ललियकरकलियलीलासरोरुहा सुंदरावयवा ॥ २५० ॥ भुवणच्छेरयभूयं रूवं दहुं अदिट्ठपुत्रं से । मयरद्धपसरविहुरा अम्हे तप्पासलीणा ॥ २५९ ॥ सावि अम्हे आगच्छते पेच्छिऊण सन्निहियपज्जलंतपयंडजालाकराले झडत्ति कुंडे पचिट्ठा, अम्हे गुण महामोग्गराहया इव विद्दाणवयणा चिंतिउं पवत्ता - किं पच्छाहुतं नियत्तामो उयाहु तत्थेव तदंगसंगसंलग्गलायन्नपुन्ने जलकुंडे पयंगो इव अत्ताणं खिवामो ?, केवलं दारुणो दहणो खणद्वेणवि दहइ देई, संसइओ य तीए सद्धिं मीलगो, जीवंता पुणोऽवि महाई पेच्छिस्सामो, ताव सहसच्चिय एगनिकुंजाओ कुंजरोव गरुयंगभारी अंगभारधरहरियधरणितलो धरणितलताडणसमुच्छलंत पडिसय सह स्स वहिरियदिसा भोगो दिसाभोगप सरंतकज्ज लगवलगुलि| यालिवलय कालप्पभाजालो करधरिय महंतनर सिरकवालो कालरतिजणगो इव दुप्पेच्छो वयणेण व धूमवर्त्ति मुय| माणो फारफुंफारर उद्दकसिणभुयंगबद्ध केसभारो समायओ तं पएसं झडत्ति खेत्तवालो, तओ तेण अयंतरोसारुणच्छेण पेच्छिऊण भणिया अम्हे रे रे पुरिसाहमा ! विहसीलसमायारा कायरडियमेत्तवित्तसियसरीरा किं नियचित्तावभं For Private and Personal Use Only स्थावरभवः परिवाज कता. ॥ २७ ॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न जुणह ? जं एत्थ आगया, ता एहिमभह दुवियफलति भणिऊण पणपणुण्यष्णिपण्णं व भरण कंपमाणा सहसचिव चरणे धरिऊण बालच्छगलगाव अम्हे महया वेगेण उल्हालिया तो पएसओ, frafter a याहविवरदुवारभूले, तओ समागयमहानिदावेगा इव गनिकण जामिण समुग्गयंसि दिपयरे उन्मीलियनयणकमला परिचितिउं पवत्ता - अहो को एसप्पएसो ? केणेहाणीया ? कहं या धरणीए पत्ता ? कत्थ वा तं विवरं १ कहिं वा सा कण्णगा ? । सुमिणं माया वेयं विभीसिया व ? महविष्भगो भावि ? । एवं चिर संसइया होऊणं मुणियपरत्था ।। २५२ ।। । ठाणाउ त चलिया पत्ता वेण्णायडंमि नवरंमि । तत्थवि विज्जासिद्धो दिट्ठो सिवसुंदरी नाम || २५३ ॥ तो बहुप्पियारं विणणाराहियो पयत्तेणं । तुद्रेण तेण दिण्णो मज्यं कचाइणीमंतो ॥ २५४ ॥ कहिओ य साहणविही तओ भए चंडिगाऍ गेहंमि । गुरुणा जहोवइट्टो पारद्धो जाव होमविही ॥ २५५ ॥ साहसरहियत्तणओ तण गकंपेवि भयविसिटुस्स । विद्वत्तणओच्चिय मंतसाहणं मम कुतस्स ॥ २५६ ॥ उत्तालुत्तालकरालकालवेयालचंडपरियरिओ । एगो महापिसाओ सहसचिय उडिओ भीमो ॥ २५७ ॥ जुम्मं । ता तारिसविगरालदंसणुप्पण्णमरण भयविहुरो । विस्सुमरियमंतपओ पहाथिओऽहं सहितं ॥ २५८ ॥ तेणावि धिस्सिक्खि ओत्ति भणिऊण विषयसंकेण । अइलंवपाणिण करिसिऊण नीओ सिवाऍ पुरो ॥ २५९ ॥ For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org + श्रीमहा. चरित्रे २प्रस्ताव: स्थावरभव: परिव्राजकता. +CRECECREC ॥२८॥ ताहे मुट्ठीऍ हो तहा जहा चिविडिया ममं नासा । अन्नेऽवि अग्गदंता भग्गा निभग्गरूवेण ॥ २६॥ ता भो महायस! तए जं पुट्ठोऽहं सवइयरं पुर्व । सो एस जइ न पत्तिजसीह ता पेच्छ मज्झ मुहं ॥ २६१ ॥ अह थावरेण भणियं भयवं! पचक्खदिस्समाणेऽपि । भोगपिवासादोसै को मइमं नेव पत्तियइ ? ॥ २६२ ॥ जुत्तं तुम्हहिँ कयं अहंपि काउं इमं समीहामि। ता अणुगिण्हह संपइ पारिवजप्पयाणेणं ॥ २६३ ॥ दिण्णा य तेण दिक्खा जाओ सो धम्मकरणनिरयमणो। दढतवियदुस्सहतवो मिच्छत्तविलुत्तबोहेणं ॥२६॥ चोत्तीसपुष्पलक्खे सबाउं पालिऊण पजंते । मरिऊण बंभलोए उववण्णो भासुरो तियसो ॥ २६५ ॥ नियबुद्धिसिप्पिकप्पियतिदंडिदसणपरूढनेहेणं । पारिवज्जग्गहणं छब्भवग्गहणाइ संपत्तं ॥ २६६ ॥ सकुलपसंसावइयरनिबद्धदढनीयगोयकम्मेणं । माहणपमुहे नीए कुलंमि जम्मं च मिरियस्स ॥ २६७ ॥ दट्टण जिणवरागमविवरीयपरूवणं कुलपमंसं । दूरं परिवजह भो वियक्खणा! सबकालंपि ॥ २६८॥ इय बद्धमाणचरिए महल्लकल्लाणवल्लिपरियरिए । मिच्छत्तपंसुमइलियजणमणमलखालणजलंमि ॥ २६९ ॥ भरहसुयपढमपयडियतिदंडिपासंडसंसणागब्भो । भवजणविम्हयकरो सम्मचो बीयपत्यावो ॥ २७० ॥ ॥ इति गुणचंदसूरिरइए सिरिमहावीरचरिए वीयपत्थाको सम्मत्तो ॥ ENCCCCCCCCCCALA R UAR ॥२८॥ For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandir 64%*% (ततीयपत्थावो) तिइंडिभवसमेया भणिया वत्तवया य मिरिइस्स । एत्तो य जहावित्तं साहिजइ विस्तभूइस्स ॥१॥ इहेव जवुद्दीवे दीवे भारहवाससिरसेहरोयमे पइदिणभवंतविविहमहूसवे नीसेसनयरविक्खाए रायगिहे नयरे पढमो सोंडीरचक्कस्स वल्लहो गुणिवग्गस्स सम्मओ पयइलोयस्स पाणप्पिओ पणइजणस्स भुयरंडलीलारोवियभूमिभारो विसुद्धबुद्धिपगरिसवीमंसियधम्मवियारो विस्सनंदी नाम नराहिवो, मयणलेहा नाम से भारिया, विसाहनंदी कुमारो, तहा परूढगाढपेम्माणुबंधो सरीरमेत्तविभिण्णो विसाहभूती जुवराया, तस्स रूबाइगुणरयणरोहणधरिणी धारिणी नाम देवी । इओ य सो मिरिइजीवो बंभलोगाओ चुओ संतो चउग्गइयं संसारकंतारमणुपरियहिऊण अणं-12 तरभवजणियतहाविहकुसलकम्माणुभावेण समुप्पण्णो तीसे गम्भंमि पुत्तत्ताएति, अण्णया पसओ विसिटे वासरे, कयं विस्सभूइत्ति से नाम, कमेण परिचत्तबालभावो गाहिओ सो पिउणा कलाकलावकोसलं, तारुणमणुप्पत्तो परिणाविओ बत्तीसं सुररमणीविन्भमाओ पवररायकुलसमुन्भववालियाओ, ताहि य समं बहुप्पयारं कीलंतो कालं गमेइत्ति । अण्णया य सयलतइलोयदरिसियवियारो तरुवराणपि विहियलावण्णो मुणीगंपि कयचित्तचमक्कारो समागओ महुमासो, जत्थ य पोढपुरंधिथोरथणमंडलपडिहयगमणवेगओ। पिययमविरहविहुरतरुणीयणदीहरसासतरलिओ ॥२॥ **%*%*% SA For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RAA श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्ताव: ॥२९॥ %E0% चंदणनीवकुमुयकमलायरकुवलयगंधबंधुरो । दाहिणपरणुदिसिहि पवियंभइ नावइ गंधसिंधुरो ॥ ३ ॥ अण्णं च-चंचलचरणचलणपरिवोलिरमंजुलकणपने उरं। करयलरणझणंतमणिकंकणकलरवपसरमणहरं ॥४॥ कणिरनियंबविंबकंचिगुणकिकिणिधालयलालयं । सहइ वरंगणाण चाउद्दिसिं चचरि चारुगीययं ॥ ५ ॥ एवंविहं महुसमयं दटुं विस्सभूई कुमारो समग्गविभूईए चाडुकरनरभडचेडपरिकिन्नो अंतेउरतरुणीजणपरियरिओ गओ पुप्फकरंडयं नाम उजाणं, जत्य तरुवराभोगे गायतित्व अमंदमयरंदबिंदुपाणपरवसभमिरभमरगुंजिएहिं 3 पणचंतिवं खरपवणुबेलिरमहलपलवभुएहिं हसंतिव डिंडीरपिंडपंदुरपरिष्फुडकेयइदीहरदलेहिं । जम्मि य जंबुजवीरखजूरसाहिंजणा, सजनालियरिफणिसप्पला अजुणा। खइरसिरिखंडकापूरपूगीतला, पीलुनिबंवलिबउयवडपिप्पला ॥ ६॥ कयलिनोमालियामाहवीसालयासलईसग्गनवनीवहिंतालया। बउलवंसालिताविच्छयाकच्छिया, सबकालंपि रेहति जलसुत्थिया ॥ ७ ॥ जंच-कहिंचि सहयारतरुमंजरीमंडियं, कहिंचि वेइलफुलंतगंधडयं । कहिंचि कंकेलिनवपल्लवालंकियं, नाइतरुणीकमालत्तयालंकियं ॥ ८॥ कहिंचि नवपाडलापुष्पनियराउलं, कहिंचि विरुटंतभमरावलीसंकुलं । PRAKAASA%AC% A AA-% For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कहिंचि वरमालईमउलमालचियं, नाइनियविहयदसणेण रोमंचियं ॥९॥ अण्णं च-कारंडहंसरगचकवायभारंडकीरकुरोहिं । जीपंजीवकञ्जिलजलवायसखंडरीडेहिं ॥१०॥ हारीयपंचवण्णयपारवपपमुहविविहपक्खीहि । सुसिणिद्धवंधवेहि व सेविजइ जंसयाकालं ॥ ११ ॥ जत्थ य वम्महदुस्सहसराभिघाएहिं जजरंगीओ । बालमुणालुप्पलसत्थरेसु सिसिरेसु रमणीओ ॥ १२ ॥ विणयंति विरहिणीओ दिणाई करपिहियसवणजुयलाओ। परहुयताररवारसियसवणमुच्छागमभएणं ॥१३॥जुम्म। रेहति जत्थ चंपयतरुणो नवकुसुमनियरसेहरिया। आरूढमयणजलणब्ब पहियनिवहाण दहणत्थं ॥ १४ ॥ खरपवणुद्धयमयरंदपिंजरं पेच्छिऊण रविबिंब । मज्झण्हेऽवि हु संझं संकंति रहंगमिहुणाई ॥ १५॥ जत्थऽक्खमयणदमणा तरुणो मुणिणो य सुमणसोयेया। सुहलवलीलालसिया भुयगीओ विलासिणीओ य ॥१६॥ तत्थ एवंविहमि उजाणे सो विस्सभूई कुमारो पवरतरुणीजणसमेओ अणिमिसाए दिट्ठीए पच्छमाणो वणलच्छि कोऊहलाउलियपरियणदेसिजमाणमग्गो काणणंतरेसु परिन्भममाणो सायरं पसीयह कुमार! पेच्छह इओ |मंजरिजइ सहयारावली इओ फुलंति मलियाओ इओ पल्लविजंति बालककिलिणो इओ कोरइजंति कुरुवयनिINउरुंबा इओ कुसुमिजंति कणियारनियरा इओ मउरिजंति पुन्नागाइसाहिणोत्ति, एवं उजाणपालेण निदंसिज्जमाण-IA तरुगणो वणकीलाए दिणाई गमेइत्ति । अंतरा य सुणेइ राइनीईसत्थाई विमरिसेइ गूढत्थपयाई अभिणयावेइ वि SACCUSA RAKARMACA%लवाल For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच ३ प्रस्ताव ॥३०॥ 8-81-२RAKAR सिट्टकविजणविरझ्याई नाडयाई भरहविजायियक्खणेहिं हावभावहत्ययाइपत्यावणपडुएहिं नाडइज्जपुरिसेहिं नि-1 विधभूतिसामेइ य वेणुवीणाणुगयं गायणजणाओ बहुघोलणप्पयारमणहरं पंचमगेयं, तहा एगंतदेसटिओ निसुणेइ दुईणं क्रोडा. सोवालंभवयणाई। कहं ? तीसे संकेयं संसिऊण पडिजुबइमणुसरतेणं । नाह! तए जाजीवं दिन्नो लहुयत्तणकलंको ॥ १७ ॥ सुहय ! तुह विरहदुस्सहसिहिपसमत्थं ममाहरंतीए । तीसे सरसीसुं निट्ठियाई नवनलिणिनालाई ॥ १८ ॥ परिसरसहयारुग्गवनवमंजरिखंडणेण पइदियहं । तीसे ताण निमित्तं घट्टा मज्झंगुलीण णहा ॥ १९॥ पच्चासण्णे कयविविहकलरचे नीलकंठकलयंठे । परिसंता मज्झ भुया पइक्खणं उडवंतीए ॥२०॥ एइ पिउ एइ पिउ एसो सो हवसुतं खणं धीरा। थक्का मेण्हि जीहा पुणरुत्तं वाहरंतीए ॥ २१ ॥ इय एरिसा अवस्था वट्ट तुह पणयिणीऍ दुविसहा । जइ जीवंति वंसि कुमार! ता तं लहुं सरसुं ॥२२॥ तहा कयाइ गोत्तखलियपरिकुवियकामिणीपसायणप्पवणवयणप्पवंचविरयणेण कयाइ सुयसारियासंलापवि-11 गोएण कयाइ परोप्परसवत्तिकामिणीकयकलहकोलाहलनिसामणेग कयाइ णाणाविहदूरदेसोबणीयापुवतस्संदोहदोहलगदाणेण, कयाइ संमयवणसिहंडितंडवावलोयणेण विविहं कीलइ । अण्णया य कुमारस्स कामिणीहि सम दुरोदरेण रमंतस्स समागओ मझंदिणसमओ। CACALCASALAMALS For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir R-ENERAL तओ अंतेउरसमेओ चलिओ जलकीलानिमित्तं, पत्तो काणणसरसीए, तयणंतरं चसरसीतडविडविसरावमुक्कझंपुच्छलंतसलिलभरं । झिलइ महलकल्लोलपेलणुवेल्लिरो कुमरो ॥ २३ ॥ मड्डाए तरुणीओ रणंतमणिमेहलाकलावाओ। खिप्पंति पराप्परपेल्लरीउ भयतरलियच्छीओ ॥ २४ ॥ करकलियकणयसिंगयसलिलपहारेहिं पोढरमणीओ। विद्दवइ कुमारो कोवभरियदरपाडलाहीओ ॥ २५ ॥ पियकरपुंसुल्लासिरनियंबतडतुट्टमेहलगुणाहिं । निवडतकिंकिणीहिं पलाइयं झत्ति बालाहिं ॥ २६ ॥ घोरघणघ(धा)मसमजलवट्टियपूराऍ झत्ति सरसीए । कमलाई वयणलायण्णनिजियाई व वुडंति ॥२७॥ इय विविहसलिलकीलाहिं कीलिउ जुवइसत्थपरियरिओ। ओयरिओ सरसीओगओ कुमारो नियावासं ॥२८॥ एत्यंतरे अत्थमिओ गयणचूडामणी दिणनाहो, मउलिया कमलसंडा समं माणिणीमन्नुणा, विप्पउत्ताई चकवायमिहुणाई सह मिहुणदिणविरहेण, पवट्टियाणंदा इओ तओ परिभमिउं पवित्ता कोसिया समं पंसुलिविलयाहिं, निलीणाई नियट्ठाणेसु सउणिकुलाई समं मुणिजणेण, तहा निसायरसेण्णं व भीसणं पसरियमंधयारं, मयर-15 द्धओघ विप्फुरिओ सबओ पढमप्पओसपईवनिवहाँ, एवं पयट्टे संझासमए कुमारो काऊण पओसकिवं तेहिं कोऊहलनम्मालाववंकमणियगीयाइविणोएहिं विगमिऊण खणंतरं पसुत्तो सुहसेजाए, कमेण य पभाया रयणी, समुग्गओ सहस्संसुमाली, उडिओ कुभारो सयणीयाओ, कयपाभाइयकायको पुषविहीए दोगुंदुगुव विलासिणीमझगओ विलसइत्ति । एवं च तत्थ सायंदिणमभिरममाणस्स सरंति वासरा । ६ महा For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद अन्नया य विस्सनंदिणो महारायस्स अग्गमहिसीए दास चेडीओ पुष्फलगहणथमागयाओ पुप्फकरंडगजाणं, विश्वभति दिट्ठो ताहिं विस्सभूइकुमारो अंतेउरसमेओ बहुप्पयारं तहा बिलसंतो, तं च दळूण समुप्पग्णगाढामरिसाहिं ईसी-16 क्रीडा प्रस्तावः४ सलभिजमाणमाणसाहि सिम्यमेव पडिनियत्तिऊण कहिओ रावग्गमहिसीए कुमारस्स काणणकीलावइयारो, खणंतरे य दीहं नीससिऊण गुणो भणियं ताहि---देवि! किं तुज्ञ जीविएणं ? किं या रजवित्थरेणं ? किंवा विभवेणं ? जर तुम्ह पुत्तो विसाहनंदी पुप्फकरंडगुजाणे न कीलेजा, एवं च आयन्निऊण अवियाररमणीयत्तणओ इत्थीसहा-1 वस्स अदूरदसित्तणओ मइपसरस्म अभीरुतणओ नियकुलकलंकुग्गमस्स पकओ महापरिकोवो देवीए, परिचत्तं भोयणं उझिओ सरीरसकारो पेसियो नियनियठाणेसु सहीवग्गो, कइवयदास नेडीपरिबुडा य पविठ्ठा कोवघरंमि, स्यणिसमए य समागयेण विस्सनंदिनरिंदेण देविं अपेच्छमाण पुट्टो कंचुगिप्पमुहो परियणो, कहियं च एगण-131 देव! अमुगंमि गेहे मिलाणक्यणकमला केणधि कारणेण देवी गयत्ति, तओ राया तमायनिऊण ससंभमं तत्थेवर गओ, दिडा य कोवेण मिसमिसंती उढसासरोगाउरव दीहं नीससंती देवी, दिनासणे आसीणो नराहियो भणिउमाढत्तो य-देवि! किमेरिसी अवस्था ? किमत्थ कारणं?, साहेसु परमत्थं, न ताव सुमरेमि थोपि निय-1 ॥३१॥ दुचरियं, न यावि ममाणुवित्तिपरायणो परियणोऽवि भणागपि अवरन्झइ तुज्झ, नेव य विविहरयणाभरणसंभारेहि खूणमत्थि, ता किं निरत्यओ एस कोवाडंबरोत्ति ?, देवीए भणियं-महाराय ! सचं चिय नत्यि केणावि पगारेण ACCASSESCRICS For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RECC शाखणं. केवलं किमेएण निरत्थरण सयलजणसामवणे ?, रावणा भणियं-किं पुण अनिरत्ययं सयलजणासामण्णं च?, देवीए भणिय-महाराय! पुप्फकरंडगुजाणे परिमोगो, राणा जंपियं-किं तेण तुज्झ?, देवीए वुत्त-तेण में पओयणं विसाहनंदिकुमारस्स रमणत्यंति, राइणा भणियं-देवि ! मा कुप्पसु, मुंचसु असदज्झवसायं परिहरपुर इत्थीजणसुलभ चावलं रामिक्खेसु नियकुलकमं, किंतुमए दिट्ठो कोऽवि अम्हाणं कुले सुओ वा एगंमि पुप्फकरंड गुजाणट्ठिए पुधिपि पविसमाणो ?, ता कहं पुक्युरिसागयं भवत्थं चूरेमि, सबहा अण्णं किंपि पत्थेसु, देवीए भहाणियं-महाराय ! गच्छ निययमंदिरं, उजाणलाभाभावे केत्तियमेत्ता अण्णपयत्वपत्थणा ? । रजेणं रहेणं धणेण सयण बंधवजणे। ससरीरपालणविन कजं किंपि मह एत्तो ॥ २९॥ जीवंतीबिटु नरनाह ! नाहमेयं तुहप्पसाएणं । जइ पुत्तं कीलंतं पेच्छामि तदाऽफलं जीयं ॥३०॥ नरनाह ! तुह समक्खपि नेस पुजइ मणोरहो जद मे। पञ्छा दूरे सेस भोयणमेत्तेऽपि संदेहो ॥३१॥ वजघडिओऽसि भन्ने जमेगपुत्तंपि परिभवदुहत्तं । दट्टण सुहं चिट्टसि अहह महानिरणुतायोऽसि ॥ ३२॥ | इय सलिलेहि व बहुविह्वयहिं णरिंदमाणसं तीए । तडमिव महानईए दुहाकयं नेहनिविडंपि ॥ ३३॥ रन्ना भणियं सुंदरि! मा संतपसु करेगु करणि । अच्छउ सेसं दूरे जीयंपिह तुझ आयतं ॥ ३४॥ एवं बहुं संठविऊण गओ नरिंदो अत्याणमंडमि, आहूया मंतिणो, साहिओ तेसिं रहमि समग्गो देवीको ACACANCSCRECR Swamma awr For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुनयःप्रपश्चश्व श्रीगुणचंद महावीरच० प्रस्तावः ॥३२॥ ववइयरो सकुलक्कमववत्था य, मंतीहिं भणियं-देव! वीसत्था होह, अम्हे गंतूण देविं परूवेमो, अणुनाया य राइणा गया देवीए सगासं, भणिया य अणेगप्पगारेहिं, न य कहंपि संबुज्झइ, तओ विलक्खवयणा समागया राइणो सगासे, भणिउं पवत्ता य-देव! निच्छयं देवी गाढजणियकोवा मरणंपि अभुवगमेजा, ता सबहा जहा तहा | अणुणयणजोग्गा, रन्ना भणियं-भो किमेवं वाहरह?, किं तुम्भे न जाणह अम्ह कुलक्कम ?-जमेगंमि रममाणे उजाणे अन्नो न पविसइ, वसंतमासपविट्ठो य मासग्गसो चिट्ठइत्ति, मंतीहिं भणियं-देव! जाणेमो, केवलं दुन्निग्गहो इत्थीमहागहो, राइणा सविसायं भणियं एगत्तो मजाया पल्हत्थिजइ कुलक्कमपरूढा । अन्नत्तो मरइ पिया आवडियं संकडमियाणि ॥ ३५॥ संपजइ धुवमहि अपत्तकालेऽविय विहिवसेणं । दढनेहबंधबंधुरबंधवजणचित्तविच्छेओ ॥३६॥ महिलायत्तो राया जुत्ताजुत्तं न पेच्छए किंपि । इय अवजसो दिसासु अखलियपसरो चिरं भमिही ॥ ३७॥ ता मंतिणो उवायं तमियाणि कुणह कंपि परिसुद्धं ।जह सा जीवइ देवी सकुलववत्था य निवहइ ॥३८॥ एवमायन्निऊण जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण ठिया एगते मंतिणो, सुनिउणबुद्धीए य सम्मं निच्छिऊण कजतत्तं साहियं नरिंदस्स, जहा-देव! एवं पत्तकालं किल पचंतराया देसमुस्सिखलो विद्दवेइ य, एतदत्थसंबद्धा लेहारिया कीरंति, ते य तुम्हाण लेहे समप्पेंति, तत्थावधारणाणंतरं पयाणयं च दवाविजइ, तहा कए खुम्भइ साम SGARLASCAMGAREMARA ॥३२ For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AUD ISASRAMERCASNA तवग्गो, कुमारोऽवि विनायवइयरो फुप्फकरंडगुजाणं मोत्तूण एइत्ति, एयं च उभयमवि सुपडि विहियं भवइ, एवमायन्निऊण अध्भुवगयं राइणा, उठ्ठिया मंतिणो, साहिओ देवाए एगंतट्टियाए एस वइयरो, सहरिसाए कयं तीए भोयणं, पमुक्को कोवाडंवरो, बीयदिवसे य लिहियकवडलेहहत्था उलियजंघा गाढपरिस्समकिलंता उवट्ठाविया मंतीहिं अपुच्चपुरिसा, नीया य रायसमीवे, खित्ता तेहिं लेहा, वाइया सयमेव राइणा, विनाओ तदत्यो, कवडको४ वफडाडोवपुव्वं च भणिया नियपुरिसा-रेरे पुरिसा! ताडेह सन्नाहभेरिं, नयरदूरे पइट्ठह गुडुरं आयह दिव्या उहाई समप्पह जयहत्थिं जेण करेमि पत्थाणंति वुत्ते तहत्ति निवत्तियं पुरिसेहिं, इओ य भेरीसहसवणओ संखुद्धं सामंतमंडलं पगुणीकया मयगलंतगंडत्थला कुंजरघडा, संबूढा सुहडसत्था, चउद्दिसिंपि पयहाई तुरयघटाई, मिलिया सेणाहिवइणो, किं बहुणा?-हलहलियं सयलं भूमंडलं, ठिओ पत्थाणंमि णरिंदो, एत्यंतरे अविनायपरमत्थो पत्थापट्टियमुवलब्भ नराहिवं निग्गओ पुप्फकरंडगुजाणाओ विस्सभूई कुमारो समागओ रायसमीचे निवडिओ चलणेसु पुट्ठो वइयरं, साहि उमारद्धो य नरिंदेण, जहा-वच्छ ! अत्थि पच्चंतसीमालो पुरिससीहो नाम मंडलाहिवो, सो य पुव्वं पणयभावं आणावत्तित्तणं पडिवजिऊण य संपइ दरिसियतिव्यवियारो निहयसीमागामजणो अम्ह मंडलमइकमइ, ता पुत्त! महंतो एस मे परिभवो । अविय सपियपियामहपमुहजियं महिं पेच्छिऊण हीरांति। कह सकलंक जीयं निरत्ययं संपइ वहामो? ॥ ३९ ॥ ACACARRRRROCREAL For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XM श्रीगुणचंद महावीरच ३ प्रस्ताव ॥३३॥ ESSAGAROSAROKASAMROSAG+ अजवि केऽवि सपुरिसा पयंडभुयदंडदलियपडिवक्खा । गिण्हंति परस्स महिं अम्हे न नियंपि रक्खामो॥४०॥181 भग्गुच्छाहं रिउवग्गनंदणं मुक्कचित्तवटुंभं । निवडियसहं च सीमंतिणीओ जणयंति किं पुत्तं? ॥४१॥ कुमार विज्ञप्तिश्व. ता पुत्त! पत्तकालं अवजसपंकप्पसमणगजलकप्पं । जरविहुरंगरसायणमहुणा सरणं रणे मज्झ ॥ ४२ ॥ एवं च रण्णा सिट्टे कोवदट्ठोटपुडो उठिऊण निवडिओ चरणेसु कुमारो, विनविउमाढत्तो य-ताय ! मुंचह है कोवसंरंभ, केत्तियमेत्तो सो दुरायारो ?, नहि लीलादलियमत्तमायंगकुंभत्थलो केसरी समोत्थरइ गोमाउयं, निय-1 कुलसिलोचयसमुचसिहरदलणदुल्ललियं निवडइ एरंडकंडे सहस्सनयणकुलिसं, नेव य पडिपुण्णमंडलहरिणकदि-11 णयरकवलणलालसो गिलइ तारयजालं गहकल्लोलो, ता पसीयह विरमह तुम्हे देह ममाएसं अवणेमि तुम्ह |पसाएण तस्स धट्ठसोंडीरिमस्स भुयदंडकंडं, न य अम्हारिसेसु विजमाणेसु जुत्तमेयं तायस्स, तुम्ह पयायोचिय | साहेइ कजाई। तहाहिपुन्यमहासेलुच्छंगसंगिणो उग्गमे व सूरस्स । दूरदिसिपसरियपि हु तिमिरं किरणचिय हणंति ॥ ४३॥ ॥३३॥ गंभीरगहिरघोसा विवरंमुहवाहिउग्गवइनिवहा । आगयगयाई रयणायरस्स वेलचिय करेइ ॥ ४४ ॥ उन्भडदंडुडामरविलसिरवरपत्तकोसगभाई। हिमगिरिणो कमलाई हणंति पवणुदुयतुसारा ॥ ४५ ॥ For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org इय भणिए गाढोवरोहेण दिण्णो आएसो राइणा कुमारस्स, पणामपुव्वयं पडिच्छिऊण दवावियं तेण पयाणयं, चलियं चाउरंग सेन्नं, कहं चिय? गंडस्थलपगलंतुग्गदाणधारंधयारियदियंता । चलकन्नतालवाडियमयगंधायद्वियदुरेहा ॥ ४६॥ अइघोरघोसगलगजिविहियखीरोयमहणसंकासा । उजलताराभरणा गयणाभोगव भासंता ॥४७॥ कयलीवणकयसोहा गेरुयरसलित्तवियडकुंभयडा । जंगमया कुलसेलब पत्थिया हत्थिणो सिग्धं ॥४८॥ चलिया य पवणवेगा खरखुरसिहखणियखोणिणो तुरया । फेणुग्गिरणमिसेणं जसं व कुमरस्स वियरंता ॥४९॥ करकलियकुंतकोदंडसेल्लभल्लयसुतिक्खकरवाला । सन्नद्धवद्धकवया पयंडभुयदंडबलकलिया ॥ ५० ॥ नियसोंडीरिमवसओ रिउसेन्नं जरतणं व विगणिता। सपहुप्पसायपरवसहियया जीएऽवि निरवेक्खा ॥५१॥ पइखणविमुक्कहक्कारपुक्कारक्करिसतुट्टसन्नाहा । गेहनियत्तियदइया चलिया दप्पुब्भडा सुहडा ॥५२॥ बहुविहपहरणभरिया रहनिवहा घणघणारवरउद्दा । सबपहेसु पयट्टा पवणुदुयधयवडाडोवा ॥ ५३॥ इय चातुरंगसेन्नं नरवइवयणेण वढियाणंदं । मुणिदाणजायपुन्नं व कुमरपासं समल्लीगं ॥ ५४॥ तओ भजतो गिरिसिहरावबद्धमहल्लभिल्लपल्लीओ निभच्छंतो जणवयविद्दवणवद्धलक्खं चरडपक्खं अवलोयतो नगनगरगामारामरमणीयं महीमंडलं पडिच्छंतो मग्गे सामंतसमप्पियं विविहालंकारकरितुरयपमुहं पाहुडं पत्तो AKARA%ACAKACA%AGARSA For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्ताव गमनं. ॥३४॥ CAR RIGANGA विज्झगिरिसमीवं, एगस्थ निवेसिओ खंधावारो, तो य पहाणवियक्षणपरियणाणुगओ चलिओ कोउहल्लेण विज्झ- विन्ध्ये गिरिमवलोइउं । अंतरे य उत्तंगमत्तकुंजरकुलाई पेच्छइ जहिच्छचाराइं। रेवातडरूढमहलसलईकवलणपराइं ॥ ५५॥ निसुणइ पेम्मभरालसजुबईपरिकिनकिन्नरावद्धं । करकलियतालकलरवसंचलियं पंचमुग्गारं ॥५६॥ निग्झरझंकाररवायण्णणघणघोससंकियमणाणं । तंडवमस्सिक्खियपंडियाण पेक्खइ सिहंडीणं ॥ ५७ ।। तयणंतरं च पुरओ पयहो समाणो गायंतं व पवणगुंजियसरेणं हसंतं व विप्फुरियफारफुलिंगुग्गारोहिं पणचं. तं व समीरपसरियमहलजालाकलावेहिं विलुलियसपासं व गयणंगणलंबमाणधूमपडलेण नियइ दारुणं दावानलं, तं च अइलंघिऊण कमेण पहाणपुरिसं व तुंगायारं सुवंसपडिबद्धं च, नरेसरं व वररयणकोसं जणाणुगयपायच्छायं च, काऊरिसं व दुसत्ताहिट्ठियं निहुरसरूवं च, महियाहिययं व दुलंघणिजं पओहरोवसोहियं च, आरूढो विंझगिरिं । तओ चिरं काणणेसु निज्झरेसु विवरेसु दुरारोहसिहरेसु कयलीलीलाहरेसु देवोवभोगुब्भडगंधेसु सिलावट्टएसु विविहमणोहरप्पएसेसु विहरिऊण परिस्संतो उवविठ्ठो एगंमि माहवीलयाहरे । एत्थंतरे पढियमेगेण चारणेण ॥३४॥ विझो साराणुगओ निचं चिय नम्मयाऍ परियरिओ । सारंगजणियसोहो गयकुलकलहो दयावासो ॥१॥ उच्छूढखमाभारो विबुहपिओ मयणसुंदरसरीरो। एवंविहो तुमं पिव कुमार! किं अभहियमेत्थ ? ॥ २ ॥ एयमा-12 For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 85%8C%98 AUCRUAR यन्निऊण परितुट्ठो कुमारो, भणियं च-अहो साहु सिलेससारं पढियमएण, ता देह एयस्स दीणारलक्खगं, जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण पडिवन्नं भंडागारिएण, खणंतरेण गओ नियआवासं । कयं पयाणयं, कमेण य पत्तो पर्चतदेसं, तहिं च पेच्छइ पमुइयपक्कीलियं गोमहिसिपसुकरहरासहपउरं धणधण्णसमिद्धं सुद्धगामागरनगरं नियजणजाणवयं, विम्हियजणेण य आहूया विसयमहत्तरा सिट्ठिणो य, तंबोलदाणाइबहुमाणपुरस्सरं पुच्छिया य लोयसुत्थासुत्थवत्तं, तेहिं भणियं-देव! तुम्ह भुयपंजरंतरनिलीणाणं अम्हाणं को सयन्नो मणसायि असुत्थयं काउंसमीहेजा?, न हि जीवियसावेक्खो पंचाणणगंधकेसरकुरलिं तोडेजा भुयगरायफणफलगमणि वा गिण्हेजत्ति, केवलं एत्ति-1 यमेव असुत्थं| जमेत्थ दावियसुद्धायारेहिं पणतरुणीगणेहिं, नयणचावपमुक्कडक्खियमग्गणेहिं । दिसिदिसिनिद्दयपहणिवि पइदिणु पंथियहुं, हीरइ हियउं हयासहि पहि पेक्खंतियहिं ॥१॥ विसयदोसदुहसंचयकहणपरायणह, धम्ममग्गु देसंतह पइदिणु मुणिजणहं । भोगुवभोगु जहिच्छइ गिहिं निवसंतएहिं, अम्हहिं करणु न लब्भहिं भवभयसंकियहिं ॥२॥ | इय निसुणिऊण कुमरेण दरवियसियकवोलं हसिऊण सुचिरं पसंसिऊण य तबयणविन्नासं दवावियतंबोला विसज्जिया सिटिणो विसयप्पहाणा य, तयणंतरं दूयवयणेण भणाविओ पुरिससिंघो, जहा-कुमारो तुह दंसणुस्सुओ % C 94 OACG For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच ३ प्रस्ताव ३५॥ पट्टइत्ति, एयमायन्निऊण य पुरिससिंघनरवइणा कुमारस्स आणयणनिमित्तं पेसिया नियपहाणपुरिसा, तदणुरोहण 31 पुरुषसिंहासमागओ कुमारो, पवेमिओ नगरंमि परमविभूईए पुरिससीहेण, काराविओ भोयणं, समप्पिया करितुरयसंदणा, भ्यागतिः. | उवणीयमण्णपि पभूयं दविणजायं, विन्नत्तो य भालतलघडियकरसंपुडेण तेण-कुमार ! गाढमणुग्गहिओम्हि तुमए जं नियचरणकमलेहिं पवित्तीकयं मह भवणं, ता कइवयदिणाई पडिवालेह एत्थेव, पुणोऽवि दुलहं तुम्हेहिं सह दसणंति भणिए वुत्तो कुमारण-भो नरिंद! अपुरो तुह पेम्मपवंचसारो पियालायो अणण्णविणयववहारो अच्छेरयभूया पडिवत्ती मणसावि अचिंतणिजं सजणत्तणं, ता एरिस तुह गुणगणेण गाढमागरिसियं मम खणखूणवि चित्तं, जइ पुण कइवय वासराणि तुमए सद्धिं वसामि नूणं न पहू परवसस्स नियचित्तस्रा हवामि, सच्चं च इमं पढि जइ-"अत एव हि नेच्छन्ति, साधवः सत्समागमम् । यद्वियोगासिलूनस्य, मनसो नास्ति भैषजम् ॥ १॥” ताऽणुजाणेसि में गमणाएत्ति वुत्ते दुस्सहतविओगसोगदमियमणोऽसुधरं हयगयरहसमग्गसामग्गीए अणुगच्छिऊण कुमारं वलिओ पुरिससीहो, कुमारोऽवि अक्खंडपयाणगेहिं चलिओ रायगिहनगराभिमुहं । इओ य विस्सनंदिणा नरिंदेण सो नियपुत्तो विसाहनंदी भणिओ ॥३५॥ वच्छ ! जहिच्छं वणलच्छिपेच्छणं कुण मयच्छिमझगओ। परिसंकं सक्कस्सवि अवहंतो एत्य उजाणे ॥१॥ एवमायन्निऊण विसाहनंदी कुमारो वढियाणंदसंदोहो पमुक्कनीसेसवावारतरो अंतेउरसमेओ विचित्तकीलाहिं For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie ACCALCURREARC% उजाणे संटिओ कीलइति । सो य विस्सभूई अणवरयमागच्छंतो संपत्तो रायगिहे, नियनियठाणे पेसियसामंतसेणावइपमुहपरियरो गाढाणुरागेण य चिरदसणुकंठिओ पुबप्पवाहेण पुप्फकरंडगुजाणे पविसिउमाढतो, भणिओ य दुवारदेसहिएण पडिहारेण--कुमार! न जुत्तं तुम्ह एत्थ पविसिउं, जेण विसाहनंदी अंतेउरसहिओ इह पविट्ठो है कीलइ, विस्सभूइकुमारेण भणियं-भह ! कइया पविठ्ठो ?, तेण भणियं-तुम्ह गमणाणंतरमेव, एवमायन्निऊण समु प्पन्नतित्वकोवभरारुणनयणो णिडालतडघडियभिउडिभासुरियवयणो तक्कालुच्छलियसेयबिंदुजलजडिलियसरीरो कुहमारो एवं चिंतिउमारद्धो- . पचंतकुद्धनरवइवइयरववएसओ धुवं पुधिं । उजाणाओ इमाओ नियबुद्धीए नीणिआरना ॥१॥ जेण सयं चिय दिट्ठो सो देसो सुत्थगामपुरगोट्ठो। परचक्कचोरअभिमरभयरहिओ धणकणसमिद्धो ॥२॥ ता नूणं नियपुत्तस्स कीलणटुं इमंमि उजाणे । अवजसपरिहरणत्थं कवडमिमं विरइयं सत्वं ॥३॥ बाढं अजुत्तमेयं आयरियं निच्छियं नरिंदेण । न हि विस्सासपरवसहिययंमि जणे घडइ माया ॥४॥ एवं खणं निग्गमिऊण तेण समुप्पन्नसमहिगकोवाइरेगेण तजिया विसाहनंदिपुरिसा-रे रे दुरायारा! मए अपरिचत्तेऽपि उजाणे केण तुम्हे पवेसिया? को वा तुम्ह पुरिसायारो ? कहं या अविण्णायपरक्कमा एत्य सच्छंदमभिरमह? मए निहयाणं कत्तो वा तुम्ह परित्ताणंति भणिऊण दुविसहाभिमाणपरन्चसयाए नियबलदंसणत्थं पहओ निट्टरमु AKACasteACAXCECRECREAM For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विश्वभूतेवैराग्यम्. श्रीगुणचंद द्विपहारेण फलभरपणयसाहो पकिहो कपिट्टपायवो, तदभिधारण य कुलसेलताडियं व थरहरियं मेइणीवटुं तुट्ट- महावीरचनिबिडबंधणाई निवडियाई सयलफलाई दंसियाणि य विसाहनंदिपुरिसाणं, सगचं भणिया य-रे रे पुरिसाहमा! 13जह एयाणि पाडियाणि तहा पाडेमि तुम्ह मुंडाणि, अवणेमि दुविणयसीलयं, विहाडेमि उजाणरमणकोऊहलं, केवलं लजेमि तायस्स वीहेमि नियकुलकलंकस्स विचिकिच्छेमि लोयाववायस्सत्ति भणिऊण उवसंततिब्बकोहावेगो है संवेगमग्गमुवगओ एवं चिंतिउमाढतो विसयपरव्वसहियया हीलं किं किं जणा न पेच्छंति । कत्थ व न दुकरंमिवि ववसाए संपयट्टति ? ॥१॥ को वा न आवयावत्तवट्टिया तिक्खदुक्खरिंछोली। दंभोलिनिविसेसा अतक्किया निवडइ सिमि ॥२॥ तुच्छोवि विबुहजणनिदिओऽवि को वा विमुक्कमज्जाओ।न करेजा दुविणयं विसयपसत्ताण सत्ताणं ॥३॥ विसयाणं पुण निधिग्घकारणं निच्छयं मयच्छीओ। विहिणा पावेण विणिम्मियाउ नणु केण कजेणं? ॥४॥ नूणं न दुग्गदुग्गइपडणदुहाई कयावि सुमिणेऽवि । पेच्छेजा मणुयजणो जइ जुवइपरंमुहो होजा ॥५॥ पासव्य करिवराणं हरिणाण व वागुरा विसमबंधो। पंजरमिव विहगाणं पईवकलियब्व सलभाणं ॥६॥ मीणाणं जालंपिव जणाण सेच्छापयारसुहियाणं । अहह विसमं महंतं महिलाजंतं कयं विहिणा ॥७॥ अविय-नवमालइपरिमलमंसलोवि नवसुरहिकुसुमवरगंधो । किं कुणइ तेसि जेसिं मणमि नो वसइ हरिणच्छी ॥८॥ SARALAKANGRESE ॥३६॥ For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अइरेगुद्दीवियवम्महोऽवि निम्महियसयललोओऽवि । जुबईविरत्तचित्तं नो चालइ मलयपवणोऽवि ॥९॥ सरयनिसायरकिरणुजलावि नो कोमुई मणागंपि । दावेज वियारं पंचवाणवलदलणधीराणं ॥१०॥ जोव्वणतिमिरच्छाइयविवेयनयणो पुरा गिहे वसिओ। अहह कहं दुट्ठमई निरत्ययं एत्तियं कालं? ॥ ११ ॥ अहवा किमइक्वंतत्थसोयणेणं निरत्थएणं मे । अजवि किंपि न नटुं करेमि सद्धम्मकम्ममहं ॥ १२॥ एवं च गरुयसंवेगावन्नमाणसो सबहा पवड्डमाणविसयविरागो निच्छियसंसारासारत्तो गओ संभूइसूरिस्स पासे, जो +य केरिसो? अइपसत्वगुणरयणसायरो, तेयरासिना वइ दिवायरो। सोमयाए संपुन्नचंदओ,जो विसुद्धसुहवेलिकंदओ ॥१॥ मेरुसेलसिहरव निचलो, संघकजभरवहणपच्चलो । सुरनरिंदपणिवयसासणो, दुटुकामतमपडलणासणो ॥२॥ तवऽग्गिदडपावओ विसुद्धभावभावओ, सया तिगुत्तिगुत्तओ पसत्थलेसजुत्तओ। पयंडदंडवजिओ जिणिंदमग्गरंजिओ, पणट्ठमाणकोहओ विणीयमायमोहओ ॥३॥ जणाण वोहकारओ कुतित्थिदप्पदारओ, अपुवकप्परुक्खओ पणट्ठसत्तुपक्खओ। मुर्णिदविंदवंदिओ असेसलोयनंदिओ, अणेगछिन्नसंसओ पणसव्वदोसओ ॥४॥ तस्स एवंविहस्स गुरुणो पलोयणेण समत्यतित्थदंसमपुयपावं पिवऽप्पाणं मण्णमाणो सब्वायरेण पणमिऊग SANGRASACARANARAA ७मक्षा For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः ॥३७॥ ROSSLICHOKISHO** चरणकमलं उवविठ्ठो सन्निहियभूमिभागे, गुरुणावि पारद्धा महुमहणापूरियपंचयण्णरवाणुकारिणा सरेण धम्मदे-18 संभूतिसरेसणा। जहा रुपदेश: संसाररुंदरंगे सइलूसेहिं व चित्तरूवेहिं । सो नत्थि किर पएसो जीवेहि न नच्चियं जत्थ ॥१॥ चउगइजलपडलाउलभवण्णवेऽणेगसो करेंतेहिं । दुहिएहिं मजणुम्मजणाई कुम्मेहि व कहिंपि ॥२॥ आरियखेत्तुप्पत्ती नो पाविज्जइ पभूयकालेऽवि । तीएवि हु पत्ताए कहिंचि कम्मक्खओवसमा ॥३॥ धम्मत्थकामसाहणकारणमेगंतियं न मणुयत्तं । पावंति पावविहया भममाणा विविहजोणीसु॥४॥ लद्धेऽवि तत्थ जरकाससासकंडूपमोक्खदुक्खेहिं । निहयाण धम्मकम्मुज्जमोऽवि दूरेण वच्चेजा ॥५॥ नीरोगत्ते पत्तेऽवि रुद्ददारिदविदुयसरीरा । उदरभरणत्थवाउलचित्ता वोलिंति नियजीवं ॥६॥ इस्सरिएऽविहु बहुदविणवद्धणारद्धविविहवावारा । लोभेण भोयणंपिहु काउंन तरंति वेलाए ॥७॥ संतोसेणवि मिच्छत्तपंकयसरेण मइलमइविभवा । सव्वण्णुमयं सम्मं सुयंति नेवावबुझंति ॥ ८॥ सवण्णुधम्मबोहे जाएऽवि हु कम्मपरिणइवसेणं । नीसेसगुणावासो गुरूवि न कहिंपि संपडइ ॥९॥ ॥३७ लद्धेऽवि गुरुमि समत्थवत्थुवित्थारपयडणपईवे । सिद्धिपुरपरमपयवी न पयट्टइ तहवि विरइमई ॥ १०॥ तीएवि तिक्खबहुदुक्खलक्खनिरवेक्खकारणं पायो । पसरंतो न पमाओ खलिउं तीरेइ वणकरिव ॥ ११॥ For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org इय उत्तरोत्तरमह प्पबंध हे उप्पसाहणिजंमि । मोक्खसुहे घण्णाणं केसिं पि मणो समुल्लस ॥ १२ ॥ अन्नेसिं एवंविहसमग्गसामग्गिसंभवेऽवि मई । उप्पज्जइ संसारियसुहेसु विरसावसाणेसु ॥ १३ ॥ को वाऽवि सहेजा को या नामपि तेसिं गिण्हेजा । जे भोगामिसगिद्धा रति इह सारमेयव ॥ १४ ॥ अविय - जो व्वणपडलच्छाइयविवेयनयणा मुणंति तरुणीण । केसेसुं कुडिलत्तं न उणो तासिं चिय मणमि ॥ १५ ॥ बहुहारावुद्दामं उभडनासं सुदीहरच्छं च । पवियंभियसत्तिलयं नियंति वयणं न उण नरयं ॥ १६ ॥ परिणाहसालिवित्तं सिथि (घ) णेसुं न धम्मबुद्धिसु नियंति। पेहंति तणुयमुयरं साणंदा न उण नियआउं ॥ १७ ॥ सुरमणुयगईपरिहंपि सुंदरं भुयजुयं पसंसंति । जंघोरुजुयं अइअसुइयंपि उवमिंति रंभाए ॥ १८ ॥ to भो देवाप्पिय ! विप्पियहेउंपि जुवइजणदेहं । मणमोहणवम्मह चुण्णपुण्णचित्ता अभिलसंति ॥ १९ ॥ तेच्चिय पमाणमवलंबिऊण भोगेसु को पयट्टेज्जा ? । कुपहपवण्णो किं होज कोइ कुसलाणुसरणिजो १ ॥ २० ॥ नवजोवणोऽवि निष्पडिसरूवकलिओऽवि लच्छिनिलओऽवि । पवरविलासीवि तुमं भद्द! धुवं धम्मजोग्गोऽसि२१ तेणेवंविहपवरोवएसरयणाई तुज्झ दिज्जंति । न कयावि पुण्णरहिया चिंतामणिलाभमरिहंति ॥ २२ ॥ इय भणियंमि गुरूहिं समहिगसंजायधम्मपरिणामो । भत्तिभरनिब्भरंगो कुमरो भणिउं समाढत्तो ॥ २३ ॥ भयवं ! सव्वमसेसं कहियं तुम्हेहि सिवसुहकएणं । ता सम्मं पव्वज्जं निरवज्जं देहमह इहि ॥ २४ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद ___ एवं च भणिए सो गुरुणा समुज्झियरयणाभरणो अंगीकयगुरुचरणसरणो सिद्धतभणियविहाणेण गाहिओर विश्वभूतिमहावीरच० जिणिददिक्खं सिक्खविओ पइदिणं कायवकलावं जाणाविओ सिवसुहनिघणं संजमधणं पाढिओ सामाइयप- दीक्षा. ३ प्रस्तावः मुहं सुत्तति । इओ य कुमारपब्वजासवणवजासणिताडणुप्पण्णपरमसोगो अंतेउरसमेओ समं जुवराएण समागओ ॥३८॥ विस्सनंदी, सविणयं सूरि वंदिऊण पणमिओ अणेण विस्सभूई साहू, भणिओ य सोपालंभं सप्पणयं च एसो-पुत्त ! किं जुत्तमेयं पवरकुलुप्पन्नाणं तुम्हारिसाणं ? अनिवेइऊण नियवुतंत्तं जमेवंविहं दुकरं साहुकिरियं पडिवण्णोऽसि, ता| वच्छ ! साहेसु को तुज्झ चित्तनिवेयहेऊ ? किं वा अम्ह दूसणं पडिवण्णो ? केग वा तुम्ह वयणं पडिकूलियं ?,किमेवं एकपएचिय अदक्खिणत्तणमन्भुवगओऽसि ? हवउ वा सेसपणेण, तुमं विणा कस्सेयाणिं अम्हे सकजं साहिमो ? विसमावयानिवडियाणं को वा आलंबणं?, ता सव्वहा अज्जवि परिचयसु पयजं पडिवजसु रजं कीलेसुई जहिच्छं पुप्फकरंडगुज्जाणे मा पूरेसु सत्तुमणोरहे मा अणाहीकरेसु बालकमलिणीवणं व सस्सिरीयं बहुजणं मा उवेक्खेसु पुवपुरिसरक्खियं नियजणवयं मा पडिवजसु गाढगंठिनिहरहिययत्तणंति । तो विस्सभूइमुणिणा पसमपहाणं पयंपियं एयं । भो मुंचह संतावं कुणह जहावंछियं कजं ॥१॥ ॥३८॥ नो किंचिवि वयणिजं इहऽस्थि सब्बेऽवि निययकजेसु । उजमह सेसचागेण जेण लोगेऽवि पयडमिमं ॥२॥ सयणाइसिणेहविमोहिएहिं कीरंति जाई पावाई । दुग्गइगयाण ताई कडुयविवागं फलं देति ॥३॥ RASGANA For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. नय बहुमुयरिओऽविह बिदुरे थेपि कुणइ साहारं । सयणजणो मोत्तूणं एवं जिणदेसिय धम्मं ॥ ४ ॥ इय भणिए नियदुच्चरियहणुप्पण्णगाढसंतावो । काऊण पायपडणं जहाऽऽगयं पडिगओ राया ॥ ५ ॥ भूसम्म साधम्मो गुरुचरणसुस्सुसापरो दूरुज्झिय सुहिसयणसंथवो जीवियमरणनिरवेक्खो पंचिंदियदित्तसत्तुविजयपरो बहुं कालं गुरुकुलं पज्जुवासेइ । अण्णया य सम्मं समहिगयसुत्तत्थो विसेसेण विहियमणपरिकम्मो जोगोत्ति कलिऊण गुरुणाऽणुष्णाओ समाणो एगलविहारित्तणं पडिवज्जिऊग छट्टुमाइ निडुरं तवोकम्मं कुणमाणो सम्मं परीसहचमूं अहियासेजमाणो वीयरागोव्व गामनगरगराइसु अममाएंतो पइक्खणं वीरासणुकुडयासणारं कुणमाणो पइदिणं सूराभिमुहं आयाविंतो नियजीवियन्भहियं पाणिगणं रक्खितो वायालीसदोसविसुद्धविरसाहारगहणेण संजमसरीरमणुपालेंतो गामाणुगामं विहरेंतो समागओ सुरिंदपुरिविष्भमाए महुराए नय रीए, ठिओ थिपसुपंडगविवज्जिए उक्किद्वतवनिरयमुणिजनसंगए एगंतदेसे, तहिं च निवसतो एगया परमसंवेगगयमाणसो नियजीवियनियमणत्थं चिंतिउमारद्धो । जहा सोऽभिख सुहाई जिओ दुहाई, दूरेण मोतुमभिवंछइ तुच्छबुद्धी । एवं न जाणइ जहा न कहिंपि धम्मसंबंधसिद्धिविरहेण भवंति ताई ॥ १ ॥ भोगे समीहइ करेह रई कहासु, देसित्थिपत्थिवसुभोयण संगयासु । For Private and Personal Use Only Shri Kailassagarsuri Gyanmandr Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्ताव वैराग्य ॥३९॥ सीउण्हदंसमसगाइ परीसहे य, सम्मं तितिक्खइ न मूढमई पमाया ॥२॥ विश्वभूति: सत्तू वरं निसियधारकरालकालकतिच्छडालकरवालकरो सुकुद्धो । घायस्थमुज्जयमई वरमुग्गभोगभोगीसरो डसिउमुड्डमरो रुणच्छो ॥३॥ || तपाकर्म उइंडमारुयपईवियदीहजालामालाउलो य जलणो वरसंगलग्गो। नीसेसदोसनिलओ न खणंपि नूणं, जुत्तो न गंतुमहमो हि इमो पमाओ॥४॥ एए हि सत्तुपमुहा मणुयाण दिति, तिव्वावि एगभवगोयरमेव मछु । एसो पईभवसुदुस्सहतिक्खदुक्खलक्खक्खणी तदहिगं परिवजणिजो ॥५॥ वजणमेयस्स पुणो आहारचागओ घडइ सम्मं । ता सबहेव जुत्तं मम काउं उग्गतव चरणं ॥६॥ इइ संपहारिऊण य समारद्धं तेण मासखमणं, कओ विसेसेसुज्जमो समाढत्तो पइदिणं झाणप्पबंधो निरुद्धो मणप्पसरो, एवं च कमेण पडिपुण्णे मासक्खमणे पडिलेहियभंडोवगरणो अतुरियं अचवलं जुगमेत्तनिहित्तचक्खुपसरो सुत्तत्थपोरिसिपज्जंतकाले चलिओ भिक्खानिमित्तं उच्चावयगिहेसु गोयरचरियाए, परिभममाणो उग्गमउपायणादोसे ॥३९॥ सम्मं निरूवेमाणो लाभालाभेसुवि अरत्तदुट्ठो पगिट्ठतवाणुहाणकरिसियसरीरत्तणेण य तणंपिव पवणेणावि पकंपमाणो परिसोसियमंससोणियत्तणेण य पयडसिराजालावणद्धऽढिपंजरो धवलपाडिवयमयलंछणो इव कलावसेसो तं रायम ESSAGAOACCU CASSACREAS For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्गमोगाढो जत्थ सो विसाहनंदीकुमारो पिउच्छाए रण्णो अग्ग महिसीए धूयापरिणयणत्थं पुत्रमावासिओ चिट्ठइत्ति । अह तं मुनिं दद्दूण जायपञ्चभिण्णाणेहिं पुरिसेहिं भणिओ विसाहनंदी कुमारो, जहा-सामी ! मुणह तुम्हे एवं पवईयगं ?, सो भणइ सम्मं न जाणामि, तेहिं भणियं- कुमार ! एसो सो विस्सभूई कुमारो जो पुत्रिं पवइओ, तं लक्खिऊण | जाओ तस्स पुव्वामरिसेण कोवोत्ति, एत्थंतरे सो तबस्सी तंमि पएसे वचमाणो इरियासमिवक्खित्तचित्तत्तणेण अतकियमेव पणोलिओ अहिणवपसूयाए गावीए, पडिओ य निसट्ठो धरणीए, ताहे तेसिं विसाहनंदिप मुहपुरिसेहिं दहूण तं तहानिवडियं संजायगाढहरिसेहिं कओ सिंहनाओ अप्फोडिया तिवई दिन्नाओ तालाओ पारद्धो कलयलो, भेणियं च महया सद्देण भो भो कत्थ गयं तमियाणि कविट्ठफलपाडणवलं जेण गोमेत्तेण विनिवाडिओऽसि ?, इमं च | निसामिऊण वलियकंधरो विस्सभूई जाव विष्फारियलोयणो अमरिसेण पलोएइ ताव दिट्ठा विसाहनंदिमुपहा पञ्चभिण्णाया य, तयणंतरं च पलीणो से उवसमपरिणामो ववगओ विवेओ समुच्छलिओ महाकोवो समुल्लसियं वीरियं, धाविऊणय सा गहिया सिंगेसु गावी पडाइयव भमाडिया सीसोवरिं पक्खित्ताय धरणीए, भणिया य ते, जहा--रे रे दुरायारा! दुरुम्मुकपरकमा हीणा सव्वसो य विरहिया मं उवहसह, न मुणह जहा दुब्बलस्सऽवि पंचाणणस्स सिगा - लसहस्सेहिविन लंघिज्जइ परक्कमो, सुलहुयस्सवि विहंगरायस्स न तीरइ सोढुं भुयंगमेहिं चडुलचंचुप्पहारो, तहा| जइविहु निडुरतवकम्मकिसियकाओ वियाणिओऽहमिह । तहवि न रे ! तुम्हाणं लक्खेणवि अत्थि मम गणणा ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः ॥ ४० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रे पिसियपोसिया विउसदूसिया किं परेण भणिएण ? । अच्डिपडियावि तुम्हे न कुगह मे किंपि परियावं ॥ २ ॥ निष्भच्छिऊण एवं साहिक्खेवं सुतिक्ववयणेहिं । गंतूण य नियठाणं साहू चिंतेउमाढत्तो ॥ ३ ॥ अजविन मणापिवि पुवाणुसयं चयंति भइ एए । पव जोवगयंमिवि निक्कारणवइरिणो पावा ॥ ४ ॥ अहवा एयाणं वालिसाणं किं एत्थ दूसणं ? जेण । पुञ्चायरियाण सुहासुहाण एसो दसावागो ॥ ५ ॥ ता तह करेमि संपइ परभवपत्तो जहा य सुमिणेवि । एवंविहअवमाणद्वाणं नो कहिंपि पेच्छामि ॥ ६ ॥ इय संप्पो सो अविभावियसमयसत्यपरमत्थो । अविचितिउत्तरोत्तरसंसारावणदहनिवहो ॥ ७ ॥ भत्तं पच्चक्खाउं नियाणबंधं च काउमुजुत्तो । पच्चासण्णमुणीणवि समक्खमेत्रं पजपेइ ॥ ८ ॥ जइ ताव ममं दुक्करतवस्स छट्ठट्ठमाइरूवस्स । सज्झायझाणसहियस्सिमस्त सव्वायरकयस्स ॥ ९ ॥ वायालीसेसणदो सरहियसुङ्कुछभोयणस्सऽविय । सुत्तत्थतत्तर्चितण [पर] गुरुजणविणयाणुचरणस्स ॥ १० ॥ पंचमहव्वयधरणस्स वावि फलमउलमत्थि नणु किंपि । अतुलियवलकलिओऽहं ता होजा अण्णजम्मंमि ॥ ११ ॥ एवं च नियमिऊणं ठिओ सुद्धसिलायले, निसामियनियाणबंधा य समागया इयरसमीववत्तिणो तबस्सिणो, भणिओ य सबहुमाणं तेहिं-भो महाणुभाव ! संयंचिय मुणियजुत्ताजुत्तस्स नत्थि जइवि तुह किंपि कहणिजं तहावि एयं निबेइज्जइ-जेण न लोहकीलियानिमित्तेण कोऽवि कुणइ देवउलपलीवणं, न वा कोडिप्पमाणरयणरा For Private and Personal Use Only विश्वनन्दि हास्यं नि दानं च. ॥ ४० ॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SOCIACTACOLOR* सिणा किणिजइ कागिणी नेव य गोसीसचंदणागरुपमुहसारदारूणि दहिऊण कीरति इंगाला, न य एवंविहनिकलं-18 कसुचिरचरियविविहतवेहिं किंपागफलं पिव पजंतदारुणो काउं जुजइ नियाणवंधो, अण्णं च किं पवणगुंजिएहिं कपिजइ मंदरो रउद्देहिं । दुजणवयणेहिं मणो किंवा पक्खुहद साहूण ? ॥१॥ चिरकालुबूढं किं मजायमइकमंति जलनिहिणो । हरिणंकदिणयरा किं तिमिरप्पसरहिं रुझंति ॥२॥ निम्मलगुणरयणमहानिहाण ! तुम्हारिसावि सप्पुरिसा । ववसंति एरिसं जइ धम्मसिरी ता कमलियउ ? ॥३॥ कत्थ व बच्चउ विणओ ? वोढुं को वा खमो खममियाणि? भग्गनिवासो गच्छ उ कत्थ वराओ विवेओऽवि ? ॥४॥ एमाइविविहवयणेहिं भासिओ जा न देह पडिवयणं । नियनियठाणेसु गया ताव मुर्णिदा निराणंदा ॥५॥ विस्सभूइवि अविचलियणियाणवंधज्झवसाओ अणालोइयपडिकतो कालमासे कालं किया उकोसद्वितीओ महासुक्के देवलोगे देवो समुप्पण्णो, तत्तो उपट्टित्ता जहा वासुदेवो होही जहा य से पिया पयावइत्ति भविही तहा| एत्तो कहिजइ। इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पोयणपुरंमि नयरे जहत्याभिहाणो रिउपडिसत्तू नाम राया, तस्स य सयल 12 अंतेउरपहाणा भद्दा नाम अग्गमहिसी, तीसे चउमहासुमिणपिसुणियावयारो अयलो नाम पुत्तो, अचंतमहावलो विस्सुओ य, एगया य तीसे देवीए पाउन्भूओ गम्भो, जाया य कालेण सब्बलक्षणपडिपुण्णसरीरा कण्णगा, कसKAREPARAKASKA For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः ॥ ४१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कयं च उचियसमए मिगावइत्ति से नामं, कमेण य निरुवमारूढजोवणगुणा एवं सोहिउं पवत्ताकसिणसुसिणिद्धकुंचिरचिहुरचओ तीऍ उत्तमंगंमि । वयणेंदुविग्भमागयविडप्पसोहं समुव्व ॥ १ ॥ भालतलेऽवि लुलंती अतिकुडिला चिहुरवल्लरी तीसे । रेहइ वम्महरण्णो विजयपसत्थिग्य आलिहिया ॥ २ ॥ सरलेहिं लोयणेहिं तीऍ कवोलेहिं चंदकंतेहिं । अहरेण पउमरागेण रयणट्ठाणं व सहइ मुहं ॥ ३ ॥ संखो इव रेहावलयलंछियं कंठकंदलं विमलं । संठियविचित्तमणिलट्ठगंठियं सोहए तीए ॥ ४ ॥ कंदप्पनरिंदनिवासविग्भमे तीऍ थोरथणवट्ठे । हारो पडिहारतुलं आलंबइ लंबमाणो सो ॥ ५ ॥ रंभाभिरामपीवरमूरुजुयं कणयकमलकंतिलं । थंभजुयलं व छज्जइ विसयमहासोक्खभवणस्स ॥ ६ ॥ बहलालत्तयरसपिंजरं व मणिकुट्टिमंमि संकेतं । कमलोवहारसोहं चलणजुयं दावए तीसे ॥ ७ ॥ एवंविहा य वरजोगत्तिकाऊण सा सव्वालंकारविभूसियसरीरा भद्दाए पेसिया पिउणो पायवंदणत्थं, गया चेडीचक्कवालपरिवुडा निवडिया नरिंदचलणेसु पेच्छिया संभमभरियच्छिणा सव्वायरं रण्णा पणयाला पुरस्सरं च आरोविऊण तमुच्छंगे रूयेण जोव्वणगुणेण य वाढमक्खित्तचित्तो विचितिउमाढतो - अहो सुरसुंदरी रुवाइसय पराभवकरं रूवं अहो सव्वावयवसुंदरं लायण्णं अहो सरयचंदचंदिमानिम्मलं कंतिपडलं, अहो वेणुवीणाविजइणी वाणी, सव्वहा भुयणच्छेरयभूयमिमीए किंपि विलसियं, नूणं पुवं एरिसं न निम्मियं खत्तियकुले कन्नगारयणं परमेसरेण For Private and Personal Use Only प्रजापतिस्वरूपम्. ॥ ४१ ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsu Gyanmandir www.kobatirth.org CCCIALSOCIALA विहिणा, तेणं चिय मयरद्धएण परिग्गहिया रई तिसूलपाणिणाऽवि परिणीया पब्धयसुया महुमहेणवि मंदरुम्महि यखीरजलहिसमुद्धिया जलमाणुसी पणइणी कया पुरंदरेणावि पुलोममुणिकनगा उब्बूहत्ति, अहो अहं नमो मज्झं जस्स अंतेउरे रयणायरेव्व एरिसं कण्णगारयणं समुप्पणंति ।। अह कोमलुच्छुचावोऽवि वम्महो पंचकुसुम विसिहोऽवि । वज्झवणुलोहनिहरसहस्सवाणो व विप्फुरिओ॥१॥ जत्तो जत्तो सा धवलपम्हले लोयणे परिक्खिवइ । तत्तो तत्ती सोऽविहु निसियं सरधोरणि मुयइ ॥२॥ अत्याणजणोऽविहु वम्महेण संताविओ हु पासेण । रिउपडिसत्तू राया तदेगचित्तो विसेसेण ॥३॥ एवं च मयणसरप्पहारविहुरियमाणसो सो नरिंदो परिभाविउं पवत्तो-अहो एसा इयाणि वरजोग्गा वहइ ता किं काय ?, किमेरिसरूवाइसया कण्णगा परस्स दाऊण सगिहाओ निस्सारिजइ-१, सबहा न जुत्तमेयं, जइविहु जणो अविसेसेण कण्णगाणं अण्णप्पयाणेण पउत्तो तहावि गडरिकापवाहो एसो नालंवगट्ठाणं सुबुद्धीणंति कयनिच्छओ अणवेक्खिउं गरुयमाचंदकालियं लोयाववायं अविमंसिऊण चिरप्परूढ नायमग्गमनिग्गहिऊण मयणवेयणं अप्पणा चेव तं परिणेउकामो कहकहवि आगारसंबरं काऊण धूयमंतेउरं विसजेइ, वोयदियहे वाहराविऊण सेद्विसत्यवाहपमुहं नयरमहाजणं सामंतसेणावइवग्गं च सुहासणत्यं सबहुमाणं भगइ-भो भो । पहाणलोया ! तुम्हे कुलववत्थाणं जुत्ताजुत्ताणं नयाणं संसयत्थाणं लोयधामववहाराणं परवगा निच्छयकारगा य, वार्य अविमंसिऊण तेउरं विसज्जेइ, भो भो । For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org श्रीगुणचंद अम्हाणंपि सब्बत्थेसु पुरावि पुच्छणिजा, ता संपयं साहेह जमेत्य विसए रयणमुप्पजइ तस्स को सामी?, अविण्णामहावीरचयपरमत्येहि तेहि भणियं-देव! किमेत्थ पुच्छणिजं ?, तुम्हेचिय सामिणोत्तिबुत्ते तिकखुत्ते एयमेव वयणं भणावि-| कामिता. ३ प्रस्ताव: ऊण नरवइणा उवट्ठाविया सावि य कन्नगा, भणिया य ते-अहो धूया एसा मम अंतेउरे रयणभूया पाउन्भूया ॥४२॥ अओ तुम्हाणुण्णाओ अहमेयं सयं परिणेउं वंछामि, अणइक्कमणिजं खु तुम्ह वयणं अम्हाणंति, एवं भणिए लजाव सवलंतकंधरा अवरोप्परमुहमवलोयमाणा ओहयमणसंकप्पा अपरिभावियवयणविसट्टमाणचित्तपीडा गया नियनियठाणेसु पुरजणपमुक्खा, सा कण्णया अवरवासरे वारिजमाणेणऽवि भद्दाए देवीए पडिखलिजमाणेणऽवि कुलमहत्तरएहिं उवहसिजमाणेणवि नम्मसचिवहिं सोवालंभं वजिजमाणेणवि मंतीहिंदुहविवागमणुसासिजमाणेणवि धम्मगुरूहि अणुसरियविंझण करेणुवइ(ण)व अणिवारियपसरेण गंधवविवाहेण परिणीया सा नरिंदेण, ठविया अग्गमहिसीपए, तीसे सद्धिं विसयसुहमणुभुंजइत्ति । सा य भद्दा देवी दट्टण तारिसं जणनिंदणिजं उभयलोयविरुद्धं तियचउक्चच्चरेसु जणह सणिजं रण्णो वइयरं संजायगाढचित्तसंतावा अयलेण पुत्तेण समं महया रिद्धिवित्थरेणं पहाणजणसमेया गया दक्खिSणावहं, तत्य य पसत्थभूमिभागे निवेसिया नयरी निम्मियाइं धवलहराई ठवियाई सुरागाराई कारावियाइं पाया-18 |॥४२॥ रगोउराइंति, सा य पुरी महंतीए ईसरीए कारियत्ति माहेसरित्ति गुणनिप्फण्णनामेण देसंतरेसु पसिद्धिं गया। तत्थ य अयलो कुमारो भद्दादेवि मोत्तूण पिउपासमागओ, एवं च काले वचंतमि लोगेणं तस्स राइणो सधूया LIRIKAARAKERAL For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८ महा www.kobatirth.org कामित्तणेण पयावइत्ति नामं कथं । अण्णया य सो विस्तभूई महासुकदेवलोयाओ चविऊण उबवण्णो मिगावइए | देवीए गर्भमि पुत्तत्ताए, तओ सा स्यणिमि सुहपसुत्ता सत्त महासुनिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा, पहिट्ठहियया य गया रण्णो सगासे, निवेइओ सुविणबुत्तंतो, रन्ना भणियं देवि ! निच्छियं भुवणविक्खायजसो सयलसामंतम उलिमंडलमसिणियकमकमलो पयायपडिहयपडिवक्खो कुलकेऊ तुह पुत्तो भविस्सइ । जेण एवंवि सुमिणाई देवि ! पुण्णेहिं कहवि दीसंति । हरिसभरनिच्भरंगी अभिनंदसु ता तुमभिमाई ॥ १ ॥ इइ जंपिऊण रण्णा वाहरिया सुमिणपाढगा कुसला । ते य नरिंदाएसं तहत्ति पडिवज्जिउं सहसा ॥ २ ॥ हाया कलिकम्मा परिहिय सुविसुद्ध सुंदरदुगुल्ला । सिरनिहियक्खय कुसुमा निडालकरोयणातिलया ॥ ३ ॥ करकलियनिमित्तागमपोत्थयसत्था समत्थनयनिउणा । पज्जायागयचिज्जा समागया झत्ति निवभवणं ॥ ४ ॥ सीहासणे सव्वारेण उववेसिया नरिंदेणं । फलफुलदाणपुण्वं सुमिणत्थं पुच्छिया ताहे ॥ ५ ॥ तेहि यनिमित्तसत्थाई बित्थरेणं सबुद्धिविहवेणं । परिचिंतिऊण तह निच्छयं च काऊण अण्गोऽण्णं ॥ ६ ॥ भणिओ पयावइनियो जरिसाणं विसिसुमिणाणं । अणुभावेणं नृणं पयडो नीसेसभुवर्णमि ॥ ७ ॥ तिक्खंडभरह सामी अप्पडिहयसासणो य तुह पुत्तो । होही अप्पडिमवलो इह पढमो वासुदेवोत्ति ॥ ८ ॥ आयन्निकण एवं पट्ठिचित्तेण ते नरिंदेण । दाऊण घणं विविहं विसज्जिया नियनियगिसु ॥ ९ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः ॥ ४३ ॥ www.kobatirth.org सायमिगावई देवी पुणोऽवि नरिंदेण कहिए सुमिणपाढग सिट्ठे सुमिणडे पहिट्ठहियया सुहंसुहेणं गन्भसुबह, अण्णया य पडिपुण्णंमि समए पसत्यंमि वासरे सुकुमारपाडलपाणिपल्लवं तमालदल सामलसरीरं सयलपुरिसप्पवरलक्खणविराइयं तिपिट्ठकरंड गाडंबरा भिरामं दारयं पसूया । विष्णायसुयजम्मो पहिट्ठो पयावई, कराविओ सुरमंदिरेसु महूसवो, तथा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिज्जंतऽनिवारियकणयदाणनंदिजमाणमग्गणयं । पम्मुक्कपुष्फ पुंजोवयाररेहंतराय पहं ॥ १ ॥ मंगलकलयलमुहलुम्मिलंतमहिलाजणाभिरमणिज्जं । पारद्धसंतिकम्मं जायं नयरं च तं सहसा ॥ २ ॥ अबरवासरे य तस्स दारयस्स परमविभूईए तिपिट्ठकरंडगदंसणनिच्छियाभिहाणवीएण पइट्टियं तिविहुत्ति नामं कुलथेरीजणेणं, अह सो तिविद्दू पंचधाईपरिक्खित्तो महारयणं व हत्थाओ हत्थं संचरंतो अणेगचेडचाडुकरपरिगओ कुमारभावमणुप्पतो, २ ॥ ताई पिउणा जोगोति जाणिउं सोहणे तिहिमुहुत्ते । उवणीओ सो विहिणा लेहायरियस्स पढनत्थं ॥ १ ॥ सयलो कलाकलाबो अकालखेवेण गुरुसयासाओ । नियबुद्धिपगरिसेणं सविसेसो तेण गहिओत्ति ॥ अह मुणियसव्वनायव्यवित्थरो गुरुपए पणमिऊण । तदणुण्णाओ कुमरो गओ सोहंमि परितुट्ठो ॥ अयले भाउणा सह खणमविय विओगमसहमाणो सो । पवरुज्जाणाईसुं निस्संको कीलइ जहिच्छं ॥ ४॥ ३ ॥ For Private and Personal Use Only मृगावत्याः स्वप्नाः त्रि पृष्ठजन्म च. ॥ ४३ ॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कोमलकायस्सवि तस्स भुयबलं पेक्खिऊण जायभया । पमिलाणवयणकमला सहस्समल्लावि कंपति ॥५॥ लीलाएविहु पयपंकयाई सो जत्थ जत्य मेल्लेइ । वजाहयन्य धरणी तहिं तर्हि थरहरइ बाद ॥६॥ परिहासेणवि जे तेण पाडिया कहवि मुट्टियाएणं । ते नूर्ण जइ परगेहिणीऍ पुत्तेहिं जीवंति ॥ ७॥ खिवइ य जत्तो दिलुि तत्तो चिय साबरं विणयपणया। अहमहमिगाएँ धावति किंकरा मुक्कवावारा ॥८॥ जस्साएसं वियरइ थेपि अणायरेणऽवि कुमारो । सो लद्धनिहाणो इव मन्नइ कयकिञ्चमप्पाणं ॥९॥ सो भणइ जत्थ ठाणे तत्थ समप्पंति सेसवावारा । तस्सेव परकमवण्णणेण लोयस्स पुणरुत्तं ॥१०॥ इय पुषभवजियसुकयकम्मवसवमाणसोक्खस्स । अयलसमेयस्स सरंति वासरा अह तिविट्ठस्स ॥११॥ . इओ य-रायगिहे नयरे भारहद्धवसुंधराहिवमणिमउडकोडिलीढपायवीढो पयलकालमायंडमंडलुड्डामरपयापकंतदिसिचक्को निविसंकभुयदंडमंडवनिलीणरायलच्छिविलाससुंदरो समरसीमनियमत्तमायंगकुंभत्थलगलियमुत्ताहलविरइयचउको महागोपुरपरिहसन्निहवाहुबद्धवीरवलओ निसियधारकडचक्कनिकंतियवइरिग्गीवो आसग्गीवो नाम राया पडिवासुदेवो पवरं पंचप्पयाररमणिजं विसयसिरिमणुहवइ । एवं च वोलंतमि काले सो विसाहनंदी कुमारो चिर रजमणुपालिऊण मओ समाणो नरयतिरिएसु भमिऊण उववण्णो एगमि गिरिकंदरे सिंहत्तणेणं, पमुक्कालभावो य इओ तओ हिंडतो उवहवेइ तस्स रणो पहाणसालिछेत्तनिवासिफरिसगजणे, ते य तेण उवद्दविजमाणा आ For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः ॥ ४४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गया आसग्गीवनरिंदस्स सगासे, साहिओ सीहवइयरो, इमं च वागरियं जहा- देव! इमाओ कयंतविग्भमाओ सिंहाओ न रक्खह अम्हे ता करिसावेह नियछेताई, अम्हे अन्नत्थ वञ्चिस्सामो, राइणा भणियं-भो भो किमेवं कायरा होह ?, तहा करेमि जहा न मणागंपि पीडइ एस दुसत्तो, तओ निरूविया जदकमं सोलसवि सहस्सा नरिंदाणं सीहपसरप डिक्खलणत्थं, गया य पहिट्ठा करिसगा सद्वाणंमि । अष्णया य आसग्गीवो सुरसुंदरीविग्भमंमि अंतेउरीजणे वेसमणधणाइरेगे कोसविभवे अणण्णसरिसे करितुरगाइरजंगे सुरवइ समंमि आणाइस्सरिए अचंतं मुच्छिओ गिडिओ चिंतिमारद्धो- किं मण्णे एरिससमग्गसामग्गी परिवुडस्स परेण मणेगवि अगभिभवणिज्जस्त निबंपि अप्पमत्तचित्त अंगरक्ख परिक्खेवस्स अषुसुमरणमेत्तकरतलपाउन्भवंत अप्पडिय गइ चक्काउहरू ममावि संभवेज कोई वि णासकरणपञ्चलोत्ति ?, जइ ताव तं जाणेमि कहवि ता करेमि पडिविहाणं, रक्खेमि सङ्घप्पयारेण अप्पाणंति संपहारिऊण आहुओ नेमित्तिओ, दावियमेगंते आसणं, निसन्नो सो तत्थ, सकारपुण्यं पुट्ठो य सन्धायरेण, जहा भद्द ! | नेमित्तिय ! सम्मं चिंतिऊण साहेसु, कोऽवि अत्थि किं ममावि मचुकारी न वत्ति ?, तेणवि य निमित्तबलेण अव लोइऊण भणियं देव ! पडियममंगलं, कहमणिटुं साहिज्जइ ?, रन्ना वुत्तं-भद! मा संखुम्भ, साहेसु जहापुच्छियं, नेमित्तिएणं जंपियं-जइ एवं ता अत्थि तुम्भंपि मचुकारी, रन्ना कहियं -कहं सो नेओ ?, तेण वुत्तं - देव ! जो सा-लिच्छेत्तसीहं वावाइस्सर तुहसंतियं च नीसेसमंडलाहिवसम्माणद्वाणं चंडवेगदूयं धरिसेही सो निच्छियं मचुकारी For Private and Personal Use Only सिंहरक्षणं निमित्तश्रवणं. ॥ ४४ ॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जाणियचो, सवप्पयारेहिं रक्खणिजो य, एयमायन्निऊण रत्ना विसज्जिओ नेमित्तिओ, सपि उबविट्ठो अस्थाणमंडवे, पुच्छिया य अमचाइणो- अहो को संपयं नरवई दंडाहिवो कुमरो वा अतुलवलपरकमो सुणिजइत्ति, तेहिं भणियं देव! तुम्हाणंपि सयासाओ कोऽवि अतुलवलो ? जेण साहिज्जइ, महीए सूरमंडले पहवंतंमि विष्फुरइ ता रगगरुई ?, राइणा भणियं - बहुरयणा वसुंधरा, किमिह न संभवइ ?, मंतीहिं भणियं देव ! निच्छियं न मुणिमो, सवणपरंपराए पुण सुणिजंति - पयावइनरिंदस्स कुमारा अनन्नसरिसपरक्कमा लीलादलिय सेस सोंडीरबलावलेवत्ति, एवमायन्निऊण राइणा भणिओ चंडवेगो-जहा भद्द ! गच्छसु एयस्स राइणों सगासे साहेसु य तस्स अमुगं मम पओयणं, जं देवो भणइत्ति पडिच्छिऊण सासणं निग्गओ, गओ महया पुरिसपरियारेणं परिक्खित्तो पोयणपुराभिमुहं चंडवेगो । इओ य पयावइराया कयपवरसिंगारो परिहरियमहा मुलद्गुलो कुमारपमुहपरियणाणुगओ अंतेउरमज्झे ठिओ चिट्ठइ, वह य तत्थ पेच्छणयं, केरिसं ? - विविहंगहार विष्भमविचित्तकरणप्पओगरमणिज्जं । रणझणिरमंजुमंजीरमणहराराव संवलियं ॥ १ ॥ दढदेहायासवसुच्छलंततुट्टंतहारसरिविसरं । भूभंगविभमुब्भडपसरिय बहुहावभाव भरं ॥ २ ॥ कलयंठकंठगायणपारद्धविसुद्धतारगेयसरं । ताडियपडुपडडुम्मिस्समंजु गुंजंतबरमुरवं ॥ ३ ॥ इय एरिसंमि तरुणीजणस्स नहंमि संपयर्द्धमि । अहिहरूवपुधे संपन्ने परमरंगे य ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ३ प्रस्तावः ।। ४५ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुत्त चित्तलिहियष लेवघडियव रजुनद्रव्य । मइरामयनिष्कंदियव्य विमुकऽन्नवाचारा ॥ ५ ॥ अणमिसनयणनिवेसा जणपरिसा तक्खणेण सा जाया । अइतुट्ठ तिविद्रुकुमार रायलोएण सह झति ॥ ६ ॥ एत्यंतरे खीरोयनिम्महणपजंतु द्वियविसुग्गारोव कंपियविवहसत्थो कयंतोब अणिवारियागमणो पविट्ठो सो चंडवेगाहिहाणो दूओ, तं च दण ससंभ्रममुट्ठिया, सामिदूओत्ति कलिऊण कया महती पडिवत्ती, पुट्ठो य आसग्गीवनरिंदस्स सरीरारोग्गवत्तं, सिरसा पडिच्छियं सासणं, संवरियपेच्छणगवावारो नियनियगेहेसु गओ जणो, रंगभंगकरणेण य वाढं अमरिसिओ तिविद्रुकुमारो, पुच्छिओ अणेण एगो पुरिसो- अरे ! को एस? किं वा एयागमणेण अन्भुडिओ ताओ ? कहं वा पविसमाणो दुवारेचिय न रुद्धो पडिहारण?, तेण भणियं- कुमार ! एसो खु रायाहिरायस्स पहादूओ, अओ सामिव दट्ठवोत्ति राहणा अच्भुट्टिओ, अओचिय पडिहारेणवि न खलिओ, एयाणुवित्तीए चेव सुहेणेत्थ निवसिजइ, पभुचित्ताणुवत्तित्तणं हि सेवगधम्मो, कुमारेण भणियं-जाणियवं कोऽवि कस्सवि पभू सेवगो वा, होउ ताव किं एएण ?, अनिवडियपुरिसायाराणं विकलो अत्तुकरिसो निरत्थओ तुंडमंडवो अणुचिओ भुयबलावलेवो अजुत्तो नेवत्थफडाडोवो, ता एवं एत्थ पत्तकालं अरे ! साहेजस तुमं मम जया एप्सो सनयराभिमुखं वचेज, जेण करेमि एयस्स पाडुन्नयं, जं कुमारो आणावेइत्तिभणिऊण अन्भुवगयं पुरिसेण, सोय दूओ गुणदोसे राइणा समं भासिऊण साहियनरिंदपओयणो परिगहियविविहपाहुडो कयसकारसम्माणो चलिओ सनयराभिमुहं, अंतरा य गच्छंतो For Private and Personal Use Only दूतागमः नृत्यभंगव. ।। ४५ ।। Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra विनायगमणवइयरेणं पडिरुद्धो तिविट्ठकुमारेण अयलपरिगएणं, भणिओ य रे याहम ! अइदुटु चिट्ठ पाषि? कत्थ वचिहिसि । पेच्छणयरंगभंग तइया काउं मम समक्खं? ॥१॥ निब्भग्ग ! गरुयराउलसेवणओऽविहु पभूयकालेणं । पत्थावापत्थावं न मुणसि किं सिक्खिओ तंसि? ॥२॥ नियजण! वयणविन्नासपमुहगुणवित्थरेण उवहससि । सक्कगुरुंपि विदूकुह अन्नेव वियडिमा तुज्झ ? ॥ ३॥ ता पाव! पावसु फलं सदुठचेट्रियतरुस्स दुविसह । सुमरेसु य इट्ठदेवं माऽकयधम्मो धुवं मरसु ॥४॥ इय भणिऊण तिबिट्ट निट्ठरमुट्टिप्पहारमुग्गिरिउं । जा हणइ नेव दूयं अयलेणं जंपियं ताव ॥५॥ भो भो कुमार! विरमसु गोहचंपिव विमुंच एयवहं । या रंडा भंडा कयावराहावि अहणणिजा ॥६॥ ताहे भणिया पुरिसा! रे रे सिग्धं इमस्स पावस्स । मोत्तूण जीवियव्यं सेसं अवहरह वत्थाई ॥७॥ पुरिसेहिं तओ कुमरस्स वयणओ लट्ठिमुट्ठिपभिईहिं । गहिऊण तं समत्थं धणाइयं अवहडं तस्स ॥ ८॥ भयभरविहुरत्तणओ नियंसियं वत्थमविय से गलियं । भूमीऍ निवडणेणं धूलीए धूसरियमंग ॥९॥ अह खमणगोब मुणिउन्य पंडरंगोव्य तक्षणं जाओ। सो चंडवेगदूओ नियजीवियरक्खणढाए ॥१०॥ सेसो पुण परिवारो जीवियकंखी य पहरणे मोत्तुं । सयलदिसासु पलाणो दसणमेत्तेऽवि कुमरस्स ॥११॥ एवं च लुचविलुंचियं काउं यं वलिया कुमारा, जाणिया य वत्ता पयावइणा, तओ भीउविग्गो चिंतिउमाढत्तो For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः अहो असोहणं कयं कुमारेहिं, एयंमि पडिकूलिए परमत्थेण आसग्गीवो पडिकूलिओ, अजहावउमारंभो मूलं विणासस्स, न य कुमारावरद्धे मम निद्दोसत्तणं वयणसएणवि कोऽवि पडिवजिही, पडिवजिएवि पयडो खलु एस वव - | हारो जं भिचवराहे सामिणो दंडो, ता विसममावडियं, अहवा अलं चिंतिएण, उवाओ चेव उवेयस्स साहगोत्ति॥ ४६ ॥ ४ निच्छिऊण आणाविओ दूओ, सविसेसं कया पडिवत्ती, समप्पियाई महामोलाई पाहुडाई, कओ य चउग्गुणो दाणक्खेवो, भणिओ य एसो - अहो महायस! बालभावसुलभनिविवेयत्तणेण जोवणवसवितंडुलचिट्ठियत्तणेण रायकुल जम्म सहयदुललियत्तणेण य जइवि वाढं अवरद्धं कुमारेहिं तुम्ह तहावि सबहा न कायवो चित्तसंतावो, न वोढवो अमरिसो, मम निव्विसेसोऽसि तुमं, डिंभदुब्धिलसियाणि न करिंति चित्तपीडं कहवि जणगत्थाणीयस्स, अहं जणगो चेव एएसिं, उत्तरोत्तरगुणपरिसारोहणं पुण तुमए इमेसिं कायचं, ता कुणसु पसायं परिहरसु अवमागं, दूषण भणियं - महाराय ! किमेवमाउलो भवसि ?, किं कोऽवि नियडिंभेसु दुव्विणमासंकेइ ?, पेमपरवसहियएस वा एगमवि अवराहं न मरिसेति ?, राइणा भणियं एवमेवं जाणामि तुज्झ चित्तवित्तिं लक्खेमि पडिवन्नभरधवलत्तणं, केवलं तहा कायव्यं जहा देवो कुमारवइयरं न निसामेइ, इइ भणिए पडिवजिऊणं चलिओ चंडयेगो, कमेण गच्छंतो पत्तो आसग्गीवन रिंदसमीयं, अह पुवागयनरकहियकुमारवइयरनिसामणा रुसिओ । आवद्ध भिउडिभीमो रत्तण्डो पेच्छिओ राया ॥ १ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr For Private and Personal Use Only चण्ड वेगावमानं क्षा मणादि च. ॥ ४६ ॥ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org READARS नायं च जहा पुवागएहि सिट्ठो स वइयरो रन्नो। ताहे कयप्पणामो उपविट्ठो सो नियट्ठाणे ॥२॥ पुट्ठो य तओ रन्ना कहिओ नीसेसवइयरो तेण । जह कुमरेहिं पहओ अयाणमाणेहि निरवेक्खं ॥३॥ जइबिहु देवऽवरद्धं बालत्तणओ सुएहिं मम किंपि । तहवि पयावइनिवई अहिगं सोगं समुबहइ ॥४॥ चूडामणिव सीसेण सासणं तुम्ह धरइ विणयनओ। निभिच(भंत)भिचभावं सविसेसं दंसह सयावि ॥५॥ न मुणिजइ जुबईणं मंजीररवो कयावि तस्स गिहे । मागहलोएणं तुह गुणनिवहं संथुर्णतेण ॥६॥ किं बहुणा ? महिवइणो मए सुदिट्ठा कया समग्गा । किं तु नियसामिभत्तीऍ तुलइ नो कोऽवि तेण समं ॥७॥ अह आसग्गीवनरिंदेण सुमरियं नेमित्तिगवयणं परिकंपिओ मणेणं, चिंतियं च-अहो निव्वडियं ताव एग नेमित्तिगवयणं, बीयपि जइ इत्थमेव हवेज ता निच्छियं अकुसलंति परिभाविऊण आहूओ अवरो दूओ, भणिओ य जहागच्छसु रे पयावइस्स सगासे, भणसु र तं मम वयण-जेग सालिच्छे तेसु करिज्जमाणेसु सबलवाहणो गंतूग केसरि परिक्खलहत्ति, जं देवो आणवेइत्ति भणिऊग निग्गओ दृओ, कमेण पत्तो पयावइस्स भवणं, सकारिओ रण्णा, पुट्ठो, य आगमणपयोयणं, साहियं च तेण सीहरक्खणरूवं नरिंदसासणं, अन्भुवगयं च पयावइगा, सटाणे य पेसिऊग दूयं एवं उवालद्धा कुमारा पुत्ता! अकाल एव हि तुम्हहिं पबोहिओ धुर्व मन् । आसग्गीवनरिंदस्स धरिसिओ जमिह सो दूओ ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः ॥ ४७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेणेव अयंडे चिय दारुणरूवा इमा ममावडिया । आणा कयंतविग्भमपंचाणणरक्खणाणुगया ॥ २ ॥ कुमारेहिं भणियं ताय ! कहं मच्चू पवोहिओ ?, रन्ना भणियं पुत्ता ! सुणेह, आसग्गीव नरिंदेस्स सालिखेत्तस्स केसरी करिसगजणं विद्दवे, सो य पइवरिसं वारोवारएण जहक्क मं सवनरिंदेर्हि रक्खिज्जर, संपयं पुण धरिसियदूयकुविएण आसग्गीषेण अपत्थावेच्चिय अहं समाइट्ठोऽम्हिता एयं मच्चुए पडिवोहणंति, तसिं कहिऊण समाढसं पयाणयं, एत्थंतरे विन्नत्तं कुमारेहिं-ताय ! अम्हे वच्चामो, रन्ना भणियं पुत्तया ! बालया तुम्हे, न जाणह अज्जवि कजाकजं, ता विरमह इमाओ अज्झवसायाओ, अहं सयमेव वञ्चिस्सामि, तेहिं भणियं-सबहा मोकलह, गंतवमवस्तमम्देहिं, महंतमेयं कोऊहलं, केरिसो सो केसरित्ति ?, राइणा भणियं - अरे पुत्ता! हरिणंकमंडलनिक्कलंके कुले समुप्पत्ती कुबेरसमइरेगो धण| संचओ अविगलं आणाईसरियं कलाकलावंमि विमलंमि विमलं कुसलत्तणं समत्थसुत्थत्थेसु पवीणआ नीसेसेसु पहरणेसु | परमो परिस्समो य नीरूवमं वीरियं अप्पडिमा रूवलच्छी, एएसिमेगयरंपि उम्मग्गपवत्तणसमत्थं किं पुण एगत्थ समवाओ ?, ऐयाणि य सवाणिवि तुम्ह संति, ता एएहिं हीरमाणाणं तुम्हाणं को पडिक्खलणकारी ?, जम्हा बद्धमच्छरा वेरिणो उस्सिखला खला अविभावणिजागमाओ आवयाओ अचंतं पमत्तचित्ता य तुम्हे, न जाणिजइ केरिसो विवागो हबइ ?, अओ मुयह गाढग्गहंति, तेहिं भणियं - ताय ! हवउ किंपि निच्छयं गंतवमम्हेहिं, तओ -निवारिजमाणावि चलिया कुमारा पहाणराइणा समेया कइवयकरितुरयरहपरियणपरियरिया, पत्ता य तेसु सालिच्छे For Private and Personal Use Only सिंहरक्षणादेशः हठात् कुमार गमनं. 11 80 11 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr तेसु जत्थ सो केसरी निवसर, पुट्ठा य तेहिं करिसगा - अरे किह अन्ने राइणो पुधिं सीहं रक्खियाइया ?, तेहिं भणियंकुमार ! पर्यंडगुडाडोवभासुरेहिं पवरकुंजरेहिं पवणाइरेगवेगसुंदरंगेहिं जचतुरंगेहिं उडंडगंडीय सेल भल्लिनाराय कुंत पमु हपहरणहत्थेहिं सुहडसत्थेहिं विरइऊण तिउणपायारपरिक्खेवं अचंतमप्पमत्तचित्ता मरणमहाभयवेवंत सच्चसरीरा केस - रिगुहामुहनिहियानिमेसनयणा रक्खिंसु नराहिवा, तहा रक्खमाणाणवि पइक्खणं सीहनायव ससमुच्छलंतपडिसद्दायन्नणेण अवगणियतिक्खं कुस पहारा करडितडपणट्ठमयजला विहडंति करिघडा गाढखलितखलिजमाणाइं विदिसो दिसिं फट्टंति तुरयघट्टाइं विमुक्कपोरिसाभिमाणाणि इट्ठदेवयमणुसरमाणाणि सबओ पलायंति पायकाणि, कुमारेण भणियं - अहो महापरक्कमो अहो अनन्नविष्फुरियं वीरियं अहो ओहामियसयलसुहडदप्पमाहप्पं अहो भुवणच्छरियं चरियं तस्स केसरिणो जं तिरियमेत्तस्सवि एवं परिसंकिज्जइ, अरे केत्तियं पुण कालं एवंविहपरिकिलेसेण एस | पडिक्खलिजइ ?, तेहिं भणियं- कुमार ! जाव सयलंपि करिसणं ण सगिहे पविसर, कुमारेण भणियं-भो करिसगा ! को वासारत्तदुद्विसहसीयवायाभिहओ नियसुहिसयणपमुहपहाणलोयरहिओ चिक्खलोलंमि मेइणितले मेहमालाउले | दिसिवलए अणवरथं निवडंतीसु दिसिवहुमुत्तामणिहारविग्भमासु मुणीर्णपि कयमयणवियारासु तंडवियसिहंडिमंड|लीसु विरहिणीहिययनिहित्तंगारासु वारिधारासु एत्तियं कालं पडिवालेहि ?, ता दंसेह तं पएसं जत्थ सो निवसइत्ति, जं कुमारो आणावेइत्ति भणिऊण दूरट्ठिएहिं चैव कहिया सा केसरिगुहा, तओ पुणो पुच्छिया कुमारेण- अरे ! केत्तिओ For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद ततस्स परिवारो?, तेहिं भणियं-कुमार! नियसरीरमेत्तो, कुमारेण भणियं-जइ एवं ता सिंहेन युमहावीरच० निरत्ययं धी धी वित्थरंति किं पत्थिवा विगयलज्जा । नियभुयबलावलेवं गिजंतं मागहजणेण ? ॥१॥ द्धम् शौ३ प्रस्ताव यस्य काष्ठा, बहुसुहडकोडिसंबुडहरिकरिसंमददलियमहिवठ्ठा । असहायं केसरिणं जमिमे न सरंति भयविहुरा ॥२॥ ॥४८॥ एसो जयंमि धन्नो जणणी एयस्स चेव पुत्तमई । जस्स गलगजि एणवि गरुयावि मुयंति नियजीयं ॥ ३ ॥ जस्सऽनिवारियपसरं पोरिसमेवंविहं परिप्फुरइ । एगागिणोऽपि स कहं न लहइ पंचाणणपसिद्धिं ? ॥ ४ ॥ इय सुचिरं तं पसंसिऊण गरुयकोऊहलाऊरिजमाणमाणसो नियत्तियसेसपरियरो रहवरारूढो चलिओ गुहाजाभिमुहं कुमारो, कमेण य स पत्तो गुहादेसं, एत्यंतरे दसणकोउगेण मिलिओ बहुलोगो, ठिओ उभयपासेसु,15 कओ महंतो कोलाहलो, अह कलयलायन्नणजायनिहाविगमो जंभाविदारियरउद्दवयणो परिभुत्तकुरंगरुहिरपाडलुग्गारदाढाकडप्पेण संझारुणससिकलं व विडंबमाणो पडिधुणियकडारकेसरो सदुब्भडकंधरो उविलिरमहललंगूलबेल्लिताडियधरणितडाराववहिरियदियंतरो पढमपाउसमेहोब गजंतो उढिओ केसरी, लीलाए मंदं मंदं कुमारहुत्तमवलोइउं पवत्तो य, तिविधि निरूवयंतो फलभरेण य सस्सं निसुगंतो केयाररक्खिगाजणरासए करतो तस्सालावं 8 ॥४८॥ पेच्छंतो काणणरम्मयं ताव गओ जाव निवडिओ चक्खुगोयरे स सारंगाहिवो, तं च दद्रूण चिंतियं कुमारेण-अहो एस महाणुभायो महीए चरणेहिं परिसकइ, अहं पुण पवरतुरयसंपगहियं विचित्तपहरणपडिहत्यं रणज्झणिरकिंकिणी SARKARSASR- R गरुयकोऊहस, एत्यंतरे विगमो जमानारो सदूलभडकालाए मंद महातो तस्मासाही ""C% C2%A6AGAGAGAGACACAS ESS For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % % % % % CARRA जालसंपरिखित्तं संदणं अधिरूढो, ता विसरिसं जुझं, न जुत्तमेयं उत्तमाणंति भावितो कुवियकयंतजीहाकरालं अयसिकुसुमप्पगासं करवालं गहिऊण दाहिणकरेण वामेण य पडिपुण्णचंदमंडलविन्भमं फुरतफारतारगाभिरामं फरगं च ओयरिऊण रहाओ हिओ भूमीए, ताहे पुणोऽवि चिंतेइ-एस वराओ वयणंतरनिगूढदाढाकरपेरंतकुंठकुडिलनहमेत्ताउहो अहं तु तिक्खग्गखग्गफलगहत्थो, एयमवि न जुत्तिजुत्तंति विभाविऊण खग्गं फलहगं च परिचयइ, एत्थंतरंमि दद्रूण तारिसं वइससं तिविट्ठस्स उप्पन्नगाढकोवो सीहो चिंतेउमाढत्तो कह मत्तमहामायंगतुरयरहजोहवूहरयणेणं । रक्खिजंतोऽहमहो महायरेणं महीवइहिं ॥१॥ कह मज्झ दंसणपहे कीणासस्स व न कोड निवडतो। सुद्दवि पगिट्टबलदप्पिोऽवि रणकम्मरसिओऽपि ॥२॥ कह एण्हि दुद्धमुहो तत्थवि णवणीयकोमलसरीरो । तत्थविय तुरगकरिवरपक्कलपाइकपम्मुक्को ? ॥३॥ तत्थवि य अवन्नाए ओयरिऊणं रहाओ पवराओ । अडवियडं लीलाए भासमाणो महिमि ठिओ ॥ ४॥ तत्थेव य सभुयबलावलेवमुक्तप्पहरणाडोवो । मसगंव में गणंतो एसो पविसइ मम गुहाए ॥५॥ किं वा जीवंतेहि नो दीसइ किं सुणिजए नेव । ज एरिसावि दावेंति संपयं मज्झ अवमाणं? ॥६॥ जइवि हु कुंजरसिरदारणोचिया मज्झ कुडिलनहविसिहा । तहविहु इमस्स्स दंसेमि गाढदुब्बियणसाहिफलं ॥७॥ इय चिंतिऊण गलगजियरवेण फोर्डितोब बंभंडभंडोयर, पुच्छच्छडाच्छोडणेण दलितोच मेइणीतलं, विडंबिय % %*&% % ९ महा. MAA For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir रणम् श्रीगणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः ॥४९॥ वयणदाढामऊहनिवहेण भरंतोब गयणंतरालं रत्तनयणपहासरेण अयंडनिवडंतविजुदंडुडामरं व करेंतो दिसिचक-18सिंहमावालं वेगागमणवसविसंतुललुलंत केसरभारेण अंतरे अमायंत व कोवनिवहं उग्गिरंतो सजियदीहरकमुल्लासबसवि-पला सेसखामोयरत्तणेण अंतरा तुहिऊणं व अग्गकारण गसिउकामो एगहेलाए भुवणजणकवलणकए कयंतुव्व भातमाणो झडत्ति पत्तो तिविठ्ठकुमारस्स मुणालकोमलकरकमलगोयरं, तओ तिविगुणा एगेण करेण हेढिल्लोटपुडं अवरेणुत्तरोठं अणायरेण गहिऊण जिण्णपडं व परिसडियपंडुपत्तं व भुजतरुतयं व दुहा तडयडत्ति फालिऊण परिमुक्कोत्ति, एत्थंतरे उक्किट्ठसीहनाओ जयजयरवो य कओ लोएणं, अन्नं चगंधवजक्खरक्खसविज्जाहरकिन्नरेहिं गयणमि । विक्कमदंसणसंजायहरिसपप्फुल्लनयहिं ॥१॥ . पहयाई पडहकाहलमुयंगदुंदुहिपमोक्खतूराई । कओ य जयजयरवो अहो सुजुझंति भणिऊण ॥२॥ तियसंगणाहिं वियसियकुवलयदलदामदीहरच्छीहिं । मुक्का य कुसुमबुट्टी दसद्धयना भसलमुहला ॥ ३॥ मणिमउडकणयकुंडलकडिसुत्तयतुडियहारपमुहाई । पराभरणाई लहुं सुरेहिं दिनाई कुमरस्स ॥४॥ तथा-गिजंतुद्दामगुण विविहविलासुल्लसंतगोवजणं । नचंततरुणिसत्थं जायं रणपि सुपसत्थं ॥५॥ सो य सीहो तहा दुहाकओऽपि गरुयाभिमाणेण परव्वससरीरो फुरफुरंतो विचिंतेइ-एवं नाम अहं निराउहेण ॥४९॥ एगागिणा कुमारेमेत्तेण अजुज्झेणं लीलाए विणिहओ, अहो मम काउरिसत्तणं अहो असामत्थं अहो निस्सारसरी है For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्तणं अहो दइवविपरंमुहया, सव्वहा निरत्थयमुबूढो सारंगरायसद्दो एत्तियं कालं, दुहु दुहु एरिसजीविएणंति, एवं च तस्स फुरुफुरायमाणस्स मुणियतदभिप्पाएण कुमारसारहिणा भणियं महुरसरेणं भो भो लीलानिद्दलियमत्तमायंगपुंगवसमूह ! । सारंगराय ! निप्पडिमसत्तिवित्तासियविपक्ख ! ॥ १ ॥ अविलंघियसज्जियकमनियबलपरिभूयनरवइसहस्स ! सप्पुरिस ! कीस एवं निरत्थयं अमरिसं वहसि ? ॥ २ ॥ मा मुसु जहा एएण बालरूपेण विणिहओऽहमिह । जं एसो नियकुलनहयलेकचंदो जणाणंदो ॥ ३ ॥ वररायलक्खणधरो समग्गवीरग्गणी गुणावासो । निडुरभुयदंडवलो तिविदुनामो वरकुमारो ॥ ४ ॥ भावी भरहद्धवसुंधराऍ सामित्तणेण परिकहिओ । पढमं चिय सुमिणयपाढएहिं किर वासुदेवोत्ति ॥ ५ ॥ तं मिगसीहो भद्दय ! एसो पुण नरसमूहसीहोत्ति । सीहे सीहेण हए का अपसिद्धी ? किमवमाणं १ ॥ ६ ॥ अह सो केसरी इमाणि सारहिवयणाणि महुमिव अमयंपिव सवणपुडएहिं सम्मं पाऊण उवसंतचित्तो मरिऊण नरगे नेरइओ उबवन्नो । सो य किर सारही एस काले भगवओ महावीरस्त पत्ततित्थयरत्तस्स पढमो गणहरो गोयमनामो भविस्सर । तिविद्रुकुमारोऽवि तं सीहचम्मं गहाय पट्टिओ सनयराभिमुहं, गच्छंतेण य भणिया करिसगा, जहा -रे इमं केसरिचम्मं गेण्हिऊण समप्पेज्जह घोडयगीवराइणो, भणेज्जह य तं जहा - वीसत्थो निब्भओ भुंजेसु सालिभोयणं, जायं संपइ अणावार्हति । पडिवन्नं च करिसगेहिं, तिविहूषि मओ सनमरंति, पयावई पण For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री गुणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः ॥ ५० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr मिऊण कहिओ सयलवुत्तंतो, जाओ पुरे पमोओ । ते य करिसगा गया आसग्गीवसयासे, निवेइओ पयावहस्यविणासियसीहवइयरो, एवमायन्निऊण य खुभिओ मणंमि राया, चिंतिउमाढत्तो - अहो पडिपुन्नं नेमित्तिगाइ संपर संविहाणगदुगं, ता निच्छियं पयावइसुआओ मम भयं, किं पुण कायचं ?, निवडइ इयाणि जमरायस्स दंडो, विहडइ सुदढगुणरज्जु निगडियावि रायलच्छी, विलोडंति दाणमाणव सीकयावि सेवगा, विवरंमुहे विहिंमि किं किं न वा होइ ?, केवलं अज्जवि न मोक्त्तव्वा बुद्धिपुरिसयारा, जेण एएहिं भाविणोऽवि अगत्था उवहणिजंति गलियाओवि संपयाओ पुणरवि पाउब्भवंति, तम्हा न जुत्तमुवेक्खणं, जावज्जवि लहुओ वाही ताव चिगिच्छणिजो, नहि लहुओत्ति जलणफुलिंगो न डहर केलासगिरिगरुयपि दारुरासिं, न वा परिब्भविजमाणोवि दिद्विविसभुयंगपोयगो न विणासं पयच्छेज्जा, ता इमं पत्तकालं ते पयावइसुए उवलोभपुयमिह आणावेऊण विस्संभिऊण य दाणसम्माणाईहिं विणासाविज्जं तित्ति संपहारिऊण य तेसिं आणयणनिमित्तं वाहरिओ दूओ, भणिओ य-अरे पयावई एवं भणिज्जासि तुमं हि असमत्थो सेवाए, ता सिग्धं कुमारे पेसेहि जेण तेसिं इयरा सामंतमुत्ती दिज्जर, जइ पुण न पेसेसि ता जुज्झसज्जो होज्जाहित्ति, जं सामी आणावेइत्ति पडिवज्जिऊण निग्गओ नयराओ दूओ, कमेण य पत्तो पोयणपुरं, दिट्ठो राया, कयसकारो उवविट्टो आसणे, पुच्छिओ य पयावरणा आगमणकारणं, तेण भणियं-राया आसग्गीवो आणवेद-तुमं जराजज्जरियसरीरो अचंतं परिणयवओ आएसदाणाणुचिओ य ता पेसेसु नियसुए जेण ते For Private and Personal Use Only अश्वग्रीवभयं आनयनादेशः. ॥ ५० ॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहत्थेण पूमि, वरकरितुरगनगरागरगा मदाणेण य करेमि गरुयदेसाहिवे, एवमायन्निकण चिंतियं पयावरणा-अतु लबलो आसग्गीवो दुराराहणिजो असमिक्खियतिक्खदंडनिवाडणदुबिसहो य, अदिट्ठपरभया य मम कुमारा, बिसेसेण तिविहुत्ति विभाविऊण भणिओऽणेण दूओ-भद्द ! कुमारा न मुणंति सेवाविहिं न जाणंति वत्तत्रविसेसं न लक्खंति उचियाणुचियं न खमंति नरिंदा एसमणुट्ठिउं, ता अहं सयमेव सबलवाहणो सामिसाल ओलग्गिस्सामि, तेण भणियं-न एस आएसो पभुस्स, किं वा तुज्झ इमिणा मुणीर्णपि दुक्करेण सेवाधम्मेण ? उवभुंजसु निरंतरमंतेउर मज्झगओ जहिच्छियं विसयसोक्खं, कुमारावि तत्थ गया सपहुपसाएण जइ पाउणंति रायल िता किमिव अक्कलाणं तुह हवेजा?, जओ देवो आसग्गीवो सीहवइयर निसामणेण परमेसंतुहियओ काराविडं इच्छइ महामंडेलोवभोगं आरोविडं | समीहेइ समुचपीलुखंधे काराविडं वंछइ पाणिग्गणंति, राइणा विचितियं - अहो एस दूओ इंदवारुणी फलंपिय बाहिं रमणीयं अभितरदुहविवागं उभयरूवं भासइ, ता सवहा दुहावहमेयं, सम्मं परियालोयणिज्जं, अइरहसकयकज्जाई पज्जतदारुणाई हवंतीति निच्छिऊण पेसिओ दूओं निययआवासे, ठिओ सयमेगंते, वाहराविया विसमत्थनिण्णयकरणतिक्खबुद्धिणो मंतिणो, सुहासणासीणा य भणिया - अहो आसग्गीवो मम एवमाणवेद- कुमारे सिग्धं पेसेहित्ति, ता साहेह किमिह करणिज्जं १, मंतीहिं भणियं देव! उद्दामपरक्कमो गूढमंतप्पयारो य आसग्गीवो, तुम्हे १ परमसंतुष्टः परं असंतुष्टः २ मण्डलं देशः खतं च ३ पीलुः खर्गे वृक्षश्च पाणिग्रहणं-विवाहः करबन्धव For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ३ प्रस्तावः ॥ ५१ ॥ www.kobatirth.org पुण तस्सेव सेवगा अणवरयं आणानिद्देसवत्तिणो अप्पवला य, ता को तेण सह विरोहो ?, ससत्तीए अणणुरूवकोवकरणं हि निदाणं विणासस्स, राइणा भणियं - जइ एवं ता पेसिज्वंतु कुमारा, मंतीहिं भणियं देव ! असंजायबला सेवाविहिअणभिन्ना य कहं पेसिजंति ?, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्नं च-जइविहु अइविसमत्यप्पसाहणे होज्ज कहवि लच्छीवि । तहविहु भुयंग भी मे बिलंमि न खिवेज्ज कोऽवि करं ॥ १ ॥ rafter मागमप्पयारमविगलियकलुस दोसं च । नरवइचित्तं सलिलं व कुणइ निन्नेसु नूण रई ॥ २ ॥ कप्पासकणिक्काणं वसा जो परकज्जसाहिगा सेवा । उभयत्थविणासणकारिणी उ सेवा नरिंदाणं ॥ ३॥ जह भणियविहाणपरंमुहाण पुरिसाण सिढिलचित्ताणं । दुस्साहियन्त्र विज्जा विणासमचिरा कुणइ सेवा ॥ ४ ॥ इय देव ! नत्थ कुमराण जोग्गया काऽवि सामिसेवाए । ता संठवेह दूयं सिणेहवग्गूर्हि वग्गूहिं ॥ ५ ॥ इत्ते पर्यावरणा आहूओ नरिंददूओ, भणिओ य सामवयणेहिं, जहा - भद्द ! गच्छ तुमं साहेसु आसग्गीवस्स, अणुचिया तुम्ह सेवाए कुमारा, पयावई सयमेव ओलग्गिहित्ति, दूएण भणियं - भो पयावइ ! किमेवं पित्तपलाविओ इव पुणरुत्तं वाहरसि ?, कुमारे पेसेसु, जुज्झसजो वा हवसु, एस देवस्स आएसोत्ति भणिऊण निग्गओ दूओ, अंतरे य दुधयणायन्नणेण रुट्ठेण तिविद्दुणा कुमारेण निठुरलट्ठिमुट्ठिप्पहारेहिं हणिऊण कंठे घेतून य अवहारेण | निद्धाडिओ, पत्तो य कमेण आसग्गीव नरिंदमंदिरं, निवेदओ निस्सेसो पयावइवइयरो, तमायतिकण परिकुविओ For Private and Personal Use Only कुमारयोरप्रेषणं. ।। ५१ ।। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatrth.org Acharya Sivi Kailassagarsur Gyarmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra राया, खुमिया य सहा, कहं ? अणवरयविणिंतुद्दामसेयबिंदुभडं मुहं सुहडो। परिमुसइ कोऽवि कोवुग्गमेण अहियं दुरालोयं ॥ १॥ नवकुवलयमालाविभमंमि निम्मलपहमि करवाले । निवडइ य भमररिंछोलिसच्छहा कस्सविय दिट्ठी ॥२॥ परपक्खक्खोभकरि कोवसिहाडंवरेण भयजणाण । पचक्खं नियसत्तिं व कोऽवि सतिं करे धरइ ॥ ३॥ कस्सवि निडालबद्धं रेहुक्कडभिउडिभंगदुप्पेच्छं । खयसमयसमुग्गयराहुमंडलं सहइ गयणं व ॥४॥ केणावि कुलिसनिहुरमुट्ठिपहारेण ताडिया धरणी। अविणीयधारणेणं कयावराहत्व कंपेइ ॥५॥ संभावियरणरसनिस्सरंतरोमंचपीवरकरस्स । चिरपरिहियाई कस्सवि विहडंति य कणयकडयाई ॥ ६ ॥ कोऽविहु मच्छरसंभारतरलियं वयणभासणसयण्डं । कटेण दसणदट्ठोटसंपुडेणं खलइ जीहं ॥७॥ इय जाया कोवभरुलसंतदेहाण विविहकिरियाओ। संगामसंगमुक्कंठियाण सुहडाण तवेलं ॥८॥ एत्थंतरे भणियं आसग्गीवेण-अरे उपेक्खियाणं दुरायाराणं एस चिय गई, को तस्स दोसो ?, अन्नहानियधूयापरिणयणावराहकालेऽवि जइ तमहं निगिण्हंतो ता किं एवं पसरं लहंतो, तहा-जो नियधूयं कामेइ सो नियसामिपि दुहइ किमजुत्तं ? । किं वा एएण?, इयाणिपि विणिवाएमि एवं महापावकारिणं, तारे ताडेह पत्थाणविजयढकं, पगुणीकरावेह कुंजरसाहणं, संजत्तावेह तुरयपहाई, जोत्तावेह संदणगणं, वाहरावेह समग्गं For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः ॥ ५२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नरवश्वग्गंति, वयणाणंतरमेव कथं पगुणं सयलं किंकरजणेण एत्यंतरे गओ राया मज्जणधरं, परमविभूईए कयं मज्जणं, नियंसियाई कासकुसुमसुंदराई अंबराई, बद्धाई केसेस सुरहिकुसुमाई, कओ सबंगिओ चंदणरसेणंगरागो, विहिओ पुरोहिएण असिवोवसमनिमित्तं संतिकम्मविही, खित्ता दोबक्खया सिरे, पइडिओ पुरओ मंगलकलसो, दंसियं घयपुण्णभायणं, लिहिया अट्ठट्ठमंगलया, उवणीओ य आधोरणेण सिंगारियसरीरो सिंदूरपूरारुण कुंभत्थलो गंडयलगलंतमयजलो वइरिदलणदुद्धरो जयकुंजरो, तंमि आरूढो आसग्गीवो, धरियं फारफेणपुंजुज्जलं नियपरिमंडलविजियपडिपुण्णचंद मंडलं लंवंतमुत्ताहलकलावावचूलयं सियायवत्तं, ठिया य उभयपासेसु चामरग्गाहिणीओ, वज्जियाई दिसिकुंजरगलगजिगंभीराई भंभामुगुंदमद्दलढकापमूहतुराई, ठिओ पत्थाणंमि पत्थिवोत्ति । एत्यंतरेचलंतकण्णचामरा पयंडदप्पदुद्धरा, गलंतगंडमंडला तमालनीलसामला । अलंघणिज्जविकमा महागिरिंदविग्भमा, रणंतबद्धघंटया महागयाणुपट्टिया ॥ १ ॥ पलंगपुच्छ सोहिया असेससिक्खगाहिया, सुवेयतुट्ठसामिणो समीर वेगगामिणो । विसि लक्खणंकिया परेण नो निरिक्खिया, दिर्णिदवाइविन्भमा पर्यट्टिया तुरंगमा ॥ २ ॥ विचित्तचित्तधुरा महाउहोहनिन्भरा, जओवलंभपचला रणंतर्कि किणीकुला । निलीणभूरसत्यया पंगिकेउमत्थया, दुसज्झवेरिमद्दणा पवाहिया पसंदणा ॥ ३ ॥ For Private and Personal Use Only अश्वग्रीव प्रयाणं. ॥ ५२ ॥ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A सरासिचक्कधारिणो विपक्खसूरदारिणो, ससामिभत्तिमंतया अईव जुत्तिजुत्तया । जएकलाभलालसा अचिंतणिजसाहसा, सरीरबद्धकंकडा पयट्टिया महाभडा ॥ ४ ॥ अह लाडचोडमरहट्ठकच्छकालिंगपमुहनरवइणो । आणामेत्तेणं चिय समुज्झियासेसनियकज्जा ॥५॥ सन्नद्धबद्धकवया बहुपहरणसालिणो जयपसिद्धा । आसग्गीवसयासं पत्ता सयलेणवि बलेणं ॥६॥ एवं च समग्गसंवाहगे जाए दवावियं रपणा पयाणयं, चलिओ खंधावारो, गच्छंताण य सहसचिय समुच्छलियं खरसमीरणंदोलणेणं, निवडियं छत्तं भग्गो दंडो गयणंगणाओ फारफुलिंगदारुणा पडिया उक्का, दिवसेचिय उल्लसिया तारया, जायं रुहिरवरिस, निरन्भमि चेव अंबरे फुरिया सोयामणी, अविण्णायसरूवो तडत्ति विहडिओ जयकुंजरो,नि|निमित्तं चिय जलणजालाकलावेण कवलियाई जचतुरंगमपुच्छाई, परिगलिया सयमेव भग्गदंडा जयपडाया, जाया य पलीणमयजला हत्थिमंडली, अणवरयरेणुवरिसदुरालोयं विच्छाइभूयं दिसाचकं, असुप्पवाहो मुक्को देवयापडिमाहिं, परोप्परं हसियाई चित्तकम्मरूवाई, उड्डमुहेहिं दीणस्सरं परुन्नं सारमेएहि, एवमाईणि उप्पन्नाणि बहूणि असिवाइंति। __ ताहे असिरनिरिक्खणसंजायमहाभया कुसलमइणो। आसग्गीवरिंदं भणन्ति विणओणया सचिवा ॥१॥ देव ! हिमं व विलिजइ पयावमेत्तेण तुम्ह पडिवक्खो। किमकंडविडरकरो पारद्धो समरसंवाहो? ॥२॥ तुह तुरयखरखुरुद्धयरयपडलेणं पणटुकरपसरो । सूरोवि अंतरिजइ को अन्नो जो परिप्फुरइ ? ॥३॥ खरसमासाय हिरपरिसं, निरभान लियाई जचतुरंगमपुच्छा NSARAM SARALASAARCLEASCAM दिसाचकं, अं. For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org 3/दुनिमित्तेषु मत्रिशिक्षा. श्रीगुणचंद महावीरच. ३ प्रस्तावः ॥५३॥ ता मुयह विजयजत्तं नयराभिमुहं लहुं नियत्तेह । असिवोवसमनिमित्तं कीरंतु य होमजागाई॥४॥ नहु एरिस असिवेहिं कोसलं किंपि देव! पेच्छामो। पूरिजंति किमेवं सत्तूण मणोरहा धणियं? ॥ ५॥ एवमाइन्निऊण भणियं रन्ना-भो भो किमेव वाउलत्तणं तुम्भे निनिमित्तं पडिवन्ना?, किं न मुणह मम भुयदंडपरक्कमं? न वा सुमरह चिरपभूयसमरसम्मइविद्दवियपडिवक्षसंपत्तविजयं? न वा पेच्छह अपरिकलियसंखं भरियनिण्णुन्नयमहिविभागं महोदहिसलिलंपि व चाउहिसिं पसरियं चाउरंगं वलं?, किमिव अट्ठाणे श्चिय भायह, किंवा सनयराभिमुहं में नियत्तावेह ?, न हि पारद्धवत्थुपरिचाइणो सलहिज्जति पुरिसा, न य तहाविहसंदिद्धकइवयअमगलमत्तेणवि खुम्भंति वीरा, जओ गहगणचरियं सुमिणाण दंसणं देवयाण माहप्पं । सुणखररसियप्पमुहा सउणा य तहा जणपसिद्धा ॥१॥ उक्कानिवडणरुहिराइवरिसपमुहाई दुन्निमित्ताई । सबाइँ घुणक्खरसंनिभाई को तेसि भाएजा ? ॥२॥ ता धीरा होह, निवाडेमि नीसेसदुन्निमित्तसत्थं मत्थए पयावइस्स, इति भणिऊण विसुमरियनिमित्तिगवयणो अवस्संभवियव्वयाए विणासस्स पडिकूलयाए देवविलसियस्स वारिज्जमाणोऽवि पुराणपुरिसेहि पडिखलिजमाणोऽवि |कुसउणेहि सोवरोहं नियत्तिजमाणोऽवि अंतेउरजणेण छत्तमंगं सुणाविजमाणोऽवि निमित्तपाढगेहि सयलवलसमेओ है गंतुं पयहो, कमेण य पत्तो सदेससीमासंवत्तिणं रहावत्तपचयदेस, तहिं च खंधावारनिवेसं कारावेऊण वाहराविओ । ॥५३॥ For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org E दूओ, भणिओ य-अरे गच्छसु पयावइस्स सगासे, भणसु य तं-एस आगओ आसग्गीवो राया जुन्झसजो वट्टइ, 13/सिग्धं संमुहो एहि, कुमारपेसणेण संमाणं वा करेहि, मा अकालेश्चिय कुलक्खयं जणेसुत्ति, जं देवो आणवेइत्ति | पडिच्छिऊण से सासणं नीहरिओ दूओ, कमेण य गओ पयावइस्स मूलं, कहिओ गरिंदाएसो, रुढो तिविदुकुमारो, भणिउमाढत्तो य रे दूय! तुममवज्झो निन्भयचित्तो ममोवरोहेण । घोडयगी गंतुं फुडक्खरं भणसु वयणमिमं ॥१॥ मा होहिसि विगयभओ बहुपरिवारोत्ति चिंतिउं अचिरा । सीहोब मइसिलिंबं एस तिविठ्ठ तुम हणिही ॥२॥ अजवि पयावइनिवो नियनामत्थं फुडं सुमरमाणो । रक्खइ तं जइ परिहरसि निदुरत्तं वहसि पणयं ॥ ३॥ अहऽभिणिविट्ठमईणं सुट्ट भणियंपि दोसमावहइ । ता किं निरत्थएणं सिक्खादाणेण एएण? ॥४॥ दूएण तओ मणियं अजवि दुस्सिक्खिया दढं तुम्हे । न मुणह देवस्स बलं तेणेवमसंकमुल्लवह ॥५॥ अह पयावइणा भणिय-भद्द ! वच्च नियनरिंदसगासं, साहेसु य जहा-एस आगओ पयावइत्ति, एवमाइनिऊण निग्गओ दूओ, राइणावि काराविओ सेन्नसंवाहो, तओ पक्खरिजंतदप्पियवग्गंततुरंगमं गुडिजंतगयघडं समरपरिहत्थुच्छहंतफारफारकचकं चंडगंडीवगुणज्झणकारमुहलुच्छलंतवणुद्धरं रहारूढपवरवीरं नाणाउहहत्यसमुत्थरंतसुहड| सत्यं चलियं चाउरंग बलं, तेण य परिवुडो पयंडगुडाडोवमासुरकुंजरकंधराधिरूढो नीहरिओ पुराओपयावई, एत्थं SCORECASSAGAUR For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः ॥ ५४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तरे नीलचलंतमहंततालज्झयाणुसार मिलियसामंतपरिगएण पवलनीलीनीलयदुउल्ल नियंसणेण करय लफुरंतह लमुसल - पहरणेण संगाम संगमुक्कंखिरेण अयलकुमारेण अणुगम्ममाणमग्गो आमलगथूलमुत्ताहलहारेण गयणाभोगोव नहसुरस - रिपवाहेण सोहंतवियडवच्छत्थलो तरुणतरणिकिरणसन्निगास सिचयजुयलेण वडवानलजालाकलावेण जरासिव रेहंतदेहो सवण कय कण कुंडलकंतिपसरेण तकालसंगमू सुयरायसि रिसरागतिरिच्छच्छ विच्छोहेहिं व भासमाणवयणो पुरो पट्ठियरयण लट्ठिनिविठ्ठकणय कवि लगरुलकं तिपडलच्छ लेण कोवं व उग्गिरंतो तिविद्दुकुमारो, सिग्धं गंतूण मिलिओ पयावइनरिंदस्स, भणिउमाढत्तो य-ताय ! नियत्तह तुम्हे, देह ममाएसं, कित्तियमेत्तो एसो घोडयग्गीवो ?, अवणेमि तुम्ह पसाएण एयस्स धिटुसोंडीरयं, न य बहुसहाओत्ति संकणिज्जं, जओ भोयणमेत्तसहायिणो इमे, परमत्थेण एगागी चैव एसो, रायणा भणियं पुत्त ! लीलाविहाडियसमुक्कडकेसरिकिसोरस्स अविगणियपडिवक्खलक्खस्स किं असज्झं तुह परक्कमस्स ?, केवलं दूरट्टिया कोऊहलपेच्छगा एत्य अम्हे, कुमारेण वृत्तं एवं होउ, अह विसिसउणोवलंभवत परितो साणं अणवरयपयाणगेहिं वचंताणं तेसिं तस्स रहावत्तपव्वयस्स समीवे संपताणं अवरोप्परासन्नदंसणवसेण जाए हलवोले परिकप्पियपक्खरगुंडाडोवाई उट्टियाई तुरङ्गहत्थिसाहणारं उदुयधयर्चिधाई, संपलग्गाई उभयवलाई, तओ-ताडियसरतूरतुट्ठजणं भयथरहरंत कायरगणं, उद्दामवं दिसद्द पढणुच्छतसुहर्ड वरधूलिधूसरियरहघयवडं ॥ १ ॥ खरखुरुप्पकप्परियतुरयपक्खरियनियतुर यघट्टलोट्टाविय कुंतयरं । आसवारकरु For Private and Personal Use Only त्रिपृष्ठाचलयोर्गमनं. ॥ ५४ ॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्खयतिक्खकरवालविदारियसूरसिरं गुंडियगुरुकरडिघडफोडियतुरयघट्ट अन्नोन्नमिलणजायनिविडसंघटुं ॥ २ ॥ सरलसेलकलोलकीलिजंतकुंभपलायंतगयं सुन्नपुनहिंडंतचंडचंडुलइयं । तिसूलभलिसेलभिन्नवेलंतनरं, उत्तालनिवडियछत्तछत्तधरं ॥३॥ दंतिदंतसंघट्टपयट्टानलकणं, उद्धबाहुनचंतकबंधपबन्धघणं । विप्फुरंतकुंतग्गघायघुम्मियरहियं, सारिमज्झजुझंतजोहघायदुविसहं ॥४॥ कुंभिकुंभघायसमुच्छलियरुहिरप्पयहं भूमिवट्ठनिचेट्टपडियसमुत्तुंगमायंगरुद्धपहं।। महल्लच्छभल्लभलुकमुक्केफकारभीसणं, संगामरसियसुहडलोयतोसणं ॥ ५॥ काऊण(दंडपडण)विचित्तसमरवावरं ॥ धाणुकढुकधाणुकयाहं, फारकियभडफारकियाहं । कुंतयरभिडियसमवग्गियाहं, खग्गाउहउक्खयखग्गियाहं ॥१॥ पडिखलियतुरंगतुरंगमेहि, मेलंतसेल्लभडदुग्गमेहिं । मयगलगिलंतमयगिण्णगंड, अभिट्टपरोप्परबद्धमुंडः ॥२॥ पाउम्भवंतअघोररोस खणि खणि विमुक्कभीसणनिघोस । चाउहिसि सुहड समोत्थरेवि पहरंति समरि नियपाण देवि ॥३॥ नाणाउहहत्थनरिंदवग्ग अवरोप्परजुज्झितसंपलग्ग। गयजीविय निवडहिं दंडनाह, पवईतरुहिरपहजुय अगाह ॥ ४ ॥ सेसारुणच्छुरणबद्धकच्छु, मह दंसह आसग्गीवु हत्थु । इय जंपिरु रिउ पडिसत्तुराओ, एत्थंतरि पडिपहरंतु आउ ॥ ५॥ - तो बंगकलिंगनगराहिवेहि, जुगवं चिय मुक्कमहाउहेहिं । A RANAS For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क त्रिपृष्ठाश्व ग्रीवयो श्रीगुणचंद महावीरच ३ प्रस्तावः ककककर पडिखलियउ पयावर जुल्झमाणु, साहुन्छ जाओ परिचत्तुमाणु ॥ ६ ॥ आसग्गीवह सेन्नेण अइबहुसंखेण हरिकरिसंदणदुद्धरेण । निम्महिय परकमु पहणिय उजमु कयउ पयायइ तक्खणेण ॥ ७॥ मुणिवि तं निजियं जायकोबुग्गमो, भिउडिभीमाणणो पायडो ने जमो। अवलु पयलंतहलमुसलदिवाउहो, सिग्यवेगेण सत्तूण ठिओ संमुहो ॥ ८॥ तयणु चिरलद्धजयवायगन्बुद्धरा, ते नरिंदा समुबूढदढमच्छरा । सेलनारायसरनिरयमेलंतया, अबलपासंमि वचंति वगंतया ॥९॥ हरिसमरतडयडुत्तुकंकडगुणो, सोयते पेच्छिउं बाढमखुभियमणो। जंपए रे लहुं चयह चक्खुप्पहं, कीस वञ्चह विणा कारणं जमगिहं ? ॥१०॥ किं न भो नियह मह लंगलं सियसिहं, कुवियकीणासजीव अइदुस्सहं । वइरिवच्छत्थलीविलिहणुड्डामरं, जस्स कंतीहि अरुणिजए अंबरं ॥ ११ ॥ किंन वा मुसलमलिवलयकसिणप्पहं, धरणिमणिसारपरमाणुनिम्मियमुहं । जयह तुम्भे जमेवं रणे उजुया, तेहि बुत्तं अरे तुज्झ का चंगया? ॥ १२ ॥ CARRAN ॥५५॥ For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओण दीसंति तुह सन्निहा हालिया, धरइ लीलाएँ मुसलंपि किल महिलिया। एवमुलाविरं वइरिसत्यं बलो, सरइ वेगेण करकलियसियलंगलो ॥ १३ ॥ केऽयि मुट्टिप्पहारेण ताडइ भडे, अवरि मुसलेण चूरइ सहावुभडे । हलसिहग्गेण केसिपि उरु दारए, अन्नि चलणप्पहारेण मुसुमूरए ॥ १४ ॥ एकघाएण पाडइ महाकुंजरे, तणयपूलं व गयणे खिवइ रहवरे । मुयइ करुणाय परिचत्तसयलाउहे, ठाइ निग्गयपयावोऽवि नो से मुहे ॥१५॥ इय निदुरगत्तेण निरुवमसत्तण निहरेण बलदेवेण बलु बलु विरियहं । तक्खणि विद्धंसिओ भडमउ नासिउ सयलदिसामुह पसरियहं ॥ १६ ॥ एवं चिय पइदिवसं दोण्हवि सेन्नाण जुज्झमाणाणं । विविहप्पयारभीमं एयं जायं समरठाणं ॥ १७॥ एगत्य पडियनरवइपियंगणाकरुणरुनरवभीमं । अन्नत्य बंदितज्जणसवडंमुहचलियपडिसुहडं ॥१८॥ एगत्थ दंतिदसणग्गभिन्नसूरासिलेहहयरहियं । अण्णत्थ भीयकायरनियमुहखित्तंगुलीवलयं ॥ १९॥ एगतो ऊसियकरमाहूयऽण्णोण्णवीरवरपुरिसं, अश्वत्थोमिंठविणटुर्मिठपरिभमियगयनिवहं ॥२०॥ एगत्थुत्तालिमिलंतघोरवेयालविहियहलबोलं, अन्नत्थ सिवागणखजमाणगयजीवनरनिवहं ॥ २१ ॥ For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ३ प्रस्ताव युद्धम्. ॥५६॥ एगत्तो सणतिक्खचक्कछिजंतमहिगयजणोह, अन्नत्तो भडतोसियमागहगिजंतवरचरियं ॥ २२॥ त्रिपृष्ठाश्वइय विहियविविहभीसणकिरिएहिं उभयसेन्नसुहडेहिं । समरंगणं सुराणवि जायं अच्चंतभयजणगं ॥२३॥ ग्रीवयोकिं च-रणट्ठाणनिवडियकण्णसीसकरचरणजंघतणुखंडं । विहिणो घरं व नजइ जयजणघडणुज्जयमइस्स ॥ २४ ॥ | एवं च बहूई वासराइं महासम्महेण निवाडियाणेगसुहत्थिसु तिक्खनारायनिम्भिन्नकुंभिकुंभत्थलेसु, चुरियचारु| तुंगसिंगरहवरेसु मुसुमूरियनरवइसहस्सेसु जायंतेसु आओहणेसु पेच्छिऊण बहुजणक्खयं तिविगुणा भणाविओ दूयवयणेण आसग्गीवो, जहा-किमणेण निरत्थएणं निहोसपरियणक्खएणं, तुमं च अहं च परोप्परबद्धवेरा, ता | अंगीकरेह नियभुयबलं, सम्म ठवेहि चित्तावटुंभ विमुंच कायरत्तं परिचय परपुरिसायारं दावेहि सहत्थकोसलं मेल्लेहि |सरीरसोकुमलं पगुणो भवाहि असहाओ मए एगागिणा सह जुज्झिउंति, सम्ममवधारिऊण गओ दूओ, निवेइओ|5|| आसग्गीवस्स कुमारसंदेसगो, पडिवनो य राइणा, जाए बीयदिवसे विचित्तपहरणपडिहत्यं जोत्तियपवरतुरयं सारहिमेत्तपरियत्तपरियरं संदणमारुहिऊण ओइण्णा रणभूमीए आसग्गीवतिविठ्ठणो, ठियाई उभयपासेसु सपहुपरकमावलोयणकोऊहलाई दोनिवि बलाई, रुंदखंदचंडिकोहंडिपमुहदेव उवजाइयसयदाणपरायणाई निलीणाई उच्चपएसेसु अंतउराई, पेक्खणुकंखिरा य गयणंगणमोगाढा सुरकिंनरकिंपुरिसविजाहरा, लंबंतमुक्कजडाडोवो पाणिपरिग्गहियछत्तगो संगामदंसणुन्बूढगाढहरिसो पइखणअट्टहासे मुयमाणो देवसमूहं च सोवओगं कुणमाणो वियंभिओ अंतरे। ANCHOREGALASARKARI For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नारयमुणी । एत्यंतरे आसग्गीवेण भणिओ तिविट्ठ गिरिगुहनिवाससि(खि)न्ने रोगजराजजरंगए सीहे । निहए करुणाठाणे अहो तुमं बलमयं वहसि ॥१॥ किमहं तं न समत्थो विणासिउं पढममेव लीलाए। किं तु मयमारणे अवयसो सिया तेण नो हणिओ ॥२॥ जइ कहवि दुद्धवयणोत्ति कलियनो सिक्खर्विति तं कुसला। किं एत्तिएणऽवि मुहा परंमुहो सुंदर! नयस्स ॥३॥ सचं चिय न कयंतो कुद्धो विद्दवइ करचवेडाए। किंतु दुबुद्धी दाउं परस्स हत्थेण मारेइ ॥४॥ जं चिय किंचि परूढं बाहुबलं तुझ नरजणभहियं । पक्खुम्भेओच पिवीलियाण तंपि हु वहट्टाए ॥५॥ थेरस्स पयावइपत्थिवस्स पुत्तच्छलेण तं भद्द! । नूणं विणासपिसुणो समुग्गओ धूमकेउच्च ॥ ६ ॥ ताहे तिविदुणा सो भणिओ वुहृत्तणस्स तुह पढमो। पाओ पाउन्भूओ दुव्ययणुलावरूवो किं? ॥७॥ किं वा सन्निहियकयंतसंगसंजायनिकुरसहावो । निम्मेरं थेर! समुलवेसि वन्नसि समाहप्पं ॥१॥ रणकसवट्टयनिवडियपवरसोडीरिमासुवण्णस्स । अत्तुक्करिसो सोहइ नरस्स वन्निजमाणोऽवि ॥९॥ ता संवरेसु वयणं खणमेकं अंतरे परिभमंतु । तुज्झ महथिय बाणाऽरिपक्खमहणा महावेगा ॥१०॥ आसग्गीवेण पुणो भणिओ डिभोत्ति मज्झ नो घायं । दाउ खमंति हत्था ताहे पहरसु तुम पढमं ॥११॥ तिविदुणा भणियं-भो घोडयग्गीव! पुरा मम तायस्स तुम सामिसद्दमुबहतो ता तयणुवित्तीए चेव अणइक्कम For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ३ प्रस्ताव ॥५७॥ त्रिपृष्ठाश्वग्रीवयो CAUSAMASSACROSE णिज्जवयणोऽसि अओ अवहिओ होहि एसा निवडइ कयंतदिद्वित्व दुविसहा विसिहपरंपरत्ति भणिऊण आयनमाकड्डिय कोयंड रणज्झणाविया पडंचा, मुक्का सलोहा मम्मायेहिगा खलालिन्य निहुरा सरधोरणी, तओ आसग्गीवेण धणुचेयकुसलयाए अद्धमग्गमपत्तेचिय खंडिया तिक्खखुरुप्पेहि, पुणरवि कुमारेण भिघोष सपक्खो निरवेक्खगामी खित्तो नारायमिवहो, सोऽवि निप्पुष्णजणमणोरहोब पडिखलिओ आसग्गीवेण, किं वहुणा?-- जं सत्यं किंपिवि खियइ नरिंदस्स संमुहं कुमरो। तं तं आसग्गीयो दक्षत्तणओ पडिक्खलइ ॥१॥ आसग्गीवोऽपि पयंडकोवी मुयइ पहरणं जमिह । वेजोव्व रोगजायं कुमरोऽवि तयं पडिहणेइ ॥२॥ अह भरहषाहुबलिणोव्व गाढममरिसभरेण पहरंता । खयसमए राहुसणिच्छरब रेहति ते दोऽवि ॥३॥ एवं परोप्परं जुझिराण तेसिं पगिट्टप्पाणं । सचराचरावि धरणी धरहरिया पयभरकता ॥४॥ एत्यंतरंमि अणवरयखिवणओ पहरणुचओ सब्यो । आसग्गीवनरिंदस्स निहिओ सुकयरासिव ॥५॥ ताहे किंकायव्वयवाउलचित्तेण खेयविहुरेण । अविभग्गपसररिउदप्पदंसणुढकोवेणं ॥६॥ आवयधणं व दढपणयचित्तमित्तं व पियकलत्तं व । विसमावडिएणं नरवरेण संसुमरियं चकं ॥ ७ ॥ अह जलगुन्भडपसरंतकिरणमालासहसपलवियं । जुगविगमुग्गयमायंडचंडमंडलयदुप्पेच्छं ॥८॥ रुद्दजमारुणनयणं व मिलियनीसेसविजुपडलं व । आसग्गीवस्स झडत्ति चक्करयणं करे चडियं ॥९॥ 4%AC%AAAAAR ॥५७॥ For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kcbatirth.org ACANADAAL तयणंतरं च पहरिसतडत्तितुटुंतवम्मबंधेण । तेण विमुकं वहणट्टयाए सिग्धं तिविट्ठस्स ॥१०॥ | गंतुं कवाडपियडे बच्छयले तंजवेण कुमरस्स । चिरदसणुस्सुयं बलह व तुंवेण संलग्गं ॥११॥ एत्थंतरंमि दढचक्कतुंबसंघट्टयायवियलंगो । मुच्छानिम्मिलियच्छो पडिओ धरणीयले कुमरो ॥ १२ ॥ आसग्गीववलेणं ताहे संपन्नबहुपमोएणं । जयजयसढुम्मिस्सो पकओ कोलाहलो सहसा ॥ १३ ॥ तथा-जाव य उग्गीरियविविहपहरणा नाघडंति सत्तुभडा। ताप तिविट्ठकुमारेण तक्षणं विगयमुच्छेणं ॥ १४ ॥ यो घोडयगीव ! गओऽसि नासमहुणत्ति संलवंतेणं । तं चिय तस्साभिमुहं मुकं चकं झलहलंतं ॥ १५॥ तो तं तालफलंपिव तडत्ति छेत्तूण तिक्खधाराए । आसग्गीवस्स सिरं करे ठियं पुण तिविठुस्स ॥ १६ ॥ अह नियंमि आसग्गीवे हरिसवसविसप्पमाणसमुच्चरोमंचेहि सहसचिय जयजयरवं करतेहिं सुरासुरेहिं सरसपारियायतरुमंजरीनियरसंवलिया सोरभभरगंधलुद्धमिलंतभसलजालमुहला अणवरयविणितामंदमयरंदविंदुसंदोहविच्छुरियसयलदिसा कमलकुवलयमालइपमुहा मुक्का पंचवन्नकुसुमबुट्ठी, उग्घोसियं च महया सद्देण जहा-भो भो पत्थिवा! परिचयह कोवकंडु मुयह दुबहदुविणयपणयं परिहरह आसग्गीवपक्खवायं उज्झह असझवावारं पणमह सबायरेण तिविटुं, एसो खु एत्थ भरहखेत्ते समग्गबलवंतपुरिसप्पहाणो पुब्बभवसमुवज्जियसुकयसंभारवसविसप्पमाणमहलक-12 लाणनिहाणो उप्पन्नो पढमो वासुदेवोत्ति। एवं च आयन्निऊण संभंतविलोयणेहिं दूरपरिमुक्पहरणपबंधेहिं अहमह For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SARANGABRICA विषयगई, ता यह परित्यंतरे तिविद्लेवपकविलगत्तो निवाडयपहाणपुरिसबमारदमेवर्म श्रीगुणचंद मिगाए पडिक्खलंतमणिकिरीडकोडिमसिणियकमनहनिवहहिं भालयलपडियकरसंपुडेहिं पंचंगपणिवायपुरस्सरं | त्रिपृष्ठस्य महावीरच० पणमिओ पत्थिवसहस्सेहिं तिविट्ठ । विनत्तो य जयः अश्व३ प्रस्ताव देव! परायत्तेहिं जुत्ताजुत्तं अयाणमाणेहिं । अम्हहिं जमवरद्धं तमियाणि खमह नीसेसं ॥१॥ दीवान्तः पु | रविलाप ॥५८॥ कुणह पसायं नियचरणनलिणसेवापयाणओ अहं । मोत्तूण तुमं एकं अन्नो नो विजए नाहो? ॥२॥ एयमायन्निऊण तिविटणा भणियं-भो भो नरेसरा! किमेवं जंपह? को तुम्ह दोसो ?, परायत्तचित्ताणं एसचिय गई, ता मुयह पडिभयं, पसंतडिंबडमराई भुंजह नियनियरजाई, मम छत्तच्छायापरिग्गहियाण पुरंदरोऽवि न | पहवेइ तुम्हाणंति । एत्यंतरे तिविट्ठसेवोवगयनरवइवग्गावलोयणसंपन्नासग्गीवविणासनिच्छयं समागयं तं पएसम६ तेउरं, दिट्टो छिन्नगलनाडिनिस्सरंतरुहिरपंकविलुत्तगत्तो रत्तचंदणकयंगराओब्ध उवरि परिन्भमंतपिसियासिपक्खिनिवारियरविकरपसरोधरियमहप्पमाणछत्तोवमंव सन्निहिनिवडियपहाणपुरिसवग्गो अत्याणगओव आसग्गीवनरिंदो। अह अदिट्ठपुव्वं अचंततिक्खदुक्खावहं तारिसमवत्थंतर से पासिऊण अकंदिउमारद्धमेवमंतेउरं__ हा हा कयंत! निकरुण! किं तए पाव एवमायरियं । एवंविहपुहईपहूऽवि एसो हयास हो॥१॥ किं एत्तियाहिं निहयाहिं तुज्झ तित्ती न सुहडकोडीहिं । उप्पन्ना निप्पुन्नय! जमेस रायावि संहरिओ ॥२॥ हे चक्क!निकिव ! कहं सपहुविणासाजसोतए विहिओ। तुब्भेहिऽवि किंजक्खा! उवेक्खियं निग्घिणा एयं ॥३॥ GAAAAAAAA For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org BECAUSESSAG हे काल! बद्धवरवंसजाय तुज्झवि गुणेण किं तेण । हा हा रक्खामणिणो वीसत्थविणासगा तुम्भे ॥ ४ ॥ धीधी पुरोहियाहम! चिरकालं तप्पियं तए जलणं । निल्लज्ज ! कहसु संपइ असिवं किं जं पडिक्खलियं? ॥ ५॥ हे अंगरक्खवग्गा! तुम्भेऽविहु कीस संपइ पलाणा ? । हा हा एगपए चिय सबंपि परंमुहं जायं ॥६॥ हा पाणनाह ! संपइ पडिहयपडिवखसुहडलक्खंमि । तुमए सग्गोवगए तडकिही कस्स जयढका? ॥७॥ हा रायलच्छि! वेहब्बसिए कीस जीवसि इयाणि ? । इहराणुहवसि दुक्खं दूमिजंती कुनाहेहिं ॥८॥ इय विलविरीहिं निद्दयताडियथणवतुट्टहाराहिं । वेहव्वदुक्खभरभजिरीहिं पल्हत्थवलयाहिं ॥९॥ अणवरयघोरगलियंसुवाहं रुन्नं तहा मयच्छीहि । जह तद्देसगएणं रुन्नं पक्खीणवि गणेणं ॥१०॥ ताहेऽणुजीविणा परियणेण पम्मुक्कपोकरनेण । आसग्गीवसरीरं खित्तं जालाउले जलणे ॥ ११ ॥ एत्यंतरे अंतेउरीजणवेहव्वदुक्खमसहमाणोव्व पयंडरणकम्मदंसणभयभीओब तिक्खासिखंडियहयरुंडावलोयणु-६ त्तट्टरहतुरंगोव्य समीरणुदुयरुहिरसीयरासारसंसित्तोब्व आलोहियमंडलो झडत्ति चक्खुगोयरमइकंतो सहस्सकिरणो, गवलगुलियालिवलयकज्जलतिमिरपडलपडकयावगुंठणा फुरंततारनयणा अणवरयनिवडतउक्काफुलिगुग्गारच्छलेण मणोइरित्तपरिपीयसुहडजणरुहिरगंडूस व मुयंती महारक्खसिब भयजणणी पसरिया रयणी, ठिओ नियनियट्ठाणेसु जणो, कमेण य जाए पहायसमए भणिया तिविद्रुणा नियपुरिसा-भो भो गच्छह संगामभूमि, ACASSA For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ३ प्रस्ताव ॥ ५९॥ १ निरूवेह पहारपरब्बसे जोहनिवहे करेह ओसहघायबंधाइणा परित्ताणं परिमग्गह दुतुरंगमपल्हथिए पत्थिवेत्ति-18 त्रिखण्डसम्मं निउंजिऊण(अंतेउरण)समं समग्गनरवइयग्गपरियरिओ समेओ पोयणपुरं, तओ नयरलोएण कयं वेजयंती, साधनं सहस्साभिरामं ठाणठाणनिबद्धमंचारूढविलासिणीनट्टरमणिजं पमुक्कसुरभिपुप्फपुंजोवयारकलियरायमग्गं पहयपडुपडहपमुहजयतूरनियरं नयरं पविट्ठो महया विभूइए तिविट्ट, जहोचियठाणेसु ठिओ सेसो परिवारो । तओ कइवय लोत्पाटनं. वासराई तत्य ठाऊण पुणोऽवि समग्गबलकलिओ चक्कछत्तधणुमणिमालागयासंखरयणपरिगओ निग्गओ दिसिविजयनिमित्तं तिविट्ट, कमेण पसाहियं भारहद्धखेत्तं, अपणयपुवा नामिया पत्थिवा, गाहिया सेवाविर्ति, गहियाई तेहिंतो करितुरयरयणपमुहाइं पहाणपाहुडाई, एवं च नीसेसमंडलाहिवसहस्साणुगम्ममाणमग्गो पेच्छंतो अपुव्वापुन्वनयराई ठावितो अंगवंगकलिंगाइसु अन्नन्ननरिंदे पत्तो मगहाविसए, तहिं च दिट्ठा कोडिपुरिसवोज्झा महासिला, सा य भुयबलावलेवओ लीलाए वामभुयदंडेण उक्खिविऊण छत्तगं व धरिया सीसोवरिं, अतुलियबलावलोयणहरिसुप्फुल्ललोयणेहि य कओ नरवईहिं जयजयारवो, पढियं च मागहगणेहिं, कहं?देव! मणालागारो तुज्झ करो कलियरुंदकोडिसिलो । सिरिधरियधरणियट्ठस्स वहइ सेसस्स समसीसि ॥ १॥ ॥५९॥ सुह एवंषिहलीलाइएण चित्तं न कंपए कस्स । जइ सम्बहावि पत्थरविणिम्मिओ होज सो न जणो? ॥२॥ इय मागहेहिं णेगप्पयारवयणेहिं संथुणिज्जंतो। मोत्तूर्ण कोडिसिलं चलिओ.राया सपुरहुत्तं ॥३॥ 54545% For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गच्छन्तो य पत्तो दंडगारन्नपरिसरं तर्हि च खंधावारनिवेसं काऊण ठिओ कइवय वासराई, एगया य रयणी - मज्झनि भरपसुत्ते सेयगजणे अणुरत्तविरत्तपरिवार चारमुवलंभिउं करकलियचको कयवेसपरियत्तो अणुवलक्खिज्रमाणो जामकरिघडारूढेहिं अंगरक्खेर्हि नीहरिओ एगागी वासुदेवो निययगुडराओ, अमुनियपयप्पयारो य इओ तओ परिब्भमंतो जाव खंधावारनिवेस मइकमिऊण गच्छ ताव निसामेइ थेवदेसंतरियं मंद मंद कोलाहलं, तं च निसामिऊणुप्पन्नकोऊहलो पधाविओ तयभिमुहं, कमेण पत्तो एगं बहलतरुवरसंछन्नं काणणं, तहिं च पत्तस्स उवसंतो सो कोलाहलो, तओ किं विभीसिया एसा ? मइविग्भमो वा ममेत्ति जाव चिंतेइ ताव काणणभंतराओ समुट्ठिओ सदुक्खनरधणियसदो, तदणुमाणेण य पुणो पढिओ तिविट्ट, अह वच्छत्थल विप्फुरंतकोत्थुभमणि मऊड विद्वंसियंधयारे जाए तत्थ पएसे येवंतरगएण हरिणा दिट्ठो रुक्खेण समं विविहवंधणवद्धो पुरिसो, (पुच्छिओ सो उचियायरेण) भो को तुमं ? केण वा इममवत्थंतरं पाविओसित्ति ?, तेण जंपियं महाणुभाग । निविडवंधणत्तणओ न सकेमि परिकहिउं, ता अवणेहि बंधे जेण साहेमित्ति कहिए तिविहुणा चकेण निकंतिया बंधा, जाओ वीसत्थो, भणितं पचत्तो य-अहो निक्कारणपरमबंधुन्व निसामेहि मम वित्तंतं, अहं रयणसेहरो नाम विज्जाहरो रूवलावन्नसुंदराइगुणावडिभूयाए सिंहउरायधूयाए विजयवईनामाए पुष्वं चिय बहुप्पयारपत्थणाहिं दिन्नाए परिणयणत्थं संपयं समग्गसामग्गीसणाहो जाव तत्थ पडिओ ताव एत्थप्पएसे संपत्तो समाणो वाउवेगाभिहाणेण वेरिणा वि For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org विद्याधरमोक्ष विज यवत्युवाह.. श्रीगुणचंद जाहरेण सब्बस्समवहरिऊण दुक्खेण मरउत्ति विभावितेण एवं गाढं बंधिऊण चत्तोऽम्हि, तिविहुणा भणियं-तुम महावीरच विजाहरो होऊण केण कारणेण भूमिगोयरधूयं उब्बोदमिच्छसि ?, तेण जंपियं-महाभाग! अपुवं किंपि से रूवं ३ प्रस्ताव: असरिसं च लायन्नंति, तिविठ्ठणा चिंतियं-जह सचं चिय एवंविहगुणोक्येया सा ता मम जोग्गा परिणेउति विभा॥६ ॥ विऊण भणिओ एसो-अहो तुमए उबूढावि एसा तेण वेरिणा हीरिही, ता किं निरत्थएण तदुवलंभेण ?, विजाहरेण दजंपियं-सच्चमेयं जब तुम्ह सत्ती अत्थि ता तुन्भे परिणेह, परिचत्ता-मए इयाणि, पडिवन्नं तिविठ्ठणा, कयप्पणामो गओ सट्ठाणं विजाहरो, हरिणावि सिंहलेसरं अणेगप्पयारोहिं पत्थिऊण परिणीया सा विजयवई धूया, आगओ य |निययपुरं, पडिच्छिओ महारायाभिसेओ, जाया बत्तीसं सहस्सा जुबईणं- . अह निचपयट्टविसदृगीयझंकारमिस्समुरवरवे । नडचेडचाडुकारयकिंकरनरनियरपरियरिए॥१॥ सुविभत्तचित्तविच्छित्तिसुंदरे मंदिरे निवसमाणो । अइपडिहयपडियक्खं तिखंडभरहं च रक्खंतो ॥२॥ भयवसनमंतसामंतमंडलो तरुणिसत्थमज्झगओ । आखंडलोब भुंजइ विसए पंचप्पयारेऽवि ॥३॥ नवरं विजयवईए नामंपिहु नेव गिण्हइ तिविछ् । ईसाविसायवसओ सा य पओसं समुबहइ ॥ ४ ॥ एवं वोलंतमि काले अन्नया नियमाहप्पनिहयदुभिक्खाइदुकुखनिवहो समागओ भय सेयंसतित्थयरो, विरइयं देवहि विसालसालवलयपरिक्खित्तं विचित्तमणिमयसिंहासणाभिरामं भवभयत्तसत्तसंताणेकसरणं समोसरणं, तो For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 846:'--SACSATSANSAR सायरमिलंतसुरिंदंसंदोहथुणिजमाणो उवविट्ठो सिंहासणे जिणो,एत्यंतरे जिणागमणनिउत्तपुरिसेहिं वद्धाविओ तिविह, कहिओ जिणागमणवइयरो, तओ हरिसभरसमुल्लसंतरोमंचेण य दवावियं पीइदाणं सहदुवालसकलहोयकोडीओ तेर्सि पुरिसाणं, समग्गबलवाहणो अचलेण समेओ य गओवासुदेवो वंदणवडियाए, छत्ताइच्छत्तपमुहं जिणाइसयमवलोइऊण परिचत्तसयलरायचिंधो दूराओ चिय पयचारेण गंतूण तिपयाहिणापयाणपुवयं जयगुरुं नमंसिऊण एवं थोउं पवत्तो जय संसारमहोयहिपडंतजणजाणवत्त! जयनाह ! । परमसिवमोक्खकारण! रणवज्जिय! विजियमयमाण! ॥१॥ निम्महियमोहमाहप्प ! दुटुकंदप्पदप्पनिद्दलण!। मायाविसवलिविणासपरसु जय जय जयप्पवर। ॥२॥ जय संजमसिरिवलह कोहमहाजलणसजलजलवाह! जय निम्मलकेवलकलियसयलजीवाइयपयत्थ! ॥३॥ जय विण्डुकुलंबरपुण्णचंद! सुररायनमियपयकमल!| निप्पडिमपसमवरपुरपायार! गुणोहसाहार! ॥४॥ जय करुणामयसारणिसरिच्छ! निच्छिन्नकम्मदुममूल!। दुहसेलदलणदंभोलिसरिसनामग्गहण! देव! ॥५॥ नाह ! तुह पायपंकयममंदमयनिवहतंतिमयरंदं । फुलंधयं व धण्णो सयाऽवितण्हो समलियइ ॥६॥ को तुह जिणवर! वयणं अमयं व समत्थदोसहरणखमं । पाऊण कुतित्थियवककलुससलीलं समीदेइ ॥७॥ जइविहु दूरमसारो संसारो तहवि देव! तुम्हेहिं । विहरतेहिं मुणिजद सारो निन्वुइपुरीमोऽवि ॥८॥ आसग्गीवाइनरिंदविजयलाभाइ(भेऽवि)नेरिसो नाह! | जाओ ममप्पमोओ जह दसणमेत्तमओ तुझ ॥९॥ ११ महा. For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir भगवतः श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः जवंधवा जातिविद्वानरिंदो निविद्वो समुचित चिर संसारकतारमणपमिग्गी, समुदसिया स्तुतिः ४ देशना च. कहवि चिरं संसारकतारमणपणमित्ताणसारिणीए वाणीए ायं अविकलपंचिदिन ACCESS RECORRHOOD SASARAULASAX ता पसिय भुवणवंधव ! जइवि तुम सबहा विगयरागो। नियचरणदंसणणुग्गहण मम तहवि सेयंस! ॥१०॥ एवं च सुचिरं थोऊण सो तिविट्ठनरिंदो निविट्ठो समुचियठाणे, भगवयावि आजोयणमित्ताणुसारिणीए वाणीए समारद्धा धम्मदेसणा, जहा-भो भो देवाणुप्पिया! कहकहवि चिरं संसारकतारमणुपरियट्टमाणेहिं तुम्हेहिं पा|विओ एस मणुयजम्मो, जायं अविकलपंचिंदिअत्तणं, संपत्ता निक्कलंक रोगाइया सामग्गी, समुल्लसिया सद्धम्मबुद्धी, ता दुगुञ्छह मिच्छत्ताविरइसंगं समीहह संमत्तनाणचरित्तवित्तं पेयर पमावपरपाणिगणदुहविवागं अणुचिंतह खणदिटुनट्टसरूवयं सव्वभावाणं विमंसह पुणो दुलहत्तणं आरियखेत्ताइलाभस्स, अन्नं च तुच्छेहियसुहलवमेत्तलालसा कीस वसह निस्संका । किं तुम्ह कयंतेण निन्भयपत्तं सयं लिहियं ॥१॥ किं वा केणवि अजरामरत्तणं तुम्ह दावियं ? अहवा । मरणाइदुक्खरहियं ठाणं या कत्थविय दिट्ठ॥२॥ अहवा सासयभावत्तकारणं किं रसायणं लद्धं? । जेणूसुगत्तठाणेऽवि गाढमंदायरा होह ॥३॥ भो भो देवाणुपिया! सद्धम्मोवजणे समुज्जमह । परिहरह पावमित्तेहिं संगति दुक्खसयजणार्ण ॥४॥ पडिवजह निरवज पवजं देसविरइमहवापि । निसुणह पसिद्धसिद्धंतदेसणं मोहनिम्महर्णि ॥५॥ अत्तसमं पाणिगणं रक्खह पालेह सीलमकलंक । साहम्मिएसु रजह वजह विसएसु य पवित्तिं ॥६॥ निग्गुणजणं उवेक्खह अत्तुकरिसं समावि परिहरह । अप्पत्तपुवगुणगणमन्भस्सह नासह कसाए ॥७॥ ॥६१॥ For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RECENSESASARASAX संतोसं च निसेवह परपरिवायं कयावि माऽऽयरह । ईसरिए मा म(जह मा र)जह पावकजेसुं॥८॥ दाणाईसु पयट्टह सेवह सुविसुद्धबुद्धिणा गुरुणो । परउवयारे गिज्झह मा मुज्झह बुज्झह सतत्तं ॥९॥ एवं च भगवओ धम्मकहमायन्निऊण हरिसुप्फुललोयणेहि केहिंचि परिचत्तपुत्तकलत्तेहि पडियन्ना सबविरई, केहिंवि परिग्गहियं सम्मइंसणं, अन्नेहिं अंगीकया देसविरई, अन्ने य छिन्नसंसया जाया बहवे पाणिणो, हलहरनारायणहिंवि अणाचक्खणिजं पमोयभरमुबहंतेहिं पडिवन्नं सम्मत्तरयणं । अह समइकंताए पोरिसीए वंदिऊण जयगुरुं गया निययावासं । भयपि अन्नत्थ विहरिओ । एवं च वचंतंमि काले अचंतसुहसागरावगाढस्स तिविठुराइणो एगया समागया परिभूयकिन्नरकंठा गायणा, तेहि य पदंसियं गीयकोसलं, हरियं हिययं तिविहस्स, अन्नं च-गीउग्गारो तेसिं जस्स मणागपि विसइ सवर्णमि । उज्झियनियवावारो चित्तलिहिउब सो सुणइ ॥१॥ __ अच्छउ रे एवं तिरियाविहु तेसि गेयवसणेणं । निम्मीलियच्छिणो उच्छहंति नो भोयणाईसु ॥२॥ एवंविहसुस्सरयागुणेण हरिस्स ते सयावि पासवत्तिणो परमप्पसायठाणं जाया। . अन्नया य सुसेजानिसन्नस्स वासुदेवस्स रयणीसमए समारद्धं तेहिं गेयं, जणिओ बाढं चित्तस्स अक्खेवो, निहागमणकाले य निरूविओ वासुदेवेण सेजावालो,जहा-मद्द! जया मम निद्दा एइ तया इमे गायणा तुमं विसजेजासि,जं देवो आणेवइ तं करिस्सामित्ति पडिवजिय सेजावालेणं, खणंतरेण य आगया राइणो निहा, तेऽवि अविसजियत्ति तहेव For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः ॥ ६२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाइउमारद्धा, नवरं पच्छिमरयणिसमए पबुद्धेण राइणा ने तहा गायंते निसामिकण, पुच्छिओ सिज्जावालो - अरे ! कीस एए न विसजिया?, तेण भणियं देव ! अइसवणसुहत्तणेणं मए खणंतरं पडिवालिया, एयमायन्निऊण जायगाढकोवो आगार संवरं काऊण तुहिको ठिओ तिथिहू, उग्गए य कमलसंडपडिवोहणे मायंडमंडले उट्ठिऊण सयणीयाओ कयपाभाइयकायचो निसण्णो अत्थाणमंडवे राया, ठिया य नियनियद्वाणेसु सामंतमंतिसुहडाइणो, एत्थंतरंमि सुमरिओ राइणा रयणिवइयरो, आहूओ सेज्जावालो, भणिया य नियपुरिसा- अरे गीयस्स (ररत्तत्तणेण ममाणाभंजगस्सेस्स) तत्ततउयतंत्ररसं खिबेह सवणेसुत्ति, एयमायन्निऊण नीओ सो तेहिं एगंतदेसे, कढियतउयतंवयर सेण भरिया कन्ना, महावेयणाभिभूओ गओ य सो झत्ति पंचत्तं । तिविडुणावि गाढामरिसवसेण निबद्धं निविडं दुहविवागवेयणिजं कम्मं । सावि सिंहलेसरसुया ठाणे ठाणे अत्तणो पराभवं पेच्छंती हरिणा वयण मे तेणवि अविगणिजंती सुचिरमप्पाणं झूरिऊन मया तिरिएसु य उपवन्ना, सेसं उवरि भन्निही । तिविद्यवि कालंतरेण विविहसोक्खमणुर्भुजमाणो रजे रहे (य) मुच्छाणुबंधमुहंतो नियभुयबलेण सेसपुरिसवग्गमवमन्नं तो विविधपाणा इवायकिरियाए महारंभ महापरिग्गहेर्हि अइकूरज्झयसाणेण य परिगलियसम्मत्तरयणो नारगाउयं (निकाइऊण) चुलसीईवाससयसहस्साई सबाउयं पालिऊण कालमासे कालं किथा उवबन्नो सत्तममहीए तमतमाभिहाणाए अप्पइद्वाणंमि नरयावासे लक्खपमाणे पंचधणूसियसरीरो नारगो । अइगाढपावकस्मेहिं पुवभव संचिएहिं गरुएहिं निहओ विसहतो दुखाइं परमतिक्खाई चाउदिसिनिहुर For Private and Personal Use Only शय्यापा लकवधः, ॥ ६२ ॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वजसूलतिक्खखग्गभिज्जमाणंगो अइदीणकरुणसई पइक्खणं विलवमाणो य । किं पुत्वभवंमि मए कयंति जेणेरिसंमि ठाणमि । निचंधयारतमसे उववन्नो कुच्छणिजंमि ॥१॥ एवं विचिंतयंतो खणे खणे घोरवेयणाभिहओ। पजलियगेहमज्झप्पविट्ठपंगुव विलवेइ ॥२॥ अयलोऽवि कयतप्पारलोइयकायचो गाढसोगाभिभूओ सुसाणं व भवणं मन्नमाणो अदिठ्ठपुवयं पिव पियजणं च अवगणितो विसं विसयं मन्नमाणो बंधुणो बंधणं परिकप्पेमाणो पवरतरुसंडमंडिए नंदणवणे कमलकुवलयकल्हारबंधुरासु सरसीसु सिंगारागारचारुवेसासु अंतेउरीसु खणंपि चक्खुमक्खिवतो कत्थवि रइं अलभर्माणो अञ्चतं संसारासारयं भावेतो सेयंसतित्थयरुवइट्ठधम्मवयणाई चिंतितो वइरिभवणं व गिहावासं परिचइउकामो सयणोवरोहण कइवयवासराई ठाऊण गओ धम्मघोसायरियसमीवे, वंदिओ परमाए भत्तीए, सूरिणाऽवि दिवणाणेण णाऊण तस्साभिप्पायं समारद्धा धम्मदेसणा, जहा खणसंजोगविओगं खणपरियतविविहसुहदुक्खं । नडनचियत्र संसारविलसियं चित्तरूवधरं ॥१॥ दहण को पमायइ जिणिदधम्ममि सोक्खहेउम्मि? । अचंतवल्लहे वा मयंमि को सोयमुषहद? ॥२॥ जइ एगस्सेव भवेज एत्थ वल्लहजणेण सह विगमो । ता परिभवोत्ति काउं सोगोऽवि जण कीरेजा ॥३॥ जाव य समग्गभरहाहिवावि भरहाइणो कयंतेगं । विज्झविया दीवा इव पवणेण पयंडवेगेण ॥४॥ HAMARACC4BCLASSISEX For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandir श्रीगुणचंद महावीरच ३ प्रस्ताव अचलस्य वैराग्य, ॥६३॥ HAMASANASANASAN ता कीस कुसलमइणो अट्ठाणे चिय कुगंति संतावं ?।नाए वत्थुसरूवे खिजंति न जेण सप्पुरिसा ॥५॥तीहिं विसेसयं। नियजीवियस्सवि जया धरणोवाओ न तीरए काउं । तत्थऽण्णजीवियवे चलंमि कह कीरइ थिरतं? ॥६॥ इयरजणस्स व सोगो काउंन उ जुजए तुह कहंपि । किं गिरितरूणि(ण) मंतरमणिलेण चलंति जइ दोवि (अणिलेण गिरितरूणि चलिज नवि मंदरो उ गिरी)॥७॥ एसो खु सुद्धबुद्धिस्स विन्भमो जं पियस्स मरणमि । अक्कंदणेण सिरकुट्टणेण अवणिजई सोगो॥८॥ उत्तममईण पुण भवविरुवयाऽऽलोयणेण निवेओ। उप्पजइ तत्तो चिय विसेसधम्मुजमो होइ ॥९॥ इय चयसु सोगपसरं सरेसु संसारदारुकरवत्तं । पञ्चजं निरवजं चिच्चा रजं च रटुं च ॥१०॥ | एयं च समायन्निऊण ववगयसमग्गसोगसंतायो हलहरो भणिउमाढत्तो-भयवं! सचं तुम्हहिं करुणापरहि-13 है यएहिं ममोवइटुं, ता पसिय इयाणि देह पवजं निरवजंति वुत्ते पधाविओ सो गुरुणा, सिक्खविओ समणधम्म, देसिया दसविहचकवालसामायारी, अब्भुवगया य तेण सम्म । अह गामागरेसु अप्पडिबद्धो विहरिऊण किंपि कालं| दुफरतवचरणेहिं सोसिऊण सरीरं कम्मनिवहं च पत्तो सो सासयसोक्खं मोक्खंति ॥ तिविषि तेत्तीसं सागरोवमाई अप्पइटाणे अणुहविऊण दुक्खं चुओ समाणो उववन्नो सीहत्ताए एगंमि गिरिकंदरे, तओ-उम्मुक्कबालभावो विगयासको समग्गरकमि । परिभवइ कूरचित्तो जमोव अनिवारियप्पसरो ॥ १॥ ॥ ३॥ For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir AMERACKASSACREAS 'दारइ गइंदकुंभत्थलाई अइतिक्खनक्सनिवहेण । सारंगकुलं अचलं तासइ गलगजिमेत्तेण ॥२॥ हिंसइ विविहजीवे इय एवं जीविऊण चिरकालं । मरिऊण पुणो जाओ नेरइओ नरयपुढवीए ॥३॥ छिंदणभिंदणसामलिसूलारोवणपराई दुक्खाई। रोमुद्धोसकराई सुमरणमेत्तेणवि जणाणं ॥ ४ ॥ आमरणतं सोढुं भमिओ विविहासु तिरियजोणीसु । अह एगत्थ भवंमी कम्मखओवसमभावेणं ॥५॥ लभ्रूण माणुस्सत्तं काउं छमाइ तवचरणं । भोगफलमजिऊणं उववन्नो देवलोगंमि ॥६॥ तओ आउक्खएणं चुओ समाणो रिद्धिस्थिमियसमिद्धे निरंतरमुप्पजमाणजिणचक्कट्टिबलदेववासुदेवपहाणपुरिससरिए हिए एगवीस(परियरिए एगस)रूवकालपरिकलिए अवरविदेहे खेत्ते मूयाए रायहाणीए धणंजयस्स राइणो सयलंतेउरपहाणाए धारिणीए देवीए चउद्दसमहासुमिणसूइओ सो तिविहुजीवो कुच्छिसि पुत्तत्तणेण उववनोति । समुचियसमए य कयं से पियमित्तोत्ति नामं । वढिओ य देहोवचएणं विण्णाणपगरिसेण य, अण्णया य सो धणंजयराया सरयनिसायरसरिसवयणं तरुणतरणिपडिबुद्धपुंडरियलोयणं मणिखंडमंडियकुंडलुल्लिहियपीणगंडहै मंडलं अकुडिलुत्तुंगनासावंसं बालप्पवालपाडलोट्ठसंपुडं कुंदमउलमालासिणिद्धसुसिलिट्ठदंतपंतिं पसत्थरेहावलयरेहं तकंठकंदलं मंसलसुविसालवच्छत्थलं महानयरगोपुरपयंडवाहुदंडं संगयपासोवसोहियसुप्पमाणमझभागं वियसियसयवत्तसरिच्छातुच्छनाभिं जचतुरयवट्टियकडिभागं सुरिंदवारणकरकरणिजंघाजुयलं सुपइट्ठियलठ्ठसुकुमालरत्ततलं AAAAAAAACAROLAGA For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिंहादिभवाः प्रियमित्रचक्री श्रीगुणचंद चलंतं कुमारं पेच्छिऊण जायपरमसंतोसो पवररायकुलपसूयाओ कण्णगाओ परिणाविऊण पसत्थवासरे रजे महावीरच०अभिसिंचिउं तओ तहाविहाण य सूरीणं पासे पक्वज पडिवजइ । पियमित्तस्सवि अप्पडिहयसासणं रज करितस्स ३ प्रस्तावः कालकमेण समुप्पन्नाई चउद्दस रयणाई, ताणि य इमाणि॥६४॥ सेणावइ गाहावइ पुरोहिय तुरय बढइ गयित्थी । चक्कं छत्तं चम्म मणि कागणि खग्ग दंडो य॥१॥ एवं सो पियमित्तो समुप्पन्नचक्काइरयणो अणेगनरनाहनिवहपरियरिओ चकरयणदंसिजमाणमग्गो विजयजत्ताए मागहतित्थाभिमुहं संपत्थिओ, कमेण य तस्मादूरदेसं पत्तो समाणों खंधावारनिवेसं काऊण मागहतित्थाहि| वस्स देवस्स साहणत्थं अट्ठमभत्तं तवोकम्म पडिवज्जइ, तस्स पजंते य हयरहजोहपुरिबुडो जोत्तियपवरतुरंगं चाउ घंटं रहमारूढो चकाणुमग्गेण केत्तियंपि भूमिभागं गंतूण कुवियकयंतभूविन्भमं अणेगरयणकिरणजालकब्बुरियदिसावलयं वामपाणिणा सज्जीकयजीवं कोदंडं गिण्हिऊण तहा वजसारतुंडं विविहरयणविरइयपंखदेसं मणिविणिम्मियचक्कवट्टिनामचिंधं दाहिणकरेण सरं आयनमाकड्डिऊण मागहतित्थाहिवस्स सम्मुहं मुयइ, सोऽवि सरो दुवालस जोयणाई गंतूण मागहदेवस्स सहाए निसन्नस्स तस्स पुरओ निवडिओ, तं च सो दट्टण निद्रनिडालबद्वनिविद्वमिउडिभीसणवयणो गाढकोवभरारुणनयणो भणिउमाढत्तो रे रे कस्स कयंतेण सुमरियं? कस्स वलहं न जियं । को मज्झ कोवदीवयसिहं व वंछह पयंगोब? ॥१॥ RECESSASSAGE GANGACASSESAMECOM ॥६४॥ For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org 9* A*-******* किं केणइ भुयबलदप्पिएण देवेण अहव मणुएणं । जक्खेण रक्खसेण व एसो खित्तो सरो होही? ॥२॥ इय खणमेगं परिचिंतिऊण गिण्हइ सरं सहत्थेणं । पेच्छइ य चकवहिस्स नामयं मणिविणिम्मवियं ॥३॥ एवं च ववगयसंसओ उपसमियकोवविगारो विविहमहामोल्लचित्तमणिरयणाभरणनामंकियसरसणाहो पियमित्तचकवट्टिणो सगासमुवगंतूण मत्थए अंजलिं काऊण य विजएणं वद्धावेइ, भणइ य-जहाऽहं इयाणिं तुम्ह आणानिद्देसवत्ती किंकरनिविसेसो, ता पडिच्छह इमं पीइदाणंति भणिऊण आभरणाई सरं च समप्पेइ, चक्कवट्टीवि तं सक्कारिऊण सम्माणिऊण य सहाणे विसजेइ, रहँपि परावत्तिऊण खंधावारमुवागच्छइ, भोयणाइ काऊण य किंकरपुरिसेहिं मागहदेवस्स अट्टाहियामहिम कारावेइ । तस्स य पजंते चक्काणुमग्गेण खग्गचावनारायकणकप्पणिसू ललडलिभिंडिमालपमुहपहरणहत्थसुहडसत्थाणुजायमग्गो हत्थिरयणमारूढो नरिंदो कालपीयरत्तपंडुरवण्णाणेगचिंधटू सहस्सेहिं छायमाणोच अंबरतलं यहेसियगयगुलगुलाइयरहघणघणाइयरवहिं बहिरयंतोब जीवलोयं वरदामति त्थाभिमुहं वचइ । कमेण य तहिं पत्तो समाणो पुषविहीए वरदामदेवस्स अट्ठमभत्त्रं रयणपहरणं अट्टाहियामहिमं च करेइ । एवं पहासतित्थाहिवस्सऽवि, नवरं पभासतित्थदेवो मालं मउडं मुत्ताजालं कडगतुडियाणि य चकवहिस्स पीइदाणं पयच्छइत्ति । तओ पुणोऽवि जक्खसहस्सपरिवुडेण अंतरिक्खगएण चक्करयणेण दंसिजमाणमग्गो चक्कबट्टी सिंधुमहानईए दाहिणिलेणं कूलेणं सिंधूदेविभवणाभिमुहं गओ, तत्थवि अट्ठमभत्तं पगिण्हइ तस्स पजते य सिंधु SA%AAAAAAAAAAA * For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्ताव प्रियमित्रस्य दिग्विजया देवीए सुहासणत्थाए चलियं सीहासणं, ओहिनाणमुणियचक्कयतिसमागमा य नाणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि दोन्नि भद्दासणाई कडगाणि तुडिगाणि वत्थाणि पगहिऊण चकवट्टिसगासमागया पंजलिउडा विणएण समप्पेइ, रायाऽवि तं सक्कारिय सम्माणिय सठ्ठाणे विसजेइ । तओ पुगरवि चक्करयणं वेयड्डपचयाभिमुहं गंतुमारद्धं, रायाऽवि सबलवाहणो तदणुसारेण य(गच्छइ)कमेण य पत्तो बेयडपवयस्स नियंवदेसं, तत्थ य खंधावारं निवेसावेइ, वेयड्डगिरिकुमारदेवोऽवि पुन्वनाएण चलियासणो विविहालंकारहत्थो सेवं पडिच्छइ । कइवयदिणाणंतरं च तिमिसगुहासमीवमुवागयस्स चक्किणो अट्ठमभत्ततवचलियासणो कयमालयदेवो भालयलविलुलंतकरकमलो झडत्ति चक्खुगोयरमागओ, थीरयणजोग्गं रयणालंकारं अन्नाणि य विविहाणि भूसणाइं पणामेइ, आणानिदेसं च बहुमनिऊण गए तंमि राया विजयसेणं सेणावई रयणभूयं सहाविऊण एवं वागरेइ-भो विजयसेण! गच्छाहि तुमं सिंधुमहानईए पञ्चत्थिमिलदेसं नगनगरागराइपरिक्खित्तं सिग्धं साहिऊण एहित्ति, जं देवो आणवेइत्ति विणएण सासणं पडिच्छिऊण सेणाहिवो विहियतकालोचियमजणाइवावारो महापरकमो तेयंसी मेच्छभासाविसारओ विस्सुयजसो पवरकुंजरखंधाधिरूढो सन्नद्धबद्धकवओ उप्पीलियसरासणधणुपट्ठो अणेगगणनायगदंडनायगपरिवुडो धरियधवलायवत्तो चलंतविमलचामरो पहयतूररवबहिरियदियंतरो सिंधुमहानईतीरमुवागच्छइ । ताहे स चम्मरयणं सिंधुमहानइजलंमि वित्थरइ । बारसजोयणमेत्तं नावारूवेण तरणहा ॥१॥ --- -- For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir www.kcbatrth.org ACAKAC तो तंमि समारूढो हरिकरिपाइक्कचक्कपरियरिओ। वीसत्थो पवणवसुलसंतसुमहलकलोलं ॥ २॥ गोपयमिव सिंधुनई लंपित्ता मेच्छजाइए सवे । आणानिइसे संठवेइ रयणाई गिण्हेइ ॥ ३॥ सामी! तुम्हे सरणं गई य एमाइ जंपमाणे ते । ठविउं सहाणेसुं विणियत्तइ विजयसेणो तो ॥४॥ पियमित्तचक्कवहिस्स पायपंकयजुयं पणमिऊण । रयणाई समप्पइ सो मिलक्खुविजयं च वजरइ ॥५॥ पुणरवि रण्णा भणिओ सेणाहिवई जहा तुम भद्द! । गच्छसु तिमिसगुहाए कवाडउग्घाडगत्थाए ॥६॥ ताहे तहत्ति सम्म पडिसुणिऊणं समग्गबलकलिओ। गंतुं गुहासमीवे अट्ठमभत्तं तवो कुणइ ॥७॥ अह तिक्खुत्तो पहणइ निविडेणं तिवदंडरयणेणं । ते तिमिसगुहाकवाडे महप्पमाणे वइरघडिए॥८॥ दंडाभिधायपरिपेल्लियाई कुंचारवं करेंताई। कुकलत्तकहियगुज्झं व ताई विहडंति वेगेण ॥९॥ तयणंतरं च वलिउं साहइ सो चक्कवहिणो वत्तं । सोऽवि य गयमारूढो समग्गसेणाएँ संजुत्तो ॥१०॥ चउरंगुलप्पमाणं रोगासिवनासणं मणिं घेत्तुं । चकाणुमग्गलग्गो तिमिसगुहं विसइ भयराइओ (महराया) ॥११॥ तत्तो तिमिसगुहंतंधयारविद्धंसणठमइगरुए। मंडलगे सो विलिहइ कागिणिरयणेण भित्तीसु ॥ १२ ॥ ताहे मंडलगमऊहजालउज्जोयहणियतिमिराओ।नीहरइ सुहेण समं सेणाए सो गुहाहिंतो ॥ १३॥ इओ य वेयडपरभागवत्तिणो विलाया महापरकमा अपरिभूयसामत्था कणगरययधगधन्नसमिद्धा नियनियट्ठाणेसु ...०३- ०५ For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद है निवसंता बहूणि गंधवनगररुहिरवरिसभूमिकंपपमुहाई उप्पाइयसयाई पेच्छंति, तते णं ते ताणि पेच्छिऊण उवि- प्रियमित्रस्य महावीरचग्गा निराणंदा ओहयमणसंकप्पा विणि(दीण)यं पिव अप्पाणं मन्नंता जाव चिटुंति ताव सहसच्चिय उक्किद्विसी३ प्रस्ताव: हनायकलयलरवेण समुद्दमहणसंकं समुप्पायमाणो निसियकरवालसेल्लभल्लिकुंतपहरणकरहिं सूरेहिं अणुगम्ममाणो ॥६६॥ पत्तो तेर्सि देसं पियमित्तनरवई, तं च आगयं निसामिऊण ते मिलेच्छा पयंडकोवारुणच्छा परोप्परं मंतंति-भो भो एस कोइ कयंतचोइओ अम्ह विसयं उवद्दविउकामो वट्टइ, ता तहा करेमो जहा एस अंतरा चेव विणस्सइत्ति, एवं संपहारित्ता पीडियदुम्भेयकवया विचित्तपहरणहत्था समुद्धयमगरनरवसहसलगरुलाइचिंधा पोरुसाभिमाणमुबहता अहमहमिगाए गंतूण चकिणो अग्गसेन्नेण संपलग्गा जुज्झिउं, तो य अग्गसेपणं हयपरकम निवडियसु-18 हडं पडिभग्गरहवरं खंडियजचतुरंगवग्गं पडिखलियनरवइजणं तेहिं कयं पेच्छिऊण विजयसेणो सेणाहिबई जायकोवो कमलामेलगनाम आसरयणं आरुहिऊण कुवलयदलसामलं सबत्य अप्पडिहयं नरवइहत्थाओ खग्गरयणं च गहिऊण ते विलाए चाउदिसिपि पसरिए पडिखलइ । किं बहुणातिमिरंव दिणयरेणं भुयगसमूहोच पक्खिराएणं। सेणाहिवेण निहया भीया ते अइगया सगिहं ॥१॥ ॥६६॥ घेत्तृणं घरसारं पुत्तकलत्ताइयं च मरणभया । अइदूरमवसंता सिग्धं विसमेसु ठाणेसु ॥२॥ ताहे सिंधुनईए कूले परिचत्तसबवावारा । उत्ताणा निवसणा अठ्ठमभत्तं पगिण्हति ॥३॥ ASARAKAR रनरवसहसणं हयपराई जाय: AKAKAAGARAAKAA For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२ भद्दा० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्तुबलहणण हेउं पुबिंपिय पाडिहेरकरणपरे । सुमरंति एगचित्ता कुलदेवे मेहमुहनामे ॥ ४ ॥ अमभत्तस्ते तत्तो चलियासणा सुरा ऐति । गयणंगणमोइन्ना भणंति किं सुमरिया अम्हे ? ॥ ५ ॥ सिद्धं च चिलाएहिं जह अम्हे रिउवलेण परिहणिया । ता तुम्हे मुसुमूरह रिउपक्खं अम्ह रक्खट्टा ॥ ६ ॥ देहि त भणियं एसो पियमित्तनाम वरचक्की । काउमिमस्स विणासं अहो न सक्कोऽवि सक्केइ ॥ ७ ॥ ता भो अणभिभवणिज्जो एस, केवलं तुम्ह पक्खवाय मणुसरंता किंपि उवसग्गेमोत्ति निवेइऊण तेसिं अंतियाओ ते मेहमुहा अवकमंति, नरवइखंधावारस्स उवरिं मेहनिवहं विउवंति, तओ जुगमुसलमुट्ठिप्पमाणधाराहिं निरंतरं वारिनिवहं सत्तरत्तं जाव मुयंति । पियमित्तचक्कबट्टीऽवि तं तहाविहं पिच्छिऊण दिवचम्मरयणं परामुसद, तंपिय खिप्पमेव दुवालस जोवणाई तिरियं पवित्थरइ, तत्थ सो समत्थोऽवि खंधावारो समारुहइ, पुणोऽवि नरिंदो नवनवइस हस्तकंचण सलाग परिमंडियं महरिहं विविहभत्तिचित्तं डिंडीरपिट्ठपंडुरं छत्तरयणं संधावारस्स उवरिं वारस जोगणाएं समहियाइं वित्थारेह, मणिरवणं च किरणजालं मुयंतं सरयरविसरिच्छं छत्तमज्झमागे ठवेइ, गाहावईवि चम्मरयणेगदेसंमि तद्दिवसपइन्ननिष्फण्णपूयाणं सबधण्णाणं अणेगकुंभसहस्सा उबटुवेइ, एवं च सो राया सचमारेहिं अणुविग्गो चम्मरयणमारूढो उत्तरयणच्छन्नोवरिमविभागो मणिरथणकओजोओ गाहावइउबट्टावियधन्ननिचभो नि भनणगभोब सुहेल अच्छेद । किं बहुना ? For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद नवि से छुहा न वाही नेव भयं नेव विजए दुक्खं । विजयाहिवस्स रण्णो खंधावारस्सवि तहेव ॥१॥ टू मेघमुखोपमहावीरच. अह पियमित्तनरिंदो संपत्ते सत्तरत्तपजते । चिंतेइ को णु एसो जो मं विद्दवइ सलिलेणं? ॥२॥ द्रवः उत्तर ३ प्रस्तावः खंडजया. एत्थंतरंमि आबद्धपरियरा विविहपहरणसमेया। सोलस जक्खसहस्सा मेहमुहाणं गया पासे ॥३॥ ॥६७॥ मणिया य तेहि रे रे अप्पत्थियपत्थिया धुवं तुम्हे । जं चक्कवट्टिणोऽविहु उवसग्गं एवमायरह ॥४॥ ता मुंचह चक्खुपहं अहवा जुद्धत्थमभिमुहा होह । इइ भणिए मेहमुहा गया चिलायाण पासंमि ॥५॥ साहंति सबवइयरमसमत्यत्तं च अत्तसत्तीए । नरवइसेवाकज्जे पेसेंति य ते चिलाएऽवि ॥६॥ अह मुक्ककेसहत्था पहरणरहिया नियंसिओलपडा । भयवसविसंतुलंगा गंतूण नमंति ते मेच्छा ॥७॥ कणगं विचित्तरयणे अन्नंपि विसिट्टवत्थुमप्पिति । पडिवजिय तस्सेवं नियावराहं च खामेति ॥ ८॥ एवं च पवजियसेवा मिलेच्छा सम्माणिऊण चक्किणा विसजिया सट्ठाणेसु, सेणावईवि सिंधुमहानईए बीअखंडसाहणत्यं पेसिओ पुषविहीए, तं च साहिऊण पच्छाऽऽगए तमि पियमित्तो राया चकाणुमग्गेण पढिओ वेयड्डा- ॥६७॥ भिमुहं, कमेण य पत्तो पचयनियंबदेसं । तओ मणसीकरेइ उत्तरदाहिणसेढिविज्जाहरे, तेऽविय भयखुभियचित्ता तनाणाविहकणगरयणपमुहपहाणवत्थुसमप्पणपुत्वयं नरवइणो सिरसा सासणं पडिच्छंति । सेणावईऽवि पुबकमेण गंगा-1 महानईपुवखंडं साहिऊण पासमलियइ ॥ CALCREASEACष्ट्र For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुष्वक्कमेण पुणरवि खंडगुहं लंघिऊण नरनाहो । चउरंगबलसमेओ गंगापञ्चत्थिमे कूले ॥१॥ खंधावारनिसेसं काऊणं पवररयणपडिपुण्णो । अट्ठमभत्तपुरस्सरमह गिण्हइ नव महानिहिणो ॥२॥ मणवंछियत्थकरणेकपञ्चला वइरनिम्मियकवाडा । बहुपुन्नपावणिजा इमेहिं नामहि ते नेया ॥३॥ नेसप्प पंडुए पिंगले य तह सवरयण महपउमे । काले य महाकाले माणवग महानिही संखे ॥४॥ एएसि चिय चक्की निहीणमनिहीणपोरिसारंभो । सक्कारपुच्वयं कारवेइ अट्ठाहियामहिमं ॥५॥ गंगापुरथिमिलं सेणावइणा दुइजमवि खंडं । गाहावइ तत्थ ठिओ भुंजतो विविहविसयसुहं ॥६॥ एवं च सो पियमित्तचक्कवट्टी पसाहियछक्खंडो निजियपडिवक्खचको अपणो आणाए ठवेंतो नराहिये दंसेंतो नियपरकम सम्माणंतो सेवगजणं विरयंतो दीणाणाहाण अणवरयदाणं बत्तीसनरवइसहस्साणुगम्ममाणो पडिनियत्तो मूयानयरीए, पडिच्छिओ दुवालसवारिसिओ महारायाभिसेओ । एवं च कयकायचो बत्तीसाए बत्तीसबद्धनाडयमहस्साणं सोलसण्हं जक्खसहस्साणं तिण्हं तिसट्ठीणं सूयसयाणं अट्ठारसण्हं सेणिप्पसेणीणं चउरासीए तुरगसयसहस्साणं चउरासीए पवरकुंजरसयसहस्साणं छण्णउइए मणुसकोडीए बावत्तरीए पुरवरसहस्साणं बत्तीसाए जणवयसहस्साणं छन्नउइए गामकोडीणं नवणउइए दोणमुहसहस्साणं चउवीसाए कब्बडसहस्साणं अडयालीसाए पट्टणसहस्साणं चउवीसाए मडंबसहस्साणं वीसाए आगरसहस्साणं सोलसण्हं खेडसयाणं चउदसण्हं संवाहसह For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ३ प्रस्तावः ॥ ६८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्साणं अन्नेसिं च राईसरसेद्विसेणावइपमुहाणं जणाणं आणिस्सरियसारं सामित्तमणुपालितो दिवं विसयसुहमणुभुंजतो य कालं वोलेइ । गाय पसंतचित्त भवणोवरिभूमिगाए ओलोयणगओ जाव दिसावलयमवलोएइ ताव सहसच्चिय पेच्छइ गणगणे समुत्थियं ववित्थारं मेहखंडं तं च- कज्जलभसलगवलको इलकालिंदीजलसामलं फुरंतविजदंडुडामरं तक होयधव गोपंति मणहरं समुल्लसंता खंडलगंडीवाडंवररमणिज्जं मंदमंदमुक्कविंदुसंदोह सुंदरं गंभीरगजिरवतंवियसिहंडिगणं खणमेगं दिसामुहेसु पसरिऊण सहसच्चिय समुच्छलियपवलपवणप्पणोलिजमाणं सबहा पणट्ठमवलोइऊण चिंतेइ - अहो केरिसी वत्थुपरिणई ? जं तारिसं घणपडलमचंतनयणाभिरामं खणमेत्तमुन्नहं पाविऊण संपयं सबुच्छेयमावन्नं, एयाणुमाणेणं चिय सववत्थूणं एसा गई, खणविगमधम्मे य एत्थ किं पडिबंधडाणं ?, का वा रई ? को वा उत्तरोत्तरकायन्यविहाणुज्जमो ? कहं वा खणमेत्तंपि वज्झत्थू विस्सासो, अच्छंतु वा बज्झत्थुणो, जं इमं सयलमणोरह मंदिरं सरीरं जस्स किर निमित्तं कीरइ करितुरयरहजोहजुवइपुरागरपमुहरजंगो वज्जणसमुज्जमो तंपि उप्पायधम्मत्तणेण पच्चक्खदिट्ठविणमेहमालं व धुवं विणस्सरसीलं, अओ कुसला कहमेयस्स निस्सारपोग्गलचओवचयरूवस्स अट्टिभिजवसारुहिरमंससुकाइविलीणकारणसमुब्भवस्स विविहरोगनिवहपरिग्गहियस्स पइ- दिवसण्हाणविलेवण भोयणपमु होवयारपरिपालणिजस्स सीयतावायंकाइदो सरक्खणिजस्स परमदुगुच्छणिज गंधस्स For Private and Personal Use Only चक्रिऋद्धिः वैराग्यं च. ॥ ६८ ॥ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -C+CCCAUSE असुइपडिपुण्णकलसस्सेव बाहिरमेत्तरमणीयस्स दुजणचेट्टियस्सेव अवियारसुंदरस्स महानरिंदस्सेव विसिट्टविसयाणरागिस्स दुद्धपाणपरब्वसमजारस्सेव अणवेक्खियपयंडजमदंडाभिघायस्स विविहप्पयारेहिं उबलालणत्यं गिव्हंति रजं करेंति निरवेक्खचित्ता पाववावारं सयावि रक्खणत्थं विविहपहरणहत्थं धरैति सुहडसत्वं अणवरयसंतापकरं कोहलोहाइवेरिनियरं निचं पच्चासन्नट्टियपि अणवेक्खिऊण जोयणसहस्संतरियं संकति सत्तुनिवहं सकजमत्ताणरागिणपि निकवडपेम्म मण्णंति परियणं अवस्संभाविनिहणंपि धुवं लक्खंति धणं, ता अहो तेर्सि पमचचित्तया अहो निधिवेयया अहो महामोहमहिमया अहो इहलोयपडिबंधपरवसया अहो आगामिदुक्खनिरपेक्खया अहो दुहविवागावलोयणपडिकूलया, इइ चिंतयंतस्स पढियमेगेण कालनिवेयएण वेयालिएण विच्छायं पच्छिमासागयमिममहुणा सूरविंबं मिलंता, रोवंति वालिजालुब्भडरवमिसओ पुंडरीयाण संडा।कंदंते चकवाया गुरुविरहमहादुक्खसंतत्तगत्ता,धी संसारो (संसारो धी) असारो जमिह फुडमहो सासयं नत्थि किंपि ॥१॥ | राहणाऽवि एवमायनिऊण चिंतियं अहो अणिचयाए संबद्धं साहु पढ़ियं एएण, जुत्तो संपयं मम धम्मुजमो काउंति निच्छिऊण पसुत्तो रमणीए।ततो खणे खणे भवनिग्गुणत्तं पेहमाणस्स पाणिवहपमुहाई दुक्कियाइं गरिहंतस्स संसारुव्वेयं वहसाणस्स सुहिसंबद्धं बंधणं व गणेतस्स भोगे भुयंगेष परिकर्षितस्स मायंदजालं व जीवलोयविलसियमवलोयंतस्स विसालसेज्जाएनि तल्लवेलिं करेंतस्स कहकहवि वोलीणा रयणी, समुग्गओ दिवायरो । एत्यंतरे पढियं मागहेण For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ३ प्रस्ताव आचार्योंपदेशः. ॥६९॥ AUGUSSAGARLSAs पडिहयपडिवक्खं चक्कदिन्नेकसोक्खं, मिउकररमणिजं सजणासंसणिजं। तुममिव रविवि पुवसेलावलंब, उदयमिममियाणिं जाइ दोसेकहाणिं ॥१॥ इमं च उदयसहसुंदरं सिलोगमायन्निऊण संभावियापुब्वलाभो नरवई समुट्ठिऊण सयणिजाओ कयपाभाइयकायबो निसन्नो सीहासणे । एत्थंतरे समागया उजाणवालया, कयप्पणामा विन्नविउमाढत्ता य-देव! वद्धाविजह तुम्भे जेण समागया भगवंतो बहुसीसगणसमेया पोटिलाभिहाणसूरिणो, समोसरिया य तुम्ह उजाणेत्ति । एवमायनिऊण निन्भरं पमोयभरमुच्चहंतो दाविऊण तेसिं चिंताइरित्तं पारिओसियं पवरवारणखंधाधिरूढो सवपरियणसहिओ महाविभूईए गओ चक्की उजाणे, वंदिया सव्वायरेणं सूरिणो, उवविट्ठो य जहासन्निहियधरणीए, जोडियकरसंपुडेण साहिओगुरुणो मेहविगमदंसणुभूओ सद्धम्मसमुजमसंमुहो नियचित्तपरिणामोत्ति, गुरुणा भणियंभो महाराय ! कुसलाणुसारिणी तुज्झ बुद्धी, संपन्नो कम्मविवरो करकमलं निलीणा मोक्खलच्छी, जस्स तुह एवंविहा वासणा, ता महाराय ! तिविहा पुरिसा भवंति, तंजहा-उत्तिमा मज्झिमा जहन्ना य । तत्थ उत्तमपुरिसा भवभंगुरत्तणं जाणिऊण णियमईए। परिचत्तगिहकलत्ता परलोयहियं पवजंति ॥१॥ गरुयं रोगायकं तहाविहंपि अविओगदुक्खं च । दट्टण मज्झिमा पुण कहमवि लग्गति जिणधम्मे ॥ २॥ जे उ जहन्ना ते सबहावि विविहावई निमग्गावि । दुक्खसयपीडियाविहु न मुत्तिमग्गमि लग्गति ॥ ३॥ NAGA4%AARAAGARIKA ॥६९॥ For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करुणोयहिणा गुरुणा भणिजमाणावि विविहवयणेहिं । अच्छउ काउं धम्म सहहिउंपि यि न सकंति ॥ ४ ॥ इय मज्झिमा जहन्ना य हुंति धम्माहिगारिणो न तहा । जह मुणियभवसरूवा सभावओ उत्तिमा पुरिसा ॥५॥18 ता भो महायस! तुम जोग्गो सधण्णुभणियधम्मस्स । संपइ करेसु सहलं एयायरणेण नियजीयं ॥६॥ नहि विनायसरूवे चिंतामणिपमुहदिव्यरयणंमि । अग्गहणिच्छा जायइ क(इ)यावि (वि)सुद्धिबुद्धीण ॥७॥ अन्नं च-जललवतरलं जीयं सुरिंदकोदंडविन्भमं पेमं । गयकण्णतालचवलं पुण्णपि सरीरलायण्णं ॥८॥ मारुयपणुण्णपण्णं व भंगुरं सुंदरंपि तारुण्णं । आवयलक्खनिमित्तं वित्तपि कहंपि पविढत्तं ॥९॥ एएसिं एकेकंपि नूण वेरग्गकारणं गरुयं । सुहबुद्धीणं जायइ किं पुण सवेसि समवाओ? ॥१०॥ अच्छरियमिमं जे एरिसेहिं संवेगभावहेऊहिं । निचं विजंतेहि वि न मोक्खमग्गे पयटुंति ॥ ११॥ किं बहुणा कुणसु तुम संपइ सद्धम्मकम्मपडिवत्तिं । बहुविग्यो सेयत्थो कालविलंबो न ता जुत्तो ॥१२॥ एवं सोचा चक्कवट्टिणा भावसारं चलणेसु निवडिऊण भणिओ गुरू-अवितहमेयं, इयाणि समीहामि अगाराओ * अणगारियं पडिवजिउं, गुरुणा भणियं-भद्द! मा पडिबंध करेसु, जुत्तमेयं तुम्हारिसाणं मुणियपरमत्थाणंति वुत्ते | वंदिऊण गुरुं गओ नयरीए चक्कवट्टी। समाहूया नायरयमंतिसामंतसेणावइपमुहपहाणपुरिसा, भणिया य-भो भो इयाणि जाया अम्ह गिहपरिचायबुद्धी, काउं वंछामो निग्गंथपावयणपडिवर्ति, ता खमियचं तुम्भेहिं जं मए पुरा ACCUSACACANORA. For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रियमित्र दीक्षा. श्रीगुणचंद महावीरच. ३ प्रस्ताव ॥७॥ निओइया आणानिइसे, काराविया सेवाविहि, पीडिया समहिगकरगहणेणत्ति, तेहिं भणियं-देव ! वजोवलेहिं घडियं हिययं अम्हारिसाण निभंतं । जं एरिसाई वयणाई तुम्ह सोउं न विहडेइ ॥१॥ जणणीजणगा जेणं पढम उवगारिणो परं जाया। परमुत्तरुत्तरगुणेसु नृणं अम्हे तए ठविया ॥२॥ ता कह इयाणि तुह चरणकमलसेवाविवजिया गेहे। निग्घिणचित्ता अम्हे निवसंता नेव लज्जामो॥३॥ जह तुम्हे तह को वा अवराहपयं तितिक्खिही अम्ह । जह इहलोए तह परभवेऽवि ता नाह! तं सरणं ॥४॥ एवं भणिए राइमा बुचं-जइ एवं ता निययगेहेसु गंतूण सहाणे पुत्ते ठविऊण य कयसयलकायचा पवरसिबिगाधिरूढा ममंतियं पाउन्भवह, तहत्ति पडिवजिऊण गया ते सगिहेसु, कयं तकालोचियं किचं, राइणावि अभिसित्तो नियरजे पुत्तो, समप्पिया करितुरगाइणो, कयमजणालंकारपरिग्गहो य चारुसिविगाधिरूढो तेहिं सवेहिवि पहजागहणाभिलासीहिं परिवुडो दिजंतेसु अणिवारियप्पसरं कणगाइदाणेसु वजंतेसु चउविहतूरेसु नचंतेसु तरुणिसत्येसु थुणंतेसु मागहनिबहेसु गओ उजाणं, ओयरिओ सिविगाओ, तिपयाहिणीकाऊण वंदिओ सूरी परिचत्ताभरणस्स य दिना से गुरूहि पवज्जा, अंगीकया य तेण भावसारं । अह पढियजिणिंदुहिसिद्धंतसत्यो गुरुजणपयआराहणुजुचचित्तो परिहरियपमायुम्मायमायापवंचो बहुविहतवकम्मासेवक्खीणदेहो॥ विमलगुणकलावं अजिणंतो जिणंतो, कुसुमसरपमोक्खं वेरिवग्गं समग्गं । RECRACCREACRECC ॥७०॥ For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नियजियमिव सम्बे पाणिणो रक्खमाणो, खणमिव अचयंतो सुत्ततत्तत्थचित्तं ॥१॥ सुहदुहमणिलेड्सतुमित्ताइएसुं, तुलमिव समरूवं चित्तवित्तिं धरितो। तिणमिव पडलग्गं कंडिउं सबसंग, विहरइ वसुहाए निप्पकंपो महप्पा ॥२॥ तो वासकोडिमेगं पध्वजं पालिऊण कयमरणो। सुकमि देवलोए जाओ देवो महिडीओ ॥३॥ इय वीरनाहचरिए सुपवित्ते दुक्खदारुकरवत्ते । सिवपुरसंमुहपत्थियमंगलकलसेकवरसउणे ॥४॥ उसभजिणकहियहरिचकवहिपयपवरलाभपडिबद्धो । जणमणविम्हयजणणो संमत्ता तइयपत्यावो ॥५॥ जुम्मं ॥ (इति तइओ पत्थावो) चतुर्थः प्रस्तावः हरिचक्कवईण इमा भणिया वत्तवया पयत्तेणं । एत्तो नंदणनरवइवित्तंतं मे परिकहामि ॥१॥ | भत्यि सयलवसुंधरारममीरयणकन्नपूरोषमा वेसमणरायहाणिविन्भमा छत्ता नाम नयरी, तत्थ धम्मराजो नयमम्गपवत्तणेण कयंतो कोवेण अजुण्णो कित्तीए बलभद्दो भुयबलेण मयलंछणो सोमयाए दिणयरो पयावेण पवणो सरीरसामत्येण गुरू गुरुबुद्धिविभवेण महुमहो बलिसत्तुदमणेण वम्महो रूवेण सयलजयपायडजसो जियसत्तू नाम राया, तस्स य मयरद्धयपणइणीसमहरेगरूवविभवेऽवि विगयदप्पा इत्थिभावेऽवि दूरपरिचत्तमाया जहत्थाभिहाणा For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगणचंद 18 भद्दा नाम देवी, तीए सद्धिं अणुरूवविसयसोक्खमणुहवंतस्स राइणो वचंति वासरा, अन्नया य सो पियमित्तो| 31 नन्दनमहावीरच. आउयक्खएणं देवलोगाउ चइऊण समुप्पण्णो तीसे पुत्तत्तणेण, कयं च समुचियसमए नंदणोत्ति नामं, धवल- जन्मादि. ४ प्रस्ताव पक्खससहरव बडिओ सरीरेणं कलाकलावेण य । अन्नया पिउणा जोगोत्ति कलिऊण निवेसिओ नियपए, जाओ ॥ ७१॥ सो नंदणो राया, पुवप्पवाहेण पालेइ मेइणीं । एवं च तस्स निजिणंतस्स सत्तुनिवहं इंदियगणं च वित्थारंतस्स दिसामुहेसु निम्मलं जसप्पसारं गुणनिवहं च पणासंतस्स दोससमूहं पिसुणवग्गं च नितस्स समुन्नई कोसं बंधुजणं हैच परिपालिंतस्स साहुलोयं गुरुजणोवएसं च समइकताईचउवीसवाससयसहस्साई। अन्नया य बाहिरुजाणे समोसदा भयवंतो भीमभवजलहितरणतरंडा विसुद्धसन्नाणाइगुणरयणकरंडा मोहमहामलपेलणपयंडा कुमयतमोमुसुमूरणचंडमायंडा मिच्छत्तंधजगअवलंबणेवदंडा पडिबोहियभवियकमलखंडा सुगहियनामधेया पोट्टिलाभिहाणा थेरा, तओ सोराया विण्णायतदागमणो वियसियवयणो समुलसियकवोलो वियंभियसवंगरोमंचकंचुओ समागओ वंदMणत्यं । तओ तिपयाहिणीकाऊण पढमदंसणुच्छलियहरिसपगरिसविप्फारियाणं धवलदिहिवायाणं छलेण विल सियसभमरसियकुसुमेहिं पूयापभारंपिव सव्वंगियं गुरुणो करेमाणो पयलंतनयणाणंदजलेण पक्खालेउमुवटिओव्य चरणे चरणेकरसियमाणसो माणसोयरहिओ हिओवएसोवलंभकामो कामोवघायसूरस्स सूरिणो निवडिऊण चलणेसु 8 परमपमोयमुव्वहंतो भणिउमाढत्तो SAUSAGES 48 * For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वजिहर हरिसुराणंपि अज्ज मन्नामि अप्पयं अहियं । जं तुम्ह पायपउमं दुलहलंभं मए पत्तं ॥ १ ॥ दूरनिरंतर वित्थरंत सुनिवह भाइणो मणुया । जे तुम्ह चलणकमले कुणंति मसलत्तणं धन्ना ॥ २ ॥ जीविज्जइ कजि एत्तियस्स तुच्छेऽवि जीवलोयंमि । जेण किर कहवि तुम्हारिसेत्थ दीसंति तित्थसमा ॥ ३ ॥ उब्वहउ मही भुवणत्तएवि पयडं वसुंधरा नामं । जा अज्जवि तुम्ह सरिच्छपुरिसरयणाई धारेह ॥ ४ ॥ इ थुणिऊणं fare भत्तीए नंदणे नरिंदंमि । जोगोत्ति कलिय कहिउं पारद्धो सूरिणा धम्मो ॥ ५ ॥ भो नरवइ ! संसारे सुचिरं परिभमिय दुक्खसंतत्ता । नरयाइगईस केऽवि पाणिणोऽणंतकालेणं ॥ ६ ॥ बालतवायरणाओ अहवावि अकामनिज्जरवसेण । पार्वति माणुसतं कहकहवि हु रिद्धिसंजुत्तं ॥ ७ ॥ जुम्मं ॥ पत्तेय तंमि अविगणियभवभया चत्तधम्मपडिबंधा । हीलियधम्मायरिया उवहसियविसिट्ठजणचेट्ठा ॥ ८ ॥ विससु पसज्जंती पाणिवहाईसु संपयति । भंगुरमवि ससरीरं मन्नंता सासयं मूढा ॥ ९ ॥ जुम्मं ॥ अन्ने पुर्ण मणवंछियभोगुवभोगोवलंभभावेऽवि । आणिस्सरियपहाणे विस्संभरनायगत्तेऽवि ॥ १० ॥ विसयामूढाविहु धम्मगिरं सुणिय धम्मगुरुमूले । नरवइ ! नरसिंहो इव पञ्चजं संपवज्जंति ॥ ११ ॥ जुम्मं ॥ अहवा पुण्णवसज्जियरज्जदुगुद्दामलच्छिविच्छडो । नरविक्कमनरनाहो तस्सेव सुओ महासत्तो ॥ १२ ॥ एए चिय महणिज्जा पवरं एयाण चेव पुरिसत्तं । जेसिं जणविम्हयकरं चरियं सलहिज्जइ जयंमि ॥ १३ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नरविक्रमचरित्र श्रीगुणचंद है इमं च सोचा नंदणनराहिवेण जंपियं-भयवं! को एस नरसीहो? को वा तस्स सुओ नरविकमो? कहं वा महावीरच०एसो रजदुर्ग लणवि पब्बजं पवन्नोत्ति सवित्थर साहेह, महंतं मे कोउगं, सूरिणा जंपियं-निसामेहि। ४प्रस्ताव: अस्थि कुरुविसयतिलयभूया अदिट्ठपरचक्कभया जणनिवहाणुगया जयंती नाम नयरी, ॥७२॥ पालेइ तं च ससहरसरिच्छपसरंतकित्तिपन्भारो। निप्पडिमपयावकंतसत्तुपणिवइयकमकमलो ॥१॥ उत्तुंगतुरयसिंधुरपक्कलपाइकचकबलकलिओ। सक्कोव्व सुरपुरि परमविक्कमो राय नरसिंघो ॥२॥ विसमच्छो इत्थीलोलुओ य दुग्गावबद्धनिचरई । जस्स हरोऽविन सरिसो तस्स समं कं जणं भणिमो ॥३॥ तस्स य नीसेसअंतेउरप्पहाणा वयणलायण्णावगणियपडिपुण्णचंदमंडला सललियवेलहलगइविजियरायदहंसा कुम्मुण्णयकमलकोमलपाडलचलणजुपला रायहाणिव्य मयरद्धयनरनाहस्स विसालसालब्ब विमलसीलसाली णयामहामोलभंडस्स मंजूसव्य सन्वरइसोक्खमणिखंडभंडारस्स चंपयमाला नाम भारिया अहेसि, जीसे भंगुरत्तणं तिरिच्छच्छिविच्छोहेसु न धम्मकम्मुच्छाहेसु तरलया विमलमणिमुत्ताहारे न विसिट्ठलोयववहारे तणुत्तमुदरस्स न सरस्स कुडिलतं केसकलावस्स न सप्पणयालावस्स, अवि यनियरूवविजियसुरवहुजोवणगवाए कुवलयच्छीए । उन्भडसिंगारमहासमुद्ददुद्धरिसवेलाए ॥१॥ को तीए भणियविम्भमनेवत्थच्छेययागुणसमूहं । वण्णेउ तरइ तुरंतओऽवि जीहासएणंपि? ॥२॥ KARNAKRA ॥७२॥ For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MAALCULARUST तथा-नियचक्कसंधिरक्खणवियक्खणो पयइपालणाभिरओ । अन्नोऽन्नबद्धपणओ दूरं संतोससारो य ॥ ३ ॥ सुप्पणिहियपणिहियओ पमुणियरिउचक्काविलवावारो। पहुभत्तो गुणरागी निबूढभरो महारंभो ॥४॥ एकेकपहाणगुणो मंतिजणो बुद्धिसारपमुहो से । अत्थी समत्वनयसत्थ(नि)समणवित्थरियमइपसरो ॥५॥ अणवस्यमसुरकीरंतडमरभयविहुरसुरवहूसुहडं। हीरंतपवररयणं जो सोचा तियसरायपुरि ॥६॥ उवहसइ सुरगुरुंपिव सवुद्धिमाहप्पपडिहयविपक्खो। तस्स किर मंतिवग्गस्स भणसु केणोवमं कुणिमो ?॥७॥जुम्म। एवंविहगुणे मंतिजणे समारोवियरज्जचिंतामहाभरस्स लीलाए चिय धरं धरतस्स गामागरनगराउलं धरणिमंडलं वसमुवर्णितस्स जायमरणभयवामोहं दुईतसामंतसमूहं पवत्तयंतस्स दीणाणाहजणमणोवंछियपूरणेकपञ्चलाओ महादाणसालाओ कारितस्स तुंगसिंगोवहसियहिमसेलसिहरसिंगाई मयणाइमंदिराई निसामितस्स धम्मत्थपयासणसमत्थाई समयसत्थाई आराहिंतस्स दुकरतवचरणसलिलपक्खालियपावमलाई गुरुचरणकमलाई निवारितस्स जणियजणवामोहं धम्मविरोहं सम्माणितस्स गुणगणोदग्गं पणइसयणवग्गं पुवज्जियसुकयसमुभवंतचिंताइरित्तसोक्खस्स पुरिसत्थसेवणन्भुजयस्स नयविणयवंतस्स दाणाणंदियबंदिजणसंदोहुग्घुटलहुचरिवस्स वोलिंति वासरा तस्स राइणो भुयणपयडस्स । अन्नया य विचित्तचित्तमणहरंमि मंदिरंमि पच्छिमरयणीसमए सुहसेज्जाए सुत्तस्स तस्स हमंदीभूयंमि निद्दापसरे पियक्खणेण पढियमेकेण जामरक्खगपुरिसेण स तुंगसिंगोवहसियहिमणसलिलपक्खालियपावन पुज्जियसुकयसमुन्नालिति वासरा तर SARAKAA%%%AABAR १३ महा. For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kcbatirth.org नरसिंहस्य सुतचिन्ता. पा श्रीगुणचंद जे पुवपुरिसवंसप्परोहगाढप्परूढमूलसमं । वेरिकुलकमलनिद्दलणकुंजरं सयलगुणनिलयं ॥१॥ महावीरचा पुत्तं ठविउं नियए पयंमि पडिवन्नसंजमुज्जोगा। इह परभवे य कह ते पाविंति न निब्बुइं पुरिसा? ॥२॥ (जुम्म) ४ प्रस्तावः एवं च सोचा चिंतियं रना-अहो दुलंभमेयं, जओ मम एत्तियकालेऽवि पउरासुवि पणइणीसु न एकस्सवि कुलालं॥७३॥ बणस्स पुत्तस्स लाभो जाओ, अच्छउ सेसं, एवं ठिए य किं करेमि? किं समाराहेमि?, कत्थ वच्चामि ? कस्स साहेमि? को उवाओ? के वा एरिसकज्जे सहाया ? को य मे पुरिसयारो? का वा पुवकम्मपरिणइत्ति खणं किंकायच्वयमूढयं अणुभविय तबेलं चेव अंगीकयसत्तभावो एवं सम्मं परिभाविउं पवत्तो परलोयपवत्ताणं जइवि सुएहिं न होइ साहारो। जं सवंसय उवरि गोवि नगओ दुहं कुणइ ॥१॥ तहविय पुबनराहिवसंतइवुच्छेय दुक्खमक्खिवइ । मज्झ मणो पुबनरिंदरक्खिओ कुरुजणवओ य॥२॥ (जुम्म) एत्यंतरे जायाई समुडियभारुंडकारंडवहंसचक्कवायकुलकोलाहलाउलियाई दिसिमुहाई वियलंतपभापसरो विPच्छाईभूओ तारयानियरो पसरिया सिंदुररेणुपुंजपिंजरा सूरसारहिपमा ताडियाई पडहमुरवझल्लरिभंभाभेरीभंकार भासुराई पभायमंगलतूराई समुग्गओ कमलसंडपयंडजडविच्छडखंडणुडामरकरपसरो दिणयरो, तओ उठ्ठिऊण सयणिजाओ निस्सरिओ वासभवणाओ कयपाभाइयकिचो अंगरक्खपीढमहप्पमुहपहाणपरियणाणुगओ अत्थाणीमंडवे गंतूण राया अणेगमणिकिरणविच्छुरियंमि सूरोप पुवपवयसिहरंमि कणयसिहासणमि निविट्ठो, तयणंतरं च ठियाओ EARSAMBALACKAGESANGA KAKAALAAAA% ॥७३॥ For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SEXAAGACADERER उभयपासेसु चामरग्गाहिणीओ निविट्ठा य नियनियठाणे मंतिसामंतसुहडखंडरक्खपामोक्ला पहाणपुरिसा पडिछियाई पञ्चंतरायपेसियमहरिहपाहुडाइं चिंतियाई रजकज्जाई, खणंतरे य पेसियनीसेससामंतपभिइजणो कइययपहाणजणपरियरिओ एगंतढिओ रयणिवइयरं बुद्धिसारपमुहाण मंतीणं संसिऊण पुच्छिउमेवं समारद्धो-भो मंतिणो ! सुणह तुम्भे समयसत्थाई बुज्झह तंतमंतपडलाइं पज्जुवासह विज्जासिद्धे सयंपि सबोवहासुद्धवुद्धिणो विवेहै यह गुविलंपि कजजायं, ता साहह कहमिमस्स सुयलाभचिंतासायरस्स पारं वचिस्सामोत्ति ? खणंतरं च चिंतिय | जुत्ताजुत्तं भणियं मंतिवग्गेणं-देव ! सुट्ठ सट्ठाणे समुज्जमो, अम्हे पुरावि देवस्स एयमढे विनविउकामा आसि, संपयं पुण सयमेव देवेण सिढे लढे जायं, किं तु देवो अम्हे उवायं पुच्छइ, तत्थ य किं साहेमो?, अइदिवनाणनयणोवलब्भरूवंमि एत्थ वत्थुमि । कमुवायविहिं भणिमो? किं वा पचुत्तरं देमो? ॥१॥ आगारिंगियगइभणिइगोयरं मिणइ मारिसो अत्थं । एवंविहे य कजे अहं को वुद्धिवावारो? ॥२॥ एवं पुण जाणेमो नियनियकम्माणुरूवठाणेसु । जीवा उवायविरहेवि होंति पुत्ताइभावेणं ॥३॥ हसिऊण भणइ राया जइ एवं जणणिजणगविरहेऽपि । गयणंगणे पइक्खणमुववजंतीह किमजुत्तं? ॥४॥ कम्मपहाणतणओ ता मा एगंतपक्खमणुसरह । जं दबखेत्तकालावि कारणं कजसिद्धिमि ॥ ५॥ अह भालयलमिलंतकरकमलं जं देवो आणवेइ अवितहमेयंति मन्निऊण बुद्धिसारपमुहो मंतिवग्गो भणिउमा For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kcbatirth.org गम, श्रीगुणचंद ढत्तो-देव! जइ एवं ता निसामेहि, अत्थि इहेव साहियपयंडचंडियाविजो मुंडमालालंकियविग्गहो निउणो पि- योरशिवामहावीरच० सायसाहणेसु साहसिओ साइणीनिग्गहे कयकरणो खेत्तवालावयारेसु खोदक्खमो कन्नविजासु ओसहीसहस्ससंपि-IN ४ प्रस्तावः हरसायणपाणपणासियजराविहुरो विवरपवेसपरितोसियजक्खिणीलक्खपरिभोगप्पयारपरूवणपंडिओ महत्वइयवे॥७४॥ सधारी घोरसिवो नाम तवस्सी। अवि य-आगिटुंमि पगिट्ठो खुन्नो पन्नगमहाविसुद्धरणे । विक्खेवकरणदक्खो अमूढलक्खो वसीकरणे ॥१॥ जं सत्सु न सिर्ट बंधुरबुद्धीहि पुत्वपुरिसेहिं । जं नो पुचकईणवि कहिंपि मइगोयरंमि गयं ॥२॥ जुत्तीहिवि जं विहडइ सुर्यपि जं सद्दहति नो कुसला । जं सुइरंपि हु दिठं संदिज्झइ तंपि दंसेइ ॥३॥ (जुम्म) भणइ य अत्थि असझं मज्झं भुवणत्तएवि नो किंपि । जइ सो एयसमत्थो एत्यवि देवो पमाणंति ॥ ४॥ एवं सोचा रन्ना कोउहलेण भणिया पहाणपुरिसा-अरे आणेह तं सिग्धमेव, जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण निक्खंता ते य रायभवणाओ, गया तस्सासमपयं, पणमिऊण निवेइयं से आगमणप्पओयणं, तओ हरिसुप्फुललोयणो कयकिचमप्पाणं मन्नतो तो चलिओ घोरसियो रायपुरिसेहि समं, पत्तो य रायभवणं, दुवारपालनिवेइओ गओ ॥७४॥ तरायसमीवं, दिनासणो उवविठ्ठो, सम्माणिओ उचियपडिवत्तीए नरवडणा, खणंतरेय पुच्छिओ एसो-भयवं! कयरीओ दिसाओ आगमणं? कत्थ वा गंतवं ? किं वा एत्थावत्थाणप्पओयणंति', घोरसिवेण भणिय-महाराय ! सिरिपवयाओ CCCCCCCCC RAKASCHACKAGARIK For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RECORDCROSSSSSSUESUSM आगओऽम्हि, संपयं पुण उत्तरदिसिसुंदरीसवणकन्नपुरे जालंधरे गन्तुमिच्छामि, जं पुण पुच्छह अवत्थाणपओयणं तत्थ य तुम्ह दंसणमेव, संपयं एयपि सिद्धति, नरवइणा भणियं-भयवं! निरवग्गहा सुणिज्जइ तुम्ह सत्ती मंततंतेसु ता है। दंसेसु किंपि कोउगं, तओ महाराओ निवेयइत्ति पडिवजिय तेहिं तेहिं दिद्विवंचणदेवयावयारणनरवेहपुप्फवेहन? मुट्ठिसुहदुक्खपरिजाणणप्पमुहकोऊहलेहिं वसीकयं घोरसिवेणं नरिंदचित्तं, अह अवसरं लहिऊण भणियं राइणाभयवं! किं एएसु चेव कोऊहलेसु तुह विन्नाणपगरिसो उआहु अन्नत्थवि अस्थि ?, मुणिणा भणियं-किमेवमसंभावणागन्भमम्हारिसजणाणुचियं वाहरसि ?, एगसद्देणेव साहेसु जं दुक्करंपि कीरइ, तओ राइणा निवेइओ पुत्तजम्मलाभविसओ वुत्तंतो, घोरसिवेण भणियं-किमेत्तियमेत्तेण किलिस्ससि ?, अहमेयम8 अकालेवि अविलंब पसाहेमि, राइणा भणियं-जइ एवं ता परमोऽणुग्गहो, केवलं को एत्थ उवाओ?, घोरसिवेण भणियं-एगते निवेयइस्सं, तो उक्खित्ता कुवलयदलसच्छाहा मंतीसु राइणा दिट्टी, उट्ठिया य इंगियागारकुसला सणियं सणियं नरिदपासाओ मंतिणो, जायं विजणं, घोरसिवेण जंपियं-महाराय! कसिणचउद्दसीनिसिए मए बहुपुप्फफलधूवक्ख यवलिभक्खपरियरेण तुमए सह भयवं महामसाणहुयासणो तप्पणिजो, राइणा चिंतियं-कहं नु मए पुप्फाइपरि8 यरेण सह हुयासणो तप्पणिजोत्ति ?, अवसहोत्ति, अहवा अभिप्पायसाराई इसिवयणाई, नो विसंबंधलक्खणदूसण मावहंति, मुणिणा भणियं-महाराय ! सुण्णचक्खुक्खेवो इव लक्खीयसि, राइणा भणियं-मा एवमासंकह, निवेयह एवं ता परमोऽणुमतीय राइणा दिट्टी, उडियासहसीनिसिए मए बहुपमा पुष्फाइपरि KESARKAR For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः 1104 11 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जहा पारद्धं, मुणिणा भणियं - तओ सो भयवं हुयासणो- उन्भडपयडियरूवो पयंडजालाकलावभरियनहो । दाही तुज्झं वंछियफलनियरं कप्परुक्खोव ॥ १ ॥ राइणा भणियं - जइ एवं ता सव्वहा आगमिस्सं चउदसीनिसाए, एस अत्यो साहियघोत्ति, पडिवन्नं च तेण, अह कयकुसुमतंबोलदाणसम्माणे सट्टामि गए घोरसिवे राया निव्वत्तियदेवयाचरणकमलपूयापडिवत्तीहिं तेहिं तेहिं अस्सदमणाइएहिं विचित्तविणोएहिं अप्पाणं विणोएंतो पइक्खणं दिणाई गणमाणो य कालं गमेइत्ति, कमेण य पत्ताए कसिणचउद्दसीए आहूयं मंतिमंडलं, निवेइयं रहस्सं, पुच्छियं च संपयं किं कायव्वंति ?, मंतीहिं पभणियं देव ! किंपाग फलाईपिय मुहंमि महुराई परिणइदुहाई अन्नाई तदियराई दुहावि दीसंति कज्जाई, अत्थस्स संसओऽविहु पवित्तिउत्ति किं तु निद्दिट्ठो, अविमुक्काविस्तासेहिं सव्वहा उज्जमेयवं, एवं भणिए राइणा कुसुमतंबोलाइदाणपुवगं सम्माणिऊण मंतिवग्गो पेसिओ सगिहे, जाए य रयणिसमए सयं कयवे| सपरियत्तो नियत्तियपीढमद्दाइपरियणो समग्गबलिफलफुलपमुहसाहणपडलसमेओ करकलियतिक्खग्गखग्गमंडलो घोरसिवसमेओ अलक्खिजंतो अंगरखेहिं अमुणिज्जंतो दासचेडचाडुकारनियरेहिं वारिज्जमाणो पवत्तिज्जमाणो य पडिकूलेहिं अणुकूलेहि य अणेगेहिं सउणेहिं सर्वगनि विविसि रक्खामंतक्खरो संपत्तो महीवई महामसाणदेसं । जं च केरिसं :-- निलीणविज्जसाहगं पवूढपूयवाहगं, करोडिकोडिसकडं, रडंतधूयककडं । For Private and Personal Use Only हुदाश तपेणस्वीकृतिः. 11 194 11 Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir %ASS सियासहस्ससंकुलं मिलंतजोगिणीकुलं, पभूयभूयभीसणं कुसत्तसत्तनासणं ॥ पघुटदुट्ठसावयं जलंततिवपावयं, भमंतडाइणीगणं पवित्तमंसमग्गणं ॥१॥ कहकहकहट्टहासोवलक्खगुरुरकखलक्खदुप्पेच्छं । अइरुक्खरुक्खसंबद्धगिद्धपारद्धघोररवं ॥२॥ उत्तालतालसहुम्मिलंतवेयालविहियहलवोलं । कीलावणं व विहिणा विणिम्मियं जमनारिदस्स ॥ ३॥ तत्थ य निरूविओ सल्लक्खणभूमिभागो घोरसिवेण, खित्तं च वलिविहाणं कया खेत्तवालपडियत्ती खणिया वेइया भरिया खाइरंगाराणं मसाणसमुत्थाणं, भणिओ य राया-अहो सो एस अवसरो ता दढमप्पमत्तो ईसाणकोणे हत्थसयदेससंनिविट्ठो उत्तरसाहगत्तणं कुणमाणो चिट्ठसु, अणाहूओ य मा पयमवि चलेजासित्ति पुणो पुणो निवारिय पेसिओ नरिंदो, गओ य एसो, घोरसिवेणावि आलिहियं मंडलं, निसन्नो तहि, निबद्धं तहिं पउमासणं, कयं सकलीकरणं, निवेसिआ नासावंसग्गे दिट्ठी, कओ पाणायामो, नायविंदुलवोववेयं आढत्वं मंतसुमरणं, समारूढो झाणपगरिसंमि। इओ य चिंतियं राइणा-अहं किर पुवं सिक्खं गाहिओ मंतीहि, जहा-अविस्सासो सम्वत्थ कायवोत्ति, निवारिओ य सवायरं पुणो पुणो एएण जहा अणाहूएण तए नागंतवंति, ता समहियायरो य जणइ संके, न एवंविहा कावालियमुणिणो पाएण कुसलासया हवंति, अओ गच्छामि सणियं सणियमेयस्स समीवं, उवलक्खेमि से किरियाकलावंति विगप्पिउं जाव पटिओ ताव विप्फुरियं से दक्खिणलोयणं, तओ निच्छियवंछियत्थलाभो करकलिय-18 A CROSECS For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kcbatirth.org घोरशिवजालस्फोट: श्रीगुणचंदद करवालो कसिणपडकयावगुंठणो मंद मंदं भूमिविमुक्कचरणो गंतूण पुढिदेसे ठिओ घोरसिवस्स, सुणिउमाढत्तो य, महावीरच०सोय झाणपगरिसत्तणेण अणावेक्खिय अवार्य अविभाविय पडिकूलत्तं विहिणो अविनायतदागमणो नरवइथोभक- ४ प्रस्तावः रणदक्खाई मंतक्खराई पुवपवित्तविहिणा समुचरितो निसुणिओ रन्ना, परिभावियं चऽणेण-अहो एस दुट्टतवस्सी ॥७६॥ म थोभविहिणा विबलं काऊण सन्निहितनिहित्तकत्तियाए परिकुपियकयंतभमुहकोणकुडिलाए विणासिऊण हुयवहं तप्पिउं बंछति, पहाणनरोवहारविहिणा हि सिझंति दुट्ठदेवयाओ, ता किमेत्थ जुत्तं ?, अवि यएतस्स किं इयाणिं वावडचित्तस्स तिक्खखग्गेण । कदलीदलं व सीसं लुणामि पासंडिचंडस्स ॥१॥ अहवा दुद्धररिउगंधसिंधुराघायदंतुरग्गेण । खग्गेण मज्झ लजिजईह घायं करतेण ॥२॥ केवलमुवेहणिजो नयेस एयंमि होइ पत्थावे । जं थोभकरणविहिणा मरणं मह वंछई काउं ॥३॥ तथापि-झाणावरोहवक्खित्तचित्तपसरंमि हणिउकामस्स । सग्गं गयावि गुरुणो होहिंति परंमुहा मज्झ ॥४॥ ता जुत्तमिणं ठाऊण दूरदेसंमि बोहिउं एयं । पढम दिन्नपहारे पडिपहरेउं ममेयंमि ॥५॥ इय चिंतिऊण रण्णा ठाउं दूरे पयंपियं एयं । गिण्हसु करेण सत्थं रेरे पासंडिचंडाल!॥६॥ इइ सोचा झाणेगग्गभंगरोसोवरत्तनयणजुओ। भालयलघडियभडभिउडिभीसणो उडिओ सोऽपि ॥७॥ करकलियनिसियकत्तियनियंतकसिणप्पमोलिजडिसंगो। अह तिब्बगवघोरं पोरसिवो भणिउमाढत्तो ॥८॥ अहवा दुद्धररिउगंधसिधुराणाम होइ पत्थाये । जं थोभकरणविहिण गरुणो होहिंति परंमुहा मज CARSADAGA For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रे रे दुट्ठनराहिव ! विलज्ज निस्सत्त मा पलाइहिसि । सुयविसयतिक्खदुक्खाओ जेण मोएमि तं झति ॥ ९ ॥ रण्णा पढियं मा गज निष्फलं पहर रे तुमं पढमं । न कयाइवि अम्ह कुले पढमपहारो कओ रिउणो ॥ १०॥ तत्तो विचित्त वग्गणसुनिउणकरणप्पयारकुसलेण । घोरसिवेणं रन्नो पवाहिया कत्तिया कंठे ॥ ११ ॥ रन्नावि तक्खणं चिय दक्खत्तणओ इमस्त सत्थजुओ । हत्थो पहारसमए बद्धो नियबाहुबंधेण ॥ १२ ॥ भुपदंड निविडपीडणविहडियदढपहरणंमि इत्थंमि । मुट्ठिप्पहारपहओ निवाडिओ सो धरणिवट्ठे ॥ १३ ॥ दढमंततं सिद्धीवि हिडिया तस्स तंमि समयंमि । विवरंमुहंमि दइवे अहवा सवं विसंवयइ ॥ १४ ॥ अह वीसमिऊण खणं घोरसिवो फुरियवीरिओ सहसा । पारद्धो रन्ना सह जुज्झेउं बाहुजुज्झेणं ॥ १५ ॥ मलाण व खणमुट्टीण पडणपरिवत्तणुचलणभीमो । सरहसहसंतभूओ अह जाओ समरसंरंभो ॥ १६ ॥ निविडभुयदंडचंडिम संपीडणविहडियंगवावारो । मुच्छानिमीलियच्छो अह निहओ सो महीवइणा ॥ १७ ॥ एत्थंतरंभि तियसंगणाहिं वियसंतसुरहि कुसुमभरो । जयजयसहुम्मीसो पम्मुको नरवइसिरंमि ॥ १८ ॥ हारद्धहारकंचीकलावमणिमउडमंडियसरीरा । रणज्झणिरमहुरने उरख पूरियदस दिसाभागा ॥ १९ ॥ नवपारियाय मंजरिसोरभरह सुम्मिलंत भसलकुला । धरियधवलायवत्ता तहागया देवया एका ॥ २० ॥ जुम्मं । तीए भणियं नरसिंघ ! निच्छियं तंसि चैव नरसिंघो । जेणेस महापावो खत्तियखयकारओ निहओ ॥ २१ ॥ For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रीगुणचंद महावीरच. ४ प्रस्ताव: घोरशिवपराजयः, ॥ ७७॥ RECAUCROSA रण्णा भणियं कह देवि! कहसु खत्तियखयंकरो एस ? । मइ जीवंते संपइ, पडिभणइ निवं तओ देवी ॥ २२॥ एएण किंपि सिद्धिं समीहमाणेण पावसमणेण । हणिया कलिंगवंगंगहूणपंचालपमुह निवा ॥ २३ ॥ दिद्विप्पवंचमाइंदजालपमुहेहिं कूडकवडेहिं । अच्छरियाई दातिएण को को न वा नडिओ? ॥ २४ ॥ न य केणवि एस जिओ न यावि एयस्स लक्खियं सीलं । तुमए उभयपि कयं अहह मई निम्मला तुज्झ॥२५॥ इय तुह असरिससाहससुंदरचरिएण हरियहिययाए । मम साहसु किंपि वरं जेणाहं तुज्झ पूरेमि ॥२६॥ ताहे मउलियकरकमलसेहरं नामिउं सिरं राया। भणइ तुह दसणाओऽवि देवि! अन्नो वरो पवरो? ॥ २७ ॥ भणियं सुरी' नरवर ! इयरजणोव्य न जइवि पत्थेसि । तहवि तुह वंछियत्थो होही मज्झाणुभावेण ॥२८॥ इय भणिए नरवइणा पराएँ भत्तीऍ पणमिया देवी। लच्छिच पुण्णरहियाण झत्ति असणं पत्ता ॥ २९॥ नरिंदोऽवि तारिसमच्चभुयं देवीरूवं सहसच्चिय नयणगोयरमइकंतमुवलन्भ चिंताकल्लोलमालाउलो एवं परिभावेइ-किमेयं सुमिणं आहु विभीसिया अहवा एयस्स चेव दुकावालियस्स मायापवंचो किं वा मम मइविन्भमो उयाहु अवितहमेयंति ?, इय जाव निवो संदेहदोलमालंबिउं विकप्पेइ । मा कुणसु संसयं ताव वारिओ गयणवाणीए ॥१॥ घोरसिवोवि मत्तो इव मुच्छिओ इव दढदुधणताडिओ इव महापिसायनिष्फंदीकओ इव मुसियसारवक्खरो इव ॥७७॥ R For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पियविरहमहागहगहिओ इव दुट्ठोसहपाणप्पणचित्तचेयणो इव खणंतरं चिट्ठिय सिसिरमारुएण समासासियसरीरो थोवोवलद्धचेयणो मंदमंदमुम्मीलियलोयणजुयलो लज्जावसविसंतुलसव्वंगोवंगो अइदीणवयणो दीहमुस्ससिय राया-15 हणमवलोइउं पवत्तो, नरवइणावि दढसंजायकरुणभावेण अइदुक्खिओ एसोत्ति उवलक्खिय भणिओ घोरसिवो भो किमवलोएसि?, घोरसिवेण सगग्गयं भणिय-महाराय! अवलोएमि नियकम्मपरिणइविलसियं, राइणा भणियं-किमेवं सविसायं जपसि?, सब्बहा धीरो भव परिहर दुरज्झवसायं परिचय कोवकंडं विमुंच विजयाभिलासं अणुसर पसमाभिरई पियसु करुणारसं परिचिंतेसु जुत्ताजुत्तं समुज्झसु खुद्दजणोचियं वावारंति, अह समीहियत्थ-18 सिद्धी न जायत्ति सम्मसि ता गिबहसु इमं परिकुवियकयंतजीहाकरालं नीलपहापडलसामलियसयलदिसिचक्कवालं मम करवालं, करेगु मम सरीरविणासणेण नियसमीहियसिद्धिं, जओ मुक्को मए संपयं पोरिसाभिमाणो तुह कजसाहणहाएत्ति । अवि य अच्छउ तरंगभंगुरमसारगं नियसरीरयं दूरे । जीयंपि हुपरहियकारणेण धारिति सप्पुरिसा ॥१॥ जं पुण पढम चिय तुज्झ कारणे नो समप्पिओ अप्पा। विहिओ य झाणविग्यो एवं नणु कारणं तत्थ ॥२॥ मम विरहे एस जणो एसो नीसेससाहुवग्गो य । धम्मभंसमवस्सं पाविस्सइ पावलोयाओ॥३॥ इण्हि तुह गुरु दुक्खं उवलक्खिय बद्धकक्खडसहावं । निरवेक्खं मज्झ मणो जायं सेसेसु कज्जेसु ॥४॥ ACCORRECI.. For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org ॥७८॥ श्रीगुणचंद घोरसिवेण भणियं-महाभाग!मा एवमुल्लचेसु, जीवसु तुम मजीविएणाविजाव जलहिकुलसेलससितारयदिवायरे, घोरशिवमहावीरच०पसीयसु मे, वियरसु एकं पसायंति, राइणा भणियं-किमेवं वाहरसि ?, जीवियदाणाओऽपि किमवरमदेयं ? ता असं- पश्चात्तापात ४ प्रस्ताव: भंतो पत्थेसु, घोरसिवेण भणियं-जइ एवं ता अणुजाणसु मम एयंमि पजलंतजालासहस्सकवलियसलभकुलसंकुले मिसिमिसंतद्धदद्धकलेवरुच्छलंतविस्सगंधुदुरे मसाणहुयासणे पवेसुजम, हवसु धम्मबंधवो, नन्नहा मे पुर्वावहियमहापावपवयकंतस्स अवस्सं विस्सामो भविस्सइत्ति, रण्णा भणियं-कुओ तुह पुवं पावसंभवो?, जओ कयाई तुमए विविहाइं तवचरणाई आपूरियाई पावभक्खणदक्खाई मंतज्झाणाई पूइयाई देवकमकमलाई निबत्तियाई वेयरहस्सज्झयणाई उवासिओ गुरुजणो पवट्टिया धम्ममग्गेसु पाणिणो, ता न सबहा वोत्तुमवि जुत्तमेयं भवारिसाणं, घोरसिवेण भणियं-महाराय ! अलमलं मम पासंडिचंडालस्स वीसत्थघाइणो पयडियविचित्तकूडकवडस्स दक्खिन्नरहियस्स निसायरस्सेव निकरुणस्स, किंपागतरुफलस्सेव बाहिरमेत्तरमणीयस्स वगस्सेव सुसंजमियपाणिप्पायप्पयारस्स भुयंगमस्सेव परच्छिद्दावलोयणनिरयस्स दुजणस्सेव मुहमहुरभासिणो संकित्तणेणं, एवं च सबहा विरत्तोऽम्हि 8 ॥७८॥ पावपंकपडिहत्थाओ नियकडेवराओ, नेव य अन्नो पावविसोहणोवाओ, राइणा भणियं-भो भो किमेवं पुणो पुणो अत्ताणं अत्ताणं व पुरिसं दूसेसि ?, पयडक्खरं निवेएसु नियपुत्ववित्तंतं, घोरसिवेण भणियं-महाराय ! गरुओ एस वुत्तो, राइणा भणियं-किमजुत्तं ?, साहेसु, घोरसिवेण भणियं-जइ एवं ता निसामेहि SOUNDCLOCAUSACROCARSALKAMALS RECACANCE For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ महा० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अत्थि सुरसरितुसारपवित्तपरिसरुद्देसं विविहावणभवणमालाविभूसियं समूसियसियवेजयं तीरेहंतसुरमंदिर सिहरं सिरिभवणं नाम नयरं, तत्थ य पयंडमायंडमंडलुद्दामपयावपरिसोसियविपक्खजलासओ अणेगस मरवावारविदत्तजसो अवंतिसेणो नाम राया अहेसि, जस्स विजयजत्तापत्थियस्स पत्थिवसहस्ताणुगम्ममाणमग्गस्स उद्दंडपुंडरीयपंडुरच्छत्तच्छाइयगयणाभोगा नट्ठदिवसावगासव सोहंति दस दिसाभागा, जस्स य गज्जंतमत्तकुंजरगंडत्थलगलंतनिरंतर मयजलासारजायदुद्दिगंधयारभीयाभिसारियव अणुसरह कवाडवियर्ड वच्छत्थलं रायलच्छी, जस्स चउबिहाउज्जघोरघोसं मेहोहरसियंपिव सोऊण दूरं पलायंति रायहंसा, जस्स समरंगणेसु रोसारुणाओ पडिसुहडेसु पडिबिंबियाओ पप्फुलसुकुमार करवीरकुसुम मालाउब रेहिंति दिट्ठीओ, तस्स य नियरूवलावन्नजोधणगुणावगणियरइप्पवायाओ नीसेसपणइणीपहाणाओ दुवे भारियाओ अहेसि, पत्तलेहा मणोरमा य, पढमाए जाओ अहमेको पुत्तो वीरसेणो नाम, बियाए पुण विजयसेणोत्ति, गाहिया दोऽवि अम्हे धणुवेयपरमत्थं कुसलीकया चित्तपत्तच्छेयविणोएसु सिक्खविया य खेडयखग्गगुणवणियं जाणाविया महल्लजुद्धं, किं बहुणा ?, मुणाविया सङ्घकलाकलावं, अन्नया य उचिओत्ति परिचिंतिय ठाविओऽहं ताएण जुवरायपए, दिन्ना य मज्झ लाडचोडमरहट्ठसोरट्ठपमुद्दा देसा कुमारभुत्तीए, परिपाले मि जुवरायत्तणं, मर्मपि अणुमग्गमणुसरह सुहडाडोवसंकुडा पगलंत गंडत्थला दप्पुदुरसिंधुरघडा, ममावि मग्गओ धावंति तरलतरतुरंगपहकरा, मज्झंपि परसुसेलचंडगंडी वसरविस रकुंतगयापहरणहत्थाइं वित्थरंति चउद्दिसिंवि पुरिसबलाइंति, For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥ ७९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुइयस्सवि मज्झ सवत्तभाउणो दिन्नाई ताएण कहवय गामसयाई, एवं च विसयसुहमणुहषंताणं वर्षति वासरा । अण्णा खणविपरिणाम धम्मयाए जीवलोयविलसियाणं पइसमयविणाससीलयाए आउयकम्मदलियाणं अप्पडिहयसासणत्तणओ जममहारायस्स सुरिंदचावचवलयाए पियजणसंपओगसमुज्भव सुहस्स पाविओ अवंतिसेणराया पंचतंति, कयंमि य तम्मयकिचे मंतिसामंतसरीररक्खप्पामोक्खपहाणलोएण निवेसिओऽहं रायपए, पयट्टियाई | मए तायस्स सग्गंगयस्स कएण तडियकप्पडियदीणाणाहाणिस्सिय विदेसियजणाण महादाणाई कारावियाई उत्तुं गर्सिंगसुंदराई देवमंदिराई निरूवियाई अवारियसत्ताई, कालकमेण य विगओ मम सोगो, वसीकयं सामंतचकं, निवासिया नियमंडलविलुंपगा पट्टिओ पुचपुरिसमग्गो । अन्नया य सिसिंधुरखंधगओ विलयाजणधुव माणसियचमरो । धरियधवलायवत्तो किंकरनरनियरपरियरिओ ॥ १॥ उम्मग्गपयद्दुद्दामतुरय घद्दुक्ख उद्धयरओहो । नयराओं निग्गओऽहं वणलच्छीपेच्छणट्टाए ॥ २ ॥ जाव य तत्थ पेच्छामि पुप्फफलसमिद्धबंधुरं तरुणतरुगणं परिब्भमामि माहवीलयाहरेसु अवलोएमि कयलीदलाणं रुंदत्तणं निरिक्खामि संपिंडियस सिखंडपंडुरं केयइपत्तसंचयं अग्घाएमि अणग्घवउलमालियासुरहिपरिमलं करेमि करतलेण सोरभभरलोभमिलं तरणज्झणंत फुलंघयरिछोलिलिहिजमाणमयरंदं नषसहयारीमंजरीपुंजं ताव सहसच्चिय सुणेमि नियपरियणकलयलं । कहं ? - For Private and Personal Use Only वीरसेनवृत्ते राज्याप्तिः. ॥ ७९ ॥ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SABSORRRRRRREARSA सामी! पेच्छह गयणंगणंमि कह वट्टए महाजुझं? । सज्झसकरमइभीमं सुराण विजाहराणं वा ॥१॥ एवं सोचा मएवि उत्ताणीकयानिमेसलोयणेण उड्डमवलोयमाणेण दिट्ठा विविहप्पयारेहिं जुज्झमाणा गयणमि विजाहरा, ते य एवं जुझंतिसियमलयसबलसिलसूल अवरोप्पर मेलहिं भिंडिमाल । वंचावहि तक्खणि लद्धरक्ख पुण पहरह जय जस सधपक्ख १ खणु निहरमुहिहिं उठ्ठियंति, खणु पच्छिमभागमणुवयंति । खणु जणगजणणि गालीउ देंति, खणु नियसोंडीरिम कित्तयंति ॥ २॥ अच्छी निमीलियसुय रहिं चिर साहिय विजयविज, उणु खणे खणे जायहिं जुज्झसज्ज । अविगणिय मरण रणरसियचित्त, भुयदंडमहाबलमयविलित्त ॥३॥ इय तेसिं खयराणं परोप्पर जुज्झिराणमेक्कणं । लण छलं अन्नो पहओ गुरुमोग्गरेण सिरे ॥४॥ पडिओ धरणीवढे ममंतिए विगयचेयणो सो य। मुच्छानिमीलियच्छो विच्छाओ छिन्नरुक्खोध ॥५॥ एत्यंतरे तयणुमग्गेण चेव कड्डियनिसियखग्गो पधाविओ इयरो विजाहरो तस्स बहनिमित्तं, मुणिओ य मए जहा एसो एयस्स विणासणकए एतित्ति, तओ मए भणिया सहवेहिणो धाणुहिया अंगरक्खा य, जहा रे रे रक्खह एयं भूमीतलनिवडियं महाभागं । एवं विणासणुजुयमितं खयरं पडिक्खलह ॥१॥ CROCOCCORRECASTL For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ४ प्रस्ताव विद्याधररक्षा. ॥८०॥ CAMERASACSCGARLS असिखेडयहत्थेहिं तस्संगं छाइयं वरभडेहिं । ओगासगलभमाणो रुद्धो खयरो तओ भगइ ॥२॥ हे भो नरिंद ! मुंचसु एवं खयराहमं मम वहट्ठा । एसो खु मज्झ वइरी विणासियचो मएऽवस्सं ॥३॥ भणिओ य मए खयरो किं पलवसि तं पिसायगहिओघ । किं एस खत्तधम्मो? जेणेवमहं करेमित्ति ॥४॥ किं चावरद्धमिमिणा जेणेयं मारिउं समीहेसि । सो भणइ एस मम दारभोगरसिओत्ति ता हणिमो ॥५॥ ताहे मए स भणिओ साहू इयरो व होउ नऽप्पेमि । सरणागयरक्खणलक्खणं च राईण खत्तवयं ॥६॥ उब्बद्धभिउडिभंगो रोसारुणनयणजुयलदुप्पेच्छो । फरुसक्खरेहिं खयरो ताहे मं भणिउमाढत्तो ॥७॥ रे रे दुटुनराहिव! मा बोहसु केसरि सुहपसुत्तं । दिट्ठीविसाहितुंडं कंडूयसु मा करग्गेण ॥ ८॥ जालालिभीममगि अवक्कमसु य मा तुमं पयंगोछ । जइ छसि चिरकालं रजं काउं महियलंमि ॥९॥ भणिओ य मए एसो किं रे वाहरसि मुक्कमजाय ! । सप्पुरिसमग्गलग्गस्स मज्झ जं होइ तं होउ ॥ १०॥ चिरकालजीविएणवि परंतेऽवस्समेव मरियवं । ता अवसर दिढिपहाओ कुणसु जं तुज्झ पडिहाइ ॥ ११॥ जइ एवं ता विहिणो मा दाहिसि दूसणं तुमं राय! । इय भणिऊण सरोसो खयरो सो गयणमुप्पइओ ॥ १२ ॥ तयणंतरं मए निरूविओ सो भूमितलनिवडिओ विजाहरो जाव अज्जवि सजीवो ताहे काराविया चंदणरसच्छडापहाणा सिसिरोवयारा संवाहियाई सरीरसंवाहणनिउणेहिं पुरिसेहिं सबंगाई, खणंतरेण लद्धा तेण SARACTEGOROADCASACRACACC ।।८०॥ For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | चेयणा उम्मीलियं नयणनलिणं अवलोइयं दिसिमंडलं आलविओ पासवत्ती परियणो-भो भो महायस ! कहमहमिह महीवट्टे निवडिओ ?, कत्थ वा वेरिविजाहरो ?, को वा एस देसो ?, किंणामं इमं नयरं ? को वा एसो छत्तच्छायानिवारियरविकरपसरो परिचलंतधवलचामरजुयलो मज्झकए नरनियरं वावारिंतो पुरो संठिओ चिट्ठह महायसो नराहिवइत्ति ?, इमं च सोचा निवेइयं से परियणेण गयणपडणाओ आरम्भ सर्व जहावित्तंति । तओ सो खयरो दीहं नीससिय मम पच्चासन्ने ठाऊण जोडिय करसंपुढं विन्नविउमादत्तो- महाभाग ! धन्ना सा महिमहिला जीसे तं पई कयलक्खणा इमे भिच्चा सेवंति जे तुह चरणकमलं धन्ना ते सुहडा जे तुह कज्जे तणं व नवि गणंति नियजीवियं, अहो ते परोवयारित्तणं अहो सप्पुरिसकम्माणुवत्तित्तणं अहो नियकज्जनिरवेक्खया अहो सरणागयवच्छलत्तणं, न सवहा मम मणापि पीडमुप्पाएर सत्तुपराभवो जं तुमं सयमेव पुरिसरयणभूओ दिट्ठोसि, मए भणियं महाभाग ! अणवेक्खियजुत्ताजुत्तवियारो हयविही जं तुम्हारिसाणवि निवडंति एरिसीओ आवयाओ, अगणुभूयपुत्रमवि पार्वति विसमं दसाविवागं, सबहा असरिसमिमं जेण न कयाई रंभाथंभो सहइ मत्तमायंग गंडयलकंडूवुच्छेयं, (न रेहइ जुज़माणो मुणालतंतू) पासंमि, को पुण साहेसु एत्थ वइयरो ?, खयरेण भणियं किमेत्थ कहियवं ?, पञ्चकखमेव दिठ्ठे महाणुभागेणं, मए भणियं-सम्मं निवेएसु, खयरेण भणियं-जइ कोऊहलं ता निसामेसु - कलहोयकूलकोडीविराइओ रयणकोडिविच्छुरिओ । वेयहगिरी तुमएवि निपुणिओ भरहखेत्तंमि ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A श्रीगुणचंद महावीरच. ४ प्रस्ताव: जयशेखर ॥८१॥ ttrotectors सुरसिद्धजक्खरखसकिंनरकिंपुरिसमिहुणरमणिजो । सुरहिवरकुसुमतरुसंडमंडिउद्दामदिसिनिवहो ॥२॥ विजाहररमणीजणरमणीयं विजियसवपुरसोहं । तत्थऽत्थि गयणवल्लभनयरं नामेण सुपसिद्धं ॥३॥ तत्थ य राया निवसइ समग्गविजासहस्सबलकलिओ। पणमंतखयरमणिमउडकिरीडटिविडिकियग्गकमो॥४॥ नियवलतुलियाखंडलपरकमो गुरुपयावहयसत्तू । तिहुयणविक्खायजसो नामेणं विजयराओत्ति ॥५॥ रूवाइगुणसमिद्धाए तस्स भज्जाए हिययदइयाएँ । कतिमईए पुत्तत्तणेण जाओ अहं एको॥६॥ पकओ पुरे पमोओ मह जम्मे तत्थ खयरराएणं । करिणो मोत्तूण परे विमोइया बंधणेहिंतो॥७॥' अह सुपसत्थंमि दिणे सम्माणिय पणइसयणगुरुवग्गं । जयसेहरोत्ति नामं ठवियं मम गुरुजणेणंति ॥८॥ गयणंगणपरिसकणपमोक्खविजाओगाहिओ अहयं । अह तरुणभावपत्तो गुरुहिं परिणाविओ भजं ॥९॥ पउमावइत्ति नामेण पवरविजाहरिंदकुलजायं । रूवाइगुणगेणंण विजयपडायंव कामस्स ॥ १०॥ जुम्म । एस पुण वइरिखयरो रहनेउरचक्कवालपुरपहुणो । सिरिसमरसिंहनामस्स अत्तओ अमरतेओत्ति ॥ ११ ॥ बालवयस्सो मम गाढरूढपेमाणुबंधसव्यस्सो । विस्सासपयं सवेसु पुच्छणिजो य कज्जेसु ॥ १२ ॥ सहसयणपाणभोयणचंकमणट्ठाणकरणनिरयाणं । अहं दोण्हषि कालो वोलइ दढमेक्कचित्ताणं ॥ १३ ॥ अह परियणेण मज्झं निवेइयं एगया रहट्ठाणे । जह एस तुज्झ मित्तो विरूवचारी कलत्तंमि ॥ १४ ॥ For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra *6*60 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असदहणाओं मए स परियणो वारिओ खरगिराहिं । अघडंतमेवमन्नं न भासियव्वं मह पुरोति ॥ १५ ॥ सयमविदिट्ठ जं जुत्तिसंगयं तं वयंति सप्पुरिसा । सहसति भासियाई पच्छाऽपत्थंष वार्हिति ॥ १६ ॥ रविकरपसरोच जणे घणपडलच्छा इओऽचि विष्फुरिओ । अह एस वइयरो गोविओऽवि पणयाणुरोहेण ॥ १७ ॥ रायभवणाओ सहिंमि एगया आगओऽम्हि पेच्छामि । सयमेव तं कुमित्तं अणज्जकजंमि आसतं ॥ १८ ॥ दद्दू तं तहट्टियमेगंते जाव चिंतिउं लग्गो । नियपरियणपरियरिओ तावेस पलाइओ झत्ति ॥ १९ ॥ अहमवि पहरणसहिओ नियथोवपहाणपुरिसपरियरिओ । तस्साणुपहे लग्गो सोऽवि य असणं पत्तो ॥ २० ॥ मणपवणजइणवेगेण जाव पत्तोऽम्हि एत्थ ठाणंमि । ता एस महापावो मम पडिओ चक्खुमग्गंमि ॥ २१ ॥ परियणपुरिसावि मए सलासु दिसासु पेसिया पुत्रं । एयस्स विणासकए अहमेको एत्थ संपत्तो ॥ २२ ॥ असहायं मं दधुं एसो सहसति जुज्झिउं लग्गो । एत्तो अन्नं सवं जायं तुम्हंपि पञ्चक्खं ॥ २३ ॥ एत्थंतरंमि सन्नाहकरणदढगूढ कायदुद्धरिसा । भूमियलं पेक्खता खयरा तत्थागया तुरियं ॥ २४ ॥ पुट्ठाय मए साहह किं भो तुज्झं समागमणकजं ? । तेहिं कहियं सामी इह सुबह निवडिओ अहं ॥ २५ ॥ सो दंसिओ य तेसिं तो ते दट्टण तस्स पडियरणं । अचंतहरिसियमणा मं पइ भणिउं समादत्ता ॥ २६ ॥ संमं कयं नराहिव ! जमेवमेयस्स पालणा विहिया । जं एयकए वाढं परितप्पट्ट खयरनरनाहो ॥ २७ ॥ For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० २४ प्रस्तावः ॥ ८२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एयस्स मग्गणकए सवत्थवि पेसिया खयरसुहडा । जं एको चिय पुत्तो एसो सिरिखयरनाहस्स ॥ २८ ॥ ता जयसेहर कुमरं पेसह एवं जहा समप्पेमो । सुहिसयणजगणिजणयाण दंसणुकंटियमाणं ॥ २९ ॥ भणिओ मए स खयरो कुमार ! तुह परियणो भणइ किंपि । ता साह तुमं चिय किं पुणेसि पच्चुत्तरं देमो ॥ ३० ॥ कुमरेण तओ भणियं एगत्तो तुज्झ असरिसो पणओ । एगत्तो गुरुविरहो दोन्निऽवि दोलंति मह हिययं ॥ ३१ ॥ ता विभिणदिवंसुयरयणभायणाईहिं । सम्माणिऊण कुमरो सट्टाणं पेसिओ स मए ॥ ३२ ॥ तेणावि भणियमेयं नरिंद! कारण एस वचिस्सं । हिययं तु निगडजडियं व तुम्ह पासे परिव्यसिही ॥ ३३ ॥ वरमत्थख वरमन्नदेसगमणं वरं मरणदुक्खं । सज्जणविरहो पुण तिक्खदुक्खलक्खपि अक्खिवइ ॥ ३४ ॥ इय भणिउं सोगगलंतनयणजलबिंदुधोयगंडयलो । काऊण मम पणामं सपरियणो अइगओ गयणं ॥ ३५ ॥ अपि तेसिंगयष्यणसामत्थमवलोईतो पुवदिट्ठसमरवावार संरंभ मणुचिंतयंतो चिंतयंतो के त्तियंपि वेलं विलंबि नियरज्जकजाई अणुचिंतिउं पवत्तो, विसुमरियं च मम भोगपमुहकज्ज कोडिकरणपसत्तस्स तं गयणनिवडियविज्जाहरमारउज्जुयट्ठखयरस्स सामरिसं वयणं । एगया य रयणीए जाव कवयपहाणजणपरियरिओ नियदेससुत्यासुत्यपरिभावभावणेण य रायंतररहस्सायन्नणेण य गयतुरयगुणवन्नणेण य किन्नराणुकारिगायणजणपारद्धकागलीगीय सवणेण य सायरपणच्चिरवारविलासिणीचित्तपयक्खेवनिरिक्खणेण य नम्मालावकरणेण य बिंदुचुयपहेलियापण्डुत्तरजाणणेण य For Private and Personal Use Only जयशेखरगमनं. ॥ ८२ ॥ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५-%ARAGARR |विणोयंतो चिट्ठामि ताव अयंडविहडियभंडभंडुडामरो जुगंतपणचिरभेरवपहयडमडमेंतडमरुयनिनायनिट्ठरो खरनहर निहारियमयगलगलगजियदारुणो पासपरिवत्तिभवणभित्तिपरिफालणसमुच्छलंतपडिसहयसहस्सदुविसहो समुठ्ठिओ है हलवोलोत्ति, तं च सोऊण विप्फारिनयणजुयलो सयलदिसिमंडलमहमवलोयमाणो पेच्छामि तडिदंडपयंडकरवाल वावडकरे भवणंगणमभिसरते हणहणहणत्ति भणते विजाहरे, ते य दळूण मम परियणो भयभरथरहरंतसरीरो करुणाई दीणाई वयणाई समुलवितो सयलदिसासु सिग्धं पलाओत्ति, ताहे पहरणरहिओ एगागीवि ठाऊणाहं तेसिं संमुहं जंपिउमेवं पवत्तो य-रेरे किं गलगहियव्य निरत्ययं विरसमारसह ? के तुम्भे ? केण पेसिया ? किं वा आगमणकजं?, तेहिं भणियं-रे रे नरिंदाहम! तइया अम्ह पहुणो सत्तुरक्खणेण वयणमवगणिय संपयं धिट्ठयाए अयाणमाणो इव के तुब्भे केण पेसिया किं वा आगमणकजंति पुच्छसि, जइ पुण विसेसकहणेण तूससि ता निसामेहि, अम्हे विजाहरा रहनेउरचक्कवालपुरविज्जाहरनरिंदसिरिसमरसिंघनंदणेण वेरिखयरासमप्पणपरूढगाढकोवानलेन सिरिअमरतेयकुमरेण तुह दुविणयतरुफलदसणत्थं पेसियत्ति, मए भणियं-जइ एवं ता जहाइट उवचिठ्ठहत्ति, तओ अखयसरीरं चेव मं गहिऊण उप्पइया ते गयणमग्गेण, गया य दूरदेस, मुक्को य अहं एगत्थ भुयंगभीमे गिरिनिगुंजे, भणियं च मए-किं रे! एवं मुंचह ? ज नेव पहरह, तेहिं भणियं-एत्तिया चेव पहुणो आणा, पहुचित्ताणुवत्तणं हि सेवगस्स दूधम्मो, एवं भणिय उप्पइया ते तओ ठाणाओ। अहंपि कोइलकुलगवलगुलियसामलासु सयलदिसासु केसरिकि ANGO For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 159 अमितते. जसा वीरसेननयनं. श्रीगुणचंद सोरनिद्दयनिहारियसारंगपमुक्तविरसारावभीसणेसु काणणेसु वणमहिसावगाहिजंतपललसमुच्छलंतपंकपडलदुग्गेसु म-10 महावीरच. ₹ग्गेसु तरुवरसाहासंहरिसवसनिवडंतदहणनिदज्झमाणेसु वेणुगहणेसु पजलंतपईवसिहाभीसणविप्फुरतरत्तलोयणेसु| ४ प्रस्ताव: इओ तओ वियरंतेसु निसायरगणेसु वराहतिक्खदाढुक्किण्णलेदृनियरुचायचासु वणस्थलीसु अमुणियमग्गुम्मग्गो ॥८३॥ विमूढदिसाभागो असोढपयप्पयारो एकमि गुरुतरुवरे समारुहिउं साहाए पसुत्तोम्हि, दुट्ठमहिलव्य कटेण समागया निद्दा, पच्छिमरयणिसमए य जामकरिघडब्ब पासमल्लीणा चित्ता पबोहमंगलतूरेहिं पिव रसियं पुराणसियालेहि मागहेहिं व पढियं सुयगणेहिं, अह उइयंमि सयलतिहुयणभुवणप्पईवंमि दिवायरंमि उट्ठिऊण कयपाभाइयकिचो ओयरिऊण तरुवराओ एक्कदिसाए पयट्टो गंतुं, खणंतरेण य तरुणतरुचकलावबद्धपरियरो कोदंडकंडवावडकरो नियपणइणीए अणुगम्ममाणो गुंजाफलमालियामेत्तकयाभरणो भुयंगकंचुयनिव्वत्तियकेसकलावसंजमणो त-I क्खणविणिवाइयसिहंडिससिहमुहविरइयकन्नपूरो दिट्टो एको पुलिँदो, सो य पुच्छिओ मए-भो महाणुभाग! का एसा अडवी? को वा नियसिहरग्गभग्गरविरहतुरयमग्गो एस गिरिवरो? का वा नयरगामिणी वत्तिणित्ति ?, पुलिंदेण भणियं-अणामिया नाम एसा अडवी, सज्झाभिहाणो य एस गिरिवरो, एसावि वित्तिणी कंचणपुरनयरमणुसरएत्ति । तओ लग्गोऽहं तीए वत्तणीए तावसतवस्सीव कंदमूलफलहिं पाणवित्तिं करितो पत्तो कइवयवासरेहिं कंचणपुरं, तत्थ य मुणिवरो इव निप्पडिबद्धो वीयरागो इव सव्यसंगरहिओ ठाऊण कइवय दिणाणि पेच्छंतो पुन्वट्ठाणाई अव MSROGRESEARCISA CACACADRAMA ममाणो रो दिट्ठो एकवरो? का वा वित्तिणी का ॥८३॥ For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr लेएंतो गामागरे निरूविंतो धम्मियजणकारावियाई समुत्तुंगसुंदरागाराई सुरमंदिराई कप्पडिओ इव दाणसालासु पाणवित्तिं कुणमाणो अणवरयपयाणएहिं पत्तो सरजसीमासन्निवेसं, तत्थ य कइवयदिणाणि वीसमिय पुणरवि चलिओ नियनयराभिमुहं । इंतेण य सुणिऊण नियलहुभाउणो विजय सेणस्स संपत्तरजस्स विभववित्थरं चिंतियं मए-नूणं विजय सेणेणाहिट्ठियंमि रज्जे न जुत्तं तत्थ मे गमणं । जेण पुचकयधम्म कम्माणुभावओ पाविऊण रज्जसिरिं । चिंतामणिव्व दाउँ को बंछइ वलहस्सावि १ ॥ १ ॥ पिच्छामि तहाविय मित्तमंतिसामंतवयणविन्नासं । जं नहं नणु रजं तं दिडं हरणकालेऽवि ॥ २ ॥ इह चिंततोपत्तो कमेण सिरिभवणनयरं, अलक्खिज्जमाणो पुरजणेण पविट्टो सहपंसुकीलियस्स सोमदत्ताभिहाणस्स वयंसस्स गिहे, सो य ममं दट्ठण झडत्ति जायपञ्चभिन्नाणो सहरिसं पाए निवडिय गाढं परुन्नो, भणिउमाढत्तो तुह विरहे मम नरवर ! वरिसं व दिणं न जाइ पज्जंतं । हिमहारचंदचंदणरसावि दूरं तविंति तनुं ॥ १ ॥ भवणं पेयवणं पिव पणइणिवग्गो य डाइणिगणोब । सयणावि भुयंगा इव न मर्णपि मणा सुहाविंति ॥ २ ॥ एत्तियदिणा लोण धारिओ कहवि गुरुनिरोहेण । जंतो इहि विदेसे जर नाह! तुमं न इतोऽसि ॥ ३ ॥ तो एवं वरभवणं सो धणवित्थरो इमे तुरया । एसो किंकरवग्गो पडिवज्जसु तं महीनाह ! ॥ ४ ॥ For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीगुणचंद एमाई पणयसाराई वयणाई भासंतो भणिओ मए सोमदत्तो-पियवयंस! किं सोयविहुरो हवसि? किंवा निय- अटवीतः महावीरच० भवणधणाइयं समप्पेसि ? किमेवं तुह पणयसारो पयडीभविस्सइ ? को वा अन्नो ममाओवि तुह पाणप्पिओ? किंसोमदत्तगृहे ४ प्रस्तावः GI गमनं. 15वा तुह दंसणाओऽवि अन्नं ममेहागमणप्पओयणं? ता धीरो भव , अच्छउ सबस्सप्तमप्पणं, तुह जीवियंपि ममायत्तं | ॥८४॥ चेव, तओ काराविओऽहं पहाणविलेवणभोयणपमुहं कायवं, खतरेण पुच्छिओ मए-पियवयंस ! साहेसु किमि याणिं काय?, सोमदत्तेण भणियं-देव ! किं निवेदेमि?, मं एक पमोत्तणं अन्ने सवेऽवि मंतिसामंता दढपक्षवाया विजयसेणे, नेच्छंति नाममवि तुह संतियं भणिउं, जइ सो कहवि आगमिस्सइतहावि एयरस चेव रजं, जओ एयस्स 3. मुद्धा मती अम्ह दढं वसवत्ती थेपि वयणं न विलंघेइत्ति, विजयसेणो पुण नियसरीर मेत्तेण तुम्ह विरहे वाद परिदूतम्मइ, भणइ य-जइ एइ जेट्ठभाया ता धुवं समप्पेमिरजधुरं, जहाजेट्ठरजपालणमेव अम्ह कुलधम्मोत्ति, एवं ठिए है किंपि न जाणिज्जइ जुत्ताजुत्तं, ता एत्थेव अलक्खिजमाणो तुम चिट्ठसु कइवयदिणाणि जाव उवलक्खेमि नरिंदाईण चित्तं, मए भणियं-एवं हवउत्ति, तओ सोमदत्तेण सामेण य दंडेण य भेएण य उपप्पयाणेण य आढत्ता मंतिसामतादओ भेइउं, निट्ठरवजगंलिंपिव न य केणवि भिजंति उवाएणं, नाओ य तेहिं समागमणवइयरो, निवारिया य ॥८४॥ रायदुवारपाला जहाँ न सोमदत्तस्स रायभवणे पवेसो दायद्योति, विजयसेणस्सवि सिलु जहा तुम्ह जेहभाया पंचत्तं गओत्ति निसामिजइत्ति, तेणावि एवं निसामिय कओ महासोगो; पयट्टियाई मयकिचाइंति, एवंति मह AOSASSAS SARALAC AAAAACCASCARSA For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रजकजविसयं जं जमुवायं घडेइ सो निउणो। दइयो पडिकूलो इव तं तं विहडेइ निकरुणो ॥१॥ अन्नया व गाढविसायवसविसंतुलेण मुणियपरमत्येण भणियं सोमदत्तेण-देव ! निम्मजाएहिं मंतिसामंताईहिं तुम्ह पंचत्तगमणवत्ता निवत्तिया राइणो पुरो, ता जइ कहंपि रायवाडियाए निग्गयस्स विजयसेणस्स दंसणपहे ठाऊण नियदंस ठावेसि ता जुत्तं होइत्ति, जओ तुम्ह दंसणं बाढमभिकंखइ एसो, पडिवन्नं च मए एयं तदणुरोहेण, अन्नया य पवरकरणुगाखंधगओ निग्गओ विहारजत्ताए विजयसेणो, पासायसिहरमारुहिऊण य ठिओ अहं से चक्खुगोयरे, झडत्ति दिट्ठोऽहमणेण, सागयं २ चिरागयबंधवस्सत्ति हरिसुप्फुललोयणो य जाव सो वाहरि पवत्तो ताव तक्खणा चेव मंतिसामंतपमुहेहि रइया अंबरे अंतरवडा, कओ हलबोलो, नियत्तिओ विहारजत्ताओ राया । भणियं चअसिवं तुह किंपि इमं जं देव । पिसायदंसणं जायं। किं पंचत्तगयजणो दीसइ य कयावि पचक्खो? ॥१॥ ता लहु गच्छह भवणं संति कारेह देह भूयवलिं । पारंभह होमविहिं सुमरह मधुंजय मंतं ॥२॥ वियरसु सुवण्णदाणं माहणसमणाण तकुयजणाणं । एवं कहिए सिग्धं मिठेणं चोइया करिणी ॥३॥ भवणंमि तओ गंतुं जं जह भणियं तहेव नीसेसं । अइमुद्धबुद्धिभावा करावियं विजयसेणेण ॥ ४ ॥ PI अहं पुण निरुच्छाहो निराणंदो ववगयधीरिमभावो अवयरिय तओ ठाणाओ सोमदत्तस्स अकहमाणो चेव १५ महा० ॥६पच्छन्नदेसे ठाऊण चिंतिउमाढत्तो, कहं ? Contratton SEKASKARKESAR For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kcbatirth.org श्रीगुणचंद अणवरयकणयवियरणपरितोसियमाणसावि कह पावा । सामंता मत्ता इव पुरट्ठियंपिहु मुणति न मं? ॥१॥ घोरशिवमहावीरच. कह वाऽवराहमणेण (सहणेण) भूरिसोगु(मइ) सपयंमि ठवियावि।न गणंतिमंतिणो मंतणं व पम्मुक्कमज्जाया ॥२॥ निर्वेदः ४ प्रस्तावः कह नयरमहत्तरया उवयरिया णेगसोऽवि कज्जेसु । माणंति न मं सप्पणयवयणमेत्तेण विहयासा? ॥३॥ ॥८५॥ जयसेहरकुमरो सो विजाहररायसुकुलजाओऽवि । तह उवयरिओऽवि कहं उवेहए मं तदियरोव्व ? ॥४॥ होउ वा, किं एएण विगप्पिएण?, अत्तहियमियाणि कीरइ मुच्चइ इमं नयरं गम्मइ अन्नत्य देसे ओलग्गिजइ अन्नो गरुओ नरवइत्ति, अहवा सयलजयपयडपरकमस्स सिरिअवंतिसेणमहानराहिवस्स सुओ होऊण कइवय दिणाई रजरिद्धिमुद्धरमणुभविय कहमियाणिं अन्नस्स हेट्ठा ठाइस्सामित्ति सव्वहा न जुत्तं परिचिंतिउं, भेरवपडणेण अत्त-13 परिचाओ चेव संपयं मे सब्वोवाहिविसुद्धोत्ति निच्छिऊण निग्गओ नयराओ लग्गो भेरवपडणाभिमुह, वत्तिणीए अखंडपयाणहिं पवञ्चंतो संपत्तो तरुणतरुसंडमंडियं उन्भडसिहंडितंडवाडंबररमणिजं हंससारसकपिजलकोकिलकु लकलकलरवमुहलं पुनागनागजंबुजंविरनिंवबचंपयासोयसोहियपरिसरुद्देसं भेरवपडणपच्चासन्नं एकमुववणं, दिट्ठो जय तत्य अणेगजणनमंसिज्जमाणचरणो सल्लक्खणनरसिरकवालमेत्तपरियरो मंतज्झाणपरायणो करकमलकलियजो- ॥८५॥ मदंडो समत्थनाणविन्नाणपरमपगरिसपत्तो ससाहसपरितोसियवेयालो महाकालो नाम जोगायरिओ, पणमिओय मए सवायरेणं दिनासीसो य निविट्ठो संनिहियधरणिवढे, अवलोइओऽहं तेण सिणिद्धाए दिठ्ठीए, खणंतरे संभासिओय EAAAAALASSARISASIS 494.0-22% For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir LOKSAT MSRUSHRESMSSES+ मह ! उधिग्गचित्तो इव लक्खीयसि, ता किं भट्ठलच्छीविच्छडोत्ति उयाहु विदेसागओत्ति, अन्नं वा किंपि कारणं ?, मए भणियं-भयवं! अम्हारिसा पुनरहिया पाणिणो पए पए उविग्गचित्ता चेव, कित्तियाइं कारणाई साहिति?, है तेण जंपियं-तहावि विसेसयरं सोउमिच्छामि, मए भणियं-भयवं ! कि एएण झाणविग्धकारएण नियवइयरसाहगणेण?, महाकालेण भणियं-किं तुज्झ झाणचिंताए?, जहाइ8 कुणसु, तओ मए विजाहरावलोयणं च जुज्झनिवडि यखयररक्खणं च महाडविनिवाडणं च नियनगरागमणं च मंतिसामंतपमुहजणावमाणणं च रज्जावहारदुक्खं च ट्र उवयरियविजाहरोवेक्षणं च नयरनिग्गमणं च मेरवपडणं पडुच समागमणं च सिट्ठमेयस्स, अह महाकालेण भणियं-अहो विरुद्धकारितणं हयविहिणो जमेरिसे असमसाहसघणे जणे विणिम्मिय एरिसतिक्खदुक्खभायणं करेइ, अहवा साहसघणाण हिययं दुक्खं गरुयंपि सहइ निवडतं । इयराण दुहलवणवि विहडइ जरसिप्पिणिपुडं व ॥१॥ जह निवडद गुरुदुक्खं तहेव सोक्खपि संभवइ तेसिं । इयराण तुलसुहदुक्खसंभवो निचकालंपि ॥२॥ कस्स व निरंतरायं सोक्खं ? कस्सेव नावया इंति ? । को दूसिओ खलेहिं नो? कस्स व संठिया लच्छी ॥३॥ इय नाउं चय सोयं पुणोऽवि तुह वंछियाई होहिति । सूरोऽवि रयणितमनियरविगमओ पावए उदयं ॥४॥ जं पुण तुमए मणियं मेरवपडणं करेमि मरणटुं। तं बुहजणपडिसिद्धं खत्तियधम्मे विरुद्धं च ॥५॥ A RACTERS कर For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥८६॥ जेण-वंभणसमणच्चिय मरणकज्जमब्भुजमंत्ति नो धीरा । विहिविहडियंपि कजं घडंति ते बुद्धिविहवेणं ॥६॥ महाकालतहा-चत्तविसायपिसायं अणलसमविमुक्कविक्कमेक्करसं । अणुसरइ सिरी दूरं गयावि पुरिसं हरिसियव ॥ ७॥ | सेवा त्रैलोतओ मए भणियं-भयवं! विमूढचित्तलक्खो म्हि संपयं, न जाणामि जुत्ताजुत्तं न मुणामि उवायं न समीहेमि क्यविजयः खत्तधम्मं न वियारेमि जणनिंदं न लक्खेमि सुहदुक्खं, सबहा कुलालदढदंडचालियचक्काधिरूढं व मम मणो न 8 मणागपि कत्थवि अवत्थाणं पावइ, तो भयवं ! तुमं चेव साहेहि, किं काय ? को वा उवाओ समीहियत्थसिदीए?, महाकालेण भणियं-वच्छ ! पवजसु मम पवजं, आराहेसु चरणकमलं, अन्भस्सेसु जोगमग्गं, होहिंति | गुरुभत्तीए मणोरहसिद्धीओ, तओ भयसंभंतो इव सरणागयवच्छलं दालिद्दाभिभूओ इव कप्पपायवं महारोगपीडिओ इव परमवेजं पहीणचक्खुबलो इव पहदेसगं सहायरेण तमाराहिउँ पवत्तो, दूरमागरिसियं च विणएण मए तस्स चित्रं, निउत्तोऽहमेक्को तेण नियरहस्सठाणेसु सिक्खाविओ निस्सेसाई आगिट्ठिपमुहाई कोऊहलाई, अन्नया य पसत्येसु तिहिनखत्तमुहुत्तेसु परमपमोयमुबहतेण तेण एगते उवइटोमम तइलोकविजओ मंतो, कहिओ साहण-I ठा विही जहा-अट्ठोत्तरसयपहाणखत्तिएहि मसाणहुयासणो तप्पणिजो, कारवं दिसिदेवयानलिवियरणं, पबहियवं अणवरयमंतसुमरणं, तओ एस सिज्झिहिई, काही य एगच्छत्तधरणियलरजदाणं, पडिवनो य मए विणयपणएण, है समाढत्तो य साहिउं, गओ कलिंगपमुहेसु देसेसु, आरद्धो य जहालाभं खत्तियनरुत्तमेहिं होमो जाव एचियं काळंति। For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता नरसेहर ! नरसिंघ जं तए पुच्छियं पुरा आसि । किं अप्पाणं निंदसि इणमो नणु कारणं तत्थ ॥ १ ॥ भयवसविसंलंगा सारंगा इव विचित्तकूडेहिं । जं सत्ता विविया तमियाणिं दहइ मह हिययं ॥ २ ॥ दुज्झाणकलुस बुद्धित्तणेण न याणियं एयं । तुह दंसणेण इण्हि विवेयरयणं समुल्लसियं ॥ ३ ॥ नरसिंहेण भणियं सचं पावं कयं तए भूरि । जं कीडियाणवि वहे पावं गुरु किमु नरिंदाणं ?, ॥ ४ ॥ सि विणा से जम्हा धम्म भंसो य सीमविगमो य । अवरोप्परं च जुज्झं विलयाजणसीलविलओ य ॥ ५ ॥ ता ठाणे तुह दुच्चरियगरिहणं धम्मगोयरा बुद्धी । एवं ठिएऽवि जलणप्पवेसणं तुज्झ नो जुत्तं ॥ ६ ॥ तित्थे वच्च कुरु देवपूयणं मुंच निंदियं भावं । पायच्छित्तं पडिवज्ज सुगुरुसयासे पयत्तेण ॥ ७ ॥ निंदसु पइक्खणं दुक्कयाइं निसुणेसु धम्मसत्त्थाई । उत्तमसंसगिंग कुणसु चयसु तिघं कसायं च ॥ ८ ॥ ईसाविसायमुच्छिंद भिंद विसमविसयतरुनियरं । नियजीयनिविसेसं नीसेसं पेच्छ पाणिगणं ॥ ९ ॥ पसमरसं पिवसु सया दूरं परिहरसु खुद्दचरियाई । जुत्ताजुत्त वियारसु सबकज्जेसु जत्तेणं ॥ १० ॥ खणपरिणइधम्मत्तं चिंतेसु भवंभि सङ्घवत्थूणं । नियसुकयदुकयसचिवत्तणं च लक्खेसु परजम्मे ॥ ११ ॥ इय जयमाणस्स सया सुद्धी तुज्झं भविस्सइ अवस्सं । जलणपत्रेसं सलभा कुणंति कुसला उ न कयावि ॥ १२ ॥ एवं संविऊण मरणदुरज्झवसायाओ घोरसिवं जाव विरओ नरिंदो ताव पहयपडहमुरवपमुहतुरनिनायबहि For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ ८७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रियदियंतरा विचित्तमणिभूसणकिरण कष्बुरियमसाणंगणा गयणाओ ओयरिया विज्जाहरा, परमपमोयमुवहंता निव डिया घोरसिवचरणेसु, भणिउमाढसा य-देव ! अम्हे गयणवल्लहपुराहिवविजयरायविज्जाहरिंदसुएण सिरिजयसेहररायकुमारेण पेसिया तुम्ह आणयणनिमित्तं, ता कुणह पसायं, आरुहह इमं समुडुयविजयवेजयंतीसहस्साभिरामं उज्झतकसिणागरुकप्पूर पूरसुरहिधूवधूमंधयारियदिसाभोगं मणिकणगरयणरइयविचित्तविच्छित्तिभित्तिभागं कुसुमावयंसामिहाणं वरविमाणं, घोरसिवेण भणियं-भो विजाहरा ! मुयह मम विसए पडिबंधं, अन्नोऽहमियाणिं विगयभोगपिवासो, विजण विहारेसु रण्णेसु जाया निवासबुद्धी बद्धा मिगकुलेसु सयणसंबंधसद्धा पलीणो मायामोहो | जलणजालाकलाबकवलियमिव पेच्छामि जीवलोयं, ता जहागयं गच्छह तुम्भे, जहादिट्ठं च से निवेएजहत्ति, विज्जाहरेहिं भणियं मा भणह एयं, जओ जहिणाओ तुम्ह पासाओ गओ जयसेहरकुमारो तद्दिणादारम्भ जाओ रहनेउरचक्कवालपुरनाहेण सिरिसमरसिंघ वेयराहिवइणा सह महासमरसंरंभो निवडिया अणेगसुहडा, कहमवि महाक| द्वेण निष्पिट्टो सो अमरतेयाभिहाणो दुट्ठमित्तो, घडिया इयाणिं परोप्परं संधी, कयाई अन्नोऽन्नघरेसु भोयणवत्थदाणाई, अओ एत्तियकालं नियकज्जको डिवावडत्तणेण संपयमेव नाओ तुम्ह अडविनिवाडणपामोक्खो वहयरो, कुमारेण तओ अर्थतजायतिष सोगसंदभेण विसज्जिया अम्हे सव्वासु दिसासु तुम्हावलोयणत्थं, भणिया य- अरे सिग्धं जत्थ पेच्छह तं महाणुभावं तत्तो सव्वहा आणेज्जह, नन्नहा भोयणमहं करिस्सामि, तओ सव्वत्थ निउणं निउणं For Private and Personal Use Only जयशेखरनरागमनं. ॥ ८७ ॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निरूवंता पत्ता एत्तियं भूमिभागं, एत्थ आगएहि य निसामिओ तुम्ह सद्दो, को पुण भीसणे मसाणे एत्तियवेलं होहित्ति कोऊहलेण सुणतेहिं कुमारपचाणयणकालागएहिं पुरा तुम्ह निसुयसद्दाणुमाणेण पञ्चभिन्नायत्ति, ता कुणह पसायं जयसेहरकुमारजीवियदाषेण, एत्यंतरे विष्णायपरमत्थेण भणियं पत्थिवेण भो महासत्त ! परिचय फरुसभावं, पणयभंगभीरूणि भवंति सप्पुरिसहिययाणि ता अंगीकरेसु एएसि पत्थणं, घोरसिषेण भणियं-महाराय ! वाढं विरत्तं मम रज्जादीहिंतो चित्तं, गाढपावनिबंधणं खु एयं, रण्णा भणियं मा मेवं जंपेसु, जओ सन्नायं दिसओ विसिद्वमुणिणो पालितयस्साणिसं, सासिंतस्स विसिनीइ मणुए दाणाई दिंतस्स य । धम्मो होइ निस्स वस्समरणो रजेऽवि संचिट्ठओ, नो साहुस्स स सत्यवज्जियविहीजुत्तस्स गुत्तस्सवि ॥ १ ॥ घोरसिवेण भणियं - महाराय ! एवमेवं, राइणा भणियं जइ एवं ता गच्छह तुम्भे, पडिच्छह [वि]जयसे हरकुमारप्यापडिवत्तिं, घोरसिवेण भणियं महाराओ निवेयइ तं कीरइत्ति, तओ पहरिसिया विज्जाहरा, सावरं पणमिउं तेहिं राया विन्नत्तो - अहो महायस ! परमत्थेण तुम्भेहिं दिन्नं अम्ह पहुणो जीवियं, अह पमुक्ककवालपमुह कुर्लिंगोबगरणो विओगवेयणावस विसप्पमाणनयणंसुधाराघोववयणो घोरसिवो गाढमालिंगिय नरवई सगग्गय गिरं भणिउमादत्तो कुम्भमतिमिरुग्भाभियलोयणपसरेण तुज्झ अवरद्धं । जं किंपि पावमहणा तमियाणिं खमसु मम सवं ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्ताव: चम्पकमालाखमा. ॥८८॥ सीसो इव दासो इव रिणिओ इव किंकरो इव तुहाहं । ता साहसु किं करणीयमुत्तरं राय नरसिंह! ॥२॥ रना भणियं जइया नियरजसिरिं समग्गमणुहवसि । मम संतोसनिमित्तं तइया साहिजसु सवत्तं ॥३॥ एवं काहंति पयंपिऊण विजाहरेहिं परियरिओ। दिवविमाणारूढो सो झत्ति गओ जहाभिमयं ॥ ४॥ रायावि पत्ततिहुयणरायसिरिवित्थरं पिव सयलसुकयसंचयपत्तोवचयंपिव समत्थपसत्थतित्थदंसणपूयं पिव अप्पाणं मन्नंतो पाणिपइट्ठियखग्गरयणो गओ नियभवणं, निसण्णो सेजाए सुत्तो खणंतरं समागआ निद्दा, निसावसाणे य रणझणंतमणिनेउरवाणुमग्गलग्गचक्कंगखलियचंकमणा अणायरसद्वाणणिउत्तलट्ठकंचीकलावप्पमुहाभरणा सहरिसपधावियखुजिवामणिपुलिंदिपमोक्खचेडीयाचक्कवालपरिवुडा पविट्ठा चंपयमाला देवी, दिट्ठो राया निहावसनिस्सहसेज्जाविमुक्कसवंगोवंगो, भणियं चऽणाए-परिणीयपुत्तिओ इव हयसत्तू इव विढन्तदविणोद परिपढियसबसत्थोब निभयं सुयइ नरनाहो, अह खणंतरे पवजियाई पाभाइयमंगलतराई पयडीहूयाई दिसिमुहाई, पढियं मागहेणलंघेउं विसमंपि दोसजलहिं गंजित्तु दोसायरं, गोतं पायडिउं सवीरियवसा चंकभिउं भीसणे। आसाअंगसमुभवेण महसा सारेण संपूरिठ, सूरो देव ! तुमं पिवोदयसिरि पावेइ सोहावहं ॥१॥ | एवं च निसामित्ता पबुद्धो राया, चिंतिउमाढत्तो य-अहो सारस्सयंपिव वयणं जहावित्तवत्थुगम्भं कहं पढियं मागहेण ?, एवमेव पुणो पुणो परिभावमाणो उढिओ सयणाओ, अवलोइया य हरिसवसवियसंतनयणसहस्सपत्ता पधाविसवंगोवंगो, भाषणतरे पजियाई पायडिउं सवीरमार पावेइ सोहार CAGLIRAGUISHOUR For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवी चंपयमाला, पुट्ठा य सा आगमणपओयणं, भणियं च तीए - देव ! अज्ज पच्छिमद्धजामे सेसरयणीए सुहपसु| ताए सुमिणयंमि सहसच्चिय वयणंमि पविसमाणो मए अनणुप्पमाणो मणिरयणमालालंकिओ पवणसमुद्धयंचला| भिरामो फलिह मयडिंडिरपंडुरडंडोवसोहिओ महज्झओ दिट्ठो, एवंविहं च अदिट्ठपुत्रं सुमिणं पासिऊण पडिबुद्धा समाणी समागया तुम्ह पासंसि सुमिण सुभासुभफलजाणणत्थं, ता साहिउमरिहइ देवो एयस्स फलंति, रन्ना भणियं-देवि ! विसिट्ठो तए सुमिणो दिट्ठो, ता निच्छियं होही तुह चउसमुद्दमेहलावलयमहिमहिलापइस्स कुलकेउस्स पुत्तस्स लाभो, जं तुम्भे वयह अवितहमेयंति पडिवज्जिय निबद्धा देवीए उत्तरीयंमि निहुरा सउणयंठी, खणंतरं च मिहोकहाहिं विगमिय गया देवी निययभवणं, रायावि कयपाभाइयकायचो निसण्णो सभामंडवंमि अह पढममेव गाढको उहलाउलिज्ज माणमाणसा समागया बुद्धिसागरपमुहा मंतिणो, भूमितलविलुलियमउलिमंडला निवडिया चरणेसु दिन्नासणा निविट्ठा सहाणेसु, विन्नविउमाढत्ता य-देव ! अज्ज चउजामावि सहस्सजामच कहमवि | पभाया अम्ह रयणी घोरसिवमुणिवइयरोवलंभ समूसुगत्तणेणं, जहवि किंपि पसंतवयणावलोयणाइलिंगोवगया कज्जसिद्धी बट्ट तहावि विसेसेण तुम्भेहिं साहिज्जमाणिं सोउमिच्छामो, ता पसियउ देवो रयणिवइयरनिवेयणेणंति, ताहे तेसिं वयणाणुरोहओ ईसिं विहसियं काउं जहा घोरसिवेण समं मसाणदेसंमि संपत्तो जह विन्नाओ छोभमायरमाणो जहा य सो भणिओ गिण्हसु सत्थं जह तेण कत्तिया वाहिया कंठे जह पडिरुद्धो बाहू सकत्तिओ जह महीयले For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥ ८९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निहओ जह उडिओ पुणोऽविद्दु निष्कंदो जह हओ पच्छा सुरसुंदरीहिं खित्तो जह कुसुमभरो समागया देवी जह दिन्नो तीए वरो जह सा अहंसणं पत्ता जहा घोरसिवो निधेयमुपगओ पडिओ य मरणत्थं जह पुववइयरो तेण संठिओ (निवेइओ) जह व संठविओ जह परिचियविज्जाहरविमाणमारुहिय सो गओ नमिउं संखेवेणं तह नरवरेण सिद्धं समत्थंपि, सोचेमं हरिसिओ मंतिवग्गो, पट्टिओ य नयरीए महंत्सवोत्ति । अह अन्नया कयाई चंपयमालाऍ रायमहिलाए । दुहिसत्तरक्खणंमी दीणाणाहाण दाणे य ॥ १ ॥ देवगुरुपूयणंमी पणणं चिंतियत्थदाणे य । उप्पण्णो दोहलओ विसिट्ठगन्भाणुभावेण ॥ २ ॥ जुम्मं । चिंतेइ य सा एवं ताओ धन्नाओ अम्मयाउ इहं । इय पुन्नदोहलाओ जाओ गर्भ वहंति सुहं ॥ ३ ॥ एवं च अपुजंतदोहलयसंकप्पवसेण कसिणपक्खमयलंछणमुत्तिष्व किसत्तणमणुभविडं पवत्ता देवी । अन्नया य पुट्ठा नरवडणा-देवि ! किमेवं पइदिणं किसत्तणं पावेसि ?, साहेसु एयकारणं, गाढनिबंधे सिद्धं तीए नियमणवंछियं, ताहे परं पमोयमुवहतेण विसेसयरं पुरियं नरिंदेण, माणियडोहला व घरणिव निहाणसंचयं दिसव नलिणीनाहं सुहंसुद्देणं गन्धं वहमाणी देवी कालं गमेइ, अण्णया य पडिपुण्णेसु नवसु मासेसु अट्टमराईदिएसु सुभेषु तिहिकरण नक्खत्तमुत्ते पुरंदरदिसिव दिणयरं कोमलपाडलकरपडिपुण्णसबंगोवंगसुंदरं पुत्तं पसूया । तज सहरिसं गयाओ नरिंदभवणंमि चेडीयाओ, दिट्ठो राया, भणिओ य-देव! वद्धाविज्जसि जपण विजएण य तुमं, जओ For Private and Personal Use Only श्मशानवृचोदितिः. ॥ ८९ ॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org #ASEKHARHACHISAG इयाणि चेव पसूया देवी चंपयमाला, जाओ य समुजोतियसयलदिसामंडलो तेयरासिष पुत्तोत्ति, इमं च सोचा नरि-2 देण दिन्नं तार्सि भूरि पारिओसियं, कयो दासित्तविगमो, आहूया पहाणपुरिसा, समादिट्ठा य जहा पयट्टेह नीसेस नयरीए तियचउक्कचच्चरेसु खंदमुगुंदरिंदगयमुहमंदिरेसु य परममहूसवं, वियरह अणिवारियपसरं कणयदाणं मुयह चारगाहिंतो जणंति वुत्ते जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण पुरीए पारद्धं तेहिं वद्धावणयं । कहं चिय?,-पंचप्पयारवनयविरइयसुपसत्यसत्थियसमूह । विक्खित्तक्खयदोवापवालसोहंतमहिवीढं ॥१॥ रहसपणचिरतरुणिगणवच्छत्थलतुट्टहारसिरिनियरं । अन्नोन्नावहरियपुषणपत्तवटुंतहलबोलं ॥२॥ पडिभवणदारविरइयवंदणमालासहस्सरमणिजं । कमलपिहाणामलपुन्नकलसरेहंतगेहमुहं ॥३॥ वजंताउज्जसमुच्छलंतघणघोरघोसमरियदिसं । चिन्ताइरित्तदिजंतदविणसंतोसियत्थिगणं ॥४॥ पमुइयनीसेसजणं कुलथेरीकीरमाणमंगलं । इय नरवइकयतोसं वद्धावणयं कयं तत्थ ॥५॥ एत्यंतरे मंतिसामंतसेणावइसत्यवाहपमुहा पहाणलोया गहियविविहतुरयरयणसंदणपमोक्वविसिढवत्थुवित्थरा देंगंतूण नरवई वद्धाविसु? | इओ य सो घोरसिवो विजाहरेहिं नेऊण समप्पिओ जयसेहरस्स कुमारस्स, तेणावि पिउणोष गुरुणोच तदागमणे कओ परममहूसवो, पुट्ठो य एसो पढमदंसणाओ आरम्भ सबवुत्तंतं, धरिओ पहाणविलेवणभोयणदिवंसुयदाणपुरस्सरं ISKE For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच ४ प्रस्ताव ॥९ ॥ ALLECRECRA कइयवि वासराई, अन्नदियहे चाउरंगसेणासण्णाहेण जयसेहरकुमारेण गंतूण सिरिभवणमि नगरे विजयसेणरण्णो धोरशिवे दंसिऊण जहावित्तं संसिऊण य दुइंतमंतिसामंतुस्सिखलदलणपुवं सो घोरसिवो सहत्रेण निवेसिओ रायपए, विजय- राज्यं हरि सेणोऽवि ठविओ जुवरायत्ते, एवं कयकायचो जहागयं पडिगओ जयसेहरो, घोरसिवोऽवि पुवंपिव भुंजिउं पवत्तो। नियरजंति । अन्नया तेण सुमरिऊण नरसिंहनरवइणो रजसंपत्तिवुत्तनिवेयणं पुव्यकालपडिवनंतक्खणंचिय विसज्जिया पहाणपुरिसा विसिठ्ठपाहुडसमेया नरसिंघनरवइणो समीवे नियवइयरनिवेयणत्थं, पत्ता य ते अणवरयपयाणएहिं जयंतीनयरिपरिसरुद्देसं, निसुणिया य रन्ना, पवेसिया य महाविभूईए, समप्पियाई रन्नो तेहिं पाहुडाई, साहिओ ६) घोरसिवनरवइसमाइट्ठवुत्तंतो, हरिसिओ राया, सम्माणिया उचियपडिवत्तीए, पेसिया य सठ्ठाणंमि। अन्नदिवसे य समारद्धो कुमारस्स नामकरणमहूसवो, समाहूओ कुलथेरीजणो, तओ वजंतेसु चउविहाउजेसु नचंतेसु तरुणीसत्येसु मंगलमुहलेसु वारविलयाजणेसु पढ़तेसु मागहेसु पइट्ठियं कुमारस्स पुन्यपुरिसक्कमागयं नरविकमोत्ति नामं, कालक्कमेण य विइतबालभावो नीसेसविजापारयस्स लेहायरियस्स चेडयचक्कवालपरिबुडो महाविभूईए पढणत्थमुवणीओ, अकालक्खेवेण य बुद्धिपगरिसेण जाओ एसो कलासु कुसलो, कहं चिय?पत्तट्ठो धणुवेए कुसलो नीसेसमल्लविजासु । कयकिच्चो करणेसुं विचित्तचित्तेसु निउणमई ॥१॥ X ॥९०॥ परभावलक्षणम्मी वियक्खणो जाणओ समयसत्थे । पत्तच्छेये छेओ निम्माओ सद्दमग्गेसु ॥२॥ KASASARA For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निउणो मंतवियारे तंतपओगेसु कुसलबुद्धी य । पुरिसकरितुरयनारीगिहलक्खणबोहनिउणो य ॥ ३॥ आउजनदृयप्पओगबहुभेयगेयचउरो य । किं बहुणा?, सव्वत्थवि गुरुब सो पगरिसं पत्तो ॥ ४ ॥ एवं च गहियकलाकलावं कुमरं घेत्तूण गओकलायरिओ नरवइसमीवं, अब्भुटिओ परमायरेणं नरवडणा, दवावियासPणो उवविठ्ठो पुट्ठो य-किमागमणकारणति, कलायरिएण भणियं-देव ! एस तुम्ह कुमारो गाहिओ नीसेसकलाओ सुरगु-18 रुव पत्तो परमपगरिसं, न एत्तो उत्तरेण गाहियत्वमत्थि, ता अणुजाणेउ देवो अम्हे सट्ठाणगमणायत्ति, अह अकालक्खेवसिक्खियकुमारकलाकोसलसवणपवढमाणहरिसभरनिम्भरण नरवइणा आचंदकालियसासणनिबद्धदसग्गहारदाणेण पवरचामीयररयणरासिवियरणेण विसिढवत्थफुलतंवोलसहत्थसमप्पणेण य सम्माणिऊण परमायरेणं पेसिओ कलायरिओ सहाणं, कुमारोऽवि निउत्तो गयतुरयवाहीयालीसु समकरणत्वं, सो य दढासणबंधधीरयाए महाबलेण य जाममेत्तेणवि सममुवणेइ सत्त मत्तसिंधुरे पवणजवणवेगे परमजचे चउद्दस तुरंगमे अट्ठ महामल्ले य, एवं च राया असमबाहुबलेण य मइपगरिसेण य कलाकोसलेण य नयपालणेण य विणयपवत्तणेण य समओचियजाणणेण य असरिससाहसत्तणेण य मयणाइरेयरूवविभवेण य जणवच्छलचणेण य बाढमक्खित्तचित्तो कुमारमेकमेव पढावेइ मंगलपाढेसु लेहेद चित्तभित्तिसु निसामेइ कित्तीसु गायावेइ गीएसु अभिणचावेद नहेसु, अविय रुहेवि दुट्ठसीलेऽवि रूवरहिएऽवि गुणविहीणेऽवि । लोओ पुत्ते पणयं किंपि अपुवं पयासेइ ॥१॥ KAKAAAAAACARA १६ महा. For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥ ९१ ॥ www.kobatirth.org किं पुण चिरकालसमुग्भवंमि नीसेसगुणमणिनिहिंमि । सकुलन्भुद्धरणखमे न होज नेहो नरवइस्स? ॥ २ ॥ एगया य अत्थाणमंडवनिसन्नमि नरवईमि पायपीढासीणे कुमारे नियनियद्वाणनिविद्वेसु मंतिसामंतेसु समारर्द्धमि गायणजणे मणोहारिसरेण गेए पणचिरंमि चित्तपयक्खेवनट्टविहिधियकखणे वारविलासिणीजणे पच्चासन्नमागंतूण विन्नवियं पडिहारेण - देव ! हरिसपुरनयराहिवइस्स देवसेणभूवइस्स दूओ दुवारे देवदरिसणं समीहेछ, राइणा भणियं - भद्द । सिग्धं पवेसेहि, जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण पवेसिओ अणेण, कया से उचियपडिवत्ती, पुट्ठो य आगमणप्पओयणं, दूष्ण जंपियं-देव ! हरिसपुरपहुणा देवसेणनरिंदेण रूवजोवणगुणोवहसियनागकन्नगाए नियसुयाए सीलवइनामाए वरनिरूपणत्थं पेसिओऽम्हि तुम्ह पासे, रण्णा जंपियं-भद्द ! पेच्छसु पायपीढासीणं कुमारं, परिभावेसु य किमणुरुवो वरो न वत्ति, दूषण भणियं देव ! विनवणीयं अत्थि किंची, रन्ना भणियं विन्नवेसु, दूएण जंपियं- जइ एवं ता निसामेसु, अस्थि अम्ह नराहिवस्स देवसेणस्स समग्गवीरवग्गपहाणो कालमेहो नाम महामलो, तस्स य किं वन्निजइ बलपगरिसंमि ?, तथाहि दढकढिणकायवणमहिसजूहनाहेण सह सरोसेणं । सीसेण संपलग्गइ जुज्झेउं सो वलमएणं ॥ १ ॥ सुंडादंडे घेतू पाणिणामत्तदंतिनाहंपि । तद्दिणपसूयसुरहीसुयं व कडेइ लीलाए ॥ २ ॥ भारसय संकलपि हु तोडइ हेलाऍ जुण्णरज्जुं च । नियमुट्ठिपहारेण य सिलंपि सो जज्जरं कुणइ ॥ ३ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only देवसेनदूतविज्ञप्तिः ॥ ९१ ॥ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org CC CAMERARMSASAR मंसस्स विरुद्धं किर लोहं एयंपि तत्थ विवरीयं । जं नाराया खित्तावि तस्स वाहिपि न छिवंति ॥४॥ इय सो नियगाढवलावलेवओ तिहुयणं जरतणं व । मन्नंतो भमइ पुरे निरंकुसो मत्तहत्थिव्व ॥ ५॥ अन्नया य तस्स पसिद्धिमसहमाणा समागया देसंतराओ मल्ला, दिट्ठो तेहिं राया, साहियं आगमणपओयणं, समाहूओ य रण्णा कालमेहमलो, निवेइओ से तब्वइयरो, अन्भुवगयं तेण तेहिं समं जुज्झं, सजीहूया दोवि पक्खा, कओ अक्खाडओ, विरइया उभयपासेसु मंचा, निविट्ठो अवलोयणकोऊहलेण नीसेसअंतेउरसमेओ नरवई पुरपहाणपुरिसवग्गो य, समाढत्तं च भुयाहि य अडपायइयाहिं च बंधेहि य विसमकरणपओगेहिं मलेहिं सह तेण जुज्झिउं, खणंतरेण य दढमुढिप्पहारेहिं निहया कालमेहेण देसंतरागया मला, कओ लोगेण जयजयसहो, दिन्नं से नरिंदेण विजयपत्तं, सम्माणिओ विचित्तवत्थाभरणेहि, गओ नियनियट्ठाणेसु नयरजणो, रायावि अंतेउरपरियरिओ संपत्तो नियमंदिरं, बीयदिवसे य सव्वालंकारविभूसिया काऊण देवीए पउमावईए पेसिया सीलवई कण्णगा पिउणो पायवडणत्थं, चेडीचकवालपरिवुडा य सा पत्ता नरिंदसगासे, निवडिया चरणेसु, निवेसिया रणा उच्छंगे, पुच्छिया य-पुत्ति ! केण कारणेण आगयाऽसि ?, तीए भणियं-ताय! तुम्ह पायपडणनिमित्तं अम्मगाय पेसियम्हि, राइणा चिंतियं-अहो वरजोगत्ति कलिऊणं नूणं देवीए पेसिया, ता किमियाणि कायन्न ? एक चिय मह तणया परूढपणयाएँ अग्गमहिसीए । एसा वरस्स जोग्गा को पुण एयाएँ होज वरो? ॥१॥ CICICROACCESCOCCARE For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्ताव शीलमत्याः प्रतिज्ञा. ॥९२॥ एयाए चित्तवित्तिं अवियाणिय जइ वरेज निवपुत्तो। जो वा सो वा आजम्म दुक्खिया होज ता एसा ॥२॥ इति परिभाविऊण पुच्छिया सा नरवइणा-पुत्ति ! को तुज्झ वरो दिजइ ? किं सुरूवो उयाहु समरंगणसवडंमुह-है सुहडपडिक्खलणपयंडपरकमो किंवा समरभीरुओत्ति, तओ ईसिं विहसिऊण भणियं तीए-ताओ जाणइ, राइणा| भणियं-पुत्ति ! अवरोहकयकज्जाइं न सुहावहाई होति ता सम्ममणुचिंतिय भणसु, तीए भणियं-ताय ! जइ एवं है ता जो एयं कालमेहमलं नियभुयवलेण महियपरकर्म करेजा सो मम वरो होजत्ति, राइणा चिंतियं-अहो बलाणु रागिणी मम तणया, को पुण समत्थो एयस्स वइयरस्स ?, भणिया य सा-पुत्ति ! मा कुणसु एवं, अतुलमल्लो खु एसो, ता अन्नं वरं पत्थेसु, तीए भणियं-ताय ! जइ परं हुयासणो अन्नोत्ति, इय तीए निच्छयमुवलब्भ रन्ना पेसिया सवनरवईणं दूया, निवेयाविओ एस वुत्तो, एयं च अणब्भुवगच्छमाणा नरवइकुमारा एवं पयंपंति| को बोहेज कयंत ? को वा हालाहलं विसं भक्खे ? । को कालमेहमलेण जुज्झिउं सह पवजेजा ॥१॥ तेण न कजं रजेण किंपि न कजं च तीऍ भजाए । जा लब्भइ खित्तसंसयजीवियवेहि कटेण ॥२॥ एवं च निब्भग्गजणमणोरहेहिं असिद्धकजेहिं चेन पडिनियत्तिऊण दूएहिं रण्णो कहिओ मल्लजुज्झाणब्भुवग६ मगम्भो नीसेसनरेसरकुमारवुत्तंतो, तं च सोऊण गाढसोगाउलो जाओ देवसेणनरवई, एत्थंतरे विन्नत्तो मंतिसाम- तेहि-देव! किमेवं उच्छन्नुच्छाहा होह, अजवि देवेण अनिरूविओ चिठ्ठइ कुरुदेसाहिवनरवइसुओ नरविक्कमकुमारो, ॥९२॥ For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राइणा भणियं-सोऽवि एवं चेव परंमुहोहविस्सइ, मंतिसामंतेहिं बुतं-देव! मा एवं जपह, जओ अपोरिसे(परिमे)ओ। ६ तस्स बलपगरिसो असंभावणिज्जो निजुद्धपरिस्समो अणाइक्खणिज्जा मल्लविजाए कोसल्लया,किंबहुणा?, नरसिंहनरवइ-18 साहसतोसियाए भगवईए जो दिण्णो तस्स किं वन्नियचं ?, सरीरमेत्तेण चेव सो नररूवो सेसगुणेहिं निच्छियं देवोत्ति, एयं च समायण्णिऊण संजायहरिसेण देवेण पेसिओऽहं तुम्ह समीवे, ता देव! एयं तं विण्णवणिजंति, राइणा भणियंभह ! वररयणपुनकेसरिगुहत्व सेसाहिमत्थयमणिव समगं चिय भयहरिसे जणेइ विण्णत्तिया तुज्झ, दूएण कहियं| देव! एवमेयं, तओ राइणा अद्धच्छीए पेच्छियं कुमारवयणं, कुमारोऽवि तक्खणं चिय उढिओ निवडिओ रणो चरणेसु, भणिउमाढत्तो य-ताय ! समाइसह किं कीरउत्ति?, राइणा भणिय-कुमार! निसुणियं तए दूयवयणं १, केरिसो वा तुह भुयदंडपरकमो ?, कुमारेण भणियं-ताओ जाणइ, तओ राइणा जोग्गयमुवलभ अब्भुवयं मलजुझं, सम्माणिऊण सट्ठाणं पेसिओ दूओ, गओ जहागयं, निवेइयं च तेण जहावित्तं देवसेणरण्णो, जाओ से परमो पमोओ, निरूवियं परिणयणजोग्गं लग्गं, पेसिया य वरागरिसगा पहाणपुरिसा, अणवरयपयाणएहिं पत्ता जयंति नयरिं, विरइओ आवासो, अणुरूवसमए दिहो राया, सिटुंनियकजं, तओ पउरकरितुरगसुहडकोडिपरिवुडो पेसिओ 8| तेहिं समं कुमारो, पत्तो कालक्कमेण हरिसपुरनगरसमीवे, तो तं इंतं नाउं, रन्ना काराविओ पयत्तेणं । वंसग्गबद्धधयचिंधबंधुरो झत्ति नयरमहो ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्ताव हरिविक्रमाभ्युपगम: ॥९३॥ SAASAASAHARA* विहिया नरेहिं कुसलेहि कुसुमछडाडोवसुंदरा मग्गा । खित्ता य कुसुमपयरा रणज्झणिरभमंतभमरउला ॥२॥ नचंतनाडइजा तालायरकहगपवररमणिजा । जाया चउक्कचच्चरचउम्मुहप्पमुहदेसावि ॥३॥ ठाणे ठाणे रइया दसद्धवण्णेहिं सुरभिकुसुमेहिं । विच्छित्तिविचित्ताओ लंबंतुद्दामदामाओ ॥ ४ ॥ भवणंपि तस्स जोग्गं निरूवियं सत्तभूमियं रम्मं । चंदणरसलिहियपसत्थसस्थियं थंभसयकलियं ॥५॥ तं नत्थि जं न विहियं कुमरागमणे पुरंमि नरवइणा । अहवा हरिसुकरिसा पुरिसा किं किं न कुंवंति ? ॥६॥ एत्थंतरे समागया पहाणपुरिसा, पणमिऊण भणियं तेहि-देव! वद्धाविजह तुम्भे पुरसमीवसमागयकुमारकु-1 सलोदंतसवणेण, तओ समुद्धयविजयवेजयंतीसहस्साभिरामाए चाउरंगिणीए सेणाए समेओ सियसिंधुरखंधाधिरूढो पडिपुण्णचंदमंडलाणुकारिणा छत्तेण धरिजमाणेणं निग्गओ राया कुमाराभिमुहं, खणंतरेण दिट्ठो कुमारो समालिंगिओ गाढपण यं पुट्ठो य सरीरारोग्गयं, दहण कुमारसरीरसंठाणसिरि चिंतियं रणा-निच्छियं इयाणि विणस्सइ कालमेहमलस्स वाहुबलमडप्फरोत्ति, अह मुहुत्तमेत्तमणुगच्छिय पुवनिउत्तनियनियठाणेसु पेसिओ कुमारप| रियरो, कुमारोऽपि विमुक्को तंमि चेव पासाए, दवावियाई करितुरयाईणं जोग्गासणाई, कुमारस्सवि कए पेसिया पउरवंजणभक्खभोयणसमिद्धा रसवई, कयं च अन्नपि तकालोचियं करणिजं, आहूया य अवरण्हसमए पहाणपुरिसा, भणिया य-भो गंतूण निवेयह कुमारस्स जहा एसा अम्ह सुया बलाणुरागिणी, ता दंसेह कालमेहमलस्स विजएण NAGARCA%AACAR AASARAKAR ॥९३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr नियसामत्थंति, जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण ते गया कुमारसमीचे, निवेइओ तस्स नीसेसवइयरो, अच्भुवगओ कुमारेण, ततो बीयदिवसे आढत्तो अक्खाडयपरिक्खेयो निबद्धा मंचा परमकोऊहलाउलिजमाणमाणसो मिलिओ नयरजणो, ठिओ मंचमि संतेउरो नरवई, आरूढा य एकदेसंमि चेडीचकवालपरिबुडा पाणिपइट्ठियलठ्ठपप्फुलफुलमाला सीलमई रायसुया, पडिक्खलिओ सवत्थ जणसंचारो, कओ अंगरक्खेहिं परिक्खेवो, वज्जियं पलयकालगजंतप क्खुहियपुक्ख लावत्तपगजिररवगंभीरं चउद्दिहमाउजं, जाओ अवसरो, मंचाओ तओ कुमारो गादुप्पीडियनियं|सियकडिल्लो दढबद्धकेसपासो पमुक्काभरणसंभारो कुलथेरीकयरक्खो जलणुब्भडगुरुपयावदुप्पेक्खो संनिहियपाडिहेरोध भासुरो झत्ति अवयरिओ, तहा कंठत डुब्भड परिहियपयतलवि लुलंतविमलवणमालो । आवद्धमलवलओ गजंतो लयमेव ॥ १ ॥ मयभिंभलरत्तच्छो गबुद्धुरकंधरो तुरियचवलं । पेच्छयजणपरियरिओ संपत्ती कालमेहोवि ॥ २ ॥ रे महः ! मेल हुं पुवज्जियविजयगवमेत्ताहे । अणुसरसु ममं सिग्धं अह भणिओ सो कुमारेण ॥ ३ ॥ सोउं कुमारवयणं जरोध गद्दो झडत्ति तस्स गओ । अणुचिंतिउं च लग्गो जुत्ताजुत्तं सबुद्धीए ॥ ४ ॥ कहं ? - जइ एस मए विजिओ एसजणाओ तहावि नो कुसलं । अह एएण जिओऽहं वित्तिच्छेओ तओऽवस्सं ॥५॥ अतुलबलविक्कमस्स उ इमस्स विजएऽवि मज्झ संदेहो । ता उभयपासरज्जुछ संकडं एयमावडियं ॥ ६ ॥ For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रीगुणचंद महावीरच. ४ प्रस्ताव: ॥९४॥ CADEMOCRACANCINCOM इय बहुभेयविकप्पणवसाउलिजंतचित्तवित्तिस्स । फुटुं तडत्ति हिययं तस्स कुमित्तस्स व रहस्सं ॥ ७॥ कालमेघतओ जाओ कलयलो, उग्घोसियं च जणेण-अहो महप्पभावं दसणं कुमारस्स, जेणावलोयणमेत्तेणवि वजगंठिच | निहरं फुटुं तडत्ति हिययमेयस्स, ता जयइ सबहा कुमारो, एत्यंतरे ओयरिऊण मंचाओ चेडीजणपरिवुडाए सीलमईए खित्ता कुमारकंठदेसे समं नियचित्तवित्तीए वरमाला, पवज्जियाइं असंखघोससंखोभियभवणाई मंगलतूराई,जाओ णयरे पमोओ, तुट्टो राया सह मंतिसामंतेहि, पारद्धो विवाहो महाविभूईए उभयपक्खपरितोसेणं, निबत्तिए य तंमि पगलंतमयजलुब्भडकरडतडुद्दामभमिरभमराणं । सुहलक्खणंकियाणं पंचसयाइं गइंदाणं ॥१॥ मणपवणजविणवेगाण जचतुरंगाण वंकगीवाणं । बारस चेव सहस्सा रहाण दो तुंगसिंगाणं ॥२॥ कणगस्स तीस कोडी चीणंसुयपमुहवत्थरासीओ। दिन्नाओ कुमारस्सा पाणिस्स विमोयणे रन्ना ॥३॥ कयमन्नपि सविसेसं कायचं, जाओ अवरोप्परं पणयभावो । अवरवासरे य पेसिया कुमारेण पहाणपुरिसा देवसेणनरवइस्स पासे नियट्ठाणगमणाणुन्नागहणनिमित्तं, गंतूण निवेइयं तेहिं नरवइस्स, तओ देवसेणेण पुणरवि सम्माणिओ पहाणवत्थुसमप्पणेण कुमारो, निरूवियं गमणजोग्गं दिणं, निउत्ता दंडनायगा अणुगमणत्वं, अह पसत्थवासरे ससुरप्पभिईण कयमुचियकायचो पत्थिओ कुमारो हरिकरिनरनियरसमेओ सनयराभिमुहं । एत्यंतरे ॥९ ॥ सघालंकारपरि सीलबई चेडियाजणसमेयं । लच्छिंव कुमारपुरो काउं रन्ना भणियमेयं ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir noturno पुत्ति! पवित्तं सीलं पालेज्जसु मा करेजसु कुसंगं । अणुवत्तिजसु गुरुजणमवणिजसु दुधिणयभावं ॥२॥ सेविजसु नयमगं मियमहुरक्खरगिरं वएज्जासि । आराहेजसु सपियं देवो भत्ता कुलवहूणं ॥३॥ कुमरोऽवि इमं बुत्तो एसा एका सुया ममं इट्ठा । छायव सहयरी जह हवइ सया तह तए किचं ॥४॥ इय सिक्खविउं राया धूयं विरहग्गिदूमियसरीरो। अणुगमिऊण कुमार नियनयराभिमुहमह चलिओ ॥५॥ कुमारोवि पेच्छंतो नगनगरागरगामकाणणरमणिजं मेइणि साहितो विसमपल्लीनिलीणे भिल्लाहिवइणो |पयर्टीतो पुबनीईओ अवलोयंतो तावसजणनिसेविए अणवरयडझंतघयमहुसमिहमहोसहिसमुच्छलंतबहलधूमपडलकयमेहसंकसिहंडितंडवाडंबररमणिजे आसमपए, पइदिणपयाणएहिं संपत्तो जयंतीए नयरीए वाहिरुज्जाणे, बद्धाविओ नरसिंघनरवई, काराविया नयरसोहा, जाया समुद्धयविचित्तचीणंसुयचिंधबंधुरा रायमग्गा, अह पसत्थंमि मुहुत्ते अंतेउरपुरप्पहाणजणपरियरिएण नरिंदेण अणुगम्ममाणो नरविक्कमो नयरिं पविसिउमारद्धो, ठिया य रायमग्गोभयपासपासायमालासु तदवलोयणकोऊहलाउला कुसुमुम्मिस्सक्खयहत्था लोयसत्था, जाया य कुमाररूवपलोयणपाउन्मवंतषिविहवियाराण जुवईजणाण विम्भमा । कहं चिय? (ण कावि पडिजुवइकंतगंडत्वलंतसंकेतं । कुसुमक्खएहिं ताडइ ईसाइतिव्य रायसुयं ॥१॥ पवियंभियकुसुमाउहवसवियसियलोयणा पलोयंती। न मुणइ सकडिल्लंपिहु पवणेणायट्टियं अपरा ॥२॥ For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥ ९५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमरपलोयणवा मूढमाणसा निचला गिहग्गगया । अनिलचलंचलचूडा काविहु रेहइ पडायच ॥ ३ ॥ अम्मे ! जामि पलोइदुं दसदिसं कोलाहला सुबए, सा मा गच्छ मयच्छि ! निच्छियमिमो सो एइ रण्णो सुओ । दिट्ठे जम्मि पनि मणा मुद्धावरा मग्ग (ङ्ग)णा, बट्टंती विव सासुयाऍ पुरओ अन्ना इमं जपइ ॥ ४ ॥ इय एवं सविलासाहि नयरनारीहिं सच्चवितो । कुमरो बहूसमेओ संपत्तो निययभवणंमि ॥ ५ ॥ 1 या सविसेसं गुरुजणाण पणामाइपडिवत्ती, समप्पिओ य रण्णा अंबरतलमणुलिहंतो निययभवनिव्विसेसो पासाओ कुमारस्स, तत्थ डिओ य सो सक्को इव देवलोए धरणो इव पायाले विसयहं भुंजंतो कालं गमेइ, अन्तरंतरां य तुरगवाहियालिं च मत्तसिंधुरदमणं च मलजुज्झब्भसणं च राहावेहकोऊहलं च धम्मसत्थसवणं च देसंतरनयरवत्तानिसामणं च गुरुचरणनिसेवणं च मग्गणजणमणोरहपूरणं च करेइति । अह कुमारस्स का| लक्कमेण सीलमईए सह विसयसुहं भुंजमाणस्स कुसुमसे हर विजय से हरनामाणो जाया दोन्नि पुत्ता, ते य वल्लहा पियामहस्स, विविहप्पयारेहिं उबलालिजमाणा वहुंति । अन्नया राइणो समीवे निसन्नंभि नरविक्कमे जहोचियठाणनिविइंमि सेवगजणे मयभर संभरियसच्छंदजमुणावणविहारो तडयडारावतोडियनिविडघडणुत्तरतारसय प्पमाणलो हनिगडो सयखंडचुन्नियमहालाणखंभो निदय करप्पहाराहयारोहगवग्गो पहाविओ नयरमज्झेग जयकुंजरो उम्मूलियगरुयद्दुममो- डियगुरुविडव कडयडरउद्दो कुंभत्थलपणोलणपाडियसुरभवणसिहरग्गो अइकडिण करप्फालणविहाडिउद्दाम तुंगपागारो For Private and Personal Use Only विवाहः गजोपद्रवः. ॥ ९५ ॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir NGH A REC LASSO9-08** अइवेगुचालियकन्नतालविद्दवियभसलउलो अइरभसभरपहावणसपक्खकुलसेलचल्लिकयसको दढदंतदंडताडणढलढलियद्यालयसमूहो करघायदंतवेहणचरणुप्पीडणनिवाडियजणोहो सव्वत्थ भमइ भीमो जमोव्य जुगविगमसमयंमि, अह | मंदरमहिज्जमाणमहोयहिघोसघोरे समुच्छलिए तियचउक्कचचरेसु जणाणं अकंदियरवे पुच्छियं नरवइणा-भो भो किमेवं नयरे कोलाहलो सुम्मइत्ति ?, जणेण भणियं-देव! एस तुम्ह जयकुंजरो भग्गालाणखंभो नयरं विद्दयेइ, एवं सोचा विसजिया कुमारपमुहा पहाणलोया जयकुंजरगहणनिमित्तं, भणिया य-अरे ! सव्वहा सत्थघायं परिहरंतेहिं एयस्स पट्टियव्यं, एवं च पडिवजिय गया ते तदभिमुहं, न य पेच्छंति कमवि उवायं जेण हत्थी वसमुवगच्छइत्ति, एत्थंतरे वेलामासवत्तिणी गुरुगन्भभारवसविसंतुलनिवडंतचरणा गाढपाणभयकंपंतसरीरजट्ठी इओ तओ य धावंती एगा कुलंगणा दिट्ठा जयकुंजरेण, तओ उलालियकरग्गो पवणवेगेण धाविओ तीसे अभिमुहो, सावि कुंजरं तहा सिग्घमागच्छंतं पेच्छिऊण सज्झसभरनिरुद्धपयप्पयारा कलुणाई दीणाई विलविउं पयत्ता, कह चिय?___ हे माइ भाय ताया तायह मं मा उवेक्खह इयाणि । एसो मम वहणट्ठा दुट्टकरी पासमल्लियइ ॥१॥ हं हो पेच्छगलोया ! निक्करुणा करिवरं पडिक्खलह । गुरुगन्भभरकंता एसा संपइ विवजामि ॥२॥ अहह कहं पावकरी एसो सो आगओ मम समीवे । निस्सरणा नित्ताणा कमुवायं संपइ सरामि ? ॥३॥ किं कोऽपि महापुरिसो परोवयारत्थधरियनियपाणो। एत्थ न पेच्छइ सहसा मं दुक्खत्तं विणसंतिं ॥४॥ ACAESARICA For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सगर्भ श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्ताव: युवतिरक्षा. ॥९६॥ CLOCACHECRUCAT इय दीणकलुणवयणाई गसो भासिऊण खणमेकं । मुच्छानिमीलियच्छी धसत्ति सा महियले पडिया ॥५॥ सोवि करिवरो दढरोसभररत्तणेत्तो संपत्तो तीसे थेवंतरेण, दिट्ठा य सा कुमारेण भयवसभूमिनिस्सहनिवडियंगी, चिंतियं च-अजुत्तमजुत्तमियाणि उवेहणं एयाए, जओ एक अबला एसा अन्नं गुरुगभभारविवसंगी। अन्नं पुण मुच्छाए निमीलियच्छी धरणिपडिया ॥१॥ ___ अन्नं च पुणो तायस्स एस जयकुंजरो अतीव पिओ । सत्येण न हंतव्यो विसममिमं निवडियं कजं ॥२॥ अहवा रूसउ ताओ जं भवइ तं करेउ मम इण्हि । हंतव्यो एस करी दुबलजणपालणं धम्मो ॥३॥ इय निच्छिऊण निबिडबद्धदगुलंचलो तुरंगाओ अवयरिऊण अवलोइजंतो नरनारीजणेण निवारिजंतो पासवत्तिपरियणेण पडिखलिजमाणो अंगरक्खेहि निरवेक्खो नियजीवियस्स सिग्धं पधाविऊण मेहस्स व मयजलासारपसमियरयनियरस्स कयगंभीरगलगजियस्स सहस्सनयणोध थेवंतरेणासंपत्तस्स जयकुंजरस्स करणप्पओगवसेण आरूढो पट्टिदेसंमि कुमारो, ताडिओ य कुलिसनिढरेण मुट्टिप्पहारेण करी कुंभत्थलंमि, अह खरयरं रोसमुवागओ मणागंपि अनियतंतो नारीवहाओ सो कुमारेण जमजीहादुविसहाए खग्गधेणूए आहओ सव्वसत्तीए कुंभजुयलंतराले, तओ पढमुग्गमंतरविमंडलाओव्व करपसरो खरपवणपणनकमलसंडाओव मयरंदनीसंदो महागिरिगेरुयागराओव्व निम्भरसलिलुप्पीलो कुंभत्थलाओ से बूढो महारुहिरप्पवाहो, सहसचिय विगयनयणोवलंभो विहलं ॥९६॥ For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घलीभूओ मओ इव मुच्छिओ इव दढपाससहस्ससंजमिओ इव निचलो ठिओ करी, तओ अवयरिऊण कुमारेण संठविया सा भूमिगया इत्थिया, विमुक्का य समीहियपएसंमि, सयंपि गओ नियमंदिरं, सोऽवि करिवरो गहिओ आरोहहिं, पारद्धो अणवरयजलघडसहस्सखेवेण सिसिरोवयारो, पयट्टावियाई घायविसोहणाई, महाविमदेण नीओ निययावासे, निवेइयं नरवइणो जहावित्तं, रुट्ठो राया, परं सोयमुवागओ, भणिउमाढत्तो य रे रे वह पुरिसा! निस्सारह तं सुयं दुरायारं । जयकुंजरेऽपि निहए अजवि इह वसइ जोऽलज्जो ॥१॥ अबो साहसतुट्टाएँ तीए देवीऍ सुंदरो दिनो। पुत्तो अमित्तरूवो देवाविहु विप्पयारंति ॥२॥ नूणं मूढो लोओ तम्मइ पुत्तस्स जो निमित्तंमि । न मुणइ एवंविहदोससाहणे पयडसत्तुत्तं ॥३॥ अन्नाणविलसियमिणं गई अपुत्तस्स जं निवारेंति । इहलोयप्पडिणीओ परलोयसुहो कहं होजा? ॥ ४ ॥ नीसेसरजसारं एवं जयकुंजरं हणंतेण । कह मह सावेक्खत्तं पुत्तेण पयासियं भणसु ? ॥५॥ ता जह पुर्व एकेण रक्खियं खोणिवलयमक्खंडं । रक्खिस्सामि तहेहि निस्सारह वेरियं एयं ॥६॥ जो एरिसं अणत्थं वीसत्थो कुणइ वसइ निस्संको। सो नूण ममंपि विणासिऊण रज्जंपिहु हरेजा ॥ ७ ॥ 2 इय पुणरुत्तं नरवइस्स निच्छयमुवलब्भ विमणदुम्मणा गया कुमारसमीवं रायपुरिसा, तं च पणमिऊण सामव18 यणा निविठ्ठा एगदेसे, पलोइऊण य तेसिं मुहसोहं भणियं कुमारेण-किं भो! गाढमुधिग्गा दीसह ?, साहह किमेत्थ TRANSGARCANCELLAGANICES For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥ ९७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कारणं ?, खणंतरं निरुद्धकंटं चिट्ठिय दीडुण्डुण्डमुकनीसासपुरस्सरं दुस्सहविरहविहुरनिस्सरंतत्राहप्पवाहं परामुसियलोयणजुयलं भणियं पुरिसेहिं- कुमार ! निब्भग्ग सिरसेहरा किं साहेमो ?, कुमारेण भणियं-कहं चिय ?, पुरिसेहिं भणियंजेण तुम्हेहिं सह दुस्सहो दीहविरहो भविस्सइत्ति, इंगियाकारकुसलत्तणओ परियाणिऊण तेसिमभिप्पायं भणियं कुमारेण किं कुविओ ताओ निबिसयमाणवेइ ?, रायपुरिसेहिं भणियं -कहमेयं परुसक्खरं देवदुलहाणं तुम्ह भणिज्जइ १, सयमेव जाणह तुग्भे जमेत्थ पत्तकालं, तओ वत्थतंबोलाइणा पूइऊण रायपुरिसा सद्वाणे पेसिया कुमारेण, वाहराविया य निययसेवगा, भणिया य-भो महाणुभावा! वारणसिरवियारणकुविएण तारण निच्चिसओ आणत्तोम्हि, ता गच्छद्द नियट्ठाणेसु तुम्भे, अवसरे पुणरवि एज्जहत्ति, सम्माणिऊण सप्पणयं पेसिया, देवी य सीलमई भणिया, जहा - गच्छसु पिए! तुमंपि पियहरं, पत्थावे पुणरवि एज्जाहि, साय खणमवि विओगदुक्खमसहमाणी जमुणाजलसच्छहं सकज्जलं नयणवाहप्पवाहं मुंचती रोविडं पयत्ता, संठविया कुमारेण तेहिं तेहिं महुरवयणेहिं, नेच्छइ य सा खणमवि विओगं, तओ भणिया कुमारेण-पिए! दुग्गा मग्गा आजम्मसुहलालियाणं दढमजोग्गा य, असंजायसरीरबला बालजुयलपरिबुडा य तंसि, ता विरम सचहा ममणुग्गहं कुणमाणी इमाओ असग्गहाओत्ति, सीलमईए भणियंअज्जपुत्त ! तइया ताएण तुह किमुवइहूं ?, कुमारेण भणियं-न सरामि, सीलमईए जंपियं-मम एक्कचिय धूया एसा अचंतं निघुइठाणं छायच सहचरी जह हवइ सया तह तए किचंति, कुमारेण भणियं-पिए । सुमरियमियमियाणिं, For Private and Personal Use Only नर विक्र मस्य प्रवास:. ॥ ९७ ॥ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तीए जंपियं-ता कीस नियत्तेसि मं ?, कुमारेण भणियं - मग्गगाढपरिस्समकारणेण नियत्तेमि, जइ पुण अवस्समेवागतवं मए समं ता पउणा भवसु, विमुंचसु भवणनिवासाभिरदं परिचय सुकुमारत्तणंति, सीलमईए भणियं एसा समसुहदुक्खसहा जाया पगुणम्हि तओ करकलियसरासणो पिप्पिएसबद्धतोणीरो सुयजुयलसमेयाए सीलमईए सहिओ सुहपसुत्तेसु नयर लोएस पसंतेसु गीयरवेसु सट्टाणनिविट्ठेसु अंगरक्खेसु पमत्तेसु जामकरिघडाधिरूढेसु सुहडेसु इओ तओ पेसिएस नियचेडगेसु नीहरिओ नयराओ कुमारो, अविच्छिन्नप्पयाणएहिं परं रजंतरं गंत्तुं पवत्तो य । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इओ य आयन्निऊण कुमारस्स विदेसगमणं सयलोऽवि नयरीजणो मुक्तकंठं विलविउमारद्धो, मंतिणोऽवि परिचतनीसेसरज्जवावारा हरियस वस्ससारा इव विमणदुम्मणा गंतूण नरनाहं उबलंभिउं पवत्ता, कहं विय ? तिलतुसमित्तंपि नियपओयणं अम्ह साहिउं देवो । पुधिं करिंसु इहि पचयमेत्तेऽवि नो पुट्ठा ॥ १ ॥ ता देव ! जुत्तमेयं काउं किं तुम्ह थेवकज्जेऽवि ? । रज्जभरधरणधीरो जमेस निवासिओ कुमरो ॥ २ ॥ किं एदुकुंजरकरण नियजीयनिव्विसेसस्स । पुत्तस्स एरिसगई विधिया केणावि नरवइणा ? ॥ ३ ॥ किं वा विंझमहागिरिपरिसरधरणीऍ कुंजरकुलाई । हरियाई तक्करेहिं जं देवो ववसिओ एवं ॥ ४ ॥ इत्थीए रक्खणओ किमजुत्तं नणु कर्यं कुमारेण ? । नियडिंभदुटुचेद्वावि जणेइ जणयस्स संतोसं ॥ ५ ॥ पररजेसु य अजसो अम्हाण पयासिओ तए नूणं । जह नरसिंघनराहिवरज्जमुवेक्खंति गुरुणो य ॥ ६ ॥ For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥ ९८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता गिure नियमुद्द सह भवणघणेहिं मोकलह अम्हे । न सहिस्सामो एत्तियमवजसरयफंसणं देव! ॥ ७ ॥ इय मंतीहिं भणिए राया संजायचित्तसंतावो । अब्भुवगयनियदोसो ताहे ते भणिउमाढत्तो ॥ ८ ॥ मरिसह मम अवराहं जमपुच्छिय एरिसं कयं कज्जं । नो कोवभराओ जओ जुत्ताजुत्तं मए नायं ॥ ९ ॥ जह तुम्भे भगह तहा न कोऽवि दोसेऽवि चयइ नियपुत्तं । इय वइयरछउमेणं मन्ने लच्छीऍ छलिओऽहं ॥ १०॥ जं पुणइय दोसाओ मंतित्तविमोयणं कुणह तुम्भे । एसेव निरंजणसामिभत्तिजुत्ताण होइ मई ॥ ११ ॥ केवलमेको पुत्तो रज्जसमत्थो गओ विदेसंमि । तुम्हेवि उवेक्खह मं उभयं सोढुं न सकोऽहं ॥ १२ ॥ ता संपयं पसीयह रजं चिंतेह लहह कुमरस्स । सवत्थावि पउत्तिं एत्तो रोसेण पज्जतं ॥ १३ ॥ एवं गाढनिबंधेण पडिवन्नं मंतिजणेणमेयं, पेसिया य सयलदिसासु वरतुरयाधिरूढा पुरिसनियरा कुमारन्नेसणनिमित्तं, गया य सवत्थ, निरूविओ सहजत्तेण, न केणवि दिसाभागमेत्तंपि वियाणियं, तओ कहवयवासराई बियरिय तेसु तेसु ठाणेसु अकयकज्जेहिं चेव नियत्तिऊण तेहिं सिट्ठो सभानिविट्ठस्स मंतिजणसमेयस्स नरिंदेस्स कुमाराणुबलंभवुत्तंतो, तं च सोचा अचंतं सोगं कुणंतो राया बागरिओ मंतीहिं - देव! अलं परिदेविएण, न कयाइ करतलाओ विगलिओ पुणोवि पाविज्जर चिंतामणी, न य दढकुनयदंडताडिया पुणोऽवि मंदिरे निवसइ रायलच्छी, न गाढमक्कारणात्रमाणिओ निवत्तइ सप्पुरिसजणो, राइणा भणियं-जइ पढममेव सो तुम्हेहिं नियत्तिओ For Private and Personal Use Only मन्त्रिणां रोपः कुमा रान्वेषणं. ॥ ९८ ॥ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir SACARSACROSSOCACCIAS होतो ता जुत्तं हुत्तं, मंतीहिं भणियं-जइ मूलेऽवि से न रोसुप्पायणं देवो करतो ता जुतत्ततरं हुतं । अवि यकजविणासे जाए जह बुद्धी बंधुरा पवित्थरइ । तह जइ पढमं चिय होज देव! ता किं न पजतं? ॥१॥ धन्ना सबुद्धिविभवेण जाणिउं वत्थु तस्स य सरूवं । पढम चिय सुग्गहियं कुणंति सप्पस्स वयणं व ॥२॥ रत्ना बुत्तं सचं एयमहो केवलं वहुसणाहो । जाणेण विणा कह सो दूरपहं पाविओ होही? ॥३॥ मंतीहिं तओ भणियं जेणेसा विहडणा कया देव ! । सो दूरेऽवि नएज्जा नूण कुमारं लहुं दइयो ॥ ४ ॥ एवं चिरं परितप्पिय पुणोवि चारपुरिसे[हिं] कुमारवत्ताजाणणत्थं पेसिय नियनियठाणेसु गया मंतिणो, रायावि है सुयविरहवेयणाविहुराए चंपयमालाए देवीए संठवणनिमित्तमंतेउरं गओत्ति ॥ | इओ य सो कुमारो कमंकमेण गच्छंतो चिरकमलवणविहारुश्विग्गाए लच्छिदेवीर तुद्वेण पयावइणा निवासनिमित्तं व विरइए नाणाविहतरुणतरुसामलियसयलरविकरपसरे अणेगकोडीसरीयजणसंकुले संदणपुरवेलाउले संपत्तो, अवि-18 हयाणमाणो य तहाविहं गेहतरं गोपुरपञ्चासन्नस्स पाडलाभिहाणमालागारस मंदिरंमि पविठ्ठो, दिवो य सो पाड लेण विनाओ य विसिट्टागिईए जहा नूणं कोई एस महापुरिसोत्ति, तओ अभुटिऊण सपणयं कया उचियपडिवत्ती, दसिओ गिहस्स एगदेसो, निकारणवच्छल्लयाए य भायरं व तं उवयरिउमाढत्तो, कुमारोऽपि तत्थढिओ सजूहभहोव पवंगमो दिणगमणियं कुणंतो अच्छइ । अन्नया य पुत्वसमाणियंमि निट्टियमिदविणजाए पाडलेण भणियं-कुमार! For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद 18 महायस निव्ववसायाणं केरिसो निव्याहो?, ता परिचयसु आलस्स, गिण्हसु ममारामस्स एगदेसं, समुदि | स्पन्दनपुरे महावीरच कुसुमाई, गुंथिऊण य विविहमालाओ विकिणसु रायमगंमि जहा सुहेण चेव निव्वहइ तुह परिग्गहोत्ति। नरविक्रमः, ४ प्रस्ताव: तओ-जह जह वाएइ विही विसरिसकरणेहिं निठुरं पडहं । धीरा पहसितवयणा नचंति तहा तह चेव ॥१॥ ॥९९॥ | इय चिंतिऊण खत्तधम्माणणुरूवंपि तयणुरोहेण पडिवन्नमेयं कुमारण, पइदियहं च सह सीलमईए मालागारो-12 ४ वदंसियकाणणेगदेसतरुकुसुमाइं उचिणिय नियगेहमागंतूण मालाओ विरएइ,पाडलगभजाए य समं सीलमई तविषय-18 निमित्तं रायमग्गे पेसेइ, उप्पज्जइ बहू अत्थो, एवं च पइदिणं पुप्फविक्कयकरणेणं सुहेण संपजइ निधाहो, अन्नया पप्फुल्लविइलमालाओ गहाय सीलवई गया रायमग्गे, अह तीसे रूवेण जोवणेण य लायण्णेण य सोहग्गेण य अक्खित्तचित्तो समागओ एगो कोडीसरीओ देहिलो नाम नावावणिओ, भणिया य तेण-महे ! केत्तिएण इमाओ मालाओ लभंति ?, तीए भणियं-पंचहिं सुवण्णधरणहिं, तओ दानेन वैराण्युपयान्ति नाशं,दानेन भूतानि वशीभवंति।दानेन कीर्तिर्भवतींदुशुभ्रा, दानात्परं नो वरमस्ति वस्तु॥२॥ ॥ ९९॥ इय चिंतितेण तीसे चित्तावहरणत्थं समप्पिया तेण तिणि दीणारा, सहरिसाए तीए गहिऊण समप्पियाओ| फुलमालाओ, विणएण भणिया य सा-भहे। इओ दिणाओ आरम्भ मा अन्नस्स दाहिसि, समहिगतरमुल्लेणवि अहमेव31 गहिस्सामि, पडिवन्नं च तीए, गयाई दोनिवि नियनियगेहेसु, एवं पइदिणं सो तीए सगासाओ पुप्फमालाओ गि-15 CACACAASALAAGOES SERECARRASAKARANG For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हइ, साऽवि समहिगदविणलोभेण तस्स चेवं दलयइ । अन्नया परतीरगमणनिमित्तं नाणाविह अमुल भंडभरियं जाणवत्तं ठावियं अणेण समुद्दतीरे, सावि भणिया, जहा- कलेऽहं परतीरे गमिस्सामि, तम्हा तुमे समुद्दतीरे अमुगंमि परसे आगंतूण नीसेसाई कुंदवेइलन व मालई पाडलाइ मुत्तय चंपय पमुहाई कुसुमाई समप्पेजासि, अहं ते चउग्गुणं मोलं दवाविस्सामि, पडिवन्नं च तीए हट्ठहिययाए, न मुणिओ कोऽवि परमत्थो, वीयदिवसे गया समग्गकुसुममालाओ गहिऊण निहिडट्ठाणे, दिट्ठो सो वणिओ जाणवत्ताधिरूढो, पणामियाई तीए कुसुमाई, पसारिओ तेण हत्थो, तीए वि समप्पणं ( णत्थं) पलंबिया मुणालकोमला नियभुयलया, तेणवि हरिसभरनिब्भरंगेण सकुसुममाला चेव गहिऊण आरोविया सीलवई जाणवत्ते, उक्खित्ता उवरिगाए, एत्यंतरे बज्जावियाई मंगलतूराइं पयद्वियं पवहणं विमुक्का सियवडा वाहियाई आवलयाई चंडगंडीव विमुक्ककडंच वेगेण गंतुं पवत्तं जाणवत्तं । इओ य सो नरविकमकुमारो अचंतं तदणागमणकालविलंबुविग्गचित्तो इओ तओ सीलमई पलोइउं पवत्तो, तं अपेच्छमाणेण य तेण पुट्ठा पाडिवेसिया, अवलोइओ रायमग्गो, सम्मं निरिक्खिया तियचउक्कचच्चरा, अवलोइयाई सयलदेव उलभवणकाणणाई, निवेश्या बत्ता पाडलयमालागारस्स, तेणावि सङ्घायरेण गवेसिया सीलमई सङ्घट्टाणेसु, कत्थविय पउत्तिमपावमाणेण सिग्धमेव नियत्तिय भणिओ कुमारो - महायस! धीरो भव, परिचयसु कायरत्तं, कुमारेण भणियं-भद्द ! न किंपि मम कायरत्तं केवलं एए बालए जणणी विओगवसविसंडुलं रोयमाणे न सक्केमि पेच्छिउं, पाडलेण भणियं एवं ठिएवि पुरिसाय (सयार ) त्तं कायचं, ता For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंदा पुवदिसिविभागे तीसे अन्नेसणनिमित्तं अहं गच्छामि, तुम पुण पुत्तसमेओ चिय उत्तरदिसिहुत्तं इमाए नईए उभयकूलेसुरू | शीलवत्यमहावीरच० उज्झरेसु य दरीसु य दुत्तडीसु य विसमप्पवेसेसु य अवलोइज्जासित्ति, एवं करेमित्ति पडिवजिय पुत्तजुयलसमेओ चेव | न्वेषणा. ४ प्रस्ताव गओ नरविक्कमो नईए पासदेसंमि, ते य पुत्तए मणागंपि सन्निहिममुंचमाणे संठविय चिंतिउमारद्धो। कहं चिय?॥१०॥ किं होज केणवि हडा? वसीकया वावि केणवि नरेण ? । किंवा सरीरपीडाए होज कत्थवि निसन्ना सा ॥१॥ किं वा ममावमाणं किंपि हु दट्ठण विलयमावन्ना । पुरिसंतरंमि अहवा जाओ तीसे पणयभावो ॥२॥ सुमरामि न तावऽवमाणकारणं होउ वाऽवमाणेऽवि । नो सा चएज पुत्तं अवच्चनेहो जओ गरुओ ॥ ३॥ संभवइ न एयंपिहु जमन्नपुरिसं मणेऽवि चिंतेजा। कह तारिसकुलजाया सीलं मइलेज ससिधवलं? ॥४॥ अहवा जुबईण मणं कुडंगगुविलं क एव जाणेजा ? । वाहिदंसियपणयाण कवडभरियाण मज्झमि ? ॥५॥ अन्नं वयंति पुवं पच्छा पुण वाहरंति गिरमन्नं । अन्नं धरेंति हियए साभिप्पेयं करेंति पुणो ॥ ६ ॥ गयणे गणंति गहगणमुयहिंमि जलंपिजे परिमिणंति । पेच्छंति भावि कजं न तेऽवि जाणंति जुवइयणं ॥७॥ सचं चिय जुबईओ एरिसियाओ न एत्थ संदेहो । केवलमेयाएँ मए दिटुं लहुयंपि नो विलियं ॥ ८॥ ता सधहा न उवेहणिज्जा होइ एसत्ति निच्छिऊण पुत्ते य नईकूले संठविय परकूलन्नेसणट्ठाए पविठ्ठो नईए, पत्तो ॥१०॥ य मज्झयारे, एत्यंतरे अचंतपडिणियत्तणओ हयविहिस्स अघडंतवत्थुसंघडणसीलयाए भवियवयानिओगस्स बलवत्त SARAKRESCRI For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ATEGORISERAS ठाणओ वेयणीयकम्मस्स गिरिसिरवरिसणवसविसप्पमाणसलिलप्पवाहेण पूरिया तक्खणेण नई, जाया अगाहा, खलिओ। पयप्पयारो पवाहिओ तरुपल्लवबारिपूरेण नरविक्कमकुमारो नीओ दूरप्पएस, अह कहवि कुसलकम्मवसओ पावियमणेण फलगं, तंनिस्साए अवयरिओ तीरे तीए, नुवन्नो तरुवरच्छायाए, चिंतिउं पवत्तो कह नियनयरचाओ? कहेत्थ वासो ? कहिं गया भजा? । कह पुत्तेहि विओगो ? कह वा नइवेगवहणं च?॥१ खरपवणायजरतिणनियरो विव देवया दिसिबलिछ । एकपए चिय कह मज्झ परियरो विसरिओ झत्ति ? ॥२॥ हे दइव ! तुज्झ पणओ एसोऽहं खिवसु सबदुक्खाई । मज्झं सयणजणाओ जेणऽन्नजणो सुहं वसइ ॥३॥ एत्यंतरे पचासन्नजयवद्धणनयराहिवई कित्तिवम्मनामो नरवई अनिवत्तगसूलवेयणाए अपुत्तो सहसा पंचत्तमुवगओ, तो मिलिआ मंतिसामंताइणो लोया, कओ पंचदिवाभिसेओ रजारिहं च पुरिसं सवत्थ मग्गिउं पवत्ता, खणंतरेण नयरभंतरे रजारिहमपेच्छंताणि वाहिं अवलोयणट्ठा निग्गयाणि पंच दिवाणि, गंतुं पयट्टाणि य तमुद्देसं जत्थ सो चिंताउरो नरविक्कमकुमारो निवसइ, अह तदग्गगामिणं पयंडसुंडादंदुड्डामरं वेगेण पवरकुंजरमिन्तं दठ्ठण वि प्पियं एवं कुमारण मन्ने पुत्वम्भत्थं इयाणि दइयो समीहए काउं । कहमन्नहेह हत्थी दूरुलालियकरो एज्जा ॥१॥ ___ अहवा एउ इमो लहु कुणउ य मणवंछियं जहा मझं । ससुयदइयविरहपमोक्खदुक्खबोच्छेयणं होइ ॥२॥ AARAASARAKASGAGACAMAAOOR For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद अह गलगजिं घणघोसत्रिभम कुंजरेण काऊण । नियपट्टीए ठविओ झत्ति कुमारो करग्गेण ॥३॥ जयवर्धने महावीरच. हयहेसियं च जायं जयतूररवो वियंभिओ सहसा । सामंतमंतिलोएण परिवुडो तो गओ नयरं ॥४॥ नरविक्रमो ४ प्रस्ताव नृपः जाओ पुरे पमोओ अपणयपुवावि पत्थिवा पणया । नरविक्कमेण रजं अत्तायत्तं कयं सवं ॥५॥ ॥१०१॥ नरसिंघनिधिसेसा जाया करितुरयरयणभंडारा । सक्कोव देवलोए विलसइ सो विविहकीलाहिं ॥६॥ केवलमेको चिय फुरइ तस्स हिययंमि नट्ठसलं व । दइयासुयदीहरविरहवइयरो दुस्सहो अणिसं ॥ ७॥ अन्नया जयवद्धणनयरासन्नुजाणे अणेगसीसपरिवुडो सीहोच दुद्धरिसो सूरोव निहियतमपसरो चंदोब सोमदासरीरो मंदरो इव पिरो जञ्चकणगंव परिक्खखमो दूरविवजियराओवि अणंतराओ धरियपयडजमवओविनीसे ससत्तरक्खणबद्धलक्खो समिइवावारियमणपसरोऽवि सया पसंतचित्तो छत्तीसगुणमहामणिरोहणभूमिव धीनि-IN हाणं व पञ्चक्खधम्मरासिव भुवणभवणेक्कदीवोव सिवपंथसत्यवाहोब कम्मतरुनियरहबवाहोद दढजायदप्पकंदप्पसप्पसन्नागदमणिव ससमयपरसमयजलप्पवाहसिंधुच लोयचक्खुब नियनि यविसंटुलकरणकुरंगे सलकर ॥११॥ है कपासोध मिच्छत्तजलाउलभवसमुद्दनिवडंतजंतुबोहित्थो पंचविहायारमहाभरेक्कनित्थारणसमत्थो जइधम्मे असमत्थे । सावयधम्ममि संठवमाणो इयरे पुण जइधम्मे सिद्धतपसिद्धनाएणं अपुवापुवजिणभवणाई वंदमाणो गामाणुगाम विहरंतो आगंतूण समंतभद्दाभिहाणो सूरी समोसरिओत्ति, जाया नयरे पसिद्धी, जहा असेसगुणगणावासो सूरी टू HIGHSCUSSCHACHA RECESSAGE RA For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbalirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie AAAAAAAACARREARS आगओ, तओ कोऊहलेण य भवनिव्वेएणत्ति य संदेहपुच्छणेण य बहुमाणेण य धम्मसवणनिमित्तेण य नियनियदरिसणाभिप्पायविमरिसेण य समागया बहवे मंतिसामंतसेद्विसेणावइसत्यवाहदंडनाहप्पमुहा नयरलोया, निवडिया चरणेसु, निविट्ठा जहासंनिहिया धरणिवढे, सूरीवि पुत्वभवजियगुरुकम्मजलणजालालितत्तगत्तेसु करुणामयवुद्धिपिव दिहि सत्तेसु पेसंतो मंदरगिरिमंथमहिजमाणखीरोयरवगंभीरेण सद्देण सद्धम्मदेसणं काउमारद्धो, कह? खरपवणपणुनकुसग्गलग्गजलविंदुचंचलं जीयं । सुररायचावचवलं खणवि गलइ सरीरवलं ॥१॥ पेम्मंपि तुंगगिरिसिरसरंतसरियातरंगमिव तरलं । लच्छीवि छडणुङमरवंछिरी पेच्छइ छलाई ॥२॥ पयडपयट्टियदारुणविविहवियारा महासमुद्दे व । निवडंति आवया आवयव निचं सरीरंमि ॥३॥ मणिमंततंतदिषोसहीण वावारणेवि अविणासं । भुंजता देंति दुहं विसया विसवलरीउब ॥४॥ मिच्छत्तमोहमोहियमईहिं कीरंति जाई पावाई। भवसयपरंपरासुवि वेरिव मुयंति नो ताई ॥५॥ पियपुत्तकलत्ताईण जाण कजेसु वट्टियं बहुसो । परलोयपयट्टाणं ताणिवि नो हुंति ताणाय ॥६॥ इय भो नाउं जिणधम्ममणुदिणं सरह सरहसं कुसला!। जावजवि वजमहासणिव निवडइ न तुम्ह जरा ॥७॥ तीसे पडणे पुण छिन्नपक्खपुडया विहंगवग्गव । उड्डियदाढाभुयगड हरियरजा णरिंदच ॥ ८॥ सच्छंदगमणपरभीइजणणसम्बत्थसाहणविहीणा । चिररिद्धिं सुमरंता सुचिरं तुब्भे किलिस्सिहिह ॥९॥ For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्ताव सामन्तभः द्रदेशना. ॥१०२॥ ONAGACASEARCH पजंतं एत्तो जंपिएण जइ कामियाई सोक्खाई। भोत्तुं वंछह ता वीयरायवयणे समुजमह ॥ १०॥ . इय संसारनिस्सारत्तणपरिकहणेण पडिबुद्धा बहवे पाणिणो । बीयदिवसे य समायन्नियसूरिसमागमणवुत्तंतो समग्गगयतुरयनरनियरपरियरिओ भारियासुयसंपओगपुच्छणकए समागओ नरविकमनराहियो, तओ वंदिग्ण सूरि चिंतिउमाढत्तो-अहो एयस्स भुवणच्छरियभूयं रूवं विमुक्कामयबुट्ठी दिट्ठी सजलघणघोससुंदरो सरो नीसेसपसत्थलखणजुत्तं गत्तं पाणिगणकयरई भारई, तहातमनिग्गहिओ चंदो तमि मंदा रुई दिणयरस्स । गिरिविहियाभिभवो सायरोऽवि को हुज एयसमो?॥१॥ तं नथि जं न जाणइ भूरा भव्यं भविस्समवि वत्थु । ता होइ पुच्छणिजो नियदइयापुत्तवुत्तंतं ॥२॥ __इय निच्छिऊण उवविट्टो उचियासणे राया, गुरुणावि पारद्धा धम्मकहा, पुणरवि पडिबुद्धा पभूयपाणिणो, राइणावि पत्थावमुवलब्भ पुच्छिओ सूरी-भयवं! निच्छियं मए, जहा-तं नत्थि न जाणह तुम्भे, ता काऊणाणुकंप साहह कइया भारियाए सुएहि य सह मम समागमो भविस्सइत्ति, गुरुणा भणियं-महाराय ! धम्मुजमेण तदंतराइयकम्मक्खोवसमो जया होहिइ, राइणा भणियं-भयवं! जाणामि एयं, केवलं दुस्सहविओगविहुरो न सकेमि धम्मुज्जमं काउं, चित्तनिरोहसयपेक्खो हि धम्मलक्खो कहमम्हारिसेहिं साहिउं तीरइ ?, ता सबहा कुणह पसायं, निवेयह अवरमुवायंति, गुरुणा भणियं-जइ एवं ता पजुवासेसु पइदिणं मुणिजणं, एवं खु परमोवाओ वंछियकज विमुपलभ एहि य सह मा भणिय-भ कहमम्हारिमा मुणिजणे, ए KAMGACA RASHID SISAK ॥१०२॥ For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८ महा० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धीए, जओ- विहडइ निविडकम्मनिगर्डपि हु भिंदइ दुग्गई, लहु कलाणवलिमुल्लासइ नासइ दुक्ख संगई। वं लच्छ पास परिसपणु दप्पणु जिम पभासए, मुणिजणसंगमेवि किं किं जणु जं नवि सोक्खु पास ए १ ॥ १ ॥ तओ रोगिणच वेजोवइट्टोसहं पंथपरिब्भद्वेण व सुमग्गदेसणं तण्हाभिभूषण व विमलसलिलपडिपुण्णमहासरोवरनिवेयणं राइणा संगमन्भुवगयमिमं गुरुवयणं, गओ य पणमिऊण सट्टाणं । इओ य ते दोष तस्स सुया नदीए कूलंमि निलीणा तण्हाछुहाभिभूया जाव खणंतरं चिट्ठति ताव एगो गोउलिओ दहिमहियाणि णयरे विक्कणिऊण समागओ तत्थ परसे, पेच्छइ देवकुमार निविसेसरूवे करुणसरं रुयमाणे ते दोऽवि दारगे, तओ पुच्छिया तेण - रे पुत्तगा ! कीस रोयह ?, केण तुम्भे एत्थ ठविया ? को वा तुम्ह एत्थ सयणजणोत्ति ? जेद्वेण साहिओ सो पुववृत्तंतो, अह अणाहत्ति परिकलिर्माण तेण जहासंनिहियअसणपाणदाणेण महिनंदिऊण तेहिं तेहिं पयारेहिं उवलोभिऊण य नीया ते नियगोउलंमि, समप्पिया य गोउलाहिवस्स, तेणावि पुत्तविरहियाए समप्पिया नियदइयाए, सावि उदरुन्भवे इव परिपालेइ सव्वजत्तेण, उवयरइ खंडखजाइपमुहविसिद्ध वत्थुप्पयाणेण अणवरयं, सोऽवि गोउलाहिवई किल जयबद्धणनयराहिवस्स संबद्धोत्ति अन्नया कयाइ तेहिं दोहिवि पुत्तेहिं समेओ महामुलं पाहुडमादाय नरविकम नरिंददंसणत्थं समागओ जयवद्धणनयरं, दिट्ठो य नरवई, पणमिओ सव्वायरेणं, समप्पियं पाहुडं, दिन्नो राइणा सहत्थेण तंबोलो, पुट्ठो य सयलसुत्यासुत्थवत्ताओ, एत्यंतरे निवडिया दोसु तेसु पुत्तेसु राइणो दिट्ठी, For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥ १०३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाओ गाढं पमोओ, परिभाषियं च जहा धुवं एए सब उणयति, तहावि पुच्छामि एयं को पुण एत्थ वइयरोति परिभाविय पुट्ठो गोउलाहिवई, कस्स भो एए पुत्तगत्ति ?, तेण भणियं देव ! नम संबंधिणो, गेहिणीए आचालकालाओ उ वढियत्ति, राइणा भणियं-संमं साहेसु, जायसंखोभेण तेण सिद्धो नई कूलाओ आरम्भ सयलो वुत्तंतो, एयमायन्निऊण राइणा परमहरिसपगरिसमुब्वहंतेण ते दोऽवि दारगा गाढमालिंगिय उच्छंगे निषेसिया, गोउलनायगेण भणियंदेव ! पुरावि मए विविह चेट्ठाहिं नाया एए जहा करसद सामंतस्स वा सेणावइस्स वा नरवइस्स वा मग्गे गच्छंतस्स | केणावि विसमपओगेण पन्भट्ठा होहिंति, कहमन्नहा एएसिं पइदिपि मट्टियाघडियदो घट्टघडभेडणेण य कित्तिमतुरयघट्टपयट्टणेण य संपिंडियसरिंडयपरिकप्पिय संदणवाहणेण य वुद्धिपइट्ठियकठ्ठलट्ठिखग्गुब्वहणेण य चाउरंगसेणासंमदुद्दाम संगामपरिकष्पणेण य डिंभाण गामागरनगरपसायदाणेण य विविहा कीला अहेसि ?, न य एवंविहा चेट्ठा पागयसुयाण होइ, तहा सन्ववेलासु मम तुम्ह दंसणत्थमेतस्स एयाणवि नरिंदभवणदंसणकए गाढनिबंधो आसि केवलमहं वावत्तिऊण विसिडवत्थदाणेण दिट्ठियंचणेण य पुरा एंतो, इहि पुण गाढनिबंधं काऊण मम खर्णपि पुट्ठि अमुंचमाणा समागयत्ति, अहो महाणुभावेण कहं ममोवयरियंति चिंतंतेण रखा परमपमोयभरनिव्भरंगेण दिनं तस्स | तं चैव गोडलं गामसयं च आचंदकालियं सासणनिवद्धं भुत्तीए, पभूयवत्थतंवोलाइणा य पूइऊण पेसिओ सद्वाणंति । सयपि पुत्तजुयलपरियरिओ गओ सूरिसमीवं, वंदित्ता परमायरेणं निवेइओ पुत्तसमागमवुत्तंतो, सूरिणा भणियं - महा For Private and Personal Use Only पुत्रयुगल समागमः ॥ १०३ ॥ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir NAGADGAON राय ! सुमरिसि पुब्वभणियं अम्ह वयणं ? राइणा भणियं-भयवं! नियनामंपिव सुमरामि, सूरिणा भणियं-महाभाग!! केत्तियमेत्तमेयं ?, गुरुजणपजुवासणेण तं नत्थि न सिज्झइत्ति, रन्ना भणियं-अवितहमेयं, किं पञ्चक्खेवि अणुववन्नं मंणिज्जइ ?, पसीयसु इयाणि एक्केण दइयवियोगदुक्खयोच्छेयणेणं, गुरुणा भणियं-मा ऊसुगो होसु, एवंति पडिवजिय पणमिऊण य सब्वायरेण गओ राया सट्ठाणं । इओ य सो देहिलो नावावणिओ अणुकूलपवणपणोलिजमाणसियवडवसवेगपयट्टियजाणवत्तो गंतुं पवत्तो समु-1 इंमि, सीलमईवि तहाविहं अदिट्टपुव्वं वइयर अवलोइऊण हा पिय ! पाणनाह ! किमेवं विहं वसणं विसममावडियंतिद जंपिऊण य अकंडनिवडियवजदंडताडियब मुच्छानिमीलियच्छी परसुछिन्नव्व चंपगलया निवडिया जाणवत्तभूमितले, समासासिया पासवत्तिणा परियणेण सिसिरोवयारेहि, खणंतरेण लद्धचेयणा गाढसुयपिययमवियोगवसविसंतुला गलंतनथणजलप्पवाहा विलविउमेवं पवत्ताहा भुवणपयडपोरिस ताय ! सजीयस्स संनिहं द8 । किमुवेहसि अइदुहियं नियदुहियं संपर्य एवं॥१॥ नरसिंहनराहिव! नियवहुंपि किमुवेहसे अणजेण । एवंपि हीरमाणि? हा हा विपरंमुहो दइयो ॥२॥ हा पाणनाह ! हा गोत्तदेवया हा समत्थदिसिनाहा । रक्खह रक्खह एयं हीरंती पावमिच्छेणं ॥३॥ एवमाईणि करुणाई जंपंती सा संभासिया नावावणिएण-भद्दे ! कीस एवं विलवसि, धीरा भव, नाहं सुमि-1 For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री गुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ १०४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वि तुह पडिकूलकारी, जओ एसा समुडुरा रिद्धी तुहायत्ता, एसोऽहं दासनिव्विसेसो, ता पडिवजसु सामिणी सद्द, वावारेसु नियबुद्धीए गेहकजेसु एयं परियणंति, सीलमईए भणियं - अवसर दिद्विपहाओ निहुर ! पाविट्ठ ! धिट्ठ ! दुबे ! अहवा सासनिरोहेण जीवियं लहु चहस्सामि ॥ १ ॥ रे रे खत्तियकुलसंभवपि याजम्मसुद्धसीलंपि । मं एवमुलवंतो नियजीयस्सवि न लजेसि १ ॥ २ ॥ किंच - खिज्जर देहं निहरउ जीवियं पडउ दुक्खरिछोली । नियतायदिन्ननामत्थविहडणं नेव काहामि ॥ ३॥ इयू ती निच्छयसुलभ निवारियं तेण भत्तपाणं, छुहापिवासामिभूयाएव न परिचत्तो तीए नियनिच्छओ, एत्थंतरे तीए विसुद्धसीलपरिपालणतुट्टाए सग्णिहियसमुद्ददेवयाए खित्तं महावत्ते तस्स जाणवत्तं, कओ जुगंतसमयदारुणो समीरणो, समुल्ला सिया कुलसिहरविन्भमा जलकल्लोला, विउबियाई गयणे घोरायाराई गंधवनयराई, दंसिया गहिरगजिरवभीसणा फुरंतफारविज्जुपुंजपिंजरा जलहरा, तओ वाउलीहूओ कन्नधारो, जाया विद्दत्था सुहडसत्था, ठिया विमणदुम्मणा अबल्लवाहगजणा, बाढं वाउलीभूओ नावावणिओ, एत्थंतरे गयणट्ठियाए जंपियं देवीए - मेरे रे जइ दुवर्णितणय ! णयविरहिय हियकाम कामगद्दह दहणसारिन्छ रिंच्छोव तुच्छपेच्छय छयलगलथणसमाण माणवजणगरहणिज्जसील ! सीलमई धरिसिहसि एवं ता पाव! पावेसि इयाणिं विणासंति सोचा पंडुरपड पाउ- For Private and Personal Use Only समुद्रे शीलवत्याः शीलं. ॥ १०४ ॥ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAAAAAAAAAAA रणो कयपूयावित्थरो विणयपणओ करकलियधूवदहणो सो विनविउं समाढत्तो-देवि! ममेकं दोसं दासस्स व खमसु परिहरसु को न पुणो काहामीमं, पणए न परंमुहा देवा, ताहे भणियं देवीए-रे तुमं जइ सुहेण पालिहिसि नियजणणिनिविसेस एयं ता जीवसि हयास!, तेण तहत्ति सवं पडिवन्नं गाढभयवसट्टेण, उवसंहरियं देवीए डमरं अईसणं च गया। अह जाओ अणुकूलो पवणो, मग्गेण लग्गं जाणवत्तं, हरिसिया कन्नधाराइणो जणा, परि-2 तुट्टो सो वणिओ, पडिओ सहायरेण चलणेसु सीलमईए, खामिया निय दुचरियं, भणिया य सा-सुयणु! मा काहिसि सबहा सोगं, अचिरेण तहा काहामि जहा मिलसि नियपिययमस्स, काराविया य पाणवित्ति, समप्पिया निरुवद्दवनिवासनिमित्तमेका उरिगा, तओ पइदिणं मायरं व भयणिव देवयं व गुरुं व सामिव वत्थेण य भोयणेण य भेसहेण य तंबोलेण य संमं पडियरमाणो पत्तो परतीरं, विकिणियाई निययभंडाई पाविओ भूरिअत्थसंचओ निवत्तियासेसकजो वलिओ सनयराभिमुहं, अंतरे आगच्छंतस्स अणणुकूलपवणपणो लियं लग्गंजयवद्धणनयरपरिसरंमि बोहित्थं, तओ विमुक्का नंगरा पाडिओ सियवडो उत्तरिओ बहुकिंकरनरपरियरिओ सो वाणिओ, गओ विचित्ताई महरिहाई परतीरभवाई पाहुडाई गहाय नरविक्कमनराहिवस्स दंसणत्थं, पडिहारनिवेइओ य पविट्ठोरायभवणं, दिवो राया, समप्पियाई पाहुडाई, कओराइणा सम्माणो, तओ समुद्दलंघणवइयरनिवेयणेण परतीरनयररायसरूववत्ताकहणेण नियकयाणगगुणदोसपडणेण य ठिओ नरवइस्स समीवे पहरमेकं, एत्यंतरे पणमिऊण विनत्वं तेण-देव! सुन्नं पवहणं समागच्छइ डाई गहाय नरविक्कमनराहिलंधणयइयरनिवेयणेण परतारण देव ! सुन्नं पवहणं समाग For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ १०५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr रयणी ता अणुजाणह ममं गमणायत्ति, राइणावि पिययमाविओगविदुरेण एस चेव अज्ज दीहरनिसाए विणोयकारी हवउत्ति परिचिंतयंतेण भणिओ सो-भद्द! बीसत्थो इहेब चिट्ठसु, नियपहाणपुरिसेहिं रक्खावइस्सामि तुह जाणवत्तं, जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण पडिवन्नं तेण, विसज्जिया य राइणा नियपहाणपुरिसा पवहणरक्खणत्थं, एत्यंतरे उट्टिया दोषि कुमारा, विन्नत्तं च तेर्हि, जहा-ताय ! अदिट्ठपुवं अम्ह पवहणं, गाढं च कोउयं तदंसणे, ता अणुजाणउ ताओ जेण गच्छामोत्ति, तन्निच्छयमुवलब्भ अणुन्नाया य नरिंदेण, गया य अंगरक्खनरपरिक्खित्ता ते जाणवत्ते, तं च इओ तओ निरिक्खिऊण पत्ता तत्थेव । अह पच्छिमरयणिसमए पडिबुद्धा परोप्परं वत्ता काउमारद्धा, खणंतरेण लहुएण भाउणा पुट्ठो जेट्ठो भाया-अहो भाय ! कहसु किंपि अपुत्रं अक्खाणयं, इह ट्ठियाण न झिज्जर कहमवि विभावरी, जेठ्ठभाउणा भणियं-भद्द! किमन्त्रेण अक्खाणयसवणेण ?, एयं चिय अप्पणोतणयं अक्खाणयमपुत्रं निसुणेहि, तेण जंपिगं एयमवि साहेहि, तओ करकलियकुसुममाला जह जणणी रायमग्गमणुपत्ता । जह बलिया नो पुणरवि जह नयरे मंग्गिया बहुसो ॥१॥ जह ताओवि दुहत्तो म्हेहिं समं गओ नईकूले । जह परतीरनिरूपणकरण सलिलंमि ओगाढो ॥ २ ॥ जह सरियनीरपूरप्पवाहिओ दूरदेसमणुपत्तो । जह अम्हे गोउलिएण गोउलं पाविया विवसा ॥ ३ ॥ जह बुद्धिं संपत्ता रायउले जह गया तओ अम्हे । रायावलोयणत्थं जह विन्नाया य तारणं ॥ ४ ॥ For Private and Personal Use Only दे हिलव णिजो जयः न्त्यामाग मनं. ।। १०५ ।। Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org ASA** जह वा महलकोऊहलेण एत्थागया तहा सर्व । अक्वाणयमप्पणगं उवइह लहुगभाउस्स ॥५॥ SI. एयं च कहिजमाणमामूलाओ निसुणियं समग्गमवि समीवदेससंठियाए सीलमईए, तो अपुर्व अणाइक्खणिजं केवलमणुभवगम्मं नियसुयसाहियवइयरपरिन्नायसमुत्थहरिसपगरिसमुबहंती समुच्चरोमंचुच्चाइयकंचुया सुयसिणेहवसपगलंतथणमुहसुद्धदुद्धधारा एह चिरकालपत्तगा पुत्तगा! नियजणणिं गाढमालिंगहत्ति भणंती गया तेसिं पञ्चासन्नं, निवेइओ पुषवित्तंतो, विन्नाया जेट्टपुत्तेण, तओ गाई कंठमवलंबिय चिरविरहदुहावेगसूयगविसंठुलवयणगभं निन्भरं सपुत्तावि रोविउं पवत्ता, विनायपरमत्थेण मुहुत्तमेत्तं विलंबिय समासासिया कुमारपरियणेण, अह उग्गयमि दिणयरे परियणमज्झाओ एगेण पुरिसेण तुरियं गंतूण भणिओ नरविक्कमो-देव! तुम्ह दइया कुमारेहिं एयस्स चेव नावावाणियस्स जाणवत्ते पत्तत्ति, तओ हरिसभरनिभरहियएण सविम्हयं पुच्छिओ राइणा एसो-भद्द! को एस वुत्तत्तोत्ति?, तेणवि संजायभएण भणियं-देव! वियरसु मे अभयदाणेणप्पसायं जेण जहा वित्तं निवेएमि, पडिवन्नं नरिंदेण, तओ पढमाणुरागाओ आरब्भ जाणवत्तारोवणकंदणोवलोभणदेवयाभेसणप्पमुहो साहिओ नीसेसो है वुत्तंतो, एयमायन्निऊण य नरवइणा समग्गधणजाणवत्तसहिओ निविसओ आणत्तो सो वाणियगो, सीलमईवि देवी करेणुगाखंधगया धरियसियछत्ता चामरेहिं वीइजमाणी पए पए पडिच्छंती नयरजणकयं पूयासकारं ठाणे ठाणे वियरमाणा दीणाणाहाण कणगदाणं पवेसिया परमविभूईए निययमंदिरं, काराविओ पुरे अट्ठदिवसिओ महूसवो, अह SAKURA For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ १०६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हवियवेिलित्ताए नियंसियाम लमहग्घवत्थाए सुयजुयलपरिवुडाए पमोयभरनिग्भरंगीए सीलमईए पुरओ पुषणुभूयं कहं कहतेण तीसे य हरणपमुहं वित्तंत्तं निसुणमाणेण रण्णा मालागारस्स तस्स पाडलयनामधेयस्स सच्चरियमणुवयारं तहाविहं सुमरियं झत्ति, तो भूणिया सीलमई- पिए! पियाविहुन एरिसो होइ जारिसओ स महप्पा मालागारो सिणेहपरो, भणियं सीलमईए-सचमिणं नाह!, ता कुण पसायं सुसमिद्धिवियरणेणं महाणुभावस्स तस्स तुमं, फलमेयं चिय लच्छीए नाह! संझन्भरागचवलाए जं पूरिज्जंति मणोरहाओ उवयारिलोगस्स । इय सोचा से वयणं रण्णा संदणपुराउ सो सिग्धं । आणाविऊण ठविओ चोडयक्सिए महाराओ ॥ १ ॥ दिनो से भंडारो समपिया करितुरंगरहजोहा । किं बहुना ? अत्तसमो सोऽवि कओ तेण नरवणा ॥ २ ॥ अन्नदिवसे य भज्जासु यसमेओ नरविक्कमो महया रिद्धिसमुदएणं गओ उज्जाणे, दिट्ठो सूरी, सङ्घायरेण पणमिऊण पसाहिओ समीहियसंपत्तिवइयरो, गुरुणा भणियं-महाराय ! एरिसकल्लाणवल्लिनिबंधणाणि मुणिजणचरणसेवणाणि, राहणा चिंतियं - अहो अमोहं गुरुवयणं, अहो जिणधम्मस्स माहप्पं, सबहा धन्नोऽहं जस्स में एवंविहेण मुणिणाहेण समं संगमो जाओ, एवं च चिंतयंतेण रन्ना उवज्जियं सुगरकप्पतरुस्स सम्मत्तस्स बीयंति, गुरुणा भणियंमहाराय ! पडिवज्जसु निच्छइयं संपइ जिणधम्मं, राइणा भणियं भयवं ! दृढमप्पमत्तुत्तमसत्तजण जोग्गो जिणधम्मो, कहमम्हारिसजणा सकंति अणुपालिउं ?, गुरुणा नायं-अजवि निहुरो मोहगंठी दढनिबंधणा मिच्छत्तवासणा For Private and Personal Use Only प्रियासमा गमः यथा भद्रकता च ॥ १०६ ॥ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तिवाणुबंधो विसयपडिबंधो सवणमेत्ता विसेसधम्मवत्ता, तम्हा जहाभद्दगत्तमेव एयस्स इण्हिमुचियंति चिंतिऊण वृत्तो सो-महाराय ! जइ एवं ता पज्जुवासेज सुसाहुणो पसंसेज्जसु जिणधम्मं अणुमोएजसु तप्पडिवन्ने भवजणे, एत्तियमेत्तेणवि होही दढकम्मविगमो, एवंति पडिवजिऊण गओ राया सद्वाणंमि । निप्पञ्चवायमउले भोगे भुंजेति पंचरूवेवि । सवत्थ जायकित्ती नरविकमनरवई ताहे ॥ १ ॥ सूरी धम्ममग्गे आरोविय भूरि भवपाणिगणे । सीसगणसंपरिवुडो नयराउ विहरिओ वाहिं ॥ २ ॥ पsिबोतो सूरो भवकमलाई वयणकिरणेहिं । कालक्कमेण पत्तो जयंतिनयरिं विहारेण ॥ ३ ॥ उग्गह मणुजाणाविय नयरीए वाहिं चंपगुज्जाणे । सद्धम्म कम्मउज्जुयजइजणसहिओ ठिओ भयवं ॥ ४ ॥ जाया पुरे पसिद्धी सिद्धंतविसारओ जहा सूरी । इह आगउत्ति ताहे वंदणवडियाए नयरिजणो ॥ ५ ॥ अंतेउरेण सहिओ हरिकरिरहजोहवूह परिकिण्णो । नरसिंहभूमिनाहोवि आगओ सूरिपासंमि ॥ ६ ॥ सायरमह विणमंतुतिमंगमणिमउडलीढपयपीढं । पणमिय मुणिजणसहियं गुरुमुवविट्ठो धरणिवट्ठे ॥ ७॥ संसारासारयागभा, तओ सद्धम्मदेसणा । गुरुणा काउमाढत्ता, मोहविद्धंसकारिणी ॥ ८ ॥ जहा - वलयासिंधुनिम्मग्गवडवी व दुलहं । को माणुसत्तं संपप्प, पमाएज विकखणो १ ॥ ९ ॥ खणोऽवि नाउकम्मस्स, जाइ जेणाविणस्सरो । तेणेस मुच्छिओ लोओ, निरुविग्गो कहं भवे ? ॥ १० ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ १०७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भवेज कोऽवि किं धीमं, निद्दाकरणलालसो । मंदिरे हबवाहुग्गजाला मालापलीविए ? ॥ ११ ॥ विसे सुगम्मेवि, सप्पा हेओ पयट्टइ । दुग्गेऽणंते भवट्ठाणे, जे न किंपि समीहए ॥ १२ ॥ ए से नियबुद्धी, ठाणे ठाणे विसीयइ । अन्ने सोक्खे न पावेइ, सिद्धिसद्धम्मसंवले ॥ १३ ॥ बलेण तेण किं कजं ?, किं वा तेण धणेणवि ? । न जं सद्धम्ममग्गस्स, उबयारे निजुज्जइ ? ॥ १४ ॥ जज्ज सहा धम्मे, पमायपरिहारओ । जीवघायनिवित्तिंमि, पवित्तिंमि सुहेसु य ॥ १५ ॥ सुयाइमोहसंबद्धा, पावं कुवंति पाणिणो । तेण पावेण संतत्ता, निवडंति अहो गई ॥ १६ ॥ गईंदा इव बज्झंति, जोणिलक्खेसु णेगसो । किं किं दुक्खं न पेक्खंति, ते तिक्खमवियक्खणा ? ॥ १७ ॥ तम्हा एवं नाउं जइधम्मं सबहा समायरह । एसो खु तिवदुहजलणसमणघणवरिसणसमो जं ॥ १८ ॥ सग्गापवग्गमंदिररोहण निस्सेणिदंडसारिच्छो । कम्मुब्भडविडविविहाडणेक्कधारुक्कडकुहाडो ॥ १९ ॥ अचिरेण दिन्न निस्सेससारनिस्सेयसो सुहत्थीहिं । अणुसरियो सम्मं सुसत्तिजुत्तेहिं सत्तेहिं ॥ २० ॥ रन्ना भणियं भयवं ! जं तुब्भे वयह तं पवज्जामि । जाव नियरज्जभारपणेण सुत्थं करेमि जणं ॥ २१ ॥ गुरुणा भणियं जुतं एवं तुम्हं भवेकभीयाणं । निञ्चिग्गं कुणह लहुं चयह पमायं पयत्तेण ॥ २२ ॥ अह गुरुं पणमिऊण गओ राया सभवणं कयमणंतरकरणिज्जं आहूया मंतिणो कहिओ निययाभिप्पाओ अवगओ For Private and Personal Use Only बरेरागमनं देशना च. ॥ १०७ ॥ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SARSWASASARALEX मंतीहि, एत्यंतरे समागया कुमारचारोवलंभनिमित्तं पुवपेसिया गूढपुरिसा, पणमिओ तेहिं राया, निवेइओ नयरनिग्गमाओ आरब्भ जयवद्धणपुररजलाभपजंतो सबो कुमारवुत्तंतो, तुट्टो राया, दिन्नं च चिंतियाइरित्तं तेर्सि वित्तं, पेसिया य कुमाराणयणनिमित्तं वुद्धिसागरपमुहा मंतिणो, अणवरयप्पयाणएहिं पत्ता य ते जयवद्धणपुरं, नरविक्कमोवि नाऊण तेसिमागमणं सपरियणो निग्गओ अभिमुहो, पवेसिया वड्डविच्छड्डेणं, कया जणगनिविसेसा पडिवत्ती, पुट्ठा य उचियसमए आगमणप्पओजणं, निवेइयं तेहिं जहा-पव्वजापडिवजणाभिलासो राया, तुमंमि नियरजभरारोवणमणोरहो य देवस्स, अओ तुम्हाणयणनिमित्तं पेसियम्हि, इमं सोचा तक्खणमेव तत्थ रजे जेटपुत्तं ठविऊण समग्गनियखंधावारसमेओ चलिओ नरविक्कमो समं मंतीहि, कालक्कमेण पत्तो जयंतिनयरिपरिसरं, विनायतदागमणो दूरं संमुहमागओ नरसिंहनरवई समं चंपगमालाए देवीए, तो दूराओ चेव नरविक्कमो जणगमागच्छंतं पेच्छिऊण हरिसुप्फुल्ललोयणो उयरिऊण करिवराओ मंतिजणसमेओ गंतूण निवडिओ चलणेसु जणयस्स जणणीए य, तेहिवि चिरदसणुप्पन्नाणंदसंदिरच्छेहि गाढमालिंगिऊण निवेसिओ नियउच्छंगे, पुट्ठो यसरीरारोग्गय, खणंतरे य पविट्ठाई नियमंदिरं, पत्थावे पुठ्ठो नरवइणा नरविक्कमो पुरीगमणकालाओ आरम्भ पुब्बवइयर, साहिओ नरविक्कमेण समत्थोऽवि, एवं च चिरकालदसणसमुन्भवसुहसंदोहमणुहवंताण गया कइवि वासरा, अन्नदियहे य भणिओ राइणा नरविकमो-पुत्त! पुन्वपुरिस पवित्तियवत्तिणीपरिपालणेण उस्सिंखलजणताडणेण य एत्तियं कालं जाव मए पालियं रज, इयाणि पुण CACICCCCCCCCIAL For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच ४ प्रस्ताव: ॥१०८॥ MESSIA-NCREGAON ममाहितो सरीरबलेण य पुनपगारसेण य विक्कमेण य समत्थो तुमं ता अंगीकरेसु रजमहाभरं, परिवालेसु पुचप- नरसिंहवाहेण जणवयं, अहं पुण पुवपुरिसायरियं धम्ममग्गं अणुचरिस्सामि, कुमारेण भणियं-ताय! विरमह इमाओ विराग्यं नरअज्झवसायाओ, तुम्ह दंसणुस्सुओ चिरकालेण अहमिहमागओ, नवि य अजवि एस पत्थावो पत्थुयवत्थुस्स, निव विक्रमा | भिषेका सह ताव सगेहे चिय कइवय परिसाई, राइणा भणियं-वच्छ ! किं न पेच्छसि जायविमलपलियसंगमुत्तिमंगं ?, न वा निरूवेसि विसंतुलसयलढिं सरीरलटिं, न निरिक्खसि थेवपयासेवि चलंतिं दंतपंतिं ?, न विभावेसि वत्थुविलोयणाबलियं लोयणजुयलं?, न कलयसि वलिपडलसंतयं सरीरत्तयं ?, न वा मुणसि समत्थकजासाहणजायसंदेहं 2 | देहं १, एवं च पच्छिमदिसावलंवि बिंब व रविणो रयणीविराममलिणं मंडलं व ससिणो गाढजरत्तणपत्तं पत्तं व तरुणो जायसूरत्थमणसंभावणं वणं व कमलाण पन्भट्टलठ्ठपुव्वसोहं अप्पाणप्पाणमवलोइऊण कहं खणमवि गेहे वसामि ?, ता मुयसु पडिबंधं पडिवजसु मम वयणं भवसु धम्मसहाओ, तओ तायनिच्छयमुवलब्भ नरविक्कमो अणणुभूयपुव्वदुक्खक्तो वजताडिओ इव लेप्पघडिओ इव पत्थरकीरिओ इव चित्तलिहिओ इव खणं ठाऊण वाढंरोविउं पवत्तो, समासासिओ य रन्ना कोमलवयणेहिं, पडिवन्नो य तेण महाकटेण रजाभिसेओ, समागए य पसत्यवासरे सब्बसामग्गीए मंतिसामंतमित्तयप्पमुहमहाजणसमक्खं निवेसिओ नरविक्कमो निययसीहासणंमि, कओ अट्ठोत्तरकलससएणं महाविभूईए रायाभिसेओ, पणमिओ य रन्ना मंडलाहिवपुरपहाणलोयपरियरिएण, भणिओ य सम्बायरेण AALAAAAAAACAREERICA For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RURE-REGUSAROSARORSCOM वच्छ ! जइवि नयविणयसच्चाइगुणगणमणिमहोयही तुमं तहवि किंपि भणेजसि, एसा हि रायलच्छी अपडमंधत्तणं अमजपाणं मयजणणं सूरससहरकरप्पसरासज्झमंधयारं, ता तहाकहपि वद्विजासि जहा न मइलिजइ ससहरधवलं नियकुलं, जहा न खंडिजइ दूरप्परूढो पयावपायवो, जहा न पमिलायइ नीइकमलिणी, जहा न उम्सिखली-14 हवंति खला, जहा न विरचंति पयइणो, जहा करभरेहिं न पीडिजइ जणवउत्ति, एवं च वट्टमाणस्स पुत्त ! इहलोए इच्छिया होहिंति सयलवंछियत्थसिद्धीओ, किमंग पुण परलोएत्ति ?, एवं सिक्खविऊण नरसिंघनरवई पढिओ समंतभहसूरिसमीवंमि, तओ पउणाविया नरविक्कमनरवइणा सहस्सवाहिणी सिविगा से निक्खमणनिमित्तं, कयमजणोवयारो सवालंकारविभूसिओ समारूढो तत्थ नरसिंहनरवई, उक्खित्ता पवराभरणविभूसियसरीरेहिं सुइनेवत्थेहि पवरपुरिसेहिं सिविगा, तओ दिजंतेहिं महादाणेहिं वजंतेहिं चउबिहाउजेहिं पढ़तेहिं मागहसत्येहिं गायंतेहिं गायणेहिं मंगलमुहरमुहीहि नयरनारीहिं पणचिराहिं वारविलियाहिं महाविभूईए निग्गओ नयरीओ, पतो सूरिसगासं, ओयरिऊण सिविगाओ तिपयाहिणपुब्वं पडिओ गुरुचलणेसुभालयलघडियकरसंपुडेण भणिओ गुरू तओ रण्णा । भयवं! तायसु इण्हि जिणिददिक्खापयाणेण ॥१॥ पडिवनंमि य गुरुणा पुन्बुत्तरदिसिसमुज्झियाहरणो । एगनियंसियवत्यो पसंतवहृतसुहलेसो ॥२॥ सिद्धंतभणियजुत्तीऍ तत्थ सूरीहिं गाहिओ सम्मं । पवजं निरवजं कम्ममहासेलवज्जसमं ॥३॥ PRACCसर १९ महा. For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥ १०९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir या ! सा संसारसिंधुनावव । तुमए गहिया दिक्खा ता सम्मं उज्जमिज्जासु ॥ ४ ॥ मा काहिस खणमेकंप पावमित्तेहिं दुहनिमित्तेहिं । संसगिंग दुक्खेहिं विसयकसाएहिं सह भद्द ! ॥ ५ ॥ एवं चंकमियवं भोत्तत्वं एवमेव सइयवं । एवं भासेयवं इच्चाइ निवेइयं गुरुणा ॥ ६ ॥ संमं संपडिवज्जिय छट्ठट्ठमखमण करणखीगंगो । अप्पडिबद्धविहारं विहरिय गामागराई ॥ ७ ॥ अहिगयजइधम्मविही विहियाणुट्ठाणनिश्चतलिच्छो । लच्छिव संजमं रक्खिऊण निम्महियकम्मंसो ॥ ८ ॥ सो मोक्खयं पत्तो नरविकमनरवईवि तस्स सुओ । उवभुंजिय रज्जदुगं निययपए ठविय पुत्तं च ॥ ९ ॥ पावियसम्मत्तगुणो पज्जंते पालिऊण पवज्जं । कयदुक्करतवचरणो महिंदकप्पे सुरो जाओ ॥ १० ॥ इय नंदण ! नरपुंगव ! चरियं एएसि पुरिससीहाण । तुज्झ मए परिकहियं जं तुमए पुच्छि आसि ॥ ११ ॥ सोऊण इमं तुममवि नरिंद ! धम्मे तद्दुज्जमं कुणसु । जह उत्तिमपुरिसाणं अचिरेण निदंसणं होसि ॥ १२ ॥ इमं च सोचा राया जायपव्वज्जापरिणामो गुरुं विन्नविडं पवत्तो भयवं ! तुमं महातावतवियस्स व अमयधारावरिसो छुद्दाभिभूयस्स व सुन्नखज्जगावणो दोगञ्चचककंतस्स व चिंतामणी दुरालोयंधयारगिरिगुहागयस्स व पयासदीवो नीरनिहिनिहित्तस्स व समासासदीवो वियडाडवीपडियस्स व पसत्यसत्थनाहो मह कहकहवि चक्खुगोयरं गओ, ता इयाणिं परमपहु ! करुणाकुलभवण ! एयं पवाहओ अणाइयं अणवदग्गं अपरिच्छेयमिच्छाजलुप्पीलपडि For Private and Personal Use Only श्रीसमन्त भद्रशिक्षा. ॥ १०९ ॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हत्थं मोहमहावत्तदुत्तरिलं निरंतरुग्भवंतजम्मणमरणकलोलमालाउलं कसायकलुसपंकसंकुलं वियरंतविविहायंकनकचक्काउलं वियारगो अरुत्तिष्णऽण्णाणतिमिरभरविलं पयइदुग्गेज्झमज्झं पयइभीसणं पयइविवागदारुणं पयइनिग्गुणं पयइकिलेसायासाइदुक्ख संखोहकारणं रणं व कायराणं सव्वहा चिंतिज्ज माणमवि परमेरोमुद्धोसजणगं भवसमुहं निरवज्जपव्वज्जाजाणवत्तेण सुवद्वेण नाणदंसणविहिसंछाइयछिडेणं संवरवजलेवेणं संममाविद्धेण तवपवणज - वेणं अणुलग्गेणं वेरग्गमग्गंमि अक्खोभेण विसुत्तियावीईहिं पडिपुण्णेण अणेगसी लंगरयणसहस्सेहिं तुम्हेहिं कन्न - धारेहिं झन्ति समुत्तरिउं समीहामित्ति, सूरिणा भणियं महाराय ! मा पडिबंधं करेंहि, तओ नंदणनरिंदो पुत्तारोवियरज्जभारो वाहिं व मोत्तूण रायलच्छि विहगोन्त्र पंजराओ घरवासाओ निक्खंतो, जाओ य तिगुत्तिगुत्तो पंचसमिइजुत्तो जियपरीसहो निहवपंचिंदियपसरो समणो समियपावोति । तओ कमेण अहिगयएकारसंगो कडाणं कम्माणं पुव्विं दुष्पडिकंताणं खवणत्थं मासंमासेण अणिक्खित्तेणं कायरदुरणुचरेणं घोरेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं सोर्सिंतो अप्पविद्धविहारेणं विहरइ । तित्थयरत्तलाभवीयभूयाई वीसह ठाणाई सम्मं फासेइ य, कहाँ ? सव्वजगजीवबंधुरबंधवभूए जिणे जियकसाए । सिवपंथसत्यवाहे तत्थाहिं गिराहिं थुणमाणो ॥ १ ॥ वयगयजरमरणभए सिघमयलमणतमक्खयं पत्ते । परमेसरे य सिद्धे समिद्धसोक्खे नमसंतो ॥ २॥ सन्नाणचरणदंसणमहा भरुद्धरणपञ्चलसहावं । चाउधन्नं संघ एवं सरणंति मन्नतो ॥ ३ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री गुणचंद, महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥ ११० ॥ www.kobatirth.org 1 करुणोहिणी गुरुणो पंचविहायारधरणधीरस्स । अणुवक जगाणुग्गहभावं सम्मं पसंसंतो ॥ ४ ॥ सद्धम्मसिढिलचित्ते सत्ते धम्मे थिरीकरेमाणे । परियायपमुहथेरे उवबूतो य भयवंते ॥ ५ ॥ ससमयपरसमयपरूढगाढसंसय सहस्स निम्महणे । सुस्सूसंतो निचं बहुस्सुए साहुणो पवरे ॥ ६ ॥ मासदुमासतिमा साइविविहतवकम्मकरणपडिबद्धे । विस्सामणाइणा तह तवस्सिणो पडिचरेमाणो ॥ ७ ॥ अंगाणंगसरूवे सुर्यमि सव्वन्नु निच्छियत्थंमि । अणवरयं गयचित्तो तयत्थपरिभावणुज्जुत्तो ॥ ८ ॥ तत्थसहाण पहाणसम्मत्तपवरवत्थुमि । संकाइदोसजालं परिहरमाणो पयत्तेण ॥ ९ ॥ नाणाईणं उवयारमुहविणयंमि बहुविगप्पंमि । अइयारपरंपरयं वज्रंतो निउणबुद्धीए ॥ १० ॥ पडिलेहणापमज्जणपमुहावस्तयविधीसु विविधासु । सद्धम्मबद्धलक्खो खलियं निचंपि रक्तो ॥ ११ ॥ सीले पिंडुग्गमपभिइदोसविरहा वसु पंचसुवि । पाणवहाईएसु य विसोहयंतो य मालिन्नं ॥ १२ ॥ पइसमयं संवेगाइ भावणाजालभावणुज्जुत्तो । ससरीरेऽविद्दु निचं ममत्तबुद्धिं अकुणमाणो ॥ १३ ॥ वज्झभंतररूवं बारसभेयंपि घोरतवकम्मं । अनिगूहियनियसत्ती आयरमाणो य पइदिवसं ॥ १४ ॥ धम्मोवगारिसाहूण वत्थकंवलपमोक्खमुवगरणं । देतो कोहाईणं निचं चायं कुतो य ॥ १५ ॥ आयरिओज्झायतवस्सिथेरसाहम्मियाण सेहाणं । कुलगणगिलाण संघे वेयावचंमि वर्द्धतो ॥ १६ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विंशतिस्थानकाराधनं. ॥ ११० ॥ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एएसिपि तहाविहआवयवसजायदुत्थचित्ताणं । ओसहदाणाईहिं समाहिभावं च जणमाणो ॥ १७ ॥ अक्खरपयगाहसिलोगमेत्तयं सत्वया अपुव्वसुयं । अहिगयसुत्तत्थोऽविहु सुयाणुरागेण पढमाणो ॥ १८ ॥ भत्तिं तह बहुमाणं तद्दिद्वत्थाण सम्मभावणयं । विहिगहणं चिय निचं सुयस्त सम्मं पयासितो ॥ १९॥ भवाण धम्मकहणेण पइदिणं पश्यणुनइं परमं । सियवायसाहणेण य कुणमाणो सुद्धचित्तेणं ॥२०॥ सो नंदणमुणिवसहो इय वीसइठाणगाई फासित्ता । तित्थयरनामगोतं कम्मं बंधेइ परमप्पा ॥ २१ ॥ अह पमायपरिहारपरायणो एगं वाससयसहस्सं समणपरियागं पाउणित्ता पजंतसमए य सम्ममालोइयनियदुचरियवग्गो समुच्चारियपंचमहत्वओ खामियसबसत्तसंताणो मासियसलेहणासंलिहियसरीरो पंचनमोकारपरायणो मरिऊण समाहीए समुप्पन्नो पाणयकप्पे पुप्फुत्तरवडिंसए विमाणे देवोत्ति ॥ ताहे सो सरभसमाविरेण नियपरियणेण परियरिओ। विलसइ तत्थ विमाणे अयराई वीसइं जाव ॥१॥ आउयकम्मविगमे य तत्तो चविऊण इहेव जंबुद्दीवेदीवे भारहे खेत्ते माहणकुंडग्गामे सन्निवेसे सयलवेयविजावियक्खणस्स उसमदत्तस्स माहणस्स देवाणंदाए भारियाए गन्भे सो नंदणदेवजीवो मिरियभवकयकुलप्पसंसणदोससमुवजि| यनीयगोयकम्मसामत्येणं आसाढसुद्धछट्ठीए हत्थुत्तरे नक्खत्ते पाउन्भूओ पुत्तत्तणेणंति, दिवा य तीए रयणीए सुहपसुत्ताए गयवसहाइणो चउद्दस महासुमिणा, तओ अदिट्ठपुवतहाविहसुविणोवलंभजायहरिसा गया उसहदत्तस्स ACCRICANSAROCCCCCCASEOCOCAL For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ १११ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माहणस्स सगासे, सिट्टा चउद्दसवि सुमिणा, उसहदत्तेणवि ते सम्ममणुचिंतिऊण भणियंतुझ पिए! घणलाभो पंचविहविसि भोगलाभो य । होही नीरोगतं नृणं एयाणुभावेण ॥ १ ॥ रिउजउसामाधव्वणचउवेयवियक्खणं जणपसिद्धं । जणिहिसि पुत्तं च तुमं समहिगनत्रमासपजंते ॥ २ ॥ इय सा निसामिणं पट्टिचित्ता विमुक्ककुविगप्पा । निययावासमुवगया सम्मं गन्धं समुव्वहइ ॥ ३॥ जद्दिवसं चिय चिंतामणिव्ध गन्भे जिणो समोइन्नो । करितुरगरयणनिवहो तद्दिवसं चिय न माइ गिहे ॥ ४ ॥ अणवरयहोमकरणुच्छलंतधूमोलिसामलं गयणं । उन्नयमेहासंकं कुणइ अकालेऽवि हंसाणं ॥ ५ ॥ अह भयवओ गभगयस्स विइकंतेसु वायासीदिवसेसु बहूंतेय तियासीतमदिणंमि सोहम्मकप्पवासी देविंदो सोहम्माए सभाए निसन्नो बत्तीसाए विमाणसयसहस्साणं चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं तायत्तीसाए तायत्तीसाणं चउन्हं लोगपालाणं अडुण्डं अग्गमहिसीणं तिन्हं परिमाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाहिवईणं चउन्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अन्नेसिंपि देवाणं देवीण य सामित्तमणुपालेमाणो इमं च जंबुद्दीवं दीर्घ बिउलेणं अक्सलियपसरेण ओहिनाणेण करकमलनिलीणमुत्ताहलं व अवलोएमाणो भयवंतं चरिमतित्थयरं माहणपण इणी कुच्छीगयं पेच्छइ, तओ आणंदवियसियनयणकमलो हरिसबसस गुच्छलियरोमंचचियसरीरो संभमसद्वाणचलियकडगतुडियकेऊरकिरीडकुंडलाइभूसणो तक्खणविमुकसीहासणो पायपीढाओ पञ्च्चोरुहर, वेरुलियवरिद्वरिद्वरत्तरयणखंड मंडियाओ For Private and Personal Use Only देवानन्दा स्वप्नाः ॥ १११ ॥ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क पाउयाओ विमुंचइ, एगमाडियं उत्तरासंगं करेइ. निडालतड घडियकरसंपुडो सत्तट्ठ पयाई तित्थयराभिमुहं अणुगच्छइ, तओ वामजाणुं अंचित्ता दाहिणजाणुं धरणियले निहट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणियले निवाडेइ, नहा मत्थए अंजलिं| काऊण मुचिरं पगए भत्तीए संथुणइ. कहं ?.... तुम्ह नमो जिण ! निहयारिवग्ग ! भयवंत णाह! आइगर ! तित्थयर सयं चिय जायबोध! पुरिसोत्तम! पसिद्ध !॥१॥ भवभीममहाड विपडियपाणिगणसत्थवाह गयवाह । सिव मयलमणंतसुहं संपावियकाम गयकाम! ॥२॥ परमेसर तत्थ गओवि ताय अक्खलियनाणनयणेण । एत्थ गर्यपिहु पणयं मं पेच्छसु किंकरसरिच्छं ॥३॥ एवं च थुणिऊण पुवाभिमुहसीहासणनिसन्नस्स देविंदस्स एवंरूवो संकप्पो समुप्पन्नो-अहो तित्थयरा भयवंतो न | कयाइ तुच्छकुलेसु दरिद्दकुलेसु किवणकुलेसु भिक्खागकुलेसु उप्पजिंसु वा उप्पजंति वा उप्पजिस्संति वा, किं तु उग्गभोगराइन्नखत्तियइक्खागहरिवंसाइएसुसयलभुवणसलाहणिजेसु, केवलं कहवि कम्मवसेण हीणकुलेसु अवयरियाविय भयवंतो अजोणीनिक्खंता चेव सक्केहि उत्तमकुलेसु संहरिजंति, जओ तीयपचुप्पन्नाणागयाणं सुरिंदाणं जीयमेयं, एवं च जुत्तं ममावि इमं चरिमतित्थयरं इमाउ माहणकुलाओ कासवगोत्तस्स सिद्धत्थनारदस्स वसिट्ठगोत्ताए तिसलाए कुच्छिसि संकामिउँ, तिसलागर्भपि देवाणंदाए कुच्छिसित्ति, एवं संहिता पायताणीयाहिवई हरिणगर्सि तिसलाकुच्छिसि गम्भोवसंहरणत्थं निरूवेई, सो य हरिणेगमेसी सक्काएसेणं उत्तरवेउधियरूवधरो मणपवणजइणीए For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तुतिः गर्भपरावत्तेः श्रीगुणचंद दिगईए संपत्तो देवाणंदाए माहणीए समीयं, ओसोयणीदाणपुत्वगं च तीसे अवहरइ भयवं गभाओ, माहणीवि महावीरच० तक्खणं चिय वयणकमलेण ते चउद्दसवि महासुमिणे पडिनियत्तमाणे पेच्छिऊण ववगयनिद्दा निद्दयताडियउरपंजरा ४ प्रस्ताव जरावेगविहुरियव नित्थामसरीरा अवहरिओ मम गम्भोत्ति सुचिरं अप्पाणं निंदंती करयलनिवेसियकवोला परमसो॥११२॥ गसंभारं काउमारद्धा॥ हा इओ य इहेव जंबुद्दीवे भारहवासतिलयभूयं समुत्तुंगपायारपडिहयविपक्षपक्खुक्खेवं विचित्तपासायसहस्ससिहर रुद्धदिसावगासं खचियकुंडग्गामं नाम नगरं, तत्थ य कसिणत्तणं कलयंठिकंठेसु सवावहारलोवो सद्दसत्थेसु कंटगुप्पत्ती कमलनालेसुं कुडिलत्तं कोदंडदंडेसु निहुरत्तं तरुणीपओहरेसु मित्तविरोहो रयणियरस्स बंधो य सारणिसलिलेसु । जहिं च पढमाभासी पियंवओ करुणापरो वेसमणोध अगवरयदागरसिओ महातरुव्व सउणजणकयपक्खवाओ पारद्धिलुद्धन्य कयसारमेयसंगहो गेवेज्जयसुरजणोध अणिंदो सारयसलिलंब अकलुसो निवसइ लोओ। जत्य य चउद्दिसिपि अणवरयवहंतऽरहदृघडिमुहमुक्कसलिलसिबमाणाई सबोउयफुलफलमणहराई जंबूजंबीरखजूरतालतमालपमुहतरुसंडमंडियाई परिभूयनंदणवणाई सोहंति काणणाई, जं च संकेयठाणं व तिहुयणलच्छीर समुप्पत्तिभूमिव विविहच्छेरयाणं लीलाभवणं व सिंगारस्स आवासोच धम्मस्त मुहमंडणं व वसुंधरारमणीए । तत्य य पुरंदरोध छिन्नभूधरपक्खो मुणिय समरसोवओगो सुरवारणोध दाणसित्तकरो जलनिहिब समजायागुवाती अग्रेगनरिंदम उ SCORRECASEASCACAN REACAAAAAAAAAAS ॥११२॥ For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह दिवद्धणो नाम पुत्तो पडदुरपडपच्छाइयंमि गंगाओ हरिणेगमेसि लिमालानमंसियकमकमलो भुवणपसिद्धो सिद्धत्यो नाम नरिंदो । हरिपीलुपरिक्खित्तं भमंतविविहगमहिसिपरिकलियं । सुन्नपि वसंतंपिय नजइ जस्सारिजगभवणं ॥ १ ॥ एगेसु पलाणेसुं जयतूररवेण सत्तुसु परेसुं । पणमंतेसुं जेणं समरसुई नेव संपत्तं ॥२॥ तस्स य वम्महस्स व रई महुमहणस्सेव लच्छी सव्वंतेउरपहाणा रूवाइगुणगणाभिरामा तिसला नाम देवी, जहत्थाभिहाणो य नंदिवद्धणो नाम पुत्तो सुदंसणा य धूया, अह आसोयबहुलेतरसीए अद्धरत्तसमए हत्थुत्तरनक्खत्ते सुकुमालहसतूलीपडलसुंदरंमि दहिपिंडपंडुरपडपच्छाइयंमि गंगापुलिणविसाले सयणिजे सुहपसुत्ताए, तिसलादेवीए पुन्वगभं देवाणंदाकुच्छिमि संकामिऊण दिवसत्तीए सो पुवमणिओ हरिणेगमेसिदेवो असुभपोग्गलाव णयणपुग्वयं जिणं कुच्छीए मोत्तूण पणमिऊण य जहागयं पडिगओ, गम्भाणुभावेण य सा तिसलादेवी पच्छिमरयदणीसमयंमि चउद्दस सुमिणाणि पासइ, कहं चिय करडतडगलियमयसलिलगंधुदुरं, गुलुगुलंतं सुदंत महासिंधुरं। वसहमुल्लासिसुइलंबपुच्छच्छडं, चारुसिंगं सुतुंगं रवेणुभडं ॥१॥ घुसिणरसरागकेसरसडाडंबरं, केसरि कंठरवभरियगयणंतरं। कुंभिकरकलियकलसेहि कयमजणं, लच्छिमुद्दामकामस्थिथुक्सासणं ॥२॥ AASARAN For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥ ११३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालईमलियाकमलरेहंतयं, मालममिलाणमलिवलयलीढंतयं । किरणजाल सुतं सर्ति सुंदरं, नियतमपसरमइरुग्गयं दिणयरं ॥ ३ ॥ कॉलहडंडग्गलोलंत सियधयवडं, पुग्नकलसं च सुहकमलगंधु-भडं । कुमुयकल्हाररम्मं महतं सरं, बहुलकल्लोलमालाउरं सायरं ॥ ४ ॥ विषिमणियमसाल विमाणं वरं, कंतिकब्बुरियगयणं च रयणुकरं । घूमरहिये तहा हुयवहं सुमिणए, देवि वयणमि पविसंतयं पेच्छए ॥ ५ ॥ पेच्छिऊण य इमे सुमिणे हरिसुद्धसियरोमकूवा परमाणंदमुवहंती गया सिद्धत्थपत्थिवसमी, कहिओ चउदसमहासुमिणोवलंभवइयरो, तेणावि नियमइविभवाणुसारेण समं चिंतिऊण भणिय-सुंदरि ! सयलनरिंदसंदोह बंदणिजो निरुवकम विकमकं सत्चको निप्पडिमपयावपरिभूयरविमंडलो निरुवमसत्तो पत्तो ते भविस्सइ, सायरं पडिच्छिऊन य इमं अणाइक्खणिजभूरिहरिसप भारमंथर गई गया नियभवणं, तहिं च देवगुरुसंबद्धाहिं मंगलाहिं असिवोवघायदक्खाहिं सुहावहाहिं कहाहिं रयणिसेसमइवाहिउं पउत्तत्ति, राइणावि जाए पभायसमए समाहूया अटुंगनिमित्तसत्थपरमत्यवियवखणा नेमित्तिगा, आसणदाणपुषयं सकारिऊण पवरवत्थाइणा निवेइओ देवीदिट्ठच उद्दसमुमिणवृत्तंतो, तओ ते सम्मं निच्छिऊण परोप्परं जहावद्वियमत्थं भणिउमारद्धा-देव ! एयारिससुमिणाणुभावेण नृणमुप्पजिही For Private and Personal Use Only त्रिशलास्वमाः. ॥ ११३ ॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr धम्मवरचकवट्टी तिहुयणपूयणिजपायवीडो नियकुलनहयलमियंको अणुवमचरिओ तित्थयरो तुम्ह पुत्तोत्ति, एवमायनिऊण परमहरिसमुधहंतेण राइणा दवावियं तेसिं आसत्तपुरिससंतइदालिद्दविवकरं मणोरहपहाइकंतं दबिणजायं, विसज्जिया य नियनियठाणेसु, निवेइओ य एस वइयरो देवीए, जाओ य परमो पमोओ तीसे । एवं च पइदिणपुजंतमणोरहाए जिणाणुभावेण दूरपलीणरोगाए सुररमणीसरिच्छवद्वंतविलासाए बहिउमारद्धो गन्भो, तयणुभावेण य एवं सा सोहिउं पउत्ता अंतरनिहित्तवररयण संचया फलिहमयधरित्तिव । संकंतफारदिणनाहमंडला मेरुभित्तिव ॥ १ ॥ अंत द्वियमुत्ताहलरेहंतुद्दा मजल हिवेलव । पढमुग्गमंतस सहरपसाहिया गयणलच्छि ॥ २ ॥ अंतोविफुरणसमुल्लसंत सोयामणी निवहकिन्ना । उम्भडघणंत घणपडलपुन्ननवपाउससिरिव ॥ ३ ॥ इय गव्भगय जिनिंदाणुभावसोहंत कंतसबंगा । नवकप्पहुमलइयव मणहरा रेहए देवी ॥ ४ ॥ विसं च भवं भुवण महासरेकरायहंसो तिसलादेवीए उदरकमलमइगओ तद्दिवसाओवि सुरवइवयणेण तिरियजंगंगा देवा विविहाई महानिहाणाई सिद्धत्थनरिंद भुवणंमि भुजो भुज्जो परिक्खिवंति, तंपि नायकुलं घणेणं धन्नेणं रज्जेणं रहेणं बलेणं वाहणेणं कोट्टागारेणं पीइसकारेणं वाढमभिवइ, सिद्धत्थनराहिवस्सवि अचंतबाहुबलदप्पिणो तहाविह| विसमपएस संठिया अपणयपुत्रावि वसमुवगया पञ्चंत द्वियावि नराहिया । अन्नवासरे भगवओ अम्मापिऊणं एया For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CRI श्रीगुणचंदरूवो वियप्पो समुप्पण्णो, जहा-जप्पभिई एस गम्भो संभूओ तप्पभिई धणकणगाइरजविभवेणं अम्हे वडामो, ताते गर्भनिश्चमहावीरच. जइया एस जाओ भविस्सइ तइया एयस्स इमं गुणनिप्फण्णं बद्धमाणोत्ति नामधेयं वयं करिस्सामोत्ति, एवंरूवाई लता. ४ प्रस्ताव: मणोरहसयाई परिकप्पयंति ॥ ॥११४॥ अह भगवं भुवणपहू नाणत्तयपरिगओ महाभागो। करुणापरेकचित्तो ससुहविरत्तो महासत्तो ॥१॥ चलणफंदणरूवं संहरिउं सब्वमंगवावारं । सेलेसिपवन्नो इव अणुकंपट्ठा सजणणीए ॥२॥ तह कहवि वसइ गब्भे जह नियजणणीवि नो मुणइ सम्मं । तइलोकविम्हयकरो गरुयाणं कोऽवि वावारो ॥३॥ नवरं तिसलादेवी तहट्ठिए जिणवरे विचिंतेइ । किं गलिओ मम गब्भो ? उयाहु देवेहि अवहरिओ? ॥ ४ ॥ किं मझेवि विणट्ठो ? किं वा केणावि थंभिओ होजा? । अहवा निप्पुन्नाणं रयणं किं करयले वसइ ? ॥ ५ ॥ जह सचं चिय विगओ एसो ता निच्छयं निए पाणे । नीसेसदुक्खलक्खेकभायणेऽविहु परिचयामि ॥ ६ ॥ अट्टज्झाणोवग या करयलपल्हथिएण वयणेण । अचंतदुक्खवसया दूरुज्झियमंडणाभरणा ॥७॥ परिचत्तसमुलावा महियलकयरुक्खचक्खविक्खेवा । दीहुस्सासनिवारियमुहसोरभमिलियभसलकुला ॥८॥ ॥११४॥ इय भूरिसोगसंभारतरलिया गलियकेसपासा य । हिययंतो रोवंती देवी जावऽच्छए ताव ॥९॥ सिद्धत्थरायभवर्णपि तक्खणं विमणदुम्मणं जायं । उपसंतमुइंगरवं उवरयवरगीयनिग्धोसं ॥१०॥ ME-RECRk For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org X-ROMCHAMASANSAR अह भयवं एवं विहवइयरमुवलक्खिऊण नाणेण । अंगं अंगावयवं चालइ जणणीसुहट्ठाए ॥११॥ ताहे तुट्टा देवी हरिसवसुलसिरलोयणकवोला । जायं झडत्ति भवर्णपि राइणो पमुइयजणोहं ॥ १२॥ तत्तो भयवं चिंतइ गम्भुब्भवमेत्तओऽवि कह जाओ। जणणीजणगाणमहो पडिबंधो कोऽवि अइगरुओ?॥१३॥ जं गब्भनिप्पकंपमेत्तेणवि एरिसा विसमरूवा । नियसंवेयणगम्मा एएसि दसा समावडिया ॥ १४ ॥ जइ पुण जीवंतेसुवि समणत्तणमहमहो परजिस्सं । तो मम विरहेण धुवं एए जीयं चइस्संति ॥ १५॥ इय चिंतिऊण भयवं संतोसटुं सजणणिजणगाणं । इयरजणाणवि एवं ठिई व लटुं पइटुंतो ॥ १६ ॥ जीवंतेसुं अम्मापिईसु नाहं मुणी भविस्सामि । इय गब्भगओऽवि जिणो पडिवजइ नियममइगरुयं ॥ १७ ॥ अह सा तिसलादेवी गब्भफुरणसंपत्तपरमपमोया ण्हाया नियंसियमहग्यचीणंसुया सरसचंदणकयंगराया आविद्धपवररयणा तं गम्भं नाइउण्हेहिं नाइसीएहिं नाइतित्तेहिं नाइकडुएहिं नाइकसाएहिं नाइअंबिलेहिं नाइमहुरेहिं सबोउयसुहावहहिं भोयणेहिं परिवालयंती पूरियडोहला निब्भया पसंता सुहेण भवणतलसमारूढा कयाइ पवरनाडयपेच्छणेण कयाइ पुराणपुरिसचरियायनणेण कयाइ विचित्तकोऊहलावलोयणेण कयाइ सहीजणपरिहासकर ण कयाइ उजाणविहारविणोएण कयाइ दुक्खियजणतवणिजपुंजवियरणेणं कयाइ नयरसोहानिरिक्खणेण कयाइ बंधुजणसम्माणणेणं कयाइ धम्मसंबद्धकहावियारणेण दिणाई गमेइत्ति । AAAAAAAAAE%8A २० महा० For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyamandir श्रीगण अत्रया य निप्फण्णसस्सोवसोहिए पणदुरोगमारिपमुहाणिढे जणवए नियनियधम्मकरणुज्जएसु समणलोएसुगर्भस्य दशा महावीरचा उवसंतपयंडुडुमरेसु परोप्परं नराहिवेसु पमुक्कचाडभडचोरभयासु बिलसंतीसु पयासु रेणुपडलविगमरमणिजासुजन्म च. ४ प्रस्तावः जणमणाणंददाइणीसु सयलदिसासु उजाणतरुकुसुमसंबंधगंधुदुरेसु पयाहिणावत्तपरिभमणरमणिजेसु मंद मंद वायंतेस समीरणेसु परमविजयसाहगेसु सबसउणेसु गंभीरघोसासु सयं चिय वजंतीसु विजयदुंदुभीसु चेत्तसुद्धतेरसीए सुरभवचवणकालाओ आरभ नवण्हं मासाणं अट्ठमाण य राईदियाणं विइक्कंताणं उच्चट्ठाणं गएसु महागहसु अहरतसमए हत्थुत्तराजोगमुवागए चंदे तिसलादेवी पुषदिसिव पयासियसयलजीवलोयं भयवंतं दिणयरं व भवियजणरहगमिहुणकयपरमसंतोसं पसूयत्ति । ___ तयणंतरं च पवरपंचवण्णरयणविणिम्मियविविहविमाणमालारूढहिं पहयपडपडहपमुहजयतूरोहिं उकुट्टिसीहना|यकलयलमुहलेहि पवराभरणमणिविच्छुरियगयणंगणेहिं पहरिससमुलसंतसरीरेहिं अणेगेहिं देवेहिं देवीहि य इंतेहिं पडिनियत्तमाणेहि य देवलोयपुरिंपिव रमणिजं अमंदाणंदसंदोहजणगं च कुंडग्गामनयरं जायंति । सिद्धत्थरायभवणे 5य वेसमणवयणाणुवत्तिणो जंभगा सुरा रयणकणगवत्थाहरणवासं वरिसंति, पत्तपुप्फफलगंधचुण्णवासं च मुयंति। ___ अह जाए सूइकम्मपत्थावे अहोलोगवत्थत्वा चउसामाणियसहस्सपरिवुडा सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिहै वईहिं परियारिया-भोगंकरा भोगवई, सुभोगा भोगमालिणी। तोयधारा विचित्ता य, पुप्फमाला अणिदिया ॥१॥ AAACARSAXXX +-343%87 For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org RSS एआओ अट्ट दिसाकुमारीओ जिणाणुभावचलियासणाओ ओहिनाणेण जिणजम्मवइयरं नाऊण दिवबिमाणारूढाओ सबिड्डीए जिणजणणिसमीवमागच्छंति, तिपयाहिणीकाऊण य जिणमायर पराए भत्तीए थुणंति, कहं चिय? तुम्ह महायसि ! रामाजणेकसिररयणविब्भमे नमिमो । पयकमलं निम्मलकोमलंगुलीपवरदलकलियं ॥१॥ इत्थीणं मज्झे चंगिमाए लद्धा तए पढमरेहा । तुमए चिय निम्महिओ महिलालहुयत्तणकलंको ॥२॥ पुत्तवईणं मज्झे तुमए चिय पावियं विजयपत्तं । मिच्छत्तंधजणस्सालंपणहेऊ तुम जाया ॥३॥ सरयनिसायरकरनियरहारगोरो जसो तुमाहितो। आसंसारं परिभमउ निम्भरं दससुवि दिसासु ॥४॥ मूढोच्चिय सुयपसवे परमाणंदं जणो समुबहइ । तुज्झ सरित्था धूयावि पुत्तकोर्डिपि परिभवइ ॥५॥ तिहुयणपणमियचलणो जीए कुञ्छिमि वाढमुखढो। कलणाइक्कतबलो चरिमजिकिंदो जयाणंदो ॥६॥ इय सुइरं जिणजणणिं पणमिय परमायरेण जपति । देवि! नहु भाइयवं अम्हे जं दिसिकुमारीओ ॥७॥ परमेसरस्स भुवणेकचक्खुणो जिणवरस्स एयस्स । निययहिगारऽणुरूवं जम्मणमहिमं करिस्सामो ॥८॥ एवं भणिऊण तित्थयरजम्मणभवणस्स समंतओ जोयणपरिमंडलं भूभागं ववगयतणकट्ठपत्तकयवरं दुरुस्सारियासुइदुरभिगंधपोग्गलं तक्खणं विउविएणं मणहरेणं सबोउयकुसुमगंधाणुवासिएणं संवट्टगपवणेणं काऊण भगवओ तित्थयरस्स तिसलादेवीए य अदूरे गायंतीओ चिट्ठति । For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद, महावीरच. ४ प्रस्तावः दिशाकुमारीकृतो महोत्सव ॥११६॥ CABLOCRACCUSAKADCACHERS एवं चिय चलियासणपउत्तदिवोहिमुणियपरमत्था । उड्ढदिसावासाओ देवीओइमा तओ इंति ॥१॥ मेहंकरा मेहबई, सुमेहा मेहमालिणी । सुवच्छा बच्छमित्ता य, वारिसेणा बलाहगा ॥२॥ तो निहयरयं वेउविएण मेहेण महियलं काउं । गंधंधलुद्धफुलंधयाउलं पुप्फररिसं च ॥३॥ जिणवरगुणगणमइकोमलेण सुइसोक्खकरणदक्खेण । अइदूरंमि ठियाओ गायंति सरेण महुरेण ॥ ४॥ अह पोरस्थिमरुयगढिईओ अट्ठवि दिसाकुमारीओ। बहुपरियणपरियरियाओ एयाओ आगया झत्ति ॥५॥ नंदुत्तरा य नंदा, आणंदा नंदिवद्धणा । विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया ॥६॥ रविमंडलसारिच्छं हत्थे धरिऊण दप्पणं ताहे । पुवदिसिंमि ठियाओ किर्तिति गुणे जिणवरस्स ॥७॥ अह दाहिणरुयगनिवासिणीओ अट्ठवि दिसाकुमारीओ। नायजिणजम्मणाओ इंति विमाणेहिं एयाओ ॥ ८॥ समाहारा पइन्ना य, सुप्पबुद्धा जसोहरा । लच्छिमई सेसवई, चित्तगुत्ता वसुंधरा ॥९॥ करपलवेण कलि(गहि)उं भिगारं सुरहिवारिपरिपुन्नं । दक्षिणपासे पहुणो गुणथवणपरा परिवसंति ॥१०॥ अह पच्छिमरुयगगया अटेव पुणो दिसाकुमारीओ। भत्तिभरनिन्भराओ इमाओं पविसंति जिणगेहे ॥११॥ इलादेवी सुरादेवी, पुहवी पउमावई । एगनासा नवमिया, भद्दा सीया य अट्ठमी ॥ १२ ॥ करकलियतालियंटा विसदृकंदोद्ददीहरच्छीओ । पच्छिमदिसिम्मि ठाउं थुगंति जिणनाहगुणनिवहं ॥ १३ ॥ AGARIKAASAGAR For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अह उत्तरिलरुयगाभिहाणगिरिवासिणीओ अद्वेव । आगच्छंति इमाओ देवीओ दिसाकुमारीओ ॥ १४ ॥ अलंबुसा मिस्सकेसी, पुंडरीकी य वारुणी । हासा सङ्घप्पभा चेव, हिरिदेवी सिरी तहा ॥ १५ ॥ वंदित्ता जिणजणणीं घेत्तुं सियचामरं करग्गेण । उत्तरदिसिम्मि गुरुणो पुचकमेणं परिवति ॥ १६ ॥ अह विदिसिय पचयवत्थवा चउ दिसाकुमारीओ । चित्ता य चित्तकणगा सतेय सोयामणीनाम ॥ १७ ॥ नमिउं तिसलादेवीं जिणं च विदिसासु चउसुवि निलीणा । सुंदरपईवहत्था जिणगुणनिवहं पगायति ॥ १८ ॥ मज्झिमरुयगट्टिइओ पुणोवि चत्तारि दिसिकुमारीओ | देवी रुया रुयंसा सुरुया रुयगावई नामा ॥ १९ ॥ आगंतूणं पुत्रकमेण नाभिं जिणस्स कप्पेंति । चउरंगुलपरिवज्जं ताहे वियरं परिखणिति ॥ २० ॥ तं नाभिनालमह तत्थ ठाविउं पंचवण्णरयणेहिं । पूरिंति तं समग्गं तदुवरि पीढं च बंधंति ॥ २१ ॥ पीढस्सोवरि हरियालिगं च वियरंति नीलमणिरम्मं । लोयणआणंदयरिं दिवाए देवसत्तीए ॥ २२ ॥ तयणंतरं तिन्नि कयलीहराइं विउवंति, तेसिं च मज्झभागे पवरपंचप्पयार मणिविणिम्मियकोट्टिमतलाई विच्छि त्तिचित्त रंगावलीमणहराई दुवारदेसठवियपुण्णकणयकलसाई दिवरूवरेहंतसा लभंजियाभिरामाई दाहिणपुखुत्तरदिसासु तिष्णि चउसालभवणाई बिसालाई विरयंति, तेसिं च मज्झभागे महग्घमणिखंडमंडियाई नियकिरणजालसुत्तिय सुरिंदकोदंडाई कणगसेलसिलाविच्छिन्नाई तिण्णि सीहासणाई टविंति तओ तित्थयरं करयलपुडेणं तित्थयरज For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatrth.org श्रीगुणचंद 1णणं च बाहाहि घेत्तृण परमायरेण दाहिणदिसिचाउसालसीहासणे निसियाति, तओ सयपागसहस्सपागते हिं दिशाकुमहावीरच. पहाणगंधुद्धरेहिं तेसिं सरीरमभंगिति, गंधुवट्टणेणं उघटेति, तओ पुवट्टिईए जिणं जणणिं च पुषदिसिचाउसाल | मारीकृतो ४ प्रस्ताव सिंहासणमि आरोविऊण गंधोदएण पुप्फोदएण सुद्धोदएण मजिऊण पवरमणिरयणाभरणसंभारेण विभूसियसरीराई महोत्सवः. ॥११७॥ काऊण परमायरेण पुत्वविहीए उत्तरदिसिचाउसालसिंहासणे निवेसिति, नवरं नियफिकरेहिं चोलहिमवंताओ गोसीसचंदणदारुगाणि आणाविऊण अरणिनिम्महणुट्टिएण जलणेण संतिनिमित्तं होमं च करेंति, नियपभावपरिरविखयस्सवि भगवओ जीयंतिकाऊण रक्खापोहलियं बंधिऊण रयणपाहाणगे सवणमूले तार्डिति, एवं भणंति य सत्तकुलपचयाऊ अप्पडिहयसासणो हवसु देव ! । गयरोगसोगदुक्खो पणईयणपूरियासो य ॥१॥ इय भणिऊण पहिहा जम्मणगेहे ठवित्तु जिणजणणिं । गायंति जिर्णिदगुणे तिसलापासे समलीणा ॥२॥ इय जम्मस्स य कायक्ववित्थरो तित्थनाहभत्तीए । वेगेण समत्थिज्जइ छप्पनदिसाकुमारीहिं ॥३॥ एत्यंतरे सोहम्मकप्पाहिवइस्स सक्कस्स सीहासणं चलइ, तच्चलणेण ओहिनाणेण भगयओ तित्थयरस्स जम्मं मुणिऊण ॥११७॥ ससंभम सक्को सीहासणाओ उडेइ, सत्तद्वपयाणुगमणपुच्चयं परमाए भत्तीए तत्थढिओऽपि जिणं थुणिऊण पाइत्ताणीयाहिवई हरिणेगमेसिं देवं आणवेइ-अहो भद्द ! गच्छसु सोहम्माए सभाए मेघोषघोरघोसं जोयणपरिमंडलं सुघो-18 सघं तिकखुत्तो तार्डितो महया सद्देणं एवमुग्घोसेहि-सको जंबुद्दीवभारहखेत्तसमुभवस्स जिणस्स जम्मणमहिम ASA%ACAAAAAAAA%E For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org काउं पट्टिओ, ता भो देवा ! तुब्भे सङ्घवलेणं सङ्घविभूईए सङ्घनाडएहिं सवालंकारविभूसाए दिवच्छरागणेणं परिबुडा पवरविमाणाई आरूढा मम सयास पाउण्भवहत्ति, एवं भणिए हरिणेगमेसी देवे देवरण्णो वयणं विणएण पडिसुणित्ता तुरियगईए सोहम्मसभाए गंतूण सुघोरं घंटं तिक्खुत्तो ताडे, तीसे य पयंडनिग्घोसवसुच्छलंतपडिसद्दयप| डिफलणवसेण अन्नाई एगूणाई बत्तीसं घंटासय सहस्साई समकालं रणज्झणारखं काउमारद्धाई, एवं च दिसि दिसि समुब्भवंतपडिनिग्घोसबहिरियदियंतरी सोहमकप्पो समुत्पन्नोति । एत्थंतरे पंचविहविसयसेवापमत्तचित्ता समंतओ देवा । तं एगकालवज्जिरघंटागणगुरुसरं सोउं ॥ १ ॥ चिंतंति सचओ किंचि (च) फुटवं भंडरवसमो घोरो । फालिहविमाणमालापडिफलणच उग्गुणीभूओ ? ॥ २ ॥ आपूर्तितोब दिसावगासमखिलं चराचरं लोगं । सद्देगसरूवंपिव कुणमाणो निययमहिमाए ॥ ३ ॥ संखुद्धमुद्धतिय संगणाहिं भयवेगतरलियच्छीहिं । हा नाह ! रक्ख रक्खत्ति जंपिरीहिं सुणिज्जंतो ॥ ४ ॥ दणुवइरणसुमरणतुदृतिय सवंठोहकंठरवभीमो । अणिवारियं वियंमइ जयघंटारणरणारावो ॥ ५ ॥ इय चिंतावससिढिलिय दइयादढकंठबाहुपासंमि । सबत्तो सुरनिवहे जायम्मि विमूढहिययंमि ॥ ६ ॥ खणमेत्तस्सऽवसाणे समत्थघंटारवंमि उवसंते । हरिणेगमेसिदेवो भणइ सुरे अवहिए जाए ॥ ७ ॥ भो भो तिसा सको तुभे आणवइ जह लहुं एह । जेण जिणजम्ममजणमहूसवो कीरए इहि ॥ ८ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सौधमेन्द्रा श्रीगुणचंद महावीरच. ४प्रस्ताव | गमनं. ॥११८॥ इय आणत्तियमायन्निऊण परिमुक्कसेसवावारा । मुणियजिणनाहमजगमहूसवा हरिसिया तियसा ॥९॥ तो मजणपोक्खरिणीए जंति, बहुविहजलेण मजणु करेंति । कप्पूरमिस्सचंदणरसेण, आलिंपहि देहु सुबंधुरेण॥१॥ अइकोमलनिम्मलदूसजुअल, परिहंति वियंभियकंतिपडल । अह कंठपइट्टियलट्ठहार, दूरुज्झियकामुयजणवियार ॥२॥ अइसुरहिकुसुमनिम्मवियदाम, नवपारियायमंजरिसणाम । बंधति सुगंधसमिद्ध सीसि, तक्खणकयकुंचिरचारुकेसि ३ मणिमउडकिरणविच्छुरियगयण, नियरूवमडप्फरह सियमयण । वरकडयतुडियभूसियसरीर, तणुकंतिपसरपरिभूयसूर ॥ ४ ॥ किवि मगरमरालयसन्निसन्न, किवि हरिणवसहसिहिप्पचन्न । आरुहवि केवि कुंजरि महंति, केवि तुंगतुरए वेगे वयंति ॥५॥ चीणंसुयचिंधसहस्सरम्म, अवलोमणिमेत्तह दिनसम्म । आरुहवि चलिय किवि वरविमाणि, किंकि गिरवमुहरि महप्पमाणि ॥६॥ सहुलसरहहरिपट्टि चडिय, किवि पद्वियवेगेऽन्नोन्न घडिय । इय सुरसमूहह सवे बलेण, सुरवइ समीवमागय जवेण ॥ ७॥ एत्थंतरे खंभसहस्ससंनिविटें फलिहमणिपडियसालभंजियाभिरामदारदेसं अणेगलंबंतमुवाहलमालं पवरवहरवे ROSAROKARACCANCE ॥११८॥ For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "SASARASRECRUAR इगापरिक्खित्तपेरंतविभागं रणंतघंटावलीमहुरसरसुहयं पवणकंपमाणनिविडजयपडागापयर्ड सिहरं व तिरियलोयमहामंदिरस्स फलं व पुवकयपुन्नमहापायवस्स तिहुयणसारपरमाणुविणिम्मियं व सयलविभूइविच्छड्डाखंडभंडागारं सोलसभेयरयणरासिघडियं व सुरवइययणसंभंतपालकामरविउवियं जोयणसयसहस्सविच्छिण्णं पंचजोयणसयसमुहं वरविमाणमारूढो अणेगदेवदेविकोडिपरिवुडो पत्थिओ पुरंदरो, तओ पवणविजइणीए गईए तिरियमसंखेजाणं दीवसमुदाणं मझमज्झेणं नंदीसराभिहाणदीवस्स दाहिणपुरथिमिले रइकरपवए आगंतूण तं दिवं देविढि विमाणवित्थारं व पडिसंहरिऊण जेणेव जंबुद्दीवो जेणेव दाहिणभरहं जेणेव भगवओ जम्मणभवणं तेणेव उवागच्छइ, तयणंतरं च तेण दिवेण विमाणेण तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं भगवओ जम्मणभवणस्स काऊण विमाणं उत्तरपुरच्छिमे दिसिभागे ठवेइ, तओ अट्ठहिं अग्गमहिसीहिं चुलसीइए सामाणियसाहस्सीहिं समेओ जत्थ भयवं तित्थयरो तित्थयरजणणी य तार्ह आलोएइ, पणामं करेमाणो पविसइ, सामि समायरं तिपयाहिणपुवयं वंदइ, वंदिता सविसेसं तिसलादेवि थुणइ, कहं ? जयसि तुमं देवि! सगोत्तगयणपडिपुन्नचंदनवजुण्हे ! । सुविसुद्धसीलसालीणयाइ गुणरयणवरधरणि! ॥१॥ तिहुयणचिंतामणिकुच्छिधारिए ! तं धुवं जगे धन्ना । तुझं चिय सुहफलओ पसंसणिजो मणुयजम्मो ॥२॥ एत्तियमेत्तेणं चिय तुमए उलंघिउन भवजलही। परमासीसट्ठाणं जायासि मुणीसराणंपि ॥३॥ ASARANAGANAGAR For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभोर्मेरौ नयनं श्रीगुणचंद महावीरच. ४ प्रस्ताव ॥११९॥ CROLLSCRECECTION एवं च थुणिऊण ओसोयणिदाणपुष्वगं तक्खणविउवियजिणपडिरूवं च ठविऊण तिसलादेवीसमीवे सयं पंच सरीरे | विउधइ, तओ एगेण परमसुइभूओ सरससुरभिगोसीसचंदणपंकपंडुरोयरे करकमले कयप्पणामो सबहुमाणं तित्थयरं संठवेइ, एगेण य तस्सेव य पिट्टिदेसडिओ हरट्टहासकुसुमप्पगासं चामीयरचारुदंडं पुंडरीयं घरेइ, दोहि य रूवेहिं भगवओ उभयपासेसु सुरसरिवारिप्पवाहविन्भमे चामरे मंद मंदं चालेइ, एगेण पुरओ ठिओ धारासहस्सभीसणं समुच्छलंतकिरणपडलं सरयसूरमंडलं व दिसिवलयमुज्जीवितं पयंडपडिवक्खविक्खेवदारुणं कुलिसमुबहइ । एवं च |पंचरूवेहिं समायरियनियनियकायबो अणेगदेवदेवीहिं परियरिओ संपत्तपावणिजं समत्थतित्योहदसणपवित्तं । अप्पाणं मन्नंतो हरिसेणंगे अमायंतो ॥१॥ मंदरसेलाभिमुहं कंठपलंबंतरयणवणमालो । पयलंतदिवकुंडजुयलो आखंडलो चलिओ ॥२॥ सिग्घाए दिवाए देवगईए कमेण गच्छंतो। जोयणलक्खुचत्तं संपत्तो मंदरगिरिंदं ॥३॥ जस्सावट्टियरूवा पडिबिंबियसिहरकाणणाभोगा। विमलपरिमंडला दप्पणव रेहंति ससिसूरा ॥४॥ जस्स रमणीययारंजियाई गंधवदेवमिहुणाई। उझियनियठाणाई सिहरेसु सुहं परिवसंति ॥५॥ नाणाविहफलभरभंगुरग्गसाहाई जत्थ रेहति । सबोउयकुसुमसमिद्धिसुंदराई तरुवणाई ॥६॥ . किविणो व कणगपरिहाणिवजिओ सजणोब अइतुंगो। सुमुणिव एगरूवो जो निचं सिद्धिखेतं व ॥७॥ %AAAAAAA ॥११९॥ For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एगत्थुन्नयनवमेघगज्जिपरितुट्टनीलकंठो जो । अन्नत्थ किन्नरारद्धगेयसुइनिञ्चलकुरंगो ॥ ८ ॥ एगत्तो मरगयनिस्सरंतकिरणोलिसामलियगयणो । अन्नत्तो रवितावियफलिहोवल गलियजलणकणो ॥ ९ ॥ तत्थ एवंविहे मंदरगिरिंमि नीहार गोक्खी रहारुजलाए अइपंडुकंवलसिलाए विचित्तरयणप्पभापडलजलपक्खालियंमि अभिसेयसिंहासणे पुष्वाभिमुहो सुरिंदो उच्छंगनिवेसियजिणो उवविसइ, एत्थंतरे जिणपुन्नमाहप्पचलियासणा ओहिनाण विन्नायजहट्ठियपरमट्ठा नियनियसेणाहिबइताडियघंटा रवपडिवोहियसुरयपमत्ततियसगणा तक्कालविउच्चि यपवरविमाणारूढा सवालंकाररेहंतसरीरा ईसाणप्पमुहा चंदसूरपजंता एगत्तीसंपि समागया सुरिंदा, कयपणामा यद्विया सहाणेसु, एत्थ य पत्थावे अच्चुयतियसाहिवेण भणिया नियदेवा - अहो सिग्धमुवणमेह महरिहं पसत्थं | तित्थयराभिसेयं, तओ ते पहिट्ठचित्ता अट्ठोत्तरसहस्सं सुबन्नकलसाण अट्ठोत्तरसहस्सं कलहोयमयाणं एवं मणिमयाणं सुवन्नरूप्पमयाणं रुप्पमणिमयाणं सुवन्नरूप्पमणिमयाणं भोमेयगाणं अट्ठसहस्सं रयणकलसाणं, एवं भिंगाराणं पत्तेयं पत्तेयमद्वसहस्तं विउचित्ता गया खीरोयसमुद्द भरिया खीरसलिलेण सयलकलसा, गहियाई उप्पलकुमुयसयपत्तसहस्सपत्ताई, एवं पत्थतित्थाण मागहाईण वरनईणं च । सलिलं महोसहीओ सुकुमारा मट्टिया जा य ॥ १ ॥ दक्खारसेलकुलपवण्सु सोमणसनंदणवणेसु । अंतरनइहरएसु य जाणि य कुसुमोसहिफलाई ॥ २ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only -- Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्ताव अभिषेक मेरुचालनं. ॥ १२०॥ PS4-S6 आदाय ताई खीरोयसलिलपडिपुनपुन्नकलसा य । अचुयसुराहिवइणो विणयप्पणया समप्पेंति ॥ ३॥ अह सो अचुयदेविंदो दट्टण अभिसेयसमग्गसामग्गिं जायहरिसो सिग्घमासणाओ उद्वित्ता दसहिं सामाणियसहस्सेहिं तायत्तीसाए तायत्तीसेहिं चरहिं लोगपालेहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियावईहिं चत्तालीसाए आयरक्खदेवसहस्सेहिं संपरिखुडो तेहिं विमलतित्थुत्थखीरनीरपरिपुन्नेहिं विमलकमलपिहाणेहिं गोसीसचंदणपमुहपहाणवत्थुगन्भिणेहिं सब्बोसहीरससणाहेहिं बहुसहस्ससंखेहिं महप्पमाणेहिं कलसेहिं विउविएहिं साभाविएहि य परेणं पमोएणं भगवओ भुवणिक्कबंधवस्स चरमतित्थयरस्स जंममजणमहूसवं काउं समुवटिओत्ति । एत्यंतरे चिंतियं सुरिंदेण, जहालहुयसरीरत्तणओ कहेस तित्थेसरो जलुप्पीलं । सहिही सुरसत्थेणं सम कालमहो खिविजंतं ? ॥१॥ एत्तियकुंभजलुप्पीलपेलिओ गरुयगंडसेलोऽवि । पल्हत्थिजइ नूणं किमेत्थ जुत्तं न याणेमो? ॥२॥ इय एवं कयसंकं सकं ओहीऍ जिणवरो नाउं । चालइ मेरं चलणंगुलीए बलदंसणट्ठाए ॥३॥ तचालणे य-चंगतुंगिमरुद्धगयणग्गपरिकंपिय, सिहरसयकडयांततड वियडविहडिय । टलटलियटोलोवलविच्छिन्नटंकदोत्तडविनिवडिय ॥१॥ कंदरगयकेसरिविहियगलगजियरवभीम । पवियंभियचाउदिसिहि पडिसद्दय निस्सीम ॥२॥ CERICORREARSAGAR ॥१२॥ For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SEARC तथा-चलिरमंदरभारसंभग्गसिरनमिरभुयगाहिवह दूरमुक्कदुद्धरु धरायलु,विलुलंतकुलसेलगणु तुबंधु डोलिओ विसंतुलु। उस्सिंखलभयभरविहुर उद्धयसुंडादंड अनिवारण दिसिवारणवि गमणि पयट्ट पयंड ॥४॥ खुभियदारुणमच्छकच्छवयपुच्छच्छडताडणेण उच्छलंतकलोल-संकुलगयणंगणविगयसिहमुक्कमेरवियरंतमहिजल। अइवेगप्पवणप्पहय हल्लियसयलसमुह । नजइ जगबोलण भणिय चाउदिसिहिं रउहु ॥५॥ सूरससहरतारयाणंपि विवरंमुहपट्ठियइं तक्खणेण सबई विमाण, भयभीएण सुरगणेण अइजवेण उज्झियसगणई। विमणमणुसुरवहुनिवहु जाउ विसंतुलचेटु, मरगासंकिउ खयरजणु गिरिकंदरिहिं पहु॥६॥ एवं वियंभमाणे तिहुयणसंखोहे पंचनमोकारसुमरणपरायणे चारणमुणिगणे विविहाउहनिवहमणुसरंते अंगरक्ख. सुरसमूहे पयंडकोवुडमरभीमो घडियनिडालमिउडिभासुरो करकलियकुलिसो सुराहियो भणिउमाढत्तो-अहो सो एस संतिकम्मसमारंभेऽवि वेयालसमुल्लासो भोयणपढमकवलकवलणेऽवि मच्छियासन्निवाओ पुन्निमाचंदपढमुग्गमेवि दाढाकडप्पदुप्पिच्छो विडप्पागमो जं सयलमंगलालयस्स अणप्पमाहप्पबलणिहाणस्स तित्थेसरस्सवि जम्मणमहूसवसमए एरिसो विग्यो समुवडिओ, केण पुण अकालकुवियकयंतसंगमूसुएण देवेण दाणवेण य जक्खेग रक्खसेण नियभुयसामत्यवित्थारदसणट्टयाए वा जिणमहिमावलोयणमच्छरेण वा भुवणसंखोहदंसणकोऊहलेण वा कओ हवेजति |जायसंसओ ओहिनाणं पउंजइ । तओ दिखनाणमुणियजिणचलणचंपणुकंपियमेरुवइयरो तक्खणसंहरियकोबुग्गमो ॐॐॐ*%%y २१ महा. MEॐ For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥ १२१ ॥ www.kobatirth.org निंदियनियकुवियप्पो खामिऊण बहुप्पयारं भगवंतं जिणेसरं पाणिपरिगहियकलसे तियसे मणिउमादत्तोभो भो विबुहा ! जह सिरिरिसह जिनिँदो हविओ पुर्वि इहेब तियसेहिं । तह चरिमतित्थनाहंपि न्हवह मोत्तूण कुवियप्पं ॥ १ ॥ एगसरूवचलच्चिय निष्यंतं जेण सवजिणनाहा । तणुगुरुलहुयत्तं पुण न कारणं वीरिउल्लासे ॥ २ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं च सुरवरवयणाणंतरमेव समकालं निवडियं सयलकलसेहिंतो सारयससिमऊहजालं व गयणसुरसरिजलपडलं व तुसारहारधवलं जिणोवरि खीरोयहिजलं, एवं च पचट्टे जिणाभिसेगे दुंदुही पडह भंभादुडुकाउलं, वेणुवीणारवुम्मिस्सहयमद्दलं । झलरीकरडकंसालरवबंधुरं, घोरगंभीरभेरीनिनायुदुरं ॥ १ ॥ काइलारावसंबद्धखरमुहिसरं पूरियासंखसंखुत्थरवनिष्भरं । पलयकाले व गजंतघणवंदयं, ताडियं सुरेहिं चाउधिहाउज्जयं ॥ २ ॥ हरिसभरनिग्भरुग्भिन्नरोमंचया, केवि संथुणहिं जिणु तियस नयंतया । अवरि वरसुरहिं मंदारकुसुमुकरं, मुयहिं गंघवमसलावलीकब्बुरं ॥ ३ ॥ केवि फोर्डिति मलय तिवरं सुरा, सिंहनायं च मुंचति हरिसुदुरा । कुहिं गलगज्जियं अवरि हयहेसियं, केवि य किर रासयं दिति करणंचियं ॥ ४ ॥ For Private and Personal Use Only मेरुचालनमभिषेकथ. ॥ १२१ ॥ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनि हरिसेण विरइंति गलदद्दरं, केवि मुट्ठीहिं तार्डिति विस्संभरं । केइ कलसे य खीरोयजलपूरिए, तक्खणं निंति तियसाण इत्यंतिए ॥ ५ ॥ ॥ इय अहिं सुरसंघेण निहजियविग्घेण वट्टिज्जर सचायरेण । तहिं जिणवरमज्जणि भवभयतज्जणि किं वन्निज्जर मारिसिण १ ॥ ६ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिणाभिसेगे य वट्टमाणे सवे सुरिंदा छत्तचामरधूयकडुच्छ्रयपुप्फगंघहत्था पुरओ पमोयपुलइयंगा आणंदवियसि यच्छा ठिया । अह अयसुरेसरे जिणं हविऊण विरए पाणयाइणो देविंदा नियनियपरिवारपरियरिया महाविभवेणं सोहम्माहिवई मोत्तूण तीसंपि कमेण जिणं अभिसिंचंति । तयणंतरं च ईसानिँदो भयवंतं उच्छंगे धरितो सिंहासणे निसीयइ, सोहम्माहिवईवि चउद्दिसिं तित्थयरस्स चत्तारि धवलवस संखदलुज्जले रमणिज्जसरीरे विउवर, तेसिं च अट्ठसिंगग्गेहिंतो अट्टखीरोयसलिलधाराओ उड गयणंगणगामिणीओ पुणो अहोनिवडणेण एगीभूयाओ काऊण जिणुत्तमंगे संठवे, अन्नेहि य बहुएहिं खीरोयकलससहस्सेहिं अभिसिंचर, एवं कमेण निबंचिए मज्जण महूसवे परमपमोयभरपुलइयंगो सोहम्मसुरनाहो सुकुमालगंधकासाईए जिणदेहं लूहिऊण गोसीसचंदणुम्मीसघुसिणेणं अंगमालिंपर, सियसुरभिकुसुमेहिं प्यावित्यरं विरएइ, सबालंकारविभूसिवं च करेह, पुरओ य ससिकला धवलेहिं अक्खेहिं दप्पण भहासणवद्ध माणकल समच्छसिरिवच्छसत्थियनंदायत्तलक्खणे अट्टमंगलके समालिहद्द, बउलतिलय कण For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवकतो श्रीगुणचंद महावीरच. ४प्रस्ताव जन्माभिषेक ॥१२२॥ ६ वीरकुंदमल्लियासोयचूयमंजरिपारियायपमुहं पंचवण्णकुसुमनियरमाजाणुमत्तं मुयइ, नाणाविहमणिभत्तिविचित्तदंडेग वरामयकडुच्छुएणं पवरगंधाभिरामं धूवमुक्खिवइ, पजलंतदीवियाचक्कवालमणहरं आरत्तियमंगलपाईवं च समुत्तारेइ, एवं च कमि सबकायचे हरिसुक्करिसनमिरसिरनिवडियकुसुमच्चियमहीयलं कोमलभुयमुणालअंदोलणमणिकंकणरवा| उलं उम्भडकरणवेगरिखोलिरमुत्तावलिकलावयं तयणु सुरासुरोहिं सवायरेण जिणपुरओ पगचियं, नचिऊण भत्तिभरनिभरा भयवंतं थोउं एवमारद्धा जय भुवणतयवंदिय ! लीलाचलणग्गघालियगिरिंद! । भवकूवमज्झनिवडंतजंतुनित्थारणसमत्थ ॥१॥ परमेसर सरणागयपरूढदढवजपंजर जिणिंद । वम्महकुरंगकेसरि मच्छरतमपसरदिवसयर ! ॥२॥ सच्चं चिय सिद्धत्थो कहं न सामिय! जहत्थनामत्थो । चिंतामणिसारिच्छो जस्स सुओ तं विसालच्छो ॥३॥ अच्चंतमविरइपरायणंपि अइपुन्नवंतमप्पाणं । मण्णेमो जिण! जं तुज्झ मजणे एवमुवयरिया ॥४॥ भई भारहखेत्तस्स नाह! तं जत्थ पाविओ जम्मं । धरणीवि वंदणिजा जा वहिही तुज्झ कमकमलं ॥५॥ जह तुह पयसेवाए जिणिद! फलमत्थि ता सया कालं । एवंविहपरममहं अम्हे पेच्छंतया होमो॥६॥ इय चउविहदेवनिकायसामिणो जिणवरं थुणेऊण नियनियठाणेसु गया मोतुं सोहम्मसुरनाहं, गए य सट्ठाणं देविंदे सोहम्माहिवई कयसबकायन्वो जिणिदं करसंपुडेण गहिऊण अणेगदेवकोडाकोडिपरिवुडो गंतूण जिण-- ककककक P॥१२॥ For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | जम्मघरंमि पडिरूवं ओसोवणिं च अवणित्ता तिसलादेविसमीपे निसियावेइ, एगं च पवरं देवदूसजुयलं कुंडलजुयलं च ऊसीसगमूलंमि ठवेइ, एगं च पंचवन्नियरयणविच्छित्तिमणहरं जच्चकंचणविणिम्मियं संबंतमुत्साहलायचूलयं लंबूसयं भगवओ अभिरमण निमित्तं अवलोयंमि ओलंबे, जं अवलोयंतो जिणो सुद्देण चक्खुक्खेवं करेइ, तओ सको वेसमणं आणवे - जहा भो ! सिग्धमेव बत्तीसं हिरन्नकोडीओ बत्तीसं सुवन्नकोडीओ बत्तीसं नंदाई बत्तीसं भद्दाई अन्नाणि य विसिवत्थूणि भगवओ जम्मणभवणे उवणमेहि, सोऽवि जंभगदेवेहिं सव्वं तदत्ति निघतेइ, पुणरवि देविंदो निय तियसेहिंतो सन्वत्थ एवं उग्घोसावेह - भो भो भवणवद्दवाणमंतर जोइसियवेमाणिया देवा देवीओ य ! सुणंतु भवतो-जो किर तित्थयरस्स तित्थयरजणणीए वा असिवमणि काउं संपद्दारेही तस्स अवस्सं अज्जगमंजरिव्व उत्तिमंगं सहस्सहा तडित्ति फुट्टिहित्ति, एवं च सव्वं काऊण विहिं भगवंतं पणमिऊण उप्पइओ नीलुप्पलसामलं गयणं पुरंदरे ॥ अह उग्गयंमि दियरे पगासीभूयासु सयलदिसासु वज्जिए गंभीरघोसेसु जयत्रेसु सुहपडिबुद्धा तिसला पेच्छ सव्यालंकारविभूसियं पवरसुरहिपारियायमंजरी परिमलमिलंतालिवलयसामलियासरीरं सुरहिगोसीस चंदणरसकथंगरागं जिणेसरं, इओ य सिद्धत्थनरिंदो सहरिसपधाविएण चेडीजणेण साहियतिदुयणच्छेरय रूवसुयजम्ममहूसवो चेडीजणरस अवणियदासत्तभावो आसत्तवेणिवं छियत्थसमत्थरयणरासिदाणजणियाणंदो भगह, जह-भो पुरिसा ! For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ १२३ ॥ www.kobatirth.org गच्छह तुब्भे सव्वत्य नयरे तियचउक्कच चरेसु कयवरावणयणपुव्वयं वारिवरिसपसमियरयमणहरेसु कुंकुमपिंजरियधर| णिवलेसु कुणह पंचप्पयारपुप्फपुंजोवयारं, अगुरुतुरुक्ककुंदुरुक्क धूव धूमंधयारियदिसिमुहाओ पट्ठह ठाणे ठाणे कणगधूवघडियाओ, पवरमणिमुत्ताजालरेहंतमज्झभागे नञ्चंततरुणीचरणकिंकिणीकलरवाऊरियदिसि मुद्दे गायंतगायणजणे ऊसियविविधवेजयंतीसहस्सोवसोहिए समंतओ समुत्तुंग थोरथंभावलीसुसिलिट्ठलट्ठावबद्धे मंचाइमंचे संचएह, परिभवणदुवारं च विसिट्टपाणगपट्ठिए सहस्सपत्तपउमपिहियाणणे कुसुममालुम्मालिए सरसचंदणपंकपंडुरिओदरे विमलसलिलपुत्रे पुन्नकुंभे निषेसह, सयलपएसेसु य कहगतालायरनडपेच्छणयाइ पयट्टावेह, नयरदुवारेसु य नवचंदणमालाड बंधेह, जूयसहस्सं चक्कसहस्सं च उन्भवेह, उस्सुकं उक्करं अचाडभडपवेसं ववगयधरणिज्जं माणवुडिजुत्तं विमुक्कचारगागारनिरुद्धावराहकारिनरनियरं पुरं च कारवेहत्ति, जं देवो आणवेइत्ति सविनयं पडिसुनिऊण वयणं गया पुरिसा, सविसेसो य साहिओ नरिंदाएसो, तओ हरिसपण चिरतरुणीकरंगुलीगलियमुद्दियाजालं । जालुग्भडघयमहु सित्तसंतिहोमानलाउलियं ॥ १ ॥ आउलिय चित्तमग्गणघणलाभनिमित्तविहियहलबोलं । हलबोलसवणधावियनरवइजणदिज्जमाणधणं ॥ २ ॥ विरसुणीक निहाणपक्खित्ततियसतवणिज्जं । तवणिज पुंजपिंजरचीर्णसुयचिंधसयरम्मं ॥ ३ ॥ रम्ममहीयलविलिहियपसत्थसत्थिय सहस्स सोहंतं । सोहंतकंतपुर वरनरजणकीरंतमंगलं ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only श्री सिद्धार्थकृतोजन्मोत्सवः । १२३ ॥ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंगलफरणवाउलपुरोहियारद्धदेवयापूर्व । पूयाबलिविक्खेवणपीणियनिस्सेसपक्खिगणं ॥५॥ . गणणाइकंतसमुच्छलंतमहिदूररूढनिहिनिवहं । वहबंधविरत्तपसंतलोयपारंभियविलासं ॥६॥ लासुलासिरकुलथेरिनारिपारद्धचञ्चरीगीयं । गीववियक्खणगायणसुस्सरसरपूरियदियंतं ॥७॥ इय कुंडग्गामपुरं सबाहिरभंतरं समत्तेण । तित्थाहिवजम्ममहूसवंमि जायं सुरपुरं व ॥८॥ एवं च पुस्महूसवे पयट्टे समाणे सिद्धत्थनरिंदोण्हाओ कयालंकारपरिग्गहो नियंसियमहग्धपहाणवत्थो निसण्णो अ-13 त्थाणमंडवे, एत्यंतरे समागया मंतिसामंतसेटिपमुहा विसिट्ठलोया, निवडिया चलणेसु, भणिउमाढत्ता य-देव ! विजएणं धणागमेणं रज्जवित्थारेणं सरीरारोगत्तणेणं वद्धाविजह तुम्भे, जेसि तिहुयणेकचूडामणी नियकुलनहयलमियंको एसो पुत्तो पसूओत्ति जंपिऊण समप्पिंयाओ तेहिं पवरकरितुरयरयणरासीओ, राइणावि ते सम्माणिऊण पुप्फवत्थगंधालंकाराइदाणेण विसज्जिया नियनियट्ठाणेसु, खणंतरेसु य दंसणूसुओ पत्यावमुवलब्भ पत्थिवो उडिओ अत्थाणाओ,गो य मणिकुट्टिमलिहिजमाणसुरंगरंगावलीसत्थियं दुवारदेसनिवेसियलोहरक्खं उन्भवियमहंतमुसलजूसरं विविहरक्खापरिक्खेवसस्सिरीयं जिणजम्मणभवणं, दिट्ठो य तत्थ रयणरासिव सरयदिणयरोष एगट्ठियसवतेयपुंजोच समुजोइयमंदिरभंतरो जिणवरो, तं च दळूण चिंतिउमाढत्तो-अहो पढमदिवसजायस्सवि अपुषा सरीरकंती अनण्णसरिसरूवसंपया अविभावणिज्जं लायण्णं निम्मेरसुंदरं अभग्गं सोहग्गं, ता सबहा पुण्णपगरिसागरं मम कुलं जत्थ पसूयमेवं For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुलमर्यादा नामस्यापना च. श्रीगुणचंद विहं पुत्तरयणंति विभाविऊण भणिया तिसलादेवीमहावीरच. पेच्छसु नियसुयपसरतकंतिपम्भारविजियपहपडले । कजलसिहापदीवे परिगोवितोच अत्ताणं ॥१॥ ४ प्रस्तावः पुत्वं बहुसोवि मए दिट्ठमिमं मंदिरं विसालच्छि!। किं तु पमोयमियाणिं किंपि असरिच्छमावहइ ॥२॥ ॥ १२४॥ संचुण्णियचामीयरचुण्णयसरिसेण कतिनिवहेण । एगसरूवा कीरंति उभयगिहवित्तभित्तीओ ॥३॥ इय एवमाइकहाहिं नरिंदो देवी य विगमिऊण भगवओ पढमदेवसिय ठितिवडियं करिति, तइयदिवसे य तरुणतरणिताराहिवबिंबाई दंसेंति, कमेण य जाए छठ्ठवासरे रायकुलसंवड्डियाहिं अविणट्ठलट्ठपंचिंदियाहिं नीरोगसरीराहिं जीवंतपाणनाहाहिं कुंकुमकालितवयणकमलाहिं कंठकंदलावलंबियसुरहिमालइमालाहिं कुलविलयाहिं अचंतजायचित्तसंतोसाहिं जागरमहूसवं पयट्टेइ, आगए य एक्कारसदिवसे जहाभणियविहाणेण सुइजायकम्ममवणेति, | बारसदिवसंमि नाणाविहवंजणसमेयं बहुप्पगारखंडखजपरिपुन्नं विविहपाणयपरियरियं सुगंधगंधट्टोयणसूयसंपन्नं सरसवई निवत्ताति, तयणंतरं कारियण्हाणविलेवणालंकाराणं नायखतियाणं पणयजणपुरप्पहाणलोगाणं परमायरेण भोयणं पणाति,खणंतरेण य आयन्ताणं सूइभूयाणं वीसत्थाणं सुहासणगयाणं तत्थ गंधमलालंकारेहिं सम्माणियाणं तेसि पुरओ सिद्धत्थनराहिवो एवं वयासी-भो भो पहाणलोया ! पुर्वपि मम एस संकप्पो समुप्पज्जित्था जहा-जहिहै वसं एस कुमारो देवीए गम्भं संकेतो तदिवसाओवि करितुरयकोसकोटागाररजेहिं सुहिसयणपरियणेहिं परमं ॥१२४॥ For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वुहिमहमुवागओ, अओ मए एयस्त बद्धमाणोत्ति नामधेयं कायर्वति, तम्हा इयाणिपि तुम्ह समक्खं एयमेव नाम हवउत्ति, तेहिं भणियं-देव! जुत्तमेयं, गुणनिप्फन्ननामधेजे विजमाणंमि कीस न जहट्ठियमभिहाणं कीरइत्ति ?, एवं तेहिं जंपिए पइट्ठियं जयगुरुणो बद्धमाणोत्ति नाम, जाओ परमप्पमोओ, पुरंदरेणावि अयलो भयभेरवोवसग्गेहि खंतिख मो य इतिकाऊण वरं महावीरोत्ति नामधेयं से कयंति, इय निवत्तियाभिहाणो सुरसंक्रामियकामियपवर| रसाए निययंगुलीए पाणेण कयभोयणकायबो जयगुरू पंचहिं धावीहिं परियरिओ अंतेउरीलणेण सायरं चेव लालिजमाणो अम्मापियरेहिं बहुप्पयारं चरणचंकमणं काराविजमाणो चेडचडयरेणं पइक्खण मुलाविजमाणो सायरं देवदेवीर्विदेण पजुवासिज्जमाणो निरंतरं गीएहिं गिजमाणो पाढहिं पढिजमाणो चित्तेहिं उबलिहिजमाणो दंसणूसुएहि लोएहि अहमहमिगाए पलोएजमाणो गिरिकंदरगउच्च कप्पपायवो वहिउमारद्धोत्ति कमेण य पडिपुन्नसरीरावयवो तापिच्छगुच्छसच्छहपरूढसिणिद्धमुद्धरुहसिहंडो विसुद्धपबुद्धबुद्धिपगरिसागिठ्ठलट्ठभासाविसेसविसारओ पडिपुन्नसुयसायरपारगामी ओहिन्नाणमुणियचक्खुगोयराइकंतवत्थुवित्थारो अतुच्छ सुइनेवत्वधरो सयललोयलोयणाणंदजणणं देसूणट्ठबरिसपजायं कुमारत्तणमणुपत्तो समाणो भयवं बालभावसुलहत्तणओ कीडारईए अणेगेहिं समवएहिं मंतिसामंतसेडिसेणावइसुएहिं खेडविहिवियक्खणेहिं समं पारद्धो रुक्खखेडेण अभिरमिउं, तत्थ य एसा ववत्था-जो रुक्खेसु सिग्धं आरुहद उत्तरइ य सो सेसाई डिभाई पट्ठीए आरुहिऊण वाहेद, इओ य सोहम्मे %%44ॐॐॐ For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करणं. श्रीगुणचंद | देवलोए सोहम्माए सभाए अणेगर्देवकोडिपरिघुडस्स सहस्सनयणस्स पुरओ जायतेसु तियसेहिं समं विविहसमुल्लासु तिप्रशंसा धीरत्तणगुणवन्नणपत्यावे भणियं पुरंदरेण-भो भो सुरा! अपुवं किंपि भयवओ बद्धमाणसामिस्स वालत्तणमणुपत्तस्सविद सरसर्पपराप्रस्ताव धीरत्तणं सरीरपरक्कमो य, जं न तीरइ केणापि बलपगरिसकलिएण देवेण दाणवेण वा सयमेव पुरंदरेण वा भेसिउं, ।१२५॥ परसमेण वा पराजिणिउंति । एवं च निसामिऊण एगो सुरो अञ्चतकिलिट्ठचित्तत्तणओ अतुच्छमिच्छत्तुच्छाइय विषेयत्तणओ य चिंतिउमारद्धो, कहं? जह तह जंपियरम्मं सच्छंदुद्दामचिट्टियसणाहं । मुक्काववायसंकं धना पावंति सामित्तं ॥१॥ किं संभविज एयं जं बालंपिंहु न खोभिउं सका । अविचिंतणिजमाहप्पसालिंणो देवदणुवइणो? ॥२॥ अहवा हत्यट्ठियकंकणस्स किं दप्पणेण परिमिणणं १ । गंतूण सयं चिय तस्स धीरिमं लहु परिक्खामि ॥३॥ 18 एवं संकप्पिऊण जत्य सामी अभिरमइ तत्य आगंतूण तरुवरस्स हिडओ खोमणत्थं एगं महापमाणसरीरं अंजणपुंजगवलगुलियापडलकसिणप्पभोलिसामलियवणनिगुंज तंबचूडचूडाइरेगरतलोयणं विजुदंडचंचलललंतलोलजी-1 हाजुयलं उक्कडकुडिलबटुलकक्खडफडाडोवकरणदच्छं जुगक्खयखुभियसमीरघोरघोसं अणाकलियपयंडरोसवेगं ॥ १२५ ॥ तुरियगमणं संमुहर्मितं दिवमहाविसं सप्परूवं पिउवइ, सामीवि तं तहारूवं लीलाए अबलोइऊण जुन्नरजुखंडं व वामहत्येण उडे दूरे निच्छुभइ, ताहे देवो विचितेइ-एसो एत्य न ताव छलिओ। अह पुणोऽपि सामी तिदूसएण । For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailasagarsun Gyanmande www.kobatrth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अमिरमइ, सो य देवो घिढ़िममवलंबिऊण आमामियमवायमविभाऊण य बालयरूवं विउविऊण सामिणा सद्धिं रमिउमारद्धो, अह जिणेण वियक्खणत्तणओ पराजिया सत्वेऽवि बालगा पट्ठिए समारुहिऊण समाहत्ता वाहिउं, अह वाहिएसु सयलेसु तेसु समागजो सुरकुमारस्सवि वारओ, पणामिया तेण सहरिसं पट्ठी, आरूढो य तत्थ वद्धमाणसामी, तओ सो देवो सामिभेसणटुं तं पिसायरूवं विउवित्ता पवहिउमाढत्तो, केरिसं पुण तस्स रूवं?-खरफरुसा सूयरवालसन्निभासे केसा घडीसंठाणसंठियं उत्तिमंग उट्टियाकमलखल्लयमझं निडालवटुं कविलजडिललोमाओ भमुहाओ, मरुकूवयगंभीरं फुरंतर्पिगलपभाजालं लोयणजुयलं, जमलचुलिमहलं चिविडं च नासापुडं, रुंदगिरिकंदरागारं कवोलमंडलं, घोडगपुच्छसच्छहाओ दाढियाओ, करहस्स व दूरपलंबिरं ओट्ठजुयलं, कुंजरस्स व बाहिं निग्गया कुडिलमीसणा दसणा, अनिलंदोलियपडायव चंचला निसियकरवालदीहा जीहा, सुक्खाणुसरिसा कंधरा, कोढिगागुरुवाओ दोवि बाहामओ, सुप्पचष्पर्ड पाणिसंपुर्ड, सिलापुत्तगोवमाजो करंगुलीओ, पुराणसिप्पिपुडरुक्खा अंगुलीणं महा; पण्डनसाजालजडिलं पंसुयंतराले फ्युत्तघोरतक्सिहरं उरट्टिपुंजरं,अलिंजरागारं उयरं, मुट्टिगेज्झा ठाणट्ठाणभग्गा लाकडी, वालुंकीफलवलंबिरा वसणा, करिवरंगप्परूढं मेढं, दीहवीमच्छाविवन्नरोमावलीपरिखित्तं तालतरुदीहरं जंघाजुगं, नींसाहपत्थरविच्छिन्ना चलणा, कुद्दालदारुणा चरणगुलीणं नहा। अवियविकरालविङविश्वयणकंदग्मिरियजलगजालोहं । चलमतलपहयभूवलचालियपासायसिंहरगं ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %-34.7 सुरपिशाच श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्ताव: मनिवसणं रुहिरमादि च करित भासमसिमेहतमसाम । | मुष्टिघात ।१२६॥ AAPKARKacc उडपसारियदीहतरभुयग्गलाखलियसूररहपसरं । परिमुक्कमहंतहट्टहासपायडियदढदाढं ॥२॥ कंठपलंबिरपयतलविलग्गबीभच्छसरडवणमालं । नउलकयकण्णपूरं जन्नोइयकयमहासप्पं ॥३॥ उक्कत्तियचित्तयचम्मनिवसणं रुहिरमंसलित्ततगुं। अइघोरजराजजरअयगरपरिवद्धखंधतलं ॥४॥ पइसमयमुल्ललंतं नचंतं कहकहति पहसंतं । उक्कटिं च करितं भीसणसद्देण भासंतं ॥५॥ इय तस्स भीसणं जिणवरेण दिळं महापिसायस्स । पइखणविवढमाणं रूवमसिमेहतमसामं ॥६॥ तओ मुणियकइयववियारेण जिणेण सबहा असंभंतेण सो पहओ हेलाए पट्ठिवटुंमि मुट्ठीए, करयलकुलिसजणि| यसरीराभिघाओघ विरसमारसंतो झडत्ति पत्तो महत्तणं, निरुवक्कमकायत्तणओ चेव न सयसिकरमुवगओ, नवरं निच्छियसुराहिवइवयणो जायपच्छायावो नियदुचरियचुन्नियंगो सवायरं पणमिऊण जिणं पढि उमाढत्तो हा दुट्ट दुहु तइलोयनाह! एवं मए समायरियं । सचंपि न सहहियं सहस्सनयणस्स जं वयणं ॥१॥ तस्सऽणुरूवं संपइ संपत्तोऽहं फलं इमं भीमं । अवगन्नियगुरुवयणाण अहव किर केत्तियं एयं? ॥२॥ संसारमहाभयमवि जो तं विद्दवसि देव ! लीलाए । अम्हारिसे भयकरे तुह तस्स हवेज का गणणा ? ॥३॥ तथा-चलणंगुलिचालियकणयसेल डोलियमहलमहिगोल । जस्स किर बाललीलाइयंपि चित्तं चमकेद ॥ १ ॥ तस्सविय तुज्झ तहलोकनाह! जो विक्कम न याणामि । सो नाममेत्तओ चिय विबुहोऽहं न उण किरियाए ॥२॥ %%2ॐॐ ॐ25 ॥१२६॥ + For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवंविहस्स दुविणयविलसियं खमसु एकवारं मे । पयईएऽवि हुजं पणयवच्छला हुंति सप्पुरिसा ॥३॥ इय खामित्ता भुवणेकबंधषं पणमिण सो तियसो । गयणयलं उप्पइओ चलंतमणिकुंडलाभरणो ॥४॥ भयपि खणं एक कीलित्ता ताहिं ताहिं कीलाहिं । चेडसुहडंगरक्खेहि परिचुडो नियगिहंमि गओ ॥५॥ अह समहिगढवच्छरपजाए जयगुरुमि जायंमि । हरिसियमणो नरिंदो तिसलाए पुरो इमं भणइ ॥ ६॥ देवि! कुमारो संपइ गहणसमत्थो कलाकलावस्स । चट्टइ ता उवणिजउ लेहायरियस्स पढणत्थं ॥७॥ इय भणिए देवीए जएकनाहो महाविभूईए । ण्हविओ पसत्थतित्थुत्थसलिलभरिएहिं कलसेहिं ॥८॥ नासानीसासोझं चक्खुहरं हरिणलंछणच्छायं । परिहाविओ य पवरं सुकुमारं देवदूसजुयं ॥ ९॥ मणिमउडकडयकुंडलतुड़ियपमोक्खेहिं भूसणेहिं च । सुरवरसमप्पिएहिं अलंकिओ तक्खणं चेव ॥ १० ॥ सिद्धत्थनरिदेवि नीसेसकलाकलावकुसलमई । अज्झाक्गो महप्पा वाहरिओ निययभवणंमि ॥ ११ ॥ एग महप्पमाणं ठवियं सिंहासणं च तस्स कए । अन्नं च थेववित्थरमुवणीयं जयगुरुनिमित्तं ॥ १२ ॥ अह जाव नोवणिजइ सामी अज्झावगस्स पढणत्थं । सक्कस्स ताव चलियं सिंघासणममलमणिरुइरं ॥ १३॥ ता ओहिनाणेणं मुणिठं जयनाहबढणवुत्ततं । चिंतेइ अहह मोहो कह विलसइ जगणिजणगाणं? ॥ १४ ॥ नं सयलसत्थपरमत्यजाणगं जयगुरुपि पढणत्वं । अज्झावगस्स संपइ समष्पिडं अभिलसंतित्ति ॥ १५ ॥ SMSACHLOROSCARC15 २१.महा. For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ १२७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सक्को इय चिंतंतो आगंतुणं महप्पमाणंमि । सिंहासनंमि ठविडं नाहं परमाऍ भत्ती ॥ १६ ॥ वंदित्ता जोडियपाणि संपुडो सद्दसत्यपरमत्थं । आपुच्छिउं पवत्तो सामीऽविय वोतुमारो ॥ १७ ॥ सोऽवि उवज्झाओ परमं विम्हयमुच्धहंतो तं कहितं एगग्गचित्तो निसामेइ, जणणिजणगाइणो य विम्हियमणा जाया । अह सहसत्थपयत्थे कहिऊण ठिओ, ताहे सकेण साहियं तेसिं-जह जाइसरणाणुगओ आगन्भवासाओऽवि नाणत्तयपरिग्गहिओ एस भयवं, पाणिपट्ठियं लट्ठमणि व सवं वत्युं नियमईए मुणइ, ता किमेवं अणत्थओ संरंभो कओ ?, एवमायन्निऊण विम्हियमणा परं पमोयमुवगया जणणिजणगा, पुरंदरोऽवि जिणं नमिउं दिवं गओ, तेण पुण उवज्झाएण जे केsवि पयत्था भयवओ वागरेंतस्स सम्ममवधारिया तयणुसारेण सुसिलिटं विरइयं इंदवागरणंति । भयपि निरुवसग्गं कमेण पत्तो तरुणत्तणं, तयणुभावेण य तस्स सुसिणिद्धसुहुमकसिणकुंचिरकेसपासेण विराइयं छत्तागारमुत्तिमंगं, सवणमूलावलंबिणा नलिणेणं व नयणजुयलेणोवसोहियं वयणं, अञ्चंतसस्सिरीएण रयणेणं व सिविच्छेण पसाहियं कणय सेलसिलापिहुलं वच्छत्थलं, गंभीरदक्खिणावत्ताए सप्पुरिसचित्तवित्तीएव नाभीए अलंकियं झसाणुरूवमुयरं, हंसतणुरुहको मलेहिं लोमेहिं करिकराणुरूवं मंडियं जंघाजुयलं, अंगुलीदलग्गविष्फुरंतनहावलीए चिंतामणिपरंपराएच सोहियं जयप डागामगरमच्छा इलक्खणलंछियं चरणकमलं । अन्नं च - भाविरमपायमासंकिऊण मन्ने जिणस्स पढमंपि । हिययाओ नीहरिडं ठियं व केसेसु कुडिलत्तं ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only लेखशाला यौवनं च. ॥ १२७ ॥ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir रागोविहु थेवुप्पन्नपणयभावोऽपि भाविभयभीओ। वाढं कुणइ व वासं करचरणतलाधरतलेसु ॥२॥ एवं च भयवंतं तरुणत्तणमुवगयं रूवविणिजियदेवदाणविंदसंदोहं नाऊण सेसमहीवईहिं नियनियध्यापाणिग्गहत्थं पेसिया वरगपुरिसा सिद्धत्थनरिंदसमीवे, विन्नत्तो य तेहिं राया, जहा-देव ! अम्हे बद्धमाणकुमाररूवाइरेगरंजियमणेहिं नरिंदेहि अप्पणप्पणधूयावरणत्यं तुम्ह सगासे पेसिया ता साहेह किमिह पचुत्तरं?, रना जंपियं-सम्ममालोचिऊण कहिस्सं, वच्चह ताव तुन्भे निययावासेसु, एवं भणिए अवकंता ते पुरिसा, नरिंदेणवि साहिओ एस वइयरो तिसलादेवीए, एयं च आयन्निऊण हरिसभरनिन्भराए जंपियं तीए-देव! तुम्ह पुत्तपसाएण पावियाई मए पावणिजाई, अणुभूयाई अणणुभूयपुवसुहाई, जइ पुण इम्हि तस्स वीवाहमहूसवं पेच्छामि ता कयकिचा होमि, रन्ना वुत्तं-जइ एवं ता देवि! बच्चसु कुमारसमीवं, पनवेसु य तं विवाहनिमित्तं, देवीए भणियं-महाराय!| न जुजइ पढम चिय तत्थ मह गंतुं, लज्जापहाणो हि कुमारजणो होइ, ता सिक्खविऊण पेसिजंतु तप्पणइणो, एवं | वुत्ते रन्ना पेसिया कुमारसमीवे पाणिग्गहणपडिवजावणत्यं पणइणो, तेहि य गंतूण सविणयं जयगुरुणो साहिओ तदादेसो, तं सोचा भगवया भणियं-भो महाणुभाव! किं न मुणह मम चित्तविति? नोवलक्खह विसयविरागं? न जाणह गिहवासपरिहरणाभिलासं ? जेणेवमुल्लवह पाणिग्गहणविसए, तेहिं भणियं-कुमार! मुणेमो सवं, किंतु अणुवत्तणिजं अम्मतायाण वयणं अलंघणिज्जा नियपणइणो, न खलु दुलहो पच्छिमकाले गिहपरिचायभावो, न यावि RECESSSSC For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ४ प्रस्तावः ॥१२८ ।। HAMROSAROKAR लनिभेण कहिजइसयलगुणगणदहाइ समीववत्ति सजहिजइ अत्तणो लहुयत्तण, तणाजणभणिजमाणमंगलमगरागमिसेण सूइजइहै पुण्णमणोरहा पडिकूलिस्संति पुणो तुम्हाभिप्पेयं अम्मापिउणो, भगवया भणियं-पाणिग्गहणमंतरेणावि पुवं चिय विवाहाय अब्भुक्गयं मए इम-जं न जणणीजणगेसु जीवंतेसु सबविरई पडिवज्जिस्सामि, ता जइ एवं ठिए मइ संतोसमुच्च मित्रइंति जणणिजणगा किमकल्लाणं हवेजा, का वापाणिग्गहस्स लट्ठया ?, जेण पेच्छह पयडच्चिय विवाहसमए कलस प्रार्थना. | परंपराठवणमिसेण दंसिज्जइ उत्तरोत्तरदुहाण पावपबंधो, पज्जलंतजलणच्छलेण पयडिजइ महामोहवियंभणं, गवणय-12 लविलसंतधूमपडलनिभेण कहिज्जइ अत्तणो लहुयत्तणं, चउमंडलगावत्तणववएसेण परुविजइ चउगइयं संसारभमण, है घयमहुपमुहवत्थुहुणणकवडेण दाविज्जइ सयलगुणगणदहणं, तरुणीजणभणिजमाणमंगलछउमेणरियंउग्गिरियंभाविजइ चाउदिसमजसो, कंठावलंबियकुसुममालामायाए परूविजइ समीववत्तिणी दुक्खदंदोली, चंदणरसंगरागमिसेण सूइजइ तक्खणं चिय कम्ममलायलेवो, कन्नगापाणिग्गहणकइयवेण दाविजइ अट्ठकम्ममहामोल्लभंडकिणणत्थं हत्थसन्नति । किं बहुणा ?-जं जं विवाहसमए विहिं पलोएमि सुहुमबुद्धीए । सो सो चिंतिजंते रोमुद्धोसं जणइ मज्झं ॥१॥ ता सुयह मोहपसरं अणुजाणह मं विणा विबाहेण । एवं चिय निवसंतं अम्मापिउनिबुइकएण ॥२॥ एवं भणिए पहुणा तो ते जंपति विणयपणपंगा । तुम्हारिसाण काउं एवं नो जुजा कुमार! ॥३॥ ॥१२८॥ पणइयणपत्थणाभंगभीरुणो जं सयावि सप्पुरिसा । नियकज्जपवित्तिपरंमुहा य पयईए जायंति ॥४॥ तहा-किं उसभजिणवरेणं पाणिग्गहणाइ नो कयं पुचि किंवा न चक्किलच्छी परिभुच्चा सतिपमुहेहिं ? ॥५॥ ACCORMAARA For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ROC इय एवं जपतेसु तेसु कंचुइजणेण परियरिया। तिसलादेवी सयमेव आगया भगवओ मूले ॥६॥ अह सत्तट्ठ पयाई अणुगंतुं संमुहं जिणो तीसे । आसणदाणप्पमुहं पडिबत्तिं कारवइ सर्व ॥ ७ ॥ अण्णोण्णघडियकरसंपुडं च देवि पडुच्च भगवंतो। जंपइ अम्मो! साहह आगमणं किंनिमित्तंति ॥८॥ देवीए जंपियं-पुत्त ! तुह दंसणाओऽवि किमन्नं निमित्तं ?, जओ एत्तिएण वसइ जीवलोगो भरियं दिसावलयं । सुहावहा रायलच्छी संतोसमावहइ गेहं निवुई उवजणइ पणइजणो विगवंधयारं तिहुयणं, ता किमवरं वरं साहेमि निमित्तंति, एवमाइनिउण भगषया चिंतियं-अहो अणाइक्खणिज्जो कोऽवि जणणीजणस्सावचे सिमेहो, अतुलं किपि वच्छलं, असरिसा कावि अवलोयणाभिरई, सया चक्खुगोयरगएवि मए अम्बा ईसिअसणेऽवि संघद एवं संतप्पइत्ति विगप्पिऊण पुणो भणिया देवी-अम्मो! तहावि साहेसु किंपि पओयणं १, तिसलाए भणियं-पुत्त! जइ एवं ता पडिवजसु विवाहमहूसवं,जओ एयनिमित्तं एसो पणइजणो अम्हेहिं तुज्झ पासे पेसिओ, तुह विवाहुकंठिओ खु नराहिवो नयरजणो य, ममावि एत्तियमेव संपयं अपत्तपुवं सुह, पडिपुन्ना सुहाणुभावेण सेसमणोरहत्ति, भगवयावि आगच्भकालाओऽपि मम एस पन्नाविसेसो-जं अम्मापिऊणं अप्पत्तियकारिणी पवजावि न कायबत्ति चिंतिऊण निरभिलासेणवि अब्भुवगयं तयाइ8, परितुहा य देवी समं परिजणेण, निवेइओ एस वइयरो नरिंदस्स। एत्यंतरे सिद्धत्थरायमुवटिओपडिहारो निवडिऊण चलणेसु विनविउमाढत्तो य-देव! समरवीराभिहाणराइणो दूओ For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद दुवारदेसे तुम्ह सणूसुओ चिट्ठइ, तत्थ को आएसो, राइणा भणियं-लहुं पवेसेहि, जं देवो आणवइत्ति भणिऊण त्रिशलागमहावीरच. है पवेसिओ पडिहारेण, पणमिओ य तेण राया, उवविट्ठो य दिन्नासणो, पत्थावे य पुट्ठो नरिंदेण, जहा-भद्द! किं आग-1 मनं यशो. ४ प्रस्ताव मणकारणं, दूएण भणियं-देव ! निसामेसु, अस्थि नियसोभापराजियकुवेरपुरे वसंतपुरनयरे समरंगणपरितोसिय दाभिधान॥१२९॥ सुरऽच्छरासत्थो जहत्याभिहाणो समरवीरो नाम राया, तस्स य नियपाणनिविसेसा पउमावईए पणइणीए कुच्छि संभूया जसोयानाम कन्नगा, सा य कहं जसोयत्ति नाममणुपत्तत्ति निसामेह कारणं, किर इमीए जम्मसमए देवो समरवीरो रयणीए सुहपसुत्तो पभायसमए सुमिणं पासइ-जहाऽहं अंगरक्खिगापरिक्खित्तगत्तेहिं विविहपहरणकरेहि सुहडेहिं परिकरिएहिं तरलतुरंगमेहिं गुडियाहिं गयघडाहिं नाणाविहपहरणजोहजुत्तेहिं पहाणरहवरेहिं परिवेढिओ सयंपि मत्तकुंजराधिरूढो उजाणमइगओ, तत्थ य ठियस्स सहसचिय पाउन्भूओ हलबोलो, अंतरंतरा नचंति | केऽवि सुहडा केऽवि पलायंति केऽपि य महीयले धूलीधूसरा रुलंति पडंति विजयचिंधाई विहडंति जयतूराई, एवं च असमंजसं दह्ण मए इओ तओ डोलंतं गहियं नियछत्तं हत्थेण, पत्तो एगो महाविजयद्धओ, सोऽवि संठविओ सारिओ य, एवंविहं च सुविणं पासित्ता पडिबुद्धो संभंतचित्तो पभायसमए सुमिणपाढगे सद्दावेत्ता तेर्सि ॥१२९॥ ६ सुमिणं परिकहेइ, तेहि य सिटुं-देव ! पंचहिं कारणेहिं सुमिणोवलंभो हवइ, तंजहा-अणुभूएण दिटेण चिंतिएण|K पयइवियारेण देवयावसेण वा, तत्थ न मुणिजइ तुम्हाणं एएहिंतो केणावि कारणेण सुमिणोवलंभो जाओत्ति, राइणा For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SANSACREATRA भणियं-एवमेयं, न सम्म उवलन्भेमि कारणं, तेहिं वुत्तं-जइ एवं ता करेह सचं सुविणगं, जहा दिट्ठढिईए सबसामगि काऊण गच्छह उजाणं, को दोसो ?, न मुणिजइ कोऽवि परमत्थो, एवंपि कीरमाणे कयावि गुणो होजा, साभिप्पाओ य किंपि एस डोलंतछत्तधरणविजयचिंधलाभोत्ति वुत्ते राइणा पडिवजिऊण तेसिं वयणं ताडाविया प्रसन्नाहभेरी, तीए सद्दायन्नणेण तक्खणादेव कयसवसंनाहो नरवइसमीवमुवगओ सामंतवग्गो परिचत्तसेसवावारो पुरो ठिओ जोहसमूहो, पासमल्लीणा करितुरयाइणो, तओ चाउरंगबलकलिओ पहाणहत्थिकंधराधिरूढो नयरदूरवत्तिणं गओ नंदणुजाणं, तत्थ य रयणिदिसुमिणभीसणतणं चिंतेतस्स तक्खणफुरियवामनयणपिसुणियानिट्ठघडहै णस्स किंपि अरइविगारमणुसालीणस्स बज्झवित्तीए काणणमणुपेच्छंतस्स नरिंदस्स सच्चिय पुवदिणपेसियचारपुरिससू. इयपत्थावो चिरपरूढवेरसाहणगाढामरिसो अमुणियतदिवसनरवइवइयरो जुज्झसज्जो पञ्चंतसामंतो दुजोहणाभि हाणो पहुत्तो उजाणसमीवं, दिन्नो परिवेढो, जाओ हलबोलो, लक्खियतदागमणो य निग्गओ उजाणबाहिं नरिंदो, ददिट्ठो य पडिरिउणा संगामसज्जो राया, तओ कि वियाणियं ममागमणमणेणंति खुभियचित्तेणवि दुजोहणेण पारद्धं रना सह पहरिउं। अह निसियखग्गकप्पियपयंडं नरमुंडमंडियाभोगं । दद्दोबद्धमोग्गरनिप्पिट्टकिट्टरहनिवहं ॥१॥ कुंतग्गभिन्न कुंजरकुंभत्थलगलियमोत्तियसमूहं । तकालमिलियवेयालकिलिकिलारावभयजणगं ॥२॥ For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ १३० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निवडतछत्तधयचिंधनिचयसंछन्नमेइणीवहं । उत्तट्ठसहत्थिविहम्ममा गनियपवरपरिवारं ॥ ३ ॥ करितुरयघायनिस्सरिय रुहिरपूरिज्ज माणमहिगत्तं । रणतूरखुन्नच्चिर कबंधपेच्छणय भी सणयं ॥ ४ ॥ घोरसमरवावार मे कहेलाए काउमचिरेण । सिरिसमरवीररण्णा वद्धो सो नागपासेण ॥ ५ ॥ भणिओ य सुमर रे इट्टदेवयं एस वट्टसि जमस्स | संपइ पाहुणगो तं दुच्चरियरहंमि आरूढो ॥ ६ ॥ दुज्जोहणेण भणियं भो नरवर ! कीस वाहरसि एवं ? । पारंभे चिय समरस्स सुमरणिजं मए सरिवं ॥ ७ ॥ नियकुलकमाणुरूवं अणुचेट्टसु संपयं विगयसंको। देहेण कथं देहोऽवि सहउ को एत्थ अणुतावो ? ॥ ८ ॥ एवं च आयन्निऊण पडिवन्नकरुणाभावेण समरवीररन्ना नीओ नीयमंदिरं, उच्छोडिया बंधा, काराविओ ण्हाणभोयणाइयं, समप्पियाई समरगहियाणि करितुरयाईणि, तेणाचि अंगीकया सेवावित्ती, तओ जाओ राइणो परमसंतोसो, पसरिओ चाउद्दिसिं जसोत्ति, भणियं च रन्ना -- अहो मम इमीए कन्नगाए पसवकालेऽवि एरिसो जसो दिण्णो, तुम्हा होउ एयाए जसोयत्ति जहत्यभिहाणंति वृत्ते महया रिद्धिसमुदएणं कथं एवमेव से नामं । अहसा चंदलेहब बहुंती पत्ता कमेण जोधणं, अन्नया पुट्ठो राइणा नेमित्तिओ को इमीए पाणिग्गाहो भविस्सइति १, सेणावि साहियं देव ! सिरिवच्छलंछियवृच्छयलो सयलसुरासुरन मियकर कमलो अट्टमहस्सल+खणधरो पुरिसप्पवरो नि च्छियं एयाए पई होहिचि, एवं निसुनिए ठिओ नरिंदस्स हियए तुम्ह कुमारो, तओ आहूओ मेघनाओ नाम सेणावई For Private and Personal Use Only समरवीर* दुर्योधनयुद्धं ॥ १३० ॥ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समप्पिया तस्स जसोयकन्नगा, दिन्नो सयंवर विवाहजोग्गो महंतो हयगयकणगाइविच्छडो, भणिओ य जहा-भद्द! गच्छसु तुरियं, कारवेसु पाणिग्गहणमहिमंति, तओ नरवइवयणाणंतरमेव चलिओ अक्खलियपयाणगेहिं एसो, अहं पुण एयकज्जनिवेयणत्थमेव पढमं चिय तुम्ह पासे पेसिओत्ति, ता देव ! एयं तं आगमणकारणं । रन्ना भणियं मद्द ! सम्मं कथं, अणुरूवमेयं, पट्टिज्जउ अकालपरिहीणं वंछियत्थो, दूएण जंपियं-देव ! कहं न पयट्टजइ जेण विवाहलग्गंपि आसन्नं यट्टइत्ति वृत्ते रन्ना सेसनरवइवरगपुरिसा सम्माणिऊण विसज्जिया नियनियट्ठाणेसु, अन्नदिवसे य समागया सा रायकन्नगा बद्धाविओ नरिंदो दवाविओ तीसे निवासनिमित्तं समुत्तुंगसत्तभूमिगो पासाओ पेसिया रसवई काराविया अन्नाचि तक्कालोचिया पडिवत्ती, पसत्थमुहुत्ते य कयपवरसिंगारो अणेग सामंतसुहड परिवुडो आगओ | मेहनाओ सेणावई, पणमिओ अणेण राया, पुच्छिओय कुसलोदतं, राइणाऽवि तस्स दवावियं आसणं तंबोलाइदाणपुचयं च पुट्ठो समरवीरनरेसरसरीरकुसलवत्तं, सविणयं साहिया य तेण, अह विविहसंकहाहिं गमिऊण खणमेकं रन्ना अन्भणुन्नाओ समाणो उडिओ मेहनाओ, गओ य निययावासे, समारद्धो विवाहोवकमो, बंधाविया मंचा, जहोचियं विरइयाई आसणाई, निरूविया विविह्नकम्मेसु किंकरा, परिकप्पियं वेइगाविमाणं । तं च केरिसं ? मरगयमणिचच्चिक्किय सुवण्णवरकलसविरयणारम्मं । अइनिम्मलरंभागग्भखंभउद्भूयविजयपडं ॥ १ ॥ परिमुक्कक्कुसुमपुंजोबयारपरिभमिरभमररवमुहरं । निम्मलमुत्ताहलभरियचारुमणिकोद्विमचकं ॥ २ ॥ For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री गुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ १३१ ॥ www.kobatirth.org चउदिसिविमुक्कदप्पणपडिबिंवियकामिणीवयणकमलं । ठाणट्टाणनिसियवरमणिपडिहणियसंतमसं ॥ ३ ॥ गरुडमणिपसरियकिरण पडलविच्छुरियम हियलाभोयं । नवगोमयरस लित्तं व रेहए वेश्याभवणं ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं च निवत्तिऊणं तक्कालोचियकायचं मेहनाहेण कहावियं सिद्धत्थरन्नो, जहा-समीवमागयं वट्टइ पसत्थं हत्थग्गहणमुत्तं, ता कुमारं घेत्तूण सिग्घमागच्छहत्ति । राइणावि एवमायन्निऊण भणिया तिसला-देवि ! सिग्धं करेहि कुमारस्स पुंखगाई कायचं, आसन्नो वहइ समओत्ति, एवं सोचा देवी परमायरेण विविहप्पयारेहिं मंगलसद्दपुरस्सरं पुंखिऊण सचोसहीहिं हविओ कुमारो, नियंसाविओ महामोलं धवल दुगुलजुयलं, काराविओ सर्व्वं कायवविहिं, अविय-गोसीससुरभि चंदणविलेवणापंडुरो जिणो सहइ । सरयनिस रजोण्हाऍ धवलिओ कंचणगिरिव ॥ १ ॥ कसिणघणकेसपासो रेहइ सो कुसुमगुच्छसंछन्नो । पप्फुरियतारतारी वसोहिओ गयणभागोच ॥ २ ॥ सट्ठाणपिणद्धविचित्तरयणनवभूसण भहियसोहो । जंगमभावमुवग रोहणसेलोच पडिहाइ ॥ ३ ॥ साभावियावि सोहा न तीरए जिणवरस्स साहेउं । किं पुण विसेस मंडणमंडियदेहस्स तत्थ खणे ? ॥ ४ ॥ एवं च कयउचियकायचे कुमारे निवेइयं राइणो, तेणावि निउत्ता नियपुरिसा- अरे पयट्टेह नगरमहूसवं मेलेह नायखत्तियवग्गं समप्पेह कुमारस्स पसाहियसरीरं जयकुंजरं जेण गाइ विवाहट्ठाणंमि, जं देवो आणवेइत्ति भणि- ऊण गया पुरिसा, निवत्तिओ नरिंदाएसो, तओ घवलपसाहियकरिव रारूढो पवणपणचंतधयवडुग्घायसुंदररहवरा For Private and Personal Use Only मेघनाद - सेनानी विवाह:. ॥ १३१ ॥ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - KA R MA रूढरायलोयपरियरिओ मणहरनहोवयारकुसलनचंतावरोहसुंदरीवंदनिरुद्धरायमग्गो वजंतमंगलतूररवाऊरियसयलदिसामुहो सिद्धत्थनराहियेण जेट्ठभाउगनंदिवद्धणजुवराएण य अणुगम्ममाणो सिरिवद्धमाणकुमारो सायरमवलोयणक्खित्तचित्तेण भवणमालातलसंठिएण पुरजणेण दंसिजंतो अंगुलिसहस्सहिं पुज्जमाणो आसीससएहिं अग्पविजमाणो अक्खयसम्मिस्सकुसुमबुद्विवरिसेहिं संपत्तो कमेण विवाहमंडवंति, अह मंडवदुवारेचिय पडिरुद्धो पडिहारजणेण सामन्नलोओ, पविट्ठो पहाणलोएण समं अभितरंमि, विलयाजणेण ओमिलणपुत्वगं झत्ति विविहं पसाहिया सा जसोयवररायकन्नावि, तथाहिरमणफलगंमि तीसे आवद्धा पंचरायमणिकंची । अइविच्छिन्ने गयणंगणंमि हरिधणुहलेहच ॥१॥ नयणेहिं कज्जलुम्मिस्सिरेहिं सइदीहरेहिं निद्धेहिं । पञ्चक्खा सरयसरिव सहइ सा नीलनलिणेहिं ॥२॥ कंठतलंमि य तीसे लोलंतो नवसरो वरो हारो । वयर्णिदुविन्भमागयतारावलिलीलमुबहइ ॥३॥ तीसे जावयरसपंकपाडलं कोमलं चलणजुयलं । पल्लवजुयं व नजइ वम्महकिल्लसाहिस्स ॥४॥ भालतलंमि य तीसे लिहिओ गोरोयणाएँ वरतिलओ। तह दससु अंगुलीसु आविद्धं मुद्दियाजालं ॥५॥ इय सविसेसपसाहणपसरंतसरीरकतिरमणिजं । मंजुमणिनेउरारवसवणागयहंसखलियगई ॥६॥ मणिकुट्टिमपडिबिंबियमुहकमला मत्तकुंजरगईए। चलिया चेडीचशेण परिवुडा सा नरिंदसुया ॥७॥ - -% For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच ४ प्रस्तावः SENA श्रीवीरस्य यशोदया विवाह, ॥ १३२॥ BASEASTERSEKACASS पत्ता य तक्खणागयपुरोहियारद्धजलणकम्ममि । नववंदणमालामणहरंमि वरवेइगाभवणे ॥८॥ तत्तो पाणिग्गहणं पारद्धं गीयमंगलसणाहं । सयलतइलोकदावियपरमाणंदं महिहीए ॥९॥ - एत्यंतरे उभयपक्षेहिवि काराविओ जणाणमुवयारो दावियाई मिगनाभिपमुहसुरहिगंधविलेवणाई सरभसरुंटतछप्पयपयनिवेसभचिराई कुसुमदामाई सुरहिगंधबंधुरा पडिवासा भूरिकप्पूरपारीपहाणाई पूगीफलसणाहाई नागवल्लीदलाई देवंगचीणद्धचीणदोगुलपट्टपमुहाई पवरवत्थाई केयूरकुंडलकिरीडतुडियकडयाइणो आभरणविसेसा सिंधुतुरु|कवल्लीयवजरकंबोजाइसुखेत्तजायाओ तुरयवंदुराओ मंदभहाइविसिट्ठवंसप्पसूया महागयविसेसा, एत्यंतरे जलणे हुणिजमाणंमि महुपयाईहिं कन्नावराण वित्तं चउत्थमंडलगपरिभमणं, ताहे सेणावइणा आणंदुस्छलियबहलपुलएण कोडी. बसीसं पवररूवस्स कणगस्स कुंडलकडिसुत्तयमणिकिरीडपमुहं तमाभरणं कचोलसिप्पिथालाइयं च कलहोयमयभंड अइदूरदेससंभूयचित्तचेलाई भूरिभेयाई कन्नाए पाणिविमोयणमि दिनाई कुमरस्स, सिद्धत्थनरिंदेणवि बहुगाए कणगवत्वलंकारा परितोसमुबहतेण वियरिया भुवणदुलंभा। एवं च सुरासुरनरपरितोसकारए वित्ते विवाहमहूसवे कए भोयणाइसक्कारंमि सहाणेसु पडिनियत्तमि रायलोए ६ नियनयरमुवगयंमि मेहनायसेणावइंमि ससहरकरगोरपासायसिहरसंठियस्स उचियसमए दिवविसयमणुभुंजमाणस्स पुन्नपगरिसुप्पजंतचिंतियत्थस्स देवगणोवणिज्जमाणपवरवत्थगंधमल्लविलेवणालंकारस्स ववगयरोगायंकस्स कयाइ ॥१३२॥ For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir GURMEROCALCCALAR सेवागयतुंवरुसमारद्धकलरवपंचमुग्गारसवणेण कयाइवि सायरपणचिरसुरवहूपेच्छणयावलोयणेण कयाइ गंभीरजणविवायनिन्नयकरणेण कयाइ जणणिजणगसमीवगमणेण भगवओ बोलिंति वासरा । ___अह गएसु कित्तिएसुवि संवच्छरेसुवि आवन्नसत्ता जाया जसोया, कालकमेण य पसूया सुकुमारचरणकरयलं चाररूवोवसोहंतसरीरावयवं तेयसिरिं व पचक्खं दारियं, कयं च समुचियसमए पियदंसणत्ति से नामं, सा य सायरमुव-1 लालिजमाणा पवविउमारद्धत्ति । अह भगवओवि वट्टमाणमि अट्ठावीसइमे वरिसे पालियनिक्कलंकपासजिणपणीय-13 धम्मा अम्मापियरो कुससंथारयमारुहिता कयभत्तपञ्चक्खाणा अपच्छिमसंलेहणाझुसियसरीरा तइयभवे अवरविदेहमि अवस्सपावियव निबुइणो कालं काऊण अचुयकप्पे देवत्तेण उववन्ना, ततो सोगाउरेण नंदिवद्धणपमुहेण रायलोएण को तेसिं सरीरसक्कारो, कयतकालोचियकायचे य सट्ठाणट्ठियंमि तंमि अणिटुं दटुं अपारंतोच पत्थिओ। अत्थमणगिरि दिणयरो, सउणिकोलाहलरवेण रोविउमारद्धव संझा, निस्सरंतभमररिंछोलिच्छलेण अंसुजालं व मुकं कमलायरेहिं, सदुक्खमहिलाजणमणुसासिउं व पयट्टा रयणी, विरहानलसंतत्तगत्तं रायलोयं निवविउकामोव समुग्गओ ताराहियो, अहापभायाए रयणीए समुग्गयंमि दिणयरे अचंतदुस्सहसोगावेगविवससरीरं पिव विरह-12 विहुरंतेउरीपरिगयं नीसेससयणवग्गपरिवुडं नंदिवद्धणजुवरायं पेच्छिऊण भणियं भगवया-भो परिचयह सोयं, अणुचिंतह परमत्थं, निरत्थओ खु सोगो, जओ-अणिवारियसच्छंदसंचरणदुल्ललिओ पंचाणणोब कयंतो सुमिणगं व A २३ महा. For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद 8 खणदिट्टनटुं संजोगविलसियं माइंदजालरमियं पिव मुहुत्तमेत्तसुंदरं पेम्म कोदंडलद्विव गुणाणुगयावि कुडिला कन्ज- श्रीसिद्धार्थउहावीरच० परिणई संझन्भगगोब अचिरावत्थाणं धणं महाभुयंगा इव दुन्निवारा विविहरोगायंका, ता सबहा नत्थि किंपि त्रिशलयो४ प्रस्तावः Pएत्थ संसारे सोयणिज पडिबंधढाणं वा पबलं, एकं चिय अणुसरह विवेयं परिचयह भोगपिसायं कुणह कायचं, देवबम्. । १३३ ॥ सबसाहारणो हि एस वइयरोत्ति । एवं ते निसामिऊण पयणुपेमाणुबंधा सिढिलियसोयावेया जायत्ति । ___ अन्नदिवसे य जोइससत्थपरमत्थवियक्खणनिमित्तिगोवइट्ठपसत्थमुडुत्तमि पहाणलोगेण अणेगपयारेहिं भणिओऽवि जयगुरू जाव न पडिवजइ रजं ताव नंदिवद्धणो अभिसित्तो सिद्धत्थराइणो पए, पणमिओ नायखत्तियवग्गेणं बहु मनिओ नयरकारणिएहि परियरिओ सामंतेहिं पडिवण्णो सेवगजणेणं पूइओ पचतराईहि, एवं जाओ सो महाराओत्ति । ___ अन्नया य तं सयणवग्गाणुगयं भयवं भणिउमाढत्तो-भो पडिपुन्ना मम संपयं पुछपडिवन्ना पइन्ना, कयं च सबं है करणिजं, तासिढिलेह नेहगंठिं, होह धम्मसहाइणो, अणुमन्नेह मम सबविरइगहणत्थंति, अह वजासणिनिवडणदु ॥१३३॥ विसहं निसामिऊण वयणमेयं भणियं तेहिं-कुमारवर! अज्जवि महारायसोगो तहडिओ चेव अम्हाणं नसलं व विहवइ हिययं, किं पुण अकाले चिय तुम्हहिं सह विओगो खयक्खारावसेगोच दुस्सहो?, अहो मंदभग्गसिरसेहरा अम्हे जेसिं उत्तरोत्तरा निवडइ दुक्खदंदोलिचि भणिऊण रोविउं पवत्ता, बहुप्पयारं च सासिया महुरवय For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिं भगवया, कहकहवि निरुद्धबाहप्पवाहा य तकालचउग्गुणीभूयं संताववेगं निरंभिऊण भणिउमाढत्ता-अहो परमेसर! करुणापरो हवसु अम्ह जीवियचे, परिहरसु संपयं सबविरइवछं, एयपि काऊण तुमए पाणिणो रक्खणिज्जा, ते य जइ पढमपि दुस्सहविओगकरवत्तभिजमाणहियया रक्खिजिस्संति ता किमजुत्तं होजा?, तुम्हहिं रहिया नूणं अवगयलोयणच अमुणियगम्मागम्मविभागा वइदेसिगा इव अणाहा खणमेपि न संधीरेमो अप्पाणंति, भगवया भणियं-जइ एवं ता सम्ममालोचिऊण भणह-केत्तियकालेण तुम्भे ममं दिक्खागहणत्थमणुमनिस्सह ?, तेहिं । भणियं-संवच्छरदुगेणं अइगएणंति, भगवया जंपियं-एवं होउ, परं मम भोयणाइसु न तुम्हेहिं विसेसचिंता कायबा, तेहिं भणियं-एवं करिस्सामो, तओ तदिणाओ आरब्भ परिचत्तसपसावजवावारो सीओदगपरिवजणपरायणो फासुयाहारभोई दुक्करवंभचेरपरिपालणपरो परिमुक्कण्हाणविलेवणपमुहसरीरसकारो फासुओदगेण कयहत्थपायपक्खा18 लणाइकायचो जिणिदो ठिओ वरिसमेगं ॥ तहिं च परिमुक्काभरणोऽविहु पहाणविलेवणविवजिओऽवि जिणो । जुगबुग्गयबारससूरतेयलच्छि समुबह ॥१॥ सयणोवरोहणेहेण धरियगिहसरिसबज्झवेसोऽवि । लक्खिजइ जयनाहो संजमरासिव पञ्चक्खो ॥२॥ सा कावि गिहगयस्सवि जिणस्स मज्झत्थया पवित्थरिया।जा निग्गहियमणाणवि मुणीण चित्तं चमकेइ ॥३॥ अह वच्छरपजंते तिलोयचूडामणी महावीरो । वारिसियमहादाणं दाउं परिचिंतए जाव ॥४॥ CARCHCRACAN For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ १३४ ॥ www.kobatirth.org सोहम्मदेवलोए सुहासणत्थस्स ताव सकस्स । रयणपहपसरपयर्ड झडत्ति सिंहासणं चलियं ॥ ६ ॥ तचलणे ओहीए सो नाउं नाहमाणसविकप्पं । अइरभसभर वियंभियपुलउप्पीलंश्चियसरीरो ॥ ६ ॥ सिंहासणाओ उट्ठिय सत्तट्ट पयाई संमुहं गंतुं । थोउं जएकनाहं चिंतेउमिमं समादत्तो ॥ ७ ॥ भयवं जिणवरवीरो आवरिसं दाणमीहए दाउं । तस्स य धणप्पयाणं जुज्जर मह संपयं काउं ॥ ८ ॥ चिंतिऊण जक्खं वेसमणं आणवेइ वज्जहरो । निक्खमणदाणजोग्गं खिव कणगं । जणगिहंमित्ति ॥ ९ ॥ इमं च सोचा धरणिवटुचुंविणा मत्यएण पडिच्छिऊण सुरिंदसासणं कयकिचमप्पाणं मन्नतो वेसमणो तिरियजंभगे देवे आणवेइ, तेऽवि तहत्ति विणएण पडिणित्ता जिनिंदमंदिरे तरुणतरणिसप्पगासं चामीयररासिं वरि संति । तओ भयवं पइदियहं तियचउक्कचचरचउम्मुहमहापहपहेसु अन्नेसु य तहाविहट्ठाणेसु बहूणं सणाहाण य अणाहाण य पंथियाण य करोडियाण य कप्पडियाण य वाहियाण य वइदेसियाण य रिणपीडियाण य दोगञ्चसंतावियाण य अन्नेसिंपि घणाभिलासीण अणिवारियप्पसरं वरवरियाघोसणापुचयं कणगं सययं दवावे, तं च महया पबंधेण दिजमाणं अट्ठलक्खाहिग एगहिरन्नकोडीमेत्तं एगदिणेणं निट्टविज्जइति । १ ॥ अह मगहमसूरकलिंगवंगसोरद्वपमुहदेसेसु । अच्छिन्नसुवन्नमहापयाणओ पसरिया कित्ती ॥ ताहे जंपति जणा परोप्परं तेसु तेसु ठाणेसु । चलह लहु भयवंतं पेच्छामो तत्थ गंतूणं ॥ २ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only प्रतिज्ञापूर्तिः वार्षि कदानम्. ॥ १३४ ॥ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CAREER तवणिजपंजलाभेण इह भवे विगयदुक्खमप्पाणं । कुणिमो परलोयंमि य तइंसणजणियपुत्रेण ॥३॥ परभवपरूढखरदुक्खनिवहसंतत्तसवगत्ताणं । अन्नो नत्थि उवाओत्ति अम्ह एसो हवउ सरणं ॥ ४ ॥ इय णेगेसुं मग्गणगणेसु इंतेसु दूरदेसाओ । पूरियमणोरहेसुं अन्नेसु नियत्तमाणेसु ॥ ५॥ कुंडग्गामंमि पुरे रुंदासुवि तासु तासु रत्थासु । निद्दयनिद्दलियउरो दुक्खेण जणो परिभमइ ॥६॥ जत्थ निहाणे दिहि पम्हलघवलं परिक्खिवइ वीरो । दट्ठइ तत्थ हिरन्नं करुणारसमच्छरेणं व ॥७॥ अत्थिजणपरिवुडे जिणवरंमि गेहंगणे भमंतंमि । परिसकिरकप्पमहादुमच लक्खिजए पुहई ॥ ८॥ दाणे य जायणमि य दायगतकुयजणेण सवत्थ । सरिसचिय उलावा वियंभिया देहि देहित्ति ॥९॥ एत्थ रयणुक्कर एसु ठवेह एत्थ य पवित्थरे वत्थे । पूरेह एत्थ तवणिजपुंजए मग्गणनिमित्तं ॥ १० ॥ इय दाणनिउत्तजणस्स पइदिणं किंकरे भणंतस्स । पुणरुत्तो वावारो जाओ संवच्छरं जाव ॥ ११॥ अखलियपसरं सिरिजिणवरेण दिंतेण दुत्थियाण धणं । सेसाणवि पयडिजइ सिवपुरपंथो धुवं एस ॥ १२ ॥ सच्चावायनिबंधण धणेवि जो कुणइ मोहिओ मुच्छं । सो दुक्करतवचरणे अत्ताणं कह व संठविही? ॥ १३ ॥ ता जिणवराणुमाणेण सबविरई समीहमाणेण । अन्नेणयि एवं चिय पयहियवं सइ धणमि ॥ १४ ॥ एवं च दाणे अणुदियहं पयट्टमाणे नंदिवद्धणनरिंदो नियपुरिसे सहावेत्ता एवं आणवेइ-भो भद्दा! एयस्स नय Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वार्षिकदा श्रीगुणचंद महावीरच. ४ प्रस्ताव: नम् ॥१३५॥ MASCAMERASACREASE रस्स तेसु तेसु पएसेसु बहूओ महाणससालाओ काराविऊण विउलं असणपाणखाइमसाइमरूवं आहारं उवक्ख- डेह, तयणंतरं च जे जहागच्छंति खुहाभिभूया तण्हापरिसुसियकंठा पासंडत्था गिहत्था वा अन्ने वा तहारूवा तेसिं तहा आसत्थाणं सुहासणगयाणं हरिसुप्फुल्ललोयणाणं तं चउविहंपि आहारं सबायरेण दवावेह, तहा ठाणे ठाणे मुंचह मंदभद्दाइजाइणो करिणो चउदिसं संठवह सूररहतुरयविन्भमे पवरतुरंगमे सबत्थ पयडह रहनिवहे पएसे पएसे मेलह पवरपट्टणुग्गए वत्थसमुदए दंसह गामागराइणो संनिवसे, एएहिंतो जो जं समीहेइ तस्स तं वियरहत्ति, जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण निग्गया पुरिसा, समारद्धो सवत्थ नरिंदाएसाणुरूवो उवक्कमो । अह अनिवारियवेरिए समगणियरायरोरे अमंदाणंदसंदोहजणणे भगवओ पयट्टे संवच्छरियमहादाणे एत्तियं अत्थो सवसंखाए गओतिन्नेव य कोडिसया अट्ठासीयं च होंति कोडीओ । असियं च सयसहस्सा सबग्गेणं दविणसंखा ॥१॥ इय मग्गणलोयं तप्पिऊण आवरिस कणगवरिसेण । पञ्चज्जापडिवत्तिं कुणइ मणे जिणवरो वीरो ॥२॥ अह बंभलोयकप्पे रिलुमि विमाणपत्थडे विउले । दिवविमाणोवगया एए देवा महासोक्खा ॥३॥ सारस्सयमाइचा वण्ही वरुणा य गद्दतोया य । तुसिया अबाबाहा अग्गिच्चा चेव रिहा य॥४॥ तक्खणविचलियसीहासणा य ओहीऍ नायनियकिचा। नियनियपरियणसहिया झडत्ति जिणपासमलीणा॥५॥ ॥१३५॥ For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विणयपणमंतमत्थयगलंत मंदारसुरहिकुसुमभरा । तत्थाहिं गिराहिं जिणं थोडं एवं समारद्धा ॥ ६ ॥ जयसि तुमं मयरद्धय सिंधुरखरनहरदारुणमईद ! । चलणग्गचालियाचलसंखोभियसधरधरणियल ! ॥ ७ ॥ नियकज्जपरंमुह भुवणर क्खणक्खणिय ! परमकारुणिय । नायकुलकमलवणसंडचंडमायंड ! तुज्झ नमो ॥ ८ ॥ जह लोयालोयगपि नाह ! तं मुणसि वत्थुपरमत्थं । तह किं कयाइ जाणइ मंदमई मारिसो- लोओ ? ॥ ९ ॥ अहवा हेलुल्लासिय करपसरनिरुद्धतिमिरनियरस्स । सूरस्स पुरो खज्जोयगाण का होड़ देहपहा ? ॥ १० ॥ तहवि य निययाहिगारं नाह ! कलिऊण नूणमम्हेहिं । सुमरणमेत्तनिमित्तेण तुह इमं सीसए किंपि (सामी) ॥ ११ ॥ पजं पडिवज्जसु भवरुय संतत्तगत्तसत्ताणं । तित्थंकर ! तित्थमणत्थमंथणं लहु पट्टे ॥ १२ ॥ अइमूढकुतित्थियदुट्टदेसणातिमिरनियर अंतरियं । पयडेसु मोक्खमग्गं निरुवमनाणप्पईवेण ॥ १३ ॥ अइभूरिविचित्ताइसयरयणकारुन्नवारिभरियाओ । वयणामयं पगिण्हउ लोओ तुह सायरा ॥ १४ ॥ निस्सामन्नं सामन्नभावमायन्निऊण सयलजणो । रोमंचकंचुलो आकप्पं तुह कहं कहउ ॥ १५ ॥ इय सविजयदेवगणोवइकायन्वदुगुणिउल्लासो । जाओ जएकचक्खू सविसेसं मोक्खसोक्खमई ॥ १६ ॥ एवं च विन्नविऊण सट्टाणं गए लोगंतियतियसेसु उट्ठिऊण भयवं सीहासणाओ पासवत्तिणा परियणेण अणुगम्ममाणो गओ नंदिवद्धणपमुहाणं नायखत्तियाणं समीवे, तेऽवि जिणमितं दद्दूण सत्तट्ट पयाई गया सम्मुहं, कया For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ १३६ ॥ www.kobatirth.org उचियपडिवत्ती, दवावियं महप्पमाणं सिंहासणं, निसन्नो जिणो, अणुरूवासणेगु य जहकमं उपविठ्ठा नंदिवद्धणाइणो । तओ ते भगवया अमयबिंदुसंदोहसुंदरीए सभावमहुराए अपुणरुत्ताए गंभीराए भारईए भणिया, जहा - भो देवाणुप्पिया ! पडिपुन्नो तुम्हाणमवही, जाओ पत्थावो मम सवविरइपडिवत्तीए, ता सहरिसं अणुमन्नह इयाणिं, मुयह पेमाणुबंध, निहुरं कुणह विओगकायरं नियमणंति, ते य एवमायन्निउण गाढमण्णुपरिपूरिज्जमाणगलसरणिणो कहकहवि निरुद्धसोगावेगा अणवरयनिस्सरंतनयणंसुबिंदुजालच्छलेण पणयप्पन्भारं व चिरं उग्गिरिऊण भणिउमाढत्ता -भयचं! तुम्ह एवं भणता वजमया धुवं अम्ह सवणा जं न संपत्ता बहिरत्तणं, वइरसारप्परमाणुविणिम्मियं हिययं जं न वञ्चइ तडत्ति सयसिक्करत्तणं, निद्दक्खिन्नत्तणपरममंदिरं व सरीरमिमं जमज्जवि न पवज्जइ रसायलगमणं, एवं ठिए य कहं पत्थुयत्थाणुमन्नणनिमित्तं पयट्टउ वराइणी वाणी, जओ-को होही विसमकज्जोयहिनिवडिराण अम्ह हत्थावलंबो ? कहं वा ससुरासुरनरनरिंदसंदोहवंदणिजपाय पंकेरुहेण तुमए विरहियं भुवणत्तयपयंडं सोहिस्सइ नायखत्तियकुलं ? अहो महामंदभागिणी अम्हे जेसिं करयलाओऽवि अवकमइ रयणंति, एवमाईणि कलुणवयणाणि भासिऊण निरभिलासा चैव निवडिऊण चलणेसु भगवओ विन्नर्त्ति काउं पवत्ता जवि जिणनाह ! तुम्हे पचजं काउमुज्जमह इहि । तहविहु अम्ह सुहट्टा पडिवज्जह निक्खमणमहिमं ॥ १ ॥ तेर्सि उवरोहेणं तओ जिनिँदो इपि पडिसुणइ । अन्भत्थण भंगपरंमुहाई हिययाई गरुयाणं ॥ २ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only गुरुणामनुज्ञा. ॥ १३६ ॥ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अह नंदिवद्धणनरिंदेण भणिया नियपुरिसा-अरे सिग्धं महरिहं भगवओ अणुरूवं अभिसेओवगरणं उवाह-| | रेह, जं देवो भणइत्ति सम्म पडिसुणिऊण निग्गया पुरिसा, पउणीकया अटोत्तरसहस्ससंखा अणेगे सुवन्नाइकलसा, उवाहरियाई समत्थपसत्थतित्यसमुत्थाई सलिलाई, उवणीयाओ परमोसहीओ, पणामिया गोसीसचंद-1 णाइक्लेिवणविसेसा, एत्यंतरे चलियासणा बत्तीसपि पुरंदरा विम्हियमणा ओहिणाणसामत्थमुणियपरमत्था तक्खणं महप्पमाणविमाणारूढा वियसियसयवत्तविसाललोयणा अद्दचंदणाणुलित्तगत्ता नियंसियसिलंधपुप्फसुहफरिसपवरदूसरयणा कुंदसंखदलदगरयधवलदंतपंतिरेहंतवयणा अंजणपुंजघणमसिणरुयगरमणिजकेसपासा भद्दजोवणे वट्टमाणा मऊहपडलपल्लवियचूडामणिपसाहियमत्थया अणेगरूवाभरणभूसियसरीरा सोमचारुरूषा छत्तचिंधाइ-17 विविहककुहधारिणो असंखदेवकोडिचडगरपरियरिया पडहमुइंगकाहलतिलिमहुडक्काइतूररवभरियंवरा जिर्णिदस्स3 अंतियं समागया, तिपयाहिणादाणपुवगं च पणमिऊण पराए भत्तीए पहूणो पायपंकयं कयत्थमप्पाणं मन्नंता जिणचरणमुद्दाविन्नाससुंदरे निसन्ना भवणंगणे। | अह अचुयामरिंदेण हरिसुलसंतदेहेण भणिया नियनियदेवा-भो सिग्घमेव निवत्तह जिणस्स महावीरस्स जोग्गं महंतं निक्खमणाभिसेयं, ते य एयमायन्निऊण कयपणामा अणेगकणयाइकलसे खीरोयसलिलपडिपुन्ने असंखपुप्फपडलाइं च अन्नं च तहप्पगारमभिसेयपाओग्गं पहाणवत्थुनिवहं अचुयसुराहिवस्स पणाति, तो अचुयतियसाहिवो :94%CIARIOUSLICHIRISH For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीक्षामि श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्ताव ॥१३७॥ ASSASS62USISASIES सयलनियदेवपरियरिओ तेहिं दिवेहिं कणयाइकुंभेहिं अट्ठसहस्ससंखेहिं दिवोसहिसुगंधगधुम्मिस्सेहिं मंदिरद्वियं भयवंतं हरिसवियसियवयणो अभिसिंचइ, एवं कमेण सेसावि सुराहिवइणो चंदसूरपजंता पहवंति जयगुरुं, अह तेसु मजणं काऊण सट्ठाणट्ठिएसु नंदिवद्धणो राया कयमुहकोसविन्नासो परेणं विणएणं अचंतमप्पमत्तचित्तो तेहिं पुबोवणीएहिं चामीयराइकलससहस्सेहिं गंधुदुरपवरतित्थजलभरिएहिं मजेइ जिणवरं, तहा वट्टमाणे य भगवओ मजणमहूसवे केइ सुरिंदा चालिंति मंद मंदं चामीयरदंडुड्डामराओ चामराओ केवि धारिति नियधवलिमाविजियसियसयवत्ताई आयवत्ताई केवि संमुहमभिट्ठाविति पणदुखंपणं पवरदप्पणं केवि करयलेणुवहति सुगंधखीरोयसलिलपुन्नपिहाणपउमगंधुक्कडे कुडे केवि उप्पाडेति डझंतागुरुघणसारसुरहिधूवधूमंधयारलंछियं पंचवन्नरयणधूवकडच्छुयं केवि समुबहंति परिमलमिलंतालिसामलाओ दसद्धवन्नकुसुममालाओ, अन्ने देवा य देवीओ य भगवंतं अभिमुहट्ठियाओ पजुवासिंति । अह निवत्तियम्मि मजणे नंदिवद्धणो राया दोचंपि उत्तरावक्कमणं सीहासणं विरयावेइ, तत्थढियं च भयवंतं सेयापीयकलसेहिं ण्हवेइ, तयणंतरं च णं अलंकारियस्स पुवाभिमुहसीहासणसन्निसनस्स सामिणो सुरभिसुकुमालंगधकासाइलहियसरीरस्स गोसीससरसचंदणचच्चियंगस्स परिहियनिरुवयफलिहुजलदिवदेवदूसजुयलस्स निबद्धपंचरायरयणकडिसुत्तयस्स कणगसेलसिलाविच्छिन्नवच्छत्थलघोलंतविमलमुत्ताहलकलावस्स विचित्तमणिखंडमंडियकुंडलुज्जोवियगंडयलस्स रयणुक्कडकिरीडविभूसियसिरस्स पंचवन्नपुप्फमालालंकियस्स पाक्खित्तसुगंधवरवासस्स भगवओ वद्धमा ॥ १३७॥ For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 9USKHESASRA-MASALACK णस्स वंदिऊण चलणजुयलं सुरासुरिंदा पुणो पुणो धरणियलनामिउत्तिमंगा आसीसासएहिं थुणिउं पवत्ता, कहं ?-1 विजयसु जएकबंधव ! ससुरासुरतिहुयणेणवि अजेयं । अचंतमहलं मोहमलमचिरेण लीलाए ॥१॥ मिच्छत्ततिमिरमुच्छिदिऊण सन्नाणसूरकिरणेहिं । पयडेसु मुत्तिमग्गं विमग्गलग्गाण भवाण ॥२॥ पालेसु समणधम्म चिरकालं जाव निग्गयपयावो । अजियं जिणेसु मज्झे जियस्स निवससु तुमं नाह! ॥३॥ तुह अणवरयं गुणनिवहकित्तणारावओ विबुहलोगो । सबत्तो दिसिवलयं पकुणउ कोऊहलाउलियं ॥ ४ ॥ तुज्झ जसो कुमुओयरगोरो भुवणत्तएवि हिंडतो । सबत्तो उग्गयचंदविसोहं समुबहउ ॥ ५॥ सिंहस्स व तुह अचंतविक्कम पेच्छिऊण तरलच्छा । भीया कुतित्थियमिगा एत्तो दूरे पलायंतु ॥६॥ इय आसीवायपुरस्सराहिं थुणिउं गिराहिं भुवणगुरुं । नट्टविहिं च पयट्टिय विरयंमि सुरिंदविंदंमि ॥७॥ भावियजयगुरुविरहग्गिदूमिओ नंदिवद्धणो राया। वाहरि नियपुरिसे पयंपिउं एवमाढत्तो ॥८॥ भो भो देवाणुपिया! जगपहुणो निमित्तं विसिट्टवेइगापरिक्खित्तपरिसरं सरसचंदणुम्मिस्सघुसिणरसालिहिय-13|| विविहसत्थियं थिरनिवेसियसपायपीढनानामणिमयसीहासणं रणंतकणयकिंकिणीमहुरनिनायमुहलियदियंतरं रंगत-I विविहचिंधसयसंपुन्नं पन्नासधणहायाम पणुवीसधणुविच्छिन्नं छत्तीसधणमबिद्धं चंदप्पभनामधेयं सीय उवट्ठवेहत्ति। तओ ते सामिवयणं निसामिऊण पहिहियया तहत्ति सबं निवत्तति । For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिचिका. श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥१३८॥ CEORIALSAGAR-SARKARocks एत्थंतरे तियसाहिवेण हरिसुलसंतहियएण । पवरमणिखंडमंडियमहंतखंभावलीकलिया ॥१॥ चन्द्रप्रभापंचविहरयणकिरणोहविहियदिसिदिसिसुरिंदकोदंडा। चंदप्पभाऍ तुल्ला कारविया नियसुरेंहितो ॥२॥ भुवणच्छेरयभूया सिबिगा लंबंतमोत्तिओऊला । नवरं इमावि तं चिय पढमं सिविगं अणुपविट्ठा ॥३॥त्रिभिर्विशेषकमा ___ अह भयवं केसालंकारेण वत्थालंकारेण आभरणालंकारेण मल्लालंकारेणालंकिओकयछट्टतवोकम्मो उदिऊण आसणाओ अणुप्पयाहिणीकुणंतो चंदप्पहं सीयमारुहिता पुवाभिमुहंमि सीहासणे निसीयइ, तओ भयवओ कुलमहरिया व्हाया सूइभूया गहियपवरनेवत्था हंसलक्षणं साडयं आदाय सामिस्स दाहिणे पासे भदासणमि निसन्ना, एवं अम्मधाईवि वामपासे संठिया, तहा सामिस्स पिठ्ठओ एगा वरतरुणी विचित्तसिंगारागारभूयं महंतं विमलमुत्ताजाललंबंतावचूलयं पुंडरीयदंडं छत्तं धरेमाणी ठिया, उभयपासेसु य दुवे वरविलासिणीओ धोयरुप्पपट्टधवलं चामरजुयलं गहाय संठियाओ, उत्तरपुरस्थिमंमि य भागे एगा अचंतदरिसणिजा विलया निम्मलसलिलपडिपुन्न। सुरकरिकररेहंतनालागारं रययभिंगारमुबहती निसन्ना, एवं दाहिणपुरथिमेणं एगा वरसुंदरी विचित्तमणिकिरण-12 जालं मुयंतं कणयदंडं तालवंटं करयलेण कलयंती दूरूढा, पिट्ठओ य भुवणनाहस्स भगवओ देविंदा हिमरययकुंदेंदुप्पगासाई वेरुलियमयदंडाइं अट्ठसहस्सकंचणसलागाई सबरयणामयाई कुसुमदामदंतुराई आयवत्ताइं धरिति, उभयपासेसु चंदप्पहसीयाइ सोहम्माहियो ईसाणो य अमयहिमफेणुपुंजसन्निगासेहिं चामरहिं भयवंतं वीयंति। RAECCACANCERCRACK For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एत्थंतरे नंदिवद्धणनरवइणो वयणेण पवररूवा निरुवहयंगा बहाया कयविलेवणा परिहियपवरवत्था सबालंकारमणहरसरीरा विसिटबलसालिणो समवया पुरिसा समूससियरोमंचकंचुया कयसबकायबा नीसेसपुन्नपगरिसमप्पाणं मन्नमाणा सहस्ससंखा झडत्ति आगंतूण तं सीयमुक्खिवंति, अह वर्थतीए तीए सोहम्माहिवाई सुराहिवो दाहिणिलमुवरिल्लवाहं गिण्हइ, ईसाणोऽवि देविंदो उत्तरिलवाह, चमरबलिणो य असुरिंदा दाहिणुत्तरसिबिगाहेविलवाहाओ समुहंति, अवसेसा भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणिया य जहारिहं सीयमुक्खिवंति। किं बहुणा ? पुचिं उक्खित्ता माणुसेहिं साहट्ठरोमकूवेहिं । पच्छा वहति सीयं असुरिंदसुरिंदनागिंदा ॥१॥ गेहाओ नीहरंते जिणंमि चाउविहहिं देवहिं । इंतेहि य जंतेहि य कहमिव उम्भासियं गयणं? ॥२॥ वणसंडोच कुसुमिओ पउमसरो वा जहा सरयकाले । सोहइ कुसुमभरेणं इय गयणयलं सुरगणेहिं ॥३॥ सिद्धत्थवणं व जहा असणवणं सणवणं असोगवणं । चूयवणं व कुसुमियं इय गयणयलं सुरगणेहिं ॥४॥ अयसिवणं व कुसुमियं कणियारवणं व चंपगवणं वा । तिलयवणं व कुसुमियं इय गयणयलं सुरगणेहिं ॥५॥ वरपडहभेरिझलरिदुंदुभिसंखाइतूरनिग्घोसो। धरणियले गयणयले पयट्टिओ देवमणुएहि ॥६॥ एवं च भुवणबंधवस्स वच्चमाणस्स तप्पढमयाए सबरयणविणिम्मविया पुरओ अहाणुपुषीए सोत्थियाइणो | अट्ठमंगलगा संपट्ठिया, तयणंतरं च पुन्नकलसभिंगारा दिवा सच्छत्तपडागा गयणतलचुंविणीओ पवणकंपमाणं CACA4%A4 २४ महा. For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥ १३९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चलाओ महावेजयंतियाओ संपट्टियाओ, तयणंतरं वेरुलियविमलदिप्पंतदंडं पलंगकोरिंटमा लोवसोहियं चंदमंडलाणुरूवं समूसियं दिवमायवत्तं, पवरसिंहासणं च समणिरयण पायवीढं मणिमयपाउयाजोगसंपजुत्तं बहुकिंकरनरपरिग्गहियं संपट्टियं, तयणंतरं च ललियपुलियलंघणजवणगईणं लोलंतलासगललामंबरभूसणाणं कणयमयमुहनिजोगजु| ताणं उज्जलगथासग मंडियकडीणं तरुणपुरिसपरिक्खित्ताणं अट्ठसयं जच्चतुरगाणं अहाणुपुवीए संपट्टियं, तयणंतरं च सत्संगपट्ठियाणं भद्दजाइसमुब्भवाणं सचलक्खणोववेयाणं कंचणकोसीपविठ्ठकलहोय धवलदंताणं कंचणमणितारगाभूसियाणं कुसलारोहसंपउत्ताणं अट्ठसयं उत्तमकुंजराणं संपद्वियं, तयणंतरं च सछत्ताणं सज्झायाणं सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराणं सनंदिघोसाणं हिमवंतुग्गयतिणिसदारुनिम्मियाणं सुसिलिट्ठचकमंडलधुराणं जोत्तियपवरतुरंगाणं रणज्झणंतकिंकिणीजालाणं बत्तीसतोणपरिमंडियाणं चावपमुहपहरणनिवहभरियाणं अट्ठसयं रहाणं अहाणुपुचिए संपट्टियं, तयणंतरं निविडपरियराणं करयलकलियविविहाउहाणं निययविकमोवह सियसेसभडाणं पुरिसाणमट्टसयं संपट्टियं, तयणंतरं च अपरिगणियसंखं हयाणीयं गयाणीयं रहाणीयं पायत्ताणीयं च पहावियं, तयणंतरं च पंचवन्नकुडभीसहस्सकलिओ वइरमयवट्टलट्ठजट्ठिपइट्ठिओ विचित्तछत्ताइच्छत्तपरिक्खित्तो रंटंतभमरकुसुममालामंडिओ अनिलदोलिज्जमाणघंटिया पडलमणहरारावपूरियनह विवरो जसपुंजोब मुत्तिमंतो मुत्तिमग्गोव पयडो नियगुरुयत्तणेण गयणं व परिमिणतो सायरसुरवि सरसंपरिग्गहिओ जोयणसहस्सूसिओ महिंदज्झओ संपत्थिओ, तयणंतरं For Private and Personal Use Only निष्क्रमणोत्सव:. ॥ १३९ ॥ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir च अन्ने य बहवे दंडिणो मुंडिणो सिहंडिणो हासकरा खेडकरा चाडुकरा गायंता य वायंता य नचंता य रमंता य हसंता य जयजयसई पउंजमाणा मंगलसहस्साई कुणमाणा गुणगणं थुणमाणा संपत्थिया, तयणंतरं उग्गा भोगा रायन्ना खत्तिया सेद्विणो सत्थवाहा पुरिसनियरपरियरिया केइ पायविहारेणं केइ रहगया केइ तुरगाधिरूढा केइ कुंजरपट्ठिसन्निसन्ना केइ जाणजपाणाइगया सामिस्स पुरओ मग्गओ य संपट्ठिया, तयणंतरं अन्ने य बहवे देवा य| देवीओ य सएहिं सएहिं विमाणेहिं सएहिं सएहिं चिंधेहिं सएहिं सएहिं परिवारहिं समंतओ संपट्ठिया, नंदिवद्धणमहानरिंदोऽवि कयमजणो विहियसिंगारो गंधसिंधुरखंधगओ समूसियसियायवत्तो धुवंतधवलचामरो हयगयरहोहसेणापरिकिन्नो पिटुओ भयवंतं अणुगंतुमारो। | एवं च नियनियट्ठाणगयसुरासुरनरनियराणुगम्ममाणो बद्धमाणो सत्तरयणिप्पमाणसरीरो समचउरंससंठाणसं-| ठिओ वजरिसहनारायसंघयणो कमलुप्पलसुरहिनीसासो जलमलकलंकसेयरयदोसवजियतणू देहप्पभापभारभा-15 सुरियदिसिचक्कवालो भिंगनीलकजलभसलसामलपसत्थसुहुमनिबद्धनिउरंबनिचियकुंचियपयाहिणावत्तकेसो अद्धयं-| दसमनिडालवट्टो पमाणजुत्तसुंदरसवणो चावदंडकुडिलभमुहो धवलपत्तलवियसियपुंडरियनयणो गरुडाययउजुतुंगनासो विपक्कबिंबाफलसंनिभाधरोहो संखगोखीरमुत्तामणिधवलसुसिलिट्ठसमदंतपंती पीणमंसलकवोलजुयलो सजलघणत्यणियदुंदुभिनिग्घोसगंभीरसरो दाहिणावत्तरेहावलयालंकियसुप्पमाणकंठकंदलो वणमहिससीहसद्दलपडि For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्सक.. श्रीगुणचंद पुनवदृखंधो सुहमलोमरेहतमंसलपलंववाहुदंडो संजमलच्छिनिवाससुभगविसालवच्छत्थलो पवररोमराइरेहिरगंभीमहावीरच रनाहिसोहियमज्झभागो बट्टाणुपुत्वोवचियचारुजंधो सुसिलिट्ठगूढगुंफो नगनगरमगरसागरचकंकुसमच्छाइलक्षण४ प्रस्ताव लंछियचलणतलो परिचत्तपाणभोयणेसु पासायसिहरमारूढेसु चेलुक्खेवं करेंतेसु पुरजणेसु कुसुमनियरं मुंचमाणेसु ॥१४ ॥ गयणट्ठियतियसेसु सप्पणयपणच्चमाणासु विजाहरीसु मंगलमुहलेसु वारविलयासत्थेसु दिजमाणेसु सबकामुयदाणेसु गोत्तमुक्त्तिमाणेसु देवचारणेसु कमेण संपत्तो नायसंडाभिहाणंमुववणंमि । तं च केरिसं? पढमुम्मिल्लिरपल्लवसोहिल्लमहल्लपायवसमूहं । सबोउयकुसुमसमिद्धगंधवायंतमिउपवणं ॥१॥ तरुणतरुसंडपत्तलसाहापडिरुद्धसूरकरपसरं । अचंतरम्मयागुणरंजियपरिभमियसुरखयरं ॥२॥ दिसिमुहपवियंभियकुसुमपरिमलायड्डिया भमरनियरा । उजाणंतरविहरणपरंमुहा जत्थ कीलंति ॥३॥ जंजिणर्मितं नाऊण पवणडोलंतपल्लवकरहिं । चिरकालदिपियमाणुसं व तं वाहरइ तुरियं ॥ ४ ॥ मयभरपरवससिहिकलरवेण जे सागयं व वागरइ । निवडंतकुसुमनियरकरण अग्घंव दावेइ ॥५॥ इय निययचंगिमाविजियनंदणुजाणरम्मयगुणस्स । जयनाहचलणपूयस्स तस्स का वण्णणा होउ?॥६॥ एवंविहंमि तत्थ आगंतूण सिबियाओ ओयरिऊण सामी असोगवरपायवस्स मूले सयमेव अलंकारकुसुमनिवह लिओमुयइ, सा य कुलमयहरिया हंसलक्खणेणं पवरसाडएणं तं पेच्छमाणी छिन्नमुत्ताकलावगलंतमुत्ताहलविन्भमाई! SAWALA CALCOHOROSAGACARCRA ॥१४॥ For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir SAMRSACASSASSES अंसुयाई विणिम्मुयमाणी सदुक्खं रोयमाणी मन्नुभरखलंतक्खराए गिराए भयवंतं भणिउं पवत्ताकासवगोत्तुभूओऽसि पुत्त! सिद्धत्थपस्थिवसुओऽसि । नायकुलनहयलामलसारयरयणीमयंकोऽसि ॥१॥ वासिद्धसगोत्तुष्भवतिसलादेवीए कुच्छिजाओऽसि । खत्तियजणतिलओऽसि य नवजोवणदिवदेहोऽसि ॥२॥ गम्भावस्थाओच्चिय अइसुकुमालोऽसि सुंदरंगोऽसि । अप्पडिमरूवलायन्नकतिपब्मारकलिओऽसि ॥३॥ तिहुयणविक्खायजसोऽसि सयलविन्नाणनीइनिउणोऽसि । ता कहमिममइदुकरतबकम्मं संपवजिहिसि ? ॥४॥ इह असिधारसरिच्छं महत्वयं वच्छ ! अणुचरेयचं । घोरोवसग्गवेयणनिवहाओ न भाइयवं च ॥५॥ सुद्धंछतुच्छभोयणवित्ती निचंपि एत्थ कायवा । गामागराइसु तहा पडिवंधमई विमोत्तवा ॥ ६॥ इय वच्छ! तुज्झ साहेमि केत्तियं मुणियसयलभावस्स । तह कहवि पयट्टेजसु जह सिवसोक्खं लहुं लहसि ॥७॥ एत्थंतरंमि नीसेससयणवग्गेण परिगओ राया । आणंदामंदगलंतनयणवाहप्पवाहेण ॥८॥ अभिवंदिऊण चरणे जिणिंदसिरिवद्धमाणसामिस्स । एर्गतमवक्रतो दुस्सहविरहग्गिसंतत्तो ॥९॥ कुलमयहरियाययणं तहत्ति पडिसुणिय जिणवरो वीरो । सयमेव पंचमुट्ठियलोयं काउं समारद्धो ॥१०॥ ते य केसे सामिकरयलपल्हथिए सुरिंदो नियदेवदूसंचलेणं ईसिविणमियसरीरो सम्म पडिच्छइ, कमेण य निबत्तियमि लोयकम्मे जिणं अणुनविऊण तं कुंतलकलावं मेहपडलं व सामलं दुजणहिययं व कुडिलं खीरोयसलिले पक्खिवइ, KESAGARA%ANGACANCY मिलेय केसे सामिकायतहत्ति पडिसनमाणसामिसाएर For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीवीरस्य दीक्षाकल्याणकम्. श्रीगुणचंद || दिवतरनिनायं मणुस्समंगलुग्गारहलबोलंच निवारेइ, अह मग्गसिरकिण्हदसमीए पच्छिमण्हसमए हत्थुत्तरनक्खत्ते वट्ट माणे सयमेव संवुद्धो भयवं नमोत्थु णं सिद्धाणंतिकट्ट करेमि सामाइयं सर्व सावजं तिविहं तिविहेणं वोसिरामित्ति चारित्तं ४ प्रस्ताव पडिवजए, एत्थ य पत्थावे अंवरतलट्ठिएण भूमितलगएणय देवदेविविजाहरनरविसरेण विमुक्को भगवओ चाउद्दिसिंपि ॥१४१॥ झंकारमुहलभसलविलुप्पमाणो सुगंधियसयलजीवलोओ पिंगलियगयणमंडलोपवरवासचुन्नो, बहलधूमसिहाजालुच्छा इयदिसामुहो ठाणठाणेसु ठविओ डझंतागुरुकुरंगमयमीणुग्गारकप्पूरधूवघडियनिवहो, पहयाओ असंखसंखघोसुमिस्सभंभामुइंगमद्दलकाहलातिलिम हुड्डुकढकाओ, कओ य निब्भरभरियभुवणंतरालो जयजयारवोत्ति ॥ अह चत्तवसणभूसणमलस्स पुरंदरेण जयगुरुणो । वामंसतले नसियं अदूसियं देववरदूसं ॥१॥ नीसामने सामन्नगुरुभरे तह जिणेण उक्खित्ते । काउं साहिजंपिव मणपज्जवणाणमुप्पण्णं ॥२॥ ओलंवियभुयपरिहो वाढं निकसियमोहमाहप्पो । मेरुच निष्पकंपो काउस्सग्गे ठिओ भयवं ॥३॥ चउविहदेवनिकाओ नयरजणो नरवई य नमिऊण । जयनाहं भत्तीए नियनियठाणे पडिनियत्तो ॥४॥ इय उत्तमगुणगणवद्धमाणसिरिवद्धमाणचरियंमि । सग्गापवग्गसंगमलच्छीण निवासभवणंमि ॥५॥ गम्भावयारजम्मणदिक्खाकल्लाणकहणपडिबद्धो । संपत्तो पजंतं चउत्थओ एस पत्थावो ॥६॥ इइ सिरिगुणचंदसूरिरइए सिरिमहावीरचरिए गब्भावयारजम्मदिक्खाकल्लाणगमओ चउत्थो पत्थावो SANGARH नमो नरवई माइपो । म साहिपिव मजदूसियं देव ६॥१४१॥ For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SAKARUNSAHARSAX भाविरमणत्यसत्थं पेहंताविहु सवुद्धिवि हवेण । धीरा सहरिसमणिसं पत्थुयवत्थु समत्थंति ॥१॥ इति विभाविऊणं व भविस्सोवसग्गवग्गसंसग्गासंखुद्धमाणसो महावीरजिणवरो गंभीरिमाइगुणरयणागरो दूरुज्झियनीसेसवसणोवि वासवोवरोहधरिएक्कचारुवसणो मग्गणगणपूरिआसोऽवि निवाणकरो मुकतुरयचारोवि दूर-18 दमियदुट्टिदियासो सकलत्तोऽवि परिचत्तपरिग्गहो परिहरियकरिवरोवि मत्तकुंजरगमणो भयवं आपुच्छिऊण अहासनिहियं नायवगं नायसंडवणाओ निग्गओ, कमेण य अतुरियं जुगमित्तनिहितचक्खुपसरो मुहुत्तावसेसंमि वासरे कुम्मारगाम नाम संनिवेसं पाविओ, ठिओ य एगंते काउसग्गेणंति। ।इओ सिद्धत्थरायवालवयस्सो कुंडगामपुरवत्थवो महाजूयवसणविणासियासेसतहाविहदबनिचओ भोगोवभोगलालसो असंपजंतवंछियत्थो सोमो नाम बंभणो झीणविहवत्तणेण अचयंतो परिचियजणमज्झे निवसिऊण गिहे मोतूण बंभणिं गओ वइरागराइसु दबोवजणनिमित्तं, तत्थ य अइनिविडत्तणओ अंतराइयकम्मस्स अचंतपबलत्तणओ असायवेयणिज्जस्स निष्फलत्तणओ पुरिसयारस्स अवस्सं भवियवयाए तहाविहभावस्स सुचिरं कालं परिभमियस्सवि तेसु तेसु ठाणेसु न तस्स काणकवड्डयमेत्तावि संपत्ती जाया, समइकताणि य आसापिसायनडियस्स बहूइं बच्छराई, अण्णया य धवलबलायादीहरवयणो अह तरलियविजुलियनयणो। कलियसररायचावो अंजणगिरिसिंगसारिच्छो ॥१॥ CASSASSASSOCCASSAGAR AL For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ५ प्रस्तावः सोमविप्रस्य प्रवासावस्था. परिमुक्कगजिघोरट्टहासहयविरहियहिययवावारो। वरिसायालो वेयालदारुणो झत्ति संपत्तो॥२॥ तंच दहण सो सुमरियनियकलत्तो तत्कालवियंभमाणनीलकंठरवसवणचउग्गुणीकयउकंठो दीहं नीससिऊण चलिओ अविलंबियपयाणगेहिं सनयराभिमुहं, अइदूरत्तणेणं मग्गस्स दुबलत्तणओ सरीरस्स असमत्थत्तणेणं सिग्घगमणस्स |मासपंचमपजंते संपत्तो कुंडग्गामे नगरे, पविट्ठो नियगिहे, संभावियविढत्तदवाए अब्भुट्टिओ पणइणीए, दिण्णं आसणं, पक्खालिया चरणा, पुच्छिओ सरीरकोसलं, वाहियं सरीरं, दंसिओ पणयभावो, भोयणकाले य उवट्ठाविया य कंठिगाइ हट्टे विणिवट्टिऊण विचित्ता रसवई, काराविओ भोयणं, तदुत्तरकालं ठिओ सयणिजे, बंभणीवि पहिहियया समीवमागया तस्स, आरद्धा य पुच्छिउं, जहा-अजपुत्त! केसु केसु देसंतरेसु परिभमिओ एत्तियं कालं? केत्तियं वा दविणजायमजियंति , तेण भणियं-पिए! केत्तिए साहेमि देसे?, किंवा कहेमि दविणजणं ? तहाहिसिरिपचयवइरागरसमुद्दपरतीररोहणगिरीसु । रसकूविगासु विवरेसु भुयंगभीमेसु विविहेसु ॥१॥ भमिओ एत्तियकालं दद्यपिवासाए णेगठाणेसुं । विहिओ य खन्नवाओ धमिया य सुवण्णपाहाणा ॥२॥ अंजणसिद्धिनिमित्तं दिवोसहिणो निरूविया बहुसो । विहिया नरिंदसेवा वियाणिया मंततंताई ॥३॥ असिचावकुंतचक्काइएसु सत्थेसु जणपसिद्धेसु । पकओ परिस्समोबिहु किं किं अहया मए न कयं ॥४॥ ॥१४२॥ For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तहविहु पिए! न जाया भोयणमेत्तावि मज्झ सामग्गी । तुह दसणतण्हाए नियत्तिओ केवलं इहि ॥५॥ इमं च आयण्णिऊण वजताडियच मुसियत्व सा माहणी कसिणवयणा कोवफुरंताहरा रत्तनयणा भणिउमाढत्ता-आ पाविठ्ठ! अवलक्खणसिरसेहर! वाहणसरिच्छ ! निभग्गनिडाल! जइ एवं ता कीस एत्तियं कालं कडुघोसेडीफलाई बुकमाणो ठिओऽसि!, किं निरास ! तत्थ वसंतेण तुमए इमावि वत्ता न निसामिया? जहा पोक्खलावद्दगमेहोब अणवरयकणगधाराहि सिद्धत्थनरिंदनंदणो संवच्छरं जाव वरवरियापुत्वगं वरिसिओत्ति, किन्न पेच्छसि पुरओ आजम्मदारिदियावि रहतुरयवाहणा परिहियदिवाभरणा कारियउत्तुंगभवणा नियपणइणीपरिगया जिणप्पसाएण विलसंति ?, किं वा न दिट्ठा पडिपुण्णमणोरहा उवलद्धकणयरासिणो सगिहेसु पडिनियत्तता देसंतरागयजणा?, बंभ ण भणियं-पिए! दूरदेसंतरनिवासत्तणेण नो सुणियमेयं मए, किं करेमि विपरंमुहो हयविही दीहकालमणुभवियचा विसमदसा, बंभणीए भणियं-अजवि लहुं गच्छसु तस्स सगासे, करुणापरो खु सो भयवं निच्छियं तुमए मग्गिजमाणो किंपि दाविस्सइत्ति, एवं निसामिऊण धाविओ महावेगेण जिणाभिमुहो बंभणो, आपुच्छंतो पत्तो है कुमारगाम, दिट्ठो काउस्सग्गठिओ सुरवइनिहित्तसुगंधचुण्णपरिमलुम्मिलंतछप्पयछण्णदेहो भयवं जिणवरो, तिपयाहिणिकाऊण पणमिओ परमायरेणं, विष्णचो य जहा-देव ! निसामेसु मम वत्तं कंठभतरपक्खलियजीहमफुडक्खराऍ वाणीए । को को न पत्थिओ नाह! दाणविपरंमुहोवि जणो? ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ w Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra atth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोमविज्ञप्ति श्रीगुणचंद महावीरच० ५ प्रस्ताव ॥१४३॥ कत्थ न बसिओ पहधूलिधूसरो देव! पहियगेहेसुं । हयउयरपूरणट्ठा किंवा न कयं कुकम्ममवि? ॥२॥ दविणोवजणहेउं लहुं पविट्ठो कयंतवयणेवि । नेवत्थंपि नडेण व तं नत्थि मए न जं धरियं ॥३॥ इय दूरदेसविहरणपरिसमुप्पन्नविविहरोगस्स । विगओ एत्तियमेत्तो कालो मम मंदपुनस्स ॥४॥ संपइ पुण धरिणीए आगयमेत्तस्स साहियं एयं । जह संवच्छरसीमं दिन्नं तुमए महादाणं ॥५॥ केसिपि नगरपट्टणगामागरपवरदवभंडारा । अन्नेसि मयजलगंधबंधुरा उद्धरा करिणो ॥६॥ अन्नसिं पारसबब्बरउलवल्हीयसंभवा तुरया। केसिपि जच्चकंचणजडिया वरभूसणुगपाया ॥७॥ इय संकप्पियभूरिप्पभेयदाणेण कप्पतरुणच । निम्महिया नाह ! तए तण्हा मेहेण व जणाणं ॥८॥ एक्कोचिय दुग्गयलोयतिलोयभूओ ठिओ अहं विहलो। पुत्वभवजणियदुविसहदुटुकम्माणुभावेणं ॥९॥ करुणारसवरिसणसित्तदुक्खसंतत्तसबभुवणवण!। ता पसिय पणयवच्छल! पूरेसु मणोरहं मज्झ ॥१०॥ तुज्झ पयकमलसेवावियंभियं सग्गमच्चपायाले । जं कीलंति जहिच्छं सुरवइनरनाहदणुवइणो ॥११॥ सिद्धत्थरायनंदण! तुमएऽविहु जइ कहंपि चत्तोऽहं । पायालनिवडियस्स वि नत्थि धुवं ता मम परित्ता (धरित्ती) १२ एमाइ दीणयावसगलंतनयणंसुधोयवयणेणं । तह तेण विनविजइ जह भिजइ वीयरागोऽपि ॥ १३॥ भगवयावि एवमायण्णिऊण समुच्छलियापरिकलियकारनपुण्णचित्तेण भणियं-भो भो देवाणुप्पिय! परिचत्ता ॥ १४३॥ For Private and Persons Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेससंगोऽहं संपयं, तुमं च अच्चंत दोगच्च भरविहुरियसरीरो, अओ जइवि असारिच्छमेयं तहावि गिण्हसु इमस्स देवदूसस्स अर्द्धति, जं सामि ! आणवेइति भणिऊण हरिसवसुग्गयबहलपुलओ वंभणो वत्थस्स अद्धं गहिऊण कयप्पजामो अणुचिंतंतो पुणो पुणो सामिस्स अपुत्रमुदारत्तणं गओ नियगेहं दिट्ठो य वंभणीए, पुच्छिओ परमायरेणं, साहिओ तेण देवदूसद्धलाभो, जाओ बंभणीए परमसंतोसो । अन्नदिवसेय तेणवि समप्पियं तं दूसद्धं दसिगाबंधणत्थं तुन्नागस्स, तेणवि तारिसमदिट्ठपुत्रं पेच्छिऊण पुच्छिओ सो बंभणो-भद्द ! तुमए कहिं लद्धमेयं ?, न जेण एरिसद्साइं महीयले दीसंति, बंभणेण भणियं-मुद्ध ! भगवया दिण्णंति, तुण्णागेण भणियं-बीयंपि खंडमाणेहि, जेण उभयखंडमीलणेण तुष्णेमि एयं, पडिपुण्णं व दीणारलक्खमुलं पावेइ, अद्धद्धेण य तुज्झ ममंपि दवं भविस्सइत्ति, बंभणेण भणियं -कहं पुण दुइज्जयं वत्थद्धं लभि - स्सामि ?, जिणसमायारवियक्खणेण भणियं तुन्नागेण-जया खाणुगाइफरिसेण सामिखंघदेसाओ निवड तया गिण्डिज्जासि, एवं सोचा सो तल्लोभेण लग्गो भगवओ पिठ्ठीए, जहा य तस्स तल्लाभो भविस्सह तहा पुरओ भणिस्सामि । अह कुम्मारगामबहिया पडिवन्न पडिमस्स पलंबियभुयस्स भगवओ महावीरस्स समीवे सयलदिणवाह परिस्तंते छुहाभिहए चरमाणे वसहे भलाविऊण एगो अञ्चतपावसंगयसरीरो विषयणयविण्णाणजा (ना) णविवज्जिओ गोवालो गावी - For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir I वस्त्रार्धदानं गोपोपसर्गः य महातरुगहण महा सुचिरं स अणुवलद्ध मणो तं मग्गणं काउमारतीय ठियत्ति, सो य गोवाला सुचिरं परिभमि श्रीगुणचंद दुहणनिमित्तं गओ गाममज्झे, तत्थ ट्ठियस्स वावारंतरवावडणेण लग्गा महती वेला, ते य वइलगा खणमेकं भगवओ महावीरच०समीवे चरिऊण खुहामिहयसरीरा सणियं सणियं तिणभक्खणं कुणमाणा पविट्ठा अडविं, सो य गोवालो खणंतरेण ५प्रस्ताव: आगओ भगवओ समीवे, वसहे अपेच्छंतो पुच्छिउमारद्धो-मो देवजया! जे तुह मए भलाविया पुवं वसहा ते ॥१४४॥ साहेसु कत्थ गयत्ति ?,सामीवि असुर्णितोच तुण्हिको ठिओ, तेणावि नायं-नूणमेसो महाणुभावो न जाणइत्ति, तओ गिरिकंदरेसु य नईसु य निज्झरेसु य महातरुगहणेसु य गामंतरालेसु य अन्नेसु य विविहप्पएसेसु य गोसामियभयभीओ विमणदुम्मणो तं मग्गणं काउमारद्धो, ते य वसहा सुचिरं सच्छंदप्पयारेण उपसंतछुहावेयणा पुणोवि समागया तत्थेव पएसे, भयवंतं दहण रोमंथता य ठियत्ति, सो य गोवालो अणुवलद्धगोणपउत्तिविसेसो चउपहररयणिजागरपरिमिलाणनयणो रेणुभरधूसरियसरीरो खाणुकंटगाइपरिवहिओ सुचिरं परिभमिऊण वलिओ तेणेव पएसेण, दिट्ठा य ते सामिणो समीवे सुहनिसन्ना नियवसहा, अह रोसारुणियच्छो फरुसगिराए भयवंतं तजिउमाढत्तो, कहं चिय? देवज! दुजणो इव दावेसि पसंतवत्थनेवत्थं । अभितरओ पुण चित्तकुडिलया एरिसी तुज्झ ॥१॥ जं गोविऊण हरणट्ठया तुम मज्झ संतिए वसहे । नृणमियाणि गच्छंतओऽसि जइ मं न पेच्छंतो ॥२॥ तावित्थ चंगिमा तुह वयस्स ! अरि भल्लिमा विवेयस्स ! गोमट्टत्तणमण्णं किंपिय दक्खिन्नभावस्स ॥३॥ SASSSSSSSS6567 ॥१४४॥ For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५ महा० www.kobatirth.org मने पलंबियभुओ निरुद्धनी से सबज्झवावारो । तं जणमुसणनिमित्तं उवायजालं विचिंसि ॥ ४ ॥ gaणेहिं तजिऊण सो दावणेण हणिउमणो गोवालो वेयालोच्च धाविओ भयवओऽभिमुहं, एत्यंतरे सोहम्मसभासीहासणनिसण्णो सहस्सनयणो सामिस्स सुहविहारोवलंभनिमित्तं ओहिं पउंजह पेच्छइ य भयवंतं पडुच वेगेण धावभाणं तं गोवयं, तओ तत्थट्टिओऽचि तं थंभिऊण सको दिखाए देवगईए उइण्णो जिणसमीवे, तज्जि - उमारद्धो य तं गोवालयं, जहा- रे दुरावार! पुरिसाहम ! पसुनिविसेस! नूणं एयाण वसभाण चेव पुण्णेहिं न भक्खेसि तुमं तिणाई, जो एयं सिद्धत्थनरिंदनंदणं परिचत्त करितुरयपाइकसंदणं संपयमेव गहियपञ्चजं नियधम्मक - जसज्जं सममुणियतणमणिं वद्धमाणमहामुनिंपि न मुणेसित्ति, एवं निव्भच्छिऊण तं सक्को तिपयाहिणीकाऊण भयवंतं वंदेइ, सिरनभियकरकमलो य विन्नवेइ-भयवं! तुम्ह दुबालस वरिसाणि जाव समणमेत्तेणवि दुक्खजणगा इयर - जणजीवियंतकरणखमा पवरसूराणवि लोमुद्धोसजणगा उग्गा उवसग्गवग्गा भविस्संति, ता कुणह पसायं, अणुमन्नह एत्तियं कालं मम, जेण समीवट्ठिओ वेयावच्च मे करेमित्ति, एयं च आयन्निऊणुस्सारिय काउसग्गेण भणियं भयवया, जहा भो भो देविंद ! तुह असरिसभत्तिमहाभरस्स जुज्जइ इमं न संदेहो । किं तु न भूयं एयं नो भवइ न भावि कइयावि ॥ १ ॥ जं तित्थयरा तुम्हारिसस्स निस्साए पुचकयकम्मं । खवइंसु खविस्संति य खवेंति वा निच्छियं सक! ॥ २ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ५ प्रस्तावः ॥ १४५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अह परसामत्थेवि जइ कम्मक्खउ घडेज ता विहलो । सिरलोयबंभचेराइविविहतवचरणवावारो ॥ ३ ॥ अइकिलिट्टचित्तत्तणेण दढवद्धरसविवागाणं । सयमणुभवणं मोत्तुं कम्माण ण णिज्जरणमत्थि ॥ ४॥ एगोचिय सुमहं एस जिओ सहइ कम्मवसबत्ती । अवयारुवयारकरा तस्सेव पभावओ हुंति ॥ ५ ॥ ता जे पुवं सिद्धा जे सिज्झिस्संति जे य सिज्यंति । ते नियवीरियकम्मक्खएण अन्नोऽत्थि नोवाओ ॥ ६ ॥ एवं विविहम होवसग्गवग्गं वियाणिउं पुषिं । पडिवन्नोऽहं संजममेतो का ते मम गणणा ? ॥ ७ ॥ इय सुरनाहं विविहोवउत्तिजुत्तीहिं बोहिउं भयवं । काउस्सग्गंमि ठिओ नूणं मियभासिणो गरुया ॥ ८ ॥ एत्थ य पत्थावे भयवओ चैव जणणिभगिणीए पुत्तो कयतहाविहघोरवालतय विसेस सामत्थोवलद्धवंतरसुरभवो सिद्धत्थो नाम देवो समागओ तं पएसं, सो य भणिओ सुरिंद्रेण जहा-भो सिद्धत्थय ! एस भयवं तुह आसन्नसयणोत्ति एगं कारणं, बीयं पुण ममाएसो, ता सबहा पासडिओ सामिस्स मारणंतियमुवसग्गं पडिक्खलेज्जासित्ति, सोऽवि एयमायन्निऊण देविंद भासणजायपरमतोसो तहत्ति पडिसुणइ, पुरंदरोऽवि सट्टाणं गओ । अह जायंमि पभायसमए भयवं चलिओ तओ ठाणाओ, कमेण य पत्तो कोल्लागसंनिवेसे, तत्थ य बहुलो नाम माहणो परिवसर, तस्स य गिहे महूसवो समारद्धो, निप्फाइया रसवई, जेमेइ सयलजणो, एत्यंतरे भयवं मुणियभिक्खासमओ अतुरियं असंभंतो छटुपारणगे पविट्ठो भिक्खानिमित्तं गाममज्झे, उच्चनीयगिहेसु य परिभमंतो संपत्तो बहुलस्स मंदिरं, दिट्ठो For Private and Personal Use Only गोपोसर्गनिवारणं इन्द्र विज्ञप्तिः ॥ १४५ ॥ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org |य अणेण अप्पडिमरूवो भयवं भवणंगणगओ, तं च दट्टण चिंतिउमारद्धो-अहो इमस्स महामुणिणो सरीरलाव|ग्णया अहो निरूवमरूवया अहो सयललक्खणपडिपुण्णया अहो पसंतायारत्तणं अहो सस्सिरीयत्तणं, निच्छियं न होइ एसो सामन्नगुणो, ता धन्नोऽहं जस्स मम गिहमणुपत्तोत्ति परिभावितो उच्छलियवहलपुलयजालो मुत्ताहलालंकिओच उढिऊण परमायरेण घयमहुमिस्सं पायसं भगवओ पणामेइ, भयपि निच्छिदं चकंकुसलंछणलंछियं कापसारेइ करकमलं । अह पाणिसंपुडे वंभणेण खित्तमि पायसे पवरे । गयणयले सुरनिवहा ओयरि भत्तिभरभरिया ॥१॥ वायंति केवि जयदुंदुहीओ अन्ने मुयंति कुसुमाइं । चेलुक्खेवं केवि य करंति अन्ने थुणंति जिणं ॥२॥ गंभीरगुरुगिराए अहो सुदाणंति केइ घोसंति । अच्छिन्नकणयधाराहिं हरिसिया केइ परिसंति ॥३॥ सेसोऽवि गामलोओ तहाविहं पेच्छिऊण अच्छरियं । विहियहिययो सहसा जिणस्तगासं समल्लीणो ॥४॥ किं बहुणा?–भयवं पायसलामेण निवुओ माहणोऽवि कणगेण । विम्हियरसेण लोगो एवं जाओ महाणंदो ॥५॥ अह चम्मचक्खूहि अपेहिजतो पारिऊण भयवं अन्नत्य विहरिओ । गामाणुगामेण परिभमंतस्स य सामिणो पञ्चज्जासमयसुरक्खित्तकुसुमवासचुन्नगंधवासियंमि सरीरे कयझंकाररवा निरंतरं परिमुक्कवणकुसुममयरंदा भमर४|नियरा पीडं उपायंति, चिरनिच्चसणेण य किंचि अपावमाणा रोसेण नहेहिं विधति मुहहिं खाईति, वसंतसमए RRC-R RECTORAMASSACROR RANSAR For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगणचंद महापौर ५प्रस्ताव ॥१४६॥ रोमकूवनिग्गयं सिणेहमापिवंति, सरीरमारूढा य समं विहरंति, गामतरुणायवि तेण गंधेण आयरसियचित्ता पारणं भणंति-भयवं! अम्हंपि देहि इमं गंधजुर्ति, सुरभो तुज्झ सरीरगंधो, तहा नवनीलुप्पलपलाससरिच्छमच्छिजुयलं तापसाश्रमे सुरभिनीसाससुभगं मुहकमलं रूवसंपयं च दट्टण मयरद्धयसरपहारजजरियहिययाओ गामतरुणीओ गामाणुगाम गमनं. परियट्टमाणस्स भगवओ निवासट्ठाणं पुच्छंति, बहुप्पयारं उबसग्गेति यत्ति । एवं पवजादिणाओ आरभ चत्तारि मासा समहिया जाव सुरनिहित्तवासपचइया दुटुभमराइणो उवसग्गा जायत्ति । __ अन्नया तेलोक्कतिलओ सयलगुणनिलओ सामी परियडतो गओ मोरागसंनिवेसे, तत्थ दूइजंता नाम तावसरूवधारिणो पासंडिणो परिवसंति, तेसिं च अहिवई जलणसम्मो नाम, सो य मित्तो सिद्धत्थरण्णोत्ति पुषनेहेण सामि दट्टण सागयंति भणिऊण संमुहमुवढिओ, भयवयावि पुवपओगेण चेव चाहा पसारिया, तओ कुलपणा ससंभमं आपुच्छिऊण पुत्ववत्तं भणिओ भयवं-कुमारवर! एत्थेव निवसह किंचिकालं, निप्पचवाओ एस आसमो, न य कोइ झाणविग्घकारी, वासारत्तस्सवि समुचिओत्ति, ता सबहा जइ संपयं न ठाउकामो तहावि वासासु इहावसेजासित्ति वुत्ते सामी तवयणं पडिसुणिय तत्थेव एगराई वोलेइ । तयणंतरं चपणटपेमबंधणो असंखदुक्खनासणो । पसंतचित्तसुंदरो सञ्जजित्तमंदरो ॥१॥ 13॥१४६ ॥ बहूवसग्गसंगओ गओ व मंदगामिओ। मिओव सुन्नसेवओ व(पि)उच्च रक्खगुजुओ ॥२॥ For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मडबखेडकच्चडे अणेगलोगसंकडे । सुरिंदविंदवंदिओ परिब्भमेइ सामिओ ॥ ३ ॥ एवं च हिंडमाणस्स जयगुरुणो पजंतमणुपत्तो गिम्हसमओ, उवागओ वासारतो, तओ थणियसद्दं कुणमाणेसु सजलजलहरेसु मंद मंद निवडंतीसु वारिधारासु नियनियगेहमणुवच्चंतेसु पहियजणेसु माणससरं सरंतेसु रायहंसेमु | सामी पडिनियत्तिऊण समागओ तत्थेव मोरागसंनिवेसे, दिट्ठो कुलवई, समप्पिओ तेण पेमसवस्समुद्दहंतेण संछन्नो मढो, बुत्थो तत्थ पलंचियभुओ काउस्सग्गेण भयवं, एवं वच्चति वासरा । अह वट्टमाणंमि पढमपाउसारंभे निट्ठिएस चिरं संचियनुसतणपलालप मुहचारिविसेसेसु अणुग्गमंतेसु अभिणवतणाईसु कत्थवि किंपि भक्खणिजं अपावमाणाई गोरुवाई छुहापरिगयाई आगंतून तावसगिहे छायणतणभक्खणत्थमलियंति, तावसावि निहुरलट्ठिप्पहारेण ताणि कुट्टिऊण निद्धार्डिंति, दुवारट्ठिया य निचंपि सङ्घायरेण रक्खंति नियउडवर, गोरुवाणि तेहिं ताडियाणि इओ तओ परिन्भमिऊण अविजमाणरक्खणं भगवओ मढं उवद्दविति, तावसावि नियगिट्टिया तं विलुप्पमाणं पेच्छिऊण भयवओ उवरि परिओसमुहंति-अहो आम्हे निय उडवर रक्खेमो, एस पुण समणो मणापि न रक्खेह, ता किं करेमो ?, कुलवणा धरिओत्ति न किंपि पारिज्ज पचक्खं फरुसमुल्लविउँति, एवं च पइदिणं जायमाणे परूढगाढमच्छराणुबंधा एगया गया ते कुलवइसगासे, सोवालंभं च भणिउमाढत्ता, जहा - सामि ! For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पालम्भ, श्रीगुणचंद अम्ह गिहे तुम्हेहिं कोऽविहु मुक्को उ जो इमो समणो । सो अचंतं नियकजकरणपडिबद्धवावारो ॥१॥ तापसोमहावीरचा एयंपि नो वियाणइ गोस्वेहिं जहागिह एयं । पइदिणमुबद्दविजइ रक्खइ न खणंतरं एगं ॥२॥ ५प्रस्तावः किं आलस्सं अहवाऽणुकंपणं अहव होज व उवेहा । निक्खिण्णत्तं वा न याणिमो तस्सऽभिप्पायं ॥३॥ ॥१४७॥ अहवा मुणित्ति गोरूववारणं नो करेति स महप्पा । गुरुदेवपूयणपरा अम्हे समणा न किं होमो? ॥४॥ हे कुलवइ ! जइ रुटोसि अम्ह तं उडवयं हणिजंतं । एएणावि पओगेण वंछसे ता लहुं कहसु॥५॥ जेण विमुंचामो तस्स संकहं को मए सह विरोहो? । रुट्ठोवि तोसणिजो जो किर को तेण सह माणो? ॥६॥ तुह चित्तवित्तिमवियागिऊण णूणं मुहा को रोसो। तस्सोवरि अम्हहिं का वा मूढाण होइ मई ? ॥७॥ 8 इय इंसाभरसम्मिस्सकोवदरफुरियअहरमुल्लविङ । दूइजंतगमुणिणो कुलवइपासाउ निक्खंता ॥८॥ ६ ते य तहा गच्छमाणे दद्ण कुलवई सबायरेण वाहराविऊण भणिउमाढत्तो, जहा-भो महाणुभावा! किमेव परिकप्पह ?, को मज्झ दोसो ?, मए वयंससिद्धत्थरायपुत्तोत्ति कलिऊण एयस्स मुणिणो गउरवं कयं, किं मए एयं वियाणियं? जं एसो एवं नियगेहमुवेहिस्सइ, एवं ठिएवि तहा करिस्सं जहा न विणस्सइ तुम्ह आसमो, एत्तो आसानो॥१४७॥ ||मा वहिस्सह संतावं, मा चिंतिजह कुविगप्पजालं, तुम्हाणं अवरो को मम पिओत्ति ?, एवमायन्निऊण जायसं-18 दतोसा गया ते जहागयंति, कुलवईवि गओ जिणसगासे, दिट्ठो उडवओ निलुत्तपुंखपुडविडओब नाममेत्तावसेसो, BOSS GROUGHSAN For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तं च पेच्छिऊण चिंतियं कुलवहणा - अहो सम्ममुबइटुं तेहिं वरागेहिं, मए पुत्रं वियाणियं मच्छरेण एए जंपंति, इयाणिं पुण एयदंसणे जहावट्ठियं नायंति, एवं संकप्पिऊण भयवंतं भणिउमादत्तो चउरासमगुरुणो तं सुओऽसि सिद्धत्थभूवइस्स जओ । तइलोक्कपिहियकित्ती ता तं पत्र किंपि जंपेमि ॥ १ ॥ तुझ पिउणावि एवं आसमपयमायरेण नियंपि । रक्खियमिहि पुत्तय ! पालेयवं हवइ तुमए ॥ २ ॥ दुट्ठाण ताडणं चिय तुम्ह वयं तेण मुक्कपरिसंको । कीस न गोरूवाई तणभक्खणओ निवारेसि ? ॥ ३ ॥ सउणीव वच्छ ! नियनीडरक्खणं कुणइ सङ्घजत्तेणं । भूभारधरणधीरो किं पुण तुम्हारियो पुरिसो ? ॥ ४ ॥ अम्हारिसजइजण रक्खणट्टया निच्छियं पयावरणा । तुम्हारिसा महायस ! निष्फाइजंति सप्पुरिसा ॥ ५ ॥ अन्नह गोरूहि व दुट्ठेहिं धम्मपचणीएहिं । उवहम्मता अम्हे कं सरणं किर पवजंता ? ॥ ६ ॥ ता गहनाहtव कुमार ! वससु तुह संतियं इमं सवं । परं दिट्ठे पियमित्तं सिद्धत्यनिवं सरेमि अहं ॥ ७ ॥ इय संथगणोवालभपणयसिक्खवणगग्भवयणेहिं । भणिऊण जिणं सो तावसाहियो पडिगओ सहिं ॥ ८ ॥ अह तेसिं भयवं तो मुणिउं अप्पत्तियं महासत्तो । जयजीवहि एक्करओ चिंतेउमिमं समादत्तो ॥ ९ ॥ मज्झ निमित्तेन इमे पाविंति अवोहिवीयमइभीमं । ता सचहा न जुत्तं एत्तोऽवत्थाणमिह काउं ॥ १० ॥ इय भुवणगुरू संचिंतिऊण जाएऽवि वरिसयाल॑मि । ठाणाओ तओ चलिओ परपीडावजिणो गरुया ॥ ११ ॥ For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच ५प्रस्ताव: ॥१४८॥ वर्षाकाले विहार अभिग्रहाः एत्तो चिय अन्नेहिवि परपीडावजगंमि जइयो । जहसत्तीए एवं जम्हा सद्धम्मसारोत्ति ॥ १२ ॥ एयं चेव भगवया वेरग्गकारणमुबहतेण तिवा पंच अभिग्गहा गहिया, तंजहा-अचियत्तकारए उग्गहमि न वसियवं, निचं उस्सग्गं करेयचं, एगदुवयणवजं मोणेण ठाइयवं, पाणिपत्ते भोत्तवं, एगे किर सूरिणो एवं भणंति, तं च किर कहं ?-सपत्तो धम्मो पन्नवेयघोत्ति भगवया पढमपारणगे परपत्तमि भुत्तं, तेण परं पाणिपत्मि जाव छउमत्थोत्ति, गिहत्थो य न अब्भुट्टेयघोत्ति पंचमो, एवं च गहियपंचाभिग्गहो अद्धमासावसाणे तत्तो नीहरित्ता अट्ठियग्गामंमि वच्चइ, तस्स पुण अद्वियगामस्स पढमं वद्धमाणनाममासि, तं च किर कहं ववगयंति ? निसामेह कारणं- कोसंबीए नयरीए असंखदविणसंचओ धणो नाम सेट्ठी परिवसइ, तस्स अणेगोवजाइयसएहिं पसूओ धणदेवो नाम पुत्तो, अचंतं पाणप्पिओ वीसासट्ठाणं च, सो य अन्नया अणेगकुवियप्पदुदृसत्तभीसणं समुलसंतमयणकुसुमसरं रंगततण्हामिगवण्हियापडलं दुबारपसरेंदियचोरभयावहं दुरुत्तारमूढयामहानिन्नगाविसमं अरन्नं व रउइं संपत्तो तारुण्णं, तवसेण य वसइ वेसागिहेसु रमइ जूयं पइदियहं विद्दवइ अत्थसंचयं, कुणइ विविहे विलासे, उवचरेइ दुल्ललियगोडिं, पोसेइ नडनाडइज्जगायणपमुहं अनिवद्धं जणं, नाऽवेक्खइ कुलमेरं न परिचिंतेइ सयणाववायंति, एवं च वञ्चंतेसु य वासरेसु खीणेसु दवपडिपुण्णमहानिहाणेसु, सुन्नीभूएसु कोठागारेसु चिंतियं धणसेट्ठिणा-अहो दुरुत्तारमूढयामतभीसणं समुल्लसंत ॥१४८॥ वेसागिहेसु रमा For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RSESSIOUS अजपजयाइपुरिसपरंपरागयंपि अपरिकलियसंखपि खयं व पत्तमियाणिं मम धणं, ता न जुत्तं एत्तो पुत्तस्स उवेहणंति निच्छिऊण एगते भणिओ धणदेवो-पुत्त! तुम्हारिसाणं उवभोगाइनिमित्तमेव अत्थोवजणमम्हाणं, न एत्तो विसिटुं ठाणमत्थि, केवलं जराजजरियसरीरोऽहमियाणिं असमत्थो चंकमणमेत्तेऽवि अखमो समहिगभासियवेवि अपरिहत्थो कलाकोसलेवि, ता वच्छ ! तुमए एस सबो कुडुंवभारो धम्मववहारोय अणुचिंतणिजो, सो य अत्थं विणा न तीरए मुहुत्तमवि सोलु, अत्थोत्ति नाम पवरो पुरिसत्थो, तहाहि अत्येण सुगुणमुणिजणखेत्तनिहित्तेण सुहफलोण्णमियं । निष्फाइजइ सद्धम्मसस्सयं विणु पयासेण ॥१॥ किं पुत्त! तए न सुयं जिणाण दिनाउ जेहिं भिक्खाओ। पढमाउ ते य तम्मिवि केऽवि जणा सिवपयं पत्ता ॥२॥ केई तइयभवणं सुरवरसोक्खाई जिउं धीरा । सट्ठाणनिहित्ततहविहऽत्थसामत्थओ सिद्धा ॥३॥ अत्थेणं चिय कोमुइमयंकतुल्लाणणाउ तरुणीओ। आवद्धपाणिसंपुडमाणाए लहुं पयति ॥४॥ निदियकुलुब्भवोविहु सयलकलावजिओविहु धणेणं । पुरिसो गुरुव देवोच पुच्छणिज्जो हवइ लोए ॥५॥ जे सूरा समरसिरे जे माणेणं गिरिंदसारिच्छा । जे भवकव्वबंधेण जंति कित्तिं परं भुवणे ॥६॥ जे रूवमरटेणं मयरद्धयमवि हसंति किर पुरिसा । अत्थड्डाण जणाणं तेवि हु सेवं पवजंति ॥ ७ ॥ अच्छउ दूरे अन्नो नियगिहिणीऽविहु न जेण धणहीणं । आयरइ नरं पुत्तय ! सयलोऽविहु लज्जए तेण ॥८॥ **SOGALOSSASSIS For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ५ प्रस्तावः ॥ १४९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिरसंाव चिर (सह) कीलियावि निश्चं कओवयारावि । गोहच्चकारगंपिव मित्तावि मुयंति धणरहियं ॥ ९ ॥ किं बहुणा दढदालिद्ददूमि ( स ) यं माणुसं विणासंतो । सर्वकसो कयंतोवि पुत्त ! आलस्समुखहइ ॥ १० ॥ इय सगुणाहाणं सधणत्तं तदियरं च दोगचं । नियबुद्धीए नाउं पुत्तय ! उचियं समायरसु ॥ ११ ॥ जर ववसायं वंछसि काउं दविणज्जणत्थमिह भद्द ! । ता एसो पत्थावो जावऽज्जवि अस्थि किंपि धणं ॥ १२ ॥ सह विणासे जाए अग्गिंवि समपिही न ते कोऽवि । किं पुण यवहारकए भंडोलं जीविगाजोग्गं ? ॥ १३ ॥ एवं निसुणिऊण भणियं धणदेवेण - ताय ! जइ एवं ता किं तुमए उवेहिओऽहमेत्तियं कालं ? किं मए अवगणियं कयाइ तुम्ह वयणं ? दंसिया अणुचिया पडिवत्ती ? सुरुट्ठताडणेणवि पासिओ विरूवो मुहरागो ? जं विणस्समाणेऽवि घरमारे ण सिक्खविओऽम्हि, अहवा अलं पुण्वगयवइयरसोयणेण, पसीयह मे, देह आएसं, दुट्ठमहिलंब आकरिसेमि दूरगयंपि लच्छि, नंदह तुम्भे बहुं कालं केत्तिमेत्तमेयंति, सेट्ठिणा भणियंपुत्त ! किं न मुणेमि तुह कलाकोसलं, न जाणामि साभावियं भुयबलं ?, न लक्खेमि अंगीकयभरधुरधवलत्तणं, न बुज्झामि महिद्वं चित्तावट्टभं, अओचिय मए एत्तियदिणाई न किंपि भणिओऽसि, विसमदसावडियस्सवि पुत्त । किमसज्झं तुह परकमस्स ?, ता इयाणिपि कुणसु समुजमं पूरेसु पणइजणमणोरहे दलेसु दुज्जणदुट्ठचिंतियं अन्भुद्धरेसु बिहलियं जणं पयडेसु मयंक निम्मलं नियकुलंति, घणदेवेण भणियं-ताय ! किं पुणरुत्तवयणवित्थ For Private and Personal Use Only धनदत्तं प्रति पितृशिक्षा. ॥ १४९ ॥ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 3636 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रेणं ?, पगुणीकरेसु सपडि सत्थं सङ्घ (मग्ग) संवाहगं च, इय भणिए सेट्ठिणा नाऊण से निच्छयं वाहराविया नियपुरिसा, भणिया य-अरे! करेह संबलगाइसमेयं समग्गं मग्गसंवाहगं, संजत्तेह विविध महामोल भंडपडिपुण्णं सगडसमूहं उवणेह वलिट्टं लट्ठखंधगोणगणं पञ्चतेह कम्मकरजणं वाहरह पहरणत्थं गोहसत्थंति, जं सामी आणवेइत्ति पडिसुणिऊण गया पुरिसा, अकालविलंबं समायरियं सवं, निवेइयं च सेट्टिणो, सो य धणदेवो ण्हाओ कयविलेवणो केस - बद्धसियकुसुमो परिहियपंडुरवत्थो पणयदेवगुरुचरणो आपुच्छियजणणिजणगसयणवग्गो गणिमधरिममेयपारिच्छे| जपडिपुन्नपंचसय सगडी सत्थसमेओ सुमुहुत्ते पट्टिओ दूरदेसंतरं, ताहे पेच्छतो अपुत्रापुवसंनिवेसे किणंतो अन्नोन्नभंडाई, आपुच्छंतो देसंतरसमायारं, विष्णासंतो विचित्तभासाविसेसे, देंतो दीणदुत्थियाण दाणं अइगओ दीहमद्वाणं, कमेण रणज्झणिरवसह कंठपलंवन्तघंटियारावनिरुद्धावरसवावारो अणेगसहाइजणपयद्वियगंतियागणो पहुत्तो वद्धमाणगगामसमीवं, तस्स य अन्तरावि समनिन्नुन्नयगंभीरखड विसमप्पवेसा आनाभिमेत्तसुहुमवे लुगा पडहत्यविसालपुलिणा महलचिक्खल्लाणुविद्धतुच्छसलिला वेगवई नाम नई, तहिं च पविट्ठाओ सगडीओ, ताओ पुण उभयपासावलंबिणा जणेण सुसमणेणेव धरियपवणेण ( धरियवयणेण ) सारहिणा निगिण्हंतेण वसहनिवहं कोहालाइणा पगुणिज्जंतेण चक्कमग्गेण कहकहवि कट्ठेण पावियाओ अद्धमग्गं, अह विसमत्तणओ नदीए दूरपहखीणसामत्थत्तणओ वसभाणं अइभारियत्तणओ सगडीणं वाढमायासिया सारहिणो अविगणिय कसखं (बं) घाइघाया निवडिया महीयले For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobabirth.org श्रीगणचंदाबलीवहा, बाढमविग्गो धणदेवो, वाउलीहूओ परियणो, तत्थ य सत्थे एगो वसभो सयलगोमंडलप्पहाणो सप्परिसोदशकटपञ्च शत्युचार: महावीरच० इव लीलाए चिय समुद्धरियमहाभारो विसमप्पएसनित्थारणसमत्थो य अत्थि, सो य तहाविहविसमनिवडिएण ५प्रस्तावः सुमरिओ धणदेवेण पप्फुक्कारपुत्वयं च सकारिऊण जोत्तिओ सो सगडीए, तक्खणं अखेवेण य गओ सो निकवडसा॥१५०॥ मत्थेण गहिऊण लीलाए भारियपि तं नईए परकूलं, जहा सा एगा, एवं पंचसयाणिवि सगडीणं निवाहियाणि तेण विसमप्पएसाउत्ति । अवियएगत्तो सो वसहो अन्नत्तो सयलगोणसंघाओ । उत्तारइ सगडीओ सम्भावस्सत्थि किमसझं! ॥१॥ अइदुद्धरभरपरिकहणेण तुटूं तडत्ति से हिययं । वयणुग्गीरियरुहिरो धसत्ति धरणीयले पडिओ ॥२॥ तं च तारिसमवत्वंतरं पत्तमवलोइऊण धणदेवो परिमुक्कसेसकायद्यो सोयभरमुव्वहंतो वाहरावेइ विजे, कारवेइ टचिगिच्छं, सयमेव समीवढिओ बंधवं व मित्तं व पडिजागरेइ, अन्नदिवसे य भणिओ सो परियरेण जहा-सत्यवाह ! किम-18 गगोणनिमित्तं उवेहिजंति नियकवाई ?, किं न मुणह तुम्भे सीयंति वणियपुत्ता?, विणस्संति कियाणगाई? वोलंति बहवे वासरा, समीवमणुसरइ वासारत्तोत्ति, धणदेवेण भणियं-एवमेयं, किं तु न सकेमि एयं वरागं परममित्तं व ॥१५ ॥ सब्भावसारं मोत्तुं, परियरेण भणियं-तुन्भे जाणह जमेथोचियंति, तओ तप्परिहारकायरमणेणवि धणदेवेण सहाविया बद्धमाणगगामप्पहाणा पुरिसा, सुहासणत्या तंवोलाइदाणेण सम्माणिऊण सप्पणयं वसहस्स समक्खं CHOREOGISGLASS For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AR:-BSCASEANICALAMALA भणियं जहा-एसो मम पवरवसभो एरिसदुद्रुत्थाममवत्थंतरं पत्तो ता तुम्हेहिं एयस्स इमिणा रूवगसएण ओसह| चरणाइचिंताए संमं वट्टियवं, एसो तुम्ह नासगो इव समप्पिओ मए, न सबहा अन्नहा कायचंति निरूविऊण सो18 मयहत्तरजणे मोयाविऊण वसहस्स पुरओ बहुं चारि पाणियं च ससिणेहं खामिऊण य तं जहाभिमयं गओ धणदेवसत्थवाहो।सो य वसभोगाढवेयणाभिभूओ जेट्टमासदिणयरनिहरकरोलिकरालिओत्ति गिम्हुण्हतत्तमहियलडज्झमाणदेहो विरसमारसंतो दिणं गमेइ, तंपि से तिणाइयं अवरगोरूवेहिं भक्खिजइ, सोऽवि चारिवारिरहियत्तणेण गाढवाहिपीडियत्तणेण य सदीणं दिसाओ अवलोएमाणो तणसलिलहत्थे तं पएसं वोलते जणे दहण चिंतेइ-नृणं मम निमित्तं एए इममुवाहरंतित्ति, लोगोऽवि तं अइक्कमित्ता नियनियकज्जेसु पयट्टइ, एवं च सो वसभो पइदिणं तहादसणविहलियासो, चम्मद्विपंजरावसेसो एवं सो परिकप्पेइ-अहो महापाविट्ठो वजगंठिनिहरमाणसो निग्घिणो चंडालविसेसो असचसंधो कलिकालकलिलकलुसिओ एस गामजणो जेण मम एवं दुहियस्स अच्छउ दूरे करुणाए तण्णपूलगाइदाणं जं तइया धणदेवसत्थवाहेण मम समक्खं जवसाइ जीवणमप्पियं तंपि गसिऊण ठिओत्ति । एवं च पइदिणं पओसमुबहतो अकामतण्हाए अकामछुहाए अकामतिववेयणाए आउलीकयसरीरो महानगरदाहमज्झपडिओ इव देहदाहाभिभूओ मरिऊण तंमि चेव गामे अग्गुजाणे सूलपाणिनामो वाणमंतरो समुप्पन्नो, तहिं च उववण्णो समाणो तहाविहं देवरिद्धि पेच्छिऊण विमरिसिउमारद्धो-अहो मए पुवभवे किं दाणं दिन्नं? किं वा तवं २६ महा. For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ५ प्रस्तावः ॥ १५१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तवियं ? कस्स या उवयारे ठियं १ को वा धम्मो सम्ममाराहिओ ? कत्थ वा सुतित्थे सरीरचाओ कओत्ति १, इद्द विमंसिऊण पउत्तो ओही, दिट्ठं च तं तहाविगरालरूवं बलीवद्दसरीरं, ताहे समुच्छलिओ से महाकोवानलो वियंभिओ अविवेओ समुल्लसिओ अकज्जकरणपरिणामो, तयणंतरं पेच्छंतु दुरायारा नियपावपायवस्स फलंति विभाविंतेणं तेण विउच्चिया सयलगामवासिजणाण मारी, तप्पभावेण य अणवरयं मरिउमारद्धा उत्तिममज्झिमजहन्ना बहवे जणा, जायंति य पइदिणं अकंदियरवा । कहं चिय ? - हा ना! पाणवलह ! कत्थ गओ मज्झ देसु उल्लावं । हा हा कर्यंत ! निक्किव ! कह सहसा ववसिओ एवं १ ॥ १ ॥ हा वच्छ ! किमुच्छंगेऽवि तं गओ अइगओ सि पंचतं । मम मंदभाइणीए अहो किलेसो मुहा जाओ ॥ २ ॥ हा जणणि! तहा कठ्ठेण पालिउं मं निलक्खणमियाणिं । कह निरवराह एच्चिय न देसि तं मज्झ पडिवयणं १ ॥ ३ ॥ हा भाय! बंधुवच्छल ! हा तं भइणि! निक्कवडपेम्मे । एकपए चिय चलियाई कीस मुत्तूण मं दुहियं १ ॥४॥ हा वच्छे! बहुदविणवण परिणाविया पयत्तेण । तहविहु इमं अवत्थं संपत्ता हा हयासोऽम्हि ॥ ५॥ हा जक्खवं महरिसूरबुद्ध जिणखंदरुद्दपमुहसुरा । तह पूइयावि संपद किमुवेक्खह तो कुणह रक्खं ॥ ६ ॥ इय अणवरयं तियचच्चरेसु लोयस्स रोयमाणस्स । परिमुक्कावर कज्जस्स जंति दुक्खेण दिवसाई ॥ ७ ॥ एवं च जुगंतसमएव रोगेहि य छिद्दपवेसेहि य पियजणविरहदुक्खेहि य हिययसंघट्टेहि य मरमाणंमि अणेगलोगे For Private and Personal Use Only शूलपाणि वृत्तं. ॥ १५१ ॥ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुन्नीभवंतेसु पवर मंदिरेसु बुच्छिजमाणेसु य अइगरुयकुलेसु मडयकोडिसंकुलासु गामरत्यासु भयभीओ अबसेसो जणो जीवियरक्खणनिमित्तं लिहावेइ रक्खावलयं पाणिपल्लवेसु बंधेइ दिबोसहीओ कुणइ महागहपूयं समायरइ पियरपिंडप्पयाणं परावत्तेइ विविहमंते समीवट्ठियं धरइ दिवमणिगणं पयट्टावेइ होमविहिं आपुच्छर जाणयजोइसिए समारंभइ गिहदेवयाणं ण्हवणबलिपूयामहूसवं, अन्नंपि जं कोइ समाइसइ तं सवं तहट्ठियं निचत्ते, तहवि ओइण्णमहाजरोच पढमछुहाभिभूयपंचाणणोच निकाइयकम्मनिवहोष न मणागंपि सो सूलपाणिवंतरी उवसमं गच्छइत्ति । अह गामजणो अणिवत्तगं दट्टण मारिं धणकणगसमिद्धाई गोमहिसितुरगाइपरिकिन्नाई गिहाई मोत्तूण जीवियट्टयाई नियनियकुटुंबाई घेत्तूण अन्नन्नगामेसु गओ, तत्थवि गयं महावेरिओघ उवद्दवइ सो तग्गामवासिलोयं, एगया य तेसिं चिंता जाया-न नज्जइ तत्थ अम्हेहिं देवो वा दाणवो वा खेत्तवालो वा जक्खो वा रक्खसो वा विराहिओ होज्जा, तम्हा तर्हि चेव गंतूण पसाएमोत्ति संपधारिऊण समागया तत्थेव गामे, उवट्ठाविया बलिकुसुमधूवाइसामग्गी, तयणंतरं पहाया पंडुरवत्थकयउत्तरासंगा लंबंतविमुक्ककेसा सबसमुदाएणं तियचउक्कचचरेसु पडिसडियभूयगिहेसु रुहखंदावसहेसु उज्जाणेसु य बलिं च कुसुमपयरं च मुंचमाणा उद्दमुहा जोडियकरंजलिणो एवं जंपिउं पत्ता भो अंतरिक्खनिलया देवासुरजक्खरक्खकिंपुरिसा । दिवाइसयसमेया निसुणह विन्नत्तियं एयं ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org श्रीगुणचंद महावीरच० ५प्रस्ताव मूर्तिकारापणं. RA ॥१५२॥ इस्सरियमएणं वा अन्नाणेणं व अविणएणं वा । जं अवरद्धं तुम्हं तं सत्वं खमह अम्हाणं ॥२॥ पणएसु सदुचरिओहखामणाउजएसु सत्तेसु । जं तुम्हारिस देवा खमंति गरुयावराहपि ॥३॥ कोवस्स फलं दिटुं पेच्छामो संपयं पसायस्स । इति भणिए सो देवो गयणठिओ वुत्तुमारद्धो ॥४॥ रे रे विणलुसीला ! धट्ठा निप्पिट्ठसिट्ठजणचिट्ठा । लोहमहागहनडिआ एचो मे खामणं कुणह ॥५॥ तइया न सरह पावा वसहस्स छुहाइणा किलंतस्स । तणजलसमप्पणेणवि अणुकंपा जं न विहियत्ति ॥६॥ नियसयणवग्गमरणे जाए संतावमुग्गमुबहह । वसहे तहा मयंमिचि न थेवमेत्तोऽवि मे सोगो ॥७॥ अलमहुणा भणिएणं वह दूरेवि नत्थि मे मोक्खो । खलविसवेलिं आमूलओवि छिदेमि दुहहेउं ॥८॥ इय तवयणमायन्निऊण भयवसकंपंतसरीरा धूवकडुच्छयहत्था सुरभिपुप्फपुंजोवयारं कुणमाणा जय जीव नंदाइकोमलवयणेहिं थुणंता अटुंगं निवडिया महीए, भणिउमाढत्ता य-देव ! सच्चमेव अवरद्धमम्हहिं, नत्थि तुम्ह एत्थावराहो, तहावि पसीयह इयाणि, आइसह इमस्स दोसस्स निग्घायणनिमित्तं पायच्छित्तं, 'अइकंतत्वममरणं विहलंचिय विणट्ठकजंमि' किं बहुणा ?, खित्तं नियसिरं तुह चरणपुरओ, कुणसु जं किंपि कीरइ सरणागयाणंति भणिऊण अग्घदाणपुरस्सरं पुणो पडिया चरणेसु, एवं च निसामिऊण सूलपाणिवंतरो मणार्ग उपसंतचिचो भणइ-जइ एवं ता एयाणि माणुसट्ठियाणि एगत्थ पुंजीकाऊण उवरि पवरं कणंतकिंकिणीधयवडाडोवमणहरं देवहरयं विर ॥ १५२॥ For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir एह, अभंतरे वलीवदाणुगयं जक्खपडिमं पइट्ठवेह, निचं बलिकुसुमचणियं पयट्टेह, एवं कुणमाणाणं तुम्हाणं जीवियं देमि, न अन्नहत्ति, तओ जं देवो आणवेइत्ति तं तहत्ति विणएण सासणं सिरेण पडिच्छिऊण तेहिं गामस्स अदूरदेसे जहोवइटुं तहेव कारवियं तस्स मंदिरं, इंदसम्माभिहाणो य निरूविओ तत्थ देवचओ, आयरेण तिसझं कीरइ पेच्छणयंति । एवं च अणेगमाणुसहिनिचयपूरियत्तणेण इंतजंतेहिं पहिएहिं अन्नगामजणपुच्छिजमाणेहिं तस्स अडिगामोत्ति नामं कयं, पसिद्धिं च सवत्थ संपत्तं । एएण कारणेण अट्ठियग्गाम जायंति । तत्थ पुणवाणमंतरघरे जे तडियकप्पडियाइणो मग्गपरिस्समपीडिया परिवसंति रयणीए ते सूलपाणी पुट्ठीए आरुहिऊण चिरं ताव वाहेइ जाव न सकेंति पयमवि दाउं, पच्छा किलिकिलारावं कुणमाणो केइ तिंदूसगं व गयणे उल्लालिऊण अहो निवडतेसु तिक्खखग्गेण छिंदइ केह चरणेसु गहिऊण वत्थं व सिलायलंमि पच्छाडेइ केइ घंटं व दुवारतोरणे पलंबेइ केइ खंडाखंडिं| काऊण बलिं व सबदिसासु पक्खिवइ, एवंविहजायणाहिं पहियजणं विणासेइ, तभएण य गामलोगो दिवसे अच्छिऊण वियाले सगिहेसु वचद, इंदसम्मदेवच्चगोऽवि धूवं पईवं पूयं च से काऊण दिवसओ चेव निक्खमइति । | एवं वचंतेसु वासरेसु भयवं महावीरसामी तावसासमाओ समागओ समाणो तं वंतरसुरं बोहिउ कामो देवचगं भणइ-अहो एत्थ जक्खगिहे अम्हे निवसामो ?, तेण भणियं-गामो जाणइ, तओ भगवया तत्थेव मिलिओ सयलो गाम जणो अवस्थाणनिमित्तेणमापुच्छिओ, लोगेणवि अचंतसोमसस्सिरीयरूवं भयवंतं दट्ठण भणिय-देवजग! न सक्का *5*45454555594525% महावीरसामी तावसासमा लामो जाणइ, तओ म णिय-देवजग! न For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवदा. गमन. श्रीगुणचंद दाएत्थ वसिउं, एहि गाममझे, गिण्हाहि जहाभिरुइयं अम्ह गिहेसु वसहि, भयरपि अणिच्छमाणो भणइ-इत्थेव महावीरच अणुजाणह, लोगेण भणियं-जइ एवं ता ठाहत्ति, ताहे गंतूण एगमि कोणे पडिमं ठिओ सामी, सो य इंदसम्मो ५प्रस्ताव: पच्छिमसेलसिहरं संपत्ते दिवसयरमंडले धूववेलं निम्मविऊण कप्पडियाइतडियवग्गं निस्सारित्ता भयवंतंपि ॥१५३॥ भणइ-देवजगा! तुभवि नीहरह, मा इमिणा जक्खण मारिजिहिह, सामीवि असुणमाणोब तुसिणीए य गमेइ, पुणो पुणो इय भणंते य देवच्चगे सो वंतरसुरो चिंतेइ-अहो कोऽपि एस देवच्चएणं गामजणेण य भणिजमाणोवि न गओ एत्तो ठाणाओ, ता पेच्छिही जमज करिस्सामि, बहूणं दिवसाणं दिट्ठियाखेल्लणगमुवागयंति। एत्यंतरे अत्थमिओ दिणयरो समागया संझा, सट्ठाणं गओ देवच्चगो, काउस्सग्गे ठिओ भुवणबंधवो। ताहे काउस्सग्गे ठियस्स सो भेसणट्ठया गुरुणो। जुगविगमघोरघणघोसविब्भमं भेसियजणोहं ॥१॥ अट्टहासमसमं चाउहिसिपसरियं महाभीमं । उच्छलियबहलपडिसद्दनायविष्फारियं कुणइ ॥ २॥ गामलोओऽवि तं सदं सोऊण भयसंभंतो परोप्परं भणइ-अहो एसो देवज्जगो महाणुभावो जक्खेण मारिजइत्ति, तत्थ य उप्पलो नाम परिवायगो पासजिणतित्थपुवपडिवन्नसामन्नो भोमुप्पायसुमिणंतलिक्खअंगसरलक्खणवंजणरूव-1 अटुंगमहानिमित्तसत्थपरमत्थवियाणगो लोगाओ एरिसो तारिसो देवज्जगो जक्खेण मारिजिहित्ति निसुणिऊण मा तित्थंकरो महावीरो पडिवन्नदिक्खो होजत्ति संकियमणो वंतरगिहे य तम्भएण गंतुमचाईतो अद्धिई काउमारद्धो। ASSOSORMA ॥१५३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MOHAMHUSACX सो य सूलपाणी जाहे अट्टहाससद्देण भयवं न भीओ ताहे पिसायरूवं विउवइ, तं च केरिसं? अइकविलथूललंविरकेसोहच्छन्नगयणयलमज्झं । अविपक्कसुक्कतुंवयसरिच्छवीभच्छवयणिलं ॥१॥ दिसिकुंजरंकुसागारदूरनिकसियकलुसदसणग्गं । चिविडग्गघोरघोणानिलकंपियकविलमुहलोमं ॥२॥ लंबिरबलिचम्मोणद्धमडहवच्छत्थलट्ठिसंघायं । पिट्ठावलग्गलिंजरकप्परसमजरढजठरतलं ॥३॥ तालतरुजुयलदीपरनिम्मंसहारुनद्धजंघजुयं । ठाणट्ठाणोलंबियपलंवतंडवियफणसप्पं ॥४॥ अइवेगमुक्तकमभरथरहरियससेलमेइणीवढे । कक्खंतरालनिग्गहियमडयपिसायासणाभिरयं ॥५॥ अइकुडिलकत्तिउक्कत्तियंगिनिस्सरियरुहिरपाणपरं । उन्भवियपयंडभुयं पावसमूहं व पचक्खं ॥६॥ इय एवंविहरूवं पिसायमवि पासिऊण जयनाहो । मसगं व अवगणितो धम्मज्झाणं विचिंतेइ ॥७॥ ताहे स सूलपाणी उवउत्तो पेहए जिणवरिंदं । मेरुव निप्पकंपं निब्भयचित्तं पवरसत्तं ॥८॥ तयणंतरं च पुणरवि भेसणकजेण सो महापावो । निसियग्गकुंतभीसणउग्गविसुग्गाढदाढालं ॥९॥ अविकलियरोसवसनिस्सरंतविसमिस्सजलणजालोहं । पप्फुरियफारफुक्कारवायभजंततरुनियरं ॥१०॥ वियडुब्भडचडुलफणाकडप्पपडिरुद्धदिसिमुहाभोगं । सिरिरयणकिरणसंचयदावियगुरुवणदवासंकं ॥११॥ कलिकालपढममित्तं व तिवदुरिओहभूरिरासिं व । जमपासंपि व सक्खा महिमहिलावेणिदंडं व ॥ १२ ॥ For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ५प्रस्ताव शूलपाण्युपसगो. सभासणपिसायनागोवसमा सत्तविहं वेयण भगवाव समस्या पागयनरस्स. ॥१५४॥ COMGAMAUSICADAINIK सप्पं विउच्चइ महं तो सो सामि निएण देहेण । आगंतूणावेढइ बाढं थमं व रजूए ॥ १३ ॥ पंचहिं कुलयं । पुच्छच्छडाए ताडइ सच्छंदं दसइ तिक्खदसणेहिं । कंठस्स पीडणेणं कुणइ निरुस्सासयं सहसा ॥ १४ ॥ अह अट्टहासभीसणपिसायनागोवसग्गकरणेवि । अविचलचित्तं मुणिऊण जयगुरुं गाढकुवियमणो ॥ १५॥ सो सर्व सवरं जाव अचंतरउहं दुरहियासं सत्तविहं वेयणं भगवओ करेइ, तंजहा-सीसवेयणं सवणवेयणं नयणवेयणं दसणवेयणं नहवेयणं नासावेयणं पिट्ठिवंसवेयणं, एयाणं वेयणाणं एकेकाविसमत्था पागयनरस्स जीवियं ववकमिउं, किं पुण सत्त एयाओ एगकालपाउन्भूयाओ अणाइक्खणिजरूवाओत्ति?, भयवं पुण ताओ सम्ममहियासेइ, सोय वाणमंतरो जाहे न पारेइ भयवंतं भेसिउं वा खोभिउं वा ताहे बाढपरिस्सममुवगओ अहो निष्फलो मम वायारोत्ति कयचित्तसंतावो धीरिमारंजियहियओ य भयवंतं पायवडिओ सवायरेण भणइ-भयवं! खमह मम अवराह, अयाणमाणेण तुम्ह सामत्थं सुचिरं मए अवरद्धति, एत्थंतरे नियकजकरणवावडचित्तो तक्खणसुमरियसुरवइजिणभलावणावयणो सो सिद्धत्थदेवो दह्रण भयवओ तिबोवसग्गं धाविओ वेगेणं, पत्तो तं पएस, भणिउमारद्धो य-अरे रे सूलपाणिवंतराहमा! अचंतदुडुलक्षणा दोगचमचुपत्थगा विसुद्धबुद्धिवजिया न जाणसि खलियारंतो इमं सिद्धत्थरायपुत्तं भयवंतं चरिमतित्थयरंति ?, जइ रे दुरायार! एवं वइयरं सको कहवि जाणंतोता को जाणइ तं किंपि पावितोत्ति ?, सो य एवमायन्निऊण बाढं भयभीओ चउग्गुणं पुणो पुणो जिणं खामेइ, सिद्धत्यो य तस्स धम्मदेसणं काउमाढतो जहा CAMERARA ॥१५४॥ For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ***** वीयरागो देवबुद्धीए गहियबो, साहुणो य गुरुबुद्धीए परिभावियवा, तत्तत्थसहहणं कायचं, सबपाणीणं पीडा परिवज्जियवा, पुखदुचरियाई भुजो भुजो गरहणिजाई, जओ एक्कसिं कयाणंपि तिवपओसेण पावाणं कोडाकोडाइरूवो दुहविवागो हवइत्ति, सूलपाणीवि एवमायन्निऊण अणेगलोगक्खयसुमरणउप्पन्नातुच्छपच्छायावो जायसंमत्तो अचंतभवविरत्तचित्तो असेसदोसपसमणट्ठा तिहुयणपहुणो पुरओ गीयनदृमहिमं काउं पयत्तो, गामवासिलोगोऽवि गीया-12 |इसहं सोचा चिंतेइ-अहो तं देवजयं जक्खो मारित्ता इयाणिं परितुट्टो सच्छंदमेवं कीलइत्ति, भयपि चत्तारि रयणिजामे देसूणे परिताविओ समाणो पभायकाले मुहुत्तमेत्तं निद्दापमायमुवगओ संतो इमाई दस महासुमिणाई पस्सइ, कहं ?, जहा किर मए तालपिसाओ उहुं पढमाणो निहओ १ पंडुरो(सउणो)चित्तकोइलगो य दुवे पजुवासमाणा दिवा २-३ सुरहिकुसुमगंधुदुरं दामदुर्ग ४ गोवग्गो य पज्जुवासणापरो ५ पउमसरो विबुद्धपंकओ अवलोइओ ६ कलोलमालाउलो सायरो समुत्तिण्णो भुयाहिं ७ पइण्णरस्सिमंडलं चक्खुगोयरमुवमयं दिणयरबिंब ८ नियंतेहि |भाणुसुत्तरगिरी परिवेढिओ ९ मंदरसिहरं चारूढोत्ति १०, एवं एए दस सुमिणे पासित्ता पडिबुद्धो सामी । एत्थंतरे समुग्गओ सूरो, समागओ धूवकुसुमक्खयहत्थो सयलगामजणो उप्पलनेमित्तिगोय, ते य दिवगंधचुण्णपुप्फवासहि समच्चियं अक्खयसरीरं सामि पेच्छिऊण उक्कटिसीहनायं करेमाणा चरणेसु पडिया, परोप्परं भणिउमेवं पवत्ता दय-अहो देवजगेणं जक्खो उवसामिओ, तेणेसा पूया कयत्ति, उप्पलयेवि परियाणिऊण भयवंतं पहिट्ठो, वंदिऊण | KASANARASAGAKARSAX HOUSES For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेगाव AGRAA त्वमा श्रीगणचंद18|चलणजुयलंतिए निसन्नो, अह भगवओ काउस्सग्गावसाणंमि पुणरवि नमंसिऊण अटुंगनिमित्तसामत्थओ मुणियसुमहावीरच० मिणाइवइयरो भणिउमारद्धो-सामि! तुब्भेहिं अंतिमराईए दस सुमिणा दिवा, तर्सि इमं फलं-जो किर तालपि- ५ प्रस्तावः साओ महादेहो निहओ तमचिरेण मोहणियकम्मं उम्मूलेहिसि, जो य सियसउणो तं सुक्कज्झाणं झियाइहिसि, जो विचित्तो कोइल्लो तं दुवालसंगं पण्णवेहिसि, गोवग्गेण य ज तुमं परियरिओ तं ते चउबिहसमणसमणीपमुहो चउविहो संघो भविस्सइत्ति, पउमसरा य चउबिहो य देवनिकाओ तुमं पजुवासेही,जं च सायरमुत्तिण्णो तं संसारमुत्तरिहिसि, जोय सूरो अवलोइओ तमचिरेण केवलनाणं उप्पजिही, जं च उदराउ निस्सरिऊण अन्तेहिं माणुसुत्तरगिरी विढिओ तं ते निम्मलजसकित्तिपयावा सयलतिहुयणे अनिवारियपसरा परिभमिस्संति, जंच मंदरसिरमारूढो तं सीहासणत्यो सदेवमणुयासुराए परिसाए धम्मं पन्नविहिसि, जं च दामदुगं तस्स फलं न याणामि, सामिणा मणियं-हे उप्पल ! जं तुमं न याणेसि तमहं कहेमि, जं इमं दामदुगं तमहं दुविहं सागारमनागारियं धम्मं पनवेहामित्ति, एवं निसामिऊण हरिसुल्लसियपुलयजालो उप्पलो नमंसिऊण जयगुरुं जहागयं पडिनियत्तोत्ति । भयवंपि धम्मज्झाणपरायणो कालं गमेइ। अह अद्धमासखमणेहिं जयगुरूवि गमिऊण चउमासं । विविहाभिग्गहनिरओ अट्ठियगामाओ निक्खंतो ॥१॥ ताहे स सूलपाणी जक्खो अणुगच्छिऊण भयवंतं । पयकमलनिलीणसिरो भत्तीए भणिउमाढतो ॥२॥ SARAMABOR ॥१५५॥ For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailasagarsun Gyarmande www.kobatrth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नाह! तुह तिवउबसग्गकरणओ नत्थि मम समो पावो । एत्थ तुमं वुच्छो तेण कयत्थोऽवि नेवत्थि ॥३॥ जाणामि सामि! मम बोहणढया तं समोसढो एत्थ । न हु सूणासालाए कोवि निवासं जओ कुणइ ॥४॥ बहुजीवविणासणजणियपावपडलेण पीडिओ संतो। नो पेच्छंतो दुक्खं किमहं जइ तं न इंतोऽसि ॥५॥ ता तुमए चिय भवकूवयाओ हत्थावलंबदाणेण । उत्तारियम्हि जयगुरु ! नियसोक्खपरंमुहमणेण ॥ ६ ॥ इय सूलपाणिजक्खो संथविउं जिणवरं पयत्तेणं । दुस्सहविओगभल्लीऍ सलिओ पडिनियत्तोत्ति ॥७॥ पधजागहणाओ पढमं संवच्छरं जहावित्तं । सिद्धं जइक्कगुरुणो इहिं बीयं निसामेह ॥८॥ । अह थुणिऊण वलियंमि जक्खे भयवं गामाणुगाम पिहरमाणो गओ मोरागसन्निवेसे, तत्थ य बाहिरुजाणे थीपहै सुपंडगाइदोसरहिए पएसे ठिओ पडिमाए, तहिं च गामे अच्छंद्गा नाम पासंडत्या परिवसंति, तेसिं च एगो अच्छंदगो लोगाणं मंततंतभूइकरणेहिं जीवइ, सो य सिद्धत्थवंतरो भयवंतमि पडिमापडिवनंमि कलहकेलिपियत्त ण विणोयमपावमाणो नाहस्स पूयमपेच्छमाणो य अघिई करेइ, अन्नदिवसे य सो भयवओ सरीरे संकेतो तेणंतेणं वोलितं एग गामगोहं सहित्ता कीलानिमित्तं एवं जंपइ-भो भद्द! तुमं कंगुकूरं सोवीरेण सह अन्ज पजिमिओ, संपयं च वसहरक्खणट्टया चलिओ, इंतेण य मग्गे भुयंगमो दिट्ठो, सुमिणगंमि परुन्नो य तारे संभवइ सबमेयं ?, गामगोहेण भणियं-भयवं! अवितहमेयंति भणिए सिद्धत्येण अन्नपि से बहुं समाइटुं, सो परितुट्ठो परमच्छेरयति । For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अच्छन्दकवृत्तं. | श्रीगुणचंद मण्णमाणो गंतूण गाममज्झे नियसयणवग्गस्स पुरओ एवं परिकहेइ, अह कोऽवि देवजओ गामबाहिं ठिओ तीयामहावीरच. लणागयवट्टमाणाई जाणइ, पूरिया मम तेण बहवे पच्चया, एवं च आयन्निऊण गाढकोऊहलाउलिजमाणमाणसो ५प्रस्ताव: गामजणो कुसुमक्खयहत्थो गओ भयवओ समीवं, संभासिओ तेण जिणतणुसंकतेण सिद्धत्थेण, जहा भो तुम्भे मम ॥१५६॥ अइसयपेच्छणत्थं एत्थ संपत्ता, गामजणेण भणियं-सामि! एवंति । तदणंतर जं पुवकालवित्तं जं च सुयं जं च दिमितेहिं । जं भासियं परोप्परमह जं रयणीऍ अणुभूयं ॥१॥ ___जं इट्ठाणिढविओगजोगसुहदुक्खलाभलोभाई । अज्जवि भविस्सविसयं तंपि हु सो साहए तेर्सि ॥२॥ ते य तहाविहं कोउगं दद्दूण सबायरेण वंदंति पूर्यति महिमं च करेंति, एवं च पइदिणं इंतजंतेसु गामिलएसु पवित्थरिओ सिद्धत्थस्स परमो आणंदो । अन्नया य लोगो भणइ-भयवं!, एत्थं अन्नोवि अच्छंदओ नाम जाणओ परिवसइ, सिद्धत्यो भणइ-सो वराओ न किंचि जाणइ, ताहे लोगो गंतूण तस्स पुरओ साहेइ, जहा देवज्जगो भणइ-तुमं न किंपि जाणसि, सोय तं सोचा अहंकारमुबहतो अप्पाणं ठाविउकामो भणइ-एह तुम्ह समक्खं अव मि जेण तस्स परित्राणाभिमाणं, दुकरं खलु अम्हारिसस्स पुरओ अत्तणो पयासणं, सुकरा तुम्हारिसस्स पुरओ गामिलयाण मज्झे विविहसमुल्लावत्ति, एवं च नियपियक्खणत्तं पयडतो ईसामहलसल्लखिल्लियहिययो सकोउहल्लेण लोगेण परियरिओ गओ सो तत्थ जत्थ जणसमूहोवासिन्जमाणपायपंकओ भयवं काउस्सगे चिट्ठइत्ति । तयणंतरं च SARKAC% ACCCCCRA ॥१५६॥ For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करंगुलीहिं उभयपजंतेसु तणयं घेत्तूण भयवओ संमुहं ठिओ पुच्छिउमारद्धो-भो देवजय ! इमं तणं किं छिजिही नवत्ति ?, तस्स एस अभिप्पाओ-जइ किर देवजो भणिही-छिजिही तो न छिदिसं, अह अन्नहा तो छिंदि-15 स्सामि । एवं च विगप्पमाणंमि तंमि सिद्धत्येण अणियं-न छिजिही, सो एवं सोचा सगारद्धो छिंदिउं । एत्थंतरंमि सको सुहासणत्यो इमं विचिंतेइ । गामागरेसु भयवं ! कह विहरइ संपयं वीरो? ॥१॥ दिवोवओगविभवेण वइयरं तं तओ मुणइ सचं । पेच्छइ य तं पुरत्थं तणभंगसमुज्जयं समणं ॥ २ ॥ अहह महापावो कह जिणंपि मिच्छं समीहए काउं? । इय चिंतिऊण मेलइ महल धारुकडं कुलिसं ॥३॥ तं मणसमाणवेगं आगंतुं करजुगंगुलीवलयं । छिंदेइ तस्स सहसा अछिज्जमाणमि तंमि तिणे ॥४॥ अह सो अच्छंदगो कुलिसघायनिवडियासु दससुवि करंगुलीसु जायवेलक्खभावो सयलगामजणेण धिकारिजमाणो गओ तप्पएसाओ, ताहे सिद्धत्यो तस्सोवरि वाढं पओसमावन्नो तं गामजणं भणइ-अरे रे दुरायारो महा-10 दूचोरो एसो, लोएण वुत्तं-भयवं! कस्स एएण चोरियं ?, सिद्धत्थेण भणियं-निसामेह, अत्थि एत्थ वीरघोसो नाम | कम्मारओ, सोऽविय निसामिऊण नियनामं लोयमज्झयाराओ आगंतूण निवडिओ चलणेसु, भणिउं पवत्तो यभयवं! तुम्हेहिं जो समुक्कित्तिओ सो अहं, साहेह किं कीरउत्ति, सिद्धत्थेण भणियं-भद्द! तुह अमुगंमि काले दस-1 आपलियं वट्टगं नट्ठपुवं?, तेण भणियं-आम, सिद्धत्थेण वुत्तं-तं एएण पासंडियाहमेण हरियं, वीरघोसेण भणियं-कत्थ २७ महा। SACREACOCCAMACHAR For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Siri Kailassagarsuri Gyanmandir वृत्तम् श्रीगुणचंदतं पुण पाविस्सं ?, सिद्धत्येण भणियं-एयस्स चेव पुरोहडे महिसिंदुनामस्स पायवस्स पुरत्थिमेणं हत्यमेत्तं गंतूण । अच्छन्दकमहावीरच० भूमिनिहित्तं उक्खणिऊण गिण्हसुत्ति वुत्ते सो कम्मारओ लोगेण समं गओ जहोवइटुपएसे, आगरिसिऊण गहियं पापण्डि५प्रस्तावः 3वयं, हलवोलं कुणंतो य जणो पडिनियत्तो जिगस्स अंतिए । तयणंतरं च पुणो सिद्धत्थेण भणियं-अन्नंपि सुणेह, ॥१५७॥ अत्थि किमिह इंदसम्मो नाम गाहावई ?, जणेण भणियं-अस्थि, एत्यंतरे सो इंदसम्मो निययनाममुक्कित्तिज्जमाणं है सोऊण सयमेव उवढिओ भणइ-आणवेह सो अहंति, सिद्धत्थेण भणियं-अस्थि भद्द! तुज्झ पुवकाले ऊरणगो पणट्ठो?, तेण भणियं-अत्थि, सिद्धत्थेण भणियं-अरे एएण अच्छंदएण सो हणिऊण खाइओ, अट्ठियाणि से. उकुरुडियाए बदरीए दाहिणे पासे उज्झियाणि अजवि चिटुंति, जइ कोऊहलं ता अजवि गंतुण पेच्छहत्ति वुत्ते वेगेण | धाविया तदभिमुहं, अछियाणि पलोइयाणि, कलकलं करेंता आगया जिणसगासे, पुणरवि सिद्धत्येण भणियं-एयं दुइजं दुचरियं, अन्नंपि तइजं अत्थि, परं नाहं कहिस्सं, ते य एयमायन्निऊण गाढं निबंधं काऊण पुच्छिउमारद्धा, कहं ?देव! पसीय महापहु पुणोवि अण्णं न पसिणइस्सामो । अद्धोवइट्ठमेकं एयं अम्हं निवेएसु ॥१॥ ॥१५७॥ जह जह न साहइ सुरो तह तह पुच्छंति आउला धणियं । सचं जायं एवं जमद्धकहियं हरइ हिययं ॥२॥ एवं निबंधपरेसु तेसु सिद्धत्येण भणियं-अरे मा तरलायह, अम्ह अभासणिजमेयं, जइ अवस्सं सोयचं ता| For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ------- गंतूणं पुच्छह एयस्स चेव भज, सा तुम्ह साहिस्सइत्ति, एयमायन्निऊण पधाविया तग्गिहाभिमुहं, इओ य-सा अच्छंदयस्स भजा तदिवसं तेण पिट्टिया, वाढं पओसमावन्ना चिंतेइ-सोहणं जायं जं तस्स अंगुलीओ छिन्नाओ जण धिक्कारिओ य, तहा इयाणि जइ गामो एइ ता सवं दुस्सीलयं पयडेमित्ति विगप्पंतीए संपत्तो गेहंगणे गामजणो, पुच्छिउं पवत्तो य, सा भणइ-मा इमस्स कम्मचंडालस्स नामपि गिण्हह, जओ एस नियभगिणीए सहोयराए । सद्धिं विसए अणुभुंजइ, ममं निच्छइत्ति, एवमायण्णिऊण ते उक्किट्ठीसिहनायं कुर्णता नियनियगिहेसु गया पण्णवेतिजहा एरिसो तारिसो सो महापावोत्ति, एवं सो अच्छंदओ जण अवमाणिजमाणो कयबंभणहचो इव अपेच्छिजमाणो लुक्खभिक्खाकवलंपि अपावमाणो एगया गंतूण जिणनाहं सकरुणं जोडिय करसंपुडं च भणिउमाढत्तोदेवजय ! वजेसुं निवासमिह तं महागुभावोऽसि । ठाणंतरेवि तुझं पूयामहिमं जणो काही ॥१॥ अन्नत्य गओऽहं पुण कित्तिमकणगं व नेव अग्धामि । सदरीए च्चिय गोमाउयस्स सूरतणं सहई ॥२॥ तुह पुरओ जो विहिओ दुविणओ देव ! मूढहियएणं । सो मं दढकुवियकयंतदंडघाओब दुक्खवइ ॥३॥ एवं भणमाणे अच्छंदगे अचियत्तोग्गहोत्तिकलिऊण सबस्सापत्ति(पीति)परिहारपरायणो भयवं नीहरिऊण मोरागसन्निवेसाओ उत्तरवाचालाभिमुहं पत्थिओ, अह मग्गे वच्चमाणस्स दक्खिणवाचालसन्निवेसं समइकंतस्स उत्तरवाचा-| दालसंनिवेसं च अपावमाणस्स अंतरा सुवण्णकूलाभिहाणाए महानईए पुलिणं वोलिंतस्स भगवओ महावीरस्स खंधाब RA%ARMA For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir श्रीगणचंद महावीरच ५ प्रस्तावः R ॥१५८॥ लंवि वत्थखंडं कहपि पवणकंपिजमाणं कंटए विलग्गिऊण निवडियं, सामीवि थेवं भूमिभागं गंतूण अत्थंडिले पडियं नृपसंसदि होजत्ति मणागमेत्तं वलियकंधरो तमवलोइऊण जहाभिमयं गंतुं पवत्तो । सो य पिउवयंसो पुवभणियबंभणो चिर- विप्रोक्तं कालेण तं निवडियं वत्थखंडं पहिडचित्तो गिहिऊण भयवंतं च वंदित्ता कुंडग्गामनयरमुवगंतूण पुखभणियतुन्ना- वकृतम् गस्स समप्पेइ। तुन्नागोऽवि अइनिउणं तुन्निऊण एगरूवं विरएइ। तओ सो बंभणो देवदूसं आदाय गओ नंदिवद्धण नराहिवस्स समीये, पणामियं तं वत्थं, राइणावि कोऊहलमुच्वहंतेण सुचिरं पलोइऊण भणियं-भद्द ! एवंविहं पवरहै वत्थं कत्थ तए पावियं ?, बंभणेण भणियं-देव ! महई एयस्स कहा, राइणावि भणियं-वीसत्थो सम्म साहसु, तओ जह दालिदोवहओ सुचिरं देसंतरेसु भमिऊण । नियमंदिरमणुपत्तो गिहिणीए तजिओ पुचं ॥१॥ जह जिणनाहो करुणक्खरेहिं गंतूण भूरि विन्नविओ। अणुकंपाए तेणं जह दिन्नं देवदूसद्धं ॥ २॥ . जह तुन्नाएण पुणो दूइजवत्थद्धलाभकजेण । जयगुरुणोच्चिय पासे सिक्खविउं पेसिओ सहसा ॥३॥ जह संवच्छरमेगं पुट्टिमि ठिओ पुरागराईसु । सिस्सो इव परिभमिओ जयपहुणो विहरमाणस्स ॥४॥ जह वा सुवण्णकूलानईए कंटग्गलग्गवत्थद्धं । चइऊण गए नाहे तयं च गहिऊण चलिओ य ॥५॥ ॥१५८॥ जह तुन्नागेण तयं दुखंडसंसीवणेण मेलवियं । तह सयलं नरवइणो निवेइयं तेण सविसेसं ॥ ६ ॥ एवं च निसामिऊण तुट्ठो नंदिवद्धणनरिंदो दीणारलक्खमेगं वत्थस्स मुलं दाविऊग सबहुमाणं सकारिऊण । 955 ROCRACROCAR %A5%3- 5 For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RECESSACRORRECTOCK भणइ-अहो भह ! कहं भययं विहरइत्ति, बंभणेण भणियं-देव ! सुणेह, सो जएकनाहो कयाइ फुट्टहासजणियसंतासेसु भूयभवणेसु गोदुहियाए दुद्धरं नियमविसेसमालंबिऊण नासग्गसंगिचक्खुविक्खेवो मंदरोव थिमिओ झाणं झियाइ, कयाइ करालवेयालयालाउलासु पयंडपडियनरमुंडमंडलीसु सुसाणभूमीसु वीरासणं संठिओ निरुद्धउस्साससमीरपसरो सूरबिंवनिहियनयणो मज्झंदिणंमि आयावेइ, कयाइ गुरुभारकंतनरोव ईसिअवणयकाएण पलं|बियभुयदंडो गामबहिया काउस्सग्गेण चिट्ठइ, कयाइ निकारणकुवियपिसायविहियतिबोवसग्गं सोक्खपरंपरं पिव सम्ममहियासेइ, कयाइ छट्ठट्ठममद्धमासाइतव विसेससुसियसरीरो पंतकुलपरिभमणलढुंछतुच्छासाराहार गहेण पाणवित्तिं निवत्तेह। कइयावि हीणरूवेहि दुट्टसीलेहि कीडमेत्तेहिं । पागयनरेहिं विहियं विसहइ सो तिवमुवसगं ॥१॥ सा आवयावि मण्णे निसुणिजइ जा जएकदेवस्स । दइयव दुन्निवारा नेव समीवं समलियइ ॥२॥ एवं किर तस्स महायसस्स उत्थरइ दुत्थिमा भीमा। कइयावि तियसनिवहा पूयामहिमं पकुवंति ॥३॥ इय नरवर! तचरियं न मारिसो किंपि साहिउं तरइ । तारिसजणचरियाई मुणंति जइ तारिसा चेव ॥ ४॥ एवं निसामिऊण राया सपरिसाजणो दीहरमुक्कनिस्सासो अच्छिन्ननिवडतबाहापवाहाउलवयणकमलो सोगं काउमारद्धो भणोऽवि गओ सगिहं। समप्पियं तुन्नागस्स मोलऽद्धं, सेसदवेण विविहं विलसंतो कालं वो लेइत्ति । For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org श्रीगुणचंद महावीरच. ५प्रस्ताव कनकखले गमनं. ॥१५९॥ RAKASONGS इओ य-वद्धमाणसामी उत्तरवाचालसन्निवेसे गंतुकामो कुडिलपहपरिहारेण उजुयमग्गाणुलग्गकणगखलाभिहाणासममझेण पछिओ संतो निवारिओ गोवालेहिं, जहा-भयवं! एत्थ आसमे दिट्ठीविसो सप्पो अभिहवेइ ता मा एएण पहेण वच्चह, सामीवि जाणइ, जहा-सो भविओ संबुज्झिहित्ति निवारिजमाणोऽवि गोवेहि परकजकरणरसियत्तणेण गओ कणगखलं नाम आसमपयं, जं च केरिसं? कप्पूरतमाललवंगतिणिससाहारपमुहतरुछन्नं । अइमुत्तयवासंतियकयलीहरनियहरमणिजं ॥१॥ तावसजणनिम्मियहोमहुयवहुच्छलियधूममलिणाओ। तेलोला इव रेहति जत्थ साहीण साहाओ ॥२॥ पवणपकंपियपलवकरहिं जं वारइच जिणमितं । दिट्ठीविससप्पभयं कहइ व सउणाण सद्देणं ॥३॥ एवंविहंमि तत्थ आसमपए आगंतूण ठिओ जक्खभवणमंडवियाए सामी काउस्सग्गेण चंडकोसियसप्पं पडिबोहणत्थंति । को पुण एस सप्पो पुत्वभवे आसित्ति?, निसामेह___ अत्थि अणेगधणधण्णकणगसमिद्धजणपरिच्छन्नो अदिट्ठपरचक्कोवद्दयो समुद्दोच बहुवाणिओववेओ महासरोव वि- चित्तचित्तपत्तपउमाहिडिओ रासिसमुदओब मेसविसमिहुणकन्नासमेओ गयणाभोगोव सुरसोमगुरुबुहलोगाहिडिओ| कोसिजो नाम सन्निवेसो । तत्थ असेसदेसभासाविसेसवियक्खणो नाणवित्राणकोऊहलविहिविहण्णू छंदलक्खणजोइससत्थपरमत्यकुसलो छक्कम्मकरणनिरयचित्तो गोभद्दो णाम माहणो परिवसइ, KERAKASAR ॥१५९॥ For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नियबुद्धिविणयविविहोवयारओ जेण सबलगामजणो । विहिओ पहिहियओ एगं लच्छि विमोत्तूणं ॥१॥ अहवा न सो कोऽवि गुणो जो तस्स न विजए दियवरस्स । तं नत्थि किंतु जं अँजिएहि दिवसं स बोलेइ ॥२॥ एवं च धणविरहेवि सो अविचलचित्तत्तणेण मणागंपि दीणत्तमदंसिंतो नियनियपरिग्गहत्तणेण चेव संतोसमुन्वतो चिंतेइ-अहो महाणुभावा! इमे धणिणो जे इमीए सिरीए परिग्गहिया पीडिजंति दाइएहिं विलुप्पिजंति नराहियहि अभिभविजंति तक्करनियरेहिं मग्गिजंति मग्गणगणेहिं अणुहवंति विविहावयाओ, पयमेत्तंपि न परिभमंति सच्छंदयाए, तुच्छऽपत्थभोइणोवि अभिलसिज्जंति वाहीए, अहं पुण एत्तो एगस्सवि अणत्थस्स न गोयरमुवगओत्ति, एवं तस्स परिभावितस्स वचंति वासरा । अन्नया य सो सिवभद्दाभिहाणाए निययपणइणीए भणिओ, जहा-अजउत्त! आवनसत्ता वहामि अहमियाणिं, पसबसमए विससेण मह ओसहाइणा कजं भविस्सइ, तो कीस तुमं न किंपि पुरिसयारमवलंबेसि ? न वा दबावजणोवायं विगप्पेसि?, न हि अणागयत्थचिंतापरंमुहा सलहिजंति पुरिसत्ति, सो एवमायन्निऊण तक्खणविसुमरियपुत्वविवेओ जलहिव मेहोदएणं कुवियप्पकल्लोलमालाउलो परिभाविउमारद्धो-किं एत्तो ववसायं करेमि? कं वा जणं अणुसरामि ? को वा इमस्स कजस्स होज साहेजदायगो ? कत्थ व गयस्स एवं सिज्झेज ? को इमस्स हेउत्ति, इय किंकायवयवाउलत्तजलहिमि सो बुडो, ताहे सिवभदाए मणिओ सो-कीस वाउलो होसि ?, केत्तियमेत्तं एयं तुह विमलकलाकलावस्स ?, जइ कमविहु धणवंतं गंतुं मग्गेसि For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ५प्रस्ताव प्रवास, ॥१६ ॥ GANGA सोऽवि धुवमेयं कजं पसाहइस्सइ, दुलहो तुम्हारिसो अतिही, गोभद्देण भणियं-पिए! साहेसु परपत्थणं मोत्तूण अर्थार्जनाय अन्नमुवायं, पत्थणा हि नाम नरस्स जणेइ मरणसमयनिविगेसत्तणं, तहाहि-जायणापयट्टस्स सन्निवायाभिभूयब, गोभद्रस्य पक्खलइ वाणी विगलंति विच्छायछायाओ अच्छीओ विगयसोहं हवइ वयणकमलं कंपति अंगाई पयर्टति दीह-16 दीहा उस्सासा संखुभइ हिययंति । अविय- तावचिय कुमुयमयंकनिम्मला विप्फुरति गुगनिवहा । जाव परपत्थणाकलुसपंकलेवं न पावेति ॥१॥ तावच्चिय पूइज्जइ गुरुत्तबुद्धीए परमभत्तीए । जावऽत्थित्तं सत्तुत्तणं व पयडेइ न पुरिसो॥२॥ तावञ्चिय सुहिसयणतणाई दंसंति निच्छियं लोया । देहित्ति दुट्ठमक्खरजुयलं जा नेव जपेइ ॥३॥ देहित्ति जंपिरेणं माणविमुकेण विणयहीगेणं । धम्मत्थवजिएण य जाएणवि को गुणो तेण? ॥४॥ ता अन्नमुवायंतरमहुणा मम दुकरंपि किंपि पिए! । साहेसु पत्थणंपिहु मरमाणोवि हुन काहामि ॥५॥ इय सा तनिच्छियमुवलब्भ खणमेगं चिंतिऊण भणिउमारद्धा-अजउत्त! जइ एवं ता अत्थि अन्नो उवाओ, परं बहुसरीरायाससजो अचिरकालसाहणिज्जो य, जइ भणह ता निवेएमि, गोभद्देण भणियं-पिए! को दोसो ?, निवे ॥१६॥ एहि, तीए भणियं-सुणेसु, अत्थि पुखदेसे असंखदेवउलमालालंकिया वाणारसी नाम नयरी, तीसे समीये फुरंतफारभंगुरतरंगाविद्धविसुद्धसलिला हंसचक्कवायमिहुणोवसोहिया अणवरयवहंतमहासलिलप्पवाहपूरियरयणागरा गंगा नाम For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org %AUNCHES महानई, तीसे तडंमि बहवे दूरदेसंतरागयराईसरसेडिसेणावइदंडनाहप्पमुहा जणा केइ परलोगस्थिणो केइ3. कित्तिजसत्थिणो केइ अणत्थपडिघायत्थिणो केइ पियरतप्पणत्थिणो अणवरयं काराविति महाहोमं पार्डिति पिंडं दिति सुवन्नदाणं सक्कारिति उद्धूलियचलणे माहणेत्ति, अओ अजउत्त! जइ तुमंपि तत्थ वचसि ता उवत्थाणमेत्तेण पत्थणाविरहेऽवि पावेसि कणगदक्खिणं, थेवमेत्तकालेण य पडिनियत्तिहिसि, इमं निसामिऊण भणियं गोभद्देण-पिए! मुद्धाऽसि तुमं, सवणरमणीया खलु दूरदेसवत्ता, सिवभहाए भणियं-अजउत्त! तहावि भवणनिविट्ठस्स का तुज्झ कजनिप्फत्ती ?, गोभद्देण भणियं-किमजुत्तं ?, एवंपि होउ, कुणसु संबलं जेण वचामि, तओ तीए कयं से निमित्तं पाहेज, अन्नदिवसे संबलगहत्यो पयहो सो वाणारसीसंमुहो, कमेण वचंतेण दिट्ठो निद्रसरीरसंठाणो नियंसि-17 यवत्थजुयलो निराभरणोवि अहिगं सरीरप्पभाए उबसोहंतो वज्झागारेणविलक्खिजमाणातिसओ पवरपाउगाधिरूढो 3 रतिविरहिओ वम्महोब पञ्चक्खो सलील असंभंतो पहे वचंतो एगो सिद्धपुरिसो, तं च संभमभरियाहिं अच्छीहिं जाव पेच्छइ ताव संभासिओ अणेण-भो गोभद्द! समागओऽसि ?, किं संपयं तुम वाणारसिं गंतुमिच्छसित्ति वुत्ते सविम्हयं गोभद्दो चिंतिउमारद्धो-अहो कहं अदिटुं असुयं मं पञ्चभिजाणइ ?, कह वा मम गिहिणीए य एगंतजायं इमं गमणवइयरं उवलक्खेइ ?, सबहा न एस सामन्नो हवइत्ति, तहा जो एत्तियं मुणइ सो अन्नपि मुणिस्सइ, ता देवयं व उवचरेमि एयं, जइ पुण एत्तोचिय निष्फत्ती होजत्ति विभावितो जोडिय करसंपुडं तं भणिउमाढत्तो-अज! ACCORGACANCCC For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच ५प्रस्ताव ॥१६१॥ एवमेयं, सम्मं तुम्भर्हि वियाणियं, तेण भणियं-भद्द! एहि समं चिय, जेण तहिं वचामो, पडिवन्नं गोभद्देण, गंतुं विद्यासिद्ध पयट्टा, खणंतरे जाए भोयणसमए गोभद्देण भणियं-अज! पविसह गाममझे, करेमि भोयणोवक्कम, अइकालो | संसर्गः वट्टइत्ति, विजासिद्धेण भणियं-सोम ! किमत्थ पविटेहिं काय?, एहि अजवि जाममेत्तो वासरो कोमला सूरकि भोजनं ४ शय्यादि च रणा थेवमग्गं अइकंता य, गोभद्देण भणियं-जं तुम्भे वियाणह, तओ पुणो पयट्टा गंतुं, मझंदिणसमए य संपत्ता बहलतरुसंडसंछण्णं उज्जाणं, दिट्ठा य तत्थ अच्छसलिलपडिहत्था कमलकेरवकल्हारपरागपिंजरहंसोवसोहियतीरदेसा एगा महासरसी, पविट्ठा तत्थ, कयं मजणं, विहिया मुहसुद्धी, पयट्टो य गोभहो देवयाणुसरणं काउं, इयरोऽवि ठिओ समाहीए। एत्थंतरंमि बहुभक्खभोयणा रसवई गुणसमिद्धा । बहुवंजणपडिपुण्णा मंतपभावेण अवयरिया ॥१॥ कच्चोलथालदधीसिप्पिसणाहो उवक्खरो सबो । सुविणीयपरियणेणप्पिओच पुरओ ठिओ तस्स ॥२॥ एरिसं च परमब्भुयभूयं वइयरमवलोइऊण विम्हिओ गोभद्दो, भणिओ य विजासिद्धेण-गोभद्द! पगुणो भव, कुणसु भोयणंति, जमजो आणवेइत्ति पडिवजिऊण तवयणं उवविट्ठो सो भोयणकरणत्थं, विजासिद्धोऽवि परिवे-| ॥१६१॥ सिउमारद्धो, कमेण य निबत्तियभोयणमि गोभद्दे सयमुवविठ्ठो विजासिद्धो, गोभद्देणवि कओ से परिवेसणाइवावारो। एवं च निवत्तियंमि भोयणे विजासिद्धविमुक्तकहुंकाराणंतरमेव असणमुवगया थालाइसमेया रसवई, खण For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेत्तं च वीसमिऊण माहवीलयाहरे निरुचिग्गहियया विविहकहाओ कहे माणा संपट्टिया 'गंतुं, गच्छंताण य जाए रयणिसमए गोभद्देण भणियं-अज्ज ! कलयंटकंठसच्छहा समुच्छलइ तिमिररिंछोली न लक्खिज्वंति संपयं निष्णुण्णया महिमग्गा निद्दावसविसंटुलाई घुम्मंति लोयणाई पयत्तसंचालियावि न चलति चलणा, ता गच्छह गामे, कुणह वीसामंति, विजासिद्धेण भणियं सोम ! सिग्घगईए एहि मुहुत्तमेत्तं किं गामपवेसणकज्जं, गोभद्देण भणियं एवं हवउत्ति । ताहे जाममेत्तं अद्धाणमइलंघिऊण ठिया एगत्थ पएसे । तयणंतरं च विज्जासिद्धो आबद्धपउमासणो निरुद्धसमीरप्पयारो झाणं काउमारद्धो, अह कणगकलसकलियं रणंतमणिकिंकिणीनिवहरम्मं । सुसिलिट्ठलट्ठथिरथोरथंभसोहं तवरसालं ॥ १ ॥ सुविभत्तचित्तरेहंतवेइगावलयलीढपेरंतं । बज्झपएसनिवेसियमहलपलंकसोहिलं ॥ २ ॥ गणाओ अहावरं विमाणमेगं समोयरेऊणं । विज्जासिद्धस्स पुरो हुं निविद्धं धरणिवट्ठे ॥ ३ ॥ अह तत्तो नीहरिऊण दिप्पंत मणिमउडलंकियसिरा विमलकुंडलकंतिविच्छुरियगंडयला पवरमुत्तासरिविराइयसिरोहरा हारल्याच्छाइयथणकलसा पंचरायमणिकंकणमंडियकोमलबाहुलया रोमावलीसणाहमुट्ठिगेज्झमज्झभाग|देसा रसणादामसंगयनियंब फलया नियंसियपंचवन्नदिवसा झंकारमणहरमणिनेउराणुगयचलणा हरियंदणरसविच्छुरियसरीरा अप्पडिमरूवा एगाए समाणरूवजोवणाइगुणालंकियाए विलयाए अणुगम्ममाणा समागया बिला For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युवतियुग्मागमः गोभद्रस्य शीलं. श्रीगुणचंद सिणी, जोडियकरसंपुडा य विज्जासिद्धं भणिउमारद्धा, जहा-भो महायम ! उवसंहरेसु संपर्य मंतसुमरणं अलंकरेसु महावीरच० विमाणमेयंति निसामिऊण उढिओ विजासिद्धो, पविठ्ठो विमाणभंतरे निसन्नो सेजाए, उवणीयाणि य तस्स ५प्रस्ताव: तंबोलवीडगाणि, ताहे वाहरिओ विजासिद्धेण गोभद्दो, तंबोलदाणपुत्वगं च विसजिओ निद्दाकरणाय, दूरे ठाऊण ॥१६२॥ द्रय तदीयमाहप्पविम्हियमणो पसुत्तो एसो, विजासिद्धोवि ताहि रमणीहि समं विविहसंकहाहिं गमिऊण खणमेकं जेट्टाए अणुचरि जुवई भणइ-महे! तुमं इमस्स गोभहस्स माहणस्स भजाभावदंसणेण अत्ताणं पवित्तं करेसु, तीए | वुत्तं-एवं करेमि, अह जायंमि विजणे विज्जासिद्धो पारद्धो इयरीए समं भोगे उवभुंजिउं, सावि तदुवरोहेण गया गोभद्दसमीचे, पवोहिऊण सिट्ठो विजासिद्धाएसो, तेण य कुसलमइत्तणेण नाऊण कजपरमत्थं भणिया सा, जहा-मयच्छि! भगिणी तुमं मे होसि, ता अलं एत्थ पत्थुयत्थवित्थरेणं, जहाभिप्पेयं समायरसु, अकजपवित्तीएवि जओ न एयस्स हयजीवियस्स कोऽवि समुप्पज्जइ गुणो, अविय अइघोरमारुयाहयनलिणीदललग्गसलिललवचवलं । जीयं सुपालियंपिहु न चिरावत्थाणमणुहवइ ॥१॥ पिविहोवभोगविसयाणुकूलयालालियंपि बहुकालं । परिसडियविंटफलमिव विगलइ गत्तंपि अचिरेण ॥ २॥ सुवंति य नरएसुं धम्मविरुद्धत्थकरणसत्ताणं । सत्ताणं तिक्खदुक्खाई तेण कुणिमो कहमकजं?३॥ सकलत्तसंगईविहु उउकालाओ परेण पडिसिद्धा । किं पुण पररमणीजणविसयपसंगो समयसत्थे ॥४॥ SAARE GRECRACKAGAR ॥१६२॥ For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A % नियजीवस्सवि उम्मग्गगामिणो जइ करेमि न निरोहं । ता कह अन्ने अणयारचारिणो नणु निरुभिस्सं?॥५॥ इय गोभद्देण तहा कहंपि संभासिया सवेरग्गं । नियभायनिविसेसो जह जाओ तीए पडिबंधो ॥६॥ खणमत्तं च विगमिऊण भणियं तीए-अहो महाणुभाव ! सुंदरो तुहाभिप्पाओ, एयं चिय सप्पुरिसलक्खणं, एयं चिय धम्मसच्चस्सं, एत्तो सयलकल्लाणोवलंभो, इमाओ असेसदुस्सज्झविजासिद्धीओ हवंति, एयं खु सुरासुराणवि दुरणुचरं, एयाणुगओ य नरो न रोगसोगदुक्खेहिं बाहिजइ, ता पत्तं तुमए जम्मजीवियफलं जस्सेरिसो दुक्करपरित्थीसेवापरिहरणपरिणामो, एयं च कुणमाणेण तए अहंपि निओइया सव्वकामुयसिद्धिलाभेणंति, गोभद्देण भणियं-कहं चिय मए निओइया सबकामुयसिद्धीए?, तीए भणियं-महायस! भायनिविसेसोत्तिकाऊण साहिजइ तुज्झ एस वइयरो, निसामेहि, गोभद्देण भणियं-एसो निसामेमि, तीए कहियं| अत्थि सयलतइलोयविक्खायं अणेगअञ्चन्भुयभूयाइसयजणियजणविम्हयं आगरो विजारयणाणं कुलभवणं तंतप्पओगाणं ठाणं खुडसिद्धीणं जालंधरं नाम पुरवरं, जत्थ आगटिवसीकरणप्पओगअहिस्सकरणकुसलाओ । नहगमणदूरदसणपमोक्खलद्धीसमिद्धाओ ॥१॥ हुंकारमेत्तपडिभिन्नसत्तुसंदोहतुहिययाओ। निरुवमरूवनिरक्तियवमहमहिलाभिमाणाओ ॥२॥ अट्टप्पयारअणिमाइसिद्धिसंबंधसस्सिरीयाजो। निक्सति जोगिणीओ देवाणवि वंदणिजाओ ॥ ३ ॥ RT-3 - २८ महा. For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ५ प्रस्ताव चंद्रलेखावृत्तम् ॥१६३ ॥ इयरजणा दुविणयं जं नो दंसंति तं किमच्छरियं ? । तासिं महाबलाणं संकइ कुविओ कयंतोऽवि ॥४॥ सुरखयरजक्खरक्खसमडप्फरप्फंसणावि नूण जरा । निचावट्टियजोवणगुणाण जासिं न संकमइ ॥५॥ चिरदूरकालवोलीणभूवईणं समग्गचरियाई । अजवि जाओ पयडंति सेललिहियप्पसत्थित्व ॥६॥ इय तारिसपयडपभावजोगिणीचक्कवालकलियस्स । नयरस्स तस्स भण केण वन्नणा तीरए काउं? ॥ ७॥ तत्थ य अहं चंदलेहाभिहाणा जोगिणी परिवसामि, एसावि विजासिद्धसमीववत्तिणी मम जेट्ठा भइणी पसाहियपवरविजा अचंतदरिसणिज्जा जोगिणीपीढस्स चउत्थट्टाणपूयणिजा चंदतानामा, गोभद्देण भणियं-भइणि! को एस विजासिद्धो?, किनामो?, कहं वा एरिसमाहप्पो?, किंवा एस तुह जेट्ठभइणीए एवं उवचरइत्ति, कहेसु बाढं कोऊहलाऊलं मे हिययं, चंदलेहाए भणियं-कहेमि, एसो हि कामरूपाभिहाणजोगिणीपरिवेढियस्स डमरसीहस्स पुत्तो ईसाणचंदो नाम, एएण य पुरा अणेगप्पयाराओ साहिऊण विजाओ अखलियपसरं सयलकामियसिद्धिं समीहमाणेण कबाइणीए भगवईए पुरओ कओ अट्ठोत्तरविल्ललक्खेण होमो, तित्तियमित्तेणवि जाव न परितुद्वा भगवई ताव आकहिऊण खग्गधेणुं समारद्धो नियकंधरं छिंदिउं, नियजीवियनिरवेक्खो, कंठद्धं जान छिदए एसो। ताव सहसत्ति कचोवि आगया देवि रुदाणी ॥१॥ अहह महाकट्ठमिमं कीस तुमं पुत्त! ववसिओ भीमं? । इय जंपिरीए तीए कराओ छुरिया लहुं हरिया ॥२॥ MICRORECHAR For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ताहे इमेण भणियं देवि! पसीयसु ममेत्तिएणावि । पडिवज्जसु सिरकमलेण पूयणं होउ सीसेण ॥ ३ ॥ देवीऍ तओ भणियं पुत्तय ! तुह साहसेण तुट्ठम्हि । वरसु वरं एत्ताहे पज्जत्तं देहपीडाए ॥ ४ ॥ तओ एएण भणियं - सामिणि ! जइ सञ्चं चिय तुट्टासि ता जं तुमए पुत्तत्ति अहं वागरिओ एसो चिय मम बरो, एत्तो य पुत्तबुद्धीए मम पेच्छेज्जासित्ति भणियावसाणे दाऊण सबसमीहियत्थकरं रक्खावलयं पडिवजिऊण तचयणं अहंसणमुवगया कच्चायणी, एसोऽवि पावियतिलोयरजं पिव अत्ताणं मन्नमाणो रक्खावलयमुवहंतो सगच्चं अक्खलियगमणो सवत्थ वियंभिउमाढत्तो । अविय— न गणइ नरवइवग्गं नय भीमभएवि उच्चहइ कंपं । सच्छंदलीलगमणो जमपि उवहसइ सबलेणं ॥ १ ॥ अंतरे निवस उवभुंजर कुलगंयावि विलयाओ । आगरिसह दूरगयंपि वत्थु वरमन्तसत्तीए ॥ २ ॥ जभिई चिय कच्चाइणीए एयस्स वाहुमूलंमि । बद्धं रक्खावलयं तत्तो चिय चिंतियं लहइ ॥ ३ ॥ अह अन्नया कयाई हिंडतो एस महियलं सयलं । संपत्तो जालंधरपुरंभि रामाभिरामंमि ॥ ४ ॥ दिट्ठा य जोगिणीजणमज्झगया विहियपवरसिंगारा । अह तत्थ चंदकंता एसा मम जेट्ठिया भयणी ॥ ५ ॥ ताहे हठेण वररुवजोचणाइसयरंजिओ एसो । कुणइ पसंगमिमीए सद्धिं सद्धम्मनिवेक्खो ॥ ६ ॥ ठाऊण कवय दिणे सच्छंदं विविहदिवकीलाहिं । अणवद्वियमणपसरो अमुणिजंतो विणिक्खंतो ॥ ७ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ५ प्रस्तावः वृत्तं. ॥१६४॥ तयणंतरं च कथवि एत्तियकालं परिभमिय इमिणा । दिवविमाणारूढा अहयं एसावि मह भइणी ॥८॥ विद्यासिद्धआगिट्टिसत्तिणा आणीयाओ संपइ पयंडदंडेण । सिरिपञ्चयगमणहा गेहाओ नीहरंतीओ ॥९॥ एत्तोऽणंतरमेवं जमेस वागरइ तं करेमोत्ति । बुज्झइ खंधेण हडी सचं चोरस्स बलियस्स ॥१०॥ एयमायन्निऊण गोभद्देण चिंतियं-अहो रक्खसाणंपि भेक्खसा अत्थि, जमेवंविहजोगिणीजणोवि एवं आणानि संमि वट्टाविजइ, अओ चिय भणिजइ-बहुरयणा वसुंधरा भगवई, एत्तोच्चिय वरगुणगणनिहिणोऽवि न गवमुच्च-18 है हंति सप्पुरिसा, चंदलेहाए भणियं-अहो महायस! एवं किर साहियवं, जइ एस विजासिद्धो एत्थ पत्थावे मम भइणीचंदकंताए न बंभचेरभंगं करेंतो ता इमीए सयंपभा नाम महाविजा साहिया हुंता, मम पुण तुमए सीलखंडणं अकुणमाणेण तस्साहणविही अज्जवि पडिपुन्नो चेव वट्टइ, सत्तरत्तमेत्तेण य चिंतियत्थसंपत्ती भविस्सइ, ता भो महाणुभाव ! जं पुरा पुच्छियं तुमए जहा कहं मए जोइया सबकामुयलाभसिद्धीयत्ति तत्थ एस परमत्थो, गोभ-14 देण भणियं-सुयणु ! किमत्थ भणियचं? पीडंतु गहा विहडंतु संपया पडउ दुक्खदंदोली । सयणावि होंतु विमुहा तहवि न मुंचामि सञ्चरियं ॥१॥ ॥१६४ ॥ नियजीवस्स खलस्सव जहिच्छचारेण दिन्नपसरस्स । दुक्खेण मामि ! सम्मग्गठावणं जइजणो कुणइ ॥२॥ चंदलेहाए भणियं-एवमेयं, किं वन्निज्जइ तुम्ह निम्मलगुणाणं जस्स एरिसं जिइंदियत्तणं १ एवंविहो अजककरण-1 For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr नियमो एरिसं पावभीरुत्तणं एवंरुवा य वयणपट्ठा, सवहा धन्नाऽहं कयलक्खणाऽहं जं मए तुमं सप्पुरिससिरसेहर भूओ दिट्ठोसित्ति, गोभद्देण भणियं - केत्तियमित्तोऽहं, अजवि महीयले दीसंति ते महापुरिसा जेसिं चरणरेणुमेत्तस्सवि न सारिस्समुधर्हति अम्हारिसा । तओ चंदलेहा सप्पणयं सीसे अंजलिं काऊण भणिउमारद्धा-अज्ज ! तुह असरिस सच्चरियभत्ति| परवसत्तणेण किंपि विन्नविउमिच्छइ मम मणो, गोभद्देण भणियं भद्दे । कीस एवं संखोहमुवहसि ?, निधिसंकं भणसु जहाभिप्पेयं, चंदलेहाए भणियं-जइ एवं ता कयाइ परिभ्रमण परिवाडीए कायचो अग्ह गेहागमणेण अणुग्गहो, गोभहेण भणियं किमणुचियं ?, नहि तुह गेहमागच्छंतस्स मम किंचि लहुयत्तणं, पत्थायंमि जहोचियं आयरिस्सामि, न अन्नहा तुमए संभावणिजं, चंदालेहाए भणियं - महाभाग ! बाढं अणुग्गहियम्हि, न एयमन्नहा कायवंति, एवं च जायतक्खणपेमाणुबंधबंधुराहिं विविहसंकहाहिं सम्भावसाराहिं विसुमरियसेसवावाराणं ससहरजोण्हाव सोवलक्खियपरोप्पररुवाणं तेसिं झडत्ति जाया पच्छिमरयणी, उम्मीलिओ पुरंदरदिसिमुद्दे जवाकुसुमगुंजद्धकुसुंभर सकिं सुयसुयमुहपउमराय सरिसवन्नी कुंकुमबहलरागोवसित्तोच्च सूरसारही, पविरलीभूयं गयणंगणे तारगावलयं, वियंभिओ पच्चूससिसिरमारुओ पल्हत्थिओ पच्छिमजल हिम्मि रस्सिरज्जुजडिओ ससिपुण्णकलसो सलिलाकड्डुणत्थं व पच्छिम दिसिरमणीए, एत्यंतरे विजासिद्धेणं भणियं-भो भो गोभछ । बहुप्पभाया रयणी पगुणो भवसु जेण गम्मद, गोभद्देण भणियं - एस पगुणीहूओऽन्हि, चंदलेहाऽवि तं आपुच्छिऊण गया चंदकंताए समीवं, विज्जासिद्धोऽवि ताओ सविमाणाओ वी For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गमन महावीरच० ५प्रस्ताव: सज्जिऊण गंतुं संपयहो, गोभद्दोऽवि पुणो पुणोऽणुचिंतंतो निसावुत्तंतं लग्गो से अणुमग्गओ, तो आपुच्छिओ वाणारसीविजासिद्धेण-भइ ! निसिमि मए तुह समीवे पेसिया एगा तरुणी, तीए कया कावि पडिवत्ती?, गोभद्देण भणियं-अज!बाढं कया, किं चिरं जीविउकामो कोइ तुह सासणमइक्कमइ ?, केवलं अहं वाणारसीतित्थदंसणत्थं अब-14 भकयनियमो आसि, एवमायण्णिऊण भणियं विजासिद्धेण-भद्द! ममावि चरणेहिं तत्थ गंतवंति अस्थि एस नियमो, न बंभचरपडिवत्तिरूवो, एवं ठिए विसेसेण मए तुह निमित्तं एस उवक्कमो कओ, जइ पुण तुहाभिप्पायं मुणितो ता अहंपि बंभचेरं करितो, एवं च कए तित्थदंसणं सफलं हवइ, गोभद्देण भणियं-अज! एवमेयं, को तुम्हाहितोवि अन्नो एरिसविवेयभायणंति ?, अह पुछक्कमेण भोयणं कुणमाणा विदेसियमढेसु रयणि अइवाहिता पत्ता कमेण वाणारर्सि, पक्खालियमुहकरचरणा य गया सुरमंदिरेसु, दिट्ठा य खंदमुगुंदरुद्दपमुहा देवया, कया तेसिं पूया, एवं च अण्णण्णसुरमंदिरावलोयणेण जाए वेयालसमए विजासिद्धेण भणिओ गोभहो-भह ! संपयमणुसरेमो सुरसरिपरिसरं, करेमो तत्थ पहाणेण पूयपावं अत्ताणं, गोभइण भणियं-एह जामो, गया दोवि गंगातीरे, एत्थंतरे अविभावियआवयावडणेण अविचिंतियवत्थुपरमत्थेणं विजासिद्धेण अइरभसवसेण ओतारिऊण तं दिवरक्खावलयं समप्पियं गो-12 ॥१६५॥ महस्स, भणिओ य सम्म रक्खेजासि जाव अहं इह भागीरहीवारिमज्झे मुहुत्तमेत्तं पाणायाम करेमि, एवंति पडिवज्जिय गहिय रक्खावलयं ठिओ गोभहो, इयरोऽवि पविट्टो वारिमज्झे, अह मुहुत्तमेत्ते गए गोभद्दो विज्जासिद्धमपेच्छमाणो 9 CHAAEERA 4 % For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संभंतनयणो इओ तओ सयलं अवलोइउं पयत्तो, जाव तहेव सङ्घओ पलोयमाणस्स पच्छिमदिसिमवलंबियं भाणुबिंबं, विष्फुरिया बालप्पवालपाडला किरणा वाउलीहूयाई रहंगमिहुणाई, तओ गोभद्देण निवेइया गंगातारगाण वत्ता, जहा भो भद्दा ! अभ्यंतरूवो वरपुरिसो एत्थ तित्थंमि पविट्ठो, सो य संपयं दुत्तरउत्तुंगतरंग परंपरा पच्छाइओ या मगराइदुट्ठसत्तनिकंतिओ वा विसमपंकनिमग्गो वा भवेज्जत्ति न जाणिज्जइ परमत्थो, ता लहुं तविरहतरलियं मम जीवियं अणुकंपमाणा पविसह नईमज्झे निरुवह तं महाभागं, मा अपत्थावे चिय अत्थमउ तारिसवरपुरिसदिणयरो, मा आजम्मं पाउन्भवउ सुरतरंगिणीए एरिस महाकलकोत्ति भणियावसाणे करुणापरवसीकयहियया पहाविया सबओ तारगा, समारद्धं च अमरसरियावारिप्पवाहावगाहणं, अह सच्चायरेण दीहप्पसारियभुयाहिं आलोडिऊण जलं तेसु तेसु ठाणेसु आमूलाओ कत्थवि तं अलभमाणा पडिनियत्ता तारगा, निवेइया तदसंपत्तिवत्ता गोभद्दस्स, सो य गाढमुग्गराभिहओव दुस्सहसोगावेगविहलंघलसरीरो विर्चितिउमारद्धो कह जणनयणाणंदो समुग्गओ सरयपुण्णिमाइंदो | कह दादुग्गाढमुद्देण कवलिओ सो विडप्पेण ? ॥ १ ॥ कह भूमंडलमंडणकप्पो कप्पदुमंकुरो जाओ । कह वा मूलाओ चिय समुक्खओ वणवराहेण ? ॥ २ ॥ कह एस भुवतिलओ विज्जासिद्धो अकारणसिणिद्धो । मइ मित्तत्तमुवगओ कह वा असणं पत्तो १ ॥ ३ ॥ मम मंदभग्गयाए मण्णे तस्सेरिसी दसा जाया । जत्थऽल्लियइ कवोडो सचं सा सुसइ तरुसाहा ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ५ प्रस्तावः ॥ १६६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir fee मे मोरो एस आसि जं चिंतियत्थसंपत्ती । एत्तो होही सयला सा पुण विहलीकया चिहिणा ॥ ५ ॥ ता किं अज्जवि एरिस कलंकपंकंकियं नियसरीरं । विसपायचं व जणदुक्खकारयं परिवहिस्सामि ? ॥ ६ ॥ एवं च संचितिऊण मुक्ककंठं रोइउमारद्धो- हा परमच्छेर यरयणरयणायर ! हा निक्कारण करुणरससायर ! हा परमविज्जाहरीविलाससुभग! हा असम साहस परितोसियकच्चाइणीदिष्णवर ! कत्य सहसच्चिय अइगओसि ?, देहि मे पडिवयणं मंदउण्णस्स, किं तुम्हारिसाणवि निवडंति एरिसीओ आवयाओ ? हा पावकर्यंत ! किमेकपएचिय पणट्टपुरिसरयणं धरणिं काउमुज्जुओ सि, एवं परिदेविऊण तविरह हुयवहपसमणत्थं गंगाजले निवडिउकामो आवद्धनिविडनियंसणो संजमियकेसपासो जोडियकरकमलो भागीरहिं विष्णविउमारद्धो-देवि ! सुरसरि एस परमबंधवो तुमए च्चिय अवहरिओ अओ तमणुसरिउकामो अपि संपयं पडेमि तुह सलिले, जओ अग्गिदट्ठाण अग्गिच्चिय ओसहंति बुडवाओ, इइ भणिऊण जावज्जवि न मुयइ उत्तुंगदोत्तडीओ अत्ताणं ताव गहिओ सो समीपवत्तिणा नत्थियवाइजणेण, पुच्छिओ य-अरे मुद्ध ! कीस तुमं इह निवडसित्ति ?, निवेइओ अणेण गामनिग्गमाओ आरम्भ सयलवुत्ततो जाय तदंसणं अभिकंखमाणो इह निवडामित्ति, तेहिं भणियं मूढ ! केण तुह निवेश्यमेयं जमिह निवड - णेण पियसंपओगो वाहिविगमो पावनासो वा हवेजत्ति, एसा हि असेसदेसंतराव गाढकोढसुढियसवंगनरनिवहावगाहणदुर्गुछणिज्जसलिला अणेगमडय सिंघा यण भक्खणपरा महारक्खसिच कहूं मणवंछियत्थं पूरेज्जा ?, अहो महामोहो For Private and Personal Use Only विद्यासिद्धस्य अदृश्यता. ॥ १६६ ॥ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहो गडरियापवाहो, सचं चिय पढंति इमं वियक्खणाकर्णविषेण हि दग्धः किं किं न करोति वालिशो लोकः?, । क्षपणकतामपि धत्ते शिवति सुरां नरकपालेन ॥१॥ अह एत्थ निमग्गा पावंति समीहियत्थं तारे किं कयमिमेहि मच्छकच्छवाईहिं आजम्मंपि सलिलावगाढेहिंति, किं बहुणा ?, मुयसु विसायं, परिचयसु मरणाभिलासं, कुणसु नियकरणिजं, न एवंविहजणो कयंतवयणपविहोवि विवजइ, अह विणिवाओऽवि होज ता विवण्णजीयं सरीरगं सलिलोवरि सयमेव ठाएज्जा, अओ अलं वाउलत्तणेणं, होउ परिदेविएणंति । एत्यंतरे गुलुगुलियं गंधहत्थिणा वज्जियं मंगलतूरं पढियं बंदिणा रसियं सारसमिहुणेण, तओ तेहिं भणिओ-भो भद्द! एरिसनिमित्तेहिं अज्जवि सूइज्जइ से जीवियं, गोभद्देण भणियं-तुम्ह वयणसामत्थेण एवं हवउ, इय सो तेहिं मरणाओ वावत्तियचित्तो दो तिन्नि दिणाई तत्थेव निवसिओ, अन्नदियहे य चिंतियमणेण, जहा-न जुत्तं एत्थावत्थाणं, जओ वाणारसीवि वाणारसिव किंतइ सरीरमहिगं मे । मंदाइणीवि मं दाइणिव दूमेह पयदियह ॥१॥ ___ता गच्छामि जालंधरं, पेच्छामि चंदलेहाए भणियं पणयंति विभाविऊण तमभिमुहं गंतुं पयहो, गच्छंतेण य |संपत्ते मज्झण्हसमए विजासिद्धभोयणाइललियं सुमरणमाणेण अंसुजलाविललोयणजुयलेण चिंतियमणेण तारिसजणदुस्सहविरहजलणजालातविजमाणपि । अजवि न लजसि वजपडिय! निलज्ज हयहियय! ॥१॥ **AKURERARISHA ASLIANCE For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ५प्रस्ताव ॥१६७॥ गोभद्रस्य जालन्धरे गमनं HOSSESSES** इय एवं भावितातो पविहो चंदकता बरतणेण वयणमणमासिद्धण सुणिओ मानामिऊण कई तथा-तं चिय महप्पभावं रक्खावलयं इमो य सो समओ। तेणेकेणेव विणा सुन्नं सवं दिसापडलं ॥२॥ अहवा रक्खावलएवि होज निप्पुन्नयस्स किं मज्झ१ । चिंतामणिलाभेऽविहु सीयइ विमुहो विही जस्स ॥३॥ आधारवसेण धुवं गुणोदया न उण जहा तहा होति । सलिलंपि सिप्पिसंपुडपडियं मुत्ताहलं होइ ॥४॥ इय एवं भावितो तमेक्कचित्तेण सो निराणंदो । जालंधरमणुपत्तो कमेण अविलंबियगईए ॥५॥ तवासिजणं च पुच्छितो पविट्ठो चंदकंताए गिहे, सुन्नप्पायं च तं दट्टण भणिया दुवारट्ठिया गेहरक्खिया, जहा-भद्दे ! किमेत्थ कोऽवि न दीसइ, तीएवि बहिरत्तणेण वयणमसुणमाणीए दंसिया नियसवणा, तेणावि बहिरित्ति नाऊण जंपियं महया सद्देण, एत्यंतरे समीवगिहट्ठिएण ईसाणचंदविजासिद्धेण सुणिओ सो सद्दो, पञ्चभिन्नाओ य, तओ भणिओ सो-गोभद्द! इओ इओ एहि, इहाहं निवसामि, गोभहोऽवि ससंभमं वयणमेयं निसामिऊण कहं विजासिद्धो इव मं वाहरइत्ति जायसंको, जाव कित्तियपि भूभागमइक्कमइ ताव समक्खं चिय दिवो अणेगनाडीनिविडज|डियसरीरो चरणपसारणंपि काउमसमत्थो ईसाणचंदो विजासिद्धो, तं च दट्टण चिंतियमणेण किं किंपि कूडमेयं विभीसिया वा मइन्भमो किं वा । दिट्ठीए मोहणं वा होजा छलणप्पगारो वा ॥१॥ अहवा पीढमिमं जोगिणीण सबंपि संभवइ एत्थ । नूणं सकम्मपवणप्पणामिओ जामि निहणमहं ॥२॥ सुरसरियातीरे जइ तइया काऊण धम्मकिचाई। परलोयं साहितोऽम्हि ता धुवं लट्ठयं होतं ॥३॥ को जाव किलाई नियसामि, गोमवजासिद्धेण मुणिमयसवणा, तेणावि चलिया, ॥१६७॥ For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir +AXAAAAAAAA इय जाच मरणभयकंपमाणदेहो स चिंतइ ससोगो । तुरियं ताव पुणोऽविहु विजासिद्धेण वाहरिओ॥४॥ गोभह ! भद्द किं कुणसि विभमं नत्थि तुज्झ भयमेत्थ । पुचोवणीयमहुणा रक्खावलयं समप्पेसु ॥५॥ इय भणिए गोभहो वीसत्यो अइगओ समीवंमि । पेच्छइ विजासिद्धं विविहपयारेहि अवरुद्धं ॥६॥ अह सो तं दट्टणं वाहाऊललोयणो भणइ एवं । हा अज! तुज्झवि कहं दुत्थावत्था समोत्थरइ? ॥७॥ विज्जासिद्धेण भणियं-गोभद्द! अलं विसाएण, लहुं बंधेहिं मम बाहुमूले रक्खावलयं, जमज्जो आणवेइत्ति भणिऊण बद्धमणेण, एत्यंतरे तडयडत्ति विहडियाई नियलाई, जाओ पगुणसरीरो, पुच्छिओ गोभहेण-अज! को एस वुत्तंतो? , कहिं नईनिमजणं? कहिं एत्थ आगमणं?, कहं वा एस निरोहो?, बाढं कोऊहलाउलं मम हिययं, साहेसु परमत्थं, विजासिद्धेण भणियं-साहेमि, जं तइया तरलत्तणवि सुमरियजुत्ताजुत्तवियारो दिवमाहप्पमप्पिऊण तुह रक्खावलयं पविट्ठोऽम्हि गंगाजले तस्स फलमेयं, गोभहेण भणियं-कहं १, सो भणइ-जाव किर तत्थ मुहुत्तमेत्तं पाणायाम काऊण ठिओ ताव सहसच्चिय अच्चंतं सरीरविवलत्तणं लंभिऊण तुम्हारिसेहिं अपेच्छिजमाणो उक्खित्तो अहं एयगिहसामिणीए पुत्ववेराणुबंधमुबहतीए चंदलेहाभिहाणाए जोगिणीए, उवणीओ एत्य हाणे, दढं निजंतिओ निगडाईहिं, गोभद्देण भणियं-अज! केण पुण कारणेण इमीए सद्धिं वेराणुबंधो?, विजासिद्धेण भणियं-जं तइया विमाणमारुहिय समागयाए जेट्ठभइणीए चंदकंताभिहाणाए मए बला परिभोगो कओत्ति, गोभहेण भणियं CXCkCORICसकर For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्या मेलच. श्रीगुणचंद | कहं पुण चिंतियमेत्तसमत्थवत्थुलाभेऽवि संपयं तुह एरिसं अचिंतणिजं विसममावडियं ?, विजासिद्धेण भणियं-देवया-दा महावीरच. दिन्नरक्खावलयविरहो एत्थ कारणं, परं भद्द! तुमए नित्थारिओऽहं इमाओ आवयाओ, साहु साहु तुह वियक्खणत्त सिद्धस्स ५प्रस्ताव: खास्थ्य णस्स, एरिसमवत्थंतरनिवडियस्स न तहा जाया मह देहपीडा जहा तुह अईसणेणं, मन्ने इह भवे च्चिय पसन्ना भा. ॥१६८॥ गिरही देवी जीए तुम अणुवचरियपरूढपणओ मित्तो पणामिओ, ता बाढं पसन्नं मे मणो, वरेसु जहा पियंति भणिए गोभद्देण भणियं-अज! देवो वऽण्णो जाणइ कोवि अणुवचरियपरूढपणओ कस्सवि मित्तो पणामिओ, विजासिद्धेण भणियं-अलं इमीए संकहाए, वरेहि जहिच्छियं वरं, गोभद्देण भणियं-महापसाओ, पत्थावे वरिस्सामि, एत्यंतरे डमडमिरडमरुयनिनायभरियभुयणंतराला वराभरणकिरणविच्छुरियनहंगणा दिवविमाणारूढा पविठ्ठा चंदलेहा य चंदकंता य, तओ गोभहेण भणियं-विजासिद्ध ! कहमिहि तुमं एयासु वहिस्ससि ?, विजासिद्धेण भणियं-जहा सत्तुसु वहिजइ, गोभद्देण भणियं-अज! मामेवं जंपसु, जओ विसवलिब बढती बेरपरंपरा न कोमलमावहइ, विजासिद्धेण भणियं-ता किं कीरइ ?, विवक्खाभिभवेणेव अत्तणो अवस्थाणंति, नहि निसासंतमसमखंडिजण पभवइ मायंडमंडलं, नेव य पंकत्तणमपावेऊण धूलिपडलं चिरावत्थाणं बंधेइ सलिलं, गोभहेण भणियं-अत्थि च्चिय एस ववहारो, परं मम वयणोवरोहेण ताव उदासीण होयचं तुमए, विजासिद्धेण भणियं-जं तुम जाणासि, एवं वुत्ते जणेण अमुणिजंतो ॥१६८॥ तत्तो सो नीहरिऊण पहिओ तमंदिराभिमुह, इंतो य दिवो चंदलेहाए, रयणियरप्पगासदिट्ठरूवाणुमाणेण य ECERA-RECRAKAR NAGACASRANAGANA For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SAREERS जायपञ्चभिन्नाणाए तीए गाढमालिंगिऊण सुहासणत्यो हरिसुल्लसियलोयणाए पुच्छिओ-अज! कत्तो कहं वा समागओऽसित्ति ?, तेणावि से साहिओ सामन्नेण वुत्तंतो, चंदलेहाए भणियं-सुटु कयं तुमए जमेत्थ पत्यावे समागओऽसि, जओ अम्ह पडिपुन्ना इयाणिं सबे मणोरहा, गोभद्देण भणियं-कहं चिय?, तीए भणियं-जं तइया तुमए मम बंभचेरखंडणा रक्खिया तेण सत्तरत्तपजते सम्ममाराहिजमाणा सिद्धा भगवई सयंपभाभिहाणा विजा, सोय दुविजासिद्धो ईसाणचंदो सबकामुयरक्खावलयविहूणो जण्हुकनाजलमज्झगओ झसोच विवसो पाविओ, गोभहण भणियं-कहमियाणि सो संठविओ?, तीए भणियं-जहा दुट्ठकरिवरो, तेण भणियं-किमित्थं पुण तहा धरिजइ, तीए भणियं-कसिणचउद्दसीए चंडिगाए बलिविहाणत्थं, गोभण भणियं-जह एवं ता दंसेसु तं थेवदिणपरिचियत्तणेण तेण समं मे किंपि वत्तवमत्थि, तीए भणियं-को दोसो?, एहि जेण दंसेमि, तओ पट्ठियाई गंतुं, जाव दाय केत्तियमेत्तमंतरमुवगया चंदलेहा ताव दिट्ठो विजासिद्धो बाहुबद्धरक्खावलओ वियलियनियलबंधणो महाकोव६ फुरंताहरो पायडियनिडालभिउडिभासुरोत्ति, तं च दद्दण चिंतियमेयाए-अहो कहं रक्खावलयलाभो इमस्स रक्ख सस्स?, कहं वा नियडच्छेओ संपत्तो, अहो अवितक्कियं केरिसमाचडियंति ?, जायभयावि आगारसंवरणं काऊण तेण Pासमेया समीवमुवगया एयस्स, तेणवि इंतिं दहण ईसि पच्छाइयकोवविरागेण संभासिया, जहा भहे! उवविस, तओ जासणनिसन्माए चंदलेहाए पुणो कइयण उड्डमवलोइऊण भणियमणेण-अहो कहं पुवपरिचिओ गोभद्दो ACARASAKAASARAKAR For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद मेलका. ने दीसइ १, इओ एहि भद्द !, किं तुमंपि अहमिव एयाए छलणगोयरमुवगओत्ति जेण वाणारसीविमुक्कोवि एत्य पेच्छि- विद्यामहावीरच जसि ?, गोभद्देण चिंतियं-अहो गाढो अमरिसो, ता तहा करेमि जहा अवरोप्परं पणयभावो हवइ एसिं, अणु-टू सिद्धादीनां ५ प्रस्तावः परस्परं चिया हिओवेहा विसिद्धपुरिसाणंति, इइ संचिंतिऊण आबद्धकरंजली सो भणिउमाढत्तो॥१६९॥ हे भइणि चंदलेहे! हे विजासिद्ध ! गुणगणसमिद्ध । जइविहु कुसलत्तणओ तुम्हाण न किंपि यत्तवं ॥॥ तहविहु असरिसपेमप्पबंधसंबंधतरलियमणोऽहं । दियभावभूरिजंपिरसभावओ किंपि साहेमि ॥२॥ जो तुम्ह परोप्परमेस रोसलेसो कहंपि संभूओ। सो मोत्तवो होइत्ति परमवेरिव दुहदायी ॥३॥ जेणानलुच पढमं नियठाणं दहइ एस वर्डतो। ता अवगासोऽवि कहं दायचो होइ एयस्स? ॥४॥ अह वेरिसु दोसकरणतणेण कोयो समुलसइ तुम्ह । कोवेच्चिय किं को न कुणह दुक्खेकहेउंमि? ॥५॥ न चलइ गरुयाण मणो अवराहपए अईव गरुएवि । जह जलहरेण खुन्भुइ गिरिसरिया तह न नइनाहो ॥६॥ तथा-अवयारे अवयारो जं कीरइ एस नीयववहारो। उवयारकारगचिय गरुया अवयारिणि जणेऽवि ॥७॥ ॥१६९॥ इहरा विसेसलंभो उत्तमनीयाण कह णु जाएजा!। न हि एगरूववत्थुमि होइ विविहाभिहाणाई ॥॥ अलमेचो भणिएणं तुम्हं जइ मम गिरंमि पडिबंधो । जइ उत्तमगुणमग्गेण विहरि विजए विच्छा ॥९॥ जइ ससहरजोण्हासत्थहं च कित्तिं सया समभिलसह । पुवाणुसयं मोत्तुं परोप्परं कुणह ता पणयं ॥ १०॥ जुम्म। CCCCCXXX For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अण्णं च-हे विजासिद्ध! पओसमुहंतो कहं न लजिहिसि । इत्थीसु तिहुयणमिवि अवज्झसम्भावसिद्धासु ॥११ इतिहासपुराणपमोक्खसत्थविक्खायमवि इमं तुज्झ । पम्हुटुं कीस ? महाणुभाव ! कुसलावि मुझंति ? ॥ १२ ॥ आयन्निऊण एवं विजासिद्धेण जायलज्जेण । भणियं आएसं में देहि लहुं जमिह कायवं ॥ १३ ॥ उप्पहपवनमारिसजणबोहणकारणेण निम्मविया । वेयत्थमहानिहिणो तुन्भे नूणं पयावइणा ॥ १४ ॥ ___ एवं सोऊण गोभद्देण भणियं-साहु साहु विजासिद्ध ! को अन्नो एवं वियाणेइ वोत्तुं १, अहवा-को सिसिरइ निसिनाहमंडलं?, को वा चित्तेइ सिहिसिहंडाई ? । देहसहसमुग्गओ चेव विणओ तुम्हारिसजणाणं ॥ १॥ उडेसु संपयं कुणसु चंदलेहाए पणाम, चंदलेहे ! तुमंपि विमुक्कमच्छरं परिचत्तपुवाणुसयं नियसु इमं सयणनिविसेंस, विहेसु इमेण समं पणयभावं, इय भणियावसाणे निवडिओ चंदलेहाए चलणेसु विजासिद्धो, भणिउमारद्धो य-सुयणु! तारुन्नमएण वा विजाबलावलेवेण वा अविवेयसुलभदुधिणएण वा मए जमवरद्धं तं तुमए मरिसियचंति, चंदलेहाए भणियं-विजासिद्ध ! अलं खामणेणं, सबहा मंदभागिणी अहं जा थेवमेत्तावराहेवि एवंविहमणत्थं काउं ववसिया। एत्थंतरंमि कइवयचेडीचक्केण परिखुडा झत्ति । विम्हयनिम्भरहियया समागया चंदकंतावि ॥१॥ ताहे गोभदेणं विजासिद्धो पयंपिओ एवं । जीऍ कए वइरमिमं तहि(तुह)द्विया सा इमा सुयणु ॥२॥ For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परस्पर क्षामणं प्रीतिश्च. श्रीगुणचंद 18| ता परिमुक्कामरिसं सविसेसं कुणसु खामणमिमीए । रोसावेसो थेयोऽवि होइ अग्गिव दुहहेऊ ॥३॥ महावीरच. इय भणिए भइणीसिद्धसंधिसंघडणतुहिययाए। तीए विजासिद्धेण खामणा सायरं विहिया ॥४॥ ५प्रस्ताव है एवं च पणट्टकोवाणुबंधाणं एगजणणीजणियाणं व जायदढपेमाणं तेर्सि परोप्परं जंपिराणं महाणसिणीए आगं॥१७॥ तूण विन्नत्ता चंदकंता-देवि! कुणह पसायं, एह गेहम्मि, निप्फन्ना रसबई, मज्झंदिणमणुपत्तो य भयवं भुवणचक्खू ४ दिणयरोत्ति, एवं च निसामिऊण चंदकंताए भणियं-हे चंदलेहे ! भोयणत्थमुवनिमंतेसु पाहुणगे अइकालो वट्टइत्ति, तओ चंदलेहाए उढविओ विजासिद्धो गोभद्दो य, गया भोयणमंडवं, कयं समगं चिय विविहविच्छित्तिष्पहाणं भोयणं, तदुत्तरं च दवावियाई कप्पूरधूलिधूसरपूगीफलदलसणाहाई तंबोलबीडयाई, एत्यंतरे विज्जासिद्धेण सिरमि करकमलं कट्ट भणिओ गोभद्दो, जहा-पुत्वपडिवन्नं गिण्हसु वरं, नियत्तिउकामोऽहमियाणिं, गोभहेण भणियं जह सचं चिय तुट्ठो वियरेसु तुमं वरं महाभाग! । ता तं एयाहिं समं (पे)म्म सययं वहेजासि ॥१॥ एवं कयंमि तुमए विहियं चिय मज्झ चिंतियमसेसं । परचित्ततोसदाणाओ दाणमन्नपि किं अत्थि? ॥२॥ किर सिविबलिहरिचंदप्पमोक्खविस्संभराहिवा पुर्व । नियजीवियदाणेणवि अकरेंसु जणाणमुक्यारं ॥३॥ खणनस्सरस्स दुहनिवहभाइणो जीवियस्स फलमेयं । जं उबयारो कीरइ दुहसंतत्ताण सत्ताणं ॥४॥ विजासिद्धेण तओ भणियं भो कीस वाहरसि एयं । तुम्हारिसाणवि पुरो किमन्नहा इंति उल्लावा ? ॥५॥ ॥१७०।। For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAAAAAGRAAN निदाघुम्मिरनयणावि सजणा जं वयंति किर वयणं । नियजीवियवएणवि तं तह अहियं समत्थंति ॥ ६ ॥ मिच्छाकारि मिच्छा व भासिणं मं धुवं सुणेऊण । कच्चाइणीवि देवी लज्जइ किं पुण परो लोगो? ॥७॥ ता-गोभद्द! परिचयसुं एत्थ मम संतियं अविस्सासं । अन्नं मग्गेसु वरं मा कीरउ मे पणयभंगो ॥८॥ एयमायन्निऊण गोभद्देण भणियं-जइ एवं ता परिहरेसु परमहिलापसंग, एसो हि कारणं वेरपरंपराए कुलभवणं अणत्यसत्थाणं वत्तणी नरयनगरस्स बंधवो दुविणयस्स ठाणं परिभवस्स आगरो अकित्तीए मसिकुचओ नियकुलस्स निलओ पावपडलस्स मूलंकसो गुणकलावस्स जणगो उत्तरोत्तराधम्मपरिणईए, एसोच्चिय भुयणपयडावि वेरिभुयदंडकंडचंडिमखंडणेकसुंडावि असेसविज्जाइसयसालिणोऽवि पाविया लंकाहिवइपभिइणो विणासं, एत्तो चिय अविगणियतणनिधिसेसनियजीवियचा अमुणियजुत्ताजुत्तकायवा तिक्खदुक्खलक्खंपि अभिकंखंति पाणिणोत्ति, ता मूसगोव मज्जारस्स घयकुंभोव हुयवहस्स पयंगोच पईवस्स सारंगो इव पंचाणणस्स सुहाभिलासी दूरमवक्कमइ कुसलो परदारस्सत्ति निसामिऊण समुप्पण्णगाढपच्छायावो वेरग्गमग्गाणुलग्गचित्तो विजासिद्धो भणिउमाढत्तो-गोभद्द ! साहु समुवइठं साहु समुवइह समुद्धरिओऽहं तुमए अपारपावपारावाराओ, होउ संपयं सदारपरिभोगं मोचूणाऽऽमरगंतं निवित्ती मम सेसमहिलापसंगस्सत्ति, गोभद्देण भणियं-अज! जाओ इयाणिं मम वंछियत्थलाभो, एचो सुमरिज्जासि मं सुहिसयणाइकहंतरसुत्ति । एवं वुत्ते विजासिद्धो जोडियपाणिपल्लवो पणामं काऊण संवेसि सिणेहवस SLOGAARAANAACARALL रिओऽहं तुमए अपरगमगाणुलग्गविणणस्स सुहाभिलास पाणिणोत्ति, ता वाराओ, होउ संपयं सदाणमाढत्वो-गोभद ! से में सुहिसयणाइकहरसागरसत्ति, गोभदेण भणिय For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ५ प्रस्तावः ॥ १७१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr संदंतवा हफुरंतनयणो सायरमवलोइज्जमाणो चंदकंतापमुहेहिं असणमुवगओत्ति । चक्खुपहमइकंतेऽवि तंमि खणं | विरहवेयणासुन्नत्तणमणुभविऊण भणियं गोभद्देण - अहो से वयणविन्नासो अहो पावपरिहारो अहो भीरुत्तणं अहो | विणीयया अहो सुगुणजण समुजमो अहो असरिसदक्खिणत्तणंति, चंदलेहाए भणियं तुहाणुभावो खलु एसो, न हि नरिंदसामत्थमंतरेण भुयगफणाफलगमइक्क मिउमभिसक्कइ सालूरो, न तिक्खकुसकरारोहगं विणा पहे पयट्टर मत्तदोघट्टोत्ति, एवं च विविहसंकहाहिं ठाऊण करवय दिणे अन्नदियहे य भणियं गोभद्देण, जहा-बहूई दिणाई मम गिहनिग्गयस्स ता अणुजाणह मं गमणत्थं, न जाणिजइ कहंपि तुम्ह भाउज्जाया संपयमावण्णसत्ता निवसइत्ति, एवमायणिऊण चंदलेहाए पुणोवि कइवय वासराणि धरिऊण अन्नसमए य पभूयरयणदाणपुचगं सम्माणिऊण विसज्जिओ गोभहो सद्वाणं पत्तो कहाणगविसेसेणं निययगामं । _re are furniसुओ निययगेहाभिमुहं वच्चर ताव दूराओ चिय दिट्ठे भग्गदुवारदेसं रेणुपडलसंछन्नं दरीपसुत्तसाणघुरघुरिय घोरघोसभीसणं अणेगकोलबिलाउलं सुसाणं व भयावहं ते गिहं, तारिसं च दट्ठूण खुभियहियएण पुच्छिया सहेज्जिया, तीएवि चिरकालागयं दहूण तं जायपणयाए आहूओ सगिहे, दावियं आसणं, कथं चरणसोयणं, भणियं च-गोभद्द ! करेसु ताव भोयणंति, तेणावि तहाविह गेहदंसणजायसरीरदाहेण आपुट्ठा पुणोवि एसा सघरवुत्तंतं, तीएऽवि अणि भोयणावसाणे सीसइत्ति लोयवायं परिभाविंतीए भणियं - पियहरं गया तुह For Private and Personal Use Only प्रतिज्ञा. विद्या सिद्ध ॥ १७१ ॥ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir a AE% %A ACANCSURESSIOSACSC परिणी, सेसं पुणो कहिस्सामि विहेसु ताव भोयणं, तओ आउलहिययएणावि तदणुवित्तीए कयमणेणाहारग्गहणं, तयणंतरं आयंतस्स सुहासणगयस्स निवेइयमणाए-गोभइ ! तुह गयस्स कइवयदिवसावसाणे विओगदुक्खेण वा 5 तहाविहवाहिवसेण वा परिकिसियसरीराए सिवभहाए अयंडेच्चिय समुप्पन्ना गाढं सूलवेयणा, आउलियं सरीरं, ओसहेहिवि न जाओ विसेसो, गया य मुहुत्तमेत्तेण पंचत्तंति, एयं च सो आयन्निऊण विओगवजजजरियहियो| खणंतरमुच्छिओ इव विगमिऊण मुक्कपोकारकरुणसई रोइउं पवत्तो, समासासिओ पासवत्तिणा जणेण, कयाइं मयलोइयकिचाई, कालेण य जाओ अप्पसोगो । अन्नया य भणिओ लोगेहिं, जहा-गोभद्द! कीरउ कलत्तसंगहो, विमु-18 चउ सोगो, एसचिय गई संसारविलसियाणं, तेण भणियं-भो दूरमसरिसमेयं, तहाहि पढमं दबोवजणकएण देसंतरं गोऽहमहो। चिरकालकिलेसवसा तलामे नियगिहं पत्तो॥१॥ किर भुंजिस्सामि अहं इण्हि नियपणइणीए परियरिओ। पंचविहविसयसोक्खं निरवेक्खो सेसकज्जेसु ॥२॥ भवियच्चयावसेणं अक्काले चिय दिवं गया सावि । एवं ठियंमि अन्ना परिणिजद केण कजेण? ॥३॥ जह सा मरणं पत्ता अहुणुढावि तह जइ मरेजा । ता होज निप्फलचिय पुणोऽवि सोऽवि आरंभा ॥४॥ नियजीवियस्सवि कहं विस्सासो बुज्झए सयन्नेण? । आगयगयाइं जं किर कुणइ व मुहमारुयमिसेण ॥ ५॥ संघडणविहडणापडुपरक्कमे निकिवे कयंतंमि । सच्छंदं वियरते कत्थ व जाएज थिरबुद्धी? ॥६॥ %AC% For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थीगुणचंद महावीरच गोभद्रस्य प्रियामरणं वैराग्यं, ५प्रस्तावः॥ ॥१७२ ॥ RECASSAGAR दइयाधणपरियणसंगमेसु जइ सरिसवोवमं सोक्खं । पाविज विष्पओगे नियमा मेरूवमं दुक्खं ॥७॥ इय पजत्तं मह घरणिविसयतण्हाए बहुकिलेसाए । एत्तियमेतमि वए विसयासा हीलणाठाणं ॥ ८॥ एवं तन्निच्छयं मुणिऊण तुसिणीए ठिओ जणो, सो य धम्मकजेसु उज्जओ जाओ, अन्नदियहे समोसरिओ तत्थ पंचसयमुणिपरिवुडो छत्तीसगुणरयणरयणायरो नीसेसपाणिगणरकखणपरो सुगहियनामो धम्मघोससूरी, गया तस्स वंदणत्थं बहवे जणा, गोभद्दोऽवि भवविरत्तमणो जाणिऊण तदागमणं पत्तो सूरिसमीवे, पहिचित्तो य पण| मिऊण से पायपंकयं गुरुणा दिनासीसो उवविठ्ठो भुमिवढे, सूरिणावि पारद्धा धम्मदेसणा, जहा जीववहालियवजणमदत्तधणगहणमेहुणनिवित्ती। जो य परिग्गहचाओ एवं धम्मस्स सबस्सं ॥१॥ जीववहे आसत्ता सत्ता अट्टप्पयारमवि कम्मं । बंधति जति नरए पावंति य तिक्खदुक्खाई ॥२॥ तत्तो उबट्टित्ता तिरिक्खजोणीसु लक्खमेयासु । उववजंति वराया नियदुच्चरिएण बहुकालं ॥३॥ जे उ नियजीवियसमं सम्म रक्खंति सच्चपाणिगणं । ते सयललोयलोयणससहरतुला हवंति जणा ॥४॥ दीहाऊउवयेया वररूवा दिवदेवसोक्खाई। अणु जिऊण नूणं कमेण मोक्खंमि वचंति ॥५॥ भूयत्थनिण्हयकरं पाणिविणासेककारणं घोरं । जं वयणं तं सबंपि वजणिजं सुबुद्धीहि ॥६॥ इह लोए चिय जीहानिकंतणं निंदणं च लोयाओ। पाति वितहभासणपरायणा परभवे य दुहं ॥७॥ *OROCRACANCELEGACANCCI ॥१७२॥ For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AMSMEMEDS एत्तो विरत्तचित्ता कुडिलत्तणवजिया मियाभासी । जे ते अवजसपंकेण नेव छिप्पंति कइयावि ॥८॥ पडिबुद्धकमलपरिमलसममुहनिस्साससुरहियदियंता । पूइज्जंति जणेण य आएजगिरा य जायंति ॥ ९॥ जो परधणं विलुंपइ सो झंपइ सुगइगिहकवाडाई । निबिडाई कम्मनिगडाई कुणइ तुच्छेहियसुहत्थं ॥ १० ॥ एत्तो चिय दोगचं पइजम्मं उवचिणेइ मूढप्पा । सुयदइयाविरहुब्भवदुहं च पावेइ दुविसहं ॥ ११ ॥ जे पुण संतोसपरा तणंपि गिण्हंति नेव य अदिन्नं । ते देवाणवि पुज्जा हवंति किं पुण मणुस्साणं? ॥ १२ ॥ वहुंति धणविलासा निवडंति न आवयाउ कइयावि । पुजंति य निविग्धं मणोरहा तेसि नीसेसा ॥ १३ ॥ जे अणिगिहियप्पाणो इहभवसुहलेसमेत्तपडिवद्धा । दासव कामलुद्धा मुद्धा जुबईण वटुंति ॥ १४ ॥ नरवइसेवणसंगामकरणपमुहाई विविहवसणाई । मेहुणसन्नाभिरया असइंपि लहंति ते पुरिसा ॥ १५ ॥ कामविवरंमुहा पुण नरसुरजणपूयणिजकमकमला । देहुब्भवमविणस्सरपरमाणंदं सइ चरति ॥ १६ ॥ पडिपुण्णबंभपालणपवित्तगत्ताण पुरिससीहाण । सुमरणमेत्तेणं चिय विजा मंता य सिझंति ॥ १७ ॥ जे न परिग्गहविरई कुणंति पावेसु संपयटुंति । बंधति कोसियारोव अप्पयं ते सकिरियाए ॥ १८ ॥ पइदियहलाभवसवड्डमाणगुरुलोभदूमियसरीरा । सवत्थ ममत्तपरिग्गहेण सुचिरं किलिस्संति ॥ १९ ॥ अपरिग्गहा उण नरा ससरीरेऽविहु ममत्तपडिबंधं । न कुणंति वत्थपत्ताइएसु सेसेसु का गणणा? ॥२०॥ For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ५प्रस्ताव: ॥ १७३॥ CAMGARCANCE एत्तो चिय तिवयरोवसग्गवग्गेऽवि ते ण झाणाओ। मंदरगिरिव विचलंति मोक्खसोक्खं च साहति ॥ २१॥ धर्मघोषइय भो देवाणुपिया! अविरयविरयाण दोसगुणसहियं । कहियं तुम्हाण मए सुद्धं सद्धम्मसवस्सं ॥ २२ ॥ देशना गोभद्र चिंतामणिच दुलह संसारमहोयहि मि भमिराणं । जीवाण नृणमेयं सकम्मगुरुभारपिहियाणं ॥२३॥ दीक्षा च. एयंमि उ संपत्ते तं न जए जं न पावियं होइ । ता एयंमि पयत्तो कायचो कुसलबुद्धीहिं ॥ २४ ॥ एयं च निरइयारं न साहुदिक्खं विणा घडइ जम्हा । पडिवजह पवजं तम्हा दुहसेलवजसमं ॥ २५ ॥ एवं च गुरुणा उवइढे सद्धम्ममग्गे पडिबुद्धा बहवे पाणिणो पलीणा मिच्छत्तवासणा जाओ केसिंचि सविरहपरिणामो अन्नेसि समुप्पन्ना देसविरइबुद्धित्ति, एत्यंतरे संसारासारयं परिभातो तकल्लतिबवेरग्गसमुग्गयपवजापरिणामो गोभद्दो गुरुसमी गंतूणं विनविउमारद्धो-भयवं! अमयं व परिणयं मम तुम्ह वयणं समुलसिओ विवेओ तुहा गेहवासणा, ता तुम्भेहिं निजामगेहिं पवजाजाणवत्तमारुहिऊण भवोदहिं लंघिउमिच्छामि, गुरुणा भणियंभद्द! जुत्तमेयं तुम्हारिसाणं, तओ सूरिं पणमिऊण गओ गेहे, रयणविक्कओवलद्धदवेण दिन्नं दीणाणाहाईणं महादाणं, अह पसत्थे तिहिमुहुत्ते सूरिसमीवे गहिया पञ्चज्जा, जाओ महातवस्सी, पालेइ निरयारं समणधम्म अहियासेइ सम्मं परीसहे पउंजइ बालगिलाणाईणं विणयं भावेइ भावणाजालं पढेइ समयसत्थं परिचिंतेइ तब्भावत्थं 18॥ १७३॥ कुणइ अपुवापुचतवचरणं, एवं च विसुज्झमाणस्स तस्स वोलिंति वासरा, अन्नया य गुरुमापुच्छित्ता समारद्धाई तेण For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir SAKALSAXARA%AGAR मासक्खमणाई,परिसुसियं च से सरीरं, तहावि वालाईण कजेसु अणिगूहियसामत्थो सवत्थ पयट्टइत्ति । अन्नसमए य| सो खमगो गओखुडगेण समं वासियभत्तस्स, तेण य पहे गच्छमाणेण जुगमेत्तनिहित्तचक्खुपसरेणवि कहवि दिवजो६ गवसा चंपिया चलणेसु मंडुक्किया, विवन्ना य सा, पट्ठिट्ठिएण य भणिओ सो खुड़एण-जहा खमग! तुमए एसा विराहिया, ता सम्म निरूवेहि, सोऽवि एवमायन्निऊण ईसिसमुप्पन्नरोसावेसो असूयाए इयरजणचरणचंपणपणहजीवाओ मंडुक्कलियाओ दंसिंतो भणइ-अरे दुट्ठसिक्ख ! इमावि मए मारिया ? इमावि मए मारिया ? इमावि मए मारियत्ति, खुडगेण नायं-होउ ताव, वियाले सयमेव गुरुपुरओ आलोइस्सइत्ति, एवं च पत्थुयकजं काऊण पडिनियत्ता दोवि निययासमं, कमेण य जाओ संझासमओ, आरद्धं आवस्सयं, गुरुपुरओ य खमयरिमी आलोइत्ता देवसिय उवविठ्ठो, नवरं मा विस्सुमरियं होहित्ति चिंतयंतेण खुडएण कहिओ मंडुकियावइयरोखमगस्स, एत्थंतरे निगुरविगिढतवचरणसंतत्तत्तणेणं सरीरस्स माहणजम्मसुलभत्तणेणं तहाविहतिबकोवुन्भवस्स पणट्ठो से विवेओ, समुद्धाइओ महया वेगेणं खुडुगताडणनिमित्तं, अंतरा य आगच्छमाणो निद्वरथंभसिरावडणघाइयमम्मपएसो तहाविहकलुसाभिप्पायविराहियसायन्नो कालं काऊण उववन्नो जोइसियदेवेसु, कोहदूसियस्स एवं विहा विडंबणा, जेण छट्टट्ठमाइदुक्करविगिट्ठतवभेयसेवणुभूयं । गुरुबालसिक्खगेलण्णपंडियविणओवणीयंपि ॥१॥ दसविहजइजणकिरियापरिपालणपोसियंपि सुहपुन्नं । खणमेत्तेणवि तेणं तणं व कोहग्गिणा दह॥२॥ जुम्मं ।। For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री गुणचंद महावीरच ० ५ प्रस्तावः ॥ १७४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एत्तोच्चिय पसमविवज्जियाण सच्चा निरत्थिया किरिया । उक्किट्ठतवोऽविहु होइ केवलं भुक्खमारो सो ॥ ३ ॥ जह पचयाण मेरू नईण गंगा मियाण पंचमुहो । पक्खीण जहा गरुडो सेसाही सयलभुयगाण ॥ ४ ॥ जह साहूण जिनिंदो मणीण चिंतामणी तहा पसमो । सारो समत्यधम्मस्स तेण एत्थेव जइयवं ॥५॥ जुम्मं ॥ अलं पसंगेणं । सो खमगजिओ जोइसदेवेसु अहाउयं पालिऊण चुओ समाणो कणगखले आसमपए पंचतावससाहिवइस्स कुलवइणो गिहिणीए उपवन्नो दारगत्तणेणं, जाओ य उचियसमए, कथं से कोसिओत्ति नामं, सो य सभावेणं चंडरोसो, थेवावराहेऽवि सेसतावसकुमारे कुट्टेति, ते य तेण ताडिजमाणा नियनियपिऊणं साहेंति, तेहि य केण कुट्टियन्ति पुच्छिजमाणा निवेइंति कोसिएणं, तत्थ अन्नेऽवि तावसकुमारगा कोसियाभिहाणा अत्थि अओ न मुणिज्जइ केणावित्ति तबिसेसोवलंभनिमित्तं तप्पभिरं ठावियं चंडकोसिओत्ति नामं, तद्दिणाओ आरम्भ पावियं च पसिद्धि, एवं सो चंडकोसिओ जाओत्ति । अन्नया य कुलवई पंचत्तमुवगओ, पच्छा सो सेसतावसेहिं कुलवइपए निवेसिओ समाणो तत्थ वणसंडे अचंतं अज्झोववण्णो, अणवरयं अदुवापुचपायवसेयणपालणपरो कालं गमेइ, सेसतावसे य पुप्फफलाई तहिं गेण्हंते पयत्तेण निवारेइ, ते य तत्थ कुसुममेत्तंपि अपावमाणा गुरुम्मि व गुरुपुत्तगंमि पवट्टियवंति सुमरिऊण तत्रयणमविकूलंता दिसोदिसिं गया, जोऽवि गोवालगाई तत्थ फलाइनिमित्तमे तंपि हंतूण सो निद्धाडेर, जाया य समीवगामनगरेसु पसिद्धी जहा चंडकोसिओ उबवणं अवलोइउंपि न देइ । अन्नया य For Private and Personal Use Only मण्डूकीविराधना ज्योतिष्क ता तापसः ॥ १७४ ॥ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CRECORDCORECASS सो निसियधारं परमं घेत्तण वइकरणनिमित्तं कंटिगाणयणाय गओ दुरवणसंडे, इओ य आसमपयासन्नं सेयवियापुरिवत्थवेहिं रायपुत्तेहिं फलगहणनिवारणाकुविएहिं मुणियतग्गमणवुत्तंतेहिं पुवामरिसेण आगंतूण ओक्खया तरुपोयगा छिंदिया सरलतरुणतरुवरा पाडियाई फलाई हयमहिओ कओ से उडवओ भग्गा कलसगा फोडिया कमडलू खंडिया दक्खामंडवा पणासियाई कयलीहराई, अन्नपि जहासत्तीए उवद्दविउमारद्धत्ति, एत्थंतरे दिद्वतहाविहासमभंगवइयरेहिं गोवालगेहिं गंतूण सिटुं चंडकोसियस्स, जहा-तुह उववणं कुमारहिं हणिजइत्ति, सो एवमायन्नि ऊण कोवेण जलणोब धगधगन्तो परसुमुग्गीरिऊण धाविओ पवणवेगेण तदभिमुहं, दिट्ठो य एंतो कुमारेहि, ते य है मुणी अवन्झोत्ति चिंतिऊण पलाणा नियनयराभिमुहं, चंडकोसिओऽवि तयणुमग्गलग्गो वाहरइ रे खत्तियाहमा! मज्झ उववणं छिंदिऊणवि परोक्खं । इहि नियजणणीए किं पुण उयरंमि पविसिहिह ? ॥१॥ मा वेगेण पलायह वह सवडंमुहा खणं एक । तालफलाणिव सीसे जेण कुहाडेण पाडेमि ॥२॥ एमाइ असन्भे गालिगम्भवयणे समुलतो सो । तह कहवि कोववसवियललोयणो धाविओ तुरियं ॥ ३॥ जह खाणुखलणनिवडणअडट्ठियपरसुछिन्नसीसस्स । अवमाणदंसणाउन तस्स लहु अइगयं जीयं ॥४॥ अह अट्टज्झाणगओ मरिउं सो तम्मि चेव वणसंडे । मुच्छावसेण जाओ भीमो दिट्ठीविसो सप्पो ॥ ५॥ ते य तावसा तम्मरणवइयर निसामिऊण समागया तंमि वणसंडे ठाउमारद्धा य, अन्नया य पुवसिणेहाणुबन्धस A CRA ३० महा. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Siri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद टू मुप्पन्नवणरक्षणपरिणामेण इओ तो परिभमंतेण दिट्ठा ते दिट्ठीविससप्पेण, तओ सरोससूरबिंबावलोयणुग्गि-तापसमरण महावीरच. रियजलणजालाकलावेण निहडा अभिमुहट्ठिया अणेण, अदटुंगा य पलाणा दिसोदिसिं, एवं च तिसंझं सो वणसंड | चण्डको५ प्रस्तावः कतिपयाहिणीकाऊण जं सउणगमवि पासइ तंपि दहेइ, अन्नेऽवि तम्मग्गेण पोलेमाणे तडियकप्पडियपमहे पंथिगेशकसप ॥१७५॥ दंश. विद्दवेइ, अह तब्भएण अवहो जा जाओ सो मग्गो, एसा चंडकोसियसप्पस्स उप्पत्ती।। | अह तेण सप्पेण उववणंतरे परिन्भमंतेण दिट्ठो जक्खमंडवियाए पडिमं ठिओ बद्धमाणजिणवरो, तं च दहण समुच्छलियकोवानलो अहो मम सामत्थं एस न मुणइत्ति विगप्पिऊण तरणिमंडलावलोयणपउगुणीभूयविणिस्सरंतविसुम्मिस्सदुस्सहसिहिसिहाभासुरच्छिविच्छोहो निद्दहिउकामो भयवन्तं पेच्छिउमारद्धो अह जयगुरुणो देहे दिट्ठी दिट्ठीविसस्स पडिफलिया। पिऊससीयले साऽणुभावओ शत्ति विज्झाया ॥१॥ असमत्था निहिउं जाया जिणनाहलोममिपि । ताहे पडिहयसत्ती तंडवियपयंडफणभित्ती ॥२॥ गरलकणुक्करसम्मिस्सगरुयपम्मुक्कफारफुकारो। वेगेणं डसिउमणो पहाविओ जिणवराभिमुहं ॥३॥ तो तिव्वविसुब्भडाहिं दाढाहिं जिणं डसिऊण पच्छाहुत्तं अवक्कमेइ, मा उग्गविसविहयजीवियबो ममोवरि8॥ १७५॥ एस निवडिहित्ति, भयवंतं च तहट्ठियं चेव दतॄण पुणो पुणो तिन्नि वारे जाव डसित्ता अमरिसेणं पलोयंतो अच्छा, तहावत्थाणे य जिणसोमबिंबावलोयणोवसंतदुट्ठदिठिविसविगारो सो करुणाए भणिओ भयवया-उवसम भो CARRANAS For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चंडकोसिया !, उवसम महाणुभाव !, किन्न सरसि सयं चिय अणुभूयं तं वइयरं ? | पुचभवे जं समणो को विराहियसमग्गसामन्नो । कुच्छियजोइसदेवत्तलच्छिमणुपाविओ मरिउं ॥ १ ॥ तत्तो इह वणसंडे तावसपुत्तो य जं तुमं जाओ । तत्तोऽविय तिघविसो इहि सप्पत्तणं पत्तो ॥ २ ॥ ता भद्द ! एत्तोऽवि मुंच कोवं, एसो हि विग्धभूओ परमसुहसंपयाणं पडिखलणमलो कल्लाणवल्लीणं महापडिवक्खो पवरविवेयस्स जलणो कुसलाणुट्ठाणवणसंडस्स जणओ दुग्गदुग्गइपडणस्सत्ति, सवहा अलमेतो कोषाणुबंघेणंति, इमं च सोचा भुयगस्स पुचाणुभूयसरणवसेण ईहावूहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स जायं जाइसरणं, दिहं च पुषाणुद्वियं तवचरणं सामण्णपरिपालणं तचिराहणोवलद्धजोइसियसुरजम्मं च, अह उम्मीलियविवेओ समुल्लसियधम्मपरिणामो जायपावदुगुंछो आयाहिणपयाहिणापुवगं परमभत्तीए भयवंतं भुवणगुरुं वंदिऊण अणसणं पडिवज्जइ, भयपि मुणइ जहा एस पडिबुद्धो कयाणसणो य, तहावि तअनुकंपाए तत्थेव काउस्सग्गगओ परिवालेइत्ति, चंडकोसिओऽवि मा कहवि रोसवसेण नयणग्गिणा पाणविणासो होजत्ति परिभाविऊण विलनिहित्ततुंडो पवडियसेससरीरो परमवेरग्गावडियमई चिंते कह गुणरयणोहिणा गुरुणा सह संगमो पुरा जाओ ? । कह पञ्चज्जारयणं अपत्तपुत्रं मए पत्तं १ ॥ १ ॥ कह वा पीऊसंपिव असेसदोसग्गिविज्झवणदक्खं १ | सम्ममहीयं सुत्तं विचित्तनयभंगदुधिगमं १ ॥ २ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir RSCRI सर्पस्य बो. घोऽनशनं देवत्वं च. श्रीगुणचंद कह वा मासक्खमणाइ दुकरं तह चिरं तवो चरियं ? । कह दुद्धरंपि चरियं अकलंक बंभचेरंपि? ॥३॥ महावीरच० खणमेत्ततित्वकोवप्पभावओ कह इमं समग्गंपि । विफलत्तणमणुपत्तं ? हा मुद्धो मंदभागोऽहं ॥४॥ ५प्रस्ताव इण्हि तु पयइभीसणभुयंगभावं गओ हयासोऽहं । मुणिधम्मस्स अजोग्गो कमुवायं संपवजामि? ॥५॥ ॥१७६ ॥ हा पाव जीव! तइया जह सिरलोयाइ विविहदुक्खाई । सहियाई तहा खुडगवयणंपि य कीस नो सहियं? ॥६॥5 किं मूढ । नियसिम्मी एवं पज्जालिओ तए जलणो? । सुहकामिणा हणिजइ अप्पा किं अप्पणो चेव ॥७॥ इय उत्तरोत्तरपवह माणवेरग्गमग्गमणुलग्गो । सप्पो झंपियदप्पो संलीणंगो मओब ठिओ॥८॥ | अह भयवंतं समीवमुव गयं पेच्छिऊण गोवालादयो तरुवरतिरोहियसरीरा तहा निचलस्सवि भुयंगमस्स उवरि अविस्ससेमाणा चेयणापरिक्खणनिमित्तं पाहाणखंडे खिवंति, तेहिं ताडि जमाणोऽवि जाव न मणागपि विचलइ एसो ताव समीवमागच्छन्ति, कटेण य घटुंति, तहावि अप्फंदमाणे तंमि सेसलोयस्स साहेति, जहा-दिट्टीविससप्पो देवजएणं उत्सामिओ, न संपर्य डहइत्ति, ताहे लोगो आगंतुं सामि वंदिता तंपि वंदइ महिमं च करेइ. अन्नाओवि गोउलियविलयाओ घयमहियाविक्किणणत्थं तेणंतेण वचमाणीओ तं सप्पं तुप्पेण मक्खंति, घयगंधेण य (अहि)सरंततिक्खतुंडपिवीलिगापडलखजमाणदेहुप्पण्णतिववेयणं सम्ममहियासमागो अद्धमासियाए संलेहणाए दिकालं काऊण सहस्सारे देवलोए देवो अट्ठारससागरोवमो उववण्णोत्ति । ANAGASARAN PCASHAA%% ॥१७६॥ For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CHIUSAAAAACX** इय सुहपरंपराए नि जिऊण चंडकोसियं परमेसरो तिहुयणेकदिणयरो वीरो तत्तो निक्खमिऊण उत्तरचावा8लसन्निवेसं गओ, तत्थ पक्खक्खमणपारणए पविट्ठो गोयरचरियाए, कमेण पत्तो नागसेणगाहावइस्स मंदिरं. टू तहिं च तहिणे दुवालसवरिसाओ पुत्तो समागओत्तिकाऊण पयट्टो महूसवो, जेमियो नियगजणो, सो य निय गजणो सामिणो रूवसंपयाए आणंदमुबहतो परमण्णेणं भयवंतं पडिलाभेइ, एत्यंतरे अहो दाणं अहो दाणंति वाहरमाणेहिं चेलुक्खेवं करेंतेहिं कणगबुद्धिं मुयमाणेहिं चउविहतूरनियरं वायंतेहिं गंधोदयं परिसंतेहिं दसवन्नं ६ कुसुमपयरं कीरतेहिं नचमाणेहिं गायमाणेहिं तिवई अप्फालेंतेहिं सहरिसं थुणंतेहिं असुरसुरखयरनिवहेहिं भरिय. मम्बरविवरंति, जयगुरूवि पारिऊण सेयवियं नयरिं गओ, तत्थ य नमंतसामंतमउलिमंडलीमंडियपायपीढो सम्मईसणमुणियजहट्टियजिणोवइट्ठजीवाइतत्तप्पवंचो पएसी नाम नराहियो परमसमणोवासओ, सो य भयवंतं आगयं मुणिऊण चाउरंगसेणापरिवारिओ सयलनयरजणसमेओ निग्गओ वंदणवडियाए, दिट्टो सामी, तिपयाहिणीकाऊण य वंदिओ परमायरेणं, थोउं पयत्तो, कह? जय भुवणेक्कनिसायर! सायरसुररायनमियकमकमल!। मलविरहिय! हियकारय ! रयतमभरहरणदिवसयर !॥१॥ करुणारसनिबावियभवगिम्हुत्तत्तसत्ततरुनिवह! । जिणनाह ! तुमं पुवजिएहिं पुण्यहिं दिट्ठोऽसि ॥२॥ तं चिय दिणं पसत्थं सोचिय समओ समत्थसुहहेऊ । जत्थ भुवणेकवंधव! तुह मुहकमलं पलोएमो ॥३॥ AMRICALMALAURECRUCABEARCH ** For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org श्रीगुणचंद महावीरच० ५प्रस्ताव A ॥१७७॥ + अइनिस्सारस्सवि जीवियस्स पत्तं मए फलं अज । ज तुम्ह चरणफरिसणपवित्तियं उत्तमंग मे ॥४॥ प्रदेशिकृतो महिमा. इय जिणनाहं थोउं बहुप्पयारं पराएँ भत्तीए । राया पुरजणसहिओ जहागयं पडिनियत्तोत्ति ॥५॥ भयपि सुरहिपुरनयराभिमुहं वच्चइ, तत्थ य अंतरा पएसिनरवइसमीवमागच्छमाणा पंचहि रहहिं निजगा रायाणो भयवंतं दवण पूयं सकारं सबायरेण कुणंति, सामीऽवि नियप्पभावप्पबोहियसत्तसंघाओ बहुविहउग्गतवविसेसपणस्समाणासेसनिविडकम्मंसो विसुद्धसीलसुरभिसरीरो सुरभिपुरं अइक्कमिऊण संपत्तो जलहिपवाहाणुकारिवारिपसरं सयलसरियापवरं गंगामहानई, अविय पवणुच्छालियजलकणसेयवससिणिद्धतीरतरुसंडं । अन्नोन्नप्फिडणविफुटलोलकल्लोलरवमुहलं ॥१॥ पप्फुरियफारडिंडीरपिंडपंडुरियतारतीरंतं । जिणदंसणतोसवसा तक्खणविहियट्टहासं च ॥२॥ वणकुंजरकुलमजणविदलियसिप्पिउडमोत्तियसमिद्धं । वियरंतहंससारसरहंगरवमणहरदियंतं ॥३॥ मजिरविलयाजणथोरथणहराधायभंगुरतरंग । रंगतमच्छकच्छवमयरोरगभीसणावत्तं ॥४॥ इय एरिसं सुरसरि सरणागयवच्छलो जिणो जाव पेच्छइ कमलदलच्छो परतीरगमामिलासेण ताव सुसिलिट्ठनिहुर-16॥ १७७ ॥ विसिट्टतरुकटफलगनिम्मविया परतीरगमणत्यं नाविएण पगुणीकया नावा, तहिं च समारूढो परतीरगामी जणो, भयपि आरुहिऊणं ठिो तीसे एगदेसे, एवं च निलीणमि जणे पवाहिया नावा, ऊसिओ सियवडो + + For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चालियाई अवलगाई पयट्टा महावेगेण गंतुं नावा, एत्यंतरे तडट्ठिएण वासियं कोसिएण, तं च निसामिऊण भणियं खेमिलाभिहाणनेमित्तिएणं-अहो इमो महासउणो इमं वाहरइ, जहा तुन्मे इह मारणंतियं आवई पाउणिस्सह, केवलमेयस्स महारिसिस्स पभावेण अक्खयसरीरा नित्थरिस्सहत्ति, एवं निसुणिऊण विम्हिया नावाजणा जाव अवरोप्परं विविहं संलवंति ताव पत्ता अगाहसलिलमज्झयारदेसं नावा, एत्थावसरंभि जिणं नावारूढं पलोहउं पावो । संभरियपुववेरो नागसुदाढो विचिते ॥ १ ॥ एसो सो जेण पुरातिविचक्कित्तणमुवगएणं । गिरिकंदर मल्लीणो सीहत्ते वट्टमाणोऽहं ॥ २ ॥ सच्छंदविविहकीलाविणोयलीलाविलासदुल्ललिओ । परिजुन्नपडोध दुहा विफालिओ पाणिणा घेत्तुं ॥ ३ ॥ एयस्स किमवद्धं तया बिजणे वणे वसंतेणं ? । जेण तहा निहओऽहं अनिमित्तियसत्तुणा इमिणा १ ॥ ४ ॥ ता मज्झ पुन्नपगरिसवसेण जायं समीहियं अज्ज । जं एस वेरिओ चक्खुगोयरं सयमिहावडिओ ॥ ५ ॥ जीयस्स एत्तियं चिय पसंसणिज्जं जए सुपुरिसाणं । उवयारे उपयारो जं किज्जइ वेरिए वेरं ॥ ६ ॥ सन्नमुवगपि मरणं मम चित्तनिधुई जणइ । जं पुववइरसाहणमुवट्ठियं एत्थ पत्थावे ॥ ७ ॥ इम असरिसनि चामरिसपगरिसायंत्र अच्छिविच्छोहो । सो चिंतिउं सुदाढो वेगेण जिणंतियं पत्तो ॥ ८ ॥ अह अंतरिक्खमुवागरण किलकिलारावं कुणमाणेणं तेण अरे रे कत्थ वञ्चिदत्ति भणिऊण विउविओ संवत्तगम For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदष्ट्र श्रीगणचंद हापवणो, तेण पहणिजमाणे उम्मूलिया तरुणो टलटलिया कुलसेला थरहरियं धरणिवढे दूरमुच्छलियं गंगासलिलं महावीरच. विसंतुला डोल्लिया नावा भग्गो तडत्ति कूवयखंभो जजरिओ सियवडो वामूढो कन्नधारो मरणभयभीओ इट्टदेव- | पसर्ग: ५प्रस्ताव पाए सुमरिउ लग्गो नावाजणो, अवि य॥१७८॥ संचलियमच्छकच्छवजलकरिकरघायजजरतरंगे । तारापहमोगाढे सलिलुप्पीले महापबले ॥१॥ पवयमहोल्लकल्लोलपेलणुवेलिरी सफरिगछ । बोलेउं आढत्ता ताहे नावा सुदाढेण ॥२॥ __एत्यंतरे कंबलसंबलाशिहाणा दोनागकुमारदेवा तक्खणचलियासणा परमत्थजाणणट्ठा जाव ओहिं पउंजंति ताव पासंति भयवंतं नावारूढं सुदाढेण जले बोलिउमाढत्तंति, तं च पासित्ता अलाहि सेसकजेहिं, सामि ताव मोया-15 वेमोत्ति चिंतिऊण वेगेण समागया तंपएस, आवडिओय एगो नागकुमारो सुदाढेण सह जुज्झिउं,बीएणवि वियडपाणिसंपुडेणुप्पाडिऊण नावा नइपरिसरंमि पमुक्का । __ अह सो सुदाढनागो महिड्डिओ जइवि तहवि खीणवलो । आसन्नमरणनिन्भररणरणगुच्छायउच्छाहो ॥१॥ अप्पट्टिएहिवि तया कंबलसंबलभिहाणदेवेहिं । अहिणवदेवत्तणदिवसत्तिणा निजिओ झत्ति ॥ २॥ ॥१७८॥ उद्धियदाढे नागेच निविसे निम्मिए सुदामि । नागकुमारा ताहे वंदित्तु जिणं विणयपणया ॥३॥ मुंचंति पुप्फपयरं सुरहिं गंधोदयं च परिसंति । गायंति भत्तिभरनिस्सरंतरोमंचकंचुइया ॥४॥ MOCRORECACACANCE ACCORRECCASCORECASEACE For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SA or एवं च अवलोइऊण जायपरमविम्हओ नावाजणो चिंतेइ-अहो कोइ एस महापुरिसो माणुसवेसोवि अमाणुसाणुरुवप्पभावो, जओ एयप्पभावाओ अम्हे समुत्तिन्ना आवयामहन्नवाओ, ता जुज्जइ एस महप्पा पणमिउंति विभाविऊण निवडिओ तिहुयणगुरुणो चलणकमलंमि, कंबलसंबलावि जिणं पणमिऊण गया जहागयं । ___ अह के पुण कंबलसंबला पुच्चभवे इंतत्ति सुणेह मूलुप्पत्ति-अस्थि सयलमहियलविक्खाया समुत्तुंगपसत्थसुपासतित्थयरथूभसोहिया महुरा नाम नयरी, तत्थ य अहिगयजीवाजीववियारो नियसुद्धबुद्धिपगरिसोवलद्धपुन्नपावो आसवसंवरपमोक्खतत्तवियारवियक्खणो पंचाणुवयाइसावगधम्मपरिपालणबद्धलक्खो जिर्णिदसमयाणुरागरंजियहियओ आगरो पसमाइगुणरयणाणं निवासट्ठाणं गंभीरिमाए संकेयभूमी करुणाए वल्लहो धम्मियजणाणं बहुमओ नरवइस्स सवत्थ पावियसाहुवाओ जिणदासो नाम सावओ, साहुदासी नामेण से भारिया, ताणि य दोनिवि अचंतधम्मकरणलालसाई अणवरयगुरूवएसपालणपरायणाई फासुयएसणिएहिं असणपाणखाइमसाइमेहि मुणिजणं पडिलामेमाणाई कालं वोलंति । अन्नं च संसारावत्तविचिन्तणत्य(प्प)भीयाई जइवि अश्वत्थं । जइवि य गिहवाससमुत्थदोसपरिसंकियमणा ॥१॥ तहविहु गिहमि अन्नोन्नगाढपेमाणुबंधभावेणं । समणणं पवजिउकामाइंवि ताई निवसति ॥२॥ . तेहि य अन्नया सुगुरुपायमूले सुणिऊण तिरियाइअसंजयपाणिपरिग्गहतिवपावोवलेवासमंजस्सं गहियं गोमहि tortor A CHARSSES For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2 4-% मथुरायां जिनदास साधुदासी च. श्रीगुणचंद सिचउप्पयाण पञ्चक्खाणं, अन्ने य अंगी कया वहवे अभिग्गहविसेसा, अह घेणूणमभावे साहुदासी साविगा दिवसे महावीरचना दिवसे गोरसं आभीरिहत्थाओ गिण्हइ, अन्नदियहे य तीए आभीरी भणिया, जहा-भद्दे ! तुम पइदियहं मम घरे ५प्रस्ताव महियं घेत्तूण आगच्छेजाहि, अहं जेत्तियं तुम आणेसि तेत्तियं गिहिस्सामि, अन्नत्य मा वचिहिसि, पडिवन्नं च ॥ १७९॥ इमं तीए, एवं च पइदिगदंसजेणं निकवडकयविक्कयकरणेण य समुप्पन्नो तासिं परोप्परं सिणेहाणुबंधो, अंतरंतरा व साविगा से गंधपुडिगाइदाणेण उवयारं करेइ, इयरीवि सविसेसं दुद्धं दहिं पणामेइ, अन्नया य आभीरीए कन्नगा|विवाहो पारद्धो, तओ सा जिणदासं साहुदासिं च सपणयं भणिउमारद्धाPI जइविन आसणदाणेऽवि तुम्ह सामत्थमत्थि मे किंपि । तहवि सिणेहवसेणं किमवि अहं विनविउकामा ॥१॥ किर गुरुमणोरहेहिं सुहिसयणविसिट्ठगोट्टिकजेष । अम्हारिसेण जायइ सुचिरेण महूसवारंभो ॥२॥ तुम्हारिसाण पुण पुषजम्मसुविढत्तपुन्नविभवाणं । पइदियहमूसवच्चिय लीलाए संपयति ॥३॥ एयं च उल्लवंती सा भणिया सेटिणा-भद्दे । फुडक्खरेहि भणसु जमिह पओयणं, तीए मणियं-अम्ह घरे विवाहो पारद्धो, अओ तुम्हेर्हि तत्थ भोयणं कायर्ष, सेटिणा मणियं-को दोसो, कीरइ, केवलं बहुगेहवावारवावडत्तणेणं न पारेमो मुहुत्तमेत्तंपि गिहं परिचइउं, अओ न कायचो तुमए चित्तसंतावो न वोढवो अभत्यणाभंगसमुभवो अवमाणो न गणियचं निदक्खिन्नत्तणं न मोत्तवो मणागपि पुवपणओ, न हि निकवडसिणेहाणुबंधो सम CARRANGABAR OROSCARRORSCOST ॥ १७९॥ For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RAGAAAAAM खइ बज्झोवयारं, ता गच्छ नियगेहे कुणसु समीहियपओयणंति पन्नविऊण समप्पियाइं धूयणवसणाई पणामियाई तदुचियाई वत्थाभरणाई दिन्नाई कुंकुमाइविलेवणाइंति, सावि ताणि गहिऊण परमहरिसमुच्चहती गया | ६ सगिह, कओ विवाहो, मिलिया सुहिसयणवंधवा, जाया महई सोहा, पसंसियाई ताई इयरजणेणं, जहा-सुंदरो विवाहमहूसवो एएहिं कओत्ति, ताणि य पसंसं निसामिऊण चिन्तेंति-अहो परमोवयारकारी महाणुभावो सेट्टी जेण अम्ह विवाहे पवरोवगरणदाणेणं एवं सोभा निवत्तिया, ता कहमेयस्स पञ्चुवयारे वहिस्सामोत्ति संपेहिऊण | उवचियसरीरे अतुच्छपुच्छोवसोहिए सुप्पमाणकुडिलचारुसिंगे सरयससहरकिरणसरिसवण्णे समाणदेहपरिमंडले | अचंतसुंदरगोरे कंबलसंवलाभिहाणे तिवारिसिए गोवग्गपहाणे जुवाणवसहपोयगे गहिऊण गयाइं ताई सेट्ठिभवणे, पणामिया य ते सेट्ठिणो, चउप्पयपरिग्गहकयपचक्खाणेण निवारिया ते सेद्विणा, तहावि अमुणियपरमत्थाणि भवगंगणे ते बंधिऊण गयाई ताई नियगेहे, तेण सावएण चिंतियं-अहो संकडमेवमावडियं, जओ-जइ मुचंति एए वराया ता लोगो हलाइसु वाहेइ तहाविहहीणसमायारो वा कोइ विद्दवेइ, अह एत्थेव धरिजति ता निरुवयारिलत्तणेण दुरणुपालणिजा हवंतित्ति खणं विगप्पिऊण जिणवरवयणायन्नणसमुप्पन्नकरुणापूरपूरियहियएणं संगोविया | सेट्ठिणा, पइदिणं दावेइ किणिऊण य तेसिं फासुगचारिं, पणामेइ वत्थगलियं सलिलं, एवं पइदिणं उदंते वट्टइ, सो य सावगो अहमिचाउद्दसीसु आहारपोसहं सरीरसकारपोसहं बंभचेरपोसहं अवावारपोसहं च पडिपुन्नं काऊण SAKACHARACHAN For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आभीरापितौ कम्बलशम्बल वृषौ. श्रीगुणचंद दिसामाइयपडिवन्नो समणसमो अइयारपंकपरिरक्षणपरो धम्मसत्थपोत्थयं वाएइ, नियपरियणो य पंजलिउडो चित्तमहावीरच लिहिओब निसामेइ, तेऽवि कंबलसंबला अहाभद्दयाए तहाविहमोहणिजकम्मलाघवेण य थिरीकयसवणउडा ५प्रस्ताव अवक्खित्तचित्ता सन्नित्तणेण मुणियजुत्ताजुत्ता सम्मं सुणंति, जायभवभवभया य जद्दिवसं सावगो उववासं कुणइ ॥१८॥ तदिवसं तेऽवि चारिं पाणियं च परिचयंति, पुणो पुणो दिजमाणंपि न गिण्हंतित्ति । ___ अह तेसु तिरियजोणीसमुभवसुवि तवं करेंतेसु । सगुणत्ति पक्खवायं वहमाणो चिंतए सेट्टी ॥१॥ एत्तियकालं अणुकंपणट्ठया दिनमेसिमसणाई । साहम्मिगबुद्धीए एत्तो सवं करिस्सामि ॥२॥ साहम्मियवच्छलं जेण जिणिंदेहि भुवणपणएहिं । सम्मत्तसुद्धिहे निद्दिट्ट धम्मियजणस्स ॥३॥ अप्पुबो कोइ धुवं अहो पभावो जिणिंदवयणस्स । जं निसुणिऊण तिरियावि जंति वेरग्गमगंमि ॥४॥ इय चिंतिऊण सविसेसमायरं तेसिँ दंसए सेट्ठी । भवेसु पक्खवायं वहति जं वीयरागाऽवि ॥ ५॥ __ एवं च उचियकायवपरायणस्स सम्ममुवसंतचित्तस्स सरंति वासरा, अन्नया य तीए नयरीए भंडीरजक्खस्स |जणेण जत्ता पत्थुया, तत्थ य विविहतुरगाइवाहणाधिरूढो निग्गंतूण सयलपुरलोओ तस्स पुरओ वाहं करेइ ।। __ इओ य-जिणदाससे द्विणो पियमित्तो अचंतकोऊहलिओ जक्खजत्ताए वाहियालि काउमणो सेट्टि अणापुच्छिऊण पणयभावेण कंबलसंबले गंतीए जोत्तिऊण गओजक्खपुरओ, वाहिया महतीवेलं, ते य अचंतदरिसणिजायारत्तण R-RELEASE ॥१८॥ For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१ मद्दा० www.kobatirth.org अन्नन्नपणयिणा जणेण वाहिज्जमाणा आरावेहनिस्सरंतरुहिरधारापरिगया कोमलदेहा अदिट्ठतहाविद्दवेयणा तुट्टहियया नित्थामा जाया, तहाविद्दे य ते सेट्ठीगेहे बंधिता मित्तो पडिगओ, सेट्ठीवि भोयणसमए जाव जवसाइ घेत्तूर्ण एइ ताव पेच्छइ एए कंपंत देहे निस्सहगलंतनयणे चणमुहनीहरंत सोणिए दोषि गोणए, एवंविहे य दहूण रुट्ठो पुच्छइ - अहो केण दुरायारेण इमे वराया इमं अवत्थमुवणीया १, निवेदयं च से जहावित्तं परियणेणं, तदायन्नणेण य समुत्पन्नो महंतो चित्तसंतावो, कंबलसंबलावि दृढघायजज्जरियसरीरा अणसणं काउमणा सायरं पुरओ उवणीयंपि चारिपाणियं न गेण्डंति, जाव य पुणो पुणो गवत्ताइयं दिजमाणं नेच्छति ताव सेट्ठिणा मुणिऊण तदभिप्पायं दिन्नमेतेसिं भत्तपञ्चक्खाणं, पडिवन्नं च साभिलासं एएहि, 1 ताहे कारुन्नेणं विमुकनीसेस गेहवावारो । सुसिणिद्धबंधवाण व तेसिं पासे ठिओ सेट्ठी ॥ १ ॥ भाइ जहा रोसमहो मणागमेत्तंपि मा वहेज्जाह । जं निद्दएण तेणं दुत्थावत्थं इमं नीया ॥ २ ॥ संसारपवत्ताणं जंतूणं जेण कित्तियं एवं १ । न हु नामेगंतसुहो जणंमि जाओ जणो कोई ॥ ३ ॥ दढवज पंजरोदरगयपि सेलाइदुग्गलीणंपि । पुचकयमसुभकम्मं जीवं संकमइ कुवियं व ॥ ४ ॥ बिद्दवइ तयणु विवसं सुबहु अइविरसमारसंतं च । कूडपडियं व चडयं नहुप्पयारं तडफडतं ॥ ५ ॥ ता भो महाणुभावा ! सम्म अहियासणं विमोचूण । अन्नो निज्जरणविही न विज्जए पुक्पावस्स ॥ ६ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsu Gyanmandir www.kobatirth.org श्रीगुणचंद महावीरच० ५प्रस्तावः ॥१८१॥ कंबलशम्बलयोर्देवत्वं पुष्यसमाधानं च. HSSESARISHMISSIOSEOS उवचियपुन्ना तुम्भे सफलत्तणमुवगयं च मे जीयं । जं दुक्खविमोक्खखमा पत्ता जिणधम्मसामग्गी ॥७॥ इय एवमाइवयणेहि पसमसारहिं अमयसरिसेहिं । संठविया सुहमग्गे ते वसहा सेटिणा सम्मं ॥८॥ एवं च विसुज्झमाणज्झवसाणा सरीरवेयणं सहमाणा सेद्विभणिजमाणं पंचनमोकारं पडियच्छमाणा कालं काऊण नागकुमारेसु देवेसु उववण्णा, ते इमे कंबलसंबलत्ति ॥ इओ य-भयवं महावीरो नावुत्तिनो संतो जलतीरंमि इरियावहियं पडिक्कमिय सुरसरियापरिसरे ईसिजलोलसुहुमवालुगोवरि मंदं मंदं पयाई निसिंतो थूणागसंनिवेसे गंतुं पयत्तो, नवरि सामिणो पडिफलंतचक्ककमलकुलिसंकुसकलसपासायपमुहपहाणलक्खणंकियं पयपंति नइपुलिणे पलोइऊण पूसो नाम सामुद्दलक्खणवियक्खणो चिंतिउमारद्धो-अहो आजम्मकालाओऽवि अदिट्ठपुवा अचंतमच्छरियभूया कस्सइ महाणुभावस्स छक्खंडमहिमंडलोवभोगिणो चक्किणोच पवरलंछणा पयपद्धई एत्य दीसइ, जइ पुण कहंपि कोइ अपत्तरज्जो वा देसदसणकोऊहली| वा तहाविहविसमदसावडिओ वा चक्कवट्टी एवं भमेजा, पेच्छामि तं महापुरिसं, जइ पुण एयावत्यंमि इमंमि सेविजमाणमि मम समीहियत्थसिद्धी जाएजत्ति परिभाविऊण तुरियगइए जाव कइवयपयंतरमुवगओ ताव दिट्ठो अणेण धृणागसन्निवेसस्स बहिया बहलपल्लवालंकियकंकेल्लितरुणो हेट्टओ पडिमासंठिओ जिणो, दट्टण य परमेसरस्स सिरिवच्छलंछियं वच्छयलं दाहिणावत्तगंभीरं नाभिमंडलं बालप्पवालपाडलं व करकमलं चिंतियमणेणं-न ॥१८१॥ For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir % A S SAMROSEX केवलं एयस्स चरणजुयले लक्खणं, सरीरंपि नियनियविभागाणुरूवलक्खणाणुगयं उवलक्खिजद, ता कहं एवंविहा समत्थपसत्थलक्खणसंपया ?, कहं परिजुन्नवत्यमेत्तंपि से न संपजइ ? कहं या समग्गभरहरजसिरिसूयणपरा तारिसा सामुद्दसत्थवयणविन्नासा?, कहं असंपजंतलुक्खभिक्खाहारकिसमेयस्स सरीरं?, अहो दूरं पञ्चक्खेण | विरुद्धं लक्खणसत्थं । चिरकालं सेसकलाकलावमपि उज्झिऊण जत्तेणं । सामुद्दसत्थमेयं अवभिचारंति पढिओऽहं ॥१॥ इहि तु एत्थ समणे निवसणे चक्खुगोयरं पत्ते । लक्खणसत्थमसेसं नूणं दूरं विसंवइयं ॥२॥ हा हा धिरत्थु मझं परिस्समो जेण हरिणपोयच्च । माइण्णियासमेणं लक्खणसत्थेण नडिओऽहं ॥३॥ मुट्ठीहिं हयं गयणं नवणीयत्थं विरोलियं सलिलं । अघडंतत्थनिबद्धं जं एवं अहिगयं सत्थं ॥४॥ केलिप्पिएण मन्ने संघडियमिमं पयारणपरेण । धुत्तकयं पिव कवं कालेणं होइ सिद्धंतो ॥५॥ अलमेत्तो एएणं पलालकप्पण दुसत्थेणं । इय तकिऊण पूसो परमविसायं गओ सहसा ॥६॥ एत्यंतरंमि सको सुहासणत्थो पउंजए ओहिं । कह भय भवमहणो विहरइ परमेसरो वीरो?, ॥७॥ थूणागसन्निवेसे पेच्छइ पडिमद्वियं जिणवरिदं । नेमित्तियं च पूसं दूसंतं अत्तणो सत्थं ॥८॥ तो सिग्घं वियडकिरीडकोडिमणिकिरणविच्छुरियगयणो तियसेसो जिणकमकमलवंदणत्यं लहुं एइ, जहा For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगणचंद महावीरच० ५ प्रस्ताव इन्द्रागमनं प्रस्तावोपसंहारथ, भणियविहिणा य नमसिऊण सामि महुरवयणेणं पूस भणइ-भद्द ! किमेवं दूसेसि लक्खणसत्यं, नहु मिच्छाभासिणो महाणुभावा सत्थयारा, किं तुमए न सुओ एस ससुरासुरखयरनरनरेसरसिरपणयचलणो सिद्धत्थनरिंदनदणो तिहुयणविक्खायकित्ती धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी खलमहिलंब रायलच्छि छड्डिऊण एवं विहरइ । अन्नं च एसो सो जस्सेसरियकोडिलेसंपि न घडइ समग्गो । पायालसग्गनरखेत्तजायलोगो सुतुंगोऽवि ॥१॥ एसो चिय भवभयभीमकूवमजंतसत्तउद्धरणो । बद्धंतुन्भडकलिकालदलणदक्खो इमो चेव ॥२॥ एसो चिय सिवमंदिरकवाडपुडविहडणेकतल्लिच्छो । संजमलच्छिनिवेसियविसालवच्छत्थलो एस ॥३॥ एसो चिय करुणाजलनिवावियमच्छरग्गितत्तजणो । अप्पडिमनाणदंसणपमोक्षगुणगणनिही एस ॥४॥ पचाइऊण एवं पूसं तिविहेण वयणनिवहेण । पणमियजिणवरचरणो सहस्सनयणो गओ सग्गं ॥५॥ इय घोरपरीसहवेरिसमरविद्धंसणेकवीरस्स । वीरस्स भुवणपहुणो चरियंमि सुहोहभरियंमि ॥६॥ सुरसूलपाणिकोसियमहाहिपडिबोहणत्थसंबद्धो । पंचमओ पत्थावो समथिओ वित्थरेणेसो ॥७॥ इइ सिरिगुणचंदसूरिरइए महावीरचरिए सुलपाणिचंडकोसिअपबोहणो नाम पंचमो पत्यावो । ॥१८२॥ 25A5%252C%E RECESSAR SAE%% ॥१८६ For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ षष्ठः प्रस्तावः पुवजियावजविणासणत्थं, एगागिणा वीरजिणेसरेण । तितिक्खिया जे उवसग्गवग्गा, निदंसिया ते सयला कगेण ॥१॥ एत्तो य गोसालयदुविणेयजुत्तस्स तस्सेव महापहुस्स । होहिंति जे ते उ निदंसहस्सं, एगग्गचित्ता निसुणेह तुम्भे ॥२॥ । अह पुषोवइथूणागसन्निवेसाओ निक्खमिऊण गामाणुगामेण परिन्भमंतो ठाणे ठाणे सुरविसरेण पूइजमाणो अभणमाणोवि नियमाहप्पेण पाणिगणं पडिवोहितो पत्तो काणणुजाणदीहियारमणिजं रायगिह नयरं, तस्स य अदूरदेसे समुत्तुंगपासायसहस्ससमद्धासिओ नालंदो नाम संनिवेसो, तत्थ धणकणगसमिद्धो अजुणो नाम तंतुवाओ परिवसइ, तस्स य अणेगे कम्मकरा विसालसालासु संठिया विसिट्ठपट्टदूसाई वुणंति, भय-13 पि वासारत्तं काउकामो अजुणं अणुजाणाविऊण एगंतभूयाए तसपाणविरहियाए सुन्नसालाए मासखमणं पढममुवसंपजित्ता विहरइ । इओ य गोसालो नाम मंखलिमंखस्स पुत्तो चित्तफलगोवजीवी एगागी परिभमंतो तत्थेव सालाए ठिओ जत्थ भयवं पलंबियभुओ चिट्ठइत्ति । जहिं च एयस्स उप्पत्ती तं पच्छा भण्णिही, पढमं ताव जस्स सगासाओ मंखलीमखो जाओ तहा कहिज्जा। उत्तरावहविसए अस्थि सिलिंधो नाम संनिवेसो, तत्थ केसवो नाम गामरक्खगो, तस्स पाणप्पियाए विणीयाए For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandir श्रीगुणचंद सिवाभिहाणाए भारियाए कुच्छिसि संभूओ मंखो नाम पुत्तो, सो य कमेण जोवणमुवगओ, अन्नया सो पिउणामखोत्पत्तिः महावीरचा सह सरोवरं गओ, जलमजणं च काऊण तडे निवन्नो पेच्छइ चक्कवायमिहुणं अन्नोन्ननिभरपेमाणुरागरंजियहिययं | ६प्रस्ताव विविहकीलाविसेसे कुणमाणे, कहं चिय?॥१८३॥ चंचपुडछिन्ननवनलिणिनाललवसंविभागफुडपणयं । सूरत्थमणासंकाकयनिविडपरोप्परसिलेसं ॥१॥ जलपडिबिंबियनियरूवपेक्खणुप्पन्नविरहपरिसंकं । अन्नोन्नविहियनिकवडचाडुवक्खित्तमणपसरं ॥२॥ एरिसं च तं नाऊणं मंद मंदं परिसप्पिणा कयंतेणेव अमुणियागमणेण पारद्धिएण आयनंतमाकडिऊण खित्तो ४) तदभिमुहो सिलीमुहो, अह दिवसंजोगेण लग्गो चक्कवायस्स, मम्मिओ य सो तेण घाएणं, जावऽजवि न वावजइ ताव तं तहाविहं पेच्छिऊण खणं रुणुझुणिऊण य सकरुण विवन्ना चक्कवाई, इयरोऽवि मुहुत्तमेत्तं जीविऊण पंचत्तमुवगओत्ति । एवं च तवइयरमवलोइऊण मंखो मुच्छानिमीलियच्छो निवडिओ धरणिमंडले, दिट्ठो य केसवेण अहो किमेवमतक्कियमावडियंति विम्हियमणेण, समासासिओ सिसिरोवयारेहि, खणंतरेण उवलद्धचेयणो पुच्छिओ यपुत्त! किं समीरखोभो ? उय पवलपित्तदोसो ? अहवा नित्थामत्तणं ? अन्नो वा कोइ हेऊ? जेणेवं निस्सहंगो चिरं मो- ॥१८३॥ हमुवगओऽसि ?, साहेसु परमत्थं, तेणावि पिउवयणमायन्निऊण विमुकदीहुस्सासेण भणियं-ताय ! एवंविहं चक्कवायमिहुणं नियच्छिऊण मए पुवजाई सरिया, किर अहं पुत्वभवे माणससरोवरे एवं चिय चक्कवायमिहुणतणेण बढतो पुलि 98494%*USASUSASHISH AARADARA For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ADOCTORREARRAK ४ दमुक्कमग्गणाभिहओ तक्खणविरह फुट्टहिययाए चक्कवाईए अणुगओ मओऽम्हि, मरिऊण संपयं तुह पुत्तत्तणेण उववन्नो, इहि च चिरपणइणीए तीसे चक्कवाईए विरहं सोढुं न पारेमि, केसवेण भणियं-वच्छ ! अलं समइकंतदुक्खसुमरणेणं, एसो चिय सहावो एयस्स दढकयंतस्स जं न सहइ दटुं चिरकालं पियसंपओगसुहियं कमपि जणं, अवि य देवाविय नियपणइणीविरहुन्भवदुक्खदहणसंतत्ता। मत्तब मुच्छिया इव कहकहवि गमति नियजीयं ॥१॥ तुम्हारिसाण पुत्तय ! केत्तियमेत्तं इमं अओ दुक्खं । जेसिं चम्मोणद्धं देहं सवावयासज्जं ॥२॥ ता विरम पुषभवसुमरणाउ वढेसु वट्टमाणेणं । तीयाणागयचिंतणवसेण सीयइ सरीरंपि ॥३॥ तेणं चिय संसारो नृणमसारो इमो दढं जाओ। जम्ममरणजररोगसोगपमुहाई दुक्खाइं ॥४॥ इय पन्नविउ विविहप्पयारहेऊहिं केसवेणं सो। नीओ कहमवि गेहे विरहमहावेयणाभिहओ ॥५॥ | तत्थ गओऽपि सो पमुक्तपाणभोयणो सुन्नमणो धरणिनिसियलोयणो महाजोगिच निरुद्धवावारंतरपरिचिंतणो है तणंपि व नियजीवियंपि गणेमाणो अच्छइ, एयावत्थं च तं पासिऊण जायचित्तपरितावेण सयणवग्गेण मा छलणा-18 विगारो कोऽवि होजत्ति संकियमणेण सहायरेण वाहराविया तंतमंतवाइणो, दंसिओ तेसिं, कया य उवयारा, न जाओ मणागपि विसेसो, अन्नया य देसंतराओ आगओ एगो थेरपुरिसो, ठिओ एयस्स चेव गिहे, दिट्ठो अणेण मंखो, KI पुट्ठो य पासवत्ती केसवो, जहा-भद्द! किं कारणं जं एसो जुवावि रोगाइणा निरुवहओवि ससलो इव लक्खि जइ १, For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ६ प्रस्तावः ॥ १८४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केसवेणवि साहिओ दो सुब्भवो, तेण भणियं कथं किंपि तुमए एवंविदोसस्स पडिविहाणं १, केसवेण भणियं - दंसिओ एसो पवरमंतर्तताइजाणगाणं, थेरेण जंपियं-निरत्थओ सचोवकमो, पेमगहस्स किं करिंति ते वरागा १, तहाहिउग्गविसप्प संभूयवेयणोवसमकरणदक्खावि । पंचाणणदुडुकरिंदर कखसीथंभणपरावि ॥ १ ॥ भूयसमुत्थोववविणास कुसलावि परमविज्जावि । पेमपरवसहिययं पगुणं काउं न पारिंति ॥ २ ॥ केसवेण भणियं किं पुण एत्तो कायचं ?, तेण भणियं जइ मं पुच्छसि ता जावज्जवि दसमिदसं न पावर एस ताब आलिहावेसु चित्तफलहगे पुच्छबइयरं, जहा - पुलिंदेण चकवाओ सरेण पहओ, जहा तंमि जीवंते चेव तप्पणइणी मयत्ति, एवं च काराविऊण चित्तफलगहत्थं एयं परिभमावेसु गामनगराइसु, मा एवं कए कहवि विहिव - सेण पुचभवभज्जावि पावियमहिलाभावा फलगलिहियचक्कवाय मिहुणव इयरावलोयणजायजाईसरणा इमिणा सद्धिं संघडेजा, सुबंति य पुराणागमेसु एरिसबुत्ता, एवं च कए एसोऽवि आसामुयग्गलाखलियजीओ कहवयदिणाणि जीवेजा, एवमायन्निऊण केसवेण साहु साहु तुह बुद्धीए, को जाणइ परिणयमहणो पुरिसे मोतूण एवंविद्दविसमत्थनिन्नयं ? ति अभिनंदिऊण तत्रयणं निवेदयं मंखस्स, तेणावि भणियं ताय ! किमजुत्तं १, सिग्धमुबद्धवेह चित्तफलगं, एसो चेव हवउ कुवियप्पकलोलमालाउलस्स चित्तस्सुवक्खेवो, तओ केसवेण मुणिऊण तदभिप्पायं आलिहावियं जावद्वियचकवायमिदुणरूवाणुगयं चित्तफलगं, समप्पियं च मंखस्स, दिनं संबलं, तयप्यंतरं च सो For Private and Personal Use Only चित्रपट्ट - कार्पण. ॥ १८४ ॥ Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra चित्तफलगहत्थो सहाइणा एगेण अणुगम्ममाणो नयरपुरखेडकब्बडमडंबपमुहेसु सन्निवेसेसु आसापिसायनडिओ निधिस्सामं परिभमइ। दंसेइ पइगिह चिय समूसियं तं च तियचउक्केषु । चउमुहमहापहेसु य पवासभादेउलेसुपि ॥१॥ ताहे रहंगमिहुणं तहासरूवं निरूविऊण जणो। कोऊहलेण पुच्छइ साहेइ य सो जहावित्तं ॥२॥ अणवरयंपि सवित्थरमसमत्थो नियकहं च सो कहिउं । संखेवत्थनिबद्धं साहइ दुवईए नियवत्तं ॥३॥ जहा-माणससरोवरंमि अवरोप्परपोढपेमाणुरंजियं, नयणनिमेसमेतविरहमिजंतदेहयं । लुद्धयमुक्कनिसियसरविहुरियमह पंचत्तमुवगयं, संपइ संपओगमभिवंछइ एयं चक्कमिहुणयं ॥४॥ इमं च निसामिऊण केई पहसंति कई अवहीरंति केइ अणुकंपति, सोऽवि अविलक्खचित्तो सकजपसाहणेकनिरओ परियडतो चंपं नार गओ, तत्थ तेय निट्ठियं पुत्वाणियं संबलं, तओ अन्नं जीवणोवायमपेच्छंतो तं चेव चित्तफलगं पासंडं ओडिऊण गायणाई गाय माणो भिक्खं भमिउं पवत्तो, अवियx अइतिक्खछुहाभिहयस्स पिययमाजोगऊ सुयमणस्स । एक्काविय से किरिया उभयत्थपसाहिया जाया ॥१॥ इओ य-तत्थेव पुरे क्त्यवो मंखली नाम गिहवई, सुभदा य से भजा, सो य अपरिहत्थो वाणिजकलासु अकुसलो नरिंदसेवाए असमत्थो करिसणसमए अलसो कटुकिरियाए अवियक्खणो वावारंतरेसु, केवलं भोयणमेत्तपडिबद्धो कहं सुहेण निबाहो होजत्ति अणवरयं उवार्यतरं विचिंतंतो पेच्छइ मखं चित्तपट्टपयडणपडियकणभिक्खा For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kcbatirth.org महावीरच० श्रीगुणचंद 18/वित्तीए पइदिणं सुहेण निवहतं, तं च दट्ठण चिंतियमणेण-अहो एयस्स इमा अणुवरोहिणी वित्ती अचोरहरणि जं| मंखलिनो भंडोलं निचंदुहा कामधेणू असलिला सस्सनिष्फत्ती अपरिकिलेसो महानिही, ता जीविओऽम्हि चिरकालाओ जे मखत्वं ६ प्रस्ताव गोशालोपाविओ एस परमोवाओत्ति विगप्पिऊण गओ मंखस्स समीवं, पडियन्ना तस्स सेवा, सिक्खियाइं गायणाई, अह । त्पत्तिथा तंमि पुत्वभवभज्जाविरहवजजजरियहिययंमि पंचत्तमुवगए मुणियतत्तं व अप्पाणं मन्नंतो महया वित्थरेण चित्तफल६ गमवरमालिहाविऊण समागओ निययमंदिरं, भणिया नियगेहिणी-पिए ! पाडेसु संपयं छुहासिरे वज्जासणि पगुणा 5 भवाहि य विहारजताए, तीए वुत्तं एसा पगुणाऽहं, वञ्चसु जत्थ भे रोयइ, तओ चित्तफलगं घेत्तुं तीए समेओर नीहरिओ सो नयरीओ, तचित्तीए परिन्भमिउमारद्धो य देसंतरेसु, तवासिलोगोऽवि पुवदिट्ठनाएण तमागयं पेच्छिऊण मंखो आगओत्ति वाहरइ, एवं मंखली मंखोवइट्टपासंडसंबद्धेण मंखो जाओत्ति । अन्नया य सो परिभमंतो पत्तो सरवणसन्निवेसे, ठिओ गोबहुलमाहणस्स गोसालाए, तत्थ निवसमाणस्स पसूया सुभद्दा, जाओ से दारगो, कयं उचियसमए गुणनिप्फनं गोसालोत्ति नामं, संवडिओ कमेणं, अइकतो बालत्तणं, सो य दुट्ठसीलो सभावेणं, कुणइ विविहाणत्थे सभावेण, न वट्टा आणानिदेसे, सिक्खविजमाणो पवहइ पओसं । अवि यसम्माणदाणपगुणीकओवि उजुत्तणं खणं धरइ । सुणपुच्छंपिव पच्छा कुडिलत्तं झत्ति दंसेइ ॥१॥ अत्थक्कजंपिरं मम्मवेहगं कूडकवडपडिबद्धं । वेयालं पिव तं पेच्छिण को को न संकेड ॥२॥ ॥१८५॥ For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बERARMATEGORRERAKES पाव! नवमासमेत्तं गम्भे बूढोवि पालिओवि बहुं । सयवारंपि य भणिओ वट्टसि नो वयणमेत्तेऽवि ॥३॥ इय जणणीए एसो वुत्तो पञ्चुत्तरं इमं भणइ । अम्मो! ममोदरे बिससु जेण दुगुणं तुम धरिमो॥४॥ जत्थ दिवसंमि कलहं पिउणावि समं पउंजइ न एसो। भोयणरुईवि पावस्स तस्स जायइ न तत्थ फुडं ॥५॥ नीसेसदोसनिवहेण निम्मिओ निच्छियं पयावइणा । जं तारिसो न दीसइ अन्नो समिवि जयंमि ॥६॥ तह कहवि तेण नियदुट्ठिमाइ लोगो परंमुहो विहिओ। जह दुस्सीलजणाणं सो पढमनिदंसणं पत्तो ॥७॥ इय विसतरुप दिट्ठीविसोब पढमुग्गमेवि वस॒तो । दसणमेत्तेणं चिय भयावहो सो जणे जाओ॥८॥ अन्नया य सो पिउणा समं बाढं कलहिऊण तारिसयं चिय चित्तफलयं आलिहावेत्ता एकलो भमंतो उवागओ तत्थेव सालाए जत्थ भय ठिओत्ति । एसा गोसालगस्स उप्पत्ती ।। | अह सामी पढमं मासक्खमणं काऊण पारणगदिणे पविट्ठो भिक्खडा, गोयरचरियाए पत्तो विजयाभिहाणस्स सेडिस्स मंदिरं, दिट्ठो य तेण भयवं, तओ परमहरिसवसविसप्पमाणसमुच्चरोमंचमुबहतेण पाराविओ भूरिभक्खवंलजणसनिद्धाए भोयणविहीए, पाउन्भूयाणि नहयले गंभीरभेरीकारुम्मिस्सचउविहतूरसणाहाई सिंदूरपूरारुणचा मीयरधारापजवसाणाइं पंच दिवाई, वियंभिओ तियचउक्कचच्चरपहेसु विविहो साहुवाओ, निसामिओ गोसालेण एस बुत्तंतो, तओ चिंतियमणेण-अहो न सामन्नमाहप्पो एस देवज्जो, ता परिचइऊण चित्तपट्टिगापासंडं पडिव CAREKOREGARCASE For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्ताव गोशाल कस्य प्रव्रज्या . ॥१८६॥ ROCOCCARE जामि एयस्स सीसत्तणं, न कयाइ निष्फला हवइ रयणायरसेवा, एवं विगप्पमाणस्स भयवं पारिऊण पत्तो तमेव । तंतुवायसालं, ठिओ काउस्सग्गेणं, गोसालोऽवि सामिणो अटुंगं निवडिऊण चलणेसु विनवेइ एरिसमाहप्पं तुह देवजय ! नो मए पुरा नायं । कुसलोऽवि मुणइ नग्धं अहवा थवियाण रयणाणं ॥१॥ नियजणगच्चाओऽविहु वंछियसुहअत्थसाहगो जाओ। अणुकूले वा दइवे अनओऽवि नयत्तणमुवेइ ॥२॥ हवउ बहुजंपिएणं पडिवजिस्सामि तुम्ह सीसत्तं । अब्भुवगमेसु सामिय! पत्तो एको तुम सरणं ॥३॥ ___सामीवि इमं सुणित्तावि विहिपडिसेहे अकुणमाणो तुसिणिको ठिओ, इयरोऽवि निययाभिप्पाएण पडिबन्नसिस्सभावो भिक्खाए पाणवित्तिं काऊण भगवओ समीवं न मुयइ, अह बीयमासखमणपारणए आणंदनामस्स गिहवइस्स घरे गोयरचरियाए पविट्ठो भयवं, पडिलाभिओ य खजगविहीए, तइए य मासखमणपारणए सुनंदस्स मंदिरे सबकामगुणिएणंति । एत्तो चउत्थमासखमणमुवसंपचित्ताणं विहरइ, गोसालोऽवि बहुदिवससेवासंभावियपणयभावो कत्तियपुन्निमादिवसे संपत्ते पुच्छइ-भयवं! एरिसियंमि वारिसियमहूसवे किमहमज भत्तं लभिस्सामि ?, एत्थंतरे जिणवरतणुसंलीणेण भणियं सिद्धत्थवंतरेण-भद्द! अज तुम पाविहिसि अंबिलेण सम कोदवकूरं, कूडरूवगं च दक्खिणाएत्ति, सो एवं निसामिऊण सूरुग्गमाए आरम्भ सवायरेण उच्चावएसु गिहेसु परिभमिउमारद्धो, जत्थ जत्थ वच्चइ तत्थ तत्थ आरनालकल्लवियं कोदवकूरमेव लम्भइ, अह जायंमि अवरोहसमए छुहा-2 E%AC- AAAAAKA ए पाणवित्ति कामहे अकुणमाणो नामनगमेसु सामिय! मावि नयत्तणमुकेश ॥१८६॥ For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२ महा● www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिवासाभिहओ जाहे अन्नं किंपि न पावेइ ताहे एगेण कम्मारएण गेहे णेऊण जेमाविओ अंबिलोलियं कोद्दवकूरं, उवणीओ य से भोयणावसाणे रूवगो, गहिओ य तेण, नवरं वीहीए दंसिओ, कूडगो य जाओ, तओ सो 'जेण जहा भवियवं न तं हवइ अन्नह' त्ति नियइवायं गिण्हइ, भययंपि तंमि चिय कत्तियपुण्णिमादिणे निक्खमिऊण नालंदाओ गओ कोल्लागसन्निवेसं, तत्थ य बहुलो नाम माहणो तद्दिणं दियवरे परमायरणं भुंजावेद, तस्स य गिहे चउत्थमासखमणपारणगं काउकामो सामी पविट्ठो भिक्खं, दिट्ठो अणेण, तओ परमन्त्रेण घयमहुसणाहेण पडिलाभिओ, वियंभियाई पंच दिवाई । इओ य कूडगरुवयहत्थो लज्जाए मंदमंदसंचरणो । जाए वियालसमए गोसालो एइ सालाए ॥ १ ॥ जिणनाहमपेच्छतो संभंतो पुच्छई समीवगयं । लोयं जिणप्पउत्तिं पुणरुत्तं सवजत्तेणं ॥ २ ॥ जाव न कोइ निवेयइ सबाहिर अंतरं समंतेणं । नालंदं तावेसो हिंडइ सामिं निहालतो ॥ ३ ॥ न कत्थवि उवलद्धो तग्गमणविही तओ स चिंतेइ । पडिकूलो मज्झ विही पुणोवि विहिउऽम्हि एगागी ॥ ४ ॥ एवं च सुचिरं परिझूरिऊण परिचत्तचित्तफलग पमुहोबगरणो विमुक्कनियंसणो सउत्तरोहं सिरं खउराविऊण नीहरिओ तंतुवायसालाओ, तुरियं वच्चंतो य पत्तो कोल्लागे, तत्थ य बहिया जणो अण्णमण्णं एवं जंपेइ-अहो घण्णो कयउण्णो उवलद्धजम्मजीवियफलो माहणो जस्स घरंभि तहाविहमहामुणिदाणव सेण निवडिया कणगवुट्टी, तिय For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्तावः ॥१८७॥ कोल्लाके गोशालकमीलनं. NAMASALALAMAU सेहिं उग्घुटं अहो दाणं, जाओ जयंमि निम्मलो साहुवाओ, गोसालोऽवि एयम8 जणंतियाओ सोचा हट्टो एवं विचिंतेइ-जारिसं महामुणिं एए वयंति तारिसप्पभावो सोच्चिय मम धम्मायरिओ महावीरो, जेण न खलु अस्थि अन्नस्स कस्सइ तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा एवंविहा इड्डीसक्कारपरक्कमत्ति निच्छिऊण कोल्लागसंनिवेसंमि स बाहिरभंतरं सुनिउणदिट्ठीए जाव पलोएइ ताव दिहो भयवं काउस्सग्गमुवगओ, तं च पेच्छिऊण हरिसवसूससियरोमकूवो वियसियवयणो पावियचिंतारयणं व अप्पाणं मन्नतो तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं काऊण निवडिओ भयवओ चरणेसु, भालतले घडियपाणिसंपुडो य एवं भणिउं पवत्तो असरिसगुणगणरयणायरो तुमं तिहुयणस्स पुजो य । विहलियजणसाहारो य जेण ता विष्णवेमि इमं ॥१॥ पुवं वत्थाइपरिग्गहेण जोग्गो न आसि दिक्खाए । संपइ पुण परिचत्तंमि तंमि जाओ अहं जोगो ॥२॥ ता तेलोक्कदिवायर! पडिवजसु जेण संपइ भवामि । तुह सिस्सो जा जीवं एत्तो तं चेव धम्मगुरू ॥३॥ तुह थेवमेतविरहेवि नाह ! हिययं कहंपि फुटुंतं । पुणरुत्तसंगमसमीहणेण कटेण संघरियं ॥४॥ जाणामि वीयरागे कीरंतो नेव निवहइ नेहो । पेमगहिलं सचित्तं किंतु न पारेमि पडिखलिउं ॥५॥ अन्नं च-अच्छउ दूरे सेसं वियसियनवनलिणमणहरच्छीए। पेच्छसि तं तेणवि मुणेवि अन्भुवगओऽहंति ॥६॥ इय सविणयं सपणयं भणमाणे तंमि तिहुयणेकपहू । उज्झियपेमवियारोवि तस्स वयणं पडिस्सुणइ ॥७॥ ॥१८७॥ For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाणंताविहु अइदुबसीलयं भाविरं अणत्थं च । गरुया पणएसु तहावि हुंति न परंमुहा कहवि ॥८॥ एवं च सामी तेण पडिवण्णसिस्सभावेण समेओ सुवन्नखले सन्निवेसे वचइ, तस्संतरे गोवाले बहुखीरं गहाय महतीए थालीए अखंडफुडिएहिं नवएहि सालितंदुलेहिं पायसमुवक्खडेंते पेच्छिऊण गोसालो भणइ-भयवं! दर्द छुहाभिभूओऽम्हि, ता एह एत्थ पायसं परिभुंजामो, अह सिद्धत्थेण चिरकाललद्धावगासेण भणियं-भद्द! मा । तम्मसु, एसा थाली अद्धसिद्धा चेव विहडीहि, ताहे सो नियदुट्ठसीलयाए तं वयणं वितहं काउमणो गंतूण ते गोवे दाभणइ-अरे एस देवजगो तीयाणागयजाणओ एवं कहेइ, जहा-एस पायसथाली अद्धसिद्धा चेव विवजिही, ता पयत्तेण संठवेह, एवं च निसामिऊण ते भयभीया वंसदलेहिं तं पिढरं गाढं वेढिऊण रंधिउमारद्धा, अह पउरतंदुलपक्खेवविहसिया निमेसमेत्तेण फुट्टा थाली, पच्छा गोवेहिं जं जहा पावियं तीसे पायसालिद्धं कप्परं तं तहा घेत्तूण परिभुत्तं, गोसालोऽवि कंदुकबिरालोच पेच्छमाणो विलक्खो चेव ठिओ सुट्ठयरं च नियइवायं पडिवन्नो, है अह सामी बंभणगामं गओ, तत्थ य गामे दोन्नि पाडगा, तेसु दो भायरो नंदउवणंदनामाणो सामित्तं कुणंति, भुवणगुरूवि छट्ठपारणगंमि पविठ्ठो नंदपाडयंमि, दिट्ठो नंदेण, पडिलाभिओ दहिमिस्सेण वासियकूरण, गोसालोऽवि गओ इयरपाडयं, उत्तुंगपासायमवलोइऊण पविट्ठो उपनंदस्स मंदिरे, भणिया उवनंदेण कम्मयरी, जहादेहि एयस्स भिक्खंति, उवणीओ अणाए वासियकूरो गोसालयस्स, सो य तं अणिच्छंतो उवणंदं एवं निभच्छेइ ALBROSAROKAR - R MC For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्तावः गामुकोडं गिण्हह नरनाहस्स व न देह किंपि करं । विविहे कुणह विलासे अक्खलियं पात्रमायरह ॥ १ ॥ अम्हारिसाण मुनिपुंगवाण गेहंगणमुवगयाणं । वासियभत्तं दाविंतया कहं नेव लज्जेह ? ॥ २ ॥ एवं च आयन्निऊण रुद्वेण उवणंदेण भणिया दासी- भद्दे ! एयस्स चेव समणस्स सीसंमि पक्खिवसु भत्तमेयंति, ॥ १८८ ॥ ॐ खित्तं च तीए, तओ गोसालो वाढमुबूढाभिमाणो दट्ठोट्ठभिउडिभासुरो अन्नं किंपि तस्स अणत्थं काउम समत्थी गेहदुवारे ठाऊण भणइ - जइ मम धम्मायरियस्स अत्थि तवो वा तेओ वा ता एयस्स मणुयाहमस्स भवणं उज्झउत्ति, अह अहासन्निहिएहिं वाणमंतरेहिं भगवओ पक्खवायमुवहंतेहिं विउचिओ हुयवहो, दहं से मंदिरं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr तयतरं च भयवं चंपायरिं गओ, तत्थ य तइयं वासारचं टाइ, दोमासिएण य खमणेण तवोकम्ममुवसंपज, विविहाणि य उक्कुडयासणाईणि करेइ, चरिमदुमासियपज्जवसाणे य वाहिँ पारेत्ता गोसालेण समेओ कालायं नाम सन्निवेसं वच्चइ, तहिं च एगंतभूए तसपाणरहिए सुन्नागारे निसासमयंमि पडिमं पडिवज्जइ, गोसालोऽवि चवल - तणेण निरोहमसह माणो गेहदुवारदेसे निलुको अच्छर, एत्यंतरे सीहो नाम गामाहिवपुत्तो विज्जुमईनामाए दासीए समेओ भोगत्थी तं चैव सुन्नघरं पविट्ठो, तेण यं महया सहेण भन्नइ - अहो जइ कोइ एत्थ समणो वा बंभणो वा पहिओ वा वसिओ ता सो साहेउ जेण अम्हे अन्नत्थ वच्चामो, इमं च सुणिऊण सामी तात्र पडिमापडिवन्नत्तणेण तुहिको जावेद, इयरो पुण कवडेण न देइ पडिवयणं, ताणि य अणुवलद्धपडिवयणाणि निस्संकं सुरयविणोएण For Private and Personal Use Only सुवर्णखलमार्गः उप नन्दगृह दाहः कालाकगमः. ॥ १८८ ॥ Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kcbatirth.org ABCAMARHAALAAAAA% खणं अच्छित्ता नीहरिउमारद्धाणि, एत्यंतरे दुवारदेसंतरटिएण गोसालेण गच्छंती छित्ता विजुमई, तओ तीए भणियं-अजउत्त! अहं पुट्ठा केणावि, एयं च निसामिऊण सीहेण वलित्ता गहिओ बाहाए गोसालगो, भणिओ य-अरे कइयवेण अम्हे अणायारमायरमाणाणि पाससि, पुच्छिओऽपि न साहेसि जहा अहमिह निवसामित्ति निभच्छिऊण जहिच्छं पिट्टिओ लट्ठीए, गओ य सट्ठाणं, तओ-गोसालो भणइ जिणं-तुम्ह समक्खंपि एक्कओ अहयं । एवं निद्रुरघाएहिं कुट्टिओ कारणेण विणा ॥१॥न मणागंपि हु तुम्हे निवारणं कुणह तस्स पावस्स । मम घायणुजुयस्सवि जुजइ गरुयाण किमुवेहा? ॥२॥ अह जिणतणुमल्लीणो सिद्धत्थो वागरेइ गोसालं । रे दुट्ठसील! जइ तं सचं चिय सुहसमायारो ॥ ३॥ ता किं अनिमित्तं चिय तं महिलं छिवसि पाव ! गच्छंतिं । जह अम्हे संलीणा तह ठासि न गेहमज्झगओ ॥४॥ तुह पक्खं कुणमाणा अम्हेवि तुमं व नणु हणिजामो । दुट्ठोवटुंभपरा होति सदोसा अदोसावि ॥५॥ एत्यंतरंमि सामी निक्समिउं पत्तकालगामंमि । पुवविहाणेणं चिय सुन्नघरे संठिओ पडिमं ॥६॥ अह तत्थवि रयणीए गामउडसुओ उ खंदओ नाम । नियमज्जालज्जाए एइ समेओ सदासीए ॥७॥ दंतलियानामाए ताहे पुर्व य पुच्छइ इमोऽवि । गोसालोऽवि निलुको भएण गेहेक्कदेसंमि ॥८॥ विजणंति मन्नमाणो तत्तो तीए समं जहिच्छाए । उवभुंजिऊण भोगे सो निस्सरिउं समारद्धो ॥ ९॥ इमोऽवि । गोसालामबालजाए एइ समेओ मन्नमाणो तत्तो ती For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्ताव ॥१८९॥ तेसिं मिहो कहुलावसवणसंवड्डमाणपरितोसो । कहकहकहत्ति पहसइ गोसालो अह पिसाओव ॥१०॥ | पत्रालक सोचा पहसियस खंदो कोवेण जटिमुट्ठीहिं । हणिऊण तं विमुंचइ ताहे सो एइ जिणमूले ॥ ११ ॥ लगमः कुमा रसंनिवेशेभणइ य सोवालंभं नायगधम्मो किमेस संभवइ ? । पेच्छंताणवि तुम्हें जं एवमहं हणिजामि ॥ १२॥ मुनिचन्द्रा रक्खाकएण तुब्भे ओलग्गिजइ सया पयत्तेणं । जइ पुण सावि न विजइ निरत्थिया ता धुवं सेवा ॥ १३॥ अजवि सदोसाणवि पहुणो नियसेवगाण परिताणं । सबायरेण कुवंति किं पुणो नीइनिरयाणं? ॥ १४ ॥ सिद्धत्थेणं भणियं केत्तियमित्तो इमो विणिग्याओ ? । अजवि मुहस्स दोसेण नत्थि तं जं न पाविहिसि ॥१५॥ तओ सामी कुमारसंनिवेसं गओ, तत्थ य चंपगरमणिज्जाभिहाणे उजाणे पलंबियभुओ ठिओ काउस्सग्गेण, तहिं च सन्निवेसे अपरिमियधणधन्नसमिद्धो अचंतसुरापाणप्पिओ कुवणयनाम कुंभकारो परिवसइ, तस्स आवर्णमि पास-1 जिणसिस्सा ससमयपरसमयत्थपरिन्नाणनिउणा भवोयहिनिवडतपाणिगणसमुद्धरणसमत्था छत्तीसगुणरयणनिहिणो जहोवइट्ठपगिट्ठजइकिरियापरूवणापरायणा अणेगदेसंतरागयविणेयभमरलिहिजमाणसुयमयरंदा मुणिचंदा नाम सूरिणो निवसंति, ते य वाढं बुढभावमुवगया एवं विचिंतंति S॥१८९॥ सवण्णुजिणपणीओ धम्मो सवत्थ वित्थरं नीओ। मिच्छत्तवसपसुत्ता सत्ता पडिवोहिया बहुसो ॥१॥ सुत्तत्थेहि सिस्सा संपइ निप्फाइया जहासत्तिं । परिवालिओ चिरं तह सबालवुढाउलो गच्छो ॥२॥ AAAAAAAAAAAESS For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता तो जुत्तं मे विसेसपरिकम्मणं सरीरस्स । काउं जहसत्तीए सवत्थवि उज्जमेयचं ॥ ३ ॥ इय चिंतिऊण सपए निवेसिओ तेण वद्धणो नाम । सिस्सो पडिरूवगुणो विहिया से तह गणाणुन्ना ॥ ४ ॥ भणिओ य वच्छ ! गच्छो जहा मए पालिओ पयत्तेण । तुमएवि तहा एसो पालेयचो सयाकालं ॥ ५ ॥ सिद्धंतदेसणावि य अविगणियपरिस्समेण कायचा । सिस्साणं एवं चिय रिणमोक्खो कम्मविगमो य ॥ ६ ॥ तोऽवि भद्द ! भद्दं नृणं भुवणत्तएवि नो अस्थि । तो सुहसीलो होउं मुहाऍ मा हारिसिं एयं ॥ ७ ॥ भो मुणिणो ! तुम्हेहिं पट्टियवं इमस्स वकंमि । निव्भच्छिएहिवि बहुं कमकमलं नेव मोत्तत्वं ॥ ८ ॥ जं किंपि मए पु सम्मं गुणेसु नो ठविया । अपए वा सिक्खविया तं सवं मरिसणिज्जं मे ॥ ९ ॥ इय मुणिचंदमुनिंदा तक्कालोचियविहिं विहेऊण । पारंभंति सुधीरा दुक्करजिणकप्पपरिकम्मं ॥ अन्नया य ते महाणुभावा भावियदुवालसविद्यभावणा पंचण्डं तुलणाणं तवसत्तमुत्तएगत्तबलसरूवाणं मज्झयाराओ बीयाए सत्ततुलणाए अप्पाणं भावेमाणा विहरंति । इओ य-गोसालो मज्झंदिणसमए भगवंतं भणइ - एहि पत्थावो बहर, पविसामो गाममज्झे भिक्खानिमित्तं, सिद्धत्थेण भणियं-पज्जत्तं अम्ह अडणेणं, तओ गोसालो पविठ्ठो भोयणत्थं गामे, दिट्ठा य अणेण इओ तओ परिभमंतेण ते पासनाहसिस्सा विचित्तपडपाउरणा पत्तपमुहो वगरणकलिया यत्ति, ते य पेच्छिऊण गोसालेण पुच्छिया - के तुभे ?, तेहिं भणियं समणा निग्गंधा, सढकमढवि For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद दाणिम्मियमहामेहवारिधारोवसग्गावलोयणाउलफणिरायफणाफलगविरइयातुच्छ छत्तस्स पासनाहस्स सिस्सा, इति मुनिचन्द्रामहावीरच. सोचा सो सिरं धुणंतो भणइ-अहो अहो निग्गंथा दुक्करकारया तुम्हे जे एत्तियमेत्तंपि गंथमुवहंताचार्यशिष्य६ प्रस्ताव अत्तणो निग्गंधत्तणं ठावेह, अहो पचक्खमुसावाइत्तणं अहो निनिमित्तमत्तुकोसो तुम्हाणं, सबहा निग्गंथाणं मज्झे रुल्लाप: ॥१९ ॥ न केवि तुम्भे, मम धम्मायरिओ चेव दूरुज्झियवत्थाइपरिग्गहो दुक्रतवचरणनिरओ महप्पा जहत्य निग्गंथो भन्नइ, तेहि य जिणनाहं अयाणमाणेहिं उलुंठयाए भासंतं पेच्छिऊण भणियं-भद्द! जारिसओ तुमं तं मन्ने धम्मायरिओऽवि तारिसो चेव, जओ-जाणिज्जइ पुत्तविसरिसचेट्टाए जणणीए सीलसंपया, कंतिगुणेणवि मुणिजइ रयणस्स आगरस्स सुद्धी, ता अलं वनणाएत्ति वुत्ते रुढो गोसालो भणइ-जइ मम धम्मगुरुणो तयो वा तेओ वा अत्थि ता |एएसि धम्मायरियदूसगाणं पडिस्सओ डज्झउत्ति, तो तेहिं भणियं-न अम्हे तुम्ह वयणेणं डज्झामो, तो विलक्खो सो गंतूण सामि भणइ-भयवं! अज मए सारंभा सपरिग्गहा निग्गंथा दिवा एवमाइ जाव पडिस्सओ न दहोत्ति किमिह कारणं?, सिद्धत्थेण भणियं-ते पासावच्चेजा थेरा साहुणो, न तेसिं पडिस्सओ तुह वयणेण डज्झइत्ति । एत्थंतरे जाया रयणी, कजलभसलसामलाई पसरियाई दिसिमुहेसु तिमिरपडलाइं, इओ य ते मुणिचंदसूरिणो चरकमि ॥१९ तहिणे रयणीए एगागिणो उस्सग्गेण ठिया, सोऽवि कूवणयकुंभकारो सेणिभत्तमि निन्भरमहरापाणपरवसो विसंतुलघुलंतचलणो संभवणाभिमुहमइंतो पेच्छइ बाहिमि काउस्सग्गपडिवन्ने ते सूरिणो, तओ चोरो एसोति जायकुवि RASACRECCANCE सारंभा सपाहणो,न तसि ओ य ते मु SAUGOS For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यप्पेण तेण निविडकरसंपुडेण पीडियं तेसिं गलयं, निरुद्धो उस्सासपसरो, तहवि अविचलियचित्ता सुभज्झाणे वता तक्खणमेव कम्मलाघवयाए समुत्पन्नोहिनाणा कालं काऊण देवलोयं गया, तेसिं च अहासन्निहियसुरेहिं कुसुमवरिसपुचयं कया महिमा । इओ य गोसालो ते देवे विजुपुंजभासुरसरीरे उप्पयंते निवयंते य साहुनिवाससमीचे पेच्छिऊण सामिस्स साहेइ-भयवं ! तेसिं तुम्ह पडिणीयाण पडिस्सओ उज्झइ, सिद्धत्थो भणइ - भद्द ! मा एवमासंकेहि, तेसिं आयरिया देवलोगमुवगया, अओ देवा महिमं करेंति, ताहे सो कोऊहलेण गओ तं पएसं, देवावि पूयं काऊण सद्वाणं | पडिनियत्ता, अह तत्थ गंधोदकं पुप्फवासं च दट्टूण दुगुणजायह रिसो पडिस्सए गंतूण सज्झायझाणविणयकरणपरिस्संते निग्भरं पत्ते तेसिं सिस्से उडविऊण वागरेइ- अरे दुट्ठसिस्सा ! तुम्भे मुंडियसिरा चेव हिंडह, जहिच्छं भिक्खं परिभुंजिऊण सवं रतिं सुयह, एत्तियंपि न मुणह-जहा सूरिणो महाणुभावा पंचत्तमुवगया, अहो तुम्हें गुरूसु पडिबंधो, एवमाइ कलकलं करेंतंमि उट्ठिया साहुणो, णवरं तचयणासंकिया सहसा गया ते सूरिसमीवे जाव पेच्छंति कालगयमायरियं, तओ सुचिरं अद्धि का उमारद्धा । कहं ? तह पालियावि तह पाढियावि तह गुणगणेसु ठवियावि । तह सिक्ख बियावि दढं हा हा अकयन्नुया अम्हे ॥१॥ किं दुक्करतव चरणेण अम्ह किं वावि कुसलबोहेणं । किं चिर गुरुकुलसंवाससेवणाएव विलाए ॥ २ ॥ जं असरिस संजमरयणरोहणं नियगुरुंपि कालगयं । पञ्चक्खधम्मरासिंपि नेव मुणिमो पमाएणं ॥ ३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 62-642 श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्तावः ॥ १९१॥ RECENSARKARIES इय ते नियदुचरियं पुणो पुणो चेव जंपिरे समणे । गोसालो निभच्छिय बहुसो सामि समल्लीणो ॥४॥ आचार्यतओ सामी चोरागसन्निवेसं गओ, तत्थ य तद्दिवसं परचक्कभयमुवट्ठियं, तब्भएण व खंडरक्खा तियचउक्कसुन्न-13 स्यावधिः मढसभादेउलकाणणुजाणेसु अन्नेसु य तहाविहठाणेसु अपुत्वपुरिसं चारियसंकाए निभालेमाणा पेच्छंति भयवंत कालच चोराके एगंमि वणनिगुंजे फासुगविजणरूवे गोसालएण परिचुडं काउस्सग्गेण संठियंति, तं च पिच्छिऊण 'भीओ भयाई सोमाजपासई' त्ति जायसंका चिंतिउमारद्धा-अहो एरिसंमि एगंतदेसे एएसिं अवत्थाणं न कोसल्लमावहइ, तहाहि-जइ|| यन्त्यो इमे निदोसा ता किं पयडे चिय नो गाममझे वुत्था ?, अओ निच्छयं चारोवलंभत्थं परचक्कसंतिया केइ आगयत्ति निच्छिऊण पुट्ठो तेहिं सामी गोसालगो य, अहो के तुब्भे? किं निमित्तं वा एत्थावत्थाणंतिवुत्ते भयवं मोणेण चिट्टइ, गोसालोऽवि तयणुवित्तीए तहेव जावेइ, जाव य पुणो पुणो वागरिजमाणाऽवि न देंति पञ्चत्तरं ताव निभंत |चारगा एएत्ति कलिऊण तेहिं नीया कूबतडे, पारद्धा य वरत्ताएबंधिऊण तत्थ पक्खिविउं, नवरं पढमंगोसालं पक्खि-13 वंति, पच्छा तं उत्तारिऊण भयवंतं बोलिंति, एवं च उबोलणनिबोलणे कुणमाणाण सोमाजयंतीनामाओ पासजिणतित्थपडिवनसामनुप्पन्नपरीसहपराइयाओ जीविगानिमित्तधरियपरिवायगनेवत्थाओ पुत्वभणियस्स उप्पलनेमित्तियस्स ॥ १९१॥ भगिणीओ निसुणियएवंविहवइयराउ मा भयवं चरिमतित्थयरो गहियदिक्खो एस होजत्ति जायसंसयाउ जाव तत्थ पएसे आगच्छंति ताव पेच्छंति भयवंतं तहा वाहिज्जमाणंति, तओ ताहि भणियं-अरे रे दुरायारा! नूणं विण For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HARASADARSAGESCHUSARK स्सिउकामा तुम्भे जे इमस्स सिद्धत्थनरवइसुयस्स सुरविसरपणयचलणस्स एवं उवसग्गं करेह, एयं च निसामि४|ऊण भयभीएहिं सबहुमाणं खामिऊण मुक्को खंडरक्खेहि जयगुरू, तं च ताओ वंदिऊण भावसारं गयाओ सट्ठा-17 गंमि । सामीवि तत्थेव कइवय दिणाई परिपालिऊण गोसालेण समेओ नीसेसनयरमंडलमंडणाए पिट्टिचंपापुरीए गंतण चउत्थं वासारत्तं उवसंपन्जइ, वीरासणलगंडासणाइनिसेजाहिं निरंतरं जावेइ चाउम्मासियं च महाखमणं करेइ, तस्स पजंतदिणमि य अन्नत्थपारणयं काऊण कयंगलसन्निवेसंमि वच्चइ, तत्थ य दरिद्दथेरा नाम पासंडत्था है सारंभा समहिला सपरिग्गहा सपुत्तनतुगाइसयणा परिवसंति, तेसिं च गेहपाडगस्स मज्झे सकुलकमागयदेवयासमद्धासियभंतरं विउलपट्टसालपरिक्खेवमणहरं समुत्तुंगसिहरोवसोहि देवउलमत्थि, तस्स एगंतकोणे समागंतृण सामी ठिओ पडिमाए, तदिवसं च मंदमंदनिवडंतजलतुसारवायं निरारियंतसिसिरमारुयं निवडइ महंत सीयं, तेसिं च पासंडत्थाणं तंमि दिणे जाओ महूसवो, तम्मि दिणे देवउले मिलिऊण सडिंभा सदारा भत्तीए गायंति यं नचंति य, तेऽवि तहारूवे दट्टण अविगणियभाविभओ गोसालो सोवहासं भणिउमाढत्तो जत्थ गिहिणीसु पेमं झाणज्झयणेहिं सह महावरं । सुरयपवंचपरूवणपरायणाई च सत्थाई ॥१॥ जीवदयानामंपिवि न मुणिजइ जत्थ नूण सुमिणेऽवि । निब्भरमहरापाणंमि निचसो उज्जमो जत्थ ॥२॥ गाइजइ नचिजइ सबिलासं नियकुडंबसहिएहिं । को होज नाम एसोऽवि कोवि पासंडपरमत्थो ॥३॥ For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच ६प्रस्ताव कृतांगले दरिद्रस्थविराः ॥१९२॥ AARADAR ते एवं फरसक्खरं तं जपमाणं पेच्छिऊण समुप्पन्नरोसा भणंति-अरे बाहिं निच्छुभह एवं दुट्ठमुहं, न कजमेएण| इहट्ठिएणं, एवं कहिए कंठे घेत्तूण इयरेहिं निस्सारिओ देव उलस्स बाहिमि गोसालो, तहिं च हिमतुसारसंवलियानिलेण अब्भाहओ समाणो निविडवाहुवल्लरीसंछाइयवच्छत्थलो कंपंतकाओ दंतवीणावायणं कुणमाणो समुद्धसियरोमकूवो अच्छिउं पवत्तो, तारिसं च तं दट्टण जायाणुकंपहिं अइनीओ सो अन्नेहिं देवउलमज्झे, खणमेत्तं च |जायसीयावगमो नियदुट्ठसीलयं पडिक्खलिउमपारयंतो पुणोऽवि वागरेइ-'जत्थ गिहिणीसु पेम'मिचाइ, तओ पुणोऽवि नीणिओ पवेसिओ य जाच तिन्नि वारे, चउत्थवाराए भवणमज्झपविट्ठो गोसालो भणइ| दूरे अच्छउ नियमयविगप्पियं न लभए वोत्तुं । सम्भूयंपि न पावेमि भासिउं किं करेमि अहं ? ॥१॥ | नमिमो तिसंझमेयं ठाणं न जहिं सदुचरीयस्स । रूसिज्जइ थेवंपिहु जइ पर फुडवाइणो चेव ॥२॥ एवं च निसामिऊण परिणयबुद्धीहि भणिया-एस इमस्स देवजगस्स कोऽवि पीढियावाहगो वा छत्तधारगो वा पडिचारगो वा होही, ता कि अरे एएण?, तुहिक्का अच्छह, नियनियकज्जाई करेह, जइ सोढुं न तरेह ता सबतूराई वाएह, जहा से सद्दो न सुणिजइ, तहेव विहियं तेहिं, अह जायंमि पभायसमए समुग्गए दिणयरे पञ्चक्खीभूमि जीवनियरे तओ ठाणाओ पडिमं उपसंहरिऊण सामी सापत्थिं नयरिंगओ, ठिओ तीसे बाहिं पडिमाए, इओ य भोयणसमए गोसालो पुच्छइ-भयवं! तुम्भे भिक्खलु अईयह ?, सिद्धत्थो भणइ-अज अम्ह उववासो, सो पुच्छइ AAAACAREERS ॥१९२॥ न सुणिजइ, तहेव वाहका अच्छह, नियम कोऽपि पीडिया For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भयवं! अज किमाहारं भुंजिस्सामि?, सिद्धत्थो भणइ-अज तुमए माणुसमंस खाइयवं, सो भणइ-अज मए तं पभोत्तवं जत्थ इयरमंससंभवोऽवि नत्थि, किमंग पुण माणुसभंसस्स ?, एवं निच्छयं काऊण सवत्थ हिंडिउमारद्धो । । इओ य-तत्थेव नयरीए पियदत्तो नाम गाहावई, तस्स सिरिभद्दा नाम भारिया, सा य मरंतवियायणी, पुत्तभंडजीवणनिमित्तं उवयरेइ मंतवाइणो पुच्छेइ संवच्छरिए सविसेसं पूएइ देवयाओ तहवि न जाओ कोइ विसेसो, तमि य समए वेलामासे वट्टमाणे देसंतरागयं पसिद्धं सिवदत्तनामधेयं नेमित्तियं पुच्छइ-कह मम पया जीविस्सइत्ति?, तेण भणियं-जह जायमेत्तं मयल्लयं बालं ससोणियमंसं पीसिऊण दुद्धपक्खेवपुच्चयं पायसविहाणेण रंधिऊण घयमहहिं सुसंभियं काऊण सुतवस्सिणो उद्धूलियचरणस्स सबहुमाणं भोयणत्थं पणामसि ताधे पया थिरा होइत्ति, केवलं तंमि कयभोयणे सट्ठाणमुवगए गेहस्स अन्नओमुहं दारं करेजासि, मा सो कहंपि मुणित्ता भोयणसरूवं गेहं दहेजत्ति, पडिवन्नं च सयलं तीए, तम्मि य दिणे पसूया सा मएल्लयदारयं, तओ जहाभणियविहाणेण पायसं काऊण दुवारदेसे ठिया अतिहिं निहालेइ। है। एत्थंतरे गोसालो अणेगमंदिरपरिचागं कुणमाणो समागओ तं पएसं, दिट्ठो अणाए, सायरं उवणिमंतिओ य समाणो पविठ्ठो तंमि गेहे, दिनमासणमिमीए, उवविठ्ठो एसो, ठावियं से पुरओ भायणं, परिवेसियं च घयमहुस णाहं पुत्वसंसिद्धं पायसभत्तं, कहं एत्थ मंससंभवोत्ति सबुद्धीए निच्छिऊण संतोसमुबहतेण भुत्तमणेणं, भुंजिऊण ३३ महा. CACCORREC IREX For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ६ प्रस्तावः ॥ १९३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गओ भगवओ मूलं, ईसिं विहसियं काऊण भणिउं पवत्तो भयवं! तुमए चिरं नेमित्तिगत्तणं कयं, नवरि अज्ज विहडियं, सिद्धत्थेण भणियं-भद्द ! मा ऊसुगो होसु, अवितहमम्ह वयणं, जइ पुण न सद्दहेसि ता उच्चमेसु जेण पञ्चकख हवइ, तओ अंगुलिं गलए दाऊण वमियमणेण, दिट्ठा कुवियंमि पायसे मंसकेसाइसुडुमावयवा तहंसणे य रुट्टो सो तं घरं मग्गिउमारद्धो तं पुण तेहिं घरं तब्भरण चेव अन्नओमुहं कयं, सो य तंमि पएसे पुणो पुणो हिंडभाणो जाव न लहइ ताव भणइ - जइ मम धम्मगुरुणो तवतेयप्पभावो अत्थि ता उज्झउ इमो पएसो, जिणमाहप्पमवित कुणमाणेहिं अहासन्निहियवाणमंतरेहिं निद्दट्ठो सच्चो सो पएसो, भयवंपि कइवय दिणाई विगमिऊण गंतुं पयट्टो, संपत्तो हलहुयाभिहाणंमि गामे 1 तस्स वहिया अणेगसाहप्पसाहाभिरामो बहलपत्तपडलपडिखलियतरणिमंडलप भापसरो महाखंधो हलिगो नाम तरुवरो, तस्स हेडओ ठिओ भयवं काउस्सग्गेणं, इओ य सावस्थि नयरिं गंतुकामो रयर्णिमि आवासिओ तत्थेव सत्थो, सो य सीयपीडिओ संतो पज्जालिऊण जलणं सुचिरं तप्पिऊण य पभायसमए उट्ठित्ता गओ, जलणोऽवि जणेण अविज्झविओ निद्दहंतो कमेण पत्तो जिणंतियं, गोसालेण भणियं भयवं । नासह एस हुयवहो एइ, इनिणिवि सामी अविचलचित्तो तहेब जावेइ । अह पसरिएण सहसा पयकमलं झामियं सिहिणा ॥ १ ॥ गोसीसचंद पित्र तुसारवरिसं व सिसिरसलिलं व । परिभाविंतो तिवं सिहिदाहं सहइ जिणनाहो ॥ २॥ For Private and Personal Use Only गोशाल कस्य मांस भक्षणं हरिद्रे पाददाह:. ॥ १९३ ॥ Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandr www.kobatrth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra RAKEDOCTORRORISM गोसालोऽवि तहाविहमसमंजसमिक्खिऊण भयभीओ। अइदूरमवक्रतो नियजीवियरक्षणट्टाए ॥३॥ अह उवसंतमि जलणमि सामी मंगलाभिहाणे गामे गओ, तहिं च वासुदेवमंदिरे ठिओ पडिमाए, गोसालोवि निलुक्को एगत्थ पएसे, केवलं केलिकलहाइविणोयाभावेण वाढं दुक्खमणुहवंतो फालचुक्कोव मक्कडो दिसीओ अवलो४ एइ, एत्यंतरे कीलानिमित्तमागयाइं तं पएसं गामचेडरूवाइं, तो ताई पेच्छिऊण उवलद्धरयणनिहाणं व पचुजीवियं व मण्णमाणो विडंबियवयणकंदरो दूरं निल्लालियलोलजीहो पसारियबीभच्छच्छिजुयलो धाविओ वेगेण भयजणणनिमित्तं तेसिमभिमुहं ॥ अह तं भीसणरूवं दहणमतकियं समुहमितं । गामाभिमुहं भयओ चेडाई लहु पधावंति ॥१॥ धावंताणं ताणं पक्खलणवसेण केसिमवि जंघा । भज्जइ अन्नेसिं पुण फुटइ सीसं टलइ चलणो ॥२॥ इयरेसिं पुण वियलंति देहनधाई भूसणाईपि । केसि चिय वत्थाई निवडंति तदा भयवसेण ॥३॥ अह तारिसमसमंजसमम्मापियरो पलोइऊणेसि । रोसेण दोसमूलं गोसालं संपवजंति ॥४॥ रे पाव पिसाय किमम्हं चेडरूवाइँ तमिह भाएसि । इय तजिऊण तेहिं कुट्टिजइ सो दढं विवसो ॥५॥ ताहे तं हम्मंतं द8 वारिति गामजणवुड्डा । देवजगस्स एसो खु नूणं सिस्सो अओ मुयहा ॥६॥ कहमवि तेहि विमुक्को गोसालो वागेरइ जिणनाहं । किं मइ हणिजमाणे तुम्हाणं जुजइ उवेहा ? ॥७॥ For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्तावः मंगलावर्तग्रामयोः गोशालकीयं डिंभमापनं ॥१९४॥ SACSCRESCRECORE एत्तियदिणाई समसोक्खदोक्खसहणेवि नेव पडिबंधो। किं उप्पन्नो तुम्हं ? अहो सिलानिदरं हिययं ॥ ८॥ सिद्धत्थेणं भणियं-कि रूससि निन्निमित्तमम्हाणं? | अप्पाणमप्पणचिय दोसकरं भो निरंभेसु ॥९॥ अह उस्सग्गं पाराविऊण सामी तओऽवि निक्खमिउं । आवत्तनामगामे बलदेवगिहे ठिओ पडिमं ॥१०॥ तत्थवि कलहिकरुई गोसालो दारिएकवयणेण । पुवाणत्थं विसमरिऊण डिभाई भेसेइ ॥११॥ रुयमाणाई ताई गंतुं मायापिऊण साहिति । तेहि पुणोवि हणिजइ गोसालो पुवनाएणं ॥ १२ ॥ गामपहाणजणेणं भणियं किं हम्मए मुहा एसो ? । एयमनिवारयंतस्स होइ दोसो गुरुस्स इमो ॥ १३ ॥ इय कहिए झत्ति जएकचक्खुणो सम्मुहं च ते लोया । उग्गीरियदढदंडा उवट्ठिया ताडणवाए ॥ १४ ॥ एत्थंतरंमि जिणपक्खवाइणा वंतरेण सा पडिमा । लोआण भेसणत्यं नंगलहत्था समुट्ठविया ॥ १५ ॥ ताहे अदिट्टपुत्वं पडिमाचलणं पलोइउ झत्ति । भयभीया ते सामि भूरिपयारेहिं खामिति ॥ १६ ॥ खामिऊण विमुको जयगुरू चोरायसन्निवेसं गओ, तत्थ पच्छन्नपएसे पडिमं पडिवन्नो, गोसालोऽवि छुहाए परिकिलंतो पुच्छइ-भयवं! अज चरियवं न वा?, सिद्धत्थो वागरेइ-अंतरं अम्हं, तओ गोसालो पविट्ठो गाममज्झे तहिं च गोट्ठीभोयणकएण बहुभक्खभोयणजायं उवक्खडिजइ, सो य अस्थिरतणेणं केवलं देसकालो भविस्सइत्ति जाणणट्ठा निहुओ होऊण पुणो पुणो तयभिमुहमवलोयइ, तत्थ य गामे तद्दियहं महंतं चोरभयं, ताहे गामवासिणो 2525-265555 ॥१९४॥ For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जणा जाणंति - एस पुणो पुणो पलोएइ, मन्ने चारो चारिओ वा हवेज्जा, ता जइ पुण कहंपि एत्तो पुवमोसोवलद्धी | जाइज्जत्ति विगप्पिऊण गहिओ तेहिं निस्सढं हणिउमारद्धो, य, पुच्छिजमाणो जाव न किंपि जंपेइ ताव मुको कुट्टिऊण, तओ सो विलक्खो चिंतेइ अच्छउ दूरे भोयणसंपत्ती, सरीरस्सवि जं न चुको तमच्छरियं वट्टइ, अहो निकारणदुजणाण मीलगो, अहवा किमेएण ?, जइ अत्थि मम पहुणो पभावो ता उज्झउ एएसिं पावाणं मंडवोत्ति भणिए निद्दहो जिणाणुरागिणा वाणमंतरेण, जिनिंदो पहाविओ कलंबुयाभिहाणसन्निवेसाभिमुहं, तत्थ य दो पचन्तिया भायरो मेहो कालहत्थी य, सामित्तं कुणंति य, तम्मि पत्थावे कालहत्थी भडचडयरपरियरिओ करयलकलियविविहपहरणो चोराणुमग्गलग्गो जाव केत्तियंपि भूभागं गच्छ ताव पेच्छइ समुहमितं जिणं गोसालयं च, ते य दट्ठूण भणइ-के तुम्भे ?, सामी तुसिणीए जावेद, गोसालोऽवि केलिपियत्तणेण मोणमवलंबिऊण ठिओ, तओ सो रुट्ठो निस्सङ्कं हणिऊण भयवंत गोसालगं च बंधिऊण महल्लगस्स भाउणो मेहस्स पेसेइ, सो य भयवंतं तहारूवं दहूण समुट्ठिओ बंधणावणयणपुचयं पूएइ खामेइ थ, तेण किर सामी कुंडग्गामे नयरे सिद्धत्थनरवइणो समीवमुवगएण दिट्ठो आसि, अह तेण मुक्को समाणो भयवं ओहीए इमं आभोएइ अजवि बहुं कम्मं निज्जरियां, तं च सहायविरहेण निजरिडं न सक्किज्जइ, ता अत्थारियादिहंतो एत्थ जुत्तो, सो य एवं जह फलभरविणमंत ग्गसंस्ससभारपूरियं छेत्तं । दद्दूण तस्स सामी सिग्धं गहणं समीहंतो ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद, महावीरच० ६प्रस्तावः ॥ १९५॥ एगागि च्चिय लुणिउं अपारयंतो परंपि बहुलोगं । समुचियमुल्लुपयाणेण सस्सलुणणे पयट्टेइ ॥२॥ चौराके तह मज्झवि चिरभवसंभवस्स कम्मस्स निजरणिमित्तं । जुजइ अणजजणसंगएसु देसेसु विहरेउं ॥३॥ गोशालः जं तत्थ अणजजणो निकारणकोवसंगओ धणियं । उवसग्गणेण काही साहेजं कम्मनिजरणे ॥४॥ कालमेघ मीलनं इय चिंतिऊण नाहो लाढाविसए मिलेच्छजणकिन्ने । गोसालेण समेओ अह निजाओ विजियमोहो ॥५॥ अअनार्येषु अह तत्थ गयं नाहं हेरियबुद्धी' केइ पाविट्ठा । निद्वरमुटिपहारेहिं विवंति निरणुकंपा ॥६॥ विहारः, अन्ने असम्भवयणेहि तजणं हीलणं च कुवंति । अइचंडतुंडसाणेहि पेसणेणं वहंति परे ॥ ७॥ वंतरसुरऽसुरवइजक्खरक्खसपमुहमि देवसंघाए । बहुमाणपरेऽवि जिणो एगागी सहइ उवसग्गे ॥८॥ धम्मायरिओ एसोत्ति मज्झ हिययंमि निहियपडिबंधो । पट्टि ठिउ गोसालोऽवि सामिणो दुक्खमणुहवइ ॥९॥ अह तत्थ भूरितरकम्मनिजरं पाविऊण जिणनाहो। आरियखेत्ताभिमुहं आगच्छइ पुन्नवंछोव ॥१०॥ आरियखेत्ताभिमुहंमि तस्स भयवओ पुन्नकलसाभिहाणगामसन्निहिमि वट्टमाणस्स दोन्नि चोरा लाढाविसयमुसगट्ठा नीहरंता अवसउणोत्तिकाऊण जमजीहासन्निहं खग्गं उग्गिरिऊण धाविया संमुहं, एत्यंतरे पुरंदरो कहि जिणो वसइत्ति जाणणटुंजाव ओहिं पउंजेइ ताव पेच्छद थेवेणासंपत्ते आयड्डियकरवाले चोरे वहनिमित्त IP॥१९५॥ जिणस्स उवहिए, अह जायतिवकोवावेगेण तेण तहडिएणेव समुत्तुंगगिरिसिहरदलणदुललिएण निहया कुलिसेणं, For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ***** -एह पत्थ जामा,जहिच्छ भोयर्ण पवासारत्ते वाहिँ पारितो, तो भयवं विचित्तास-JI *** सामीवि गामाणुगाम विहरमाणो गओ भद्दिलनयरिं, तत्थ य वासारत्तो पंचमो समुवागओ, तो भयवं विचित्तास णाई कुणमाणो चाउम्मासियं खनणमुवसंपजइ, कमेण समइक्कते वासारत्ते वाहिं पारिता विहरमाणो पत्तो कयहै लिसमागमे गामे, तत्थ य तद्दिवसमत्थारियाभत्तं जहिच्छं भोयणं पहियकप्पडियाईण विपणामिजाइ, गोसालोऽवित दहण पविट्ठो, सामि भणइ-एह एत्थ जामो, सिद्धत्थो भणइ-अज अंतरं अम्हाणं, एवं निसामिय गओ गोसालो। अत्यारियाभत्तट्ठाणे, उपबिट्ठो भोयणत्थं, परिवेसिउमारद्धं जणेण, सो य बहुयासित्तणेण न पावइ कहिं पि तित्ति, ततो गामजणेण महलं भायणं दहिकलवियकूरस्स भरिऊण समप्पियं एयस्स, सोऽपि समग्गमवि तं भोत्तुमपारयंतो भणइ-एत्तियं न नित्थरिही, तो पाव! दुकालकवलिओब नियभोयणमाणंपि न याणसित्ति भणिऊण रोसेण खित्तं तं भायणं से मत्थयंमि जणेण, पच्छा उयरं परामुसंतो गओ सो जहागयं। पुणोवि जंबूसंडं गाममुवागयस्स जयपहुणो तहेव सो अथारियाभत्तमल्लीणो खीरं कुरं च जेमिओ तहेव पजंते जणेण धरिसिओ य, अह सामी अहाणुपुवीए विहरमाणो तंबायनामसन्निवेसं गओ, तस्स बहिया ठिओ पडिमाए, तत्थ य गामे बहुस्सुया बहुपरिवारा पासजिणसंताणवत्तिणो नंदिसेणा नाम थेरा गच्छचिंतं मोत्तूण मुणिचंद-12 सूरिणोच जिणकप्पपरिकम्मं करेंति, गोसालो य पविट्टो गाममज्झे, ते समणे सवत्थकंवलोवगरणे दद्ण पुत्वसाहूणं पिव खिंसं काऊण सामिस्स सयासमेइ, ते य नंदिसेणा थेरा तीए चेव रयणीए चउके काउस्सग्गेण निचला HAMARIGARCASSRO ***** For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वधोद्यतचौरघात जंबूखंडे नन्दिषेणा: कूपिकासंनिवेशे ग्रह श्रीगुणचंद | संठिया, पच्छा आरक्खियपुत्तेण इओ तओ परिभमंतेण चोरोत्ति कलिऊण महल्लभल्लएण आहया, तवेलं चिय महावीरच० समुप्पण्णोहिनाणा मरिउं दिवमुवगया, अहासन्निहियदेवनिवहेहि य तेसिं महिमं कीरमाणिं पासित्ता तं पएस ६प्रस्तावः गओ गोसालो, दिट्ठा य कालगया थेरा, तओ सुहपसुत्ता पडिस्सए गंतूण पडिवोहिया तेर्सि सिस्सा, निब्भच्छि४|ऊण साहिओ थेरमरणवइयरो, गओ य सट्ठाणं, जयगुरूवि कुवियसन्निवेसमेइ, तत्थवि चारियत्तिकाऊण गहिओ दंडवासिएहि, बंधणताडणपमुह कयत्थणाहिं पीडिउमारद्धो य।। अह जिणनाहे तेहिं वहिजमाणे जणे समुलावो। जाओ जह देवजो अप्पडिमो रूवलच्छीए ॥१॥ कह चारिओत्ति गहिओ किं सोऽवि करेज एरिसं कम्मं । अहवा विचित्तरूवा कम्मगई किं न संभवइ ? ॥२॥ तहविहु इमं सुणिजइ जत्थागिति तत्थ निवसइ गुणोहो। ता नूण मूढयाए एए एयं कयत्थंति ॥३॥ भोगोवभोगहेउं साहूवि विरूवमत्थमायरइ । जो वत्थंपि न वंछइ स चारियत्तं कहं काही? ॥४॥ इय लोयपवायं निसुणिऊण विजया तहा पगम्भा य । पासजिणसिस्सिणीओ तकालविमुक्कदिक्खाओ॥५॥ निबाहत्थं परिवाइयाए वेसं समुन्वहंतीओ। मा वीरजिणो होहित्ति संसएणाउलमणाउ ॥ ६॥ गच्छंति तहिं दद्रूण जिणवरं आयरेण वंदति । पच्छाऽऽरक्खिगपुरिसे तज्जति सुनिङ्करगिराए ॥७॥ रे रे किं न हयासा! सिद्धत्थनरिंदनंदणं एयं । धम्मवरचक्कवादि मुंचह ? सिग्धं च खामेह ॥८॥ MARACANCE CACASEASADALACE ॥१९६॥ For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir COCOCOMSECONOR जह रे वइयरमेयं सुणइ सुरिंदो कहपि ता नूणं । तुम्हे सरजरटे किणासगेहंमि पेसेइ ॥९॥ इय भणिए भयभीया भयवंतं ते णमंति विणयनया। खामेंति सदुचरियं निडालतलपडियकरकमला ॥ १०॥ अह तेहिं परिमुक्को भयवं वेसालिनयरिमणुसरि । चलिओ गच्छंतस्स य जाया विच्चे दुवे मग्गा ॥११॥ अह लाढाइसु देसेसु विविहतिबोवसग्गवग्गेणं । पडिभग्गो गोसालो सामि विनविउमाढत्तो ॥ १२ ॥ एकं पेच्छंतोऽविहु हणिजमाणं ममं न रक्खेसि । अन्नं तुहोवसग्गेण एइ मज्झपि उवसग्गो ॥ १३ ॥ अवरं पढमं लोगो में चेव हणइ पच्छओ तुम्हे । भोयणवित्तीवि महाकिलेसओ पइदिणं होइ ॥ १४ ॥ माणावमाणसमचित्तवित्तिणो सुण्णसेवणपरस्स । नायगधम्मोऽवि न तुज्झ कोऽवि पेच्छिजइ समीवे ॥ १५ ॥ जेण-जो सेवगंमिसुहिए नो सुहिओदुक्खिए य नो दुहिओ।सोक्खाभिकंखिणानणु सेविजइ सोऽवि किं सामी?॥१६॥ तम्हा अजवि चिरजीवियत्थिणो सोक्खकंखिरमणस्स । एत्तो तुह सेवाए देवजय ! मज्झ पजत्तं ॥ १७॥ __ इय कहिए सिद्धत्थो वागरइ करेसु जं तुहावडइ । अम्हाण एरिसच्चिय ववहरणा किमिह तुह भणिमो? ॥१८॥ एवं जाए परोप्परुल्लावे सामी वेसालीमग्गेण लग्गो, इयरोऽवि भगवओ निघट्टिऊण रायगिहमग्गेण पट्टिओ, अंतरा य करिहरिहरिणविरुयवग्धपमुहसत्तसंकुले गयणतलावलंबिदीहरतरुभीसणे निवडिओ महारपणे, तत्थ य8 चोरवइणा एगंमि महातरुसिहरे पहियजणावलोयणनिमित्तं आरोहिओ नियपुरिसो, तेण य दिट्ठो सो सच्छंद ACACACCOACACAAJCA For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्ताव: गोशालय पृथग्भवनं चौरोपसगैश्च ॥१९७॥ दलीलाए आगच्छमाणो, दहण य साहियं चोरवइणो, जहा-एगो नग्गसमणो एइ, तेण भणियं-न हरियवमत्पित्ति एस न भाइ, अन्नहा कहं एत्थ अमाणुसाए अडवीए पविसेजा?, अहवा एस कोइ दुरायारो अम्हाणं एवंविह- रूवपडिवण्णो मण्णे परिभवं उप्पाएइ, ता एउ अक्खलियगईए जेण अवणेमो से दुविणयं, एवं च जंपताणं समीवमागओ गोसालो, तो तेहिं दूराओ चिय साहिलासं-एहि माउलग! सागयं तुहत्ति भणिऊण गहिओ करेण, उहाविओ पढ़ि, मरणभयविहुरेण य उडिया अणेणं, तओ चोराहिवइणा पंचसयचोरसमेएण आरुहिऊण जहक्कम वाहिओ सुचिरवेलं, छुहातण्हापरिस्समभिहओ जया कट्टगयजीओ जाओ ताहे मोत्तूण जहाभिमयं गया तकरा, गोसालोऽवि बाढं सुट्टियसरीरो मोग्गरपहारजजरिउच्च कुलिसताडिउच्च विगयचेयण्णो तरुसंडछायाए मुहुत्तमेत्तं विगमिऊण सिसिरमारुएण उवलद्धचेयणो सोगं करेउमारद्धो, कहं ? हा दुइ दुहु विहियं हियत्थिणा नबुद्धिणा उमए । सो सामी मुको अचिंतमाहप्पपडिहत्थो ॥१॥ निदोसंमिवि नाहे कुवियप्पेहिं मए हयासेण । जाकिर कया अवण्णा सा संपइ निवडिया सीसे ॥२॥ तस्स पभावेण पुरा अणेगठाणेसु दुट्ठसीलोऽवि । निबूढोऽहं संपइ तविरहे नत्थि मे जीयं ॥३॥ अहवा-सहसचिय सम्ममचिंतिऊण कीरति जाई कजाई । अप्पत्थभोयणं पिव ताई विरामे दुहावेंति ॥४॥ मण्णे इमिणचिय कइयवेण मं छलिउमिच्छइ कयंतो। कहमनहा कुबुद्धी हवेज एयारिसी मज्झ ? ॥५॥ ॥१९७॥ For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kcbatirth.org C REAR-OCAL ता किं एत्तो सरणं सरेमि ? किंवा गई पवजामि । कस्स व पुरओ दुक्खं निवेइ होमि निचिंतो? ॥६॥ अहवा कयं विगप्पेहि नत्थि मम तिहुयणेऽवि साहारो । तं चेव धम्मसूरि मोत्तुं ता तं निहालेमि ॥७॥ इय निच्छिऊण कहमवि संसारं पिव सुभीसणमरणं । लंपित्ता गामाइसु हिंडइ सामि निरूवितो ॥८॥ इओ य-भयवं महावीरो अहाणुपुबीए परियडतो पत्तो विसालसालवलयपरिवेढियाए मयणुम्मत्तरामाभिरामाए वेसालीए नयरीए, तत्थ य बहूणं कम्माराणं साहारणाए सालाए अहासन्निहियजणं अणुजाणावित्ता ठिओ पडिमाए, अन्नया य एगो कम्मारगो रोगपीडिओ संतो छटुंमि मासे पगुणसरीरो जाओ समाणो पसत्थे तिहिमुहुत्ते मंगलतूरपुरस्सरं चंदणुक्किन्नदेहो हरहासकासकुसुमपंडुरदुकूलनिवसणो सिरे निसियदोवक्खयसरिसवो सयणजणेण अणुगम्ममाणो तमेव कम्मारसालमागओ, पेच्छइ पुरट्ठियं उद्धट्ठाणं पडिवन्नं विगयवत्थं जिणवरं, तं च दद्दूण वियंभियपलयकोवानलो पढनं चिय अमंगलरूवो नग्गओ दिट्ठो, ता अमंगलं एयस्स चेव उवणेमिति चिंतिऊण लोह-2 ४ घणं घेत्तुं धाविओ सामिवहणत्यं, एत्यंतरे सुराहिवइणा कहं नाहो विहरइत्ति जाणणनिमित्तं पउत्तो ओही, दिट्ठोटू एयरूवो वइयरो, तओ नयणनिमेसमेत्तेण आगओ चलंतमणिकुंडलो आखंडलो तं पएसं, नियसत्तीए य निवाडिओ घायगस्स चेव सिरंमि सो घणो, तग्घायाभिहओ य पत्तो पंचत्तमेसो, तओ हरी तिपयाहिणादाणपुवयं पणमिऊण जयगुरुं भणिउमाढत्तो AAAAAAAAACRECIRREGA For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री गुणचंद महावीर च० ६ प्रस्तावः ॥। १९८ ।। www.kobatirth.org निरुवमकलाणकलाव कारणं लोयलोयणाणंदं । तं पेच्छिऊण सामिय! कहमिव पावा पउस्संति ? ॥ १ ॥ तिकरणसुद्धीहि जणरखं जो समीहए काउं । तस्स तुहोवरि दुट्ठा कह वा बुद्धी पयट्टेज्जा ? ॥ २ ॥ किं अमयंपिव विसनिविसेसबुद्धीऍ कोऽवि बोहेज्जा । अहवा विमूढहिययाण होइ एसेव नूण मई ॥ ३ ॥ धुवमम्हाणं देवत्तदिवमाहप्पसंपया विहला । जा तुम्हावइविणिवारणेण नो होइ सकयत्था ॥ ४ ॥ निच्छउ सा पहुभत्तीवि कह व लक्खिजए सयण्णेहिं । जाव न निचं पासट्ठिएहिं सेविज्जसे तंसि ॥ ५ ॥ इय सुरनाहो सुचिरं उवसग्गकरं जणं समत्तिं च । दूसित्ता सुदुहत्तो नमिउं असणं पत्तो ॥ ६ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Maratha faeमाणो गामांगरसन्निवेसमागओ, तम्मि य विभेलगो नाम जक्खो, सो य पुवभवफासियसम्मत्तवसेण समुप्पण्णपरमपमोओ भयवओ पडिभापवण्णस्स अहिणवपारियायमंजरी परिमलुम्मिलंत फुलंघयधुसराहिं हरियंदणरसुम्मिस्स घुसिणघणसारविलेवणेण य पूयं परमायरेणं निवत्तेर, अह पुण को एस बिभेलगजक्खो पुवभवे आसि १, भण्णइ महाविस सिरिपुरे नयरे महासेणो नाम नरवई, तस्स सिरी नाम भजा, तीसे य असेसविन्नाणकलाकलावकुसलो सुरसेणो नाम पुत्तो, सो य संपत्तजोवणोऽवि न खिवइ चक्खुं पवररूवासुवि रमणीसु, बहुं भणिज्जमाणोऽवि न पडिवज्जइ पाणिग्गहणं, किं तु मुणिवरोध संहरियवियारो चित्तपत्तच्छेयाइविणोदेहिं कालं वोलेइ, रायावि For Private and Personal Use Only वैशाल्यां कर्म कारोपसर्गः विभे लक पूर्व भवः ॥ १९८ ॥ Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACREAUCRACCASA एरिसं तं पेच्छिऊणमचंतमाउलमाणसो अणेगेसि मंततंताइजाणगाणं एयवइयरं परिकहेइ, ते य करेंति विविहे उवाए, न य जायइ कहिंपि कुमारस्स भावपरावत्ती। अह अवरवासरंमी बाहिं नगरस्स करिवरारूढो । सह परियणेण राया नीहरिओ रायवाडीए ॥१॥ विविहपएसेसु खणं परिभमिउं वाहिउं च करितुरगे। पच्छाहुत्तं इंतो पेच्छइ नयरीजणं सयलं ॥२॥ रहतुरगजाणसिबिगापयप्पयारेण सिग्घवेगेण । कयसुंदरनेवत्थं वचंत काणणाभिमुहं ॥३॥ तं पेच्छिऊण रण्णा पयंपियं रे किमेस पउरजणो। परिमुक्कावरकज्जो वच्चइ एगेण मग्गेण ॥४॥ नो अज जेण कस्सवि महूसवो देवयाविसेसस्स । नडपेच्छणयाईयं कोउगमवि दीसइ न किंपि ॥५॥ अह परियणेण भणियं तुम्भे नो मुणह देव ! किं एयं । एत्थ समोसरिओ सूरी सूरप्पहो नाम? ॥६॥ जो तीयाणागयवत्थुविसयसंदेहतिमिरहरणेणं । पुहईए पत्तकित्ती जहत्थनामेण परमप्पा ॥७॥ जस्स पयपउमधूलीफासेणविवि विहरोगकलियावि । जायंति तक्खणं चिय मयरद्धयसन्निमा पुरिसा ॥८॥ जस्सेस दंसणेणवि समत्थतित्योहपूयसलिलं व । विद्धंसियपावरयं पाणिगणो गणइ अप्पाणं ॥९॥ जे पिउणोऽवि पणामं कुवंति न दुबहेण गवेण । जस्संहिनक्खकिरणा ताणवि सिरसेहरीभूया ॥१०॥ सूरिस्स तस्स पयवंदणत्यमेसो पुरीजणो जाइ । तुम्हंपि देव! जुत्तं पयपंकयदंसणमिमस्स ॥ ११ ॥ NCRECRUAAAAAAबाद ३४ महा. For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्तावः बीमेलकपूर्वभवाः सूरसेनचरित्रं. ॥१९९॥ ALSANGALORECAUSAMSUCCCCCESSASS एवं सोचा विम्हवियमाणसो तक्खणेण नरनाहो । उजाणस्साभिमुहं वच्चइ कोऊहलाउलिओ ॥ १२॥ ता दूराओचिय करिबराउ ओयरिय परमभत्तीए । वंदित्ता मुणिनाहं निसीयए धरणिवटुंमि ॥ १३ ॥ सूरीवि जोग्गयं से पलोइ दिवनाणनयणेण । गंभीराऍ गिराए एवं भणि समाढत्तो ॥१४॥ भो नरवर! संसारे पढम चिय दुलहो मणुयलंभो । तत्थवि य निरुवयरिया कुलरूवारोग्गसामग्गी ॥ १५॥ तीएवि पवरकरितुरयजोहरहनिवहभूरिभंडारं । भयवसनमंतसामंतमंडलं नरवइत्तंपि ॥ १६ ॥ तत्थवि सत्थत्थवियक्खणहिं अचंतभवविरत्तेहिं । कुसलेहि समं गोही दुलभा थेवमेतंपि ॥१७॥ एयं च तए सयलं संपत्तं पुन्नपगरिसवसेणं । ता एत्तो सविसेसं पाणवहाईण वेरमणे ॥ १८ ॥ नयसेवणंमि सुगुणजणंमि करुणाय दुत्थियजणाणं । धम्मत्थविरुद्धविवजणे य परलोयचिंताए ॥ १९॥ भंगुरभवभावविभावणंमि वेसइयसुहविरागंमि । तुम्हारिसेण नरवर! पयट्टियचं मणो निचं ॥२०॥ इय गुरुणा उवइढे नरनाहो पुरजणो य हिट्ठमणो । सवं तहत्ति पडिसुणिय पट्टिओ नियगिहाभिमुहं ॥२१॥ नवरं भूमीनाहो गंतुं थोवंतरं पडिनियत्तो । पुषभणियस्स पुत्तस्स वइयरं पुच्छिउं सहसा ॥ २२॥ ता एगते ठाउं बंदिय सूरि पयंपए एवं । भयवं! अगोयरं नत्थि किंपि तुह नाणपसरस्स ॥ २३॥ ता कहसु मज्झ पुत्तो भणिजमाणोवि विविहहेऊहिं । किं कारणं न वंछइ सोउं परिणयणनामंपि? ॥ २४ ॥ ॥१९९॥ For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org किं भवभएण अहवा भूयपिसायाइछलणदो सेण । धाउविवजासेण व कूरग्गहपीडयेणं वा ? ॥ २५ ॥ गुरुणा भणियं नरवर ! मा संकसु कारणाई एयाई । दढपुचभवावज्जियमेगं कम्मं विमोत्तूण ॥ २६ ॥ संजोगविओगुप्पायपलय सुहदुक्खपमुह किरियासु । सङ्घावस्थासुंपिय पभवइ कम्मं चिय जणस्स ॥ २७ ॥ रण्णा भणियं भयवं ! किं पुण एएण पुवजम्मंमि । पकयं कम्म ? साहह महंतमिह कोउगं मज्झ ॥ २८ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरिणा पvिi - महाराय ! एस तुज्झ पुत्तो पुवभवे संखपुरंमि नयरे रूवलायन्नसोहग्गाइगुणसंगओ चारुदत्तो नाम वणियसुओ आसि, तेवि एगया निकारणकुवियाए भज्जाए दुधयणेहिं तजिएण सरोसं पयंपियं-आ पावे ! तहा काहं जहा सदुक्खं जीवसि, तीए बुत्तं-जं तुह पिउणो पडिहाइ तं करेज्जासि, तओ सो एगेण नम्मसचिवेण सद्धिं कन्नगंतरपरिणयणत्थं पयट्टो गंतुं दक्खिणदिसाए, अविलंवियपयाणएहिं वचतो पवररामारयणनिहाणभूयाए पत्तो कंचीपुरीए, तहिं च पविसमाणेण दिट्ठाई परोप्परं कीलंताई डिंभाई, तेसिं च एगेण डिंभेण सुरहिमालद्दमाला अन्नस्स डिंभस्स कंठे पक्खिविउमारद्धा अन्नस्स निवडिया, तं च दट्टूण चिंतियं चारुदत्तेण - अहो सोहणी सउणो, परं दूरवगमो, जओ एसा कुसुममाला अन्नत्थ पक्खिविउमारद्धा अन्नत्थ निवडिया, अहवा किमणेण ?, चिंतियत्थसंपत्तीए सयं चैव होही एयावगमोत्ति विभाविऊण पविट्ठो सयणवग्गगेहंमि, कओ तेण ण्हाणविलेवण भोवणप्पयाणप्पमुहो से य वावारो, ठिओ ये कइवय वासराई, पत्थावे य सयणवग्गस्स सिट्रुमणेण निययप्पओयणं, पडि For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्तावः ॥ २०० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr सिद्धो य बहुप्पयारं तेण एसो । इभ य तत्थेव पुरे गंगदत्तसेडियो कन्नगा अप्पडिमरूवजोवणाइगुण कलावकलिया | कणगवइ सही जणपरिवुडा उज्जाणंमि कुसुमावचयं कुणंती सिरिदत्ताभिहाणं वणियजुवाणमवलोइऊण मयणुम्मुकसरविसरपहारजज्जरियसरीरा कहकहवि पडिनियत्तिऊण सगेहे निसट्टं निवडिया सुहसेज्जाए, वाउलतं च से मुणिऊण मेलिओ गेहजणो, पुट्ठा सरीरवत्ता, अलद्धपडिवयणेण य तेण कओ तक्कालोचिओ विही, सो य जुयाणो तसणमेत्तेणवि हरियहियओ तक्कालवियंभमाणमयणजलणजाला कला वकवलियसरीरो कहिंपि र अपायमाणो तमेव कुवलयदलदीहरच्छि चिंतंतो अच्छिउं पवत्तो, नवरं पुच्छिओ एसो एगाए पचाइगाए बच्छ ! किमेवं सुन्नचक्खुक्खेवो लक्खिज्जसित्ति, तेण भणियं-भयवइ ! किं कहेमि ?, अवलाएवि हुंतीए विसहृकंदोहदीहरच्छीए। हरियहिययस्स बढइ विहलं चिय मज्झ पुरिसत्तं ॥ १ ॥ एत्तियमेत्तेणं चिय न ठिया सा छण मयंक बिंबमुही । अवहरिउमिच्छर धुवं संपइ मह जीवियद्यपि ॥ २ ॥ ता एव ठिए भयवइ ! तमुवायं किंपि लहु विचिंतेसु । पसमियमणपरितावो जेणेस जणो सुहं वसह ॥ ३ ॥ पञ्चाइगाए जंपियं- पुत्त ! फुडक्खरं साहेसु, तओ तेण कहिओ कणगवईदंसणवत्तंतो, तीए भणियं - पुत्त ! वीसत्थो होहि, तहा करेमि जहा तीए सह निरंतरं संपओगसुह मणुहवसि, तेण वृत्तं-जइ परं तुह पसाएणंति, भणियावसाणे गया सा गंगदत्तसिट्टिणो गिद्दे, दिट्ठा य सदुक्खेण परियणेण संवाहिजमाणसरीरा कणगवई, भणियं चडणाए - भो! किं कारणं सरीरे विदुयत्तणमिमीए ?, परियणेण भणियं भयवइ ! न मुणेमो, तीए वृत्तं जइ एवं ता अवसरह, For Private and Personal Use Only सूरसेनचारुदत्तकनकवती भवः. ॥ २०० ॥ Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खणमेकं कुणह विजणं, न होइ सामन्नो एस दोसो, उवेहिजंतो जीवियंपि हरेजा, एवमायन्निऊण दिन्नं से परियणेण आसणं, विजणं च कथं, तओ तीए सुचिरं अड्डवियड्डाई पलविऊण महया वित्यरेण कओ मुद्दाविन्नासो, पारद्धं मंतसुमरणं, कुसुमक्खयखेवेण य पूइयं जोगिणीचकं, मुको हुंकारो, अचंतसमीवे य ठाऊण महामंतोष सिहो तस्स वणियस्स वृत्तंतो, कणगवईवि झत्ति तं निसामिकण पचज्जीवियव हरिसभरमुवहंती भणिउं पवत्ता - भयवइ ! एतो तुमं चैव पमाणं, तो तहा कहंपि कुणसु जह निरंतरो तेण सह संजोगो जायइ, तीए वुत्तं एवं करोमि, अह दिनतंबोला उडिया एसा, सिट्ठो य एस वइयरो तस्स जुवाणस्स, तेणावि पवरवत्थाईहिं उवचरिया एसा, अवरवासरे य तेसिं सिट्रुमेयाए, जहा-अज्ज रयणीए जामदुगंमि अइकंतंमि सोहणो मुद्दत्तो ता तुम्भेहिवि भगवओ कुसुमाउहस्स भवणे गंतचं, विवाहो कायवोत्ति, पडिवन्नं च तेहिं । इओ य सो चारुदत्तो सयणजणेण दारपरिग्गहाओ पडिसिद्धो समाणो असिद्धकज्योत्ति सोगमुहंतो तेण सहाइणा समं नीहरिऊण रयणीए सयणघराओ पसुत्तो तंमि | चेव कुसुमाउहमंदिरंमि, खणं च समागयनिदो पडिबुद्धो समाणो जाव कुसुममालानिमित्त निष्फलत्तणपमुहं पुचवइयरं विचिंतंतो अच्छइ तात्र गिहजणेण अवियाणिजंती अविमुनियर यणिविभागा अपत्तेऽवि मज्झरते परिणयणाणुरुवोवगरणहत्थाए पचाइगाए अणुगया मंदमंदमुक्कचलणा समागया कणगवई, विरइया कुसुमाउहस्स पूया, पच्चाइगाएवि भवण अंतरं करेण परामुसंतीए पत्तो चारुदत्तो, पुवभणियवणियसंकियाए सवणमूले ठाऊण भणिओ-अहो For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ६ प्रस्तावः ॥ २०१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किमेवं विलंबेसि ?, अवकमइ एस पसत्थहत्थ लग्गमुहुत्तो, एयं च सोचा चारुदत्तेण चिंतियं मन्ने एसा वराई पुवदिन्नसंकेयपुरिसबुद्धीए मं समुल्लवइ, ता जावऽज्जवि सो न आगच्छ ताव करेमि कुसुममालासउणं जहत्थयंति चिंतिऊण झडत्ति उट्ठिओ एसो, नीओ तीए कुसुमाउहस्स पुरओ, पाडिओ तचरणेसु, गहाविओ कणगावईए सभावपाडलं पाणिपल्लवं, कओ संखेवेण सेसोऽवि तक्कालोचियविही, इय वित्ते विवाहे पणमिऊण कणगवईए विसज्जिया सद्वाणं पचाइगा, भणिओ य चारुत्तो - अज्जउत्त! उत्तमाणं एसो नो सम्मओ ववहारो, ता कइवय वासराई जुज्जइ अन्नत्थ निवसिउं, पडिवन्नं चारुदत्तेण, निहरियाई कुसुमाउहरूस मंदिराओ, नवरं चारुदत्तेण मयण| पायपडणकइयवेण पडिनियत्तिऊण तं नम्मसचिवं निव्भरपसुत्तं पत्रोहिऊण सिट्ठो परिणयणवृत्तंतो, तेण भणियं - चारुदत्त ! जइ एवं ता वच्चसु अलक्खियसरूवो चिय तीए सह तुमं, अहं पुण खणंतरं एत्थेव पडिवालिऊण आगमि - स्सामि, एवं भणिए चारुदत्तो तत्रयणं पडिवज्जिय तीए समं सभयं नयरहुत्तं गंतुं पवत्तो । इओ य समइकंते रयणीए | जामदुगे पत्थावं मुणिऊण सो वणियजुवाणो विवाहसामरिंग घेत्तृण समागओ तंमि कुसुमाउहमंदिरे, मंदगिराए | भणिउं पवत्तो य-भो कणगवद्द ! एहि संपयं आगओऽहं वट्टामित्ति, सोय नम्मसचिवो केलीकिलत्तणेण इत्थीभासाए निहुयं पडिवयणं दाऊण ठिओ तदभिमुहो, तेणावि रभसभरवक्खित्तचित्तत्तणेण अविभाविऊण परमत्थं खित्ता से कंठंमि कुसुममाला, कंकणबंधपुरस्सरं च कओ पाणिग्गहो, एत्यंतरे य कहकहत्ति पहसंतेण भणियं तेण-भो For Private and Personal Use Only सूरसेन चारुदत्त कनकवतीभवः. ॥ २०१ ॥ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr भो महाणुभाव ! किं अत्थि एस ववहारो तुह नयरीए जं पुरिसो पुरिसेण परिणिजइ, सबहा असुयमदिट्ठे च चोजमिणंति जंपिऊण पलाणो वेगेणं, इयरोऽवि विलक्खमाणो एवं परिभाविउमादत्तो ! यास तु एवंविहवंचणाऍ जोग्गंसि । जं कूडकवडभरियासु पावग ! रमणीसु पत्तियसि ॥ १ ॥ किं एत्तियंपि न मुणसि जं एयाओ विचित्तसीलाओ । नियकुसलयाए सहसा सुरगुरुमधि विष्पयाति ॥ २ ॥ तथा - एगेण समं पण पहाणवयणेहिं बहुप्पयंपंति । साणंदचक्खुविक्खेवमेत्तओ अक्खिवंति परं ॥ ३ ॥ अत्रेण समंकीलति निष्भरं हरियहिययमविरामं । अवरस्स य संकेयं लीलाए चिय पयच्छंति ॥ ४ ॥ इय मूढ ! हियय ! मा तम्म निष्फलं मुणिय वत्थुपरमत्थं । अभिरमसु जहादिट्ठेसु संपयं निययकज्जेसु ॥ ५ ॥ एवं अत्ताणं संठविणागओ जहागयं । सो य नम्मसचिवो समुग्गच्छंतंमि तरणिमंडले मिलिओ चारुदत्तस्स, | तेणावि से बाहुंमि कंकणं वद्धमवलोइऊण जंपियं-अरे णवपरिणीओच लक्खिज्जसि, ता दंसेहि निययभजं, ईसिं पहसिऊण भणियं तेण - पियमित्त ! तुह पसाएण अहं सयं चिय भज्जा वट्टामि, चारुदत्तेण कहियं -कहं चिय ?, तओ | तेण सिट्ठी सञ्चो पुत्रसंतो, इमं च सोचा मुणियजहट्ठियवइयरा परिचत्तलज्जं हसिउं पवत्ता कणगवई, दिट्ठरुवाइसया य अणुरत्ता चारुदत्तंमि । अह परोप्पररूढगाढपेस्माणि ताणि पत्ताणि संखपुरं पविट्ठाणि य निययगिहं, सुहसागरावगाढाणिय वोलेंति For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ६ प्रस्तावः ॥ २०२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालं, साय पुत्र भज्जा असमंजसाई पलवंती निद्धाडाविया कणगवईए, तप्पच्चइयं च वद्धं भोगंतराइयं कम्ममणाए । कालकमेण य मरिऊण उववन्ना सा तिरिएसु, चारुदत्तोऽवि तप्परिणयणोवट्ठियवणियविसंवायण परिणामज्जियनिविडभोगंतरायपाहिज्जो कालं काऊण पत्तो तिरियत्तणं । एवं च सुचिरं तीए विप्पउत्तो संसारं परियहिऊण सुचरियसुहकम्मवसेण भो महाराय ! तुह मंदिरंमि जाओ पुत्तत्तणेणं, सावसेस भोगंतराय कम्मवसओ य पुवभवभज्जमपेच्छतो न वंछइ अन्नं परिणेउं, एवं सूरिणा कहिए सूरसेणकुमारवुत्तंते. राया विम्हियमणो गओ नयरिं । सूरीबि अन्नत्थ विहरिओ । साय कणगवई चिरभवभमणेण जायकम्मलाघवा कुसुमत्थलनयरे जियसत्तुरनो उववन्ना धूयत्तणेणं, उचियसमए कयं रयणावलित्ति नामं, सा य संपन्नजोवणावि तेण पुवभवपियपरूढपणयवसेण सुरूवंपि रायसुयनिवहमणभिलसंती कालं वोलेइ । अन्नया य तं सूरसेणकुमारं रामापरंमुहं सोच्चा नियधूयं च पुरिसपउसिणिं मुणिऊण चिंतियं रन्ना- जइ पुण एयाणं परोपरं विहिणा संजोगो काउं वंछिओ वट्टइ ता दंसावेमि एयाण परोप्परं पडिरूवाई, एवंपि कयाइ समीहियसिद्धी जाएजत्ति विभाविऊण लिहाविया रयणावलीरूवाणुगा चित्तपट्टिया, समप्पिया य दूतरस, भणिओ य एसो- अरे वचसु तुमं महासेणरण्णो समीवे, कहेमु य जहा-अहं जियसत्तुरण्णा तुह सुयस्स नियधूयादाणत्थं पेसिओहित्ति, पत्थावे य चित्तवट्टियं दंसिऊण कुमारपडिरूवं च गहाय एज्जाहित्ति, गओ य एसो, दिट्ठो राया, पत्थावे य कहियं पओयणं, राइणावि भणियं भो मुणियं मए एयं केवलं दूरट्टियाए रायसुयाए रुव For Private and Personal Use Only सूरसेनरत्नावली जन्मादि. ॥ २०२ ॥ Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वापारतरो लण सिह नरमाया एयमि । मपेच्छमाणो कहमिहडिओ कुमारो तीए पणयमुबहेजा ?, सा वा अविण्णायकुमारसरूवा सहसचिय परिणाविया पच्छा कहं न संतप्पेज्जा, ता न जुत्तमेयं । जेण| सुनिरूविऊण कीरति जाई कजाई निउणबुद्धीए । दिवाओ विहडियाणिविन ताई लोए हसिजंति ॥१॥ | एवं भणिए रना तेण उवणीया चित्तफलहिगा, राइणावि समप्पाविया सा कुमारस्स, सो य पुत्वभवपेम्मवसेण तदवलोयणे समुप्पण्णहरिसो चिरलद्धावसरकुसुमसररोसनिस्सट्ठाकुंठदुस्सहविसिहकीलिओच निचलसरीरो परिचत्तवावारंतरो थुलमुत्ताहलविन्भमसेयबिंदुजालभासुरियमालवहो जाओत्ति, तं च तहाविहं दद्ण मुणियमणोगयभावेण पासहियजणेण सिटुं नरनाहस्स, समुप्पण्णो से परिओसो, कहियं चऽणेण दूयस्स-अरे जाओ तीसे उवरि कुमारस्स पडिबंधो, नवरं रायसुया एयंमि केरिसित्ति मुणियबमियाणि । जओ एगंमि नेहनिम्भरमणमि अन्नंमि नेहरहियंमि । थीपुरिसाणं भोगा विडवणामेत्तया होति ॥१॥ अणुवक्खरियं अकुडिलं परोप्परं छिडपेच्छणविमुक्कं । उभओ चिय जंतुलं पेम्मं सलहिजइ जयंमि ॥२॥ दूएण भणियं-देव! सचमेयं, ता समप्पेह मम कुमारस्स पडिरूवयं रायसुयाए उवदंसणत्थं, राइणा कहियंजुत्तमेयं, तओ चित्तफलगे आलिहाविऊण कुमाररूवं गओ दूओ, पत्तो कालकमेण जियसत्तुनरिंदसमीवं, पणमियपायवीढो उवविट्ठो सन्निहियधरणिवढे, पुट्टो राइणा, जहावुत्तं सिटुं च अणेण, तदवसाणे य आकहिऊण दंसिया *%ANAGARAN For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir वस्था . श्रीगुणचंद |8|चित्तपट्टिगा, अवलोइया य सायरं रन्ना, चिरं निवन्निऊण पेसिया रयणावलीए, सावि तेण पुवभवपरूढपेम्मवसेण|| विरहा दातं पलोइऊण मयणभल्लिसलियहियया समुच्छलियसेयबिंदुपिसुणियवियारावि कुमारीजणोचियं लजं पमोत्तुमपार-19 ६ प्रस्ताव भयंती नियगविगारगोवणत्थं आबद्धकवडभिउडिभीसणं वयणं काऊण भणिउमारद्धा-अहो केणोवणीया एसा चित्त-| ॥२०३॥ पट्टिगा?, चेडीहिं भणियं-सामिणि! ताएण, (तीए भणियं-किमटुं?, चेडीहिं) भणियं-तुम्ह दसणनिमित्तं, तीएर भणियं-किं ममं दंसियाए ?, काऽहमेत्थ ?, गुरुजणायत्तो कण्णगालोगो हवइ, सच्छंदचारित्तणं तु परमं कुलदूसणं, ता अलमेयाए इति भणिऊण पविट्ठा भवणभंतरे, निसण्णा सुहसेजाए, तग्गया य चिरकाललद्धावसरेणं व सवंगं गहिया रणरणएणं, धाईएच अणुसरिया उकंठाए, चित्तालिहियकुमारावलोयणविरामपरिकोविएणं व बाढमालीढा परितावेण, तो तत्थट्ठाउमपारयंती कइवयपहाणचेडीपरिबुडा गया पमयवणं, तहिं च अणवरयवहंतजलजंतगंभीरघो-13 सघणविन्भमुभंतपहिछनीलकंठमणहरारावाडंबरेसु सुरहिमालइकमलपरिमलसुंदरदियंतरेसु बुच्छा खणमेकं कयलीलयाहरेसु, भणिया य चेडीओ-हलाओवाहरेह सरसनलिणनालाई विरएह सेजं, बाद दुस्सहा अज मज्झंदिणदिणयरते-| ॥२०३॥ यत्नच्छी, भट्टिदारिया आणवेइत्ति भणिऊण समासण्णसरसीओ आणीयाई नलिणीनालाई कया सेजा निवन्ना रयणा-| वली,समारद्धो अन्नहिं विमलयरसघणसारपमुहहिं वत्थूहि सिसिरोवयारो,न यमणागपि जाया से संतावहाणी। अविय-18 जह जह कीरइ तीसे सीयलवत्थूहि तणुपडीयारो। तह तह मयणहुयासो हवइ हयासो सहस्सगुणो ॥१॥ SOCTOR For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हैकिंच-उवत्तइ परियत्तइ दीहं नीससइ जंपइ न किंपि । थोयजलमज्झलीणा मीणव नरेसरस्स सुया ॥ २॥ ___एवंविहं च उहितं देहदाहं पलोइऊण पुच्छिया चेडीहिं-सामिणि! किं कारणं जमेवं अज वाढं वाउलसरीरा उवलक्खिजसि?, किमपत्थभोयणवियारो उयाहु पित्तदोसो अन्नं वा कारणंतरं?, सचहा कहेउ भगवती, जेण सा|हिजइ वेज्जस्स, कीरइ समुचियभेसहाइसामग्गी, अणुवेहणिजा खलुरोगा सत्तणो य, रयणावलीए भणियं-न मुणेमि |किंपि संपइ विसेसकारणं, चेडीहिं भणियं-सामिणि ! जप्पभिई तुमए सा चित्तपट्टिगा पलोइया तबेलंचिय जाओ |कित्तियओवि सरीरस्स अन्नहा भावो इइ अम्हे वितकेगो, निच्छियं पुण सरीरधारणं तुमं जाणेसि । तओ लक्खिय-13 दूमेयाहिति विगप्पिऊण भणियमणाए-हला! तुम्भे जाणह, तओ ताहिं चिंतियं-जाव अजवि विरहेण न बाढं वाहिजइ इमा ताव निवेएमो रनो, जेण विसमा कजगई निद्वरा सरा कुसुमाउहस्स सिरीसकुसुमकोमला सरीर-1 सिरी इमीए, न जाणिजद किंपि हवइत्ति निच्छिऊण कहाविओ एस वइयरो राइणो, तेणावि आहूया रयणावली, सपणयं भणिया य-पुत्ति ! सूरसेणकुमारेण तुमं परिणाविउमम्हे वंछामो, जुत्तमेयं?, तीए भणियं-ताओ जाणइ, तओ लक्खिऊण तदभिप्पायं राइणा भणिया नियपहाणपुरिसा-अरे गच्छह महासेणनरवइणो सयासे, आणेह सुरसेणकुमारं, जेण विवाहो लहुं कीरइ, जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण निग्गया पहाणपुरिसा, गंतुमारद्धा, कमेण य पचा सिरिपुरं, दिट्ठो राया, निवेइयं पओयणं, नरिंदेणवि पवरमंतिसामंतचाउरंगसेणाणुगओ रयणावलीविवाहनि GEECAUGUAGRAA-CARREE STORAGHAAR For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Si Kailassagarsur Gyanmandir विवाहा. भिनंदिओ राइणा, पावाहदिवसो, तओ कयमणवाडापायनरनिवहाणगाणोवि विवाहम श्रीगुणचंद मित्तं पेसिओ सरसेणकमारो, अविलंबियपयाणगेहि पत्तो सिरियलनयरसमीवं, निवेइयं जियसत्तुनरिंदस्त कुमारागमगं, महावीरच० परितुह्रो एसो, दावियं पियनिवेयगाण पारिओसियं, समाइट्ठा य अणेण नियपुरिसा-अरे मोयावेह बंधणबद्धं जणं ६ प्रस्ताव दवावेह अविसेसेण महादाणं सोहावेह रायमग्गे कारावह हट्टसोहाओ पयट्टेह महूसवं मजेह मंगलतूरं वायावेह ॥२०४॥ हरिसुकरिसकारए जमलसंखे, ढोवेह करणुगं जेण निगच्छामो कुमाराभिमुहं, संपाडियं इमं रायसासणं पुरिसेहि, निग्गओ राया, दिवो यऽणेण लच्छीसमागमसमूसुओ चेव महुमहणो कुमारो सुरसेणो, दूराचिय पणमिओ कुमारणं, गाढमालिंगिऊण अभिनंदिओ राइणा, पवेसिओ महाविभूईए पुरं, दिनो उचियठाणे जन्नावासओ, अन्नपि संपा|डियं तकालोचियं कायचं, कमेण समागमो विवाहदिवसो, तओ कयमजणो गहियसुंदराभरणो पवरचारुवारणाधिरूढो |संखकाहलागन्भगंभीरतूरनिग्घोसपूरियदिसामंडलो गहियकणयदंडधयवडग्यायनरनिवहाणुगओ मंगलपहाणगायंमतगायणसणाहपेच्छणयसंकुलो पइन्नवरवासधूलिधूसरियमणहरुत्तालनचंतवेसविलओ कुमारो सुरसेणोवि विवाहम डवमागओ, कयं से सासुयाए उचियकरणिजं, पेसिओ कोउयहरयं, दिवा अणेग पसाहिया विविहवन्नएहिं विभू|सियंगमंगा पवररयणालंकारोहिं नियंसिया निम्मलखोमजुयलयति चचिया हरिचंदणेणं पडिनद्धा सुरहिसियकुसुमदामहि, तं च दवण पुत्वभवदढपेम्मदोसेण सहसा वियंभिओ कुमारस्स अणोरपारो पेमपसरो, चिंतियं चऽणेण-अहो निरुवमा रूवसंपया अहो अखंडियपसरं सरीरलावणं, असारेवि संसारे एरिसाई कण्णगारयणाई दीसतित्ति पमोयमुव CACACANCCCCCCADA ॥२०४॥ For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RECAUSACCCCCCESS हंतो काराविओ पुंखणगाइकिचं, सविसेसं, च पूइया देवगुरुणो, पारद्धो परमविभूइए हत्थरगहो, जाओ राइणो परितोसो, सम्माणिया सामंता, कयत्थीकया तक्कुपजणा, अभिनंदिया नायरया, भमियाई चत्तारिवि मंडलाई, वित्तो विवाहमहूसवो, अनन्नसरिसं च रयणावलीए सह विसयसुहमणुहवंतस्स समइकंता कइवि वासरा । अन्नदियहे य नरवइमापुच्छिऊण तीए समेओ निययनयराभिमुहं गंतुं पयट्टो कुमारो, वचंतस्स य अंतरा समागओ वसंतसमओ। सो य पुण केरिसो?-उद्दामरामाजणमणवियंभंतपंचबाणो महुरपरहुयरववित्तासियपहियहिय ओ कुसुममयरंदबिंदुपाणपरवससिलीमुहझंकारमुहरो पप्फुल्लसहयाररेणुधूलीधूसरियसयलदिसामंडलो कुरवयकुसुमामोयहरियमहुपरियहै गणो सेवणसुहपसुरिहम्मंतपामरो जणचच्चरीतूरमहुरनिग्वोसो तरुसंडमंडवाबद्धहिंडोलयाउलो वीयरागोब अइमुत्त याणुगओ लच्छीनाहोव छप्पयरिंछोलिसामलच्छाओ माणससरोव पाडलापसूयसुंदरो तरुणीजणोच ससिणिद्धलोद्धतिलयपसाहिओ सुमुणिगणुछ असोगाणुगओ, अवि य गिम्हुण्हतावियाई पल्ललपंकुल्लियंगमंगाई। गिरिकूडा इव नजति जत्थ वणमहिसजुहाई ॥१॥ कुडयसिलिंधसिरीसाइविविहतरुकुसुमगंधरमणिजो । छज्जइ गंधियहट्टो व जत्य वरकाणणाभोगो ॥२॥ रेहंति कुसुमसंचयसमोत्थया जत्थ किंसुयसमूहा । तत्कालपहियपप्फुहिययरुहिरोवलित्तव ॥३॥ . जत्थ य परहूयकलरवगीयनिनायं रणंतअलितूरं । पवणेरियतरुपल्लवबाहुलयं नचइव वणं ॥४॥ 4%AAAACARECCAबबाद ३५महा. For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्तावः ॥ २०५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr जम्मिय पियति तरुणा दइयामुहकमललद्धसुहवासं । मइरं मयरद्धयजीवणेक्कपरमोसहिरसं व ॥ ५ ॥ वेइल्लमउलदसणा कुवलयनयणा मरालरवसद्दा । उग्गायइव जहियं उउलच्छी कमलवयणेण ॥ ६ ॥ सुमरियपणइणिवग्गं पहियसमूहं विलुत्तचेयन्नं । वउलाण कुणइ गंधो विसपुप्फाणं व पसरतो ॥ ७ ॥ जम्मिय उच्चा तरुणो वियसियसिय कुसुमगुच्छ संछन्नो । तारानियरा उलगयणदेस लच्छि विडंवंति ॥ ८ ॥ • एवं गुणाभिरामे य पत्ते वसंतसमए सो सूरसेणकुमारो तक्कालदेसंतरागयवणियजणोवणीयपवरतुरंगमाभिरूढो विसेसुज्जलनेवत्थेण परिगओ जणेण पयट्टो काणणसिरिं पेच्छिउं, गच्छंतस्स य विवसीभूओ तुरंगमो विवरीयसिक्खतणेण य जहा जहा वेगपडिखलणत्थं रजुमायड्डइ कुमारो तहा तहा अपत्थसेवाए उइन्नरोगोव वेगेण सो गंतुमारद्धो, दूरपरिमुक्कपरियणो य दुक्कयकम्मुणव निवाडिओ कुमारो एगागी महाडवीए घोडएण, परिस्समकिलंतो य मओ एसो, कुमारोवि तहाभिभूयो हओ तओ सलिलमन्नेसिउं पवत्तो, अइगंभीरयाए अडवीए कर्हिचि तमपावभाणो निसन्नो सिसिरतरुच्छायाए, चिंतिउमारद्धो य-अहो कुडिला कज्जपरिणई अहो सच्छंदाभिरई दुललिओ दहवो, जं सबहा अपरिचिंतियंपि कज्जं एवमुवदंसेइ, अहवा किमणेण ?, सत्तधणो चेव सप्पुरिसजणो होहित्ति, एवं च विगप्पमाणो जाव खणंतरं विगमेइ ताव समागओ एगो पुलिंदगो गहियकोदंडो करकलियबाणो तं पएसं, सपणयं पुच्छिओ य अणेणं, जहा - भद्द ! को एसप्पएसो ? कत्थ वा सलिललाभोत्ति ?, तेण भणियं कार्यंबरीए महाडवीए For Private and Personal Use Only सूरसेना पहार:. ॥ २०५ ॥ Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मज्झदेसो एस, सलिलं पुण एत्तो वणसंडाओ केत्तिएणवि भूभागेणं पट्टइ, केवलं दुट्ठसत्ताउलत्तणेणं न सुहगेझं, भो महाणुभाव ! जइ पिवासिओ ता एहि जेण सयमेव दंसेमि, एवमायन्निऊण पडिवन्नं कुमारणं, पयहो य तयभिमुहं, है तो पुलिंदगेण चडावियचावगुणारोवियारोवेण देसिज्जमाणमग्गो पत्तो सरोवरं, कयं जलावगाहणं, अवणीया तण्हा, अहो णिकारणोवयारी एसोत्ति चिंतिऊण कुमारेण दिन्नं से नामंकियं मुद्दारयणं, परिहियं च अणेण अंगु लीए, नीओ य तेण नियगुहाए, काराविओ कयलीफलाइणा पाणवित्तिं, अह परिणयंमि वासरे कुमारेण भणिओ द पुलिंदगो-अहो बाढं कोऊहलं मे बहुअच्छरियनिलयभूया य एसा संभाविजइ महाडवी, अहो दंसेसु किंपि अच्छरियनिलयभूयं इमीए पएसंतरं, पुलिंदगेण भणियं-जइ एवं ता एहि दंसेमि, तओ गया एग वणगहणंतरं, तं च केरिसं ?-एगत्थ रत्तचंदणालिहियमंडलगं निहित्तरत्तकणवीरकुसुमदामदंतुरं अन्नत्य मंतवाइजणहुणिज्जमाणगुग्गुलगुलिकागंधुदुयाभिरामं एगत्थ मिलियधाउवाइनिवहधमिजंतधाउपहाणं अन्नत्थ विविहोसहीरससाहिजमाणभूइयं लाएगत्थ पउमासणनिविट्ठजोगिजणपारद्धमणपरिकम्मणं, एवंविहं च तं दद्ण जायपरमविम्हएण पुच्छिओ सो कुमा रेण-मह! किं नाम एयस्स पएसस्स ?, तेण भणिय-सिद्धिखेत्तंति, कुमारेण चिंतियं-अहो नामेणवि मुणिजइ एयस्स ४ महिमासारो, ता निच्छियं तं नथि अच्छरियं जमिह न होही, अहो एवं सट्टाणे पेसिऊण असंभंतो पलोएमि द्रनिहुयदिट्ठीएत्ति विगप्पिऊण भणिओ अणेण पुलिंदो, जहा-भद्द! गच्छसु तुमं गुहाए, अहंपि खणमेकं परिभमिऊण SANSAR For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir E कनकचूड मोक्षः श्रीगुणचंद 18 विगयकोऊहलो पडिनियत्तिस्सामि, तेण भणियं-अज! न जुजइ निसाए एत्य निमसंपि वसिउं, जओ इह पाउन्भमहावीरच० वंति पिसाया मिलंति वेयालवंदाई समुच्छलंति घोरफेक्कारसहा जायंति छिद्दपवे सा, अओ अलमत्थावत्याणणे, कुमा६ प्रस्तावः रेण भणियं-जइ एवं ता तुम इहेव निलुको पडिवाडेसु खणंतरं जाव अहं संखेवेण पेक्खिउमागच्छामि, तेण भणियं-जं ॥२०६॥ मे रोयइत्ति, परं सिग्धं एजाहि जेण समइकंता जाममेत्ता रयणी, एवंति पडिव जिऊण कुमारो अइगओ वणगहणभं इतरं, पजलंतदिवोसहीपहापसारेण य इओ तओ पलोयंतो पत्तो दूरविभाग, अह एगत्थ माहवीलयाहरे जालाउलं से पजलंतं जलणकुंड पेच्छिऊण सकारणमेयंति जायबुद्धी पहाविओ वेगेण तयभिमुह, जाव केत्तियपि भूभागं बच्चा ताव निसुणइ साहगविहिवुकमंतसाहगं पडुच सको चेडयसुरं समुलवंतं, कहं तं रे मुद्ध! मरिउकामोऽसि नूण जं मंतसाहणं कुणसि । अविगपिऊण पुर्व सबुद्धिविभवस्स माहप्पं ॥१॥ किं कोऽवि तए दिठ्ठो निसुओ वा साहगो महियलंमि । जो साहमि चुक्को मुक्को हि मए जमेणं व ॥२॥ जह इयरदेवमंताण सुमरणं कुणसि तं जहिच्छाए । तह मज्झवि कुणमाणो न भवसि तं निच्छियं एत्तो ॥३॥ कयमणपरिकम्मेहिं मुणिनाहेहिवि दुसाहणिजोऽहं । पायडियकूडकवडो न चेडओ किं सुओ तुमए? ॥४॥ " इमं च भणिज्जमाणं कुमारेण निसुणिऊण चिंतियं-नूणं कोइ महाणुभावो साहणविहिपरिभट्ठो एस चेडएण निभच्छिऊण हणिजइ लग्गो, ता जुत्तं मम एयपरित्ताणंति विगप्पिऊण दाहिणकरण नीलमणिच्छायं छुरियं । ॥२०६॥ For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CAMERICACANCA धरेतो धाविओ तम्मग्गेण, दिवो यऽणेण तवेलं चिय भो भो सुरासुरा परित्तायह परित्तायहत्ति भणमाणो| चलणेसु घेत्तण चेडगेण उप्पाडिओ सिलायले पच्छाडणनिमित्तं विजासाहगो, तओ देवेसु सत्थं न कमइति चिंतिऊण मुक्पहरणो निवडिओ कुमारो चेडयसुरस्स चलणेसु, विष्णविउमाढत्तो-देव ! पसीयह पसीयह, परिचयह कोवं, मम जीविएण रक्खह एयं, को तुम्ह इमिणा सह कोवो, न हि सुकुद्धोऽवि पंचाणणो पहरइ गोमाउयंमि, किं तुम्हेवि अहमजणोचियं कम्मं काउमरिहह , इमं च सोचा इसि जायपसमो चेडगो समुलविउमारद्धो-भो ६ कुमार! अविलंघणिजोऽसि तुम, तहावि निसुणेसु एयावराह, इमिणा हि मम मंताराहणपरेणावि न संमं वहिजड़, कुमारेण भणियं-महावराहकारीवि ममं जीवियमोल्लेण मोत्तबो, मा कुणसु विहलं देवदंसणप्पवायं, चेडगेण भणियंसुयणु! किं तुमए निरवराहेण विणासिएण?, एसो चेव विणासणिजो आसि, परं तुह महाणुभावयाहयहियएण पसाउत्तिकाऊण एस परिचत्तोत्ति भणिऊण अक्खयसरीरं चेत्र मंतसाहगं मोत्तूग असणमुवग ओ चेडओ, सोऽवि मरणभयागयमुच्छाभिभूयचेयण्णो अहसन्निहियमंतसाहणत्योवणीयहरिचंदणरसेण समासासिओ कुमारेण, मुहुत्तमत्तेण य उवलद्धचेयणो पञ्चुजीवियं व अप्पाणं परिकप्पिंतो मंदमंदमवलोइउं पयत्तो, खणंतरे य समुल्विओ कुमा रण-भद्द ! निभओ निरुविग्गो अच्छसु, दूरमवतो तुह कयंतो, कहेसु परमत्थं, को तुम? किं नामधेओ? कुओ 8 वा आगओ? किमियं सुहपसुत्तकेसरिकंडूयणंव विणासपज्जवसाणं मंतसाहणं समारद्धं? कहं वा विहडियं, जीव RESS For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ६ प्रस्तावः ॥ २०७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दाइति पेममुवहंतेण भणियमणेण - सुंदर ! विजाहरो कणयचूडयनामोऽहं गयणवल्लहपुराओ चेडगसाहणं काउमिहागहो म्हि, मंतं च परावत्तयंतस्स मे कहवि भवियवयावसेण सुप्पणिहियस्सवि विसंखुलियमेक्कमक्खरं, एत्तियमेत्तावराहसंभवेऽवि परिकुविएण उप्पाडिओ सिलायले निवाडणत्थमणेणं, तक्कालं भयविद्दुरेण य न सरियाणि तणुरक्खामंतक्खराणि, तयणंतरं च न मुणेमि किंपि जायं, एत्तियमेत्तं ईसिं जाणामि जं तुमए भणियं मम जीवियमोल्लेणऽवि मोत्तवो एसत्ति, कुमारेण भणियं भद्द ! के अम्हे ?, नियसुकियदुक्कियाणि चैव सवत्थ सुहदुक्खेसु पभवंति जीवाण, कणयचूडेण भणियंको सहहेज्ज अद्दिसमाणरूवाई सुकयदुक्कयाई । तुमए सजीयदाणेण रक्खमाणेण मह जीयं ॥ १ ॥ कहमिव बहुरयणा नो वसुंधरा ? जत्थ तुम्ह सारिच्छा । पर हियकरणेकपरा अजवि दीसंति सप्पुरिसा ॥ २ ॥ जाय च्चिय नीसेसावि मज्झ नूणं समीहिया सिद्धी । दुलंभदंसणो दिट्टिगोयरं जं गओ तंसि ॥ ३ ॥ अन्नं च-तुह सच्चरिएणवि नामगोत्तमुक्कित्तियं जइवि भुवणे । तहवि सविसेसजाणणकरण तम्मइ महं हिययं ॥४॥ तओ कुमारेण मुणिऊण तदभिप्पायं साहिओ दुतुरगावहरणपज्जवसाणो सच्चो नियवइयरो, विज्जाहरेण भणियंकुमार ! किमिह मे जीवियप्पयाणत्थमेव तुम्ह आगमणं?, किं वा कारणंपि आसि ?, कुमारेण भणियं - कोऊहलेण, न पुण अन्नं कारणंतरं, विजाहरेण भणियं-जइ एवं ता कुणह ममाणुग्गहंति एह वेयडुपचयं, पेच्छइ तत्थ अणे For Private and Personal Use Only उपकार कीर्त्तनं. * ॥ २०७ ॥ Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गच्छरियाई, अणुगिण्हह नियदंसणदाणेण मम कुटुंबयंति, अचंतकोऊहलावलोयणसयण्हेण पडिवन्नं च कुमारेण । तयणंतरं सो कुमारं घेत्तूण उप्पइओ तिमिरुप्पीलसामलं गयणयलं, निमेसमेत्तेण पत्तो वेयडगिरिं पविट्ठो सभवणं, कया कुमारस्स महई भोयणाइपडिवत्ती ॥ सो य पुलिंदगो तत्थ जाममेतं पडिवालिऊण जाव कुमारो नागओ ताव वणनिगुंजेसु सुचिरं पलोइऊण दुहत्तो सगुहाए गओ ॥ कुमारोऽवि कणगचूडेण समेओ वेयगिरिपरिसरेसु सुरहि पारियायतरुमंजरी गंधुद्धरेसु विसमगिरितडनिवडंतनिज्झर झंकारमणहरेसु सविलासकिन्नरमिहुणसंगीय सदसुंदरेसु निकुंजदेसोवसोहिएसु विहरिउमारद्धो, अह परिब्भमतेण कोऊहलवियसियच्छिणा कुमारेण दिट्ठो एगत्थ सिलायले एक्कचलणावद्वंभनियमियसयलंगभारो उद्धसमुक्खित्तोभयभुयाजुवलो झाणवसनिसियनिचलपयंड मायंडमंडलुम्मुह लोयणप्पसरो निष्पकंपत्तणतुलियकुलाचलो पडिमा संटिओ एगो चारणसमणो, तं च दद्दूण अंतो विभियउद्दामहरिसवसपयट्टंतपुलयपडलेण कुमारेण भणियो कणगचूडो-भद्द। एहि एयस्स महामुणिस्स वंदणेण पक्खलियकलिमल अत्ताणं करेमोत्ति, विजाहरेण संलत्तं एवं होउ, तओ गया मुणिसमीचे, पणमिओ सविणयं, मुणिणावि जोग्गयं नाऊण पारियं काउस्सग्गं, उबविट्ठो समुचियट्ठाणे, अजवि मूलगुणट्टाणवत्तिणो एए इति परिभाविऊण भूणिया साहुणा - भो महाणुभावा! एयस्स निस्सारसंसारस्स सारमेत्तियं जं वीयरागेहिं करुणा परियरियंत करणेहिं देसिओ सहजत्तेण कीरइ धम्मो तस्स पुण मूलं अहिंसा, साय मज्जमंसनिसिभत्तपरिहारेण जहुत्ता संभवइ, तत्य For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्तावः ॥ २०८ ॥ www.kobatirth.org मजं ताव विसिट्ठजणपेयवज्झं, अमेज्झरसंपि व परिहरणिजं दूरओ, न मणसावि तपिवासा कायद्या, एयं हि पिजमाणं निद्वावेइ दक्षिणं अवणेइ विसिद्धत्तणं जणेइ उम्मायं संपाडेइ विहलत्तणं दावेइ कज्जहाणिं पयडेह अत्तमम्माणि लज्जावेद मित्ताई कलुसेर बुद्धिपसरं विनडेर कुलजाइओ भंजावेइ निम्मलं सीलं उप्पाएर वेरपरंपराओ सेर धम्मकम्माओ संजोएड अकुलीणजणमेत्तीए अभिगमावेइ अगम्माणि भक्खावेइ अभक्खाणि उवहसावेद गुरुजणं मइलावेइ सयणवग्गं बोलावेइ अबोलणिजाणि, तहा इमं हि मजपाणं मूलं असुइत्तणस्स अवगासो वेरियाणं पडिबोहो कोहाईणं संकेयद्वाणं पराभवाणं अट्ठाणीमंडवो अणत्थाणं । अवि पञ्चपि य दावे कलुभावं जमेत्थ जंतूणं । मज्जस्स तस्स का होज्ज चंगिमा पावमूलस्स ? ॥ १ ॥ चरमुग्गतालपुडभक्खणेण अत्ता विणासमुवणीओ । मा मज्जपाणवत्थाए थेवमित्तंपि संठविओ ॥ २ ॥ तोचि लोइयसाणोऽवि भइरं मुयंति दूरेण । वेयपुराणेसुंविवि निसिद्धमेअं जओ भणियं ॥ ३ ॥ गौडी पैष्टी तथा माध्वी, विज्ञेया त्रिविधा सुरा । यथैवैका तथा सर्वा, न पातव्या द्विजोत्तमैः ॥ ४ ॥ नारीपुरुषयोर्हन्ता, कन्यादूषकमद्यपौ । एते पातकिनस्तूक्ताः, पञ्चमस्तैः सहाचरन् ॥ ५ ॥ तथा - सुरां पीत्वा तु यो मोहादग्निवर्णा सुरां पिवेत् । तथा सकाये निर्दग्धे, मुच्यते किल्बिषात्ततः ॥ ६ ॥ यस्य कायगतं ब्रह्म, मद्येन प्लाव्यते सकृत् । तस्य व्यपैति त्राह्मण्यं शूद्रत्वं च नियच्छति ॥ ७ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr For Private and Personal Use Only वैताये ग मनं चार णश्रमणो पदेशः. ॥ २०८ ॥ Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org इय भो देवाणुपिया ! मज्जं पाउं न जुजइ कयावि । सग्गापवग्ग संगमसुहत्थिणो सबकालंपि ॥ ८ ॥ जहा य किर विसिठ्ठाणं मज्जमपेजं एवं मंसमवि अभक्खणिज्जं । एवं हि - अवचओ सुहज्झाणस्स पयरिसो अट्टरुद्दाणं उवसंहारो संपाइमसत्ताणं उप्पत्तिपयं किमियाणं आयंतियजीवा(बवा ) ओ सच्चावत्थासु हेऊ विसेसरसगिद्धीए कारणं पारद्धिकम्मस्स निमित्तं महारोगायंकाणं बीमच्छं पेच्छगच्छीणं |पउणपयवी दुग्गईए जलंजलिदाणं सुहाणुबंध सुहाणुभावस्स, ता को नाम सयन्नो एवंविहदोसनिहाणमिणं मणसावि समभिलसेज्जा १, अवि य धम्मे सलाह णिज्जं परपीडावज्जणं पयत्तेणं । तं पुण मंसासीणं न घडइ गयणारविंदच ॥ १ ॥ मंसमसारयस्स सरीरयस्स परिपोसणत्थिणो मणुया । भुंजंति परभवेसुं तिक्खदुखाइं अगणिता ॥ २ ॥ को नाम किर सन्नो मोहोत्तियतुच्छ सोक्खकज्जेण । अस्संखभवपरंपरदुहरिछोलिं पवट्टेजा ॥ ३ ॥ लोयसत्थेवि इमं बहुप्पयारेण भणिइनिवहेण । पयडं चिय पडिसिद्धं अविरुद्धं जेण भणियमिणं ॥ ४ ॥ हिंसाप्रवर्धक मांस, अधर्मस्य च वर्धनम् । दुःखस्योत्पादकं मांसं तस्मान्मांसं न भक्षयेत् ॥ ५ ॥ स्वमांसं पर मांसेन, यो वर्धयितुमिच्छति । उद्विनं लभते वासं, यत्र तत्रोपजायते ॥ ६ ॥ दीक्षितो ब्रह्मचारी वा यो हि मांसं प्रभक्षयेत् । व्यक्तं स नरकं गच्छेदधर्मः पापपौरुषः ॥ ७ ॥ 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ६ प्रस्तावः ॥ २०९ ॥ www.kobatirth.org आकाशगामिनो विप्राः, पतिता मांसभक्षणात् । विप्राणां पतनं दृष्ट्वा, तस्मान्मासं न भक्षयेत् ॥ ८ ॥ शुक्रशोणितसंभूतं, यो मांसं खादते नरः । जलेन कुरुते शौचं हसंते तं हि देवताः ॥ ९ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रूयन्ते यानि तीर्थानि त्रिषु लोकेषु भारत ।। तेषु प्राप्नोति स स्त्रानं, यो मांसं नैव भक्षयेत् ॥ १० ॥ नाग्निना न च सूर्येण, न जलेनापि मानव ! । मांसस्य भक्षणे शुद्धिः, एष धर्मो युधिष्ठिर ! ॥ ११ ॥ किं लिङ्गवेषग्रहणैः ?, किं शिरस्तुंडमुण्डनैः १ । यदि खादन्ति मासानि, सर्वमेव निरर्थकम् ॥ १२ ॥ यथा वनगजः स्नातो, निर्मले सलिलार्णवे । रजसा गुण्डते गात्रं, तद्वन्मांसस्य भक्षणम् ॥ १३ ॥ प्रभासं पुष्करं गङ्गा, कुरुक्षेत्रं सरस्वती । देविका चन्द्रभागा च, सिन्धुश्चैव महानदी ॥ १४ ॥ मलया यमुना चैव, नैमिषं च गया तथा । सरयू कौशिकं चैव, लौहित्यं च महानदम् ॥ १५ ॥ एतैस्तीथैर्महर्द्धिक्यैः कुर्याचैवामिषेचनम् । अभक्षणं च मांसस्य, न च तुल्यं युधिष्ठिर ! ॥ १६ ॥ यो दद्यात्काञ्चनं मेरुं, कृत्स्नां चैव वसुन्धराम् । अभक्षणं च मांसस्य, न च तुल्यं युधिष्ठिर ! ॥ १७ ॥ हिरण्यदानं गोदानं भूमिदानं तथैव च अभ० ॥ १८ ॥ कपिलानां सहस्रं तु मासे मासं गवां ददे । अभ० ॥ १९ ॥ इय लोइयसत्थेवि परिहरणिजत्तणेण निहिं । मंसं महाविसंपिव किं पुण लोउत्तरे समए १ जह मज्जमंसविरई बहुदोसत्तेण होइ कायद्या । तह रयणिभोयर्णपिवि परिहरणिज्जं सयन्नेहिं ॥ 1 ॥ २० ॥ २१ ॥ For Private and Personal Use Only मद्यमांस निशाभोजनदोषाः, ॥ २०९ ॥ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जइविहु फासुगमन्नं कुंथूपणगा तहावि दुप्पस्सा । पञ्चक्खनाणिणोवि हु राईभत्तं परिहरंति ॥ २२ ॥ जइविहु पीवीलिगाई दीसंति पईवजोइउजोए । तहवि खलु अणाइन्नं मूलवयविराहणा जेण ॥ २३॥ इय भो देवाणुपिया! संसारतरुस्स रुंदकंदसमं । मजं मंसं निसिभोयणं च नाउं परिचयह ॥ २४ ॥ किं वा मूढा अच्छह नो पेच्छह छिडपाणिपुडपडियं । सलिलंपिव विगलंतं पइसमयं चेव नियजीयं ॥ २५॥ केत्तियमेत्तं एवं ? अजवि संसारचारगविरत्ता । रजंपि विवजित्ता पवजं संपवजंत्ति ॥ २६ ॥ एवं च मुणिणा कहिए कणगचूडो समुट्ठिऊण परमं भवविरागमुबहतो निवडिओ मुणिचलणेसु, भणिउमाढत्तो यभयवं! जाव कुमारं संठावेमि ताव तुम्ह समीवे पञ्चज्जापडिवत्तीए करेमि सफलं नियजीवियं, मुणिणा भणियं-एसो चिय परिच्छेओ भवपासस्स, अओ जुजइ तुम्हारिसाण काउमेयं । एत्यंतरे कुमारोऽवि जायसंवेगो पणामं काऊण भणइ-भयवं! ममंपि मज्जमंसनिसिभत्ताणं आमरणतं देह पञ्चक्खाणं. साहुणावि नाऊण जोग्गयं दिन्नं से पचलक्खाणं, तओ गुरुं वंदिऊण गया सगिह, पवराभरणाइदाणेण सम्माणिऊण भणिओ कुमारो कणयचूडेण, जहा कुमार! भवविरत्तोऽम्हि, संपयं दिक्खागहणेण विगयपावं अत्ताणं करिस्सामि, अओ तुम साहेसु जं मए कायद, कुमारेण भणियं-किमहं साहेमि?, दुप्परिहारो तुम, केवलं चिरकालविमुक्को गुरुजणो मम दंसणूसुओ कहंपि वट्ट KARTA EKASACRECORNSARKARI For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir - - वैराग्य श्रीगुणचंद द इत्ति बाढं परितप्पइ मणो, कणयचूडेण भणिय-जइ एवं ता वच्चामो तत्थ, पडियन्नं कुमारेण, तओ विमाणमारु-द महावीरच. हिऊण दोवि गंतुं पयट्टा। कुमारा६ प्रस्ताव न्वेषणाच PI इओ य तं सेनं दुद्वतुरगावहरियं कुमारं सुचिरं अरने पलोइऊण कहवि अपत्तवत्तं निराणंदं निरुच्छाहं गयं ॥२१॥ |सिरिपुरं नयरं, निवेइया नरवइस्स कुमारवत्ता, तओ राया अवहरियसबस्सो इव संतावमुबहतो परिचत्राणमो यणो चाउरंगिणीए सेणाए अणुगम्ममाणो अंतेउरेण दुस्सहदुक्खक्तहिययाए रयणावलीए य समेओ निग्गओ नयराओ कुमारनेसणनिमित्तं, पत्तो य कमेण तं चेव कायंबरीए मज्झदेसं, पेसिया कुमारावलोयणत्थं सबत्थ पुरिसा, समारद्धा य निरूविउं, अन्नया इओ तओ परिममंतेहिं दिवो सो पुलिंदगो, पलोइयं च से अंगुलीए कुमा-18 रनामंकियं मुद्दारयणं, तं च दहण जइ पुण अणेण विणासिओ होज कुमारोत्ति कुविकप्पकलुसियहियएहि उवणीओ सो नराहिवस्स, तेणावि अणाउलहियएण पुच्छिओ एसो-अहो मुद्ध! मह अवितहं साहेसु कत्तो एस मुद्दारयणलाभो ? कत्थ वा कुमारोत्ति भणिए सो पुलिंदगो अदिट्टपुर्व हरिकरिरहभडभडं रायलच्छि पेच्छिऊण जाय ॥२१ ॥ |संखोभो अइविअहं खलंतक्खरं कुमारवत्तं कहिउमारद्धो, तओ राइणा भणियं-अरे अवरोप्परविरोहिणा वयणसंद दम्भेण मुणिज्जइ जहा कुमारो अणेण विणासिओत्ति, कहमन्नहा मुद्दारयणलाभो हवेजा ?, न हि जीवंतस्स भुय गाहिवस्स फणारयणं केणावि घेत्तुं पारिजइ, एवं ठिएवि पंचरत्तंजाव सुसंगोवियं करेह एयं, ण मुणिजद कोऽवि AAKAKARA SAGAR For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sivi Kailassagarsur Gyanmande KECHASSISHWARIA परमत्थो, गंभीराइं विहिविलसियाइति भणिए पुरिसेहिं निगडिओ पुलिँदो, राया हि संदेहदोलाहिरूढो अंसुजलत पुनलोयणो मन्नुभरं रोविउं पवत्तो, अह पसरिया कुमारपंचत्तगमणवत्ता खंधावारे, दूमिया सामंता, विच्छायत्तं पत्तो पायकजणो, विमणदुम्मणीभूया मंतिणो,हाहारवगभं रोविउमारद्धमंतेउरं, चिरं अकंदिऊण सोगभरभारियंगी। निस्सटुं निवडिया धरणिवढे रयणावली, समासासिया कहकहवि चेडीचकवालेण, एत्यंतरे जाया रयणी, अंजणगिरिविन्भमाइं वियंभियाई तिमिरपडलाइं, एवं च कमेण पत्ते मज्झरत्तसमए रयणावलीए भणिया निययधावीअम्मो! किं एत्तिएवि गए धरियावं नियजीवियं मए सहिअबाहीणजणप्फेसणा दट्ठवाइं पियगेहे सामलाई सयणाण वयणाई सुणियबाई अकारणकुवियखलदुखयणाई, ता सावियासि तं मए नियजीविएण, मा अन्नहा काहिसि, होसु। संप सहाराणी, पजत्तं पेमुभवसुहेण जस्स एरिसा गई ॥ अवियकिंपागतरुस्स फलं उब जंतं जणेइ पज्जंते। दुक्खं पियजोगो पुण पढमारंभेऽवि विद्दवइ ॥१॥ करिकन्नविजुसुरचावचावलेणं विणिम्मियं मन्ने । पियजणसंगमसोक्खं नूणं विहिणा हयासेण ॥२॥ तेणेव पंडिया परिहरंति पेम्म अहिं विलगयं व । जाणति जेण पियविप्पओगविसवेगमाहप्पं ॥३॥ अंबधाईए भणियं-पुत्ति ! कस्स कजस्स ममं सहायणी पत्थेसि?, तीए भणियं-अम्मो! दुस्सहविरहहुयासणपरितावियस्स नियजीवियस्स परिचागकएणं. धावीए भणियं-बच्छे। मा सुगा होसु, अजवि न मुणिजइ ३६ महा० For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रागुणचद ||कोऽवि निच्छओ, पच्छावि सुलभो चेव मरणाभिलासो, तओ रयणावलीए सुणिऊण तीसे निसेहपरं वयणं फयरत्नावलीमहावीरच० मोणं, खणंतरेण य दिद्धिं से वंचिऊण परियणेण अमुणिजमाणा निग्गया आवासाओ, पविट्ठा दूरदेसपरिसंठियंमि पाशवन्धः ६ प्रस्तावः वणनिगुंजे, जोडियपाणिसंपुडा य भणिउं पवत्ता॥२११॥ भो काणणदेवीओ! वयणं मे सुणह मंदपुन्नाए । को अन्नो इह ठाणे ? साहिजइ जस्स नियकजं ॥१॥ एसाऽहं दुहहे विरूवलक्षणचएण निम्मविया । परिणयणुत्तरकालंपि जीए जाओ इमो विरहो ॥ २॥ एत्तो तुज्झ समक्खं अत्ताणं तरुवरंमि लंबित्ता । मोएमि अजसकालुस्सकलुसिएणं किमेएण! ॥३॥ सिरिपुररायतणुभव! तुमंपि दूरट्ठिोऽवि लक्खिजा। जह तीऍ वराईए मम विरहे उज्झिओ अप्पा ॥४॥ इय भणिऊण संजमिओ केसपासो निविडमापीडिया नियंसणगंठी उत्तरिलवत्थेण रइओ तरुसाहाए पासओ आबद्धो नियकंधराए, मुक्को अप्पा, एत्यंतरे सेजाए तमपेच्छमाणी अणुमग्गेण धाविया अंबधाई, पत्ता कम्मधम्महै। संजोएण तं पएसं, चंदजोण्हाए य लंबमाणादिद्वारयणावली, तओ हाहारवं कुणमाणी तक्कालिययं पडियारं काउमस मत्था लग्गा वाहरिउं-भो भो सुरविंतरखयरा! परित्तायह परित्तायह, इममि इत्थीरयणमि देह पाणभिक्खं, छिन्नह |पासगं, मा अंगीकरेह उवेहाजणियं पावपंकति । इओ य कणगचूडो सुरसेणकुमारो य पत्ता तं पएस, सुणिया ॥ ॥२११॥ एसा उग्घोसणा, तओ गयणाओ ओयरिऊण छिन्नो से पासओ संवाहियं अंग, पुच्छिया य अणेहिं-सुयणु! को MUSICIANSAANIG A. COM For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr एरिसदुरज्झवसायस्स कारणं जाओ ?, रयणावलीए चिरं निस्ससिऊण भणियं-दुक्कियकम्माई, कुमारेण भणियं -तहावि विसेसेण साहेसु, जइ एवं ता सुरसेणकुमारस्स महासेणतणयस्स विरहोत्ति, तओ पञ्चभिन्नाया कुमारेण, भणिया य-जइ एवं ता पज्जत्तं एत्तो दुरज्झवसाणेणंति वृत्ते जायपञ्चभिन्नाणा लज्जावसनिमिलंतलोयणा तुण्डिका ठिया रयणावली, मुणियपरमत्थाए 'सागयं सागयं चिरागयकुमारस्स'त्ति जंपियं धावीए, निवेइओ नरिंदस्सागमणवृत्तो य । एत्थंतरे विन्नत्तं विज्जाहरेण-कुमार ! पडिपुन्नमणोरहा तुम्भे, ता अणुजाणह ममं सट्ठाणगमणाय संपयं, अह तविओगकायरमणेण कहकहवि विसज्जिओ सो कुमारेण, गयमेत्तेण य तेण पडिवन्ना भावसारं चारणमुणिसमीवे पचज्जा । कुमारोऽवि रयणावलीए समेओ गओ संधावारं, मिलिओ राइणो, सिट्टो निययुत्तंतो, जायं वद्धावणयं मुको सम्माणिऊण सो पुलिंदगो, पडिनियत्तो य राया सनयराभिमुहं, पत्तो य कालकमेणं, समप्पिओ कुमारस्स सुंदरो पासाओ, तत्थ ठिओ य गमेइ वासरे विविहकीलाहिं । अन्नया य सो पंचत्तमुवागओ महसेणराया, कयाई कुमारेण मयगकिचाई, पडिवण्णं च रज्जं, परिवालेइ रायनीतीए पुहई । अन्नया य सो कणयचूडो मुमुणियमुणिधम्मो अहिगयत्तत्थो विहरमाणो समागओ वाहिरुजाणे, विन्नायतदागमणो वंदणत्थमागओ सुरसेणनरिंदो, बंदिओ अणेण परमभत्तीए, दिन्नासीसो य निविट्ठो गुरुपायमूले, कहिओ साहुणा जिणप्पणीयधम्मो, पडिबुद्धा बहवे पाणिणो, धम्मकहावसाणे य मुणिणा पुच्छिओ राया-सम्मं निवर्हति चिरगहिया मज्जमंसनिसिभोयणवेरमणरूवा For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगणचंद अभिग्गहत्ति, रायणा भणियं-बाद निवहंति, तओ पुणो समणेण भणिओ राया, जहा-पडिवजसु असेसदोसरहियं कटपूतनोमहावीरच० जिणनाहं देवबुद्धीए, अंगीकरेसु सम्मत्तं, परिचयसु कुवासणासमुत्थं मिच्छत्तं, एत्तियमेत्तेणवि कएण परमत्येण कयं पसगे:. ६ प्रस्ताव चिय परभवहियं, रायणा भणियं-एवमेवं, पडिवन्नो मए एत्तो जिणधम्मो, जाया तुम्हाणुभावेण मम मिच्छत्तचा॥२१२॥ लियबुद्धी, सबहा कयत्थीकओ तुम्भेहिंति अभिनंदिऊण य गओ जहागयं, मुणीवि कप्पसमत्तीए विहरिओ अन्नत्थर अन्नया राया तहाविहसमुप्पन्नसरीरवेयणो अविसुद्धज्झवसाणवसदूसियसम्मत्तो कालं काऊण उववन्नो जक्खत्तणेण । एसा बिभेलगजक्खस्स मूलुप्पत्ती ॥ द अह महावीरजिणवरो तस्स बिभेलगजक्खस्स उज्जाणाओ निक्खमित्ता सालिसीसयनामस्स गामस्स बाहिरु जाणे संठिओ पडिमाए, तम्मि य समए माहमासो वट्टइ, तत्थ कडपूयणा नाम वाणमंतरी, सा य सामिस्स तिविट्ठभवे वट्टमाणस्स विजयवई नाम अंतेउरिया आसि, तया य न सम्म पडियरियत्ति परं पओसमुबहंती मया समाणी 8| संसारपरिभमणवससमासाइयमाणुसत्ता बालतवायारेण पावियवंतरीभवा पडिमोवगयस्स जिणस्स पुषवरेण तेयम सहमाणा तावसीरूवं विउबइ, तओ वकलनियंसणा लंबंतगुरुजडाभारहिमसीयलसलिलेण सर्व सरीरं उल्लिऊण सामिस्स उवरि ठिया, अंगाणि धुणिउं पयत्ता, तयणंतरं चहिमकणनिवहुम्मिस्सा अइसिसिरसमीरणेण परिगहिया। लग्गति जिणंगे सलिलबिंदुणो बाणनिवहन ॥१॥ SHOCTORGACASSACARTOCAL ॥२१ For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पइसमयं विहडियजडकडप्पवक्कलगलंतजलकणिया । अंतो विसंति तणुणो जयगुरुणो दुस्सहा धणियं ॥२॥ पयईए चिय माहुन्भवस्स सीयस्स दुस्सहं रुवं । किं पुण परोटदुचेट्ठवंतरीसत्तिपग्गहियं ॥३॥ पागयनरस्स तारिससीउब्भववेयणाविणियस्स । फुट्ट देहं निरुवकमाउयत्ता ण उण पहुणो॥४॥ इय चउजामं रयणि जिणस्स सीओवसग्गसहिरस्स । सविसेसं संलग्गं धम्मज्झाणं भवुम्महणं ॥५॥ तओ तदहियासणेण जायंमि विसेसकम्मक्खए वियंभियं ओहिनाणं, सवं च लोगं पासिउमारद्धो, पुवं पुण 8 गम्भसंभवाओ आरब्भ सुरभवकालमित्तो ओही आसि, एक्कारसय अंगाणि सुयसंपयं होत्था, अह कडपूयणा निप्प कंप भयवंतं वियाणिऊण रयणिविराममि पराजिया समाणा उवसंता कयपच्छावाया य भत्तीए पूर्य काऊण गया सहाणं। सामीवि तत्तो निक्खमित्ता भहियं नाम नयरिं छटुं वासावासं काउमुवागओ, गोसालगोऽवि मिलिओ छ?मासाओ, सामि दद्ण जायहरिसो नमिऊण पायपंकयं पमोयमुवगओ समाणो पुवपवाहेण पजुवासिउं पवतो, सामीवि तत्थ विचित्ताभिग्गहसणाहं चाउम्मासखमणं काऊण वासारत्तपज्जंते बाहिं पारेत्ता गोसालेण समेओ मगहाविसए अट्ठ मासे उउबद्धे निरुवसग्गं विहर।। I सत्तमं च वासारत्वं काउकामो आलहियं नाम नयरिं एइ । तत्थवि चाउम्मासखमणाणंतरं बाहिं पारेत्ता कंडागनामसन्निवेसमुवागच्छइ, तहिं च उत्तुंगसिहरस्स महुमहणभवणस्स समुचिए एगदेसे ठिओ काउस्सग्गेण सामी,181 SAGARAAGAR For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ६प्रस्ताव चेष्टा. ॥२१३॥ GOCCASCASSSSSSSSS गोसालोऽवि जीयरक्खं व जिणनाहमाहप्पमुबहतो चिरकालं संलीणयापीडिओ अविगणियपडिभओ दूरपरिचत्तल-11 गोशालकज्जावलोवो भंडोब महुमहपडिमामुहे अहिट्ठाणं दाऊण ठिओ। एत्थंतरे पुप्फपडलगहत्थो धूवकडच्छुयसमेओ समागओ देवञ्चगो, दूराउ चिय तहट्ठियं दहण गोसालयं सविम्हयं चिंतियमणेण- . वोलिणो बहुकालो देवमिमं मज्झ पूयमाणस्स । न य दिट्टो कोइ मए कुणमाणो एरिसं भत्तिं ॥१॥ ता किं होज पिसाओ कोऽवि इमो अहव गहपरिग्गहिओ। धाउविवज्जासबसेण किं नु एवं ठिओ कोऽवि ? ॥२॥ इय भावेतो जाहे भवणभंतरमुवेइ ताहे सो। समणोत्ति नग्गभावेण लक्खिओ तेण छेएण ॥३॥ परिचिंतियं चऽणेणं जइ दंडमहं इमस्स काहामि । तो जाणिस्सइ लोगो जह दुट्ठो धम्मिओ एस ॥४॥ तम्हा गामस्स परिकहेमि सोऽविय सयंपि दहण । एयस्सुचियं काही किं मम इमिणा अणत्थेण? ॥ ५ ॥ इय चिंतिऊण सिटुं जणस्स तेणावि तत्थ गंतूण । तह चेव ठिओ दिवो गोसालो वासुदेवपुरो॥६॥ . कुविएण जट्ठिमुट्ठीहिं कुट्टिओ गहिलओत्ति काऊण । मुक्को चिरेण कहवि हु जणेण सो जजरसरीरो॥७॥ मुक्कंमि तंमि सामी मद्दणनामंमि सन्निवसंमि । गंतुं बलदेवगिहे फासुयदेसे ठिओ पडिमं ॥८॥ ॥२१३॥ दुस्सिक्खियत्तणेणं गोसालो पुण मुगुंदपडिमाए । लिंगं दाऊण मुहे अपमत्तो अच्छइ मुणिध ॥९॥ तत्थवि पुषपवाहेण गामलोगेण जायकोवेणं । सुचिरं निस्सटुं ताडिऊण तो तंमि परिचत्ते ॥ १० ॥ For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SADORAKHARKARISM पहु सालगाभिहाणे गामे तत्तो विणिक्खमेऊणं । सालिवर्णमि जिणिंदो धम्मज्झाणं समारहाइ ॥ ११ ॥ सालजानामेणं वंतरदेवी अकारणं कुविया । कुणइ विविहोवसग्गे तत्थेव ठियस्स जयगुरुणो ॥ १२ ॥ सयमेव परिस्संता जाहे उवसग्गणेण सा पावा । ताहे पूयं काउं जहागयं पडिनियत्तत्ति ॥ १३॥ उवसग्गकारगच्चिय परिस्सममुवहति चोजमिणं । कीरति जस्स सो पुण कत्थवि नो गणइ जयनाहो ॥ १४ ॥ अह भुवणतिलयभूए सुविभत्तचउकचचरावसहे । लोहग्गलंमि नयरे सामी पत्तो विहरमाणो ॥१५॥ तत्थ य राया दरियारिसूरनिद्दलणदंतिरासिसिहो। जियसत्तू नामेणं भुवणपसिद्धो समिद्धो य ॥ १६ ॥ तइया तस्स विरोहो जाओ पचंतराइणा सद्धिं । ताहे अपञ्चपुरिसो पेहिजइ चारपुरिसेहिं ॥ १७ ॥ दिट्ठो य तेहिं सामिय पुट्ठोऽपि न देइ जाव पडिवयणं । रिउहेरिउत्ति कलिऊण ताव गहिओ विमूढेहिं ॥१८॥ अत्थाणमंडवत्थस्स राइणो तक्षणं समुवणीओ। अह पुवविणिहिट्ठो उप्पलगो पेच्छिउं सामीं ॥ १९ ॥ हरिसुक्करिससमुट्ठियरोमंचो बंदिऊण भत्तीए । भणइ नरिंदै एसो न होइ भो चारिओ किं तु ॥२०॥ सो एस जेण तइया आवरिसं कणगवारिधाराहि । निववियमत्थि जायगकुटुंबमिच्छाइरित्ताहि ॥ २१ ॥ सिरिधम्मचक्कवट्टी सिद्धत्थमहानरिंदकुलकेऊ । पवजं पडियन्नो सयमेव जिणो महावीरो ॥ २२ ॥ किं वा सुरखयरनरिंदविंदवंदिजमाणचरणस्स । एयस्स पुरा तुमए निसामिया नेव कित्तीवि? ॥ २३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir वग्गुरश्रेष्ठिवृत्तं. श्रीगुणचंद जइ मम वकं नो सद्दहेह ता उयह निउणदिट्ठीए । एयस्स चक्कगयकुलिसकलसकमलंकिए पाणी ॥ २४ ॥ महावीरच०४ ६ प्रस्ताव इय लद्धनिच्छएणं जियसत्तुनराहिवेण सविसेसं । सक्कारिऊण मुक्को गोसालेणं सह जिणिंदो ॥ २५॥ तओ पुरिमतालंमि नयरे गओ भयवं, ठिओ काउस्सग्गेणं, तत्थ य नयरे धणउच्च समिद्धिसंगओ तोणीरुव ॥२१४॥ मग्गणगणसाहारो मुणिव उभयलोगहियपवित्तिपरो पयइसरलो पयइपियंवओ पयइदक्खिन्नो निम्मलगुणहरिणवग्गुरासमो वग्गुरो नाम सेट्ठी, निरुवचरियपेमभायणं भद्दा नाम से भारिया, सा य वंझा, बहूण देवयाणं उवाइय|सयाणि विविहोसहसयपाणाणि य पुत्तयनिमित्तेण काऊण परिस्संतत्ति । अन्नया सेट्ठिणा सह सिविगासमारूढा सयणजणेण परियरिया विविहभक्खभोयणसमिद्धरसवइसणाहसूयारसमेया महया विच्छड्डेणं निग्गया उज्जाजताए, पत्ता नाणाविहविहगकुलकलरवमणहरं विचित्ततरुवरसुरहिकुसुमपरिमलसुंदरं सगडमुहाभिहाणं उज्जाणं, तहिं च सुचिरं सरोवरे जलकीलं काऊण पुप्फावचयं कुणमाणो वग्गुरो भद्दा य पेच्छंति जुण्णं खडहडियसिहरदेसं विह|डियनिबिडसिलासंचयं विणठ्ठनट्ठलट्ठथंभसालानिवेसं देवकुलं, तं च पेच्छिऊण पविट्ठाई कोऊहलेण अभंतरे, दिट्ठा य तत्थ सरयससिमुत्तिच अचंतपसंतसरीरा निराभरणावि भुवणमहग्घरयणभूसियव सस्सिरीया चिंतामणिव दसणमेत्तमुणिजंतपरममाहप्पाइसया फलिणीदलसामलच्छाया सिरिमल्लिजिणनाहपडिमा, तं च दद्रूण वियंभिओ तेसिं भावाइसओ, जाओ य एस अभिप्पाओ-जहा नृणं इमीए पडिमाए जारिसा कलाणुगया रूवलच्छी तारि ॥२१४॥ For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACCORG सीए ण हवइ एसा सामन्ना, ता फलियबमियाणिं अम्ह मणोरहपायवेणंति चिंतिऊण एवं थोउमारद्धाई अजं विहडियनिविडदुहनिगड पविहाडिय [अज परपवरसुगई मंदिरदुवाराई। अजं चिय करकमलि लीण, सुहाई संसारसाराई ॥१॥ अजं चिय तिहुयणसिरीहि, अम्हि पलोइय नाह! तुह लोयणपहि गयउ, नासियदोसपवाह ॥ २॥ अहह अम्हेहिं तिक्खदुक्खोहसिहितत्तगत्तिहिं, कह नाह! तुम्ह पयमंडवंतरि । नहनिवहनिम्मलरयणकिरणजालसंछाइयंबरि ॥३॥ संपइ लडु निवासु फुड्डमरुपहिएहिं व देव! । जंतुह दिटुं मुहकमलु, खालियकम्मवलेव ॥४॥ एवं च भत्तिसाराहिं सुसिलिछाहिं मणाणंददायिणीहिं गिराहिं हरिसुप्फुललोयणाहिं थोऊण पुणो पुणो निडालतडताडियधरणिवट्ठाई भणिउमाढत्ताई-देव! जइ एत्तो अम्ह दारगो वा दारिगा वा तुम्ह पसाएण होजा ता इमं तुह भवणं कणयकलसकलियसिहरं थूरधंभाभिरामविसालसालापरिक्खितं कविसीसयसओवसोहियं पवरद्वापागारसंपरिग्गहियं सुसिलिट्ठठावियसालभंजियासुंदरगोयराणुगयं कारवेमो, सयावि तुम्ह भत्तिपरायणाणि य होमो, अणवरयं पूयामहिमं च विरएमोत्ति भणिऊण उजाणकीलं काऊण गयाणि सगिहं । अह तेर्सि भत्तिपगरिसागरिसियहिययाए अहासन्निहियवाणमंतरीए देवयाए अणुभावेण आहूओ भदाए सेट्ठिणीए गम्भो, समुप्पन्नो For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद मासेविस्स पचओ, तओ तद्दिणाओ आरम्भ समारंभियं जिणमंदिरे कम्मंतरं, कओ अकालखेवेण जिन्नद्धारो, तिसंझं | वग्गुरमहावीरच० च सुरहिपंचवन्नकुसुमहिं निम्मवेइ पूर्य, पयट्टावेइ वरविलासिणीनट्टविहि, वायावेइ मंजुगुंजंत सुरयसणाहं चउविहा श्रेष्ठिवृत्तं. ६ प्रस्तावः उज्जं, एवं च कुणमाणस्स वचंति वासरा। ॥२१५॥ ___ अन्नया य जिणवंदणवडियाए अणिययविहारेण परियडमाणा समागया सूरसेणा नाम सूरिणो, ठिया य सूरि समुचियपएसे, सुत्तपोरिसीपजंते य गया मलिजिणाययणं, बंदिया देवा, उवविट्टा उचियट्ठाणे, काउमारद्धा य भवसत्ताण धम्मदेसणा । एत्यंतरे पूयासामग्गिसणाहो समागओ वग्गुरसेट्ठी, जिणपूयं बंदणं च काऊण अल्लीणो सूरिसयासे, पणमियं चऽणेण से पायपंकयं, दिन्नासीसो य आसीणो महीयले, गुरुणावि तज्जोग्गयाणुसारेण पारद्धार धम्मदेसणा। कहं चिय?जिणनाहभुवणकरणं तप्पडिमापृयणं तिसंझं च । दाणंमि य पडिबंधो तिन्निवि पुन्नेहिं लभंति ॥१॥ नीसेससोक्खतरुवीयमूलमुद्दामदुग्गइकवाडं। कारिंति मंदिरं जिणवरस्स धन्ना सविभवेणं ॥२॥ ॥२१५॥ तुहिणगिरिसिंगसिंगारहारि जे निम्मवंति जिणभवणं । ते कह न लीलाएच्चिय चिंतियमत्थं पसाहिति? ॥३॥ सामन्नेणवि जिणगेहकारणे को मिणिज पुन्नभरं? । को पुण तम्मि विहिणा जिन्नंमि समुद्धरिजंते ॥४॥ ता भो महायस! तए नियमा सम्मं समायरियमेयं । सभुयज्जियदवेणं जिन्नुद्धारो जमेस कओ ॥५॥ GRORSCORRECAUSEX RAHASRAESECREE For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मि अकरते तित्थुच्छेओ जिणे अभत्ती य । साहूणमणागमणं भवाणमबोहिलाभो य ॥ ६ ॥ काराविए इमंमी भवजलनिहितरणजाणवत्तंमि । अचंतसंतकंता कारेअवा जिणप्पडिमा ॥ ७ ॥ तीसे तिसंझमपमत्तमाणसेहिं परेण जत्तेणं । पूया य विरइयवा सा पुण अट्ठपयारेवं ॥ ८ ॥ वासकुसुमक्खणं धूवपईवेहिं वारिपत्तेहिं । फलभोयणभेएहि य जणनयणानंदजणगेहिं ॥ ९ ॥ अविहा पूया कीती भत्तीऍ जिनिंदाणं । तं नत्थि नूण कल्लाणमेत्थ जं नो पणामेइ ॥ १० ॥ तथाहि - हरियंदणघणसारुज्भवेहिं गंधेहिं सुरहिगंधेहिं । सवण्णुसिरे निहिएहिं होंति भवा सुरहिदेहा ॥ ११ ॥ नवमालइकमलकथंबमल्लियापमुहकुसुमदामाहिं । विरयंता जिणपूंय घरंति भवा सिवसुहं च ॥ १२ ॥ नहरु जलपsिहत्थे णिपयछेत्ते जमक्खया खित्ता । पसवंति दिवसुहसस्ससंपयं तं किमच्छरियं १ ॥ १३ ॥ घसारागुरुधूवो जयगुरुपुरओ जणेण डज्झतो । उच्छलियधूमपडलच्छलेण अवणेइ पावं च ॥ १४ ॥ जे दी देति जिदिमंदिरे सुंदराय भत्तीए । ते तिहुयणभुवण मंतरेक्कदीवत्तणमुर्विति ॥ १५ ॥ तिहुअणपणो पुरओ ठवेंति जं वारिपुन्नपत्ताई । तं नृणं पुवजियदुहाण सलिलं पयच्छति ॥ १६ ॥ परिपागवस समुग्गयविसिद्धगंधेहिं तरुत्ररफलेहिं । जिणपूयं कुणमाणा लहंति मणवंछियफलाई ॥ १७ ॥ बहुभक्खवंजणाउलओयणचरुपागप मुहवत्थूहिं । धन्ना विरइंति बलिं सुहनिहिउक्खणणउत्ति ॥ १८ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1.6 Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्ताव ॥२१६॥ | वग्गुर श्रेष्ठिवृत्त. CHECECAUSA अहवा किमित्तिएणं? जं किंचिति अस्थि वत्थु सुपसत्थं तित्थेसराण तं तं विणिओगे निंति कयपुन्ना ॥१९॥ दाणमवि सुगइसंगमनियाणमनियाणमेव दिजंतं । पुनाणुबंधिरूवं कलाणपरंपरं जणइ ॥२०॥ तं पुण तिविहं भणियं अभयपयाणं च नाणदाणं च । धम्मपवत्ताणं पुण तइयमुवटुंभदाणं च ॥२१॥ तत्थाभयप्पयाणं लोइयलोगुत्तरेसुवि पसिद्धं । सबावत्थासुंपिवि अनिसिद्धं सिद्धिरसियाणं ॥ २२ ॥ करिसणमिव कणरहियं नरनाहंपिव विवेयपरिहीणं । एयविउत्तं धम्म न कयाइ बुहा पसंसंति ॥ २३॥ जं पुण नाणपयाणं दीवोव पयासयं तमत्थाणं । भवजलहिपडियजंतूण तारणे दृढतरंडसमं ॥ २४ ॥ उम्मग्गपयट्टाणं व विसममिच्छत्तभीमरन्नंमि । सम्मग्गदेसयं सिवपुरीऍ वरसत्यवाहोच ॥ २५॥ तइयं पुण भेसहवत्थपत्तकंबलगपमुहदवेहिं । साहूण धम्मनिरयाण होइ उबटुंभकरणेण ॥२६॥ जं ते महाणुभावा कह दूरविमुक्कसबसावजा । सकंति तवं काउं आहाराईण विरहंमि ॥२७॥ एत्तियमेत्तेणं चिय गिहिणो लंघंति गुरुभवसमुहं । उवयारे जं असणाइएहिं वटुंति साहूर्ण ॥ २८ ॥ धणसत्याहिवसेयंसमूलदेवाइणो य जयपयडा । दिटुंता निहिछा इत्थं सिद्धंतसुपसिद्धा ॥२९॥ इय भो देवाणुपिया! तिन्नि पयत्था मए तुह पसत्था । परिकहिया एएर्सि पढमो तुमए सयं विहिओ ॥ ३०॥ अन्ने पुण सावगधम्मकुसलबुद्धीहि जंति काउंजे । सद्धाणनाणसारं ता गिहिधम्मं पवजेसु ॥ ३१ ॥ CREADACARRANGACADAKAM ॥२१६॥ For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHIGEESECAUSA इय गुरुणा निदंसिए वत्थुपरमत्थे जायपवरविवेगो पणमिऊण गुरुणो पयपंकयं सेही वागरिउं पवतो-भयवं! सुन बोहिओऽहं तुम्हेहिं, उवदंसेह मे सावगधम्म, सिक्खवेह जुत्ताजुचं, तओ सूरिणा मेयप्पमेयसाहासहस्ससंकुलो सुहफलोहकलिओ कहिओ वित्थरेण गिहिधम्मकप्पहुमो, पडिवन्नो य भावसारमणेण । तप्पभिई च अटप्पयारजिणपूयारओ मुणिदाणसमुजयचित्तो सावगत्तं पालेइ । पसूए पुत्ते सविसेसं धम्मपरिवत्तो जाओत्ति । ___ अन्नया सो पंडुरपरिहियपडो कुसुमाइसमग्गसामग्गीसणाहो सयलपरियणसमेओ पयट्टो मल्लिजिणपडिमापूयणत्य, इओय तबेलं भयवंतं महावीरं नगरस्स सगडमुहुजाणस्स य अंतरा पडिम पडिवन्नं ओहीए आभोइता ईसाणसुरनाहो अणेगसुरकोडिपरिवुडो पंचरायरयणविणिम्मियविमाणारूढो आगंतूण तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणपुरस्सरं सहरिसं वंदिऊण अन्नोन्नघडियपाणिसंपुडो भयवओ चरियं गायमाणो सामिणो वयणमि दिनदिट्ठी पजुवासमाणो चिट्ठा, यमगुरसेट्टीवि भयवतमइक्कमित्ता चलिओ मल्लिजिणाययणाभिमुह, तं च वचंतं ईसाणिदो पासिता भणइभो बग्गुर! दूरयरदेवा सचोवाया हवंति(त्ति) सच्चो को तुमए लोयप्पवाओ, जं पञ्चक्खं तित्थगरं मोत्तूण पंडिम अचिउं वचसि, किंन मुणसि जं एस विसमभवावत्तनिवडंतभुवणत्यसमुद्धरणधीरो सिरिमहावीरो सयमेव इह चिट्ठ इत्ति, तो सेट्ठी एवं निसामिऊण जायमतुच्छपच्छायाको मिच्छामिदुकडंति भणिऊण तिपयाहिणादाणपुर्व जिणं २७ महावदह महिमं च करेइ, सुचिरं च पजवासिऊण जहागयं पडिनियत्वे सुरिंदे मल्लिजिणभुवर्णमि वञ्चद। पाणिसंपुडो भयवओ चरिय गायलो आगंतूग तिक्खुचो आया चिट्ठा, कम्गुरसेट्टीवि H A For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवतो श्रीगुणचंद महावीरच० जयगुरूवि तत्तो निक्खमित्ता पट्टिओ तुन्नागसन्निवेसाभिमुहं तस्स य अंतरा तकालपरिणियाणि वहुवराणि स-11 पडिजुत्तमिति, ताणि पुण दोण्णिवि टप्परकन्नपुडाणि मजराणुरूवनयणाणि अइलंबमोट्टपोहाणि दीहरकंधराणि वग्गुरकृता ६प्रस्तावः पूजा दन्तु. |कसिणकुसंठाणसरीराणि अहरसीमासमइकंतदीहरदंताणि, गोसालो पेच्छिऊण जायपरितोसो सहासं भणइ-अहो ॥२१७॥ रहासेन भमिओऽम्हि पउरजणवएसु नियधम्मगुरुपसाएण, एत्तियकालं परियडतेण एरिसो संजोगो न कत्थवि पलोइओ।। | गोक्षेपः ता नूणं गोशालय. PI तत्तिलो विहिराया जणेऽइड्रेवि जो जहि वसइ । जं जस्स होइ सरिसं तं तस्स दुइजयं देइ ॥१॥ | एवं च पुणो पुणो पुरा ठाऊण समुल्लवितो जाव न कहंपि विरमद ताव तेहिं बाढं पिट्टिऊण बद्धो पक्खित्तो दूय वसीकुडंगे, तत्थ य उत्ताणो निवडिओ अच्छइ, महया सद्देण य वाहरइ, जहा-सामि! कीस मं उवेक्खह !, एसोऽहं एत्य वंसकुडंगे निवडिओ वट्टामि, सचहा मोअह इमाओ वसणाओत्ति पुणो पुणो उल्लवंतं तं सो सिद्वत्थो पडिभणइ-भद्द! सयं कडं सयं चेव भुंजाहि, किं मुहा परितप्पसि ?, सामीवि अदूरदेसं गंतूण करुणाए चिर समसुहदुक्खसहणपक्खवाएण तं पडिवालिउमारद्धो, एत्यंतरे तेहिं नायं, जहा-एस कोइ दुसीलो एयस्स देवजदागस्स पीढियावाहगो छत्तधारगो वा होही. तेण एस एवं पडिवालेमाणो निचलो अच्छइ, ता न जुत्तं एयस्स धरणंति चिंतिऊण मुक्को गोसालो. मिलिए य तंमि गंतं पवत्तो जयगुरू । कमेण य पत्तो गोभूमिमि, तत्थ य SARALCASSESANSAR MAHARASAASAR For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sivi Kailassagarsuri Gyanmandir सुलभचरणपाणियत्तणेण गावीओ चरंति, तेण सा गोभूमी बुचइ । तत्थ य कलहपियत्तणेण गोसालो गोवालए द्र भणइ-अरे मिलिच्छा ! जुगुच्छणिजरूवा ! एस मग्गो कहिं वच्चइ ?, गोवेहि भणियं-अरे पासंडिया! कीस अम्हे | सानिकारणं अक्कोसेसि ?, सो भणइ-दासीपुत्ता! पसुयपुत्ता! जइ न मरिसिहिह ता सुटुअरं अकोसिस्सामि, किं| | अलियमेयं ?, मिच्छजाइया एरिसगा चेव तुब्भे, किं जहट्टियपि न भणिस्सामि ?, को मे तुम्ह पडिभओत्ति, सातओ तेहिं समुप्पन्नगाढकोवेहि मिलित्ता पण्हिमुट्टिलेहि विहवित्ता बद्धो वंसीगहणे य पक्खित्तो, तत्थवि पुवनाएण करुणाए पहियजणेण विमोइयंमि गोसाले तिहुअणगुरू रायगिहे नयरे अट्ठमवासार काउमुवसंपजइ, विचित्ताभिग्गहसणाहं च चाउम्मासखमणं आरंभेइ । तस्स पजंते बहिया आहारग्गहणं कुणइ । | तओ अणिजरियं अजवि बहुं कम्मं अच्छइत्ति चिंतिऊण पुणोऽवि सामी अत्यारियादिद्वंतं परिभावितो कम्मनिजदूरणनिमित्तं अचंतपावजणसंगएसु लाढावजभूमिसुद्धभूमिनामेसु मिलिच्छदेसेसु गोसालेण समेओ विहरिओ। तत्थ य |ते अणारिया कयाइ असुणियधम्मक्खरा निरणुकंपा लोहियपाणिणो परमाहम्मियासुरसरूवा भयवंतं विहरमाणं पासित्ता हीलंति निति तहाविहप्पयारेहिं विद्दविति, साणादओ य दुट्ठसत्ते सामिस्स अभिमुहं मुयंति । अवि य जह पविरेयणतणुतयतच्छणखारोवलेवपामोक्खं । किच्छबिगिच्छं विजं कुणंतमभिणंदए रोगी॥१॥ तह जयनाहोवि समग्गमुग्गउवसग्गकारयं लोयं । उवयारिबंधुवुद्धीए बंधुरं पेहइ पहिट्ठो ॥२॥ NCHALCOHOROSSES AAAAAAAAAA For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोशालकृतो गोपालक्षेपः भगवतो SAR नार्यदेशे गमनं. श्रीगुणचंद जेण दरंगुढविकिट्ठमेरुविस्संतुलं धरावटुं । हलहलियसत्तकुलसेलसायरं विरइयं सिसुणा ॥३॥ महावीरच० सोवि कह अतुलबलसारविक्कमो निकिवण कम्मेण । कीडप्पायकयावयमहह सहाविज जिणिदो?॥४॥ जुम्म। ६प्रस्ताव किंच-जो हरिणा सिद्धत्यो आवयविणिवारणट्ठया मुक्को । गोसालगपञ्चुत्तरवेलाए वियंभई सोवि ॥५॥ ॥२१८॥ 5 अन्नं च-जइ किर तिलोयरंगे अतुल्लमलोऽवि जिणवरो वीरो। एवंविहावयाओ विसहइ सुपसंतचित्तेण ॥६॥ ता कीस थेवमित्तावयारकरणुजएऽवि लोयंमि । मुणियजहट्टियभावा वहति रोसं महामुणिणो? ॥७॥ जुम्म । अहवा चुन्निजई थेवघायमेत्तेवि सक्करालेहू । निहरकालायसपडियदुघणघाएहिं नवि वरं ॥८॥ अह तिहुयणेकनाहो अणजभूमीसु तासु हिंडतो। पत्ते वासारत्ते नवमेऽनवमासयविहाणे ॥९॥ वसहि च अलभमाणो सुन्नागारेसु रुक्खमूलेसु । धम्मज्झाणाभिरओ वरिसायालं अइकमइ ॥ १०॥ जुम्म । वित्ते य तम्मि सामी सिद्धत्थपुरमागओ, तत्तोऽवि कुम्मारगाम संपढिओ, तस्स य अंतरा तिलछित्तसमीवेण वोलेमाणो पुच्छिओ गोसालगेण सामी-एस तिलत्यंबो किं निप्फजिही नवत्ति, तओ तहामवियवयावसेण | सयमेव भणियं जिणेण-भद्द ! निप्फजिही, परं सत्तवि पुप्फजीवा उदाएचा एयस्स चेव तिलथंबस्स एगाए तिल- संगलिगाए सच तिला समुवजिस्संति, एयं च असद्दहमाणेण अणजेण तेण अवक्कमित्ता मूलावणद्धभूमिलेहुसणाहो समुप्पाडिओ सो तिलथंभो, एगते उज्झिओ य, एत्यंतरे अहासंनिहियदेवहिं भयवओ वयणमवितहं कुणमाणेहि ESPASIASANAISANSAASTICHES AL ॥२१८॥ For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AA विउविया घणावली, जायं सलिलवरिसं,समासासिओ तिलयंत्रओ, तेण पएसेण वेगेण आगच्छमाणीए गावीए खुरेण चंपिय मूलविभागो पविट्ठो जलसेयसुकुमारे धरणिवढे, जाओ दढपइट्ठाणो, कमेण परूडाई मूलाई, उम्मीलियाई कंदलाई, पयट्टो फुल्लिउंति । भयवं पुण कुम्मारगामनगर संपत्तो, तस्स बाहिं सूरमंडलस्सुवरिं निहियदिट्ठी उद्धीकयभुयपरिहो दीहरजडाकडप्पो पयइविणीओ पयइपसमपरो पयइदयादक्खिण्णाणुगओ समारद्धसद्धम्मज्झाण वि-12 |हाणो वेसियायणो नाम लोइयतवस्सी ममंदिणसमयंसि आयावेइ । तस्स य उप्पत्ती भन्नइ१. मगहाविसए धणधनसमिद्धलोयकलिए गोबरगामे आभीरलोयाणं अहिवई गोसंखीनाम कुडंविओ, बंधुमई नाम से भज्जा, सा य अवियाउरी, ताणि य परोप्परं दढसिणेहाणुरायाणि विसयसुहमणुहवंताणि कालं वोलेंति, इओ य तस्स गामस्स अदूरे खेडयं नाम संनिवेसो, तत्थ य अविगप्पिया सन्नद्धबद्धकवया पउरपहरणसणाहा मिलेच्छाण धाडी पडिया, तीए व सो गामो निवाडियारक्खिगजणो लुटियधणधनकंसदूसो विणिहयपहरणहत्यसुहंडसत्यो | कओ, तओ वंदिग्गहेण लोगं गहिऊण पट्टिया सहाणं, एगा य गामइत्थिया तबेलं पसूया पइंमि मारिए करकलियबालया सुरूवत्तिकाऊण चालिया चोरोहि, सा य चेडवावडकरतणेण न पारेइ सिग्धगईए समागंतुं, तओ तेहि | सरोसं भणिया-भद्दे । परिचयसु सुयं जब चिरजीवियत्थिणी, इमं च सुणिऊण अइगरुययाए मरणमयस्स परिचत्तो | तीए सुओ तरुच्छामाएं, गया य चोरोह समं, सो य गोसंखिओ गोस्वाइं घेत्तूण पहायसमए समागओ त पएस, AAACAR For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्ताव ॥२१९॥ HOCABCAMGADCASSADORECADA [दिट्ठो य सो रुक्खच्छायाए पडिपुन्नसबंगोवंगो सस्सिरीओ अक्खयसरीरो बालओ, गहिओ य तेणं, पणामिओ| जातिलस्तम्ब |नियभजाए, भणिया य एसा-पिए! एस तुह अपुत्ताए पुत्तो होही, सम्मं रक्खिजाहि, गोसे य पगासियं जहा मम वैश्यायनामहिला गूढगम्भा आसि, सा य संपर्य पसूया, दारगो से जाओ, एयस्स चेव अत्थस्स निच्छयनिमित्तं छगलकं वा धिकार वाइत्ता लोहियगंधो कओ, सा य सूइयनेवत्येण ठाविया, बद्धावणयं च विहियं, सम्माणिओ सयणवग्गो, पसारिया, लोयम्मि वत्ता, निवत्तियाई छट्ठीजागरणचंदसूरदंसणियमुहाई किच्चाई, समुचियसमए ठवियं वेसियायणोत्ति नाम, कालकमेण य पत्तो जुवणं, सावि से जणणी चंपाए नयरीए नेऊण चोरोह विकयनिमित्तं ओडिया रायमग्गे, सुरूवत्तिकाऊण गहिया थेरीए वेसाए, सिक्खाविया गणियाण वेजं । अविय सुरविलयन्भहियविसिट्ठरूवसोहग्गपवरलायन्ना । सुरयप्पवंचकुसला वियक्खणा गेयनदृसु ॥१॥ उवयारभणियपरिचत्तबोहसमयाणुरूवचेट्ठासु । पत्तट्ठा सा जाया लद्धपसिद्धी य नयरीए ॥२॥ दसणमेत्तेणं चिय जणस्स पुर्व जणेइ विक्खेवं । किं पुण उभडसिंगारसारनेवत्थरुइरा सा ? ॥३॥ इओ य सो वेसियायणो अत्थोवजणनिमित्तं करेइ विविहवाणिज्जाई, अन्नया य घयस्स सगळि भरिऊण वयं- ॥२१९॥ सएहिं समेओ गओ चंपानयरिं, तम्मि य समए समारद्धो पुरे महूसवो, पवराभरणरुइरदेहा नियंसियपहाणपट्टणुग्गयचीरंसुयाइवत्था जहिच्छं तियचउकचच्चरेसु रामाजणेण परिगया विलसंति नायरा, ते य दद्दण चिंतियमणेण -SCREEGAAAAA For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहो एए एवं विलसंति, अहंपि न कीस रमेमि?, ममावि अस्थि केत्तियमेत्तावि अत्थसंपया, किंवा इमीए रक्खियाए ?, धम्मट्ठाणदाणभोगोवभोगफलं हि पसंसिजइ धणं । जेण भणियंदानं भोगो नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य । यो न ददाति न भुते तस्य तृतीया गतिर्भवति ॥ १॥ दैवात्कथमपि जाते सति विभवे यस्य नैव भोगेच्छा । दाने च न प्रवृत्तिः स भवति धनपालको मूर्खः ॥२॥ | इति परिभाविऊण कओ अणेण सिंगारो, परिहियाई पहाणवत्थाई, गओ पेच्छणगे, दिट्ठा य वेसाजणमज्झ-1 गया सञ्चिय पुचमाया , जाओ तीए उवरिमणुरागो, वियंभिओ से पंचबाणोऽवि सहस्संबाणोच मयरद्धओ, समप्पियं तंबोलदाणपुवर्ग से गहणगं, रयणिसमए घणसारुम्मिस्सचंदणरसविलित्तगत्तो केसपासविणिम्मियकुसुमदामोदू गहियतंबोलबीडओ पयहो तीसे गिहाभिमुह, एत्थंतरे तत्स कुलदेवया चिंतेइ-अहो अमुणमाणो परमत्थं अकजमायरिउ लग्गो एस वरागो, ता संबोहेमित्ति विभाविऊण अंतरा सवच्छगाविरूवं विउवित्ता ठिया, वेसियायणस्सवि सिग्धं गच्छमाणस्स लित्तो अमेझेण चलणो, जाया से आसंका जहा असुइत्ति, तओ अन्नं विसोहगं किंपि अपावमाणेण तेण तीसे चेव गावीए सन्निहमि निविट्ठस्स वच्छस्स पट्टीए पारद्धं चलणलहणं, तयणंतरं स वच्छो माणुसभासाएँ पडिभणइ गायिं । अम्मो! पेच्छसु एयं विगयासंकं ममंगमि ॥१॥ मिज्झविलितं चलणं लूहन्तं चत्तधम्मववहारं । किं कोइ कुणइ कइयावि सुरहिसुए परिसं हीलं? ॥२॥ जुम्म । युवर्ग से गहणगं, रयणिसमा, पश्चतर तत्स कुलदेवया चिंतेइ अहवउवित्ता ठिया, वेसियायण NAGARRESEARCH मलितो अमेझेण चलावस वच्छस्स पट्टीए पाए विगयासके ममा For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्तावः ॥ २२० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गावी वागर तओ पुत्त ! मा वहसु अद्धिहं किंपि । अइधम्मघवहारा बाहिरो बट्टए एसो ॥ ३ ॥ वच्छेण भणियमम्मे ! कहमेवं १, पुत्त । कित्तियं कहिमो ? । नियजणणीएवि समं जो वासं वंछइ अणज्जो ॥ ४ ॥ तावच्छ ! सहसु सर्व्वं तं धन्नो एत्तिएण जं मुक्को । उज्झियनियमज्जाया किमकज्जं जं न कुवंति ? ॥ ५ ॥ तावच्चिय तत्तरुई तावच्चिय धम्मकम्मपडिबंधो । लोयाववायभीरुत्तणं च तावेव विप्र ॥ ६ ॥ तावज्जवि न विणस्सइ लज्जा जणणी गुणाण सयलाणं । अह सावि कहवि नट्ठा ता नट्ठा कुसलचेट्ठावि ॥७॥ जुम्मं । इय सुरहिं साभिप्पायवयणसंदोहमुल्लवेमाणिं वच्छस्स पुरो दहुं सो सहसा संकिओ हियए, चिंतिमारद्धो यअहो पढमं ताव इमपि महअच्छरियं जं तिरिच्छजोणिया होऊण माणुसिवाए भासाए संलवर, तत्थवि नियमायाभिगम लक्खणं दूसणं मे दंसे, कहमेव संभवइ १, कत्थ मम माया ? कत्थ अहं ? कहं संवासो ?, सर्व अचंतमघडंतमेयं, अहवा होयचमेत्थ कारणेणं, चित्तरूवाई विहिणो विलसियाई, संभव सवं, अओ पुच्छिस्सामि तं चैव बेसाविलयं उट्ठाणवडियंतिभाविऊण गओ तीसे घरं, अम्भुट्टिओ अणाए दावियं आसणं पक्खालिया चरणां ठियाई खणंतरं अवरोप्परुल्लायेण, अह पत्थावमुवलब्भ पुच्छिया सा अणेण-भद्दे ! साहेसु कत्थ तुम्ह उप्पत्ती १, तीए सहासं भणियं - जत्थ एत्तियजणस्स, तेण भणियं-अलाहि परिहासेण, अहं सकज्जं पुच्छामि, तीए भणियं-मुद्धोऽसि तुमं, जेण For Private and Personal Use Only मातुः संगमः गोवत्सोल्लापः. ॥ २२० ॥ Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नरह नरिंदह रिसिकुलह वरकामिणिकमलाहिं । अत्तुग्गमणु न पुच्छियह को कुसलत्तणु ताह? ॥१॥ पंकात्तामरसं शशाङ्कमुदधेरिन्दीवरं गोमयात् , काष्ठादमिरहेः फणादपि मणिोपित्तो रोचना। कोशेयं कृमितः सुवर्णमुपलाइर्वापि गोलोमतः, प्राकाश्यं खगुणोदयेन गुणिनो गच्छन्ति किं जन्मना ? ॥२॥ __ अओ किं तुह एएणंति भणिऊण हावभावरूवं महिलाविभमं दंसिउमारद्धा, ताहे तेण भणियं-अन्नंपि एत्तियं मोलं दलयिस्सामि साहेहि मे सम्मावं, अइगरुयसवहसावियाऽसि तं, मा अलियमुलविस्ससित्ति भणिए जहादू वित्तं मूलाओ आरम्भ सर्व सिट्टमेयाए, तहावित्तनिसामणेण य जाया से आसंका, जइ पुण एयाए जो तरुच्छातयाए छडिओ सो अहं चेव होजा, एवं च सुरहिवयणंपि षडेजा, इमं च परिभाविऊग दुगुणमत्थपयाणं काऊण पडिनियत्तो जाव तत्थप्पएसे सवच्छं सुरभि निझाएइ ताव न किंपि पेच्छद, तओ नायमणेणं-नूणं अहं केणइ | देवयाविसेसेण इयवइयरेण अकजमायरतो नियत्तिओम्हि । अह सगळि घेषण गओ नियगामं, उचियपत्यावे अम्मापियरो उट्ठाणपारियावणियं अत्तणो पुच्छिउमारद्धो, ताणि य कहेंति-पुत्त! अम्ह कुच्छिसंभूओऽसि तुमं, मा अन्नहा विकप्पेसु, को परडिंभरूवाई परिपालेइ?, तो सो गाढनिबंधेण ताव अणसिओ ठिओ जाप से तेहि कहियं, जाओ तस्सं जगणिति निच्छओ, गयो य चंपानयरिं, साहिओ तीसे गणियाए वुत्तंतो, जहाऽहं सो. तुह पुत्तो जो तरुमूले उझिओति । तओ सा एवमायनिऊण सुमरियषुववइयस विरहदुक्खेण अजपवित्ति कवर देवयापरी उहाणपारियावणिव अपरिपालेइ १, तो सो गाढा माहिओ तीसे गणिया अजपवित्ति-15) For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद गुणवद महावीरच ६ प्रस्तावः मातुर्वेश्यातो मोक्षः ॥२२१॥ AGRICSSOURCH पारंभसमुल्लवियसवियारवयणविलिएण बाढममाया समाणा उत्तरिजेण वयणकमलमवगुंठिऊण दीहरुम्मुक्कपोकारं रोइऊण विलविउं पवत्ता । कहं चियहा पाव दइव निग्घिण निलजाणज! मुक्कमज्जाय!। किं अन्नो तह नाही विडंबणाडंबरपवंचे?॥१॥ जं कुलविलयामलिणत्तकारिणा उभयलोगदुद्वेण । वेसाभावे विणिम्मियऽम्हि सुकुलप्पसूयावि ॥२॥ तत्थवि न ठिओ तं एत्तिएण घडिअम्हि नियसुएणावि । हा हा गरुयमकजं सत्थेसुवि सुम्मइ न एवं ॥३॥ जइ पुर्व चिय पावेहिं तेहिं चोरेहिं विणिहया हुंता । ता किं असच्चमविगोवणिजमिममज पेच्छेज्जा ॥४॥ किं कूवयपक्खेवेण अहव उलंबणेण साहेमि । सासनिरोहेणं वा लहुं समुज्झामि अत्ताणं ॥५॥ एवं चिय मेरुगिरिदविन्भमाओ इमाओ दुक्खाओ। पावाए मज्झ नूर्ण होही संपइ परित्ताणं ॥६॥ इय दुस्सहदुहकरवत्तगाढफालिजमाणहियया सा । अइसुचिरं विलवित्ता निमीलियच्छी गया मुच्छं ॥७॥ तारिसं च दटूण वेसियायणेण सित्ता सीयलसलिलेण वीजिया दुगुलंचलेण संवाहिया पासवत्तिणा चेडीजणेण, कह कहवि लद्धयणा संभासिया अणेण-अम्मो! कीस तावसंभारमुवहसि ?, को एत्थ तुज्झावराहो ?, एसो ४|चिय सच्छंदाणिबद्धघडणविहडणरसिगो दइयो एत्थावरज्झइ जो विविहसंविहाणगनेवत्थेहिं नडं व विवसं माणुसं -विनडेइ, अच्चंतविरुद्धमवि वत्थु कारवेइ, अगम्मेणवि सह संगम संपाडेइ, ता उज्झसु संतावं पडिवजसु धीरत्तणं ॥२२१॥ For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra GORAKAASAR होसु निवडियसहा, तीए भणियं-पुत्त ! बाढं असहणिजमगोवणिजं च इममावडियं, इमं च संभरंती वजगंठिनिदुरहिययत्तणेण चेव जीवामि, न पुण अन्नं किंपि दुजम्मजायाए मज्झ जीवियकारणं, संपयं पुण बच्छ! वंछामि अतुच्छवच्छसाहासमुलंबणाइणा सकुलकलंकभूयं जीवियं परिचइउं, अओ अणुमन्नेसु मं, तुमं चेव इयाणिं पुच्छणिजो, है तेण भणियं-अम्मो! अलं दूरज्झवसाएण, इओ मए वेसाहत्थाओ मोइया समाणी तवनियमेहि अत्ताणं अत्ताणं साहेज्जासि, अपत्तकालजीवियववरोवणं हि दूसियं समयसत्थेसुत्ति संठविऊण बहुदवदाणपुत्वगं मोइया सा वेसासयासाओ, नीया सग्गामेदावियं जीवणं ठाविया धम्ममग्गंमि, अन्नया इममेव वेरग्गमुबहतो सोचिंतिउंपवत्तो, जहा तिवाववायजलवाहदुलंघणिजं, दोगचमचुमयरज्झसभीममझं । . संसारसायरमिमं परियाणइचा, सत्ता सुहेण निवसंति कहं व गेहे ॥१॥ जे इत्तियपि न मुणंति किमज होही, सोक्खं व दुक्खमुचियं व तहेयरं वा । संसेवणिजमिममन्नयरं च मोहमाहप्पझंपियपहाणविवेयनेत्ता ॥२॥ जुम्म । किंच-कालंमि तंमि बहुला जइ नो कहेजा, संभोगविलसियं जणणीगयं मे। ता तारिसं दढमकजमहं करेत्ता, तिवानलेणवि लभिज न नूण सुद्धिं ॥३॥ एवंविहाण विविहाण विडंबणाणं, भोगामिलासमहमेक्कमवेमि मूलं। RANASALAKARArक For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्ताव: ॥ २२२॥ ता होउ संपइ इमेण दुर्गुछिएणं, सबोवहाविरहियं पकरेमि धर्म ॥४॥ दावश्यायनस्य इति निच्छिऊण बहुप्पयारेहिं गोसंखियं जमणि च पडिवजाविऊण पाणामाए पवजाए पवइओ एसो, करे प्रव्रज्या गोशालविविहे तवोविसेसे, अब्भसेइ निवयधम्मसत्थाई, रक्खेइ पाणिणो, पजुवासेइ गुरुणो, लट्ठो य जाओ निययध हासं तेजोम्ममग्गंमि । अन्नवा सो विहरतो कुम्मारगामवाहिं ठिओ आयावेइ, एसा वेसियायणस्स उप्पत्ती॥ | निवारणं. | तस्स य जडाजूडाओ दिणद्धदिणमणिकिरणपरितत्ता निवडंति धरणीअले जूयानियरा, सो य जीवाणुकंपयाए निवडियमेत्ताओ करेण गिण्हिऊण खिवइ जडामउडे, इओ य तेणंतेणं भगवया समं गच्छंतो गोसालो तं दद्रूण अणत्थसीलयाए ओसरिता महया सद्देण वागरेइ-भो भो किं भवं मुणी मुणिओ उयाहु जूयासेज्जायरो?, इत्थी पुरिसो वा?, न मुणिजसि सम्म, अहो ते गंभीररूवत्तणं, एवं च भणिए खमासीलयाए जावं वेसियायणो न किंपि जंपेइ ताव दुषिणयरसिगत्तणेण तिन्नि वाराओ पुणो पुणो पुच्छिओ गोसालगेण । अह तस्स पसमसीलत्तणुणोऽविहु दुटुवयणमहियस्स । अइघट्टचंदणस्सव वियंभिओ तिवकोहग्गी ॥१॥ तो तेणुष्भडजालाकलावपसरप्परुद्धगयणयला । गोसालगदहणत्थं तेउल्लेसा विणिस्सिट्ठा ॥२॥ एत्यंतरे जिणेणं तीसे विज्झवणपञ्चला शत्ति । गोसालगरक्खक्टा सीवलेसा पडिविमुक्का ॥३॥ ॥२२२॥ कष्ट For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACCORDASCANA अह तीऍ तेउलेसा वाहिरओ वेढिया समंतेण । सिग्छ चिय विज्झाया हिमवुट्ठीएव जलणकणा ॥४॥ ताहे तिलोकपहुणो अण्णणुरूवं वियाणिउं रिद्धिं । सो खामिउं पवत्तो इमाहि वग्गूर्हि विणयणओ ॥५॥ भयवं! न नायमेवं जह सिस्सो तुम्ह एस दुस्सीलो। इहि चिय मुणियमिमं ता इहि खमह अवराहं ॥६॥ इमं च जंपमाणं वेसियायणं दहण गोसालगेण भणियं-भयवं ! किमेस जूयासेजायरो उम्मत्तोव पलवइ ?, भयवया भणियं-भद्द ! जया तुमए मम पासाओ ओसरिता एसो एवं भणिओ, जहा-किं तुम मुणिमुणिओ इचाई, तया पढमवेलाए सहिता ठिओ, पुणो पुणो तुमए भणिओ समाणो तुज्झ दहणट्ठयाए उग्गं महापमाणं सलिला| इसिसिरवत्थुणावि अप्पडिहयसामत्थं तेउल्लेसं निसिरइ, सा य जावजवि तुह देहदेसं ईसि न पावइ ताव मए तप्पडिघायनिमित्तमंतरा ताराहिवहिमसिसिरा सीयलेसा पक्खित्ता, तप्पभावेण य तुह सरीरं तहट्ठियं दद्दूण उपसंह| यकोववियारो ममं पडुच्च एवं भणिउं पवत्तो-भयवं! न मुणिओ तुज्झ एस सिस्सो, ता मरसियचो मम दुविणउत्ति । इमं च आयन्निऊण गोसालगो भयसंभंतो भयवंतं भत्तीए पणमिऊण भणइ-कहं नं भंते! तेउल्लेसालद्धी हवेजा, भयवया बुत्तं-जेणं गोसालया! छटुंछ?णं निरंतरेणं तवोकम्मेणं आयावेइ, पारणगदिवसे य सनहाए |लुक्खकुम्मासमुट्ठीए एगेण य सलिलचुलुगेणं जावेइ जाव छम्मासा, तस्स विउला तेउलेसा संपज्जइति । इमं च तविहाणं सम्ममवधारियं गोसालगणं। AAKAASRELATESCREECRECE ३८ महा. For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच ६प्रस्तावः ॥२२३॥ अन्नया य सामी कुमारगामनयराओ सिद्धत्यपुरंमि संपट्टिओ, संपत्तो य पुत्वभणियतिलथंबपएसं, तओ गोशालतेपुच्छिओ गोसालगेण भयवं-सो तिलथंबो मन्ने न निष्फन्नो होजा?, भगवया भणियं-भद्द! मा एवं उल्लवेसु, जोलेश्या निप्फन्नो चेव सो अमुगप्पएसे वट्टइत्ति वुत्ते गोसालो भयवओ वयणमसद्दहंतो गंतूण तस्स एगते निहितस्स तिल| थेवस्स तिलसंगलियं हत्थेण फोडित्ता तिले पत्तेयं गणमाणो भणइ-नूणं सबजीवा एवं परियट्टिऊण भुजो भुजो तत्थेव नियसरीरगे उववजंतित्ति पादं पउपरिहारं नियइवायं च सम्ममयलंवेइ । अन्नया य सो तेउलेसासाहणत्थं भयवंतं विमुत्तूण गओ सावत्थि नयरिं, ठिओ कुंभकारसालाए, कयं छम्मासियमुग्गं तवकम्म, सिद्धा तेउल्लेसा, विनासिया कूवतडवियाए दासीए सरीरदहणेणं, तओ जायनिच्छओ पमुइयमाणसो अणवरयकोऊहलावलोयणस-13 यण्हो गामागराईसु परिभमिउमारद्धो। अह अन्नया कयाई अटुंगनिमित्तसत्थपत्तट्ठा । पासजिणनाहसिस्सा सिढिलियसद्धम्मवावारा ॥१॥ कोऊहलेण गामागरेसु उस्सिंखलं परिभमंता । गोसालगस्स मिलिया जाओ य परोप्परुलावो ॥२॥ सिटुं च तेहिं गोसालगस्स सनिमित्तसत्थलवमेत्तं । तेणावि सो वियंभइ जणस्स तीयाति साहितो ॥३॥ ॥२२३॥ पयइइ चिय उडमरसीलयं तस्स को तरइ कहिउं? । पाउन्भूयाइसयस्स किं पुणो पावनिरयस्स ? ॥४॥ भयवपि तेण रहिओ हरिणको इव विडप्पपम्मुक्को । अमहियसस्सिरीओ विहरइ वसुहं विगयमोहो ॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इय निरुवमसंजमभूरिभारधरणेकधीरधवलस्स । वीरस्स भुवणगुरुणो चरिए तइलोक्कवित्थरिए ॥ ६॥ बहुऽणत्थसत्थसालयगोसालयदुविणेयपडिबद्धो । वित्थरओ पत्थायो समथिओ छठ्ठओ एस ॥ ७॥ जुम्मं । इति गोसालदुविणयपडिबद्धो छटो पत्थावो सम्मत्तो ॥ ॥ इति षष्ठः प्रस्तावः ॥ ORGANAGAR अथ सप्तमः प्रस्तावः गोसालएण सहियस्स सामिणो संसिया उ उवसग्गा । एगागिणो उ एत्तो जह जाया ते तह कहेमि ॥१॥ अह पलयपयंडानलाणुरूवधम्मज्झाणनिज्झोसियासुहमलोवलेवो दाहोत्तिण्णजचकंचणच्छाएण पभापसरेण समु|ग्गमंतदिणयरनियराउलं दिसियकवालं कुणंतो सो महावीरजिणवरो कमेण विहरमाणो वेसालिं नयरिं संपत्तो, तत्थ य अहिगयजिणभणियजीवाजीवाइनवपयत्थो विविहाभिग्गहग्गहणनिग्गहियाविरइभावो भवभयारद्धसुविसुद्धाणुब्वयाइसावगधम्मो सिद्धत्थनरवइबालमित्तो संखो नाम गणराया, सो य भयवंतं पञ्चभिजाणिऊण पराए | मत्तीए महया रिद्धिसमुदएण सकारेइ, अह कइवयदिणावसाणे सामी वाणियगामे पढिओ, तस्स य अंतरा रंग| तभंगुरतरंगा महाजलुप्पीलपूरियपुलिणा महिलाहिययं व दुग्गेज्झमज्झा रणभूमिव कच्छवयमयरहिया गंडईया नाम For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महानई, तं च सामी नावाए समुत्तिन्नो समाणो बेलुयापुलिणंसि मुल्लनिमित्तं धरिओ नाविरोहिं, एत्थ य पत्थावे | शंखराजेन महावीरच०६ दिणद्धसमओ वट्टइ, खरं तावंति वेलुयं सूरस्स करपहकरा, तीए य संतप्पइ कमलकोमलं चलणतलं जिणस्स। | नाविकात् ७प्रस्ताव इओ य तस्सेव संखस्स गणराइणो भाइणिज्जो चित्तो नाम दूयकजेण पचंतराइणो समीवे गंतूण नावाकडएण श्रीवीरस्य मोचनं. ॥२२४॥ पडिनियत्तो पेच्छइ य तहट्ठियं सामि, तओ ते दुवयणेहिं बहु तजित्ता मोयावेइ, महिमं च से करेइ । अह सुसमाहियमणपसरो संरक्खंतो चराचरं लोयं । विविहपडिमाविसेसे पइदियहं चेव फासंतो ॥१॥ कत्थइ निंदितो उम्सिखलखलजणेण कुविएणं । कत्थइ थुणिजमाणो नमतसामंततियसेहिं ॥२॥ कत्थई पागयजीवियविणासखमतिक्खआवयकतो। कत्थइ अणुकूलजणोहविहियपूयामहामहिमो ॥३॥ उभयत्थवि धम्मतुलं व चित्तवित्तिं समं चिय धरंतो । विविहाउ भावणाओ भावितो भमइ वसुहाए ॥४॥ तस्स य भगवओ अणेगतवोविहाणनिरयस्स न मणागंपि कंपिजइ मणो पढमुम्मिलमाणसारसहयारमंजरीपुंजपरिमलमिलंतभमिरभमरभमरोलिरोलरमणीएण पल्लविल्लककिलिसरलसलईपमुहदुमसंडेण कनाडचेडीनिडालविलुलंतोलयवल्लरीचलणलंपडदाहिणानिलाडंबरिल्लेण पवरनेवत्थकुरंगनिजिजंतचचरीरवुद्दीरिउद्दाममयरद्धएण महु 18॥२२४ ॥ समएण १ न य पयंडमायंडमंडलुल्लसियपवलकिरणजालकरालियभुवणंतरालेण तण्हभिभूयबप्पीहगनिवहघोरसरसंछाइयावरसइंतरेण खरसमीरसमुद्धयदुहफरिससक्करुक्करुवक्कमणदुग्गमेण निदाहकालेण २ न य घोरघोसघणाघण पराबुद्दीरिउद्दाममया भारसमुडयदुहफारिसमजालकरालियभुवर्ण For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A सहसिलामीरपकंपामलणुतालकासियदियंतराला MAUSAMUHAMROGAM गयघडाडोवडरियपथियसत्थेण विप्फुरतविजुपुजुप्पिच्छपउत्थकामिणीहिययदारिणा पहिटुनीलकंठकोलाहलिलेण पाउसकालेणं ३ न य विसट्टकंदोद्दकमलकल्हारपरागधूसरियरायहंसेण परिपक्कसस्ससंपयाभिरामधरणीमंडलेण गइंददाणगंधसरिच्छातुच्छसत्तच्छयपुप्फगुच्छुच्छलंतामोयवासियदियंतरालेण सरयकालेण ४ न य फुलंतफलिणीमंजरीपुंजपिंजरियवणविभागेण पहिट्ठपामरारद्धवणमलणुत्तालकंकेल्लिकलकललक्खिजमाणगामसंनिविसेण हेमंतागमेण ५ न य हिमतुसारसंमिलियसिसिरसमीरपकंपंतपहियमुक्कसिक्कारकेउणा ठाणठाणपज्जालियग्गिट्टियपासपासुत्तपावासुयनिवहेण परिफुटकुसुमट्टहासहसिरुजाणाभोगेण सिसिरसमएणंति ६। ___ इय धम्मज्झाणनिवेसगाढवक्खित्तचित्तपसरस्स । छप्पिवि उउणो पहुणो भीयच कुणंति न वियारं ॥ १॥ एवं च विहरमाणो वाणियगामं नगरमुवागओ, ठिओ य तस्स बहियाविभागे काउसग्गेणं । तत्थ य नयरे आणंदो नाम सावओ, सो य छटुंछटेणं निरंतरेणं तवोविसेसेण आयावेइ, तस्स य तवप्पभावणं ओहिनाणं समुप्पन्नं, तयणुभावेण य सो पडिमापडियन्नं जयगुरुं दहण अच्चंतभत्तिभरनिब्भरंगो गओ सामिसमीवं, जहाविहिं वंदित्ता भणिउमाढत्तो य-भयवं! चिरमहियासिया दुस्सहपरीसहा तुमए, अहो तुम्ह वजसारसरीरत्तणं अहो निप्पकंपत्तणं, पत्तं च इमस्स किलेसस्स तुम्हहिं फलं, जओ कइवयवरिसेहिं केवलणाणमुप्पजिहित्ति भणिऊण गओ सगिहं । सामीवि तत्तो निक्खमित्ता सावत्थीनयरीए विचित्ततवकम्मसणाहं दसमवासारत्तं अइवाहिऊण नयरीय For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ७ प्रस्तावः ॥ २२५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr बाहिंमि कयपारणगो साणुलद्धियनामंभि य गामे वच्चइ । तत्थ य भद्दं पडिमं ठाइ, तहिं च अणसिओ पढमं पुद्दा - | भिमु हो एगपोग्गलणिसियदिट्ठी दिवसमसेसमच्छिऊण रयणिमि दाहिणाभिमुो ठाइ, तओ अवरेण दिवस उत्तरेण रत्तिं, एवं छतवोकम्मेण इमं भद्दपडिमं सम्ममणुपालिऊण सामी अपारिडं चैव महाभई ठाई, तीए य पुवाए दिसाए अहोरत्तं, एवं चउसुविदिसासु चत्तारि अहोरत्ताई, पलंबियभुयपरिहो उस्सग्गेण ठाऊण दसमेण इमं समत्थे । पुणो अकयपारणगो सबओभई पडिममुवसंपज्जइ, एईएवि पुवाइयासु तमापज्जवसाणासु दससुवि दिसासु उस्सग्गेण अच्छइ, नवरं उहृदिसाए जाई उड्डलोइयाणि दव्वाणि ताणि झायइ, अहोदिसाएवि हिटिलाणित्ति । एवं एवं बावीसइमेण पजं तमुवाणे । समत्थियासु य इमासु तिसुवि पडिमासु दढं परिसंतो भयवं, जाए य पारणगसमए पविट्ठो आणंदगाहावइस्स गेहे, तबेलं च बहुलियाभिहाणाए दासीए भंडयाणि खणीकरंतीए दिट्ठो जयगुरू, अह तप्पएसं संपत्तस्स तइलोकदिवायरस्स वासियभत्तं पणामियमणाए, सामिणाऽवि असंभंतेण जोग्गंति कलिऊण पसारियं सभावसोणिमासुभगं पाणिसंपुढं, परमसद्धाविसेसमुहंतीए दिन्नमेयाए, एत्यंतरे दुक्करतव चरणपजवसाणजायजिणपारणयपट्ठियहियएहिं सुरासुर किन्नरनिवहेहिं पूरियम्बरतलं, मुक्का य पंचरायकुसुमसमूहसणाहा अद्धतेरस - कोडिमेत्ता कणयवुट्ठी, ताडियाई चउचिहतूराई, जाओ य जणाण परितोसो, सा य बहुलिया दासी महाविया नरवइछत्तच्छायाए, अवणीयं से दासित्तणं । For Private and Personal Use Only ऋतुषद्वेनानभिभवः भद्रादिप्र तिमाः, ॥ २२५ ॥ Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org इत्थेव भवं विसिट्टभत्तीऍ पत्तदाणेणं । पाविजइ धणरिद्धी समुदुरा किं पुणऽण्णभवे ? ॥ १ ॥ तोचि रुंद भवन्नो गोपयं व लीलाए । दुक्करतवविरहेणचि लंघिजर पुन्नवंतेहिं ॥ २ ॥ लग्भइ तिलोयलच्छी लग्भइ सङ्घपि कामियं सोक्खं । एकं चिय नवि लग्भइ सुपत्तदाणं जयपहाणं ॥ ३ ॥ नापि तवोचि हवेज निष्फलं कहवि दिवजोएणं । दिनं सुपत्तदाणं वभिचरइ न नूण कश्यावि ॥ ४ ॥ इय जाणिऊण कलाणकोसकलणेक्कपञ्चले दाणे । न करेजा नणु जत्तं को अत्तसुहं समीहंतो ? ॥ ५ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अह जयगुरू तत्थ पारिएण बहिया विहरिउमारद्धो । अन्नया य गामाणुगामेण गओ वहुमेच्छजणसंकुलाए दढभूमी, तत्थ य पेढालाभिहाणस्स गामस्स वहिया पेढालुजाणे पोलासचेइए अट्टमेणं तवोकम्मेणं अपाणएणं ईसिं ओणयकाओ अचित्त लुक्खपोग्गलनिवेसियानिमेसनयणो गुत्तसबिंदियगामो सुप्पनिहियगत्तो अहोपलंचियभुयदंडो सुसिलिट्टसंठवियनिचलचलणो दुरणुचरं कायरनरुद्घोसकरं एगराइयं महापडिममारभेइ । एत्यंतरे सोहम्माए सभाए नाणामणिरयणभासुरकिरणपज लंतमहंत सिंहासन मुहासीणो अगसुरसुरंगणाकोडा कोडि संवुडो किरीडाइवराभरणपहा विच्छुरियदेहो पुरंदरो तहा पडिमा पडिवनं जयनाहमोहिए पलोइऊण तक्खणविमुक्का| सणो अचंतभत्तिभरनिब्भरंगो पुणरुत्तनिडालताडियमही बट्टो पणमिऊण आणंदसंदोहसंदिरीए सम्भूयत्थगुणगणुउभासण समत्थाए परमपवखवाय सुंदराए गिराए सुचिरं संधुणिऊण य निस्सामन्नं सामिणो असामन्नगुणपन्भारं हि For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org पेढालग्रामे श्रीवीरका श्रीगुणचंद महावीरच० ७प्रस्ताव: ॥ २२६॥ योत्सगे.. SALA ययंमि धरिउमपारयंतोच थुणिउं पवत्तो-भो मोतियसा! एस भगवं महावीरो पंचसमिओ तिगुत्तो अकोहो अमाणो 3 अमाओ अलोभो अणासवो अममो अकिंचणो संखोच निरंगणो जचकंचणं व जायरूवो जीवोष अप्पडिहयगमणो गयणंपिव निरालंबणो समीरणोब अप्पडिबद्धो सायरसलिलं व सुद्धहियओ पुक्खरपत्तं व निरुवलेवो कुम्मुख सुगुत्तिदिओ खग्गविसाणं व एगो विहगोच विप्पमुक्को भारंडपक्खिच अप्पमत्तो मंदरो इव निप्पकंपो सागरो इव गंभीरो चंदो इव सोमलेसो दिवायरोव दित्ततेओ कुंजरो इव सोंडिरो पंचाणणोच दुद्धरिसो वसभोव जायथामो वसुंधरव सवफासविसहो घयमहुसित्तो हुयासणोच तेयसा जलंतोत्ति, तहा एयस्त भगवओ न कत्थइ पडिबंधो समुप्पजइ, सो य चउविहो, तंजहा-दवओ खेत्तओ कालओ भावओ य, तत्थ दवओ माया मे पिया मे भाया मे सुहिसयणसंगंथसंथुया मे सचित्ताचित्तमीसाणि य दवाणि मे, एवं न ममीकारो जाएज्जा, खेतओ यगामे वा नगरे वा रन्ने वा खेत्ते वा खले वा घरे वा अन्नत्य वा तहप्पगारे पडिबंधो न हविजा, कालओ यसमए वा आवलियाए वा आणपाणए वा खणे वा मुहुत्ते वा दिवसाइए वा न ममत्तं जाएज्जा, भावओ य-कोहे| वा माणे वा मायाए वा लोभे वा पेजे वा दोसे वा कलहे वा अब्भक्खाणे वा पेसुन्ने वा परपरिवाए वा अरइरइए वा मायामोसे वा मिच्छादसणसल्ले वा न ममत्तं उप्पजेजत्ति । तहा एसो भगवं वासारत्तवजं अट्ठगिम्हहेमंतियमासेसु गामे एगराइए नगरे पंचराइए ववगयहाससोगभओ निरहंकरो निग्गंथो वासीचंदणकप्पो समत CACACCCCALCASSESARSA ॥२२६॥ For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *C RORECASSES णमणिलेझुकंचणो समसुहदुक्खो इहलोयपरलोयअप्पडिबद्धो जीवियमरणेसु निरवकंखी पुवजियकम्मसंघनिग्घायणहाए अभुडिओ विहरइ । किं च एयं महाणुभावं नियधीरिमतुलियतिहुयणजणोहं । नो धम्मज्झाणाओ खमंति संखोहिउं केई ॥१॥ देविदा तियसा वा जक्खा रक्खा व खयरवग्गा वा । भूया महोरगा वा अणप्पमाहप्पजुत्तावि ॥२॥ अवि चालिज्जइ मेरू पल्ह त्थिजइ महीवि पायाले । ससिसूरविमाणाणिवि वलिणा केणवि दलिज्जति ॥३॥ अवि सोसिजंति महण्णवावि बहुमीणमगरभीमावि । न य भगवं चालिजइ झाणाओ तिहुयणेणावि ॥४॥ इय सोचा जायपयंडकोवदट्ठोट्ठभीमभिउडिमुहो । दोसाण संगमो इव संगमओ नाम गिवाणो ॥ ५॥ सुरवइसमाणविभवो तत्कालविमुक्कलजमज्जाओ । ववगयविवेयभावो सया अभवो भणइ सकं ॥६॥ सामि! किमेवं भण्णह निगाणमवि समणयं सुरसहाए । अहवा सच्छंदाविय सोहंति पहूण उल्लावा ॥७॥ सचं चिय सुविसुद्धा जइ होज इमस्स कावि चंगिमया । गिहपालणं विमोत्तुं ता किं पासंड मंडेज्जा? ॥८॥ गिहवासाओवि न धम्मकम्ममन्नं वयंति किर कुसला । कीवत्तणेण चत्ते य तंमि किं संसणिजमिह ? ॥९॥ वागरियं जं च तए झाणाओ एस सुरवरेहिंपि । नो तीरइ चालेउं तंपि न वोत्तुं खमं तुज्झ ॥१०॥ जे लीलाए चिय पाणिपल्लवे संठवंति भूवीढं। गुरुसिहरभरकंतं गोलं व तुलंति मेरुपि ॥ ॥ ११ ॥ For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ७ प्रस्तावः शक्रप्रशंसा संगमः प्रतिज्ञा. ॥२२७॥ CALAASARA वायामेत्तेणवि तिहुयणपि कुविया खिवंति जमवयणे । निवडियगुणाण सुराण ताण को वहउ समसीसिं ? ॥१२॥ जइ सद्दहेसि एयं ता अच्छउ खोभिएण किं इमिणा? । अह नो ता पेच्छ जहा भग्गपइण्णं नियत्तेमि ॥ १३॥ इय भणिए पुरंदरो विचिंतेइ-अहो महापावपडलविलुत्तविवेओ सबहा एस, अओ जइ एत्थ पत्थावे निवारिजइ ता निच्छियं इमं परिकप्पेजा-सुरवइसामत्थेण एस भगवं तवोकम्ममविचलचित्तो कुणइ, न उण सत्तिएत्ति परिभाविऊण ठिओ मोणेणं । संगगयसुरोऽवि अतुच्छमच्छरमुबहतो निवारिजमाणोऽपि नियपहाणपरियणेण| केत्तियमेत्तो एस ? अजेव खोभेमि इमंति पइण्णं काऊण नीहरिओ अत्थाणीमंडवाओ, गओ भगवओ समीवं, तओ |दसणवसुप्पन्नगाढकोवेण विउविओ पलयकालोब पवलो धूलिनिवहो, तेण य चलणजुयलाओ आरब्भ जाव अ|च्छीणि सवणा य ताव पच्छाइओ, सामी जाओ निरुस्सासो, नवरि तिलतुसतिभागमेपि न चलिओ झाणाओ, अचलियचित्तं च नाऊण कओ अणेण कुलिसकढिणचंडतुंडभीमो पिपीलियासमूहो, सो य लद्धावयासो दुजणोव |जिणं विद्दविउं पवत्तो, किंतु निब्भग्गजणमणोरहोब जाओ निष्फलो, तओ दुन्निवारे सूइतिक्खमुहे उसे पेसेइ, | तेहिवि अखोभिजमाणे भुयणवंधवे घइलाओ चंडमुहमंडलाओ निवत्तेइ, ताहिवि खजमाणसरीरे निप्पकंपे जयनाहे |निम्मिया पिंगलसरीररुइणो अतुच्छपुच्छविसालिद्धकढिणकंटया विच्छुया,तेसुवि जहासत्ति कयप्पहारपडिहयसामत्थेसु पसरतमच्छरेणं विउविया दाढाकडप्पकराला नउला, तेहिंपि अभिभवियं भयवओ सरीरं, न उण ईसिपि सत्तं, SCARRCCCCCX ॥२२७॥ For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AGACCESCO GAUNLOCALCREASSANA-CASARSOC अह सविसेसवियंभियकोवप्पसरेण तेण तियसेण । मुक्का फुरंतफणरयणभासुरा दुस्सहा भुयगा ॥१॥ चंदणतरुणोच तणू जिणस्स आवेढियं ददं तेहिं । अइतिक्खदीहदंतग्गदसणतंडवियतुंडेहिं ॥२॥ न मणागंपि विचलियं तिलोयनाहं पलोइउंतियसो । ताहे मूसगनिवहं निवत्तइ दिवसत्तीए ॥३॥ पुणरवि पयंडदोघट्टघट्टयं तक्षणं पयट्टेइ । उलालियसुंडादंडभीसणं सेलतुंगतणुं ॥४॥ तेणवि विविहकयत्थणविसेससंपीडिएवि देहमि । धम्मज्झाणाउ जिणो न चालिओ वालमेपि ॥५॥ एवं चिय करणीहिवि पिसायनिवहहिं एवमेव जिणो । खोभेउ पारद्धो तेणं सुरकुलकलंकेणं ॥६॥ अचलंतमि जिणिदे करालदंतग्गविसिहभीममुहो । सजिजइ सहलो तेण लहुं जिणवरस्सुवरि ॥ ७ ॥ अइतिक्खनक्खदाढाहिं पीडिउं सोवि जयगुरुं वाढं। विज्झाओ झत्ति पउससमयदुग्गयपईवोध ॥८॥ इय खलियारणनिवहे पागयजणजीवियंतकरणखमे । पकएवि लिणं दटु सुनिचलं दूमिओ देवो ॥९॥ तओ जहावटियरूवं सिद्धत्थरायं तिसलादेविं च विउबइ, ताणि य कलुणाई विलवंति, भणंति य-पुत्त! किं तए दुक्करमिममारद्धं ?, उज्झाहि पवजं आगंतूण परिपालेह अम्हे, तुह विरहे वच्छ ! असरणाणि अत्ताणाणि य जायाणित्ति, एएणवि जा न सको खोभिउं ताव खंधावारं विउवइ, सो य पेरंतेसु आवासिओ जिणस्स, तत्थ सूयारो पत्थरे अलभमाणो जिणचलणोवरि पिढरं ठविऊण हेढा वजानलजालणेण रंघिउं पयत्तो, अह तकालसवि-| R E -द For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir S CREGA- श्रीगुणचंदद सेससमुच्छलियधम्मज्झाणजलुप्पीलकल्लोलविज्झाविएच निष्फलत्तणं पाविए तंमि पक्कणं निम्मवेइ, सोय अणेगा। संगमकृता हावीरच सउणिपंजरगाणि जयगुरुणो सवणे भुयदंडेसु खंधतलंमि जंघाजुयले य ओलंबेइ, तेहिंतो य नीहरिऊण पक्खिणो उपसर्ग: ७प्रस्ताव: नहसिहाहिं तिक्खग्गचंचुप्पहारेहि य विदवति जिणसरीरं, तहावि अखुभिए जयनाहे पइसमयवटुंतकोवेणं उप्पा-13 ॥ २२८॥ इओ जुगखयसमएव सक्करुक्करकलुसो खरानिलो, तेणावि समहियं सामिस्स पजालिओ कम्मतणगहणम्मि झा दणानलो, न उण चित्तसंखोमोत्ति, पच्छा कलंकलियावायं विरएइ, तेणवि चक्काविद्धोच सलिलावत्तनिवडिओच भा मिओ जिणो देहमेतेण, न उण चित्तासएणं । ___ इय एवंविहतिबोवसग्गकरणेऽवि निचलं नाहं । आभोगिऊण चिंतइ संगमओ जायगुरुकोवो ॥१॥ | वजसरीरो एसो खलीकओऽविहु बहुप्पयारेहिं । नो तीरइ खोभेउ कि काउं जुजइ इयाणि? ॥२॥ जइ एयमुज्झिऊणं सुरालयं जामि भग्गसपइन्नो । ता सुरवइपमुहेहिं आजीवमहं हसिज्जामि ॥३॥ [किंच-निययस्सवि हिययस्सा नत्थि एवं कयंमि परितोसो। पारद्धवत्थुनिबाहणंमि पुरिसाण पुरिसक्यं ॥४॥ अहवा होउ विगोवण निहणं एवं नएमि कूडमुणिं । एयस्स विणासंमी झाणंपि विणस्सिही नृणं ॥५॥ ४ ॥२२८॥ एवंपि य निवाहियगरुयपइण्णाभरो भविस्सामि । सुरवइपमुहाणमहं अहीलणिजो य तियसाणं ॥६॥ इय निच्छि ऊण पजलियजलणजालाकलावसंवलियं । विजुलयाउलयसमयमेहचंदं व दुप्पेच्छं ॥७॥ A-CA REACCORRECOCCACAS For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालायस भारसहस्सकोडिघडणुब्भडं महाचकं । जंबुद्दीवसमुग्गयवयणपिहाणं व घेत्तूण ॥८॥ उप्पइओ संगमओ दूरं गयणंगणं गुणविमुक्को । थालकरो तइलोकं भोत्तुं छुहिओ कयंतोच ॥९॥ तो तं सुमेरुचुन्नणयडमाहप्पपायर्ड चकं । मुक्कं सबससत्तीऍ तेण जयबंधुणो उवरिं ॥१०॥ तेणावि जिर्णिदतणू तडत्ति संताडिया गुरुभरेणं । आकरनहं निमग्गा महीऍ दढवजसंकुच ॥११॥ तत्थवि छज्जीवहियं झायंतं जिणवरं मुणेऊणं । वेलक्खमुवगओ सो चिंतइ तियसाहमो एवं ॥ १२॥ लल्लकचक्कपहओवि नेव पंचत्तमेइ जो एस । सो सत्थस्साविसओ ता संपइ किं करेमि अहं ? ॥ १३ ॥ एवंविहोवसग्गा दिहावि हरंति जीयमियराणं । किं पुण सरीरगोयरमुवागया दुस्सहा नूगं? ॥ १४ ॥ इइ विगप्पिऊण एगूणवीसइमोवसग्गपजंते जइ पुण अणुकूलयाए खोभिजइत्ति जायविन्भमेण संगमएण विणिम्मियं नाणामणिकिरणचिंचइयं पवरं विमाणं, तंमि समारूढो दिवाभरणपहाविच्छुरियसरीरो नियंसियविमलदुगुल्लो दिवं सामाणियदेविहि दंसेमाणो महुरेहिं वयणेहिं भयवंतं भणिउं पवत्तो-भो महरिसि! तुटोहि तुह सत्तेण तवेण खमाए बलेणं पारद्धवत्थुनिवहणेणं जीवियनिरवेक्खत्तणेणं पाणिगणरक्खणुजयमणेण य, ता अलाहि | एचो तवकिलेसाणुभावणेणं, जद भणसि ता पवरसुररमणीजणाभिरामं अणवरयपयट्टविसट्टनर्से विचित्तसत्तिजुत्ता-12 मरकीरमाणच्छरियं इमिणचिय सरीरेण तुमं नएमि तियसालयं, अहवा उत्तरोत्तरभयपरंपरापरूढजराइदोस-४ AGALBACCORROCATEGCA-वार ३९ महा- For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चक्रमांचन अनुकूलो. पसर्गः श्रीगुणचंद निवहरहियं एंपतियसुहसणाहं पणामेमि सिद्धिमिवासं, अहवा इहेव धरामंडले मंडलाहिवसहस्ससविणयाणुसमहावारचरिबमाणसासणं पउरकरितुरयरहजोहकोससंभिवमेगच्छत्तं संपाडेमि नरिंदत्तणं, वरेसु एएहिं किंपिनं मे रोवा, ७प्रस्तावः उज्झसु संखोहं परिचयसु कुवियप्पंति भणिएवि जाव भयवं पलंबियभुओ एगग्गचित्तो धम्मज्झाणपडिवन्नो न ॥२२९॥ किंचि जंपद ताव संगमएण अलद्धपडिववणेण चिंतियं, जहा-दुविलंघं मयरद्धयरायसासणं, महामुणीणवि कुणइ चित्तसंखोह, ता तस्स सबस्सभूयाओ पेसेमि दिधकामिणीओ, जइ पुण ताहिं हीरिजा एयस्स भणंति कलिऊण कओ समकालं सधेसि उऊण समवाओ, तप्पभाविण य फुलिया सहयारा पल्लविया ककिलिणो जायं दुहिणं पयट्टो मलयमारुओ उच्छलिओ परहूयारावो मउरिया नीवा पणचिया वरहिणो वियंभिओ य कमलपरिमलो जायाई कासकुसुमपंदुराई दिसिमुहाई, मुक्का भगवओ परंतेसु दसद्धवन्ना कुसुमवट्टी, तयणंतरं च विसजियाजो विविहसरमंडलपहाणगेयकुसलाओ करणप्पवंचमणहरनट्टविहिवियक्खणाओ वीणावेणुप्पमुहाउजसंजुयाओ पवरालंकारधारिणीओ तियसविलासिणीओ, संपचाओ य जयगुरुसमीवं, सविलासं विभिउं पवत्ताओ य, कह चिय?उन्भडसिंगारसनादेहलायनजलपवाहेण । सरियव वणाभोगं लीलाए पूरयंतीओ ॥१॥ पम्हलविसालदीहरतरलच्छिच्छोहचकवालेणं । दितिदिसिविसट्टकंदोदृपयरसंकं कुणंतीओ ॥२॥ Portretten ॥२२९॥ For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir FAUGUSERICA काओवि कुणंति नमंतसीसनिवडंतकुसुमदामाओ। जिणसंगमसोक्खुकंखिरीउ बाढं पयावणई ॥३॥ काओऽविहु गलियंसुयसंजमणमिसेण पायडिंति पुरो । जयगुरुणो पीवरकणयकलसपरिरेहिणं सिहिणं ॥४॥ मिच्छञ्चिय कारुणियत्तणं तुम उबहेसि हे सुहय ! । मयणसरजजरंगपि जन रक्खेसि जुवइजणं ॥५॥ मुंच कढिणतणं देहि नाह! पडिवयणमम्ह दुहियाणं । पेम्मपरायत्तमणं सप्पुरिसा नावहीरंति ॥६॥ तुह दंसणमेत्तेणवि दसमदसं पाविउच एस जणो । एत्तोऽवि मा उवेहसु एवं तजंति काओऽवि ॥७॥ इय सविलासं सुरकामिणीहि पायडियबहुवियाराहि । न मणागपि विचलियं चित्तं झाणाओ जगगुरुणो ॥८॥ अह उग्गयंमि सूरे अखुभियहिययं पलोइउं नाहं । संगमओ हयसत्ती चिंतिउमेवं समाढतो ॥९॥ अणुकूलुवसग्गेहिवि न चलइ एसो मुणी महासत्तो । ता किं एत्तो मोतुं एयं वच्चामि सुरलोए? ॥१०॥ अहया न जुज्जइ इमं काउं मे दीहरेण कालेण । उवसग्गियस्स जइ पुण इमस्स चित्तं पकंपेजा ॥११॥ इय कलुसासयगोयरगएण तइलोकबंधुणो धणियं । उवसग्गंगामेविहू विहरं परिचत्तभत्तस्स ॥ १२॥ वालुयपंथ सुभूमे सुछेत्त मलयंमि हथिसीसंमि । ओसलिमोसलितोसलिपमुहेसुं संनिवेसेसु ॥ १३ ॥ ते केवि तेण तियसाहमण विहरंतयस्स उवसग्गा। विहिया अइदुविसहा जे कहिउंपि हुन तीरंति ॥१४॥ एएणं चिय ते कारणेण चरिए न एत्थ वित्थरिया । सिद्धंताओ कुसलेहि किंतु सयमेव नायचा ॥१५॥ For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंदा एवं तदुवसग्गवग्गावि अविचलचित्तो गामाईणं बहिया बहुकालं गमिऊण सामी छम्मासियं पारणयं काउकामो अप्सरउपमहावीरच. समागओ वयगामे गोउलंमि, तत्थ य तदिवसं ऊसवविसेसो, सबत्थ पायसं उवक्खडिजइ, तिहुयणेकनाहोऽवि अण- | सगे ब्रज७प्रस्तावः वरयमुवसग्गवग्गं कुणमाणस्स संगमयामरस्स जाया छम्मासा नेव उवसग्गेइ संपयं, जइ पुण परिस्संतो सट्ठाणं ग्रामेऽप्य शुद्धि ॥२३०॥ गओ होजा, इय विगप्पिऊण पविट्ठो भिक्खानिमित्तं. संगमएणवि तत्थ पत्थावे जहिं जहिं गिहे भयवं वच्चइ। । तर्हि तर्हि समारंभिया अणेसणा, सामिणावि पउत्तो ओही, मुणिओ य एसो, तयणंतरमद्धार्हडिओ चेव नियत्तिऊण ठिओ पडिमाए, संगमएणावि आभोइओ भयवं,-किं भग्गपरिणामो नवत्ति?, जाव पेच्छइ ताव छजीक|हियमेव परिचिंतियंतं जिणवरं, ताहे संखुद्धो चिंतेइ-जो छहिं मासेहिं भूरिप्पयारोवसग्गेहि अणवरयं कीरमाणेहिवि न चलिओ सो दीहेणावि कालेण न सको चालिङ, निरत्थओ मज्झ उवकमो, दीहकालं चुकोऽम्हि सुर|विलासाणं, अहो नियसामत्थमचिंतिऊण कहं मए अप्पा विनडिओ? । इय बहुप्पयारेहिं नियचिट्ठियं दूसिऊण, निवडिओ भगवओ चलणेसु, भणिउमाढत्तो य-भयवं! भग्गपइन्नोऽहं, तुम्भे पुण समत्तपइन्ना, अवितहं भणियं महाणुभावेण सभागएण सुरवडणा, केवलं दुह कयं मए जं न तइया सद्दहियं । 18 ॥२३०॥ अलमत्तो भणिएणं खमेसु मे पुत्वदुक्कडं कम्मं । उवसंतोऽहं संपइ तुह उवसग्गं न काहामि ॥१॥ ता वच्चसु निस्संकं गामागरपमुहविविहठाणेसु । पविससु भिक्खनिमित्तं किलिस्ससे किं छुहाभिहओ? ॥२॥ S* XXXSCOX For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एत्यंतरंमि भणियं जिणेण संगगय ! मुंच मम तत्ति । पत्यावे चिय अम्हे सकजकिरियासु वट्टेमो ॥ ३॥ इय सोउं जिणनाहं पणमिय परमायरेण संगमओ । अइपावभरकतोवि पढिओ सुरपुराभिमुहं ॥४॥ इओ य-सोहम्मे देवलोए तकालं सवे देवा देवीओ य उविग्गा निराणंदा निरुच्छाहा अच्छंति, सक्कोऽविय मुक्कविलेवणालंकारो समुज्झियपेच्छणयाइविलासो परिचिंतेह-अहो एत्तियमेत्तस्स भगवओ अणत्थसत्थस्स अहं मूलकारणं जाओ, जओ मम पसंसाकुविएण इमिणा सुराहमेण इमं महापावं ववसियंति, एत्यंतरे सयलतइलोयजी-18 वरासिविणासजणियपावपंकविलित्तोब नीसेसावजसपंसुपडलविलुत्तगत्तोष अकल्लाणावलीकलिओब पणट्ठपुवकंतिपन्भारो पडिभग्गपइन्नाविसेसुम्मिलंतलजाभरसंकुचियलोयणो संपत्तो सोहम्मसभाए संगमयाहमो । तं च दहण पुरंदरो ठिओ परंमुहो, भणिउमारदो य भो भो सुरा! निसामह मम वयणं एस संगमयदेवो । चंडालो इव तुम्हं दहुंपि न जुज्जइ कयावि ॥१॥ एएण पावमइणा चिरमवरद्धं निराणुकंपेण । जं अम्ह पूयणिजो कयथिओ तिहुयणेकपा ॥२॥ जइ ताव इमस्स नत्थि पडिब्भयं भीमगुरुभवाहितो। ता किं ममवि न भीओ ववसंतो दढमकजमिमं? ॥३॥ जह जयगुरुणा निचलसामाइयगुरुभरो समुक्खित्तो। तह किं मएवि जं एस मज्झ संकेपि नो कुणइ ? ॥ ४ ॥ एएण जिणिंदऽवमाणणेण जणिओ पयंडपावभरो। तुम्हे पुण इत्थ ठिया पाविहिह इमस्स संगेण ॥ ५॥ For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ७ प्रस्तावः ॥ २३१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr निर्विषयतादेशः. महमिमं निहि सको नवोवसग्गकालंमि ? । किंतु मुणिस्सर एसो हरिस्स निस्साऍ तबह जिणो ॥ ६ ॥ ६ संगमकस्यपत्तं एत्तो जंपिएण निविसयमाणबेह इमं । वरि सुन्न चिय साला मा भरिया चोरवग्गेण ॥ ७ ॥ इय सुरनाहेण सरोसभासिणा चलणकोडिणा विवसो । निच्छूढो संगमओ एगागी सुरपुरीहिंतो ॥ ८ ॥ एवंविहं च माणमलणं पेच्छिऊण चिंतियं संगमएण-अहो एयाई ताई असमिक्खियकयाई पायडीहवंति संपर दुबिलसियाई, इय झूरिऊण सो जाणपण विमाणेण पट्टिओ मंदिराभिमुहं, तओ अकोसिज्जमाणो सुरविलयाहिं हीलिज्जमाणो नियपरिवारेण पेलिजमाणो सकसुहडेहिं उवेहिज्जमाणो सामाणियदेवेहिं नीहरिऊण सुरपुरीओ ठिओ मंदरचूलियाए, तस्स य सागरोवमं सेसमाउयंति । इओ य-से अग्गमहिसीहिं विन्नविओ पुरंदरो- जइ सामि ! तुम्ह आएसो हवइ ता अम्हे पियमणुसरामो, तओ विसज्जियाओ य इंदेण, सेसो पुण परिवारो पडिसिद्धोति । इओ य-भयवं वद्धमाणसामी जायंमि निरुबसग्गे तत्थेव गामे वीयदिषसे पषिट्टो गोयरचरियाए, हिंडतो य समागओ यच्छवालथेरी गिहे, तओ तीए भत्तिभरनिस्सरतपयडपुलय पडलाए वासियपायसभत्तेण पडिलाभिओ छमासस्स निरसणो भयवं । एत्थंतरे चिरकालजायजिणपारणगदंसणपरितुट्ठेहिं अहासन्निहियसुरनिवहेहिं पहयाई तूराई मुक्का कणगवुट्ठी परिखित्तो कुसुमनियरो वरिसियं गंधोदयं अहो दाणमहो दाणंति उग्घोसणा कया, तत्थेव ताव जांया अदरिद्दा थेरी । अह सामी निवबियसरीरो गओ आलभियाभिहाणं नयरिं, तत्थवि पडिमापडिवन्नस्स For Private and Personal Use Only ॥ २३१ ॥ Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr भतिनिभरो हरीनाम विज्जुकुमारिंदो तिपयाहिणापुवगं निवडिऊण चलणेसु संथवं काउं पवतो । कहं ? - जय निज्जियदुज्जयकुसुमबाण!, अविणस्सरपाषिय सुहनिहाण ! । उवसग्गवेरसमरे क्कधीर !, तुह सचं नाउँ जिनिंद वीर ! ॥ १ ॥ संसारजलहिनिवडतसत्त !, पई एकिं रक्खियबहुदुद्दत्त । तु सुमरणमित्व पावरासि, नासह तिमिरं पिव रविपयासि ॥ २ ॥ हदंसणमेत्तेऽवि जे न बुद्ध, ते तिक्खदुक्खलक्खेहिं रुद्ध । तुह चलणकमलमुद्दकियस्स, भद्दाई होंति धरणीयलस्स ॥ ३ ॥ स कयत्थ जाय हरिहरिणपमुह, भुषणेसर ! ते तेरिच्छनिवह । गिरिकंदरपडिमा संपवन्नु, तुहं दिहु जेहिं जिण ! कणयवक्षु ॥ ४ ॥ तावचिय घोरभवाडवीए, निवडंति जीवा दुहसंकडाए। जावऽज्जवि तुम्ह पयारविंद सेवं कुणंति नो जिणवरिंद ! ॥५॥ हिमवंतपमुहकुलपचएसु, खीरोयहिवेइरसायलेसु । गायंति कित्तिं तुह भुवणनाह !, किन्नरसमूह दइयासणाह ॥६॥ तुह कह कह वित्थारु पत्त, नीसेसकहंतर जणिहिं चत्त । उयंमि अहव रविमंडलंमि, खज्जोय न सोहई नहयलंमि ॥७॥ इय विजुकुमारिंदो थोडं कहिउं च केवलुप्पत्ती । पश्चासन्नं पच्छा नियभवणं अइगओ नमिउं ॥ ८ ॥ For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्कन्दप्रति श्रीगुणचंद सामीवि सेयवियानयरिमुवगओ, तत्थवि हरिस्सहो नाम भवणाहिवई देवो एइ वंदइ य पियं च पुच्छइ, जहा- विद्युत्कुमामहावीरचा भयवं! नित्थिना बहूवसग्गा, थेवमियाणि सोढवं, केवलनाणं च लहुं उप्पजिहित्ति भणिऊण जहागयं पडिनियत्तो। ७प्रस्तावः तिहुयणपहूवि तत्तो विहरिऊण सावत्थीए नयरीए परिसरे पलंबियभुयदंडो ठिओ काउस्सग्गेणं, तम्मि य दिणे माकृता ॥२३२॥ लोगो सिंगारियसरीरो गहियसुरहिकुसुमदामो विविहविलेवणभरियकचोलयसणाहो खंदपडिमाए पूयणत्थं भयवंतं उपासना.. | अइक्कमिऊण गंतुं पयट्टो । सा य खंदपडिमा तलं ण्हविया विलित्ता य जावज्जवि न समारोविजइ रहवरे ताव कहं महावीरो विहरइत्ति परिन्नाणनिमित्तं पउत्तो ओही सुराहियेण, दिडो सो पुरजणो भयवंतं मोत्तूण खंदप-1 | डिमाए पूयामहिमं कुणमाणो, तयणंतरं ओयरिओ सुरलोयाओ, अणुपविट्ठो य खंदपडिम, ताहे पुरंदराहिट्ठिया चलिया भयवओऽभिमुहं खंदपडिमा, तं च सयमेव चलंति दगुण तुछो लोगो-अहो देवो! सयमेव रहं आरुहइत्ति, खंदपडिमावि रहं मोत्तूण गया भगवओ समीवं, तिपयाहिणदाणपुवयं च पडिया पाएसु, भूमितलनिविट्ठा य पजुवासिउमारद्धा, लोगावि तहाविहमच्छरियं पेच्छिऊण विम्हिया चिंतंति-अहो वंदियवंदणिज्जो एस कोइ कामहप्पा निप्पडिमप्पभावसंगओ य ता सबहा न जुत्तमायरियमम्हेहिं जं इममइक्कमिऊण गयति अत्ताणं निर्दतेहि 8॥२३२ । सामिणो कया सवायरेण महिमा, अह जाए पत्थावे जयगुरू तओ पएसाओ निक्खमिऊग गओ कोसनि नयरि, तत्थ य उस्सग्गमुवगयस्स जयगुरुणो जोइसचकाहिवइणो सूरससहरा सविमाणा वंदणत्थं ओयरिया वसुंधरापीढं, CAOCALCCAGACASSAD राहियेण, दिसावजवि न समाए पूषणाय यदि RECASEX For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Artrottun गाढविम्हयक्खित्तनरनियरपलोइजमाणा यतिपयाहिणापुवयं पणमिऊण तइलोककलमलं जयबंधवं, निसन्ना जहो-18 इयट्ठाणेसु, पुच्छिया सुहविहारवत्ता, खणमेकं च ते जिणरूवदंसणसुहमणुहविऊण जहागयं पडिनियत्ता । अह जयनाहो गामाणुगामयं विहरिऊण भूवीढं । वाणारसीऍ पत्तो तत्थ य महिओ सुरिंदेण ॥१॥ पुणरवि रायगिहमि य फुरतमणिरयणमंडियसिरेण । ईसाणतियसवइणा थुयमहिओ पुच्छिओ य पियं ॥२॥ महिलानयरीएवि हु पत्थिवजणगेण परमभत्तीए । धरणिंदेण य नागाहियेण हिटेण पणिवहओ ॥३॥ गामागराइसु चिरं विहरिय पत्तमि वरिसयालंमि । एक्कारसमे सामी वेसालीऍ पुरीऍ गओ ॥४॥ तसपाणवीयरहिए थीपसुपंडगविजिए ठाणे । चाउम्मासियखमणं पडिवजित्ता ठिओ पडिमं ॥ ५॥ भूयाणंदो य तहिं भुयगवई भगवओ भवभएण । भत्तिभरनिब्भरंगो पूयामहिमं पयट्टेइ ॥६॥ अह तत्थेव पुरीए सावगधम्ममि बद्धपडिबंधो। दक्खिन्नदयापसमाइपवरगुणरयणरयणनिहीं ॥७॥ नामेण जुन्नसेट्ठी सुसावगो वसइ विस्सुयजसोहो । अन्नो मिच्छादिट्ठी अहिणवसेवित्ति नामेण ॥८॥ एगम्मि वासरंभी कजवसा नयरि बाहिनीहरिओ। सो जुन्नसेट्ठी सहो परमवियहो गुणहो य ॥९॥ पेच्छइ कंचणसच्छहसरीरकरपसरभरियनहविवरं । नीसेसलक्खणधरं उस्सग्गठियं महावीरं ॥१०॥ तं पेच्छिऊण निच्छउमजायसवण्णुनिच्छओ सहसा । हरिसुच्छलंतरोमंचकंचुओ वंदिउं सामि ॥ ११ ॥ For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir I श्रीगुणचंद महावीरच ७प्रस्तावः ॥२३३॥ जीर्णश्रेष्ठि भावना नवश्रेष्ठिगृहे पारणं. SKUSHKAMSUNICALK सोचिंतिउं पवत्तो भिक्खाकालेऽवि नीद जन्न पहू । पडिमोवगओ चिट्ठइ तं अज्जुववासिओ मन्ने ॥ १२॥ जह कलंमि य कलाणवलिकंदो करिज पारणयं । एसो भयवं मह मंदिरंमि ता सुंदरं होई ॥ १३ ॥ इय चिंतंतो पइवासरंमि सो पजुवासए सामि । ता जाव चउम्मासक्खमणं पजंतमणुपत्तं ॥ १४ ॥ तो बीयवासरे आगयंमि मुणिऊण पारणगसमयं । सामि निमंतइत्ता तुरियं गेहं गओ सेट्ठी ॥१५॥ पगुणीकयाई तेण य सनिमित्तं पुवकालसिद्धाई। फासुयएसणियाई भत्तीए पवरभोजाइं॥ १६ ॥ एयाइं अज जयवंधवस्स दाहामऽहंति कयबुद्धी । अणिमिसवियसियनयणो जयगुरुमग्गं पलोयंतो ॥ १७॥ धन्नो कयपुन्नोऽहं सुलद्धनरजम्मजीवियफलो य । होहामि अज नूणं तिहुअणपहुणो पयाणेण ॥ १८॥ चिरभवपरंपरजियनिविडासुहकम्मनिगडजडिजस्स । संपजइ जइ परमज्जमेव मोक्खो धुवं मम ॥ १९ ॥ इय चिंतंतो सुविसुज्झमाणलेसो स जायए जाव । ताव पविट्ठो सामिय अहिणवसेट्ठिस्स गेहंमि ॥२०॥ अचंतविभववित्थरदप्पगघेण सेटिणा तेण । भणिया दासी भहे ! समणं दाउं विसज्जेहि ॥२१॥ तीएविहु तवयणाणुरोहओ चट्टएण कुम्मासा । उवणीया दाणत्थं पहुणावि पसारिओ पाणी ॥ २२ ॥ खित्ता य तीए तयणंतरं च देवहिं दुंदुही पहया। परिमुक्का वसुहारा चेलुक्खेवो को झत्ति ॥ २३ ॥ घुटुं च अहोदाणं महया सद्देण पंचवन्नाणं । बुट्ठी विहिया कुसुमाण सुरहिगंधुदुराणं च ॥ २४ ॥ ॥२३३॥ For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिलिओ य नयरलोगो रायाविय विव्हिओं हिं पत्तो । वित्तंतमिमं पुट्ठो य तेहिं सेट्ठी पट्ठेिहिं ॥ २५ ॥ तेणावि कवडसीलत्तणेण काउं बहुं फडाडोवं । सिद्धं जहा महप्पा एसो परमन्नपाणेहिं ॥ २६ ॥ सयमेव मए पाराविओत्ति अवंतभत्तिजुत्तेण । एत्तो चिय तियसेहिं घुट्टमहो दाणमेयंति ॥ २७ ॥ सोचा एवं लोगो रायाविय गाढहरिसपडिहत्थो । तग्गुणगहणं काउं जहागयं पडिनियत्तोत्ति ॥ २८ ॥ सो पुण पुराण सेट्ठी अभ्यंतवियुज्झमाणसुहभावो । दुंदुहिसहं सोचा झडत्ति सोगाउलसरीरो ॥ २९ ॥ पडिचिंतिउं पवत्तो हाहाऽहं मंदभग्गजणजणगो । जणिओ विहिणा नृणं जस्स घरं लंषिरं नाहो ॥ ३० ॥ अन्नत्थ पारिओ अज्ज सायरं उबनिमंतिओऽवि मए । अहवा निप्पुन्नाणं न घरे चिंतामणी एह ॥ ३१ ॥ जुम्मं । अह भयवं पारिता गामागरसुंदरं धरावीढं । विहरह हरियतमभरो सूरो इव भवकमलाण ॥ ३२ ॥ अमिय पत्थावे समोसढो तत्थ पासजिणसिस्सो । सूरी केवलनाणप्पईवपायडियपरमत्थो ॥ ३३ ॥ नाउं समोसढं तं नयरिजणो नरवई य हिमणो । वंदणवडियाऍ लहुं समागओ तस्स पासंमि ॥ ३४ ॥ वंदित्ता भत्तीए उचिट्ठाणंमि सन्निसन्नो य । सुचिरं धम्मं सोउं पुच्छिउमेवं समादत्तो ॥ ३५ ॥ भयवं ! एत्थ पुरीए अणेगजणसंकुलाए को धन्नो १ । लहुईकय संसारो य ? कहसु अइकोउगं मज्झ ॥ ३६ ॥ तो केवलिणा भणियं अधन्नो एत्थ जुन्नसेट्ठित्ति । रन्ना वृत्तं किं नणु सामी पाराविओ तेण १ ॥ ३७ ॥ For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केवल्या श्रीगुणचंद किं वा अद्धत्तेरससुवन्नकोडिप्पमाणवसुहारा । तम्मंदिरंमि पडिया? अइधन्नो जेण सो जाओ ॥ ३८॥ महावीरच: तो केवलिणा भणियं भावणं तेण तिहुयणेक्कपहू । पाराविओ चिय तहा दाणत्थं कयपयत्तेण ॥ ३९ ॥ गमः देशना ७प्रस्ताव वसुहाराविहु परमत्थओ परं तस्स मंदिरे पडिया । जं सग्गमोक्खसोक्खाण भायणं सो इहं जाओ ॥ ४०॥ जीर्णश्रे | ष्ठिनो ॥२३४॥ किंच-जइ खणमत्तं नो दुदुहीऍ सई तया सुर्णितो सो। खवगस्सेणिं आरुहिय केवलं ता लहु लहंतो ॥४१॥ धन्यत्वं. - पत्तपहाणतणओ कणगं मोत्तूण तेण उ न अन्नं । भाववियलत्तणेण फलमहिणवसेट्ठिणा लद्धं ॥ ४२ ॥ इय भो देवाणुपिया! चरणं दाणं च देवपूया य । कासकुसुमं व विहलं सर्व चिय भावपरिहीणं ॥ ४३ ॥ एवं केवलिणा पन्नत्ते जहागयं गओ सभाजणोति । अलं वित्थरेणं, पत्थुयं भन्नइ-सो महावीरजिणो कमेण विहरमाणो गओ सुसुमारपुरं, तत्थ य असोगसंडंमि उजाणे असोगपावयस्स हेढओ पुढविसिलापट्टए कयअट्ठमभत्तस्स एगराइयं पडिमं पडिवन्नस्स एगपुग्गलनिवेसियानिमेसनयणस्स ईसिपम्भारगयदेहस्त भयवओ चमरो नाम असुरिंदो पुरंदरभयविहुरो संखमीणुप्पलोवसोहियं महागउच्च कमजुयलसरोवरतरुमल्लीणो, अह को एस चहमरो? कहं पुरंदराहिंतो भयं? को वा पुत्वभवे आसित्ति ?, निसामेह G ॥२३४॥ द्रा अत्थि गइंदकुलकवलिजंतमहल्लसलईपल्लवो नियसिहरतुंगिमाखलियरविरहपयारो पवरकाणणाभोगभूसियदिसि-1 निवहो विज्झो नाम गिरिवरो, तस्स पायमूले विभेलो नाम संन्निवेसो, तंमि य दयादक्खिन्नसबसोयाइगुणोववेओ SALUCHARGET240* For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SANSARMSSSSSSSC अपरिमियदवसंचओ पूरणो नाम गाहावई परिवसइ, सो य सम्मओ सयणवग्गस्स वल्लहो नरिंदस्स चक्खूभूओ| पयइवग्गस्स हिययनिविसेसो धम्मियलोयस्स उभयलोयाविरुद्वेगं ववहारेगं कालं वोलेइ । अनया य पच्छिमरयणीसमयंमि सुहसिजागयस्स निहाविगमुम्मिल्लमाणनयणनलिणस्स जाया से चिंता, जहा__ पुषभवे नृण मए दाणं दिन्नं तवं च आयरियं । तस्स पभावेणेसा मणवंछियकजनिप्फत्ती ॥१॥ तहाहि-नरवइसम्माणेणं धणेण धन्नेण कोसविभवेण । पुत्ताइपरियणेण य पइदियहमहं पवहामि ॥२॥ पडिकूलोवि हु लोगो दंसणमेत्तेऽपि होइ अणुकूलो। अनिवारियपसराविहु निवडंति न आवया मज्झ ॥३॥ ता जावऽजवि पुवजियस्स कम्मस्स कुसलरूवस्स । विजइ थेवोऽवि लवो जावऽजवि उज्जमो अत्थि ॥ ४॥ जाव जणे सम्माणो जाव य रोगादओ न दुर्मिति । जाव न विहडइ सरयम्भविन्भमा निच्छियं लच्छी ॥५॥ जाव न जजरइ जरा जाव न जायइ पिएण सह विरहो। आणानिदेसम्मि य जावजवि वट्टइ कुटुंबं ॥६॥ ताव पुणोषि हु धम्मं परभवसुहसाहगं उवचिणेमि । नहु कारणविरहेणं कजं उप्पजति कयावि ॥७॥ धम्मपभावो एसो जं किर साहारणेऽवि मणुयत्ते । एगे करेंति रजं अन्ने ते चेव सेवंति ॥ ८॥ तम्हा सूरम्मि समुग्गयंमि मुंजाविउं सयणवग्गं । ठविउंच गिहे पुत्तं तावसदिक्खं पवजामि ॥९॥ इय चिंतियंतस्स उग्गओ दिवायरो, तओ निमंतिओ सयणवग्गो काराविओ परमविच्छडेगं भोयणं संमाणिओ CROCKSCRECASSRCICIA ४० महा. For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ७प्रस्तावः पूरणय प्रव्रज्या . C ॥२३५॥ GLISHNOLOGICAL तंबोलाइदाणेण, जोडियकरसंपुडेण भणियमणेण-भो भो सयणा! निसुणह मह पयणं, एसोऽहं विरत्तो विसयाणं पडिनियत्तो गेहवावाराणं पणट्टसिणेहो पियपणइणीपुत्तमित्तपमुहपरियणे, अओ अणुमन्नेह मं दाणि दाणामाए पवजाए पज्जजमणुगिहिउं, चिरं एत्थ वुत्थेण य मए जन्न भे सम्मं वट्टियं तमियाणिं खमणिजं, जहा य ममोवरि पुर्व पक्खद्र वायमुबहता एवं मम पुत्तस्स संपयं बहेजह, इइ सप्पणयं भणिऊण ठविओ नियपए पुत्तो, समप्पिओ से गेहपरियरो, साहियाई निहाणाई भलाविओ सयणजणो, अन्नंपि कयंतकालोचियं कायचं । अह सोहणतिहिमुहुत्ते विसंव गेहवासं परिचइऊण चउप्पुडं दारुमयं भायणं गहाय दाणामाए पच्चजाए पवइओ पूरणो।तं चेव दिवसमारब्भ छटुंछठेणं अणि8.क्खेित्तणं तयोबिसेसेणं आयावणाभूमीगओ अत्ताणं सोसेइ। पारणगदिवसे य तं चउप्पुडगं भायणं गहाय उचावएसु। |गेहेसु मज्झंदिणसमए भिक्खं परिभमित्ता जं पढमपुडए पडइ तं पहियाणं अणाहाणं च देइ,जं दोचे तं कागसुणग|पमुहाणं, जं च तचे तं मच्छमगराईणं जलचरजीवाणं पणामेइ, जंच चउत्थपुडए पडइतं अप्पणा अरत्तदुट्ठो आहारेद। एवंविहदुक्करतवविहाणनिरयस्स निचमपि तस्स । न तहा पावविणासो जायइ सन्नाणहीणस्स ॥१॥ जह थेवतवेऽवि जिणिंदमग्गमणुलग्गयस्स साहुस्स । कालायसंपि अहवा रसाणुविद्धं हवइ हेमं ॥२॥ ___ अह तेण दुरणुचरेण बालतवेण अब्भाहओ सो पूरणो लुक्खो अद्विचम्ममेत्तगत्तो चिंतेइ-खीणोऽहमियाणि, ता-IKI जावऽजवि अत्थि किंपि पुरिसकारपरकमविसेसो ताव सयमेव तहाविहभूविभागे गंतूण अणसणं करेमित्ति विभा COMA For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr विऊण चउरपुडयपमुह उवगरण मेगंते परिचइऊण विभेलगसन्निसेसस्स ईसाणदिसिविभागे गंतूण भत्तं पञ्चकखाइ ॥ एत्यंतरे चमरचंचा रायहाणी अनिंदा यावि होत्था, सोऽवि पूरणो बालतपस्सी बहुपडिपुन्नाई दुबालस वासाई परियायं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसिऊणं मओ समाणो तीए चमरचंचाए रायहाणीए चमरिंद त्ताए उबवन्नो, तयणंतरं पंचविहाए पजत्तीए पजत्तिभावं गओ समाणो विविहमणिरयणनियर किरण विच्छुरियाई बिग़|सियसरसकुसुमपयरपरिरेहिराई सविलासधावंतसुरकामिणीललियकरयलुत्तालचा लियचामराई नियभवणंतराई इओ तओ आमोएमाणो वीससाए जाव उहुं पलोयइ ताव पेच्छइ सोहम्मदेवलोए सयलदेव रिद्धिसंभार सुंदरि महमहंतधणसारसंवलियकाला गरुत्रहलधूमपडलिले दुवारदेसनिवेसियवियसियसह सपत्तपिहाण पुन्नकल से निम्मलमणिभित्तिजोव्हापणासिय संतम से रणिरकणयकिंकिणीजाला उलउप्पंतघयवडाडोए ठाणद्वाणपलंवंत मुक्कमुत्ताहलकलावे विविहमणिरयणविणिम्मवियवरवेइयावेढिय पेरंतविभागे सोहम्मवर्डिसयविमाणे सोहम्माए सभाए सर्कसि सीहासगंसि निसन्नं चउरासीए सामाणियसहस्सेहिं अन्नाहि य अणेगाहिं देवकोडाकोडीहिं पंजलिउडाहिं पज्जुवासिज्जमाणं पहय पडुप डहमुखपमुहतुरनिनाय संवलिय तंतीतलतालाणुगयसंगीयपमोयभरनच्चमाणविलासिणीपलोयणपरं असंभावणिज्जसुहसं भारमणुभवमाणं सयमेव वज्जपाणिं पुरंदरं, तं च दहूण सामरिसं चिंतियमणेणं - अहो को एस अपत्थियपत्थओ दुरंतपन्तलक्खणो लज्जामज्जायपरिवज्जिओ सुरकुलकलंकभूओ अपत्तकाले चिय कालवयणं पविसिउ - For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद कामो? जो ममावि असुरराइणो सीसोवरि वट्टमाणो दिवाई भोगाई भुंजमाणो अणाउलं विलसइत्ति, एवं संपे चमरेन्द्रमहावीरचा हित्ता सामाणियपरिसोववन्नए देवे संसयसएसु आपुच्छगोचिए सदायित्ता भणिउं पवत्तो-भो भो देवाणुपिया !तयोत्पत्तिः ७प्रस्तावः को एस दुरप्पा मम सिरोवरि वट्टइत्ति?, ते य सिरसावत्तं करयलपरिग्गहियं मत्थए अंजलि कट्ट विजएणं वद्धा- | सौधर्मेन्द्र विऊण य सविणयं जंपिउमारद्धा-भो भो देवाणुपिया! एस सुरिंदो सोहम्माहिवई महप्पा महाजुई अपरिभविय प्रति कोपः. ॥२३६॥ सासणो सयमेव विहरइ । तओ तवयणसवणानंतरसमुप्पन्नामरिसवियंभंतभिउडिविकरालवयणो भणिउं पवत्तो भो भो वुहा! किमेवं अहिटपरकमा मम पुरोवि । कइवयसुरपरियरियं एयं तुम्हे पसंसेह? ॥१॥ जइ उच्चट्ठाणठिओ किमेत्तिएणवि गुरुत्तणमिमस्स ? । न हु वरइ तरुसिरत्थो कवोडओ नीलकंठसिरिं॥२॥ अहवा तोलिजंते तुलाएँ वत्थुमि जं हवइ सारं । तं हेदृचिय ठायइ इयरं पुण वट्टई उवरिं ॥३॥ एत्तो य लहू एसो अरिहवसएण पाविओ सग्गं । जह कोइ लहइ रजं मायंगकुलप्पसूओऽपि ॥४॥ भो भो सुचिरं इमिणा सूरविहीणे रणेव सुरलोए । काउरिसेण व सुरसुंदरीहिं सद्धिं सुहं वुत्थं ॥५॥ संपइ पुण अवणिजइ इमस्स चिररूढदप्पमाहप्पं । दुट्ठा उवेहियवा न हुंति रोगव कुसलाणं ॥६॥ ॥२३६ ॥ ___ तत्थ-जो ववसायं न कुणइ सकमागयसामिभावपरितुट्ठो। स सिरीएवि हु मुच्चइ सो काउरिसोत्ति कलिऊणं ॥७॥ इय होउ अज सुरलोयसामिणो माणदलणमलिणत्तं । सहसचिय कीरंतं पयर्ड बलसालिणावि मए ॥८॥ ROCESCRLGCARRORSCRIC% For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ANGRAGNCRACK एवं च चमरासुारदस्स अपरिभावियनियभुयबलमाहप्पदप्पजंपियं परिभाविऊण पयंपियं सामाणियसुरेहि-देव! एसोहि परभवोवजियविसिढ़पुन्नपगरिससमासाइयपवरलोयरायलच्छिविच्छड्डो पुरंदरो, तुमं पुण उज्जमववसायवलाइगुणगणपरिगओऽवि भवणवासीण अम्हारिसाणं सामी, ता नाह ! जयसु मच्छरं, उवभुंजेसु तुम सकमावज्जियं सामि. तणं, एसो पुण सुरपुरसंपयं, निरत्यओ एत्थ परोप्पर विरोहो, किं कजं संसयतुलावलंबिएण नियमाहप्पेणं ?, निउणबुद्धीए परिचिंतउ सामी। अपरिभावियकयाणं कजाणं उवभुजंतविसतरुफलाणं व पजंतविरसत्तणं, नहु एक्कसिपि8 माणखंडणासमुन्भूओ अवजसपंसू सुक्यसहस्सवारिधारावरिसणेणवि पसमिउं तीरइ, ता सामी! सयमेव मुणइ जमेत्थ जुत्तं, को अम्ह तुमाहितो विवेयभावो? ॥ इमं च निसामिऊण गरुयामरिसवसविसप्पंतभिउडिभीमभालयलो चमरासुरिंदो समुल्लविउमारद्धो-भो भो सामाणिया! सुरा निरत्थयं समुबहह परियायपरिणयविवेयविरहियं थविरतणं, जेण एवंविहसपहुपराभवपिसुण वयणनिवहमुलवंताण दूरमवकंतं तुम्ह गरुयत्तणं, गुणा हु गोरवमुवजणिति, एत्तो चिय लहुओऽवि परियारणं गुणा६ हियत्तेण गुरुव घेप्पइ जणेणं, कहमण्णहा अणुमेत्तोऽवि सुचित्तसुंदरयामहग्याविओ सिरम्मि निहिप्पइ सरिसवो?, • अहवा किमेएण?, अदिट्टमहपरकमाणं तुम्हाणं को दोसो?, ता साहेह किं हेलाकरयलतालणुदुप्पयंतनिवडतेहि गंदुएहिं व कीलेमि कुलाचलेहिं उयाहु गयणंगणविसप्पमाणकल्लोलपेलणुलरियतारयविमाणमालं निरंभेमि पत्रलपवणपक्खुभियजलहिजलवेलं?, अहवा पयंडभुयदंडचंडिमावसपरियत्तियं एगत्तीकरेमि भुवणतयं, इइ बहुप्पयारा-18 CACACASCACANCELCALCCCC For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ७ प्रस्तावः ॥ २३७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मरिसभरचित्तवयणाडंबराऊरियभवणन्भं तरुच्छलंत पडिसद्दयच्छलेन अणुमन्निव निग्गओ सकेण सह जुज्झिउं सो भयभीयाए सामाणियसभाए, अह ईसिजायविवेगेण पुणो चिंतियं चमरेण- एए मम सामाजियसभावत्तिणो असुरा बाढं भायंति पुरंदरस्स, ता सम्मं न मुणिजइ कज्जगई, जइ पुण तत्तो हवेज गंजणा अंओ तदभिहम्ममाण को मए सरणं पवज्जणिजोत्ति परिभाषिऊण पउत्तो ओही, दिट्ठो य भयवं महावीरो सुसुमारपुरपरिसरतरु संडे पडिमापडिवन्नो, तं च दट्टूण समुडिओ सयणिजाओ, नियंसियं देवदुसं, गओ नाणाविहवयरमयपहरणपडिहत्थाए चोप्पालगनामाए पहरणसालाए, कर्यंत भुयदंडविग्भमं गहियं महप्पमाणं परिहरयणं, तयणंतरं साहिलासं नयगंजलीहिं विजमाणो असुरतरुणीहिं किंकायश्यावामूढेहिं निरिक्खिजमाणो अंगरक्खेहिं दुत्रिणीओत्ति उवेहिजमाणो सामाणियासुरेहिं किंपि भविस्सर इह इति संसइजमाणो भुवणवइवग्गेण निग्गओ चंमरचंचारायहाणीओ, वेगेण य गच्छंतो संपत्तो भयवओ महावीरस्स समीवं, तिपयाहिणीकाऊण वंदिओ परमभत्तीए, पवत्तो विन्नवेडं, जहानाइ ! तुह पायपंकयाणुभावेण दुलहावि पुज्जंति मणोरहा, अओ इच्छामि तुह निस्साए पुरंदरं हयपरकमं परिमुक्कपहुत्तणाभिरामभियाणिं काउंति भणिऊण अवकंतो उत्तरपुरच्छिमंमि दिसिविभागे, समारद्धो वेउचियसमुग्धाओ, विउचियं वेगं महंतं घोरायारं जोयणलक्खप्पमाणमेत्तं सरीरं । तं च केरिसं १ उत्तुंग घोरसी सग्गभाग घोलंतकुंतलकलावं | अंजणगिरिसिहरं पिव नवमेहसमूहपरियरियं ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only सामानिकदेवोपदेशः गमनाय वैक्रियं. ॥ २३७ ॥ Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अइघोरवयणकंदरफुरंतदाढाकडप्पदुप्पेच्छं । वयणुच्छलंतपजलियजलणजालाकलाविलं ॥२॥ दिसिचक्कमुक्कउभडभुयदंडकंसतारयाचकं । उरपंजररुंदत्तणपच्छाइयसूरकरपसरं ॥३॥ गंभीरनामिमंडलपसुत्तफणिमुक्कफारफुकारं । उद्दामदीहजंघाभरभजिरचलणतलदेसं ॥४॥ कवलिउमणं व ससुरासुरंपि तेलोकमेकहेलाए । भीमाणवि भयजणगं गयणयले पसरियं झत्ति ॥५॥ एवंविहेण य सरीरेण पहाविओ तुरियसुरियं सुराहिवइसंमुहं, तो वेगवसधियम्भमाणमुहसमीरपबलत्तणपल्हस्थियसवर्डमुहावडंतसुरविमाणो लीलासमुल्लासियचलणकोडिताडियसमुत्तुंगसेलटालियगंडपाहाणपहयभूमिवट्ठो अंजणपुंजमेहसंदोहकलयंठभमरनियरसरिसेण देहपहापसरेण लवणजलहिवेलाजलुप्पीलेणेव पूरयंतो गवणंतरं सरीरगरुयत्तण भरितोब तिरियलोयं अणवरयगलगजिरवकरणेण फोडयंतोच बंभंडभंडोदरं कत्थइ जलवुद्धि मुयमाणो कत्थई रेणुक्कर किरेंतो कस्थइ तिमिरनियर निसिरंतो कत्थइ विजपुंजमुग्गिरंतो वाणमंतरदेवे भएण छिनधनं व कंपयंतो जोइसियतियसे वित्तासितो फलिहरयणमंबरतले वियमाणो निमेसमेचेण विलंघियसूरससिनक्खत्तमंडलो पत्तो सुरपुरं । ___ अह तारिसविगरालरूवावलोयणेण विम्हिया सुरसमूहा, हा किमयंति समुलवंतीउ भयवसविसंतुलगलियनीवीबंधणाओ(जाया)थंभियप विहाविया सुहडसत्था जीवियनिरवेक्खावि संखुद्धा अंगरक्खा वालब विचउचणमुवगवा लोयपाला, किंकायब्वयाविमूढा जाया सामाणियदेवा, अचंतं चमक्किया तायत्तीसा विसरसमारसंतोय नहो एरावणो, For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir शकेन्द्रादीनां श्रीगणचंद महावीरच. ७ प्रस्तावः ॥२३८॥ तिरस्कारः. MICROCALCUSSOORANSESS चमरिंदो पुण एर्ग चरणं पउमवरवेइयाए अवरं च सुहम्माए सभाए ठविऊण फलिहरयणेणं महया संरंभेण तिक्ख तो इंदकीलं ताडिऊण सरोसं एवं भणिउं पउत्तो-भो भो तियसाहम! कहिं सो सगिहसच्छंदलीलाविलासलालसो असमिक्खियवत्थुसमत्थणवियक्खणो नियसोंडीरिमावगन्नियसेससुहडलोगो अदिढकुसलमेत्तसंभावियसमग्गवेरिवग्गविजओ पुरंदरो? कहिं वा अलियवियढिमावगणियजुत्ताजुत्तसमायारो सकजपसाहणामेत्तपयासियसामिसेवापराओ ताओ चउरासीई सामाणियसाहस्सीओ ? कत्थ वा निष्फलकलियविविहपयंडपहरणाडंबराओ चत्वारि ताओ |चउरासीओ आयरक्खदेवसाहस्सीओ? कहिं चा उत्तुंगगिरिसिहरदलणदुल्ललियं तमियाणि कुलिस ?, कत्य वा ताओ अप्पडिमरूवलायन्नमणहराओ अणेगाओ अच्छरकोडीओ? अरेरे मा कजविणासंमि भणिस्सह जहा चमरचंचाराइणा अमुणियपयप्पयारेण छलेण विणिहया अम्हे, एसोऽहं संपयं तुब्भे अणाहे जरतरुंव निम्मूलमुम्मूलेमि सक्क-15 रालेढुंव फलिहरयणेण चूरेमि, किं बहुणा?, जुगवमेव सरणविरहिए कीणासवयणकुहरे पक्खिवामि, कुणह जमिह कायचे सरेह सरणिजं मग्गह सजीवियसंरक्खणोवायं, अहवा दूरुनामियउचिमंगादंसियसम्भावसारा समप्पह सुरलोयसिरिं, किं निरत्थयमुचहह पुरंदरपक्खवायं, पयडोचिय एस ववहारो- चिरकालपरिपालियावि कुलंगणा कालंतरेऽवि नूणमणुसरइ पाणनाहं । अन्नं च__ अववइणव पुरंदर ! मह विरहे जंतए इमा भुत्ता। विणयपणयस्स तं पुण तुह सबमहं खमिस्सामि ॥१॥ ॥२३८॥ For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुमिणेवि अदिट्ठभया नियनियभवणोदरेसु य निलुक्का । विलसंतु सुरसमूहा मम पयपणइप्पसाएण ॥२॥ अणुरूवपइसमागमपमोयभरनिस्सरंतपुलइल्ला । सुरपुरलच्छी वच्छत्थलंमि कीलउ जहिच्छं मे ॥३॥ अहवा किमित्तिएणं ?-मम बाहुपंजरंतरमल्लीणं तिहुअणंपि नीसेसं। आचंदकालियं वसउ मुक्कपरचक्नभयसंकं ॥४॥ इय ताव कुण पणामं सुरिंद ! नो जाव उत्तिमंगंमि । मोडियमउडकडप्पं निवडइ निबिडं फलिहरयणं ॥५॥ असमिक्खियनियभुयविकमो तुम जुज्झिउं मए सद्धिं । रंभातिलुत्तमाईण कीस वेहवमुवणेसि ? ॥६॥ पढमं चिय कीरंते नयंमि नो दिति दूसणं कुसला । कहविहु कजविणासे पच्छायावोऽवि नो होइ ॥ ७॥ एवं च असमंजसपलाविणं चमरमसुरिंदं निसामिऊण हेलाए तिवकोवभरउकुटुभिउडिभंगुरियभुमयभीसणपलोयणेण भणियं पुरंदरेण-रे रे दुरायारसिरसेहर दूरपरिमुक्कमेर चमरासुराहम दुचिट्ठिमामित्तवित्तासियतियससत्थ! पत्थेसि नूणमियाणिमपत्थणिजं १, कहमन्नहा तुहेहागमणविसओ संभविज्जा, ता रे वारणोच ससरीरसंभवेण दसणा-15 इणा सुरहिष केसकलावेण सारंगोव कत्थूरिगाए चंदणतरुव सोरन्भेण भुयंगमोब फणारयणेण एस तुमं नियदप्पेण पणामिज्जसि विणासगोअरंति भणिऊण सिंहासणगएणं चिय सुरिदेण सुमरियं वजं, तं च सुमरणाणतरमेव उक्कासहस्साई विणिम्मुयंत जालाकलावं निसिरंतं जलणकणकोडीओ विक्खिरमाणं फुलिंगमालासहस्सोहि चक्खुविक्खेवमुप्पाएमाणं असेसहुयवहनिवहनिम्मियं व सयलसूरकरनियरविरइयं व समग्गतेयलच्छिविच्छइसपिंडणुप्पाइयं SA%AAAAAAAAAAABAR For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चमरेन्द्रे श्रीगुणचंद महावीरच ७प्रस्ताव: ॥२३९॥ REGAONKAR व ठियं करयले पुरंदरस्स, मुक्कं च तेण, तं च तहाविहमदिट्टपुत्वं वेगेणागच्छमाणं पेच्छिऊण संभग्गसमरमच्छरुच्छाहो सुमरियसामाणियासुरसिक्खावयणो वयणविणिस्सरंतदीहनिस्सासो पुन्नेहिं जइ परं पावेमि रसायलंति कयसंकप्पो संभमुप्पिच्छतरलतारयच्छिविच्छोहसंवलिवनहंगणाभोगो कहिंपि अत्ताणं गोविउमपारयंतो भयवसपकंपमाणपाणिसंपुडपडियं फलिहरयणंपि अविगणतो अविमुणियतकालोचियकायबो अलाहि सेसोवाएहि, परं तिहुयणपहुणो पायपंकयमियाणि सरणंति सुमरिऊण उड्डचरणो अहोसिरो वेगगमणसमुप्पन्नपरिस्समनिस्सरतकक्खासेयसलिलोब उकिट्ठाए चवलाए [दीहाईए] गईए जिणाभिमुहं पलाइउं पबत्तो, अवियनिद्दलियदप्पविभवत्तणेण जायं न केवलं तस्स । लहुयत्तं देहेणवि वेगेण पलायमाणस्स ॥१॥ एसो सो किं वच्चइ जेण तहा जंपियं हरिसमक्खं । पहसिजंतो इय दिनहत्थतालेहि तियसेहिं ॥२॥ तह कहवि देहपम्भारभरियभुवणोदरोऽषि चमरिंदो । तवेलं लहु जाओ जहन मुणिजइ पयंगोद ॥३॥ तं च कुलिस सुरवइपयत्तपक्खित्तं जलणजालाकलापाउलियदिसामंडलं कवलयंतं व एकहेलाए सयलमाखंडलपडिवक्खं जावऽजवि थेवमेत्तेण न पावइ सिरमंडलं ताव भयगग्गरसरो-भयवं! तुममियाणि सरणंति जंपमाणो पविट्ठो जयगुरुणो उस्सग्गट्टियस्स चरणकमलंतरे चमरो एत्यंतरे सहस्सनयणस्स जाओ चित्तसंकप्पो-अहो न खलु दणुवइणो अपणो सामत्येण सोहम्मकप्पं जाव संभवइ आगमणं, केवलं भगवंतं तित्थयरं अरिहंतनेइयं वा भावि SARANASANA%AGRAA ॥२३९॥ For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ++ C+ अप्पं सुसमणं वा निस्साए काऊण इहागओ हविज्जा, ता बादं अजुत्तं परभवदुहावहं एवमाषडिहित्तिचिंतिऊण पउत्तो ओही, दिट्ठो य भयवओ पायपंकयमणुसरमाणो कुंथुष सुहुमदेहो चमरासुरिंदो, तं च दद्दूण सहसचिय जायचित्तचमकारो हाहा हओ म्हि मंदभग्गोत्ति वाहरमाणो अचंतसिग्घाए गईए वजमग्गेण पहाविओ पुरंदरो, | जाव य जिणुत्तमंगंमि चउरंगुलमपत्तं जायं वजं ताव तक्खणमेव पडिसंहरियमणेण, नवरं अइसिग्घगमणवसेण करयलसमीरणेण तरलिया जयगुरुणो कुंचिरा अग्गकेसा, तओ पुणो पुणो सदुचरियं निंदमाणेण तिपयाहिणी-IN काऊण बंदिओ सामी परमभत्तीए, खामिउमारद्धो य देव! पसीयह न मए वियाणियं तुम्ह चरणनिस्साए । ज एसो चमरिंदो समागओ मं पराभविउं ॥१॥ इण्हि चिय विन्नायं करयलपल्हत्थियंमि कुलिसंमि । ता पणयवच्छल! लहुं अवराहमिमं खमसु मज्झ ॥२॥ न पुणोवि भुवणबंधव! संसारपरंपरापरमवीयं । एवंविहं अकिञ्चं कइयावि अहं करिस्सामि ॥३॥ इति सविणयं खामिऊण जयगुरुं सक्को उत्तरपुरच्छिमदिसिविभागंमि ठाऊण वामेण चरणेण तिक्खुत्तो भूमितलमवदालिऊण दणुनाहं भणिउं पवत्तो-भो भो असुराहिव! सुंदरं तुमए कयं जमसेसजयजंतुसंरक्खणेक्कदिक्खि यस्स पहुणो पयपंकयंतरे तिरोहिओऽसि, एवं च कुणमाणेण तए दढमावजियं मम हिययं, अवणीओ पुषवेरामाणुबंधो, जणिओ आमरणंतं अवभिचरियपणयमावो, ता विहरसु जहिच्छाए, भगवओ पहावेण नत्थि तुह ममा CACANCECACACACA AAA% R For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ७ प्रस्तावः ॥ २४० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिंतो भयंति आसासिऊण जहागयं पडिनियत्तो तियसाहिवो । चमरोऽवि हरिसुकरिसवियसंतवयणकमलो भगवओ पायकप्पपायवप्पभावपरिग्गहिओ निरुत्रसम्गं नीहरिऊण जहाविहिं भयवंतं पणमिऊण थुणिउमाढत्तो सयलजयजीवबंधव! झाणानलदड्डकम्मवणगहण ! । तिखपरीसहसहणे कधीर ! जय जय महावीर ! ॥ १ ॥ सिद्धिवहुबद्धपडिबंध ! वुद्धसद्धम्मबंधुरनिहाण ! । चामीयर सरिससरी र कंतिविच्छुरियदिसिनिवह ! ॥ २ ॥ नाह! तुह पायछायालीणं नो भवभयंपि अक्कमइ । किं पुण सहावभंगुरगिरिदलणुदंतुरं कुलिसं? ॥ ३ ॥ जत्थ तुह नाह! सरणं उवेइ ससुरासुरंपि तइलोकं । पायतले तत्थ ठियस्स कह णु वयणिजया मज्झ ? ॥ ४ ॥ पत्तच्चिय सुरपुरसंपयावि परमत्थओ मए देव! | अब्भुदयमूलबीयं जं पत्तं तुम्ह पयकमलं ॥ ५ ॥ लब्भंति सामि ! जइ मग्गियाइं निखग्गहाई भत्तीए । पइजम्मं चिय ता तुम्ह चलणवासं लभेजमहं ॥ ६॥ इय चमरिंदो सब्भावसारवयणेहिं संधुणिय वीरं । नित्थरिय गरुयहरिभयमहन्नयो अइगओ सपुरिं ॥ ७ ॥ जयगुरूवि पभायसमए एगराइयं महापडिमं पडिसंहरिऊण निक्खंतो सुंसुमारपुराओ, कमेण य पत्तो भोगपुरं नयरं, तत्थ य महिंदो नाम खत्तिओ अकारणसमुप्पन्न तिचकोवाणुबंधो भयवंतं दट्टण खज्जूरितरुलट्ठिमुग्गीरिऊण धाविओ वेगेण हणणनिमित्तं एत्थंतरे चिरदंसणपाउन्भूयभत्तिपन्भारो समागओ तं पएसं सणकुमारसुराहिवो, दिट्ठो य For Private and Personal Use Only वीरशरणं चमरमुक्तिः चमरकृता वीरस्तुतिः • ॥ २४० ॥ Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सो तहाविहवेगेण जिणाभिमुहं इतो, तओ तं निवारिऊण सुरिंदेण पणमिओ जयगुरू, पुच्छिया परीसहपराजयपहाणसरीरवत्ता, गओ य जहाभिमयं ।-भयपि वद्धमाणो पलीणमाणो सुरिंदकयमाणो। तत्तो विनिक्खमित्ता 31 नंदिग्गामं समणुपत्तो ॥१॥ नंदीनागेण तहिं पिउमित्तेणं थुओ य महिओ य । तत्तो य नीहरिता समागओ मिंढयदग्गामं ॥२॥ तत्थ य गोवो कोवेण धाविओ वालरजुयं घेत्तुं । जयगुरूणो हणणत्थं, सो य निसिद्धो सुरिंदेण ॥३॥ ___ अह भयवं गामाणुगामगमणेण पत्तो निरंतरधवलहरमालालंकियं सुविभत्ततियचउकचचररेहिरं कोसंविपुरिं, तत्थ य भूपालणगुणनाडीनिबिडनिबद्धविपक्खरायलच्छिकरेणुगो सयाणिओ नाम नराहियो, तस्स य चेडगमहा-13 नरिंददुहिया अहिगयधम्मपरमत्था तित्थयरपायपंकयपूयणपरायणा मिगावई नाम भारिया, मुणियनिसेसरायं तरचारो सुहुमबुद्धिविभवपरिवालियरजभारो सुगुत्तो य अमचो, तस्स य सयावि जिणधम्माणुरागसंभिन्नसत्तसरीIरधाऊनंदा नाम भजा, साय सावियत्ति काऊण मिगावईए देवीए सद्धिं वयंसियाभाव दंसेइ, अन्नो य सयलदरिसणभि-15 प्पायपरूवणादिरओ नरिंदसम्मओ तचावाई नाम धम्मपाढओ, तहा तत्थेव नयरीए विवणिजणचक्खुभूओ धणावहो नाम सेट्ठी, मूला य से भारिया, एयाणि नियनियकुसलाणुट्ठाणसंगयाणि वसंति, तत्थ य भयवया पोसबहुलहै पाडिवए एवंविहो दुरणुचरो अभिग्गहो पडिवन्नो, जहा-जइ कालायसनियलबद्धचलणा अवणीयसिरोरुहा सोय भरावरुद्धकंठगग्गरगिरं रुयमाणी रायकन्नगावि होऊण परगिहे पेसत्तणं पवन्ना तिन्नि दिणाई अगसिया घरभंतर For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद| निहित्तेकचलणा बीयचलणलंघियघरदुवारदेसा पडिनियत्तेसु सयलभिक्खायरेसु सुप्पेण कुम्मासे पणामेइ त कौशाम्ब्यां महावीरच० परमहं पारेमित्ति कयनिच्छओ पुरजणेण अणुवलक्खिजमाणाभिग्गहविसेसो बावीसपरीसहसहणट्ठाए असंपर्जत- भावारा: ७ प्रस्तावः जहिट्टियभोयणोऽवि पइदिवसं उच्चावएसु मंदिरेसु पयत्तो परिभमिउं जयगुरू । पुरजणोऽवि भयवंतं अगहियभि-IN भिग्रहः राझ्यादि ॥२४१॥दक्खं क्खं अणुदिणं गेहंगणाओ चेव नियत्तमाणं पेच्छिऊण अचंतसोगसंभारतरलियमाणसो किंकायचयावामूढो चिंतिअपशि शोका. उमारद्धो, कहं ?किं दुहनिबंधणेणं धणेण? किं तेण मणुयभावेण ? । भोगोवभोगलीलाए ताए किं वा दुहफलाए? ॥१॥ जइ एवंविहमुणिपुंगवस्स गेहंगणं उवगयस्स । पाणन्नपयाणेणवि उवयारे नेव वट्टामो ॥२॥ जुम्मं ॥ कह वा कम्मजलाउलमणेगदुहमयरभीसणावत्तं । संसारसायरमिमं दाणेण विणा तरिस्सामो? ॥३॥ अहवा धन्नाण गिहे पविसइ एवंविहं सुमुणिरयणं । भिक्खापरिग्गहेण य अइधन्नाणं जणइ हरिसं ॥ ४ ॥ जइ एक थिय वेलं कहमवि पडिलाभिओ हवइ एसो। ता पाणिपल्लवे संवसंति सुरमोक्खसोक्खाई ॥५॥ इय जह जह जिणनाहो भूरिपयारेहिं दिजमाणंपि । भिक्खं नो अभिकंखइ तह तह खिजइ पुरीलोगो ॥ ६ ॥ ॥२४१॥ एवं च चत्तारि मासे कोसंबीए हिंडमाणो भयवं अन्नया पविट्ठो सुगुत्तमंतिणो भवणं, दूराओ चिय दिहो सुनंदाए, पञ्चभिन्नाओ य जहा सो एस भयवं महावीरसामित्ति, तो अणाइक्खणिजं पमोयपन्भारमुबहंती उट्ठिया SSAUSAMASSAGALISONGS For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir CACA झडत्ति आसणाओ, नीणिया परमायरेण भिक्खा, भयपि निग्गओ गेहाओ, सुनंदावि अदिई काउमारद्धा, ताहे दासीहिं भणियं-सामिणि ! एस देवजओ न मुणिज्जइ केणइ कारणेणं दिणे दिणे अगहियभिक्खो तक्खणे पडिनियत्तइ, एवं भणिए तीए नायं, जहा-नृणं कोइ अभिग्गहविसेसो, तेण तंमि असंपजमाणे अकयकजो चेव निजाइ जिणिंदो, इमं च से चिंतयंतीए जाओ बाढं चित्तसंतावो पम्हुट्टा गेहवावारा विसुमरिओ सरीरसिंगारो पल्हत्थियं करकिसलए गंडयलं, एत्यंतरे समागओ सुगुत्तामचो, पलोइया य एसा तेण, तओ पुच्छिया, जहा-कमलमुहि! ६ कीस निक्कारणं रणरणयमुवहतिव लक्खिजसि ?, न ताव सुमरेमि मणागपि अत्तणो अवराह, मइ अविणयपरिहारपरायणे परयणोऽवि न संभाविजइ तुह पडिकूलकारित्ति, तीए भणियं-पाणनाह! अलमलियसंभावणार्डि, नत्थि थेवमेत्तोऽवि कस्सइ अवराहो, केवलं जस्सप्पभावेण लीलाए लंपिजइ दुग्गमोवि भवन्नवो मणोरहागोयरंपि पाविजइ अपुणागमं सिवपयं अइदूरुलसिओऽवि विद्दविजइ अकल्लाणकोसो तस्स भयवओ भुवणनाहस्स बद्धमा-2 णसामिणो बहूई वासराई अणसियस्स, न मुणिजइ कोइ अभिग्गहविसेसो अणेण गहिओत्ति, अओ किं तुम्ह बुद्धीविभवेण? किंवा अमञ्चत्तणेणं ? जइ एवं अभिग्गहं न जाणहत्ति, अमच्चेण भणियं-पिए! परिचयसु संतावं, कले तहा करेमि जहा एस अभिग्गहो मुणिजइ, इय एयाए कहाए वट्टमाणीए विजया नाम पडिहारी मिगावईए| देवीए संतिया, सा केणइ कारणेण आगया, तमुल्लावं सोऊण मिगावईए सवं परिकहेइ, इमं च सोचा मिगावईवि For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अमात्यादिचिन्ता अभिग्रहोद्घोषणा. श्रीगुणचंद महादुक्खेण अभिभूया, सोगाउरा जाया, राया य तं पएसमणुपत्तो पुच्छइ-देवी! किं विमणदुम्मणा लक्खिजसि ?, महावीरच०८ तीए भणियं-देव! किं परिकहेमि?, तुम्हे दुग्गदुग्गइगमणमूलेण इमिणा रजभरेण पच्छाइयविवेया एत्तियपि न ७प्रस्ताव मुणह, जहा कत्थ सामी विहरइ?, कहं वा भिक्खं परिभनइत्ति, बहुं निभच्छिऊण साहिओ अभिग्गहवइयरो, ॥२४२॥ राइणा भणियं-देवि! वीसत्था होहि, कल्ले सत्वपयारेहिं जाणामि परमत्थंति भणिऊण उवविट्ठो अत्थाणमंडवंमि, वाहराविओ सुगुत्तामचो, समागओ एसो, तओ पणमिऊग राइणो पायपीढं उवविठ्ठो जहोचियासणे, भणिओ राइणा-अहो अमच! किं जुत्तमेयं तुज्झ जं भयवंतं इह विहरमाणंपि न जाणसि ?, अहो ते पमत्तया अहो ते सद्धम्मपरंमुहया, अज किर सामिस्स चउत्थो मासो निरसणस्स अविनायाभिग्गहविसेसस्स वट्टइत्ति, सुगुत्तेण भणियं-देव ! अवरावरक जंतराऊरियघरवासवासंगित्तणेण न किंपि मुणियं, इयाणि पुण जं देवो आणवेद तं संपाडेमित्ति भणिए रन्ना सहाविओ तच्चाबाई धम्मसत्थपाढगो, पुच्छिओ य एसो-जहा भद! तुह धम्मसत्थेसु सच्चपासंडाणं आयारा निरूविजंति, ता साहेहि को भगवया अभिग्गहविसेसो पडिवन्नोत्ति?, तुमंपि अमच! बुद्धिबलिओ, अओ वीमसेसु को एत्थ उवाओ?, खणंतरं च वीमंसिऊण तेहिं भणियं-देव! बहवे दवखेत्तकालभावभेयभिन्ना अभिग्गहविसेसा सत्त पिंडेसणाओ सत्त य पाणेसणाओ हवंति, अओ न नजइ कोऽपि अभिप्पाओत्ति । तओ रन्ना सवत्थ नयरीए काराविया उग्घोसणा, जहा-भयवओ भिक्खं भमंतस्स अपेगप्पगारेहिं भिक्खा नीणि ॥२४२॥ For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir READRASEARCREN नयवत्ति, इमं च निसामिऊण परलोयसुहकंखिणा विचित्तनेवत्थधारिणा अप्पमत्तचित्तेण नयरजणेण पइण्णामंदरस्स गोयरचरियं पविट्ठस्स भयवओ पइदिणं पणामिज्जइ अणेगप्पयारेहिं भिक्खा, न य घिप्पइ सामिणा, एवं च कहिंपि | असंपजमाणजहासमीहियपिंडविसुद्धीवि अमिलाणसरीरलायन्नो अदीणमणो य ठिओ तीए चेव पुरीए भयवं ।। एयं ताव एवं। | इओ य-सयाणियस्स रन्नो चारपुरिसेहिं आगंतूण कहियं जहा-देष! तुम्ह पुत्ववेरी दहिवाहणो राया संपयं थोवपरिवारो पमत्तो य वट्टइ, अओ जइ पंचरत्तमेत्तेण देवो तत्थ वचइ ता निच्छियं समीहियत्थसिद्धी जायइत्तिपभणिए राइणा दवाविया सन्नाहभेरी, संवूढा सुहडा संखुद्धा सामंता, चलिओ राया महासामग्गीए, आरूढो य नावासु, तओ अणुकूलयाए पवणस्स दक्खत्तणेणं कन्नधारजणस्स एगरयणिमेत्तेण अचिंतियागमणो संपत्तो चंपापुरी, असंखुद्धा चेव वेढिया एसा, दहिवाहणोऽवि सामगि विणा जुज्झिउमपारयंतो किमेत्थ पत्थावे कायवंति वाउलमणो भणिओ मंतिजणेण-सामि ! कीस मुज्झह, सबहा एत्थावसरे पलायणमेव जुत्तं । यतः त्यजेदेकं कुलस्वार्थे, ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् । ग्रामं जनपदस्यार्थे, आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥ १॥ प्रस्तावसदृशं वाक्यं, सद्भावसदृशं प्रियम् । आत्मशक्तिसमं कोपं, यो जानाति स पण्डितः ॥२॥ विक्रमावर्जिताः सद्यः, संपद्यन्ते पुनः श्रियः। जीवितव्यमवक्रान्तं, तेन देहेन दुर्लभम् ॥ ३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चम्पाभंगो | धारणीमरणं चन्दनाविक्रया श्रीगुणचंद सर्वेषामेव वस्तूनां, जीवितव्यमनुत्तमम् । तदर्थ राज्यलक्ष्म्याद्यास्तचेत् नष्टं वृथा परम् ॥ ४ ॥ महावीरच एवं तेहिं भणिओ सरीरमेत्तेण पलाणो दहिवाहणो, सयाणियरन्नावि घोसावियं नियखंधावारे, जहा-भो भो ! दंड७प्रस्ताव नाहसुहडपमुहा चमूचरा! गेण्हेजह जहिच्छाए एत्थ नयरीए जं जस्स रोयइ, मा ममाहितो मणागंपि संकेजहत्ति, ॥२४३॥ एवं जग्गहे घुटे पयट्टो रायलोगो भग्गो पागारो विहाडियाई गोपुरकवाडाइं लुटिउमारद्धं असेसंपि नयरं, तहाविहे दय असमंजसे वट्टमाणे दहिवाहणस्स रन्नो अग्गमहिसी धारिणी नाम देवी वसुमईए दुहियाए समं इओ तो पलाय माणी पत्ता एगेण सेवगपुरिसेण, रायावि संपाइयसमीहियपओयणो पडिनियत्तो नियनयरिहत्तं, सो य सेवगो द्र धारिणीदेवीए रूवेण लायन्नेण सोहग्गेण य अवहरियहियओ पहे वच्चंतो जणाणं पुरो भणइ-एसा मम पत्ती होही, है एयं च कन्नगं विक्किणिस्संति, एयं च से उलावं सुणिऊण भयभीया धारिणी चिंतिउं पवत्ता कह ससहरकरधवले कुलंमि नीसेसभुवणपयडंमि। जाया मह उप्पत्ती चेडयनरनाहगेहंमि? ॥१॥ कह वा नमंतसामंतमउलिलीढग्गपायवीढेण । दहिवाहणेण रत्ना ठवियाऽहं पणइणिक्यंमि ॥२॥ कह वा जिणिदवयणारविंदसंभूयसमयसवणुत्था । मम सययं वसइ मणे अकजविवरंमुहा बुद्धी ? ॥३॥ कह एस हीणसत्तोवि मुक्कमेरं ममं समुद्दिस्स । वागरइ जहा महिलं अहमेयं किल करिस्सामि ॥४॥ ता पावजीव! अजवि अस्सुयपुवं इमंपि सुणिऊण । किं निहरेसि न निल्लज! गंजणं सहसि सीलस्स ॥५॥ हरहासहंसधवलं सीलं मयलंति नो सुकुलजाया। करिकन्नतालचंचलजीवियकजेण कइयावि ॥ ६॥ SANCHASMASSAGE पाणी पत्ता एगेण सेवगपुरिसणासरत्नो अगमहिसी धारिणी मारवाडाई लूंटिउमारद्धं असणार एयं च कन्नगं विशालयन्त्रेण सोहग्गेण य अवहरियाहमाहियओयणो पडिनियत्तोनिया सम इओ FRICAKARENARA ॥२४३॥ For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAAAAAAEX कह वाविहु मम दुहिया एसा उच्छंगसंगसंभूया। परहत्थगया धरिही नियजीयं विरहसंतत्ता? ॥७॥ इय एवंविहसंकप्पकप्पणुप्पन्नतिबदुक्खाए । निभच्छियं व जीयं नीहरियं से उरो भेत्तुं ॥८॥ तीसे य अपत्तकालमरणं अवलोइऊण चिंतियं तेण सेवगपुरिसेण, अहो दुटुं मए भणियं-महिला होहित्ति, एसा हि महाणुभावा कस्सइ पुरिसोत्तमस्स भजा संभाविजइ, अओ चिय मम दुव्वयणायन्नणेण संखुहियहियया मया, ता किमित्थ अइक्वंतत्थसोयणेण ?, एयं कन्नगं इयाणि न किंपि भणिस्सामि, मा एसावि मरिहिति । ताहे महुरवयणेहिं अणुअत्तमाणा आणीया कोसंबी नयरिं, विक्कयनिमित्तं च उडिया रायमग्गे, अह धम्मकम्मसंजोएण तप्पएसजाइणा दिट्ठा सा धणावहसेटिणा, चिंतियं चऽणेण-अहो एरिसाए आगिईए न होइ एसा सामन्नजणदुहिया, जओ अणलंकियावि जलहिवेलब वहइ किंपि अपुर्व लावन्नं, किससरीरावि मयलंछणलेहत्व पायडइ कतिपडलं, ता जुजइ एसा मम बहुदवदाणेण गिण्हित्तए, मा हीणजणहत्थगया पाविही वराई अणत्यपरंपर, एयसंगोवणेण य जइ पुण इमीए सयणवग्गेण ममं समागमो होजत्ति कलिऊण जेत्तियं सो मोल भणइ तत्तियं दाऊण गहिया, नीया सगिहे, पुच्छिया य-पुत्ति! कस्स तं धूया ? को वा सयणवग्गो?, तओ उत्तमरायकुलपसूयत्तणेण सयं नियवइयरं कहिउमपारयंती ठिया एसा मोणेणं, पच्छा सेट्ठिणा धूयत्ति पडिवना, समप्पिया मूलाभिहाणाए सेट्ठिणीए, |संलत्ता य एसा-जहा पिए! धूया इमा तुह मए दिन्ना, ता गोरवेण संरक्खेजासि, एवं च जहा निययघरे तहा For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगणवासा तत्थ सुहेण संवसइ, ताए य सो सेट्ठी सपरियणो लोगो य सीलेण विणएण वयणकोसल्लेण य वाढं रंजिय- धनावहेन महावीरचहियओ समाणो चंदणसिसिरसहावत्तणओ पुवाभिहाणमवणेऊण चंदणत्ति वीयं नाम ठवेइ, एवं सा चंदणत्ति परि- ग्रहणं चन्द७ प्रस्तावःयणेण वाहरिजंती वहिउमारद्धा, गच्छंतेसु य दिणेसु वियंभिओ से ईसि जुधगारंभो, तबसेण य समुल्लसिओ नानाम मूलाया ॥२४४॥ सविसेस लायन्नपगरिसो, विजियकुवलयविन्भमं वित्थरियं नयणजुयलं, अलिकुलकज्जलकसिणो दीहत्तणं पत्तो केस अमर्षः पासो । अविय___ रूवपरिवजिओऽविहु जुबणसमयंमि हवइ सस्सिरीओ। किं पुण सभावओ चिय सुकुमारा सा नरिंदसुया ? ॥१॥ तीसे य पइदिणं वडमाणिं रूवसंपयं पलोयंती मूला सेटिणी बाढं मच्छरमावहइ, परिचिंतेइ य, जहा-को एयं सद्दहिजा जन्न इमं सेट्ठी परिणेऊण घरसामिणी करेजा?, ता सबहा मम विणासाय होअवमेयाए, अओ जह |किंचि छिदं पावेमि ता एवं ववरोएमि। अन्नया य सो धणावहसेट्ठी गिम्हुण्हकिलंतदेहो विवणिपहाओ आगओ नियमंदिरं, तम्मि य पत्थावे परियणाओ नत्थि कोऽवि जो चलणपक्खालगं करेइ, ताहे अइविणीयत्तणेण चंदणा समुट्ठिया पाणियं गहाय पायसोहणत्थं, निवारिजमाणावि सेट्ठिणा जणगोत्ति कलिऊण पयहा धोविउं, अह नीस-15॥२४४ ॥ हत्तणओ कुमारभावस्स सिढिलियबंधणो होऊण निवडिओ भूमियले दीहो से कुंतलकलावो, मा चिक्खल्ले पडि-18 |हित्ति करकलियलीलालट्ठीए समुक्खित्तो निधियारमणेण सेटिणा, बद्धो य । एत्यंतरे अणवरयछिहपेच्छणपराए CACANCARECCASCAMERASA For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | ओलोयणंतरगयाए दिट्ठमिमं पावाए अणत्थमूलाए मूलाए, ताहे ईसाभरवित्यरं तदढ कोव पाडलच्छीए इत्थीसभावओ च्चिय अचंतं तुच्छहिययाए चिंतियमेयाए इमं जं पुत्रिं तक्कियं मए आसि तमियाणिं पयडत्तणमणुभवइ विगप्पपरिहीणं, कहमन्नहा जणगतं वायामेत्तेण जंपिऊण पुरा सेट्ठी इमीए दइओ केसपासंधि संजमइ, ता जावज्जवि लजं | समुज्झिऊणं न पणइणिपयंमि ठवेइ सेठ्ठी एयं ताव उवायं करेमि अहं, इय सुविसुद्धपि जणं विवरीयं नियमईए कलिऊण मूला मूलाउ चिय उद्धरिडं चंदणं महइ । अह पक्खालियचलणे खणं कaatara वाहिं नीहरियंभि धणावहे ईसावसुप्पन्नमच्छराए सेठ्ठिभजाए बाहराविऊण पहावियं मुंडावियं चंदणाए सीसं, बहुं ताडिऊण लोहसंकलाए चरणे निगडिऊण य पक्खित्ता एसा दूरयरमंदिरंमि, दिन्नं निविडकवाडसंपुढं, भणिओ य परियणो-जो सेडिगो इमं वइयरं साहिस्सइ तस्सवि एस चैव दंडो मए कायचो, अओ वाढमापुच्छमाणेऽवि सेट्ठिमि न कहेयद्यमेयंति पुणो पुणो पन्नविऊण गया सगिहं । विगालसमए य समागओ घणावहो, कहिं चंदणत्ति पुच्छिओ परियणो ?, मूलाभएण न सिद्धं केणावि, तेण नायं-पासायतले कीलंती भविस्सर, एवं रयणीएवि पुच्छिया, तत्थवि | तेण नायं- जहा पसुत्तत्ति, नवरं बीयदिवसेऽवि न दिट्ठा, तइयदि य अचंतमाउलचित्तस्स आपुच्छमाणस्सवि पुणो पुणो जाव न कोइ साहेइ ताव जाया से आसंका - मा केणइ विहिया होज्जत्ति, समुत्पन्नगाढकोवो भणिउं पवत्तोअरे रे साहेह अवित तीसे पउत्ति, अहवा मे सहत्थेण मारइस्सं, जओ एरिससुपउत्तडंभाडंवरेण न मुणिजइ तुम्ह For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ७ प्रस्तावः ॥ २४५ ॥ www.kobatirth.org कुसलत्तणंति भणिए चिंतियमेक्काए थेरदासीए, जहा जीवियम्हि बहुकालं सयमेव, पञ्चासन्नमियाणिं मरणं, एतो. ऽवि किं करिस्सर मे मूला ?, ता साहेमि चंदणं, जीवउ मम जीविएणवि सा वराई, परजीवरक्खणं हि महापुनं बुच्चइ समयसत्थेसुत्ति चिंतिऊण सिट्ठो सेट्टिणो परमत्थो । दंसियं च तं सिंहं जत्थ सा अवरुद्धा अच्छइत्ति, तओ |गंतूण उग्घाडियं तं गिहं सेट्ठिणा, पलोइया य सिरोऽवणीयकेसपन्भारा छुहाकिलामियसरीरा मत्तमायंग चलणमलियकमलमालव विमिलाणदेहच्छवी चंदणा, तं च दट्ठूण गलंतवाहप्पवाहा उललोयणो - पुत्ति ! वीसत्था होहित्ति समासासिऊण गओ महाणससालाए, निरूवियाई भोयणभंडाई, कूराइयं च विसिद्धं भोयणमपेच्छमाणेण कुम्मासे चिय सुप्पकोणे घेतूण समप्पिया चंदणाए, भणिया य-पुत्ति ! जाव अहं तुह नियलभंजणनिमित्तं आणेमि लोहयारं ताव भुंजसु तुमं एयंति भणिऊण गओ सेट्ठी, सावि सुप्पप्पणामिए दहूण कुम्मासे करिणिव जूहपब्भट्ठा नियकुलं संभरिऊण सोइउं पवत्ता । कहं ? - जर ताव दइव ! तुमए नरवइगेहे अहं विणिम्मविया । ता कीस एरिसावयमहण्णवे दुत्तरे खित्ता ? ॥ १ ॥ सा रायसरी सो जणणिजणगसन्भाव निन्भरो नेहो । कह सङ्घपि पण गंधवपुर वेगेण ? ॥ २ ॥ खणमुल्लसंति उहुं खणेण निवडंति हेट्ठओ सहसा । खरपवणुद्धयधयवडसमाई ही विहिविलसियाई ॥ ३ ॥ इय दुबह सोगभरावरुद्धकंठक्खलंतवयणा सा । निवडतसलिलवाहप्पवाहधोयाणणा बाला ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only चन्दनाया निरोधः श्रे ष्ठिज्ञानं कुरमापदानं शोकः. ॥ २४५ ॥ Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AURANGALAAA-%ARE तण्हाळुहाकिलामियकवोलमह पाणिपल्लवे ठविउं । वयणं खणंतरं रोविऊण दीहं च नीससिउं ॥५॥ ते सुप्पकोणनिसिए कुम्मासे मुणिमणं व निन्नेहे । गिण्हइ भोयणहेउं किमभक्खं छुहकिलंताणं? ॥६॥ अह चिंतियमेयाए जइ एज्ज इमंमि कोइ पत्थावे । अतिही ता से दाउं जुजइ मह भोयणं काउं ॥७॥ इति परिभाविऊण पलोइयं दुवाराभिमुहं, एत्यंतरे चुन्नियचामीयररेणुसुंदरेण कायकतिपडलेण पूरयंतोब गयणयलंगणं उवसंतकंतदिटिप्पहापीऊसवरिसेण निववंतोब दुहसंतत्तपाणिगणं नगनगरसिरिवच्छमच्छसोवत्थियलंछिएण चलणजुयलेण विचित्तचित्तंकियं व कुणमाणो महीयलं सुहकम्मनिचओब पचक्खो अहाणुपुबीए विहरमाणो समागओ तं पएस भयवं महावीरजिणवरो, तयणंतर अप्पडिमरूवं भयवंतं दहण अचंतमसारं कुम्मासमोयणं च निरिक्खिऊण दूरमजुत्तमेयं इमस्स महामुणिस्सत्ति विभावमाणीए सोगभरगग्गरगिराए गलंतवाहप्पवाहाउललोयणाए भणियमणाए-भयवं! जइवि अणुचियमेयं तहावि मम अधन्नाए अणुग्गहढें गिण्हह कुम्मासभोयणंति, भयवयावि धीरहियएण निरूविऊण समग्गाभिग्गहविसुद्धिं पसारियं पाणिपत्तं, तीएवि निबिडनिगडजडियं कहकहवि दुवारस्स बाहिरुद्देसंमि काऊण चलणमेक्कमवरं च भवणभंतरंमि सुप्पेण पणामिया कुम्मासा, अह जयगुरुगरुयाभिग्गहपूरणपरितुट्ठा गयणयलमवयरिया चउबिहा देवनिवहा पहया दुंदुही पडिया य पारियायमंजरीसणाहा। भणिरभमरोलिसंवलिया कुसुमवुट्ठी परिसियं गंधोदयं निवडिया अद्धत्तेरसकोडिमेत्ता सुवण्णरासी मंदंदोलियविलया A4%ALAACANAOCAL For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद य वल्लरीकला पवाइओ सुरभिसमीरणो वियंभिओ भवणभंतरे जयजयारवो । अविय श्रीवीरपामहावीरच. दिसिदिसिमिलंतहरिसियनायरजणजणियबहलहलवोलं । नचंततरुणिसत्थं वजंताउज्जसंघायं ॥१॥ रणं राजा७प्रस्ताव: गमःनिगपइखणपहिङ्कसुरगणतिवइप्फोडणनिनायभरियनहं । मंगलमुहलसुरंगणसमूहसंसोभियदियंतं ॥२॥ डादीनां ॥२४६॥ इय जयपहुपारणगे न केवलं हरिसियं तमेव पुरं । सविसेसरंजियमणा जाया पायालसग्गावि ॥ ३ ॥ नूपुरादि. एवंविहे य परमपमोयसंभारे समुप्पन्ने मुणियजयगुरुपारणगवुत्तंतो समागओ करेणुगाखंधाधिरूढो पहाणपुरजणा-हू णुगओ अंतेउरसमेओ सयाणियनरनाहो, अमचोऽवि भजासहिओ संपत्तो सेट्ठिमंदिरं, पेंखोलिरतारहाररेहंतविच्छिन्नवच्छत्थलो माणिक्कमउडदिपंतउत्तिमंगो कडयतुडियथंभियबाहुपरिहो पुरंदरो य, तीसे य चंदणाए देवयाणु|भावेण पुर्वपिव नीहरिओ पवरचिहुरभारो नियलाणिवि जच्चकंचणमयाणि नेउराणि जायाणि, अन्नेहि य हारहारकडिसुत्तयकडयकुंडलतिलयपमुहरयणाभरणेहिं अलंकियमसेस सरीरं। एत्यंतरे संपुलो नाम दहिवाहणरनो कंचुइजो सयाणियरन्ना पुवं बंधिऊण जो आणिओ आसि सो तक्षणं चिय वसुमई दट्टण जायपञ्चभिन्नाणो सुमरियपुवसुचरिओ तीसे पाएसु निवडिऊण मुकपोकार रोविउमारद्धो, महुरवयहिं आसासिऊण कोऊहलेण पुच्छिओ राइणा ॥२४६॥ दाभद्द ! केण कारणेण एयाए पायपंकए निवडिऊण सहसच्चिय अचंतसोगनिम्भरं परुन्नोऽसि ?, तेण जंपियं-देव! चंपा-16 पुरीपरमेसरदहिवाहणरायग्गमहिसीए धारिणीदेवीए असेससीमंतिणीतिलयभूया धूया एसा, कहं तारिसविभवसमुदयं For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BR-4--000 पाविऊण इयाणिं नियजगणिजणगरहिया परगिहे वसइत्ति एएग कारणेणं, राइणा भणियं-भद! मा सोएसु असोयणिज्जा हि एसा जीए तिहुयणेक्कदिवायरो भवगत्तपडतजणलग्गणेकखंभो भयवं सहत्थेण पडिलाभिओ। मिनायईए भणियं-जइ एसा धारिणीदुहिया ता मम भगिणीधूगा हवइत्ति । एत्थ पत्यावे थुवमाणो सुरवइपमुहेहि सामी पंचदिणोणछम्मासतवपजंतकयपारणगो नीहरिओ धणावहमंदिराओ, अह अधुक्कडयाए लोभस्स अववाय-18 निरवेक्खत्तणओ पहुभावस्स सयाणियराया तं सुवण्णवुद्धिं गहिउमारद्धो, तओ पुरंदरेण मुणिऊण से चित्तवित्ति भणियं-भो भो महाराय न एत्थ सामिकोडेवियभावो, किंतु जस्स कस्सइ सहत्थेग एसा कनगा इमं वियरइ है तस्सेव हवइ, एवं च भणिए पुच्छिया रना चंदणा-पुत्ति! कस्सेयं दिजइ?, तीए भणियं-किमिह पुच्छणिजं?,3 एयस्स चेव निकारणवच्छलस्स जीवियदाइणो मम पिउणो धणावहसेट्ठिणो पणामहत्ति, ताहे सेट्टिणा संगोविया वसुहारा, पुणोऽवि सक्षेण भणिओ राया-एसा चरिमसरीरा भोगोवभोगपिवासापरंमुही महाणुभावा भयवओ वद्धमाणस्स समुप्पन्नकेवलालोयस्स पढमा अजाणं संजमुज्जोगपवित्तिणी सिस्सिणी भविस्सइ, अओ सम्म रक्खेजासि इति । भणिऊण अइंसणमुवगओ तियसाहियो। राइणावि कन्नतेउरे सबमाणं संगोविया चंदणा। तयणंतरं च असारय Pसंसारस्स तरलतरंगभंगुरत्तणं संजोगस्स कुसग्गगयजललवचंचलत्तणं जीवियवस्स पजंतविरसत्तणं विसयपडिबंधस्त ४२ महा. 18| परिभावयंती सा गमेइ कालं, इमे य मणोरहे करेइ, जहा For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ७ प्रस्तावः ॥ २४७ ॥ www.kobatirth.org भगवद पुरंदरदिसे ! जणिहिसि तं वासरं तुमं कइया ? । जत्य सहत्थेण जिणो उत्तारेही भवाओ ममं ॥ १ ॥ कइया ससुरासुरजीवलोयमज्झट्ठियस्स जयगुरुणो । वयणामयं पिविस्सामि सवणपुडएहिं अविरामं ॥ २॥ कइया निस्सेयस सोक्खमूलहेऊ खणो भविस्सइ सो । देहंमिवि निरवेक्खा निस्संगा जत्थ विहरिस्सं ॥ ३ ॥ कइया उग्गमउपाय सणादोसलेसपरिहीणं । पिंडं अन्नेसंती भमिहं उच्चावयगिहेतु ॥ ४ ॥ इय पवरमणोरकप्पणाहिं तीसे दिणाई बोलिंति । भावेण सङ्घविरई फासंतीए ससत्तीए ॥ ५ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूलावि सेट्टिणी मुणियवित्तंतेण बहुप्पयारेहिं निंदिया नयरीजणेण । जयगुरूवि पुरागराइ परिब्भमंतो गओ सुमंगलाभिहाणगामे, तत्थ सणकुमारसुरिंदो भत्तीए तिपयाहिणीकाऊण भगवंतं वंदइ पियं च पुच्छर, अह खणमेकं पज्जुवासिऊण सट्टाणे पडिनियत्ते सुरिंदे सामी सुळेत्तसंनिवेसंभि वच्च । तत्तोवि माहिंदकप्पाहिवहणा हरिसुक्करिसेणं वंदिओ समाणो विनिक्खमिऊण पालयं नाम गामं पट्टिओ, तहिं च घाहिलो नाम वाणिओ देसजत्ताए पयट्टो सामिं संमुहर्मितं दद्दूण अमंगलंतिकाऊण रोसवसायं विरच्छो नीलपापडलपलवियगयणमंडलं करवालमायडिऊणं एयस्स चेव समणगस्स मत्थए अवसउणं निवाडेमित्ति पहाविओ वहत्थं वेगेण, एत्थंतरे सुमरिय सुरिंदा सेण पुचभणियसिद्धत्थवंतरेण छिन्नमेयस्स सहत्थेण सीसं, तंमि य विणिहए अहासुहं विहरमाणो जयगुरू पत्तो चंपानयरीए, ठिओ साइदिन्नमाहणस्स अग्निहोत्तवसहीए एगदेसंमि, जाओ य For Private and Personal Use Only धनावदाय वसुधारा धनदानं चन्दनामनोरथाः धाहिल वघव. ॥ २४७ ॥ Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |दुवालसमो वासारत्तो, अह चाउम्मासखमणपडिवनस्स सामिणो माणिभद्दपुन्नभद्दनामाणो वाणमंतरसुरिंदा भत्तिभरमुबहता रयणीए समागंतूण चत्तारिवि मासे जाव पूर्व करेंति, ते य दद्रुण विम्हियमणो साइदत्तमाहणो विचिं तेइ-किं एस देवज्जगो जाणइ किंपि? जं देवा एयमणवरयं पूयंति पजुवासिति य, तो परिक्खानिमित्तं जंपियमणेणभयवं! एत्थ सरीरे करसिरपमुहंगसंगए अप्पा । को भण्णइत्ति ? तत्तो भयोति जिणेण से कहियं ॥१॥ जो अहमेवं मन्नइ, केरिसओ सो? अईव सुहुमोत्ति । सुहुमंपि किं भणिजइ ?, इंदियगेज्झं न जं होई ॥२॥ एत्तो चिय सद्दानिलगंधाईया, लहंति न कयाइ । अत्तववएसमेए, जं गेज्झा गाहगो अप्पा ॥३॥ इय एवमाइपसिणप्पपंचपरमत्थवित्थरे कहिए । विप्पो उवसंतमणो जयगुरुणो कुणइ बहुमाणं ॥४॥ अह पजंतमुवगए वासारत्ते जिणेसरो वीरो। कम्ममहिमहणसीरो जंभियगामंमि संपत्तो ॥५॥ तत्थ सुरिंदो वंदित्तु सायरं दंसिऊण नविहिं । कइवयवासरमज्झे नाणुप्पत्तिं परिकहेइ ॥६॥ तसो मिढियगामे पुबुवयारं सरितु चमरिंदो । नमिऊण चलणजुयलं जहागयं पडिनियत्तोत्ति ॥७॥ इथ अणवरयसुरविसरथुणिजमाणचरणो दुस्सहपरीसहमहोयहिदरतीरपत्तो आणुपुवीए परिभममाणो संपत्तो | छम्मासिगामं, ठिओ य तस्स बाहिभागंमि असेससत्तोवरोहरहियंमि पलंबियभुओ काउस्सग्गेणं । एत्यंतरे तिवि. For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir x श्रीगुणचंद भवतत्ततउयरसाउरियसवणवेयणाभिहयसेजावालपचइयं समुद्दिन्नं अचंतमसुहं भगवओ वेयणी कम्मं, सो य खातिदत्तमहावीरच० सेजावालजीवो तत्थेव गामे गोवत्तण वट्टमाणो वसहे भगवओ उस्सग्गढियस्त समीवे मोत्तूण गोदोहणाइकजे प्रश्नाः क७प्रस्ताव पविट्ठो गाममज्झे, ते य वसहा निरंकुसं संचरमाणा पविट्ठा अडविमि, इओ य खणंतरेण समागओ गोवो, समाउल शलाको॥२४८॥ पसर्गर 18 हियओ गोणे अपेच्छमाणो पुच्छइ-भो भो देवजग! मम संतिया एवंविहरूवा गोणगा तुमए दिट्ठपुवा न वत्ति, पुणो पुणो सवायरेणवि भणिजमाणेणावि जाहे जयगुरुणा न किंपि जंपियं ताहे पलयकालानलवियंभमाणकोवदसणदोहउडेण भणियमणेण-भो मम सहायरेण समुलविंतस्स पत्थरघडियहिययस्त व तुज्झ न मणागपि पडिवयणदाणमेत्तेऽवि अणुरोहो समुप्पण्णो, अह बहिरोत्ति न निसामेसि मे वयणं, एवं ता किं निरत्थएण तुह कनछिडुबहणणंति भणिऊण अइकूरज्झवसाण संगएण खित्ताओ सामिणो वामेयरसवणविवरेसु काससलागाओ, पत्थरेण दढं ताव समाहयाओजाय परोप्परं मिलियाओ, ताहे मा कोइ उक्खणिहित्ति पचंतभागे मोडिऊण अवतो गोवाहमो, सामीविपण?मायामिच्छत्ताइसल्लोऽवि सवणविवरंतरुच्छूढगाढसल्लो अचंतधिईवलिओऽपि दूसहवेयणायसकिसीभूयसरीरो मणागंपि धम्मज्झाणाओ अविचलियमाणतो तत्तो निक्खमिऊण गओ मज्झिमपावासनियेस, तत्व य पारणगदि-13॥२४॥ यहे पविठ्ठो सिद्धत्थवणियस्स गेहं, तओ तेण हरिसुच्छलंतपुलयजालेण चंदिऊण पडिलामिओ भयवं, एत्थावसरंमि य तर्हि चेव पुवागएण जिणं दह्ण भणियं खरगाभिहाणेग वेजणे-अहो भयवओ सबलक्षणसंपुन्नं सरीरं, केवलं For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir GAMACROCALSACSAGE पमिलाणलायन्नत्तणेण मुणिजइ ससलंब, इमं च निसुणिऊण असगजिणपक्खवायकलिएण ससंभमं भणियं सिद्धत्थेण-भो विज! जइ एवं ता निउणं निरूवेहि, कहिं ससल्लो एस जयगुरू?, एवं वुत्ते वेजेण अइसुप्पणिहिएण| सणियं सणियं पलोयमाणेण जिणतणुं दिढे कन्नविवरंतरनिहितं काससलियाजुयलं, दंसियं च सिद्धवणिणो, तं च तारिसमवलोइऊण जंपियं सिद्धत्थेण-अहो कस्सइ पावकारिणो अचंतनिकरुणं विलसियं, जं एवंविहं कम्ममायरंतेण न गणिओ दोग्गइनिवडणतिक्खासंखदुक्खागमो न पेहियं आकालियमजसं न चिंतियं धम्मविरुद्धं, अहवा, किमेएण दुट्टचेट्ठियविकत्थणेण ?, भो वेज ! साहेसु को संपयं उवाओ जेण एवं सलमवणिजइ ? । अन्नं च सल्लेण जएकपहुस्स कन्नविवरंतरं उवगएण । अणवरयं मह हिययं भिजइ एत्तो महाभाग! ॥१॥ अलियं उल्लवइ जणो जस्स वणो वेयणा हवइ तस्स । जं सामिणा ससल्लेण दुक्खिोऽहं दढं जाओ ॥२॥ परमत्थेण इमो चिय जीयं माया पिया य सयणो य । नाहो सरणं ताणं ता एत्तो किं परं परमं? ॥३॥ इय एयस्स निमित्ते धणं च धन्नं च दबनिचयं च । मम जीवियंपि चइऊण कुणसु भो सलउद्धरणं ॥ ४ ॥ उद्धरिए एयंमि तु तुमए भवभीमकूवगाहिंतो । उद्धरिओ परमत्थेण विज! निस्संसयं अप्पा ॥५॥ नीसेसगुणनिहाणे इमंमि उवजुंजिऊण नियविजं । आसंसारं सुंदर! आसीसाभायणं होसु ॥६॥ इयरंमिवि उवयारो कीरंतो जणइ निम्मलं कित्तिं । किं पुण तइलोक्कदिवायरंमि सिरिवीयरागंमि ? ॥ ७॥ For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ७ प्रस्तावः ॥ २४९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr इय सम्भावुष्भडवयणसवणपरिवद्धमाणपरितोसो । सामिचिकिच्छाकरणंमि उज्जुओ भणइ सो विज्जो ॥ ८ ॥ सिद्धत्थ ! अलमेत्थ पत्थणाए, तहा करेमि जहा लहुं अवहरामि भयवओ सलं, केवलं निप्पडिकम्मो एस नाभिलसइ चिगिच्छं न बहु मन्नइ सरीरसकारं नाभिनंदइ ओसहाइविहाणं, एवं च ठिए कहं कायवो सल्लसमुद्धरणोवकमो ?, सिद्धत्थेण भणियं-पज्जत्तं वाउलत्तणेणं, जहा तुमं भणिहिसि तहा करिस्सामित्ति अन्नोऽन्नं जंपिराणं निग्गओ भुवणगुरू, ठिओ बाहिरुज्जाणे, सिद्धत्थेणावि नियपुरिसेहिंतो सवत्थवि अन्नेसाविओ सामी, दिट्ठो य गामबाहिरुज्जाणे, तओ विज्जेण समेओ तदुवदिट्ठदिषोसहसामग्गिसणाहो तत्थेव गओ सिद्धत्थो, तयणंतरं च वेजेण | तेलदोणीए निषेसाविओ सामी, पच्छा कयकरणेहिं चउविहविस्सामणावियक्खणेहिं पुरिसेर्हि महाविओ, तओ सिढि - लीभूपसु संधिबंधणेसु बाढं निजंतिऊण संडासएण अइच्छेययाए लहुमाकहिउमारद्धो कन्नेहिंतो सरुहिरं सल्लजुयलं, अह नीहरिज्जमाणे सल्ले सा कावि वेयणा जाया । जीए मंदरधीरोऽवि कंपिओ झत्ति जयनाहो ॥१॥ मुको य घोरघणघोसविग्भमो जिणवरेण आरावो । कुलिसाहय (सुर) गिरिसिंगदल जाओ अइभीमो ॥२॥ जिणमाहप्पेण परं तडत्ति फुट्टा समंतओ न मही । अन्नह चलणंगुलिचालियाचले केत्तियं एयं १, ॥३॥ एवमुपाडियंमि सल्ले संरोहणोसहीरसनिसेग पक्खेषेण पगुणीकयंमि सवणजुयले सविणयं वंदिऊण य जयनाहं वेज्जवणिणो परमसंतो समुहंता सग्गापवग्गसोक्खसिरिं भमरिंव करकमलनिठीणं मन्नंता गया सगिहं । परमोवगा For Private and Personal Use Only सिद्धार्थखरकाभ्यां शल्य कर्षण. ॥ २४९ ॥ Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रित्ति पूइओ वत्थकणगाइदाणेण विज्जो सिद्धत्थेण । एवं ते दोन्निऽवि आसयविसुद्धीए तिवमवि वेयणं भयवओ उदीरयंता सुरलोयलच्छिभावणं जाया । गोवालो पुण अइसकिलियाए सत्तमनस्य पुढविं दुहनिवहभावणं पत्तो । तं च उज्जाणं महाभेरवंति पसिद्धिं गयं, देवउलं च तत्थ लोगेण कथं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr एवंविधात्रयाणं हवंति जयभायणं जिर्णिदावि । ता थोवायंकेऽविहु कीस जणो वह संतावं ? ॥ १ ॥ जर एक्कासंपि कयदुक्कयस्स एवंविहो दुहविवागो । ता असमंजसकिथेसुं पइदिणं कह जणो रमइ १ ॥ २ ॥ अतुलिबल लिएणवि जिणेण तिद्यावयं सहतेण । सहणे चिय कम्मविणिज्वरत्ति पडिवज्जद्द जणेण ॥ ३ ॥ एवं च भगवओ वद्धमाणसामिस्स परीसहाणं जहन्नगाणं मज्झे उबरि कडपूयणासीयं मज्झिमगाण न कालचिकं उक्कोसगाण य इमं चैव समुद्धरणंति । एवं गोवालेण मूलाओ आरद्धा उवसग्गा गोत्रालेण चैव निष्डियति । एवं तम उवसग्गाण संकलणा भणिया । इवाणिं सयलंपि तवोषिहाणं जं जहा भगवया समायरियं तं तदा संकलिऊण भणिज्जइनव किर चाउम्मासे छकिर दोमासीए उबासी य । बारस य मासियाई बावत्तरि अद्धमासाई ॥ १ ॥ एवं किर छम्मासं दो किर नेमासिए उवासी य । अढाइज्जा य दुवे दो चेव दिवमासाई ॥ भहं च महाभहं पडिमं ततो य सबओभहं । दो चचारि दसेव य दिवसे ठासीय अणुबद्धं ॥ २ ॥ ३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ७प्रस्ताव: ॥२५॥ KARAN गोयरमभिग्गहजुयं खवणं छम्मासियं च कासी य । पंचदिवसेहिं ऊणं कोसंबीए वरपुरीए ॥४॥ वीरतप: दस दो य किर महप्पा ठाइ मुणी एगराइयं पडिमं । अट्ठमभत्तेण जई एकेकं चरिमराईयं ॥५॥ केवलं च. दो चेव य छ?सए अउणातीसे उवासिया भयवं । न कयाइ निचभत्तं चउत्थभत्तं च से आसि ॥ ६ ॥ बारस वरिसे अहिए छटुं भत्तं जहन्नयं आसि । सवं च तवोकम्मं अपाणियं आसि वीरस्स ॥७॥ तिन्नि सए दिवसाणं अउणापण्णे उ पारणाकालो । उक्कुडुयनिसजाणं ठियपडिमाणं सए बहुए ॥८॥ इय एत्तियमेत्तं पञ्चजादिणाउ आरब्भ सवग्गेण छउमत्थकालियाए भगवया तवचरणमायरियंति ॥ संपयं पारद्धं भणिजइ-अह मज्झिमपावासन्निवेसाओ दुस्सहपरीसहनिसासंतमसं हणिऊण जिणदिवायरो समुम्मिलंतसमहिगाभिरामदेहप्पहापडलपयासियदिसामुहो नीहरिऊण अणिययविहारेण विहरंतो संपत्तो समुत्तुंगपायारपरिचुंबियंवर नाणाविहवणसंडमंडियदियंतरं जंभियगामं नाम नयरं, तस्स य बहिया विभागे वीयावत्तचेइयस्स अदूरे अणे यतरुवरसुरहिकुसुमामोयमत्तमहुयरझंकारमणहरपरिसराए उजुवालियानईए तीरंमि उत्तरिले कूले सामागामिहाण-18॥२५०॥ ४/गाहावइस्स छेत्तंमि समुम्मिलियपढमपल्लवपसाहियस्स सुपुरिसस्स व सउणगणसेवियस्स सुरपुरस्स व सुमणसाभि रामस्स महानरिंदस्स पत्तनियरपरियारियस्स व सालमहापायवस्स हिदुओ द्वियस्स भुवणबंधवस्स छटेणं भत्तेणं अपाणएणं आयावेमाणस्स गोदोहियासणं निसन्नस्स अणुत्तरेहिं नाणदंसणचरित्तेहिं अणुत्तरेहिं आलयविहारमद्दवज For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BHOLESCENERAL वेहि अणुत्तरेहि लाघवखंतिगुत्तिमुत्तिसच्चसुचरिएहिं अप्पाणं भावमाणस्त सडछम्माससमहिगेसु दुवालससंवच्छरेसु समइकतेसु वइसाहसुद्धदसमीए सुच्चयाभिहाणंमि दिणंमि विजए मुहुत्ते हत्थुत्तरानक्खत्तंमि चंदेण जोगमुवागयंमि सुक्कज्झाणानलनिद्दड्ढघणघायकमिंधणस्स पुहत्तवियक सवियारमेगत्तवियकमवियारं च झाइऊण उवरयस्स सुहमकिरियानिवर्टि वोच्छिन्नकिरियमप्पडिवाइं च सुक्कझाणचरिमभेयद्गमसंपत्तस्स अणंतमणुत्तरं निवाघायं निरावरणं पडिपुन्नं सयललोयालोयपयासयं केवलवरनाणदंसणं समुप्पन्नंति ॥ तयणंतरं च दुक्करतवचरणफलंमि केवलालोए । जाए सूरेणं पिव पयडिजइ तिहुअणं पहुणा ॥१॥ अह बत्तीस सुरिंदा तक्खणचलियासणा लहुं पत्ता। विरयंति समोसरणं पायारतिएण परियरियं ॥२॥ सुविभत्तचारुगोउरपोक्खरिणीपबलधयवडाइन्नं । सिंहासणं च मणिकणयनियरनिम्मवियहरिचावं ॥३॥ ताहे तिलोयनाहो थुवंतो देवनरनरिंदेहिं । सिंहासणे निसीयइ तित्थपणामं पकाऊण ॥४॥ जइविहु एरिसनाणेण जिणवरो मुणइ जोग्गयारहियं । कप्पोत्ति तहवि साहइ खणमेत्तं धम्मपरमत्थं ॥५॥ इय निरुवक्कमविक्कमनिरक्कियन्भंतरारिविसरस्स । वीरस्स भुवणपहुणो चरिए सूरे व विप्फुरिए ॥६॥ संगमयाइपरीसहसहणऽजियनाणलाभसंबद्धो । संखेवेण समत्तो सत्तमओ एत्थ पत्थावो ॥७॥ इइ सिरिमहावीरचरिए परीसहसहणकेवलुवजणो सत्तमो पत्थावो ॥ ANORAOSAMRACANCLASAALES For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥ २५१ ॥ www.kobatirth.org अथाष्टमः प्रस्तावः एवं केवलाभो भणिओ भुवणिकभाणुणो एत्तो । एकारसवि गणहरा जह से जाया तहा सुणसु ॥ १ ॥ अह निम्मयिनीसेसमोहमहिमो सो महावीरजिणवरो तहाविहोवयारविरहियं परिसं नाऊण परोवयारकरतिलिच्छ छिन्नपेम्मबंधणोऽवि धम्मदेसणाईहिं तित्थयरनामगोयं कम्मं बेइज्जइत्ति परिभाविंतो असंखेज्जाहिं | देवकोडीहिं परिवुडो सुरविरइएसु नवसु कणयकमलेसु नवणीयसुहफरिसेसु चलणजुयलं निवेसमाणो दिसामुहविसारिणा देवजणुज्जोएण पहियंधयारे निसासमएवि दिवसेध समुवलक्खिज्जमाणपयडपयत्थसत्यो तित्थनाहो |दुवालसजोयणंतरियाए मज्झिमानयरीए गंतुं पवतो, तओ जाव सामी न पावइ मज्झिमापुरीं ताव तीसे अदूरदेसे संठियंमि महासेणवणंमि उज्जाणे देवेहिं समोसरणविरयणा काउमारद्धा, कहं चिय ? आजोयणपरिमंडलभूभागं विगयकयवरुग्घायं । हरियंदण सुरहिरसच्छड्डाहिं पडिहणियरयनियरं ॥ १ ॥ पंचविहरयणनिञ्चिवरविरइया तुच्छपीढियाबंधं । हरिमुल्लसंतरोमंचकंचुया निम्मर्विति सुरा ॥ २ ॥ मणिदेवेहिवि विरइयर पंचरायरयणमओ । साठो विसालगोउरकविसीसयसुंदरो झति ॥ ३ ॥ ततो वाहिं परंतकिरणपब्मारभरियनहविवरो । जोइसिएहिं ठविज्जइ सुवण्णपागारपरिवेढो ॥ ४ ॥ तयणंतरं च दगरयधव उपहाहसियसारयमयंको । भुवणवईहिं कीरह निम्मलकलहोयपागारो ॥ ५ ॥ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only मध्यमापापाय स मवसरणं, ।। २५१ ।। Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 पवरमणिरयणरुहरं वंतरदेवेहिं सालमज्झमि । सिंहासणं उविज्जइ सपायपीढं सुरमणिजं ॥ ६ ॥ तस्सोवरिं विउच्च सको उम्मिल्लपल्लवसिरिलं । जिणदेहाउ दुवालसगुणियं कंकेलिपवरतरं ॥ ७ ॥ ईसाणसुरिंदो निम्मवेह लंवंतमोत्तियसरीयं । छणमयलंछणधवलं फलिहदंडं च छत्ततिगं ॥ ८ ॥ हेट्ठामुइटियविंटा रुंतुद्दाममहुयरसणाहा । आजाणु कुसुमवुट्ठी निवडइ गयणाओ वरगंधा ॥ ९ ॥ सवरयणामयाइं विचित्तकररइयसकचावाई । रेहंति तोरणारं नववंदणमालकलियाई ॥ १० ॥ मंदरमहियमहोयहिरवगंभीराई तियसनिवहेग । दिसि दिसि पहयाई चउविहारं तुराई दिघाई ॥ ११ ॥ पवणुद्धय खीरोयहिम हलकल्लोलविग्भमेहिं नहं । छाइजर धयनिवहेहिं वेजयंतीसएहिं च ॥ १२ ॥ मयरंदुद्दामसह स्सपत्त की लंतहंसमिहुणाओ । पडिगोउरं वराओ पोक्खरिणीओ य कीरंति ॥ १३ ॥ मिच्छत्तसत्तुविक्खो भदक्खमक्खंडभाणुबिंबसमं । जंतूण य कमलोवरि ठाविजइ धम्मवरचकं ॥ १४ ॥ देवच्छंद पमुहं अन्नंपि जमेत्थ होइ कायवं । बंतरसुरेहिं कीरह पहिहियएहिं तं सर्व्वं ॥ १५ ॥ इय नियनिय अहिगाराणुरूवओ विरइयंमि ओसरणे । जिणरविभीयच निसा निन्नट्ठा तक्खणं चैव ॥ १६ ॥ एत्यंतरे सायरसुरखयरनमंसिज्जमाणो माणाइरित्तगुणरयणावासो वासवनिदंसिज्जमानमग्गो मग्गाणुलग्गमवजणजणियपरितोसो तोसरोसपरिवज्जियगत्तो गत्तसमभवपडंतजणसमुद्धरणपरो परमकरुणरस निधवियजयजणदुहज For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद समवसर णरचना. ८ प्रस्ताव ॥२५२॥ SACROSSESEARCHANNEL लणो दुरियगिरिदलणो जयगुरुपुबदुवारेण पविट्ठो समोसरणभूमि, तओ सीहासणं पयाहिणीकाऊण ममावि पूणिजं तित्यंति दंसंतो कयकिच्चोऽवि नमो तित्थस्सत्ति भणन्तो निसण्णो पुवाभिमुहो सीहासणे, तयणंतरं च सेसतिदिसि सिंहासणेसु सुरेहिं रइयाइं जिणपडिरूवाई, ताणिऽवि भगवओ माहप्पेण तयणुरूवाई चेव सोहिउँ पवत्ताई, अह एगरूवोऽवि सयलजंतुसंताणनित्थारणत्थं व चउरूवधरो जाओ जयगुरू, तयणंतरं च सयलतरणिमंडलसारपरमा नियरविणिम्मियं व सरीरपरिक्खेवमणहरं समुग्गयं भामंडलं, ठिया य भगवओ उभयपासेसु पंचवण्णरयणविणि|म्मियदंडुन्भडाओ तुसारगोखीरधाराओघ गोराओ चामराओ करकमलेण कलिऊण दाहिणुत्तरभवणवइणो चमरबलिनामाणो असुराहिवा, अह गायंति केऽवि नचंति केऽवि फोडिंति केऽवि तिवइंपि । पकरेंति संथवं केऽवि भयवओ भत्तिए तियसा ॥१॥ मेलंति सुरहिमंदारकुसुममयरंदविंदुसंवलियं । जिणपय पुरओ केऽविहु पंचविहं जलरुहसमूहं ॥२॥ भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणिएहिं देवेहिं । पूरिजइ नहविवरं विमाणमालासहस्सेहिं ॥३॥ पंचप्पयारमणियणघडियसुंदरविमाणपडिहत्थं । उचहइ गयणविवरं पप्फुल्लियकमलसंडसिरिं ॥४॥ हरिहरिणसप्पसिहिनउलससगमज्जारमसगाईया । अन्नोऽन्नमुक्कवेरा ओसरणमहिं समल्लीणा ॥५॥ बहुपुत्वभवपरंपरसमुवजियकम्मसत्तुभीयाणं । ओसरणं सरणंपिव रेहइ नीसेससत्ताणं ॥६॥ INCREAMCEOCTOCURRENCE ॥२५२॥ For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ON AGAUROGRACEBOOK एत्थंतरे तिपयाहिणीकाऊण नमंतसिरिमउडमाणिककिरणविच्छुरियपायपीढा सुरासुरिंदा पणमिऊण जिणं नियदनियठाणेसु निसन्ना, अह सहस्सनयणेण निसिद्धमि कोलाहले निम्मलदसणमऊहजालपक्खालियाए इव निम्मलाए एगाएवि अणेगजणसंसयवुच्छेयसमत्थाए सुरनरसवरतिरियसाहारणाए सजलजलहरनिग्घोसगंभीराए आजोअणमित्तखेत्तपडिप्फलणपचलाए अमयवुट्ठीए इव निववियअसेसभवसत्तसंतावाए वाणीए पवत्तो जिणनाहो धम्मदेसणं काउं। कहं ? जह पाणवहाइसमुत्थपावनिवहेण भारिया जीवा । अयगोलगव भवसायरंमि मजंति वेगेण ॥१॥ जह नाणदंसणचरित्तसेवणाहिं लहुं विसुझंति । पार्वति य सोक्खपरंपराउ सग्गापवग्गेसु ॥२॥ जह मिच्छत्तच्छाइयविवेयनयणा मुणंति न कयावि । नीसेसदोसरहियं देवं सुगुरुं च धम्मपरं (यं)॥३॥ जह गिहकज्जासत्ता अवितत्ता कामभोगसोक्खेहिं । मणुअत्तं लक्षुपि हु मुद्धा थोवेण हारंति ॥४॥ जह तप्पमायपरयाए भूरिसो ताणसरणपरिहीणा । पावंति दहणभेयणपमुहाई दुहाई नरएसु ॥५॥ जह पंचमहत्वयकवयगूढदेहा दलंति लीलाए । अभितरारिवग्गं अजेयममरासुरेहिपि ॥ ६ ॥ जह सत्तुमित्तमणिलेटुसोक्खदुक्खेसु तुलचित्ताण । अमराहिंतोऽवि सुहं पाउम्भूएइ बहुययरं ॥ ७ ॥ तह जयगुरुणा नरतिरियदेवजणसंकुलाए परिसाए । हरिसभरनिन्भराए धम्मो सिट्ठो जयवरिट्ठो ॥८॥ ROCREARREARRA ४३ महा. For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ २५३ ॥ www.kobatirth.org अह पत्थरटंकुक्कीरियच दढवजलेवघडियव । जिणवयणामयपाणेण सा सहा निचला जाया ॥ ९ ॥ किंच-अनिमेसच्छीहिं मुहं जिणस्स पच्छंतया विरायंति । देवत्तलच्छिवरिअव तक्खणं तिरियनरनिवहा ॥१०॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इओ य-तीसे नयरीए अचंतधणकणसमिद्धो छक्कम्मकरणपरो नियदरिसणपरूवियधम्मनिञ्चलचित्तो सोमिलिज्जो नाम माहणो, तेण सग्गत्थिणा समारद्धो नयरीए बाहिंमि जन्नो, समाहूया दूरदिसाहिंतो बहुसिस्ससय परिवारा असेसविज्जाठाणपारगा चउबेयसुत्तत्थविसारया नियनियपन्नाव लेवोवहसियसुरगुरुणो इंदभूइपमुहा एकारस अज्झावगा, मीलियाई घयमहुजवपमुहाई जागोवगरणाई, पगुणी कयाओ दक्खिणानिमित्तं पवरपट्टणुग्गय चे लकण गाइरासीओ, भत्तीए कोउगेण उवरोहेण य समागओ बहुजणवओ, समारद्धो हुयवहे अणवरयमंतुच्चारपुच्चयं जन्नोवगरणपक्खेवो । एत्यंतरे गयणयलमइवयंताई सुरबहूसणाहाई देवविंदाई अवलोइऊण परितुट्ठो पेच्छगजणो, जंपेइ य-सुडु लठ्ठे जटुं जन्निएहिं जं सयमेव विग्गहवंतो तियसा परितुट्ठा इहई अवयरंतित्ति, अह चंडालनिलयं व जन्नवाडयं परिहरिऊण समोसरणसंमुहं गंतुं पयट्टेसु तेसु वियंभिओ लोयप्पवाओ, जहा सबन्नू तीयाणागयवत्थुजाणगो लोगुत्तरिस्सरिय रूवसामत्थजसाइगुणाबासो एत्थ समोसढो, तस्स पूयणत्थं एस नयरजणो विमाणारूढा तियसा य गच्छंतित्ति, अह सबन्नुत्ति गिरं सोउं उप्पन्नगाढपरिकोवो । नियलोयाणं पुरओ इंदभूई इमं भणइ ॥ १ ॥ मोत्तूण ममं लोगा तस्स समीवंमि कीस वञ्चति ? । किं कोऽवि ममावि पुरो सबन्नू अत्थि एत्थ जए ? ॥ २ ॥ For Private and Personal Use Only जिनस देशना देवागने गगधरागामीष्यो. ॥ २५३ ॥ Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ' गच्छंतु व मुक्खजणा देवा कहऽणेण विम्हयं नीया? । पूयंति संथुणंति य जेणं सद्दण्णुबुद्धीए ॥ ३॥ अहया जारिसओ सो सबण्णू तारिसा सुरा तेऽवि । अणुसरिसो संजोगो गामनडाणं व मुक्खाणं ॥४॥ किं वा इमिणा बहुजंपिएण? अजवि असिद्ध कजमि । सयमेव तत्थ गंतूण हेउजुत्तीहिं तं समणं ॥५॥ काउं हयप्पयावं पुरओ देवाण दाणवाणं च । नासेमि अहमसेस खणेण सवण्णुवायं से ॥ ६ ॥ जुम्म । इय साहंकारं जंपिऊण पंचहिं सएहिं सिस्साणं । परियरिओ सो पत्तो जयगुरुणो पायमूलंमि ॥ ७ ॥ तयणु-ससहरकासकुसुमोहहिमपंडुरछत्ततियनिहयतरणिकरनियरपसरह, पमिलंतसायरनरखयरसुरिंदसंदोहवंदह । पेच्छिवि जयनाहह महिम इंदभूह मणमि, किं एयंति चमक्कियओ तक्षणि ओसरणंमि ॥ ८॥ एत्यंतरंमि भुवणेकभाणुणा जिणवरेण संलत्तो । भो इंदभूइ ! गोयम सागयमिइ महुरवाणीए ॥९॥ ताहे चिंतियमिमिणा नामंपिहु मे बियाणए एसो। भुवणेऽवि पायडजसं अहवा को मं न याणेइ? ॥१०॥ जइ हिययगोयरं मे संसय मण्णेज अहव छिंदेजा। ता होज विम्हओ मे इय चिंतंतो पुणो भणिओ ॥ ११॥ किं मण्णे अत्थि जीओ उयाहु नत्यित्ति संसओ तुज्झ । सुंदर! परिचयसु इमं संदेहं माणपडिसिद्धं ॥ १२॥ अस्थि जिओ निभंतं इमेहिं सो लक्खणेहिं मुणियबो। चित्तंचेयणसण्णाविण्णाणाईहिं पयडेहिं ॥ १३ ॥ जइ पुण न होज जीवो अवडिओ सुकयदुकयाहारो। ता जागदाणनाणोवहाणपमुहं मुहा सत्वं ॥ १४ ॥ For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ २५४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr १५ ॥ इय जयगुरुणो वयणं सोउं परिभाविडं च मइपुवं । मिच्छत्तेण समं चिय उज्झइ तं संसयं झत्ति ॥ अह ववगयकुविगप्पो दप्पं सप्पं व उज्झिउं दूरे । संसारविरत्तमणो निवडइ चलणेसु जगगुरुणो ॥ १६ ॥ भणइय भयवं ! नियदिखदाणओ मज्झऽणुग्गहं कुणसु । इय वृत्ते नियहत्थेण दिक्खिओ एस जयगुरुणा ॥ १६ ॥१॥ ivasi सोउं अग्भूवि चिंतई एवं । वच्चामि तमाणेमी पराजिणेऊण सवण्णुं ॥ १७ ॥ मण्णे छलाइणच्चिय छलिओ माईंदजालिएणं व । समणेण तेण तम्हा उवेक्खणिज्जो न सो होइ ॥ १८ ॥ संसयमेगंपि ममं जइ पुण छिंदेज होमि ता सिस्सो । तस्सति जंपमाणो सोवि गओ जिणवरसमीवं ॥ १९ ॥ afores ! कम्मं अत्थी नत्थित्ति संसओ तुज्झ । वाढमजुत्तो एसो विज्जइ जं कम्ममिह पयडं ॥ २० ॥ कमण्णा समेsवि हु करसिरपमुहंगदेहसंबंधे । एक्के भवंति सुहिणो अष्णे पुण दुक्खिया निचं ॥ २१ ॥ धारयवायवत्ता विलासिणीविदुयचामरा एगे । भडचडगर परियरिया वञ्चति करेणुगारूढा ॥ २२ ॥ अणुवाहन चिय पए पए भयवसेण कंपंता । एगागिणो वरागा कहकहवि पहंमि गच्छति ॥ २३ ॥ एगे लीलाए चिय पूति मणोरहे बहुजणाणं । नियउयरंपिऽवि अन्ने भरंति भिक्खाए भमणेण ॥ २४ ॥ ससहरमुहीहिं बिंबाहरीहिं पप्फुलकुवलयच्छीहिं । एगे विलसति विलासिणीहिं सद्धिं सभवणेसु ॥ २५ ॥ मक्कडमुहीहिं मिरियत्थणीहिं अइलंबमोपोद्वाहिं । पच्चक्खरक्खसीहिं व अन्ने गिहिणीहिं सह ठंति ॥ २६ ॥ For Private and Personal Use Only श्रीमतो गातमस्य अग्निभूतेश्व प्रतिबोधः. ॥ २५४ ॥ Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलंमिवि संबंधे समेऽवि कालाइयंमि एगस्स । संपजइ बहुलाभो मूलंपि पणस्सइ परस्स ॥ २७ ॥ इय एवंविहकजाण कारणं कम्ममेव नायवं । निक्कारणाइं जायंति जेण न विचित्तकजाई ॥ २८ ॥ एवं वुत्ते निच्छिन्नसंसओ पंचसिस्ससयसहिओ। भववरग्गमुवगओ पडिवजइ सोऽवि पवजं ॥ २९ ॥२॥ अह वाउभूइनामो सहोयरो तेसिमेव लहुययरो। पम्मुक्कमच्छरो भत्तिनिब्भरुन्भिन्नरोमंचो ॥ ३०॥ कह तेऽवि तेण विजियत्ति विम्हयं परममुहंतो य । एइ जिणसन्निगासं संसयवोच्छेयमिच्छंतो ॥ ३१ ॥ अह सो जएकगुरुणा पयंपिओ भह ! कीस वहसि तुमं । तज्जीवं तस्सरीरंति संसयं जुत्तिपडिसिद्धं ॥ ३२ ॥ जेण सरीरजियाणं एगंतेगत्तकप्पणे जीवो । नो होज देहनासे घडभंगे तस्सरूवं व ॥ ३३ ॥ देहे य विजमाणे जीएण विवजिएवि जाएजा। चित्ताईया धम्मा न य ते तस्विरहओ दिवा ॥ ३४ ॥ तम्हा भिन्नाभिन्नो विन्नाणघणो सरीरओ जीवो। अन्नोचिय मुणियबो एवं भणियंमि पडिबुद्धो ॥ ३५॥ पंचहिं सिस्ससएहिं सहिओ सोऽवि हु जिणस्स पासंमि । निच्छिन्नपेमबंधो मुंचइ घरवासवासंगं ॥ ३६ ॥३॥ अह इमे तिन्निवि गहियपबजे निसामिऊण दुरुम्मुक्कमच्छरो गच्छामि संसयं च पुच्छामि न सामन्नरूवो सो भय-18 वंति बहुमाणमुबहंतोवियत्तो नाम अज्झावगो गओ जिणसमीवं.वागरिओ य भयवया, जहा-भह ! वियत्त! तुह पंच-1 भूयसत्ताविसओ संसओ, सो य न जुत्तो, जओ पञ्चक्खदिस्समाणा(भू)जलणजलानिलाइणो भूया कहं अवलविङ For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ K Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | तृतीयचतुर्थपंचमगणधराणां. श्रीगुणचंद तीरंति?,जंच वेए भणियं-'सुविणोवमा सवे भावा' इचाइ, तंपि खणविलाससीलयं सवभावाणं पडुच्च, न उण सबहा महावीरच०18 भूयाभावसाहगत्तणेणंति वुत्ते वियत्तो संसाराणुवंधेण समं चइऊण कुविगप्पं पंचहि छत्तसएहि अणुगम्ममाणों ८ प्रस्ताव पवन्नो संजमुज्जोयं ४॥ तंमि य पवजं पवन्ने महम्मो नाम अज्झावगो विरुद्धवेयपयनिबंधणं संसयं पुच्छिउकामो ॥२५५॥[ संपत्तो जिणंतियं, सो य भयवंतं सिंहासणगयं पुत्वपवयसिंगाधिरूढं दिवायरं व पलोइऊण परमं पमोयपब्भारमणु भवंतो संलत्तो जिणेण-अहो सुहम्म! तुम इमं संसयं वहसि-जो इह भवे पुरिसो पसू वा सो परभवेऽवि पुरिसत्तं पसुतं वा लहइ, इमं च न जुत्तं, जओ जो इह जम्मे सभावेण मद्दवजवाइगुणजुओ मणूसो सो मणुयाउयं कम्म बंधिऊण भवंतरे पुरिसत्तणं पाउणइ, पसूऽवि मायाइदोसजुत्तो पुणोऽवि पसुत्तणं पडिवजइ, न उण निच्छएण, जेण कम्मसवपेक्खा जीवाण गईरागइत्ति, न य कारणाणुरूवं कर्जति सबत्थ वित्थारिउं पारीयइ, विलक्खणरूवाओ सिंगाइकारणाओऽवि सराईणमुप्पत्तिदंसणाओ, एवं च निसामिऊण वोच्छिन्नसंसओ पंचसयविणेयपरिवुडो सुहम्मो दूभयवओ सिस्सो जाओत्ति ५॥ अह तंमि पवइए मंडियनामो अज्झावगो पुवकमेण पत्तो समोसरणं, वागरिओ य भगवया-हंत बंधमोक्खविसयं संदेहं तुम कुणसि, नणु न जुत्तमेयं, जओ बंधमोक्खा सुपसिद्धा चेव । कह?मिच्छत्तपमायकसायदुट्ठजोगाइकारणेहिं दढं । जीवस्स कम्मबंधो जायइ अइभीसणो तत्तो ॥१॥ अणुहवइ रजनढुव्व सव्वया नरयतिरियठाणेसु । किब्बिसदेवनरेसु य दुक्खाई परमत्तिक्खाई ॥२॥ ARNAGARAAKAR |॥२५५॥ For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr मोक्खो पुण निम्मलनाणचरणसद्धाणपरमहेऊहिं । कम्माण जो विओगो सो नेओ सिवसुहष्फलओ ॥ ३ ॥ न कमाइ निकम्मजोग्गओ तेसि होज उ पित्तं । भण्ण जह जलगं कंणवला अन्नोऽन्नं ॥ ४ ॥ एवं जिम्माण विट्ठिनाणाइकारणेहिंतो । होइ विवेगो तत्तो मोक्खो सिद्धो सयं चैव ॥ ५ ॥ एवं च पलीणंमि संसयतमंमि नमिऊण जयगुरुणो चलणुप्पलं अद्भुसिस्ससय परिवारो मंडिओ अणगारमग्गमलग्गोत्ति ६ ॥ अह मोरिओऽवि अप्पडिममाहप्पं सामि नाऊण समागओ समोसरणं, अगिओ य भगवया-भद्द! तुमं देवा भावविसयं संदेह मुवहसि, तं च इयाणिं परिचयसु, जओ पच्चक्खदिस्समाणमि अत्यंमि किं अणुमाणखेउणाहिं ?, एए देवा विमलमणिकुंडलपहापडलपल वियगंडलेहा नियंसियदिवं सुया सरीरकंतिसमुज्जोइयदिसिनिवहा महासोक्खा अपरिभूयसासणा मुणिणोव नभोगमणा इह चेव संपयं वर्द्धति, अओ अणुचिया एयाण विसए अभावकपणा, जं च सेसकालं न दीसंति तत्थ लोयगंधस्स अर्थतमसुभत्तणओ पेच्छयणावलोयणाइसु य निचमक्खितचित्तत्तणेण न कहंपि आगंतुमुच्छहंति, जिणमजणाइसु पुणो भत्तिभरायडिया आगच्छंति य । एवं मुणिए वत्थुतत्ते मोरिएण असिस्ससय परियररएण अच्भुवगया भावसारं जिणपबजत्ति ७ ॥ अह अकंपिओऽवि को हलाउलियचित्तो संसय मवणेकामी संपत्तो भयवओ समीवं, सागयभणणपुत्रयं च संभासिओ जयगुरुणा - अहो अकंपिय! तुमं एवं मन्नेसि, जहा - देवा चंदसूरतारयपमुहा ताव पंचक्खदंसणेण नज्जंति, नारया पुण सुमिणेऽवि अदिस्समाणा नूणं न For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षष्ठादीनां दशमान्तानां श्रीगुणचंद INसंतित्ति, अणुचियं इम, जओ ते नारया कम्मपरतंतत्तणेण इहागंतुमसमत्था, तुम्हारिसावि तत्थ गंतूणमक्खमा, ता महावीरच० कहमुवलंभो जाएजा?, खाइगनाणोववेयाणं पुण वीयरागाण पञ्चक्खा चेव, न य खाइगनाणोववेया असेसपवत्थसत्थ८प्रस्ताव वेइणो न संतित्ति वोत्तवं, मए चिय वभिचारसभंवाओत्ति, एवं छिन्नंमि संसए तिहिं खंडियसएहिं समं अकंपिओ| ॥२५६॥ अणगारियं पडिवन्नोति ८॥ | एत्थावसरंमि अयलभाया नाम अज्झावगो मुणियजिणमाहप्पो मणोगयवियप्पनिभंजणत्थं गओ जयगुरुसमीवं, भणिओ य सामिणा, जहा-भो अयल! पुनपावाई अस्थि नस्थित्ति संसयं तुममुबहसि, अजुत्तिसंगयं चेयं, सुहासुहफलजणगत्तणेण पुत्वभणियकम्मपक्खनाएण चेव पुन्नपावाणवि पसाहणाउत्ति भणिए जायजहावट्ठियविवेओ |तिहिं खंडियसएहि समेओ चारगंव भववासं उज्झिऊण समणो जाओत्ति ९॥ तयणंतरं च तं पवइयं सोऊण जिणंतियं पाउभूओ मेअजो नाम अज्झावगो, सोऽवि संलत्तो तिहुयणेक्कचक्खुणा महावीरेण, जहा-सुंदर ! तुमंपि इस विगप्पेसि-भूयसमुदायधम्मत्तणेण चेयणारूवस्स जीवस्स कहं भवंतरगमणं घडेजा?, भूयववगमे चेयणास्वजीवस्सवि हाविगमाउत्ति, नणु अघडमाणमेयं, पुढवाईण भूयाण एगत्थ मीलणेऽवि चेयणाणुवलंभाओ, तम्हा तवइरित्ता चेव चेयणा जीवधम्मरूवा अन्भुवगंतवा, तदन्भुवगमे य जीवस्स निरुवचरिओ परभवगमो सिद्धो चेव,जाइसरणाईहि परभवसाहणाओ य, एवं कहिए निच्छिन्नसंसओ मेयजो तिसयसिस्सपरियरिओ भयवओ समीवे पवइओ १०॥ ॥२५६ ॥ For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हेहि सद्दहियवं, जे पुण अह दससुवि तेसु पवजं पडिवन्नेसु पभासो सकोऊहलं तिहिं सएहिं खंडियाणं परिवुडो दूरमुक्कपंडिचाभिमाणो| पंजलिउडो भुवणच्छेरयकारयविचित्तातिसयसमेयं सामि दट्टण हरिसुप्फुललोयणो संसयं पुच्छिउकामोऽवि संखो| भेण वोत्तुमपारयंतो भणिओ पारगएण-अहो पहास! निवाणमत्थि नस्थिति संदेहदोलमालंबेसि तुमं, नणु उज्झसु सबहा एयं, जओ अइसयनाणिपञ्चक्खत्तणेण सयलकम्मकलंकपमुक्कजीवावत्थाणवाणं निवाणं चउग्गइयसंसा रावासविलक्खणरूवं निरुवचरियं अत्थि, सुद्धपयकि(वच)त्तणाओ जीवोव, तं च बुहेहिं सद्दहियचं, जं पुण दि अविजमाणं तं सुद्धपयवचंपि न होइ, जहा आगासकुसुमंति भणिए पणसंसओ जयगुरुं पणमिऊण सपरिवारो पभासोऽवि समणो जाओत्ति ११॥ एवं च वोच्छिन्नपेम्मवंचणा पणट्टकम्मसंधणा, विसिडजाइसंभवा पसिहगोत्तउम्भवा । पहाणरूवसालिणो विसुद्धकित्तिधारिणो, अचिन्तसत्तिसंजुया असेससत्यपारया ॥१॥ पयंडकामखंडणा पहीणदोसभंडणा, सुरासुरिंदवंदिया समग्गलद्धिनंदिया । जिर्णिदधम्मसंगया विमुक्कसवसंगया, गुणावलीहिं सोहिया न कामिणीहिं मोहिया ॥२॥ इय इंदभूइपमुहा मुणिणो एक्कारसावि तवेलं । दिसिदंतिणोध रेहति सिस्सकरिकलहपरियरिया ॥३॥ किं वा वन्निजइ तेसि जेसि सयमेव भुवणनाहस्स । कप्पतरुकिसलयसमो हत्थो सीसंमि संठाइ ॥४॥ जाओत्ति ११॥ एवं च मागासकुसुमति भणिए पण For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ।। २५७ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इओ य-जा पुवभणिया दहिवाहणरायसुया चंदणाभिहाणा कन्नगा पढनसिस्सिणी भयवओ भविस्सइत्ति सकेण संगोवाविया आसि सा तक्कालं सयाणियराय मंदिरे निवसती गयगंगणे अणवरयं सुरविमाणाई इंताई गच्छंताणि य पलोइऊण निच्छियजिण केवलनाणसमुप्पाया पवज्जागरणुकंखिरी अहासन्निहियदेवयाए करयलेण कलिऊण समोसरणमुवणीया समाणी परमं पमोय संभार मुहंती तिपयाहिणादाणपुचगं वंदिऊण जिणमुवट्ठिया पञ्चज्जागरणत्थं । एत्यंतरे अन्नाओवि राईसरत लवर सेट्ठि सेणावइ मंतिसामंत कन्नगाओ जिगवइवयणायन्नण जायभववेरग्गाओ सङ्घविरइगहणत्थं तदंतियं पाउन्भूयाओ । तओ भगवया चंदणं पुरओ काऊण सहत्थेण दिक्खियाओ, पवज्जासमुज्जम| समत्था य बहवे जणा ठाविया सावयधम्मे, एवं एत्थ समोसरणे जाओ भगवओ चउधिहो संघो ॥ जायंमि य गुणरयणरयणागरंनि संघे भगवया इंदभूइपमुहाणं पहासपज्जवसाणाणं एकारसहंपि तेसिं सयलभुवणगयत्थसत्यसंगहधम्मयाई 'उप्पन्ने वा विगएइ वा धुवेइ वत्ति कहियाई तिन्नि पयाई, तेहि य पुचभवन्भत्थसमत्थ परमत्थसत्थवित्थारविय क्खणत्तणेण तक्कालुप्पन्नपन्नाइसय मुद्दहं तेहिं तयणुसारेण विरइयाई दुवालस अंगाई, तहा विश्यमागाणं च सत्तण्हं गणहराणं जायाओ विभिन्नाओ वायणाओ, मेअज्जपभासाणं अयलभाइअकंपियाण य परोप्परं समाज चेव, एवं च निवत्तिए सुत्तविरयणे इंदभूइपसुहाणं गणहरपयंमि ठावणनिमित्तमुवट्ठिए सयमेव भुवणबंधवे | अवसरंति कलिऊण पवरगंधबंधुरवा सुम्मिस्सचुण्णभरियं रयणत्थालं गहिऊण सुरनियरपरियरिओ सुरिंदो पाउ For Private and Personal Use Only प्रभासस्य बोधः स र्वेषां दीक्षा चन्दनवालादीनां च. ॥ २५७ ॥ Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूओ जिणंतियं, ताहे सामी सीहासणाओ उद्वित्ता पडिपुण्णं मुद्धिं चुग्णाणं गिण्हइ, तयणंतरं गोयमसामिप्पमुहा। Pएकारसवि गणहरा ईसिओणया परिवाडीए ठायंति, निरुद्धेहिं तियसेहिं तूररवे जयगुरू गुणेहिं पञ्जवेहि य मए। तुह तित्थमणुण्णायंति मणमाणो पढम चिय सहत्थेण गोयमसामिणो सीसदेसंमि चुण्णाणि पक्खिवइ, एवं चिय दाजहकमेण सेसगणहराणंपि, देवावि गयणयलमोगाढा आणंदवियसियच्छा गंधंधीकयमुद्धफुलंधुयमुहुलंबियमुहलं |पुप्फवासं चुण्णवासं च निसिरंति, गणं पुण चिरजीवित्तिकलिऊण सुहम्मसामी पंचमगणहरंधुरे ठवेत्ताभयवं अणुजाणइ। |चंदणंपि अज्जाणं संजमुज्जोगघडणत्थं ठावेइ पवत्तिणीपए । एवं एकारसहिं गणहरोहिं अणेगेहिं साहूर्हि साहुणीहि |य परियरिओ जंबुद्दीवोच दीवंतरेहिं सुमेरुष कुलाचलेहिं ससिब तारानिवहेहिं सामी सोहिउँ पवत्तो । अवि य| एगागिणोवि भुवणेकबंधुणो को मिणेज माहप्पं । किं पुण गोयमपमुहेहिं गणहरेहिं परिगयस्स ॥ १॥ | अह कइवय दिवसाई भवसत्तजणं पडिवोहिऊण तत्तो निक्खंतो जयगुरू । तो आगासगएणं लंबंतमोत्तियजाल-| [विराइएणं छत्तेणं आगासगयाई कुमुयमयंकमऊहमणहराहिं चामराहिं गयणयलावलंबिणा समणिपायपीढेण सीहासणेणं रणज्झणिरकिंकिणीकुलकलकलमुहलेण अणेगकुडुभियाभिरामेण पुरोगामिणा महिंदज्झएण य विरायंतो| | सायरं अणुगच्छंतीसु सुरासुरकोडीसु अणुकूलतेसु वायंतेसु सुरहिसमीरणेसु भत्तीएव नमतेसु मग्गतरुवरेसु मुणिय-IN |वियारेसु खलेसु व हेटुओमुहं ठायतेसु कंटगेसु मणोरमेसु सवेसु उउसु निययमाहप्पेण तिलोयरजसिरिं एगत्व मि For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणधरपदवी स्त्ररचना त्राझणकृण्डे गमन श्रीगुणचंद तालियमुवदंसयंतो दुभिक्खमारिडमराई उवसामितो ठाणठाणेसु समोसरणमहिमं पडिच्छमाणो परप्पवाए सुन्नीकुणमहावीरचा माणो निवाणमग्गं पयासयंतो विरइप्पयाणेण भवसत्तजणमणुगिण्हतो पुरगामखेडकब्बडाइसु विहरमाणो कमेण ८प्रस्तावः | संपत्तो पुषभणियं माहणकुंडग्गामं नयरं । ॥२५८॥ । तहिं च नयरादूरवर्तिमि नाणाविहतरुलयासंकुलंमि बहुसालयनामंमि चेइयंमि विरइयं परमविच्छित्तिसणाहं सुरोहिं समोसरणं, रयणपागारमंतरे पइद्वियं पुवाभिमुहं समणिपायपीढं सीहासणं, निसन्नो तत्थ जएकचूडामणी महावीरो, पायपीढपचासन्ने य निलीणो भयवं गोयमसामी, नियनियठाणेसु निविट्ठो देवनरतिरियनिवहो । | एत्थंतरे वित्थरिया माहणकुंडग्गामे नयरे पसिद्धी, जहा-बहुसालगचेइयंमि भयवं महावीरो समोसढोत्ति, एवं च निसामिऊण पुवमणिओ उसमदत्तमाहणो परमपमोयभरनिब्भरभरियमाणसो देवाणंदं माहणी भणिउमाढत्तो, जहा-तइलोक्कतिलयभूओ भूयत्थकहापरूवणसमत्थो । सुंदरि! सिरिवीरजिणो सयमेव समोसढो बाहिं ॥१॥ निरुवमकल्लाणकलावकारणं तस्स दसणंपि पिए!। किं पुण अभिगमवंदणपयसेवापमुहपडिवत्ती? ॥२॥ ता बच्चामो तहसणेण कुणिमो सजीवियं सफलं । तीए वुत्तं पिययम! किमजुत्तं ? एह बच्चामो ॥३॥ सा किर जदिवसंचिय गम्भाओ अवहडो जएकगुरू । तत्तो चिय अचत्यं समुबहित्था महासोगं ॥४॥ अह तदब्भुवगमं नाऊण उसभहत्तेण आहुया कोडंबियपुरिसा, भणिया य-भो! सिग्धमेव वररयणमयकिंकिणी ARREARSAGAR ४॥२५८॥ For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -- जालमंडियमज्झभागेहिं कंचणनत्थापग्गहिएहि नीलुप्पलविरइयसेहरेहिं उलिहियसिंगेहिं लटुपुटुसरीरोहिं पवरगोणजुवाणएहिं संगयं संजत्तेह संदणं जेण गंतूण वंदामो जयगुरुं, जं सामी आणवेइत्ति भणिऊण निग्गया कुटुंबिया पुरिसा, पगुणीकओ रहवरो, समुवणीओ उसहदत्तस्स, तओ देवाणंदाए समेओ तमारुहिऊण पुरिसपरिवारपरिय| रिओ पयट्टो जिणाभिमुहं, पत्तो कमेण बहुसालयसमी, छत्ताइच्छत्तपमुहाइसयदसणेण य रहाओ पचोरुहिऊण |पंचविहेणं अभिगमेणं पविट्ठो समोसरणे, तिपयाहिणादाणपुच्चयं च पण मिऊण जिणं पहिट्ठमणो निविट्ठो भूमिपटे। देवाणंदाऽवि भगवंतं पणमिऊण सविणयं उसहदत्तं माहणं पुरओ काऊण उद्धट्ठाणट्ठिया चेव सुस्सूसमाणी |भालतलारोवियपाणिसंपुडा पजवासिउमारद्धा, नवरं समयं चेव तीसे भयवं चक्खुगोयरसुवगओ तंसमयं चिय द्रवियसियवयणकमला हरिसुप्फुललोयणसंदमाणाणंदसलिला जलहरधारापहयकयंबकुसुमंपिव समूससियरोमकूवा, थणमुहनिस्सरंतखीरधारा य जायत्ति, तं च तहाविहं पेच्छिऊण समुप्पन्नसंसओ गोयमसामी जयगुरुं पणमिऊण पुच्छिउं पवतो-भयवं! किं कारणं देवाणंदा अणिमिसाए दिठ्ठीए तुम्ह वयणं पेहमाणा नियसुयदसणाणुरूवा पेमपन्भारगम्भयमवत्थं पत्तत्ति?, भगवया भणियं-भो गोयम! देवाणंदा ममं जणणी, अहणं देवाणंदाए कुच्छिसंभवो पुत्तो, जओ सुरभवचवणाओ आरम्भ बायासी दिणाई इमीए गम्भंमि वुत्थो, अओ चिय पुसिणेहाणुरागेण एसा अमुणियपरमत्थावि एवंविहं संभममावन्ना। + ४४ महा. For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः देवानन्दाऋषमदत्तधर्मश्रवणं. ॥२५९॥ AAAAAAAKAMG इय सोऊण जिणिदस्स भासियं उच्छलंतरोमंचा । देवाणंदाए समं झडत्ति जाओ उसमदत्तो ॥१॥ परिसाजणोऽवि सो विम्हयमचंतमुवगओ सहसा । अस्सुयपुवे सुणिए को वा नो विम्हयं वहइ ? ॥२॥ तो उसमदत्तो देवाणंदा य समुप्पन्नगाढयरहरिसपगरिसाइं पुणोऽवि निवडियाई जयगुरुणो चलणेसु, भयवयावि 'दुप्पडियारा अम्मापियरो'त्ति सेसलोयस्स उवदंसणत्यं च पारद्धा देसणा । कहं चिय? भो भो देवाणुपिया ! अणाइरूवंमि एत्थ संसारे । को किर कस्स न जाओ मायापिइपुत्तभावेहिं ? ॥१॥ कस्सवि न वा विओगे अणवरयगलंतनयणसलिलेण । पइसमयमुकपोकं हाहारवगम्भिणं रुन्नं? ॥२॥ चोद्दसरजुपमाणे लोगे नो कत्थ वावि वुत्थमहो? । अणवरयमावयाणं काण व नो भायणं जाओ? ॥ ३॥ कस्स व आणानिदेसवत्तिणा दासनिधिसेसेण । नो पट्टियं दुहट्टेण पाणिलोएण एएण? ॥४॥ एवंविहदुहनिवहेककारणे कह भवे महाभीमे । खणमपि विजायइ निवासबुद्धी सुबुद्धीण ? ॥५॥ एत्तो चिय सासयसोक्खकंखिणो लक्खिउं भवसरूवं । तणमिव रजाइ समुज्झिऊण पवजमल्लीणा ॥६॥ ता जाव पुन्नपब्भारपावणिजा इमा हु सामग्गी। तुब्भेवि ताव गिण्हह निस्सेयससाहगं धम्मं ॥७॥ इय जगगुरुणा कहिए तेर्सि आणंदसंदिरच्छीणं । केवलमणुभवगम्मो कोइ पमोओ समुप्पन्नो ॥८॥ 'तओ उसमदत्तो देवाणंदाए समेओ हदतद्वो उद्विऊण सामि तिक्खुत्तो बंदिऊण करयलकमलकोससेहरं सिर ॥२५९॥ For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir C BACHERSARAM दूरं उन्नामिऊण भणिउं पवत्तो-भयवं! अवितहमेयं तब्भे वयह. ता अणगिण्हह अम्हे सदिक्खापयाणेणं, विरतात्तमिहि गेहवासाओ माणसं, भगवया भणियं-जुत्तमेयं भवारिसाणंपि, तओ कयकिच्चमप्पाणं मन्नंताई उत्तर पुरस्थिमदिसिसमुज्झियभूसणकुसुमदामाई निबत्तियपंचमुट्टियलोयकम्माई ताई तिपयाहिणादाणपुरस्सरं परमेसरं वदित्ता भणिउँ पचत्ताई-भयवं! जरामरणरोगसोगविप्पओगजलणजालाकलावकवलियाओ अम्हे एत्तो भवजरकुडीराओ नित्थारेसु सहत्थेण तुमं, तुह पयसरणमल्लीणो खु एसो जणो, इय भणिए भुवणगुरुणा सयमेव तेसिं दिन्ना दिक्खा, कहिओ साहुसमायारो परूविओ आवस्सयविही, एवं तकालोचियं सर्व विहिं देसिऊण भयवं अजचंदणाए पवत्तिणीए देवाणंदं सिस्सिणित्ताए पणामेइ, उसमदत्तं च थेराणं समप्पेइ, अह ताई निक्कलंकसमणधम्मपरि| पालणबद्धलक्खाई अपुवापुचतवचरणपरायणाई अहिएकारसअंगाई पजंतसमयसमाराहियसलेहणाई निवाणमहामंदिरारोहहेऊभूयं निस्सेणिपिव खवगसेणि आरुहिऊण पत्ताई दोनिवि सिवपयंमि । भयपि बद्धमाणो परिअरिओ गोयमाइसमणेहिं । हिययाहिंतोवि तमं अवणितो भवसत्ताणं ॥१॥ गामागरनगराइसु विहरंतो सिवपयं पयासिंतो। खत्तियकुंडग्गामे नयरम्मि कमेण संपत्तो ॥२॥ तत्थ य सुरेहिं रइयं चीतरुपयारगोयरसणाहं । ऊसियसियधयनिवहं जणसुहकरणं समोसरणं ॥ ३ ॥ बत्तीसपि सुरिंदा जिणमुहकमलावलोयणसतण्हा । विविहविमाणारूढा ओअरिया सुरपुरीहिंतो ॥४॥ CCCCCASSACROCCAS For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ८प्रस्ताव क्षत्रियकुंडे समव सरण, २६०॥ अह पुखदुवारेणं पविसित्ता सुरगणेण थुवंतो। सिंहासणे निसनो पुवाभिमुहो जिणवरिंदो ॥५॥ एक्कारसवि गणहरा केवलमणपज्जवोहिनाणी य । चउदसदसपुचीविउविइड्डीपत्ता य मुणिवसभा ॥६॥ उद्घट्टिया उ वेमाणियाण देवीओ तय समणीओ। ठायंति जिणं नमिउं दाहिणपुबंमि दिसिभाए ॥ ७॥ अह दाहिणदारेणं पविसित्ता विणयपणयदेहाओ। भवणवइवाणमंतरजोइसदेवाण देवीओ॥८॥ काउं पयाहिणं भुवणबंधुणो धम्मसवणलोभेण । निसियंति पहिठ्ठाओ दाहिणपञ्चत्थिमविभागे ॥९॥ तत्तो पच्छिमदारेण पबिसिउं पवरभूसणसणाहा । भवणवइवाणमंतरजोइसिया हरिसपणयसिरा ॥ १०॥ विहिणा जिणं नमंसिय गणहरकेवलिपमोक्खमुणिणो या निविसंति जिणाभिमुहा उत्तरपचत्थिमदिसाए ॥१॥ उत्तरदिसिदारेणं तत्तो पविसित्तु दिवरूवधरा । वेमाणियसुरवग्गा नरा य नारीजणा य तहा ॥ १२॥ पम्मुक्कपरोप्परवेरमच्छरा धम्मसवणतल्लिच्छा । उत्तरपुरथिमि य ठायंति दिसाविभागंमि ॥ १३ ॥ न कुणंति हासखेडाई नेव चक् खिवंति अन्नत्य । चित्तलिहियव सच्चे जिणिंदवयणं पलोयंति ॥ १४॥ तयणंतरं च बीए पायारम्भंतरे तिरियवग्गो। हयमहिससीहपमुहो उज्झियवेरो सुहं वसइ ॥१५॥ कहं चिय?दिणयरकरसंतत्तं भुयंगमं छायए सिहंडेहिं । तंडविएहिं सिहंडी करुणाए विमुक्ककुविगप्पे ॥ १६ ॥ कंडयइ दसणकोडीए कुंजरो केसरिस्स मुहभागं । धावारइ सीही हरिणसावयं दढछुहाभिहयं ॥१७॥ AAAAAACASS 5॥२६॥ For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACCACCURRC मज्जारोऽवि हु ससिमि मूसगं ठवइ गाढपणएण । वणसेरिहोऽवि तुरयं रसणाए ददं परामुसइ ॥१८॥ इय जत्थ निधिवेयावि पाणिणो तत्थ तियसनरनिवहा । उज्झंति मच्छरं जं परोप्परं तं किमच्छरियं? ॥१९॥ तइए पायारभंतरंमि देवाण विविहरूवाई । विजयपडायापयडाई संनिसीयंति जाणाई ॥ २० ॥ एत्थंतरंमि भुवणेकभाणुणा कलियसयलभावेण । वयणकिरणेहि मिच्छत्ततिमिरमवहरिउमारद्धं ॥ २१॥ इओ य पुवमेव जिणविहारनिवेयणवावारियपुरिसेहिं सामिसमागमेण वद्धाविओ नंदिवद्धणनराहियो, हरिसभरनिस्सरंतरोमंचेण य तेण दवावियं तेसिं चिंतियाइरितं पारिओसियं, भणिओ य संनिहियकिंकरवग्गो-अरे! सिग्छ संजत्तेह जयकुंजरं पगुणीकरेह तुरंगपट्टाई पयहावेह नयरसोहं उब्भवेह सबविजयचिंधाई आइक्खह आघोसणापुत्वयं नयरीजणस्स जहा सिग्धं पाउब्भवह कयमजणविलेवणा नियविभवाणुरूवजाणजपाणारूढा नरिंदसमीवं जेण बंदिजइ महावीरोत्ति भणिए जं देवो आणवेइत्ति पडिवजिऊण संपाडियं नरिंदसासणं, समुवणीओ जयकुंजरो, समारूढो य नरिंदो, पुरजणेण परियरिओ पयट्टो भयवओ अभिमुह, तओ छत्ताइच्छत्ते पेच्छिऊण पमुक्करायचिंधो परेणं विणएणं जयगुरुं विनवे पवत्तो । कहं - गयणंगणं व ससहरविवज्जियं नाह ! एत्तियं कालं । नयरमिमं तुह विरहे पणट्ठसोभं ददं जायं ॥१॥ अहमवि तुम्हऽणुवित्तीए नूण चत्तो न रायलच्छीए । अन्नह तुमए रहियस्स नाह! का जोग्गया मज्झ! ॥२॥ For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ८प्रस्ताव ॥२६१॥ -MARCANCA%AARARIA तुह सच्चरियाणं कित्तणेण पइदियहमेव पुणरुत्तं । साहारो मह जाओ जीयस्सवि निस्सरंतस्स ॥३॥ नन्दिवर्धन वास्तुतिः ता अजं चिय सुदिणं अजं चिय वंछियाई जायाई । चिरकालाओवि जएकनाह ! जमिहागओ तंसि ॥४॥ जमालेराइय सब्भावुब्भडपेम्मगब्भवयणाई जंपिउं राया। सट्ठाणंमि निविष्ठो ठविउं दिलुि जिणमुहमि ॥ ५॥ | गमनं च. इओ य तत्थेव नयरे भयवओ भाइणिजो रूवलायण्णसाली जमाली नाम कुमारो परिवसइ, सो य बद्धमाणंमि| पञ्चजं पडिवन्ने नंदिवद्धणनरिंदेण भगवओ पुतिं पियदंसणाभिहाणं परिणाविओ समाणो केलाससेलसिहरसमुत्तुंग-18 धवलहरमारूढो वजंतेहिं चउविहाउजेहिं वरतरुणीसंपउत्तेहिं बतीसइबद्धेहिं नाडएहिं उवगिजमाणो उवन-1 चिजमाणो य पाउसवासारत्तसरयहेमंतवसंतगिम्हपजवसाणे छच्चेव उउणो जहाविभवेणं माणयंतो पंचविहे पवरे माणुस्सए कामभोगे पचणुब्भवमाणो सिंगाडगतियचउक्कचच्चरेसु जिणगमणसवणहलफलियं परिचत्तवावारंतरं हल-15 बोलाउलियदियंतरं जणसमूह एगमग्गाणुलग्गं अवलोइऊण सविम्यं नियपरियणमापुच्छइ-अरे किमज एत्थ नयरे इंदमहो वा खंदमहो वा मुगुंदमहो वा नागमहो वा जखमहो वा चेइयमहो वा ? जं एस पुरजणो एवमेगाभिमुहो गच्छइ, परियषण भणियं-कुमार! नो अज इंदखंदाईणं ऊसवविसेसो, किंतु भयवं महावीरो तुम्ह माउलगो समणसंघपरिवुडो बाहिं समोसढो, तस्स वंदणवडियाए एस जणो वच्चइ, एवं च निसामिऊण हरिसवससमूससियरोमकूवो कयमजणविलेवणालंकारपरिग्गहो सकोरिंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं नाणाविहपहरण For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करपुरिसपरिखित्तो पवररहनिसन्नो गओ समोसरणं, दूराओ चिय ओयरिओ रहाओ, परमायरेण बंदिजो जिणो, तओ अणिमिसाए दिट्ठीए सामिमुहमवलोयमाणो पजुवासिउमारद्धो । भगवयावि पयट्टाविया धम्मदेसणा। कहं चिय?करयलपरिगलियजलं व गलइ पइसमयमेव जीयमिमं । वाहिजरायंकाविय देहं दूमंति निचपि ॥१॥ अइबहुकिलेससमुवजियावि विजय चंचला लच्छी। पियपुत्तसयणजोगोऽवि भंगुरो जलतरंगोछ ॥२॥ विसयपिवासा पिसाइयव दुन्निग्गहा तह कहंपि । वामोहइ जह थेवंपि नेव संभवइ वेरग्गं ॥३॥ अवरावरगिहवावारविरयणावाउलो सयावि जणो । कोणासमुहं वच्चइ अणुवजियधम्मपाहिज्जो ॥४॥ एसो चिय मुद्धजणस्स विन्भमो सबहाऽविय अजुत्तो। पजंते धम्म भोत्तुं भोगे चरिस्सामो ॥५॥ जं थेरत्ते पत्ते हयंमि सर्विदियप्पयामि । अच्छउ दूरे करणं दुलहं धम्मस्स सवर्णपि ॥६॥ किं बहुणा भणिएणं?, जो बालत्तेऽवि नायरइ धम्म । संगामसमयहयसिक्खगोठ सो सोअइ विरामे ॥७॥ इय जयगुरुणा नीसेससत्तसाहारणाए वाणीए । मोक्खसुहमूलबीयं कहियं सद्धम्मसबस्सं ॥ ८॥ इमं च अवक्खित्तचित्तो सवणंजलीहिं पाऊण जमालिकुमारो हिययंतो समुलसंतवेरग्गवासणो भयवंतं पणिवइऊण भालयलनिचलनिवेसियपाणिपंकयकोसं भणिउं पवत्तो For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ २६२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भय! तुम जह मज्झ देसिओ मोक्खसोक्खदाणखमो । धम्मो तह नो केणवि अन्नेणं निउणमइणावि १ ॥ १॥ मन्ने पुचभवेसुं बाढं समुवज्जियं मए पुन्नं । तेण जयनाह ! तुमए सद्धिं मह दंसणं जायं ॥ २ ॥ ताजा अम्मापि पुच्छामि ताव तुब्भं समीवे सफलीकरेमि पत्रजापरिग्गहेण नियजीवियं, भयवयावि भणियं-बहुविग्घाई धम्मकजाई मा पडिवंधं कुणसुत्ति, तओ जमाली कुमारो जयगुरुं वंदिऊण संदणारूढो गओ सगिहं, पत्थावेण य अम्मापिऊण पाए पणमिऊण भणिउमारद्धो-हंहो अम्मताया ! अज्ज मए भयवओ महावीरस्स अंतिए धम्मो निसामिओ, सो य अमयंपिव अभिरुइओत्ति, अम्मापिऊहिं भणियं धन्नो कयलक्खणो उवलद्धजम्मजीवियफलोऽसि तुमं, नहु अकयपुन्नाण कइयावि सवणगोयरमुवगच्छइ जिणिदवयणं, जमालिणा संलतंअम्मताया ! तदायन्नणाणंतरमेव संसारभउद्विग्गो भीओऽहं जम्मणमरणाणं ता इच्छामि तुम्भेहिं समणुण्णाओ समाणो समणभावं पडिवजिउं । इमं च अस्सुयपुत्रं निसामिऊण जमालिस्स जणणी तक्खणुप्पन्न संताव वसविसप्पमाणसेयसलिला सोगभरवेविरंगी पयंडमायंगकराहयकुमुयं व मिलाणलायन्नं वयणमुद्दती तक्खणकिसीभूयबाहुवलरीगलंतकणयवलया धरणिवट्ठप-भट्ठउत्तरिल्ला विकण्णके सहत्था सिढिलसंधिबंधणा मुच्छावसनद्वचेयणा सत्ति को ट्टिमतलंमि निवडिया, अह ससंगमपधाविएण परियणेण निम्मलसलिलसीयरसंवलिएण तालियंटपवणेण आसासिया समागी सुचिरं विलविऊण विमुकदीहनीसासा जमालिं भणिउं पवत्ता-अहो वच्छ ! अम्हाणं तुम For Private and Personal Use Only जमालेबों घः मातुच्छी. ॥ २६२ ॥ Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SUREAUCRACHAN चेव एगो पुत्तो संमओ पिओ हिययनंदणो रयणकरंडगसमाणो ओवइयसमुवलद्धो, ता नो खलु बच्छ! अम्हे इच्छामो तुम्ह खणमेत्तमवि विओगं, किमंग पवजाणुमन्नणं?, अओ अच्छसु ताव जाव अम्हे जीवामो, कालगएहिं पुण परिणयवओ वढियकुलसंतई निविनकामभोगो पवजेजासि, जमालिणा भणियं-अम्मा! एत्थ खलु माणुसए। भवे अणेगसारीरमाणसरोगसोगजरामरणपमुहोवदवसंपगाढे असासए जलबुब्बुयसमाणे सरयगिरिसिहरसरंतसरियातरंगभंगुरे को एवं जाणइ-के पुचिं मरणधम्माणो के वा पच्छा मरणधम्माणोत्ति, किं च जइ नाम मुणिज इमंपि कोइ ता किं न होज पजत्तं ? । किं तु अयंडेवि अखंडियागमो पडइ जमदंडो ॥१॥ किंतु-कस्स न हरंति हिययं विसया ? नो कस्स वल्लहा सुयणा ? । किंतु खरपयणपहयं किसलयमिव भंगुरं जीयं ॥२॥ एत्तो चिय दुजणमाणसं व मोत्तूण रजरहाई। धीरा दुरणुचरंपि हु संजममग्गं समणुलग्गा ॥३॥ ता मोहपसरमुच्छिदिऊण गयमो(अणुमण्ण)धम्मकरणत्थं । किं वलहं निरंभइ कोवि हु जलणाउले गेहे ? ॥४॥ एवं च भणिए अम्मापिऊहिं कहियं-पुत्त! इमं तुह सरीरं विसिट्ठलक्खणवंजणगुणोववेयं उत्तमबलवीरियसत्तजुत्तं उदग्गसोहग्गसंगयं समग्गरोगरहियं निरुवहयलट्ठपंचिंदियं पढमजोवणगुणाणुगयं, अओ कहं दुरणुचरं संजमं काउं पारिही?, जेण मत्तकरिरायदढचलणचंपणं सहइ नेव कमलवणं । उवरमसु पुत्त ! दुकरसंजमकरणाउ तेण तुमं ॥१॥ AAAAAAAAAAAAA For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥ २६३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जमालिणा भणियं – अम्मो ! माणुसगं सरीरं अणेगरोगसोगसंगयं अद्विसंचयसमुट्ठियं ण्हारुसिराजालसंपिणद्धं अकुट्टिमट्टियाभायणं व थेवेणवि विद्धंसणसी ं असुइयं रुहिरमंसब समय सुक्काइक लुसपडिपुन्नं सवोवद्दवसज्यं अवस्समुज्झणिज्जंति । अविय - निस्सारसवि एस्स सारया एत्तिएण निघडिया । जं उबयारे बट्टइ मोक्खत्थं उज्जमंताणं ॥ १ ॥ ज हाणविलेवणभूसणेहिं कीरइ इमस्स नो चेट्ठा। ता वासरससहरमंडलंव सोहं न उच्चहइ ॥ २ ॥ तओ पुणोऽवि भणियं जणणीए - पुत्त ! इमाओ समुन्नयराय कुलसंभवाओ सयलकलाकुसलाओ रूपलायन्नमणहरंगीओ जलहिवेलाओ व सकुलालंकरणाओ सुमुणिमालाओ इव मुत्ताहारपरिग्गहाओ मयगलावलीओ इव लीलालसगामिणीओ पीणघणथणचिणमियमुट्ठिगेज्झमज्झाओ मणोणुकूलवत्तिणीओ सवंगसुंदरंगीओ पियदंसणापमुहाओ अट्ठ पिययमाओ अपत्तकालेचिय परिचइऊणमचंतमजुत्तं तुह तवोकम्ममारंभिउं, तम्हा एयाहिं सद्धिं ताव भुंजाहि माणुस्सर कामभोए, परिणयवओ य एयाहिं चेव समं पवज्जं आयरेजासि । जमालिणा कहियं - अम्मो ! एए माणुस्सया कामभोगा उच्चारपासवणर्वतप्यसुक्क सोणियसमुब्भवा मयकलेवरनिस्सरंत विस्सगंधा असुहउस्सासुचेयजणगा बीभच्छा तुच्छकालिया बहुकिलेससज्झा य अबुहजणजणियचित्तपरितोसा साहुगरहणिजा अनंतचाउरंत संसारवद्धणा करयलकलियदहक व अमुचमाणा असंखतिक्खदुक्खाणुवं For Private and Personal Use Only दीक्षायामविलंब: मानुष्या नित्य ता विषयनिन्दा. ॥ २६३ ॥ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org धिणो सुगइगमणविग्धकारिणो कहं कुसलाण खणमेत्तंपि उपभोत्तुं जुत्ता हवंति ? | अविय - कोणाम जीवित्थी तालउडदिसं कयावि भुंजेज्जा ? । उग्गाढदाढ केसरिमुहकंदरमहव घट्टेजा ? ॥ १ ॥ जाला कलाव भी सणवज्जा नलमज्झमहव पविसेज्जा । निसियग्गखग्गधारासु वावि को वा परिभमेजा ? ॥ २ ॥ अहवा सङ्घपि इमं करेज कोऽवि हु सुराइसामत्था । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस पुण परिभोतुं खेमेण न कोइ (खणमवि न सुहेण ) निवसेज्जा ? ॥ ३ ॥ कवि अाता मूढा विसएस संपयट्टति । ता किं मुणियजिणेसरवयणाणवि वट्टिउं जुत्तं ? ॥ ४ ॥ इमं च निसामिकण पुणोऽवि भणियं जणणीए -वच्छ ! इमं अज्जयपज्जयपिउपज्जायागयं बहुं हिरण्णं रययं कंसं दूसं निहिनिवहं अलं सत्त पुरिसे जाव पकामं दाउ पकामं परिभोत्तुं ता जहेच्छं विलससु कइवय वासराइंति, जमालिणा भणियं-अम्मो ! सुबहुपि दविणजायं अग्गिसाहियं चोरसाहियं दाइयसाहियं अधुवं असासयं असेसाणत्थसत्थनिबंधणं, अओ को एत्थ पडिबंधो ?, एवं च अणेगप्पयारेहिं अणुकूलेहिं वयणेहिं जाव पन्नविज्ज्रमाणोऽवि | जमाली न किंपि पडिवज्जइ ताव पुणोऽवि संजमभयकरेहिं वयणेहिं अम्मापिउणो पर्यंपंति-वच्छ ! दुरणुचरं निग्गंथं पावयणं, जओ एत्थ लोहमया जवा चावेयवा गंगामहानईए पडिसोएण गंतवं महासमुद्दो भुयाहिं तरियच्चो असिधारं वयं अणुचरियवं, न य वच्छ ! एत्थ समणाणं कप्पर आहाकम्मियं वा उद्देसियं वा मिस्सजायं वा कीयगड For Private and Personal Use Only +4 そう Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थविपाका संयमसुकरतादीक्षानुमति श्रीगुणचंद तापमुहं वा दुभिक्खभत्तं वा गिलाणभत्तं वा बद्दलियाभत्तं वा सेजायरपिंडं वा कंदमूलफलवीयहरियभोयणं वा परिभोत्तं, तुमं च वच्छ ! सुहलालिओन समत्थो सीयवायायवखुहापिवासापमुहदुस्सहबावीसपरीसहसहणं मुहुत्त८प्रस्ताव: मयि काउं, ता अलाहि पुणरुत्तवायावित्थरेणं, जमालिणा भणियं-अम्मताया! इमं निग्गंथं पावयणं कीवाणं कायराणं ॥२६४॥ काउरिसाणं इहलोयपडिबद्धाणं परलोयपरंमुहाणं विसयतिसियाणं दुरणुचरं, नो सप्पुरिसाणं पडिवनभरधरण धवलाणं नियसरीरजीवियनिरवेकखाणंति, एवं च अणुकूलेहिं पडिकूलेहि य वयणेहिं भणिओ समाणो आव जमाली न परिचयइ पचजाभिलासं ताव अकामएहिं चेव अणुमनिओ जणणिजणगेहिं । तयणंतरं आहूया निययपुरिसा भणिया य, जहा-सिग्घमेव खत्तियकुडग्गामं नयरं सबाहिरभंतरं सम्मजिओवलितं अवणियतणकयवरं विसोहियरायमगं कारावेह, जमालिकुमारस्स य जोग्गं महरिहं निक्खमणभिसेयं निवत्तेह, ते य सविणयं पडिसुत णित्ता नीहरिया भवणाओ संपाडियं रायसासणं, तयणंतरं च पुरत्याभिमुहम्मि सीहासणे उववेसिऊण जमालि कुमारो मणिकणगरययपुढविमएहिं अट्ठोत्तरसयसंखेहि अणेगेहिं कलसेहिं गंधुदुरपवरसलिलभरिएहिं पहाविओ। अम्मापिऊहिं निवत्तियंमि य अभिसेगे भणिओ-बच्छ! किमियाणिं तुह बहुमयं पियं पयच्छामो?, जमालिणा भणियं-अम्मताया! इच्छामि इयाणि कुत्तियावणाओ रयहरणं पडिग्गहं च उवणिजमाणं तहा कासवं च वाहरिजमाणं, एवं च निसामिऊण जमालिपिऊणा भणिया पुरिसा-अरे सिरिघराओ तिन्नि दविणसयसहस्साइं घेतूण SASARAMECCAN SM-NCARNAKALAESCASSOCN ॥२६४॥ For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५ महा www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुत्तियावणाओ रयहरणं पडिग्गहं च एगमेगलक्खेण आणेह, एगलक्वप्पयाणेण कासवगं च सद्दाह, एवमाणत्ते निग्गया पुरिसा रवहरणं पडिग्गहं कासवगं च घेत्तृण पडिनियत्ता, सो य कासवो जमालिपियरं पण मिऊण एवं भणिउं पवत्तो- देव ! संदिसह जं मए करणिजं, तेण जंपियं-भद्द ! जमालिस्त कुमारस्स परेणं जत्तेणं चउरंगुलव जे निक्खमणपाओग्गे अग्गकेसे कप्पेहि, तओ सो कासवओ सुरभिगंधोदएण करचलणे पक्खालिऊण अट्ठगुणाए पोत्तीए वयणं संजमिऊण जहुत्तेण विहिणा केसे कप्पिउमारद्धो, जणणीवि से अणवरयं कज्जलमलिणारं अंसुयाई मुयंती भुयगनिम्मोयनिम्मलेण उत्तरिजेण केसकलावं पडिच्छइ, तयणंतरं च सुरभिवारिणा पक्खालिऊण हरियंदसविलेवणपुप्फेहिं अचेर, पंडुरवत्थंमि बंधिऊण रयणकरंडग़मि पक्खिवर, सोगभरगग्गर गिरं च रुपमाणी एवं भणइ - पत्तो मए मंदपुण्णाए जण्णेसु ऊसवेसु य वढीसु य इमेहिं पुत्तो जमाली सुमरणिज्जोत्ति, एवं च अभि क्खणं जंपमाणी तं रयणकरंडगं नियसयणिजस्स ऊसीसगमूले ठवेइ, अह निवत्तियमजणमहूसवो परिहियामलदुगुल्लो हेममयमउडमणिकणयकडय कुंडलालंकियसरीरो बन्छत्थलरिखोलिंतविमलमुत्ताकलाव सोहिल्लो विविहाभरण| पहाभर विच्छुरियनहंगणाभोगो तक्कालमिलियबिलयासमूहकीरंत मंगलायारो दाणानंदियमग्गणगिजंतुद्दामगुणनिवहो खंभसयसंनिविद्धं समीरंबुयधव लघयवडसणाहं सुविचित्तचित्तरम्मं अणेगजणजणिय परितोसं सुइनेवत्थधराणं छेयाणं पवरनरजुवाणाणं सहस्सेणं उक्खित्तं झडत्ति सिवियं समारूढो, रयहरणपडिग्गधारिणीए दाहिणदिसिं For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगणचं निलीणाए धावीए परिवरिओ, अन्नाहि य पपरस्मणीहि धरियधघलापवत्तो चलंतसतिकंतचामरापयवो दिहिपह- जमालेमहावीरच० पइट्ठावियमणिमयअट्ठमंगलओ करितुरयरहवरारूढसयणघग्गेण अणुगमिजंतो वजंताउज्जसमुच्छलंतरवभरियनह 18. दीक्षा. ८ प्रस्तावः विवरो पासायतलट्टियपउरलोयनिवहेण संथुणिजंतो झडत्ति जमालिकुमारो तयणु पयट्टो जिणाभिमुहं। ॥२६५॥टा ___ अह जमालिस्स भारिया पियदसणा तहाविहवइयरमुवलम्भ जायभववेरग्गा पवजं पडिवजिउकामा तहेव पट्ठिया, कमेण य पत्ताई ताई जिणंतियं, तओ पंचरायसुयसयपरिवारो जमालिकुमारो पडियन्नो जिणिंददेसियं समणधम्म, पियदसणावि नरिंदंदुहिया सहस्सेण परिवुडा पवट्ठमाणसंवेगा समणी जायत्ति । ___ अह जमाली सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई ससुत्ताई सअत्थाई अहिजइ, बहूहिं चउत्थछट्टमपमुहेहिं अणवरयं विचित्तेहिं तवोकम्महिं अप्पाणं भावितो भगवया सद्धिं पुरागराइसु विहरह, पियदंसणावि चंदणाए पवतिणीए समं परियडइ। ___ अह अन्नया कयाई जमाली भयवंतं महावीरजिणवरं वंदित्ता विनविउमारद्धो-भयवं! वंछामि अहं तुब्भोहिं अम्भगुन्नाओ समाणो अनिययविहारेहिं पंचहि समणसएहिं सद्धिं विहरिउंति, सामीवि विमलकेवलालोयावलो ॥२६५॥ इसयलजियलोयभूयभाविवढमाणकालकलावलंबिसुहासुहपरिणामविसेसो भाविरमणत्थं मुणिऊण जमालिस्स पुणो है पुषो भणमाणस्सवि मोणमवलंबिऊण जाविउं पबत्तो, जमालीऽवि अप्पडिसिद्धमणुमयंति कलिऊण पंचहि समण RSS RSMSSSSSS 555ॐ For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CREER- 8सएहिं सहिओ तवस्सिणीसहस्सपरिखुडाए पियदसणाए समणुगओ अपुषापुषगामनगरागराइसु भमिउमारद्धो,! दि अन्नया य गामाणुगामेण विहरमाणो समागओ सावत्थिं नयरिं, ठिओ य कुटुगाभिहाणम्मि उजाणे, तत्थ य है |ठियस्स विरसेहिं लुक्खेहिं सीयलेहिं तुच्छेहि असुंदरोहिं कालाइकंतहिं पाणभोयणेहिं दुरहियासो पयंडो सरीरंमि ४) पित्तजरो पाउन्भूओ, तेण य अचंतं अभिहओ समाणो भणइ-अहो समणा! मम निमित्तं संथारयं संथारेह, ते य दि तच्चयणमायन्निऊण तक्खणमेव संथारयं संथारिउमारद्धा, जमालीवि अहिययरं वेयणाभिहओ निसन्नो ठाउमपा रयंतो पुणो पुणो पुच्छइ-भो समणा! संथारगो संधरिओ न वा?, तेहिं भणियं-संथरिओ, एयं च सोचा उट्ठिओ जमाली गओ तदंतियं, संथारयं च संथरिजंतं पेच्छिऊण उप्पन्नमिच्छत्तो जंपिउं पवत्तो-भो मुणिणो! इयाणि ६ मुणियं मए तत्तं, निप्फन्नमेव निप्फन्नं भन्नइ, न उण निप्फजमाणंपि, अओ संथरिजमाणेऽवि संथारगे संथरिओत्ति तुम्भहिं वुत्तं तमसचं, एवं चकडमाणं कडमुप्पजमाणमुप्पन्नमेवमाईवि । वागरइ जंजिणिदो दिट्ठविरोहा न तं घडइ ॥१॥ अवरावरसमयसमूहजोगनिप्फज्जमाणकजमि । कह पारंभे चिय कडमिमंति वोतुं खमं होजा? ॥२॥ ... अत्थकिरियापसाहणखमं च वत्थुत्तणं समुवहइ । पढमसमप्पसूए य तयंपि नो विजइ पयत्थे ॥३॥ जइ पारंभे थिय तं कडंति एवं च सेससमएसु । करणे कडस्स आवडइ उन्मडा नूणमणवत्था ॥ ४ ॥ ASSSSSSSSS CARRC For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ८प्रस्तावः जमालेनिहवत्वं. ॥२६६॥ ता जुत्तिसंगयमिमं कडमेव कडं पवुच्चए पयडं । किरियानिट्ठासमयाण होइ एवं च न विरोहो ॥५॥ इय पडिवजह समणा! पक्खमिमं सयलदोसपरिहीगं । वुत्तंति नेय गिज्झइ कुपलेहिं किंतु जुत्तंति ॥६॥ नय सबन्नुत्ति पसिद्धिपत्तकित्ती जिगो वयइ मिच्छा । किं तु वए चिय कइयावि जेण गरुयावि मुझंति ॥७॥ इय समयसत्थसवणुब्भवपि तं नियविवेयमवहाय : पित्तजरविहुरिओ इव पलवइ असमंजसं बहुसो ॥८॥ NI एवं च मुकमजायं अजुत्तपिरं च जमालिं वियाणिऊण थेरेहि भणियं-भो जमालि! किमेवं विवरीयं परूवेसि ?, 8.न हु विजियरागदोसमोहा अन्नहा जति तित्थयरा, न य तवयणं मणागपि पचक्खविरुद्धाइदोसलेसमावहइ, तहाहि-जं तए भणियं-अणेगुत्तरोत्तरसमएहिं निप्फजमाणमि कजे कहं पारंभसमएवि निष्फण्णंति बुचइ?, तमजुत्तं, जओ-जइ पढमसमए निप्फण्णं न वुचइ ता समयाविसेसत्तगेण बीयाइसु समएसु अनिप्फत्ती चेव हवेज्जा, जंच अत्थकिरियाए साहगत्तं वत्थुलक्खणं भणियं तंपि इह अवभिचरियं जुजइ, अभिहाणनाणोवओगसंभवाओ, तहाहि-तहाविहं वत्थुविसेसं पप्प पढमसमएवि लोगो किमेयं कुणसित्ति अन्नेण पुट्ठो वागरइ-घडं पडं वा करेमित्ति, जं च पढमसमयकडे उत्तरोत्तरसमएसु कडकरणलक्खणाणवत्थादूसणं तंपि अन्नन्नकजंतरपसाहणेण अलियमेव, किरियाकालनिट्ठाकालभेयदूसणपक्खोऽवि विहलो, जं च कहियं-न वुत्तं गिज्झइ किं तु जुत्तं, तत्थवि छउमस्थस्स तुम्हारिसस्स कहं जुत्ताजुत्तविवेओ संभवेजा?, भयवं चिय केवलालोयकलियलोयालोयभावो एत्थ पमाणं, AASARACK ॥२६६॥ For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SA जं च भणियं गरुयावि कयावि मुझंति तंपि उम्मतपलवियं व न कुसलाण चित्तं रंजिउं पारइ, ता सुटु भणियं भगवया-कडमाणं कडमुप्पजमाणमुप्पन्नमिच्चाइ, किंच जइ तिहुयणेकचूडामणी जिणो वागरेज वितहमहो। ता तबयणेण तवोविहाण मेयं किमायरसि? ॥ १॥ रजं रट्टं च विवजिऊण आणाए तस्स निक्खमिउं । तन्वयणं दूसिंतो कह न तुम लजसे इण्हि? ॥१॥ अहवाऽणाभोगसमुभवेण दोसेण दुटु भणिएवि । जायइ पुणो विसुद्धी आलोयणनिंदणाईहिं ॥३॥ ता मोत्तुं कुवियप्पं वञ्च समीवे जएकदीवस्स । पडिवजसु पच्छित्तं मा विफलं नेसु नियजम्मं ॥४॥ अक्षरमेतंपि न जो जिणिंदवयणस्स सद्दहइ मणुस्सो। सो पावइ मिच्छत्तं तत्तो संसारपरिवुद्धिं ॥५॥ तत्तो चिय किब्बिसतियसतिरियवसहीसु मणुयजोणीसु । दुविसहदुहपरंपरमणंतमणिवारियं लहइ ॥६॥ गरुओऽवि पावरासी जिणिंदसमयत्यसदहणहणिओ । नावत्थाणं बंधइ घणोच खरपवणपडिहणिओ ॥७॥ इय सो थेरेहिं बहुप्पयारहेऊहिं अत्थसारेहिं । तह गाढं पन्नविओ जह सहसा मोणमल्लीगो ॥ ८॥ अह विवरीयपरूवणापाउन्भूयपावपायच्छित्तमपडिवजमाणं जमालिं परिहरिऊण केऽवि थेरा भगवओ समीवमुवगया, अन्ने य तस्स चेव पासे ठिया, पियदंसणावि अजियासहस्सपरिवारा महिलाभावसुलभनिविवेययाए 11वपडिबंधाणुवित्तीए य जमालिस्स पक्खमणुवत्तिउमारद्धा । 8 R OSAXX For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंदा एगया य जायनीरोगसरीरो जमाली तेण असग्गहेण अप्पाणं च परं च पइदिणं बुग्गाहेमाणो वुप्पाएमाणो| स्थविरादीमहावीरच. जिणनाहवयणं दूसेमाणो अहमेव उप्पन्ननाणदंसणधरो सबन्नुत्ति अहंकारमुबहंतो सत्वत्थ हिंडिउं पवत्तो । अन्नया य नां जिनपा८प्रस्ताव K गमन प्रचंपानयरीए पुण्णभद्दे चेइए समोसढस्स अणेगसिस्सगणपरिवुडस्स भयवओ महावीरस्स अदूरदेसंमि सो ठाऊण श्नोत्तरे च. ॥२६७ ॥ सगवमेवं भणिउमाढत्तो-भयवं! जहा तुज्झ बहवे सिस्सा छउमत्था चेव भवित्ता मरणधम्मयं पत्ता तहा न खलु अहं, जो मम दिधमक्खयं केवलनाणदंसणं उप्पन्नति, तबसेण य सवं जहट्टियं वत्थुतत्तं अवगच्छामि, अओ एत्थ धरामंडले अहमेव अरहा सपन्न सच्चदरिसित्ति । इमं च निसामिऊण भणिओ गोअमसामिणा-भो जमाली! जइ तुमं एवंविहो ता तुज्झ नाणं सेलेण वा थंभेण वा थूमेण वा न वारिजइ, अओ इमाई दोनि पसिणाई मम | टू वागरेहि, किं सासओ लोगो असासओ ?, किं सासओ जीवो असासओ वत्ति ?, एवं च पुच्छिओ जमाली संसय-6 मावण्णो जाव पञ्चुत्तरं दाउमसमत्थो विच्छायमुहच्छाओ तुसिणीए संचिटइ ताव भुवणेकभाणुणा महावीरेण वागरिओ-भो जमाली! बहवे मम अंतेवासिणो जिणा इव समत्था इमं आयक्खिउं, किंतु तुमं व न एवं सगवमु-18 लवंति, न या भह ! एत्थ किंपि दुन्नेयं, जओ सासओऽवि लोगो असासओऽवि लोगो, कहं ?, कालत्तएवि अवटि ॥२६७॥ || यसामनरूवत्तणेण सासओ, ओसप्पिणीपमुहपज्जायपरियत्तणेण य असासओ, एवं जीवोऽवि सबावत्थासु अणुगामित्तणेण सासओ, नरनेरइयतिरियाइपज्जायंतरसंभवा असासओत्ति । एवं च भगवओ आइक्खमाणस्स जमाली! ARRA २-*- For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कुवियप्पा उलहिययत्तणेण असदहिऊण तेण पुचबुग्गाहिएण नियसमणसमणीसंघेण परिवुडो पुरनगराइसु नियदंसणाभिप्पायं परूवयंतो विहरइ, वित्थरिया सवत्थ एसा संकहा जहा जमाली भगवओ मिच्छं पडिवन्नोति । अन्ना य सो विहरमाणो पुणो गओ सावत्थि नयरिं, ठिओ य एत्थ उज्जाणे, पियदंसणावि अज्जियासह स्सपरिवारा महिडियस्स ढंकाभिहाणस्स कुंभकारस्स आवणे आपुच्छित्ता ठिया, सोय ढंको जिणवयणभावियप्पा जाणइ जहा एयाणि मिच्छत्तमुवगयाणि, जिणवयणं न पत्तियंति, अओ जइ कहवि वोहिजंति तो सुद्ध लठ्ठे हवइत्ति । अन्नया य मंडयाई उच्चत्तंतेण पडिवोहणत्थं पियदंसणासाहुणीए वत्थंमि पक्खित्तो एगो जलणकणो, तेण य दज्झमाणं वत्थं पेच्छिऊण तीए भणियं-भो महाणुभाव ! किमेयं तर कथं ?, पेच्छ मम पडगो दडो, तेण भणियं - अजिए! मा मुसं वयाहि, सङ्घमि चैव वत्थे निद्दहे एवं भणिउं जुज्जइ, एस किर तुम्ह संमयत्थो, अन्नहा दज्झमाणं दति जिणवरवीरवयणं चेव पडिवजिउं जुत्तं । एयं च तीए सोचा तक्कालुप्पन्नसुद्धबुद्धीए । भणियं सम्मं सावय ! मूढाऽहं बोहिया तुमए ॥ १ ॥ तइलोयतिलयभूयस्स भगवओ वद्धमाणसामिस्स । वयणं पावाए मए पडिकूलियमेत्तियं कालं ॥ २ ॥ जस्स वयणेण विहिओ घरचाओ संजमो य पडिवन्नो । सोवि जिणो न गणिज्जर, अहो महं मोहमाहप्पं ॥ ३ ॥ ढकेण तओ भणियं - भयवइ ! मा वहसु चित्तसंतावं । समणीजणपरियरिया वञ्चसु सचन्नुपासंमि ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीगुणचंद महावीरच. ८प्रस्ताव प्रियदर्शना बोधः जमा लिमरणं. ॥२६८॥ आणाए तस्स वसु गरिहसु नियदुकडं समग्गपि । उम्मग्गं पडिवन्नं लोयं परिहरसु वेरिं व ॥५॥ इच्छामो अणुसद्धिंति जंपिउं साहुणीसहस्सेण । परियरिया सा तत्तो तिहुयणपहुणो गया पासे ॥६॥ मोत्तुं जमालिमेगं ढंकेणऽन्नेवि बोहिया समणा । तं मोत्तूगं सवे तेऽवि गया जिणवरसमी ॥७॥ इय ताव इह भवे चिय जियवयणविकूलणाणुभावेण । मुक्को न केवलं मुणिवरेहिं सुगुणेहिंवि जमाली ॥८॥ एवं च सो मिच्छत्ताभिणिवेसेणं अप्पाणं समीववत्तिजणं च वोप्पायएंतो बहुयाई वासाई सामनपरियागं पाउ. णित्ता अद्धमासियं च पजंते संलेहणं काऊण तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंतो मओ समाणो लंतए कप्पे तेरस|सागरोवमठिइएसु किब्बिसियसुरेसु देवत्ताए उववन्नो। | इओ य भगयया गोयमेण जमालिं कालगयं जाणित्ता भयवंतं महावीरं परेणं विणएणं वंदित्ता भणियं-भंते ! तुम्भं कुसीसो जमाली नाम अणगारो तहाविहं उग्गं तवविसेसं आसेविऊण कहिं उववन्नो ?, तओ भगवया कहिओ सबो किब्बिसयदेवत्तलाभपजवसाणो से तत्वइयरो। अह भणइ इंदभूई-भय तारिस तवंपि काऊणं । किं कारणमुववन्नो किञ्चिसियसुरेसु स जमाली? ॥१॥ ताहे भणियं भुवणेकमाणुणा मुणियसयलभावेण । गोयम! सुणेसु एत्थं कारणमेगग्गचित्तेण ॥२॥ धम्मायाररयाणं आयरिआणं विसुद्धसीलाणं । सुत्तप्पवत्तयाणं उज्झायाणं गुणनिहीणं ॥३॥ CCTOCT-MARACHAR SUAISAXES | ॥२६८॥ For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुलगणसंघाणंपिय पडिणीया जे हवंति इह जीवा । विउलंपि तवं काउं ते किञ्चिसिएसु जायंति ॥४॥ पुणरवि गोयमसामी पुच्छइ भयवं! तओ सठाणाओ। चइउं कइहिं भवेहिं पाविस्सइ मोक्खपुरवासं ॥५॥ जिणनाहेणं भणियं सुरतिरियनरेसु पंच वेलाओ। भमिऊण पत्तबोही लहिही निवाणसोक्खाई ॥६॥ ता भो देवाणुपिया! जमालिमुणिणो निसामिउं चरियं । धम्मगुरुप्पमुहाणं विणयपरा होजह सयावि ॥ ७॥ इय सिक्खविउं मुणिणो समत्थजियलोयवच्छलो वीरो । विहरइ पडिबोहितो भवजणं परमकरुणाए ॥८॥ विहरंतस्स य पहुणो एत्तो ससिसूरवरविमाणाणं । अवयारणअच्छरियं जह जायं तह निसामेह ॥९॥ ___साएए नयरे सन्निहियपाडिहेरो सुरप्पिओ नाम जक्खो, सो य पइवरिसं चित्तिजइ महूसवो य से परमो कीरइ, सो य चित्तिो समाणो चित्तगरं वावाएइ, जइ न चित्तिजइ ता नयरे जणमारिं विउवइ, तब्भएण य सा चित्तगरसेणी पलाइउमारद्धा, णरवइणा विचिंतियं-जइ इमे सवे पलाइस्संति ता अवस्समेस जक्खो अचित्तिजंतो अम्ह वहाए भविस्सइत्ति परिभाविऊग ते चित्तकरा संकलियावद्धा कया, सवेसि नामाणि य पत्तए लिहिऊण घडए छूढाणि, तओ वरिसे वरिसे जस्स नामपत्तयं नीहरइ सो चित्तकम्मं जक्खस्स करेइ, एवं कालो बच्चइ । अन्नया य कोसंबीनयरीए वत्थवो एगो चित्तयरदारगो चित्तविजासिक्खणत्यं तत्थागओ ठिओ य चित्तगरथेरीए मंदिरे, जाया य तप्पुत्तेण सद्धिं तस्स मित्ती, एवं च तस्स अच्छंतस्स तंमि वरिसे समागओ थेरीसुयस्स वारगो, तओ थेरी बहुप्पयारं For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद उरसिराई ताडेती रोइउमारद्धा, पुच्छिया य तेण कोसंबीचित्तगरदारगेण-अम्मो! कीस रोयसि ?, तीए भणियं-18॥ चन्द्रसूर्यामहावीरचा पुत्त ! एगो चिय एस मे सुओ, संपयं जक्खं चित्तिऊण जमसुहं पाविउकामोविव लक्खिजइ, तेण जंपियं-अम्मो! गमनं वर८प्रस्ताव: मा रुयसु, अहं जक्खं चित्तिस्सामि, तीए भणियं-वच्छ ! तुमं मे पुत्तो किं न भवसि ?, तेण कहियं-तहावि चित्ति-IPS कार: ॥ २६९ ॥18स्सामि, अह जायंमि पत्थावे सो छ?भत्तं काऊण व्हाओ चंदणरससमालभियदेहो नियंसियवत्थजुयलो अटगुणपो |त्तीए मुहं संजमिऊण नवएहिं कुच्चगेहि पसत्थेहिं वन्नगेहिं जक्खं चित्तिऊण घरेण विणएणं पायवडिओ भणइ देव ! सुरप्पिय ! को तुज्झ चित्तकम्मं विणिम्मिउं तरइ ? । अचंतं निउणोऽविहु किं पुण अम्हारिसो मुद्धो ॥१॥ तहवि हु चवलत्तणओ न सुटू जं वट्टियं मए किंपि । तं खमियचं तुमए सामिय! पणयंमि को कोवो ? ॥२॥ एवं थुणंतस्स तस्स परितुट्ठों जक्खो भणइ-अरे वरं वरेसु, तेण भणिगं-देव! एसो चेव बरो-मा एत्तो लोग मारिस्ससि, जक्खेण भणियं-तुज्झ अविणासणाओ चे सिद्धमेयं, अन्नं मग्गेसु, तेण जंपियं-जइ एवं ता जस्स8 दुपयस्स चउप्पयस्स अपयस्स वा एगदेसमवि पेच्छामि तस्सागुरूवं चित्तं निपत्तिजामि, जक्खेण भणियं-एवं होहित्ति, तओ सो उवलद्धवरो रन्ना नगरजणेण सकारिओ संतो गओ कोसंबी नयरिं, तत्थ य पुवभणिओ सया- ॥२६९॥ णिओ राया, सो अन्नया रजेणं रटेणं चउरंगवलविच्छड्डेणं अनेण य विभूइविसेसेणं गवमुबहतो अत्थाणीमंडवे | दानिविट्ठो दूयं पुच्छइ-अरे किं मम नत्थि ? जे अन्ननरिंदाणमत्थि, तेण जंपियं-देव! तुम्ह चित्तसभा नत्थि, एवं च SA-AUSAIRECAMER For Private and Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भणिए आणत्ता राइणा सभामंडवचित्तणत्थं चित्तगरा, तेहिं च समा भूमी विभइऊण पारद्धा चित्तिउं, तस्स य वरदिन्नस्स जो अंतेउरकीलापचासन्नो पएसो सो समप्पिओ, तया य तत्थ चित्तकम्म कुणमाणेण एगया नरिंद-1 दिग्गमहिसीए मिगावईदेवीए जालकडगंतरेण मणिमयमुद्दियाकिरणविच्छुरिओ चरणंगुटुओ दिट्ठो, उवमाणेण य8 नायमणेणं जहा मिगावई एसत्ति, तओ तेण अंगुटगाणुसारेण जहावद्वियं रूवमालिहियं, तंमि य च मि उम्मीलिजंते एगो मसिबिंदू ऊरूअंते निवडिओ, तेणावणीओ, पुणोऽवि पडिओ, एवं तइयवेलाए तं निवडियं पेच्छि-17 ऊण नूणमणेण एत्थ होयचंति जायनिच्छ एण नावणीओ, अह सममि चित्तकम्मे राया चित्तसभं पलोयंतोतं हैपएस संपत्तो जत्थ तं मिगावईए रूवं, तं च अणिमेसच्छिणा पेच्छमाणेण दिवो सो बिंदू, तओ आबद्धभिउडी|भीमो रोसवसायंविरच्छिविच्छोहो तं च दहण नरिंदो चिंतिउमेवं समाढत्तो एएण पावमइणा मम पत्ती धरिसियत्ति निभंतं । कमन्नहा नियंसणमज्झगयंपिहु मुणेज मसं ॥१॥ - इयरंमिवि परदारे परिभोगपरं वयं निगिण्हामो । किं पुण सए कलत्ते एयं नायंपिटु खमामो ? ॥२॥ एवं परिभाविऊण सो वरदिन्नचित्तगरो समपिओ दंडवासियाणं, आणतो य वज्झो, एयं च वइयरं निसामिऊण उवटिया चित्तगरसेणी, विनविओ राया, जहा-देव! वरलद्धओ एसो, जस्स अवयवमेतंपि पास इ तस्स पडिपुन्नं रूवमालिहइ, अओ कीस निकारणं कोवमुखहइ देवो?, जइ एत्थ न पचओ ता विनासिजउ, एवं च भणिए । RARANA-%AFARSA For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद निराइणा दंसावियं खुजाए मुहमेतं, तेण य तदणुरूवं निवत्तिय चित्तं, तहावि रन्ना पुचामरिसवसेण तस्स संडासओ दमृगावती महावीरच० छिंदाविओ निविसओ य आणत्तो। चिंत्र. ८प्रस्तावः | तओ सो चित्तगरो पुणोऽवि गओ जक्खसमीवं, ठिओ उपवासेण, भणिओ य जक्खेण-भद्द! मुंच विसायं, ॥२७॥ दाममाणुभावेण पुर्वपिव वामहत्थेण चित्तिहिसि, एवं च लद्धे वरंमि एसो परिचिंतेइ-अहो महा पावकारिणा कह | निरवराहो व अहं एयमवत्थं पाविओ?, ता संपयं तस्स दुस्सिक्खियस्स दंसेमि दुन्नयफलंति परिभाविऊण चित्तवट्टियाए निगावईए सिंगारूलभडं रूवमालिहिऊण इत्थीलालसं चंडपजोयं महानरिंदमुवटिओ, दंसिया चित्तवहिगा, अवलोइया साहिलासं चंडपज्जोएण, अवलोयमाणस्स य तक्खगं चेव विसट्टकंदोद्ददीहरा वियसिया से दिट्ठी, पम्हुट्ठो कुलाभिमाणो परिगलिओ नयमग्गो वियंभिआ अरई समुल्लसिओ रणरणओ पजलिओ सबंगिओ मयणानलो, सविसेसं पलोयमाणो य थंभिओव कीलिओच निचलनिरुद्धनयणो टिगो मुहुत्तमेत्तं, पुच्छिओय चित्तयरो सुरसुंदरीऍ रूवं वम्महदइयाए नागकन्नाए? । दट्ठण तए सुंदर ! पडिविंबमि इहालिहियं ॥१॥ जइ सुरविलया एसा ता सचं भुवणविस्सुया तियसा । अह वम्महस्स लीलाए जिगउ ता सो तिलोयंपि ॥२॥3॥२७॥ अहवा भुयगाण इमा ता सोहउ निचमेव पायालं । पडिहणियतिमिरपसरं एयाए मुहेंदुकिरणेहिं ॥३॥ दूसिजइ पेच्छ इमीए कायकंतीए कंचणच्छाथा । विच्छाइजइ नयणेहिं नीलनवनलिणलच्छीवि ॥ ४ ॥ CARRAHKARESS XXXCARRA SCACK For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A-CA अहरप्पहाएँ निहरइ बिहुमकंकेलिपलबसिरीवि । रूवेऽणुरंजिएण व रंभाए वहइ समसीसिं ॥५॥ किं बहुणा ?-एवंविहवरजुबईजणस्स विरहे विडंबणा कामा । मणुयत्तंपिहु विहलं दुहावहं भूवइत्तंपि ॥६॥ तं कहसु कस्स एसा सुयणू! को या इमीए लाभंमि । कीरंतो य उवाओ अणुरूवो सिद्धिमावहइ ? ॥ ७ ॥ एवं नराहिवेण भणिए चित्तमरेणं जंपियं-देव ! न हवइ एसा सुराईण रमणी, किंतु सयाणियरनो अग्गमहिसी | मिगावइनाम, मए सामनेण आलिहिया, विसेसओ जइ पुण परं पयावई से रूवमालिहउ, जइ एवं नाम महिला चेव सा अओ रे वजजंघवय सिग्घ, गंतूण भणसु मम वयणेण सयाणियनरवई, जह सिग्धं पेसेसु मिगावई, एवंविह इत्थीरयणाण वरणे को बुझ अहिगारोति ?, ता सिग्थं पेसेसु, जुज्झसज्जो वा होजासित्ति बुत्ते जं देवो 8 आणवेइत्ति भणिऊण गओ दूओ, निवेइयं सयाणियस्स नरिंदसासणं, तेण य तमायन्निऊण जायकोवेण भणियं-18 रे याहम! जइ कहवि सो कुलकमविमुक्कमज्जायं उस्सिंखलं पयंपइ ता तुज्झवि किं खमं वोत्तुं १, किं भिचो सोऽपि न जो ससामिणो उप्पहं पवत्तस्स नियबुद्धिवित्थरेणं अवजसपंसुं परिसमेह १, एवंविहदुनयवियारिणोऽवि जायइ कुले गुरुकलंको, किं पुण बहुजणपुरओ पयडगिरा पाणिते ?, अन्नेसुवि रज्जंतरेसु दिदं सुयं व रेतुमे एवंविहं| अकज्ज कीरंत केणइ निषेण, किंच-जत्य सयं चिय राया दुन्नयमेवंविहं समायरइ ततो हया मूलाओ वराहणी SAMACHARSACARE महा. For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः मरणं ॥२७१॥ तत्थ नीईवि, किं बहुणा ?, एवं जपिरस्स तुह चेव इहयं जुज्झइ विणासो काउं, जंच न कीरइ तं न य तेउत्ति कलि- त शतानीकऊण, इय निभत्थिऊण दृओ निद्धमणेण कंठे घेत्तूण निच्छूढो, गओ य सो चंडपजोयसमीवे, साहिओ य चउग्गुणो नियवइयरो, इमोवि तेण दृयवयणेण वाढं रुट्ठो सच्चबलेण परियरिओ पयहो कोसंबीए, अणवरयपयाणएहि य मृगावती प्रपंच.. आगच्छंतं निसामिऊण सयाणिओ अप्पबलो तहाविहसंखोहसमुप्पन्नाइसारो मओ, तओ मिगावईए चिंतियं-18 राया ताव संखोभेण विणट्ठो, पुत्तोऽवि असंजायबलो एयस्साणणुसरणे मा विवजिही, एयाणुस्सरणंमि गरुओ कुलकलंको, तम्हा इमं पत्तकालं-इहट्ठिया अचंतमणुलोमवयणवित्थरेण चेव कालहारिं करेमि पच्छा जमुचियं तमाचरिस्सामित्ति चिंतिऊण भणाविओ दूयवयणेण चंडपज्जोयनरिंदो, जहा-राए सयाणिए परोक्खम्मि तं चेव मए सरणं, केवलं मम पुत्तो असंपत्तवलो मए विमुक्को समाणो पचंतनरिंदेहिं पेल्लेजिही, इमं च सोचा परमहरिसपगरिसमुबहतेण भणावियं रन्ना-पिए! मम पयंडभुयदंडपरिग्गहिए तुह सुए को चिरजीवियत्थी पयं काउं समीहिज्जा?, तीए भणियं-अस्थि महाराय !, केवलं उस्सीसए सप्पो जोयणसए वेजो, विणट्ठम्मि कजे किं तुमं काहिसि ?, अओ जइ निप्पच्चवायं मए सह संगममभिलससि ता उजेणिपुरीसमुभवार्हि निहुराहिं इट्टियाहि इमीए नयरीए ID॥२७१॥ चउदिसि कारवेसु समुत्तुंगपायारपरिक्खेवंति, इमं चायन्निऊण पडिवन्नं राइणा, तओ चउद्दसवि नियरायाणो सबला धरिया मग्गम्मि, पुरिसपरंपराए य आणियाओ इट्टगाओ, निम्मविओ पायारो, तओ तीए भण्णइ-इयाणिं | CARSACAARAK For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr नगरि धन्नस्स वत्थस्स इंधणस्स य भरेहि, आसाविणडिएण य भरिया अणेण, जाहे नयरी रोहगसज्जा जाया ताहे सा विप्पडिवन्ना, दुवाराई बंधिऊण जुज्झिउं उवट्ठिया, चंडपज्जोयरायावि विलक्खो नगरिं वेढिऊण ठिओ, अन्न| दिवसे य वेरग्गमुवगयाए चिंतियं मिगावईए-धन्ना ते गामागरनगराइसन्निवेसा जत्थ भयवं महावीरसामी भवगिराए जणं पडिबोहंतो विहरइ, संपयं च जइ सो परमेसरो एत्थ एद्द तो अहं पवयामि, इमं च तीसे संकष्पं | केवलालोएण कलिऊण गोयमपमुहमुणिजणपरिवुडो नवकणयकमलनिम्मियचलणो अणंतरमेव समागओ भयवं, कयं देवेहिं समोसरणं, उवविट्ठो सिंहासणे जयगुरू, तप्पभावेण य पसमियं वेरं वद्धाविया मिगावई चार पुरि| सेहिं, दिन्नमणाए चिन्ताइरित्तं तेर्सि पारिओसियं, उग्घाडियाइं गोउरकवाडाई, महया विभवेण निग्गया मिगावई, जहाविहिणा वंदिओ भयवं, ठिया य समुचियठाणे, चंडपज्जोयरायावि समागओ, एत्थंतरे भगवया पारद्धा धम्मकहा । अह एगो पुरिसो करगहियकोदंडवाणो एस सङ्घण्णुत्ति लोयप्पवायं निसाभिऊण भयवओ अदूरदेसडिओ निय संसयं मणसा पुच्छर, ताहे सामिणा भणिओ-भो देवाणुपिया ! वायाए पुच्छ, वरमन्नेऽवि भवसत्ता पडिबुज्झंति, एवमवि सामिणा भणिए लोयलजाए तेण भण्णइ-भगवं ! जा सा सा सा ?, तो भगवया जंपियं एवमेयंति, अह पायपीढपासट्ठिएण गोयमसामिणा सुयनाणमुणियपरमत्थेणवि भवजण पडिवोहणत्थं पुच्छियं - भययं ! किं For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छ६ त मवसरणं श्रीगुणचंद एएण जा सा सा सत्ति संलत्तं ?, भगवया कहिय-महती कहा एसा, एगग्गचित्ता निसामेह श्रीवीरसमहावीरच अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे चंपानाम नयरी, तत्थेवेगो सुवण्णगारो इत्थीलोलो जंज पवररूववई कन्नगं पेच्छइ त ८प्रस्ताव तिं पंच सुवण्णसयाणि दाऊण परिणेइ, एवं च तेण परिणयंतेण कालक्कमेण पंच सयाणि महिलियाणं पिंडियाणि, या सासा ॥२७२॥ एकेकाए य तिलगहारहहारनेउरपयुहाई आभरणाई दिन्नाई, जदिवसं च जाए समं भोगे मुंजइ तदिवसं सा सवालं कारपरिग्गहं पहाणविलेवणाइ सिंगारं च करेइ, सेसकालं पुण उवसंतवेसेण अच्छइ, अण्णहा सुवणगारो निम्भ-18 दन्छइ, न य ईसालुगत्तणेण सो निमेसमेपि गेहदुवारं मुंचइ, सयणाणवि नावगासं-देइ, एवं वचंति वासरा, अजया यसो अणिच्छंतो महया किलेसेण नीओ मित्तेण भोयणदाणत्थं नियमंदिरे, चिरलद्धावगासाहि य चिंतियं तस्स रोहिणीहि कि अम्ह जीविएणं? किंवा मणिकणगभूसहिंपि।किं विभववित्थरेणवि बहुएण निरत्थएणिमिणा ॥१॥ जंन लभामो निचंपि विलसिउं नणु कयंततुलस्स । एयस्स पावपइणो दढमम्हे गोवरे पडिया ॥२॥ बहुकालाओ गेहं जाव विमोतुं गओ स अन्नत्य । मणवंछियसोक्खेणं ताव वसामो खणं एकं ॥३॥ इय चिंतिऊण व्हाया सुरहिविलेवणविलित्तसवंगा । परिहियपवरदुगुल्ला आलिद्धासेसआभरणा ॥ ४ ॥ ॥२७२॥ भालतलरइयकुरुला [तिलया] सिंदूरारुणियपवरसीमंता । गंधुभडमियनाहीपंकलिहियगलपचळया ॥५॥ RAAGAR For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr पाडली जाव चिट्ठति दप्पणं घेतुं । समुहं पलोयमाणा ताव लहुं आगओ भत्ता ॥ ६ ॥ दहूण तासि तारिस दुचिट्ठं तेण जायकोवेण । एगा महिला पहया तह जह सा पाविया मरणं ॥ ७ ॥ तयणंतरं च भयवसकंपिरदेहाहिं सेसमहिलाहिं । चिंतियमिमं जहेसा तह अम्देवि हु विवज्जामो ॥ ८ ॥ तम्हा आयंसेहिं पहणामो रक्खिएण किं इमिणा ? । इइ चिंतिऊण समगं खित्ता तदभिमुहमायंसा ॥ ९ ॥ तओ एगूणपंचसयनारीसयपमुकदप्पणेहिं पहओ समाणो सो मओ तक्खणेण, पच्छा समुप्पण्णो तासिं पच्छायावो- अहो का गई पत्तो पइमारियाणं भविस्सह १, उद्भूलिस्सह लोओ दंडिस्सह नराहिवो अवमन्निस्सद्द सयणवग्गो गंजिस्सइ खलयणो, तम्हा मरणमेव संपयं पत्तकालंति परिभाविऊण पिहियाई सङ्घदाराई, पक्खित्तं गेहभंतरे बहुं तणकट्ठपलालं, पज्जालिओ सबओ जलणो, जालाउले य तंमि विमुको ताहिं अप्पा, अह पच्छायावेण साणुकोसयाए ताए अकामनिज्जराए सचाओ मरिऊण मणस्सेसु उववन्ना, कम्मधम्मसंजोगेण य एत्थ मिलिया एगूणपंचवि सया ते चोरा जाया, एगंमि य विसमंमि पदए परिवर्तति । सोय सुवणयारो मरिण तिरिच्छेसु उववन्नो, तत्थ जा सा अणेण पढमं चिय मारिया सा एगं भवं तिरिएखु | उववजिऊण पच्छा बंभणकुले पुतो जाओ, कमेण य पत्तो पंचवारिसियचणं, सो य सुवण्णयारो तिरियभवाओ उचट्टिऊण तंभि चेव नंभणकुले त भइणित्तेण दारिया जाया, सो य पंचवारिसिओ समाणो तीसे बालग्गाहो For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥ २७३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कओ, साय अइदुटुत्तणेण निञ्चमेत्र रोयइ, अन्नया य तेण वालग्गाहेण उदरदेसपरिघट्टणं कुणमाणेण तह कहवि सा जोणिद्दारे छिका जह तवखणं चैव नियट्टा रोयणाओ तओ तेण नायं लद्धो मए उवाओत्ति एवं मोतीमे | रोयमाणीए निचकालं करेइ, अन्नया य तहा कुणमाणो नाओ सो मायाविऊहिं, ताहे हणिऊण निद्घाडिओ निय गिहाओ, पलायमाणो अ गओ तं चैव चोरपल्लिं जत्थ ताणि एगूणगाणि पंच चोरसयाणि परिवसंति, सा य दारिया अप्पडुप्पन्नजोचणा विणसीला जाया, सच्छंदं परियडंती य एगं गामं गया, सो य गामो तेहिं चोरेहिं आगंतून लुंटिओ, सा य तेहिं गहिया, तओ तेसिं सचेसिंपि भजा जाया । अन्नया य चोराणं चिंता समुप्पन्ना - अहो इमा वराई एत्तियाणं अम्हाणं पइदिणं सरीरचेडं कुणमाणी खिजिस्सर, ता जइ अन्ना विइज्जिया संपजइ तो से विसामो होज्जत्ति परिभाविऊण एगया तीसे बिइजिया आणिया, जंचेव आणिया तंचेव चिरमहिला ईसासलनिभिज्जमाणमाणसा तीसे मारणत्थं छिद्दाई मग्गर, अन्नया य ते चोरा गामंतरमुसणत्थं पधाविया, तीए नायं - एस पत्थावो बट्टा, ता विणासेमि एयंति परिभाविऊण नीया सा कूपतडे, भणिया य-भद्दे ! पेच्छ कूबमज्झे किंपि दीसइ, सावि अविगप्पभावेण दद्दुमारद्धा, तयणंतरं च ताए पक्खित्ता तत्थेव चोरा य आगया पुच्छंति तीसे वृत्तंत्तं, ताए भण्णइ- अप्पणो महिलं कीस न सारेह ?, किमहं जाणामि ?, तेहिं मुणियं - जहा एयाए मारिया, तओ तस्स बंभणपुत्तस्स हियए ठियं, जहा -अवस्सं एसा सा मम पावकम्मा भगिणी एरिससीलेण संभाविजइ, For Private and Personal Use Only यासासा सोदाहरणं ॥ २७३ ॥ Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %-34 ROCEROUSNESSROOM सुबह य समीववत्ती भगवं महावीरो सवण्णू सवदरिसी, ता तं गंतूण पुच्छामित्ति, इहागओ लज्जाए मणसा पुच्छि| उमारद्धो, तओ मए भणियं-देवाणुप्पिया! वयणेण पुच्छ, तओ अणेण जा सा सा सत्ति कहियं, मएवि सच्चेव सा तव भगिणीत्ति सिटुं। ___ इय गोयम! एवंविहविडंबणाजालमूलगिहभूया । विसया विसं व विसमं दिति विवागं मणुस्साणं ॥१॥ खणदावियसोक्खाणं भवोहसंवढियासुहनिहीणं । भोगाण कए मुद्धा जुत्ताजुत्तं न पेच्छंति ॥ २ ॥ चोजमिणं रागंधा पुरिसा अणवेक्खिऊण परमत्थं । जं अत्थि तं विमोत्तूण नत्थि जं तं विभार्विति ॥ ३॥ तथाहि-मसलवमेत्तनिवत्तियपि अहरं पवालखंडव । जलबुब्बुयसच्छहमवि नयणजुयं नीलनलिणं वा ॥४॥ चम्मावणद्धअट्ठियमयंपि वयणं मयंकदिवं व । मंसुच्चयमेतपिवि थणजुयलं कणयकलसं व ॥ ५ ॥ वेलहलमुणालंपिय बाहुजुयं अद्विमसमेत्तपि । सोणियमुत्तविलीणं रमणंपिवि अमयकू व ॥६॥ मन्नंति विसयमूढा अवियारियपारमत्थियसरूवा । अचंतनिंदियाणिवि एवं अंगाणि जुबईणं ॥७॥ इय एवं करुणासायरेण सिरिवद्धमाणनाहेण । कहिए वत्थुसरूवे समग्गभुवणप्पईवेण ॥ सो पुरिसो संवेगमावन्नो पवइओ। सा य ससुरासुरनरतिरियाउलावि परिसा पयणुरागसंजुत्ता जाया। एत्यंतरे मिगावई देवी हरिसपगरिसवियसियनयणकमला महावीरं वंदित्ता एवं वोत्तुं पवत्ता-भयवं! जाव चंडपजोयराय % % % 4% For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥ २७४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr मापुच्छामि ताव तुम्हें सयासे पचयामित्ति भणिऊण चंडपज्जोयमुवट्ठिया, एवं च कहिउमाढत्ता - महाराय ! ज‍ तुमं अणुमन्नसि ता अहं पवयामि, रायावि तीसे महतीए परिसाए लजाए वारिउमपारयंतो तं विसज्जेइ, तओ मिगावई नियपुत्तं उदयणकुमारं चंडपज्जोयस्त निक्खेयगनिक्खित्तं काऊण पवइया, पज्जोयस्सऽवि अट्ठ अंगारवइप्पमुहाओ देवीओ पछइयाओ, ताणिवि एगूणपंचचोरसयाणि पुवं पडिवन्नपवजेण चोरेण गंतॄण पडिबोहियाणि पचजं च पडिवन्नाणि, अन्नो य बहुजणो संबुद्धो, पज्जोयनरवईवि जयगुरुप्प भाव पडिस्संतवेराणुबंधो उदयणं कुमारं रज्जे सहत्थेण संठाविऊण गओ सनयरिं, मिगावईवि भगवया अणुसासिऊण समप्पिया चंदणवालाए पवत्तिणीए, तीसे य समीवट्टिया जहट्ठियं साहुणीजणसमुचियं किरियाकलावमन्भसह । भयपि विहरमाणो वाणियगामप्पमोक्खनयरेसुं । आणंदकामदेवाइसावगे दस बिबोइ ॥ १ ॥ जेसिं धम्ममहाभर धरणुदुरकंधराण तियसावि । चालिंसु खोभकरणुज्जुयावि न मणो मणापि ॥ २ ॥ जे इस्सरिएण हुं करिंसु वेसमणजक्खरायमवि । पडिवालिंसु य सम्मं निचंपि दुवालस वयाई ॥ ३ ॥ गेहसमीवनिवेसिय पोसह सालासु पोसहुज्जुत्ता । अट्ठमिचउदसीसुं समणा इव जे य निवसिं ॥ ४ ॥ जेसिं सरीरधाऊ सत्तविच्चन्नुवयणरसभिन्ना । कुप्पावयणियवयणाणि गोयरं नेव वर्धिषु ॥ ५ ॥ इय तेसि गुणलवोविदु नो तीरइ मारिसेहिं परिकहिउं । विरहंसु नूण सयमेव गणहरा जेसि चरियाई ॥ ६ ॥ For Private and Personal Use Only विषय विपाकः मृगावत्या वैराग्य दीक्षा च. ।। २७४ ॥ Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्नेsविहु नरवइदंडनाह सामंत मंतिपमुहजणे । पडिबोहिऊण पुणरवि कोसंबिं आगओ सामी ॥ ७ ॥ तहियं समोसदस्सा चरिमाए पोरिसीऍ जयगुरुणो । विम्हइयजीवलोयाई फालिआई विमाणाई ॥ ८ ॥ साहावियाई पचख दिस्समाणाणि आरुहेऊण । ओयरिया भत्तीऍ वंदणवडियाए ससिसूरा ॥ ९ ॥ तेसिं विमाणनिम्मलमऊहनिवहप्पयासिए गयणे । जायं निसिंपि लोगो अवियाणंतो सुणइ धम्मं ॥ १० ॥ नवरं नाउं समयं चंदणवाला पवत्तिणी नमिउं । सामिं समणीहिं समं निययावासं गया सहसा ॥ ११ ॥ सा पुण मिगावई जिणकहाए वक्खित्तमाणसा घणियं । एगागिणी चिय ठिया दिणंति काऊण ओसरणे ॥ १२ ॥ बोलणे खणमेते साई विमाणाई आरुहित्ताणं । ससिसूरेसु गएसु वियंभिए स्यणितिमिरभरे ॥ १३ ॥ समणीओ समीवंमी अपेच्छमाणी य सा महासत्ता । पगया पडिस्सयंमी पवत्तिणीए य तो भणिया ॥ १४ ॥ तुम्हारिसीण सुकुलुग्गयाण जुज्जर किमेवमायरिडं १ । एगागिणीवि य तुमं जंसि ठिया एत्तियं रयणिं ॥ १५ ॥ पडिवज्जिय तक्षणं भुज्जो भुज्जो सदुचरीयाई । निंदंतीए तीए उप्पन्नं केवलं नाणं ॥ १६ ॥ अह - पयलायंतीए पवत्तिणीऍ सप्पं पलोइयं इंतं । संधारगंमि हत्थो ठविओ तीए धराहिंतो ॥ १७ ॥ निदावगमे पुच्छा अहिकहणं नाणबुज्झणऽणुतावो । निहयघणघाइकम्मा पवत्तिणी केवलं पत्ता ॥ १८ ॥ इओ य-उप्पन्नसंसओ पढमगणहरो पणमिउं जिणं भणइ । किमवद्वियावि भावा विवरीयत्तं पवज्जंति १ ॥ १९ ॥ For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ।। २७५ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओन्नाई नहाओ ना ! मायंडससिविमाणाई । गुरुणा भणियं - गोयम ! दस अच्छरियाई एयाई ॥ २० ॥ उवसग्ग गम्भहरणं इत्थीतित्थं अभाविया परिसा । कण्हस्स अवरकंका ससिसूरविमाणओयरणं ॥ २१ ॥ हरिवंसकुलुप्पत्ती चमरुप्पाओ य अट्ठसय सिद्धा । अस्संजयाण पूया जायंति अनंतकालाओ ॥ २२ ॥ इय साहियमच्छरियं ससिसूरविमाणसंगयं एत्तो । गोसालयवतंतं साहिज्जंतं निसामेह ॥ २३ ॥ सो पुवभणिओ गोसालो तेउलेसामाहप्पपडिहयपडिवक्खो अहंगनिमित्तल परिन्नाणमुणियजणमणोगयसंकप्पो अजिणोऽवि जिणसहमत्तणो पगासेमाणो सवत्थ अणिवारियप्पसरं परिब्भमंतो सावत्थिं नयरिमागओ, ठिओ य बहुधणधन्नपरिपुन्नाए हालाहलाभिहाणाए कुंभकारीए आवणंमि, तस्स य लोगो अमुणियपरमत्थो मणोगयसंकल्प| परिन्नाणमेत्तसमुप्पन्न कोऊहलो जिणोत्ति पसिद्धिं निसामिऊण अणवरयं पज्जुवासणं कुणइ, भयवंपि महावीरो समसंघपरिवुडो जहन्त्रेणऽवि कोडिसंखेहिं देवेहिं अणुगम्ममाणो भुवणच्छेरयभूयं विभूइसमुदयमुहंतो दिसिचकवालपरिसरिएण पभामंडलेण समुग्गयाणेगमायंडपरंपरं व गयणमुवदंसयंतो पयपरिवाडिसुर विरइयकणयंबुरुहनिवहेण थलकमलसोहं व महियलस्स दाविंतो पर सन्निवेसमसम्भूयभावणं जणाणं पणासयंतो पयंडपासंडदप्पखंडणं कुणमाणो निधाणनगरमग्गं पचत्तयंतो कोसंबीओ निक्खमित्ता तमेव सावत्थि नगरिं संपाविओ, नाणाविहविहगविरायंततरुणतरुरमणीयंमि य समोसढो कोट्ठगचेइयंमि, सुणियजिणागमा य समागया परिसा, पज्जुवासिऊण य गया, जहागयं, पत्ते य For Private and Personal Use Only मृगावत्याः केवलं श्रावस्त्यां गोशालकर ॥ २७५ ॥ Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org AGRUKRABASE- CLAS मिक्खाकाले छट्टपारणयं काउकामो भयवओ अणुण्णाए पविट्ठो भिक्खटुं गोयमो पुरीए, तहिं च तियचउक्कचचरेसु गोसालो जिणो सवन्नत्ति परोप्परं जपंतं जणं निसामिऊण जायसंसओ भिक्खं घेत्तूण पडिनियत्तो, जहाविहिं भुंजिऊण जायमि पत्थावे समागए पुरीलोए सामि पुच्छिउं पवत्तो-भयवं! एत्थ जणो गोसालं जिणं सवन्नु च परिकित्तेइ तं किं घडइ मिच्छा वा ?, भगवयाभणियं-भो देवाणुप्पिया ! गोसालो मंखलिपुत्तो अजिणो जिणप्पलावी मए चेव पवाविओ सिक्खं च गाहिओ ममं चेव मिच्छं पडिवन्नो, अओन सच्चन्न न य जिणो हवइत्ति, एवं सोचा पुरीजणो मुणियपरमत्थो |पडिनियत्तिय नयरीए सिंघाडगतिगचउक्कचचरेसु अन्नमन्नस्स सविम्हयं परूविउमारद्धो-अहो भयवं! महावीरो समुप्पन्नदिवनाणदंसणो एवं भासइ-एसो गोसालो मंखलिपुत्तो अजिणो जिणप्पलावी, अहं जिणोति मिच्छं संलवइत्ति, इमं च कनपरंपराए सोचा गोसालगो अचंतकोववसफुरंतओट्ठउडो आजीवियसंघपरिवुडो अमरिसमुचहतो अच्छइ । इओ य-भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आणंदो नाम थेरो अणिक्खित्तछ?तवकम्मकरणपरो पारणगंमि3/ पडिग्गहं गहाय निग्गओ गोयरचरियाए, उच्चावएसु य गिहेसु भिक्खं परिन्भमंतो तीसे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अरेण गंतुं पवत्तो, तं च दट्ठण गोसालो भणइ-भो आणंद ! इओ एहि, निसामेहि दिटुंतमेगंति, इमं च एवमायन्निऊण समागओ आणंदसाह, भणिओ य गोसालेण-भो आणंद ! इओ चिरा समइकंताए अद्धाए केइ अत्यत्थिणो वाणियगा नाणाविहमंडविच्छाभरिएणं सगडीसगडेणं सुबहुँ भत्तपाणपत्थयणं गहाय एगं महंत 4%AGESSAGESSA% EX For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ २७६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr जणसंचाररहियं छेत्तभूमिं व करिसयविराइयं भारहकहं व भीमअज्जुणनउलसउणि संकुलं दीहछिन्नावायं उम्भडवि| डविसंकडं महाडविमणुपविट्ठा, तीसे य कंचि देसमणुपत्ताणं तेसिं पुचग्गहियमुदयमणुदियहं पिजमाणं झीणं, तबणंतरं ते वणिया झीणसलिला तण्हाए परम्भाहया समाणा एगत्थ मिलिऊण एवं भणिउमारद्धाभणविरवि जयं कवि दिणे वसह देहगेहंमि । सलिलाभावे पुण दीवओघ पवणेण विज्झाइ ॥ १ ॥ ता जावज्जवि तन्हा कालरयणिव अवहरह जीयं । ताव परकज्जजायं मोतुं सलिलं पलोएह ॥ २ ॥ एवं च ते पयट्टा सासु दिसासु पाणियनिमित्तं । कत्थइ अपेच्छमाणा एगं वणसंडमल्लीणा ॥ ३ ॥ विच्छायमुहा दीणा अपत्तकालावि संपइ मरामो । एवं पर्यषमाणा तव्हावससुसियसवंगा ॥ ४ ॥ सिसिरतरुच्छायाए निमीलियच्छा य जाव चिठ्ठति । तावेगनरजुवाणो समागओ तेसि पामि ॥ ५ ॥ भणियं च तेण मुंह विसायमहुणा मए जओ दिट्ठो । वणसंडमज्झयारे चउम्मुद्दो वम्मिओ गरुओ ॥ ६ ॥ ता एह तत्थ जामो पढममुहं भिंदिमो य तस्स लहुं । पच्छा अच्छं पत्थं जलरयणं आपिबामोति ॥ ७ ॥ एयं निसामिणं ते वणिया तक्खणेण गंतॄण । भिंदंती पढममुहं तस्स तिसाविवससवंगा ॥ ८ ॥ फलिहुज्जलं च सलिलं सारयससिणो मऊहजालं व । हेलाए नीहरंतं पेच्छति तओ पहिट्ठा ते ॥ ९ ॥ तयणंतरं च करचरणखालणं वयणसोहणं पियणं । वीसत्था वाणियगा निवत्तंती जहिच्छाए ॥ १० ॥ For Private and Personal Use Only गोशालो वणिग्ज्ञातं. ॥ २७६ ॥ Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७ महा० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पच्छा भरेंति करवत्तयाई दिइणो य कलसए चेत्र । दुलहं लद्धं वत्थं कह वा नो घेप्पइ जण ? ॥ ११ ॥ जाया पुणोवि चिंता तेसिं जह सलिलमित्य लद्धमहो । तह बीयमुहे खणिए पाविजइ नूण तवणिज्जं ॥ १२ ॥ तादिह पुणरविवम्मियस्स बीयं मुहं लहुं चेव । इय भणिए पुरिसेहिं तहत्ति सत्रं तओ विहियं ॥ १३ ॥ ताहे सुजच्चकंचणनिचयं तत्तो विणिग्गयं संतं । हरिसुलसियसरीरा गिण्हंति जहिच्छियं वणिया ॥ १४ ॥ हिट्ठा भणति वम्मियनिभेण चिंतामणी पंथावरणा । अम्हारिसपहियाहियट्टयाए मन्ने कओ एत्थ ? ॥ १५ ॥ ता अज्जवि तइयमुहं भेत्तवं होइ संपयमिमस्स । संभाविज्जंति इमंमि जेण रयणाणि मणिणो य ॥ १६ ॥ एत्थंतरंभि पुरिसेहिं भिंदियं तंपि लोभनडिएहिं । अह नीहरियाई तओ रयणाइँ अगभेयाई ॥ १७ ॥ कणगं परिहरिऊणं महग्घरयणेहिं तेहिं सगडाई । भरियाई गाढपहरिससंभारं उवहंतेहिं ॥ १८ ॥ नवरं चत्थमिय मुहंम भेत्तुं पयट्टिया वंछा । तेसिं तु उत्तरोत्तरविसिट्ठवत्थूण लाभेण ॥ १९ ॥ अह जाव तं विहाडिंति नेव तावेगथेरपुरिसेण । तेसिं हियत्थिणा सुद्धबुद्धिणा जंपियं एयं ॥ २० ॥ भो भो देवापिया ! जलं च कणगं च रयणनिवहं च । लद्धूण मुयह वम्मियमहुणा वच्चह सगेहे ॥ २१ ॥ काण गईओ हुंति कुडिलाओ । सिट्ठो सिद्धतेविद्दु लोभो मूलं विणासस्स ॥ २२ ॥ alisa सिद्धमिमं जं किर निवसति गाढदाढिला । अञ्चंततिवदप्पा सप्पा वम्मियनिवासेसु ॥ २३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ८प्रस्तावः ACC09 गोशालोक्त वल्मीकमेदकाणिग्डप्टान्तः. ॥२७७॥ जइ कहवि मणोवंछियजलाइलाभो इममि मे जाओ। तहवि न खणिउं जुजइ विले विले होइ किं गोहा? ॥२४॥ जओ-अनओ जणियगुणोऽविहु पयावविहवं न देइ गरुयाणं । विहिवसविसंघडतोऽवि गुणकरो नयसमारंभो॥२५॥ अह तवयणं अवगणिऊण ते लोभतरलिया वणिया । वम्मियचउत्थमुहमवि जवेण खणिउं समाढत्ता ::२६॥ खणमाणेहिं तेहिं पयंडजमबाहुदंडसारित्थो । तस्संतो निवसंतो मुहेण परिघट्टिओ नागो ॥ २७ ॥ ताहे सो रोसारुणनयणपहापाडलीकयदियंतो। विरइयअकालसंझोव निग्गओ बम्मियाहिंतो ॥ २८॥ तहवि य फारफणफलगफुरियरयणुच्छलंतरुइपडलो । पुच्छच्छडताडियभूमिवट्ट गुंजंतवणसंडो ॥ २९ ॥ सिग्छ नीहरिऊणं वम्मियसिहरग्गभागमारुहइ । पेच्छइ य भाणुमंडलमह सवियासाहिं अच्छीहिं ॥३०॥ अह खणमेकं सूरं पलोइउ अणिमिसाए दिट्ठीए । ते वणिया आलोयइ सो उग्गविसो महासप्पो ॥ ३१ ॥ तयणंतरं च ते तस्स चक्खुणा तिचजलणजडिलेण । निद्दड्डा समगं चिय समग्गभंडोवगरणेहि ॥ ३२॥ नवरं सो एगो चिय थेरो नियभंडसगडियासहिओ । अणुकंपिगाए देवीए पाविओ वंछियं ठाणं ॥ ३३ ॥ तो भो आणंदमुर्णिद! ते जहा वाणिया अइविमूढा । अइलोभेणभिभूया सप्पाओ विणासमावन्ना ॥ ३४ ॥ तह तुज्झ धम्मसूरी समणो वरनायकुलसमुन्भूओ। लद्धपसिद्धी भुवणत्तएऽवि समणो महावीरो ॥ ३५॥ असुरसुरनागकिन्नरनरनरवइपूयणिजपयकमलो । एत्तियमेत्ताएबिहु सिरीए संतोसमलहतो ॥ ३६ ॥ ।। २७७॥ For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जइ एत्तो मह संमुहमभत्तिपर वयणलेसमवि वइही। तमहं तवतेएणं भासरासिं करिस्सामि ॥ ३७॥ जह पुण सो थेरनरो ते वणिए सबहा निवारितो। न विणट्ठो तह आणंद! तंपि नाहं विणासिस्सं ॥ ३८॥ ता गच्छ तुम नियधम्मसूरिणो कहसु सबमवि एयं । बलिणा समं विरोहो न कयाइ सुहावहो होइ ॥ ३९ ॥ । एवं निसामिऊण आणंदमहरिसी सच्छहिययत्तणेण समुप्पन्नभयसंकप्पो अपरिसमत्तभिक्खाकजोऽवि तओ ठाणाओ सिग्घाए गईए समागओ जिणंतियं, तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणपुत्वगं वंदिऊण गोसालगोवइठं वणि-11 यदिटुंतं दिट्ठीविसभुयगदहणपजवसाणं सर्व परिकहेइ, पुच्छइ य-भयवं! किं गोसालो एवंविहस्सऽत्थस्स करणंमि समत्थो न वा?, भगवया भणियं-आणंद ! समत्थो चेव, केवलं अरहंताणं भगवंताणं असमत्थो, परितावमेत्तं पुण करेजा, ता गच्छ तुम गोयमाईणं समणाणं एयमढे कहेहि, जहा-मा तुम्भं कोइ गोसालं मंखलिपुत्तं ममंतियं 8 पाउन्भूयं समाणं धम्मियाएवि पडिचोयणाए पडिचोएजा, जओ एस ममं मिच्छं पडिवन्नोत्ति, एवं च विणएण, पडिसुणेत्ता गओ आणंदो गोयमाईण समीवं कहिउमारद्धो य तं वइयरं, एत्यंतरे गोसालो अत्तणो पराभवमसहंतो संपत्तो जिणसमीवं, अदूरे य ठाऊण भगवओ अभिमुहं एवं भणिउं पवत्तो-भो कासव ! तुम मम हुत्तं एवं हावयसि-एस गोसालो मंखलिपुत्तो मम धम्मंतेवासी इचाइ, तन्नं मिच्छा, जो हि गोसालो तुमंतेवासी सो सुक्काभि जाइओ भवित्ता कालमासे कालं काऊण अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववन्नो, अहं पुण उदाई नाम महामुणी -CARRANGAL For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org मसाल स्थागमनं सत्यस्वरूप कथा. श्रीगुणचंद विचित्ततवचरणासमत्थं नियदेहमुज्झिऊणं तस्स गोसालगस्स सरीरगं थिरं धुवं धारणिजं सीयसह उण्हसहं खुहा- महावीरच० पिवासासह विविहदंसमसगाइपरीसहोवसग्गसहं थिरसंघयणंतिकाऊण तमणुपविट्ठो, ता भो कासवा! साहु तुमं ८प्रस्तावः अपरियाणिऊण मं गोसालं मंखलिपुत्तं वाहरसि, एवं च तेण भणिए भगवया महावीरेण जंपियं-भो गोसालग! जहा कोइ चोरपुरिसो विविहपहरणहत्यहि खंडरक्खपामोक्खनरनियरेहिं पारम्भमाणो णो कत्थई गई या दार वा ॥२७८॥ दुग्गं वा वणगहणं वा अत्तणो गोवणत्यं अपावमाणो एगेण उन्नालोमेण वा सणलोमेण वा कप्पासपुंभेण वा तणसूएण वा तदंतरे दिनेण व अत्ताणमणावस्थिपि आवरियंपिव मण्णेमाणो निभओ निरुविग्गो अच्छइ, एवमेव तुमंपि गोसाला! अणण्णो संतो अण्णमप्पाणं वागरेसु, ता मा एवमलीयं वाहरसु, सुचेव तुह सरीरच्छाया, नो अन्नत्ति, एवं च भगवया वुत्तो समाणो पजलियपयंडकोवानलो उच्चावएहिं वयणेहिं जयगुरू अक्कोसिऊण भणइ-भो कासव! नट्ठोसि अज, भट्ठोसि अज, अजेव न भवसि तुमंति, जो गिरिकंदरसुत्तं सीह बोहेसि कीलाए, एत्यंतरे भयवओ महावीरस्स अंतेवासीसवाणुभूईनामो अणगारो धम्मायरियाणुरागेणं एयमढे सोढुमपारयंतो समागंतूण एवं भणिउमारद्धो-भो गोसालग! तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए जे एगमवि धम्मियं वयणं निसामिति तेऽवितं वंदंति नमसंति गुरुबुद्धीए पजुवासंति, किं पुण तुमं जो मूलाओ चिय भयवया चेव पवाविओ सिक्खाविओ दबहुस्सुतीकओ भगवओ चेव मिच्छं पडिवजंतो न लज्जसि?, ता मा एवं कुणसु, अजावि सो चेव तुमं, सा चेव. PEC%%9-547 ॥२७८॥ S For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AGRA तुह देहच्छाया, कीस अप्पाणं अवलवेसित्ति वुत्ते सवाणुभूई मुणि गोसालो समुच्छलियकोवानलो तं दिवं पयर्ड131 ६ अणहियासणिजं तेउलेसं पक्खिविऊण निदहइ तक्खणेण, सो य तेयनिद्दडो सुहज्झवसायाणुगओ मरिऊण सह-13 स्सारे कप्पे अट्ठारससागराऊ देवो जाओत्ति, गोसालगोऽवि पुणो भयवंतं अणेगप्पयारेहि दुखयणेहिं पहणिउं पत्तो, इओ य सुनक्खत्तनामो साहू तहा अवकोसिज्जमाणं भगवंतं निसामिऊण तणं व नियजीवियमवि गणंतो |सिग्घमागंतूण गोसालं जहा सबाणुभूई तहेव अणुसासइ, नवरं गोसालगपक्खित्ततेउलेसापलीविओ समाणो भय8 तं तिक्खुत्तो वंदिऊण सयमेव पंच महत्वयाई उच्चारेइ, समणा य समणीओ खामेइ, आलोइयपडिकतो य कालं है काऊण अचुए कप्पे बावीससागरोवमाउयदेवेसु देवत्तेणं उच्वजइ, एवं च तम्मि पंचत्तं गए संते गोसालो दुन्निग्गहिओ वेयालोच लद्धावयासो विसेसओ परुसक्खराहिं गिराहिं तजणं कुणंतो वागरिओ सकारणं जयगुरुणा-भो |महाणुभाव ! गोसालग सिट्ठपहसमइकंतं तुह चरियं, जं मए पवाविओ मए सिक्खाविओ मए बहुस्सुईकओ|8 ममावि अवण्णवाई जाओ सि, एवं च जयगुरुणा सयमेव संलत्ते तेण अणाकलियकोवावेगेण सत्तह पयाई पच्चोसकिऊण पमुका महया संरंभेण भगवओ अभिमुहा तेउलेसा। अह मंदरगिरिरायं व निहरं जिणसरीरमकमिउं । असमत्था मारुयमंडलिव सा नियमाहप्पा ॥१॥ सयलदिसामुहपसरियपयंडतरतेयरइयपरिवेसा। आरत्तियदीवयमालियब सक्खा विरायंती ॥२॥ ACAR-GANGANAGAR For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥ २७९ ॥ www.kobatirth.org जच्चतवणिजपुंजुज्जलंग पहपडलविजियसोहस्स । भीयव तक्खणं चिय सामिस्स पयाहिणं कुणइ ॥ ३ ॥ तप्फरिसवसेण य भुवणबंधुणो अमयसीयतणुणोऽवि । जाओ मणागमेत्तं परितावो सवगत्तंमि ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साय तेउलेसा अहो अहं इमिणा महापावेण एरिसमकज्जं कारावियत्ति जायतिकोवच उहुं उप्पइत्ता गोसालगस्स सरीरं डहमाणी अंतो लहुमणुपविट्ठा, तओ गोसालो काउरिसोव समत्थेण नियतेएण विणिहओऽवि धिट्टिममवलंबिऊण एवं पयंपेइ-अहो कासवा ! तुमं मम इमिणा तेएण अभिहओ संतो अंतो छहं मासाणं पित्तजरपरिगयसरीरो दाइवेयणोवक्कमियाउओ छउमत्थो चेव कालं करिस्ससि, भगवया भणियं भो मंखलिपुत्त ! नो खलु अहं तुह तेएण अहिहओ छण्हं मासाणं अंतो कालं करिस्सामि, किं तु अन्नाई सोलस वासाई पडिपुन्ननाणदंसणधरो विहरिस्सामि, पच्छा खवियसयलकम्मंसो सिवपयं गमिस्सामि, तुमं पुण अप्पणो तेएण निहडसरीरो अंतो सत्तरत्तस्स पित्तमहाजरजलणपलित्तगत्तो छउमत्थो चेव कालं करिस्ससित्ति । अह सवत्थवि नयरे मुद्धजणो जंपिउं समाढत्तो । दोण्हं एत्थ जिणाणं परोप्परं बट्टा विवाओ ॥ १ ॥ तत्थेगो भइ इमं पु िकालं करिस्ससि तुमंति । इयरोविहु तदभिमुहं इममेव परंपए वयणं ॥ २ ॥ न मुणिजइ परमत्थो को मिच्छा वयइ को य सचंति ? । कुसला भणति वीरो सचं वागरइ नो इयरो ॥ ३॥ इओ य जयगुरू नियसमणगणमामंतिऊण भणइ - भो समणा ! जह तणरासी तुसरासी पत्तरासी बुसरासी For Private and Personal Use Only सर्वानुभूति सुनक्षत्रदाहः गोशाले तेजोदाहः. ।। २७९ ॥ Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org SALAAMSABSEARS वा जलणजालापलीविया समाणी पणतेया जायइ, एवं गोसालो मम वहाय तेयं निसिरित्ता विणट्ठतेउलेसमा४ हप्पो जाओ, तम्हा छंदेण निन्भया तुम्भे एयं धम्मियाए चोयणाए पडिचोएह, हेऊदाहरणकारणेहिं निप्पिटपसिणवागरणं करेहत्ति वुत्ते तहत्ति पडिसुणित्ता जयनाहं च सविणयं वंदिऊण समणा तं भणिउं पवत्ता । किं च-भो गोसालग! किं तुज्झ दंसणे एस सत्थपरमत्थो । जं लोगमग्गचुकं तमेरिस कम्ममायरसि ? ॥१॥ तहाहि-धम्मगुरुं अवमनसि नियमाहप्पं पवित्वरसि बहुसो। जुत्तीहिवि जं न घडइ तं भाससि मुक्कमजाय !॥२॥ वायाए जीवरक्खं पयडसि तं लोयमज्झयारंमि । सद्धम्मगुणपहाणे सयं तु निदहसि साहूवि ॥३॥ एवंविहं अकज कुणंति न कयाइ किर चिलायावि । तुमए पुण अलियवियद्दमेव सवं समायरियं ॥४॥ न सरसि उवयारं एत्तियंपि जं रक्खिओ सि जयगुरुणा । तह वेसियायणुम्मुक्कतेयनिडज्झमाणंगो ॥५॥ इइ भगवओ समणेहिं धम्मियाए चोयणाए चोइजमाणो गोसालो आसुरुत्तो कोवेण मिसिमिसेमाणो समाणो जाव साहूणं सरीरस्स रोममेत्तंपि निडहिउँ न तरइ ताव पडिहयसामत्थं तं नाऊण केऽवि आजीवियथेरा जयगुरुं गुरुत्तणेण पडिवन्ना, अन्ने पुण विवेगविरहिया तहेव ठिया, गोसालगोऽवि खणमेत्तं विगमिऊण रोसेण व माणेण य दीहुण्हं नीससंतो दाढियलोमाई हुँचमाणो हत्थे पकंपयंतो चलणेहिं भूमि कुट्टमाणो अंतो विसप्पंतदुस्सहतेउल्लेसादाहवसेण य हा हओऽहमस्सीति पुणरुत्तं वाहरंतो अकयकज्जो चेव भगवओ समीवाओ नीहरिऊण गओ सट्ठाणं, टू MAHAKALKARA%ABAR For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir P चेटा. श्रीगुणचंद || जयगुरुणाऽवि जंपियं-भो समणा! जं इमं गोसालेण मम वहट्टा तेयं निसिढे तं खलु अंगदंगमगहमलयमालव- साधकता महावीरच. च्छवच्छकोच्छपाढलाढवजिमासिकासिकोसलअवाहसुभुत्तराभिहाणाणं सोलसण्हं जणवयाणं उच्छायणाए भासरा- नोदनाते८प्रस्ताव सीकरणयाए समत्थंति वुत्ते विम्हियहियया मुणिणो जायत्ति । जोमहवं 18 ॥२८॥ गोशालक सो य गोसालो कोडरनिहित्तहुयवहो तरुव निडज्झमाणो कहिं पि रई अलहंतो तस्स दाहस्स पसमणत्थं करकलिएणं भायणेणं मजपाणगं पियमाणो तवससंभूयमएण य अभिक्खणं गायमाणो अभिक्खणं नश्चमाणो अभिक्खणं हालाहलाए कुंभकारीए अंजलिपग्गहपुवयं पणामं कुणमाणो अभिक्खणं भंडगनिमित्तकुट्टियमट्टियंतो निहिचसिसिरकलिलसलिलेण सरीरं उवसिंचमाणो अडवियडाई पइक्खणं जंपमाणो परमसोगमुबहतेण सिस्सगदाणेण सिसिरोवयारकारिणा परिवुडो दिणे गमेइ। तत्थ य सावत्थीए नयरीए अयंपुलो नाम आजीविओवासओ परिवसइ, सो य पुत्वरत्तावरत्तसमयंमि धम्मजागरियं जागरमाणो जायसंसओ विचिंतेइ-अहमेयं सम्मं न मुणामि-तणगोवालिया कि संठाणा हवइ? ता गच्छामि धम्मायरियं धम्मोवएसगं समुप्पन्नदिवनाणदंसणं सवन्नु गोसालं हालाहलाए कुंभकारीए आवर्णमि वट्टमाणमापुच्छामित्ति संपेहिता समुग्गयंमि दिणयरे अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरो साओ गिहाओ पडिनिक्खमित्ता पायवि 18॥२८॥ हारचारेणं कइवयपुरिसपरियरिओ गोसालयाभिमुहं गंतुं पयहो, कमेण य कुंभारावणसमीवमणुपत्तो समाणो तं AASARAKHARA For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RECORRECAR गोसालं करकलियभायणमभिक्खणं मइरापाणं कुणमाणं नचमाणं गायमाणं हालाहलाए कुंभकारीए अंजलिं विरयंतं मट्टियासलिलेणं सरीरं परिसिंचमाणं असंबद्धाई वयणाई पयंपमाणं पेच्छिऊण लज्जावसविमिलायंतलोयणो सहसचिय सणियं सणियं पञ्चोसकंतो झडत्ति समीवढिएहिं दिह्रो गोसालयसिस्सहिं, तओ वाहरिऊण भणिओतेहि-भो अयंपुल! तुम पच्छिमरयणीए तणगोवालियासंठाणविसयं संसयं पकओसि, अयंपुलेण भणिय-भयवं! एवमेयं, पुणोऽवि गोसालगदुधिलसियगोवणट्ठया भणियं तेहि-भो अयंपुल! जं च तुह गुरू हत्थगयभायणे जाव अंजलिं विरयंतो विहरइ तत्थवि एस भगवं इमाइं निवाणगमणसूयगाइं पजंतलिंगाई वागरेइ, तंजहा चरिमं गेयं चरिमं नढे चरिमं अंजलिकम्मं चरिमं पाणं अन्नं च मट्टियासीयलसलिलसरीराणुलिंपणपमुह वावारं, ता अयंपुल! भगवओ चउवीसमतित्थगरस्स गोसालगस्स पुवमणियलिंगेहिं सूइओ संपइ निवाणगमणपत्थाओ वट्टइ, तम्हा गच्छ तुम स एव तुह धम्मायरिओ इमं वागरणं वागरिही, एवं च सोचा सो दढहरिसुच्छलंतपुलयजालो तदभिमुहं गंतुं पयहो, ते आजीवियथेरा सिग्घयरं गंतूण गोसालगस्स अयंपुलागमणं निवेएंति, तं च मजभायणाइ एगते परिचयाति, आसणंमि य निवजाविति, एत्यंतरे पत्तो अयंपुलो तिक्खुत्तो य पयाहिणीकाऊण परेणं विणएणं वंदित्ता गोसालयं निसण्णो समुचियासणे, तओ गोसालएण भणियं-भो अयंपुल ! तुमं पच्छिमरयणीसमयंमि इमं संसयमुवहसि जहा तणगोवालिया किंसंठाणसंठियत्ति, नणु वंसीमूलसंठिया सा मालगस्स पुवमा एवं च साकाणं निवेएति For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org श्रीगुणचंद महावीरच० ८प्रस्तावः ॥२८१॥ SSAGESAKALAEOमर पन्नत्तत्ति, इमं च निसामिऊण पहिहियओ पुणो तं वंदिऊण गओ सो सट्ठाणं । अन्नम्मि य वासरे ईसि समुवलद्ध-18 चरमगेयाचेयणो गोसालो नियमरणसमयमाभोइऊण अप्पणो सिस्से सद्दावेइ, तेसिं पुरओ य इमं वागरेइ-भो देवाणुप्पिया !! दीनि गो शालकस्य मं कालगयं जाणिऊण मम सरीरं सुरहिगंधोदएण पक्खालिऊण सरसेण चंदणेण चचिऊण य महरिहं हंसल- पश्चात्ताप क्खणं पडयं नियंसावेजह, तयणंतरं सवालंकारविभूसियं सहस्सवाहिणीसिबिगासमारोवियं काऊण नीहरावेजह, सावत्थीए पुरीए सिंघाडगतियचउक्कचच्चरेसु इमं उग्घोसिजह, जहा-इमीए ओसप्पिणीए चउवीसाए तित्थयराणं चरिमो एस गोसालगजिणो तित्थयरत्तं पालिऊण समुप्पन्नकेवलो संपर्य सिद्धिं गओत्ति, इमं निसामिऊण ते सिस्सा विणएणं सवं पडिसुणंति, अह सत्तमदिणंमि परिणममाणंमि समुवलद्धसुद्धबुद्धिणा पुचदुचरियनिवहसुमरणुप्पन्नातुच्छपच्छायावेण चिंतियं गोसालेण अहह महापावोऽहं अजिणंपि जिणं भणामि अप्पाणं । सचं च मुसावयणपि मुद्धलोयस्स साहेमि ॥ १॥ सिरिवद्धमाण तित्थंकरो गुरू धम्मदेसगो परमो। आसाइओ मए तह तेयनिसग्गेण दुग्गेण ॥२॥ दुद्धरसंजमभरधरणपचले मुणिवरे दहंतेण । निद्दह चिय बोही मए हयासेण एमेव ॥३॥ ॥२८१॥ सच्छंदं उम्मग्गं पयट्टमाणेण तह महीवडे । अप्पा न केवलो चिय लोगोऽवि भवनवे खित्तो ॥४॥ अहवा समग्गभुवणत्तएऽवि तं नत्थि पावठाणमहो। कइवयदिणकजे मए अणजेण नो विहियं ॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तं चोजं जं इमिणावि दुट्ठदेहेण पावभरगुरुणा । जमवयणंपिव भीमं अज्जवि नासं न वच्चामि ॥ ६ ॥ मुद्धे मए चिरजीवियत्थिणा कवलियं हि तालउडं । आगामियमसुहमत किऊण जं एवमायरियं ॥ ७ ॥ tarunमुवगओ गोसालो तह न तेउलेसाए । संतप्पर जह तेणं सपुचदुच्चरियवग्गेण ॥ ८ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं च सुचिरं परिरिऊण सो नियसिस्सगणं उच्चावयसवहसावियं काऊणं एवं भणिउं पवत्तो- मो महाणुभावा ! नो खलु अहं जिणो सङ्घन्नू सङ्घदरिसीवि, किंतु गोसालो मंखलिपुत्तो भगवओ वद्धमाणतित्थंकरस्स सिस्सोऽवि होऊण पश्चणीओ समणघायगो नियतेपणं चेवाभिहओ छउमत्थो विणस्सिउकामो डंभमेत्तपयट्टियपट्टपरिहारादुन्नओ एत्तियकालमप्पाणं परं च बुग्गाहंतो विहरिओ, अओ एवंविहमहापावकारिणं कालगयं जाणित्ता तुम्भे वामचलणंमि रज्जूए वंधित्ता इमाए सावत्थीए पुरीए सबत्थ सिंघाडगाइसु आकडिविकहिं कुणमाणा तिक्खुत्तो वयणमिनिट्ठीवणं पक्खिवंता एसो सो गोसालो मंखलिपुत्तो अजिणो गुरुपडिणीओ समणघायगो असेसदोसकारी, भयवं पुण महावीरो जिणो तित्थयरो उप्पन्नदिवाणदंसणो सञ्चवाई कारुणिओ धम्मदेसगोत्ति महया सण उग्धोसमाणा य मम सरीरस्स नीहरणं करेज्जहत्ति भणिऊण दारुणवेयणाभिहयसरीरो मओ गोसा| लोत्ति । तं च कालगयं जाणित्ता ते आजीविथेरा नियगुरुपक्खवायमुच्चहंता कुंभकारावणस्स दुवारं पिहिऊण तस्स | मज्झयारे सावत्थिं नयरिमालिहंति, तओ गोसालगस्स वामपायरज्जुबंधणपमुहं आघोसणापजवसाणं सवहपरिमो For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ २८२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोशालक क्खणं करेंति, तयणंतरं च तं सरीरगं सुरहिसलिलेहिं महाविऊण तप्पक्खवायपडिवन्नजणथिरिकरणट्टया महया पूयासक्कारसमुदपणं सिचियाए समारोविऊण नीहराविंति मयकिच्चाणि य कुणंति । स्य मृत्युः रोदनं च. इओ य भगवं महावीरो सावत्थीओ नयरीओ निक्खमिऊण विहारकमेण गओ मिंढियगामनयरे, समोसढो यसिंहसाघो मणिकोट्टयाभिहाणचेइयंमि, धम्मनिसामणत्थं च परिसा समागया, खणमेगं च पज्जुवासिऊण जहागयं पडिगया, अह भगवओ महावीरस्स तेण तेउलेसापरिताववसेण समुप्पन्नो पित्तजरो, तबसेण य पाउन्भूओ रुहिराइ - सारो, रविकरपडिवोहियकणय कमलसच्छहंपि मिलायलायन्नं जायं वयणकमलं सरयदिणयरसमुज्जलावि विच्छाईभूया देहच्छवी विवसियकुवलयदलदीहरंपि मउलावियं लोयणजुयलं महानगरगोउरपरिहाणुरूवंपि किसत्तणमुवगयं बाहुदंड जुय ंति, एवंविहं च भगवओ सरीरलच्छि पिच्छमाणो मुद्धजणो वाहरिउमारद्धो-अहो भगवं महावीरो गोसालगतवतेयजणियपित्तज्जरविडुरियसरीरो छण्डं मासाणमध्यंतरे परलोयं वचिस्सइत्ति, इमं च पवायं जणपरंपराओ निसामिऊण सीहो नाम भगवओ सिस्सो गुरुपेम्माणुरागेण एगंते गंतूण अहिययरमन्नुम्भररुद्धकंठविवरो कहकहविगम्भिणं रोविडं पयत्तो, इओ य केवलावलोएण अवलोइऊण भगवया वाहराविओ एसो, भणिओ य किं तं जणप्पवायं निसामिउं कुणसि चित्तसंतावं ? | नेवावयाए कइयचि विउक्कमंतीह तित्थयरा ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only ॥ २८२ ॥ Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AASANSAR अन्नह संगमयविमुक्कचक्ककडपूयणाइजणिएहिं । मरणं हविज तइयावि मज्झं तिखेहि दुक्खेहिं ॥२॥ जो पुण तणुतणुयत्तणरुहिरइसाराइओ विगारो मे। सो(निरु)वकमत्तणेणं सोऽवि न दोसं समावहइ ॥ ३ ॥ सीहेण तओ भणियं जइवि हु एवं तहावि जयनाह ! । तुम्हावयाए तप्पइ सयलं ससुरासुरं भुवणं ॥ ४ ॥ सिढिलियसज्झायज्झाणदाणपामोक्खधम्मवावारो। चाउबन्नो संघोऽवि लहई नो निव्वुई कहवि ॥ ५॥ ता पसियसु जयबंधव ! अम्हारिसहिययदाहसमणत्थं । उवइससु भेसहं जेण होइ देहं निरोगं भे ॥६॥ एवं कहिए तयणुकंपाए भगवया भणियं-जइ एवं ता इहेव मिंढयग्गामे नयरे रेवइए गाहावइगीए समीवं विचाहि, ताए य ममनिमित्तं जं पुवं ओसह उवक्खडियं तं परिहरिऊण इयरं अपणो निमित्तं निफाइयं आणेहित्ति, इमं निसामिऊण हरिसवसपयट्टपुलयपडलाउरसरीरो सीहो अणगारो समुट्ठिऊण भयवंतं वंदइ नमसइ, तयणंतरं पडिग्गहं गहाय रेवईए गाहावइणीए गिहमुवागच्छइ, साऽवि रेवई तं अणगारं ईरियासमिइप्पमुह चरणगुणसंपन्नं समणधम्म व पञ्चक्खं गिहंमि पविसमाणमवलोइऊण खिप्पामेव आसणाओ अब्भुटेइ, सत्तट्ठ पयाई सम्मुहमवसप्पइ, |सविणयं वंदिऊण य एवं जंपइ-संदिसह भंते ! किमागमणकारणं?, सीहेण भणियं-जं तुमए बद्धमाणसामीं पडुच कयं तं मोत्तण जं अत्तट्ठा निष्फाइयं ओसहं तं पणामेहित्ति, तीए भणियं-भयवं! को एवंविहदिवनाणी जो रहसिकयंपि एवंविहं वइयरं परिजाणइ, मुणिणा कहियं-सयलभावाभावनिभासणसमत्थकेवलावलोयनिलयं भयवंतं वी ४८ महा. For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥२८३॥ रजिणं मोत्तृणं को अन्नो एवंविहं साहिउं पारह?, एवं सोचा सा पहिहियया सायरं तमोसहं मुणिणो पडिग्गहंमि। पक्खिवइ, तओ सा तेण भावविसुद्धभेसहप्पयाणेण देवाउयं कम्मं निबंधइ. देवा य तीसे गिहंमि कणगगर्मि नि-1| रोगशान्तिः | गोशालक सिरंति, महादाणं महादाणंति घोसंति, सीहोवि साहू तं गहाय भयवओ समप्पेइ, तं च भयवं आहारेइ, आहा-51 रिए य तहिं ववगयपित्तजरसमुत्थविगारो अमयपुनसरीरोव समहिगसमुम्मिलियजच्चकंचणसच्छहच्छवी वीरो विराइउं पवत्तो। अह पडिहयरोगे बद्धमाणे जिणिदे हरिसवियसियच्छो सवसंघोऽवि जाओ । असुरसुरसमूहा वद्धियाणंदभरा सह नियरमणीहिं नचिउं संपयत्ता। ___ गोयमसामीवि गणहरो महावीरं वंदिऊण पुच्छइ-भयवं! तुभं कुसिस्सो गोसालो कालं काऊण कहिं उववन्नो, |भयवया भणियं-अचुयंमि देवलोगे बावीससागरोवमाऊ देवो जाओत्ति, गोयमेण भणियं-भयवं! कहं तहाविहमहा-18 पावकरणेऽवि एवंविहदिवदेविडिलाभो समुप्पण्णोत्ति?, तओ सिट्ठो सामिणा से सवोऽवि मरणसमयसमुप्पन्नातुच्छ पच्छायावाई वुत्तंतो, पुणोऽवि गोयमेण भणियं-भयवं! तओ ठाणाओ सो आउक्खएण कहिं उववज्जिही?, कइया ६ वा सिद्धिं पाविहित्ति ?, भगवया जंपियं-गोयम ! निसामेहि-इहेव जंबुद्दीचे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले 3॥२८३॥ है। पुंडाभिहाणंमि जणवए सुमइस्स रन्नो भद्दाभिहाणाए देवीए गम्भे सो गोसालो तत्तो चवित्ता पुत्तत्ताए पाउन्भवि स्सइ, तओ नवण्हं मासाणं समहिगाणं समइक्ताणं पजाइही, तस्स य जम्मसमए तत्थ नयरे सम्भंतरबाहिरे । For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MR. SASARSASARASEX भारग्गसो य कुंभग्गसो य परिमलायड्डियफुलंधुयधूसरा पउमवुट्टी रयणवुट्ठी य भविस्सइ, चंदसूरदसणप्पमुहजम्मणमहूसवं काऊण य अम्मापियरो दुवालसमे दिवसे संपत्ते जम्मदिणाणुरूवं महापउमोत्ति से नाम करिस्संति, अह समुचियकाले अहिगयकलाकलावं तं सोहणमि तिहिनक्खत्तमुहुत्तंमि महया रायाभिसेएणं अभिसिंचिहिन्ति, तओ सो अक्खलियपरक्कमो पयंडपयावपडिहयपडिवक्खो अहमहमिगाए पणमंतनरिंदसंदोहमउलिमालालालियचलणो महाराओ भविस्सइ, तस्स य महापउमस्स विजयजत्तमुवट्ठियस्स पुन्नभद्दमाणिभद्दनामाणो दो देवा महड्डिया महापरकमा सेणाकम्मं करिस्संति, ते य राईसरसेणावइमंतिसामंतपमुहा पहाणजणा एवंविहं वइयरमुवलब्भ पहरिसुस्ससियरोमकूवा महापउमस्स रण्णो गुणनिप्फरणं देवसेणोत्ति दुइजं नामधेयं निम्मविस्संति, अण्णया य तस्स रणो सरयससहरधवलं चउइंतं सत्तंगपइट्ठियं लटुं हत्थिरयणमुप्पजिही, तम्मि य सो समारूढो एरावणपट्टिडिओच पुरंदरो उवसोभेमाणो इओ तो परिभमिस्सइ, तयणंतरं पुणोऽवि ते राईसरादओ जणा नियपहुसिद्धिपलोयणु-18 प्पन्नपमोयभरतरलिया तस्स राइणो विमलवाहणोत्ति तइयं नामधेयं पइद्विसंति । अह अन्नया कयाई तस्स रजभरमणुपालिंतस्स पुत्वभवभत्थतवस्सिजणविणासहीलणप्पमुहाणत्थपञ्चइयकम्मदोसेण समणसंघोवरि बाढं प-12 ओसो समुप्पजिही, तो सो सधम्मकम्मुजएऽवि एगे तवस्सिणो हणिही । अन्ने पुण बंधिस्सइ विविहपयारेहिं बंधेहिं ॥१॥ RACCRACC For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० प्रस्तावः गोशालकस्य विमलवाहनभव:, ॥२८४॥ अकोसेही एगे उवह सिही तदपरे महापायो । अन्नेसि निग्घिणमणो काराविस्सइ छबिच्छेयं ॥ २॥ एगेसिं हरिस्सइ वत्थपत्तकंबलपमोक्खमुवगरणं । अन्नसिं समणाणं वारिस्सइ भत्तपाणंपि ॥३॥ अन्ने निवासिस्सइ नियनयरपुरागरासयाहिंतो। अन्ने पुण मारिस्सइ सत्थेहि लहू सहत्थेण ॥४॥ इय एवंविहमसमंजसं तओ पेच्छिऊण पउरजणा । भत्तिविणउत्तिमंगा तं एवं विनविस्संति ॥५॥ देव ! न जुत्तं सोऽपि एयमचंतमजससंजणगं । समणाण धम्मविग्यो जं एवं हवइ तुह रजे ॥६॥ दुट्ठाण निग्गहो सिपालणं नियकुलकमायरणं । रायाण एत्तियं चिय सलहिजइ किंथ सेसेहिं ? ॥७॥ एकमकित्ती सवत्थ तिहुयणे उन्नमइ महापावं । अन्नं चिय रजखओ हीलिजंतेसु समणेसु ॥८॥ अन्नं च-जइ देव ! कहव कुप्पंति तुम्ह समणा इमे समियपावा । ता सयलंपिवि रटुं दहति हुंकारमेत्तेण ॥९॥ एएसिं पभावेणं धरति धरणिं सुहेण नरवइणो । एत्तो चिय मजायं जलनिहिणोऽवि हु न लंघंति ॥ १०॥ ता देव ! विरमसु धुवं तवस्सिजणपीडणाओ एयाओ। अकलंकचिय कित्ती जह वियरइ तिहुयणे तुम्ह ॥ ११ ॥ इय पुरजणेहिं सुवहुप्पयारवयणेहिं वारिओ संतो। भावविरहेऽवि सो तं पडिसुणिही तयणुवित्तीए ॥१२॥ अन्नया य सो रहवरारूढो निग्गच्छिही, इओ य सुभूमिभागे उजाणे तिनाणोवगओ विउलतेउलेसामाहप्प-| दुद्धरिसो विविहतवचरणनिरओ सुमंगलो नाम तबस्सी आयाविस्सइ, सो य राया तेणप्पएसेण वचमाणो! PRAKACHCANCE ॥२८४॥ For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SAMADHAAKASONG तं दद्दण निकारणुप्पन्नतित्वकोवानलो सुमंगलं काउस्सग्गद्वियं रहग्गभागेणं पणोलावेही, सो य तेण पणोलिओ समाणो धरणीयले निवडिओऽवि सणियं सणियं समुढिऊण पुणो काउस्सग्गेण पलंबियभुओठाही, सो य राया तं उड्डसंठाणसंठियं दद्दूण पुणोऽवि रहग्गेण पणोल्लावेही, सो य मंदं मंदमुट्ठिऊण तहेव उस्सग्गेण ठाइस्सइ, नवरं | ओहीं पउंजिऊण तस्स पुत्वभवे आभोइस्सइ, तओ एवं भणिही-अरे नरिंदाहम ! न तुम महापउमो न देवसेणो न य |विमलवाहणो, किं तु मंखलिपुत्तो गोसालगो तुम, जेण निद्दड्डा महातवस्सिणो अचासाइओ निययधम्मगुरू, ता जइ रे तया सवाणुभूइणा मुणिवरिटेण पहुणावि होऊण पडिविधायमकुणमाणेण निरुवमं पसममवलंबिऊण तुह |दुविलसियं सम्ममहियासियं, सुनक्खत्तमहारिसिणा वा तितिक्खिये, असेसतियणरंगातुलमहामलेण महावीरेण वा खमियं तं, नो खलु अहं सहिस्सं, किंतु जइ एत्तो पणोलावेहिसि ता भवंतं सरहं सतुरयं ससारहियं नियतवते| एणं छारुक्कुरुडं काहामि, सो य राया इमं निसामिऊण समुच्छलियपवलकोवानलो पुणोऽवि संदणग्गेण पणोलावेही, अह तइयवेलंपि पणोलिओ सुमंगलसाहू विसुमरियपसमसवस्सो पणढगुरुवएसो सत्तट्ट पयाई पचोसक्किऊण तेउलेसं निसिरिही, ताए य सरहो ससारही सतुरंगमो सो निदज्झिही, सुमंगलसाहूवि तं निद्दहिऊण पुणरवि पचागयसुहज्झवसाणो आलोइयनियदुचरिओ विचित्तेहिं तवोकम्महिं कम्मनिजरणं काऊग बहुयाई वासाई सामण्णं परिपालिऊण य मासियाए संलेहणाए संलिहियसरीरो मरिऊण सवठ्ठसिद्धे विमाणे तेत्तीससागरोवमाऊ KA4-%C4ABARSA For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -- गोशाल. कस्य भा. विभवाः -- श्रीगुणचंद देवो भविस्सइ । तओ चुओ समाणो महाविदेहे सिज्झिहित्ति । गोयमसामिणा भणियं-भयवं! विमलवाहणो महावीरच. कहिं उप्पजिही?, भयवया भणियं-गोयम ! विमलवाहणो तेण मुणिणा निद्दहो सत्तमाए निरयपुढवीए अपह८प्रस्ताव पाहाणे नरयावासे तेत्तीससागरोवमाऊ नेरइओ भविस्सइत्ति । तयणंतरं च॥२८५॥ सबत्तो पसरियतिक्खवजसूलग्गवेहणसमत्थं । अणिसं सहिही विवसो तेत्तीसं सागराई दुहं ॥१॥ तत्तो उच्चट्टित्ता मच्छभवं पाविऊण तिवणं । पुत्वभवसाहुमारणजणिएणं पावदोसेणं ॥२॥ सो सत्थहओ संतो दाहजरघोरवेयणाभिहओ। मरि होही पुणरवि नेरइओ सत्तममहीए ॥३॥ तत्तो मच्छो छट्ठीए नारगो इत्थिया य नेरइओ। छट्ठीए पुढवीए इत्थी नेरइओ पंचमीए ॥ ४ ॥ उरगो नेरइओ पंचमीए उरगो पुणो चउत्थीए । नेरइओ सीहो तह चउत्थपुढवीए नेरइओ ॥ ५ ॥ सीहो तचाए नारगो य पक्खी य तइय नेरइओ । बिइजा पुढवीए नारगो भुयपरिस्सप्पो ॥६॥ बीयाए नेरइओ भुयपरिसप्पो य पढमपुढवीए । सपणी तओ असण्णी नेरइओ पढमनरगंमि ॥ ७ ॥ तेण मुणिमारणजियपावेणं नरयवजठाणेसु । सत्थहओ दाहजरविहुरो होही य मरिही य ॥८॥ तत्तो पक्खिसिरीसिवउरपरिसप्पेसु णेगभेएसु । जलपरजोणिसु तहा उववजिय भूरिवाराओ ॥९॥ चउरिदिएसु तेइंदिएसु बेइंदिएसु य भवित्ता । सबत्थ सत्थनिहओ विवजिही गवाराओ ॥१०॥ - For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वणसइपवणानलसलिलपुढ विजाईसु विविहभेयासु । कालमसंखं वसिउं अकालमरणेण सो मरिही ॥ ११ ॥ इय उम्मड नियदुवरियजलणजालाकलावसंतत्तो । तं किंपि नत्थि दुक्खं जं पाविस्सइ न स वरागो ॥ १२ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं च अणेगभवुम्मज्जणनिमज्जणाई काऊन कहकहवि समासाइयथेवकम्मविचरो सो गोसालगजीवो रायगिहे नयरे वाहिं वेसित्थित्ताए उववजिही, तत्थवि चिरभवसा हुव हसमुत्थनिकाइयक्रम्माणुवत्तणवसेण रयणीए पसुत्ता चैत्र एगेण विडपुरिसेण आभरणलिच्छुणा निसियखग्ग घेणुनिद्दयनिद्दारियउदरा मरिऊण पुणोऽवि रायगिहस्संतो वेसित्थियत्ताए उववज्जिऊण विवज्जिही । तओ जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले बिभेलए सन्निवेसे माहणकुले दायित्ताए पञ्चायाही तं च कालकमेण उम्मुकबालभावं अम्मापियरो समुचियस्स एगस्स माहणपुत्त रस य भारियत्ताए पणामइस्संति, अन्नया य सा गुबिणी ससुरकुलाओ पियहरं निजमाणी अंतरा समुच्छलियपवलदावानलजालाकलावकवलिया कालं काऊण अग्गिकुमारेसु देवेषु देवत्ताए उववजिही, तत्तो य चविऊण माणुसत्तणेण समुप्पन्नो समाणो तहाविहसुगुरुदंसणसमुवलद्ध सधनुधम्मवोहो भववेरग्गमुहंतो पवजं पडिवज्जिही, कहिवि पमायवसेण विराहियसामण्णो य असुरकुमारेसु देवेसु उववजिही, एवं कइवयभवगहणाई पुणो पुणो विराहियसामन्नो असई भवणवासिदेवेसु जोइसिएसु य सुरसंपयं समणुभविऊण पुणो समुवलद्धमाणुसत्तो अइयारकलंकपरिहीणं पञ्चजं समायरिऊण सोहम्मे देवलोए देवो होही, एवं सत्त भवे जाव निक्कलंकं सामण्णमणुपालिऊण For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ८प्रस्ताव । भाविभवाः गोशालककृतः श्रमणोपदेश ॥२८६॥ COMAARBAR महाविदेहे वासे दढपइण्णाभिहाणो ईसरसुओ होऊण जायभववेरग्गो परिचत्तधणसयणो थेराण अंतिए सबविरई गहाय छठ्ठमाइतवोकम्मविसेसेहिं पुत्वभवपरंपरासमजियाई पायकम्माई खविऊण केवलनाणमुप्पाडेही, नओ सो दढपइण्णकेवली मुणियगुरुजणावमाणसमुत्थमहापाववियंभियभवाडवीनिवडणकडुविवागो नियसमणसंघ सहाविऊण एवं भणिहीहंहो देवाणुपिया! जंबुद्दीवंमि भारहे वासे । मंखलिपुत्तो गोसालनामओऽहं पुरा आसि ॥१॥ बहुकूडकवडनिरओ विवरीयपरूवगो समणघाई । धम्मगुरुपच्चणीओ समत्थदोसाण कुलभवणं ॥ २ ॥ नियतेएणं चिय दज्झमाणदेहो दढं बहुदुहत्तो । कलुणं विलवंतोऽहं पंचत्तं पाविओ तइया ॥३॥ तम्मूलं चउगइभुयगभीसणे दीहरे भवारणे । भमिओ सुचिरं कालं विसहंतो दारुणदुहाई ॥ ४ ॥ ता भो देवाणुपिया! इय सोचा मा कयावि सुगुरूणं । संघस्स पवयणस्स य पडिणीयत्तं करेजाह ॥५॥ बहुओऽपि पावनिवहो वच्चइ नासं मुहुत्तमत्तेण । गुरुसाहुसंघसिद्धृतधम्मवच्छलभावेण ॥६॥ एवमणुसासिऊणं नियसमणे सो तया महासत्तो। पडिवोहिऊण भवे पाविस्सइ सासयं ठाणं ॥७॥ इय तइलोयदिवायरसिरिवीरजिणेसरेण परिकहियं । गोसालयचरियमिमं गोयमसामिस्स नीसेसं ॥८॥ एयं च तचरियं महादुहविवागमूलं निसामिऊण वहवे समणा य समणीओ य सावयाओ य सावियाओ य गुरु-| AAAAAAAAAACCOREGA ॥२८६॥ For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SACROCARSAMACANCARDCORDSMS प्पमुहाणं सविसेसं आसायणापरिहारपरायणा जायत्ति । अह भयवं महावीरो मिढियग्गामनयराओ निक्खमित्ता समणसंघपरिवुडो गामाणुगामेण विहरमाणो संपत्तो रायगिहं नयरं, तस्स य अदूरविभागवतिमि गुणसिलयाभिहाणचेइए विरइयं देवहिं समोसरणं, पुबकमेण निसन्नो सिंघासणे जयगुरू साहिउं पवत्तो दयामूलं खमामहाखंधं मूलगुणसाहासमाउलं उत्तरगुणपत्तनिगरसंछन्नं अइसयकुसुमविराइयं जससोरभभरियभुवणंतरं विसमसरतरणिताबपणासगं सग्गापवग्गसुहफलदाणदुललियं पवरजणसउणणिसेवणिज धम्ममहाकप्पतरुवरं । एत्थावसरंमि सेणियनराहिवो भयवंतं समवसरणट्टियं सोऊण पढिओ अभयकुमारमेहकुमारनंदिसेणपुत्तपरियरिओ वंदणवडियाए जयगुरुणो। कहं चिय?डिंडीरपिंड पुंडरियहरियखरकिरणबिंबकरपसरो । सहरिसहरिणच्छिकरयलुल्लसियचामरुग्धाओ ॥१॥ गजंतमत्तकुंजरमयजलपडिहणियरेणुपन्भारो। तरलतरतुरयपहकरसंखोहियमहियलाभोगो ॥२॥ रणज्झणिरकणयविकिणिमालाउलरहसमूहपरियरिओ। दप्पुब्भडसुहडसहस्सरुद्धनीसेसदिसिनिवहो ॥३॥ इय सेणिओ नरिंदो हरिसुक्करिसं परं पवहमाणो । करिणीखंधारूढो नीहरिओ नियपुराहिंतो॥४॥ तयणंतरं च पत्तो समोसरणं । जहाविहिणा य पविद्रो तयभंतरे, तिपयाहिणीकाऊण बंदिउं जयगुरू निविट्ठो दूसमुचिए भूमिभागे, भगवयाऽवि पारद्धा तदुचिया धम्मकहा। कह? नियपुराहितो तदुचिया धमायभतरे, तिपय For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्ताव: राजगृहे श्रेणिकादेधोप देश: ॥ २८७॥ Sonthong | भो भो महाणुभावा निम्मलवुद्धीए चिंतह सयोहा । संसारं घोरमिमं महामसाणस्स सारिच्छं ॥१॥ तथाहि-उब्भडवियंभियमुही विसयपिवासा महासिवा एत्थ । दढमणिवारियपसरा सबत्तो चिय परिभमइ ॥२॥ ओहामियसुरनरखयरविक्कमा तंतमंतदुग्गेज्झा । अनिवारियं पयट्टइ भीमा जरडाइणी निचं ॥३॥ पयडियपयंडपक्खा निरवेक्खकंतजीयमाहप्पा । सबत्तो पासठिया कसायगिद्धा विसप्पंति ॥४॥ दावियविविहवियारा जीवियहरणेऽवि पत्तसामत्था । दढममुणियप्पयारा रोगभुयंगा वियंभंति ॥५॥ लढुं छिदं थेवंपि तक्खणुप्पन्नहरिसपन्भारो । भुवणत्तयसंचरणो मरणपिसाओ समुत्थरइ ॥६॥ इट्ठविओगाणिटुप्पओगपामोक्खदुक्खतरुनिवहो । सबत्तो विणिवारइ विवेयदिणनाहकरपसर ॥७॥ इय भो देवाणुपिया! मसाणतुले भवंमि भीमंमि । खणमवि न खमं वसिउं तुम्हाणं सोक्खकंखीणं ॥ ८॥ एवं भगवया वागरिए संसारसरूवे पडिबुद्धा वह पाणिणो, भावसारं च अणेगेहिं अंगीकया देसविरइसबविहै रइपडिवत्ती, हरिसूसियसरीरो यसपरियणो राया गओ जहागयं, नवरं मेहकुमाररायपुत्तो अंतो वियंभंतहरिसपसरो संसारविरागं परममुबहंतो सेणियनराहिवं जणणिं च पणमिऊण भणिउं पवत्तो-अंबताय! अहमेत्तो वंछामि तुमहिं अणुण्णाओ भगवओ समीवे पवजं पवजिउं, तेहिं भणियं-पुत्त! विसमो जोवणारंभो दुरक्खणिज्जो मयरद्धयसरपहारो दुद्धरा विसयाभिमुहीभवंता इंदियतुरंगमा सम्मोहदायगा लडहमहिलाजणविसाला बाद दुरज्झवसा ॥ २८७ ॥ For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SAHASRANSAR पवजा, अचंतं दुरहियासा परीसहा, ता पुत्त! पडिवालेहि कइयवि वासराई, मेहकुमारेण भणियं-अम्मताय ! तडि तरलमाऊअविलसियं सरयगिरिसरियावारिवेगचडुलं जोवणं मत्तकामिणीकडक्खभंगुरा रायलच्छी, जन्नारंभा इव ददीसंतबहुविप्पओगा इट्ठजणसंजोगा, ता पजत्तमेत्तो गेहनिवामेण, सबहा मा कुणह धम्मविग्छति भणिए अणु-18 ग्णाओ कहकहवि जणणिजणगेहि, तओ महाविभूइसमुदएणं गहिया अणेण भगवओ समीवे पञ्चजा, अन्नेऽवि तं पवजं अणुगिण्हतं पासिऊण बहवे नरिंदसेट्ठिसेणावइसुया जायभवविरागा पवइया। __ अह दुस्सहत्ताए परीसहाणं चलत्तणओ चित्तवित्तीए तस्स मेहकुमारसाहुस्स अणुक्कमेण पढमरयणीए चेव पसुत्तस्स पविसंतनीहरंतमुणिचरणघट्टणुप्पन्ननिहाविगमस्स पवजापरिचायाभिमुहमाणसस्स कहकहवि अदृदुह-14 ट्टियस्स दुक्खेण वोलीणा रयणी, समुग्गयंमि रविमंडले पमिलाणवयणकमलो समुट्ठिऊण तओ ठाणाओ पवज्ज परिमोत्तुकामो गओ भगवओ समीवे ॥ अह केवलावलोएण जिणवरो जाणिऊण भग्गमणं । मेहकुमारं साहुं महुरगिराए इमं भणइ ॥१॥ किं भो देवाणुपिया! संजमजोगंमि भंगमुवहसि । पुवभववइयरं नेव सरसि सयमवि समणुभवियं ॥२॥ एत्तो तइयभवमिं रणे किर वारणो तुहं हुंतो। तत्थ य वणग्गिणा पसरिएण संतत्तसबंगो ॥३॥ बाढं पिवासिओ सरवरंमि पाउं जलं समोगाढो । तडपंकमि य खुत्तो तत्तो नीहरिउमचयंतो ॥४॥ CAMERAMROAST E R For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ २८८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr किरिणो दढदसणग्गताडणुष्णन्नतिच्चवेयणओ । मरिडं विंझंमि तुमं पुणरवि जाओ गयाहिवई ॥ ५ ॥ वणवपलोयणेण य जाई सरिऊण भयवसट्टेण । रुक्खे उक्खणिऊणं अवणित्ता तणपलालाई ॥ ६ ॥ करयलसमाई तिन्नि उ महापमाणाई थंडिलाई तए । सरियातीरे पकयाई निययगयजूहरकखट्ठा ॥ ७ ॥ जुम्मं । अह अन्नया कयाई तरुवरसंघ रिससंभवो जलणो । दहिउं वणं पयट्टो पलयानलविग्भमो भीमो ॥ ८ ॥ तं पेच्छिऊण भीओ तुमं पलाणो सथंडिलाभिमुहं । हरिहरिणससगसूयरप डिहत्थे थंडिले दुन्नि ॥ ९ ॥ लंघित्ता तइयंमिं संपत्तो अच्छिउं समाढत्तो । चरणो य समुक्खित्तो कंडुयणकए तए तणुणो ॥ १० ॥ एत्थंतरंमि अन्नन्नसत्तसंपेलिओ ससो एगो । उक्खित्तचरणहेट्ठा ठिओ सजीयस्स रक्खट्ठा ॥ ११ ॥ तं दणं तुमए पहेठियं पराए करुणाए । आकुंचिऊण धरिओ नियचलणो गयणदेसंमि ॥ १२ ॥ अह वणदवोऽवि दहि सयलं अडविं महाविडविपुन्नं । उवसंतो ते य गया जहागयं ससगपमुहजिया ॥ १३ ॥ ता हापिवासात तो तंपि सिग्धवेगेण । अमुणियकुटियसचलणो पधाविओ पाणियाभिमुहं ॥ १४ ॥ अह एगचलणवियलत्तणेण पडिओ तुमं गिरिवरोध । तण्हाछुहाकिलंतो कालगओ बहुकिलेसेण ॥ १५ ॥ तेण य ससगणुकंपणस मुवज्जियपुन्नपगरिसवसेण । लहुईकयसंसारो संपइ जाओसि रायसुओ ॥ १६ ॥ इय भो देवाणुप्पिय! तइया पसुणावि जइ तहा तुमए । ससगजियरक्खणेणं वाढं दुक्खाई सहियाई ॥ १७॥ For Private and Personal Use Only मेघस्थ दीक्षा पूर्व भवश्रावणं च. ॥ २८८ ॥ Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HORKUCHAGUAGES ता कीस बंभयारीण धम्मनिरयाण पवरसाहूणं । चलणाइघट्टणेणवि संपइ संतावमुवहसि ? ॥ १८ ॥ सरयनिसायरधवले कुलंमि पडिवन्नमुज्झमाणस्स । किं सुंदर! न कलंको होही आचंदकालंपि ? ॥ १९ ॥ कइवयदिणसुहकजेण अजिऊणं पयंडपावभरं। किं कोइ भण सयन्नो अप्पाणं पाडइ भवोहे ? ॥२०॥ इय एवंविहवयणेहिं भुवणदीवेण वीरनाहेण । पडिवोहिओ महप्पा मेहकुमारो मुणिवरिहो ॥ २१ ॥ जाओ सुनिचलमणो तहकहवि जिणिंदभणियमग्गंमि । जह दुकरतवनिरयाण साहूण णिदसणं पत्तो ॥ २२ ॥ तस्सणुसद्धिं सोचा संवेगकरिं परेऽवि मुणिवसहा । सविसेसमप्पमत्ता पडिवन्ना संजमुजोगं ॥ २३॥ अह अण्णंमि दिणंमी सोचा धम्म जिणिंदमूलंमि । भववेरग्गमुवगओ रायसुओ नंदिसेणोऽवि ॥ २४ ॥ पवजापडिवत्तिं काउमणो सो य सेणियनरिंदै । जणणिं च बहुविहेहिं वयणेहिं पनवेऊण ॥ २५॥ जाव भुवणेकपहुणो पासे चलिओ पवजिउं दिक्खं । ताव य सो भणिओ देवयाए गयणट्ठियाए इमं ॥ २६ ॥ भो भो कुमार! विरमसु पवजागहणओ जओ अस्थि । अजवि तुह भोगफलं चारित्ताचारगं कम्मं ॥२७॥ थेवं कालं निवससु सगिहे ता कीस ऊसुगो होसि ? । सलहिजंति न कज्जाई पुत्त ! अइरहसविहियाई ॥२८॥ काले चिय कीरंतो ववसाओ कजसाहगो होइ । समयाभावे सस्सं न फलइ अचंतसितंपि ॥ २९ ॥ तत्वो कुमरेण भणियं देवि! कीस तुममियं पयंपेसि । सयमेवप्पडिवन कहमिव उज्झामि विरइमई ॥ ३०॥ ४९ महा. For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ २८९ ॥ www.kobatirth.org किंवा काही पिविचारित्तावारगं ममं कम्मं । कु ( दु) स्सीलसंगरहियस्स गाढतवसोसियंगस्स ॥ ३१ ॥ इयतणं अवमणिऊण सिग्धं गओ समोसरणं । नवरं जयगुरुणाविहु पडिसिद्धो सो तहचैव ॥ ३२ ॥ तहविहु अइरभसवसा अभाविडं भाविरं विरइभंगं । भुवणगुरुणो समीवे निरवज्रं लेइ पवज्जं ॥ ३३ ॥ तो मुहं कुणमाणो दुक्करं तवच्चरणं । जयगुरुणा सह विहरइ वहिया गामागराईसु ॥ ३४ ॥ पढइ विचि (वित्तं सुत्तं परिभावइ निचमेव य तदत्थं । गुरुणो मूले निवसह परीसहे सहइ थिरचित्तो ॥ ३५ ॥ संजमनिसेवणपरो विसयविरागं परं परिवहंतो । आयावर अणवरयं सुसाणसुन्नासमाई ॥ ३६ ॥ अह अन्नया कयाई एगल्लविहार पडिमपरिकम्मं । काउमणो स महप्पा जाए छट्ठस्स पारणगे ॥ ३७ ॥ भिक्खट्टाए पविट्ठो एगोऽणाभोगदोसओ सहसा । बेसाए मंदिरंमी पर्यपए धम्मलाभोति ॥ ३८ ॥ तो बेसाए सहासं सवियारं जंपियं अहो समण ! । मोचूण दम्मलाभं न धम्मलाभेण मे कज्जं ॥ ३९ ॥ अहह कहं हसइ ममंपि बालिसा संपयंपि (ति) चिंतित्ता । तेण तवलद्धिणा नेवतणयमायहिऊण लहुं ॥ ४० ॥ अइपवररयणरासी निवाडिया एस दम्मलाभोति । भणिऊण य नीहरिओ तीए भणिओ य साणंदं ॥ ४१ ॥ भन्नं ! उज्झ दुरतव चरणं कुणसु मज्झ सामित्तं । इहरा चएमि जीयं पुणरुत्तं तीए इय बुत्तं ॥ ४२ ॥ भाविमईवि तवसोसिओऽवि विन्नायविसयदोसोऽवि । कम्मवसा भग्गमणो पडिवज्जइ तीए सो वयणे ॥४३॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr मेघस्य वैराग्यं नंदिषेण दीक्षा. ॥ २८९ ॥ Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवरं दस अहिंगे वा जइ नो बोहेमि अणुदिणं भवे । तो परिचएमि विसए विसंव इइ गिण्हइ पइन्नं ॥४४॥ अह उज्झियमुणिवेसो चिंतितो देवयाए तं वयणं । जयगुरुणोऽवि निवसइ वेसाए गिहमि स महप्पा ॥ ४५ ॥ भुजेइ विसयसोक्खं धम्मकहाए य बोहिउं भवे । पवजागहणत्थं पेसइ पासे जिणिंदस्स ॥ ४६ ॥ अह अन्नया कयाई खीणे भोगप्फलंमि कम्मम्मि । वेरग्गावडियमई चिंतेउमिमं समाढत्तो ॥४७॥ तुच्छं सोक्खं तडितरलमाउयं भंगुरं च तारुनं । रोगविहुरं सरीरं दुलंभा धम्मसामग्गी ॥४८॥ खंडियसीलाण निरंतरं च निवडंति दुस्सहदुहाई । एवं ठिए न जुज्जइ संपइ मह निवसिउं एत्थ ॥४९॥ तो गंतुं जयगुरुणो पुणो समीवम्मि लेइ पवजं । आलोइयदुचरिओ विहरइ य समं जिणिदेण ॥५०॥ चिरपधज्जापजायपालणं भावसारमह काउं । सो नंदिसेणसाहू मरिउं देवत्तणं पत्तो ॥५१॥ इओ य सो सुदाढनागकुमारदेवो नावारूढस्स भगवओ पुवं उवसग्गं काऊण आउयखयचुओ समाणो समु-| प्पन्नो एगमि रोरकुले पुत्तत्तणेण, वुद्धिं गओ य संतो करिसगवित्तीए जीवइ, तंमि य पत्थावे सो जाव नियच्छेत्तं लंगलेण करिसिउमारद्धो ताव पत्तो तं गाम भुवणेकबंधवो जिणो, तो भगवया तस्स अणुकंपाए पडिबोहणत्थं पेसिओ गोयमसामी, गओ य तदंतियं, भणिओ य गोयमेण एसो-भद्द ! किमयं कीरइ?, करिसगेण भणियं-जं कारवेइ एस हयविही, को वा अन्नो अम्हारिसाण कलाकोसल्लवजियाण जीवणोवाओ?, गोयमसामिणा जंपियं AAAAAAGARIKAAGAR For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कक श्रीगुणचंद महावीरच० ८प्रस्ताव ।।२९ ॥ एवंविहगाढकिलेससंविढत्ताए भोयणविहीए । दिगगमणियं कुणंतस्स मुद्ध ! का चंगिमा तुज्झ ? ॥१॥ किंवा सरीरसोक्खं संपजइ को य विसयवामोहो। किं वा सुचरियनिप्फायणं च संभवइ एवं च ? ॥ २॥ नो एयपरिचागो सुदुकरो दिवसोक्खकंखीणं । तुम्हारिसाण जायइ जेणऽजवि किर महासत्ता ॥३॥ पउरमणिकणगरयणुक्कराइं तरुणीओ सुंदरे गेहे । मोतूण पन्नगंपिव धना लग्गति धम्ममि ॥४॥ अन्ने पुण आकालियदुरंतदारिद्दविहुयावि दढं। पावारंभपयट्टा जम्म सयलंपि वोलिंति ॥५॥ ते अण्णत्थवि जम्मे तहेव पुणरुत्तदुक्खसंतत्ता । तल्लोविलिं पकुणंति थोवसलिलंमि मच्छोव ॥६॥ जइ पुण ते घरवावारलक्खभागे व धम्मकजंमि । अन्भुजमंति रुंधति नित्तुलं ता दुहदुवारं ॥७॥ किंच-एगत्तो संपज्जइ जहिच्छभोगोवभोगदुल्लकिन । धणमन्नत्तो सजणपसंसणिज्जा हि पवजा ॥८॥ एगत्तो छक्खंडाहिवस्स सेवा महानरिंदैस्स । कीरइ अन्नत्तो पुण मुणिणो सद्धम्मनिरयस्स ॥९॥ सुंदर! इमाओ दोन्नि उ गईउ लोयंमि सुप्पसिद्धाओ। एयाणं अन्नयरिं जे कुसला ते पवजंति ॥१०॥ ता वजसु कम्ममिमं धम्म चिय सरसु तं महासत्त!। दीणाण दुत्थियाण य एसो एको परं सरणं ॥ ११ ॥ इय गोयमेण भणिए सबइलं लंगलं च मोत्तूण । नमिउं चलणे सो भत्तिनिभरो भणिउमाढत्तो ॥ १२ ॥ भयवं! विन्नाणविवजियस्स जइ जोग्गयत्थि मे कावि । ता देहि निययदिक्खं भववासाओ विरत्तस्स ॥१३॥ AMROREOGRAAGAR ॥२९ ॥ For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इय वुत्ते से परियट्टिणोवि सिरिगोयमेण पबजा। तक्षणमेव विदिन्ना वोहिम्बीयंतिकाऊण ॥ १४ ॥ | एवं तेण गहियदिक्खेण समं पयट्टो गोयमसामी भगवओ अभिमुहं, अह जयगुरुणो चक्खुगोयरसुवागयस्स तस्स करिसगस्स तेण सीहभवावजियगाढेवरवेसण पम्हुट्ठा पवजापडियत्ती जायपयंडकोवो य भणिउं पवत्तोभयवं! को एसो?, गोयमेण भणियं-अम्ह धम्मगुरू, तेण भणियं-जइ तुह एस धम्मगुरू ता मम तुमएविन कर्ज, अलं पवज्जाएत्ति भणिऊण परिचत्तरयहरणो धाविऊण गओ खेत्तंमि, गहिया बलीवद्दा, उन्भीकयं लंगलं, पलग्गो पुत्वपवाहेण खेडेउंति । गोयमसामीवि विम्हियमणो भयवंतं पणमिऊण भणिउं पवत्तो भुवणभुयभूयमहप्पभावपडिहणियपाणिगणपीड!। जयनाह ! मए असरिसमिममज पलोइयं चोजं ॥१॥ जं सोक्खकरेवि हु तुज्झ दंसणे दूरओऽवि सो हलिओ। सूरस्स कोसिओ इव सोढुं तेयं अचाईतो ॥२॥ सयमेव य पडिवन्नं पावजं उज्झिऊण संभंतो। अइसिग्घमवतो सखेत्तहुत्तं परोहमणो ॥३॥ किर तुम्ह संकहावि हु जणइ अपुवं जणाण परितोसं । किं पुण चीतरुपमुहहपाडिहेरुन्भवं रूवं? ॥४॥ अह जयगुरुणा भणियं गोयम! सो एस केसरिस्स जिओ। जो किर तिविदुकाले मए दुहा फालिओ होतो॥५॥ तुमए मह सारहिणा निजविओ कोवफुरुफुरंततणू । सीहे सीहेण हए इचाईमहुरवयणेण ॥६॥ तप्पच्चइएणं मइ दोसेणजवि स वेरमुबहइ । तेणं चिय तप्पडिबोहणट्ठया पेसिओ तंसि ॥७॥ AGACAX For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ २९१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इय पुत्रकम्मवसवत्तिजंतुकीरतविविहवावारे । संसारे परमत्येण किंपि नो विजए चोजं ॥ ८ ॥ एवं गोमं पचाइणसामी तामलित्तिदसन्नपुरवीभयचंपाउज्जेणिगय पुरकंपिलनंदिपुरमहुरापमुहेसु महानगरेस भवसत्तजणं पडिवोहिंतो पसन्नचंददसन्न भद्दउदायणसालम हासाल मुहं रायनिवहं पद्माविंतो चंडपज्जोयारिमद्दणजियसत्तुपामोक्खं नरिंदवग्गं च सावगधम्मे ठवेंतो कइवयकालानंतरं पुणो समागओ रायगिहं । तत्थ य--- कक्केयणनीलय लोहियखपामोक्खरयणनिवहेण । कुट्टिमतलं रइज्जइ सुरेहिं आजोयणमहीए ॥ १ ॥ मणिरयणजञ्चकं चणकलहोयमया सुगोउरसणाहा । तिन्नेव निम्मविजंति तक्खणं पवरपागारा ॥ २ ॥ अभंतरंमि तेसिं विचित्तरयणोहर सिजडिलाई । ठाविज्जंती सीहासणाई जोग्गाई जयगुरुणो ॥ ३ ॥ पुचदिसिवज्जसीहासणेसु तइलोयविम्यकराई । कीरंति तिन्नि रुवाई भुवणनाहस्स सरिसाई ॥ ४ ॥ उज्झतागुरुघणसारसिल्हया मोयसुरहियदियंता । धूवघडीण समूहो पमुच्चई सच्चपासेसु ॥ ५ ॥ मंदंदोलियकं किल्लिपल्लवो विधुयधयवडाडोवो | वित्थरइ तित्थनाहाणुभावओ सीयलो पवणो ॥ ६ ॥ इय सुरगणेण सच्चायरेण निवत्तिए समोसरणे । सिंहासणे निसण्णो पुवाभिमुो जिणवरिंदो ॥ ७ ॥ जयगुरुपउत्तिविणिउत्तपुरिसपरिकहियजिणवरागमणो । अभयकुमाराइकुमारपरिवुडो सेणियनरिंदो ॥ ८ ॥ हरिस्ससियसरीरो वंदणवडियाए आगओ झत्ति । असुरसुरवाणमंतरताराहिवपमुहतियसावि ॥ ९ ॥ For Private and Personal Use Only प्रसन्नचन्द्रादिनांबोधः राज गृहेसमवसरणं. ॥ २९१ ॥ Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie CALCCASSACROSSESSMSUCCC तिपयाहिणिऊण परेण भत्तिभारेण वंदिउ नाहं । सट्ठाणेसु निसीयंति ते य सद्धम्मसवणत्थं ॥१०॥ उप्पायपलयसत्तासमलंकियसयलवत्थुपरमत्थं । भवाणं भवभयहरं तत्तो वागरइ भुवणगुरू ॥ ११॥ वागरमाणस्स य भुवणबंधुणो मुणियसयलभावोऽवि । भवजणवोहणत्थं गोयमसामी इमं भणइ ॥ १२ ॥ भयवं! भवस्स पुणरुत्तजम्मजरामरणसोगपउरस्स । किं मूलकारणं जमिह नेव जीवा विरजंति ? ॥१३॥ न य उजमंति तुह पायपउमपूयणपमोक्खवावारे । नो देससच्चविरइओ भावसारं च गिण्हति ॥ १४ ॥ भणियं जिणेण गोयम ! मिच्छत्तं अविरई य मूलमिह । तदणुगया नो जीवा भवभमणाओ विरजंति ॥ १५॥ | नो बहु मन्नंति जिणाहिपि गिण्हंति नेव विरइंपि । मिच्छत्तमजमत्ता किंवा कुवंति नोकजं ॥ १६ ॥ जइ तेवि कम्मगठिं सुनिट्ठरं भिदिऊण सम्मत्तं । पावंति कहवि ता भवसंवासाओ विरजति ॥ १७ ॥ अन्भुजमंति जिणसाहुपूयणाइम्मि धम्मकजंमि । नवरं तेऽवि न विरई घेत्तुं पारेति कम्मवसा ॥ १८॥ जं देसओवि सविसेसकम्मक्खयउयसमेण सा होइ । किं पुण पहाणमुणिजणकरणुचिया सबओ चेव ॥ १९ ॥ ता गोयमेण भणियं भयवं! सम्मत्तरयणलाभाओ। अमहियं गुणठाणं एवं सइ विरइभावोऽयं ॥२०॥ ता साहेसु जयगुरु ! पउरगेहवावारवावडमणाणं । संभवइ देसओविहु विरई कहमिव गिहत्थाण ? ॥२१॥ तो जयगुरुणा कहियं पंचण्डं तिण्ह वा चउण्हं वा । गहणे वयाण एगस्स वावि सा होइ निदोसा ॥ २२ ॥ SANSACCALCCASSAMABAR For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीगुणचंद अणुव्रत महावीरच० स्वरूप ८प्रस्ताव ॥२९२॥ 9469649846064905 गोयममुणिणा भणियं जइ एवं ता जिणिंद ! सबाई । सोदाहरणाई कहेह ताई भेएहिं जुत्ताई ॥ २३॥ न तुमाहितो अन्नो भयवं एयं निदसिउं सको। जं सवं सूरोच्चिय पयासिउं पभवए गयणं ॥ २४ ॥ इय वुत्ते सिरिवीरेण धम्मपासायमूलखंभेण । भणियं गोयम ! निसुणसु सबमिमं परिकहि जंतं ॥ २५॥ पंच उ अणुवयाई गुणवयाई च होंति तिन्नव । सिक्खावयाई चउरो विरईए गिहत्थलोयस्स ॥ २६ ॥ तत्थ य अणुवयाई पढमं पाणाइवायवेरमणं । वयमवरवयपहाणं पाणाइवाओ य सो दुविहो ॥ २७ ॥ विन्नेओ बुद्धिमया सुहुमो थूलो य तत्थ पुण सुहुमो । एगिदियजियविसओ थूलो बेइंदियाइगओ ॥२८॥ संकप्पारंभेहिं दुविहो थूलो य तत्थ संकप्पो । होइ हु उवेचकरणं आरंभो पयणकिसिपमुहे ॥ २९ ॥ संकप्पोऽवि य दुविहो अवराहकरंमि निरवराहे य । जो हरइ देव(ह)दवं स सावराहोऽनहा इयरो ॥ ३०॥ एवं नाऊण इमं थूले अवराहविरहिए जीवे । संकप्पओ न घाएज दुविहतिविहाइभेएण ॥३१॥ इय गहियजीववहविरइसुंदरो सावगोऽणुकंपपरो। अचंतं कोवेऽवि हु गोमणुयाईण न करेजा ॥ ३२ ॥ बंधवहं छविछेयं अइभारं भत्तपाणवोच्छेयं । एए पंचऽइयारा जम्हा दूसंति वहविरई ॥ ३३ ॥ एयाए दूसियाए विहलो सबोऽवि धम्मवावारो। कट्ठागुठ्ठाणंपिवि निरत्ययं रनरुनंव ॥ ३४॥ जं पाणिवहासत्तो सत्तो तं किंपि पावमायरइ । जेण निमेसपि सुहं न लहइ नरयाइसु गइसु ॥ ३५ ॥ ॥२९२॥ 44 For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AURANGARGADARA सवत्थवि सोवक्कममइलहुयं आउयं समजिगइ । पियपुत्तविओगं वा पायइ हरिवम्मराउछ ॥ ३६ ॥ गोयमसामिणा भणिय-भयवं! को एस हरिवम्मरायाहियो ?, भगवया जंपियं-गोयम! निसामेसु, अत्थि इहेव भारहे वासे कुरुजणवए गयउरं नाम नयर, तत्थ असंखदविणसंगओ दत्तो नाम माहणो परिवसइ, रूबजोवणाइगुणसंगया य सिरी नाम भारिया, सबकजेसु पुच्छणिजो पाणाइरगेवलहो सवपसमसुस्सीलयाइगुणसंगओ नंदो नाम से बालमित्तो, सो य अचंतं कलयंठकोमलकंठो तहाविहवावारपरिसमत्तीए निग्गच्छिऊण निविजणमि पएसे ठाऊण गंधचविणोयमायरइ, एवं च वचंति वासरा। अन्नया य दत्तस्त दियवरस्स बाट पाउन्भूया सिरोवेयणा, तबसेण य पणट्ठा रई विभिओ परितावो जायाणि नीसहाणि अंगाणि खलमहिलब चक्खुगोयरमइकंता निहा निच्छिण्णा भोयणवंछा तुट्टा जीवियासा, एवंविहं च विसमदसावडणं पेच्छिऊण तेणाहूओ नंदो, भणिओ य| अहो मित्त! कुणसु किंपि उवायं, सबहा बलबई सिरोवेयणा खुडइव लोयणजुयलं, मणागंपि न पारेमि सुहसेजाग ओवि चिट्ठिउं, जइ पुण कहवि मम निद्दामेत्तपि होजा तो पञ्चजीवियं व अप्पाणं मन्नेजा, इय दीण से वयणं निसामिऊण नंदेण भणियं-पियमित्त! धीरो भव, परिचय कायरत्तणं, तहा करेमि जहा अकालक्खेवेण पगुणसरीरो भवसित्ति संठविऊण रयणिसमयंमि समारद्धं कागलीगेयं, जओजह जह गेयनिनाओ पविसइ दत्तस्स सवणविवरंमि। तह तह निदावि विलज्जियव आगच्छए सणियं ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ २९३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr एवं च आगयाए निद्दाए पत्तो सो निव्भरं, सा चैव भज्जा नंदस्स तेण सुइसुहकारिणा गेयरवेण अवहरि - यहियया तम्मणा जायत्ति, दत्तस्सवि परिगलंतीए रयणीए पणट्ठा सिरोवेयणा, संपत्ता सरीरनिबुई, अन्नया रहंभि सिरीए सपणयं भणिओ नंदो हय! जहा नियमित्तस्स देहपीडा तए समवहरिया । मज्झपि तहा संपइ अवहरसु सरीरसंतावं ॥ १ ॥ उज्जुयभावत्तणओ अवियाणिय से मणोगयं भावं । नंदेण जंपियमिमं कत्तो ते सुयणु ! संतावो १, ॥ २ ॥ ती भणियं - सुंदर ! सयमवि काउं तुमं न याणासि १ । किं सचं पयडिज्जउ १, सो भणइ - कहसु को दोसो १, ॥३॥ art are fast कलगेयायन्नणाओ आरम्भ । सवो नियवुत्तंतो निब्भरअणुरागसंबद्धो ॥ ४ ॥ आयन्निकण एवं सुणिऊण य से असुंदरं भावं । नंदेणं सा भणिया कहंपि एयं सुयणु ! वयसि ? ॥ ५ ॥ दूसिजर निययकुलं अजसो य दिसासु जेण वित्थरइ । मरणेऽवि हु तं धीरा कहमवि नो संपवज्जंति ॥ ६ ॥ सुतिय नरपसुं परदारपसत्तयाण सत्ताणं । विविहाओ वेयणाओ मयच्छि ! ता उज्झसु कुछं ॥ ७ ॥ इय पन्नविऊण बहुप्पयारवयणेहिं तं महाभागो । नंदो ठाणाओ तओ नीहरिओ सिग्घवेगेण ॥ ८ ॥ एसो य सयलवइयरो कडगंतरिएण निसामिओ दत्तेण, तओ चिंतियमणेण-अहो विगठ्ठे कज्जं, जं मम महिला नंदेण सार्द्धं एवमुलवर, मन्ने नंदो मं उवलक्खिऊण चित्तरक्खट्टा सुद्धसमायारं अप्पाणमुवदर्सितो एवमुलविऊण For Private and Personal Use Only प्रथमेऽणुव्रते हरिवमदृष्टान्तः. ॥ २९३ ॥ Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir LOCALSARAKASGAON Pएत्तो ठाणाओ सिग्घमवर्कतो, ता न जुत्ता उवेहा, जओ महिला पुरिसंतररित्तचित्ता कयाइ अत्तणो मणोरहविग्धं 8 संभाविऊण पइणो विसदाणाइणा विणासं करेजा, सयमसमत्था वा विडजणं विणासाय वावारेजा, अओ जाव जवि न जायइ कोऽवि विणासो ताव वावाएमि एवं नंदं, न सबहा सुंदरो एस, कहमन्नहा एयाए सह रहसि | ठाएजा?, किं न याणइ एसो सप्पुरिसाण चक्खुक्खेवोऽवि न जुज्जइ काउं परकलत्ते ?, किं पुण निम्भरपेमगम्भो परोप्परमेगंतसंलावो?, एवं निच्छिऊण तस्स वावायणत्थं उवाए चिंतिउमारद्धः, सावि से भजा दुन्निग्गयाए मयणवियारस्स अवजसनिरवेक्खत्तणओ इत्थीसहावस्स गाढाणुरागसब्भावाओ दुल्लहजणंमि जत्थ जत्थ नंदं पासति तत्थ तत्थ लिहियच थंभियच विचेयणच निचला एतमेव अणिमिसाहिं दिट्ठीहिं पेच्छमाणा अच्छइ, तीसे य तहाविहावलोयणेण दत्तो बहुप्पयारं संतावमुबहइ, नंदोवि सुद्धसीलयाए पुवप्पवाहेण मुक्कसंको तस्स सगासंमि पइदिणमुवेइ, अन्नया य अवगणिऊण पुचोवयारं, परिचइऊण चिरकालसंभवं सिहं, अविमंसिऊण जुत्ताजुत्तं, अपवेक्खिऊण परलोयभयं तेण दत्तमाहणेण वीसत्थहिययस्स नंदस्स तालउडविससणाहो पणामिओ तंबोलबीडओ, अविगप्पभावेण य गहिओ नंदेण, परिभोत्तुमारद्धो य। अह तंमि भुज्जमाणे अचुक्कडयाए विसविगारस्स । निन्नट्ठचेयणो झत्ति निवडिओ सो महीवढे ॥१॥ दत्तेणवि मायासीलयाए पणयं पयासमाणेण । पम्मुक्कदीहपोकं हाहारवगम्भिणं रुन्नं ॥२॥ AAAAECARSACROREA For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A श्रीगुणचंद महावीरच. ८प्रस्ताव प्रथमेऽणुव्रते हरिवमदृष्टान्त ॥२९४॥ ASAGAR मिलिओ य नयरलोगो कहिओ तेणावि तस्स वुत्तंत्तो । जह सहसचिय जीयं नीहरियमिमस्स अनिमित्तं ॥३॥ नयरजणेणं भणियं अलाहि सोगेण कुणसु कायछ । सच्छंदविलसिएसुं किं वन्निजद कयंतस्स ?,॥४॥ एमाइ जंपिऊणं नयरजणो पडिगओ सगेहेसु । दत्तेणवि से विहिओ सरीरसकारपमुहविही ॥५॥ एवं च वावाइयंमि तंमि पणढकुविगप्पो भजाए समं निप्पच्चवायं विसयसुहमगुहवमाणो कालं वोलेइ, अन्नया य तीए समं वरिसयालंमि ओलोयणगओ जाव निवडंतजलधाराधोरणीमणहरं गयणयलमवलोएइ ताव सहसचिय तडयरारावभीसणा निवडिया तस्स सीसंमि कुलिंगमालापलीवियदिसामंडला विज, तीए य तणपूलगो इव निहड्डो दत्तो, मरिऊण य तइयनरयपुढवीए सत्तसागरोवमाऊ नेरइओ उववन्नो, तहिं च अणवरयदहणकुंभीपागसामलिसाहारोहणकरवत्तफालणवेयरणिनइप्पवाहणमोग्गरसंचुण्णणपमुहाई तिक्खदुक्खलक्खाई निरंतरमणुभविऊण टू आउयक्खंयमि तत्तो उच्चट्टिऊण मच्छकच्छपपक्खिसरीसिवपमोक्खासु तिरिक्खजोणीसु उववन्नो, तासुवि बहुकालं चरिऊण पुणो पुणो नरगाईसु य उववजिऊण कहवि कम्मलाघवेण एगमि पचंतकुले जाओ पुत्तत्तणेणं, कयं च से मंगलउत्ति नामं, तत्थ य जदिवसाओ आरम्भ सो पसूओ तदिवसाओ चिय तंमि कुले पाउन्भूया विविहा रोगायंका, समुपन्ना विविहाणटा, तओ तेहिं जणणिजणगेहिं चिंतियं-अहो दुठुलक्खणाणुगओ एस अम्ह पुत्तो ता जाव न देइ अकाले चिय मरणं ताव पच्छन्नो चिय अडवीए नेऊण छडिजाइ, जीवमाणाणमन्ने पुत्ता भविस्संति, ECRACHAAGRAA ॥२९॥ For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CAMERA rannanRRRR किमणेण विसहरसंबड्डणेणंति परिभाविऊण परिसमेत्तवओ मुक्को एसो अडवीए, अह तेणप्पएसेण समागओ सिवो नाम सत्थनाययो, दिवो य तेण एसो, गहिओ अणुकंपाए, नीओ य वुहि । अन्नया य तस्स कम्माणुभावेण सो टू सत्थवाहो सधणो ससयणोऽवि अकालखेवेण खयं गओ, सो य भिक्खावित्तीए अप्पाणं पोसंतो कमेण जोवण मणुप्पत्तो, अन्नया य वसंतमासंमि पवरनेवत्थमणहरं नयरजणं विलसंत अवलोइऊण चिंतियमण-अहो नूगं महा. पावकारी अहं, कहमनहा समाणेवि मणुयत्ते इमे कयपुन्ना नायरया एवं विलसंति, अहं पुण पइदिगं लुक्ख भि.13 क्खाकवलकवलणेण निययउयरंपि(न) भरामि?, ता पजत्तं गिहवासेण, करेमि धम्मजगंति संचिंतिऊण गओ जलणप्पभाभिहाणस्स तावसस्स समीवे, गहिया दिक्खा, काउमारद्धो य विविहं तवचरणं । एवं च अत्राणतवण उवजिया भोगा, अन्नदिवसे य पउरकंदमूलफलभक्खणेण समुप्पन्नं से पोहसूलं, तेण य अमिहो मरिऊण वसंतपुरे नयरे हरिचंदस्स रपणो अणंगसेणाभिहाणाए अग्गमहिसीए कुञ्छिसि पाउम्भूओ पुत्तत्तणेणं, पसूओ नियसमयंमि, कयं वद्धावणयं. पइद्वियं च हरिवम्मोति नाम, उम्मुकचालभावो य गाहिओ कलाकोसलं परिणाविओ य अट्ठ रायकन्नगाओ, अन्नया य जोगोत्ति कलिऊण हरिचंदराइणा महाविभूईए मंतिसामंतपउरजणसमक्खं उववेसिओ नियपए, जाओ सो महानरिंदो। हरिचंदरायाऽवि निविणकामभोगो गओ वणवासं, गहिया दिसापो. खगतावसाणं दिक्खा, परिवालेइ जहाभिहियं तेर्सि धम्मति । हरिवम्मरायावि जहाविहिपरिपालियपयइवग्यो | ५०महा० For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमेऽणु. वर्मकथा. श्रीगुणचंद दाकालाणुरुवपयट्टियनयमग्गो रजभरं समुषहर, तस्स य विसयसुहमणुहवंतस्स समुप्पन्नो पुत्तो, कयं च से हरि- महावीरच० दत्तोत्ति नाम, तस्स य राइणो सयलरजवावारनिरूवणनिउणो असेसनीइसत्थवियक्खणो वेसमणो नाम अमचो, ८प्रस्तावः सो य लद्धपसरत्तणेण एवं परिभावेइ-जइ किंपि अंतरं पावेमि ता इमं रायं वावाइऊण सयमंगीकरेमि रजं, ॥२९५॥ किमणेण साहीणेऽवि सामंते दासत्तकरणेणं १, तहावि केणवि उवाएणं एयस्स राइणो पढमं ताव पुत्तं विणासेमि पच्छा एस सुहविणासो चेव होहित्ति परिभातो अवरंमि वासरे कइवयपहाणपुरिसपरियरिओ गओ उजाणं, उव-18 विट्ठो तरुवरच्छायाए, अह खणंतरं अच्छिऊण कवडेण सहसत्ति उडिओ तहाणाओ भासमाणं च परियणं निवारिऊण उड्डाहो निनिमेसेण य चक्खुणा गयणमवलोइऊण परमविम्हयमुवहतो नियपरियणं भणिउं पवत्तो-भो! भो! किं निसामियं किंपि तुम्भेहिं एत्थ ?, तेहि भणियं-सामि! किमिव ?, अमच्चेण भणियं-आगासे वच्चंतीहिं देवीहिं| इमं जंपियं-जहा एस राया नियपुत्तदोसेण मरिहित्ति, एयं च निसामिऊण अणुकूलभासित्तणं सेवगस्स धम्मोत्तिकलिऊण तयणुवित्तीए भणियं परियणेण-सामि! बाढं निसामियं, केवलममंगलंति काऊण पढमं चेव न कहियं, जइ रे जणगणिबिसेसस्स सामिसालस्सवि एवं होही ता पजत्तं मे जीविएणंति वागरिऊण अमचेण आयट्टिया कजलपुंजसामलुम्मिलंतकंतिपडला खग्गधेणू, समाढत्तं कवडेण नियपोद्दवियारणं, तओ कहकहवि बला मोडिऊण बाहुं परियणेण उहालिया खग्गधेण, नीओ मंदिरं, उम्भडकवडसीलयाए य परिचत्तपाणभोयणसरीरसकारो जरसि ॥ २९५॥ For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KARESAMAVASALAM इकडमंचए निवडिऊण ठिओ एसो असंसेपि दिवस, वासरंते य अत्थाणीगएण राइणा अमचं अपेच्छंतेण पुच्छिओ। पडिहारो-अरे! किं निमित्तं न आगओ अज्ज अमचो ?, तेण कहियं-देव! न मुणेमि सम्मं, राइणा भणियं-सयंपि गेहं गंतूण अमचं पुच्छसु अणागमणकारणं, तओ जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण गओ पडिहारो, दिट्ठो जरसिकडावडिओ सामवयणो अमचो, पुच्छिओ य अणेण-अमच ! किमकांडे चिय एवंविहमवत्थंतरमुवागओ सि ?, साहेसु। कारणं, तुह अणागमणेण परितम्मइ नराहिवोत्ति वुत्ते दीहं नीससिऊण भणियममचेण-भो पडिहार! किं निरत्थएण पुषवुत्तविकत्थणेण ?, एत्तियमेत्तमेव संपइ जंपियवं जस्स पसाएण समग्गलोगपुजत्तणं समणुपत्तं । लच्छी चिरमुवभुत्ता तस्सवि हरिवम्मदेवस्स ॥१॥ सुणिऊण असवणिज विणाससंसूयगं तहावयणं । कि अजवि निलजं जीवियमहमुवहिस्सामि? ॥२॥ इमं च गाहाजुयलमुल्लविऊण पडेण वयणं समोच्छाइऊण ठिओ मोणेणं अमचो, अह परमत्थं अवियाणमाणेण पडिहारेण पुट्ठो परियणो-अहो किमेवममच्चो वाहरइ ?, तेहि भणियं-पडिहार! अज उजाणगएहिं अम्हेहिं अ-| मञ्चेण य गयणवाणी निसुणिया जहा देवो पुत्तदोसेण मरिहित्ति, तदायन्नणाणंतरमेव अमचो अपणो विणासं कुणमाणो महया किलेसेण निसिद्धो मरणभुवगमेण य अजवि भोयणं न कुणइत्ति, इमं च सोचा पडिहारेण भणियंअहो ! अकित्तिमा पहुभत्ती, अहो! असरिसं कयनुत्तणं, अहो! ससरीरनिरवेक्खयत्ति, धुवं धन्नो एस हरिवम्मराया AAAAAAGARAASARAN For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगणचंद महावीरच ८प्रस्ताव ॥२९६॥ कसCALKAR जस्स एवंविहो अमच्चोत्ति वण्णिऊण सो गओ नरिंदसमीवं, कहिओ य एगंते सबो तबुत्तो, इमं च आयन्निऊण प्रथमेऽणुद अचंतवल्लहयाए नियजीवियस्स उदयाओ पुवकयदुचरियाणं संखुद्धो नराहियो, वाहराविओ अमचो, पुच्छिओ सघं | व्रते हरिजहावट्ठियवइयरं, कहिओ य अणेण, तओ राइणा भणियं-अमच्च! किमियाणि कालोचियं ?, अमचेण कहियं-18 वर्मकथा. देव! तुम्हे चिय जाणह जमेत्थ उचिय, अहं पुण सयमेव सुणिऊण देवस्स भाविणि विसमावत्थं न सबहा जीवियमुबहिस्सामि, जओ तुम्ह पायाण विरहे का अम्ह सोहा? का वा पहुभत्ती? किं वा सकजसाहणं? ता| अणमन्नउ देवो, न एत्थ अन्नं वोत्तुं जुजइ अम्हाणंति, राइणा भणियं-अलं मरणेण, समायरसु जमिह जुत्तं, अमच्छण कहियं-देव! संकडमिमं, के तुम्भे? को वा तुम्ह पुत्तो, अओ न किंपि काउं पारिया, राइणा भणियं-जो देवीहिं विणासकारित्ति सिट्ठो सो पुत्तोऽवि परमत्थओ सत्तू चेव, ता ममाएसेण तयणुरूत्रं करेजासु, अमचेण भणियंदेव ! एवंविहदुट्ठाण सासणे दंडवासियाण चेव अहिगारो, ता पसीयउ देवो तेसिमेव आएसदाणेणं, तओ निरूविओ राइणा कुमारविणासणत्थं दंडवासिओ, विणासिओ तेण, पहिट्ठो अमच्चो, कया भोयणाइया सरीरचेट्ठा, चिंतियं च तेण-निहओएस एगो कंटयो, इयाणि राया विणासणिजोत्ति। अह तंमि सुए वहिए नायरलोएण जंपियं एवं । हा हा अहो अकजं नरवहणा नूणमायरियं ॥१॥ ॥२९६॥ जं रजभरसमत्थो पुत्तो अविभाविऊण परमत्थं । कुस्सुयनिसामणुग्गयभयवसओ मारिओ-सहसा ॥२॥ For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अच्छउ परेण कहिए तहाविहे दुन्निमित्तपमुहत्थे । सयमवि दिढे कुसला जुत्ताजुत्तं वियारिति ॥३॥ अन्नं च-18 गहपीडामारीदुन्निमित्तदुस्सुमिणपमुहदोसगणा । देवाण पूयणाईहिं नूण सिग्धं उवसमंति ॥४॥ ता दढमणुचियमेयं कयं नरिंदेण धम्मपहवजं । गरुयाणं गरुउच्चिय उप्पजइ अहव सम्मोहो ॥५॥ इमं च सुयं कन्नपरंपराए राइणा, तओ पाउम्भूया अरई, उप्पन्नो पच्छायावो, पवहिओ महासोगो, चत्ता रजचिंता, इमं च परिभाविउं पवत्तो-अहो महापावोऽहं जेण मए एवंविहमकज्जमायरंतेण न गणिओ धम्मो, नावे-18 ६ क्खिओ अजसो, न अंगीकयं पोरुसं, नावलंबिया खंती, ता किमियाणि परिचयामि रजं?, पविसामि जलणं ? पव ज्जामि वा वणवासं ?, केण वा कएण इमाओ पावाओ मोक्खो होहित्ति चिंतमाणस्स राइणो पडिहारेण गंतूण विन्नत्तं-देव! दुवारे नंदणुजाणपालगा समागया, ते य देवदंसणमभिलसंति, राइणा भणियं-लहु पवेसेह, एवं च मणिए पवेसिया तेण, ते य नियडिया चलणेसु, विनविउमारद्धा-देव! तुम्ह उजाणे भयवं अरिटुनेमी समोसढो, ता वद्धाविजह तुम्हे तयागमणेणंति, इमं च सोचा चिंतियं राइणा-होउ ताव सोगेणं, तं च भयवंतं केवलालोयमुणियतिलोयवावारं जहावित्तं पुत्तविणासहेउं दुनिमित्तमापुच्छिऊण उचियं करिस्सामित्ति विभाविऊण पयहो जिणाभिमुहं । इओ य सो अमच्चो मुणियसघन्नुसमागमो पयडीभविस्सह संपयं मज्झ कवडविलसियंति नियदुच्चरियसंकाए जच्चतुरंगममारुहिऊण जीवियभएण पलाणो वेगेण ।रायावि गओ भयवओ समीवं, तओ चित्तम्भतरुल For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ८प्रस्ताव: FACOCK ॥२९७॥ SUSPARAGARAAR संतह रिसपसरो बहलरोमंचंचियसरीरो भयवंतं तिपयाहिणापुत्वगं पणमिऊण थुणिउमारद्धो। कहंचिय? प्रथमेऽणुजय नवतमालदलसामदेह, तुहु निम्मलगुणरयणोहगेह । व्रते हरिअइदुजयनिजियकुसुमबाण!, जिण भवियहं दंसियसिद्धिट्ठाण ॥१॥ वर्मकथाउत्तुंगपओहरहरिणनयणनवजोधणपवणचंदवयण । पइ उग्गसेणसुय जेण चत्ता, तसु एकह तुह पर जयइ वत्त ॥ २॥ ओहामियसिंधुसमत्थरयणि, अवयरिए नाह! जायवह भवणि । चिंतामणिमि-पई समुहविजओ, सच्चं चिय जाओ समुद्दविजओ ॥ ३ ॥ आपूरियनिब्भरसंखघोस-संखोहियजयजण गयदोस । भुयपरिहंदोलियलच्छिरमण !, सवायरेण सुरपणयचलण! ॥४॥ तइलोकभवणनिम्मलपईव !, परमायररक्खियसयलजीव ! । भवि भवि जिणिंद ! तुहुँ रिट्टनेमि!, अम्हारिस लीयह होज सामि ॥ ५॥ एय एवं थोऊणं पराए भत्तीए जयगुरुं नेमिं । हरिसियमणो नरिंदो तयणु निविट्ठो महीवढे ॥६॥ G ॥२९७॥ भयवयावि पयट्टिया धम्मकहा, पडिबुद्धा बहवे पाणिणो, गहियनियनियसामत्थाणुरूवाभिग्गह विसेसा गया य है। For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - जहागयं । अह अवसरं मुणिऊण पुच्छियं राइणा-भयवं! पुरा अमच्चेण जं अम्ह कहियं तं सचमलियंवा ?, भयवया भणियं-अलियं, राइणा भणियं-भयवं! किमेवंविहं तेणाकजमायरियं?, भयवया जंपियं-भो महाराय! भोगत्थिणो रजत्थिणो परिवारत्थिणो पाणिणो किं किं पावं न करेंति ? किं वा मायामोसं न पयोति? अहवा को तस्स दोसो?, पुवकयकम्माण चेव विलसियमिमं, सो पुण निमित्तमत्तं चेव वरागो, राइणा जंपियं-भयवं! किंमए पुत्वभवे एवंविहं पावमायरियं जस्स अणुभावेण अच्चंतवल्लहस्स सुयस्स सहसच्चिय विणासं पडिवन्नो?, ताहे जह पुत्वभवे महिलादोसेण दोसपरिहीणं । मित्तं विणासिऊणं समजियं पावमइगरुयं ॥१॥ जह नारयतिरियभवेसु भूरिसो पाविऊण जरमरणे। कह कहवि माणुसत्ते लद्धे विहिए य बालतवे ॥२॥ इह संपत्ते रजे जह मित्तविणासकम्मदोसेणं । जाओ पुत्तविणासो तह सवं भयवया कहियं ॥३॥ इमं च सोचा जायगाढभवभओ हरिवम्मराया भणिउं पवत्तो-भयवं जइ पाणाइवायस्स एवंविहो असुहो सहावो ता पजत्तं मम रजेण, गिण्हामि तुह समीवे पवजं जाव अभिसिंचेमि कमवि अत्तणो पर्यमित्ति वागरिऊण गओ नयरिं, निवेसिओ निययरजंमि भाइणेजो, सो य अमच्चो नाओ जहा पलाणोत्ति । तओ मोत्तूण य रायसिरिं हरिवम्मनराहिवो अणगारियं पडिवन्नोति ॥ इय भो गोयम! एसो पाणिवहाविरइमंतजंतूणं । पाउन्भवइ महंतो अणत्थसत्थो जओ तम्हा ॥१॥ CLACHARACTREAM For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ८प्रस्तावः ॥२९८॥ SARA सवपयत्तेणं चिय संकप्पियपाणिघायवेरमणं । सग्गापवग्गसोक्खाई कंखमाणेहिं काय ॥२॥ इइ पढममणुवयं द्वितीयेऽणुअह अलियवयणविरईसरूवमेयं अणुवयं बीयं । भणिमो तं पुण अलिय दुविहं थूलं च सुहुमं च ॥१॥ व्रते सत्यथूलं पंचवियप्पं कन्नागोभूमिनासहरणेसु । कूडगसक्खेजंमि य एसो इह नियमविसओत्ति ॥२॥ श्रेष्ठिकथा. कन्नागहणं दुपयाण सूयगं चउपयाण गोगहणं । अपयाणं दवाणं सवेसि भूमिवयणं तु ॥३॥ इयरदुयग्गहणं पुण पाहन्ननिदंसणट्ठया भणियं । सुहुमं तु अलियवयणं परिहासाईसु नेयवं ॥४॥ थूलमुसावरमणे एयंमि अणुबए पवत्तमि । अइयारा पंच इमे परिहरणिज्जा सुसडेणं ॥५॥ सहसा अभक्खाणं रहसा य सदारमंतभेओ य । मोसोवएसणं कूडलेहकरणं च निचंपि ॥६॥ एयस्स पालणाऽपालणासु पयडा गुणा य दोसा य । दीसंति समक्खं चिय दिर्सेतो भायरो दोनि ॥७॥ ते य भायरो गोयम! निसामेसु, एत्थेव भारहे वासे बडबद्दनयरे पभाकरो नाम राया, सवत्थ विक्खायजसो दुवालसविहसावयधम्मपरिपालणपरायणो जइजणपजुवासणबद्धलक्खो परोक्यारकरणाइगुणसहस्ससमलंकिओ सचो नाम सेट्ठी, तस्स य इहलोयमित्तपडिबद्धो धम्माणुट्ठाणविरहिओ कणिट्ठो बलदेवो नाम भाया, सो य जाणवचेण परविसएसु गच्छइ, अन्नया य बहुलाभो हवइति णिसामिऊण गओ चोडविसए, चोडरायावि सबसेट्टिको ॥२९८॥ गुणनिवहं जणेण वन्निजमाणं सुणिऊणं तदसणाणुरागरचो तन्भाउयं बलदेवं भणइ-सहा मम दंसणत्थं सबसेहिं । For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RECAUSAMACAकर आणेजासित्ति, एवं च नरिंदायरं पेच्छिऊण पडिसुयमणेण, कालकमेण नियमंदिरमुवागओ सच्चस्स परिकहेइ, अनया य चवलत्तणओ लच्छीए उदयत्तणओ अंतराइयकम्मस्स अप्पदविणो जाओ सच्चसेट्ठी, तओ तेण चोडविसयगमणाय पुट्ठो पभाकरनरिंदो, अणुन्नाओ य तेण, तयणंतरं च उचियाई महत्वाइं महग्याई विविहभंडाई गहिऊण भाउणा समं गओ चोडविसयं सच्चसेट्ठी, तदागमणं च निसामिऊण तुट्ठो चोडराया, दवावियं निवासमंदिरं, पहओ उचियपडिवत्तीए अत्तणो य समीमि धरिओ कइवयवासराई, अह विणिवट्टिए भंडे गहिए सदेसपाउग्गे पडिभंडे चोडविसयाहिवइमणुजाणाविऊण समारूढो नावाए सच्चसेट्टी, अणुकूलपवणपेलियमहल्लधयवडविवडियावेगा। गंतुं जवा पयहा नियपुरहुत्तं तओ नावा ॥१॥ तहियं आरूढा ते जाव पलोयंति कोउहल्लेण । अनिलुल्ललंतकल्लोलभीसणं जलहिपरंतं ॥२॥ ताव नियतुंगिमाविहियविझगिरिविन्भमो लहुं दिट्ठो। सलिलोवरिं वहतो अतुच्छदेहो महामच्छो ॥३॥ तं दर्दु बलदेवेण जंपियं एस पचओ एत्थ । इताणं नासि जओ ता तुम्भे मग्गपन्भट्ठा ॥४॥ निजामगेहि भणियं न पचओ एस किंतु मच्छोति । सो चेव अयं मग्गो वामोहं कुणह मा सामि। ॥ ५॥ | बलदेवेण भणिय-अहं पुण इहं चेव विविहभंडपडिहत्थं जाणवत्तं हारेमि जद मच्छो होजा, एवं च उभयपक्खेहिवि सचसेडिं सक्खि काऊण विहिया होडा, ते य निजामगा पडिबेडएण गंतुण मच्छयपिट्टिमि परिक्ख. BACCARRIAL For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ २९९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir णत्थं तणपूलयपडलं पज्जालिउमारद्धा, सो य मच्छो तेण परितत्तसरीरो झडत्ति निवुड्डो अच्छाहे जले, एवं हारियं जाणवत्तं वलदेवेण, परितुट्ठा निजामगा, पत्ता य कमेण नियनगरं, तओ तेहिं पडिरुद्धं जाणवत्तं, समुत्तारिऊण तीरे मुक्को बलदेवो, पारद्धो अणेण झगडओ निजामगेहिं समं, जहा असच्चा इमे मच्छहारिणो चिलाया मए विजियत्ति काऊण आडंबरमुवदंसंतित्ति भणिऊण बला चेव भंडमुत्तारिउमारद्धो, निजामगेहिं वाहिया नरवइणो आणा, न ठाइ बलदेवो, तओ रायाणं उबडिया दोवि पक्खा, तेर्सिं च परोप्परं विवदंताणं परमत्थमवियाणिऊण भणियं रन्ना - अरे ! एत्थ ववहारे को सक्खी ?, निजामगेहिं भणियं-देव ! अत्थि चेव सक्खी, परं नियसहोयरमुवेक्खिऊण किं अम्हाणं सक्खित्तणं करिस्सर १, राइणा भणियं को पुण सो ?, तेहिं भणियं सच्चसेट्ठी, एवं वृत्ते एगंते ठाऊण पुच्छिओ सो रन्ना कज्जपरमत्थं, तास सच्ची परिभावइ किं करेमि एव ठिए ? । जइ अवितहं न जंपेमि होइ ता मे वयकलंको ॥ १ ॥ जर पुण जहेब वित्तं तव साहेमि ता लहू भाया । पावइ अणत्थमत्थो जाई हीरइ पसिद्धीवि ॥ २ ॥ ता दोनिवि गरुयाई आवडियाई इमाई कज्जाई । एक्कंपि परिचहउं न तरामि करेमि किं इहि ? ॥ ३॥ अहवा इहलोक कहं च चिरकालपालियं नियमं । गुरुमूले पडिवन्नं जाणतोऽहं विरामि ? ॥ ४ ॥ किं एतो अइपावं जं जाणतावि भवअसारत्तं । पडिसिद्धेवि अत्थेसु मोहओ संपयति ॥ ५ ॥ For Private and Personal Use Only द्वितीयेऽणुव्रते सत्य - श्रेष्ठिकथा. ॥ २९९ ॥ Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किं बहुणा ? - जइ पडइ सिरे वज्जं सयणोऽवि परंमुहो हवइ लच्छी । बच्चइ तहावि अलियं कहमवि नाहं वइस्सामि ॥ ६ ॥ इति निच्छयं काऊण भणिओ सो सेट्ठिणा नराहिवो - जं इमे वरागा निजामगा जंपति तं सचं, मम भाया पुण अलियवाइत्ति, इमं च सोच्चा तुट्ठो राया चिंतिउं पयट्टो-अहो अज्जवि एरिसा सच्चवाइणो दीसंति जे नियसहोयरसिरीविणासेवि नियमज्जायं न चयंति, ता मंडिजइ एवंविहेहिं कलिकालेऽवि भूमिमंडलति परिभाविऊण आहूया निज्जामगा, सरोसं तज्जिया य, जहा रे दुरायारा! जइ कहवि अमुणियपरमत्थेणं मम वणिएण तहाविहं जंपियं ता किं वयणछलमेत्तेणवि अणेगभंडभरियवोहित्थं घेत्तुं उवद्विया ?, एवमाई िवयणेहिं निम्भच्छिऊण किंचि दाऊण निवाडिया, दवसारंपि समप्पियं सच्चसेट्ठिस्स, बलदेवोऽवि भणिओ-मा पुण एवं करेज्जासु, इय अलियवयणपरिहारकारिणो इह भवेऽवि जणपुज्जा । हुंति नरा परलोए लीलाए जंति निवाणं ॥ १ ॥ इइ बीयमणुखयं२ भणियं नीयमणुवयमेत्तो तइयं अदत्तदाणवयं । साहिज्जइ सयलाणत्थसत्यनित्थारणसमत्थं ॥ २ ॥ तं पुण दुविहमदत्तं थूलं सुडुमं च तत्थ सुहुममिणं । तरुछायाठाणाई अणणुन्नायं भयं तस्स ॥ ३ ॥ अहसंकिलेस भवं जं निवदंडारिहं च तं थूलं । सचित्ताइतिभेयं धूले गिहिणो हवइ नियमो ॥ ४ ॥ एत्थ उ अप्पडिवन्ने जे दोसा ते जणेऽवि सुपसिद्धा । वहबंधतरुलंबणसिरच्छेयाई चोराणं ॥ ५ ॥ पडवन्नेऽवि एत्थं भवभयभीरुत्तणं परिवहंतो । सुस्सडो अइयारे पंच इमे वज्जइ सयावि ॥ ६ ॥ For Private and Personal Use Only %%%%% Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 तृतीयेऽणु व्रते वसुदचकया. श्रीगुणचंद चोरोवणीयगहणं तकरजोग विरुद्धरजगमं । कूडतुलकूडमाणं तप्पडिरूवं च ववहारं ॥७॥ महावीरच० चोरिकाउ विरत्ता कहंपि चोरोहिं संपउत्तावि। वसुदत्तोब न पावंति आवई सुइसमायारा ॥८॥ ८प्रस्ताव: गोयमसामिणा भणियं-भयवं! को एस वसुदत्तो, जयगुरुणा कहियं-अबक्खित्तचित्तो निसामेसु, वसंतपुरे ॥३०॥ नयरे वसुदेवो नाम इन्भो, तस्स य वसुमित्ता नाम भारिया, तीसे य अवचं न होइ, तओ सा चिंतेइ-जइ अवच्चस्स टू है कारणे एस मम भत्ता अन्नं परिणिस्सइ ता अहं गेहस्स असामिणी, अह अचंतनिम्भराणुरागरंजियमणो अन्नं न परिणेइ, तत्थ य मरणपज्जवसाणयाए एयस्स नरवरदाइदाईहिं हीरते गेहसारे सविसेसं असामिणी चेव, अओ जह कहवि मम पुत्तो हवइ ता सोहणं संपजइ, इमेण य अभिप्पारणं सा अणवरयं देवयाणं उबवाइयसयाणि पयच्छा मंततंतवाइजणं चापुच्छह । इओ य सोहम्मे कप्पे अरुणाभविमाणे महिडिओ विजुप्पभो नाम देवो, सो य पचासन्नचवणसमयत्तणेण अत्तणो पयइविवज्जासं पेच्छिऊण वक्खित्तचित्तो भयसंभंतो परिचिंतेइकह रयणनियरउग्गाढपीढियादढनिबद्धमूलोऽवि । निच्चावद्वियरूवोवि कप्परक्खो पकंपेह ॥१॥ सुंदरमंदारतरुप्पसूयमालाऽमिलाणपुधावि । कारणविरहेऽवि कहं पमिलायइ संपयं सहसा ? ॥२॥ कह जच्चकंचणुडामरोऽवि देहस्स कंतिपन्भारो। ताविच्छगुच्छसंछाइयव मालिन्नमुषहद ॥३॥ कह वा भुयंगनिम्मोयनिम्मलाईपि देवदूसाई। कज्जलजलधोयाणिव अइकसिणाई विभार्विति॥४॥ SECREGARCAAAAA बERA ॥३०॥ For Private and Personal Use Only Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कह वा मम नयणजुयं सभावओ च्चिय निमेसपरिहीणं । देवत्तविरुद्धेवि हु निमीलणुम्मीलणे कुणइ ? ॥५॥ कह अंतरंतरा पेच्छणाइवक्खित्तचित्तमवि पावा । लद्धावसरचिय वेरिणिव विद्दवइ मं नि ? ॥ ६ ॥ अचंतपेमपरवसचित्तोऽपि हु परियणो कहमियाणि । कइवयदिणदिट्ठो इब न वयणमभिनंदए मज्झ ? ॥ ७॥ ता सबहा न कुसलं तक्कमि अहं सजीवियवस्स । कल्लाणकारिणो जेण होति न कयाइ उप्पाया ॥८॥ इय एवंविहचिंतासंताणुप्पन्नतिवपरितावो । कप्पहुमोव वणदवपलीविओ भाइ सो तियसो ॥९॥ एवं जाव सोगपमिलाणणो सिंघासणगओ अच्छद ताव तस्स चेव पियमित्तो कणगप्पभो नाम देवो समागओ तिं पएसं, तं च तहट्टियं दट्टण चिंतियमणेण-कहं अज्ज पियमित्तो सुण्णचित्तलक्खोव लक्खीयइ ?, जओ अन्नवे लासु दूराओ चिय मं आगच्छमाणं पलोइऊण सायरं सप्पणयं पढमालावासणप्पणामाइणा अभिणंदन्तो, संपयं पुण समीवमुवगर्यपि न पञ्चभिजाणइ, ता नूणं कारणेण होयचंति विभाविऊण भणिओ अणेण-भो विजुप्पम ! किं चिं-15 तिजइ?, उड्डमवलोइऊण जंपियं विजुप्पभेण-भो वरमित्त! कणगप्पभ इओ एहि, इमं च आसणमलंकारेहित्ति वुत्ते उवविठ्ठो एसो, पुच्छिओ य अणेण वेमणस्सयाकारणं, कहिओ य विजुप्पभेण स निययवुत्तंतो, तओ कणगप्पमेण भणियं-पियमित्त! सबहा न सुंदरमेयं, ता एहि तित्थगरस्स पुच्छामो, कहिं एत्तो तुह चुयस्स उप्पत्ती भविस्त्रइत्ति, विजुप्पमेण भणियं-एवं होउ, तओ गया विदेहखेत्ते, बंदिओ तित्थगरो, सविणयं पुच्छिओ य, जहा-भयवं! AAAAAAECREASE ANSARKAR १३ महा For Private and Personal Use Only Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री गुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ ३०१ ॥ www.kobatirth.org कत्थ अहं उववज्जिस्सामि ?, भयवया भणियं - वसंतपुरे नयरे वसुदेवस्स वणिणो वसुमित्ताएं भारियाए गर्भमि पुत्तो तुमे पाउ भविस्ससि, एवं च निसामिऊण जहागयं पडिनियत्तो विज्जुप्पभो, अन्नंमि य दिवसे सिद्धपुत्तरूवं विउचिऊण अवयरिओ वसुदेवगिहे, साइसओत्ति कलिऊण अन्भुडिओ वसुभित्ताए, पुट्ठो य-भो महाभाग ! जाणासि तुमं मम पुत्तो भविस्सइ न वत्ति ?, देवेण भणियं - जइ तं पञ्चयंत न वारेसि अहं तहा करेमि जहा ते पुत्तो होइति, पडिस्सुयमणाए, अह कवडेण मंडलग्गप्यापुरस्सरं महया वित्थरेण देवयापूर्व काऊण देवो भणइ - भद्दे ! अमुगंमि दियहे विसिसुमिणसइओ पुत्तो ते गच्भे आयाही, तीए भणियं तुम्ह पसाएण एवं होउ, देवो अंसणमुवगओ, अवरंमि य वासरे सो चविऊण उप्पण्णो तीसे गन्भे, जाओ कालक्कमेण, कयं वद्धावणयं, पइट्ठियं से वसुदत्तोत्ति नामं, उचियसमए य गाहिओ कलाकोसलं, नीओ य एगया साहूण समीचे, कहिओ य तेहिं दुवालसवयसणाहो सावगधम्मो, पुचभवजिणवयणाणुरागरत्तत्तणेण य परिणओ एयस्स, तओ पडिवण्णो भावसारं तेण, गहियाणि य दुवालसवि बयाई, परिपालेइ य निरइयाराई, अन्नया य सविसेसजायधम्मवासणाविसेसेण तेण पुच्छिया साहुणो मुणिधम्मं, कहिओ व तेहिं । कहं चिय ? - पंच उ महवयाई गुत्तीओ तिन्नि पंच समिईओ । सीलिंग सहस्साई अट्ठारस निरइयाराई ॥ १ ॥ तापमुह परीसहाय बावीस वाढदुद्दिसहा । विणओ य चउन्भेओ अणिययवासो य मुत्ती य ॥ २ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only तृतीयेऽणुव्रते वसुदत्तकथा. ॥ ३०१ ॥ Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिंडविसुद्धी सुत्तत्थचिंतणं गुरुकुले सया वासो । अणवरयं तवचरणमि उज्जमो कोहचाओ य ॥३॥ गामकुलाइसु पडिबंधवजणं उत्तरोत्तरगुणेसु । अन्भुजमो य निचं बाढं संसारनिवेओ ॥४॥ जहठियजिणमग्गपरूवणा य सत्तेसु करुणभावो य । करणाण निग्गहो तह सतत्तपरिभावणं निचं ॥५॥ इय आजम्मं सुंदर! सुणि धम्मस्स (मुणिधम्मसमग्ग)साहणविहाणं। अचंतमपमत्तेहिं कीरमाणं सिवं देह ॥६॥ एवं मुणीहिं कहिए संवड्डियगाढधम्मपरिणामो । वसुदत्तो भणइ लहुं भयवं! मह देह पवजं ॥ ७ ॥ ताहे मुणीहिं भणियं जणणीजणगाणणुण्णवणपुवं । पवजापडिवत्ती जुजइ नेवऽण्णहा काउं ॥८॥ ता सकुडुंबं मोयाविऊण दिक्खं पयजसु जवेण । सपणाणफलमिमं चिय जं चाओ सबसंगस्स ॥९॥ । एवं मुणीहिं वागरिए गओ सो अम्मापिऊण सगासे, कहिओ नियचित्तपरिणामो, तेहिं भणियं-पुत्त! भुत्तभोगो 8 पच्चजं गिण्हेज्जासि, अणुच्चयाइणा सावगधम्मेण ताव अत्ताणं परिकम्मेसु, तओ सो तेर्सि अप्पत्तियपरिहरणट्टया| दासाहूण समीवे पढंतो गिहत्थवित्तीए चेव अच्छइ, पवजागहणनिच्छएण जोवणत्थोऽवि नेच्छइ परिणे, तं च तहाविहं पेच्छिऊण जणणीए भणिओ वसुदेवो-एस पुत्तो तवस्सिजणसंसग्गीए वासियहियओ नावेक्खइ विसयपडि| वत्ति न मन्नइ दारपरिग्गहं नायरइ सरीरालंकरणं, ता पजत्तं धम्मियसेवाए. सबहा खिवसु एवं दुललियगठिाए, जइ पुण तहाविहसंसग्गीए भावपरावत्ती जायइत्ति, पडिस्सुयमेयं सेटिणा, तओ जे वाणियगा पुत्ता समाणजाइ FACASSEURORSE ( AACARA For Private and Personal Use Only Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir तृतीयेऽणुव्रते वसुदत्तकथा. वयविभवा ताण मज्झे मेलिओ एसो, ते य अच्चंतविसयगिद्धा दविणक्खयं कुणता पियरेहिं सिक्खविजंतावि दुई- श्रीगुणचंद महावीरचत तिदियत्तणेण न तरंति नियत्तिउं, सगेहेसु य धणमलभमाणा चोरियं करेंति । अन्नया य मुसणनिमित्तेण पलोइयं ८ प्रस्तावः तेहिं बहुधणधण्णसमिद्धं समिद्धजन्नजत्तागयतन्निवासिजणसमूहं विमुक्केक्कथेरीरक्खणं महेसरदत्तस्स मंदिरं, तो विजणंति काऊण पयहा रयणीए तं मुसिउं, सो य वसुदत्तो पुक्खरपत्तंपिव पंकत्तकलंकेण सुसाहुच कुसीलसंसग्गेण ॥३०२॥ न मणागपि छिन्नो तेसिं कुसमायारेण, केवलं जणणिजणयाणुवित्तिमवलंबतो रजुबद्धोच वसहो अमुणियपरमत्थो |चेच पढिओ तेसिमणुमग्गेणं, ते य सणियं सणियं तस्स महेसरदत्तस्स गिहे पविसमाणा वसुदत्तेण पुच्छिया-भो हाकिमेत्थ तुम्हे पविसह ?, तेहि भणियं-भद्द! चोरियाए एत्थ पविसिस्सामो, सुसमाहियचरणवयणवावारो तुम एजाहि, तेण भणियं-नाहमिहमागमिस्सामि कुणह जंभे रोयइ, इइ भणिऊण ठिओ सो बाहिं चेव, ते पविद्या भयणभंतरे, मुणिया य थेरीए, तओ सा पायवडणच्छलेण ते मुसंते मा पुत्ता! एवं करेहित्ति भणंती मोरपि-11 कच्छतेण चलणेसु लंछेइ ।। वसुदत्तो पुण चिंतइ पेच्छह अम्मापिऊण मूढत्तं । जं एवंविहदुस्सीलमज्झयारे खिवंतेहिं ॥१॥ नो तेहिं चिंतियमिमं जह पावजणस्स संगइवसेण । जायइ गुणपरिहाणी पडंति विविहाययाओवि ॥ २॥ त सयमवि पावपओयणपसाहणन्भुजओ इमो जीवो । किं पुण कुमित्तसंजोगसंभवंतासुहसहावो ॥३॥ 144 ॥३०२॥ For Private and Personal Use Only Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता परिचमि एए वच्चामि समंदिरंमि एत्ताहे । दुन्नयपरनरजोगे मरणंपि हु आवड जेणं ॥ ४ ॥ अहवा गुरुवणं घिऊण गेहंमि वञ्च्चमाणस्स । संपज्जइ दुधिणओ तम्हा जं होइ तं होउ ॥ ५ ॥ इति परिभाविंतस्स ते सयलं गेहसारं मुसिऊण नीहरिया मंदिराओ, गया उज्जाणे, विविपयारेहिं कीलि| उमारद्धा, वसुदत्तोऽवि गुरुवयणरज्जुसंदाणिओ अचंतविरागमुहंतो तेसिमेव समीवे चिट्ठा, एत्थंतरे समुग्गयं मायंडमंडलं, विहडियं तमकंड, सा य थेरी पाहुडं गहाय गया नरवइसमीवे, कहिओ सयलो जहावित्तो रयणिवइयरो, | राइणा भणियं - अचंतगंभीरयाए नयरस्स को वा कहिं वा नज्जिही ?, तीए भणियं देव ! ते मए सचेऽचि मऊरपिच्छेण पाएस अंकिया अच्छंतित्ति वुत्ते राइणा आणत्ता सवत्थ पुरिसा, सुनिऊणं गवेसंतेहि य तेहिं उज्जाणसं|ठिया दिट्ठा ते सवेऽवि, उवलक्खिया इंगियागारेहिं, उवणीया य नराद्दिवस्स, तेणावि वाहराविया थेरी, तीएवि वसुदत्तं विमोत्तूण अन्ने परिकहिया चोरत्तणेणंति, रन्ना भणियं -कहमेसो चोरमंडलीमज्झगओऽवि न चोरो, थेरी भणइन चलणेसु लंछिओत्ति, राइणा भणियं-जह अदुट्ठो ता मुयह एयं वसुदत्तो भइ - देव ! कहमहं दुट्ठसंसग्गीए वि न दुट्ठो जं ममावि न कुणह निग्गहं, रन्ना कहियं-भद्द! जइ एयंपि जाणसि ता कीस दुट्ठसंसरिंग मूलाओ चिय न उज्झेसि ?, तेण भणियं - देव! दिवं पुच्छह, एत्थंतरे मुणियजहावयितवइयरेण भणियमेगेण पुरिसेण - देव ! एस पवज्जं पडिवजिउ कामो भावपरावत्तिनिमित्तं अम्मापियरेहिं सिणेहाणुबंध कायरेहिं संपयं चेत्र दुल्ललियगोट्ठीए For Private and Personal Use Only Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच ८प्रस्तावः बी व्रते वसुदत्तकथा. ॥३०३॥ SOCIACROSAROSCHACHOCOLANDSAUR पक्खित्तो, ता तदणुरोहो चेव एयस्स अवरज्झइ, एवं निसामिऊण नराहियेण तंबोलाइदाणेण सम्माणिऊण | पेसिओ सगिह, इयरे पुण दुक्खमारेण मारियत्ति । है। इओ य मुणिसमुचियविहारेण भवियपडिबोहमायरंता अप्पडिवद्धावि जिणाणाए पडिबद्धा दुरणुचरतवचरणहापज्जालियकम्मवणावि सबसत्तसुहकारया समोसढा विजयसिंहाभिहाणा सूरिणो, जाया य तियचउक्कचच्चरेसु हरि-18 सभरनिन्भरस्स जणस्स अवरोप्परमुल्लावा अहो! अहो ! अगाहभवोहनिवडतजन्तुगणजाणवत्ता सिवसुहपसाहणासत्ता |भयवंतो सुग्गहियनामधेजा सूरिणो इह समोसरिया, तहाविहाणं नामसवणमेतंपि पावपब्भारपणासणसमत्थं, किं पुण बंदणनमंसणं?, अओ गच्छामो देवाणुप्पिया! तेसिं बंदणत्थं, एवं च सोचा गंतुं पयत्ता सूरिसमीवे | नायरया । सो ग वसुदत्तो राइणा पेसिओ समाणो गओ निययगेहे, कहिओ जणणिजणगाण पुत्ववइयरो जहा तुम्ह कूडवच्छल्लेण अहं अज अकयधम्मो चेव विणासिओ होतो, ता कीस सिणेहवच्छलेण अणत्थपत्थारीए संखिवह जं न मुयह धम्मकरणायत्ति वुत्ते अणुन्नाओ सो जणणिजणगेहि, गओ सूरिणो पासे, गहिया पवज्जा, तओ एगतधम्मकम्मुजओ जाओत्ति। इय इंदभूइ गोयम ! विमुक्कचोरिकपावठाणाणं। मणुयाण उभयलोगेऽवि जीवियं जायए सफलं ॥१॥ इइ तईयमणुवयं । कहियं तइयमणुवयमेत्तो मेहुणनिवित्तिनिप्फण्णं । भण्णइ चउत्थमणुवयमवहियचित्तो निसामेसु ॥१॥ ॥३०३॥ 25% For Private and Personal Use Only Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHASHASOKHASOOL तं मेहुन्नं दुविहं सुहुमं थूलं च तत्थ सुहुममिमं । कामोदएण ईसि जमिंदियाणं विगारोत्ति ॥२॥ थूलं पुण संभोगो मणाइचेट्ठा व भोगकामस्स । तं पुण दुविहं नेयं ओरालविउच्चभेएणं ॥३॥ ओरालियं तु दुविहं माणुसतेरिच्छभेयओ होइ । वेउवं पुण दिवं माणुसर्यपि य वयं तिविहं ॥ ४ ॥ परदारयजणं या सदारतोसो य बंभचेरं वा । तत्य य दिवतिरिक्खं मेहुन्नं पारदारं च ॥५॥ जो परिहरइ सुसड्डो निचलचित्तो सुधम्मपडिवद्धो । सो तबिरओ एसो निरईयारद्वया सम्मं ॥६॥ बजेइ इत्तरियपरिग्गहियागमणं अणंगकीडं च । परवीवाहकरणं कामे तिवाभिलासं च ॥७॥ |किंच-असुइब्भूएसुं निदिएसु पजंतदुहविवागेसु । कामेसु केऽवि धन्ना निसग्गओ चिय विरजंति ॥८॥ अन्ने पुण उन्भडमयणवाणनिभिजमाणसवंगा। अगणियजुत्ताजुत्ता अविभाषियनियतणुविणासा ॥९॥ पररमणीसु परिभोगलालसा मुकलजमजाया। तजम्मे चिय पावंति आवयं किं पुणऽन्नभवे ? ॥ १० ॥ जुम्मं ।। अवरे य तहाविहगुरूवएसओ जायनिम्मलविवेया। परजुबईणं संग विवजमाणा पयत्तेण ॥ ११ ॥ तविरइमेत्तउच्चिय बढुंतविसुद्धधम्मपडिबंधा । होति सिवनयरनिलया सुरिंददत्तोब नरवसहा ॥ १२ ॥ जुम्मं । गोयमेण जंपियं-तइलोक्कदिवायर ! को एस सुरिंददत्तो? कहं वा एयस्स गुरूवएसओ विवेयलाभो ? कहं च पर-| दारविरइमेत्तेणवि से निवाणसंपत्तित्ति ?, जयगुरुणा वागरिय-निसामेसु । इहेव भारहे वासे नीसेसवसुधराभोगभूसणं For Private and Personal Use Only Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद रणंतमणिकिंकिणीमणहरवेजयंतीविराइयसुरमंदिरसमुत्तुंगसिंग सिंगारुब्भडरूवरामागणोवसोहियं विजयपुरं नाम चतुर्थाणुमहावीरच०६ नयरं, तर्हि च समग्गनरिंदवग्गपणयसासणो सिवभद्दो नाम नराहियो, सयलंतेउरप्पवरा रायसिरी नाम से भारिया, ते सुरेन्द्र८प्रस्ताव: तेसिं च देवकुमारोवमरूवो धणुवेयपमुहकलाकोसलपडिहत्यो सुरिंददत्तो नाम पुत्तो, सो य पुत्वभववालगिलाण-18 दत्तकथा. ॥३०४॥ गुरुथेरतवसुसियमुणिजणवेयावच्चावजियपुन्नपन्भारवसविढत्तगाढसोहग्गोदएण पढमुम्मिलंतजोवणगुणतणेण य अचंताभिरामसरीरो जत्थ जत्थ परिब्भमइ तत्थ तत्थ परिचत्तवावारंतराहिं अवगणियगुरुजणलजाहिं अणवेक्खियकुलाभिमाणाहिं नयरनारीहिं अणमिसच्छीहिं पिच्छिज्जइ, बाढमब्भत्थिजमाणो य सेडिसत्थवाहप्पहाणजणजुबईहिं सद्धिं सद्धम्मपरम्मुहो अभिरमइ य, लोगोवि एयमत्थं जाणमाणोऽपि जे चेव रक्खगा तेऽवि लुंपगत्ति चिं-18 तंतो न किंपि जंपइ। अन्नया य नयरंमि जाओ अचंतचोरोवद्दयो, तओ पउरजणेण साहियं नरिंदस्स, तेणावि तजिओ आरक्खिगो, कया य सबप्पएसेसु जामरक्खगपरिखेवा, रयणीए सुत्तपमत्तारक्खिगनिरिक्खणत्थं कयवेसपरावत्तो पाणिपरिग्गहियखग्गो एगागी सयमेव निग्गओ गेहाओ तियचउक्कचच्चराइसु परिम्भमिउमारद्धो य, तहा भमंतस्स य रणो विजणंति पढियमेगेण थेरपुरिसेणं ॥३०४॥ चोरोहिं गेहसारो, हीरइ कुमरेण नयरतरुणिजणो । एवं विहरक्खाए नरिंद सिवभद्द ! भई ते' ॥१॥ CRAC RSS For Private and Personal Use Only Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir HARSASTERS पहिडिओ य राया सोचेम से गओ समीवंमि । अचंतविम्हियमणो सणियं भणिउं पवत्तो य ॥२॥ भो कहसु पढियगाहापरमत्थं तेण जंपियं सुहय!। रायविरुद्धकहाए तीए किं मज्झ कहियाए॥३॥ रन्ना वुत्तं सच्चं एवमिमं किं तु एत्थ एगते । साहिजंतीएवि हुन कोवि दोसो अओ कहसु ॥४॥ तो तेण समग्गो नयरतरुणिविसओ कुमारवुत्तंतो। चोरोवइवसहिओ कहिओ सिवभइनरवइणो ॥५॥ अह तं निसामिऊणं पलयानलभीमकोवरत्तच्छो । आबद्धभडभिउडी राया एवं विचिंतेइ ॥६॥ अहह ! महंतमकजं पावेण सुएण मज्झ आयरियं । हरिणकनिम्मलंपि हु कुलमेवं मइलियं जेण ॥ ७॥ ता किं अहुणच्चिय कंधराए धरिऊण तं महापावं । निद्धाडेमि पुराओ? किं दुचयहि तज्जेमि ॥८॥ अहवा मंतीहिं समं सम्मं वीमंसिऊण तस्सुचियं । पकरेमि जेण सहसा कयाई दूति कजाई ॥९॥ इय चिंतिऊण राया गओ निययभवणं, पसुत्तो सुहसेजाए, जाए य पभायसमए वाहराविया मंतिणो, सिट्टो य तेसिं रयणिवुत्तंतो, मंतीहिं भणियं-देव! अम्हेहिं पुर्वपि कुसमायारवत्ता निसामिया आसि, परं न कोऽवि सो अवसरो जाओ जत्थ तुम्ह कहिज्जइ, रन्ना जंपियं-होउ ताव समइकंतत्वविकत्थणेण, संपयं साहेह, किमयस्स दंडं निवत्तेमो ?, मंतीहिं वागरियं-देव ! अलं दंडेण, एत्तियमेत्तमेव जुत्तं तुम्ह काउं जमेसो निजइ सुसाहुसमीचे, सुणाविजइ धम्मसत्थाई, पढाविजइ रायनीई, उववेसाविज्जए विसिट्ठगोट्ठीसु, एवमवि होही एयस्स कुसमायार ** For Private and Personal Use Only Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ८प्रस्ताव चतुर्थाणुव्रते सुरेन्द्रदत्तकथा. A ॥३०५॥ AAECALLS परिचायपरिणामो, पडिवनं रन्ना, वाहराविओ कुमारो, तेण य समेओ गओ धम्मसेणसूरिणो समीवे, तंच दिऊण निसन्नो उचियहाणंभि, सूरिणाऽवि पारद्धा धम्मकहा ॥ कहं ? भो भो देवाणुपिया! जइ वंछह सिवसुहाई उवलढुं । ता मोत्तूण पमायं जिणिदधम्ममि उजमह ॥१॥ तं नो कुणंति अहिमरविसहरहरिणारिवेरिवायाला । अचंत कुक्यिाविहु जमिह पमाओ महापावो ॥२॥ सो पुण पंचवियप्पो नेयचो निबुईपरिहरूको । मइरा-कसाय-निद्दा-विगहा-विसयाण गहणेण ॥३॥ मइरापाणपरत्वसमणपसरो जुत्तमियरममुणंतो। तं नत्थि नूण पावं जं जीवो नो समायरइ ॥४॥ एत्तो चिय सुरकयकणयपवरपागारगोउरावि पुरी । बारवई जायवसंकुलावि म_मुहं पत्ता ॥५॥ पजंतकयविसाया महापिसाया व दिनअववाया । जणियदुरज्झवसाया न होंति सुहया कसायावि ॥६॥ एएहिं नियमइणो जं जीवा चरियदुक्करतवावि । करडुकुरुडुच सत्तमनरयपुढवीए निवडंति ॥७॥ निहापमत्तचित्तावि पाणिणो पाउणंति न कयावि । सुयनाणधणं पत्तपि कहिंवि हारिति धीरहिया ॥८॥ तेणं चिय चउदसपुषिणोऽवि निन्नद्रुपवरसुयरयणा । मरिउ कालमणंतं अणंतकाएसुवि वसंति ॥९॥ | मोत्तण निययकिच्चं भोयणदेसित्थिरायसंबद्धा । कीरति जेहिं विकहा कह नो ते दुक्खिया होंति ? ॥१०॥ कहवा न बालिसेणवि अच्चग्गलजंपिरति गहिलत्ति । कित्तिजंती? मणुयत्तणेऽवि को वा गुणो तेसिं? ॥११॥ |३०५॥ For Private and Personal Use Only Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेविता जमणिकारिणो ते धुवं किमच्छरियं । सुमरणमेत्तेपिवि दिंति दुरंतं भवं विसया ॥ १२ ॥ विसयाण कए पुरिसा सुदुक्करंपिवि कुणंति ववसायं । आरोर्वेति य संसयतुलाए नियजीवियपि ॥ १३ ॥ चिरकालपालिपि हु कुलमज्जायं चयंति तवसगा । सवत्थ वित्थरंत अवजसपसुंपि न गणंति ॥ १४ ॥ वति यणवग्गं तणं व मन्नंति निययजणगंपि । धम्मोवएसदायगमवहीरंती गुरुजणंपि ॥ १५ ॥ पति विरागिणं विसिगोट्ठि चयंति दूरेण । वछंति नेव सोउं सणकुमाराइचरियाई ॥ १६ ॥ इय ते विसयमहाविसवामूढमणा मणागमेत्तंपि । नेबुइमपावमाणा पावेसु बहुं पसजंति ॥ १७ ॥ बाहिर वित्तीय तहाविहे धम्मेसु संपवत्तावि । पंचग्गिपमुहदुक रतव संताविय सरीरावि ॥ १८ ॥ कम्मवसेणं अप्पुण्णविसयवंछा विणस्सिउं पावा । निवडंति दुग्गईए भागवयसुहं करमुणिच ॥ १९ ॥ इय पंचविहपमायं एवंविहदोसदूसियं नाउं । नरनाह ! तदेगमणो जिनिंदधम्मंमि उज्जमसु ॥ २० ॥ एवं सूरिणा उबट्ठे पमायप्पवंचे सुरिंददत्तकुमारो जायनिम्मलचित्तपरिणामो भणिउं पवत्तो - भयवं । को एसो पुवक हिय सुहंकरमुणी ? कहं वा अपुण्णविसयवंछो सो मरिउं दुग्गइं गओत्ति साहेह ममं, सूरिणा भणियं साहेमि ॥ मालवबिसए विक्खायजसा चक्कपुरी नाम नयरी, तर्हि च अणेगवणियजणचक्खुभूओ पभूयदचसंभारो सोमदत्तो नाम सेट्ठी, तस्स सत्तण्डं पुत्ताणं कणिड्डिया अगेगोवजाइयसयसंपसूया देवसिरी नाम धूया, साय अचंत For Private and Personal Use Only Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ ३०६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रूया संपत्तजोषणावि तहः विहवराभावेण कालं वोलेइ, इओ य तीए नयरीए अदूरे उच्छलंतमहलकल्लोलविदलिय - | कूलाए अणेगविहगकुलकलयला उलदियंतराए जमुषामहानईए उत्तरपुरत्थिमदिसिविभागे वेयपुराणभारहरामा - यणवक्खाणनाणविन्नाणनिउणो नियदरिसणत्थवित्थारणपवणो सवत्थ विक्खायजसो नीसेसभागवयमुपहाणो सुहंकरो नाम लोइयतवस्सी परिवसइ, सो य तवेण य वयणसोहग्गेण भविस्सजाणणेण य जणसम्मयत्तेण य सयलस्सवि नयरजणस्स वाढं पूयणिज्जो, अन्नया य तेण सोमदत्तसेट्ठिणा गुणगणावजियहियएण निमंतिओ सो भोयणकरणत्थं नियमंदिरे, गाढतवयणाणुरोहेण य कइवयसिस्स परियरिओ संपत्तो भोयणसमर्थमि, सपरियणेण परमभत्तीए नर्मसिओ सोमदत्तेण, सम्मज्जिवलित्तंमि भवणभागंमि दवावियं से आसणं, तहिं च निसन्नो एसो, सेट्ठिएहिं कथं परमायरेण चलणपक्खालणं, अणेगकलहोय मयकचोलसिप्पिसंकुलं च पट्ठियं पुरओ परिमलं, सेट्ठी य सयमेव निव्भरभत्तिभरतरलियचित्तो नाणाविहवंजणसणाहं पउरखंडखज्जयाइमणहरं रसवई परिवेसिउं पवत्तो, सावि सेट्ठि - धूया देवसिरी रणंतमणिनेउरारावमुहलियदिसावगासा हारद्धहारकुंडलकडयअंगयरसणापमुहाभरणभूसियसरीरा निसियपवरपट्टणुग्गयदिच चीणंसुया कणयदंडतालविंटमादाय तस्स भोयणं कुर्णतस्स वीजणत्थमुट्ठिया, एत्थंतरे साहिलासं तं पलोइऊण सुहंकरतबस्सी तक्कालवियंभमाणमयणहुयवह पलित्तहियओ विभाविउमारद्धो । कहूं ? - सुसहा पन्नगपम्मुक्कफारफों कारजलणजालोली । उन्भडकोदंड विक्खित्ततिक्खनारायराईवि ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only तुर्येऽणुव्रते सुरेन्द्रद्ताख्याने शुभंकरवृत्तं. ॥ ३०६ ॥ Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहवा कनिसकारिणा असा लज्जा वयापभीरभावमन्भुव MOREMEDABADAAAA नउण इमीए एए कुवलयदलदीहरच्छिविच्छोहा । सोढुं सका निकिवमयरद्धयभावसंवलिया ॥२॥ रइरंभाहरिदइयातिलोत्तमापमुहदिवनारीओ। मन्ने इमीऍ रूवेण लजियाओ न दीसंति ॥ ३॥ विनाणं झाणं सत्थकोसलं देवयाण पूया य । विहलं सबंपि इमं जइ एयमहं न पावेमि ॥४॥ केवलमुवायओ संगमेऽवि एयाए कहवि दिछवसा । सवत्थ वित्थरंतो अवन्नकाओ दुसरोहो ॥ ५ ॥ अहवा किमणेण ?-हरिहरहिरण्णगन्मा वसिट्ठजमदग्गिवा(चा)सदुधासा । हरिणच्छिवयणनिहेसकारिणो जइ पुरा जाया ॥६॥ ता कि अम्हारिसमुणिजणस्स सुद्रुवि विसिद्धधम्मस्स । लज्जा वयणिज वा ? ता पजत्तं विगप्पेहिं ॥७॥ जुम्म । तह कहवि करेमि जहा इमीए सद्धिं समागमो होइ । इय निच्छिऊण गंभीरभावमन्भुवगओ एसो ॥८॥ आगारसंवरं च काऊण जहापउत्तनाएण भोत्तुं पवत्तो, अह तकालवियंभियमयणगुरूवएसबसओ इव जाया से बुद्धी, जहा विषयारेमि एवं सेट्टि, जेण वयणिजविरहिओ एयाए लाभो हवइत्ति, एवं संपेहिऊग सेटिणो पलोय. माणस्स दुस्सहदुक्खावेगसंसूयगो विमुको अणेण सिकारो, ससंभमेण निरूविओ सेहिणा, खणंतरंमि य गए पुणोऽवि पुवक्कमेण पयडियलोमुद्धोसनिन्भरे सवयणभंगभासुरे दोचं तचं च विमुकमि सिक्कारे अहो किपि अचंतमणिहमावडिहित्ति विभावितो जाव सेट्ठी अच्छद ताव सो मुहसुद्धिं काऊग समुडिओ भोयणमंडवाओ, उपविठ्ठो अन्नत्थ, सेट्टीवि ARMACAAAAA ५२ महा० For Private and Personal Use Only Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ ३०७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कज्जसेसं काऊण समागओ तस्समीवं, निवडिओ तस्स चलणेसु जोडिय करसंपुढं च भणिउमादतो भयवं । पसायं काऊण साह, किं कारणं भोयणं कुर्णतेहिं तुम्हेहिं तिक्खुत्तो दुस्सहदुक्खावेगसूयगो इव सिकारो विमुकोत्ति ?, सुहंकरेण भणियं-भो महाणुभाव ! किं साहिज्जइ ?, एरिसा चेव हयपयावइणो रुई, जं सवं चिय रयणं सोवद्दवं निम्मवेइ, तहाहिसयलकलानिलयस्स य गयण सरोवरसहस्सपत्तस्स सुरलोयभवणमंगलकलसस्स पइपक्खं खओ कओ निसायरस्स, नीसेस तिरियलोयपईवस्स कमलसंडजडखंडणेक्कपथंड किरणस्स भयवओ मायंडस्स अणिवत्तयउग्गाढकुट्टदो सेण विणासिया चरणा, अणेगरयणसंभारभरिय गंभीरकुच्छिभागस्स महाजलुप्पीलपवाहिय विवरं मुहसरियासह स्सस्स सायरस्सवि अणवरयसलिलसंहारपच्चलो निवेसिओ कुच्छिमि वज्जानलो, एवं च ठिए वत्थुपरमत्थे किमत्थि कहणिज्जं ? - को वा वोढच्चो चित्तसंतावो ?, सेट्टिणा भणियं भयवं ! न मुणेमि किंपि गंभीरवयणेहिं, ता फुडक्खरं साहेह, किमिह | कारणं?, सुहंकरेण भणियं -कहेमि, अलाहि एत्तो जंपिएण, नियमज्जायाविधाय परिहारसमुज्जओ चेव जइजणो होइ, एवं भणिऊण डंभसीलयाए समुट्ठिऊण गओ सो निययासमपयं, सेट्ठीवि अयंडविड्डरसूयगं से वयणं निसामिऊण संखुद्धो परिभाविउं पवत्तो - अहो तिकालगयत्थपरिन्नाणनिउणेण महातवस्सिणा अणेण नूणं अम्ह किंपि गाढमावयावडणमवलोइऊणवि चित्तपीडापरिहरणट्ट्या न य पयडक्खरेहिं समुल्लवियं कज्जतंतं, ता जावज्जवि न समुप्पज्जइ कोऽवि अणत्थो ताव तं मुनिवरं गाढाणुरोहपुत्र गमापुच्छिऊण जहोचियमायरामित्ति चिंतिऊण गओ तस्स आसमं, For Private and Personal Use Only तुर्याणुत्रते सुरेन्द्रदत्त कथायां शुभंकरा ख्यानं. ॥ ३०७ ॥ Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DKE %95% पडिओ से पाएम, पणयगब्भपत्थणाहिं बहुप्पयारं तहा तहा भणिओ जहा जाओ सो अणुकूलचित्तो, तओ भणियमणेण-अहो सोमदत्त ! बाढमकहणिजमेयं, केवलं तुह असरिसपक्खवाएण विहुरियं मे हिययं, न एत्तो गोविउ पारेइ, अओ आयन्नेहि-भो महायस! जा एसा तुह दुहिया सा थेवदिणमझमि कुडंबक्खयमाणिस्सइत्ति लक्खणेहिं नाऊण मए भोयणे पारद्धे अकंडविणिवायतरलियचित्तेण तहाविहमणिर्ट गोविउमसहंतेण पुणो पुणो सिक्कारो कओ, ता भो महाणुभाव! एयं तं कारणं, इमं च सेट्ठी निसुणिऊण वजासणिताडिओब मुच्छानिमीलियच्छो इव खणं ठाऊण कहवि समवलंबियधीरभावो भणिउमाढत्तोभयवं! एत्तियमेत्तं जह तुमए जाणियं सुबुद्धीए । तह उत्तरंपि किंची जाणिहिसि अओ तयं कहसु ॥ १॥ जं पयडमिमं लोगे जो विजो मुणइ रोगिणो रोग । सो तदुचियमोसहमवि ता भंते ! कुणसु कारुण्णं ॥२॥ तुम्हाणणुग्गहेणं जइ देवगुरूण पूयणं कुणिमो । अम्हे अद्दीणमणा ता किमजुत्तं हवेज इह ? ॥३॥ निरुवगधम्माधाराण तुम्ह नोवेक्षणं खमं जेण । परहियकरणेकपरा चयंति नियजीवियपि ॥४॥ तम्हा उज्झसु संखोभमणुचियं कहह जमिह कायचं । पुवमुणिणोऽवि जेणं परोक्यारं करिसु सया ॥५॥ एवं सेटिणा कहिए ईसिमउलियनयणेणं जंपियं तेण-भो सोमदत्त ! सुनिचलं अंतिउम्हि सुह दक्षिणरजूए, एत्तोच्चिय महाणुभावा गिहिसंग मोत्तूण विजणवणविहारमन्भुवगया पुत्वमुणिणो, सेट्ठिणा भणियं-अच्छउ % % % % % For Private and Personal Use Only Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ ३०८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr ताव तेसिं संकहा, संपइ कालोचियं कहसु, तओ सुचिरं कइयवेण सिरं धुणिऊण भणियं तेण-सेट्ठि ! जर अवस्समेयस्स दोसस्स पडिविहाणं काउमिच्छसि ता निविवरविसिद्धसुसिलिट्ठकट्टघडणाए मंजुसाए अभितरंमि एवं नियधुयं पक्खिविऊण सयलभूसणसणाहं सुमुहुत्तंमि दिसिदेवयाप्यापुरस्सरं जमुणानईजलंमि पचाहिज्जासि, जेण सेस हजणस्स जियरक्खा भवइति, तओ गुरुवयणं न अन्नहा जायइत्ति कलिऊण भयभीएण अविमंसिऊण तदभिप्पायं कालक्खेव परिहीणं जहुत्तसमग्गसामग्गिपुरस्सरं नियधूयमन्तरे पक्खिवित्ता सुहंकरमुणिणो समक्खं दुस्सहवच्चविओगसोगसंभाररुद्धकंठेण अणवरय गलंतनयणबाहप्पवाहपक्खालियगंडयलेण पवाहिया सेट्टिणा जमुणाजले मंजुसा, सा य तरमाणा अणुसोएण गंतुमारद्धा, तेणावि सुहंकरेण आनंदसंदोह सुबहंतेण निययासमंमि गंतूण भणिया नियसिस्सा - अरे तुम्हे सिग्धवेगेण गंतूण कोसमेत्तंमि नइहेद्वभागंमि ठायह, तरमाणि च मंजूसं इंतिं जया पासह तया तं गिहिऊण अणुग्धाडियदुवारं मम पणामेज्जहत्ति सोचा गया ते, ठिया य जहुत्तठाणंभि, सा य मंजूसा कलोलपणोलिजमाणी जाव गया अद्धकोसमेगं ताव नइजले मज्जणलीलं कुणमाणेण एगेण रायपुत्त्रेण दूराओ चिय पलोइया, भणिया य नियपुरिसा- अरे घावह सिग्धवेगेण, गिण्हह एवं वारिपूरेण हीरमाणं पयत्थंति, पविट्ठा य वेगेण पुरिसा, गहिया अणेहिं मंजूसा, समप्पिया य रायपुत्तस्स, तेणावि उग्घाडिया सको उहल्लेण, पाया- लकन्नगद्य सवालंकारमणहरसरीरा नीहरिया तत्तो सा जुवई, गहिया य सहरिसेण रायपुत्त्रेण, चिंतियं चाणेण अहो ! For Private and Personal Use Only तुर्याणुत्रते सुरेन्द्रदत्त कथायां शुभंकरारूपानं. ॥ ३०८ ॥ Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणुकूला मह कम्मपरिणई, केवलं एवंविहं रमणिरयणं एवं उज्झमाणेग केणवि नूणमप्पणो असिवपसमणं संभावियं भविस्सइ, ता न जुत्ता रित्ता चेत्र मंजूसा पवाहिति परिभाविऊण सन्निहियवणदुडुमकडं तदनंतरे निक्खिविऊण निविडं दुवारं च से बंधिऊण भगवइ जमुणे मा मे कुप्पेज्जसित्ति भणिऊण पुबनाएण पवाहिया एसा, | पावियसुरलोयसिरिसमुदयं व अप्पाणं मन्नतो तं कुवलयदलदीहरच्छि घेत्तूण गओ जहागयं, साथि मंजूला जलेण वुज्झमाणी गया कोसमेतं, दिट्ठा य सुहंकरसीसेहिं, तओ नियगुरुणो विनाणाइसयं वन्नमाणेहिं नईमज्झे पविसिऊण आयडिया मंजूसा, उवणीया य गुरुणो, तेणावि असंभावणिज्जमानंदसंदोह सुबहंतेण संगोबिया गेहमज्झे, भणिया य नियसिस्सा - अरे अज्ज अहं देवयापूर्यं महया वित्थरेण भवण मंतरे ठिओ सबरयाणें करिस्तामि, ता तुम्भेहिं वाढं निविजणं कायचं, पडिवन्नं तेहिं, अह समागयंमि रयणिसमए मयरद्धयनिद्दयसर सहस्स पहारजजरियसरीरो पवरविलेवणकुसुमतंबोलप्प मुहोवगरण परियरिओ पिहिऊण सयलगेहदुवाराहं तं मंजुसमुग्धाडित्ता एवं जंपिउं पवत्तो हरिणच्छि ! किसोअरि ! पीणत्थणि | कमलवयणि ! वरतरुणि! | पम्मुक्कभयासंकं संपय मं भवसु दइयं व ॥१॥ चच विगासमहुणा लोयणकमलं मणोरहेहिं समं । सुगणु ! तुह संगमेणं मयणोऽवि मणागमुवसंम ॥ २ ॥ एत्थंतरंमि गादावरोहसंजायतिधवरकोवा । तण्हाछुहाकिलंता अचंतं चावलोवेया ॥ ३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ८प्रस्ताव ॥३०९॥ वणदुटुमक्कडी तडतडत्ति पुच्छच्छडाहिं ताडती । तत्तो विडंत्रियमुही नीहरिया घुरुहुरंती सा ॥ ४ ॥ जुम्मं । तुर्याणुव्रते आ कीस चंदवयणे! करेसि रोसंति वाहरंतो सो। चुंवणवंछाए मुहं तदभिमुहं जाव संठवइ ॥ ५॥ सुरेन्द्रदत्तपढम चिय ताव तडत्ति तोडिओ तिक्खदसणकोडीहिं । तीए नासावंसो मूलाओ चिय समग्गो सो॥६॥ कथायां तयणंतरं च अइतिक्खनक्खनिवहेण दारियं अंगं । आमूलाओ उम्मूलियावि सवणावि से ताए ॥ ७॥ | शुभंकरा ख्यानं. अणिवारियपसराए एवं तीए हणिजमाणेण । तेण भयकंपिरेणं वाहरियं गुरुसरेणेवं ॥८॥ रे रे धावह सिस्सा! उग्घाडह मंदिरस्स दाराई। एस पिसाईए अहं निजामि जमस्स गेहम्मि ॥९॥ इय एवं वाहरंतो भयवससंखुद्धमाणसो धणियं । तायारमलभमाणो नहदंसणुलिहियसबंगो ॥१०॥ रोसुकडाए वणमक्कडीए पुणरुत्तघुरुहुरंतीए । तह विणिहओ वरागो जह सो पंचत्तमणुपत्तो ॥११॥ अह उग्गयंमि दिपयरे समागया तस्स सीसा, कया तेहिं सद्दा, न देइ सो य पडिवयणं, तओ विहाडियाई कवाडाई, दिट्ठो विणट्ठजीओ सुहंकरो, सावि वणमक्कडी उग्धाडिएसु कबाडेसु पलाइऊण गया जहागयं, सीसेहि-14 वि अमुणियपरमत्थेहिं कओ सुहंकरस्स सरीरसक्कारो । ॥३०९॥ इय भो कुमार! विसयाउराण अप्पुन्नवंछियट्ठाणं । निवडंति आवयाओ पयडंचिय जेण भणियमिमं ॥१॥ सलं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा । कामे पत्थेमाणा, अकामा जंति दुग्गई ॥२॥ -CAAASA For Private and Personal Use Only Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एत्तो चिय जुबईणं सवियारपलोयणंपि वजेति । मुणिणो महाणुभावा निवसंति य सुन्नरन्नेसु ॥३॥ एवं सोचा सुरिंददत्तकुमारो जायगाढविसयविरागो भावसारं सुरिणो निवडिऊण चलणेसं भणि पवत्तो-भयवं !! विरत्तमियाणि विसयपडिबंधाओ मह मणं, ता देह सबविरई उत्तारेह भवन्नवाओ मोयावेह पुवदुचरियसत्तुनि वहाओत्ति, सूरिणा जंपियं-भो महायस! अज्जवि भोगफलकम्मसम्भावओ नत्थि तुह पवजाजोग्गया, ता गिहPथधम्मेणावि केत्तियपि कालमत्तणो तुलणं कुणसु, नरिंदेण भणियं-बच्छ ! समए चिय किरतं सर्व सुहावहं होइ, न य गिहवासेवि दंतिदियाणं पयणुकामकोहलोहाणं सच्चनुसाहुपूयापरायणाण विसिट्ठणयपरिपालणपराण पुरिसाण न धम्मो होइ, ता पुत्त ! पत्तथैरत्तो पवजं गिव्हिज्जासि, संपयं तु कयसदारपरितोसो परिचत्तकुमित्तसंगो अणवरयधम्मसत्थसवणतलिच्छो अणवच्छिन्नसप्पुरिसाचरियनयाणुसरणपरिणामो गिहे चिय निवससुत्ति, दक्खिन्नसीलयाए पडिवन्नं कुमारण, नियदारपरिभोगं च मोत्तूण गहियं परित्थीपञ्चक्खाणं, अन्ने य जिणवंदणपूयणगिलाणपडिजागरणोसहदाणपमुहा बहवे अभिग्गहविसेसा, पडिपुन्नमणोरहो य राया कुमारेण सहिओ वंदिऊण सूरि गओ जहागयं, अवरवासरे य एगेण केलीकीलेण भणिओ कुमारो-मो मित्त! सुंदरं कयं तुमए जं सयं चिय मुक्को पर दारपरिभोगो, अन्नहा दुचरियनिसामणुप्पन्नकोवेण राइणा एत्तियदिणाणि दूरदेसंतरातिही तुमं कओ इंतो, ४ कुमारेण कहियं-अरे किं सचमेयं, परिहासो वा?, तेण भणियं-सचं, कुमारेण जंपियं-जइ एवं ता जहट्ठियं For Private and Personal Use Only Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच ८प्रस्ताव ॥३१ ॥ RECCACASEASONGS मूलाओ साहेसु, तओ तेण सिट्ठो नरिंदमंतिजणण्णुण्णुल्लायवुत्तंतो, तं च सोचा समुप्पन्नलजो कुमारो परिचिंति तुर्याणुव्रते पवत्तो-अहो अचंतमजुत्तमायरियं मए, जंतहाविहं कुलक्कमविरुद्धं कुणंतेण न गणिओ लोयप्पवाओ न वीमंसिओ सुरेन्द्रधम्मविरोहो न य परिभावियं तायस्स लहुयत्तणं, एवं च ठिए कहं विसिटपुरिसाण निययवयणं दंसिंतो न लज्जामि, दत्तकथा. तम्हा न जुजइ इह निवसिउंति चिंतिऊण मज्झरत्तसमयंमि निम्भरपसुत्ते परियणे तोणीरं धणुदंडं च घेत्तूण पुच-18 देसाभिमुहं गंतुं पयट्टो। इओ य-गयणवल्लहनयरे विजाहररन्ना महावेगनामेण पुट्ठो नाणसाराभिहाणो नेमित्तिओ, जहा एयाए मह धूयाए वसतंसणाए को पई होहित्ति ?, तेण? कहियं-जो सावत्थीनयरीनाई कुसुमसेहरनरिंदं नियभुयबलेण एगागी हयपरक्कम काहित्ति, एवं सोचा विजाहरेण भणिया खेमंकराइणो विजाहरा-अरे गच्छह तुम्भे सावत्थिं नयरिं, तहिं च ठिया जया एवंविहपरकम पुरिसं पेच्छह तया तं झत्ति घेत्तूण मम समप्पेह, जं देवो आणवेइत्ति सिरसा पडिच्छिऊण से सासणं गया ते तं पुरिं, सुरिंददत्तकुमारोऽवि एगागी नाणाविहदेसेसु परिभमंतो पत्तो तामेव नयरिं, ठिओ य नयरीसमीववत्तिणो उज्जाणस्स एगंमि लयाहरे, तहिं च जाव पसुत्तो अच्छइ ॥३१॥ ताव कयवयचेडीपरिवुडा कुसुमसेहररायसुया इओ तओ कीलंती कहावि कम्मविचित्तयाए एगागिणी पविट्ठा तमेव लयाहरं, दिट्ठो अप्पडिमरूवो पसुत्तो कुमारो, सा य तीए समुप्पन्नतिवाणुरागाए पडिबोहिऊण पारद्धो अणु %AC%AAAAAACANCE For Private and Personal Use Only Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कूलवयणेहिं उवसग्गउं, नियमविग्धकारिणित्ति कलिऊण निम्भत्थिया सा कुमारेण, कहं ? - पाविट्ठि दुःसीले ! निकारणधम्मवेरिणि ! तुमं मे । अवसर चक्खुपहाओ पज्जत्तं दंसणेण तुहं ॥ १ ॥ तुम्हारिसीण भासणेऽवि असणिव दारुणा पडइ । इहपरभवपडिकूला अञ्चत्यमत्थपत्थरी ॥ २ ॥ इय एवमाश्वयणेहिं तज्जिया सा न जाव नीहरइ । ताव करे घेत्तूणं कुमरेण दढेण निच्छूढा ॥ ३ ॥ आ पाव! पावसि तुमं एत्तो पंचत्तमिति य जंपित्ता | कवडेण सयंचिय नहसिहाहिं उल्लिहियकायलया ॥ ४ ॥ सा दूरे ठाऊणं हलबोलं काउमेवमारद्धा । रे रे लयाहरगयं गेण्हह पुरिसाहमं एयं ॥ ५ ॥ कुलजुबइदूसिया जेण मज्झ एवंविहा कयावत्था । तमुवेहता संपइ दंसिस्सह कह मुहं रन्नो १ ॥ ६ ॥ एवं सोच्चा नरवइयाय वयणं परूढकोवेहिं । आरक्खियसुहडेहिं लयाहरं वेढियं झति ॥ ७ ॥ मsaare हिय व निठुरं पाणिणो धणुं घेत्तुं । तत्तो विणिक्खमित्ता तेसिं ठिओ चक्खुपसरंमि ॥८॥ ता तेहिं समगं पम्मुक्का चक्कसेलसरनियरा । छेयत्तणेण पंचाविया य सयला कुमारेण ॥ ९ ॥ हरणेहि य हुं निहया गोमाउयच ते तेण । अह निसुणियवत्तंतो रायावि समागओ तत्थ ॥ १० ॥ अश्चंत जायकोवो जुज्झेणोवडिओ सयं चेव । करितुरयरहारूढा वियंभिया सुहडसत्थावि ॥ ११ ॥ तो चउदिसि पसरियउ सन्तुसिन्नु, पेक्खेवि अखुद्ध जिंव कुंभयन्नु । For Private and Personal Use Only Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणचंद महावीरच० ८प्रस्ताव: तुर्याणुव्रते सुरेन्द्र दत्तकथा. ३११॥ आपीडियपरियरु सो कुमारु, जुज्झणहं लग्गु सो दढप्पहारु ॥ १२॥ सरकप्पियपक्खरतुरयघटु, मुसुमूरियवेरियरुडमरटु । जमु संमुहु किर जो खिवइ चक्खु, सो तक्खणि जायइ जमह भक्खु ॥ १३ ॥ एगोऽविहु भयवसकंपिराण, सोणेगरूव हूओ वेरियाण । लक्खिजइ बाणमुयं तु केम्व, जलधार मुयंतउ मेहु जेंव ॥ १४ ॥ उबद्धजूडभडभिउडिभीस, तिखंडिय सत्तहुं सरहिं सीस । तमुदारुणरणकम्मेण तुह, ओइन्ननहंगणि तियसवंठ ॥१५॥ अवरोप्परुपेल्लिरि सुहडसत्थि, नासणह पयट्टइ अइव हत्थ । विवरंमुहि सावत्थीए नाहि, पवहंतइ नररुहिरप्पवाहि ॥ १६ ॥ समरंगणि जोअइ जा कुमार, संचिट्ठइ रिउ अकयप्पहार । ता पुत्व भणियविजाहरेहि, अवहरिवि हरिसभरनिम्भरेहि ॥ १७ ॥ उवणीओ खयरनरनायगस्स, हरिसूससंतमुहपंकयस्स । अह आगयंमि सुदिणंमि तेण, परिणाविओ कुमरु वसंतसेण ॥१८॥ ॥ ३११॥ For Private and Personal Use Only Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सो तीए सहिउ पंचप्पयार, उवभुंजइ विसय अणन्नसार । अइनिचलु पालइ जिणह धम्मु, दूरेण विवजइ पावकम्मु ॥ १९ ॥ कालक्कमेण विसहय विरत्तु, पवज लेइ सुपसंतचित्तु । तवचरणेहिं झोसिउ पावकम्मु, पञ्चक्खु विरायइ नायधम्म ॥२०॥ अह ससहरनिम्मलु पाविवि केवलु, पडिबोहिवि चिरु भवजणु । सिवभइह नंदणु भवभयमहणु, वच्चइ निवइ वरभवणु ॥२१॥ इय परदारनिवित्तीमित्तंपि अणुवयं पवन्नमिमं । एवंविहोत्तरोत्तरकालाणनिबंधणं होइ ॥ २२ ॥ भणियं चउत्यणुव्वयमेत्तो पंचमगमाणुपुबीए । सयलपरिग्गहपरिमाणकरणविसयं पयंपेमि ॥१॥ दुविहो परिग्गहो सो थूलो सुहुमो उ तत्थ सुहुमो य । परकीएसुवि वत्थुसु ईसि मुच्छाइपरिणामो ॥२॥ थूलो पुण नवमेओ धणे य धन्ने य खेत्तवत्थूसु । रुप्पसुवन्नचउप्पय दुप्पयकुविएसु मुणिअबो ॥३॥ इय नवभेयपरिग्गहपरिमाणं भावसारमादाय । पंचइयारविवजणपरायणो सावगो मइमं ॥४॥ खेत्ताइहिरन्नाईधणाइदुपयाइकुप्पमाणकमे । जोयणपयाणबंधणकारणभावहिं नो कुणइ ॥५॥ जो पुण अइलोभवसा भणिजमाणोवि गुरुजणेण बहुं । थेवंपि नो परिग्गहपरिमाणवयं पवजेइ ॥६॥ AAMSAXAT94-9 For Private and Personal Use Only Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पश्चमेऽणुव्रते वासवदत्तकथा. श्रीगुणचंद 8 सो दविणाइनिमित्तं वचंतो दूरदेसनयरेसु । पविसंतोऽवि समुद्दे कुणमाणो विविहयवसायं ॥ ७॥ महावीरच. लाभेऽविहु पइदिणवढमाणधणवद्धणाभिलासो न । अचंतमहादुक्खं वासवदत्तोच पावेइ ॥ ८॥ विसेसयं तीहिं। ८प्रस्ताव: अह गोयमेण भणियं वासवदत्तो जिणिंद ! को एस। जयगुरुणा संलतं सीसय ! सम्म निसामेसु ॥ ९॥ ॥ ३१२॥ कणयखलंमि महानयरे सुवलयचंदो नाम सेट्ठी, तस्स धणा नाम गिहिणी, तेसिं अचंतवलभो सबकलाकलावल निउणो वासवदत्तो नाम पुत्तो, सो य महारंभो महापरिग्गहो गरुयलाभसंभवेऽवि महालोभसंगओ, अहोनिसं दबोवजणोवाए पयर्टतो कालं वोलेइ, तस्स य अम्मापिउणो अचंतसावगधम्मकरणसीलाणि जिणवयणायनणेण मुणियअविरइकडविवागाणि तं नियपुत्तं अणवरयाणेगपावडाणपसत्तं पलोइऊणं भणति-वच्छ! सुमिणोवमं जीवियं असारा विसया सकजाणुवत्तणमेत्ता सयणसंजोगा खणविपरिणामधम्मा रिद्धिसमुदया, अओ किंनिमित्तं न कुणसि धणधन्नखित्तवत्थुहिरन्नसुवन्नदुपयचउप्पयाइसु इच्छापरिमाणं, न वा परलोयसुहावहं समजिणेसि धम्म, तहा |वच्छ ! पिउपियामहपुरिसपरंपरागयं न माइ दवं, अओ निरत्थओ तदजणगाढपरिस्समो, अह अपुर्व लछि उववजिउमिच्छसि तहावि जहासत्तीए इच्छापरिणाममेव कल्लाणकारगमिचाइ बहुप्पयारवयणेहिं पन्नविजमाणोऽवि न पडिवजइ कम्मभारियतणेण एसो मणागपि तवयणं, सच्छंदचारित्ति उवेहिओ अम्मापिऊहिं । अन्नया य देसंतरागयवणिया पुच्छिया वासवदत्तेण-अहो कि तुम्ह देसे भंडमग्घइ, तेहिं कहियं-अमुगंति, तओ तयणनिसाम OGORAGOCHARGA AAAAAAACANA ॥३१२॥ For Private and Personal Use Only Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CTEGORRUGARCANOARCH णचउग्गुणीभूयलोभाभिभूओ तद्देसोचियभंडनिवहभरियं सगडिसागडं गहिऊण पयट्टो देसंतरं, निसिद्धो य वाढं जणणिजणगेहि, तहावि न ठिओ, एवं च सो अणुदिणं वचंतो गओ तामलित्तिं नयरिं, विणिवट्टियं भंडं, समासाइओ दसगुणो लाभो, वियंभिओ य अचंतलोभसागरो, जाया बहुययरा तदजणवंछा, अन्नदिवसे य दुवारगएण तेण दिहाई दूरदेसागयाइं विविहसारवत्थुमरियाई जाणवत्ताई, ताणि य पेच्छिऊण पुच्छिओ तवाणियगो अणेणं भो महायस! कत्तो आगयाई एयाइंति ?, तेण जंपियं-कलहदीवाओ, वासवदत्तेण कहियं-भह ! इहच्चभंडेण तत्थ ६ गएण केत्तिओ संपजइ लाभो ?, तेण भणियं-वीसगुणो, वासवदत्चेण जंपियं-किं सचमेयं ?, तेण कहियं-अज्ज। किमसच्चभासणे फलं?, एवं च निसामिऊण वासवदत्तेण भाडियाइं जाणवत्ताई भरियाई विविहकंसदोसभंडस्स, पहिओ कलहदीवाभिमुहं, अह परियणेण भणिय-चिरं विमुक्काण जणणिजणगाणं । होही दढमणुतावो सामिय! तुम्हें विओगंमि॥१॥ ता सारिजउ गेहं सम्माणिजंतु सयणवग्गावि । पुणरवि अत्थोवजणकरणे को वारिही तुम्हं? ॥२॥ इय भणिए सो रुट्ठो निद्हरवयणेहिं भणिउमाढत्तो।रे तुम्ह कोऽहिगारो एवंविह भाणियबंमि ॥३॥ न तुमाहितोवि अहं जुत्ताजुत्तं मुणेमि किं पावा!। लद्धावयासया अहव किं न भिचा पयंपंति ? ॥४॥ एवं खरफरुसगिराहिं तजिया तेण तह अदोसावि । लज्जामिलंतनयणा जह ते मोणं समल्लीणा ॥५॥ ACCCCCCCCCIRCCRESCESS ५३ महा. For Private and Personal Use Only Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥ ३१३ ॥ www.kobatirth.org तेणावि सायरे पवाहियाई जाणवत्ताई, सिग्घवेगेण गंतुं पयत्ताणि, कमेण पत्ताइं कलहदीवं, उत्तारियं तेहिंतो भंड, विकिणियं च, जाओ बहुओ लाभो, ठिओ य कइव्यवासराई, गहिया मणिमोत्तिय संखपट्टसूत्तपमुहपहाणकयाणगाई, तओ पयट्टो तामलित्तिसंमुहं, इंतस्स य जलहिमज्झे दंसिओ निज्जामगेहिं तस्स रयणदीवो, को उहल्लेण पुच्छिया अणेण - अरे किमिह उप्पञ्जइ ?, निजामगेहिं भणियं - कक्केयण पउमरागवजिंदनीलाइणो महारयणविसेशा ते इह उप्पज्जंति, तेसिं समीवधरणमेत्तेण विद्दवइ रुंददारिद्दोवद्दवो न पासंमि परिसप्पs दप्पु भडो सप्पो, न नियडमकमइ चंडावि डाइणी, खिल्लियमुहोब न कडुयमुलवइ खलयणोचि, तओ अपरिकलियविणासेणं जायतग्गहणगाढाभिलासेण भणियं वासवदत्तेण - अहो निजामगा! जइ तत्तो हुत्तं नेह मह नावं तो चउग्गुणं देमि मे विर्त्तिं, तेहिं भणियं निज्जर, केवलं उवलपडलाउला भूमी, जइ कहवि नावा भंगं पाविजा ता सवनासो जाएजा तओ ईसि विहसिऊण वासवदत्तेण भणियं जर गयणं निवडेज्जा पल्हत्थेज्जा रसायले पुढवी । कुलगिरिणो य सपक्खा होउं व महीए वजेजा ॥ १ ॥ जलनिहिणो वा वेलाए. महियलं सङ्घओवि बोलिजा । जणणी वा नियपुत्तं हणेज पढमप्पसूर्यपि ॥ २ ॥ तारन्नपि सुन्नं होज्य जयं किं तु हवइ नो एयं । नय सङ्घहावि अघडंतमेरिसं चिंतिउं जुत्तं ॥ ३ ॥ जो पुणइय चिंताए पट्टए सो धुवं महामुद्धो । करकमलगोयरगयं लच्छि हारेज किं चोजं ? ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only इच्छाऽपरि माणे वासवदत्त दृष्टान्तः. ॥ ३१३ ॥ Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr तामेलह कुविगप्पं नावं पेलेह दीवयाभिमुहीं । उच्छिंदह दारिदं आचंदं रयणगहणेण ॥ ५ ॥ एवं च तेण कहिए पणट्ठविणिवाय भएहिं निजामगेहिं पवाहिया तदभिमुही नावा, जाव य केत्तियंपि विभागं गया ताव समुट्ठिओ महामगरो, तेण य मंदरमंथेणेव महियं जलहिजलं, उच्छालिया पर्यडकलोला, तदभिघाएण भिन्ना सयसिकरा नावा, निबुड्डो अत्थसारो, खरपवणपहओ पलालपूलउच्च दिसो दिसि पलीणो परियणो, वासव - दत्तोऽवि कहकहवि समासाइयफलहखंडो वेलाजलेण वुज्झमाणो पाविओ सायरस्स पारं, कंठग्गगयजीविओ य दिट्ठो एगेण तावसेणं, तेणावि करुणाए नीओ निययासमे, काराविओ कंदमूलाइणा पाणवित्तिं, वीसंतो कइवयवासराई, समुवलद्धसरीरावद्वंभो य पडिओ नियनयराभिमुहं ओ तस्स अम्मापणो परलोयं गयाई, जाया य नयरंमि वत्ता, जहा - वासवदत्तोवि समुद्दे वोहित्थभंगेण विणासं पाविओ, ओच्छिन्नसामियंतिकाऊण गहियं धणकणसमिद्धपि तम्मंदिरं नरिंदेण, वासवदत्तोऽवि संवलरहियत्तणेणं धणविणाससमुत्थसोगेण य किलंतदेहो महाकटुकप्पणाए संबच्छरमेत्तकालेण संपत्तो कणगखलनयरं, पविसिउमारद्धो य नियमंदिरं, एत्यंतरे उग्गीरियदंडा पधाविया नरवइनिरूविया घरारक्खगपुरिसा, भणिउं पवत्ताअरे कप्पडिय ! घरसामियव निष्भओ कीस इह पविससि ?, किं न याणसि इमं रण्णो गिहं १, तेण भणियं-किमेयं कुवलयचंदसेट्ठिणो न भवइ ?, तेहिं कहियं-हंत हुतं पुचकाले, संपयं पुण असामियंति रन्नो जायं, तेण भणियं For Private and Personal Use Only Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ८प्रस्ताव: इच्छाऽपरि माणे वासवदत्तदृष्टान्त, ॥३१४॥ CAMERA अरे! कहं मइ जीवंते असामियंति वुच्चइ ?, किमहं कुवलयचंदसेद्विणो पुत्तो वासवदत्तो तुब्भेहिं नो सुणिो न वा दिवोत्ति बुत्ते कि रे! मिच्छा पलवसित्ति निभच्छिऊण कंधराधरणपुवयं निद्धाडिओ सो तेहिं मंदिराओ, गओ य एसो सयणाणं समीवे, तेहिवि मा पुवदेयं दवं मग्गिस्सइत्ति कुविगप्पेण पञ्चभिजाणंतेहिवि न नयणमेत्ते, णावि संभाविओ, गहिलोत्ति कलिऊण रत्नावि उवेहिओ। अह गेहसयणधणनासपमुहदुहजलणजालपजलिओ। सो चिंतिउं पवत्तो विवन्नलायन्नदीणमुहो॥१॥ कह अकलियपरिसंखं पुरिसपरंपरसमागयं दबं? । कह वा सभुयबलेण य विढत्तयं तं च अइबहुयं ॥२॥ एकपयं चिय सचं निन्नहूँ मज्झ मंदभग्गस्स? । हा! किं करेमि संपइ ? पुवं व हवेज कह व धणं?॥३॥ एमाइविचित्तविकप्पकप्पणुप्पन्नचित्तवामोहो । उम्मत्तयं उवगओ हिंडंतो नयररत्थासु ॥४॥ चिरकालमाउयं पालिऊण बहुरोगसोगसंतत्तो । अट्टज्झाणोवगओ मरि तिरियत्तणं पत्तो ॥५॥ इय गोअम! जीवाणं परिग्गहारंभविरइरहियाणं । निवडंति आवयाओ जं तेणेमं गुणकरंति ॥६॥ पंचवि अणुवयाई सोदाहरणाई ताव कहियाई । एत्तो गुणवयाई तिन्निवि लेसेण साहेमि ॥१॥ उड्डाहोतिरियदिसिं चाउम्मासाइकालमाणेणं । गमणपरिमाणकरणं गुणवयं होइ पढममिह ॥२॥ बजइ उड्ढाइक्कममाणयणप्पेसणोभयविसुद्धं । तह चेव खेत्तबुद्घि कहिंवि सइअंतरद्धं च ॥३॥ ROCHAKRONACROSACCORREC ॥३१४॥ For Private and Personal Use Only Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org GANAGASARASRAKAAR एयंमि निरइयारे दिसिवए भावओ पवत्तंमि । होइ सिरी मोक्खोविय जिणपालियसावगरसेव ॥४॥ गोयमसामिणा भणियं-जयनाह ! को एस जिणपालिओ?, सामिणा कहियं-भो! निसुणेसु पुंडवड्णनयरे विकम-18 | सेणो राया, मयणमंजसा से पट्टमहादेवी, सुबुद्धी अमच्चो, तत्थ य नयरे जिणभावियमणो जिणदत्तसेट्ठिस्स सुलसाए भारियाए पुत्तो जिणपालिओ नाम सावगो परिवसइ, तेण य गुरुसमीवे दिसागमणपरिमाणवयं गिण्हतेण पन्नासं पन्नासं जोअणाई चउसुवि दिसासु मुक्काई, एवं सो उत्तरोत्तरगुणभासं कुणमाणो अच्छइ । इओ य विक्कमसेणनराहिवस्स पचंतदेसवत्ती सीहसेणो नाम भिल्लाहिवई देसं विद्दविउमाढत्तो, तस्स य उपरि महया संरंभेण| हरिकरिरहजोहवूहपरिगओऽविक्खेवेण चलिओ विकमसेणो, भणिओ य सुवुद्धिणा अमच्चेण-देव! किं तस्स गोमाउयस्स उवरिं तुम्हे विजयजत्तं करेह ?, तुम्ह पयपयावपडिहयपरकमस्स का तस्स सत्ती ?, ता नियत्वह नयरी हुत्तं देह ममाएसं जेण तहा करेमि जहा पडिच्छइ सिरेण सो देवस्स सासणंति वुत्ते चउरंगिणीसेणासणाहो तपेसिओ अमचो, सीहसेणोऽवि तं सबलवाहणं इतं चारपुरिसेहिंतो नाऊण विसमगिरिकडगं घेतूण ठिओ, अम चोऽवि तहाठियं पेच्छिऊण जुज्झिउमपारयंतो तमेव गिरिकडगं परिवेढिऊण तत्थेव आवासिओ, दुग्गमग्गत्तणओ य धनघयाई महग्घीहूयं सिबिरे, जणपरंपराए य निसुणियमेयं जिणपालिएण, तओ भूरिघयभरियदोट्टियगाणं करभेसु समारोविय वणियजणसमेओ चलिओ सो सिविराभिमुह, सो य सीहसेणो दुग्गे निरुद्धजवसाइपयारो For Private and Personal Use Only Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद द अच्छिउमचायतो सारधणं करितुरयसाहणं च समादाय पलाणो रयणीए, मुणियवित्तंतो य अमच्चो लग्गो तस्स द्धार महावीरच० माणे जिनअणुमग्गेण, नासंतो य दस जोअणे गंतूण वेढिओ सबतो अमच्चसेन्नेण, तओ सो सीहसेणो वहलतरुवरगहणमि गिरि८ प्रस्तावः पालितज्ञातं निकुंज निस्साए काऊण ठिओ, इओ य जिणपालिओ पुवावासियसिविरसंनिवेसं पत्तो समाणो दिसिपरिमाणं चिंति॥३१५॥ 8ऊण भणइ-अहो किमहमिहि करेमि?, पन्नासं जोयणाई मे परिमाणं, तं च इत्तियमेत्तेणं चिय पडिपुन्नप्पायं, सेनं । |च दसहि जोयणेहिं दूरीभूयमियाणि, ता वलिस्सामि पच्छाहुत्तं, न कोसमेत्तंपि एत्तो पच्चिस्सामि, सहाइणा बलियलोगेण भणियं-अहो! मा मुहा अत्यहाणि करेहि, तत्थ गयस्स तुह पभूयदविणलामो जायइ, तेण भणियं-अलाहि तेण दवेणं जं नियमखंडणाए संपज्जइ, अह तस्स नियमनिचलचित्तपरिक्खट्टया सुरो एगो । कयउन्भडसिंगारो सवत्तो पुरिसपरिअरिओ ॥१॥ सत्थाहिवरूवघरो सुरलोआओ समोअरेऊणं । पचासन्नो ठाउं गयंपिउं एवमाढत्तो ॥२॥ हंहो सावय ! नो कीस एसि तं सप्पिविक्कयनिमित्तं? | जिणपालिएण भणियं वयभंगो हवइ जइ एमि ॥३॥ ॥३१५॥ देवेण जंपियं सुख वंचिओ तंसि धुत्तलोएण । जो कुग्गहेण हारसि करट्ठियपि हु महालाभं ॥४॥ अहवा वयस्स भंगे पावं होइत्ति तुज्झ संकप्पो। ता तल्लाभेणं चिय पायच्छित्तं चरेज्जासु ॥५॥ जिणपालिएण वुत्तं अहो किमेवं अणग्गलं वयसि ?। वञ्चति धम्मगुरुणो कयाई किं भवसत्तजणं? ॥६॥ RECRUGRLSOCIAACAMACAD CRICAAAAKARANAS For Private and Personal Use Only Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हंत ! जइ तेऽवि वंचंति कहवि ता किं न चंदबिंबाओ । अमयमयाओ निवडइ पलित्तगयणानलकणोली ? ॥७॥ किं वा न सूरर्वित्रे विष्फुरमाणेऽवि तिमिरसंभारो । भरियभुवणंतरालो वियरइ स्यणिं अकालेऽवि ? ॥ ८ ॥ ता भद्द ! नेव जुज्जर गुरुहुत्तं तुज्झ जंपिउं एवं । अञ्चतपावजणगत्तणेण मज्झंपि नो सोउं ॥ ९ ॥ जं च तए भणियमिमं वयलोवसमुत्थपावसमणत्थं । पायच्छित्तं पच्छा सेविजाहित्ति तमजुत्तं ॥ १० ॥ जं पढमंपि न जुज्जइ तं काउं जत्थ होइ वयलोवो । लुत्ते य तत्थ विहलो पायच्छित्ताइवावारो ॥ ११ ॥ सहसकाराणाभोगओव वयमयलणंमि पच्छित्तं । पढमं चिय जाणंतो जो लोवइ तस्स तं विहलं ॥ १२ ॥ इ भणिए सो देवो रंजियचित्तो विसिटुरूवधरो । चलियमणिकुंडलामलमऊह विच्छुरियगंडयलो ॥ १३ ॥ ससिहं जोडियपाणिपुडो भणिउमेवमादत्तो । धन्नो सि तुमं सावय ! वयंमि जो निचलो एवं ॥ १४ ॥ देवोऽहं तुह सत्तं परिक्खिउं संपयं समणुपत्तो । परितुट्ठो य इयाणिं ता भण किं ते पयच्छामि ? ॥ १५ ॥ जिणपारिएण भणियं जिणमुणिपयपूयणाणुभावेण । सवंचिय परिपुन्नं न मग्गियवं किमवि अत्थि १ ॥ १६ ॥ ता सुरेण कहियं जस्सेरिस निञ्चलत्तणं धम्मे । सो तं कयकिचो नणु तहावि ममणुग्गहट्ठाए ॥ १७ ॥ विसदोसहरणदक्खं रयणमिमं गिण्ह तं महासत्त । । एवं तमप्पिऊणं देवो अहंसणं पत्तो ॥ १८ ॥ जिणपालिओवि गहिऊण तं गहिऊण घयाइभंडं च । इयरवणियाण दाऊण गओ सनयरं, तत्थ य जाव For Private and Personal Use Only Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरच० .८प्रस्तावः 0.4ALA .INपालतात ॥३१६॥ कइवि दिवसाणि अच्छद ताव अन्नदिवस सा नरिंदमजा मयणमंजूसा वासभवणंमि सुहपसुत्ता खइया विसहरेण, दिकपरितक्खणेण य निचिट्ठा जाया, समाऊलीहूओ विक्कमसेणो राया, बाहराविया गारुडिया, पउत्ता तेहिं मंततंतोवयारा, माणे जिनन य जाओ कोऽवि विसेसो, तओ पच्चक्खाया तेहिं, नरिंदेणवि गाढनेहमोहिएण नीणापिओ पडहगो, उग्घोसावियं | च, जहा-जो देविं उट्ठावेइ तस्स अद्धं गामनगरसमिद्धस्स रजस्स देमित्ति, इमं च पडहगताडणपुवयं उग्घोसिजमाणं सुणियं जिणपालिएण, तओ निवारिओ-अणेण पडहगो, देवसमप्पियरयणं गहाय गओ नरिंदमंदिरं, रयणाभिसेगसलिलपाणविहिणा विगयविसविगारा कया देवी, सुत्तपबुद्धव समुट्ठिया सयणीयाओ, तुट्ठो राया, दाउमारद्धो |य रजद्धं, जिणपालिएण जहोचियं घेतूण सेसं पडिसिद्धं, रायावि से निलोभयं दद्दूण पडिबुद्धो देवीए समं सावगो 8 जाओ, जिणपालिओऽवि संपुन्नधणवित्थारो चेइयसाहुपूयारओ सम्ममुभयलोगसफलं जीवियं काऊण मओ समाणो परंपराए मोक्खसोक्खभागी जाओत्ति ॥ इय गोयम! दिसिवयपालणाए अइयारपंकमुक्काए। हुंति विसिट्ठसुहकरा गुणनिवहा इहपरभवेसु ॥ १॥ भोगपरिभोगपरिमाणकरणमेत्तो गुणवयं बीयं । तं भोयणओ तह कम्मओ य दुविहं मुणेअवं ॥१॥ ॥३१६॥ भोयणओ पडिबन्ने इमंमि वजेजऽणंतकायाई। पंचुंबरि महुमेरयं च रयणीयभत्तं च ॥२॥ सञ्चित्तं पडिबद्धं अपउलदुप्पउल तुच्छभक्खणयं । भोअणओ अइयारा वज्जेयवा इमे पंच ॥३॥ -CASSACANCE For Private and Personal Use Only Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir OSHOUSERECAMSANSAR कम्मयओ पुण एत्थं पडिवन्ने सबमेव खरकम्मं । वजेअवं निच्चं किं पुण इंगालकम्माई? ॥४॥ इंगाली वणसाडी भाडी फोडी सुवजए कम्मं । वाणिज्जं चेव य दंतलक्खरसकेसविसविसयं ॥५॥ एवं खुजंतपीलणकम्मं निलंछणं च दवदाणं । सरदहतलायसोसं असईपोसं च वजेजा ॥६॥ दुविहपयारं च इमं जहभणियविहिए पालमाणाणं । धन्नाण भवभयं नेत्र होइ रविपालयाणं व ॥ ७॥ इंदभूइणा वागरियं-भयवं! के इमे रविपालया?, जयगुरुणा भणियं-कहेमि, एत्थेव जंबूहीवे दीवे भारहे खेत्ते कोसलविसयप्पहाणे दसपुरंमि नगरे नरिंदसम्मया माहणकूलसंभूया चउद्दसविजाठाणपारगा दोन्नि भायरो रवी पालगो य परिवसंति, अन्नया य गामाणुगाम विहरमाणा बहुसिस्सगणपरिबुडा विजयसेणाभिहाणा सूरिणो| समागया, ते य तेसिं जाणसालाए अणुजाणाविऊण ठिया वासारते, ते य दोवि भायरो सूरिसमीवे धम्मवीमसाए समागंतूण भणंति-भयवं! भणह नियधम्मं, सूरिणा भणियं-आयनह जीवदयापरिणामो सवन्नुनिवेइयऽत्थपडिवत्ती। परिगहपरिमाणं चिय एसो धम्मो समासेण ॥१॥ तेहिं कहियं-भयवं ! जीवदयापरिणामोत्ति जं तुम्हेहि वृत्तं तं न घडेइ, जओ जन्नकजे पसुविणासोऽवि धम्मचणेण निद्दिट्ठो, तहा सवन्नुनिवेइयत्थपडिवत्ती एयपि न सुंदरं, सवन्नृणं वेदे अकहणाओ, जं च परिग्गहपरि-18 माणंति वुत्तं तंपि निरत्थर्य, जेसिं वराडियामेत्तंपि नत्थि तेसिं विफलमेव परिग्गहपरिमाणकरणं, विजमाणपयत्थे ECANCHARACKAGANA For Private and Personal Use Only Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोकप्रतिष्ठितान न कहियत्ति वुत्तं तंपिजीववि श्रीगुणचंद चेव तस्स गुणकारितणओ, गामसभावे चिय सीमासफलत्तणओत्ति, तम्हा अन्नं किंपि धम्म परिकहेसु, सूरिणा|| भोगोपभो दाभणियं-आउसंतो! न जुजइ तुम्ह एवं वोत्तुं, जो इहलोयपडिबद्धपुरिसवयणमेयं जनकजे पसुविणासो धम्मोत्ति,131 ८ प्रस्तावः पालककथा कहमेयंति?, वुच्चइ-'आत्मवत् सर्वभूतानि, यः पश्यति स पश्यतीति पारमार्थिकमुनिवचनात् , जइ पुण जीववि-18 ॥३१७॥ णासे धम्मो ता मच्छबंधलुद्धयाइणो सग्गमि वचेजा। जं च सवन्नणो वेदेसु न कहियत्ति वुत्तं तंपि वेयरहस्सा निसामणाओ, यतस्तत्रैव शान्त्युद्घोषणाप्रस्तावे उक्तं-ॐ लोकप्रतिष्ठितान् चतुर्विशति तीर्थकरान् पभाद्यान् वर्धमानान्तान् सिद्धान् शरणं प्रपद्यामहे । ॐ पवित्रमग्निं उपस्पृशामहे. येषां जातं सुजातं येषां वीरं सुवीरं| येषां ननं सुननं ब्रह्म सब्रह्मचारिणो उचितेन मनसा अनुदितेन मनसा देवस्य महर्षिभिर्महर्पयो जुहोति, याजकस्य जनस्य च एषा रक्षा भवतु शान्तिर्भवतु वृद्धिर्भवतु तुष्टिर्भवतु स्वाहा” एवं च पसिद्धेसु सवत्थपइट्ठिएसु सबन्नुसु अभावकप्पणं महासंमोहो। जं च कहियं विजमाणपयत्थे चेव परिमाणं जुजइ एयंपि अणुचियं, असंतेवि अत्थे आसवनिरोहभावाओ पच्चक्खाणं गुणकरं चेव, ता भो महाणुभावा! असेसदोसग्गिसमणघणसरिसं सबन्नुमयं अमयं व पियह अजरामरत्तकर, मुंचह मिच्छत्तमोहसंपसूर्य कदासयविसेसं, मज्झत्थत्तणमवलंबिऊण चिंतेह पर- ॥३१७॥ मत्थं, जच्चकणगं व कसछेयतावपमोक्खबहुपरिक्खाहिं सुपरिक्खिऊण धम्म सम्मकरं सम्ममायरह । एवं च सूरिणा पन्नत्ते लहुकम्मयाए पडिबुद्धा ते महाणुभावा, पडिवन्नो भावसारं जिणधम्मो, गहियाई अणुवयाई, संगीकयाई गमहे । ॐ पनि SARAMANAGAR 4 For Private and Personal Use Only Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उचो वाहाओ, सुक्काओ जंघाओ, Swim एसो, एवं च विसमदसायासह, अन्नवासरे य समाग प्रातिनिवि गुणवयाई, पालिंति य सबजत्तेण । अन्नया य रविमाहणस्स भोयणं कुणमाणस्स उवरिट्ठियघरकोइलगेण कओ उचारो, वक्खित्तचित्तत्तणओ न मुणिो अणेण, तम्मिसभोयणकरणे य पवडियं से उयरं, खीणाई मंससोणियाई, द्रतणुईहूयाओ वाहाओ, सुक्काओ जंघाओ, सुसियं वयणं, वडिया तण्हा, जाओ सावसेसाउओ, दंसिओ य पालएण विजाणं, तेहिवि असज्झोत्तिकाऊण पच्चक्खाओ एसो, एवं च विसमदसावडियं तं पलोइऊण झूरइ परियणो, रोवइ भारिया, बहुप्पयाई विलवइ पालगो, सो य अदीणमाणसो सम्ममहियासेइ, अन्नवासरे य समागओ एगो देसंतरविजो, तस्स सयणवग्गेण दंसिओ रवी, तेणावि संमं पलोइऊण भणियं-अहो कुडधिरोलियापुरीससंभवो एस दोसो, ता पंचुंबरिफलाई समभागाइं चित्तगरोज्झमंससंमीसियाई सुराए पट्टिऊण देह जेण सिग्धं पसमा महोदरवाही, रविणा भणियं-भो भो वेजा! भोयणओ बीयगुणवयपरिमाणं कुणंतेण पञ्चक्खायं मए एयं, वेजो सयणवग्गो य भणइ-पगुणीभूयसरीरो सोहिं करेजासु, तेण कहियं-जराघुणजजरियविसरारुसरीरपंजरासारयं जाणतो नाहं मरणेवि एयमायरामि, एवं च उज्झिओ वेजेण। अन्नंमि य वासरे जाव सो निसन्नो एगंतदेसे अच्छा ताव पेच्छइ वसहमुत्तमझे निवडियं घरकोइलगं, तक्षणं चिय विणस्संतं च पेच्छिऊण चिंतियमणेण-अहो जहा एवं कोइलगविणाससमत्थं तहा तं दुटुं विसविगारमवि हणिउमलं, तम्हा जुजइ मज्झ एवं पाउंति परिभाविऊण सुमुहुसे णमोकारसुमरणपुरस्सरं वसहमुसं पीयमणेण, अह धम्मपभावणं वेयणियखओवसमजोगा ओसह ACCAKADCASRAL-CASEAS AAAAAARA For Private and Personal Use Only Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥ ३१८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माहप्पेण य जलोयरं से पसंतंति, जाओ पुणन्नवंगो, जयइ जिविंदस्स धम्मसानत्थं, इय सवत्थ पवाओ वित्थारिओ नयरलोएण सोय पालगो तन्नरसामिणा भणिओ जहा ममामचत्तणं पडिवज्जसु, पालगेण भणियं देव! मए खरकम्माणं बलाहियत्तारक्खिगत्तपमुहाणं नियमो कओ, राइणा भणियं किं कारणं ?, तेण कहियं देव! न जुत्तमेयं सावगाणं, जओ तत्थ निउत्तेहिं जणो पीडियचो, परच्छिदनिहालणं कायचं, नरिंदचित्तावज्णपरेहिं सवप्पयारेण दवमुपायणिज्जं तं च न जुत्तं पडिवन्नवयाणंति, रन्ना भणियं-दुद्वाण सिक्खणे साहूण पालणे किमजुत्तं ?, पालयेण जंपियंदेव ! को एवं मुणइ एस दुट्ठो एसो साहुत्ति, जओ अवराहस्स कारीबि अत्तणो साहुत्तणमेव पगासेइ, न य अपडिवन्नदोसो विणासिउँ पारियइ, कयाइ पिसुणोवणीओ साहूवि परिहम्मइ, तम्हा अइसयनाणसज्झं दुट्ठनिग्गह सिट्ठपालणं, अणइसइणा कीरतं विवज्जासंपि जाएजा एवं च भणिए पयंडसासणत्तणओ रुट्टो राया भणिउमाढत्तो य-अरे बंभणाहम ! वेयपुराणपइट्ठियं वंभणत्तं परिहरिय धम्मंतरं कुणमाणो मूलाओ चिय निग्गहट्ठाणं तुमं विसेसओ इयाणिं ममाssणालोवपयट्टो, ता न भवसि संपयंति भणिऊण आणत्तो वज्झो, नीओ मसाणभूमीए, समारोविउमारद्धो सूलाए, एत्थंतरे तप्पएसोवगएण दिट्ठो वाणमंतरेण, दढधम्मोति जायाणुकंपेणं तेण सूलाठाणे कथं कणयसिंहासणं, तेहि य रायपुरिसेहिं पहओ खग्गपहारेहिं, देवप्पभावेण य पहारट्ठाणेसु समुट्ठियाणि गेवेयपमुहाणि For Private and Personal Use Only भोगोपभोगमाने रवि पालककथा ॥ ३१८ ॥ Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir --CRACKERALA म आभरणाणि, निवेइयं च रनो, अह भयसंभंतमणो राया सयमेव परियणसमेओ तस्स सगासोवगओ कयंजली भणिउमाढत्तो-भो भो सद्धम्मपरेकचित्त! जं निन्निमित्तमवि मोहा एवंविहं अवत्थं उवणीओ तं खमसु मज्झ, एवं च सुचिरं पसाइऊण करेणुगाखंधे समारोहिऊण य महाविभूईए पवेसिओ नयरे पालओ, जहोचियं तंबोलाइणा संमाणिऊण पेसिओ सगिह, परितुट्ठो जेट्ठभाया, कयं वद्धावणयं । अवरवासरे य पालगेण भणियं-हे भाय! सचन्नुधम्ममाहप्पमेयं जं वसहमुत्तमेत्तेणवि तुह पसंतो जलोयरवाही, ममावि निकारणमेव कणयसिंहासणत्तेण परिणया सूलिगा, पहारावि जाया आभरणत्तणेणं, ता मुचउ गेहवासवासंगो, अंगीकीरउ एत्तो सबविरई, को हि नाम मुणियामयपाणगुणो विससलिलं पाउमुच्छहेजा?, रविणा भणियं-एवं होउ, तओ ते दोवि थेराणं अंतिए पञ्चजं गहाय समाराहियसंपुन्नसमणधम्मा सुरसिवसुहमायणं जायत्ति ॥ इय इंदभूइमुणिवर ! बीयगुणवयमिमं विनिद्दिडं । एत्तो तइयं वोच्चइ अणत्थदंडस्स विरइत्ति ॥१॥ सो पुण अणत्थदंडो नेअबो चउविहो अवज्झाणो। पमयायरिए हिंसप्पयाण पावोवएसोय ॥२॥ कंदप्पे कुक्कुइए मोहरियं संजुयाहिकरणं च । उवभोगपरीभोगाइरेगयं चेत्थ वजेइ ॥३॥ जेऽणत्थदंडविरया न हुंति तेऽणत्थगाई जंपंता । पार्वति धुवं मरणं लोइयकोरिंटंयमुणिव ॥४॥ जो पुण एसो कोरिटंगो मुणी जह व मरणमणुपत्तो। तह संपय सीसंतं सर्व गोयम ! निसामेसु ॥५॥ RRCROREA ५४ महा• For Private and Personal Use Only Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir L श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः अनर्थदंडे कोरण्टककथा. ॥३१९॥ CARNAGAU सालिसीसयंमि गामे भहिलो नाम माहणो, सोमदिना य से भारिया, तेसिं च कोरिंटंगो नाम पुत्तो अचंतवि. रूवो, कहं ?मुहबाहिविणिग्गयदीहविरलदंतग्गभग्गउट्ठउडो । करहसिसुपुच्छसत्थविप्फुट्टमुहरोमदोप्पेच्छो ॥१॥ मजारकक्कडच्छो अइटप्परकन्नघोरजुयलिक्खो । अचंतकविलदेहो पायडदीसंतनसजालो ॥२॥ संपज्जंततहाविहभोयणजायंतउदरपूरोऽवि । कयमासुववासो इव अञ्चंत किसियसवंगो ॥३॥ इय सो पुवक्कियकम्मदोसओ गाममज्झयारम्मि । दुईसणत्तणेणं हीलाठाणं परं जाओ ॥४॥ एयारिसे य तम्मि जोधणपत्ते जणणिजणगेहिं चिंतियं-कहं एस कलत्तभोगी भविस्सइ ?, जो सवायरमग्गियावि न सग्गामवासिणो दिति एयस्स कन्नयंति । अन्नया दूरयरगामवासिणो बंभणस्स बहुकुमारी बहुदविणदाणपुवयं वरिया अणेहिं से निमित्तं, जाए य लग्गसमए कोरिंटंग कयसिंगारचारुवेसं समादाय गयाई तत्थ, तत्थ पारद्धो विवाहोवकमो, रइया वेइगा, पज्जालिओ घयमहुसणाहो हुयासणो, पइविट्ठो वेइगामंडवंमि कोरिटंगो, तक्खणं चिय दिट्ठो तीए बडकुमारीए, तं च पलोइऊण सचमक्कारं भणियमणाए अहह किमेस पिसाओ इहागओ? अहव रक्खसोवाविकिंवा कयंतपुरिसो? नहु नहु तत्तोऽवि भीमयरो॥१॥ सहि ! पेच्छ पेच्छ कीलेव विलइओ दिवभूसणसमूहो । एयंमि पावरूवे कहमवि नेवावहइ सोहं ॥२॥ OCALSAGARLASSROOR ॥३१९॥ For Private and Personal Use Only Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr पारर्द्धमि विवाहे लक्खिज्जइ एस धूमकेउछ । ता भायइ मज्झ मणो सहसा एयंमि दिट्ठमि ॥ ३ ॥ हिए भणियं णु ! म एवमुलबसु, एसो तुज्झ पाणनाहो भविस्सर, तीए भणियं सहि ! सच्चमेयं ?, एस मे पाणनाहो भविस्सइ ?, तीए भणियं-सहि ! सच्चमेयं होही ?, सहिए भणियं को इत्थ विभमो ?, वडकुमारीवि जइ परं पराभवित्ति भणिऊण विसायवसविसप्पमाण तिब्बसंतावा सणियं सणियमवक्कमिऊण जणमज्झयाओ पुरोहडावडंमि निवडिया वेगेण, तओ जाव इओ तओ समीवट्ठियजणविमुक्कहाहारवनिसामणेण धाविओ उत्तारणत्थं जणो ताव अइपउरसलिलत्तणेण कूवस्स अवस्संभवियद्ययाए विणासस्स मया एसा, विगयजीविया य बाहिं पक्खित्ता कूवयाओं, कओ से सरीरस्स सक्कारो, ताणि य कोटिंगजणणिजणगाईणि जणेण हीलिज्जमाणाणि गयाणि सग्गामं, भणिओ य तेहिं एसो-वच्छ ! कोटिंग तुह परिणयणनिमित्तं न सो कोऽवि उवाओ जो न कओ, केवलं तुह कम्मपरिणइवसेण सचो विहलत्तणं पत्तो, ता मा मुणिहिसि जहा अम्मापियरो ममं उवेहगाणित्ति, तेण भणियं - पुचकयकम्ममेव एत्थ अवरज्झर, का तुम्ह उबेहा ?, जइ खुजओ दूरमूसवियवाहूवि फलं न पावड़ ता किं कप्पतरुवरस्स वयणिज्जंति १, एवं च तेसिं परोप्परोहावेण जाया रयणी, अह तेसु निष्भरपसुत्तेसु परमं चित्तपरिताबमुहंतो कोटिंगो नीहरिओ गेहाओ, पयट्टो तित्थदंसणत्थं, कमेण य दद्रूण सयललोइयतित्थाई गहिया अणेण काबलियतवस्सिदिक्खा, मुणिओ तद्दरिसणाभिप्पाओ, सिक्खियाइं भूमिलक्खणपमुहाई विन्नाणाई । For Private and Personal Use Only Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CAR श्रीगुणचंद IPL इओ य कुसग्गपुरे नयरे अरिमद्दणो नाम राया, तस्स य पर्यईए चिय दयादाखिन्नविवेयसच्चविसिद्धबुद्धिसंगओ:अनर्थदंडे महावीरच सुमई नाम अमचो, तेण य राइणा कारावियं महंतं सरोवरं, आरोपिओ पालीसु विचित्ततरुसमूहो, चउसुवि पासेसु कोरण्टककयाओ अणाहसालाओ, निरूवियाई अवारियसत्ताई, तस्स य सरोवरस्स अचंतभरिअस्सवि विवरदोसेण कइवयदि कथा. ॥ ३२०॥ णमेत्तेणवि सुसंतं सलिलमवलोइऊण विसन्नेण जंपियं रन्ना-अहो निरत्थो दधक्खओ जाओत्ति, परियणेण भणियं-10 देव! मा संतप्पह, पूरिजउ एस सिलाईहिं विवरो, जइ पुण एवं कए न विप्पणस्सइ सलिलं, रायणा भणियंएवं कीरउ, तओ तक्खणं चेव कट्ठसिलाइट्टगाहिं पूरिओ सो विवरो, जाए य परिसयाले निवडंतुद्दामसलिलधाराहिं भरियं सरोवरं, तं कहियं च नरेहिं नरवइणो।। ताहे तुट्ठो राया पलोयणट्ठा गओ सयं तत्थ । जावऽच्छइ खणमेगं उब्भिन्नो ताव सो विवरो ॥१॥ पुणरवि पुत्वपवाहेण पाणियं तेण विवरमग्गेण । अणिवारियप्पयारं पायाले गंतुमारद्धं ॥२॥ तं दट्टण नरिंदो सोगमहासल्लपीडिओ झत्ति । मंताइसत्यकुसलं पुरलोयं वाहरावेइ ॥ ३ ॥ भणइ य तुम्हे सत्वत्थपारया ता कहेह सलिलमिमं । पायाले वच्चंत ठाइस्सइ केणुवाएणं? ॥ ४ ॥ ॥३२०॥ परिचिंतिऊण सम्मं पयंपियं तेहिं देव ! विन्नाणं । नेवत्थि एत्थ वत्थुमि अम्ह किं साहिमो तेण ? ॥५॥ अह नरवइणा भणियं तहावि साहह किमेत्थ काय ? । मा विफलं चिय वचउ सुचिरेमं वेवियं दवं ॥६॥ RCRA For Private and Personal Use Only Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir तेहिं भणियं-देव ! जद एवं ता नगरस्स वाहिं विदेसियसालासु य पवामंडवसु य देवमंदिरेसु य पहियसमूहमीलगेसु य तवस्सिजणासमेसु य निरूवेह पुरिसे, पुच्छावेसु य तन्निवासिलोयं विवरपूरणोवायं, जइ पुण तेहितो ४ कोइ कपि उवायं कहेजा, राइणा भणियं-साहु जंपियं, बहुरयणा वसुंधरा, किमिह न संभविज्जत्ति अणुमन्निऊण दातचयणं जहाभणियं सबढाणेसु विसजिया पुरिसा, ते य जहाभणियविहीए समारद्धा पुच्छिउं । का इओ य सो कोरिटंगकावालिओ इओ तओ देसंतरेसु परिभमंतो मंततंतोसहीसंगहं कुणंतो धाउवायखन्नवायपमुहदबोवजणोवायं परिचिंतंतो समागओ तमेव पुरं, ठिओ देसियसालाए, सबप्पयारेहिं अपुबुत्तिकाऊण सविणयं पुच्छिओ सरोवरविवरपूरणोवायं रायपुरिसेहि, एत्यंतरंमि तेणं नियविनाणावलेवनडिएण । भणियं साहंकार कित्तियमेत्तं इमं मज्झ? ॥१॥ रायपुरिसेहिं कहियं-जइ एवं एहि ता नरिंदपुरो । पयडसु नियविन्नाणं लहसु पसिद्धिं धरावलए ॥ २॥ एवं च सो वुत्तो समाणो अपणो विन्नाणेण तिहुयणंपि तणं व मन्नतो पढिओ तेहिं समं रायउलं, कमेण य पत्तो दअत्थाणमंडवं, मुणित्तिकाऊण पणमिओ राइणा, दवावियं आसणं, निसन्नो एसो, पत्यावे य पुरिसेहिं निवेइओ रनो तदब्भुवगमो, तओ हरिसवियसियच्छेण भणिओ रना एसो-भो रिसिवर! करेसु पसायं, पणासेसु सरोवरस्स विवरं जेण तण्हापरिसुसियसरीरो चउपिहोवि भूयग्गामो सुहेण सबकालं जहिच्छाए जलपाणं कुणइत्ति, कोरि-18| SABADMASANNA ACAAKASAKAL For Private and Personal Use Only Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kcbatirth.org अनर्थदंडे कोरण्टककथा, 9- 0 श्रीगुणचंद दाटगेण भणियं-महाराय ! केत्तियमेत्तं एवं ?, दंसेहतं विवरं जेण तदुचियमुवायं साहेमि, एवं वुत्ते दंसिओ सो पएसो, महावीरच० तेणवि तं समंतओ पलोइऊण भणियं-महाराय ! जइ एत्थ विवरे कसिणचउद्दसीए टप्परकन मंकडयन्नं बोकडकुच्चं ८ प्रस्तावः तालसरूवं कक्कडयच्छं अइबीभच्छं बंभणगोत्तं संजमवंतं पुरिसं खिवेह दिसिदेवयाण वलिदाणपुवर्ग नूणं ता मिलइ एस ॥३२१॥ विवरो, न नीरमुवरमइ थेवंपि, एवं तेण कहिए राइणा सवत्थ गामागराइसु पेसिया पुरिसा, निभालिउमारद्धा य जहोवइट्ठगुणविसिष्ठं बंभणं, कत्थवि अपेच्छमाणेहि व तेहिं पडिनियत्तिऊण निवेइयं नरिंदस्स, तओ संभंतचित्तेण | भणियं राइणा-भो सुमइअमच्च! किमेवं अम्ह धम्मकजे निरुज्जमो तुम? न संपाडेसि जहोवइटुं वंभणंति, इमं च निसामिऊण चिंतियं मंतिणा-अहो धम्मच्छलेण पावजणं मुद्धलोयस्स, अहो अणत्थदंडपंडियत्तणं पासंडियाहमस्स, जं एवंविहं पावट्ठाणमुबइसंतेण न गणिओ पंचिंदियविणासो न परिचिंतिओ बंभणहच्चाकलंको न परिकलिओ नियतवलोवो, अहवा किमणेणं ?, तहा करेमि जहा पावोवएससमुल्लाववंछा इयरलोयस्सवि न जायइत्ति परिभावि ऊण भणियमणेण-देव ! जारिसो अणेण पुरिसो कावालियमुणिणा समाइट्ठो तारिसो एसो चेव जइ परं हवइ, ता ४ देव ! धम्मट्ठाणे एत्य जइ एसो चिय खिप्पिही ता किमजुत्तं जाएजा ?, 'इष्टं धर्मे नियोजये'दिति लोकेऽपि कथ्यते, राइणा भणियं-एवं होउ।अह समागए चउहसीवासरे सो चिय कोरिंटगो जहोवइविहिणा "हितं न वाच्यं अहितं न वाच्यं, हिताहितं नैव च भाषणीयम्। कोरिंटकः माह महानती यत् , खवाक्यदोषाद्विवरं विशामी ॥१॥" ति 9-0CASACRACT ॥३२१॥ For Private and Personal Use Only Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KARANASANSACRECOR पुणरसं विरसमारसंतो बला चेव पक्खित्तो विवरम्मि पायिओ य विणासंति । अह सवत्यवि नयरे वित्थरियं जहा कवालियतबस्सी। नियजीहादोसेणं पंचत्तं पाविओ विवसो ॥१॥ ताहे सबोऽवि जणो भासागुणदोसचिंतणुजुत्तो । सुमुणिव संपयत्तो किमसकं मरणभीयाण ? ॥२॥ इय तुज्झ मए कहिओ गोअम ! उच्छिखलुलवणरूवो । जमदंडोव पयंडो अणत्थदंडो दुहोहकरो ॥३॥ तिनिधि (एयाई मए) भणियाइं गुणवयाई एताहे। चत्तारिवि सीसंती (सिक्खाई) निसुणसुतं गोअमसगोत्त!॥१॥ सावजेयरजोगाण वजणासेवणोभयसरूवं । सामाइयंति तेसिं पढमं सिक्खावयं होइ ॥२॥ मणवयणकायदुप्पणिहाणं इह जनउ विवजेइ । सयकरणयं अणवट्ठियस्स तह करणयं च गिही ॥३॥ सामाइए उजुत्ता अविचलचित्ता सुरोवसग्गेऽवि । होति भवपारगामी सत्ता नणु कामदेवोध ॥४॥ जह कामदेवसहो संमत्तं पाविमो ममाहितो। सामाइऍ निकंपो सुरोवसग्गेऽवि तह सुणसु ॥५॥ चंपानयरीए विजियमंडलो जियसत्तू नाम राया, कामदेवो सेट्टी, नियनियकम्मसंपउत्ता कालं वोलिति, अन्नया |य गामाणुगाम विहरतो अहं तत्थ समोसढो, तओ उजाणपालगेहिं विनत्तो राया, जहा-देव ! भवियकमलबोहणदिवायरो चरिमतित्थयरो सहसंबवणुजाणे समोसढोत्ति, एवं सोचा रना दिन्नं तेसिं महंतं पारिओसियं, दवाविओ नयरीए पडहगो-जहा नायकलकेउणो महावीरस्स भगवओ वंदणत्थं पत्थिवो निग्गच्छह, ता भो For Private and Personal Use Only Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥ ३२२ ॥ www.kobatirth.org लोगा ! आगच्छेह भगवंतं वंदिउँति भणिए तकालमिलियपुरजणसमेओ समागओ राया ममतियं । इओ य सो कामदेवो पासायतलासीणो एगाभिमुहं जणनिवहमवलोइय परियणमापुच्छेइ-किं नं देवाणुप्पिया ! एस पुरज णसमुदओ एगदिसाए नीहरइ ?, एयमट्ठमुवलभिय साहेह, तेहिं निच्छिऊण निवेइयं, जहा- तिहुयणेक्कनाहो जिणो समोसढो तछंदणवडियाए पुरलोगो वच्चर, तओ सो समुत्पन्नसद्धाइसओ पहाओ चंदणोवलित्तगत्तो चाउग्धं|टरहारूढो अप्पमहग्घाभरणभूसिओ सियकुसुमदामोव सोहिओ निग्गओ नयराओ, समोसरणासन्ने य ओइन्नो रहबराओ पमुक्ककुसुमदामो परिहरियतं बोलो कयमुहसुद्धी एगसाडीएणं उत्तरासंगेणं चक्खुफासे अंजलिपग्गहेणं मणसो एगत्तीभावेण य पविट्ठो समोसरणे, तिक्खुत्तो आग्राहिणपयाहिणं काऊण वंदिओ अहं, उबविट्ठो सट्टाणे, निसामिए धम्मे संजायधम्मपरिणामो संमत्तमूलाई पंचाणुवयाई तिन्नि गुणवयाई चत्तारि सिक्खावयाई भावसारं पडिवज्जिय गिहमुवगओ, पालेइ निरइयारं सावगधम्मं । अन्नया य कुटुंबचिंताए जेट्ठपुत्तं वित्ता पोसह| सालाए पडिमा परिकम्मकरणट्टा सामाइयं पडिवजिय ठिओ रयणीए काउसग्गेणं, एत्थंतरंमि तब्भावनिश्चलत्तं परिक्खिउं एगो तस्स समीवे ठाउं सुरो सरोस इमं भणइ रे रे वणियाहम ! धम्मम्ममेवं समुज्झसु जवेणं । पाविट्ठ कोऽहिगारो तुह एरिससाधुचेट्ठासु १ ॥ १ ॥ मा परिसअकाले चिय कयंतमुहकुहरमुग्गदाढिलं | मम वयणं अवगन्निय पुत्तकलत्ताइपरियरिओ ॥ २ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only सामायिके कामदेवकथा. ॥ ३२२ ॥ Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACCUSAGARCACARA एवं वुत्तोपि न जाव कंपिओ सो तया महासत्तो । ताव परुदो देवो गइंदरूवं विउचे ॥३॥ तयणंतरमुल्लालियपयंडसुंडो घणोब गजंतो। वेगेण धाविऊणं गेण्हइ तं सावयं झत्ति ॥४॥ सबत्तो गत्तं विवेई चलणेहिं पक्खिवइ गयणे । तत्तो निवडतं पुण पडियच्छइ दंतकोडीहिं ॥५॥ एवं बहुप्पयारं तं पीडिय कुणइ भुयगरूवं सो । पच्छा तिक्खाहिं दढं दाढाहिं तणुं विदारेइ ॥६॥ तहविहु अखुम्भमाणे गिहिप्पहाणमि कामदेवंमि । रक्खसरूवं काउं उबसग्गं काउमारद्धो ॥७॥ अह खणमेगं घोरट्टहासकरतालतालणं काउं । परिसंतो सो तियसो भत्तीए तयं इमं भणइ ॥८॥ भो कामदेव ! सावय तियसोऽहं तुज्झ सत्तनाणट्ठा । एत्थागओ महायस ! ता पसिय वरेसु वरमेत्तो ॥९॥ थेवोऽविहु उवयारो विहिओ तुम्हारिसे गुणनिहिमि । अस्संखसोक्खखंधस्स कारणं होइ निभंतं ॥ १०॥ एवं भणिओऽवि सुरेण सायरं वरमुणिव थेवपि । जाव न स कामदेयो कहमवि पचुत्तरं देह ॥ ११॥ ताव नमंसिय चरणे उक्वित्तिय गुणगणं च से तियसो । परमच्छरियमुवगओ जहागयं पडिनियत्तो य ॥ १२ ॥ इयरोऽवि धम्ममाराहिऊण तइए भवंमि निषाणं । सायत्ताणंदमुहं पाविस्सइ निहयकम्मंसो ॥ १३ ॥ इय जइ गिहिणोऽवि समुज्जमंति धम्ममि निचला धणियं। ता उज्झियगिहवासा तवस्सिणो किं पमायंति? ॥१४॥ एवं वीरेण जिणेसरेण जइणो पडुच वागरिए । सविसेससंजमुजयचित्तो जाओ समगसंघो ॥ १५ ॥ ANACAS For Private and Personal Use Only Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ ३२३ ॥ www.kobatirth.ore. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr For Private and Personal Use Only देशावकाशिके सागरदत्तकथा. इयजह सामाइयनिश्चलत्तणं कामदेवसङ्केणं । भवभयभीएण कयं अन्नेणवि तह विहेयवं ॥ १४ ॥ दिसिवयगहियस्स दिसापरिमाणस्सेह पइदिणं जं तु । गमणपरिमाणकरणं बीयं सिक्खावयं यं ॥ १ ॥ वजह इह आणयणप्पओगपेसप्पओगयं चेव । सद्दाणुरूववायं तह वहिया पोग्गलक्खेवं ॥ २ "" इहलोयंमिवि पंइदिण दिसपरिमाणंमि कीरमाणंमि । उभएवि नो अणत्था सागरदत्तस्स व हवंति ॥ ३ ॥ गोयमसामिणा भणियं-जयगुरु ! को एस सागरदत्तो ? कहं वा तस्स दिसवयपरिमाणसेवा इहपारभवियाSणत्थष्पणासो जाओति साहेसु, महंतमिह कोऊहलं, भगवया जंपियं-परिकहेमि, पाडलिसंडे नवरे घणसारस्स इब्भस्स सुओ सागरदत्तो नाम, सो य असेसबसणसय संपरिग्गहिओ दुहलियगोट्टीए परिगओ, ते हि तेहिं पयारेहिं दद्दविणासमायरह, अन्नया य विणटुंमि दवसारे गओ सो देसंतरेसु, पारद्धा य बहवे दविणोवज्जळीवाया, समासाइयाई कइयवि दीणारसयाई, तेहिंवि गहिऊण किंपि भंडं गओ सिंधुदेसं, विणिवट्टियं तं च, डिओ बहुलाभो, जाओ से परितोसो, चिंतिउमारद्धो य-अहो कि इमिणा अत्थेण ? जो नियसुहियसयणवग्ग न जाइ विणिओगं ?, ता गच्छामि निययनयरं, पेच्छामि जणगं, समप्पेमि तस्स अत्थसंचयं, दुष्पडियारो खु सो महाणुभावो ॥ ३२३ ॥ विविहाणत्थसत्थेहिं मए संताविओ य इति परिभाविऊण गहियपवरजचतुरंगमो पयट्टो पा लिसंडपुराभिमुहं, - अविच्छिन्नपयाणएहिं इंतस्स अद्धपहेच्चिय जाओ वासारतो, अणिवारियपसरा निवडिया सलिलकडी, पबूढा गिरि Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %E SARAGAURAT नईओ, नवहरियसद्दलं जायं धरणिमंडलं, नियनियगेहाइसु अल्लीणो पहियसत्थो, वहलचिक्खल्लोलत्तणेण दुग्गमी या भूमिमग्गा, तओ सो गंतुमसमत्थो तत्थेव य छाइऊण ठिओ, अन्नदिवसे य चरमाणाणं तुरंगमाणं अणुमग्ग-18 | लग्गो जाव कित्तियंपि भूभागं वच्चइ ताव गिरिगुहागओ एगचलणोवरिनिहियसवंगभारो धम्मनिचओव मुत्तिमंतो है उवसंतपरोप्परवेरेहिं हरिहरिणसहलसूयरपमुहतिरिएहिं परिचत्तचरणपाणिएहिं उवासिजमाणो चउमासतवोविसेसं पडिवन्नो दिट्ठो अणेण अजसमिओ नाम चारणो मुणिवरो, तं च दहण परमविम्हयमुबहतेण चिंतियं सागरदत्तेणअहो अच्छरियमच्छरियं जमचंतदुदृसत्तावि एवमेयं महामुणिं पजुवासंति, न सचहा हवइ एस सामन्त्रविक्कमो, ता |दसणमयि एयस्स पवित्तयाकारणं, किं पुण विसेसर्वदणंति समुच्छलियनिन्भरभत्तिपन्भारनिस्सरंतरोमंचो समीवे गंतूण पंचंगपणिवायपुरस्सरं निवडिओ से चलणेसु, मुणिणावि उस्सग्गं पाराविऊण भवोत्तिकाऊण धम्मलामेण पडिलामिओ एसो, तओ हरिसवियसियच्छिणा भणियं सागरदत्तेण-भयवं! किमेवं अइदुक्करं समायरह तुम्भे तवं ? किं वा निवसह एवंविहे एगंतवासे?, को वा फलविसेसो एयस्स दुरणुचराणुट्ठाणस्स ?, मुणिणा भणियं-भो महाणुभाव! एयरस अवस्सविणस्सरस्स सरीरस्स एस चेव लाभो जमणुद्विजइ संजमो, एसो य मणसो एगत्तीकरणमंतरेण न सम्म तीरइ काउं, अओ एगंतवासो सुतवस्सीहिं सेविजइ,जं च तए भणियं-किमअस्स फलं?, तत्थ सुंदर ! निसामेसु । नरतिरियाइदुग्गइनिवायसंभवसुतिक्खदुक्खाई। दोगचवाहियेयणजरमरणपमोक्खवसणाई ॥१॥ E%-5- 5A--- For Private and Personal Use Only Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः देशावकाशिके सागरदत्तकथा. ॥३२४॥ PASSESAMAGRIES लीलाए चिय उम्मूलिऊण सच्चरियसंजमा पुरिसा । वच्चंति सिवपयं जेण तेग (महयं) फलं तस्स ॥ २॥ एत्तो चिय सप्पुरिसा रजं लच्छि च भोगविच्छई । एकपए चिय मोतुं संजमजोगं पवजंति ॥३॥ ते धन्ना कयपुन्ना ते चिय कल्लाणकोसभूया य । जे परलोयसुहावहमेगं धम्म उवचिणंति ॥४॥ तत्तो सागरदत्तेण जंपियं जायपरमसद्धेण । भयवं! भुवणच्छरियं एक चरियं परं तुज्झ ॥५॥ पढमवए चिय जेणं विणिजिओ दुजओ विसमबाणो । उम्मूलिओ य मोहो निग्गहिओ कोहजोहोऽवि ॥६॥ विद्धंसिओ य लोभो पणासिओ सबहाऽभिमाणोऽवि । नियडिकुडंगीगहणं निदह झाणजलणेण ॥७॥ एवंविहेण तुमए पवित्तियं तिहुअणंपि नीसेसं । भवकूये निवडतो जाओ लोगोऽवि सालंबो॥८॥ एक्को अहं अधन्नो जो तुच्छेहियसुहस्स कजेणं । अजवि तुम्ह समीवे पवजं नो पवजामि ॥९॥ चिंतामणिलाभमिवि अहवा जो जेत्तियस्स किर जोगो। सो लहइ तत्तियं चिय ता मम उचियं कहह धम्मं ॥१०॥ एवं तेण भावसारं निवेइए निययाभिप्पाए पयडिओ साहुणा सम्मत्तमूलो दुवालसवयसणाहो सावगधम्मो, गहिओ अणेण, तओ कइवयवासराइं परिचत्तवावारंतरो तमेव सावगधम्म सप्पभेयं मुणिणो समीवे सम्म वियाणिऊण समागए सरयसमए उवसंतासु गिरिसरियासु वहंतेसु पहिएसु ते जचतुरए गहाय गओ नियनयरं, दिट्ठो जणगो, समप्पियं च से दविणजायं, जाओ य इमस्स परितोसो, सो य सामाइयाइधम्मनिरओ कालं बोलेइ । अवरंमि य वासरे HALKARORAN ॥३२४॥ For Private and Personal Use Only Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ARMEREKARMACARA कओ सागरदत्तेण दिसिगमणसंखेवो, जहा अज अहोरपि न गेहाओ वाहिं नीहरिस्तामित्ति, एत्थ य पत्थावे चरणट्ठया गया ते जचतुरगा, हरिया दोहिं चोरेहि, तदवहरणं च निवेइयं रक्खगेहिं सागरदत्तस्स, तेणावि नियधम्माणुहाणनिच्चलचित्तत्तणेण निसामिऊणवि न दिन्नं पचुत्तरं, सयणवग्गोवि लग्गो जंपिउं-अहो सागरदत्त ! किमेवं कट्ठसमो मोणमवलंबिय चिट्ठसि ? न धावसि चोराणुमग्गओ, जओ गोसामिए उदासीणे तयणुचरा कह पयर्टति ?, सागरदत्तेण भणियं-होउ किंपि, न विराहेमि मणागपि नियवयं, तओ निच्छयमुवलम्भ रोसेण जहागयं पडिनियत्तो |सयणवग्गो, इओ य-ते दोऽपि तकरा पिट्ठओ कुडियमित्तमपेच्छमाणा निब्भया निरुविग्गा गंतुं पयत्ता, गच्छंताण |य नीसेसतुरगगहणलोभदोसेण समुप्पन्नो दोण्हंपि परोप्परं वहपरिणामो, तओ भोयणसमए पविट्ठा एगंमि गामे, |कारावियं रंधणीगिहेसु पुढो पुढो थालीसु भोयणं, पक्खित्तं च अणलक्खिज्जमाणेहिं तत्थ दोहिवि महाविसं, सिद्धे य भोषणे कयतकालोचियकायबा अमुणियावरोप्पराभिप्पाया उवविट्ठा भोयणं काउं, अह पढमकवल-18 कवलणेऽवि अभिभूया ते विसविगारेण, निवडिया महीयले, कओ महाणसिणीए कलयलो, मिलिओ गामलोगो, क|हिओ अणाए वुत्तंतो, ते य विसाभिभूया गया तक्खणमेव पंचत्तं, तुरंगमाथि निस्सामियत्तिकाऊण रक्खिया गामजणेण, इओ य-सागरदत्तो पडिपन्नंमि देसावगासियनियमे जिणबिंबपूयापडिवर्ति काऊण कइवयपुरिसपक्खितो चलिओ तुरयाणुमग्गेण, अचंतविसिट्ठसउणोवलंभे य जायलाभनिच्छओ समुप्पन्नचित्तुच्छाहो अविलंबि AAAAAAAA ५५ महा० For Private and Personal Use Only Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ८प्रस्तावः देशावकाशिके सागरदत्तकथा. ॥ ३२५॥ RECORCHASAMACCALCACAUSARALS यगईए संमुहमागच्छन्तं पहियलोयं तुरयपउत्तिमापुच्छंतो कम्मधम्मसंजोएण पत्तो तं चेव गाम, पुढो य तन्निवासिजणो, तेणावि समप्पिया तुरगा, कहिओ य चोरवुत्तो, सागरदत्तेणऽवि साहिओ गामलोगस्स नियमवइयरो, अओ जिर्णिदधम्मपसंसा॥ अह सागरदत्तेणं चिंतियमुप्पन्नभवविरागेण । जह जिणधम्मपभावो पञ्चक्खं चिय मए दिट्ठो ॥१॥ ता किं अजवि वामूढमाणसो तिक्खदुक्खदायारं । घरवासं पासंपिव सयखंडं ने तोडेमि ? ॥२॥ इय चिंतिऊण चत्ताई तेण सवाणि पावठाणाणि । गहिया जिणिददिक्खा सिवसुहभागी य जाओ ॥३॥ इय इंदभूइ ! सिक्खावयस्स वीयस्स पालणे भणियं । फलमेत्तो तइयं पुण भणिमो सिक्खावयं ताव ॥४॥१०॥ आहारदेहसकारवंभवावारचागनिष्फण्णं । इह पोसहति वुच्चइ तइयं सिक्खावयं परं ॥१॥ दुविहं च इमं नेयं देसे सवे य तत्थ सबंमि । सामाइयं पवजा नियमा साहुन्छ उवउत्तो ॥२॥ अप्पडिदुप्पडिलेहियऽपमजसेजाइ वजई एत्य । सम्मं च अणणुपालणमाहाराईसु सवेसु ॥३॥ पोसेइ कुसलधम्मे जं ताहाराइचागणुट्ठाणं । इह पोसहोत्ति भण्णइ विहिणा जिणभासिएणेव ॥ ४॥ पाणंतिगोवसग्गेऽवि पोसहं घेत्तु जे न खंडंति । जिणदासो इव ते सुरसुहाई मोक्खं च पावंति ॥५॥ गोयमसामिणा भणियं-भुवणेक्कदिवायर! को एस जिणदासो?, भयवया वागरियं-साहेमि, वसंतपुरे नयरे ॥३२५॥ For Private and Personal Use Only Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %AUNSAHSALAMAUSHAN अच्चंतभवविरत्तचित्तो सबन्नवइटपरमत्थभावियमई जिणदासो नाम सायगो, नायव पडिकूलचारिणी मंगलमुत्तिव तिवरागाणुगया मंगला नाम से भारिया, सो य बहुसो सामाइयपोसहतयोविसेसनिसेवणाभिरओ पवजं पडिवजिउकामो वलतुलणं करेइ । सा य से भारिया अचंतसंकिलिट्टयाए उक्कडवेयत्तणेण समणं व तं विजियमयणवियारमवलोइऊण फरसगिराए निभच्छंती भणइ हे मुद्ध ! धुत्तलोएण वंचिओ तंसि विजमाणेवि । जो भोगे वजित्ता अविजमाणं महसि मोक्खं ॥१॥ निलक्षण! दुरणुचरं तवोविसेसं निसेविउं कीस । सोसेसि नियसरीरं? किं अप्पा वेरिओ तुज्झ ? ॥२॥ जइ तं विसयविरत्तो पढम चिय तान कीस पचइओ । जाओ? जमिण्हि मं परिणिऊण एवं विडंबेसि ॥३॥ अह तं ममनिरवक्खी जहाभिरुइयं करेसि एवं च । अहमवि तुह निरवेक्खा जं भावइ तं करिस्सामि ॥ ४॥ एवं तीए मजायवजिए जंपियंमि जिणदासो । उवसमभावियचित्तो महुरगिराए इमं भणइ ॥५॥ भद्दे ! सद्धम्मपरम्मुहासि निम्मेरमुल्लवसि तेण । तुच्छेऽवि विसयसोक्खे कहऽन्नहा होज पडिबंधो! ॥ ६॥ थोयं जीयं जरमरणरोगसोगाऽणिवारियप्पसरा । एवं ठिएवि कह सुयणु! कुणसि तं विसयवामोहं? ॥७॥ तीए(ता) भणियं होउ अलं तुज्झ सद्धम्मदेसणाए ममं । सयमवि नट्ठो दुच्चे ! चिट्ठ अन्नपि नासेसि ॥८॥ इय तीए दुट्ठनिहरमुहीए दुविणयमूलभूमीए । निभच्छिओ समाणो जिणदासो मोणमल्लीणो ॥९॥ For Private and Personal Use Only Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥३२६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्नयाय चउसिदिमि पडिवन्नो अणेण उववासो गहिउं चउविहंपि पोसहं, ठिओ य गिगंतभूयाए जाणसालाए निसिंमि काउस्सग्गेण, मंगलावि मयरद्धएण वाहिजमाणी उज्झियकुलाभिमाणा अगणियाववाया नीय गामिणीउ कामिणीउत्ति य पवायं सच्चविन्तिव घडिया सह विडेण, गेहजणलजाए पयडं चिय अकजमायरिउ भपारयंती पुछदिन्नसिंगारेण विडेण सद्धिं रयणीए समागया तं चैव जाणसालं, अच्चंधयारत्तणेण काउस्सग्गट्टियं जिणदासमपेच्छमाणीए तंमि चैव पएसे पक्खित्तो लोहकीलगतिक्खपद्वाणो पलको अणाए, तक्कीलगेण य समीववत्तिणो जिणदासस्स विद्धो सहाबकोमलो चलणो, सा य विडेण सद्धिमकजमायरिउमारद्धा । जिणदासो पुण अइतिक्खलोहकीलगविभिन्न चलणतलो । उप्पन्नगाढवियणो चिंतिउमेवं समाढत्तो ॥ १ ॥ मा ! जीव काहिसि तुमं मणागमेत्तंपि चित्तसंतावं । सयमवि दिट्ठे विलिए भज्जाऍ अकज्जसत्ताए ॥ २ ॥ जं परमत्थेण न एत्थ कोऽवि भज्जा व सयणवग्गो वा । किंतु सकज्जविणासे सबंपि परंमुहं ठाइ ॥ ३ ॥ अवि-तावच्चिय दंसइ पण भावमायरइ ताव अणुकूलं । निययत्थविसंवायं जाव न पेच्छइ पणइलोगो ॥ ४ ॥ ता या धम्मत्थसुन्नचिंताए एत्थ को दोसो ? । इत्थी सभावओ चिय दुग्गेज्झा वुञ्चई जेण ॥ ५ ॥ अरक्खियाचि अइपालियावि अइगाढरूढपणयावि । वाढं उवयरियाविहु देव दुरंतं भयं महिला ॥ ६ ॥ तोचि मुणिवसभा सुबुद्धिमाहप्पमुणियपरमत्था । पञ्चक्खरक्खसीहि व महिलाहिं समं न जंपंति ॥ ७ ॥ For Private and Personal Use Only पौषधे जिनदास कथा. ॥ ३२६ ॥ Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता ते चिय इह धन्ना सुद्धनियजम्मजीवियफला य । जे उज्झिऊण महिला संजमसेलं समभिरूढा ॥ ८ ॥ धन्नो सणकुमारो जो पुरमंतेउरं सिरिं रज्जं । उज्झित्ता निक्खतो परमप्पा मोक्खसोक्खकए ॥ ९ ॥ एको अहं अधन्नो जो कुलडाए अणत्थमूलाए । दुट्ठमहिलाए कज्जे एवं बुत्थोऽम्हि घरवासे ॥ १० ॥ अहवा समइकंतत्थ सोयणेणं इमेण किं बहुणा ? । एत्तोवि सङ्घविरहं भावेणाहं पवजामि ॥ ११ ॥ इय चिंतिऊण तेणं तिविहंतिविहेण वोसिरिय संगं । पंचपरमेट्ठिमंतो पारो सरिउमणवरयं ॥ १२ ॥ अह पबलचलणपीडोव कमियाऊ चइन्तु नियदेहं । भासुरसरीरधारी देवो वेमाणिओ जाओ ॥ १३ ॥ आउक्खमि तत्तो सोचविऊणं विदेहवासंमि । निट्टत्रियकम्मगंठी पाविस्सइ सासयं ठाणं ॥ १४ ॥ इ गोवम ! निञ्चलमाणसस्स जिणभणियधम्मकज्जंमि । जायइ जीवस्स धुवं अकालखेवेण सिवलाभो ॥ १५ ॥ ११ ॥ भणियं तदयं सिक्खावयं इमं संपयं पुण चउत्थं । एदंपज्जसमेयं जह होइ तहा निसामेह ॥ १ ॥ अन्नाणं सुद्धाण कप्पणिजाण देसकालजुयं । दाणं जईणमुचियं चउत्थ सिक्खावयं एयं ॥ २ ॥ सच्चित्तनिक्खिवणयं वज्जइ सच्चित्तपिहणयं चैव । कालाइक्कम परववएस मच्छरिय पंचेव ॥ ३ ॥ अन्नाईण पयाणं नियंपिय होइ गिहिजणस्सुचियं । जइणो पहुच किं पुण पोसह उववासपारणए ? ॥ ४ ॥ अतिहीण संविभागं नूणमकाउं न जे पजीमंति । ते साडुरक्खिओ इव देवाणवि होंति महणिज्जा ॥ ५ ॥ For Private and Personal Use Only Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥ ३२७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोयमेण जंपियं-भुवणत्तयसामिसाल ! साहेसु को एस साहुरक्खिओ?, कहं देवमहणिज्जोत्ति, भगवया वागरियंआयन्नसु - अत्थि सयलदिसावलयविक्खाया वाणारसी नाम नयरी, तहिं वसू नाम राया, सघंतेउरपहाणा वसुमई | देवी, वणियलोयसम्मओ जिणपालिओ सेट्ठी, जिणमई से भारिया, एयाणि चत्तारिवि परमसावगाणि परोप्परं | परूढगाढपेम्माणि य एक्कचित्तत्तणेणं जिणधम्मं पालिंति, अन्नया सेट्टिणी नरिंदंपत्ती य पंचवन्नसुरहि कुसुमदहियक्खयसुगंधिगंधधूववासपडिपुन्नपडलकरपरियरियाओ गयाओ जिणालयं, विरइया अणेगविच्छित्तिमणहरा सबविवाण पूया, तओ विचित्तथुइथुत्तदंडएहिं सुचिरं जिणं थुणिऊण पयाहिणं दाउँ वाहिं नीहरिया, ताहिं एगत्थ परसे अचंतदुदंसणो मच्छियाजालाभिणिभिणारावभीसणो वणमुहनिस्सरंत किभिसंवलियपूयप्पवाहो सडियंगुलि - नासोट्ठो कुट्ठवाहिविणदेहो दिट्ठो एगो पुरिसो, तं च दद्रूण देवीए भणियं भो महाणुभाव ! कीस सचन्नूणमासायणं इहडिओ करेसि, तेण भणियं-नाहमेत्थ निवासत्थी समागओ, किंतु चेइयचंदणत्थं, सेट्ठिणीए भणियं-देवि ! | जइ इत्तियमेत्तमेव पओयणं पडुच अच्छइ ता अच्छउ को दोसो ?, जओ सुस्समणावि जाव चेहयाई वंदंति वक्खाणं वा करिंति सिणाणं वा पेच्छति (सिस्साणं वायणं वा पयच्छंति पु. ) ताव जिणभवणे निवसंति, देवीए भणियं - तहावि विणट्टसारीरत्तेण न जुज्जइ एयस्स अच्छिउं, अहवा निट्ठीवणाई अकरितो सम्ममुवउत्तो निमेसमित्तं जिणबिंबावलोयणेण अध्पणो समाहिमुप्पाएउ, किमजुत्तं ?, सेट्ठिणीए भणियं एवमेयं, को महाणुभावस्स एयस्स For Private and Personal Use Only अतिथिसंविभागे साधुरक्षितकथा. ॥ ३२७ ॥ Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवराहो?, दुप्पडियाराणि पावकम्माणि एवंविहाहि विडंबणाहिं कयस्थिति निस्सरणं पाणिगणं, देवीए भणियंअलमुच्चावयभणियवेणं, भो महाणुभाव ! साहम्मिओत्तिकाऊण प्रयणिजोसि तुमंति ता साहेसु-किं ते पियं की. रउ?, तेण जंपियं-किमेत्य कायवं अत्थि?, पुर्वि दुच्चिन्नाणं कम्माणं फलविवागमणुहवंतस्स समाहिमरणं चिय में पत्थियवं, तंपि भागविवजएण दुर्लभं व लक्खिजइ, ताहि भणियं-कहमेवं जाणिजइ?, कुट्टिणा भणियं-अहं मंदभग्गो, अइसइणा भणियं-जहा तुम मरणकाले सम्मत्तं वमिहिसि तेणेमं जाणामि, चित्तसंतावं च उवहामि, ताहि जापय-भद्द! तुह जइ एवं ता विसममावडियंति. एवं च खणमित्तं विगमिऊण विम्हियमणाओ गयाओ है ताओ सगिहं । अन्नंमि य वासरे चउनाणोवगओ सूरतेओ नाम सूरी समोसरिओ, तओ सेट्टिणी देवी य गया| तबंदणत्थं, सुया धम्मकहा, पत्थावे य पुच्छियं ताहि-भयवं! पुवं चेइंए गयाहि अम्हेहिं जो कुट्ठी दिट्ठो सो कीस संमत्तं मरणसमए वमिही', सूरिणा भणियं-सो पजंतसमए माणुस्सेसु आउबंध काऊण उप्पजिही, न य गहियसम्मत्तो अणंतरभवे मणुअत्तं तिरियत्तं वा पावइ, जेण भणियं| सम्मट्ठिी जीवो विमाणवजं न बंधए आउं । जइ उ न संमत्तजढो अहव न बद्धाउओ पुद्धिं ॥१॥ रायपत्तीए भणिय-कहिं पुण सो उववजिही?, सरिणा जंपियं-एयाए सेट्रिणीए पुत्तत्ताएत्ति, एवं सोचा वि-11 |म्हियाओ वंदिय सूरि नियत्ताओ ताओ सगि निरूवाविओ भाविपुत्तसिणेहेण सो कोट्ठी सेट्टिणीए, न य कहचि For Private and Personal Use Only Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद दिट्ठो, अइकतेसु य कइवयवासरेसु सो मरिऊण पाउन्भूओ तीए सेद्विणीए गम्भे, जाओ य पडिपुनदियहेहि, कयं । अतिथिमहावीरच० बद्धावणयं, समागओ राया सह वसुमईए देवीए, कयमुचियकायचं सेटिणा, तं च देवकुमारोवमं दारयं पेच्छिऊण| संविभागे ८ प्रस्तावः भणियं देवीए-भो जिणमइ ! पेच्छ अच्छरियरूवं कम्मपरिणई, साधुरक्षित॥३२८॥ कथा. नीणंतपूयपवहो भीसणवणनिस्सरंतकिमिजालो । मच्छीहि भिणिभिणंतो सडियंगुलि गलियनासोट्ठो ॥१॥ एवंविहो वराओ तुज्झ गिहे पवरविहवकलियम्मि । उववन्नो कयपुनो सो कोट्ठी कह विसिटुंगो ॥२॥ सेडिणीए भणियं-देवि ! एवंविहे संसारविलसिए परमत्येण न किंपि अच्छरियमत्थि, जओ-कम्मवसवत्तिणो पा-12 [णिणो केण केण पयारेण न परिणमंति?, देवीए जंपियं-एवमेयं, अह अइकते वारसाहे कयं से नामं साहुरक्खियत्ति,8 कालेण य पत्तो कुमारभाव, गाहिओ कलाओ, संपत्तजोवणो सोहणंमि तिहिमुहुर्तमि परिणाविओ इन्भकन्नगं, | विवाहपजंते य समाहूओ सेट्टिणा देवीए समेओ राया, पूइओ पहाणरयणाभरणवत्थसमप्पणेण, पाडिओ ताण चल-18 नाणेसु नववहूसणाहो साहुरक्खिगो, सो य देवीए सहासं भणिओ-बच्छ! पेच्छ तं तारिसं इमं च एरिसं, साहुर-15 क्खिएण भणियं-अंब! न याणामि इमस्स अत्यं, एवं च तेण कहिए हसियं सहत्थतालं परोप्परं देविसेट्ठिणीहि, ॥३२८॥ दूतओ रन्ना जंपियं-सेट्ठि! किमयाओ हसंति?, सेटिणा भणियं-देव ! अहंपि सम्मं न याणामि, अओ ममावि कोउगं, पुच्छउ देवो, तओ पुच्छियं रत्ना-देवि ! किमेवं तए वागरियं?, सबहा साहेहत्ति वुत्ते तीए| HARSAASARGAON For Private and Personal Use Only Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ESSALA सिट्ठो पुखुत्तो कुहिवुत्तंतो, तं च सोचा सुमरियपुत्वभवो साहुरक्खिओ परं निवेयमावनो संसारवासस्स । अन्नया य तप्पुन्नपन्भारसमागरिसिओब समागओ विजयघोसो नाम सूरी, पउरलोगेण समं सो गओ तवंदणत्थं, सविणयं पणमिऊण निसन्नो गुरुचलणंतिए, सुया धम्मदेसणा, तहाविहकम्मक्खओवसमेण जाओ से देसविरहपरिणामो, पडिवन्नो य सूरिसमीवे दुवालसरूवो सावगधम्मो, अन्नया य अट्ठमीए कओ अणेण पोसहोववासो, इओ य ४ कप्पसमत्तीए विहरिया सूरिणो, सो य पारणगदिवसे पोसहं पाराविऊण उचियसमए अतिहिसंविभागं काउमणो पढिओ य साहुसमीवे, गेहाओ नीहरंतो य भणिओ जणणीए-वच्छ! कहिं वचसि?, भुंजेसु ताव सिद्धं वट्टइ, साहुरक्खिएण भणियं-अम्मो ! अतिहिसंविभागवयं पडिवजिय कहं गुरुणो असंविभाइय सयं भुंजामि, ता वाहरामि ताव साहुणो, तीए भणियं-पुत्त ! विहरिया अन्नत्य भयवंतो किं न याणसि तुमं १, एवं तीए कहिए गहिओ सो रणरणएण समाहओ सोगेणं पारद्धो अरईए, नियत्तिऊण य पडिओ मंचिए, चिंतिउमाढत्तो य कह पोसहोववासो को मए ? कह व विहरिया गुरुणो। अन्नं चिंतियमन्नं च निवडियं मंदभग्गस्स ॥१॥ अहवा मरुत्थलीए किं कप्पतरू कयावि उग्गमई । मायंगमंदिरे वा छज्जइ अइरावणो हत्थी? ॥२॥ आजम्मरोरगेहे विसट्टकंदोदलविसालच्छी । लच्छी कयावि पविसइ करयलरेहंतसरसिरुहा ? ॥३॥ AS AGUASCARACHA For Private and Personal Use Only Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतिथि| संविभागे कथा. श्रीगुणचंद अम्हारिसस्स किंवा पुनविहीणस्स एत्थ पत्थावे । अधरियचिंतामणिणो मुणिणो भिक्खट्टया इंति ? ॥४॥ महावीरच० सग्गापवग्गसंसग्गमूलहेऊवि मज्झ पावस्स । एवं च निरणुवंधो मन्ने सम्मत्तलाभोऽपि ॥५॥ ८ प्रस्तावः | इय सो जाव अदृदुहट्टो सोगसमुदयरुद्धकंठो अच्छइ ताव जणणीए पुणो भणिओ-अहो पुत्त! मा चिरावेहि, ॥३२९॥ करेसु भोयणंति, साहुरक्खिएण भणियं-अम्मो ! अलाहि भोयणेण, जइ समणे एस्थ पत्थावे सहत्थेण न पडिलाभेमि ता निभंतं न भुंजामि, एत्यंतरे तद्देसमागएण दिट्ठो सो देवेण, तओ चिंतियमणेण-अहो महामागस्स परिणई अहो निययसरीरनिरवक्खया, ता तहा करेमि जहा पारेइत्तिविगप्पिऊण अणेण विउविओ साहुसंघाडगो, पविट्ठो तस्स गेहे, तं च पेच्छिऊण ससंभमं भणियं जणणीए-पुत्त! तुह पुन्नोदएण आगया कत्तोऽवि साहुणो, |ता एहि सहत्थेण पडिलाभेसु संपयं, एवं सोचा अणण्णसरिसं हरिसुल्लासं वहंतो झत्ति परिचत्तसयणिज्जो वंदिऊण हतवस्सिणो परमभत्तीए पडिलाभिऊण य कयकिञ्चमप्पाणं मन्नंतो केत्तियंपि भूभागमणुगमिय नियत्तिओ सगिहं, गिलाणाइचिंतं च काऊण जिमिओत्ति । एवं सो उभयलोगसाहगो जाओ। ___ इय गोयम ! संखेवेण तुज्झ कहियाई बारस वयाई । एत्तियमेत्तो य इमो सावधम्मस्स परमत्थो ॥१॥ एयस्स सेवणेणं गंतूण भवन्नवस्स पजंतं । पत्ता अणंतजीवा सासयसोखंमि मोक्खंमि ॥२॥ ते धना सप्पुरिसा तेहिं सुलद्धं च माणुसं जम्मं । जे भावसारमतुलं एयं धम्म पवजंति ॥३॥ CRACCAMSAROCAREER P॥३२९॥ For Private and Personal Use Only Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता गोअम! जं तुमए पुवं पुढोम्हि कह भवम्मि जिया । पुणरुत्तमणतदुहोहपीडिया परिभमंतित्ति ?, ॥४॥ तत्थेमं चिय नणु मूलकारणं जन्न सहरिसं विरई । सम्मत्तगुणसणाहं भणियविहाणेण गिण्हंति ॥ ५॥ एवं कहिए तित्थंकरेण गिहिधम्मवित्थरे तुट्ठो। पयवीढलीढसीसो पढमो सीसो जिणं थुणइ ॥६॥ जय तियलोयपियामह ! वम्महमाहप्पनिद्दलणधीर !। ललणासिंगारुन्भडकडक्खखेवेऽवि अक्खुम्भ ! ॥१॥ भवगत्तपडंतजणोहसरण रणरहिय महिय तियसेहिं । नायकुलंबरपुन्निममयंक ! जय जय निरायंक! ॥२॥ एगेणवि जह तुमए पयत्थसत्था जए पवित्थरिया। तह अन्नतिथिएहि न समत्येहिवि मणागपि ॥३॥ तुह अत्थसारलेसं मन्ने रोरव तित्थिया घेत्तुं । जाया अनन्नमाहप्पगचिया नाणविभवेण ॥४॥ जंन हणिजइ दिणयरकरपसरपईवजोइरयणेहिं । चित्तम्भंतरलीणं तंपि तमं पहु! हयं तुमए ॥५॥ असरिसं जयगुरुगुरुभत्तिपभावनिस्सरंतरोमंचो। इय थोऊण निषिट्ठो सट्ठाणे गणहरवरिठ्ठो ॥६॥ एत्यंतरे दुवालसवयदेसणानिसामणसमुप्पन्नमववरग्गेहि केहिवि पडिवन्ना देसविरई, अन्नेहिं उज्झियाई मिच्छत्तकायबाई, केहिवि गहिया सबधिरई । इओ य सेणियनरिंदो थोवमेत्तपि विरई काउमसमत्थो तित्थाहिवं पणमिऊण भणिउमाढत्तो-भयवं! जो अचंतमहारंभो महापरिग्गहो सबहा विरइरहिओ सो कहं भवनवं नित्थरिस्सइ १, जयगुरुणा भणियं-भो नरिंद! सेणिय ! देसविरई वा सबविरई वा काउमपारयंतो सम्मत्ते निच्चलो होजा, एवं ASTROCHERROCCOL यणेहिं । चितनिधिटो सहाई, अन्नेहि For Private and Personal Use Only Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ८ प्रस्तावः ॥ ३३० ॥ www.kobatirth.org जयगुरुणा उबट्ठे तहत्ति पडिवज्जिऊण जहागयं पडिगओ राया नमंतमउलिमंडलो, देवलोगं पट्टिया आखंडला, विकंता पढमा पोरसी । अह चारणगणेहिं थुवंतो जयगुरू सिंघासणाओ समुट्ठिऊण पुत्रं चिय सुरविरइयंभि देवच्छंदर्यमि सुहसेज्जाए निसन्नो । गोयमसामीऽवि कप्पोत्तिकाऊण भगवओ मणिपायपीढासीणो घम्मदेसणं काउमारद्धो । सो य केत्तियं पुचभवाई साहइ ? केरिसो वा लक्खिजइ ?, तत्थ भन्नई भवे साहइ जं वा परो उ पुच्छेज्जा । न य णं अणाइसेसी वियाणई एस छउमत्थो ॥ १ ॥ असुरसुरखयरकिन्नरनर तिरिया मुक्कसेसवावारा । सवणंजलीहिं तद्देसणामयं परिपियंति दढं ॥ २ ॥ आइक्खर गणनाहो धम्मं ता जाव पोरिसी बीया । पच्छा पइदिणकिचं सामायारिं समायरह ॥ ३ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr एवं च समइते कवि वासरेसु एयंमि वासरे सिंहासणे निसन्नस्स वद्धमाणस्स नियनियट्ठानिविट्ठे चउविदेवि देवनिकाए पंजलिउडं पज्जुवासमाणे य सेणियमहानरिंदे एगो सुरो मायासीलयाए कुट्ठिरुवं विविऊण सरसगोसीसचंदणरसच्छडाहिं सरीरविणिस्सरंतपूयसंकाकारिणीहिं भयवओ समीवमल्लीणो चलणकमलविलेवणं काउमारद्धो, तं च तहाविहं दुर्गुछणिजरूवं पेच्छिऊण चिंतियं सेणिएण-अहो को एस दुरायारो गलंतगाढकोढसुढियसरीरदुग्गंध गंधवाहेण दूर्मितो सयलंपि परिसं भुवणेकगुरुणो समीवद्विओ एवं अच्चासायणं कुणइ ?, अहवा कुणउ किंपि ताव उट्टियाए पुण परिसाए अवस्सं मए निग्गहियवोचि विकप्पंतेण छीयमाणेण For Private and Personal Use Only गणधरदेशना दर्द|रांक देवा गमः ॥ ३३० ॥ Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अह कोढियसुरेण भणिय-जीवसुत्ति, मुहुत्तंतरे य वोलीणे छिक्कियमभयकुमारेण, पुणो तेण भणियं-जीवाहि वा मराहि वा, कालसूयरिएण छीए भणियं-मा जीव मा मर, समइकंते य खणंतरे भुवणेकगुरुणा छीयं, भणियं-मर-12 सुत्ति, तं च सोचा अञ्चंतजिणनाहपक्खवाएण वियंभियपवलकोवानलेण राइणा भणिया समीववत्तिणो पुरिसाअरे एयं दुरायारं गुरुपञ्चणीयमुट्टियाए परिसाए हत्ये घेत्तूण मे समप्पेजह जेण दंसेमि दुविणयफलं, तेहिं भणियं-ज देवो आणवेइत्ति, अह जायंमि पहरपज्जवसाणे सट्ठाणं पढिएसु तियसेसु सो कुट्ठिसुरो जयगुरुं परमायरेण पणमिऊण गंतुमारद्धो, ते य पुरिसा नरिंदाएसमणुवत्ता तं घेत्तुमुवट्ठिया, तयणंतरं च एस गओ एस गओ सो कुट्ठी एवमु-5 लवंताण रायपुरिसाण पुरओ देवो अद्दसणं पत्तो, [इय वाहरंतेहिं] तेहिं विलक्खीभूयमाणसेहिं निवेइयमेयं राइणो, अह बीयदिवसे परमकोऊहलमुबहतेण रन्ना पत्यावे पुच्छिओ जयगुरू-भयवं! अइक्वंतवासरे तुहं समीववत्ती कुट्टविलीणकाओ अविभावणिजसरूवो को पुरिसो आसि?, भयवया जंपियं-महाराय! देवो, सो संपर्य दडुरंकविमाणे समुप्पन्नो, रन्ना भणियं-कह चिय?, भगवया वागरियं-निसामेसु, १ अस्थि वच्छाविसए कोसंबी नाम नयरी, तहिं च सयाणिओ नाम नरवई, साडयगो नाम माहणो, सो य ज५६ महा. हम्माणंतरमेव रुंददारिद्दोबद्दवपीडिओ कहकहवि कणवित्तीए कालं गमेइ, अन्नया य आवनसत्ताए खरमुहीनामाए। भजाए भणिओ एसो-भो भण! आसन्नो पसवसमओ, न यं घरे घयतंदुलाई अस्थि, ता कीस निर्चितो चिट्ठसि ? CROCCAUSAUGARCAR GAMANGALORESCOCALCCACA For Private and Personal Use Only Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ प्रस्तावः श्रीगुणचंद तेण भणिय-भद्दे ! पइदिणभिक्खाममणेण नट्ठा मे बुद्धी, ता तुमं चेव साहेसु को एत्थ पत्थावे दवजणोवाउत्ति ?, सेडुकमहावीरचा तीए भणियं-गच्छ, पत्थिवं ओलग्गेसु सदायरेण, न तं विणा अवणिजइ दालिदंति वुत्ते सो पइदिणं कुसुमहत्यो । द्विजकथा. पत्थिवं ओलग्गिउमाढत्तो, अजया य अणुकूलयाए विहिणो से विणयमवलोइऊण तुट्ठो राया, मणियं च तेण-भो। दभण ! मग्गसु जहिच्छियंति, तेण भणियं-देव! बंभाण आपुच्छिऊण मग्गामि, अणुमन्निो रन्ना गओ गेहमि, मणिया बंभणी-महे! तुट्ठो राया, ता साहेसु किमहं पत्धेमि ?, तीए भणियं-पइदिवसमग्गासणे भोयणं दीणारं दक्षिणाए दिणमझे एगवारं ओसारयं च पत्थेहि, एत्तियमेनेण चेव तुज्झ पओयणं, किमनेण किलेसायासनिबंधणेण अहिगाराइणत्ति ?, पडिस्सुयमणेणं, निवेयं च एवं रनो, पडिवनं च तेण, एवं च राइणो पुरो पइदिणं मुंजमाणो जाओ सो महाधणो, रायाणुवित्तीए य पइदिणमामंतिजाइ भोयणकरणे य मंतिसामंतेहिं, दक्खिणालोमेण यसो गले अंगुलीपक्खेवपुष्वयं पुवभुत्तमोयणं वमिऊण पुणो पुणो अवरायरगिहेसु भुंजमाणो गहिओ कुट्टवाहिणा, संमिन्ना सधेवि तस्स सरीरावयवा, दुईसणोत्ति पडिसिद्धो राइणा, तहाणे से पहडिओ जेद्वपुत्तो, सो य रायउलंमि ॥३३१।। ६ भोयणं लहइ, इयरो य वेलाए भोयणमेत्तमवि अपाक्माणो पुत्तेहिं एगंतपरिचत्तो परिभूयमप्पाणं कलिऊण हिययंतो 31 है अमरिसमुधईतो चिंतेइ-अहो अकयन्नुओ खलसहावो य पुत्ताइपरिवणो जेण मं एवं परिभवइ, ता तहा करेमि जहा एयस्सवि एसा अवत्था हवइत्ति चिंतिऊण वाहराविओ तेण जेद्वपुत्तो, भणिओ य-बच्छ! बहुरोगभरविहुरियस्स ABRDASTICE For Private and Personal Use Only Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुम्हारिसमुहकमलपलोयणेऽवि असमत्यस्स में न जुज्जइ खर्णपि जीविडं, केवलं वच्छ ! अम्ह कुले एस समायारोमंतेहिं पसुं चिरमभिमंतिऊण कुटुंबस्स भक्षणत्थं पजामिजइ, पच्छा अप्पा उवसंहरिज्जर, एवं कए पुत्ताइसंतामिस्स कलार्ण हृदइ, ता संपाडिज्जउ मे एको पसू जेणऽहं तदा करेमि, परितुट्ठेण समपिओ पुसेण, तेणावि घयाइणा अप्पार्ण अभंगिऊण उचलणियाओ पइदियहं भुजावतेण कुटुवाही संचारिओ तस्स, वाहिसंभिन्नगत्तं च तं मुणिऊण आहूओ तेण जेट्ठपुत्तो, भणिओ य-पुत्त ! एस पसू भए अभिमंतिओ बहर, ता तुमं सपरिवणो एयमंससुवर्भुजसु जेण कलाणभागी भवसि अहंपि सरीरचायं करेमि, तहा कयं पुत्त्रेण, संकेतो य तम्मंसभोयणेण सपरियणस्स तस्स कुट्टवाही, तओ पहिट्ठहियओ सो निग्गओ नयराओ, पइदिणं गच्छमाणो पत्तो महाडविं च तत्थ य गिहुन्छ किलतो तण्डासुसियकंठो सलिलन्नेसणत्थं इओ तओ परिभमंतो गओ एवं गिरिनिगुंजं दिट्ठे च तत्थ विचितकसायत रुपत्त पुप्फफलरसपागकलिलं सलिलं, तं च आकंठं पीयमणेण, तबसेण य जाओ से विरेगो, निवडियाई किमिजालाई सुज्झिउमारद्धं सरीरं, एवं च अणुदिणं तप्पाणेण पणट्टकुट्टवाही जायपुणन्नवसरीरो नियत्तिऊण गओ सहिं, तहिं च ग ंतकुटुविणदेहं पुत्ताइपरियणं दहूण सामरिसं जंपियं तेण अरे पेच्छछ नियदुच्चिलसियाणं कडुवियागं, तेहिं भणियं कहं चिय १, एवं पुच्छिए तेण सिट्टो पुषवुसंतो । ताणि य एवमायन्निऊण रुट्ठाई अक्कोसिउमारद्धाई। कई चिय :-- For Private and Personal Use Only Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेडुकद्विजकथा. श्रीगुणचंद रे पावकम्म! निग्घिण! चिलायसमसील! एरिसं काउं। अजवि अम्हाण पुरो कह नियवयणं पयासेसि ॥१॥ महावीरच. मायंगाणवि अणुचियमेवंविहकम्ममायरंतेण । नरयंमि पाडियाओ कुलकोडीओ असंखाओ ॥२॥ ८ प्रस्ताव दुजम्मजाय ! तुमए लोयपवाओऽवि एस किन्न सुओ। जं सकरवडिओ विसतरुत्ति नो छिदिउं जुत्तो? ॥३॥ ||३३२॥ इय गेहजणेण बहुप्पयारदुधयणदूमियसरीरो । तत्तो विणिक्खमित्ता संपत्तो एत्थ नयरम्मि ॥४॥ छुहाभिहओ य अल्लीणो नयरदुवारपालस्स, तेणावि किंपि भोयणविसेसं दाऊण भणिओ-अरे इह दुवारदेटू वयाए समीवढिओ चिढेजासु जाव अहं भयवंतं महावीरं वंदिऊण आगच्छामित्ति, पडिवन्नं च तेण, इयरोऽवि आगओ मम वंदणत्थं, तत्थ य पत्थावे ऊसवविसेसवसओ पुरनारीजणो बलिपूयलियाईहिं तीसे दुवारदेवयाए पूर्य करेइ, सो य माहणो रोरव अच्छिन्नवंछो तं बलिं भक्खिऊण पकामाहारेण रयणीए समुप्पन्नतण्हो अइभरियपोदृत्तणेण अंतो अमायंते सलिलंमि अट्टज्झाणोवगओ मरिऊण इहेव नयरादूरवत्तिणीए पउरजलभरियाए वावीए दहुरो जाओ, तत्थ य जाव पजत्तीभावमुवागओ ताव निसामेइ जलवाहिविलयाणं परोपरोलावं, जहा-हले! हले सिग्धं पयच्छसु मे मग्गं जेण कयकायचा झत्ति भयवंतं महावीरं बंदामित्ति, एयं च सुणंतस्स कत्थवि मए एस हसदो सुयपुरोत्ति ईहापोहमग्गणं कुणंतस्स समुप्पन्नं से जाईसरणं, सुणिओ पुत्वजम्मो, तो अहंपि तं भयवंतं वंदामित्ति चिंतिऊण भत्तीए नीहरिओ वावीओ, पयट्टो आगंतुं रायमग्गेण, ताखणं च तुह तरलतुरयखरखुरप्प-! -CROCARRAOREGRAM CANCERCAMARCRACANCE ॥३३२॥ For Private and Personal Use Only Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हारजजरियसरीरो सुहज्झवसायवसेण मओ समाणो ददुरके विमाणे देवत्तणमुप्पो , अवहिमुणियपुववइयरो य मम वंदणत्थं आगओ। ता देवाणुप्पिया! न एस कुट्ठी, किंतु-सुरोत्ति ॥ | सेणिएण भणियं-भयवं! कीस पुण इमेण मया छीए भणियं-जीव, अभयकुमारेण छीए-जीव वा मर वत्ति, कालसूयरिएण छिक्किए-मा जीव मा मर, तुभहि छीए भणियं-मरसुत्ति, जयगुरुणा जंपियं-सुणासु एत्य कारणंतुमं हि जीवमाणो रजसुहमुव जसि, मरणे य नरयं गमिस्ससि, अओ अणेण महाणुभावेण भणियं-जीवसुत्ति । अभयकुमारोऽवि धम्मनिरतत्तणेण सावजवजणरई ता तस्स जीवमाणस्स रायलच्छिभोगो मयस्सवि सुरसोक्खलाभो, अओ जंपियं जीव वा मर वत्ति, कालसोयरिओऽवि जीवमाणो अणेगनिरवराहपाणिगणघायणण बहुं पायमजिणइ, मओ पुण नियमा नरयगामी, तेण भणियं-मा जीव मा मरत्ति, अवि य अइदुटुकम्मवसओ अवस्स गतव नरयठाणेण । नरनाहाईण परं जीवियमेकं हवइ सेयं ॥ १॥ तवनियमसुट्ठियाणं कल्लाणं जीवियंपि मरणंपि । जीयंतऽजंति गुणा मयावि पुण सोग्गई जंति ॥२॥ अहियं मरणं अहियं च जीवियं पावकम्मकारीणं । तमसंमि पडति मया वेरं वहृति जीवंता ॥३॥ जं च मए छीयंमि मरसुत्ति भणियं तत्थवि इमं निमित्तं-तुम किमिह मचलोए विविहावयानिवासभूए वससि ?, जन माणुस्सं विग्गहमुज्झिऊण एगंतसुहं सिवं गच्छसित्ति । ACCHECCARRORISSACRACK For Private and Personal Use Only Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ८ प्रस्तावः ॥३३३॥ अह सेणियनरिंदो पुत्तनरयनिवडणायन्त्रणजायगाढसोगावेगो भणिउं पवत्तो-भयवं! समग्गभुवण तयरक्खाव-18 श्रेणिकस्य बद्धलक्खे तुमंमि सामिसाले किं मए नरए गंतचं ?, जेण पश्चात्तापः भाविजिनतुह नाममेत्तसंकित्तणंपि नासइ दिणुब्भवं पावं । कमकमलपलोयणमवि विणिवारइ दुरियरासिंपि ॥१॥ तोक्तिश्च. एकेणऽवि तुह चलणोवरिमि खित्तेण नाह! कुसुमेण । चोजमिणं रुंदाणिवि नरयदुवाराई रुझंति ॥२॥ एकोऽवि नमोकारो कीरंतो तुज्झ सामि ! भत्तीए । जायइ हेऊ सग्गापवग्गसंवाससोक्खाणं ॥३॥ ता वाहिरोगसोगुब्भवाइं दुक्खाई नाह ! विलसति । जाव न सवणपुडेहिं पविसइ वयणामयं तुज्झ ॥४॥ ता कह णु नाह ! तुह नाममंतसारक्खरेहिं चिंतंतो । सेलुबुक्किन्नेहिवि होजा मे नरयनुहलाभो ? ॥५॥ दुग्गइगत्तम्भंतरपडंततेलोकएकसाहारे । नाहे तुमएवि मम एवंविहवसणमावडियं ॥६॥ धी धी निरत्थयं मज्झ जीवियं मंदभग्गसिरमणिणो । एरिससामग्गीयवि जस्स इमा दुग्गई जाया ॥७॥ ॥३३३॥ इय एवंविह अइगाढसोगविगलंतनयणसलिलेण । नरवइणा जयगुरुणो विन्नत्तं नरयभीएण ॥८॥ एवं च ससोगजंपिरं पुहईवई अवलोइऊण करुणाभरमंथरनयणेण भणियं जिणेण-भो देवाणुप्पिय! कीस संतावमुषहसि ?, जइविय सम्मत्तलाभाओ पुवमेव निवद्धाऊत्ति नरए निवडिस्ससि तहावि लद्धं तुमए लहिअचं, जओ For Private and Personal Use Only Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org PANCENGALORDSMS406 खाइगसम्मदिट्टी तुम, आगमिस्साए य उस्सप्पिणीए तत्तो उपट्टित्ता पउमनाभनामो पढमतित्थयरो भविस्ससि । एवं निसामिऊण पहिट्ठो राया भणिउमाढत्तो जइ तित्थयरो होहामि नाह! तुह पायपूयणपसाया। ता थेवकालिया नरयवेयणा मज्झ किं काही? ॥१॥ किं चोजं जयबंधव ! जं तुह सरणेवि मारिसेहिं लहुं । भुवणब्भुयभूयाइं सामिय ! सोक्खाई लभंति ? ॥२॥ अहवा किं सोऽवि पहू सेविजइ जोग्गयंपि दट्टण । जो अत्तणो न तुलं देइ पयं सेवगजणस्स ॥३॥ एवंविहवरकल्लाणदायगं जाणिपि जो न तुमं । सेवेइ जो न मणुओ सो नूणं अत्तणो सत्तू ॥४॥ एवं सुचिरं जयगुरुं अभिनंदिऊण नयरं पविटेण सेणिएण वाहरिओ मंतिसामंतअंतेउरपमुहो जणो, भणिओ य-जो जयगुरूणो समीवे पवजं पडिवजइ तमहं न वारेमि, एवं सोचा वहवे कुमारा मंतिणो सामंता अंतेउरीजणो नायरलोगो य निक्खंतो भयवओ समीवे, कइवयदिणावसाणे य अणेगाहिं देवकोडीहिं अणुगम्ममाणो भगवं वद्धमाणो बहिया विहरिउमारद्धो। ___ एगया तद्दिणदिक्खियाणंपि थेवपवजापजायाणं मुणीणं केवलनाणमुपजमाणमवलोइऊण जायसंसओ जयगुरुमापुच्छइ-भयवं! किमहं केवलालोयभागी भविस्सामि न वा?, सामिणा जंपियं-भो देवाणुप्पिय ! मा संतप्पसु, अंते तुल्ला भविस्सामोत्ति, इमं सोच्चा तुट्ठो गोयमो । अह भय तेसु तेसु पुरागराइसु अइमुत्तयलोहज्झयअभय CHOCOLCANC444NAGAC For Private and Personal Use Only Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद 18 कुमारधन्नयसालिभदखंदयसिवपमुहं भवजणं पवाविऊण चंपापुरि वचंतो विनविओ सालमहासालरायरिसीहिं-17 महावीरच० सामि! तुम्हाणुण्णाए अम्हे पिढिचंपाए जामो, जइ पुण तहिं गयाण सयणवग्गस्स सम्मत्ताइलाभो जाय इत्ति वुत्ते 8 शालादि८प्रस्तावः गोअमसामी नायगं तेसिं दाऊण भुवणिक्कबंधवो गओ चंपापुरिं, तहिं च पुवकमेण विरइयंमि समोसरणे निसन्नो। केवलं. ॥३३४॥ जयगुरू, आगओ चउविहो देवनिकाओ नयरजणो य, पत्थुया तित्याहिवइणा धम्मदेसणा, तत्थ केणइ पत्थावण सामिणा इमं वागरियं-जो नियसत्तीए अट्ठावयं विलग्गइ सो तेणेव भवेण सिज्झइ, इमं च सोचा विम्हियमणा देवा अन्नमन्नस्स कहिउंपवत्ता। इओ य गोअमसामी पिहिचंपाए नयरीए सालमहासालाणं भगिणीसुयं गागलिनरिंदै जणणीजणगसमेयं पधाविऊण इयरजणं च धम्मे ठाविऊण चंपानयरीहुत्तं गंतुं पयहो, तेसिं च सालमहासालाणं अम्मापिउसमेयस्स गागलिमुणिणो य सुहज्झाणवसाओ समुप्पन्नं केवलं नाणं, एवं ताणि उप्पन्ननाणाणि अलक्खियसरूवाणि मग्गमि इंति । अह गोअमसामी तं जयगुरूवइ8 अट्ठावयारोहसिद्धिलाभरूवं देवपवायं सुणेइ, तेण य विहियहियो पत्तो जिणंतियं, तओ तिपयाहिणापुत्वगं पणमिऊण जयगुरुं जाव मग्गओ पलोयइ ताव सालमहासालाइणो सामी ॥३३४॥ सापयक्खिणेउं 'नमो तित्थस्स'त्ति भणित्ता केवलिपरिसाभिमुहं पट्टिए दहण भणइ-भो भो कहिं वचह, एत्तो एह, सामी वंदहत्ति, सामिणा भणियं-गोअम! मा केवली आसाएहि, ताहे सो खामेइ, संवेगमुवगओ चिंतेइ य-अहो इमेहिं महाणुभावहिं थेवपञ्चजापज्जाएणवि पावियं पावणिज, अहं पुण सुचिराणुचरियसामन्नोऽपि न केवलालो For Private and Personal Use Only Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr यमुवलभामि, ता किमिह कीरइ ?, अहवा किमणेण चिंतिएण ?, वच्चामि अट्ठावयं, जेण देवेहिं इममाइड-जो किर | ससत्तीए अट्ठावयमारोहइ सो तेणेव भवेण सिज्झइत्ति, एवं च चिंतयतस्सं तस्सं अभिप्पायं अट्ठावयकडगवासितावसोवयारं च मुणिऊण भणियं जिणेण भो गोयम ! चेइयवंदणटुमद्वावयसेलं वचसुत्ति, तओ भयवं गोअमो पहिटुहियओ पट्टिओ अट्ठावयं, तहिं च अट्ठावए तमेव सुरपवायं निसामिकण पत्तेयं पत्तेयं पंचपंचतावससयपरिवारा कुंडिन्नदिन्नसेवालयनामाणो तिन्नि कुलवइणो जहकमच उत्थछट्टमपारणगदिणेसु सचित्त कंदमूलाइ परिसडियपंडुपत्तसुक्कसेवालभोइणो पढमवीयतइयमेहलासु समारूढा समाणा तक्खणं चिय तरुणतरणिभासुरोदारसरीरं गोयमसामीं तं पएसमणुपत्तं दद्रूण जंपंति-अहो किमेस पीवरसरीरो समणो आरुहिही जं अम्हे महातवस्सिणो तवकिसियसरीरा न तरामो आरुहिउं ?, एवं च तेसिं जपंताणं भयवं गोअमो जंवाचारणलद्धीए ल्यातंतुरविकरमेपि निस्साए काऊण अविलंबियगईए समारूढो अट्ठावयं, अह तंमि चक्खुगोयरमइकंतंमि ते तिन्निवि कुलवइणो विम्हियमाणसा चिंतंति-जइ एस महप्पा इमिणा पहेण ओयरइ ता वयमेयस्स सिस्सा भवामोत्ति, गोअमसामीवि उस भाइजिणिंदे वंदिऊण ईसाणदिसिविभागे असोगतरुतले मणिसिलापट्टए तं रयणीवासमुवगओ । एत्थ य पत्थावे बेसमणो नाम सक्कदिसापालो चेइयपूयाए पते गोअमसामीं वंदित्ता समीवे निसीयइ, भयवंपि समणगुणे सवित्थरं कहर, जहा-भगवंतो साहवो अंताहारा पंताहारा विचित्ततयकिसियदेहा हवंति इचाइ, वेस For Private and Personal Use Only Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा श्रीगुणचंद मणो चिंतेइ-एस भयवं एरिसे साहुगुणे कहेइ, अप्पणा उ तं सरीरसिरिमुवहइ जा तियसाणवि नत्थि, इमं च / वैश्रवणस्यामहावीरचा दातदभिप्पायं मुणिऊण गोयमसामी पुंडरीयज्झयणं परवेइ । जहा ग्रतः गौत८प्रस्तावः पुंडरिगिणीपुरीए राया नामेण आसि पुंडरिओ। कंडरिओ से भाया पधज सो पवनो य ॥१॥ मोक्तं पुंड रीकज्ञातं. ॥३३५॥ अइदुक्करयाए संजमस्स सो अन्नया पराभग्गो । पवजं मोत्तुमणो विसयपिवासाए पारद्धो॥२॥ गुरुकुलवासं चेच्चा समागओ भाउणो समीवंमि । तेणाविह सो नातो जहेस रजं समीहेइ ॥ ३ ॥ ताहे पुंडरिएणं निययं रजं समप्पियं तस्स । तत्वेसो पुण गहिओ चलिओ य गुरुस्स पासंमि ॥४॥ गच्छंतो स महप्पा अणुचियआहारदोसओ मरि। सुद्धज्झवसाणाओ उवचियदेहोऽवि उववन्नो ॥५॥ सबट्ठविमाणमि इयरो पुण गाढकिसियगत्तोऽवि । रुद्दज्झवसाणाओ सत्तममहिनारगो जाओ ॥ ६ ॥ जुम्मं । ता भो देवाणुप्पिय! किसत्तमियरं च एत्थ नो हेऊ। किंतु सुहज्झवसाणं तं पुण जह होइ तह किच्चं ॥७॥ इय गोयमेण मणिए सो देवो मुणियमाणसविगप्पो । वंदित्ता भत्तीए जहागयं पडिनियत्तोत्ति ॥८॥ गोयमसामीऽवि निसावसाणे जिणबिंबाइ नमंसिऊण नगवराओ ओयरंतो हरिसुन्नामियकंधरेहिं सविणयं विन्नत्तो तावसेहि-भयवं ! अम्हे तुम्ह सिस्सा तुम्हे अम्ह धम्मगुरुणो, ता पसीयह दिक्खादाणेणं, गणहारिणा जंपियंह.भो महाभावा! तुम्हं अम्हाण य तिलोयनाहो गुरू, तेहि भणियं-तुम्हवि अन्नो गुरू?, तओ गोयमो जयगुरुणो **ACROSSO** LOCACARMACARRRRRes *% For Private and Personal Use Only Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CRUARCASAARRA गुणसंथवं काउमारद्धो, ते य सुट्टयरं वढियपरिणामा उवढिया पवइउं, पहाविया य गणहारिणा, समप्पियाणि तेसिं देवयाए रयहरणाई, अह तेहिं पनरसतावससएहिं परियरिओ गंतुं पयत्तो, जाए य भोयणसमए गोय मसामिणा भणिया ते, जहा-भो देवाणुप्पिया! किं तुम्ह पियं भोयणं पणामिजउ ?, तेहिं भणियं-पायसोत्ति, है तो सबलद्धिसंपन्नो भयवं घयमहुसणाहस्स पायसस्स पडिग्गहं भरित्ता आगओ, अक्खीणमहाणसिलद्धिसामत्थेण Pय सवे जहिच्छाए पजेमिया, तदुवरियसेसं च अप्पणा मुंजति, एवंविहं च अइसयं भगवओ पेच्छि ऊण ते सुद्द्यरं 3 आणंदिया, नवरं सुक्कसवोलभक्खीणं पंचण्हवि तावससयाणं सुहज्झवसाणाओ केवलनाणमुप्पन्नं, कमेण य तत्तो वचंता पत्ता चंपापुरि, तहिं च दिनस्स सपरिवारस्सवि भगवओ छत्ताइछत्तं पेच्छंतस्स, कोंडिन्नस्सवि सामिणो रूवदंसणेण केवलमुप्पन्नं, एवं जायकेवलेहिं तेहिं पन्नरसहिवि सएहिं समेओ गोयमो भयवंतं पयाहिणीकरेइ, ते य पयाहिणावसाणे तित्थपणाम काऊण केवलिपरिसं पडुच गच्छंते पेच्छिऊण भणइ-मो किमेवं वचह?, एह सामि वंदह, जयगुरुणा कहियं-मा केवलिणो आसाएहि, तओसो मिच्छादुकडंति काऊण अप्पणो नाणाणुप्पाएणं अद्धि कुणंतो वुत्तो सामिणा-भो देवाणुप्पिय! किं देवाणं वयणं गेझ ? उयाहु जिणाणं?, गोजमो मणइ-जिणाणं, जयगुरुणा जंपियं-जइ एवं ता कि अद्धिई पकरेसि ?,जेण मए तं पुवंचिय भणिओ, जहा-अंते तुला भविस्सामोत्ति, जं पुण संपयं चिय तुह नाणं न उप्पज्जा तत्थ इमं कारणं AACAAAAAAR For Private and Personal Use Only Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद| महावीरच० ८ प्रस्तावः गौतमस्याश्वासनं भगवतो मिथिलागमनं. ॥३३६॥ ACRORSCIRCRA चिरभवपरंपरापरिचिओ सि चिररूढगाढनेहोसि । तं मे गोयम! जेणं तेण न ते जायई नाणं ॥१॥ अइथेवसंथवुत्तोऽवि नेहभावो दुमिल्लओ होइ । किं पुण बहुकालन्नोन्नतुलसंवाससंजणिओ? ॥२॥ एत्तो चिय विणिहयनायगव सेणाहयंमि मोहम्मि। कम्मावली दलिजइ लीलायच्चिय समग्गावि ॥३॥ ता नेहपसरमुच्छिदिऊण मज्झत्थयं समायरसु । मोक्खभवाइसु किर परमसाहुणो निप्पिहा होति ॥४॥ इय भणिए जयगुरुणा सविणयपणओ तहत्ति भणिऊण । पडिवजइ तं वयणं गोयमसामी मुणिवरिंदो ॥५॥ एवं गोयमसामी संबोहिऊण विहरिओ तत्तो जयगुरू । अह परिभमंतो गामागरनगरसुंदरं वसुंधराभोगं कमेण पत्तो मिहिलापुरि, समोसढो य माणिभद्दाभिहाणंमि चेइए, समागया ससुरासुरावि परिसा, सिट्ठो य भगवया अभयप्पहाणमूलो अलियवयणविरइप्पहाणो परधणपरिवजणमणहरो सुरनरतिरियरमणीरमणपरंमुहो आकिंचणगुणग्धविओ समणधम्मो, तहा पंचाणुवयपरियरिओ गुणवयतियालंकिओ चउसिक्खावयसमेओ सावयधम्मो य । तं च सोऊण बुद्धा वहवे जंतुणो, केवि गहियसामन्ना अन्ने पडिबन्नदसणा जायत्ति । एत्यंतरे गोयमसामी परेणं विणएणं पणमिऊण जयगुरुं भणइ-भयवं! महंतं मे कोऊहलं दूसमाए सरूवसवणविसए, कुणह अणुग्गहं, साहह जहाभाविरंति, भणियं जिणेण-गोयम! भाविरमवि दृसमाए वुत्ततं साहितं एगग्गमणो निसामे ॥३३६॥ Stech For Private and Personal Use Only Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CA मइ निवाणमुवगए पंचमअरओ उ दूसमा होही । तीऍ वसा भवोऽवि हुन जणो धम्मुज्जम काही ॥१॥ मुणिणोऽवि परोप्परकलहकारिणो बहुपरिग्गहासत्ता । वहिस्संति न सम्म वाहुलेणं सधम्ममि ॥२॥ पासंडिणोऽवि नियनियगंथत्थपरंमुहा मयणमूढा । पम्मुक्कधम्मकम्मा ओलग्गिस्संति राईणं ॥३॥ पागयलोगो मोतुं कुलमेरं तेसु तेसु कजेसु । अचंतगरहिएसुवि वहिस्सइ जीविगाहेउं ॥ ४ ॥ अत्यप्पिया य अइदप्पिया य परछिद्दपेच्छणपरा य । पीडिस्संति जणोहं पयंडदंडेहि नरवइणो ॥५॥ एक्कजणणीपसूयावि भाइणो जणगदबलोभेण । अन्नोनजीवघायं काउं दढमभिलसिस्संति ॥ ६॥ धम्मच्छलेण पावं विमूढमइणो समायरिस्संति । पसुमेहकूवखणणाइएसु कम्मेसु वटुंता ॥७॥ भूयभविस्सत्थेसु य विनाणं देवयावयारो वा । विजा सिद्धी य वरा बाहुल्लेणं न होहिंति ॥ ८ ॥ उम्मग्गदेसणामग्गनासणावंचणाभिरयचित्ता । गुरुणोऽवि जहिच्छाए धम्मायारं चरिस्संति ॥९॥ तविहिंति खरं रविणो नो वरिसिस्संति समुचियं मेहा ।रोगायंका मारी य विद्दविस्संति जणनिवहं ॥१०॥ उसिखलखलजणहीलणाहिं अणिमित्तऽणत्यघडणाहिं । पाविस्सइ खणमेत्तपि नेव सोक्खं विसिट्ठजणो॥११॥ वाससहस्सा इह एकवीसई जाव दोसपरिहीणं । दुप्पसहंतं चरणं पवित्तिही भरहखेत्तंमि ॥ १२ ॥ इस एसो संखेवेण तुज्झ गोयम ! मए समणुसिट्ठो। दूसमकालसमुत्थो वुत्तंतो भवभयजणगो ॥ १३॥ SSECSECSCARSA ५७ महा. For Private and Personal Use Only Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥३३७॥ एयं सोचा मुणिणो संजमकजंमि तह पयट्टेह । तत्कालसमुत्थविडंबणाउ पावह जहा नेव ॥ १४ ॥ ४दृष्यमाखएवं जिणेण सिटे सविसेसं संजमुजुया जाया । समणजणा अह भयवं मिहिलानयरीउ निक्खंतो ॥ १५ ॥ | रूपं वीर ४ वर्षसंख्या. पत्तो पोयणपुरं, तहिं च संखवीरसियभद्दपमुहा नरिंदा दिक्खा गाहिया, एवं च जएक्कनाहो महावीरो गोयमसामिप्पमुहाणं चउद्दसण्हं समणसहस्साणं अजचंदणाईणं छत्तीसाइ अज्जियासहस्साणं आणंदसंखपमुहएगूणसद्विसहस्ससमहियस्स सावयलक्खस्स सुलसारेवईपमुहाणं तिण्डं सावियलक्खाणं अट्ठारससहस्सहिगाणं तिण्डं चउहसपुषिसयाणं अट्ठण्हं अणुत्तरोववाइयसयाणं मग्गदेसगत्तं गुरुत्तं सामित्तं उच्चहंतो नाणकिरणेहिं तमनियरमवहरंतो चिरं विहरिओ वसुंधराए । अह अग्गिभूइवाउभूई वियत्तमंडियमोरियपुत्ताकपियायलमाइमेयजपहासनामेसु नवसु गणहरेसु सिद्धिं गएसु केत्तियपि कालं भवसत्तपडिबोहणं काऊण अप्पणो मोक्खगमणकालं पच्चासन्नमुवलक्खिऊण भयवं वद्धमाणो गओ असेसदेसलद्धपसिद्धीए पावापुरीए,तहिं च निवभुयनिहलियपडिवक्खो हत्थिपालो नाम नरिंदो, तस्स अणेगखंभसयसमहिटियाए विसिट्टविचित्तचित्तकम्ममणहराए पवरसालभंजियाभिरामदुवारतोरणाए सव्वसत्तोवरोहरहियाए महइमहालियाए सुंकसालाए नरिंदाणुन्नापुरस्सरं ठिओ चरिमवासारत्तंमि जयगुरू। कमेण पत्तंमि जयगुरू कत्तियस्स अमावसादिणे अप्पणो उवरि केवलालोयविग्धकारयं सिणेहं कुणंतं गोयम भणइ-भो देवाणुप्पिय! एत्थ पच्चासनगामे गंतूण देवसम्माभिहाणं माहणं पडिवोहेसुत्ति, जं सामी आदिसइत्ति जंपिऊण गओ गोयमो, तहिं च निवभुयान मोक्सगमणकामयजपहासनामेसु 44 ॥३३७॥ For Private and Personal Use Only Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कथं जहाइटुं वुत्थो य तत्थ । अह तस्स चेव दिणस्स पच्छिमनिसाए साइरिक्खमि वट्टमाणंमि तीसइवरिससंखं केवलिपज्जायं परिपालिऊण कयछठ्ठतवोकम्मो पलियंकासणसंठिओ भयवं महावीरो सङ्घसंवररूवं सेलेसिं जावज्जवि न पवज्जइ ता असंभमुभंतनयणनलिणीवणेण तक्कालुग्गमंतभासरासिकूरग्गहविभावियजिणसासणोवपीडेण सवहुमाणं विन्नत्तो सक्केण भयवं ! कुणह पसायं विगमह एवंपि ताव खणमेकं । जावेस भासरासिस्स नूणमुदओ जवकमइ ॥ १ ॥ जं एस्दएण तुम्हें तित्थं कुतित्थि एहिं दढं । पीडिस्सइ सक्कारं न तहा पाविस्सइ जणाउ ॥ २ ॥ न य तुम्हे असमत्था एवंविहकज्जसाहणे जेण । जो तोलइ तइलोकं वलेण का तस्स इह गणणा ? ॥ ३ ॥ तथा-कहऽणंतसत्तिजुत्ता जिणा हवंतित्ति वयणमवि अम्हे । पत्तिज्जिस्सामो पहु ! जइ न तुमं ठासि खणमेकं ॥४॥ अह जयगुरुणा भणियं सुरिंद। तीयाइतिविहकालेऽवि । नो भूयं न भविस्सइ न हवइ नूणं इमं कज्जं ॥ ५ ॥ कम्मविगमेऽवि कोवि अच्छेज समयमेत्तमवि । अचंताणंतविसिद्वसत्तिपन्भारजुत्तोऽवि ॥ ६ ॥ अवि जोडिज्जइ सयखंडियंपि वयरागरुग्भवं रयणं । परिसडियमाउदलियं न उ तीरइ कहवि संघडिउं ॥ ७ ॥ ता जइ अच्चतमभूयमत्थमम्हे न साहिमो एयं । किं एत्तिएण नाणंतसत्तिणो ? मुयसु ता मोहं ॥ ८ ॥ इय बोहिऊण सकं सेलेसिं जयगुरू समारुहिउं । समगं चिय बेयणियाउनामगोत्ताइं खविऊण ॥ ९ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्ताव: इन्द्रप्रार्थना निर्वाणं च. KARNER ॥३३८॥ जस्सट्टाए कीरइ पुरमंदिररजलच्छिसंचागो । मुच्चइ सिणेहबंधुरबंधवजणगाढपडिबंधो ॥१०॥ आयाविजइऽसइ गिम्हुम्हवण्हिसंतत्तसकरुक्करे । भूमीयलंमि हिमकणदुविसहे सीयकालेऽवि ॥ ११ ॥ अँजिज्जइऽसइ सुदूंछतुच्छमरसं च भोयणं पाणं । निवसिजइ भीमसुसाणसुन्नगिहरनमाईसु ॥ १२॥ सेविजंति पइदियहमेव वीरासणाइठाणाई । छट्ठमाइदुक्करतवचरणाई पि कीरंति ॥ १३ ॥ अहियासिज्जइ नरतिरियदेवविहिओवसग्गवग्गोऽवि । न गणिजइ दुविसहो परीसहाणं पबंधोऽपि ॥ १४ ॥ तिहुयणपणमियचलणो भवभयमहणो जिणो महावीरो। उभउचिय एगागी तं मोक्खपयं समणुपत्तो ॥१५॥ सत्तहिं कुलयं ।। अह सवेऽवि सुरिंदा चरविहदेवेहिं परिवुडा झत्ति । चलियासणा वियाणियजिणनिबाणा समोइना ॥ १६ ॥ विगयाणंदा बाहप्पवाहवाउलियनयणपम्हंता । जगनाहस्स सरीरं नमिउमदूरे निसीयंति ॥ १७॥ अह सोहम्माहिवई गोसीसागरुपमोक्खदारूहि । नंदणवणाणिएहिं चियमेगते रया चित्ता ॥ १८॥ अह सुरहिखीरसायरजलेण ण्हविऊण जिणवरसरीरं । हरिचंदणोवलितं नियंसियामलदुगूलं च ॥१९॥ सट्ठाणपिणद्धविचित्तरयणकिरणुब्भडाभरणरुइरं । सिवियाए संठवित्ता नेइ चियाए समीवंमि ॥२०॥ अह देविंदेसु जयजयारवं निन्भरं कुणंतेसु । कुसुमुक्करं मुयंतेसु सबओ खयरनियरेसु ॥२१॥ P॥३३८॥ BOARA For Private and Personal Use Only Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नच्चंतीसु सुरसुंदरीसु तूरेसु वजमाणेसु । अचंतसोगविहुरे संघमि य संथुर्णतमि ॥ २२॥ अग्गिकुमाराण जलणजालजालापलीवियाए लहुं । आरोविति चियाए जिणबुंदि असुरसुरवइणो ॥२३॥ वाउकुमारा वायं कुणंति अवरे सुरा पुण खिवंति । गंधडधूवमुहिँ घयमहुकुंभे य पुणरुतं ॥ २४ ॥ मसाइएसु दड्डेसु तो चियं निवर्विति थणियसुरा । खीरोयवारिधाराहि सिसिरगंधाभिरामाहि ॥ २५ ॥ अह पहुणो उवरिलं मंगलकएण दाहिणं सकहं । गिण्हइ सको हेद्विलयं च चमरो असुरराया ॥ २६ ॥ ईसाणिंदो वामं उवरिलं तस्स हिट्ठिमं च बली । इयरे सुरासुरिंदा जहारिहं अंगुवंगाई ॥ २७ ॥ तत्तो चियाय ठाणे विचित्तरयणेहिं विरइयं थूभं । निबाणगमणमहिमं जत्तेण कुणंति जयगुरुणो ॥२८॥ अह निवत्तियतकालजोग्गनीसेसनिययकायबा । सोगभरमंथरगिरं एवं भणिउं समाढत्ता ॥ २९॥ अजं चिय अत्यमिओ दिवायरो अज भारहं खेत्तं । अवहरियसाररयणं जायं नाहे सिवं पचे ॥३०॥ एत्तो पयंडभववेरिपीडियाणं पणबुद्धीण । अम्हारिसाण सरणं को होही नाह! तुह विरहे ? ॥ ३१ । ससुरासुरंपि भुवणं मन्ने निप्पुन्नयं समग्गंपि । अन्नह कुलसेलाऊ हुँतोसि तुमं जिणवरिंदा! ॥३२॥ अहवाऽवस्संभाविसु वत्थुसु संतावकप्पणा विहला । एकमियाणि विजयउ सइ तित्थं तुज्झ जपनाह ! ॥३३ ॥ इय जंपिऊण दुस्सहजयगुरुविरहग्गिदूमिया सक्का । नंदीसरंमि गंतुं काउं अट्ठाहियामहिमं ॥ ३४ ॥ For Private and Personal Use Only Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ८प्रस्तावः इन्द्रादिमिरंगादि नयनं निर्वाणमहश्व ॥३३९ ।। HOCAMERASADKAASCUR वचंति देवलोगं वइरामयवट्टवरसमुग्गेसु । जिणसंकहाओ ताओ खिवंति जत्तेण पूइत्ता ॥ ३५ ॥ अह सा जिणस्स निवाणजामिणीसुरतनूकउजोया । दीवूसवोत्ति अजवि पईवरिसं कीरइ जणेण ॥ ३६ ॥ गोअमसामीवि नहोयरंतसुरवरविमाणपेच्छणओ। नाउं जिणनिवाणं चिंतेउमिमं समाढत्तो ॥३७॥ एकदिणमेत्तकज्जेण कीस नाहेण पेसिओऽहमिहं ? । चिरसंथुएसु किं वा जुजइ एवं विहं काउं? ॥ ३८ ॥ हा हा अहं अहन्नो जो सुचिरं सेविऊण कमकमलं । पजंते जयगुरुणो संपइ विच्छोहिओ एवं ॥ ३९ ॥ अहवा जिणंमि वोच्छिन्नपेमदोसंमि कीस हे हियय ! । पढम चिय पडिवंधं कुणसि ? जमेत्तो वहसि सोगं ॥४०॥ संसारवल्लिजलसारणीसमो दुग्गदुग्गइदुवारं । सिवसोक्खखिराण मूलमणत्थाण पडिबंधो॥४१॥. ते धन्ना सप्पुरिसा लीलाए च्चिय निसुंभिओ जेहिं । सुहहरिणक्खयकारी मोहमहाकेसरिकिसोरो॥४२॥ इय सुक्कज्झाणानलनिदघणघाइकम्मदारुस्स । गोअमपहुस्स सहसा उप्पन्नं केवलं नाणं ॥४३॥ बारस वासाइं विबोहिऊण भवे सिवं गए तंमि । भयवं सुहम्मसामी निवाणपहं पयासेइ ॥४४॥ तंमिवि चिरकालं विहरिऊण सिरिजंबुसामिणो दाउं । गच्छगणाणमणुन्नं संपत्ते सिद्धिवासंमि ॥ ४५ ॥ एवं विजाहरनरसुरिंदसंदोहवंदणिजेसु । समइकतेसु महापहूसु सेजंभवाईसु ॥४६॥ अइसयगुणरयणनिही मिच्छत्चतमंधलोयदिणनाहो । दूरुच्छारियवइरो वइरसामी समुप्पन्नो ॥४७॥ MAR ॥३३९॥ For Private and Personal Use Only Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org साहाइ तस्स चंदे कुलंमि निप्पडिमपसमकुलभवणं । आसि सिरिवद्धमाणो मुणिनाहो संजमनिहिच ॥४८॥ बहलकलिकालतमपसरपूरियासेसविसमसमभागो। दीवेणं व मुणीणं पयासिओ जेण मुत्तिपहो ॥४९॥ मुणिवइणो तस्स हरअट्टहाससियजसपसाहियासस्स । आसि दुवे वर सीसा जयपयडा सूरससिणोच ॥५०॥ भवजलहिवीइसंभंतमवियसंताणतारणसमत्थो । बोहित्योच महत्थो सिरिसूरिजिणेसरो पढमो ॥५१॥ गुरुसाराओ धवलाउ सुविहिया (निम्मला पु.) साहुसंतई जाया।हिमवंताओ गंगव निग्गया सयलजणपुजा ॥५२॥ अन्नो य पुनिमायंदसुंदरो बुद्धिसागरो सूरी। निम्मवियपवरवागरणछंदसत्थो पसत्थमई ॥५३॥ एगंतवायविलसिरपरवाइकुरंगभंगसीहाणं । तेसिं सीसो जिणचंदसुरिनामो समुप्पन्नो ॥ ५४॥ संवेगरंगसाला न केवलं कवविरयणा जेण । भवजणविम्हयकरी विहिया संजमपवित्तीवि ॥ ५५ ॥ ससमयपरसमयन्न विसुद्धसिद्धंतदेसणाकुसलो। सयलमहिवलयवित्तो अन्नो ऽभयदेवसूरिचि ॥ ५६ ॥ जेणालंकारधरा सलक्खणा वरपया पसन्ना य । नवंग (सिद्धंत पु.)वित्तिरवणेण भारई कामिणिव कया ॥५७॥ तेसिं अस्थि विणेओ समत्थसत्थत्थबोहकुसलमई । सूरी पसन्नचंदो चंदो इव जणमणाणंदो ॥५८॥ तत्वयणेणं सिरिसुमइवायगाणं विणेयलेसेण । गणिणा गुणचंदेणं रइयं सिरिवीरचरियमिमं ॥ ५९॥ एयस्स विरयणंमी निबंधो जेसि गाढमुप्पन्नो । ते पुण मूलाओ चिय साहिते निसामेह ॥ ६ ॥ For Private and Personal Use Only Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥३४ ॥ ग्रन्थकृत्प्रशस्ति सियजसजोण्हाधवलियनायकुलनहयले मयंकुन्छ । पुवमहेसि महेसीपणओ सिरिजीवदेवपह ॥ ६१॥ तस्स सुसिस्सो सिद्धंतसिट्ठसुविसिट्ठसंजमाभिरओ। गुणरयणरोहणगिरी पयडो जिणदत्तसूरित्ति ॥ ६२ ॥ गंभीरिमाए पसमेण बुद्धिविभवण दक्षिणतेण । सुंदरनएण जेसि कोऽवि न तुल्लो जए जाओ॥६३॥ तेहितो पडिबुद्धो वायडकुलभवणजयपडायनिभो । कप्पडवाणिजपुरे सेट्ठी गोवद्धणो आसि ॥६॥ नंदीसरावलोयणमणाण भवाण दंसणत्थं च । कारावियं सुतुंगं बावन्नजिणालयं जेण ॥६५॥ धम्मधरणीए गिहिणीए तस्स सोढित्ति नामधेयाए । अगणिवगुणगणनिलया पुत्ता चत्तारि उप्पन्ना ॥६६॥ पढमो अम्मयनामो वीओ सिद्धोत्ति जजणागो य । तइओ चउत्थओ पुण विक्खाओ नन्नओ नाम ॥६७॥ नयविणयसच्चधम्मत्थसीलकलिरहिं जेहिं दिढेहिं । नूणं जुहिद्विलाई वि सहहिजंति सप्पुरिसा ॥६॥ अह संथारयदिक्खं पवजिउं भावसारमंतंमि । गोवद्धणमि सग्गं गयंमि तह पढमपुत्तदुगे ॥ ६९॥ सो सेट्टी जजणागो छत्तावल्लीए वासमकरिंसु । सबकणिटो नन्नयसेही पुण मूलठाणेवि ॥७॥ तेसिं च भइणिपुत्तो नियपुचाओवि गाढपडिबंधो। आसि जसणागनामो सेट्ठी सुविसिद्वगुणनिलओ॥१॥ अह नन्नयस्स पुत्ता पयडा सावित्तिकुच्छिसंभूया । दोन्नि चिय उप्पन्ना गोवाइचो कवडी य ॥ ७२ ॥ सगंजयपमुहसमत्थतित्थजचा पयट्टिया जेण । पढम चिय तस्स कवडिसेडिणो को समो होज॥७३॥ ॥३४॥ For Private and Personal Use Only Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पुरिसत्थकरणनिरयस्स जज्जणागस्स विस्सुयजसस्स । अस्थि जिणधम्मनिरया कलत्तगिह सुंदरी नाम ॥ ७४ ॥ जाओ तीसे सुंदरविचित्तलक्खणविराइयसरीरो । जेट्ठो सिट्टो पुत्तो बीओ पुण वीरनामोति ॥ ७५ ॥ को तेसि दाणविन्नाणबुद्धिसुविसुद्धधम्मगेहाण । निउणोऽवि गुणलवंपिडु होज समत्यो य वित्थरिडं १ ॥७६ ॥ नागो इव पिंडिज्जर वंभंडकरंडए अमायंतो । जस्स जसोहो सारयनिसिच्छणमयलंछणच्छाओ ॥ ७७ ॥ जिणबिंबसुपसत्यतित्यजत्ताहधम्मकरणेण । धम्मियजणाण मज्झे जेहि य पत्ता पढमरेहा ॥ ७८ ॥ अन्नाणतण्डसमणी सुयनाणपवा पयट्टिया जेहिं । सयलागमपोत्थयलेहणेण निञ्चपि भवाण ॥ ७९ ॥ तेहिं तित्थाहि परमभत्तिसङ्घस्समुद्दहंतेहिं । वीरजिणचरियमेयं कारवियं मुद्धबोहकरं ॥ ८० ॥ जमजुत्तमेत्थ भणियं नियमइदुब्बलओ मए किंपि । तं साहंतु गुणहा ओच्छाइयमच्छरा विउसा ॥ ८१ ॥ छत्तालिपुरी मुणिअंबेसरगिहंमि रइयमिमं । लिहियं च लेहरणं माहवनामेण गुण निहिणा ॥ ८२ ॥ नंदसिहिरुद्दसंखे (११३९) वोक्कंते विक्कमाओ कालंमि । जेट्ठस्स सुद्धतइयातिहिंमि सोमे समत्तमिमं ॥ ८३ ॥ नियसयलविग्धोऽणप्पमाहप्पजुत्तो जयइ जयपसिद्धो वद्धमाणो जिनिँदो । तणु जय तस्सासंख सोक्खेकमूलं, गरुयभवभयाणं नासणं सासणं च ॥ ८४ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatrth.org श्रीगुणचंद महावीरव० 8 प्रस्तावः अन्य कृत्प्रशस्तिः ॐ असिवसमणदक्खो पाणिणं कप्परक्खो, जय जयपयासो पासनाहो जिणेसो। तयणु जपइ वाणी दिवपंकेरहत्या, सुयश्यणपरित्ती पंकयालीयाहत्था / / 85 // इय जिणयरवीरस्सन्टुमो ताव वुत्तो, परमपयपयाणो नाम पत्थाव एसो।। चरियमवि समर एयसंकित्तणाओ, हवउ मुहकर वो नृणमाचंदसूरं / / 86 // एवं वीरजिणेसरस्स चरियं जे भावसारं जणा, वक्वाति पहंति निचलमणा निवं निसामिति य / तेसिं इट्ठविओगऽणि?पडणादोगच्चरोगावया-यामोक्र खयमेह दुक्खमखिलं सोक्खाणि वद्धंति य // 8 // // 341 // 26364525 %A4%CEO-C4544 // ग्रंथानं. 12025 // शुभं भवतु श्रीसंघस्य / / // 34 // यावल्लवणसमुद्रो यावन्नक्षत्रमंडितो मेरुः / यावचन्द्रादित्य तावदिदं पुस्तकं जयतु // For Private and Personal Use Only