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सुन्नीभवंतेसु पवर मंदिरेसु बुच्छिजमाणेसु य अइगरुयकुलेसु मडयकोडिसंकुलासु गामरत्यासु भयभीओ अबसेसो जणो जीवियरक्खणनिमित्तं लिहावेइ रक्खावलयं पाणिपल्लवेसु बंधेइ दिबोसहीओ कुणइ महागहपूयं समायरइ पियरपिंडप्पयाणं परावत्तेइ विविहमंते समीवट्ठियं धरइ दिवमणिगणं पयट्टावेइ होमविहिं आपुच्छर जाणयजोइसिए समारंभइ गिहदेवयाणं ण्हवणबलिपूयामहूसवं, अन्नंपि जं कोइ समाइसइ तं सवं तहट्ठियं निचत्ते, तहवि ओइण्णमहाजरोच पढमछुहाभिभूयपंचाणणोच निकाइयकम्मनिवहोष न मणागंपि सो सूलपाणिवंतरी उवसमं गच्छइत्ति । अह गामजणो अणिवत्तगं दट्टण मारिं धणकणगसमिद्धाई गोमहिसितुरगाइपरिकिन्नाई गिहाई मोत्तूण जीवियट्टयाई नियनियकुटुंबाई घेत्तूण अन्नन्नगामेसु गओ, तत्थवि गयं महावेरिओघ उवद्दवइ सो तग्गामवासिलोयं, एगया य तेसिं चिंता जाया-न नज्जइ तत्थ अम्हेहिं देवो वा दाणवो वा खेत्तवालो वा जक्खो वा रक्खसो वा विराहिओ होज्जा, तम्हा तर्हि चेव गंतूण पसाएमोत्ति संपधारिऊण समागया तत्थेव गामे, उवट्ठाविया बलिकुसुमधूवाइसामग्गी, तयणंतरं पहाया पंडुरवत्थकयउत्तरासंगा लंबंतविमुक्ककेसा सबसमुदाएणं तियचउक्कचचरेसु पडिसडियभूयगिहेसु रुहखंदावसहेसु उज्जाणेसु य बलिं च कुसुमपयरं च मुंचमाणा उद्दमुहा जोडियकरंजलिणो एवं जंपिउं पत्ता
भो अंतरिक्खनिलया देवासुरजक्खरक्खकिंपुरिसा । दिवाइसयसमेया निसुणह विन्नत्तियं एयं ॥ १ ॥
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