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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओण दीसंति तुह सन्निहा हालिया, धरइ लीलाएँ मुसलंपि किल महिलिया। एवमुलाविरं वइरिसत्यं बलो, सरइ वेगेण करकलियसियलंगलो ॥ १३ ॥ केऽयि मुट्टिप्पहारेण ताडइ भडे, अवरि मुसलेण चूरइ सहावुभडे । हलसिहग्गेण केसिपि उरु दारए, अन्नि चलणप्पहारेण मुसुमूरए ॥ १४ ॥ एकघाएण पाडइ महाकुंजरे, तणयपूलं व गयणे खिवइ रहवरे । मुयइ करुणाय परिचत्तसयलाउहे, ठाइ निग्गयपयावोऽवि नो से मुहे ॥१५॥ इय निदुरगत्तेण निरुवमसत्तण निहरेण बलदेवेण बलु बलु विरियहं । तक्खणि विद्धंसिओ भडमउ नासिउ सयलदिसामुह पसरियहं ॥ १६ ॥ एवं चिय पइदिवसं दोण्हवि सेन्नाण जुज्झमाणाणं । विविहप्पयारभीमं एयं जायं समरठाणं ॥ १७॥ एगत्य पडियनरवइपियंगणाकरुणरुनरवभीमं । अन्नत्य बंदितज्जणसवडंमुहचलियपडिसुहडं ॥१८॥ एगत्थ दंतिदसणग्गभिन्नसूरासिलेहहयरहियं । अण्णत्थ भीयकायरनियमुहखित्तंगुलीवलयं ॥ १९॥ एगतो ऊसियकरमाहूयऽण्णोण्णवीरवरपुरिसं, अश्वत्थोमिंठविणटुर्मिठपरिभमियगयनिवहं ॥२०॥ एगत्थुत्तालिमिलंतघोरवेयालविहियहलबोलं, अन्नत्थ सिवागणखजमाणगयजीवनरनिवहं ॥ २१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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