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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७ महा० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पच्छा भरेंति करवत्तयाई दिइणो य कलसए चेत्र । दुलहं लद्धं वत्थं कह वा नो घेप्पइ जण ? ॥ ११ ॥ जाया पुणोवि चिंता तेसिं जह सलिलमित्य लद्धमहो । तह बीयमुहे खणिए पाविजइ नूण तवणिज्जं ॥ १२ ॥ तादिह पुणरविवम्मियस्स बीयं मुहं लहुं चेव । इय भणिए पुरिसेहिं तहत्ति सत्रं तओ विहियं ॥ १३ ॥ ताहे सुजच्चकंचणनिचयं तत्तो विणिग्गयं संतं । हरिसुलसियसरीरा गिण्हंति जहिच्छियं वणिया ॥ १४ ॥ हिट्ठा भणति वम्मियनिभेण चिंतामणी पंथावरणा । अम्हारिसपहियाहियट्टयाए मन्ने कओ एत्थ ? ॥ १५ ॥ ता अज्जवि तइयमुहं भेत्तवं होइ संपयमिमस्स । संभाविज्जंति इमंमि जेण रयणाणि मणिणो य ॥ १६ ॥ एत्थंतरंभि पुरिसेहिं भिंदियं तंपि लोभनडिएहिं । अह नीहरियाई तओ रयणाइँ अगभेयाई ॥ १७ ॥ कणगं परिहरिऊणं महग्घरयणेहिं तेहिं सगडाई । भरियाई गाढपहरिससंभारं उवहंतेहिं ॥ १८ ॥ नवरं चत्थमिय मुहंम भेत्तुं पयट्टिया वंछा । तेसिं तु उत्तरोत्तरविसिट्ठवत्थूण लाभेण ॥ १९ ॥ अह जाव तं विहाडिंति नेव तावेगथेरपुरिसेण । तेसिं हियत्थिणा सुद्धबुद्धिणा जंपियं एयं ॥ २० ॥ भो भो देवापिया ! जलं च कणगं च रयणनिवहं च । लद्धूण मुयह वम्मियमहुणा वच्चह सगेहे ॥ २१ ॥ काण गईओ हुंति कुडिलाओ । सिट्ठो सिद्धतेविद्दु लोभो मूलं विणासस्स ॥ २२ ॥ alisa सिद्धमिमं जं किर निवसति गाढदाढिला । अञ्चंततिवदप्पा सप्पा वम्मियनिवासेसु ॥ २३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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