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श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः
॥ २८८ ॥
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किरिणो दढदसणग्गताडणुष्णन्नतिच्चवेयणओ । मरिडं विंझंमि तुमं पुणरवि जाओ गयाहिवई ॥ ५ ॥ वणवपलोयणेण य जाई सरिऊण भयवसट्टेण । रुक्खे उक्खणिऊणं अवणित्ता तणपलालाई ॥ ६ ॥ करयलसमाई तिन्नि उ महापमाणाई थंडिलाई तए । सरियातीरे पकयाई निययगयजूहरकखट्ठा ॥ ७ ॥ जुम्मं । अह अन्नया कयाई तरुवरसंघ रिससंभवो जलणो । दहिउं वणं पयट्टो पलयानलविग्भमो भीमो ॥ ८ ॥ तं पेच्छिऊण भीओ तुमं पलाणो सथंडिलाभिमुहं । हरिहरिणससगसूयरप डिहत्थे थंडिले दुन्नि ॥ ९ ॥ लंघित्ता तइयंमिं संपत्तो अच्छिउं समाढत्तो । चरणो य समुक्खित्तो कंडुयणकए तए तणुणो ॥ १० ॥ एत्थंतरंमि अन्नन्नसत्तसंपेलिओ ससो एगो । उक्खित्तचरणहेट्ठा ठिओ सजीयस्स रक्खट्ठा ॥ ११ ॥ तं दणं तुमए पहेठियं पराए करुणाए । आकुंचिऊण धरिओ नियचलणो गयणदेसंमि ॥ १२ ॥ अह वणदवोऽवि दहि सयलं अडविं महाविडविपुन्नं । उवसंतो ते य गया जहागयं ससगपमुहजिया ॥ १३ ॥ ता हापिवासात तो तंपि सिग्धवेगेण । अमुणियकुटियसचलणो पधाविओ पाणियाभिमुहं ॥ १४ ॥ अह एगचलणवियलत्तणेण पडिओ तुमं गिरिवरोध । तण्हाछुहाकिलंतो कालगओ बहुकिलेसेण ॥ १५ ॥ तेण य ससगणुकंपणस मुवज्जियपुन्नपगरिसवसेण । लहुईकयसंसारो संपइ जाओसि रायसुओ ॥ १६ ॥ इय भो देवाणुप्पिय! तइया पसुणावि जइ तहा तुमए । ससगजियरक्खणेणं वाढं दुक्खाई सहियाई ॥ १७॥
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मेघस्थ दीक्षा पूर्व
भवश्रावणं च.
॥ २८८ ॥