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संभंतनयणो इओ तओ सयलं अवलोइउं पयत्तो, जाव तहेव सङ्घओ पलोयमाणस्स पच्छिमदिसिमवलंबियं भाणुबिंबं, विष्फुरिया बालप्पवालपाडला किरणा वाउलीहूयाई रहंगमिहुणाई, तओ गोभद्देण निवेइया गंगातारगाण वत्ता, जहा भो भद्दा ! अभ्यंतरूवो वरपुरिसो एत्थ तित्थंमि पविट्ठो, सो य संपयं दुत्तरउत्तुंगतरंग परंपरा पच्छाइओ या मगराइदुट्ठसत्तनिकंतिओ वा विसमपंकनिमग्गो वा भवेज्जत्ति न जाणिज्जइ परमत्थो, ता लहुं तविरहतरलियं मम जीवियं अणुकंपमाणा पविसह नईमज्झे निरुवह तं महाभागं, मा अपत्थावे चिय अत्थमउ तारिसवरपुरिसदिणयरो, मा आजम्मं पाउन्भवउ सुरतरंगिणीए एरिस महाकलकोत्ति भणियावसाणे करुणापरवसीकयहियया पहाविया सबओ तारगा, समारद्धं च अमरसरियावारिप्पवाहावगाहणं, अह सच्चायरेण दीहप्पसारियभुयाहिं आलोडिऊण जलं तेसु तेसु ठाणेसु आमूलाओ कत्थवि तं अलभमाणा पडिनियत्ता तारगा, निवेइया तदसंपत्तिवत्ता गोभद्दस्स, सो य गाढमुग्गराभिहओव दुस्सहसोगावेगविहलंघलसरीरो विर्चितिउमारद्धो
कह जणनयणाणंदो समुग्गओ सरयपुण्णिमाइंदो | कह दादुग्गाढमुद्देण कवलिओ सो विडप्पेण ? ॥ १ ॥ कह भूमंडलमंडणकप्पो कप्पदुमंकुरो जाओ । कह वा मूलाओ चिय समुक्खओ वणवराहेण ? ॥ २ ॥ कह एस भुवतिलओ विज्जासिद्धो अकारणसिणिद्धो । मइ मित्तत्तमुवगओ कह वा असणं पत्तो १ ॥ ३ ॥ मम मंदभग्गयाए मण्णे तस्सेरिसी दसा जाया । जत्थऽल्लियइ कवोडो सचं सा सुसइ तरुसाहा ॥ ४ ॥
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