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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संभंतनयणो इओ तओ सयलं अवलोइउं पयत्तो, जाव तहेव सङ्घओ पलोयमाणस्स पच्छिमदिसिमवलंबियं भाणुबिंबं, विष्फुरिया बालप्पवालपाडला किरणा वाउलीहूयाई रहंगमिहुणाई, तओ गोभद्देण निवेइया गंगातारगाण वत्ता, जहा भो भद्दा ! अभ्यंतरूवो वरपुरिसो एत्थ तित्थंमि पविट्ठो, सो य संपयं दुत्तरउत्तुंगतरंग परंपरा पच्छाइओ या मगराइदुट्ठसत्तनिकंतिओ वा विसमपंकनिमग्गो वा भवेज्जत्ति न जाणिज्जइ परमत्थो, ता लहुं तविरहतरलियं मम जीवियं अणुकंपमाणा पविसह नईमज्झे निरुवह तं महाभागं, मा अपत्थावे चिय अत्थमउ तारिसवरपुरिसदिणयरो, मा आजम्मं पाउन्भवउ सुरतरंगिणीए एरिस महाकलकोत्ति भणियावसाणे करुणापरवसीकयहियया पहाविया सबओ तारगा, समारद्धं च अमरसरियावारिप्पवाहावगाहणं, अह सच्चायरेण दीहप्पसारियभुयाहिं आलोडिऊण जलं तेसु तेसु ठाणेसु आमूलाओ कत्थवि तं अलभमाणा पडिनियत्ता तारगा, निवेइया तदसंपत्तिवत्ता गोभद्दस्स, सो य गाढमुग्गराभिहओव दुस्सहसोगावेगविहलंघलसरीरो विर्चितिउमारद्धो कह जणनयणाणंदो समुग्गओ सरयपुण्णिमाइंदो | कह दादुग्गाढमुद्देण कवलिओ सो विडप्पेण ? ॥ १ ॥ कह भूमंडलमंडणकप्पो कप्पदुमंकुरो जाओ । कह वा मूलाओ चिय समुक्खओ वणवराहेण ? ॥ २ ॥ कह एस भुवतिलओ विज्जासिद्धो अकारणसिणिद्धो । मइ मित्तत्तमुवगओ कह वा असणं पत्तो १ ॥ ३ ॥ मम मंदभग्गयाए मण्णे तस्सेरिसी दसा जाया । जत्थऽल्लियइ कवोडो सचं सा सुसइ तरुसाहा ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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