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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ८प्रस्ताव ॥३०९॥ वणदुटुमक्कडी तडतडत्ति पुच्छच्छडाहिं ताडती । तत्तो विडंत्रियमुही नीहरिया घुरुहुरंती सा ॥ ४ ॥ जुम्मं । तुर्याणुव्रते आ कीस चंदवयणे! करेसि रोसंति वाहरंतो सो। चुंवणवंछाए मुहं तदभिमुहं जाव संठवइ ॥ ५॥ सुरेन्द्रदत्तपढम चिय ताव तडत्ति तोडिओ तिक्खदसणकोडीहिं । तीए नासावंसो मूलाओ चिय समग्गो सो॥६॥ कथायां तयणंतरं च अइतिक्खनक्खनिवहेण दारियं अंगं । आमूलाओ उम्मूलियावि सवणावि से ताए ॥ ७॥ | शुभंकरा ख्यानं. अणिवारियपसराए एवं तीए हणिजमाणेण । तेण भयकंपिरेणं वाहरियं गुरुसरेणेवं ॥८॥ रे रे धावह सिस्सा! उग्घाडह मंदिरस्स दाराई। एस पिसाईए अहं निजामि जमस्स गेहम्मि ॥९॥ इय एवं वाहरंतो भयवससंखुद्धमाणसो धणियं । तायारमलभमाणो नहदंसणुलिहियसबंगो ॥१०॥ रोसुकडाए वणमक्कडीए पुणरुत्तघुरुहुरंतीए । तह विणिहओ वरागो जह सो पंचत्तमणुपत्तो ॥११॥ अह उग्गयंमि दिपयरे समागया तस्स सीसा, कया तेहिं सद्दा, न देइ सो य पडिवयणं, तओ विहाडियाई कवाडाई, दिट्ठो विणट्ठजीओ सुहंकरो, सावि वणमक्कडी उग्धाडिएसु कबाडेसु पलाइऊण गया जहागयं, सीसेहि-14 वि अमुणियपरमत्थेहिं कओ सुहंकरस्स सरीरसक्कारो । ॥३०९॥ इय भो कुमार! विसयाउराण अप्पुन्नवंछियट्ठाणं । निवडंति आवयाओ पयडंचिय जेण भणियमिमं ॥१॥ सलं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा । कामे पत्थेमाणा, अकामा जंति दुग्गई ॥२॥ -CAAASA For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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